खेल
टोक्यो, 5 अगस्त| भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया आज इतिहास रचने उतरेंगे। रवि ने सेमीफाइनल में कजाक पहलवान के खिलाफ जिस तरह का खेल दिखाया, उससे लगता है कि वह भारत के लिए कुश्ती में स्वर्ण जीतने वाला पहला पहलवान बनकर भारतीय खेल जगत में हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाना चाहेंगे। पुरुष फ्रीस्टाइल के 57 किग्रा भार वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में पीछे चल रहे होने के बावजूद कजाखस्तान के नूरइस्लाम सनायेव को हराकर फाइनल में प्रवेश करने के साथ ही रवि ने वैसे तो अपने और देश के लिए रजत पदक पक्का कर लिया है लेकिन उनका इरादा यहीं रुकने का नहीं होगा।
कुश्ती में लंदन ओलंपिक में सुशील कुमार रजत पदक जीत चुके हैं। रवि इससे भी आगे जाना चाहेंगे लेकिन इसके लिए उन्हें फाइनल में रूस के जायूर उगयेव की चुनौती को समाप्त करनी होगी।
वैसे रवि के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा क्योंकि उगयेव दो बार के विश्व चैम्पियन (2018, 2019) हैं और जो यह मानते हैं कि सफलता 99 फीसदी मेहनत और एक फीसदी टैलेंट पर आश्रित होती है।
जिस साल (2019) में उगयेव ने नूर सुल्तान में विश्व चैम्पियनशिप का सोना जीता था, उसी साल रवि ने इसी वर्ग में कांस्य जीता था। वह मौजूदा एशियाई चैम्पियन (2020, 2021) और यू23 विश्व चैम्पियनशिप (2018) के रज पदक विजेता हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन के कांस्य पदक जीतने के बाद क्रिकेट के कुछ हस्तियों ने उनकी इस उपलब्धि को सराहा है। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग, ईशांत शर्मा और वेंकटेश प्रसाद के अलावा अन्य लोगों ने सोशल मीडिया पर लवलीना को जीत की बधाई दी।
पूर्व क्रिकेटर सहवाग ट्वीट करते हुए लिखा , शानदार लवलीना! ओलंपिक पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज। कांस्य जीतने पर बधाई।
विजेंदर सिंह (2008 बीजिंग) और एमसी मैरी कॉम (2012 लंदन) के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली लवलीना तीसरी मुक्केबाज हैं। असम की मुक्केबाज के प्रयास की बदौलत भारत ने अब टोक्यो में एक रजत और दो कांस्य पदक जीतकर 2016 के रियो ओलंपिक खेलों की अपनी तालिका में सुधार किया है।
भारत के पूर्व तेज गेंदबाज वेंकटेश प्रसाद ने पोस्ट किया, भारत के लिए तीसरा पदक। अपने पहले ओलंपिक में पदक जीतने पर हार्दिक बधाई। लवलीना आपको आने वाले समय के लिए शुभकामनाएं।
भारत के तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा ने ट्वीट करते हुए लिखा, रिंग की बाजीगर। भारत को आप पर गर्व है, लवलीना बोरगोहेन। टोक्यो ओलंपिक में हमारे देश के लिए तीसरा पदक जीतने के लिए धन्यवाद! ऐसे ही आगे बढ़ते रहिए। जय हिंद।(आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त | भारतीय गेंदबाजों ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए यहां ट्रेंट ब्रिज में खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच के पहले दिन लंच तक इंग्लैंड को शुरूआती झटके दिए। इंग्लैंड ने अबतक दो विकेट पर 61 रन बनाए हैं। लंच ब्रेक तक डॉमिनिक सिब्ले 67 गेंदों पर दो चौकों की मदद से 18 रन और कप्तान जोए रूट 10 गेंदों पर तीन चौकों के सहारे 12 रन बनाकर क्रीज पर मौजूद हैं। भारत की ओर से जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज को अबतक एक-एक विकेट मिला है।
इससे पहले, इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। लेकिन बुमराह ने मैच के पहली ओवर की पांचवीं गेंद पर ही रोरी बर्न्स (0) को पगबाधा आउट कर मेजबान टीम को पहला झटका दिया।
इसके बाद सिब्ले और जैक क्राव्ली के बीच दूसरे विकेट के लिए 42 रन की साझेदारी हुई लेकिन सिराज ने क्राव्ली को आउट कर इंग्लैंड को दूसरा झटका दिया। क्राव्ली ने 68 गेंदों पर चार चौकों की मदद से 27 रन बनाए।(आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त | भारत की महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को यहां जारी टोक्यो ओलंपिक के 69 किग्रा भार वर्ग, जिसे वेल्टरवेट कटेगरी भी कहा जाता है, उसके सेमीफाइनल मुकाबले में बुधवार को तुर्की की बुसेनाज सुरमेनेली के हाथों 0-5 से हार का सामना कर कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा है। सभी जजों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया और इसके साथ ही असम की मुक्केबाज लवलीना का फाइनल में जाने का सपना चकनाचूर हो गया और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। लवलीना के कांस्य जीतने के साथ ही भारत ने टोक्यो ओलंपिक में अपना तीसरा पदक हासिल कर लिया है।
लवलीना से पहले भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने रजत और बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने महिला एकल वर्ग में भारत को टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक दिलाया है।
इसी के साथ ही भारत ने 2016 रियो ओलंपिक के अपने प्रदर्शन से बेहतर किया है जहां उसे एक रजत और एक कांस्य पदक ही हासिल किया था।
सुरमेनेली ने पहले और दूसरे राउंड में सभी पांचों जजों को प्रभावित किया और 10-10 अंक बटोरे जबकि लवलीना को पांचों जजों से पहले दो राउंड में नौ-नौ अंक मिले। सुरमेनेली तीसरे राउंड में भी लवलीना पर भारी पड़ती दिखीं और उन्होंने तीसरे राउंड में भी सभी जजों से 10-10 अंक लिए। लवलीना को तीसरे राउंड में दो जजों ने नौ-नौ अंक और तीन जजों ने आठ-आठ अंक दिए।
विश्व चैंपियनशिप और एशियाई चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी लवलीना भारत के लिए ओलंपिक मुक्केबाजी में पदक सुनिश्चित करने वाली दूसरी महिला और तीसरी मुक्केबाज हैं। इससे पहले एमसी मैरीकोम (2012 लंदन ओलंपिक) और विजेंदर सिंह (2008 बीजिंग ओलंपिक) ने भारत के लिए कांस्य पदक जीते हैं।
लवलीना का टोक्यो ओलंपिक में सफर यादगार रहा और उन्होंने अंतिम-16 राउंड के मुकाबले में जर्मनी की एदिन एपेट को 3-2 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। इसके बाद लवलीना का सामना ताइवान की नेन चिन चेन से हुआ, जहां वह 4-1 से विजयी रहीं।
क्वार्टर फाइनल में जीत हासिल करने के साथ ही लवलीना ने देश के लिए पदक पक्का कर लिया था। हालांकि, देश को उनसे स्वर्ण पदक लाने की उम्मीद जगी थी लेकिन सेमीफाइनल में हार के साथ यह सपना टूट गया।
लवलीना की हार के साथ ही भारत का टोक्यो ओलंपिक में मुक्केबाजी इवेंट में सफर समाप्त हो गया है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त| भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया और दीपक पुनिया ने यहां जारी टोक्यो ओलंपिक में कुश्ती के अपने-अपने भार वर्गो में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में जगह बना ली है।
रवि ने पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग के 1/4 फाइनल मुकाबले में बुल्गारिया के गिओरजी वांगेलोव को 14-4 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई।
इस बीच, एक अन्य पहलवान दीपक ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए फ्रीस्टाइल 86 किग्रा के 1/4 फाइनल मैच में चीन के जुशेन लीन को 6-3 से पटखनी देकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
रवि का सेमीफाइनल में मुकाबला कजाखस्तान के नुरइस्लाम सनायेव से होगा जबकि दीपक का सामना अमेरिका के डेविड मोरिस टेलर से होगा।
इससे पहले, रवि ने ओपनिंग बाउट में कोलंबिया के ऑस्कर टाइगरेरोस को 13-2 से हराया था। उन्होंने यह बाउट टेकनीकल सुपेरिओरिटी के द्वारा जीती। (आईएएनएस)
टोक्यो ओलंपिक में बुधवार को दिन की शुरुआत में ही भारत के लिए उम्मीद जगाते हुए जैवलीन थ्रो (भाला फेंक) एथलीट नीरज चोपड़ा ने फ़ाइनल के लिए क्वालीफ़ाई कर लिया है.
फ़ाइनल में क्वालीफ़ाई करने के लिए 83.50 मीटर दूर भाला फेंकना ज़रूरी था और नीरज ने अपने पहले ही थ्रो में 86.65 मीटर का थ्रो फेंककर ये सफलता हासिल कर ली.
नीरज का निजी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 88.07 मीटर है. अब उनका फ़ाइनल मुक़ाबला सात अगस्त को होगा.
आज ही एक अन्य भारतीय जैवलीन थ्रो एथलीट शिवपाल सिंह का भी मुक़ाबला है. नीरज चोपड़ा ग्रुप ए टीम में थे और शिवपाल ग्रुप बी में हैं. (bbc.com)
-अरविंद छाबड़ा
ओलंपिक खेलों में भारत अब तक महिला हॉकी में कोई मेडल हासिल नहीं कर सका है, ऐसे में टोक्यो के ओइ हॉकी स्टेडियम में भारतीय टीम बुधवार को इतिहास बनाने के लिए उतरेगी. काग़ज़ पर कहीं मज़बूत अर्जेंटीना को अगर भारतीय महिला टीम हराने का करिश्मा कर पाई तो उसका कम से कम सिल्वर मेडल पक्का हो जाएगा.
वैसे भारतीय महिला टीम के लिए सेमीफ़ाइनल में पहुंचना भी बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि टीम पहली बार सेमीफ़ाइनल में पहुंचने में कामयाब रही है. चार दशकों के बाद महिला के साथ साथ पुरुष टीम भी टोक्यो में अंतिम चार में पहुंचने में कामयाब रही. लेकिन पुरुष हॉकी में बेल्जियम ने भारत को फ़ाइनल से पहले ही रोक दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या महिला टीम वह करिश्मा कर पाएगी जो पुरुष टीम नहीं कर सकी?
भारतीय महिला टीम ने तीसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लिया है. 1980 के मास्को ओलंपिक में पहली बार महिला हॉकी को शामिल किया गया. भारतीय टीम वहां चौथे पायदान पर रही थी. इसके बाद ओलंपिक में अगली बार खेलने के लिए भारत को 36 साल तक इंतज़ार करना पड़ा. रियो ओलंपिक में भारतीय महिला टीम कोई मुक़ाबला नहीं जीत सकी और उसे अंतिम स्थान से संतोष करना पड़ा था.
ख़राब शुरुआत के बाद वापसी
टोक्यो में भारत की शुरुआत बेहद ख़राब रही. भारतीय महिला हॉकी टीम को अपने पहले तीनों मुक़ाबले में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद टीम के डच कोच शॉर्ड मारिन ने टीम की आलोचना की. उन्होंने यहां तक कहा कि टीम वह कर रही है जिसके लिए टीम प्रबंधन मना कर रहा है यानी खिलाड़ी व्यक्तिगत तौर पर खेल रही हैं, टीम के रूप में नहीं.
ऐसे में जब हर किसी को आशंका होने लगी थी कि भारतीय महिला टीम इस बार रियो ओलंपिक की तरह अंतिम पायदान पर रहेगी, तभी खिलाड़ियों ने अपने गियर बदले. टीम ने पहले आयरलैंड को हराया और इसके बाद साउथ अफ़्रीका को हराकर क्वार्टर फ़ाइनल में प्रवेश किया. क्वार्टर फ़ाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ज़ोरदार जीत हासिल करके सेमीफ़ाइनल में प्रवेश किया.
वहीं दूसरी ओर अर्जेंटीना ने क्वार्टर फ़ाइनल में जर्मनी को 3-0 से हराया है. वैसे अर्जेंटीना की शुरुआत भी हार से हुई थी, जब न्यूज़ीलैंड ने उन्हें हरा दिया था, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.
लेकिन जर्मनी को जिस तरह से अर्जेंटीना ने हराया है, उससे ज़ाहिर होता है कि उनकी फ़ारवर्ड कहीं ज़्यादा आक्रामकता से खेल रही हैं. इतना ही नहीं, उनमें जीत हासिल करने की भूख भी नज़र आ रही है क्योंकि रियो ओलंपिक में टीम क्वार्टर फ़ाइनल में ही बाहर हो गई थी.
भारत की रणनीति
सेमी फ़ाइनल के अहम मुक़ाबले में भारत की महिला खिलाड़ियों को एक टीम के तौर पर खेलना होगा. इसके अलावा उन्हें उन तरक़ीबों को भी अपनाना होगा जिन्हें खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपनाया था.
वैसे तो पेनल्टी कॉर्नर पर गोल दागने में भारत का औसत बहुत ख़राब है, लेकिन टीम ने क्वार्टर फ़ाइनल में मिले मौक़े का फ़ायदा उठाया था. गुरजीत कौर ने बेहतरीन ड्रैग फ़्लिक के ज़रिए जो गोल दागा, वह आख़िर में निर्णायक साबित हुआ. यानी मौक़े पर पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने की काबिलियत फिर से दिखानी होगी. मज़बूत टीमों के सामने ज़्यादा मौके नहीं मिलते हैं, इसलिए उन्हें हर मौके का फ़ायदा उठाना होगा.
अर्जेंटीना की टीम अपने आक्रामक खेल के लिए जानी जाती है, ऐसे में भारतीय रक्षा पंक्ति को मुस्तैद रहना होगा. भारतीय पुरुष हॉकी टीम के गोलकीपर श्रीजेश को 'दीवार' कहा जाता है, लेकिन टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मुक़ाबले में ख़ुद को 'दीवार' साबित किया. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के सामने कई शानदार बचाव किए. लेकिन टीम की पूरी रक्षा पंक्ति को मज़बूत रहना होगा.
इसके अलावा टीम के खिलाड़ियों को यह समझना होगा कि जब वे ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं तो फिर अर्जेंटीना को भी हरा सकते हैं, क्योंकि ग्रुप मुक़ाबलों में अर्जेंटीना को ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा था. (bbc.com)
-वंदना
भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक सेमीफ़ाइनल में जगह बनाकर इतिहास रच दिया है.
हॉकी यूँ तो टीम गेम है और किसी भी जीत में पूरी टीम का योगदान रहता है, लेकिन आइए नज़र डालते हैं उन चंद खिलाड़ियों पर जिनकी इस ओलंपिक सफ़र में अहम भूमिका रही है.
वंदना कटारिया
भारतीय महिला हॉकी के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ- ओलंपिक में हैट्रिक. वंदना कटारिया ने दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ अहम ओलंपिक मैच में एक नहीं तीन-तीन गोल कर सबको रोमांचित कर दिया था. अगर ये मैच भारत हार जाता तो सेमीफ़ाइनल में जगह नहीं बना पाता. वंदना पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक में हैट्रिक बनाया.
29 साल की वंदना भारतीय हॉकी टीम की सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से एक हैं. ओलंपिक में जाने से पहले तक वो 240 मैच खेल कर 64 गोल कर चुकी थीं.
हरिद्वार के पास रोशनाबाद गाँव से आने वाली वंदना ने जब हॉकी खेलनी शुरू की थी तो आसपास वालों को घोर आपत्ति थी. इन आपत्तियों के बीच दो ही लोग चट्टान की तरह अड़े रहे थे- ख़ुद वंदना और उनके पिता नाहर सिंह. वंदना छिप-छिप कर प्रैक्टिस करती थीं.
सब लोगों के ख़िलाफ़ जाकर पिता ने बेटी का साथ दिया और वंदना भारतीय टीम तक पहुँचीं.
इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, तब वंदना की ओलंपिक की तैयारी भी ज़ोरों पर थी. उन्हीं दिनों उनके पिता का निधन हो गया. वंदना उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाई थीं क्योंकि ओलंपिक की तैयारी चल रही थी और वो बायो बबल में थीं. तब वंदना ने कहा था कि उन्हें भारत और अपने पिता दोनों के लिए कुछ करना है.
ख़ुद को रॉजर फ़ेडरर फ़ैन बताने वाली वंदना ने ओलंपिक में ही नहीं दूसरी कई प्रतियोगिताओं में भी भारत को जीत दिलाई है. साल 2013 के जूनियर महिला वर्ल्ड कप में भी वो टॉप स्कोरर थीं.
गुरजीत कौर
महिला हॉकी टीम का ओलंपिक सेमीफ़ाइनल तक पहुँचना बहुत से लोगों के लिए किसी सपने की तरह है. क्वॉर्टर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मुश्किल मैच में जिस खिलाड़ी के गोल ने भारत को जीत दिलाई वो थी पंजाब की गुरजीत कौर. ये गुरजीत का पहला ओलंपिक है.
गुरजीत कौर को भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे बेहतर ड्रैग फ़्लिकर में गिना जाता है.
पंजाब में पाकिस्तान सीमा से सटे छोटे से गाँव से आने वाली गुरजीत के गाँव में लड़कियों के लिए खेल का माहौल नहीं था. उनके पिता की इच्छा था कि बेटियाँ पढ़-लिख जाएँ. वो गाँव से रोज़ पास के कस्बे में बेटी को छोड़ने जाते थे. चूँकि इतने पैसे नहीं थे कि वो शहर तक दो-दो चक्कर लगाएँ तो उनके पिता सुबह से शाम तक स्कूल के बाहर ही खड़े रहते थे. लेकिन बाद मे हॉस्टल में रहते हुए गुरजीत ने लड़कियों को हॉकी खेलते देखा और लगा कि इसमें कुछ कर सकते हैं. ड्रैग फ़्लिक क्या होती है तब गुरजीत ने इसका नाम भी नहीं सुना था.
लेकिन मैच दर मैच गुरजीत अपने खेल को निखारती गईं. ओलंपिक शुरू होने से पहले वो 87 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी थीं और 60 गोल कर चुकी थीं.
हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह को वो अपना आइडल मानती हैं. गुरजीत पर दोहरी ज़िम्मेदारी रहती है. वो डिफ़ेंडर भी हैं और ड्रैग फ़्लिकर भी. ओलिंपक में जाने से पहले गुरजीत से बातचीत में मैंने पूछा था कि इस ओलंपिक के उनके लिए क्या मायने हैं तो उन्होंने कहा था कि अगर भारतीय महिला टीम पदक जीतती है तो ये न सिर्फ़ ऐतिहासिक होगा बल्कि लड़कियों को एक संदेश जाएगा कि वो कुछ भी कर सकती हैं.
भारत को सेमीफ़ाइनल तक लाने का श्रेय जिन खिलाड़ियों को दिया जा रहा है उसमें गोलकीपर सविता का नाम ज़रूर लिया जाएगा. अगर सवीता ने गोल न रोके होते तो ये कहानी कुछ और ही होती.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ बहुत ही अहम मैच में सविता ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया. जब गुरजीत कौर ने पहला गोल किया तो ऑस्ट्रेलियाई ख़ेमे ने भी दबाव बढ़ा दिया, लेकिन गोलकीपर सविता ने ऑस्ट्रेलिया की कोई कोशिश कामयाब नहीं होने दी. वो एक के बाद एक सेव करती चली गईं, ख़ासकर पेनल्टी कॉर्नर के दौरान.
एक मंझी हुई गोलकीपर की तरह सविता ने हर एंगल को कवर करते हुए गोल होने से रोका.
भारत के लिए 200 से भी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी सविता को अब लोग 'द वॉल' कहने लगे हैं जिन्हें भेदना ऑस्ट्रेलिया के लिए मुश्किल हो गया था.
हरियाणा से आने वाली सविता ने 18 साल की उम्र में भारत के लिए खेलना शुरू किया था और 31 साल की उम्र में उनका सफ़र जारी है.
शुरुआत में तो सविता का हॉकी में रुझान भी नहीं था. ख़ासकर जब उनकी माँ बीमार रहतीं तब सविता घर का भी काम करती थीं. लेकिन सविता के दादा ने उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया. घर से कई किलोमीटर दूर, बसों में धक्के खाते हुए भारी हॉकी किट लेकर सविता को जाना पड़ता था.
लेकिन एक बार सविता ने दिलचस्पी लेनी शुरू की तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2019 के एशियन गेम्स के सिल्वर मेडल को वो अपना सबसे यादगार लम्हा मानती हैं, लेकिन अब शायद ये जगह ओलंपिक को मिल जाएगी.
नेहा गोयल
दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ ओलंपिक मैच में जब भारत 4-3 से जीता तो मैच में वंदना कटारिया की हैट्रिक के बाद अहम गोल नेहा गोयल का था. हरियाणा से आने वाली नेहा अपना पहला ओलंपिक ही खेल रही हैं.
हॉकी के मैदान और ज़िंदगी दोनों में नेहा ने बहुत संघर्ष किया है. बहुत ग़रीब परिवार से आने वाली नेहा का बचपन मुश्किलों भरा था, पिता को शराब की लत थी. माँ फ़ैक्टरियों में काम करके गुज़र करती थीं और पिता की मौत के बाद तो नेहा और उनकी बहनें भी माँ के साथ काम करती थीं ताकि गुज़ारा चल सके. उन्होंने हॉकी बचपन में तब खेलना शुरू किया जब किसी ने कहा कि वहाँ पहनने के लिए जूते और कपड़े मिलेंगे.
नेहा के टैलेंट को देखकर कोच प्रीतम सीवच ने उन्हें कोचिंग दी और साल 2011 में नेहा जूनियर टीम का हिस्सा बनीं और साल 2014 में सीनियर टीम का. नेहा कई बार टीम से अंदर-बाहर हुईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पहले ही ओलंपिक में गोल कर चुकी हैं.
नवनीत
कुछ दिन पहले तक एक समय था जब भारतीय महिला टीम अपने सारे ओलंपिक मैच हार रही थी. ऐसे वक़्त में आयरलैंड के ख़िलाफ़ मैच में गोल कर नवनीत ने भारत को उसकी पहली जीत दिलाई थी. ये गोल हमेशा भारत के लिए ख़ास रहेगा.
25 साल की नवनीत हरियाणा से आती हैं. घर के पास ही शाहबाद हॉकी अकैडमी थी. वहीं से हॉकी में दिलचस्पी जागी और साल 2005 में हॉकी खेलना शुरू कर दिया.
जूनियर वर्ल्ड में साल 2013 में हिस्सा लेने वाली नवनीत अब ओलंपिक तक पहुँच गई हैं. ओलंपिक से पहले वो 24 अंतरराष्ट्रीय गोल कर चुकी थीं, लेकिन आयरलैंड के ख़िलाफ़ उनके गोल को लंबे समय तक याद रखा जाएगा. (bbc.com)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पास 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद पहली बार ओलंपिक फाइनल खेलने का मौका था लेकिन उसने बेल्जियम के हाथों सेमीफाइनल मैच 2-5 से गंवाते हुए यह मौका भी गंवा दिया। अब भारतीय टीम कांस्य जीतने का प्रयास करेगी, जो उसने अंतिम बार 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में जीता था। भारत का कांस्य पदक के लिए जर्मनी से मुकाबला होगा।
ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच पर खेले गए इस मैच में एक समय भारत 2-1 से आगे था लेकिन एलेक्सजेंडर हेंडरिक्स (19वें, 49वें, 53वें) की शानदार हैट्रिक के दम पर मौजूदा वल्र्ड चैम्पियन बेल्जियम ने भारत को एकतरफा हार को मजबूर कर दिया।
बेल्जियम के खिलाफ मिली हार के बाद भारत का सोना जीतने का सपना भले ही टूट गया लेकिन जर्मनी के खिलाफ वह तीसरे स्थान पर रहकर देश के लिए कांस्य हासिल करना चाहेगी।
जर्मनी को एक अन्य सेमीफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। स्वर्ण पदक मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया का सामना अब बेल्जियम से होगा।
ऑस्ट्रेलिया ने ओलंपिक में सिर्फ एक बार स्वर्ण पदक जीता है। उसे 2004 एथेंस ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला था जबकि बेल्जियम को 2016 रियो ओलंपिक में अर्जेटीना ने 2-4 से हराया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु का मंगलवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे पर सैकड़ों की संख्या में प्रशंसक इकट्ठा हुए और सिंधु का ढोल बाजों के साथ स्वागत किया।
सिंधु ने टोक्यो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। वह पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने ओलंपिक में भारत के लिए दो बार पदक जीते हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने सिंधु को 30 लाख रूपये की ईनामी राशि देने की घोषणा की है। सिंधु ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था।
सिंधु ने यहां पहुंचने पर कहा, "मैं बहुत खुश और उत्साहित हूं। कई लोगों ने मुझे बधाई दी। मैं बैडमिंटन संघ और सभी लोगों का प्यार और समर्थन देने के लिए धन्यवाद देती हूं।" (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त | भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकर पहले ही इतिहास रच चुकी है और अब उसका सामना बुधवार को अर्जेटीना से होना है, जहां उसकी नजरें फाइनल में पहुंचने पर होगी। क्वार्टर फाइनल में विश्व की नंबर-2 टीम ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद भारतीय टीम का मनोबल अर्जेटीना के खिलाफ बढ़ा है। उन्होंने उम्मीद से ज्यादा प्रदर्शन किया है और उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और शीर्ष टीमों के खिलाफ उसे खेलने का अनुभव हासिल हुआ है। हालांकि, वह ओलंपिक खेलों के फाइनल में जाने के इस मौके को गंवाना नहीं चाहेगी।
ओलंपिक शुरू होने से पहले विश्व रैंकिंग में नौंवें स्थान पर रही भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर नया मानक तय किया है।
भारतीय डिफेंडर और गोलकीपर सविता पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया था और उनपर अर्जेटीना के विरूद्ध इस प्रदर्शन को दोहराने का जिम्मा रहेगा। हालांकि, अर्जेटीना की टीम ऑस्ट्रेलिया से काफी अलग है। वह काफी फिट टीम है।
अर्जेटीना के पास अगुसटीना गोरजेलानी के रूप में शॉट कॉर्नर विशेषज्ञ मौजूद हैं जबकि फॉरवर्ड अगुसटीना अल्बर्टारिओ ने दो मैदानी गोल किए हैं।
भारतीय टीम को अर्जेटीना की टीम का कुछ हद तक आईडिया है। उसने इस साल जनवरी में इनके खिलाफ मुकाबला खेला था। हालांकि, वो दोस्ताना मैच था और खिलाड़ी वहां ओलंपिक के अनुरुप गंभीर नहीं थे।
कप्तान रानी रामपाल के नेतृत्व वाली महिला टीम को ग्रुप चरण में विश्व की नंबर-1 टीम नीदरलैंड के खिलाफ 1-5 से, जर्मनी के खिलाफ 0-2 से और ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ 1-4 से हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, उसने आयरलैंड के खिलाफ 1-0 से जीत दर्ज की और फिर दक्षिण अफ्रीका को 4-3 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जाने की उम्मीद बरकरार रखी। फिर ग्रेट ब्रिटेन ने आयरलैंड को हराया और भारतीय टीम क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गई।
अर्जेटीना के खिलाफ भारतीय टीम को अधिक आक्रामक होने और मौके भुनाने के साथ ही बेहतर तरीके से डिफेंड करने की जरूरत है।
भारतीय टीम के पास खोने को कुछ नहीं है और उसे इस मैच में खुलकर खेलने की जरूरत है।(आईएएनएस)
नॉटिंघम, 3 अगस्त | भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने मंगलवार को कहा है कि पिछले दौरों के तुलना में इस बार इंग्लैंड दौरे के लिए टीम की तैयारी बेहतर है। कोहली ने कहा कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले के बाद पांच मैचों की टेस्ट सीरीज से पहले डेढ़ महीने से अधिक का फासला था जिससे इंग्लैंड में बदलते मौसम में टीम ढल गई।
कोहली ने इंग्लैंड के खिलाफ मैच की पूर्व संध्या पर कहा, "हमने अतीत के मुकाबले इस बार बेहतर तैयारी की है। ब्रेक मिलने से स्थिति ने हमें मौसम में ढलने का समय दिया क्योंकि यहां जल्द ही मौसम बदल जाता है।"(आईएएनएस)
हॉकी: पुरुष हॉकी के दूसरे सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने जर्मनी को 3-1 से हरा दिया है. पहले सेमीफाइनल में भारतीय टीम को बेल्जियम ने 5-2 से मात दी थी. अब कांस्य पदक के लिए भारत का मुकाबला जर्मनी से होगा.
राज्य स्तरीय ऑनलाइन एमेच्योर शतरंज स्पर्धा का समापन
रायपुर , 3 अगस्त। छत्तीसगढ़ प्रदेश शतरंज संघ द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय ऑनलाइन बिलो 1700 शतरंज स्पर्धा का समापन हुआ । इस अवसर पर महासमुंद जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष डॉ डी एन साहू बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कोरबा जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष दिनेश लांबा ने की।
जिला शतरंज संघ दुर्ग के अध्यक्ष ईश्वर सिंह राजपूत ने जानकारी देते हुए बताया की मुख्य अतिथि श्री साहू ने खेल के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए खेलकूद जरूरी है । खेलकूद हमारे अंदर उर्जा ,चुस्ती व स्फूर्ति लाता है । इसलिये इसे दैनिक दिनचर्या में शामिल रखे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिनेश लांबा ने खिलाडिय़ों को संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ी रोजाना शतरंज अभ्यास के लिए 5 से 7 घंटे का समय निकाले । खिलाडिय़ों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए हम कृत संकल्पित है। इसके लिए हम बड़े-बड़े आयोजनों के साथ कोचिंग केम्प की व्यवस्था भी करेंगे ।
कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन आयोजन सचिव हेमन्त खुटे ने किया । प्रतियोगिता को सफल बनाने में अंतराष्ट्रीय निर्णायक अलंकार भिवगड़े, फीडे आर्बिटर रवि कुमार,फीडे आर्बिटर रोहित यादव,नेशनल आर्बिटर अनीश अंसारी ,टेक्नीशियन आशुतोष साहू,जूम आर्बिटर मयंक,राकी देवांगन व आयोजन समिति के सरोज वैष्णव का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
स्पर्धा के परिणाम इस प्रकार है : ओपन केटेगरी में-प्रभमन सिंह मल्होत्रा कोरबा ( 4 अंक), गौतम केसरी अम्बिकापुर( 4 अंक), 3 निश्चय तिवारी कोरबा (4 अंक), विश्वजीत सिंह दुर्ग (3 अंक), अर्नव ड्रोलिया रायपुर (3 अंक), शुभम बसोने रायपुर (3 अंक), ईशान सैनी दुर्ग(3 अंक), प्रांजल बिसवाल रायगढ़ (3 अंक), अर्पित सिंह रायपुर (2.5अंक), अलंकृत सिंह रायपुर(2.5 अंक)। वूमेन केटेगरी में : यशस्वी उपाध्याय रायपुर (3 अंक), सौम्या अग्रवाल रायपुर (2 अंक), जसमन कौर कोरबा( 2 अंक), परी तिवारी कोरबा (1 अंक), तनीषा ड्रोलिया रायपुर( 1 अंक), अनुष्का जैन रायपुर( 1 अंक)।
-प्रदीप कुमार
भारत और बेल्जियम के बीच हॉकी का सेमी फ़ाइनल मुक़ाबले में पिछड़ने के बाद भारत की शुरुआत ठीक रही थी और आधे समय तक दोनों टीमें बराबरी पर थीं.
बावजूद इसके बाद भारत ये मैच 2-5 के बड़े अंतर से गंवा बैठा. इस हार के लिए बेल्जियम का इकलौता शख़्स ज़िम्मेदार रहा जिसका नाम है एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स.
हेंड्रिक्स ने इस मैच में पेनल्टी स्ट्रोक्स को गोल में तब्दील करते हुए हैट-ट्रिक जमाई.
हेंड्रिक्स किस तबीयत के खिलाड़ी हैं, इसका अंदाज़ा इसी ओलंपिक में रविवार को भी दिखा था जब वे क्वॉर्टर फ़ाइनल में स्पेन के ख़िलाफ़ खेलने उतरे थे. बेल्जियम ने ये मुक़ाबला 3-1 से जीता और इसमें दो गोल एलेक्ज़ेडर ने किए थे.
लेकिन ये पूरी कहानी नहीं है. कहानी ये है कि क्वॉर्टर फ़ाइनल मुक़ाबले से ठीक दो दिन पहले ग्रेट ब्रिटेन के साथ मुक़ाबले में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स चोटिल हो गए थे. ब्रिटिश खिलाड़ी की स्टिक से उनके माथे पर चोट लगी थी, इस चोट के चलते उनके सिर से खून की धार निकल आई थी.
डॉक्टरों को उन्हें ठीक करने के लिए छह टांके लगाने पड़े थे, तीन बाहर से और तीन अंदर की तरफ़. अगले दिन शनिवार को उन्होंने अपना एमआरआई कराया, जिससे पता चला कि कोई अंदरूनी चोट नहीं है.
टीम के प्रमुख कोच शेन मेकलियॉड को चिंता ज़रूर थी, लेकिन हेंड्रिक्स ने पांच छह रेडियोलॉजिस्ट से क्लीयरेंस हासिल करके कोच ही नहीं अपनी टीम को भी चिंताओं से मुक्त रखा.
अगर इससे भी आप उनके खेल के प्रति जज़्बे को नहीं माप पा रहे हों तो टोक्यो ओलंपिक में उनका स्कोर कार्ड देख लीजिए.
सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले तक वे सात मुक़ाबलों में 14 गोल कर चुके हैं, टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल उनके स्टिक से निकले हैं.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल हेंड्रिक्स के इस प्रदर्शन पर बताते हैं, "अगर कोई खिलाड़ी ओलंपिक जैसे विश्वस्तरीय टूर्नामेंट में लगातार स्कोर कर रहा है तो आप ये तो यक़ीन मानिए कि वो अपने फ़न में सर्वश्रेष्ठ है."
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दरअसल, पांच साल पहले रियो ओलंपिक के दौरान बेल्जियम का प्रदर्शन शानदार रहा था. टीम गोल्ड मेडल नहीं जीत पाई थी, लेकिन अर्जेंटीना के हाथों फ़ाइनल हारने तक बेल्जियम का प्रदर्शन लाजवाब था और इस बेमिसाल प्रदर्शन में एलेक्जेंडर हेंड्रिक्स का कोई योगदान नहीं था क्योंकि वे टीम के रिर्ज़व खिलाड़ी थे और पूरे टूर्नामेंट के दौरान उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा था.
उन्हें अपनी टीम के प्रदर्शन पर गर्व तो हो रहा था, लेकिन उन्होंने उस वक्त तय कर लिया था कि अपने सपनों को साकार करने के लिए वे और ज़्यादा मेहनत करेंगे ताकि टीम प्रबंधन उन्हें रिज़र्व खिलाड़ी ना बना पाए.
जिन लोगों को 2018 में भुवनेश्वर में खेले गए वर्ल्ड चैम्पियनशिप की याद होगी, उन्हें एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स ज़रूर याद होंगे. हेंड्रिक्स उस टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे और उनके सात गोलों की बदौलत ही बेल्जियम की टीम वर्ल्ड चैम्पियन बनने में कामयाब हुई थी.
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सौरभ दुग्गल बताते हैं, "देखिए हेंड्रिक्स की कामयाबी में उनका अपना कौशल तो है ही साथ में उनकी टीम का भी योगदान है, टीम के बाक़ी खिलाड़ी पेनल्टी कॉर्नर हासिल करके उनके लिए मौका बनाते हैं और उनकी ख़ासियत ये है कि वे मौके को भुना लेते हैं."
आधुनिक हॉकी की तेज़ रफ़्तार और बड़े टूर्नामेंटों का दबाव इतना ज़्यादा होता है कि मौके को भुना पाना इतना आसान भी नहीं होता, लेकिन हेंड्रिक्स इस काम को बखूबी निभा रहे हैं कि क्योंकि महज़ पांच साल की उम्र से ही उन्होंने हॉकी को अपना लिया था.
संयोग ये था कि उनके माता-पिता जहां रह रहे थे, वहां से दो गली की दूरी पर ही एक हॉकी क्लब था, जहां एलेक्ज़ेंडर पांच साल की उम्र में पहुंच गए और 14 साल की उम्र तक उनका नाम बेल्जियम की नेशनल हॉकी सर्किट में फैलने लगा था.
लेकिन उन्हें रातों रात कामयाबी नहीं मिली, बल्कि सीढ़ी दर सीढ़ी उन्होंने ख़ुद को साबित किया. पहले अंडर 16 टीम में आए, फिर अंडर 18 और उसके बाद अंडर 21 की टीम में उन्होंने ख़ुद को निखारा.
इन सबके बाद 2010 में सिंगापुर में खेले गए यूथ ओलंपिक खेलों में बेल्जियम को कांस्य पदक दिलाने में उन्होंने टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा 11 गोल दागे थे. 2012 में महज़ 18 साल की उम्र में वे बेल्जियम की नेशनल टीम में शामिल हो गए. अगले साल उन्हें बेल्जियम का सबसे उभरता खिलाड़ी चुना गया.
बावजूद इसके 2016 के रियो ओलंपिक में उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा. सौरभ दुग्गल बताते हैं, "पिछले कुछ सालों में बेल्जियम की हॉकी में इतना सुधार हुआ है कि हेंड्रिक्स जैसी प्रतिभाओं को भी मौका हासिल करने के लिए इंतज़ार करना पड़ा है."
मौजूदा समय में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स की गिनती दुनिया के सबसे ख़तरनाक ड्रैग फ़्लिकरों में तो होती है, पर विपक्षी टीमों पर उनका ख़ौफ़ उस तरह का नहीं दिखता जैसा पाकिस्तान के सोहेल अब्बास, ब्रिटेन के कैलम जाइल्स, नीदरलैंड्स के टेएके टेकेमा, ऑस्ट्रेलिया के ट्रॉय एल्डर या फिर भारत के संदीप सिंह का दिखता रहा था.
इस बारे में सौरभ दुग्गल कहते हैं, "देखिए हैंड्रिक्स की ब्रैंडिंग उस तरह से नहीं हो पाई हो, लेकिन वे इन सबसे कम भी नहीं हैं. ब्रैंडिंग नहीं होने की एक वजह यह है कि हेंड्रिक्स का कर्न्वजन रेट औसत जैसा ही है, बहुत शानदार नहीं है. लेकिन उनकी ख़ासियत ये है कि वे अपनी रिस्ट का मूवमेंट भी प्रभावी तरीके से करते हैं."
वैसे आपको ये जानकर और भी अचरज हो सकता है कि 27 साल के हेंड्रिक्स काफ़ी पढ़े-लिखे हॉकी खिलाड़ी हैं. एंटवर्प यूनिवर्सिटी से ऑनर्स ग्रेजुएट होने के बाद वो एप्लाइड इकॉनोमिक साइंसेज़ में मास्टर्स डिग्री हासिल कर चुके हैं. (bbc.com)
टोक्यो, 3 अगस्त | भारतीय हॉकी टीम के पास 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद पहली बार ओलंपिक फाइनल खेलने और गोल्ड मेडल जीतने का मौका था लेकिन उसने बेल्जियम के हाथों सेमीफाइनल मैच 2-5 से गंवाते हुए ये मौके गंवा दिए। अब भारतीय टीम कांस्य जीतने का प्रयास करेगी, जो उसने अंतिम बार 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में जीता था। ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच पर खेले गए इस मैच में एक समय भारत 2-1 से आगे था लेकिन दुनिया के सबसे खतरनाक ड्रैक फ्लिकरों में से एक एलेक्सजेंडर हेंडरिक्स (19वें, 49वें, 53वें) की शानदार हैट्रिक के दम पर मौजूदा वर्ल्ड चैम्पियन बेल्जियम ने भारत को एकतरफा हार को मजबूर कर दिया।
बेल्जियम की टीम लगातार दूसरी बार फाइनल में पहुंची है। वह हालांकि अब तक स्वर्ण नहीं जीत सकी है। साल 2016 के रियो ओलंपिक खेलों के फाइनल में उसे अर्जेटीना के हाथों 2-4 से हार मिली थी।
साल 1980 में अपने ओलंपिक इतिहास का आठवां स्वर्ण जीतने वाली भारतीय टीम को अब कांस्य के लिए प्रयास करना होगा। भारत का यह मैच किससे होगा, इसका फैसला जर्मनी और आस्ट्रेलिया के बीच होने वाले दूसरे सेमीफाइनल के बाद हो जाएगा। वहीं इस मैच के विजेता से बेल्जियम भिड़ेगा।
बहरहाल, मैच का पहला गोल बेल्जियम की ओर से हुआ। यह गोल लोइक फेनी लुपर्ट ने दूसरे मिनट में हासिल पेनाल्टी कार्नर पर किया। मैच शुरु होने के साथ ही भारत पीछे हो चुका था।
भारतीय टीम दबाव में थी। लेकिन इस दबाव से निकलकर सातवें मिनट में गोल कर हरमनप्रीत सिंह ने मैच में रोमांच ला लिया। हरमनप्रीत ने यह गोल पेनाल्टी कार्नर पर किया। अब स्कोर 1-1 हो चुका था।
इसके बाद कप्तान मंदीप सिंह खुद मोर्चा सम्भाला और नौवें मिनट में एक बेहतरीन फील्ड गोल के जरिए भात को 2-1 से आगे कर दिया।
पहले ही क्वार्टर में पिछड़ने के बाद बेल्जियम ने बराबरी के लिए हमला तेज कर दिया। इस क्रम में उसे 19वें मिनट में सफलता मिली। एलेक्सजेंडर रॉबी हेंडरिक ने पेनाल्टी कार्नर पर गोल कर स्कोर 2-2 कर दिया।
तीसरे क्वार्टर में कोई गोल नहीं हुआ। चौथे क्वार्टर में बेल्जियम ने अचानक ही रफ्तार पकड़ी और 49वें मिनट में हासिल पेनाल्टी कार्नर पर हेंडरिक्स ने गोल कर 3-2 की लीड दिला दी। तीसरे क्वार्टर और चौथे क्वार्टर की शुरुआत तक बेल्जियम ने 7 पेनाल्टी कार्नर हासिल किए।
अंतिम समय में भारत की रक्षापंक्ति में सेंध लग चुकी थी। बेल्जियम को लगातार पेनाल्टी कार्नर मिल रहे थे। इसी क्रम में उसने 53वें मिनट में पेनाल्टी स्ट्रोक हासिल किया, जिस पर गोल कर हेंडरिक्स ने अपनी टीम को 4-2 से आगे कर उसकी जीत पक्की कर दी।
बेल्जियम की टीम इसके बाद भी नहीं रुकी और अंतिम मिनट में एक और गोल करते हुए 5-2 की लीड ले ली। बेल्जियम के लिए यह गोल डोमिनिक डॉहमैन ने 60वें मिनट में किया।
भारत ने म्यूनिख ओलंपिक में पाकिस्तान के हाथों सेमीफाइनल मुकाबला 0-2 से गंवाने के बाद कांस्य पदक के मुकाबल में नीदरलैंडस को 2-1 से हराया था। इसके बाद भारत ने सीधे मास्को में गोल्ड जीता लेकिन बीते 41 साल से भारत की झोली खाली है। अब देखने वाली बात यह है कि इस झोली में कांस्य भी आती है या नहीं। (आईएएनएस)
अमरावती, 3 अगस्त | आंध्र प्रदेश सरकार ने बैडमिंटन सुपरस्टार पी.वी. सिंधु को मौजूदा टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने की उपलब्धि पर पुरस्कृत करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने अधिकारियों को राज्य की खेल नीति के तहत सोमवार देर रात नकद पुरस्कार देने का निर्देश दिया।
इस पॉलिसी में स्वर्ण पदक विजेताओं को 75 लाख रुपये, रजत पदक के लिए 50 लाख रुपये और कांस्य पदक के लिए 30 लाख रुपये का नकद इनाम दिया जाता है।
मुख्यमंत्री ने जापान की राजधानी के लिए रवाना होने से पहले तीन खिलाड़ियों सिंधु, आर सात्विकसाईराज और महिला हॉकी खिलाड़ी रजनी एतिमारपू में से सभी को 5 लाख रुपये का नकद प्रोत्साहन दिया था।
उस दौरान मुख्यमंत्री ने बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम में बैडमिंटन अकादमी स्थापित करने के लिए सिंधु को दो एकड़ जमीन आवंटित करने के सरकारी आदेश की प्रति भी दी।
सिंधु आंध्र प्रदेश सरकार की कर्मचारी हैं। 2016 में उनके रियो ओलंपिक के कारनामों के बाद, एपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें डिप्टी कलेक्टर की नौकरी दी।
नकद प्रोत्साहन की बात करें तो, 2016 के ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद मिलने वाले नकद प्रोत्साहन की तुलना में वर्तमान एपी सरकार द्वारा दिए गए 30 लाख रुपये अब कम हो गए हैं।
इसके बाद, तेलंगाना सरकार ने सिंधु को 5 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया, जबकि एपी सरकार ने 3 करोड़ रुपये और एक सरकारी नौकरी भी दी। (आईएएनएस)
जयपुर, 3 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम ने वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हरा कर सेमीफाइनल में जगह बना ली है, तब से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की रहने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पुनिया के पैतृक गांव जश्न का माहौल है। पुनिया शानदार प्रदर्शन करते हुए विरोधी टीम के नौ शॉट्स को रोकने में कामयाब रही। उसके बाद से गोलकीपर के इस प्रदर्शन को खूब सराहा जा रहा है।
पुनिया के चाचा ओम ्रपकाश पुनिया ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "उनके पिताजी, दादाजी समेत पूरा परिवार इसी गावं में जन्में है। 2019 में जब सविता यहां आई थी तो गावं वालो ने उसे सिल्वर हॉकी से नवाजा था।"
झांसल के सरपंच, ओप प्रकाश पुनिया ने आगे बात करते हुए कहा कि "सविता के पिता यहीं जन्मे और यहीं बड़े हुए हैं। वे 25 साल पहले हरियाणा जा कर बस गए पर सविता को जब भी मौका मिलता है वह यहां जरुर आती हैं और हम सबसे मिलकर हमारा प्यार और आशिर्वाद लेती हैं।"
पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के हर प्रहार को नाकाम करते हुए भारतीय टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारत की महिला पहलवान सोनम को मंगलवार को 62 किग्रा महिला फ्रीस्टाइल वर्ग के अपने पहले ही मुकाबले में हार कर टोक्यो ओलंपिक से बाहर हो गईं। माकुहारी मेसे हॉल-ए के मैट बी पर राउंड ऑफ-8 मुकाबले में सोनम का सामना मंगोलिया की बोलोरतुया से हुआ, जिसे बोलोरतुया ने जीता।
अंतिम समय तक स्कोर 2-2 था लेकिन बोलोरतुया को सेकेंड पीरियड में एक साथ हासिल दो अंकों के आधार पर विजेता घोषित किया गया। सोनम ने पहले पीरियड की समाप्ति तक 1-0 की लीड ले रखी थी। दूसरे पीरियड में भी सोनम ने एक अकं हासिल किया और 2-0 की लीड हासिल कर ली।
बोलोरतुया ने हालांकि दूसरे पीरियड में एक साथ दो अंक लेकर बाजी मार ली। हार के बावजूद सोनम के लिए पदक की आस बची थी क्योंकि बोलोरतुया अगर फाइनल में पहुंच जातीं तो सोनम को रेपेचेज खेलने का मौका मिल जाता।
बोलोरतुया हालांकि अपना अगला मुकाबला मात्र 50 सेकेंड में हार गईं। और इसी के साथ सोनम के लिए टोक्यो ओलंपिक का सफर समाप्त हो गया।
रियो ओलंपिक में भारत की साक्षी मलिक अपना क्वार्टर फाइनल मैच हार गईं थीं लेकिन इसके बावजूद उन्हें रेपेचेज खेलने का मौका मिला था। इसका कारण यह था कि क्वार्टर फाइनल में रूस की फाइनलिस्ट वेलेरिया कोब्लोवा से हारने के बाद, उन्होंने रेपेचेज राउंड के लिए क्वालीफाई किया।
रेपेचेज राउंड में उन्होंने अपने पहले मुकाबले में मंगोलिया के पुरेवदोर्जिन ओरखोन को हराया। उन्होंने रेपेचेज मेडल प्लेऑफ में एक चरण में 0-5 से पिछड़ने के बावजूद, किर्गिस्तान के मौजूदा एशियाई चैंपियन ऐसुलु टाइनीबेकोवा पर 8-5 की जीत के बाद कांस्य पदक जीता और ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनीं। (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारत की महिला भाला फेंक एथलीट अनु रानी ने मंगलवार को अपने प्रदर्शन से निराश किया। वह अपने ग्रुप में सबसे नीचे रहीं। ओलंपिक स्टेडियम में मंगलवार को आयोजित क्वालीफाईंग के लिए अनु को ग्रुप-ए में रखा गया था। इस ग्रुप में 15 और एथलीट थीं।
इन सबके बीच अनु को 14वां स्थान मिला। क्रोएशिया की सारा कोलाक के डिस्क्वालीफाई होने के बाद कुल 14 प्रतिभागी ही बचीं थी।
अनु ने अपने तीन प्रयोसों में 50.35, 53.19 और 54.04 मीटर की दूरी नापी, जो फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
अनु ने साल 2019 में कतर में आयोजति विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान 61.12 मीटर दूरी के साथ ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। यह उनका पर्सनल बेस्ट भी है।
इस इवेंट के लिए ऑटोमेटिक क्वालीफाईंग मार्क 65 मीटर था। अनु के ग्रुप से पोलैंड की मारिया एंड्रेजिक ने 65.24 मीटर के साथ इसे हासिल किया। (आईएएनएस)
बीजिंग, 2 अगस्त | 1 अगस्त को टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की 100 मीटर के फाइनल में चीनी एथलीट सू बिंगथिए 9.98 सेकंड समय के साथ छठे स्थान पर रहे। ध्यान रहें, वह ओलंपिक खेलों के पुरुषों के 100 मीटर फाइनल में प्रवेश करने वाले पहले चीनी खिलाड़ी हैं। और सेमीफाइनल में उन्होंने 9.83 सेकंड से नया एशियाई रिकार्ड बनाया। सू बिंगथिए के प्रदर्शन ने दुनिया को चौंका दिया है। चीनी स्प्रिंटिंग के लीडर के रूप में, 32 वर्षीय सू बिंगथिए चीन को इस फील्ड में आगे ले जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उनके अमेरिकी कोच रैंडी हंटिंगटन ने कहा कि सू बिंगथिए बहुत आत्म-अनुशासित और बहुत पेशेवर हैं। अधिकांश एथलीटों को उनसे सीखने की जरूरत है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 2 अगस्त (आईएएनएस)| जापान की राजधानी टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों में चीन पदक तालिका में शीर्ष पर बना हुआ है। चीन पहले दिन से ही सर्वाधिक पदक जीतने के साथ ही नंबर वन स्थान पर काबिज है। वहीं, भारत की बात करें तो अभी भारत की झोली में केवल 2 पदक ही आये हैं। खैर, भारत की स्वर्ण पदक पाने की उम्मीद अभी भी बनी हुई है। वास्तव में, इस बार का रुझान पिछले ओलंपिक मुकाबलों की तरह ही नजर आ रहा है, जहां चीन पदक तालिका में शीर्ष पांच देशों में शामिल है। टोक्यो में भी अब तक इसका प्रदर्शन ओलंपिक सुपर पावर की तरह रहा है। चीन ने दिखा दिया है कि उसे पदक हासिल करने की जबरदस्त भूख है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत को पदक हासिल करने की भूख कम है?
देखिए एक समय था, जब भारत में खेलकूद को सिर्फ मनोरंजन का हिस्सा माना जाता था, लेकिन आज के दौर में बच्चे सिर्फ पढ़ाई से ही नहीं, बल्कि खेलकूद कर भी दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। आज खेलों की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। बहुत-से स्कूलों में खेल को जरूरी कर दिया गया है, यानी अगर पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह है। खुद को फिट रखने के लिए खेलकूद एक उत्तम विकल्प भी है।
हालांकि, यह सच है कि खेल और पढ़ाई साथ चलाने के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे चीन में छोटे-छोटे बच्चे करते हैं। चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिमनास्टिक्स, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं। अधिकांश चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं, जहां उन्हें सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जाता।
चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर ऑपशन लगता है। वहीं, भारत में, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने और बाद में नौकरी करवाने पर खासा ध्यान देते हैं।
सब जानते हैं कि खेल की दुनिया में चीन ने ऐसा दबदबा कायम किया कि वह ओलंपिक खेलों में सुपरपावर बन गया। उसके लिए खेल का महत्व किसी युद्ध से कम नहीं है। उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया और अपनी पदक तालिका को मजबूत बनाता गया।
दरअसल, 1980 के ओलंपिक खेलों के बाद से चीन की खेल प्रणाली काफी हद तक मजबूत हुई, और ओलंपिक खेलों में बहुत अधिक स्वर्ण पदक हासिल करने के बारे में चीन सरकार ने सोचना शुरू किया, और बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी की। चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल विज्ञान के आधार पर ज्यादा जोर देकर करवाई जाती है, जिससे वो पदक प्राप्त करने में कामयाब होते हैं।
इतना ही नहीं, चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान पर लाखों डॉलर खर्च करता है। चीन उन खेलों में विकासशील कार्यक्रमों पर विशेष जोर देता है जिनमें बहुत अधिक इवेंट्स होते हैं और बहुत सारे पदक जीतने की संभावना होती हैं, जैसे शूटिंग, जिमनास्टिक, तैराकी, नौकायन, ट्रैक एंड फील्ड आदि।
भारत में स्पोर्ट्स को हर सतह पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की जरूरत है और समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता देनी होगी। भारत में खेल और खिलाड़ियों के स्तर को बेहतर करने के लिए उन्हें ऊंचे स्तर के परीक्षण और रोजगार दिलाना जरूरी है। हालांकि, भारत में धीरे-धीरे बेहतरी आ रही है, लेकिन वो गति वाकई बहुत धीमी है।
लेकिन चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियन सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, चच्यांग फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स स्कूल और अन्य हजारों छोटे-बड़े ट्रेनिंग केंद्र। दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में हैगन स्पोर्ट्स ट्रेनिंग बेस चीन का सबसे बड़ा खेल प्रशिक्षण कैंप है। अतिरिक्त 3,000 स्पोर्ट्स स्कूल टैलेंट की पहचान और उनका पोषण करने का जिम्मा संभालते हैं।
इन स्पोर्ट्स स्कूल में कम उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं। इस तकलीफ को सहकर ही वे चैंपियन बनने की कला सीखते हैं। तभी तो ओलिंपिक हो या एशियन गेम्स, हर इवेंट्स में गोल्ड जीतने के लिए चीनी खिलाड़ी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। भले ही चीनी एथलेटिक्स अन्य देशों से आगे हों, लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसी कारण लगभग हर खेलों में चीनी खिलाड़ियों की धूम रहती है।
टोक्यो, 2 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक के बैडमिंटन महिला एकल वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की पीवी सिंधु ने कहा है कि वह इस मैच में अपना सर्वश्रेष्ठ देने तथा अपनी क्षमता के अनुरुप 100 फीसदी प्रदर्शन करने की मानसिकता के साथ उतरी थीं। सिंधु ने रविवार को कांस्य पदक मुकाबले में चीन की ही बिंगजिआओ को सीधे गेमों में हराकर तीसरा स्थान हासिल किया और कांस्य पदक जीता। सिंधु को सेमीफाइनल में चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के हाथों हार झेलनी पड़ी थी।
कांस्य पदक जीतने के साथ ही सिंधु भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनीं जिन्होंने लगातार दो ओलंपिक में पदक जीता है। इससे पहले उन्होंने 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था।
सिंधु ने वर्चुअल प्रेस वार्ता में कहा, "सेमीफाइनल खत्म होने के बाद मैं दुखी थी और मेरी आंखो में आंसू थे। लेकिन मेरे कोच और फीजियो ने कहा कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है और तुम्हारे पास एक और मौका है।"
उन्होंने कहा, "यहां मिश्रित भावना थी क्योंकि मेरे पास एक और मौका था जिससे मुझे खुश होना चाहिए और दुख भी था कि मैं सेमीफाइनल में हार गई। लेकिन पार्क ने मुझे समझाया कि कांस्य पदक और चौथे स्थान में बहुत फर्क है।"
सिंधु ने कहा, "मैंने सोचा कि मुझे पदक की जरूरत है क्योंकि मुझे देश के लिए पदक लाना है। ओलंपिक बड़ी चीज है। मैं इस मानसिकता के साथ उतरी कि मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ देना है और 100 फीसदी के साथ खेलना है।"
उन्होंने साथ ही कि जीतने के बाद मैं सुन हो गई थी और मुझे इस तथ्य को जानने में थोड़ा वक्त लगा कि मैंने क्या हासिल किया है। (आईएएनएस)
एक ट्रांसजेंडर भारोत्तोलक ओलंपिक खेलों में पहली बार भाग ले रही हैं. उनकी इस उपलब्धि को ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह बाकी महिला खिलाड़ियों के लिए उचित है?
न्यूजीलैंड की रहने वाली लॉरेल हब्बर्ड का जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था. 30 साल की उम्र के बाद उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन कराया और महिला बन गईं. उसके बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के मानकों को पूरा करने के बाद भारोत्तोलन में फिर से भाग लेना शुरू किया. आईओसी का कहना है कि वो खेलों में भाग लेने वाली खुले तौर पर ट्रांसजेंडर महिला के रूप में जानी जाने वाली पहली खिलाड़ी हैं.
समिति ने इसे ओलंपिक आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना बताया. समिति के मेडिकल प्रमुख रिचर्ड बजट ने टोक्यो में पत्रकारों को बताया, "लॉरेल हब्बर्ड एक महिला हैं, वो अपने देश के भारोत्तोलन संघ के नियमों के तहत हिस्सा ले रही हैं और हम खेलों के लिए चुने जाने और उनमें हिस्सा लेने के लिए उनके हौसले और संकल्प को सलाम करते हैं."
एक तीखी बहस
हालांकि, खेलों में 87 किलो से ऊपर वजन वाली महिलाओं की श्रेणी में उनके भाग लेने की वजह से खेलों में बायोएथिक्स, मानवाधिकार, विज्ञान, निष्पक्षता और पहचान जैसे पेचीदा मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि उनका भाग लेना समावेश और ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत है.
आलोचकों का कहना है कि दशकों तक एक पुरुष के तौर पर रहने की वजह से उनके शरीर में जो विशेषताएं समाई हुई हैं उनकी वजह से दूसरी महिला खिलाड़ियों पर उन्हें एक अनुचित बढ़त है. इस मामले पर बहस काफी तीव्र हो चुकी है और यह कभी कभी सख्त भी हो जाती है.
इंटरनेट पर दोनों पक्ष एक दूसरे पर तंज कसने लगते हैं. इस वजह से न्यूजीलैंड की ओलंपिक समिति को हब्बर्ड को सोशल मीडिया ट्रोलों से बचाने के लिए कई कदम उठाने पड़े हैं. लेकिन आईओसी ने यह माना है कि हब्बर्ड के पास एक "असंगत प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त" है या नहीं इसे लेकर उठने वाले सवाल जायज हैं.
विरोध के स्वर
महिलाओं के खेलों में भाग लेने के कई समर्थकों ने चिंता जताई है कि ट्रांसजेंडर प्रतियोगियों को खेलों में शामिल करना अनुचित है और इससे महिलाओं के खेलों के दर्जे को ऊंचा उठाने में काफी संघर्ष के बाद को सफलता हासिल हुई है उसे नुकसान पहुंच सकता है.इनमें पथप्रदर्शक समलैंगिक टेनिस स्टार मार्टिना नवरातिलोवा भी शामिल हैं. उनका कहना है, "एक ट्रांसजेंडर महिला जिस तरह से चाहें मैं उन्हें उस तरह से संबोधित कर सकती हूं, लेकिन उनके खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने में मुझे खुशी नहीं होगी. यह न्यायपूर्ण नहीं होगा."
कैटलीन जेनर ने 1976 के ओलंपिक खेलों में पुरुषों के डिकैथलन में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन 2015 में उन्होंने खुद के महिला होने की घोषणा की. उन्होंने भी इस साल की शुरुआत में कहा था, "यह बिलकुल न्यायपूर्ण नहीं है." इस बात का भी डर है कि हाई-इम्पैक्ट खेलों में ट्रांस महिलाओं को शामिल करने से दूसरे प्रतियोगियों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. इसी वजह से वर्ल्ड रग्बी ने पिछले साल ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बैन कर दिया था.
पुरुषों को शारीरिक फायदे
अपने फैसले के पीछे वर्ल्ड रग्बी ने वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला दिया था जिनमें यह दिखाया गया था कि पुरुष महिलाओं से 30 प्रतिशत ज्यादा मजबूत होते हैं. ओटागो विश्वविद्यालय के फिजियोलॉजिस्ट एलिसन हीथर ने बताया कि पुरुषों को और भी शारीरिक फायदे होते हैं, जैसे लंबे अंग, ज्यादा बड़ी मांसपेशियां, ज्यादा बड़ा दिल और फेंफड़ों में अधिक क्षमता.हालांकि आईओसी के बजट ने कहा कि यह पुरुषों और महिलाओं की तुलना करने जितना सरल नहीं है. उनका कहना है कि संभव है कि महिलाएं जब लिंग बदलने की प्रक्रिया के बीच हों तब उनके प्रदर्शन का स्तर गिर जाए. उन्होंने यह भी कहा कि और ज्यादा शोध की जरूरत है.
उन्होंने कहा, "इस तथ्य के बारे में भी सोचना चाहिए कि अभी तक चोटी पर कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं हुआ है जो खुले तौर पर एक ट्रांसजेंडर महिला हो और मुझे लगता है कि महिलाओं के खेलों को खतरे के बारे में मुमकिन है कि बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है."
आईओसी ने माना कि नया तंत्र इस मुद्दे पर आखिरी मत नहीं होगा. यह अंतरराष्ट्रीय खेल संघों के लिए कड़े नियमों की जगह सिर्फ दिशा निर्देश देगा. समिति के प्रवक्ता क्रिस्चियन क्लोए ने कहा, "हमें जिस की जरूरत है उसे हासिल करने के लिए एक अनुकूल स्तर पर पहुंचना होगा और वो स्तर जहां भी हो, संभव है कुछ लोग उसकी आलोचन करेंगे ही. यह अंतिम समाधान नहीं होगा." (dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
टोक्यो, 2 अगस्त | भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मुख्य कोच ग्राहम रीड ने कहा है कि टीम के खिलाड़ियों को विश्व चैंपियन बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले में अपनी भावनाओं पर काबू रखने की जरूरत है। रीड ने कहा, "मुझे खिलाड़ियों पर गर्व है। हमने काफी मेहनत की और कई बार आपको क्वार्टर फाइनल में भी फाइनल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। हम इस मैच में भाग्यशाली रहे क्योंकि ग्रेट ब्रिटेन ने हमसे ज्यादा मौके भुनाए लेकिन पीआर श्रीजेश ने बेहतर किया और उन्हें रोका।"
उन्होंने कहा, "कई बार आपको अपनी भावनाओं पर काबू रखने की जरूरत होती है। हमें पिच पर 11 खिलाड़ियों को रखने की जरूरत थी। दिक्कत यह है कि हमने कई बार ब्रिटेन के खिलाफ 10 खिलाड़ियों के साथ खेला है। हम ऐसा बेल्जियम के खिलाफ नहीं कर सकते।"
रीड ने कहा, "ब्रिटेन जैसी टीम के खिलाफ फील्ड गोल करना सुखद रहा। जैसा कि मैंने पहले कहा कि बेल्जिम के खिलाफ पूरे मैच के दौरान 11 खिलाड़ियों को रखना जरूरी है।" (आईएएनएस)