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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सीएजी की रिपोर्ट से परे भी बहुत सुधार की जरूरत है स्वास्थ्य विभाग को...
27-Jul-2024 4:06 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सीएजी की रिपोर्ट से परे  भी बहुत सुधार की जरूरत  है स्वास्थ्य विभाग को...

विधानसभा में यह बड़ी अजीब सी परंपरा रहती है कि सीएजी की रिपोर्ट सत्र के आखिरी दिन पेश होती है, इस तरह रिपोर्ट के बाद उस पर किसी तरह की चर्चा की गुंजाइश नहीं रह जाती। अब छत्तीसगढ़ विधानसभा में 31 मार्च 2022 के पहले तक की स्वास्थ्य विभाग के ढांचे, और सेवाओं पर नियंत्रक एवं महालेखक परीक्षक की रिपोर्ट पेश हुई, तो इसमें 2016 से 2022 तक का हिसाब-किताब पेश हुआ। इसमें पिछली दो सरकारों के कार्यकाल का लेखा-जोखा था, और उस पर भी अभी चर्चा न होना कुछ हैरानी की बात है। सरकारें चली जाती हैं, मंत्री चुनाव हार जाते हैं, सचिव रिटायर हो जाते हैं, या केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले जाते हैं, और जवाबदेही की संभावना खत्म हो जाती है। आठ महीने पहले आई विष्णु देव की सरकार से अब रमन सिंह और भूपेश बघेल की सरकारों की नाकामयाबी पर क्या जवाब मांगा जा सकता है। यह एक अलग बात है कि विधानसभा की लोकलेखा समिति सीएजी रिपोर्ट पर विभाग के अधिकारियों को बुलाकर जवाब-तलब कर सकती है, लेकिन उससे किसी सुधार की संभावना नहीं रहती।

अभी प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर 2016 से 2022 के बीच का प्रदेश का हाल अगर देखें, तो भारत सरकार के ऑडिटर जनरल के छत्तीसगढ़ दफ्तर ने ऑडिट या जांच में यह पाया है कि स्वास्थ्य विभाग के खरीदी निगम ने पौने चार हजार करोड़ के दवा, उपकरण, और बाकी सामानों की खरीदी में भारी अनियमितता बरती है। जो सैकड़ों टेंडर निकाले गए, उनमें से आधे से अधिक टेंडर दो-दो साल तक फाइनल नहीं किए। पचास करोड़ के उपकरण बिना इस्तेमाल पड़े रहे, शायद उन्हें बिना जरूरत खरीद भी लिया गया था, या उन्हें चलाने के लिए प्रशिक्षित लोग नहीं थे। इसी से जुड़ा हुआ जो निष्कर्ष सीएजी ने इस रिपोर्ट में निकाला है कि वह यह कि प्रदेश के तीन चौथाई जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक तिहाई पद खाली पड़े हैं। सीएचसी में स्पेशल डॉक्टरों के तीन चौथाई पद खाली पड़े हैं। इससे भी भयानक बात इस रिपोर्ट में यह है कि राजधानी रायपुर के सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में नियमित कर्मचारियों के 280 पदों में से कुल 9 पद भरे गए हैं, और 208 पद संविदा कर्मचारियों से भरे गए हैं। आईसीयू में हर बिस्तर पर एक नर्स नियुक्त होने का अनुपात रहना चाहिए लेकिन वहां 20-20 बिस्तरों पर एक नर्स काम करते पाई गई, और गैरआईसीयू वार्डों में तीन बिस्तरों पर एक नर्स होनी चाहिए थी, जो कि 39 बिस्तरों पर एक नर्स मिली है। आयुर्वेद महाविद्यालयों में भी कुर्सियां इसी तरह खाली पड़ी हैं, डॉक्टर 30 फीसदी कम हैं, नर्सें 60 फीसदी कम हैं, और बाकी पदों पर भी ऐसा ही हाल है। जिलों में 538 आयुर्वेद औषधालयों में से 130 में कोई चिकित्सक नहीं पाए गए। सीएजी ने अस्पतालों में हर किस्म की सहूलियतों की क्षमता और वहां उसके इस्तेमाल का बारीकी से विश्लेषण किया है, उसके आंकड़े बहुत निराश करने वाले हैं। कायदे से तो इस रिपोर्ट को ही अगर आज की तारीख पर आंका जाए, तो भी यह समझ में आ सकता है कि छत्तीसगढ़ के मरीजों के इलाज का हाल कितना बदहाल है।

अभी हम सीएजी रिपोर्ट में पौने चार हजार करोड़ की खरीदी की अनियमितता की बारीकियों पर नहीं जा रहे हैं क्योंकि लोकलेखा समिति उस पर देखेगी, लेकिन आए दिन खबरें छपती रहती हैं कि किस तरह कालातीत दवाइयां खरीदी जा रही हैं, या खरीदी गई दवाओं का वक्त खत्म हो जाने से उन्हें नष्ट किया जा रहा है। ये खबरें भी छपती हैं कि बाजार भाव से कितने अधिक गुना दाम पर स्वास्थ्य विभाग दवाइयां और उपकरण खरीदता है। हमें रमन सिंह के कार्यकाल की याद है जब बाबूलाल अग्रवाल नाम के आईएएस अफसर की खुली गड़बड़ी से नकली सोनोग्राफी मशीनें खरीदी गई थीं, और बाद में इस अफसर के खिलाफ जाने क्या-क्या कार्रवाई नहीं हुईं। इंकम टैक्स के कुछ मामलों में यह अफसर बहुत रहस्यमय और संदिग्ध तरीके से निकल आया था, लेकिन सीबीआई ने गिरफ्तारी की थी, और इसे जेल में रहना पड़ा था। लेकिन आमतौर पर हिन्दुस्तानी अदालतों में मामले जितने लंबे चलते हैं, उनमें आज उस वक्त के इस विभाग के खरीदी घोटाले के मामले, और इस अफसर की संपत्ति के मामले कहां पहुंचे, किसी को याद नहीं है। इस एक विभाग के भ्रष्टाचार में छत्तीसगढ़ के मूल निवासी इस अफसर का कॅरियर ऐसा बर्बाद किया कि सबसे कम उम्र में आईएएस बनने के बाद भी यह चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचना तो दूर रहा, बीच में ही बर्खास्त हो गया, और जेल चले गया। यह सिलसिला स्वास्थ्य विभाग में इसके पहले से चले आ रहा था, और इसके बाद से जारी भी है, इसमें कोई रोक-टोक नहीं हुई।

स्वास्थ्य विभाग का भ्रष्टाचार प्रदेश के सबसे गरीब मरीजों की जिंदगी को प्रभावित करता है जो कि इलाज के लिए सरकारी सहूलियतों के ही मोहताज रहते हैं। ये एक अलग बात है कि अब भारत की उदारवादी अर्थव्यवस्था में गरीबों को स्वास्थ्य बीमा के जो कार्ड मिलते हैं, उनकी वजह से बहुत से मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करा पाते हैं, और बाद में ऐसे अस्पतालों का सरकार से जो हिसाब-किताब होता है, उसमें फर्जीवाड़े की चर्चाएं कभी खत्म ही नहीं होतीं। पता नहीं राज्य सरकार के कुछ विभागों में भ्रष्टाचार की ऐसी असीमित संभावनाएं क्यों बनी रहती हैं, और वहां पहुंचने वाले कभी अफसर, तो कभी मंत्री, और अक्सर ही दोनों विभाग से हर किस्म की कमाई और उगाही में जुटे रहते हैं। हमारा ख्याल है कि छत्तीसगढ़ में आईआईएम जैसी राष्ट्रीय स्तर की एक बेहतर मैनेजमेंट-शिक्षण संस्थान काम कर रही है। और केन्द्र सरकार की ऑडिट एजेंसी सीएजी ने यह रिपोर्ट तैयार की है। विधानसभा की लोकलेखा समिति में जानकार और अनुभवी विधायक अपने हिसाब से सीएजी रिपोर्ट के आधार पर सरकारी अफसरों से जवाब मांगेंगे। लेकिन क्या सरकार के लिए यह बेहतर नहीं होगा कि वह स्वास्थ्य विभाग के कुल कामकाज को सुधारने के लिए आईआईएम के विशेषज्ञों से एक योजना बनवाए। जो आईआईएम-ग्रेजुएट अमरीका जाकर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों को चलाते हैं, उसके छात्र, और प्राध्यापक अपनी इस जमीन के लिए कोई योजना क्यों नहीं बना सकते? जिस आईआईएम की विशेषज्ञता से दुनिया के सबसे बड़े कारोबार चलते हैं, उसकी टीम को यहां के हाल सुधारने का काम क्यों नहीं दिया जा सकता? एक सवाल जरूर उठ सकता है कि क्या पूरी तरह ईमानदारी से काम चलाने की योजना को भारत के देश-प्रदेश की सरकारें पूरी तरह पचा सकती हैं? जो भी हो, हमारा तो जिम्मा यही है कि गरीब देश-प्रदेश के मरीजों के हक के पैसों का कैसे बेहतर इस्तेमाल हो सके। वैसे अभी हमें यह बात नहीं मालूम है कि स्वास्थ्य विभाग के ढांचे में तीन चौथाई या उससे अधिक कुर्सियां खाली पड़ी हैं, या सरकार अपना खर्च बचाने के लिए इन पर नियुक्तियां ही नहीं करती हैं?

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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