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भारत का ये राज्य नीट से क्यों पाना चाहता है छुटकारा
29-Jun-2024 11:13 AM
भारत का ये राज्य नीट से क्यों पाना चाहता है छुटकारा

-शारदा वी.

साल 2017 में स्कूल टॉपर एस अनीता ने 12वीं की परीक्षा में 1200 में से 1176 नंबर हासिल किए थे, पर नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) में कम नंबरों की चलते मेडिकल में एडमिशन पाने में असफल रहीं.

अगर 12वीं के नंबर के आधार पर मूल्यांकन होता, जैसा कि 2016 में राष्ट्रीय स्तर के नीट प्रवेश परीक्षा शुरू होने से पहले होता था, तो 17 साल की अनीता को शीर्ष मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल जाता.

अपनी विफलता से निराश अनीता ने आत्महत्या कर ली.

तमिलनाडु के पिछड़े अरियालुर ज़िले के एक दिहाड़ी मज़दूर की बेटी की मौत से पूरे प्रदेश में आक्रोश फूट पड़ा.

सत्तारूढ़ डीएमके ने नीट पर रोक लगाने की बात की और दावा किया कि एमबीबीएस में दाख़िला पाने में असफल होने के कारण पिछले सात सालों में 26 विद्यार्थियों ने ख़ुदकुशी कर ली. हालांकि इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है.

आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.

ग़रीब परिवारों के आने वाले छात्रों का डॉक्टर बनने का सपना छोड़ने के पीछे, महंगे कोचिंग सेंटरों और इससे जुड़े खर्चों को आलोचक दोषी मानते हैं.

छात्रों पर नीट के प्रभाव पर अध्ययन के लिए तमिलनाडु सरकार की ओर से बनाई गई जस्टिस एके रंजन कमेटी का कहना है कि 2017 के बाद से 400 नए कोचिंग सेंटर खुल गए हैं और यह उद्योग 5,750 करोड़ रुपये का हो गया है.

अनीता के भाई एस मणिरत्नम, जो उनके नाम पर एक लाइब्रेरी चलाते हैं, कहते हैं, "नीट सभी के लिए बराबरी का अवसर नहीं मुहैया कराता है."

उन्होंने कहा, "साल 2017 में, तमिलनाडु एकमात्र राज्य था जिसने नीट को रदद् करने की मांग की थी. अब पूरा देश वही मांग कर रहा है, जो तमिलनाडु ने मांग की थी."

नीट पेपर लीक के हालिया आरोपों और इससे संबंधित गिरफ़्तारियों की ख़बरों पर राज्य में बहुत क़रीब से नज़र रखी जा रही है.

इस परीक्षा में 24 लाख विद्यार्थी बैठे थे. इसमें धांधली के आरोप लगे हैं और कई छात्रों ने संदेहास्पद तरीके से बहुत अधिक नंबर हासिल किए हैं.

दोबारा परीक्षा कराए जाने की मांग के बीच परीक्षा को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. इस संबंध में एक जांच चल रही है.

रिटायर्ड जस्टिस एके रंजन ने बीबीसी से कहा, "नीट केवल ग़रीब विरोधी और ग्रामीण विरोधी ही नहीं है बल्कि यह ग़ैरक़ानूनी भी है, जिसके बारे में मैंने अपनी रिपोर्ट में समझाया है. मेरी रिपोर्ट सही थी और अब उसका पक्ष और मजबूत हुआ है."

तमिलनाडु में किसी भी राज्य के मुक़ाबले सबसे अधिक 36 मेडिकल कॉलेज हैं.

जस्टिस एके रंजन कमेटी के सदस्य और मैसूर में जेएसएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर जवाहर नेसान ने आरोप लगाया, "नीट ने दलालों की भूमिका और धांधलियों को और बढ़ाया है."

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकार किया है कि "कुछ सीमित जगहों पर कुछ ग़लतियां सामने आई हैं", जबकि इससे पहले उन्होंने पत्रकारों से कहा था, "कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ."

ढेरों सफ़ाई दी गई लेकिन सलेम ज़िले के 23 साल के साथ्रियन जैसे छात्र अपने सपने पूरे नहीं कर सके.

साथ्रियन ने 2018 में 10वीं कक्षा में 500 में से 485 अंक प्राप्त किए और 12वीं में 1200 में से 1019 अंक.

उन्होंने 2019 से नीट की पांच बार परीक्षा दी लेकिन कभी पास नहीं हुए.

अब वो ग्रामीण पोस्टमैन के रूप में काम करते हैं. उनके पिता दिहाड़ी मज़दूर थे, जो अब एक छोटी सी दुकान चलाते हैं.

साथ्रियन अब दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ज़ूलॉजी पढ़ रहे हैं.

उन्होंने बताया, "कुछ सामाजिक संगठनों की मदद से मैंने केरल में कोचिंग क्लास किया, जिसका खर्च 70,000 रुपये पड़ा."

वो कहते हैं, "जब पहली बार नीट का मैंने एग्ज़ाम दिया तो उसके कुछ महीने पहले मैंने नीट की कोचिंग की थी. लेकिन उसके बाद मेरा परिवार कोचिंग का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था. इसलिए मैंने खुद से पढ़ाई की लेकिन मैं यह परीक्षा पास नहीं कर सका."

कुछ एक्सपर्ट्स का दावा है कि नीट में परीक्षा देने के कौशल की ज़रूत पड़ती है, सिर्फ जानकारी से नहीं काम चलता.

एक वरिष्ठ एजुकेशनल कंसल्टेंट नेदुंजेलियन ने कहा, "ये महारत आम तौर पर महंगे कोचिंग क्लासेज़ के माध्यम से हासिल की जाती है. गांवों के ग़रीब छात्र इन कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते, भले ही वो अपनी 12वीं की परीक्षा में बहुत अच्छे नंबरों से पास हुए हों. नीट में परीक्षा के प्रारूप और टाइमिंग की जानकारी अहम है. यही नीट की बुनियादी गड़बड़ी है."

ऊपर से अंग्रेज़ी के अलावा किसी अन्य भाषा में परीक्षा देना भी 'चुनौती' है.

नीट की परीक्षा अंग्रेज़ी समेत 13 भाषाओँ में दी जा सकती है लेकिन आलोचकों का कहना है कि भाषाई संरचना और प्रश्न पत्रों के ट्रांसलेशन में कथित ग़लतियों, अध्ययन सामग्री की बहुत कम उपलब्धता और कोचिंग सेंटरों में तमिल शिक्षकों की कमी के कारण, अंग्रेज़ी के अलावा किसी अन्य भाषा में एग्ज़ाम देना छात्रों के लिए आसान नहीं है.

'टेक फ़ॉर ऑल' संगठन के राम प्रकाश ने 2018 में ऑनलाइन तमिल क्लास चलाया था.

उन्होंने कहा, "अन्य भषाओं की किताबों में वैज्ञानिक शब्दों को अंग्रेज़ी में ही रखा गया है जैसे 'डाया मैग्नेटिक,' लेकिन छात्रों को इन परिभाषाओं का तमिल अनुवाद दिया गया था, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. तमिल माध्यम में पढ़ाई करने के बावजूद, अब अधिक से अधिक छात्र अंग्रेज़ी में एग्ज़ाम देने का विकल्प चुन रहे हैं."

तमिल माध्यम से तिरुपुर ज़िले की रहने वाली पद्मिनी ने इसी साल 12वीं पूरी की और नीट की परीक्षा दी थी.

उन्होंने कहा, "मैं अकेली नहीं हूं. मेरी क्लास के बहुत से बच्चे ऐसा ही सोचते हैं. हमारे स्कूल के कुछ टॉपर बिना कोचिंग क्लास किए तीन चार साल से कोशिश कर रहे हैं लेकिन बेनतीजा हैं."

जबसे नीट लाया गया तभी से तमिलनाडु इसका विरोध कर रहा है. साल 2016 में जब इसे पूरे देश में लागू किया तो राज्य को नीट से एक बार के लिए छूट दी गई थी.

विशेषज्ञों का कहना है कि तमिलनाडु का विरोध पहले की व्यवस्था में व्यवधान से उपजा था, जब सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन कक्षा 12वीं के अंकों के आधार पर होता था.

2021 में आई रंजन कमेटी की रिपोर्ट ने कहा था कि नीट मेडिकल पढ़ाई में समाजिक विविधता को नज़ंरअंदाज़ करती है और संपन्न लोगों का पक्ष लेती है.

इसमें कहा गया था कि नीट को वे छात्र पास करते हैं जो दोबारा एग्ज़ाम में बैठते हैं (2021 में 71%) और जो कोचिंग लेते हैं (2020 में 99%), यह पहली बार टेस्ट देने वालों छात्रों के प्रति पूर्वाग्रह दिखाता है.

अध्ययन ने मेडिकल दाख़िलों में ग़ैरबराबरी का ज़िक्र किया और दिखाया कि अरियालुर और पेराम्बलुर जैसे पिछड़े ज़िलों से मेडिकल सीट आवंटन में 50% की कमी आई, जबकि चेन्नई जैसे शहरी केंद्रों से इसमें वृद्धि देखने को मिली.

पहली पीढ़ी के स्नातकों (9.74%), ग्रामीण अभ्यर्थियों (12.1%) और निम्न आय वर्ग की पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के दाख़िले में गिरावाट आई है.

साल 2016-17 में तमिल माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्रों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले में हिस्सेदारी 14.88% थी. 2017 में यह हिस्सेदारी गिर कर 1.6% हो गई और 2021 में लगभग इतनी ही, 1.99% बनी रही.

रिपोर्ट की सिफ़ारिशों के अनुसार, सरकार ने 'तमिलनाडु एडमिशन टू अंडरग्रैजुएट मेडिकल डिग्री कोर्स बिल, 2021' पास किया जिसमें मेडिकल दाख़िलों में स्वायत्तता की मांग की गई है.

जवाहर नेसान ने दावा किया, "अगर नीट मेरिट के आधार पर है तो नीट टॉपर्स में, स्कूल टॉपर्स भी क्यों नहीं हैं? इसीलिए, 12वीं के अंक के आधार पर छात्रों का दाख़िला सबसे बेहतर तरीक़ा है."

पेशेवर विषयों के लिए प्रवेश परीक्षाओं की वैधता का अध्ययन करने के लिए 2006 में राज्य सरकार की ओर से बनाई गई आनंदकृष्णन कमेटी के सदस्य नेदुंजेलियन ने कहा, "हमने आंकड़े इकट्ठे किए और नतीजा निकाला कि प्रवेश परीक्षाएं प्रभावी नहीं हैं. बोर्ड परीक्षाओं को और कड़ा किया जा सकता है और परीक्षा के दौरान शिक्षकों को दूसरे ज़िलों में स्थानांतरित किया जा सकता है."

लेकिन सरकार का कहना है कि पहले की व्यवस्था के तहत हर कॉलेज के लिए आवेदन करना "आर्थिक बोझ" और "भावनात्मक रूप से थकाऊ" था, इससे मौजूदा व्यवस्था कहीं बेहतर है.

नीट एक्ज़ाम कराए जाने में कुप्रबंधन के आरोपों के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, "केंद्रीयकृत दाख़िला प्रक्रिया सबसे आदर्श है, जिसमें एक परीक्षा, एक मेरिट लिस्ट और बाधाहीन दाख़िले होते हैं. यह छात्रों और अभिभावकों को पूरे देश में सबसे अच्छे अवसर चुनने का मौका देता है. हालांकि, यह बिचौलियों के दख़ल और भ्रष्टाचार को कम करता है, जबकि पहले इसके कारण भारी भरकम कैपिटेशन फ़ीस थी और बिचौलियों की चांदी थी." (bbc.com/hindi)

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