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6 माह पहले निकला था घर से, वोटर आईडी कार्ड से शिनाख्त
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबिकापुर, 14 जुलाई। नगर के रामानुजगंज चौक स्थित आईजी बंगले से लगे ऑफीसर्स क्लब के मुख्य गेट में ही एक कोटवार ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वोटर आईडी कार्ड के जरिए उसकी शिनाख्त हुई। बताया गया कि कुसमी क्षेत्र निवासी उक्त अधेड़ 6 माह पहले घर से निकला था। उसकी दिमागी हालत कुछ ठीक नहीं थी।
जानकारी के अनुसार रामानुजगंज चौक पर आईजी बंगला के बगल में ऑफिसर्स क्लब स्थित है। मंगलवार की दोपहर करीब 2 बजे एक व्यक्ति वहां पहुंचा और चप्पल उतारकर झोला नीचे रखा। इसके बाद ऑफिसर्स क्लब के गेट में गमछा बांधा और फंदा बनाकर फांसी लगा ली। यह नजारा वहां से गुजर रहे लोगों ने देखकर इसकी सूचना कोतवाली पुलिस को दी। पुलिस मौके पर पहुंची और शव को फंदे से उतारा।
पुलिस ने उसके झोले की तलाशी ली तो उसका वोटर आईडी कार्ड मिला। इस आधार पर उसकी शिनाख्त बलरामपुर जिले के कुसमी थानांतर्गत ग्राम गजाधरपुर के उल्टापारा निवासी खोनो तिर्की पिता लेंडा तिर्की 54 वर्ष के रूप में हुई।
पुलिस ने गजाधरपुर के कोटवार को फोन के माध्यम से इसकी जानकारी ली तो उसने बताया कि मृतक 5-6 महीने से अपने घर से लापता था। पूरे लॉकडाउन वह गायब रहा। उसने बताया कि युवक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती थी।
जयपुर, 14 जुलाई । सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, दोनों पद से हटाए जाने के बाद उन्होंने अपने ट्विटर अकाऊंट से ये दोनों जानकारियां हटा दीं, कांग्रेस पार्टी की जानकारी हटा दी, और अपने आपको बस टोंक का विधायक लिखा है, और भूतपूर्व मंत्री लिखा है।
उनके ट्विटर अकाऊंट को देखें तो छत्तीसगढ़ के कई मंत्री उन्हें फॉलो कर रहे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, टी.एस. सिंहदेव, डॉ. प्रेमसाय सिंह, ताम्रध्वज साहू, जयसिंह अग्रवाल, मप्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित प्रियंका गांधी और राहुल गांधी भी हैं। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बहुत से नेता उन्हें फॉलो करने वाले लोगों में से हंै। केन्द्र में प्रतिरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पी.एल. पुनिया जैसे बहुत से नेता उनको ट्विटर पर फॉलो करते थे, और अभी तक तो उनके फॉलोअर हैं ही। सचिन पायलट के 24 लाख से अधिक फॉलोअर हैं, और वे खुद कुल 101 लोगों को फॉलो करते हैं जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका गांधी, वरूण गांधी, अशोक गहलोत, अहमद पटेल, राम माधव, रणदीप सिंह सुरजेवाला, उमर अब्दुल्ला, नरेन्द्र मोदी, दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी शामिल हैं।
(न्यूज़ 18 के अनुसार ) राजस्थान में चल रहे सियासी बवाल के बीच अब सचिन पायलट ने अपने ट्विटर प्रोफाइल में बड़ा बदलाव किया है। कांग्रेस पार्टी से बर्खास्त होने के बाद सचिन पायलट ने अपने ट्विटर अकाउंट के बायो से कांग्रेस हटा लिया है। पायलट ने अपने ट्विटर प्रोफाइल पर अब केवल टोंक विधायक मेंशन किया है। इसके साथ उन्होंने आईटी, दूरसंचार और कॉर्पोरेट मामलों के पूर्व मंत्री, भारत सरकार भी लिखा है। ट्विटर पर पहले सचिन पायलट ने पहले डिप्टी सीएम राजस्थान और राजस्थान कांग्रेस प्रेसिडेंट लिखा था। पार्टी आलाकमान की कार्रवाई के बाद अब उन्होंने अपने प्रोफाइल से कांग्रेस के साथ इन प्रोफाइल को भी निकाल दिया है।
कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद सचिन पायलट को मंत्री पद से हटा दिया गया था। इसके फौरन बाद सचिन पायलट ने अपने ट्वीट में लिखा, सत्य को परेशान किया जा सकता है, पराजित नहीं। बैठक से पहले सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री मानने से इनकार कर दिया था। सूत्रों की मानें तो पायलट ने पार्टी नेतृत्व के सामने खुद को सीएम बनाने की शर्त रख दी थी।
मुंबई, 14 जुलाई । बॉलीवुड के माचो मैन संजय दत्त और सुनील शेट्टी डब्बे वालों की मदद के लिये आगे आये हैं।
कोरोना वायरस संकट काल में बॉलीवुड सेलेब्स ने जरुरतमंदों और गरीबों की हर संभव मदद की। संजय दत्त और सुनील शेट्टी ने भी लोगों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है। उन्होंने मुंबई के डब्बा वालों को राशन किट उपलब्ध करवाने में अपनी ओर से सहायता दी है। मंत्री असलम शेख ने ट्वीट कर लिखा, मुंबई की जान डब्बा वाला को हमारी जरुरत है अभी। हमारे डब्बावाले भाईयों और उनके परिवार को ड्राई राशन किट पहुंचाने में संजय दत्त, सुनील शेट्टी, रेडियो सिटी इंडिया और मुझे ज्वॉइन करें।
असलम शेख के इस ट्वीट पर सुनील शेट्टी ने रिएक्ट किया है। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए लिखा, आपको और भी ताकत..बहुत अच्छी पहल असलम भाई। सुनील शेट्टी ने कहा,यह पहल असलम भाई और संजू द्वारा शुरू की गई है। मुझे उनके साथ हाथ मिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी। प्रेमा चा डब्बा के साथ जुडऩे से यह और भी खूबसूरत हो जाता है। हमारे पास अभी तीन महीने का प्लान है। हमारा टारगेट 5 हजार परिवारों तक मदद पहुंचाना है।(वार्ता)
नई दिल्ली, 14 जुलाई । उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने तेलंगाना के उस डॉक्टर के समर्पण भाव और कर्तव्यनिष्ठा की सराहना की है जिसने कोरोना वायरस से मारे गए व्यक्ति के पार्थिव शरीर को स्वयं श्मशान भूमि तक पहुंचाया है।
श्री नायडू ने मंगलवार को एक ट्वीट में कहा कि इस डॉक्टर की कर्तव्य परायणता से सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। मृतक के पार्थिव शरीर को संक्रमण के भय से वाहन चालक ने ले जाने से मना कर दिया था।
श्री नायडू ने कहा, तेलंगाना के पेडापल्ली में जिला निगरानी अधिकारी डॉ पेंद्याला श्रीराम की सराहना करता हूं, जो कोरोना से मृत व्यक्ति के शव को स्वयं ट्रैक्टर चलाकर आदरपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए लेकर गए, क्योंकि चालक ने कोरोना के भय से मना कर दिया था।
उपराष्ट्रपति ने डॉक्टर की सराहना करते हुए कहा, डॉ. श्रीराम की संवेदनशीलता, शेयर एंड केयर की भारत की सनातन परंपरा का अप्रतिम उदाहरण है। आशा करता हूं कि अन्य नागरिक भी आपसे प्रेरणा लेंगे। श्री नायडू ने अपने ट्वीट के साथ एक चित्र भी पोस्ट किया है जिसमें डाक्टर स्वयं एक ट्रैक्टर चलाकर ले जा रहे हैं।(वार्ता)
सीएम ने दिलाई शपथ, मंत्रियों के साथ संलग्न भी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 जुलाई। राज्य शासन ने 15 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया है। इन संसदीय सचिवों को मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शपथ दिलाई।
मुख्यमंत्री निवास में आयोजित शपथ ग्रहण कार्यक्रम में सरकार के मंत्रियों के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया और प्रभारी सचिव चंदन यादव भी मौजूद थे। जिन विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया है, उनमें द्वारिकाधीश यादव, विनोद चंद्राकर, चंद्रदेव राय, शकुंतला साहू, विकास उपाध्याय, अंबिका सिंहदेव, चिंतामणी महाराज, यूडी मिंज, पारसनाथ राजवाड़े, इंदरशाह मंडावी, कुंवर सिंह निषाद, गुरूदयाल बंजारे, डॉ. रश्मि आशीष सिंह, शिशुपाल सोरी और रेखचंद जैन हैं।
द्वारिकाधीश यादव को प्रेमसाय सिंह, विनोद चंद्राकर को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, चंद्रदेव राय को वनमंत्री मोहम्मद अकबर, शकुंतला साहू को रविन्द्र चौबे, विकास उपाध्याय को गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, अंबिका सिंहदेव को पीएचई मंत्री रूद्रकुमार गुरू, चिंतामणी महाराज को पीडब्ल्यूडी मंत्री, यूडी मिंज को आबकारी मंत्री, पारसनाथ राजवाड़े को तकनीकी शिक्षा मंत्री उमेश पटेल, इंदरशाह मंडावी को राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल, कुंवर सिंह निषाद को खाद्यमंत्री अमरजीत भगत, गुरूदयाल बंजारे को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, डॉ. रश्मि आशीष सिंह को महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेडिय़ा, शिशुपाल सोरी को परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर और रेखचंद जैन को शिव डहरिया के साथ संबद्ध किया गया है।
कैबिनेट का फैसला
छत्तीसगढ़ संवाददाता
रायपुर, 14 जुलाई। दो वर्ष की सेवा पूरी कर चुके शिक्षाकर्मियों का स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन होगा। यह फैसला मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में लिया गया। बैठक में परिवहन व्यय सहित दो रूपये प्रति किलो में गोबर खरीदने के प्रस्ताव का भी अनुमोदन किया गया।
सीएम हाउस में हुई कैबिनेट की बैठक में दो वर्ष या उससे अधिक की सेवा पूरी कर चुके शेष बचे पंचायत और नगरीय निकाय संवर्ग के शिक्षकों के संविलियन के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई। इन शिक्षकों का 1 नवंबर से स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियिन होगा। इससे 16 हजार 278 शिक्षकों को लाभ मिलेगा।
बैठक में गोधन न्याय योजना का अनुमोदन किया गया। यह योजना हरेली पर्व से शुरू होगी। प्रदेश में अब तक 53 सौ गौठान स्वीकृत किए जा चुके हैं। जिसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में 2408 और शहरी क्षेत्रों में 377 गौठान बन चुके हैं जहां से इस योजना की शुरूआत की जाएगी। प्रदेश में स्थापित गौठान में और पशु पालकों से गोबर क्रय कर वर्मी कम्पोस्ट और अन्य उत्पाद तैयार किया जाएगा। इससे पशु पालकों को आर्थिक लाभ भी होगा। कैबिनेट ने गोबर क्रय की दर 2 रुपये प्रति किलो परिवहन व्यय सहित करने का अनुमोदन किया गया।
बताया गया कि योजना उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट का सहकारी समितियों के जरिए प्राथमिकता के आधार पर किसानों को 8 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से
विक्रय करने के साथ ही साथ जैविक खाद को शामिल करने का अनुमोदन किया गया।
अविवाहित दिवंगत सरकारी सेवकों
के आश्रितों को भी अनुकंपा नियुक्ति
सामान्य प्रशासन विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति के प्रावधानों में संशोधन किया है। यह फैसला लिया गया है कि यदि भाई-बहन अवयस्क हो तो, सरकार अविवाहित दिवंगत सरकारी सेवक के माता-पिता से अंतरिम आवेदन लेकर अवयस्क सदस्य के वयस्क होने पर उसे उसकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर तृतीय अथवा चतुर्थ श्रेणी के पद पर अनुकंपा नियुक्ति दी जाएगी।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 जुलाई। कोरोना मरीज बढऩे के साथ ही राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के 112 ब्लॉक रेड जोन में शामिल किए गए हैं। वहीं 32 ब्लॉक ऑरेंज जोन में रखे गए हैं। ग्रीन जोन में कोई ब्लॉक नहीं है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रदेश के रेड, ऑरेंज जोन की सूची निम्नानुसार है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 जुलाई। बेरोजगारी में बांस की टोकनी बनाकर बेच रहे तमिलनाडु के एक अधिवक्ता की सराहना करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन ने 10 हजार रुपये का चेक उपहारस्वरूप भेजा है।
तंजावूर, तमिलनाडु के अधिवक्ता के. उत्थमकुमारन् की कहानी ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित हुई थी। इसमें बताया गया था कि कोविड-19 के बाद लॉकडाउन होने के बाद अधिवक्ता ने अपने पारम्परिक व्यवसाय को अपनाने में कोई झिझक महसूस नहीं की और खर्च चलाने के लिये बांस की टोकनी बनाकर बेचना शुरू कर दिया।
अधिवक्ता उत्थमकुमारन् को पत्र में चीफ जस्टिस मेनन ने लिखा कि वे इस राशि को वह अनुदान, सहयोग या सहानुभूति के रूप में न लें बल्कि उपहार समझें। इसे श्रम के प्रति सम्मान की सराहना समझें। आपका यह कदम वकीलों की बिरादरी को सकारात्मक रहने के लिये प्रेरणा देता है और बताता है कि हर सूर्यास्त के बाद सूर्योदय ही होता है।
ज्ञात हो कि इस समय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आर्थिक संकट से घिरे अधिवक्ताओं की कुछ याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। अधिवक्ता संदीप दुबे, अधिवक्ता आनंद मोहन तिवारी, राजेश केशरवानी आदि के मामलों की सुनवाई करते हुए उन्होंने इस घटना का जिक्र अपने आदेश में 18 जून को किया था।
बीजिंग/जिनेवा/नई दिल्ली, 14 जुलाई (वार्ता)। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का कहर दिनों दिन तेजी से पांव पसारते जा रहा है और दुनियाभर में इससे संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या 1.31 करोड़ के पार पहुंच गई है, जबकि मृतकों की संख्या पांच लाख 73 हजार से ऊपर हो गई है।
कोविड-19 के संक्रमितों के मामले में अमेरिका दुनिया भर में पहले, ब्राजील दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर बरकरार है। वहीं इस महामारी से हुई मौतों के आंकड़ों के मामले में अमेरिका पहले, ब्राजील दूसरे और ब्रिटेन तीसरे स्थान पर है जबकि भारत मृतकों की संख्या के मामले में आठवें स्थान पर है।
अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग केन्द्र (सीएसएसई) की ओर से जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,31,03,290 हो गयी है जबकि अब तक इस महामारी के कारण 5,73,042 लोगों ने जान गंवाई है।
विश्व की महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका में कोरोना से अब तक 33,63,056 लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 1,35,605 लोगों की मौत हो चुकी है। ब्राजील में अब तक 18,84,967 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं जबकि 72,833 लोगों की मौत हो चुकी है।
भारत में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 28,498 नये मामले सामने आये हैं जिससे संक्रमितों की संख्या 9,06,752 हो गयी है। पिछले 24 घंटों के दौरान 553 लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 23,727 हो गई है। संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। पिछले 24 घंटों के दौरान 17,989 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 5,71,460 रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 3,11,565 सक्रिय मामले हैं।
रूस कोविड-19 के मामलों में चौथे नंबर पर है और यहां इसके संक्रमण से अब तक 7,32,547 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 11,422 लोगों ने जान गंवाई है। पेरू में लगातार हालात खराब होते जा रहे है वह इस सूची में पांचवें नम्बर पर पहुंच गया है। यहां संक्रमितों की संख्या 3,30,123 हो गई तथा 12,054 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण के मामले में चिली विश्व में छठे स्थान पर आ गया हैं। यहां अब तक कोरोना वायरस से 3,17,657 लोग संक्रमित हुए हैं और मृतकों की संख्या 7024 है।
कोरोना संक्रमण के मामले में मेक्सिको ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है। यहां पर इससे अब तक 3,04,435 लोगों संक्रमित हुए हैं तथा 35,491 लोगों की मौत हुई है। ब्रिटेन संक्रमण के मामले में आठवें नंबर पर आ गया है। यहां अब तक इस महामारी से 2,91,691 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 44,915 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। दक्षिण अफ्रीका कोरोना से प्रभावित होने के मामले में स्पेन और ईरान से आगे निकल गये हैं। वहीं खाड़ी देश ईरान ने यूरोपीय देश स्पेन को कोविड-19 से संक्रमित होने के मामले में पीछे छोड़ दिया है। दक्षिण अफ्रीका में कोरोना से अब तक 2,87,796 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 4172 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं ईरान में संक्रमितों की संख्या 2,59,652 हो गई है और 13,032 लोगों की इसके कारण मौत हुई है। वहीं स्पेन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 255,953 है जबकि 28,406 लोगों की मौत हो चुकी है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में कोरोना से अब तक 2,53,604 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 5,320 लोगों की मौत हो चुकी है।
यूरोपीय देश इटली में इस जानलेवा विषाणु से 2,43,230 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 34,967 लोगों की मौत हुई है। सऊदी अरब में कोरोना संक्रमण से अब तक 2,35,111 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 2243 लोगों की मौत हो चुकी है। तुर्की में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,14,001 हो गयी है और 5382 लोगों की मौत हो चुकी है। फ्रांस में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,09,640 हैं और 30,032 लोगों की मौत हो चुकी है। जर्मनी में 2,00,180 लोग संक्रमित हुए हैं और 9074 लोगों की मौत हुई है।
बंगलादेश में 1,86,894 लोग कोरोना की चपेट में आए हैं जबकि 2391 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस से बेल्जियम में 9782, कनाडा में 8836, नीदरलैंड में 6156, स्वीडन में 5536, इक्वाडोर में 5063, मिस्र में 3935, इंडोनेशिया में 3656, इराक में 3250, स्विट्जरलैंड में 1968, रोमानिया में 1901, अर्जेंटीना में 1903, बोलीविया में 1866, आयरलैंड में 1746 और पुर्तगाल में 1662 लोगों की मौत हो चुकी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 जुलाई। रायपुर जिले में आज दोपहर 9 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें एम्स, निमोरा क्वारंटीन सेंटर व दलदल सिवनी से 2-2 एवं कुकुरबेड़ा आमानाका, श्रीनगर गुढिय़ारी व बैरनबाजार से 1-1 मरीज शामिल हैं। जिला स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि इन सभी मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ उनके संपर्क में आने वालों की जांच-पहचान की जा रही है।
मौतें-19, एक्टिव-1044, डिस्चार्ज-3202
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज साढ़े 42 सौ पार हो चुके हैं। बीती रात एक साथ मिले 184 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 42 सौ 65 हो गई है। इसमें 19 की मौत हो चुकी है। एक हजार 44 एक्टिव हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी है। 32 सौ 2 डिस्चार्ज होकर अपने घर लौट गए हैं।
प्रदेश में कोरोना मरीजों के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। खासकर रायपुर जिले में मरीजों की संख्या तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। इसके अलावा दुर्ग, नांदगांव, बलौदाबाजार, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर-चांपा में भी कोरोना मरीज बढ़ते जा रहे हैं। सरकार ने ऐसे में लॉकडाउन की वापसी करते हुए शाम 7 बजे के बाद दुकानें बंद करने का निर्णय लिया है, ताकि संक्रमण कम हो सके।
जारी बुलेटिन के मुताबिक प्रदेश में बीती रात 184 नए कोरोना पॉजिटिव की पहचान की गई। इसमें अकेले रायपुर जिले से 87, राजनांदगांव से 26, दुर्ग से 25, मुंगेली से 9, गरियाबंद से 8, धमतरी से 7, बेमेतरा व कबीरधाम से 4-4, बिलासपुर से 3, बलौदाबाजार से 2, बालोद, महासमुंद, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, सरगुजा, कोरिया, जशपुर, नारायणपुर व गौरेला-पेंड्रा-मरवाही से 1-1 शामिल हैं।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि बीती रात मिले सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। वहीं उनके आसपास या संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। दूसरी तरफ जांच का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है। ऐसे में और कई जगहों से नए पॉजिटिव सामने आ सकते हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 जुलाई। महिला अधिकारी से दुर्व्यवहार और प्रताडऩा का आरोप लगने के बाद जीएसटी के सहायक आयुक्त मोहन सोनी को पद से हटाकर दूसरे विभाग में भेज दिया गया है। विशाखा कमेटी की रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाने के बाद अब साइबर सेल ने मामले की जांच शुरू की है।
पिछले सप्ताह जीएसटी के सहायक आयुक्त सोनी पर उनकी जूनियर एक महिला अधिकारी ने यौन दुर्व्यवहार और प्रताडऩा का आरोप लगाया था। महिला ने उच्चाधिकारियों और विभाग की विशाखा कमेटी में शिकायत की थी कि उनकी ज्वाइनिंग के बाद से असिस्टेंट कमिश्नर उस पर तथा अन्य महिलाओं पर बुरी नजर रखता है। महिलाओं की चोरी-छिपे फोटो खींची जाती है और वीडियो तैयार किया जाता है, जिसे बाद में पुरुषों को भेजकर उस पर भद्दे कमेंट किए जाते हैं। अकारण चेम्बर में बिठाकर रखा जाता है।
शिकायत के बाद सोनी को सर्किल एक से हटाकर सर्किल दो में अटैच कर दिया गया। जीएसटी आयुक्त रानू साहू ने मामले की जांच के लिये डिप्टी कमिश्नर राखी अग्रवाल के नेतृत्व में तीन समिति की कमेटी बनाई थी। उन्होंने स्टाफ के लोगों का बयान दर्ज किया। उनके रिपोर्ट में शिकायत में सत्यता पाई गई, जिसके बाद पुलिस को रिपोर्ट सौंप दी गई है। साइबर सेल को इस मामले की जांच और कार्रवाई की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 जुलाई। रायपुर के दानी गल्र्स कॉलेज एवं सप्रे ब्वायज स्कूल की जमीन पर कराये जा रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।
रायपुर के डॉ. अजीत आनंद डेवनेकर, राजेश कदम व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इन दोनों शिक्षण संस्थानों में चल रहे निर्माण पर रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि स्कूल-कॉलेज की जमीन मैदान, लैब, गार्डन आदि के लिये सुरक्षित रखा जाये। जिन स्थानों पर निर्माण कराया जा रहा है वह इन शैक्षणिक संस्थाओं की ही जमीन है जिसे सार्वजनिक उपयोग के लिये रखी गई खाली जगह बताई जा रही है। शासन की ओर से बताया गया कि उक्त स्थानों पर निर्माण कार्य नहीं चल रहा है। निर्माण कार्यों के लिये टेंडर 15 जुलाई को खोला जायेगा। याचिकाकर्ता की ओर से आपत्ति की गई कि टेंडर नहीं खुलने के बावजूद जमीन पर निर्माण कार्य किस तरह से प्रारंभ कर दिया गया। याचिका में एक 2020 की स्थिति बहाल करने की मांग की गई है। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
लखनपुर,14 जुलाई। सरगुजा जिले के छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक शाखा लखनपुर में सोमवार-मंगलवार की दरमियानी रात अज्ञात चोरों के द्वारा सेंधमारी कर बैंक के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज जला दिए गए। बैंक में रखे रुपए पूरी तरह सुरक्षित है। लखनपुर पुलिस इसे प्रथम दृष्टया किसी साजिश का हिस्सा मान जांच में जुट गई है।
यह भी बात सामने आ रही है कि चोरी करने में कामयाबी नहीं मिली तो चोरों ने बैंक के दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया, जिससे बैंक में रखे अहम जरूरी दस्तावेज जलकर खाक हो गए।
एसडीओपी चंचल तिवारी ने घटनास्थल पहुंच शाखा मैनेजर बैंक कर्मियों तथा आसपास के रहवासियों से चर्चा करते हुए जानकारी ली। बहरहाल अज्ञात चोरों ने बैंक भवन के पीछे दीवार में सेंधमारकर बैंक के अंदर नगदी रकम चुराने की कोशिश की, परंतु नगदी राशि नहीं मिलने की स्थिति में बैंक दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया।
बताया जा रहा है कि भीड़भाड़ वाले नगर के प्रतीक्षा बस स्टैंड से लगे ग्रामीण बैंक में सेंधमारी के साथ दस्तावेजों के जलाए जाने को अलग-अलग नजरिए से जोडक़र देखा जा रहा है, जबकि बैंक में नगद राशि की चोरी नहीं होने की पुष्टि हुई है। जिससे मामला संदेहास्पद नजर आ रहा है।
नई दिल्ली, 14 जुलाई। कांग्रेस महासचिव और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद से जुड़ी एक खबर को ट्विटर पर शेयर करते हुए फर्जी बताया है। प्रियंका ने इसके साथ ही उस खबर का खंडन किया जिसमें कहा गया था कि प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी से दिल्ली के लुटियंस स्थित घर में कुछ और दिन रहने देने के लिए अनुरोध किया था।
प्रियंका ने जिस लिंक को शेयर किया है उसमें लिखा गया है कि प्रधानमंत्री ने प्रियंका गांधी के उस अनुरोध को मान लिया है जिसमें उन्होंने दिल्ली के लुटियंस स्थित घर में कुछ और दिन रहने देने के लिए किया था। हाल ही में प्रियंका गांधी से सरकार ने सरकारी घर खाली करने के लिए कहा था। प्रियंका की जेड प्लस सिक्यॉरिटी वापस ले ली गई थी, जिसके बाद उन्हें सरकारी बंगला भी खाली करना था।
प्रियंका गांधी ने खुद से जुड़ी खबर के लिंक को शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा है, यह फर्जी खबर है। मैंने सरकार से इस तरह का कोई अनुरोध नहीं किया है। मुझे एक जुलाई को यह घर खाली करने के लिए चि_ी मिली थी और 35 लोधी रोड स्थित इस सरकारी घर को एक अगस्त को खाली कर दूंगी। मंत्रालय ने गत एक जुलाई को प्रियंका गांधी के बंगले का आबंटन रद्द करते हुए कहा था कि वह एसपीजी सुरक्षा वापस लिए जाने के बाद आवासीय सुविधा पाने की हकदार नहीं हैं।
प्रियंका के बाद यह बंगला भाजपा के राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी को आवंटित किया है। यह बंगला प्रियंका गांधी को 21 फरवरी, 1997 को आवंटित किया गया था क्योंकि उस वक्त उन्हें एसपीजी सुरक्षा मिली हुई थी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस महासचिव और पार्टी की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का स्थायी पता अब 23/2 गोखले मार्ग, लखनऊ होगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय शीला कौल की इस कोठी को सजाया-संवारा जा रहा है।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह प्रियंका से दिल्ली का सरकारी आवास खाली कराने का नोटिस देने वाली भाजपा सरकार को माकूल जवाब भी है। हालांकि, लखनऊ आने पर प्रियंका पहले भी इस आवास का ठहरने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि लोकसभा चुनाव के वक्त ही प्रियंका ने यह निर्णय ले लिया गया था कि ज्यादा वक्त लखनऊ और यूपी को देना है। इसलिए इसे प्रियंका को दिल्ली में सरकारी आवास खाली करने के नोटिस से जोडक़र देखना उचित नहीं है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने दी जानकारी
नई दिल्ली, 14 जुलाई : सीबीएसई 12वीं का रिजल्ट आने के बाद अब 10वीं के रिजल्ट की तारीख का भी ऐलान कर दिया गया है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया है कि सीबीएसई 10वीं बोर्ड का रिजल्ट कल घोषित किया जाएगा. इस ऐलान के साथ ही उन्होंने बच्चों को गुड लक विश किया है. मानव संसाधव विकास मंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा, "डियर बच्चों, माता-पिता और शिक्षक 10वीं क्लास का रिजल्ट कल जारी किया जाएगा. मैं सभी स्टूडेंट्स को गुड लक विश करता हूं."
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने सोमवार को 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम घोषित किए हैं. जिसमें लड़कियों के पास होने का प्रतिशत लड़कों की तुलना में 5.96 प्रतिशत बेहतर है. 12वीं कक्षा में क्षेत्रवार त्रिवेंद्रम क्षेत्र का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा, जहां के विद्यार्थियों का उत्तीर्ण प्रतिशत 97.67 रहा. सीबीएसई ने कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को देखते हुए इस वर्ष मेधा (मेरिट) सूची जारी नहीं करने का निर्णय लिया है. बोर्ड ने ‘फेल' के स्थान पर ‘आवश्यक रिपीट' शब्दावली का उपयोग करने का भी फैसला किया है.
सीबीएसई द्वारा जारी बयान के अनुसार, इस वर्ष 12वीं कक्षा में कुल 88.78 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए, जबकि 2019 में इसका प्रतिशत 83.40 प्रतिशत था. यानी, पिछले साल की तुलना में इस साल 5.38 प्रतिशत अधिक विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए. इस साल लड़कियों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 92.15 रहा, जबकि लड़कों में प्रतिशत 86.19 रहा. ट्रांसजेंडर का उत्तीर्ण प्रतिशत 66.67 दर्ज किया गया. (भाषा)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 14 जुलाई। बीती रात लभरा ग्राम के पास तेज रफ्तार ट्रेलर के कट मारने व ठोकर से कोयले से भरा एक ट्रक खेत में पलट गया। इससे ट्रक ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई।
कोतवाली पुलिस के अनुसार बीती रात करीब एक बजे तेज रफ्तार ट्रेलर ट्रक के बाजू से कट मारते निकला। ट्रक भी रफ्तार में था और ट्रेलर की ठोकर से सडक़ किनारे खेत में जाकर पलट गया। जिससे ट्रक चालक पराई थाना चितरंगी जिला सिंगरौली निवासी अशोक साहू (23) की घटना स्थल पर ही मौत हो गई।
संसदीय सचिव बनेंगे इंद्रशाह
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 14 जुलाई। छत्तीसगढ़ राज्य के आखिरी छोर में बसे मोहला-मानपुर विधानसभा को दशकभर बाद राजनीतिक अहमियत देते हुए ‘लालबत्ती’ से नवाजा है। प्रदेश सरकार ने पहली बार विधायक बने इंद्रशाह मंडावी को संसदीय सचिव नियुक्त कर बड़ी जवाबदारी दी है। पिछले कुछ दिनों से संसदीय सचिव नियुक्ति को लेकर सूबे में अटकलों का दौर चल रहा था। राजनांदगांव जिले से भी किसी को संसदीय सचिव बनाए जाने की चर्चा चल रही थी। सरकार के इस निर्णय से यह साफ हो गया कि संसदीय सचिव के लिए इंद्रशाह मंडावी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहली पंसद रहे। जबकि दलेश्वर साहू का नाम कल देर शाम तक तय माना जा रहा था।
बताया जाता है कि अतिपिछड़े मोहला-मानपुर की राजनीतिक और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए सरकार ने इंद्रशाह को संसदीय सचिव के लिए उपयुक्त माना। करीब दस साल बाद वनांचल मोहला-मानपुर को लालबत्ती की सौगात मिली है। इससे पहले पूववर्ती भाजपा सरकार में अविभाजित अंबागढ़ चौकी विधानसभा के विधायक रहे संजीव शाह को यह ओहदा मिला था।
बताया जाता है कि मोहला-मानपुर को राज्य सरकार ने राजनीतिक महत्व देकर विकास की नई इबारत लिखने का इरादा जाहिर किया है। आदिवासी इलाका होने की वजह से भी सरकार ने मंडावी को मौका दिया है। विधानसभा के रूप में अस्तित्व में आने के बाद मोहला-मानपुर में भाजपा जीत का खाता खोलने के लिए तरस रही है। यानी कांग्रेस को मतदाताओं ने दिल खोलकर समर्थन दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस की सिलसिलेवार जीत की वजह से भी सरकार ने लालबत्ती देकर आदिवासी इलाके को सम्मान दिया है। बताया जाता है कि सरकार के इस निर्णय से मोहला-मानपुर के पिछड़ा इलाका होने की छवि भी सुधरेगी।
सीएम की नजरों में खरा उतरने का प्रयास करूंगा-मंडावी
राजनांदगांव जिले से इकलौते संसदीय सचिव नियुक्त हुए विधायक मंडावी ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें प्रदेश स्तर पर कार्य करने का मौका दिया है। संसदीय सचिव के गरिमा और मुख्यमंत्री की सोच के अनुरूप वह कार्य कर सभी के नजरों में खरा उतरने का प्रयास करेंगे। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में श्री मंडावी ने कहा कि मोहला-मानपुर के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए नई कार्ययोजना के जरिए विकास करेंगे।
नई दिल्ली, 14 जुलाई (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण की भयावह होती स्थिति के बीच तीसरे दिन भी 28 हजार से अधिक नए मामले सामने आए हैं जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 9.06 लाख के पार पहुंच गया है और इस दौरान 550 से अधिक लोगों की मौत हुई है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 28,498 नये मामले सामने आये हैं जिससे संक्रमितों की संख्या 9,06,752 हो गयी है। इससे पहले रविवार को 28,637 और सोमवार को 28,701 मामले सामने आये थे और इनकी तुलना में आज संक्रमितों की संख्या में मामूली कमी दर्ज की गयी है।
संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। पिछले 24 घंटों के दौरान 17,989 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 5,71,460 रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 3,11,565 सक्रिय मामले हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान 553 लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 23,727 हो गई है।
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में संंक्रमण के 6,497 नये मामले दर्ज किये गये जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,60,924 पर पहुंच गया है। इसी अवधि में 193 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या बढक़र 10,482 हो गयी है। वहीं 1,44,507 लोग संक्रमण मुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में पिछले 24 घंटों के दौरान संक्रमण के मामले 4,328 बढक़र 1,42,798 पर पहुंच गये हैं और इसी अवधि में 57 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 2,023 हो गयी है। राज्य में 92,567 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी की स्थिति अब कुछ नियंत्रण में है और यहां संक्रमण के मामलों में वृद्धि की रफ्तार थोड़ी कम हुई है। राजधानी में अब तक 1,13,740 लोग कोरोना की चपेट में आये हैं तथा इसके कारण मरने वालों की संख्या 3411 हो गयी है। यहां 91,312 मरीज रोगमुक्त हुए हैं।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या मामले में चौथे स्थान पर है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में संक्रमितों का आंकड़ा 42 हजार के पार पहुंच गया है और अब तक 42,722 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 2,055 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 29,770 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
दक्षिण के राज्य कर्नाटक में 41,581 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 757 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में 16,248 लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 38,130 मामले सामने आए हैं तथा इस वायरस से 955 लोगों की मौत हुई है जबकि 24,203 मरीज ठीक हुए हैं।
दक्षिण के एक और राज्य तेलंगाना में भी कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में संक्रमितों की संख्या 34,221 हो गयी है और 365 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 23,679 लोग अब तक इस महामारी से ठीक हो चुके है।
पश्चिम बंगाल में 31,448 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 956 लोगों की मौत हुई है और अब तक 19,213 लोग स्वस्थ हुए हैं। आंध्र प्रदेश में संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण यह सर्वाधिक प्रभावित की सूची में राजस्थान से ऊपर आ गया है। राज्य में 31,103 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 365 हो गयी है। राजस्थान में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या 24,936 हो गयी है और अब तक 525 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 18,630 लोग पूरी तरह ठीक हुए है। हरियाणा में 21,894 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 308 लोगों की मौत हुई है।
इस महामारी से मध्य प्रदेश में 663, पंजाब में 204, जम्मू-कश्मीर में 187, बिहार में 160, ओडिशा में 70, उत्तराखंड में 49, असम में 36, केरल और झारखंड में 33, छत्तीसगढ़ में 19, पुड्डुचेरी में 18, गोवा में 17, हिमाचल प्रदेश में 11, चंडीगढ़ में आठ, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में दो-दो तथा लद्दाख में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
गुजरात के अहमदाबाद के एक वृद्धाश्रम के मैनेजर का कहना है कि अब अधिक लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि घर के बुजुर्गों को कोरोना का ख़तरा अधिक है, और उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ देने से घर के बाकी लोग सुरक्षित रहेंगे. (ANI)
राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री से भी हस्तक्षेप की अपील
कोरबा, 14 जुलाई। एसईसीएल बलगी के कोयला खदान में डि-पिल्लरिंग के कारण सुराकछार बस्ती में हुए भू-धसान से प्रभावित ग्रामीणों और किसानों को उनको हो रही खेती-किसानी के नुकसान का उचित मुआवजा देने की मांग माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने की है। पार्टी ने यह भी मांग की है कि प्रभावित किसानों की भूमि का एसईसीएल अधिग्रहण करें तथा इसके एवज में प्रभावितों को नौकरी और मुआवजा दें।
एक बयान में माकपा जिला सचिव प्रशांत झा ने बताया कि बलगी कोयला खदान की डि-पिल्लरिंग के कारण सुराकछार बस्ती के 100 से अधिक किसानों की सैकड़ों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि भू-धसान के कारण पूरी तरह बर्बाद हो गई है। भूमि में दरारें इतनी गहरी है कि वह पूरी तरह तालाब, झील और खाई में तब्दील हो चुकी है। अब इस जमीन में किसान कोई भी कृषि कार्य नहीं कर पा रहे हैं।
ग्रामीणों से मिली शिकायत के बाद माकपा नेताओं ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल में माकपा की दोनों महिला पार्षद सुरती कुलदीप और राजकुमारी कंवर भी शामिल थीं। मीडिया के लिए भू-धसान से खेतों की बर्बादी के वीडियो और तस्वीरें जारी करते हुए उन्होंने बताया कि खेतों से निकलकर अब ये दरारें गांव तक पहुंच चुकी है और घरों की दीवारों पर दरारें पड़ रही हैं, जिसके कारण गांव में कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। इस आशंका से गांववासियों में भय का माहौल व्याप्त हैं।
माकपा नेता झा ने बताया कि इसके पूर्व भी इस मुद्दे पर माकपा ने आंदोलन किया था, जिसके बाद कोरबा जिला प्रशासन के हस्तक्षेप से एसईसीएल प्रबंधन को प्रभावित किसानों को हर साल मुआवजे का भुगतान भी करना पड़ा है। लेकिन अफसोस की बात है कि पिछले तीन सालों से प्रबंधन ने प्रभावित किसानों को मुआवजा देने पर रोक लगा दिया है, जो कि सीधे-सीधे त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन है।
उन्होंने बताया कि पिछली बार प्रबंधन, प्रशासन और प्रभावित ग्रामीणों के बीच त्रिपक्षीय बैठक में समझौता हुआ था कि भू-धसान को रोकने के लिए और प्रभावित किसानों की भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए भूमि समतलीकरण किया जावेगा। लेकिन एसईसीएल प्रबंधन ने इस निर्णय पर आज तक अमल नहीं किया है। परिणामस्वरूप भू-धसान की समस्या और ज्यादा गंभीर हो गई है और खेतों की बर्बादी के बाद घरों के ढहने का खतरा मंडरा रहा है।
माकपा ने आज प्रभावित किसानों को ब्याज सहित लंबित मुआवजा राशि का तत्काल भुगतान करने, भू-धसान को रोकने के लिए और प्रभावित किसानों की भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए भूमि का समतलीकरण करने और प्रभावितों की जमीन कृषि योग्य नहीं बनने की स्थिति में पुनर्वास नीति के तहत किसानो की भूमि अधिग्रहण कर उन्हें नौकरी और मुआवजा देने की मांग करते हुए जिलाधीश, एसईसीएल के मुख्य महाप्रबंधक एवं उप क्षेत्रीय प्रबंधक को ज्ञापन सौंपा है।
गौरतलब है कि माकपा ने इस मुद्दे पर राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री जयसिंह अग्रवाल का भी ध्यान आकर्षण करते हुए उनसे ग्रामीणों के पक्ष में उचित हस्तक्षेप करने की भी अपील की है।
नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली अयोध्या और राम पर अपने ही देश में घिरे
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपने एक विवादित बयान के कारण निशाने पर हैं. नेपाली सोशल मीडिया में बहुत से लोग उनके बयान का ना सिर्फ़ मज़ाक बना रहे हैं बल्कि लिख रहे हैं कि 'उन्हें ऐसी टिप्पणी से बचना चाहिए' था.
सोमवार को केपी शर्मा ओली ने कहा था कि 'भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था.'
अपने सरकारी आवास पर कवि भानुभक्त के जन्मदिन पर हुए समारोह में केपी शर्मा ओली ने यह बयान दिया.
नेपाल के प्रधानमंत्री का ये बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और नेपाल के बीच पहले से तनाव चल रहा है.
प्रधानमन्त्री ओली भन्छन्ः भारतले खडा गरेको अयोध्या नक्कली हो, राम पनि नेपाली नै हुन्https://t.co/BjIvxpfreC@nepalkhabar pic.twitter.com/YLi5sv6iJj
— Nepalkhabar (@nepalkhabar) July 13, 2020
ओली ने दावा किया कि 'असली अयोध्या - जिसका प्रसिद्ध हिन्दू महाकाव्य रामायण में वर्णन है - वो नेपाल के बीरगंज के पास एक गाँव है. वहीं भगवान राम का जन्म हुआ था. भगवान राम भारत के नहीं, बल्कि नेपाल के राजकुमार थे.'
नेपाल में कुछ लोग उनकी इस टिप्पणी का समर्थन भी कर रहे हैं, मगर इस बयान का मज़ाक उड़ाने वालों की संख्या ज़्यादा दिखाई पड़ती है.
नेपाल में किसने क्या कहा?
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबू राम भट्टाराई ने ओली के बयान पर व्यंग्य किया है.
उन्होंने एक ट्वीट में लिखा है, "आदि-कवि ओली द्वारा रचित कल युग की नई रामायण सुनिए, सीधे बैकुंठ धाम का यात्रा करिए."
आधी-कवि ओलीकृत कलीयुगीन नयाँ रामायण श्रवण गरौं! सिधै बैकुण्ठधामको यात्रा गरौं ! https://t.co/yDepnuFCFY
— Baburam Bhattarai (@brb1954) July 13, 2020
राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के चेयरमैन और नेपाल के पूर्व उप-प्रधानमंत्री कमल थापा ने पीएम ओली के बयान की कड़ी आलोचना की है.
उन्होंने लिखा है, "किसी भी प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का आधारहीन और अप्रामाणित बयान देना उचित नहीं है. ऐसा लगता है कि पीएम ओली भारत और नेपाल के रिश्ते और बिगाड़ना चाहते हैं जबकि उन्हें तनाव कम करने के लिए काम करना चाहिए."
प्रमको स्तरबाट यस्ता उटपट्यांग,अपुष्ट र अप्रमाणित कुरा आउनु सर्वथा उपयुक्त छैन।भारतसंग सम्बन्ध सुधार्ने भन्दा बिगार्ने तर्फ प्रमको ध्यान गए जस्तो लाग्छ।नक्सा प्रकाशित गरेर अतिक्रमित भूमी फिर्ताल्याउने प्रयास गर्न छाडेर दुई देशको सम्बन्धमा अनाबश्यक विवाद सिर्जना गर्नु राम्रो होईन https://t.co/jzP5hcH4qu
— Kamal Thapa (@KTnepal) July 13, 2020
नेपाली लेखक और पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे ने ट्वीट किया है, "धर्म राजनीति और कूटनीति से ऊपर है. यह एक बड़ा भावनात्मक विषय है. अबूझ भाव और ऐसी बयानबाज़ी से आप केवल शर्मिंदगी महसूस करते हैं. और अगर असली अयोध्या बीरगंज के पास है तो फिर सरयू नदी कहाँ है?"
Religion is above politics & diplomacy. Its a highly emotive issue. Ridiculous statements only cause embarrassment. If Ayodhya is near Birgunj, where is the Sarayu river ?
— Ramesh Nath Pandey (@rameshnathpande) July 13, 2020
ओली के बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उनके पूर्व प्रेस सलाहकार और नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर कुंदन आर्यल ने भी ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा है, "ओली ने ये क्या कह दिया? क्या वो भारतीय टीवी चैनलों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.
Religion is above politics & diplomacy. Its a highly emotive issue. Ridiculous statements only cause embarrassment. If Ayodhya is near Birgunj, where is the Sarayu river ?
— Ramesh Nath Pandey (@rameshnathpande) July 13, 2020
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उप-प्रमुख बिष्णु रिजल ने लिखा है, "यह कहना एक बड़ा भ्रम है कि कोई व्यक्ति अप्रमाणिक, पौराणिक और विवादास्पद बातें कहकर विद्वान बन जाता है. यह ना केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि 'रहस्यमय' भी है कि कैसे विरोध और उकसावे के लिए रोज़ नए मसाले डाले जा रहे हैं."
पदमा बसेर बेतुकका र असान्दर्भिक कुरा बोल्दा राष्ट्रकै शीर झुक्छ ।अप्रमाणित, पौराणिक र विवादास्पद कुरा बोलेर विद्वान भइन्छ भन्नु ठूलो भ्रम हो । फुकीफुकी पाइला चालेर भूमि फिर्ता ल्याउनुपर्ने बेलामा विरोध र उत्तेजनाका लागि एकपछि अर्को मसला दिइनु दुर्भाग्यपूर्ण मात्र होइन, रहस्यमय छ।
— Bishnu Rijal (@bishnurijal1) July 13, 2020
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार अमित ढकाल ने भी पीएम ओली के बयान पर चुटकी ली है.
उन्होंने ट्वीट किया है, "श्रीलंका द्वीप नेपाल के कोशी में है. वहाँ हनुमान नगर भी है जिसका निर्माण वानर-सेना ने किया होगा, जब वो पुल बनाने के लिए एकत्र हुए होंगे."
श्रीलंका टापू कोशीमा छँदैछ। छेवैमा हनुमान नगर पनि छ, वानर सेनाले पुल हाल्दा बसालेको!
— Ameet Dhakal (@ameetdhakal) July 13, 2020
नेपाल के नेशनल प्लानिंग कमीशन के पूर्व उपाध्यक्ष स्वर्णिम वागले ने लिखा है, "हे राम! पीएम ओली ने भारतीय मीडिया के लिए यह अच्छा मसाला दिया है."
हे राम !!
— Swarnim Waglé (@SwarnimWagle) July 13, 2020
भोलिको भारतीय समाचार: "Oli disavows Ayodhya's Ram, declares him to be Nepali from Birgunj"https://t.co/5yjwKznChp
नेपाल के लेखक और जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक कनक मणि दीक्षित ने ट्वीट किया है, "भगवान राम का जन्म कहाँ हुआ और अयोध्या कहाँ है, ऐसी पौराणिक बातों पर विवाद खड़ा करना पीएम ओली की मूर्खतापूर्ण कोशिश है. अभी तो सिर्फ़ भारत सरकार के मन में मौजूदा स्थिति के कारण कड़वाहट है. इससे लोगों में भी फूट पैदा हो सकती है."
वरिष्ठ पत्रकार धरूबा एच अधिकारी ने भी इस बारे में ट्वीट किया है.It was folly for PM Oli to wade in and raise controversy on the placement of Ayodhya, home of the mythological Lord Ram. This creates a schism with a section of India's population when earlier it was only with the Indian Government.https://t.co/GlwJ7qY4Jn
— Kanak Mani Dixit (@KanakManiDixit) July 13, 2020
उन्होंने लिखा है, "ओली की पार्टी का नाम है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल. नाम में 'कम्युनिस्ट' लगा है. कम्युनिज़म यानी साम्यवाद धर्म को नहीं मानता. ओली ने जब शपथ ली थी तो उन्होंने भगवान का नाम लेने से मना कर दिया था. जब पीएम मोदी ने जनकपुर में पूजा की, तो ओली ने नहीं की. लेकिन ऐसे समय ओली को राम और अयोध्या की चिंता हो रही है. हैरानी की बात है."
भारत-नेपाल तनाव
भारत और नेपाल में पिछले कुछ महीने से तनाव चल रहा है. नेपाल ने 20 मई को अपना नया नक्शा जारी किया था जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना इलाक़ा दिखाया था.
ये तीनों इलाक़े अभी भारत में हैं लेकिन नेपाल दावा करता है कि ये उसका इलाक़ा है.
इसके बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया. हालांकि इससे पहले भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अपना नक्शा अपडेट किया था. इस नक्शे में ये तीनों इलाक़े थे.
भारत का कहना है कि उसने किसी नए इलाक़े को नक्शे में शामिल नहीं किया है बल्कि ये तीनों इलाक़े पहले से ही हैं.
पिछले दिनों भारतीय मीडिया की भूमिका को लेकर भी नेपाल में कड़ी नाराज़गी जताई गई थी.
कई भारतीय चैनलों ने प्रधानमंत्री केपी ओली और चीनी राजदूत होउ यांकी को लेकर सनसनीख़ेज़ दावे किए.
कुछ चैनलों ने यह स्टोरी चलाई कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा दिया गया है.
नेपाल ने इन रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और केबल ऑपरेटरों से कहा कि ऐसे भारतीय न्यूज़ चैनलों को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए प्रसारण से रोके.
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा कि उन्होंने भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य को भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराने के लिए कहा है.
नीलांबर ने कहा कि भारतीय मीडिया नेपाल और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और ख़राब कर रहा है.
हालांकि चीन की राजदूत की सक्रियता को लेकर नेपाल में विरोध भी दर्ज हुआ है.
नेपाल में विपक्ष से लेकर मीडिया तक में सवाल उठा कि घरेलू राजनीति में किसी राजदूत की ऐसी सक्रियता ठीक नहीं है. मुलाक़ातों का यह दौर पिछले ढाई महीने से चल रहा है. (www.bbc.com)
-अनुराग भारद्वाज
सन 1953 में आई ‘दो बीघा ज़मीन’ ने दुनिया भर के फ़िल्मकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. इस फिल्म के जरिये पहली बार हिंदुस्तानी सिनेमा में ‘निओ-रिअलिस्म’ की तस्वीर पेश हुई थी. इतालवी सिनेमा से प्रेरित ‘नियो-रिअलिस्म का नज़दीकी हिंदी रूपांतरण ‘नव-यथार्थवाद’ हो सकता है. इस फिल्म के निर्देशक थे बिमल रॉय जिन्होंने हिंदुस्तानी सिनेमा को एक नया रास्ता दिखाया.
दूसरे विश्व युद्ध में फ़ासीवाद ने इटली के समाज की परतें उधेड़ कर रख दी थीं. मुसोलिनी के डर से जहां अन्य फ़िल्मकार सब हरा-हरा ही दिखा रहे थे तो रॉबर्ट रोसेलिनी, वित्तोरियो डी सिका और विस्कोन्ती जैसे कुछ फिल्मकार भी थे जो समाज में उपजे वर्ग संघर्ष को दिखा रहे थे. ‘नव-यथार्थवाद’, शोषित और शाषक के बीच का द्वंद दिखाता है. यही द्वंद मैक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘मदर’ या अप्टन सिंक्लैर के ‘जंगल’ में भी दिखता है.
भारतीय परिपेक्ष्य में इस संघर्ष को सबसे पहले दिखाती बिमल रॉय की ‘उदेर पाथेय’(1944) ने बंगाली सिनेमा में तूफ़ान ला दिया था. स्वभाव से शांत रहने वाले बिमल रॉय को फ़िल्म पत्रकार बुर्जोर खुर्शीदजी करंजिया ने ‘साइलेंट थंडर’ की उपमा दी थी.
उनकी पुत्री रिंकी भट्टाचार्य की क़िताब ‘बिमल रॉय- अ मैन ऑफ़ साइलेंस’ में वे सारे पहलू हैं जो बिमल दा की ज़िंदगी को छूकर निकले. जैसे बिमल दा ने निर्माता निर्देशक बीएन सरकार की निगहबानी में न्यू थिएटर्स (कोलकाता) से बतौर कैमरामैन अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था. पीसी बरुआ निर्देशित और केएल सहगल अभिनीत ‘देवदास’ फ़िल्म के वे फोटोग्राफर रहे. 40 के दशक में न्यू थिएटर्स और बंगाल सिनेमा का बिखराव हो रहा था. न्यू थिएटर्स के लिए बनाई गईं उनकी फिल्में जैसे ‘अंजनगढ़’, ‘मंत्रमुग्ध’ और ‘पहला आदमी’ फ्लॉप हो गयीं. ‘उदेर पाथेय’ के हिंदी रीमेक ‘हमराही’ (1945) ने औसत व्यवसाय किया. हां, बिमल रॉय की बतौर डायरेक्टर बहुत तारीफ हुई और इसमें पहली बार रबींन्द्रनाथ टैगोर के ‘जन गण मन’ गीत को लिया गया. अपनी किताब में रिंकी भट्टाचार्य आगे लिखती हैं, ‘मुंबई में ‘पहला आदमी’ के प्रीमियर पर मिली प्रतिक्रिया ने उन्हें और निराश कर दिया था, वो भारी मन से कोलकाता लौट गए.’
अब आगे जो क़िताब में नहीं है, वह यूं है कि क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. उन दिनों हिंदी सिनेमा पर बंगाली प्रभाव बढ़ रहा था. बिमल दा के अनन्य मित्र हितेन चौधरी ने अभिनेता अशोक कुमार से मिलकर उन्हें बॉम्बे टाकीज़ की एक फ़िल्म 25000 रु बतौर मेहनताना निर्देशन के लिए दिलवा दी. बॉम्बे टाकीज़ की स्थापना देविका रानी के पति हिमांशु रॉय और, संगीतकार मदन मोहन के पिता रायबहादुर चुन्नीलाल ने की थी. बिमल दा ने बॉम्बे टाकीज़ के लिए ‘मां’ (1952) फ़िल्म का निर्देशन किया जो अमेरिकी फ़िल्म ‘ओवर द हिल्स’ से प्रेरित थी. फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई और फिर बिमल दा हमेशा के लिए मुंबई के होकर रह गए. बाद में अशोक कुमार के ही कहने पर उनके प्रोडक्शन हाउस ‘फ़िल्मिस्तान’ के तले उन्होंने ‘परिणीता’(1953) का निर्देशन किया.
इन फिल्मों की सफलता से हौसला बढ़ा तो उन्होंने ‘बिमल रॉय प्रोडक्शन्स’ की स्थापना कर ‘दो बीघा ज़मीन’ बनायी. इस फ़िल्म के बनने के पीछे अगर कोई शख्स था, तो वे थे, ऋषिकेश मुखर्जी. हुआ यह कि 1952 में मुंबई में अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल हुआ जिसमें ‘बायसाइकिल थीव्स’ और ‘रोशोमन’ जैसी फिल्मों का मंचन हुआ था. इन फ़िल्मों का ऐसा प्रभाव हुआ कि लौटते वक़्त बिमल दा और अन्य सभी ख़ामोश थे. तभी ऋषिकेश मुखर्जी उनसे बोले कि वे ऐसी फिल्में क्यूं नहीं बनाते. बिमल दा ने कहानी के न होने का अभाव बताया, तो ऋषि दा ने तुरंत कहा कि उनके पास एक कहानी है - ‘रिक्शावाला’. हालांकि यह कहानी महज़ कुछ ही पन्नों की थी. ऋषि दा ने इस पर 24 पन्नों की स्क्रिप्ट तैयार करके बिमल दा को फ़िल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया.
दुसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में वित्तोरियो डी सिका की ‘बायसाइकिल थीव्स’ एक पिता और पुत्र की कहानी है जो अपनी चोरी की गयी साइकिल को खोजने निकले हैं. अगर साइकिल न मिली तो पिता नौकरी नहीं कर पायेगा जिससे परिवार पर संकट आ जाएगा. ‘दो बीघा ज़मीन’ में पिता (बलराज साहनी) अपने बेटे के साथ कोलकाता आकर गांव में दो बीघा ज़मीन को बचाने के लिए साइकिल रिक्शा चलाता है. दोनों ही फिल्मों में ‘पिता’ हार जाते हैं!
बिमल दा की सिनेमाई सोच को समझने के लिए इस फिल्म से जुड़ा एक क़िस्सा जानना ज़रूरी है. बॉम्बे टाकीज़ के मालिक इसके कलाकारों के चयन को लेकर संतुष्ट नहीं थे. उनके मुताबिक़ पंजाब से ताल्लुक रखने वाले बलराज साहनी कुछ ज़्यादा ही गोरे थे और निरूपा रॉय फिल्मों में देवियों का किरदार निभाती थीं. दोनों का ग्रामीण परिवेश में फिट बैठना कुछ अटपटा था. बिमल दा अड़ गए. शायद इसलिए कि बलराज साहनी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे. फ़िल्म भी सर्वहारा की ज़िंदगी पर आधारित थी. लिहाज़ा बिमल दा के मुताबिक़ बलराज किरदार के साथ न्याय करने की कुव्वत रखते थे.
समाजवाद से प्रेरित और सिनेमा से सर्वहारा की आवाज़ उठाने वाले बिमल दा पर कमर्शियल यानी व्यावसायिक फ़िल्में बनाने का ज़बरदस्त दवाब था. उनका कमाल था कि बॉक्स ऑफिस की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भी वे अपने मनपसंद विषयों पर फिल्म बना लेते थे. ‘नौकरी(1954) और ‘मधुमती’(1958) इसी का नतीजा थीं. ‘मधुमती’ बॉम्बे टाकीज़ की फ़िल्म ‘महल’ (1949) से प्रेरित थी. इसके एडिटर बिमल दा ही थे. ‘पुनर्जन्म’ की अवधारणा पर बनी ‘मधुमती’ हिंदुस्तान के सिनेमा में मील का पत्थर है जिसने हिंदी सिनेमा ही नहीं, हॉलीवुड को भी ‘रीइंकारनेशन ऑफ़ पीटर प्राउड’ बनाने के लिए प्रेरित किया था. आगा हश्र कश्मीरी की कहानी ‘यहूदी की लड़की’ से प्रेरित उन्होंने ‘यहूदी’ बनाई. जात-पांत और छूत-अछूत के मुद्दे पर ‘सुजाता’ (1959) हो गया लोकतंत्र पर व्यंग करती ‘परख’(1960), या फिर स्त्री केंद्रित ‘बंदिनी’ (1963), ये सारी फिल्में उनकी रेंज दिखाती हैं. इत्तेफ़ाक है कि बॉम्बे टाकीज़ ने इसी विषय पर ‘अछूत कन्या’ बनाई थी, जिसमें देविका रानी ने ये किरदार निभाया था. दोनों ही कमाल की फिल्में हैं. पर टीस इस बात की है कि दोनों ही में तथाकथित ‘नीची जाति’ की लड़की को बलिदान करते हुए दिखाया गया है. गोकि सहानभूति के ज़रिये ही बराबरी पर आया जा सकता है.
बिमल दा शरतचंद के साहित्य से इतने प्रभावित थे कि उनकी कहानियों पर उन्होंने तीन फ़िल्में बनायीं. ‘देवदास’, ‘परिणीता’ और ‘बिराज बहू’. जानकारों का मानना है कि उनकी बनाई ‘देवदास’ शरत बाबू की कहानी के सबसे नज़दीक है. कुछ हद तक दिलीप कुमार की ‘ट्रेजेडी किंग’ की छवि के लिए ‘देवदास’ और ‘यहूदी’ भी ज़िम्मेदार हैं.
बिमल दा सिर्फ फ़िल्मकार ही नहीं थे. अपने आप में एक संस्था थे. उन्होंने सलिल चौधरी, ऋषिकेश मुखर्जी, ऋत्विक घटक, कमल बोस, नुबेंदु घोष, रघुनाथ झालानी और गुलज़ार जैसे नायाब लोग हिंदी सिनेमा को दिए. गुलज़ार और बिमल दा के ‘बंदिनी’ के दौरान मिलने की दास्तां आप इस वीडियो के ज़रिये जान सकते हैं. गुलज़ार के लिए वे डायरेक्टर या गुरू से बढ़कर पिता समान थे. उन्होंने शायरी की ज़ुबान में बिमल दा पर एक पोट्रेट भी लिखा है और अपनी क़िताब ‘रावी पार’ में बिमल दा के साथ हुए अंतिम दिनों की बातचीत का मार्मिक ब्यौरा भी दिया है.
आख़िर ऐसा क्या था एक कैमरामैन के महान डायरेक्टर बनने में जो आज भी हमें उनकी फ़िल्में देखते वक़्त विस्मृत कर देता है? शायद इसका जवाब भी उनकी बेटी की दूसरी क़िताब ‘द मैन हु स्पोक इन पिक्चर्स’ में श्याम बेनेगल के इंटरव्यू में मिलता है. बेनेगल बताते हैं कि कैमरे को लेकर बिमल दा की समझ कमाल की थी. फोटोग्राफी में रोशनी के प्रभाव को जितना बख़ूबी उन्होंने दिखाया है उसका मुकाबला बहुत कम फिल्मकार कर सकते हैं. याद कीजिये ‘बंदिनी’ का वह दृश्य जिसमें कामिनी (नूतन) के मन में द्वंद है कि क्या उसे किसी औरत का क़त्ल कर देना चाहिए. इस सीन में नायक के सामने लोहार काम कर रहे हैं और वेल्डिंग मशीन से निकलता ताप उसके चेहरे पर रोशनी बनकर गिर रहा है. दूसरे ही सीन में डायरेक्टर को यह दिखाना था कि कामिनी ने दूध के ग्लास में ज़हर मिलाया है. इसको दर्शाने के लिए उन्होंने ज़हर की शीशी और ग्लास की तस्वीरों को एक साथ मिला दिया है!
फ़िल्म का सेट बनाने के बजाय बिमल रॉय आउटडोर लोकेशन को ज़्यादा तरजीह देते थे. मसलन, ‘दो बीघा ज़मीन’ में हावड़ा ब्रिज पर शूटिंग करना उन दिनों वाक़ई कमाल की बात थी. उस वक़्त का सिनेमा जहां अतिरेक से लबरेज़ था तो वहीं बिमल दा ने किरदारों को हकीक़त की ज़मीन पर ही रखा. किसी को ‘लार्जर देन लाइफ’ नहीं बनाया. उनका कहानियों का चयन एक तरफ साहित्यिक था, जैसे रबींद्रनाथ टैगोर की ‘काबुलीवाला’ (बतौर प्रोडूसर) और शरत बाबू का ‘देवदास’, तो दूसरी तरफ ‘सुजाता’ या ‘दो बीघा ज़मीन’ ऐसी समकालीन कहानियां थीं जिनमें सर्वहारा इंसान समाज में अपना वजूद ढूंढ रहा था.
निर्विवाद रूप से सत्यजीत रे भारत के सबसे महान फ़िल्मकार हुए हैं और बिमल दा को उनसे एक पायदान नीचे खड़ा होना पड़ता है. शायद इसलिए कि सत्यजीत रे के सामने कमर्शियल फ़िल्म बनाने की मज़बूरी नहीं थी. उन्होंने बिमल दा की तरह ये समझौते नहीं किए. और दूसरा, बिमल दा जल्द ही दुनिया से विदा हो गए. आपको ताज्जुब होगा यह जानकर कि उन्हें हिंदी नहीं आती थी.(satyagrah)
-भारत डोगरा
हिंदी सिनेमा को प्रायः फार्मूला फिल्मों से जोड़कर देखा जाता है, पर समय-समय पर अनेक गंभीर फिल्मों ने बहुत सार्थक मुद्दे भी उठाए हैं। आज कोविड-19 के दौर में संक्रमण रोग चर्चा में हैं तो संक्रमण रोगों पर बनी अनेक सार्थक हिंदी फिल्में याद आती हैं।
चेतन आनन्द की विख्यात फिल्म नीचा नगर ने स्लम बस्ती में फैले संक्रमण रोग को अन्याय और विषमता से जोड़कर देखा। एक बहुत रसूख वाले बिल्डर की नजर एक ऐसी जमीन पर बड़ी इमारत बनाने की थी जिसकी कीमत बहुत बढ़ रही थी। पर इसके लिए जरूरी था कि एक गंदे नाले का बहाव स्लम बस्ती की ओर कर दिया जाए। ऐसा करने पर स्लम बस्ती में संक्रमण रोग फैल जाता है।
इस फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। कामिनी कौशल का फिल्मी सफर इस फिल्म से ही आरंभ हुआ, और विख्यात संगीतकार रवि शंकर के लिए भी यह फिल्मी जगत में प्रवेशद्वार था। इस रोग की त्रासद स्थितियों को, बहुत कठिन हालात में निर्धन लोगों की एकजुटता और साहस को फिल्म में प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया है।
वी. शान्ताराम ने एक कालजयी फिल्म बनाई थी ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ जो एक महान डाक्टर के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित थी। डाक्टर कोटनिस बहुत प्रतिकूल स्थितियों में चीन के लोगों का साथ देने के लिए वहां द्वितीय विश्व यु़द्ध के दौरान पहुंचे और वहां अन्य उपलब्ध्यिों के साथ उन्होंने अपने जीवन को खतरे में डालकर भी चीनी सैनिकों और गांववासियों को संक्रामक रोग से बचाया। यही बेहद प्रेरणादायक वास्तविक जीवन की कहानी इस फिल्म में दिखाई गई है। डाक्टर कोटनिस की यादगार भूमिका वी. शान्ताराम ने स्वयं की है।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ दो ऐसी फिल्में हैं जो सार्थक हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना स्थान सदा बनाए रखेंगी। लगभग छः-सात दशक बीत जाने के बाद भी इन फिल्मों को देखा जाता है और इन्हें भरपूर प्रशंसा भी मिलती है।
ओ.पी. रलहन की लोकप्रिय फिल्म ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) वैसे तो एक अपराधी के सुधार की कहानी है, पर इस कहानी में निर्णयक मोड़ एक संक्रमण रोग के समय ही आता है। एक गैंगस्टर की भूमिका में धर्मेंद्र को एक गांव के धनी परिवार के हीरे-जवाहरात चुराने के लिए भेजा जाता है, पर इस मौके पर गांव में प्लेग फैल जाता है और अन्य गांववासियों सहित धनी-परिवार हीरे-जवाहरात लेकर गांव से भाग जाता है। धर्मेंद्र को हीरे तो नहीं मिलते, पर इस धनी परिवार की एक विधवा बहू मिलती है (मीना कुमारी), जिसे धनी परिवार ने यहां प्लेग से मरने के लिए छोड़ दिया है। इस फिल्म में सुधार और त्याग का महत्त्वपूर्ण संदेश है। अचानक प्लेग की चपेट में आए गांव से भागते लोगों और उजड़े हुए वीरान गांव का चित्रण बहुत असरदार ढंग से हुआ है।
संक्रामक रोगों से जुड़े स्टिग्मा के कारण प्रायः हिंदी फिल्म के नायक को इन रोगों से दूर रखा गया है, पर राज कपूर ने अपनी लोकप्रिय फिल्म ‘आह’ में तपेदिक के मरीज की भूमिका बहुत असरदार ढंग से निभाई थी। नायक कोे इलाज के लिए अनेक महीने सैनेटोरियम में भी गुजारने पड़ते हैं और हंसी खुशी की दुनिया से उसे अचानक पूरे अकेलेपन और वीराने में धकेल दिया जाता है। अपने बहुत लोकप्रिय संगीत के कारण भी यह फिल्म चर्चित रही।
अनेक फिल्मों में नायक तो नहीं पर उसके परिवार के किसी व्यक्ति को संक्रामक रोग (प्रायः तपेदिक या टीबी) से ग्रस्त पाया गया और नायक को इलाज के लिए बड़े प्रयास करते हुए दिखाया गया। गुरुदत्त निर्देशित फिल्म बाजी में देव आनन्द को इसी तरह की भूमिका में अपनी तपेदिक से ग्रस्त बहन के लिए बहुत प्रयास करते हुए दिखाया गया। अनुराधा और आनन्द में क्रमशः बलराज साहनी और अमिताभ बच्चन का सेवा भावना से प्रेरित डाक्टरों के रूप में दिखाया गया तो निर्धन, संक्रामक रोगों से त्रस्त मरीजों के लिए बहुत चिंतित हैं।
आज भी जब डाक्टरों को सेवाभाव से कार्य करने की प्रेरणा देनी होती है तो इन तीन फिल्मों को देखने के लिए प्राय कहा जाता है - ‘अनुराधा’ ‘आनन्द’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’।
‘एक डाक्टर की मौत’ फिल्म में ऐसे डाक्टर की कहानी है जो कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) से बचाव केे लिए अथक प्रयास करता है, पर इसका श्रेय दूसरों को दिया जाता है।
‘माई ब्रदर निखिल’ में एक एड्स प्रभावित रोगी की, और उसके बनते-बिगड़ते रिश्तों की मार्मिक कहानी है।
इस तरह के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं कि संक्रामक रोगों जैसे फार्मूला फिल्मों से दूर के विषय की उपेक्षा हिन्दी सिनेमा ने नहीं की है और इस विषय पर अनेक सार्थक फिल्में बनी हैं। उम्मीद है कि कोविड-19 जैसे बहुचर्चित रोग के विभिन्न आयामों पर भी भविष्य में कुछ यादगार फिल्में हिंदी और अन्य भाषाओं में बन सकेंगी।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की कहानी’ जैसी फिल्मों को कलात्मक फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है जबकि ‘आह’ (राज कपूर, नरगिस) और ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) जैसी फिल्मों को लोकप्रिय, बड़े सितारों वाली, बाक्स-आफिस पर धन बटोरने वाली फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है। इन दोनों तरह की फिल्मों ने अपने-अपने ढंग से संक्रामक रोगों के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को उठाया है और उनके बारे में समझ और संवेदनशीलता बढ़ाने में योगदान दिया है।
ऐसी फिल्मों और फिल्म निर्माताओं का योगदान सराहनीय है, पर साथ में यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी फिल्म जगत की कुल फिल्मों में ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बढ़ सके और वे अधिक दर्शकों तक पंहुच सकें, इसके लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है और जहां इन प्रयासों में सरकारों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है, वहां सार्थक फिल्मों की महत्त्वपूर्ण भूमिका समझने वाले सभी लोगों को आपसी सहयोग से ऐसे प्रयास बढ़ाने चाहिए। हाल के समय में सार्थक, उद्देश्यपूर्ण फिल्मों की संख्या में कमी आई है। ऐसी अधिक फिल्में बन सकें इसके लिए बहुपक्षीय प्रयास जरूरी हैं।(navjivan)
-पुलकित भारद्वाज
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की अंदरूनी खींचतान चरम पर पहुंच चुकी है. इस बात का अंदाज पायलट के उस मैसेज से लगाया जा सकता है जो उन्होंने अपने ऑफिशियल ग्रुप में रविवार रात को भेजा था. सूत्रों के मुताबिक इसमें उन्होंने तीस कांग्रेसी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में होने की बात कही थी. जबकि उनके समर्थक इससे पहले ही राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आने की घोषणा कर चुके थे.
कांग्रेस से सचिन पायलट के बाग़ी हो जाने के कयासों को तब और हवा मिल गई जब रविवार को उन्होंने अपने करीबी और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बड़ा झटका दे चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया से एक लंबी मुलाकात की. सिंधिया के अलावा पायलट के भारतीय जनता पार्टी के कुछ अन्य नेताओं से भी मुलाकात की सूचना है. इस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर कहा था कि - मुझे इस बात का दुख है कि मेरे साथी रह चुके सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परेशान करते हुए हाशिए पर पहुंचा दिया है. यह दिखाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और योग्यता को बहुत कम महत्व मिलता है.
इससे पहले जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कांग्रेस के अधिकतर छोटे-बड़े नेता उन्हें जमकर आड़े हाथ ले रहे थे, तब सचिन पायलट ने एक बहुत संतुलित सा ट्वीट कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा था. उन्होंने लिखा था कि ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से अलग होते देखना दुखद है. काश चीजों को पार्टी के अंदर ही मिल-जुलकर सुलझा लिया गया होता.’ उनके इस संदेश को कांग्रेस आलाकमान के लिए नसीहत के तौर पर देखा गया जो पार्टी के नए नेताओं की शिकायतों को कथित पर लगातार अनसुना कर रहा है.
यूं तो सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की तनातनी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से किसी से नहीं छिपी है जब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की ही तरह राजस्थान में भी कांग्रेस पार्टी अपना परचम फहराने में सफल रही थी. तब कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते पायलट अपनी अगुवाई में मिली इस जीत के इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री पद चाहते थे. लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत ऐन मौके पर बाजी मार ले गए. तभी से सचिन पायलट, राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत और उनके नेतृत्व वाली सरकार को घेरने का कोई मौका छोड़ते नहीं दिखे हैं.
Haryana: Rajasthan Congress MLAs Inder Raj Gurjar, PR Meena, GR Khatana, and Harish Meena among others, at a hotel in Manesar. (Video released from Sachin Pilot's office of MLAs supporting him) pic.twitter.com/IHToT5tkiR
— ANI (@ANI) July 13, 2020
(सचिन पायलट समर्थक विधायक : सचिन पायलट ने शेयर किया वीडियो )
लेकिन जानकार कहते हैं कि जो उठापटक इस समय राजस्थान में देखने को मिल रही है उसके तार हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों से जुड़ते हैं. इस चुनाव में भाजपा ने राजस्थान में नाटकीय ढंग से अपने विधायकों के संख्या बल को दरकिनार करते हुए एक की बजाय दो प्रत्याशी मैदान में उतार दिए थे. तब यह संभावना जोर-शोर से जताई गई थी कि राज्यसभा चुनाव के साथ भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश की ही तरह राजस्थान में भी सत्ता पलटने की कोशिश कर सकती है. उसकी इस कवायद में पायलट खेमे का सहयोग मिलने के भी कयास लगाए गए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके लिए जानकारों ने मुख्यमंत्री गहलोत के रणनीतिक कौशल को श्रेय दिया. लेकिन बात तब बिगड़ी जब स्पेशल ऑपरेशनल ग्रुप (एसओजी) ने बीते शुक्रवार इस बारे में पूछताछ करने के लिए सचिन पायलट को एक पत्र लिखा.
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, राजस्थान की तरफ़ से भेजे गए इस पत्र में धारा 124 ए, 120 बी के तहत मामले की जांच करने और इस संदर्भ में सचिन पायलट के बयान लेने की बात कही गई है. पायलट इसी बात पर भड़क गए. उन्होंने इस पत्र को अपने स्वाभिमान पर चोट बताया. उन्होंने बयान दिया कि ‘एसओजी का नोटिस उचित नहीं है. धारा 124 ए के तहत पूछताछ आत्मसम्मान पर चोट है. पुलिस इस केस की आड़ में फोन टैप कर सकती है जो कतई उचित नहीं है. यह क़दम एक रणनीति के तहत उठाया गया है.’ इसके बाद से सचिन पायलट ने कांग्रेस नेताओं के फ़ोन उठाने बंद कर दिए. वहीं, अशोक गहलोत समर्थकों का कहना है कि ऐसा ही एक पत्र एसओजी ने मुख्यमंत्री के नाम भी भेजा था. लेकिन सिर्फ पायलट का इस बात पर भड़कना ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ वाली कहावत को सही साबित करता है.
राजस्थान कांग्रेस से जुड़े सूत्र इस पूरे मामले पर कहते हैं कि लंबे समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहते थे. लेकिन इसके लिए वे सचिन पायलट के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद से हटने का इंतजार कर रहे थे ताकि वे नए मंत्रियों के चयन या पुराने मंत्रियों को हटाए जाने पर ज़्यादा हस्तक्षेप न कर सकें. कुछ ऐसी ही स्थिति विभिन्न राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर भी बनी हुई थी. लेकिन अब गहलोत की राह आसान होती दिख रही है.
दरअसल इस पूरी खींचतान के मद्देनज़र पार्टी ने आज जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई है जिसमें आने के लिए सभी विधायकों को व्हिप जारी कर दिया गया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने इस बारे में बयान दिया है कि इस बैठक में न आने वाले विधायकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. उधर, बागी रुख अपनाए हुए राजस्थान कांग्रेस के मुखिया और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने समर्थकों के साथ इस बैठक में हिस्सा लेने से साफ इनकार कर दिया है. जानकारी के अनुसार कांग्रेस के 107 विधायकों में से 102 विधायक इस बैठक में भाग लेने के लिए पहुंच चुके हैं. ऐसे में पायलट और उनके समर्थक विधायकों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई होना तय है. ऐसा शायद न भी होता अगर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कांग्रेस हाईकमान पहले ही अपमान का घूंट नहीं पी चुका होता.
विश्लेषकों के मुताबिक ऐसी स्थिति में पायलट के सामने तीन विकल्प बचते हैं. और तीनों में से एक भी उनके लिए फ़ायदे का सौदा नज़र नहीं आता. पहला तो यही कि इतना सब होने के बाद भी वे कांग्रेस से ही जुड़े रहें. इसके लिए वे पार्टी हाईकमान से जमकर मोल-भाव करने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन सूत्रों का कहना है कि बात इतनी बढ़ जाने के बाद ऐसा हो पाना मुश्किल है. फ़िर अशोक गहलोत भी ऐसा आसानी से होने देने से रहे. हालांकि इसके लिए गहलोत को हाईकमान को इस बात का यकीन दिलाना होगा कि राजस्थान में किसी भी हाल में वे सत्ता की चाबी को अपने हाथ से नहीं फिसलने देंगे. यदि वे ऐसा कर पाए तो ज़ाहिर तौर पर इससे पार्टी और प्रदेश सरकार में सचिन पायलट का क़द घटेगा और संगठन पर भी उनकी पकड़ कमज़ोर होगी. अभी तक प्रदेश कांग्रेस में पायलट का क़द दूसरे नंबर का माना जाता है. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बाद उनकी क्या स्थिति क्या होगी, इस बारे में अभी निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है.
सचिन पायलट के सामने दूसरा विकल्प यह बचता है कि वे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा में शामिल हो जाएं. रविवार शाम तक ऐसी संभावना जताने वाली ख़बरें जमकर सामने आई थीं और सोमवार को भी राजस्थान के प्रमुख अख़बारों के पहले पन्ने पर छाई रहीं. लेकिन पायलट ने बयान ज़ारी कर यह क़दम उठाने से इन्कार कर दिया है. इसके पीछे बड़ी वजह तो यही है कि राजस्थान में दल-बदलू नेता की छवि के साथ लंबा राजनैतिक सफ़र तय करना अब तक मुश्किल ही रहा है. फ़िर जानकारों की मानें तो यदि सचिन पायलट चाहें तो भी भारतीय जनता पार्टी उन्हें अपने साथ जोड़ने में कम ही दिलचस्पी दिखाएगी. इसके कई कारण हैं:
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश आकोदिया इस बारे में हमें बताते हैं कि ‘मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया से भारतीय जनता पार्टी ने इसलिए हाथ मिलाया क्योंकि वे वहां सरकार गिराने की स्थिति में थे. जबकि राजस्थान विधानसभा का गणित पायलट को ऐसा करने की इजाज़त नहीं देता.’ ग़ौरतलब है कि राजस्थान के कुल 200 विधायकों में से 107 विधायक सत्ताधारी दल कांग्रेस से आते हैं. इनमें बहुजन समाज पार्टी के छह विधायक भी शामिल हैं जो पिछले साल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इनके अलावा राज्य के 13 निर्दलीय, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो, सीपीएम के दो और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के एक विधायक का भी समर्थन अब तक प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार को हासिल रहा है. वहीं भाजपा की बात करें तो राजस्थान में उसके पास 72 विधायक हैं और उसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के तीन और विधायकों का समर्थन हासिल है. इस तरह उसके पास कुल 75 विधायक ही हैं.
बकौल आकोदिया, ‘यदि 30 विधायकों के साथ होने के सचिन पायलट के दावे को सही मान लें तो जैसा कि सामान्य तौर पर होता है सरकार को अस्थिर करने के लिए इन सभी विधायकों को इस्तीफ़ा देना होगा. तब विधानसभा में बचे विधायकों की संख्या रहेगी 170 और बहुमत के लिए आवश्यक होंगे 85 विधायक. यानी पूरी खींचतान करने के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने के लिए दस और विधायकों की आवश्यकता पड़ेगी जिसे पूरा कर पाना टेड़ी खीर है. और बाद में इन सीटों के लिए बाद में जो उपचुनाव होंगे उसमें भी पार्टी के लिए जोख़िम ही रहेगा. इसलिए भाजपा के लिए तो यही बेहतर नज़र आता है कि वह दूर खड़े रहकर पूरा तमाशा देखे. वहीं जानकारी के मुताबिक 109 विधायक अभी तक गहलोत कैंप में पहुंच चुके हैं जो कि सामान्य बहुमत (101) से भी ज़्यादा हैं.’
फ़िर, एक से एक दिग्गज नेताओं से भरी भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान इकाई में किसी बाहरी नेता के लिए पैर रखने की भी जगह नज़र नहीं आती. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी इस समय कई छोटे-बड़े गुटों में बंटी हुई है. इनमें सबसे बड़ी धुरी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ख़ुद हैं. कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में सिर्फ़ राजे ही हैं जो पार्टी के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की आंखों में आंख डालकर बात कहने का माद्दा रखती हैं.
भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व से नाख़ुश धड़ा अगले लोकसभा चुनाव से पहले उन पर दबाव बनाने के लिए वसुंधरा राजे की मदद ले सकता है. शायद यह भी एक प्रमुख कारण है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद भाजपा हाईकमान राजे को कमजोर करने में कोई कसर छोड़ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में राजस्थान की राजनीति पर नज़र रखने वाले जानकार अभी से यह जानने में खासी दिलचस्पी दिखाते हैं कि करीब सवा तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में राजे क्या रुख़ अपनाएंगी! इस समय राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के 72 विधायकों में से पचास से ज्यादा ऐसे माने जाते हैं जिनके लिए ‘वसुंधरा ही भाजपा’ हैं. राजस्थान से आने वाले भाजपा के सभी 25 सांसदों में से कमोबेश आधों की भी यही स्थिति बताई जाती है.
अवधेश आकोदिया के मुताबिक ‘यदि भाजपा ने राजस्थान में वसुंधरा राजे की बजाय किसी और नेता को मुख्यमंत्री बनाने की सोची भी तो पार्टी में इस तरह की तोड़-फोड़ देखने को मिल सकती है जैसी कांग्रेस में भी नहीं है.’ यानी कुल मिलाकर राजे भाजपा हाईकमान ना तो राजे को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाकर और ज़्यादा ताकतवर करने का ख़तरा मोल ले सकता है और ना ही मुख्यमंत्री ना बनाकर उन्हें नाराज़ करने का. चूंकि अगले लोकसभा और राजस्थान विधानसभा चुनावों में अभी ठीक-ठाक समय बाकी है सो विश्लेषकों का कहना है कि इस समय राजे को लेकर ‘वेट एंड वॉच’ ही सबसे सही रणनीति हो सकती है, क्योंकि अगले चुनावों तक न जाने कितने समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे. ऐसे में सचिन पायलट को साथ जोड़कर भाजपा आलाकमान दुविधा के उस जिन्न से अभी शायद ही जूझना चाहेगा जो अगले कुछ साल के लिए बोतल में बंद है.
इसके अलावा भी देखें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा के रंग में ढल जाना उनके समर्थकों को ज़्यादा इसलिए नहीं अखरा क्योंकि सिंधिया परिवार की जड़ें पूर्व राजमाता विजया राजे के जमाने से ही जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी रही हैं. जबकि सचिन पायलट का दूर-दूर तक किसी भी तरह का कोई रिश्ता भाजपा से नहीं रहा है. फ़िर ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाकर संतुष्ट नज़र आ सकते हैं. वहीं, सचिन पायलट का ध्यान केंद्र के बजाय प्रदेश की राजनीति पर ज़्यादा है. ऊपर से सचिन की पत्नी सारा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी और उमर अब्दुल्ला की बहन हैं. इन दोनों ही नेताओं को मोदी सरकार ने धारा-370 के हटाने के बाद से ही नजरबंद कर रखा था. लेकिन कुछ महीने पहले जिस तरह पहले फारूख़ अबदुल्ला और फ़िर उमर अब्दुल्ला की अचानक रिहाई हुई, उसे कुछ लोगों ने पायलट को भी खुश करने की भाजपा की कवायद के तौर पर देखा. लेकिन विश्लेषकों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि अब्दुल्ला परिवार की वजह से सचिन पायलट और भारतीय जनता पार्टी के बीच किसी सहज राजनीतिक रिश्ते की गुंजाइश कम ही नज़र आती है.
अब सचिन पायलट के सामने बचा तीसरा और आख़िरी रास्ता है एक नई पार्टी बनाने का. राजस्थान युवा कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता आयुष भारद्वाज इस बारे में कहते हैं कि ‘आज़ादी के बाद से ही राजस्थान में किसी तीसरे मोर्चे का कोई प्रभावशाली वज़ूद नहीं रहा है. हमारे प्रदेशाध्यक्ष से पहले भी प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं ने ऐसा करने की कोशिश की और उन्हें मन मसोस कर ही रहना पड़ा.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘सामान्य समझ से भी देखें तो विधायकों को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से कुछ न कुछ आर्थिक या राजनीतिक लाभ मिल सकता है. लेकिन सिर्फ़ सचिन पायलट के साथ जाने के लिए कौन अपनी विधायकी को दांव पर लगाना चाहेगा, कहना मुश्किल है. उन्होंने जाने-अनजाने अपनी छवि एक मनमौजी नेता के तौर पर स्थापित कर ली है जिस पर भरोसा करते हुए बड़ा फ़ैसला लेना कोई आसान काम नहीं.’
बहरहाल, बीते कुछ सालों में ऐसे कई मौके आए जब पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पेशानी पर बल ला दिए थे. यह सही है कि गहलोत सरीखे परिपक्व नेता के लिए चुनौती बनना पायलट की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. लेकिन अपने लंबे राजनीतिक अनुभव की मदद से गहलोत हर बार उन पर इक्कीस ही साबित होते रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का इस बारे में मानना है कि जब भी सचिन पायलट ने गहलोत पर छोटी बढ़त हासिल की, उन्होंने उसे अपनी जीत समझा. जबकि असल में वे ऐसा करके गहलोत के जाल में फंसते जा रहे थे. गहलोत ने उन्हें पटकने के लिए सही समय का इंतजार किया. जबकि पायलट ने हर मौके पर अतिउत्साहित होकर अपनी अपरिपक्वता ज़ाहिर की.
पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘पायलट गहलोत के बिछाए ऐसे व्यूह में फंस चुक जिसमें घुसना तो आसान है, लेकिन निकलना नहीं. पायलट को ये बात तभी समझ लेनी चाहिए थी जब सत्ता में आने के बाद ही उनके कई विश्वस्त नेता पाला बदलते हुए गहलोत की तरफ़ झुकते चले गए थे. लेकिन पायलट इसमें नाकाम रहे और शायद अब उन्हें इस बात का ही ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है.’(satyagrah)