ताजा खबर

नाबालिग को साथ ले जाने के सभी मामले रेप और अपहरण नहीं, उद्देश्य स्थापित होना जरूरी
27-Jul-2024 2:44 PM
नाबालिग को साथ ले जाने के सभी मामले रेप और अपहरण नहीं, उद्देश्य स्थापित होना जरूरी

  हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी किया  
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 27 जुलाई।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग लडक़ी को साथ ले जाने पर हर बार भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत बलात्कार के लिए अपहरण का अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रेप के लिए अपहरण का अपराध साबित करने के लिए आरोपी के उद्देश्य की जांच करना भी आवश्यक है, साथ ही रेप साबित भी होना चाहिए।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने महासमुंद जिले के एक मामले में यह फैसला सुनाया है। ओडिशा के ओनकी गांव के निवासी 24 वर्षीय ठंडा राम सिदार पर महासमुंद जिले की एक नाबालिग लडक़ी के कई बार अपहरण करने का आरोप लगा था। पीडि़ता के पिता ने पुलिस को की गई रिपोर्ट में बताया कि 17 नवंबर, 2022 की रात को ठंडा राम उनकी बेटी को मोटरसाइकिल पर ले गया। अगले दिन लडक़ी को वापस लाया गया।

हालांकि, 28 नवंबर, 2022 को ठंडा राम ने फिर से उसका अपहरण करने का प्रयास किया, लेकिन पीडि़ता की मां और एक पड़ोसी ने उसे रोक लिया। आरोपियों ने कथित तौर पर उन्हें धमकी दी कि अगर उन्होंने हस्तक्षेप किया तो वे उन्हें जान से मार देंगे। पुलिस ने आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 506 (आपराधिक धमकी), 366 (विवाह या अवैध संबंध के लिए मजबूर करने के इरादे से अपहरण) और 376 (बलात्कार) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 4(2) के अंतर्गत एफआईआर दर्ज की।

हाईकोर्ट ने पीडि़ता के बयानों, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों की गवाही सहित प्रस्तुत साक्ष्य का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर पाया कि पीडि़ता नाबालिग थी। स्कूल के दस्तावेजों के आधार पर उसकी आयु 14 वर्ष थी। इस आधार पर हाईकोर्ट ने धारा 363 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए दी गई 5 साल व अन्य सजा को उचित ठहराया। यह देखते हुए कि आरोपी ने वास्तव में नाबालिग को उसकी सहमति के बिना उसके वैध संरक्षक से अलग कर दिया था। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि नाबालिग को उसके वैध संरक्षक से अलग करना या बहलाना इस धारा के तहत अपहरण माना जाता है।

हाईकोर्ट ने धारा 366 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि को खारिज करते हुए कहा कि केवल अपहरण इस धारा के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अपहरण पीडि़ता को शादी करने या अवैध संबंध में संलग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से किया गया था। अदालत को इस मामले में इस तरह के इरादे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। अदालत ने कहा, धारा 366 के तहत अपराध बनाने के लिए, अपहरण के तथ्य को साबित करने के अलावा, अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि उक्त अपहरण धारा में उल्लेखित उद्देश्यों में से एक के लिए था। केवल अपहरण से कोई आरोपी इस दंडात्मक प्रावधान के दायरे में नहीं आता।

इस आधार पर कोर्ट ने धारा 376 आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 4(2) के तहत आरोपों से भी आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने पाया कि मेडिकल जांच और फोरेंसिक साक्ष्य से भी बलात्कार के आरोप सिद्ध नहीं हुए। पीडि़ता के शरीर पर किसी भी शारीरिक चोट या बलात्कार के निशान मेडिकल और फोरेंसिक जांच में नहीं पाए गए।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news