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जैसे ही कोई आपसे व्हाट्सएप पर मैसेज करने को कहता है तो पहले उसका नंबर सेव करना पड़ता है और फिर व्हाट्सएप में जाकर कॉन्टेक्ट रिफ्रेश करना होता है, लेकिन अब आपको एक नंबर सेव करने के लिए इतना कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब आप क्यूआर कोड को स्कैन करके व्हाट्सएप नंबर सेव कर सकेंगे।
WhatsApp ने पिछले सप्ताह कई सारे नए फीचर्स जारी किए थे जिनमें डार्क मोड एक्पेंशन और काईओएस (4जी फीचर फोन) के लिए स्टेटस फीचर जैसे फीचर्स शामिल थे। व्हाट्सएप जल्द ही क्यूआर कोड आधारित कॉन्टेक्ट सेविंग फीचर ला रहा है जिसके बाद क्यूआर कोड स्कैन करके नंबर को सेव किया जा सकेगा।
व्हाट्सएप पिछले महीने से QR कोड की टेस्टिंग कर रहा है। कई बीटा यूजर्स इसकी टेस्टिंग भी कर रहे हैं। इसका अपडेट आने के बाद सभी व्हाट्सएप यूजर का एक अलग क्यूआर कोड होगा जिसे वे दूसरों के साथ शेयर कर सकेंगे।
कैसे काम करता है व्हाट्सएप क्यूआर कोड फीचर?
व्हाट्सएप में QR कोड यूजर्स की प्रोफाइल में दिखेगा। इसके बाद आपको क्यूआर कोड के आइकन पर टैप करना होगा। उसके बाद एक नया टैब खुलेगा जहां आपका क्यूआर कोड मिलेगा। क्यूआर कोड को फोन के कैमरे से स्कैन करने पर यूजर्स की डिटेल मिल जाएगी और उसके बाद एक क्लिक करके नंबर सेव किया जा सकेगा।
My code के ठीक बगल में यूजर्स को Scan Code का ऑप्शन भी दिखाई देगा। इसके जरिए आपको फोन का कैमरा ओपन हो जाएगा, जिससे आप किसी और यूजर का कोड स्कैन करके उनका नंबर अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव कर पाएंगे। यानी अब आपको नंबर टाइप करने की कोई जरूरत नहीं होगी। पिछले हफ्ते इस फीचर की भी घोषणा की गई थी, लेकिन अभी यह सभी यूजर्स को मिलना बाकी है। यह आने वाले कुछ हफ्तों में यूजर्स तक पहुंच सकता है।
अब जल्द ही आम यूजर्स के लिए QR code का सपॉर्ट आने वाला है। इस फीचर के आ जाने से वॉट्सऐप पर नंबर सेव करने का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।
कंपनी इस फीचर को कई महीनें से टेस्ट कर रही है। कुछ वॉट्सऐप बीटा यूजर्स को यह फीचर पिछले साल ही मिल गया था। अब इसे जल्द ही सभी यूजर्स के लिए जारी कर दिया जाएगा। इसके बाद सभी यूजर्स का अपना यूनीक QR कोड होगा, जिसे दूसरे यूजर्स स्कैन करके अपने फोन में नंबर सेव कर पाएंगे। तो आइए जानते हैं यह फीचर किस तरह काम करेगा
Whatsapp यूजर्स की प्रोफाइल के ठीक बगल में एक QR कोड आ जाएगा। इस कोड को देखने के लिए यूजर्स को ऐप की Settings में जाना होगा, जहां प्रोफाइल नेम और पिक्चर के साथ यह कोड भी मिलेगा। अगर आप QR कोड के आइकॉन पर टैप करेंगे तो यह My Code के नाम की एक टैब में ओपन हो जाएगा। यह कोड आप दूसरों के साथ शेयर भी कर पाएंगे।
किन्नौर/तवांग, 7 जुलाई। कोरोना संकट के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप का आना जारी है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के झटके महसूस किए गए। तीनों ही जगहों पर भूकंप की तीव्रता काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा के बाद किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
हिमाचल में रात 1 बजकर 3 मिनट पर भूकंप के झटके लगे। भूकंप का केंद्र किन्नौर के पूर्वोत्तर इलाके में 7 किमी धरती के नीचे था। वहीं, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में मंगलवार को 5.0 तीव्रता का भूकंप आया। नैशनल सेंटर फॉर सिसमॉलजी के मुताबिक, यूपी की राजधानी लखनऊ से 59 किमी उत्तर-पूर्वोत्तर में धरती के 5 किमी नीचे भूकंप का केंद्र था। भूकंप के झटके सुबह 9 बजकर 55 पर महसूस किए गए।
देश-विदेश के कई इलाकों में बीते दिनों लगातार भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी इलाके में भी हाल ही में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। (navbharattimes.indiatimes.com)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। गढ़चिरौली में मंगलवार को नक्सल आपरेशन एएसपी के चालक ने गोली मारकर खुदकुशी कर ली है। इस खबर से महकमे में खलबली मच गई। बीते एक महीने में गढ़चिरौली पुलिस में जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की दूसरी घटना है।
बीते माह धनोरा थाने में पदस्थ एक एएसआई ने पारिवारिक कारणों से खुद की जान ले ली थी। बताया जा रहा है कि नक्सल ऑपरेशन एएसपी श्री ढ़ोले के बंगले में वाहन चालक मदन गौरकर (47 वर्ष) ने रायफल से जान ले ली।
1992 में उक्त जवान ने गढ़चिरौली जिला पुलिस में भर्ती हुआ था। बताया जा रहा है कि जवान पिछले कुछ दिनों से तनाव में था। जिसके चलते उसने यह घातक कदम उठाया। एसपी शैलेष बलकवड़े ने पूरे मामले की छानबीन करने के निर्देश दिए हैं।
साल भर पहले समर्पण कर भर्ती हुआ था
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा/किरंदुल, 7 जुलाई। बीती रात किरंदुल थाना से 15 किमी की दूरी पर गांव से नक्सलियों ने सिपाही के पिता का अपहरण कर लिया। इससे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। एसपी अभिषेक पल्लव ने इस घटना की पुष्टि की है। ज्ञात हो कि अजय तेलाम करीब साल भर पहले समर्पण कर पुलिस में भर्ती हुआ था, इससे नक्सली उससे नाराज थे।
बताया जा रहा है कि बीती रात दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में पदस्थ पुलिस जवान अजय तेलाम के गांव गुमियापाल में 50 की संख्या में हथियारबंद नक्सली आए। अजय के पिता लछु तेलाम (50) को घर से नक्सली उठाकर ले गए। लछु की पत्नी ने बहुत रोकने की कोशिश की, पर नक्सली नहीं माने। छुड़ाने पीछे-पीछे जाने लगी तो नक्सलियों ने उसे रास्ते से भगा दिया और उसके पिता को ले गए हैं। घटना के समय पुलिस ड्यूटी में गया था। घटना के बाद गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रामीणों के चेहरे में खौफ दिखाई दे रहा है।
मामला सामने आने के बाद पुलिस ने टीमें बनाई है और उनकी खोजबीन चल रही है। उधर अजय भी अपने संपर्कों के आधार पर खोजबीन में लगा है। उसने अपील की है कि नक्सली उसके माता-पिता को मानवता के आधार पर छोड़ दें।
दंतेवाड़ा एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव ने बताया कि नक्सली कमांडर कमलेश व अन्य के खिलाफ किरंदुल थाना में अपराध दर्ज कर लिया गया है।
नई दिल्ली, 7 जुलाई (एजेंसी)। अटलांटा में हाल के विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत का केंद्र रहे एक स्थान के निकट से गुजर रही कार पर हुई गोलीबारी में आठ साल की एक बच्ची की मौत चार जुलाई को हो गई। हथियार से लैस कम से कम दो लोगों ने कार पर गोली चलाई थी।
पुलिस ने बच्ची की पहचान सिकोरिया टर्नर के रूप में की है। अटलांटा की मेयर किशा लांस बॉटम्स ने रविवार को एक भावनात्मक संवाददाता सम्मेलन में बच्ची की शोकाकुल मां के बगल में बैठकर पीडि़त के लिए न्याय की मांग की। यह घटना वेंडी रेस्त्रां के निकट हुई। यह वही स्थल है जहां 12 जून को अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति रेशार्ड बू्रक्स की हत्या अटलांटा के एक पुलिस अधिकारी ने कर दी थी। इसके बाद इस रेस्त्रां को जला दिया गया और इलाका पुलिस बर्बरता के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया।
अधिकारियों ने कहा कि इस क्षेत्र में अवैध तौर पर रखे गए अवरोधकों से बच्ची की मां ने गुजरने का प्रयास किया और उसी समय शनिवार रात में वाहन पर गोलियां चली। अटलांटा जर्नल कंस्टीट्यूशन के अनुसार मेयर ने कहा, तुमने गोली चलाई और आठ साल की एक बच्ची को मार डाला। वहां सिर्फ एक गोली चलानेवाला नहीं था बल्कि गोली चलाने वाले कम से कम दो लोग थे। पुलिस ने कहा है कि लोगों से गोलीबारी करने वालों की पहचान के लिये मदद ली जा रही है। उन्होंने इस संबंध में एक पोस्टर भी जारी किया है कि इसमें शामिल एक व्यक्ति के पूरी तरह से काले कपड़े पहने होने जबकि एक अन्य व्यक्ति के सफेद टीशर्ट में होने की बात कही गई है।
जवानों से पैसे मांगने का भी आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। होमगार्ड कमांडेंट के प्रभार संभाल रहे एक एएसआई का शराब पीने और जुआ खेलने का एक वीडियो वायरल हुआ है। वीडियो में साफ तौर पर प्रभारी कमांडेंट एएसआई द्वारा खुलकर परिसर में जाम छलकाया जा रहा है। वहीं अन्य कर्मियों के साथ बिना रोकटोक एएसआई जुआ भी खेलते नजर आ रहा है। बताया जा रहा है कि पुराना ढाबा स्थित होमगार्ड के कार्यालय में पदस्थ एएसआई नोहर सिंह वर्मा फिलहाल कमांडेंट अरूण सिंह के अवकाश में होने के कारण कमांडेंट का प्रभार सम्हाल रहे हैं। हालांकि यह बड़ा सवाल है कि एएसआई को कमांडेंट जैसे राजपत्रित पद का प्रभार दिया गया है।
मिली जानकारी के मुताबिक कमांडेंट अरूण सिंह पिछले 5 दिनों से अवकाश पर हैं। होमगार्ड में कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर श्री सिंग ने एएसआई को कमांडेंट जैसा एक बड़ा जिम्मेदार प्रभार दे दिया। प्रभारी बनते ही एएसआई ने पूरे कैम्पस को हिलाकर रख दिया है। जवानों से खुलेआम जूते और अन्य जरूरी सामानों के एवज में रुपए भी एएसआई द्वारा मांगा जा रहा है। वहीं कैम्पस में शराब पीने के साथ-साथ एएसआई दूसरे कर्मियों के साथ खुलकर जुआ भी खेल रहा है।
इस संबंध में ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते कमांडेंट अरूण सिंह ने कहा कि फिलहाल मैं छुट्टी पर हूं। कर्मचारियों की कमी के कारण एएसआई को प्रभार देने की मजबूरी थी। उन्होंने कहा कि अवकाश से लौटने के बाद मामले की जानकारी लेकर कार्रवाई की जाएगी। इधर एएसआई के द्वारा कथित तौर पर जूते समेत अन्य आवश्यक सामग्रियों के लिए रुपए भी मांगा जा रहा है। खुलेआम एएसआई प्रभार में रहते हुए जवानों से वसूली कर रहा है। कैम्पस में इस कथित रंगदारी से जवानों में काफी नाराजगी है। अनुशासन के दायरे में रहने के दबाव के सामने जवान आलाधिकारियों को अपनी पीड़ा से अवगत नहीं करा पा रहे हैं। महकमे के अफसर इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ संवाददाता
महासमुंद, 7 जुलाई। जिले के बागबाहरा विकासखंड के टुहलू चौकी क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम द्वारतरा कला में आज एक बुजुर्ग महिला की हत्या कर दी गई। पुलिस आरोपी की तलाश में जुट गई है।
कोमाखान पुलिस के अनुसार ग्राम द्वारतरा कला में रहने वाली 65 वर्षीय वृद्ध महिला बिसाहिन बाई सेन पर आज सुबह 6.30 बजे हेमलाल सेन ने टंगिये से हमला कर दिया। घायल बुजुर्ग को 108 वाहन से जिला अस्पताल महासमुन्द ले जाते समय रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।
-श्रवण गर्ग
दुनिया के देशों में नागरिक अपने राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और अन्य नायकों को विभिन्न रूपों में देखकर कैसी प्रतिक्रियाएँ अंदर से महसूस करते हैं उसका कोई प्रामाणिक सर्वेक्षण और विश्लेषण प्रकट होना अभी बाकी है। नागरिक इस बारे में या तो सोच ही नहीं पाते या फिर व्यक्त किए जाने के सम्भावित खतरों से खौफ खाते हैं। इतना तो तय है कि उनके दिलों में अपने नायकों की एक विशेष छवि लगातार स्थापित होती जाती है। धार्मिक-राजनीतिक ताबीज और बाजूबंद नागरिकों पर ऊपर से आरोपित किए जा सकते हैं पर अंदर की छवियाँ नहीं। न ही उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन या संशोधन किया जा सकता है।
अपवादों को छोड़ दें तो वर्तमान में अधिकांश नायक अपने आंतरिक व्यक्तित्व से ज़्यादा जनता के बीच बाह्य छवि को लेकर ही परेशान रहते हैं। वे अपनी भीतरी कमजोरियों को ऊपरी आवरण या स्वआरोपित आत्मविश्वास से ढंकने की कोशिशों में ही पूरे समय लगे रहते हैं।वे उसी छवि के फिर बंदी भी हो जाते हैं। राजनेताओं के अलावा सेना के सेवानिवृत बड़े अफसर भी उदाहरण के तौर पर गिनाए जा सकते हैं।
दुनिया भर के राजनेता, जहाँ केवल मुखौटों वाला प्रजातंत्र ही बचा है वहाँ भी, अपने विरोधियों की राजनीतिक ताकत या तमाम भ्रष्टाचार के बावजूद हारने या जीतने की संभावनाओं पर घोषित-अघोषित या प्रायोजित सर्वेक्षण करवाते रहते हैं। इन्हें अंजाम देने वाली एजेंसियाँ भी अच्छे से जानती हैं कि उन्हें नतीजे किस तरह के पेश या प्रचारित करना हैं। राजनेता ऐसे किसी सर्वेक्षण की जोखिम नहीं लेते कि कितने लोग उन्हें दिल से और कितने मज़बूरी में पसंद करते हैं!
तानाशाही या एक ही पार्टी वाली व्यवस्थाओं (उत्तर कोरिया, चीन, रूस आदि) में तो इस तरह के सर्वेक्षण का सोच भर ही मौत का इंतज़ाम कर सकता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड के गैस चैम्बरों में हजारों यहूदियों को मारने के लिए डाले जाने से पूर्व क्या उनसे पूछा जा सकता था कि वे किसे पसंद और किसे नापसंद करते हैं और क्या उनके सकारात्मक जवाब को स्वीकार कर उन्हें माफ कर दिया जाता? प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं में भी नागरिकों के मनों को अंदर से खंगालने का कोई फूल-प्रूफ तरीका राजनीतिक वैज्ञानिक अभी ईजाद नहीं कर पाए हैं। शायद इसीलिए बहुत सारे चुनावी सर्वेक्षण या ओपिनियन पोल्स ग़लत साबित हो जाते हैं जैसा कि 1980 और 2004 में हम देख चुके हैं।
कतिपय नायक ऐसे होते हैं जिन्हें अंदर से ही ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त रहती है कि उनके बिना कोई भी इतिहास लिखा ही नहीं जा सकेगा।इसीलिए ऐसे लोगों ने इतिहास लिखने का प्रयास भी कभी नहीं किया। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, जान एफ कैनेडी, नेलसन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग आदि कई उदाहरण हैं। ये लोग केवल अपनी जनता की ओर ही आँखें भरकर देखते रहे; उसकी उपस्थिति मात्र से ही अभिभूत और अनुप्राणित होते रहे। उनका इतिहास गढऩे का काम जनता करती रही। अपने चले जाने के लंबे अरसे के बाद भी ये नायक करोड़ों लोगों के दिलों में जो जगहें बनाए हुए हैं उसके लिए उन्होंने कभी उस तरह के कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयास नहीं किए होंगे जैसे कि इस समय किए जा रहे हैं। इसका कारण तब शायद यही रहा होगा कि न तो उन्हें अपनी छवि के प्रति कोई मोह या अहंकार था और न ही उसके छिन जाने को लेकर भय।अपनी जनता के असीम प्रेम में उनका अनन्य भरोसा था।
ऊपर की पंक्तियों में व्यक्त विचार केवल दो घटनाओं के कारण उपजे हैं और दोनों का संबंध दुनिया के दो सबसे बड़े प्रजातंत्रों-अमेरिका और भारत से है। अमेरिका में चल रहे अश्वेतों के आंदोलन को धार्मिक रूप से परास्त करने के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प व्हाइट हाउस के नजदीक स्थित उस पुराने चर्च तक पैदल गए जो आंदोलन में क्षतिग्रस्त हो गया था। पर वहाँ पहुँचकर ट्रम्प ने सबसे पहले बाहर एक खुले स्थान पर ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल को हाथों में उठाकर फोटो खिंचवाया। अमेरिकी जनता, जिसमें श्वेत अश्वेत सभी शामिल थे, ने ट्रम्प के इस कार्य को इसलिए पसंद नहीं किया कि वह अपने राष्ट्रपति की हरेक गतिविधि को पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के आईने में ही देखती है और अपनी प्रतिक्रिया भी बिना किसी भय के खुले तौर पर व्यक्त करती है।
दूसरा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले दिनों लेह से कोई पैंतीस किलो मीटर दूर नीमू नामक जगह की बहु-प्रचारित यात्रा है। प्रधानमंत्री की पोशाक, सैनिकों (राष्ट्र भी) के समक्ष उनके समूचे उद्बोधन की मुद्राएँ, गलवान घाटी में हुई झड़प में घायल सैनिकों से उनकी कुशल-क्षेम का पता करने कथित तौर पर एक कॉफ्रेंस हाल को परिवर्तित करके बनाए गए (कन्वर्टीबल) अस्पताल की उनकी मुलाकात आदि को लेकर जो चित्र और टिप्पणियाँ प्रचारित हो रही हैं वे उनकी उस ‘विनम्र किंतु दृढ़’ छवि को खंडित करती हैं जो कोराना संकट के दौरान राष्ट्रीय संबोधनों में अब तक प्रकट होती रही है। समान परिस्थितियों को लेकर नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की जो प्रतिमाएँ जनता के हृदयों में स्थापित हैं, वे मोदी की लेह यात्रा से काफी भिन्न हैं।
विश्वभर की जनता के साथ ही हम भी जिस तरह से अपने यहाँ अमरीकी राष्ट्रपति अथवा अन्य नेताओं को उनके बदलते हुए अवतारों में देख रहे हैं, वैसे ही हमारे प्रधानमंत्री को भी दुनिया भर में देखा और परखा जा रहा होगा। अमेरिका में तो खैर चार महीने बाद ही चुनाव हैं पर हमारे यहाँ अभी उसकी दूर-दूर तक आहट भी नहीं है। ट्रम्प के बारे में तो सबको ऐसा ही पता है कि वे किसी की सलाह की परवाह नहीं करते पर हमारे प्रधानमंत्री को तो कोई बताता ही होगा कि उनके कट्टर समर्थकों के अलावा भी जो देश में जनता है वह उनकी छवि को लेकर इस समय क्या सोच रही है !
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 7 जुलाई। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चिकित्सकों और स्टाफ के साथ गत दिनों हुई मारपीट के मामले में चिकित्सकों ने आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होने पर मंगलवार को ओपीडी बंद करने की चेतावनी दी थी, जिसके तहत आज सुबह से चिकित्सक लामबंद हो गए और ओपीडी बंद कर दी।
हड़ताल के कारण प्रात: 9 से लेकर 11 बजे तक ओपीडी बंद रही। चिकित्सक अस्पताल के सामने खड़े होकर हाथ में तख्ती लेकर धरना देने लगे। चिकित्सकों के धरने को लेकर भारी संख्या में मणिपुर पुलिस बल भी तैनात रहा। अंदर एडिशनल एसपी ओम चंदेल सीएससी व अधीक्षक सहित वरिष्ठ चिकित्सकों के बीच आधे घंटे तक चर्चा चली। बाद में बाहर निकलकर एडिशनल एसपी ने चिकित्सकों के सामने दावा करते हुए कहा कि हमने आरोपी को रांची से पकड़ लिया है। पुलिस उसे दोपहर तक अम्बिकापुर लेकर पहुंच जाएगी।
एडिशनल एसपी की समझाइश के बाद चिकित्सक काम पर लौटे, हालांकि कई चिकित्सक बाद में यह कहते हुए भी डटे हुए थे कि जब तक आरोपी को अंबिकापुर लाया नहीं जाता है, तब तक वे धरना देंगे, परंतु बाद में प्रबंधन की समझाइश पर सभी काम पर वापस लौटे।
धरने का समर्थन अस्पताल के कर्मचारियों ने भी किया, हालांकि वार्ड में स्टाफ नर्स काम कर रही थीं, परंतु आखिरी में वे भी धरना में शामिल हो गई थीं। ओपीडी का काम 2 घंटे प्रभावित रहा, परंतु वार्ड में काम प्रभावित नहीं हो पाया था। हालांकि 2 घंटे ओपीडी बंद रहने से मरीजों को परेशानी जरूर हुई।
गौरतलब है कि 3 जुलाई की रात्रि 8 बजे मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थ एवं ड्यूटीरत् चिकित्सक डॉ. पुकेश्वर वर्मा, डॉ. दीपक चन्द्रवंशी एवं स्टॉफ नर्सों के साथ अंकित दुबे नामक युवक ने बदतमीजी गाली-गलौज और मारपीट की थी। जिसके बाद डॉ. भूपेश भगत, डॉ. अनुपम मिंज, डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता के द्वारा उक्त युवक पर एफआईआर दर्ज करने व 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग की गई थी।
आरोपी युवक अंकित दुबे को गिरफ्तार नहीं करने पर चिकित्सकों ने मंगलवार की सुबह से सभी ओपीडी सेवाओं, आपातकालीन सेवाओं को बंद कर दिया और हड़ताल पर चले गए थे। पुलिस द्वारा युवक की गिरफ्तारी करने के आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हुआ।
पार्टी कार्यालय में हंगामे के बाद कार्रवाई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। भाजपा के जिलाध्यक्ष मधुसूदन यादव ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए पूर्व एल्डरमेन पारूल जैन को छह साल के लिए पाटी से बर्खास्त कर दिया है। यह कार्रवाई महिला नेत्री जैन के कल पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष यादव के साथ खराब बर्ताव के चलते हुई है। पारूल जैन को संगठन से चलता कर जिलाध्यक्ष ने पार्टी में अनुशासित नही रहने वाले कार्यकर्ताओं को एक तरह से कड़ा संदेश दिया है।
बताया जाता है कि कल सोमवार शाम को पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष यादव कुछ नेताओं और पदाधिकारियों के साथ सांगठनिक मुद्धे को लेकर बैठक कर रहे थे। इस बैठक के बीच में ही पारूल जैन गुस्से में जिलाध्यक्ष यादव ने कई तरह के सवाल-जवाब कर रही थी। बताया जाता है कि पारूल जैन को कुछ कार्यकर्ताओं ने बदतमीजी के साथ बात करने पर टोका। इसके बाद भी वह यादव से सीधे भिडऩे लगी।
मिली जानकारी के अनुसार पार्टी बैठको और कार्यक्रमों की सूचना नहीं मिलने से नाराज होकर जिलाध्यक्ष से भिडऩे लगी। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं को शुरूआती माजरा समझ में नही आया। लेकिन पारूल जैन की शोर से दूसरे कमरों में बैठे पदाधिकारी भी पहुंच गए। बताया जाता है कि पारूल जैन पर किसी की समझाईश का असर नही पड़ा। वह लगातार भड़ास निकालते हुए पार्टी की दूसरी महिला के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द कहने लगी। मिली जानकारी के अनुसार पारूल जैन हाल ही में नए सिरे से निगम में हुए सफाई ठेेका हासिल करने में पीछे रह गई। यादव के महापौर रहते हुए पारूल जैन ने कई वार्डो में ठेका लेकर कमाई की।
बताया जाता है कि पारूल जैन यादव पर निजी ठेका दिलाने का दबाव भी बनाए हुए थी। हालांकि नए ठेके में भाजपा के आधा दर्जन नेताओं को कांग्रेस शासित निगम से ठेका मिला है। यही बात पारूल जैन को रास नही आई। बताया जाता है कि यादव के साथ पारूल जैन के शर्मनाक स्थिति तक विवाद किया। बताया जाता है कि संगठन ने इस रवैय्ये को लेकर कड़ा रूख अख्तियार करते हुए पारूल जैन को बाहर का रास्ता दिखाया है। जिलाध्यक्ष यादव ने घटनाक्रम के कुछ घंटों के भीतर छह साल के लिए जैन को पार्टी से बर्खास्त करने का फरमान जारी किया।
इस संबंध में ‘छत्तीसगढ़’ से पारूल जैन ने कहा कि बिना नोटिस के मुझे बर्खास्त करने की जानकारी मिली है। लिखित में नोटिस मिलने के बाद प्रदेश संगठन के समक्ष अपनी स्थिति को लेकर जानकारी देगी। इस बीच कल हुए इस तीखी नोंकझोंक के बाद यह साफ दिख रहा है कि भाजपा के भीतर सबकुछ ठीक नही है।
परिवार चाहता है मामले की जांच
AIIMS सूत्र भी बताते हैं कि कहीं ना कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से संक्रमित दिल्ली के पत्रकार की सुइसाइड मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एम्स प्रशासन की तरफ से पत्रकार तरुण सिसोदिया की मौत को लेकर बयान जारी किया गया है, लेकिन बयान के बाद भी सवाल बने हुए हैं, जिसके जवाब के लिए एम्स और एम्स ट्रॉमा सेंटर प्रशासन से लगातार प्रयास किया गया, लेकिन उनकी चुप्पी बनी हुई है।
एम्स सूत्र भी बताते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा गया है।
एम्स प्रशासन की तरफ से बयान जारी कर बताया गया है कि कोविड की वजह से तरुण को एम्स ट्रॉमा सेंटर में 24 जून को एडमिट किया गया था। वह फिलहाल टीसी-1 आईसीयू में था, जो पहली मंजिल पर है।
एम्स ने अपने बयान में कहा है कि तरुण की रिकवरी बेहतर थी और रूम एयर में सांस ले पा रहे थे। इसलिए सोमवार को तरुण को आईसीयू से वॉर्ड में शिफ्ट करने की योजना थी। एम्स ने अपने बयान में उनके ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का भी जिक्र किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि इसको लेकर न्यूरो और सायकायट्री के डॉक्टर को दिखाया गया था।
उनके फैमिली मेंबर को लगातार तरुण की सेहत को लेकर जानकारी दी जा रही थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि तरुण के परिवार के लोग उनके जर्नलिस्ट दोस्तों से फोन करके अपडेट लेते थे। एक दिन ऑक्सीजन पाइप को लेकर दिक्कत आई थी तो उनके दोस्तों ने इसकी सूचना एम्स प्रशासन को दी थी, तब जाकर उसे ठीक किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि अगर अस्पताल की तरफ से जानकारी दी जा रही थी तो परिवार के लोग अस्पताल के बजाय दूसरे को फोन क्यों करते? एम्स ने अपने बयान में आगे लिखा है कि दोपहर 1: 55 बजे तरुण आईसीयू से निकल कर भागे, बताया गया है कि उनके पीछे हॉस्पिटल अटेंडेंट भी भागे। तरुण चौथी मंजिल पर पहुंच गया, वहां विंडो तोड़कर छलांग लगा दी, जिसके बाद उन्हें आनन फानन में आईसीयू में एडमिट किया गया, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी बचा नहीं पाए।
एम्स के सूत्र का कहना है कि प्रशासन की यह यह थ्योरी भी थोड़ी अटपटी लग रही है, क्योंकि एक मरीज, जो पिछले कई दिनों से कोविड संक्रमण की वजह से आईसीयू में एडमिट है, जिसे सांस लेने में दिक्कत है, वह पहली मंजिल से चौथी मंजिल तक भाग कर पहुंच गया और हॉस्पिटल अटेंडेंट उस तक पहुंच नहीं पाया।
एक बीमार मरीज ने विंडो तोड़ दिया और हॉस्पिटल अटेंडेंट फिर भी वहां नहीं पहुंच सका। कहीं न कहीं सिक्यॉरिटी स्तर पर कमी दिख रही है। एक आईसीयू से मरीज निकल जाता है और उसे रोक नहीं पाता है। ऐसे और भी सवाल हैं, जिनके जवाब एम्स को देने चाहिए। एनबीटी ने ऐसे कई सवाल और भी एम्स प्रशासन से पूछे, लेकिन जवाब नहीं मिला। वॉर्ड बदलने का भी एम्स प्रशासन पर आरोप है, लेकिन एम्स की चुप्पी गंभीर सवाल खड़ा दिया है। (navbharattimes.indiatimes.com)
संयुक्त राष्ट्र ने दी चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था का कहना है कि अगर इंसानों ने जंगली जीवों को मारना और उनका उत्पीड़न जारी रखा तो उसे कोरोना वायरस संक्रमण जैसी और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.
यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम ऐंड इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस जैसे ख़तरनाक संक्रमण के लिए पर्यावरण को लगातार पहुंचने वाला नुक़सान, प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों का उत्पीड़न जैसी वजहें ज़िम्मेदार हैं.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जानवरों और पक्षियों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां लगातार बढ़ी हैं. विज्ञान की भाषा में ऐसी बीमारियों को ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ कहा जाता है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर इंसानों ने पर्यावरण और जंगली जीवों को नहीं बचाया तो उसे कोरोना जैसी और ख़तरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रोटीन की बढ़ती मांग के लिए जानवरों को मारा जा रहा है और इसका ख़ामियाज़ा आख़िरकार इंसान को ही भुगतना पड़ रहा है.
हर साल लाखों लोगों की मौत
विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों से होने अलग-अलग तरह की बीमारियों के कारण दुनिया भर में हर साल तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है.
पिछलों कुछ वर्षों में इंसानों में जानवरों से होने वाली बीमारियों यानी ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ में इजाफ़ा हुआ है. इबोला, बर्ड फ़्लू और सार्स जैसी बामारियां इसी श्रेणी में आती हैं.
पहले ये बीमारियां जानवरों और पक्षियों में होती हैं और फिर उनके ज़रिए इंसानों को अपना शिकार बना लेती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़ूनोटिक बीमारियों के बढ़ने की एक बड़ी वजह ख़ुद इंसान और उसके फ़ैसले हैं.
बेतहाशा बढ़ा है मांस का उत्पादन
यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडर्सन ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरसों की वजह से होने वाले कम से कम छह तरह के ख़तरनाक संक्रमण झेल चुका है.
उन्होंने कहा, “मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कम से कम 20 लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज़ जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है. इतना ही नहीं, इन बीमारियों से न जाने कितना आर्थिक नुक़सान भी होता है.”
इंगर एंडर्सन ने कहा, “पिछले 50 वर्षों में मांस का उत्पादन 260% बढ़ गया है. कई ऐसे समुदाय हैं जो काफ़ी हद तक पालतू और जंगली जीव-जंतुओं पर निर्भर हैं. हमने खेती बढ़ा दी है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बेतहाशा किए जा रहे हैं. हम जंगली जानवरों के रहने की जगहों को नष्ट कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि बांध, सिंचाई के साधन, फ़ैक्ट्रियां और खेत भी इंसानों में होने वाली संक्रामक बीमारियों के लिए 25% तक ज़िम्मेदार हैं.
कैसे हल होगी मुश्किल?
इस रिपोर्ट में सिर्फ़ समस्याएं ही नहीं गिनाई गई हैं, बल्कि सरकारों को ये भी समझाया गया है कि भविष्य में इस तरह की बीमारियों से कैसे बचा जाए.
विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में पर्यावरण को कम नुक़सान पहुंचाने वाली खेती को बढ़ावा देने और जैव विविधता को बचाए रखने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है.
एंडर्सन कहती हैं, “विज्ञान साफ़ बताता है कि अगर हम इकोसिस्टम के साथ खिलवाड़ करते रहे, जंगलों और जीव-जंतुओं को नुक़सान पहुंचाते रहे तो आने वाले समय में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ेंगी.”
उन्होंने कहा कि भविष्य में कोरोना वायरस संक्रमण जैसी ख़तरनाक बीमारियों को रोकने के लिए इंसान को पर्यावरण और जीव-जंतुओं की रक्षा को लेकर और संज़ीदा होना पड़ेगा. (www.bbc.com)
केंद्र द्वारा आबंटित अनाज जरूरतमंद लोगों को उपलब्ध कराए
रायपुर: छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) ने कांग्रेस सरकार पर राज्य के गरीबों और जरूरतमंदों को खाद्यान्न सुरक्षा से वंचित करने का आरोप लगाया है। किसान सभा ने सरकार से पूछा है कि मुफ्त अनाज का नागरिकों के बीच वितरण किये बिना ही वह जनता का पेट भरने का चमत्कार कैसे कर रही है?
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने केंद्र सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि प्रवासी मजदूरों सहित राज्य के गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त अनाज वितरण के लिए मई और जून माह में 20000 टन चावल का आबंटन किया गया था। इस आबंटन से प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल मुफ्त देने की केंद्र की घोषणा के अनुसार प्रदेश के 40 लाख लोगों को कुछ राहत पहुंचाई जा सकती है। लेकिन राज्य सरकार ने केवल 944 टन चावल का उठाव किया है, जो अधिकतम 95 हजार लोगों के बीच ही वितरित किया जा सकता है। हालांकि केंद्र द्वारा यह आबंटन प्रदेश की जरूरतों से कम है, इसके बावजूद इस खाद्यान्न के केवल 5% का ही उठाव यह बताता है कि उसे जनता को पोषण-आहार देने की कोई चिंता नहीं है। उठाये गए इस खाद्यान्न का भी पूरा वितरण हुआ है कि नहीं, इस बात की भी कोई जानकारी नहीं है।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि जिस प्रदेश में दो-तिहाई से ज्यादा आबादी गरीब हो, असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूरों और ग्रामीण गरीबों की आजीविका खत्म हो गई हो और 5 लाख प्रवासी मजदूर अपने गांव-घरों में लौटकर भुखमरी का शिकार हो रहे हैं, वहां जरूरतमंद और गरीब नागरिकों को मुफ्त अनाज न देकर उन्हें खाद्यान्न सुरक्षा से वंचित करना आपराधिक कार्य है। वास्तव में इस सरकार ने आम जनता को अपनी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार के रहमोकरम पर छोड़ दिया है। उसका जनविरोधी रूख इससे भी स्पष्ट है कि वह राज्य के पास उपलब्ध अतिशेष चावल को भुखमरी मिटाने के लिए इस्तेमाल करने के बजाय इससे इथेनॉल बनाने की मंजूरी केंद्र से मांग रही है।
उन्होंने कहा कि कोरोना संकट की आड़ में कालाबाजारियों ने रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया है और वे दुगुने-तिगुने भाव में बिक रही हैं। इससे आम जनता को बचाने के लिए मुफ्त अनाज वितरण ही न्यूनतम सुरक्षा का उपाय है, जिसे पूरा करने से कांग्रेस सरकार ने इंकार किया है।
किसान सभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि केंद्र द्वारा आबंटित अनाज का उठाव कर सभी जरूरतमंद लोगों को इसे उपलब्ध कराए, उसके पास जमा अतिशेष चावल का भी वितरण करें तथा इस चावल को इथेनॉल में बदलने के अपने फैसले को रद्द करें। किसान सभा ने कहा है कि हवा-हवाई विज्ञापनी दावों से आम जनता का पेट नहीं भरने वाला है।
93 देशों के 1300 शोधकर्ता और विशेषज्ञ शामिल
आजकल पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से परेशान है। लाखों लोग इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं, जबकि मरने वालों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस जानलेवा वायरस को काबू में करने के लिए वैक्सीन कब तैयार होगी।
आजकल पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से परेशान है। लाखों लोग इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं, जबकि मरने वालों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस जानलेवा वायरस को काबू में करने के लिए वैक्सीन कब तैयार होगी। इस दौरान विश्व भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता शिद्दत के साथ इस कोशिश में जुटे हैं कि जल्द से जल्द इसका टीका बनाया जा सके। ताकि इस महामारी पर नियंत्रण किया जा सके।
चीन सहित कई देश वैक्सीन विकसित करने के लिए पूरी मेहनत से लगे हैं। इसमें विश्व की सबसे स्वास्थ्य एजेंसी डब्ल्यूएचओ की भूमिका को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। हालांकि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का फंड रोक दिया है, बावजूद इसके चीन आदि देश इस संगठन को मदद दे रहे हैं। क्योंकि वायरस को कंट्रोल में करना बहुत जरूरी है, अन्यथा विश्व में आर्थिक मंदी का असर और गहरा होता जाएगा।
गौरतलब है कि कई देशों के वैज्ञानिक बार-बार दावा कर रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में वैक्सीन तैयार हो सकती है। लेकिन कई चरणों के ह्यूमन ट्रायल के बाद ही टीके की असली परख होती है। ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि वैक्सीन कब तक बाजार में आ पाएगी। इस बीच भारत में दावा किया जा रहा है कि 15 अगस्त को कोविड-19 रोधी वैक्सीन मरीजों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो जाएगी।
डब्ल्यूएचओ के हालिया बयान पर गौर करें तो पता चल जाएगा कि इस हेल्थ एजेंसी ने टीका तैयार होने की कोई निश्चित समय-सीमा तय बताने से इनकार किया है। पर इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन शायद 2020 के अंत तक तैयार हो जाए। भले ही वैक्सीन बन जाए, लेकिन यह सवाल कम बड़ा नहीं कि बड़ी मात्रा में इसका निर्माण हो। और साथ ही कौन सी वैक्सीन असल में प्रभावी होगी, यह भी एक समस्या है।
डब्ल्यूएचओ के आपात परियोजना प्रमुख माइकल रयान के मुताबिक कुछ टीकों के शुरुआती ट्रायल के डेटा आशा की किरण जगाते हैं, लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन सा टीका अधिक प्रभावी होगा।
वहीं बताया जाता है कि डब्लूएचओ के कोविड-19 ग्लोबल रिसर्च फोरम में 93 देशों और क्षेत्रों के लगभग 1300 शोधकर्ता और विशेषज्ञ शामिल हैं। जो कि लगातार अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। इतना ही नहीं डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में 39 देशों और क्षेत्रों के लगभग साढ़े पांच हजार रोगियों को भर्ती किया गया और अगले कुछ सप्ताह में इसके परिणाम सामने आएंगे। (आईएएनएस)
24 घंटे में 22,252 नए केस, 467 मौतें
देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 7 लाख के पार पहुंच गया है। पिछले 24 घंटे में 22,252 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 67 लोगों की मौत हो गई है।
पिछले 24 घंटे में 2,41,430 सैंपल का टेस्ट किया गया: ICMR
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने बताया कि 5 जुलाई तक कुल 1,02,11,092 सैंपल का टेस्ट किया गया, जिनमें से 2,41,430 सैंपल का टेस्ट कल किया गया।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी तस्वीर पर
पुर्तगाल में फ़ैशन और लाइफ़स्टाइल पत्रिका ‘वोग’ के हालिया कवर पर विवाद पैदा हो गया है.
वोग के इस अंक को ‘द मैडनेस इश्यू’ कहा गया है और प्रकाशकों का कहना है कि वो इसके ज़रिए मानसिक स्वास्थ्य जैसे ‘अहम मुद्दे पर रौशनी डालना’ चाहते थे.
इस अंक के कवर पर एक महिला की तस्वीर है जो अस्पताल के बाथटब में बैठी है और एक नर्स उसके सिर पर पानी उड़ेल रही है.
वोग ने इस कवर को इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया है.
द मैडनेस इश्यू,
ये प्यार के बारे में है.
ये ज़िंदगी के बारे में है.
ये हमारे बारे में है.
ये आपके बारे में है.
ये अभी के बारे में है.
ये स्वास्थ्य के बारे में है.
ये मानसिक स्वास्थ्य के बारे में है.
द मैडनेस इश्यू आज के वक़्त के बारे मेंहै.
मनोचिकित्सकों और मानिसक सेहत की परेशानियों से जूझ रहे लोगों ने इस चित्रण पर नाख़ुशी ज़ाहिर की है. उनका कहना है कि ये मानसिक बीमारियों के उपचार के ‘अनुचित’ और ‘आउटडेटेड’ तरीके को दिखाता है.
इन आलोचनाओं का जवाब देते हुए वोग ने कहा है कि तस्वीर का इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा शुरू करने उद्देश्य से किया गया था.
पत्रिका के प्रकाशक ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए अपने एक बयान में कहा, “वोग के इस अंक में कवर के ज़रिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भ ढूंढने की कोशिश की गई है और इसका मक़सद असल ज़िंदगी और सच्चा कहानियों को दिखाना है. पत्रिका के भीतर मनोचिकित्सकों, सामाजिक वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञिकों और अन्य विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित लेख है.”
कवर पेज पर बाथटब में जिस लड़की की तस्वीर है, वो स्लोवाकिया की मॉडल सिमोना किर्चानेरोवा हैं. उन्होंने अपनी एक इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि वोग के कवर पर आना उनके करियर का एक ‘अहम हिस्सा' है क्यों तस्वीर में उनके पास जो लोग दिख रहे हैं, वो उनके परिजन हैं.
सिमोना ने अपनी पोस्ट में लिखा, “मैं वॉग के कवर पेज पर, अपनी मां और दादी के साथ.
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
लंदन की क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट डॉक्टर कैटरीना एलेक्ज़ेंड्रॉकी ने बीबीसी से कहा कि वो वोग के इस कवर को ‘अनैतिक’ मानती हैं.
उन्होंने कहा, “जो लोग गंभीर मानसिक तकलीफ़ों से गुज़र चुके हैं, उन्हें एक महिला को इतनी नाज़ुक स्थिति में एक फ़ैशन मैग़ज़ीन के कवर पर देखकर अपने पुराने और मुश्किल वक़्त की याद आ सकती है.”
डॉक्टर कैटरीना कहती हैं, “ये तस्वीर उस धारणा का समर्थन करती नज़र आती है कि मानसिक तकलीफ़ के दौरान महिलाएं असहाय और कमज़ोर हो जाती हैं. ये तस्वीर हमें उन लोगों के बारे में नहीं बताती जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति और संघर्ष से मानसिक बीमारियों को हराया है.”
पुर्तगाल की मॉडल सारा सैंपियों ने कहा है कि वोग के कवर पर जो तस्वीर है वो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातचीत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती.
सारा ने कहा कि वो ख़ुद मानसिक तकलीफ़ों से गुज़र चुकी हैं और उन्हें ये तस्वीर ज़रा भी पसंद नहीं आई.
उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई अपनी एक वीडियो में कहा कि ‘ये तस्वीर किसी पुराने मेंटल हॉस्पिटल की लग रही है, जहां मरीज़ों को टॉर्चर किया जाता था.’
सारा ने कहा कि ये तस्वीर ऐसे संवदेनशील समय में सामने आई है जब बहुत से लोग कोरोना वायरस महामारी की वजह से तरह-तरह की मानसिक परेशानियों, अकेलेपन और अलगाव से जूझ रहे हैं.
'तस्वीर में वो सब है, जिसकी ज़रूरत नहीं'
मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और लेखिका पूर्णा बेल ने ट्विटर पर लिखा, “मैं ये उन सभी लोगों की तरफ़ से कह रही हूं जो कभी ख़ुद मेंटल हॉस्पिटल में रहे हैं या जिनके प्रियजन वहां रहे हैं: पत्रिका के कवर पेज पर प्रकाशित होने से पहले ये तस्वीर कई लोगों की नज़रों से गुज़री होगी और उन्होंने इसे सही ठहराया होगा. ये अपने आप में बहुत दुखद है.”
लिस्बन की साइकोथेरेपिस्ट सिल्विया बैपतिस्ता का कहना है कि वोग के इस कवर में वो सब कुछ है जिसकी ज़रूरत मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चर्चा को नहीं है.
उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा कि मानसिक बीमारियों को ‘ग्लैमराइज़’ किया जाना ग़लत है.
हालांकि वोग के प्रकाशकों ने अपने पूरे बयान में यही कहा कि वो मानसिक स्वास्थ्य के विषय की अहमियत समझते हैं.
उन्होंने कहा, “हमारा इरादा तस्वीरों और स्टोरीटेलिंग के ज़रिए आज के एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डालना था.” (www.bbc.com)
खुद किया राजनीतिक पहुंच का बखान
कानपुर, 7 जुलाई (आईएएनएस). विकास दुबे के खिलाफ जांच कर रही एसटीएफ को मिले एक वीडियो में वह बीजेपी विधायकों अभिजीत सांगा और भगवती सागर के साथ अपने संबंधों के बारे में दावा करता दिखाई दे रहा है। उसने कहा कि साल 2017 में पुलिस कार्रवाई का सामना करने पर दोनों नेताओं ने उसकी मदद की थी।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और पुलिस के लिए सिरदर्द बने कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिनमें वह खुद अपने राजनीतिक पहुंच के बारे में बताता नजर आ रहा है। इन वीडियो में वह अपनी राजनीतिक पहचान और पहुंच का जिक्र करता नजर आ रहा है, जिसमें वह कई बीजेपी नेताओं से गहरे संबंधों का दावा कर रहा है।
इसके अलावा विकास दुबे का योगी सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ एक फोटो भी खूब वायरल हो रहा है। इस फोटो में विकास दुबे बीच में है और मंत्री जी एक फैन की तरह किनारे खड़े होकर मुस्कुराते हुए फोटो खींचाते नजर आ रहे हैं। भले इन वीडियो और फोटो की पुष्टि न हो सके, लेकिन इनसे विकास दुबे की राज्य की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी में पहुंच का इशारा तो मिलता ही है।
विकास दुबे द्वारा कानपुर में आठ पुलिस वालों की हत्या की जांच कर रहे एसटीएफ द्वारा हासिल किए गए एक अहम वीडियो में विकास दुबे बीजेपी विधायकों अभिजीत सांगा और भगवती सागर के साथ अपने संबंधों के बारे में बात करते हुए दिखाई दे रहा है। उसने कहा कि साल 2017 में पुलिस कार्रवाई का सामना करने पर दोनों नेताओं ने उसकी मदद की थी।
हालांकि, वीडियो सामने आने के बाद विधायक अभिजीत सांगा ने गैंगस्टर के साथ किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, "मेरा निर्वाचन क्षेत्र कानपुर के बिठूर में है और आसपास के गांव के लोग मदद के लिए मेरे पास आते हैं। यहां तक की कई बार मैंने उन मामलों में कार्रवाई की सिफारिश की है, जहां विकास दुबे अन्य दलों का समर्थन करता था।”
सांगा ने आगे कहा कि दुबे की यह खासियत थी कि वह खुद को सत्ताधारी दलों से जुड़े राजनेताओं के साथ जोड़ लेता था। वहीं बिल्हौर से बीजेपी विधायक भगवती सागर ने कहा कि उन्होंने विकास दुबे के खिलाफ किसी भी मामले में कोई दलील नहीं दी है। उन्होंने कहा कि यह उनकी छवि को खराब करने का प्रयास था। दोनों विधायकों ने कहा कि दुबे की वीडियो की जांच होनी चाहिए। (www.navjivanindia.com)
24 घंटे में 1379 नए मामले
दिल्ली में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा एक लाख के पार पहुंच गया है. दिल्ली सरकार की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश की राजधानी में बीते 24 घंटे में कोरोना के 1379 नए मामले सामने आए और इस दौरान 48 लोगों की मौत हुई है. इसके साथ ही दिल्ली में कोरोना के कुल 100823 मामले हो गए हैं और अब तक 3115 की जान जा चुकी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते 24 घंटे में 749 मरीज ठीक भी हुए हैं और ठीक होने वाले मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 72088 हो गया है.
इससे पहले सोमवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘कोरोना मामलों की संख्या करीब एक लाख पहुंच गई है, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ठीक होने वाले लोगों की संख्या करीब 72,000 हो गई है. पिछले हफ्ते कोरोना की स्थिति में और अधिक सुधार हुआ है. जैसे जून के महीने में हम टेस्ट किया करते थे तो हर 100 में से 35 कोरोना मरीज़ निकलते थे, अब 100 में से 11 ही कोरोना मरीज़ निकलते हैं.’ दिल्ली के मुख्यमंत्री का यह भी कहना था कि रोजाना 20,000 से 24000 टेस्ट हो रहे हैं. सभी अस्पतालों में मिलाकर करीब 5100 मरीज हैं यानी करीब 10,000 बेड खाली हैं. इस समय दिल्ली में टेस्टिंग की कोई समस्या नहीं है.
अरविंद केजरीवाल ने लोगों से प्लाज्मा डोनेट करने की अपील भी की. उन्होंने कहा, ‘पिछले हफ्ते देश में पहला प्लाज्मा बैंक शुरू हुआ. प्लाज़्मा से मॉडरेट लोगों की स्थिति सुधरती है, मौत कम करने में मदद मिलती है...लेकिन प्लाज्मा की डिमांड ज्यादा है और सप्लाई बहुत कम है. हाथ जोड़कर गुजारिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग आगे आकर प्लाज्मा डोनेट करें. घबराने की कोई जरूरत नहीं है, ना ही आपको कमजोरी आएगी ना ही कोई दर्द होगा.’(satyagrah.scroll.in)
चण्डी प्रसाद भट्ट
खगोलीकरण और जलवायु परिवर्तन का दौर हिमालयी समाजों तथा प्रकृति दोनों के लिए चुनौती और चेतावनी भरा है,ये खतरे हमारे जीवन संसाधनों उत्पादन और जीवन पद्वति के लिए घंटी बजा चुके हैं। ऐसे में इन सबके प्रभाव को सरकारों और समाजों द्वारा नियंत्रित किया जाना अत्यधिक कठिन है। हिमालय के संसाधनों पर हो रहे आक्रमण से प्रकृति ने भी अपना गुस्सा प्रकट करना शुरू किया है। इन्हीं गंभीर मुद्दों और धरती की सुंदरता को बरकरार रखने के संदर्भ में हिमालय संरक्षण के पहलुओं पर केंद्रित आलेख।
श्रृष्टि के असंख्य ग्रहों-उपग्रहों में हमारी पृथ्वी सबसे विशिष्ट है। हमारी यह पृथ्वी, जिसे अपरिमित संसाधनों से सम्पन्न मानी जाती है, और जो सम्पूर्ण प्राणी जगत का शाश्वत जीवन स्थल है,आज इस स्थिति में पहुँच गई है कि यह सवाल उठने लग गये हैं कि इस पर प्राणी मात्र का जीवन यापन असंभव तो नहीं होने जा रहा है? और ऐसे अनेक सवाल जब उठते हैं तो उनके उत्तर तलाशने का क्रम शुरू हो जाता है। जब जीवन यापन असहज और दुरूह हो जाता है तो उसे सहज और सरल बनाने की कोशिश होती है।
हम देख रहे कि आज हमारे देश और दुनिया के अधिकांश भाग पर्यावरणीय बिगाड़ से त्रस्त है। एक ओर हमारी आवश्यकता बढ़ रही है, दूसरी ओर उससे भी अधिक तेजी से संसाधनों का हास हो रहा हैं। पानी के परम्परागत स्रोत सूख रहे हैं। वायुमण्डल दूषित हो रहा है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। भूक्षरण, भूस्खलन, भूमि-कटाव, नदियों द्वारा धारा परिवर्तन की घटनाएँ बढ़ती जा रही है। बाढ़ से प्रतिवर्ष लाखों लोगों की तबाही हो रही है और विकास योजनाएँ नष्ट हो रही हैं। इससे हमारी आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि के भविष्य पर प्रष्न चिन्ह लग रहा है।
इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव पहाड़ों पर पड़ रहा है। पर्वतों में भी हिमालय पर्वत सर्वाधिक प्रभावित है। आज पर्यावरणीय बिगाड़ का दूसरा नाम हिमालय है। यद्यपि हिमालय के साथ हमारा बहुत पुराना सम्बंध है। इतना पुराना सम्बंध है कि जब गीता लिखी गई होगी उससे भी पुराना। इसी प्रकार महाकवि कालिदास ने सदियों पहले हिमालय का वर्णन करते हुए हिमालय को पृथ्वी का मेरूदण्ड (आधार) कहा है। हिमालय को भारतीय संस्कृति और मनीषा के केन्द्र में रखा गया है। इस प्रकार हिमालय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र भी है, वहीं एशिया की जलवायु का निर्माता है। हिमालय एक बहुक्षेत्रीय, बहुराष्ट्रीय और बहुसांस्कृतिक पर्वत है और इसकी जैव विविधता भी विश्व के लिए वरदान स्वरूप है।
हिमालय हमारी संस्कृति ही नहीं, संसाधनों का भी आधार है। इसकी मिट्टी, जल तथा वनस्पतियाँ, जंगल आदि सिर्फ यहाँ के मानव जीवन तथा पर्यावरण को ही प्रभावित नहीं करते, बल्कि भारतीय उप महाद्वीप के जीवन तथा आर्थिकी इससे अभिन्न है। यह मानव समाज द्वारा निर्मित कार्बन को धारण करने वाले जंगलों को लिए हुए है।
हिमालय से तीन नदी प्रणालियाँ निकलती हैं । ये है-गंगा,ब्रहमपुत्र और सिन्धु। ये तीनों जल प्रणालियाँ देश की 43 प्रतिशत जमीन में फैली है और इन नदियों में देश के सकल जल का 63 प्रतिशत बहता है। ये नदियाँ भारत की भाग्य विधाता है। पेयजल, सिंचाई जल विद्युत तथा औद्योगिक इस्तेमाल के साथ यह पानी बोतलों में बंद करके बेचा जाता है।
इन तीनों नदियों में गंगा का महत्व किसी से छिपा नहीं है,यह आस्था से जितनी जुड़ी है उससे अधिक हमारे अस्तित्व से जुड़ी है। इसका बेसिन भारत के 26 प्रतिषत क्षेत्र में फैला है और देश के कुल जल का 25 प्रतिशत गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहता है। भारत के 9 राज्यों में गंगा के बेसिन का फैलाव है और देश की 41 प्रतिषत आबादी इसके बेसिन में निवास करती है। साथ ही नेपाल में जन्म लेने वाली नदियाँ भी गंगा में समाहित होती है।
हिमालय का एक और स्वरूप है। भूगर्भविदों के अनुसार-हिमालय एक अत्यन्त युवा पहाड़ है। बैचेन और अति संवेदनशील है यह नाजुक और गुस्सैल स्वभाव का है। वह अपनी स्थिरता ढूंढ रहा है। उसके विविध भ्रंश और दरारें ऋतु क्रियाएँ उसके स्वभाव को बताती है, भूकम्पों ने समय-समय पर इसे झंझोड़ा है। जिससे हिमस्खलन, भूस्खलन, ग्लेशियर तालों का टूटना, नदियों का अवरूद्ध होना तथा बाढ़ों का प्रकोप जैसा प्राकृतिक दबाव है। इस प्रकार के प्राकृतिक दबाव को देखते हैं तो बीसवीं शताब्दी में 1950 का अरूणाचल के 8.6 रियेक्टर के भूकम्प से नदियों में अस्थाई झीलों के टूटने से भयंकर तबाही हुई, कई इलाकों का भूगोल ही बदल गया, नदियों में धारा परिवर्तन हुआ। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में 1975 के भूकम्प ने भी काफी तबाही मचाई, इधर 1991 का उत्तरकाशी तथा 1999 का चमोली तथा कश्मीर के भूकम्प से जानमाल की भारी हानि हुई। लेकिन उस काल में आपदाओं के अन्तराल में काफी लम्बा समय रहता था।
इधर पिछले चार-पाँच दशकों से इन नाजुक क्षेत्रों में कई प्रकार के दबाव बढ़े। पहले से आज हिमालय में मनुष्य की घुसपैठ ज्यादा है, खगोलीकरण ने इस प्रक्रिया को बढ़ा दिया है, जलवायु परिवर्तन एक और आयाम है। इसके प्रभाव को सरकारों और समाजों द्वारा नियंत्रित किया जाना अत्यधिक कठिन है,ऊपर से वनों का विनाश ,नदियों के आसपास महाविकास, बाजार का दबाव, शिथिल कार्यान्वयन, अतिभ्रमण तथा राजनैतिक इच्छाशिक्त का अभाव जैसे कारकों ने हिमालयी नदियों में आपदाओं को कई गुना बढ़ा दिया और अन्तराल को बहुत ही कम कर दिया है।
आज पूर्व सूचना तंत्र स्थानीय, हिमालयी, एशियाई तथा वैष्विक स्तर पर होना चाहिए। ताकि कम से कम मानव जीवन को तो आपदाओं से बचाया जा सके, साथ ही बारिश की मारक क्षमता को कम करने के कार्य बड़े पैमाने पर होने चाहिए। हिमनदों, हिम तालाबों, बुग्यालों एवं जंगलों की संवेदनशीलता की व्यापक जानकारी होनी चाहिए। आपदाओं का न्यूनीकरण करने का भरसक प्रयास होना चाहिए। हिमालय के संदर्भ में भारत, चीन, नेपाल और भूटान का पारिस्थितिक संयुक्त मोर्चा बनना चाहिए, बाढ़ों से सुरक्षा के लिए तो यह संयुक्त मोर्चा सर्वाधिक जरूरी है। इससे संयुक्त नीति और संयुक्त सुरक्षा की बात विकसित हो सकेगी।
आपदाओं के प्राकृतिक के साथ मानव निर्मित कारणों की गंभीर पड़ताल होनी चाहिए। वैज्ञानिक बताते हैं कि जहाँ 1894 की अलकनंदा बाढ़ पूरी तरह प्राकृतिक थी, 1970 की अलकनंदा बाढ़ को विध्वंसक बनाने में जंगलों के कटान का योगदान रहा, जिसके बाद हमने वनों को बचाने एवं बढ़ाने के लिए चिपको आन्दोलन आरंभ किया। वहीं 2013 में जल विद्युत परियोजनाओं सड़कों का अवैज्ञानिक निर्माण,विस्फोटकों के अनियंत्रित इस्तेमाल तथा नदी क्षेत्र में निर्माण कार्यों का भी योगदान रहा, साथ ही हिमनदों-हिमतालाबों एवं बुग्यालों में छेड़छाड़। आपदा के प्रभाव तथा दुष्प्रभाव के साथ जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। ”किया किसने और भुगता किसने“ इसे भी सामने लाना जरूरी है। यदि बाँधों का निर्माण, अपार विस्फोटकों के इस्तेमाल, अवैज्ञानिक तरीके से सड़कों का निर्माण या सड़कों का गैर जरूरी चैड़ीकरण और नदी के प्रभाव क्षेत्र में घुसपैठ तथा अनियंत्रित शहरीकरण जैसे पक्षों की गहरी तथा सतर्क व्याख्या नहीं होगी तो हम कारण भी नहीं जान सकेंगे, निवारण तो दूर की बात है। इसी तरह हिमालय में किसी भी तरह की मानवीय छेड़छाड़ की पहले ही पड़ताल होनी चाहिए। पहले से हुए अध्ययनों एवं नियमों का अनुपालन न करने तथा मानकों की जिम्मेदारी भी सुनिष्चित की जानी चाहिए। समय रहते इन सब बातों को अमल में नहीं लाया गया तो इससे भी भयंकर त्रासदी को नकारा नहीं जा सकता है, फिर जिम्मेदारी को समझने के बजाय पहाड़ और नदियों को कोसेंगे।
खगोलीकरण और जलवायु परिवर्तन का दौर हिमालयी समाजों तथा प्रकृति दोनों के लिए चुनौती और चेतावनी भरा है, ये खतरे हमारे जीवन संसाधनों उत्पादन और जीवन पद्वति के लिए घंटी बजा चुके हैं। जून के प्रथम सप्ताह में देश और दुनिया में पर्यावरण दिवस मनाने की धूम मचेगी। इस दिवस पर हमें स्वयं में यह चेतना विकसित करनी होगी कि हम पृथ्वी के मूल स्वरुप को उसके विभिन्न घटकों तथा उसके पर्यावरण को संरक्षित रखने में सक्रिय रहे। हमें संकल्प लेना होगा कि धरती माता के जल, जंगल, जमीन जैसे घटकों का संरक्षण और संवर्द्धन करेंगे तथा इनका उपभोग अपनी जीवन की रक्षा एवं समृद्धि के लिए ही करेंगे। इस सुन्दर वसुन्धरा को स्वच्छ और सुन्दर बनाये रखने के लिए हमेशा सचेत एवं सक्रिय रहेंगे। (sapress)
- कुमार सिद्धार्थ
प्लास्टिक कचरा एक विकट समस्या बन चुका है। प्लास्टिक और पॉलीथिन के बढ़ते उपयोग को रोकने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कानून भी बनाया है। प्लास्टिक के निपटान की कोई समुचित व्यवस्था न होने के कारण संपूर्ण धरती प्लास्टिकमय हो रही है। मुश्किल यह भी है कि बाजार के फैलाव के साथ वस्तुओं की बिक्री में थैलियों और पैकिंग आदि में पॉलिथीन का जितना इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसका व्यावहारिक विकल्प निकाले बगैर इसे पूरी तरह रोक पाना शायद संभव नहीं होगा।
प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की घोषणा जैसी पहल में वैसे तो कोई नई बात नहीं है, लेकिन अब तक जहाँ प्लास्टिक को पर्यावरण के लिहाज से कई स्तरों पर खतरनाक बताकर इस पर रोक लगाने की पैरवी की जा रही थीं, वहीं राज्य सरकार ने प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए पर्यावरण के मुद्दों के अलावा गाय एवं अन्य पशुओं के लिए खतरे को मुख्य वजह बताई है। सरकार के मुताबिक नए कानून में केवल प्लास्टिक की थैलियों और पन्नियों पर पाबंदी होगी, इससे बनने वाले अन्य सामानों पर कोई रोक नहीं होगी। आज बाजार में उपलब्ध घरेलू उपयोग की ज्यादातर वस्तुएँ प्लास्टिक से बनी होती हैं और सस्ती होने की वजह से लोग प्लास्टिक से बनी चीजों का इस्तेमाल अधिक करते हैं। इसी वजह से शायद सरकार ने फिलहाल प्रतिबंध को प्लास्टिक की थैलियों तक ही सीमित रखा है। वैसे भी लंबे समय से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनेक समितियों के माध्यम से प्लास्टिक के अव्यवस्थित कचरे और प्लास्टिक के कचरे का पुनर्चक्रण न कर पाने की समस्याओं पर कई वर्षों तक विचार-विमर्श किया।
देखना है कि प्रदेश में इस नये कानून का किस तरह प्रभावी क्रियान्वयन होगा। गौरतलब है कि अनेक राज्य सरकारों ने भी प्लास्टिक से उत्पन्न पर्यावरण खतरों को महसूस किया है। इसके घातक प्रभावों के बारे में समय-समय पर चिंता जताई है। कई राज्य सरकारों ने प्लास्टिक प्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए अपने स्तर पर नियम-कानून कायदे भी लागू किये। लेकिन दशकों से इससे निपटने और इस पर पाबंदी लगाने के दावों के बावजूद आज भी पॉलिथीन का इस्तेमाल रोका नहीं जा सका है। आंकडे दर्शाते हैं कि देश में 15,342 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है, जिसमें केवल 9,205 टन प्लास्टिक कचरे को पुर्नप्रयोग हो पाता है। यानी देश में प्रतिदिन लगभग 6,000 टन प्लास्टिक बिना पुनर्चक्रण के अभाव में सड़ता रहता है। वर्षभर में यह आंकड़ा 22 लाख टन से भी अधिक पहुँच जाता है। सही मायने में यदि इस समस्या पर चिंतन करें तो यह अपने आप में एक भयानक समस्या है।
शोध अध्ययन बताते हैं कि दिल्ली से हर साल कोई ढाई लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता है, जो सीवर, टॉयलेट, मेडिकल वेस्ट के तौर पर, डायपर या अन्य रूपों में पानी में बहा दिया जाता है। गाय या अन्य पशुओं के लिए यह कचरा घातक है, वहीं दूसरी ओर छोटी मछलियाँ भी इस प्लास्टिक कूडे को खाना समझ कर खा लेती हैं। इन छोटी-बड़ी मछलियों को इंसान अपना भोजन बना लेते हैं। मछलियों के शरीर में पाया जाने वाला प्लास्टिक कई तरह से मछली खाने वालों के लिए जहरीला साबित हो सकता है। प्लास्टिक में तमाम तरह के रंग और कैमिकल जैसे बिसफेनौल ए, जैविक प्रदूषक और अन्य जहरीले तत्त्व होते हैं, जो मछलियों को भी जहरीला बना सकते हैं। कहने का आशय है कि ये प्लास्टिक का कूड़ा केवल जमीन को ही बर्बाद नहीं कर रहा है, इसे पानी में बहाने पर भी कई खतरे हैं।
देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। हम सब जानते हैं कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने में प्लास्टिक की थैलियों की क्या भूमिका रही है। आज देश में प्लास्टिक की छोटी-बड़ी, पतली और मोटी हर प्रकार की थैलियां खरीददारी का अंग बन चुकी हैं। विशेष समस्या प्लास्टिक की अत्यन्त पतली और पारदर्शी थैलियों की है, जो रोज के कूड़े-कचरे में इस प्रकार मिल जाती हैं कि सफाई की प्रक्रिया में उनको अलग करना भी मुष्किल हो जाता है। कूड़े में पतला प्लास्टिक कई दिन तक गर्मी के कारण सड़ता रहता है। यह प्लास्टिक की थैलियाँ अपने अंदर के रसायनिक पदार्थों को वायुमंडल में छोड़कर प्रदूषण फैलाती रहती हैं। वैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके हैं कि प्लास्टिक पदार्थों के जलने या गर्मी से सड़ने के कारण होने वाला वायु प्रदूषण सारी धरती के लिए एक खतरा बनता जा रहा है।
सच यह है कि थैलियों के साथ-साथ प्लास्टिक से बने सामानों को तैयार करने में भी कई तरह के खतरनाक रसायनों के घोल का इस्तेमाल होता है, जिसमें रखे गए खाने-पीने के सामान पर इसका सेहत के लिहाज से बुरा असर पड़ता है। इनमें कई ऐसे रसायन होते हैं जिनकी थोड़ी भी मात्रा अगर शरीर में चली जाए तो वह कैंसर की वजह बन सकती है, उससे घातक असर पड़ सकता है।
यह जरूर है कि प्लास्टिक-कूडे़ के निपटान के लिए देश के कई स्थानों पर प्लास्टिक की सड़कें बनाई जा रही हैं। पुनर्चक्रित प्लास्टिक से बनी टाइल्स का प्रयोग करके जगह-जगह पर शौचालयों का निर्माण भी किया जा सकता है, और इससे सजावटी वस्तुएँ बनाने की पहल हो रही है। आन्तरिक सजावट की सह-सामग्री जैसे लैम्प शेड, फ्लोर-कुशन्स, फूल सजावट पात्र के लिए दिल्ली की स्वयंसेवी संस्था ‘कन्जर्व’ दिल्ली में बेकार प्लास्टिक की थैलियों को एकत्रित कर विभिन्न क्रमबध्द प्रक्रियाओं के माध्यम से चादर में बदला जाता है और उनसे बहु-रंगी वस्तुएं बनाई जाती हैं।
मध्यप्रदेश सरकार ने प्लास्टिक की पतली थैलियों के उत्पादन और प्रयोग को लेकर उठाए सख्त कदम से पॉलीथीन के उपयोग पर रोक तो जरूर लग सकेगी। किंतु मुश्किल यह भी होगी कि बाजार के फैलाव के साथ-साथ वस्तुओं की बिक्री में थैलियों और पैकिंग आदि में पॉलिथीन का जितना इस्तेमाल होने लगा है, उसका व्यावहारिक विकल्प निकाले बगैर इसे पूरी तरह रोक पाना शायद संभव नहीं हो सकेगा। लेकिन प्लास्टिक के सही निपटाने की अब तक कोई कारगर पहल करने की जरूरत नहीं समझी गई। (sapress)
-सुरेश भाई
नदियों में लगातार बढ़ती गाद नदियों के अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है। पिछले 60 वर्षों में नदियों में निरन्तर घट रही जल राशि के कारण कई नदियां सूख रही है। गंगा नदी की अविरलता में अब तक केवल बांध और बैराजों को सबसे अधिक बाधक माना जाता रहा है। लेकिन गाद का जमना एक ओर आयाम जुड़ गया है। अंधाधुंध वन कटान सड़कों का चैड़ीकरण और बदलते मौसम के कारण लाखों टन मलबा हर रोज नदियों में गिर रहा है।
मई के तीसरे सप्ताह में बिहार सरकार ने इण्डिया इन्टरनेशनल सेंटर, नईदिल्ली में गंगा की अविरलता में बाधक गाद के विषय पर आयोजित सेमिनार में एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दे दिया है। अब तक केवल गंगा की अविरलता में बांध और बैराजों को सबसे अधिक बाधक माना जाता रहा है। किसी सरकारी विभाग के स्तर पर बिहार सरकार की यह पहल इसलिये नई है कि उन्होंने अपने हर बैनर में लिखा है कि ’गंगा की अविरलता के बिना निर्मलता नहीं हो सकती है।’ विभिन्न प्रस्तुतिकरण के आधार पर बांधों और बैराजों की उपयोगिता पर प्रश्न खड़ा कर दिया गया है। यह प्रयास उद्गम में भी गंगा की अविरलता पर खतरे के बादल से बचाया जा सकता है। यह स्वीकार किया गया है कि लगातार बढ़ रही गाद के कारण नदियों की गहराई अब आधी से भी कम हो गई है। वैसे पिछले 60 वर्षों में नदियों में निरन्तर घट रही जल राशि के कारण भी कई नदियां सूख रही है या नाले के रूप में परिवर्तित हो गई है।
बक्सर से लेकर फरक्का बैराज तक गंगा में गाद के पहाड़ उगने लग गये हैं, जिस पर मुख्यमंत्री नितीश कुमार का कहना है कि बिहार में तटों पर निवास करने वाले लोग प्रतिवर्ष अपना नया घर तलाशने लग जाते हैं। वैसे नदियों में गाद भरना कोई नई बात नहीं है। बिहार में मिलने वाली गंडक, सोन, घाघरा, कोसी आदि नदियों के उद्गम भी हिमालय से है, जहां सभी नदियों के सिरहाने बाढ़ और भूकम्प के लिहाज से भूगर्भवेत्ताओं ने जोन 4 और 5 में रखे हैं, जो कई वर्षों से आपदाओं का घर बन चुकी है। इसको ध्यान में रखकर के पुराने तकनीकी के आधार पर बनाया गया फरक्का बैराज अब पुनर्विचार का मुद्दा बनता जा रहा है।
40-50 वर्षं पहले हिमालय से बाढ़ के साथ बहने वाली मिट्टी बिहार और उत्तरप्रदेश के किसानों की खेती को उपजाऊ बना देती थी। जिस वर्ष खेतों तक बाढ़ का पानी पहुंचता था उससे अच्छी पैदावार की आस बन जाती थी। अब अकेले बिहार में सन् 2012-16 तक 1053 करोड़ रूपये नदियों के किनारों से गाद हटाने पर ही खर्च हो रहा है। उत्तराखण्ड में भी नदियों पर एकत्रित गाद ने ही सन् 2013 में केदारनाथ आपदा को जन्म दिया है, जिस पर केन्द्र सरकार को 14 हजार करोड़ रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इस तरह बाढ़ को लेकर बड़ा बजट हर वर्ष खर्च हो रहा है किन्तु गाद को कभी बाढ़ के समाधान से जोड़कर नहीं सोचा जाता है। फरक्का बैराज के डिजाइन में भी गाद के समाधान की अनदेखी हुई है। जिसके फलस्वरूप दिनों-दिन स्थिति इतनी बुरी हो रही है कि गंगा अपने वास्तविक घाटों से 2 किमी दूर चली गई है।
सन् 1975 में कोलकाता बंदरगाह को बचाने के लिये फरक्का बैराज बनाया गया था। अब इसमें फरक्का से पटना के बीच लगभग 400 किमी में इतना गाद भर गया है कि बैराज के फाटक तो बंद हो ही गये, साथ ही इसमें आबादी वाले इलाके तबाह हो रहे हैं। इसका कारण है कि बैराज के निर्माण के दौरान हिमालयी नदियों से आ रहे गाद का मूल्यांकन नहीं हुआ। बैराज के निचले हिस्से में भी पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद के इलाकों में बाढ़ का कहर इतना बढ़ गया है कि प्रतिवर्ष कई लोग अपने घर और खेती-किसानी को गंवा कर सड़कों पर भीख मांग रहे हैं। फरक्का बैराज बनाने से पहले कोलकाता बंदरगाह पर 6 मिलियन क्यूबिक मीटर गाद थी, जो अब 21 मिलियन क्यूबिक मीटर हो गई है। सन् 1960 तक 2 मिलियन टन गाद प्रतिवर्ष बंगलादेश जाती थी, अब यह इसके आधे के बराबर भी नहीं पहुंच पा रही है। अत; इस खुली बहस के साथ हिमालय की नदियों में रुक रही गाद के दुष्परिणामों को भी उजागर करना चाहिये। इसके बावजूद भी सच्चाई यह है कि इलाहाबाद से हल्दिया तक प्रस्तावित जल मार्ग के लिये 16 बैराज बनाने की महत्वाकांक्षी योजना है। यदि यह जमीन पर उतरी तो गंगा की अविरलता कहीं भी शेष नहीं बचेगी।
गंगा के उद्गम स्थल उत्तराखण्ड की ओर देखें तो यहां की सभी नदियों में हर वर्ष बाढ़ के कारण अपार जन धन की हानि हो रही है। यहां अंधाधुंध वन कटान सड़कों का चैड़ीकरण और बदलते मौसम के कारण लाखों टन मलबा हर रोज नदियों में गिर रहा है, जो सीधे मैदानी क्षेत्रों में बहकर जा रहा है। भागीरथी पर टिहरी, मनेरी और अलकनंदा पर श्रीनगर, विष्णुप्रयाग जैसे बड़े बांधों के अलावा यमुना पर बने बैराजों और झीलों में असीमित गाद जमा हो रही है। जिससे निपटने के लिये कोई योजना नहीं है। सन् 2008 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ गांगोत्री और उत्तरकाशी के बीच गंगा के अविरल बहाव के नाम पर ही 800 करोड़ खर्च होने के बावजूद भी लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना (600 मेवा) को बंद दिया गया था, और इसके 100 कि.मी. क्षेत्र को इको सेंसेटिव झोन बनाकर यहां के प्रभावित गांव के साथ इको फ्रेंडली विकास का मॉडल प्रस्तुत किया गया है।
विशेषज्ञों की राय है कि उत्तरप्रदेश में कन्नौज व वाराणसी के बीच गंगा में गंदगी के ढेरों से निपटने के लिये घाटों का निर्माण जरूरी है। लेकिन इससे भी कहीं अधिक आवश्यकता है कि गंगा की धारा को अविरल बहाव का मार्ग मिलना चाहिये। अतः ऐसी सभी बाधाओं से मुक्त किया जाए जहां अविरल धारा को रोका गया है। हिमालय से लेकर केरल तक नदियों में बांध और बैराजों की संख्या लगभग 130 है।
नदियों का मूल धर्म मीठे जल के साथ गाद को समुद्र तक पहुंचाना है। इसके कारण समुद्री जल का खारापन नियंत्रित होता है। समुद्र के किनारों पर उपजाऊ डेल्टाओं को बनाती है और भूजल और मिट्टी के निर्माण में योगदान देती है। इसलिये संवेदनशील नये हिमालय की स्थिरता और यहां से आ रही नदियों की अविरलता सुनिश्चित करना राज्यों का काम है। गंगा जल को विशिष्ट गुण देने वाला वैक्टीरियोफॉज भी कमजोर पड़ गया है। बताया जा रहा है टिहरी में जल जमाव के कारण केवल 10 प्रतिशत वैक्टीरियोफॉज ही समुद्र तक पहुंच रहा है। अविरलता में आई इन बाधाओं को दूर करने के लिये राज्यों को बिहार की तरह अपने हकों की आवाज उठानी पड़ेगी। (sapress)
- बाबा मायाराम
आदिवासियों की जीवन शैली, उनकी परंपरागत खेती किसानी और जंगल का खानपान का अत्यधिक महत्व है। जंगलों का लगातार कटते जाने का सीधा असर लोगों की खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। आदिवासियों ने अब जंगल और खेती बचाने के लिए शुरूआत की है। यह सब न केवल भोजन की दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। समृद्ध और विविधतापूर्ण आदिवासी भोजन परंपरा बची रहे, पोषण संबंधी ज्ञान बचा रहे, परंपरागत चिकित्सा पद्धति बची रहे इन्हीं पहलुओं पर केंद्रित आलेख।
ओडिशा का छोटा कस्बा था-मुनिगुड़ा। स्कूली बच्चों की एक टोली की भीड़ जमा है। यहां एक खाद्य प्रदर्शनी लगी है। कोई बैल की आकृति का भूरा कांदा, गुलाबी और लाल बेर, गहनों की तरह चमकते मक्के के भुट्टे, काली और सुनहरी धान की बालियां,फल्लियां और छोटे दाने का सांवा, कुटकी और मोतियों की तरह की ज्वार।
इस खाद्य प्रदर्शनी में खेतों में होने वाली फसलें, जंगल से सीधे प्राप्त होने वाली गैर खेती सामग्री, फल, फूल, पत्तियां, मशरूम और कई तरह के कंद-मूल शामिल थे। यह एक माध्यम है जिससे नई पीढ़ी में यह परंपरागत ज्ञान हस्तांतरित होता है।
नियमगिरी की यह खूबसूरत पर्वत श्रृंखला बहुत मशहूर है। पिछले कुछ समय पहले खनन के खिलाफ इसी इलाके में आदिवासियों ने जोरदार लड़ाई लड़ी और जीती थी। उस समय यहां के आदिवासियों की काफी चर्चा हुई थी।
यहां का घना जंगल आदमी समेत कई जीव-जंतुओं को पालता पोसता है। ताजी हवा, कंद-मूल, फल, घनी छाया, ईंधन, चारा, और इमारती लकड़ी और जड़ी-बूटियों का खजाना है।
रायगड़ा जिले में लिविंग फार्म एक गैर सरकारी संस्था है जो बरसों से आदिवासियों के खाद्य और पोषण पर लम्बे समय से काम कर रही है। यह संस्था में हर छह माह में उनके भोजन की विविधता का आंकलन करती है।
लिविंग फार्म के विचित्र विश्वाल कहते हैं कि सरकारी योजनाएं बच्चों को पोषण सुरक्षा नहीं दे पाती हैं, वह पूरक हो सकती हैं। हमारे यहां कई प्रकार की दालें, मडिया, ज्वार, बाजरा, सांवा, फल, सब्जियां और मषरूम की कई प्रजातियां हैं। हमें इन्हें बचाना चाहिए।
विषमकटक के सहाड़ा गांव का कृष्णा कहता है कि जंगल हमारा माई-बाप है। वह हमें जीवन देता है। उससे हमारे पर्व-परभणी जुड़े हुए हैं। धरती माता को हम पूजते हैं। कंद, मूल, फल, मशरूम, बांस करील और कई प्रकार की हरी भाजी हमें जंगल से मिलती है।
आदिवासियों की जीवनशैली अमौद्रिक (कैशलेस) होती है। वे प्रकृति के ज्यादा करीब है। प्रकृति से उनका रिष्ता मां-बेटे का है। वे प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जितनी उन्हें जरूरत है। वे पेड़ पहाड़ को देवता के समान मानते हैं। उनकी जिंदगी प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। ये फलदार पेड़ व कंद-मूल उनके भूख के साथी हैं।
लिविंग फार्म के एक अध्ययन के अनुसार भूख के दिनों में आदिवासियों के लिए यह भोजन महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्हें 121 प्रकार की चीजें जंगल से मिलती हैं, जिनमें कंद-मूल, मशरूम, हरी भाजियां, फल, फूल और शहद आदि शामिल हैं। इनमें से कुछ खाद्य सामग्री साल भर मिलती है और कुछ मौसमी होती है।
लिविंग फार्म के संस्थापक देवजीत सारंगी बताते हैं कि हम परंपरागत खानपान को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां 60 प्रकार के फल (आम, कटहल, तेंदू, जंगली काजू, खजूर, जामुन), 40 प्रकार की सब्जियां (जावा, चकुंदा, जाहनी, कनकड़ा, सुनसुनिया की हरी भाजी), 10 प्रकार के तेल बीज, 30 प्रकार के जंगली मशरूम और 20 प्रकार की मछलियां मिलती हैं। कई तरह के मशरूम मिलते हैं। पीता, काठा. भारा, गनी, केतान, कंभा, मीठा, मुंडी, पलेरिका, फाला, पिटाला, रानी, सेमली. साठ, सेदुल आदि कांदा (कंद) मिलते हैं।
यह भोजन पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इससे भूख और कुपोषण की समस्या दूर होती है। खासतौस से जब लोगों के पास रोजगार नहीं होता। हाथ में पैसा नहीं होता। खाद्य पदार्थों तक उनकी पहुंच नहीं होती। यह प्रकृति प्रदत्त भोजन सबको मुफ्त में और सहज ही उपलब्ध हो जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस इलाके में कृत्रिम वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आदि कहता है कि मुझे किसी के सामने हाथ न पसारना पड़े, यह मेरे मां-बाप सिखा गए हैं। इसलिए मैंने 70 प्रकार की फसलें अपने खेत में लगाई हैं। मेरी 10 महीने की जरूरतें खेत से पूरी हो जाती हैं, दो माह का गुजारा जंगल से हो जाता है। यानी एक कटोरा खेत से, एक कटोरा जंगल से हमारा काम चल जाता है। सुबह हमारी भोजन की थाली खेत से आती है, शाम को जंगल से आती है।
लेकिन यहां आदिवासियों ने जंगल और खेती बचाने के लिए एक अनौपचारिक शुरूआत कर दी है। सुखोमती षिकोका कहती हैं कि हमने इस साल मुनिगुड़ा विकासखंड के 35 गांवों में जंगल बचाने और उसे फिर से जिंदा करने का काम किया है। इसमें विषमकटक और मुनिगुड़ा विकासखंड के कई गांवों के लोग जुड़ रहे हैं।
लिविंग फार्म संस्था के कार्यकर्ता प्रदीप पात्रा कहते हैं कि जंगल कम होने का सीधा असर लोगों की खाद्य सुरक्षा पर पड़ता है। इसका प्रत्यक्ष असर फल, फूल और पत्तों के अभाव में रूप में दिखाई देता है।
अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु बदलाव से फसलों पर और मवेशियों के लिए चारे-पानी के अभाव के रूप में दिखाई देता है। पर्यावरणीय असर दिखाई देते हैं। मिट्टी का कटाव होता है। खाद्य संप्रभुता तभी हो सकती है जब लोगों का अपने भोजन पर नियंत्रण हो।
आदिवासियों की भोजन सुरक्षा में जंगल और खेत-खलिहान से प्राप्त खाद्य पदार्थों को ही गैर खेती भोजन कहा जा सकता है। इनमें भी कई तरह के पौष्टिक तत्व हैं। यह सब न केवल भोजन की दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के खानपान के बारे में स्कूली पाठ्यक्रम में भी जगह होनी चाहिए। यह मांग उठाई जा रही है।
समृद्ध और विविधतापूर्ण आदिवासी भोजन परंपरा बची रहे, पोषण संबंधी ज्ञान बचा रहे, परंपरागत चिकित्सा पद्धति बची रहे। पर्यावरण और जैव विविधता का संरक्षण हो, यह आज की जरूरत है। इस दृष्टि से जंगल, आदिवासियों की जीवन शैली, उनकी परंपरागत खेती किसानी और जंगल का खानपान बहुत महत्व है। (sapress)
दूसरी रिपोर्ट भी निगेटिव आने के बाद निश्चित होगा कि वह पूरी तरह कोरोनामुक्त
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। मैसूर से लाये गये रेप के जिस आरोपी की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिली थी आज शाम बिलासपुर सिम्स लैब में की गई जांच के बाद उसकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई है। रिपोर्ट पॉजिटिव मिलने के कारण सिविल लाइन थाने को सील कर दिया गया था और केन्द्रीय जेल में भी हडक़म्प मचा हुआ था।
सिविल लाइन थाने के प्रभारी ने सुरेन्द्र स्वर्णकार बताया कि भाभा रिसर्च सेंटर में अपने आपको साइंटिस्ट बताने वाले मूल रूप से कोरबा के निवासी एक 28 वर्षीय युवक को सिविल लाइन पुलिस पकडऩे के लिये एक जुलाई को मैसूर कर्नाटक गई थी। उसके खिलाफ बिलासपुर की एक युवती ने शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया था।
कोरोना संक्रमण से बचने के लिये आम तौर पर पुलिस दूसरे राज्यों में किसी आरोपी को पकडऩे के लिये इस समय कम जा रही है। पर इस मामले में बताया जाता है कि आरोपी द्वारा युवती के साथ फोन ब्लैकमेलिंग की जा रही थी और तस्वीरें वायरल करने की धमकी दी जा रही थी। इसके चलते उसे गिरफ्तार करके लाना जरूरी हो गया था। सिविल लाइन पुलिस के मुताबिक आरोपी को मैसूर में गिरफ्तार करने के बाद थर्मल स्क्रीनिंग कराई गई और उसके कोविड टेस्ट के लिये सैम्पल दिया गया था। थर्मल स्क्रीनिंग में कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं मिलने के कारण पुलिस उसके कोरोना संक्रमित नहीं होने को लेकर निश्चिन्त थी। यहां पहुंचने के बाद जब सिविल लाइन थाने में एक रात रख लिया गया और उसके अगले दिन कोर्ट ले जाकर जेल भेज दिया गया तब मैसूर के लैब से उसके पॉजिटिव होने की रिपोर्ट प्राप्त हुई। इसके बाद पुलिस व जिला प्रशासन में हडक़म्प मच गया। पुलिस अधीक्षक ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सिविल लाइन थाने को सील कराया और सभी अधिकारियों तथा जवानों को क्वारांटीन पर भेज दिया गया। सेंट्रल जेल से आज सुबह दो कोरोना सैम्पल सिम्स स्थित लैब में लाये गये। इनमें एक रायगढ़ के हत्या का आरोपी तथा दूसरा मैसूर से लाये गये इसी रेप के आरोपी का था। शाम तक इसकी रिपोर्ट आ गई। सिम्स की पीआरओ डॉ. आरती पांडेय ने आज शाम बताया कि दोनों केन्द्रीय जेल से दोनों रिपोर्ट निगेटिव आई है।
जब उनसे यह पूछा गया कि यह कैसे सम्भव है कि मैसूर से जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव बताई जा रही है उसकी यहां पर निगेटिव रिपोर्ट सिर्फ दो दिन बाद आये। उन्होंने कहा कि पहले कहां टेस्ट हुआ यह उन्हें मालूम नहीं पर यह संभव है। कई मरीजों में मामूली लक्षण होते हैं और वे दो तीन में ठीक भी हो जाते हैं।
दो बार टेस्ट रिपोर्ट लगातार निगेटिव होने के बाद ही स्वास्थ्य विभाग इस बात से संतुष्ट होता है कि किसी व्यक्ति में कोरोना के लक्षण नहीं है। इस आधार पर रेप के उक्त आरोपी का एक बार और सैम्पल लेकर टेस्ट लिया जायेगा।
एहतियान मैसूर लेने गई पुलिस टीम का सैम्पल लिया गया है, जिनकी रिपोर्ट कल तक आने की संभावना है। केन्द्रीय जेल में भी बाहर आने वाले प्रत्येक नये कैदी के लिये अलग कोरोना मापदंडों का पालन करने के साथ स्टाफ व बैरक की व्यवस्था की गई है। हालांकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रमोद महाजन ने बताया है कि करीब 20 स्टाफ का जेल में ऐहतियान सैम्पल लिया गया है। इनकी रिपोर्ट भी कल तक मिलने की संभावना है।
सिविल लाइन थाने को सील करने के बाद यहां के थाना प्रभारी सहित 65 स्टाफ को क्वारांटीन पर भी भेजा गया है।
पुलिस ने रेप पीडि़त की रिपोर्ट निगेटिव आने पर राहत की सांस ली है हालांकि उसके दूसरी रिपोर्ट के निगेटिव आने के बाद ही यह निश्चित हो पायेगा कि वह पूरी तरह कोरोना मुक्त है। फिलहाल उसे कोविड-19 अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर 6 जुलाई । जिले में आज रात तीन कोरोना संक्रमित मरीजों की पुष्टि की गई है। जिसमें एक पॉजिटिव युवक अपने चाचा के संपर्क में आने के कारण संक्रमित हुआ है। इसके पूर्व युवक के दादा भी संक्रमित हो चुके हैं।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि आज जिले में तीन कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं। जिनमें से एक युवक इस्पात नगर रिसाली का रहने वाला है। वह अपने चाचा डॉक्टर के संपर्क में आया था। इसके पूर्व भी डॉक्टर अपने पिता को भी कोरोना संक्रमित कर चुका है। दो अन्य मरीज में एक मरीज लोटस आर्केड परसदा कुम्हारी से है। जबकि तीसरा मरीज सेक्टर 6 सडक़ 35 का रहने वाला है तीनों ही मरीजों को ट्रेस करके अस्पताल में दाखिल करने की तैयारी स्वास्थ्य विभाग के द्वारा की जा रही है।
डॉ. ठाकुर ने बताया कि आज जिले के 300 लोगों की रिपोर्ट आई है। इन 300 लोगों की प्राप्त रिपोर्ट में केवल 3 मरीज ही पॉजिटिव मिले हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 6 जुलाई। गोमर्डा अभ्यारण्य में एक सांभर व एक नीलगाय का शिकार हुआ है। पिछले करीब चार से पांच दिन पूर्व अभ्यारण्य में करंट से इनका शिकार किया गया था और आधा अवशेष वहीं पड़ा रहने से उनके सड़ांध के कारण विभाग को इसका पता चल सका। जहां उसके बाद मामले में जांच शुरू की गई और एक शिकारी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया है। फिलहाल मामले में आगे की कार्रवाई जारी है।
इस संबंध में मिली जानकारी के मुताबिक गोमर्डा अभ्यारण्य के सारंगढ़ सर्किल के बटाउपाली बीट के कक्ष क्रमांक 932 पीएफ में किसी वन्यप्राणियों के सड़ांध की बू दूर तक जा रही थी। जब इसकी जानकारी वन अमला को लगी, तो उसकी जांच की गई, तब पता चला कि एक सांभर व एक नीलगाय का आधा अवशेष पड़ा हुआ है और प्रारंभिक जांच में यह बात स्पष्ट हुआ कि करंट से नीलगाय व साम्हर का शिकार किया गया है। इसके बाद मामले की जानकारी
उच्चाधिकारियों को दी गई। जहां विभाग के द्वारा मामले में जांच शुरू करने निर्देशित किया गया और बिलासपुर से डॉग स्क्वायड को बुलाया गया। इसके बाद घटना स्थल से जांच शुरू की गई, तो डॉग सूंघते हुए कांदुरपाली में रहने वाला त्रिलोचन उर्फ पप्पू के घर घुस गया। इसके बाद यहां जांच करने पर करंट के लिए बिछाए गए तार जब्त करते हुए उसे हिरासत में लिया गया।
बताया जा रहा है कि एक साथ दो वन्यप्राणियों का शिकार किया गया और उनका आधा अवशेष वहां नहीं था, तो इससे आशंका जताई जा रही है कि उसे शिकारियों के द्वारा अपने साथ बिक्री या खाने के लिए ले जाया गया हो। बताया जा रहा है कि वन्यप्राणियों के शव लगभग चार से पांच दिन पुराने थे और आधा ही अवशेष वहां पड़ा था, जो सड़ गया था और उसके सड़ांध के कारण ही घटना की जानकारी हो सकी। फिलहाल मामले में आरोपी के खिलाफ अपराध कायम कर न्यायालय में पेश किया गया है और मामले को विवेचना में लिया गया है।
लाश सड़ते रही और वनकर्मियों को पता ही नहीं चला
वहीं जानकारों का कहना है कि हर बीट में एक परिसर रक्षक पदस्थ है और उनकी मानिटारिंग के लिए डिप्टी रेंजर व रेंजर होते हैं, पर गोमर्डा अभ्यारण्य में एक साथ दो वन्यप्राणियों का शिकार हो जाता है और उनके शव लगभग चार से पांच दिनों तक जंगल में ही पड़ा रहता है, पर संबंधित बीटगार्ड से लेकर डिप्टी रेंजर तक को पता नहीं चल पाता है। इससे यह माना जा रहा है कि गोमर्डा अभ्यारण्य में जंगल भ्रमण के नाम पर विभागीय कर्मचारी पर खानापूर्ति कर रहे हैं।
स्थानीय कर्मचारियों को नहीं हटा रहे
विभागीय सूत्रों ने बताया कि गोमर्डा अभ्यारण्य में स्थानीय कर्मचारी लंबे समय से पदस्थ हैं। ऐसे में वे जंगल भ्रमण के बजाए घरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। पूर्व में भी गोमर्डा अभ्यारण्य में स्थानीय कर्मचारियों की पदस्थपना अखबारों की सुर्खियां बन चुकी है, पर इसके बाद भी विभाग के बड़े अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में अभ्यारण्य में अवैध शिकार व वन अपराध पर यहां कोई लगाम नहीं देखी जा रही है।
बटाउपाली बीट में एक नीलगाय व साम्हर का शिकार करने की सूचना मिलने के बाद मामले में जांच शुरू की गई। जहां एक शिकारी त्रिलोचन उर्फ पप्पू को पकड़ा गया है। मामले में अपराध कायम कर उसे न्यायालय में पेश किया गया है और मामले में जांच जारी है।
आर के सिसोदिया
अधीक्षक, गोमर्डा अभ्यारण्य