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निशाने पर वे ही रहे
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस में शिकवा शिकायतों का दौर चल रहा है। इन सबके बीच वीरप्पा मोइली कमेटी ने प्रत्याशियों से भी वन टू वन चर्चा कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की है।
सुनते हैं कि एक महिला प्रत्याशी ने अपनी हार के लिए तमाम पूर्व विधायक, और जिले के पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। महिला प्रत्याशी ने कहा बताते हैं कि पार्टी के एक सीनियर नेता को छोडक़र किसी ने भी उनके लिए काम नहीं किया। एक तरह से पार्टी के नेता भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में थे, और इसी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
महिला प्रत्याशी ने राहुल गांधी की टीम तक अपनी बात पहुंचा दी है। इससे परे राजनांदगांव के प्रमुख नेताओं ने मोइली के सहयोगी हरीश चौधरी से मिलकर विस्तार से अपनी बात रखी है। स्थानीय नेताओं का कहना था कि पार्टी के लिए इस बार अनुकूल माहौल था, लेकिन भूपेश बघेल को प्रत्याशी बनाकर बड़ी भूल कर दी। यही नहीं, पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने वीरप्पा मोइली से अकेले में मिलकर हार के कारणों को विस्तार से बताया।
ताम्रध्वज दुर्ग सीट से लडऩा चाहते थे, लेकिन उन्हें महासमुंद शिफ्ट होना पड़ा। ताम्रध्वज दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपनी बात रखेंगे। कुल मिलाकर भूपेश बघेल ही असंतुष्टों के निशाने पर रहे हैं।
सर लूप लाइन में जाना चाहता हूं
सरकारी महकमे खासकर पुलिस में आईपीएस हो या सिपाही हर कोई लूप लाइन में जाने से बचना चाहता है। फ्रंट रनर बने रहना चाहती है । विभाग में जिले से लेकर पीएचक्यू तक कुछ पद ऐसे रहते हैं जिन्हें लूप लाइन पोस्ट कहा जाता हैं। जहां बतौर सजा, या नापसंदगी को आधार पर भेजा जाता है। और इससे बचने बड़ा खर्च करते रहे हैं। लेकिन इन दिनों कुछ उल्टा ही हो रहा है। पुलिस के टेलीकॉम जैसे लूप लाइन विभाग में जाने के लिए लग रही है बोली। पीएचक्यू में चर्चा है कि लूप लाइन जाने के लिए अफसर सेवा सत्कार के लिए भी तैयार हैं। रेडियो एसपी के पद के लिए भी होड़ लगी है। कांकेर, कोंडागांव, जगदलपुर में एएसपी पद के लिए लाखों देने तैयार हैं। कारण यह कि कोई भी नक्सल क्षेत्र में काम नहीं करना चाहता। और फिर नेताओं की बढ़ती बेगारी कौन सम्हाले। सो, लूप लाइन ही सही मैदानी क्षेत्र में रहकर नौकरी काटना चाहता है। इसके लिए मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक हर स्तर में उनकी पैरवी हो रही है। इसकी पुलिस महकमे में जमकर चर्चा है।
ताक पर रखा आरोप पत्र
15 विधायकों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा के लिए किसी ने नहीं सोचा था कि कांग्रेस की सरकार जाएगी। क्योंकि चुनाव आने तक राज्य में कोई मुद्दा नहीं था। लेकिन भ्रष्टाचार का मुद्दा ऐसा जोर पकड़ा कि लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। 36 आरोप निकाल कर प्रभावशाली लोगों को फोटो सजा दी गई। वह भी अपना पराया देखते हुए। इस तरह से सजाए गए आरोप पत्र को इसे एक बड़े नेता के हाथों जारी करवा जनता को भरोसा दिलाया गया कि भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। केंद्रीय नेतृत्व ने भी पुरजोर आश्वासन दिया था, लेकिन सरकार आते ही गंगा उल्टी बहने लगी है। जिन लोगों के नाम आरोप पत्र में लिए गए थे या जो आरोपों में घिरे हैं। उन्हें ही बगल में बैठाकर अधिकारी भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं। और पार्टी नेता अपने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश को किनारा करते हुए अब कहने लगे हैं कि किसी को बयान के आधार पर आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जून-23 में जो आंखों की किरकिरी बने हुए थे, वो अब लख्ते जिगर हो गए हैं। और कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि अगर ऐसा है तो आरोप पत्र किसके बयान के आधार पर बनाया गया। क्या आरोप पत्र सिर्फ जनता को दिखाने के लिए था।
टेलीफोन अफसरों की बिदाई
भारतीय दूरसंचार सेवा 09 बैच (आईटीएस) के अफसर पोषण चंद्राकर की सेवाएं मूल विभाग को लौटा दी गई हैं। राजनांदगांव के मूल निवासी चंद्राकर 2017 में भाजपा शासन में प्रतिनियुक्ति पर राज्य शासन में आए थे। पिछले वर्ष उनकी सेवा बढ़ाई गई थी।
वापस मूल विभाग बीएसएनएल भेजे जाने के बाद पोषण का मन सरकारी नौकरी से उचट गया है। उनके नौकरी से इस्तीफा दे देने की चर्चा है। वे गृहनगर में अब भाजपा से राजनीति शुरू करने का फैसला किया है। वैसे इनका पाटन वाले दाऊ से भी गहरा रिश्ता रहा है। कई आईएएस दाऊ से रैपो बनाने को लिए इन्हें माध्यम बनाते रहे हैं। वैसे राजनीति इन्हें विरासत में मिली है। और मन में छत्तीसगढिय़ावाद कूट कूट कर है। इनके माता-पिता नांदगांव में पार्षद रह चुके हैं।
इसके साथ ही आईटीएस सेवा के चारों अफसर राज्य शासन से मुक्त हो गए हैं । इनमें एपी त्रिपाठी शराब घोटाले और मनोज सोनी कस्टम मिलिंग घोटाले में गिरफ्तारी के बाद निलंबित कर दिए गए हैं। वहीं विजय छबलानी अपने निर्विवाद कार्यकाल के बाद वापस मूल विभाग लौट गए।
अकेली मां ही जिम्मेदार?
मस्तूरी में आखिरकार 24 दिन की मासूम तारा की हत्या के आरोप में उसकी मां को गिरफ्तार किया गया है। तारा से पहले उसकी और दो बेटियां हैं। तारा तीसरी थी। आरोपी मां का बयान है कि तीन बार बेटी ही पैदा करने के कारण लोग ताना मारते, उसकी ससुराल में इज्जत घट जाती, इसलिये उसे खत्म कर दिया। इधर, कल ही तेलंगाना के महबूबाबाद नगर के अच्छे कमाने-खाने वाले परिवार से खबर आई कि सुहासिनी नाम की 8 माह की गर्भवती महिला की तब मौत हो गई, जब उसका गर्भपात किया जा रहा था। सुहासिनी का अवैध तरीके से भ्रूण परीक्षण किया गया था। आठ माह में गर्भ गिराना तो वैसे भी अवैध है। सुहासिनी जान पर खतरा जानते हुए भी इसलिये राजी हो गई क्योंकि उसके सास-ससुर ने चेतावनी दी थी कि यदि तीसरी बार भी लडक़ी पैदा हुई तो वे अपने बेटे की दूसरी शादी कर देंगे।
मस्तूरी का मामला ज्यादा अलग नहीं है। मां ने जब अपराध कबूल कर लिया तो पुलिस को ज्यादा खोजबीन की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसका काम पूरा हो गया, कोई और इस जुर्म में भागीदार नहीं है। पर कुछ सवाल तो रह गए हैं कि क्या तीसरी बार लडक़ी पैदा होने के बाद उसके ससुराल, मायके, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और गांव वालों का उसके साथ बर्ताव सामान्य था? मां को ऐसा क्यों लगा कि तीसरी बेटी होने के कारण उसका मान-सम्मान घट जाएगा? हो सकता है कि उसे किसी ने कुछ नहीं कहा हो, पर उसने अपने आसपास के समाज-बिरादरी से मिले अनुभव से ही धारणा बना ली हो? महबूबाबाद के मामले में तो डॉक्टर, कंपाउंडर और ससुराल वालों सहित 6 लोग गिरफ्तार कर लिए गए हैं। गर्भपात और मौत में उनकी संलिप्तता के साक्ष्य हैं। पर मस्तूरी के मामले में कानून की दृष्टि से केवल मां ही दोषी है और कोई नहीं।
उरला के डॉक्टर और माड़ की मितानिन
अबूझमाड़ में प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला को 108 की टीम लेने गई। पता चला कि गांव तक एंबुलेंस पहुंच ही नहीं सकती। वाहन खड़ी कर स्ट्रेचर लेकर स्टाफ पैदल दो किलोमीटर दूर गांव पहुंच गया। वहां से महिला को स्ट्रेचर पर उठाकर वापस आ रहे थे। एंबुलेंस तक वे पहुंच पाते इसके पहले ही लेबर पेन होने लगा। रास्ते में स्टाफ रुका। मितानिन की सहायता से कपड़े का घेरा बनाया, वहीं प्रसव कराया गया। महिला ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया। फिर उसे एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया, ताकि पोस्ट-डिलीवरी जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर निगरानी रखी जा सके। दूसरी ओर राजधानी रायपुर के उरला स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो नवजातों की जान प्रसव के दौरान चली गई। खबरों के मुताबिक एक नवजात की मौत इसलिए हुई क्योंकि महिला डॉक्टर का नर्सों के साथ झगड़ा चल रहा था, मदद के लिए उन्हें बुलाया नहीं। बाहर निकलने से पहले ही शिशु का दम घुट गया। दूसरे की मौत इसलिए हुई क्योंकि वहां के प्रभारी चिकित्सक ने इलाज देर से शुरू किया। दोनों डॉक्टरों पर सीएमएचओ ने कार्रवाई की है।
एक तरफ राजधानी का मामला है, दूसरी तरफ राजधानी से कई सौ किलोमीटर दूर बीहड़ अबूझमाड़ का। इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि नीयत हो तो कम संसाधनों में सेवा की जा सकती है। लापरवाही बरती जा रही हो, तो बड़े संसाधन भी किसी काम के नहीं। अबूझमाड़ की मितानिन और उरला के इन डॉक्टरों के बीच कुछ ऐसा ही फर्क नजर आता है।