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ब्रिटेन की नई सरकार के भारत से कैसे होंगे रिश्ते
05-Jul-2024 8:10 PM
ब्रिटेन की नई सरकार के भारत से कैसे होंगे रिश्ते

ब्रिटेन में लेबर पार्टी ने चुनाव जीत कर 14 सालों बाद कंजरवेटिव पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया है. भारत में सवाल उठ रहे हैं कि नई सरकार का भारत के प्रति क्या रवैया होगा.

 डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-

ब्रिटेन की सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी के आम चुनावों में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद किएर स्टार्मर देश के अगले प्रधानमंत्री बन गए हैं. दुनिया के कई नेताओं ने स्टार्मर को बधाई दी है. चूंकि यह ब्रिटेन में एक बड़ा सत्ता परिवर्तन है, इसका असर अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी होगा.

भारत में यह सवाल उठने लगे हैं कि ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री और नई सरकार का भारत के प्रति क्या रवैया होगा और भारत-ब्रिटेन संबंध किस दिशा में आगे बढ़ेंगे.

क्या होगा एफटीए का भविष्य

इन चुनावों में हारने वाले पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ती की पारिवारिक पृष्ठभूमि की भी वजह से उन्हें लेकर भारत में काफी जिज्ञासा रहती थी और सुनक के कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के संबंधों में काफी तरक्की देखने को मिली.

लेकिन दोनों देशों के बीच एक प्रस्तावित मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) पर दो सालों से भी ज्यादा से बातचीत चल रही है लेकिन हस्ताक्षर नहीं हो पाए हैं. अब समीक्षक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या लेबर सरकार के कार्यकाल में इस संधि पर हस्ताक्षर हो पाएंगे.

पार्टी के शीर्ष नेताओं ने भारत के प्रति अपने रवैये की झलक चुनाव अभियानों के दौरान दी. जानकारों का कहना है कि खुद स्टार्मर ने ब्रिटेन की भारतीय मूल की आबादी की बढ़ती साख को माना है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में भारतीय मूल के करीब 18 लाख लोग रहते हैं और उनका ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में छह प्रतिशत से भी ज्यादा योगदान है.

विशेष रूप से भारत को लेकर पार्टी अपने पुराने भूतों से पीछा भी छुड़ाना चाह रही है. सितंबर, 2019 में जब पार्टी विपक्ष में थी तब पार्टी ने एक आपात प्रस्ताव पारित कर कहा कि उस समय पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को कश्मीर भेजा जाना चाहिए और वह वहां जाकर कश्मीर के लोगों को उनकी किस्मत का फैसला खुद करने का अधिकार दिलाने की कोशिश करेंगे.

कश्मीर पर लेबर पार्टी का रुख

भारत ने इस प्रस्ताव पर सख्त आपत्ति व्यक्त की थी और इसे बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि वह इस विषय पर लेबर पार्टी के साथ बात भी नहीं करना चाहता है. भारत का हमेशा से यह कहना रहा है कि कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और कश्मीर पर विवाद उसके और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समस्या है.

इसी तरह कुछ लेबर नेताओं पर खालिस्तान समर्थक होने के भी आरोप लगते रहे हैं. लेकिन पार्टी अब इन विवादों को पीछे छोड़ना चाह रही है. पार्टी की मौजूदा अध्यक्ष एनालस डॉड्स ने कहा है कि स्टार्मर के नेतृत्व में पार्टी को विश्वास है कि उसके सदस्यों में अब कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसकी भारत पर "चरमपंथी राय" हो.

इसी तरह एफटीए को लेकर भी लेबर पार्टी ने सवाल उठाए हैं कि कंजरवेटिव पार्टी ने एफटीए पर हस्ताक्षर करने में देर क्यों की. पार्टी के चुनावी मेनिफेस्टो में भी स्पष्ट लिखा हुआ था कि उसे अगर सरकार बनाने का मौका मिलता है तो वो भारत के साथ "एक नई सामरिक साझेदारी" करेगी, जिसमें एफटीए भी शामिल होगा. (dw.comhi)

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