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हाईकोर्ट ने कैदी के परिजन के पत्र पर स्वत: संज्ञान याचिका दर्ज की
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 27 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने प्रदेश की जेलों की वास्तविक स्थिति और खुली जेल की संभावना पर राज्य सरकार से विस्तृत शपथपत्र मांगा है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में खुली जेल की स्थापना की संभावना की जांच करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने अगली सुनवाई अगस्त में निर्धारित की है।
प्रदेश में विभिन्न जेलों की स्थिति पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया है। इस मामले में देखा गया कि छत्तीसगढ़ की जेलों में ऐसे 340 कैदी हैं जिन्हें 20 साल से अधिक की सजा सुनाई गई है और उनकी अपीलें सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी हैं। हाईकोर्ट ने पूछा कि इतने लंबे समय तक कारावास में रहने वाले कैदियों की क्या स्थिति होगी?
एक मामले में आरोपी मोहम्मद अंसारी के परिजन द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया। पत्र में बताया गया कि मो. अंसारी धारा 302 के तहत 2010 से जेल में बंद है और परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य के जेल में होने के कारण उनका परिवार बदहाली में जीवन जी रहा है।
पत्र के आधार पर कुल 6 बिंदुओं पर डाटा एकत्र किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ की केंद्रीय और जिला जेलों में महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों की संख्या, 20 वर्ष से अधिक की सजा पाए कैदी, जेलों की क्षमता, जेल में मौजूद कैदियों की कुल संख्या, कुशल पेशेवर कैदियों की संख्या (जैसे बढ़ई, प्लंबर, पेंटर, माली, किसान), वरिष्ठ नागरिक श्रेणी में आने वाले कैदी, और जेल से भागने की कोशिश करने वाले कैदियों की जानकारी शामिल है।
इसमें पाया गया कि प्रदेश की जेलों में महिला कैदियों के साथ 82 बच्चे रह रहे हैं, और 340 कैदी ऐसे हैं जिन्हें 20 वर्ष से अधिक की सजा मिली है।
याचिका में यह तर्क दिया गया है कि पारंपरिक अमानवीय जेलों की बजाय सुधारात्मक सजा के तहत खुली जेलें अधिक प्रभावी होती हैं। खुली जेलें न्यूनतम सुरक्षा के साथ विश्वास-आधारित प्रणाली पर आधारित होती हैं। भारत में खुली जेल की अवधारणा नई नहीं है। राजस्थान, महाराष्ट्र, और हिमाचल प्रदेश में कई खुली जेलें पहले से ही सफलतापूर्वक चल रही हैं।
शुक्रवार को हुई सुनवाई में, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार द्वारा अब तक प्रस्तुत किए गए आंकड़ों और जानकारी से असंतोष व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश की जेलों की स्थिति का पूरी तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए, विशेषकर उन कैदियों की स्थिति जो लंबी सजा काट रहे हैं। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि एक विस्तृत शपथपत्र के माध्यम से वास्तविक कार्य योजना की जानकारी प्रस्तुत की जाए, जिसमें जेलों में बंदियों को हो रही समस्याओं के समाधान और सुधार के लिए उठाए जा रहे कदमों का विवरण हो।