खेल
ब्रेमेन (जर्मनी), 17 जून। बायर्न म्यूनिख ने राबर्ट लेवानडोवस्की के गोल की मदद से वर्डर ब्रेमेन को 1-0 से हराकर लगातार आठवीं बार बुंदेसलीगा का खिताब जीता जबकि अभी उसके दो मैच बचे हुए हैं। इस जीत से बायर्न ने दूसरे स्थान पर काबिज बोरुसिया डोर्टमंड पर 10 अंक की बढ़त हासिल कर ली है। डोर्टमंड अपने बाकी बचे तीन मैचों में अधिक से अधिक नौ अंक ही हासिल कर सकता है।
वर्डर ने बायर्न को पहले हाफ में अधिकतर समय रोके रखा, लेकिन चैंपियन टीम आखिर में गोल करने में सफल रही। लेवोनडोवस्की ने यह गोल खेल के 43वें मिनट में किया। जेरोम बोटेंग ने लेवोनडोवस्की की तरफ गेंद बढ़ाई, जिसे उन्होंने अपनी छाती से नियंत्रित करके खूबसूरत शॉट से गोल के अंदर पहुंचाया। यह बुंदेसलीगा के इस सत्र में उनका 31वां गोल है।
बायर्न के अलफोंसो डेविस को 79वें मिनट में दूसरा पीला कार्ड मिला, जिसके बाद टीम को 10 खिलाडिय़ों के साथ खेलना पड़ा। गोलकीपर मैनुअल नेयुर ने अंतिम क्षणों में युवा ओसाको के हेडर का शानदार बचाव किया।
बायर्न ने पिछले महीने बुंदेसलीगा के फिर से शुरू होने के बाद सात जीत दर्ज की हैं और इस तरह से अपना कुल 30वां खिताब जीता। कोरोना वायरस के कारण यह लीग मार्च से ठप्प पड़ी थी। बायर्न अब खिताब की तिकड़ी बनाने की राह पर है। उसे चार जुलाई को जर्मन कप फाइनल में बायर लीवरकुसेन से भिडऩा है और वह चैंपियंस लीग के खिताब की दौड़ में भी है।
बुंदेसलीगा के एक अन्य मैच में अंतिम स्थान पर चल रहे पेडरबोर्न को यूनियन बर्लिन के हाथों 0-1 से हार का सामना करना पड़ा जिससे वह दूसरी डिवीजन में खिसक गया। (एजेंसी)
मैड्रिड, 17 जून । बार्सिलोना ने 99 हजार क्षमता वाले कैंप नोउ स्टेडियम में दर्शकों के बिना खेले गए पहले मैच में अपने स्टार स्ट्राइकर लियोनेल मेस्सी के गोल की मदद से लेगानेस को 2-0 से हराकर स्पेनिश फुटबॉल लीग ला लिगा में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा।
बार्सिलोना ने धीमी शुरुआत की, लेकिन अन्सु फाती ने 42वें मिनट में गोल करके उसे बढ़त दिला दी। इसके बाद मेस्सी ने 69वें मिनट में पेनल्टी पर गोल किया जो वर्तमान सत्र में लीग में उनका 21वां गोल है। इससे मेस्सी के करियर की कुल गोल की संख्या 699 पर पहुंच गई है। इनमें से 629 गोल उन्होंने बार्सिलोना की तरफ से किए हैं।
बार्सिलोना ने इस जीत से अपने चिर प्रतिद्वंद्वी रियल मैड्रिड पर पांच अंक की बढ़त बना ली है। बार्सिलाना के अब 29 मैचों में 64 अंक जबकि रीयाल के 28 मैचों में 59 अंक हैं। रीयाल अपना अगला मैच गुरुवार को वेलेंसिया के खिलाफ खेलेगा।
मेस्सी ने इससे पहले ला लिगा के फिर से शुरू होने पर मालोर्का के खिलाफ बार्सिलोना की 4-0 से जीत में भी गोल किया था। कोरोना वायरस महामारी के कारण ला लिगा मार्च से ठप्प पड़ी थी।
बार्सिलोना के लिये यह पिछले तीन साल में दूसरा अवसर है जबकि उसने कैंप नोउ में दर्शकों के बिना मैच खेला। उसने इससे पहले दर्शकों के बिना घरेलू मैच अक्टूबर 2017 में खेला था। तब कैटालोनिया आंदोलन के कारण दर्शकों को स्टेडियम में आने की अनुमति नहीं दी गई थी।
इस बार कोरोना वायरस महामारी के कारण बार्सिलोना को कैंप नोउ से दर्शकों को दूर रखना पड़ा। बार्सिलोना अपना अगला मैच शुक्रवार को तीसरे स्थान पर काबिज सेविला से खेलेगा। मंगलवार को खेले गए अन्य मैचों में पांचवें स्थान पर चल रहे गेटेफ ने एस्पिनयोल से गोलरहित ड्रॉ खेला जबकि सातवें स्थान के विल्लारीयल ने मालोर्का को 1-0 से हराया। एस्पिनयोल और मालोर्का दोनों पर दूसरी डिवीजन में खिसकने का खतरा मंडरा रहा है।(एजेंसी)
नई दिल्ली, 17 जून । खेल जगत में चीन ने ऐसा दबदबा कायम किया कि वह ओलंपिक में सुपर पावर बन गया। उसके लिए खेल का महत्व किसी जंग से कम नहीं। उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया और अपनी मेडल टैली को मजबूत बनाता गया। चीन का मानना है कि वह एक मिशन के तहत काम करता है और बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी करता है। उसकी ट्रेनिंग इतनी कड़ी होती है, जिसे किसी सजा से कम नहीं माना जा सकता।
चीन ने पहली बार 1952 के हेलसिंकी (फीनलैंड) ओलंपिक में हिस्सा लिया। तब उसे द पीपल्स रिपब्लिक और चाइना कहा जाता था। उस ओलंपिक में उसे कुछ नहीं मिला। तैराकी में उसके एक खिलाड़ी ने भाग लिया था। इसके बाद अगले 32 सालों तक उसने किसी ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया। उसने 1984 के ओलंपिक (अमेरिका) में खुद का आजमाया, तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि यह एशियाई देश इतने मेडल जीत सकता है।
1984 के ओलंपिक में खास बात यह रही कि चीन ने 32 मेडल अपने नाम किए, जिसमें 15 गोल्ड, 8 सिल्वर और 9 ब्रॉन्ज शामिल रहे। उसके बाद उसके पदकों की संख्या लगातार बढ़ती गई, यानी 1984 की बात करें, तो उसके खाते में एक भी मेडल नहीं था और 2016 तक वह 224 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 546 मेडल (समर ओलंपिक) जीत चुका है। इस बदलाव के पीछे चीन की दीर्घकालीन योजना का बड़ा हाथ है।
उसने अपनी अर्थव्यस्था को मजबूत करने के साथ-साथ खेलों की ओर ध्यान लगाया। उसने अपने लोगों को भरोसा दिलाया कि स्पोर्ट्स में भविष्य हो सकता है। छोटे-छोटे समूह बनाकर लोगों को जागरूक किया गया। गावों और कस्बों की ओर फोकस किया गया। क्योंकि वहां रोजगार के अवसर नहीं थे। बच्चों के माता-पिता विश्वास में लिया गया। स्कूलों में खेलों का अनिवार्य कर दिया गया और कहा गया कि खेलों को पार्ट टाइम के तौर पर नहीं लिया जा सकता।
अगली चुनौती बेहतर आधारभूत संरचना की थी, तो उसने शुरू में 10,000 ऐसे सेंटर्स बनाए, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग की सुविधाएं दिलाई गईं। साथ ही उसने अपने ट्रेनर्स को भी प्रशिक्षण दिलवाना शुरू किया। उसे पता था कि बच्चों को वे ट्रेनिंग देने में तभी कामयाब हो पाएंगे, जब तक ट्रेनर खुद सक्षम न हों। चीन ने बहुत सोच समझकर अपने लिए उन खेलों को चुना जो उसे पदक दिला सकते थे।
चीन को पता था कि वह टीम गेम्स में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते, ऐसे में व्यक्तिगत स्पर्धा पर ज्यादा ध्यान दिया गया। और सबसे बढ़कर उसने वैसे व्यक्तिगत स्पर्धाओं को चुना, जिसमें उसके खिलाड़ी ज्यादा फिट बैठ सकते थे। उदाहरण के तौर पर चीनियों का शरीर जिम्नास्टिक के लिए अनुकूल था। यानी चीन ने वही खेल चुने, जिसमें प्रतिस्पर्धा कम थी। जिम्नास्टिक के अलावा जूडो, डाइविंग, स्विमिंग, रनिंग जैसे खेलों को प्राथमिकता दी गई। दूसरी तरफ टेबल टेनिस और बैटमिंटन में तो चीन को जवाब नहीं।
दूसरे देशों में पांच साल से किसी बच्चे को ट्रेनिंग दी जाती है। चीन का मानना है कि मेडल जीतने के लिए बच्चों को इससे पहले से ही तैयार किया जाना चाहिए। इसी सोच के तहत चीन में बच्चों के लिए क्रूर ट्रेनिंग कैंप लगाए जाते हैं। यहां तीन साल से ज्यादा की उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं। इसी तकलीफ को सहकर ही वे चैम्पियन बनने की कला सीखते हैं। बच्चे को घंटों की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें कई बार किसी डंडे से लटके रहना होता है तो कभी घंटों पानी में खड़े रहना पड़ता है, ताकि बच्चे अपनी ताकत और जज्बा बढ़ा सकें।
इसके अलावा बच्चों को बिना किसी वजह के स्कूल में घंटों सजा भी दी जाती है। इसके पीछे एक ही मकसद होता है- ये बच्चे अपनी ताकत बढ़ा सकें। चीन के नैनिंग प्रांत के नैनिंग जिम का दृश्य किसी को भी भावुक कर सकता है, जहां छोटे-छोटे बच्चे रोते-बिलखते ट्रेनिंग पूरी करते हैं।(आजतक)