अंतरराष्ट्रीय
ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफ़ॉर्म अमेज़न के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस कंपनी के चीफ़ एग्ज़ेक्यूटिव का पद छोड़ने वाले हैं.
जेफ़ बेज़ोस ने क़रीब तीन दशक पहले इस कंपनी की नींव रखी थी.
बताया गया है कि बेज़ोस अमेज़न के चीफ़ एग्ज़ेक्यूटिव का पद छोड़ने के बाद कंपनी के एग्ज़ेक्यूटिव चेयरमैन बनेंगे ताकि वे कंपनी के अन्य उपक्रमों पर ध्यान लगा सकें.
कंपनी के अनुसार, बेज़ोस के पद में यह बदलाव साल 2021 के दूसरे हिस्से में (संभवत: तीसरी तिमाही में) होना है.
मंगलवार को अमेज़न स्टाफ़ के नाम लिखी एक चिट्ठी में जेफ़ बेज़ोस ने कहा कि "अमेज़न के सीईओ के पद पर होना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसमें बहुत वक़्त लगाना पड़ता है. ऐसे में आप किसी दूसरे काम में ध्यान नहीं लगा सकते. लेकिन एग्ज़ेक्यूटिव चेयरमैन बनने के बाद में कंपनी के बाकी कामों को भी देख सकूंगा. उन कामों में अपनी ऊर्जा और अपना वक़्त लगा सकूंगा. मैं बेज़ोस अर्थ फ़ंड, ब्लू ओरिजिन, द वॉशिंगटन पोस्ट और मेरी दिलचस्पी के दूसरे कामों पर भी ध्यान दे सकूंगा."
अपने इस पत्र में जेफ़ बेज़ोस ने यह स्पष्ट किया है कि 'वे रिटायर नहीं हो रहे, बल्कि वे अपने दूसरे प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने की एक कोशिश करना चाहते हैं जिनमें उन्हें बहुत संभावनाएं दिखाई देती हैं.'
57 वर्षीय जेफ़ बेज़ोस ने साल 1994 से अब तक अमेज़न कंपनी का नेतृत्व किया है. तब अमेज़न क़िताबें बेचने वाला एक ऑनलाइन स्टोर हुआ करता था.
मौजूदा समय में अमेज़न कंपनी में क़रीब 13 लाख लोग काम करते हैं. कंपनी कई किस्म की सेवाएं देती है, जैसे - पैकेज डिलीवरी, ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग, क्लाउड सर्विस और एडवरटाइज़िंग (विज्ञापन).
फ़ॉर्ब्स की लिस्ट के अनुसार, जेफ़ बेज़ोस दुनिया के दूसरे सबसे अमीर शख़्स हैं. कोविड लॉकडाउन के दौरान उनकी कंपनी ने ख़ूब कमाई की. पिछले साल जेफ़ बेज़ोस की कुल संपत्ति 200 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गई थी.
जेफ़ बेज़ोस की इस घोषणा ने बेशक दुनिया को हैरान किया है, लेकिन निवेशकों पर इसका असर दिखाई नहीं दिया.
बीबीसी के नॉर्थ-अमेरिका टेक्नोलॉजी रिपोर्टर जेम्स क्लेटन ने लिखा है, 'लोग अगर यह सोच रहे हैं कि जेफ़ बेज़ोस के बिना कंपनी कैसे चलेगी, तो इसका सीधा जवाब है कि उन्होंने कंपनी को अलविदा नहीं कहा है, उनका सिर्फ़ पद बदला है और वे अब भी कंपनी में बड़ी ताक़त रखते हैं.'
कंपनी में जेफ़ बेज़ोस की जगह लेने वाले हैं एंडी जैसी जो फ़िलहाल अमेज़न के 'क्लाउड कम्यूटिंग बिज़नेस' का नेतृत्व कर रहे हैं.
कंपनी के कर्मचारियों को लिखे एक पत्र में जेफ़ बेज़ोस ने लिखा है कि "एंडी को सब जानते हैं. जितना वक़्त मैंने इस कंपनी को दिया है, वे भी उतने समय से कंपनी में हैं. वे एक बढ़िया लीडर हैं और उन पर मुझे पूरा भरोसा है."
बीबीसी संवाददाता जेम्स क्लेटन लिखते हैं कि "एंडी जैसी अमेज़न की लोकप्रिय होती क्लाउड बिज़नेस डिवीज़न को संभालते हैं. उनका कंपनी की टॉप-पॉज़िशन पर आना यह बताता है कि अमेज़न के लिए क्लाउड कम्यूटिंग बिज़नेस कितना महत्वपूर्ण है."
एंडी जैसी कौन हैं?
एंडी अमेज़न वेब सर्विसेज़ यानी एडब्ल्यूएस के चीफ़ हैं. जेफ़ बेज़ोस के बाद एंडी अमेज़न के चीफ़ एग्ज़ेक्यूटिव ऑफ़िसर यानी सीईओ होंगे.
53 वर्षीय एंडी जैसी ने 1997 अमेज़न कंपनी जॉइन की थी. उससे पहले उन्होंने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से एमबीए किया था.
एक इंटरव्यू में एंडी ने बताया था कि "मई 1997 का वो पहला शुक्रवार था, जब मैंने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की आख़िरी परीक्षा दी, और उसके दो दिन बाद यानी सोमवार को मैंने अमेज़न जॉइन कर ली थी. तब मुझे नहीं पता था कि वहाँ मेरा काम क्या होगा या मुझे क्या पद मिलेगा, लेकिन उस दिन अमेज़न में जो लोग मिले, मेरे लिये वो महत्वपूर्ण थे."
andy jassy from twitter
एंडी ने इलाना कैपलान से शादी की. उनके दो बच्चे हैं. वे ख़ुद को खेलों और संगीत का शौकीन बताते हैं.
साल 2006 में एंडी ने 'अमेज़न वेब सर्विसेज़' की स्थापना की थी, जिस प्लेटफ़ॉर्म को आज दुनिया के लाखों बिज़नेस इस्तेमाल करते हैं. अमेज़न वेब सर्विसेज़ का मुक़ाबला माइक्रोसॉफ़्ट के अज़यूर और अल्फ़ाबेट के गूगल क्लाउड से रहता है.
एंडी सोशल मीडिया पर बहुत कम सक्रिय हैं. कुछ ही मौक़ों पर उन्हें ट्विटर यूज़ करते देखा गया.
वे इनोवेशन को तवज्जो देते हैं. जेफ़ बेज़ोस उनपर भरोसा करने की बात कह चुके हैं और ताज़ा घोषणा के अनुसार, जल्द ही एंडी उनकी जगह लेंगे.
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि 'लोगों को अमेज़न की घोषणा के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. जेफ़ अब भी बड़ी पावर में हैं. वे कंपनी के एग्ज़ेक्यूटिव चेयरमैन रहेंगे.'
जेफ़ बेज़ोस क्या करने वाले हैं?
उन्होंने ये तो स्पष्ट कर दिया है कि 'वे रिटायर होने वाले नहीं हैं.'
उन्होंने ये भी कहा है कि 'वे अमेज़न के अन्य प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ायेंगे और उन पर ध्यान देंगे.'
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, जेफ़ 'डे-1 फ़ंड' नामक मुहिम को बढ़ावा देने वाले हैं. सितंबर 2018 में इसकी घोषणा की गई थी. इसका मक़सद बेघर लोगों को मदद पहुँचाना और ग़रीब परिवारों के बच्चों के लिए प्री-स्कूल तैयार करना है.
बेज़ोस अपनी स्पेस कंपनी 'ब्लू ओरिजन' को भी आगे बढ़ाना चाहते हैं जो फ़िलहाल ऐसे रॉकेट सिस्टम को टेस्ट कर रही है जिसकी मदद से लॉन्च व्हीकल को एक से ज़्यादा बार इस्तेमाल किया जा सके.
जेफ़ बेज़ोस ने पिछले साल यह शपथ ली थी कि वे उन वैज्ञानिकों, कार्यकर्ताओं और संस्थाओं की मदद करेंगे जो पर्यावरण को बचाने का काम कर रहे हैं. जेफ़ इस दिशा में भी काम करना चाहते हैं.
इनके अलावा, द वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार, जिसे बेज़ोस ने साल 2013 में ख़रीदा था, उसे भी वे तक़नीक की मदद से नई ऊंचाईयों तक ले जाना चाहते हैं. इस बारे में जेफ़ बेज़ोस कई मौक़ों पर बात भी करते रहे हैं. (bbc.com)
दुबई, 3 फरवरी | संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भविष्य में कोविड-19 वैक्सीन बनाने की अपनी क्षमता का निर्माण कर रहा है, और देश का रुख इसे उतना ही समर्थन प्रदान करने का है जितना कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कर सकता है। यूएई हेल्थ सेक्टर की आधिकारिक प्रवक्ता फरीदा अल होसानी ने यह बात कही। फरीदा ने मंगलवार को एक पैनल चर्चा के दौरान कहा, "यूएई से विभिन्न हितधारकों को काफी उम्मीदें हैं। हमारे नेतृत्व का रुख अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अधिक से अधिक सहायता प्रदान करना है। हालांकि, हम एक वैक्सीन निर्माता नहीं हैं और हम भविष्य में कोविड-19 वैक्सीन तैयार करने के लिए क्षमता का निर्माण कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि हम इस पर बातचीत कर रहे हैं कि यूएई विभिन्न देशों को वैक्सीन आपूर्ति नेटवर्क, बुनियादी ढांचे, साझा ज्ञान और अन्य विभिन्न साधनों के साथ कैसे समर्थन दे सकते हैं।
खलीज टाइम्स ने बताया कि यूएई की रणनीतिक प्राथमिकता विभिन्न वैक्सीन निर्माताओं के साथ वार्ता के माध्यम से लोगों के लिए वैक्सीन को जल्द से जल्द सिक्योर करना है।
अटलांटिक काउंसिल द्वारा आयोजित ऑनलाइन पैनल चर्चा में कॉरोनावायरस से निपटने को लेकर बहरीन नेशनल टास्कफोर्स के मनफ अलकहतानी और इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय के गवर्नमेंट चीफ नर्सिग ऑफिसर शॉशी गोल्डबर्ग भी शामिल हुए। (आईएएनएस)
-सहर बलोच
वर्ष 1983 में पसनी शहर में एक ट्रांसपोर्टर की दुकान पर दो सैनिक आकर रुके. उनमें से एक ने दुकान के मालिक से पूछा, "एक अरब शेख़ को पंजगूर ले कर जाना है? क्या आपके पास कोई अच्छी सी गाड़ी है?"
इसके जवाब में दुकान के मालिक, जिन्हें कुछ साल बाद बड़े हाजी के नाम से जाना जाने लगा, ने कहा, "हाँ, मेरी गाड़ी अच्छी है."
दुकान के मालिक ने अपने 31 वर्षीय बेटे हनीफ़ को गाड़ी लेकर अरब शेख़ को पंजगूर ले जाने के लिए भेज दिया.
आज इस घटना के लगभग 37 साल बाद, स्थानीय लोग 'बड़े हाजी' के उस बेटे को हाजी हनीफ़ के नाम से जानते हैं. वह पसनी में संयुक्त अरब अमीरात से आने वाले शेख़ों के रहने का पूरा प्रबंध भी करते हैं.
हाजी हनीफ़ संयुक्त अरब अमीरात से आने वाले शेख़ों के रहने का पूरा प्रबंध करते हैं.
जिस शेख़ के लिए गाड़ी चाहिए थी, उनका नाम शेख़ सुरूर बिन अल-नहयान था. वह अबू धाबी के हैं, उनका संबंध संयुक्त अरब अमीरात के छह शाही परिवारों में से एक अल-नहयान परिवार से है.
इस परिवार के बारे में कहा जाता है कि यह परिवार 'बनी यास' के वंशज हैं, जो 1793 से शासन करता आ रहा है. उस समय बस्टर्ड पक्षी के शिकार के लिए शेख़ सुरूर पसनी गए थे.
बस्टर्ड के बारे में पहले भी कई लेख लिखे जा चुके हैं, और ये सवाल भी उठाए जाते रहे हैं, कि आख़िर पाकिस्तान इसके शिकार के लिए अपने तीन प्रांतों, सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब में अलग-अलग जगह क्यों आबंटित करता है? इससे पाकिस्तान को क्या फायदा होता है? और यह सवाल भी कि क्या यह सिलसिला कभी ख़त्म होगा?
गाड़ियां
लेकिन इससे पहले कि हम इस सवाल का जवाब जानें, हम पसनी शहर के हाजी हनीफ़ की बात करते हैं. हाजी हनीफ़ इस साल फरवरी में शेख़ सुरूर के पसनी आगमन से पहले की सभी तैयारियों को पूरा करने में व्यस्त हैं.
उनका पूरा जीवन हर साल केवल एक सप्ताह या 10 दिनों के लिए पसनी आने वाले शेख़ों पर निर्भर होता है. इसी एक सप्ताह की यात्रा से पसनी के 30 और परिवार भी जुड़े हैं.
पसनी का अबू धाबी
बलूचिस्तान के तटीय क्षेत्र ग्वादर से लगभग एक घंटे की दूरी पर पसनी के पुराने एयरपोर्ट से पहले एक लंबी सड़क आती है, जिसके एक तरफ़ पानी है और दूसरी तरफ रेतीली ज़मीन है.
इस सड़क पर लगभग तीन किलोमीटर चलने के बाद, संयुक्त अरब अमीरात की नंबर प्लेट वाली एक जीप हमारे सामने आ कर रुकी और उसमें मौजूद ड्राइवर ने पूछा कि क्या हम हाजी हनीफ़ से मिलने आए हैं.
वहाँ से हम हाजी हनीफ़ के परिसर तक पहुँचे, जो आधुनिक शैली में बने हुए थे. ऐसा लग रहा था जैसे हम पसनी के रास्ते अबू धाबी पहुँच गए हैं.
एक साधारण से गेट से गुज़रने के बाद, बाएँ हाथ की तरफ़, कई नई और पुरानी गाड़ियाँ, ट्रक और पजेरो गाड़ियाँ खड़ी दिखाई दीं. दूसरी तरफ, ऊपर देखने पर एक सीढ़ी दिखाई दी, जहाँ से एक आदमी दो कबूतर ले कर नीचे आ रहा था.
पाकिस्तान
हमें एक गेस्ट हाउस में बिठा दिया गया, जहाँ टीवी पर संयुक्त अरब अमीरात का चैनल लगा हुआ था. उस पर बाज़ की रेस दिखाई जा रही थी और एक बाज़ के जीतने पर शायद अरबी में उसकी तारीफ़ की जा रही थी.
हाजी हनीफ़ के आते ही कमरे में इत्र की ख़ुशबू फैल गई. बैठते ही उन्होंने मुझे 1988 से ले कर 1990 के दशक में होने वाले शिकार अभियानों की तस्वीरें थमा दीं.
उनके मुताबिक, "1983 में, हमारा ट्रांसपोर्ट का काम, स्पेयर पार्ट्स की दुकान और एक पान का स्टॉल था. शेख़ साहब को गाड़ी किराए पर देने के बाद, वह फिर दोबारा हमारे ही पास आए. फिर मैं और मेरा परिवार उनसे (शेख़) जुड़ गए. हमारे अलावा, 10 या 11 लोग और हैं, जो बलूचिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में उनके रहने की व्यवस्था और देखभाल करते हैं."
अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो, ज़्यादातर शोधकर्ताओं के मुताबिक़ पाकिस्तान में बस्टर्ड के शिकार की नियमित शुरुआत 1973 में हुई. 1970 के दशक से, खाड़ी देशों से अरब शेख़ और शाही परिवार, बस्टर्ड के शिकार के लिए नियमित रूप से पाकिस्तान आने लगे थे.
इन दौरों को निजी दौरों का नाम दिया दिया गया, जिसका पाकिस्तान ने इन देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए भी उपयोग किया. उसी दशक में खाड़ी देशों में तेल उत्पादन की वजह से धन आया था और फिर देखते ही देखते सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से शेख़ निजी दौरों के लिए अधिक से अधिक पाकिस्तान आने लगे.
1983 में ही शेख़ सुरूर दोबारा आए और इस बार उन्होंने ख़ुद हाजी हनीफ़ को बुलाया. धीरे-धीरे उनकी हाजी हनीफ़ से दोस्ती हो गई.
पसनी में शेख ने बनाया घर
हाजी हनीफ़ कहते हैं, "फिर शेख़ ने मेरे घर में अपनी लगभग 20 गाड़ियाँ खड़ी कर दीं. ताकि वाहनों की सुरक्षा हो सके. हमारी ज़िम्मेदारी और बढ़ गई. शिकार के बाद वे अपनी गाड़ियों को वापस लेकर चले जाते थे. लेकिन अब कुछ गाड़ियाँ यहीं रहती हैं."
1984 में हाजी हनीफ़ ने उन्हें उसी शहर पसनी में अपना घर बनाने की सलाह दी.
"उस समय, ये लोग जंगलों में तंबू लगाते थे. धीरे-धीरे बलूचिस्तान की सरकार ने यह जगह आबंटित कर दी. शिकार करने के लिए भी और रहने के लिए भी. और फिर यह भी तय हुआ कि उनके आने पर उनका ख़्याल मैं रखूँगा."
वर्ष 1989 में, बलूचिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में आबंटन शुरू कर दिया. इस आबंटन के बाद, पसनी, पंजगूर और ग्वादर में संयुक्त अरब अमीरात से शेख़ आने लगे. झल झाओ (अवारान के पास के क्षेत्रों) को क़तर के शेख़ों को आबंटित किया गया और चाग़ी के क्षेत्र सऊदी अरब के शाही परिवार के लिए आबंटित हुए.
हाजी हनीफ़ ने कहा, "हमने यहाँ पैसे इकट्ठे किए. यहाँ से ग्वादर, तुर्बत और फिर क्वेटा दस्तावेज़ भेजे और मंज़ूरी मिल गई. उस समय नवाब अकबर बुगती बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री थे. वहाँ से आबंटन का आदेश लिया. इसके बाद घरों का यानी शेख़ के निवास स्थान का निर्माण शुरू हुआ. फिर हमने पेड़ लगाए. शेख़ नींबू और चीकू खाना बहुत पसंद करते हैं, इसलिए यहाँ वो पेड़ लगाए गए हैं."
इसी तरह, पंजगूर में हाजी ज़ाहिद, ग्वादर में शाय सिद्दीक़ और लाला नज़र के परिवार संयुक्त अरब अमीरात से आने वाले अन्य अरब शेख़ों की सुरक्षा और उनके रहने की व्यवस्था करते हैं. जिसके बदले उन्हें भुगतान किया जाता है और इस मेहमान नवाज़ी के बदले में शेख़ों ने क्षेत्र के निवासियों के लिए कुआं, पानी की सप्लाई के लिए पाइप, डिस्पेंसरी और स्कूल बनाए हैं.
पसनी में उस परिसर के बारे में जहाँ हम इंटरव्यू कर रहे थे, हाजी हनीफ़ ने कहा, कि सबसे पहले इस घर की दीवार बनाई गई थी. फिर उनकी गाड़ियों के लिए एक गैरेज बनाया गया. गैरैज के बाद हमने शेख़ से पूछा, कि क्या आपको कमरे चाहिए? उनकी सहमति से यहाँ पाँच से छह कमरे बनाए गए.
कई लोगों को मिला रोज़गार
केवल इस परिसर में अभी 25 लोग काम करते हैं, लेकिन जब शेख़ आते हैं, तो 35 लोग काम करते हैं. इस परिसर के बाहर, सभी को अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं.
एक कर्मचारी को केवल बस्टर्ड खोजने के लिए 35 हज़ार रुपए दिए जाते हैं. बाक़ी 35 अन्य लोगों को शेख़ के आने पर 50 हज़ार रुपए प्रति व्यक्ति तक, मछली लाने, नींबू के बाग़ की देखभाल करने, बाज़ की ट्रेनिंग करने और बाथरूम की सफ़ाई करने के लिए दिए जाते हैं.
हाजी हनीफ़ कहते हैं, "मेरे तीनों बेटे मेरी मदद करते हैं. एक बेटा गैराज की रखवाली करता है, एक बस्टर्ड ढूँढता है और तीसरा शेख़ के बॉडी गॉर्ड के तौर पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालता है. मैं घर का इंचार्ज हूँ. उनके आवास का ज़िम्मेदार हूँ और मूल रूप से उनका कर्मचारी हूँ."
हाजी हनीफ़ ने अपने सबसे छोटे बेटे से खजूर की प्लेट ले कर उन्हें हमारे सामने रखते हुए कहा, "यह सारी गतिविधि एक सप्ताह या 10 दिन चलती है और इस दौरान कई घर आबाद हो जाते हैं."
टेंट की तस्वीरें दिखाते हुए, हाजी हनीफ़ ने कहा, "1980 और 1990 के दशक में, हम सभी शिकार करने के लिए सुबह जल्दी निकल जाते थे. इसके बाद बाज़ को एक स्थान पर हवा में छोड़ा जाता. ज़्यादातर उनके लोग पहले ही यह पता लगा चुके होते हैं, कि बस्टर्ड किस जगह कितनी देर के लिए आता है.
"जैसे ही बाज को छोड़ा जाता, हमारी गाड़ियाँ उसके पीछे दौड़ती. अब सामने चाहे रेत हो या झाड़ियाँ, हमें गाड़ी उसी बाज़ के पीछे दौड़ानी होती हैं. और जैसे ही बाज़ बस्टर्ड को पकड़ लेता है, हम लोग भी उतर जाते हैं. टेंट में बैठ कर उसे पका कर खा लेते हैं."
अभी की स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा, "अब हम पहले से ही बस्टर्ड पकड़ कर रख लेते हैं, क्योंकि अब उनकी संख्या बहुत कम हो गई है."
उन्होंने ये भी बताया कि इसके लिए शेख़ रूस में पैसे लगा कर इस पक्षी की देखभाल और ब्रीडिंग (प्रजनन) की व्यवस्था भी कर रहे हैं. यह कहते हुए, हाजी हनीफ़ हमें पूरे परिसर का दौरा कराने के लिए खड़े हो गए.
"यहाँ हर काम करने के पैसे मिलते हैं'
जब हम रसोई में दाखिल हुए, तो वहाँ सफाई का काम चल रहा था और एक आदमी अपने सामने छह बड़े स्टोव की गैस की जाँच और सफ़ाई में व्यस्त था.
रसोई से निकल कर, हम बाईं ओर मुड़ गए, जहाँ एक पंक्ति से कमरे और उसके ठीक बगल में एक पिंजरा बना हुआ था, चार कमरों में कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन लगाई गई थी, दूसरी तरफ बड़े पिंजरे में दो आदमी एक बाज़ को पकड़े खड़ा था.
बाज़ की आँखों के ऊपर एक छोटा सा खोल चढ़ाया हुआ था और उसके सामने से एक कबूतर को हटाया जा रहा था.
दो ट्रेनर्स की ओर इशारा करते हुए, हाजी हनीफ़ ने कहा, "उनको केवल इस बाज़ के प्रशिक्षण के लिए, एक महीने के लिए यहाँ रखा जाता है. कबूतर को इस बाज़ के सामने उड़ा कर देखा जाता है, कि वह कबूतर को कितनी तेज़ी से दबोच सकता है. अगर बाज़ ऐसा करने में विफल रहता है, तो प्रशिक्षण जारी रहता है या फिर नए बाज़ को लाया जाता है. यहाँ हर काम के लिए भुगतान किया जाता है और हम स्थानीय लोगों को काम दिलाने की कोशिश करते हैं."
वहाँ से सामने ही एक बड़े से नारंगी कपड़े पर नींबू साफ़ किए जा रहे थे. और उसकी दूसरी तरफ बाग़ में एक माली पानी दे रहा था.
इसी बीच, हाजी हनीफ़ ने बताया कि अक्सर आस-पास तैनात सैनिकों की पत्नियाँ भी हमारा घर देखने आती हैं. अब हम लगभग 20 एकड़ के प्लाट के बीच में खड़े थे ,जब हाजी हनीफ़ ने पूछा, "हालाँकि यहाँ देखने के लिए क्या है?"
क्या यहाँ के लोगों पर इस शिकार और इसके बदले पैसे देने का कोई असर पड़ा है?
इस सवाल पर, हाजी हनीफ़ ने विभिन्न परियोजनाओं और उनके तहत बनने वाली चीज़ों को गिनवाना शुरू कर दिया.
"पसनी में कोई डिस्पेंसरी नहीं थी, तो शेख़ ने इसे बनवाया. उन्होंने कॉलेज के लिए बस की व्यवस्था की, गाँव में एक स्कूल खोला, पानी की सप्लाई दी और माड़ा में एक मस्जिद का निर्माण कराया. पसनी अस्पताल में एक बिल्डिंग का निर्माण कराया है, जो अब खंडहर बन चुका है. अब राज्य सरकार इसका कितना ध्यान रखती है, यह तो उन्हें ही बेहतर पता होगा."
मैंने पूछा, कि "क्या आप चाहते हैं, कि आपके बच्चे भी इसी तरह शेख़ की देखभाल करें, जैसे आप इतने सालों से करते आए हैं?"
"नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता हूँ. मैं कहता हूँ कि बच्चे अपना व्यवसाय करें. अभी तो वे मेरा हाथ बँटाते हैं. लेकिन मेरा यह मन नहीं है."
हाजी हनीफ़ यह बात कहने के बाद एक पल के लिए रुक गए, क्योंकि उनकी आवाज़ अचानक से भारी हो गई थी. "वो अपना भविष्य सँवारे, बिज़नेस करें, कारोबार करें. मैं तो बूढा हो गया हूँ उनके साथ. वो तो बूढ़े नहीं हुए हैं. "
उन्होंने कहा कि यहाँ ईरानी सामान आता है, कराची से सामान आता है और इसे बेचा जाता है. इसी सामान के ख़रीदने और बेचने से कारोबार चलता है.
"लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है, कि शाही परिवार का आना हमारे लिए, हमारे क्षेत्र और देश के लिए बहुत अच्छा है. जब वे आते हैं, हम सारा सामान इन्हीं बाज़ारों से ले जाते हैं. हमने सभी तैयारियाँ पूरी कर ली हैं. अब केवल शेख़ साहब का इंतजार है, कि वह कब आएँगे." (bbc.com)
दुनिया भर में मनोरंजन जगत की हस्तियों के सोशल मीडिया पोस्ट्स पर नज़र डालें, तो मोटे तौर पर उन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है.
कई हस्तियाँ सोशल मीडिया पर विवादों से बचने में यक़ीन रखती हैं. ये लोग अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सिर्फ़ अपनी फ़िल्मों या गानों आदि को लेकर बात करते हैं.
लेकिन एक दूसरा वर्ग उन हस्तियों का है, जो विवादित हो या ग़ैर विवादित, हर मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखने में यक़ीन रखती हैं.
पॉप म्यूज़िक की दुनिया की सबसे बड़ी हस्तियों में से एक रिहाना दूसरे वर्ग में शामिल हस्तियों में गिनी जा सकती हैं.
रिहाना के ट्विटर प्रोफाइल पर नज़र डालें, तो 32 वर्षीय रिहाना ने घरेलू हिंसा, एलजीबीटीक्यू, डोनाल्ड ट्रंप से लेकर म्यांमार और भारत में किसान आंदोलन जैसे विषयों पर ट्वीट किया है.
किसान आंदोलन पर ट्वीट करने के बाद से रिहाना के ट्विटर फॉलोअर्स की संख्या में एक मिलियन का इज़ाफ़ा होता दिख रहा है. रिहाना ने जब इस मुद्दे पर ट्वीट किए थे तो उनके सिर्फ़ 100 मिलियन फ़ॉलोअर थे, लेकिन इस ट्वीट के बाद ये संख्या बढ़कर 101 मिलियन हो चुकी है.
TWITTER/RIHANNA
17 साल की उम्र में करियर का आग़ाज़
पॉप म्यूज़िक इंडस्ट्री में रिहाना की शुरुआत ही काफ़ी धमाकेदार रही. बचपन से मडोना, बॉब मारले और जैनेट जैक्सन जैसे सितारों को देखकर बड़ी हुईं रिहाना ने अपना पहला 'अलबम म्यूज़िक ऑफ़ द सन' और 'अ गर्ल लाइक मी' साल 2005 में रिकॉर्ड किए.
कैरिबियाई म्यूज़िक से प्रभावित ये दोनों अलबम बिलबॉर्ड 200 चार्ट के टॉप टेन लिस्ट में शामिल हुए.
लेकिन इसके बाद साल 2007 में 'गुड गर्ल गॉन बैड' अलबम के साथ रिहाना दुनिया भर में छा गईं. उनके सिंगल अंब्रेला की वजह से रिहाना को उनका पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला.
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अंब्रेला लगातार 11 हफ़्तों तक यूके सिंगल्स चार्ट पर पहले स्थान पर बना रहा. फिर 2009 में अपने सिंगल रशियन रौले की वजह से 2000 के दशक की 100 हॉट फीमेल आर्टिस्ट्स में उन्होंने दूसरे स्थान पर जगह बनाई.
मात्र 10 साल लंबे म्यूजिक करियर में रिहाना ने आठ ग्रैमी अवॉर्ड और 14 बिलबोर्ड म्युजिक अवॉर्ड्स जीते हैं. इसके साथ ही रिहाना के 14 गानों ने बिलबोर्ड हॉट 100 लिस्ट में सबसे तेज़ जगह बनाने का रिकॉर्ड बनाया था.
दुनिया भर में रिहाना ने 54 मिलियन अलबम और 210 मिलियन गाने बेचने का रिकॉर्ड बनाया है. अंतरराष्ट्रीय दौरों के मामले में भी रिहाना का जलवा कायम है. वह पहली ऐसी आर्टिस्ट हैं जिन्होंने लंदन के ओटू एरीना में 10 कंसर्ट किए हैं.
— Rihanna (@rihanna) February 25, 2019
म्यांमार पर भी किया ट्वीट
रिहाना के एक ट्वीट ने दुनियाभर में भारत के किसान आंदोलन को चर्चा का विषय बना दिया है. उनके बाद अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस और ग्रेटा थनबर्ग समेत कई हस्तियों ने इस मुद्दे पर बात की. भारत में कई हस्तियों ने इस ट्वीट के लिए रिहाना का शुक्रिया अदा किया है.
लेकिन तमाम ट्विटर यूज़र्स, जिनमें पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल भी शामिल हैं, ने इस ट्वीट को लेकर रिहाना की आलोचना की है.
रिहाना ने भारत में जारी किसान आंदोलन पर ट्वीट करने के एक घंटे के भीतर ही एक अन्य दक्षिण एशियाई देश म्यांमार में जारी राजनीतिक उथलपुथल पर भी ट्वीट किया है.
रिहाना ने लिखा है, "म्यांमार मेरी प्रार्थनाएँ आपके साथ हैं."
Quote of the Day, by @TiranaHassan
— Human Rights Watch (@hrw) February 1, 2021
The situation in #Myanmar requires an urgent response from the international community. https://t.co/EwljHjpIo5 pic.twitter.com/h4s8yszK7d
इससे पहले रिहाना को कुछ भारतीय ट्विटर यूज़र्स की ओर से म्यांमार पर नहीं बोलने को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा था.
लेकिन ये पहला मौक़ा नहीं है, जब रिहाना को अपने विचारों की वजह से दुनिया भर में विरोध का सामना करना पड़ा हो.
इससे पहले वह अमेरिकी प्रांत इंडियाना के रिलीजियस रेस्टोरेशन एक्ट को लेकर भी अपने विचार रख चुकी हैं. वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इमिग्रेशन नीतियों की आलोचना को लेकर भी चर्चा में रह चुकी हैं.
The faces of history makers, boundary breakers, and WINNERS!! CONGRATULATIONS to you both, and mostly to the American people!! So much work to do, so much hurt to undo! Let’s GO! ????????
— Rihanna (@rihanna) November 8, 2020
I’m so proud of you America! #VicePresident #President46 pic.twitter.com/RIxrFcKE15
साल 2018 में रिहाना ने स्नैपचैट द्वारा उनके साथ हुई घरेलू हिंसा का मज़ाक बनाए जाने के विरोध में बयान दिया था, जिस पर स्नैपचैट की ओर से माफ़ी माँगी गई थी.
इसके अलावा साल 2020 रिहाना को फेंटी लॉन्जरी फैशन शो के दौरान इस्लामिक आयतों का इस्तेमाल करने के लिए माफ़ी भी माँगनी पड़ी थी.
यही नहीं साल 2013 में रिहाना ने अबू धाबी में एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. अपने इस टूर के दौरान रिहाना को एक मस्जिद में अनुमति लिए बगैर आपत्तिजनक तस्वीरें खिंचवाने पर मस्जिद से निकल जाने का आदेश दिया गया था.
लेकिन सोशल मीडिया पर रिहाना को उन युवा हस्तियों में गिना जाता है, जो विरोध की परवाह किए बग़ैर खुलकर अपने दिल की बात कहना पसंद करती हैं. (bbc.com)
अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने ट्वीट करके भारत के किसान प्रदर्शनों पर टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा है कि दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला हुआ है.
I’m grateful for AOC speaking vulnerably about the trauma she experienced at the Capitol insurrection but I’m so angry that she has to — that there has been ZERO accountability, that no members of Congress have been expelled. It’s disgraceful and shameful. pic.twitter.com/LNJL7VtT5E
— Meena Harris (@meenaharris) February 2, 2021
It’s no coincidence that the world’s oldest democracy was attacked not even a month ago, and as we speak, the most populous democracy is under assault. This is related. We ALL should be outraged by India’s internet shutdowns and paramilitary violence against farmer protesters. https://t.co/yIvCWYQDD1 pic.twitter.com/DxWWhkemxW
— Meena Harris (@meenaharris) February 2, 2021
उन्होंने लिखा, “यह कोई संयोग नहीं है कि एक महीने से भी कम समय पहले दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र पर हमला हुआ था और अब हम सबसे बड़ी आबादी वाले लोकतंत्र पर हमला होते देख रहे हैं. यह एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. हम सभी को भारत में इंटरनेट शटडाउन और किसान प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों की हिंसा को लेकर नाराज़गी जतानी चाहिए.”
मीना हैरिस ने अमेरिका के कैपिटल हिल में हुई हिंसा और भारत में किसान आंदोलन का ज़िक्र करते हुए कई ट्वीट किए हैं. उन्होंने चेताते हुए कहा है कि दुनिया में हर जगह पर लोकतंत्र को ख़तरा है और ‘एकता’सच से शुरू होती है.
उन्होंने एक ट्वीट मे लिखा कि ‘युद्धप्रिय राष्ट्रवाद अमेरिकी राजनीति में एक प्रबल ताक़त है जैसा कि भारत या कहीं ओर है. इसको तभी रोका जा सकता है अगर लोग इस हक़ीक़त को लेकर जाग जाएं कि फ़ासीवादी तानाशाह कहीं जाने वाले नहीं हैं.’
किसान प्रदर्शनों पर पॉप सिंगर रिहाना और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग भी ट्वीट कर चुकी हैं. (bbc.com)
कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए बार और रेस्तरां बंद रहे. ऐसे में, बीते साल जर्मन लोगों ने बहुत कम बीयर खरीदी. जर्मन ब्रूइंग संघ का कहना है कि विश्व युद्ध के बाद बिक्री में इतनी गिरावट नहीं देखी गई.
जर्मन सांख्यिकी कार्यालय का कहना है कि जर्मनी में बीयर की बिक्री 2020 में एक साल पहले के मुकाबले 5.5 प्रतिशत कम रही. आंकड़े बताते हैं कि जर्मन ब्रूअरीज और डिस्ट्रीब्यूटर्स ने 8.7 अरब लीटर बीयर बेची. इस आंकड़े में अल्कोहल फ्री बीयर, माल्ट बेवरेज और विदेशों से आयात होने वाली बीयर शामिल नहीं है.
कोरोना महामारी
जर्मनी में हाल के सालों में बीयर की बिक्री कम हो रही है. इसके लिए स्वास्थ्य कारणों के अलावा कई और कारकों को जिम्मेदार माना जाता हैं. 1993 से तुलना करें तो जर्मन बीयर की बिक्री 22.3 प्रतिशत कम हो गई है. लेकिन बीते साल की गिरावट अभूतपूर्व है.
महीने दर महीने आंकड़ों में कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन का असर साफ दिखता है. मार्च से लेकर मई तक लॉकडाउन के कारण बार और रेस्तरां बंद रहे. इसके बाद नवंबर आते आते उन्हें फिर से बंद कर दिया गया. गर्मियों में जब लॉकडाउन में ढील दी गई तो बीयर की बिक्री में कुछ इजाफा हुआ. लेकिन ऐसे बड़े आयोजनों और समारोहों को संक्रमण के डर से रद्द करना पड़ा जिनमें बीयर की बड़ी खपत होती है. इनमें म्यूनिख का अक्टूबर फेस्ट मुख्य रूप से शामिल है.
निर्यात पर भी असर
जर्मन ब्रूअर्स एसोसिएशन का कहना है कि युद्ध के बाद वाले काल में मौजूदा स्थिति बहुत ही "नाटकीय और अभूतपूर्व" है. जो कंपनियां रेस्तरांओं और बड़े आयोजनों के लिए बीयर की आपूर्ति करती थीं, उन पर कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार पड़ी है. कहीं कहीं तो बिक्री में गिरावट 70 फीसदी तक है. उधर, किराना दुकानें और डिपार्टमेंट स्टोर खुले थे तो उन्हें बीयर सप्लाई करने वाली कंपनियों को ज्यादा घाटा नहीं हुआ. एसोसिएशन ने संघीय सरकार की तरफ से "लक्षित और निर्णायक" मदद की मांग की है.
जर्मन की ब्रूअरीज के लिए घरेलू बिक्री बहुत अहम हैं. उनकी 83 प्रतिशत बिक्री देश में ही होती है. लेकिन यूरोपीय देशों को होने वाले जर्मन बीयर के निर्यात में भी कमी आई है. 2020 में यह निर्यात एक साल पहले के मुकाबले 13.1 प्रतिशत कमी के साथ 77.82 करोड़ लीटर रहा.
वहीं यूरोपीय संघ से बाहर के देशों को होने वाला निर्यात 3.7 प्रतिशत बढ़कर 72.53 करोड़ लीटर हो गया. एके/एमजे (एपी, एएफपी)
वॉशिंगटन, 3 फरवरी| अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग मामले में डेमोकेट्रिक सांसदों और ट्रंप के वकीलों ने अपना-अपना कानूनी पक्ष रखा। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। गौरतलब है कि डेमोक्रेटिक सांसदों ने ट्रंप पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने पिछले महीने अमेरिकी संसद भवन (कैपिटल) पर धावा बोलने के लिए अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को उकसाया था। साथ ही डेमोक्रेटिक सांसदों ने अमेरिकी सीनेट से यह आग्रह भी किया था वह ट्रंप को दोषी ठहराए और उन्हें दोबारा पद ग्रहण करने से रोके।
दूसरी ओर, ट्रंप की लीगल टीम ने दलील दी है कि पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग का मामला पूरी तरह असंवैधानिक है क्योंकि वह पहले ही इस पद को छोड़ चुके हैं। बहरहाल, ट्रंप के खिलाफ महाभियोग मामले की सुनवाई अगले सप्ताह शुरू हो सकती है।
गौरतलब है कि अमेरिकी सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी बहुमत में है। अमेरिकी संसद भवन पर हिंसा के एक सप्ताह बाद और राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के कार्यकाल की समाप्ति के एक हफ्ते पहले 13 जनवरी को डेमोक्रेट्स ने दंगा भड़काने के लिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में वोट दिया था।
डोनाल्ड ट्रंप एकमात्र ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ दो बार महाभियोग का मामला चलाया गया है। अमेरिका का संविधान प्रतिनिधि सभा को महाभियोग चलाने का अधिकार प्रदान करता है।
महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से अमेरिकी कांग्रेस आरोप लगाती है और फिर राजद्रोह, रिश्वत, या अन्य उच्च अपराध और दुष्कर्म के लिए संघीय सरकार के किसी अधिकारी के खिलाफ सुनवाई शुरू करती है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 3 फरवरी (आईएएनएस)| दुनियाभर में कोरोनावायरस के कुल मामलों की संख्या 10.38 करोड़ के पार पहुंच गई है जबकि इस बीमारी से अब तक 22.5 लाख लोग जान गंवा चुके हैं। जॉन्सक हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान में वैश्विक मामलों की कुल संख्या 103,851,556 है और 2,252,034 लोगों की मौत हो चुकी है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 26,431,145 मामलों और 446,744 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
वहीं, कोरोना के 10,776,245 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, कोरना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (9,283,418), ब्रिटेन (3,863,757), रूस (3,842,145), फ्रांस (3,283,645), स्पेन (2,851,869), इटली (2,570,608), तुर्की (2,492,977), जर्मनी (2,239, 968), 2,239,968), कोलंबिया (2,114,597), अर्जेंटीना (1,943,548), मेक्सिको(1,874,092), पोलैंड (1,520,215), दक्षिण अफ्रीका (1,458,958), ईरान (1,231,416), यूक्रेन (1,266,464), पेरू (1,142,716) और इंडोनेशिया (1,099,687) हैं।
वर्तमान में कोरोना से मौतों के मामले में ब्राजील 226,309 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि मेक्सिको (159,533) तीसरे और भारत (154,486) चौथे स्थान पर है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (108,225), इटली (89,344), फ्रांस (77,383), रूस (72,982), स्पेन (59,805), ईरान (58,110), जर्मनी (58,276), कोलंबिया (54,576), अर्जेंटीना (48,426), दक्षिण अफ्रीका (44,946), पेरू (41,181), पोलैंड (37,476), इंडोनेशिया (30,581), तुर्की (26,237), यूक्रेन (24,100) और बेल्जियम (21,173) हैं।
-ललित मौर्य
लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था, जबकि दिल्ली में 102 और ढाका में 86.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रिकॉर्ड किया गया था
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ओपन एक्यू द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि लाहौर, दिल्ली और ढाका में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है। उनके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था, जबकि दिल्ली में 102 और ढाका में 86.5 रिकॉर्ड किया गया था।
रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया के 33 बड़े शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों से कहीं ज्यादा है, जो वहां रहने वालों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है।
यदि अध्ययन किए गए सभी 50 शहरों को देखें तो उनमें पीएम 2.5 का औसत स्तर 39 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जोकि डब्लूएचओ द्वारा जारी मानक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से करीब 4 गुना ज्यादा है। इन 50 शहरों की लिस्ट में 7 शहर भारत के भी हैं। इनमें दिल्ली (102), मुंबई (43.4), कोलकाता (52.1), बैंगलोर (27.1), चेन्नई (34.3), हैदराबाद (38.2) और अहमदाबाद (56.7) शामिल हैं।
दुनिया की 90 फीसदी आबादी पहले ही जहरीली हवा में सांस ले रही है, जबकि उनमें से केवल आधे यह जानते है कि जिस हवा में वो सांस ले रहे हैं वो कितनी जहरीली है। वायु प्रदूषण की यह समस्या दक्षिणी के शहरों में कहीं ज्यादा विकट है जोकि वहां रहने वाले सबसे कमजोर तबके पर सबसे ज्यादा असर डाल रही है।
उदाहरण के लिए दिल्ली को ले लीजिए जहां वायु में पीएम 2.5 का स्तर 102 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था जबकि इसके विपरीत न्यूयोर्क शहर में केवल 7.7 रिकॉर्ड किया गया था।
ऐसे में प्रदूषण को मॉनिटरिंग करने वाले सस्ते सेंसर्स काफी फायदा पहुंचा सकते हैं, जिनकी मदद से रियल टाइम में वायु गुणवत्ता के स्तर पर निगरानी रखी जा सकती है। कम लागत वाले यह सेंसर वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ों की जो कमी है उसे पूरा कर सकते हैं। इसकी मदद से ने केवल सरकार बल्कि आम नागरिक और शोधकर्ता भी वायु गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं। जिसकी मदद से वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
भारत में हर साल 1.16 लाख नवजातों की जान ले रहा है वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं। जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है।
स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते 2019 में भारत के 116,000 से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई थी, जबकि इसके कारण 16.7 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। वैसे भी देश में शायद ही ऐसा कोई शहर है जो इस प्रदूषण के असर से बचा है।
साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेवार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जिससे कोई नहीं बच सकता और न ही इससे भाग सकता है। ऐसे में बचने का सिर्फ एक तरीका है, जितना हो सके इसे कम किया जाए। (downtoearth.org.in)
भारत को श्रीलंका की राजपक्षे सरकार से झटका लगा है.
राजपक्षे सरकार अपने देश में पोर्ट निजीकरण के ख़िलाफ़ देशव्यापी आंदोलन के ख़तरे से जूझ रही है. ऐसे में उसने भारत के साथ साल 2019 में हुई एक पोर्ट डील को रद्द कर दिया है.
द इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, श्रीलंका ने कोलंबो पोर्ट पर भारत और जापान के लिए ईस्ट कंटेनर टर्मिनल विकसित करने के लिए एक समझौता किया था, जिसे अब उसने रद्द कर दिया है. इस पोर्ट में अडानी ग्रुप का बतौर इंवेस्टर शामिल था.
हालांकि, श्रीलंका ने भारत को एक दूसरा ऑफ़र ज़रूर दिया है. इसके तहत श्रीलंका ने वेस्ट कंटेनर टर्मिनल विकसित करने का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव में भारत के साथ जापान भी शामिल है.
सरकार का कहना- एक किसान ने दिल्ली बॉर्डर पर की आत्महत्या, किसान संगठनों ने कहा 10 ने ली जान
किसान संगठनों का दावा है कि किसान आंदोलन में प्रदर्शन के दौरान अभी तक दस किसानों ने अपनी जान ले ली. वहीं सरकार की ओर से कहा गया है कि अभी तक बॉर्डर पर एक ही किसान ने आत्महत्या की है.
द हिंदू की ख़बर के अनुसार, केंद्र सरकार का कहना है कि बीते साल सितंबर से दिसंबर के बीच दिल्ली सीमा पर प्रदर्शन कर रहे 39 किसानों के खिलाफ़ केस दर्ज किया गया था.
सरकार ने यह भी बताया कि दिल्ली पुलिस के अनुसार अभी तक दिल्ली सीमा पर हो रहे प्रदर्शन में एक शख़्स ने आत्महत्या कर ली थी.
हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के आंकड़ों के मुताबिक़, किसान आंदोलन में अब तक कम से कम 10 लोगों ने आत्महत्या की है. उनमें से कई ने तो अपने पीछे सुसाइड-नोट भी छोड़ा था, जिसमें उन्होंने काले क़ानून को अपने मरने की वजह बताया था. (bbc.com)
कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए ब्रिटेन के सरकारी अस्पताल एनएचएस के लिए 3.3 करोड़ पाउंड (तक़रीबन 3330 करोड़ रुपए) जुटाने वाले कैप्टन सर टॉम मूर का निधन हो गया है.
सौ साल के टॉम मूर का निधन कोरोना वायरस संक्रमण के कारण हुआ है.
रविवार को सांस लेने में तकलीफ़ के बाद उन्हें बेडफ़ोर्ड अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
कैप्टन मूर की बेटी हेना इंग्राम मूर ने बताया कि बीते कुछ हफ्तों से उनका निमोनिया का इलाज चल रहा था और बीते सप्ताह वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे.
कैप्टेन सर टॉम मूर
उनकी बेटी हेना इंग्राम मूर और लूसी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "बहुत दुख के साथ हमें बताना पड़ रहा है कि हमारे पिता कैप्टन सर टॉम मूर का निधन हो गया है. हमें इस बात की खुशी है कि हम उनके जीवन के आख़िरी क्षणों में उनके साथ रहे. हमने घंटों उनसे बात की. अपने बचपन के बारे में, अपनी मां से जुड़ी यादों के बारे में."
"बीता साल हमारे पिता के जीवन का बेहद उल्लेखनीय वक्त रहा. उन्होंने वो सब कुछ देखा जो उनके लिए एक सपने जैसा था. कुछ वक्त के लिए ही सही वो कई लोगों के दिलों में बस गए."
सेना में रह चुके कैप्टन टॉम मूर ने अपने 100वें जन्मदिन पर अपने गार्डन में 100 कदम चल कर ब्रिटेन के लोगों का दिल जीत लिया था.
कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवा की मदद के लिए उन्होंने 3.3 करोड़ पाउंड जुटाए थे. (bbc.com)
एलेक्सी नवेलनी को साढ़े तीन साल की सज़ा, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पर ज़हर देने का लगाते रहे हैं आरोप
मॉस्को की एक अदालत ने पैरोल की शर्तों का उल्लंघन करने के लिए एलेक्सी नवेलनी को साढ़े तीन साल जेल की सज़ा सुनाई है.
उन पर पिछले आपराधिक मामले में गिरफ्तारी के बाद मिली पैरोल की शर्तों के उल्लंघन का आरोप है.
एलेक्सी नवेलनी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के आलोचक हैं.
पिछले महीने रूस लौटने के बाद से ही नवेलनी हिरासत में थे. इससे पहले उन पर नोवीचोक नाम के ज़हरीले नर्व एजेंट से हमला हुआ था जिसके बाद जर्मनी में उनका इलाज हुआ था.
पुतिन के विरोधी एलेक्सी नवेलनी
वो पहले ही एक साल की सज़ा काट चुके हैं. ऐसे में उन्हें सुनायी गई कुल सज़ा में से इस एक साल को कम कर दिया जाएगा.
उन्हें सज़ा सुनाए जाने के बाद ही उनके समर्थकों ने एक विरोध रैली का आह्वान किया और अदालत के बाहर बड़ी संख्या में जमा होने की कोशिश की. लेकिन कुछ समय में दंगा-रोधी पुलिस दल ने पूरे इलाक़े को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, क़रीब तीन सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है.
नवेलनी के वकील ने कहा कि वे इसके ख़िलाफ़ अपील करेंगे. इस फ़ैसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर से भी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. यूरोपीय काउंसिल ने कहा है कि यह जजमेंट हर विश्वसनीयता की उपेक्षा करने वाला है.
ब्रिटिश विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने इस फ़ैसले को अनुचित बताया है. वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि वे इसे लेकर काफी परेशान थे.
वहीं रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों को अपनी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा, "आपको एक संप्रभु राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए."
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के आलोचक
पैरोल की शर्तों के मुताबिक़, नवेलनी को नियमित रूप से रूस की पुलिस को रिपोर्ट करना था और उन पर आरोप है कि उन्होंने इसका पालन नहीं किया.
नवेलनी को एक धोखाधड़ी केस में दोषी ठहराया गया है और जेल सर्विस का कहना है कि उन्होंने अपने ऊपर लगी पाबंदियों का उल्लंघन किया है.
वहीं नवेलनी हमेशा से कहते आए हैं कि उन पर सारे मुक़दमे राजनीति से प्रेरित हैं. रूसी जांच कमिटी ने भी उनके ख़िलाफ़ धोखाधड़ी के मामले में नया आपराधिक मुक़दमा शुरू किया है. उन पर कई एनजीओ को पैसा ट्रांसफर करने का आरोप है. इनमें उनका एंटी-करप्शन फाउंडेशन भी शामिल है.
लेकिन उनके वक़ीलों का कहना है कि नवेलनी पर जो भी आरोप लगे हैं वो बेतुके हैं. उनका दावा है कि रूस में अधिकारियों को पता था कि वे नर्व एजेंट के प्रभाव से उबर रहे हैं.
सज़ा सुनाए जाने से पहले अदालत को संबोधित करते हुए नवेलनी ने कहा कि इस मामले का इस्तेमाल विपक्ष को कमज़ोर करने और डराने के लिए किया जा रहा था. उन्होंने कहा कि "इसी तरह से वे काम करते हैं. लाखों लोगों को डराने के लिए वे किसी एक को जेल भेज देते हैं."
अपने ऊपर हुए नोवीचोक नर्व एजेंट के हमले के संदर्भ में उन्होंने कहा, "रूस की संघीय सुरक्षा सेवा (एफ़एसबी) का इस्तेमाल करके पुतिन ने मेरी हत्या का प्रयास किया. लेकिन मैं अकेला नहीं हूं. बहुत से लोगों को ये मालूम होगा और कुछ को अब."
उन्होंने कहा कि इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि वो किस तरह एक जियोपॉलिटिशन दिखने की कोशिश करते हैं लेकिन इतिहास में उसे ज़हर देने वाले के तौर पर जाना जाएगा.
17 जनवरी को जब नवेलनी रूस वापस लौटे तो उनके समर्थकों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में युवा शामिल हुए थे.
हालांकि क्रेमलीन नवेलनी पर हुए हमले में अपनी भागीदारी से इनक़ार करता है और विशेषज्ञों के उस निष्कर्ष को भी ग़लत बताता है जिसके मुताबिक़, नोवीचोक एक रूसी रासायनिक हथियार है, जिसका इस्तेमाल नवेलनी की हत्या के लिए किया गया था.
नवेलनी कौन हैं ?
एलेक्सी नवेलनी एक विपक्षी कार्यकर्ता है जिन्होंने भ्रष्टाचार के कई बड़े मामलों की जांच की है और रूस के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. उनके यूट्यूब चैनल पर पोस्ट वीडियो को अब तक सौ करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका है.
वो रूस की सबसे बड़े राजनीतिक दल पुतिन की पार्टी यूनाइटेड रशिया को ठगों और चोरों की पार्टी बताते हैं और उन्होंने हाल के सालों में कई फ़िल्में जारी कर उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.
कई सालों से नवेलनी रूस की राजनीति में अधिक पारदर्शिता की मांग और विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव में मदद करते रहे हैं. वो साल 2013 में मॉस्को के मेयर पद के लिए खड़े हुए थे और दूसरे नंबर पर आए थे. बाद में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की कोशिश की लेकिन आपराधिक मुक़दमों की वजह से उन पर रोक लगा दी गई. वो इन मुक़दमों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं.
अगस्त 2020 में नवेलनी साइबेरिया का दौरा कर रहे थे और एक और खोजी रिपोर्ट तैयार कर रहे थे. वो यहां स्थानीय चुनावों में विपक्षी उम्मीदवारों का प्रचार भी कर रहे थे. इस दौरान ही उन्हें ज़हर दिया गया. वो बाल-बाल बच गए.
बाद में उन्हें इलाज के लिए जर्मनी ले जाया गया जहां पता चला कि उन पर रूस में बने नर्व एजेंट नोविचोक से हमला किया गया था.
नवेलनी ने रूस की ख़ुफ़िया एजेंसियों पर ज़हर देने के आरोप लगाए. रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़एसबी के एक एजेंट को झांसे में लेकर हमले के बारे में जानकारियं भी जुटा लीं.
एक फ़ोन कॉल में जिसे नवेलनी ने रिकॉर्ड किया था और बाद में यूट्यूब पर पोस्ट भी किया था, एजेंट कोंस्टेंटिन कुदर्यावत्सेव ने उन्हें बताया था कि उनके अंडरपैंट में नोविचोक एजेंट रखा गया था.
रूस लौटना
उन्हें चेताया गया था कि रूस लौटना उनके लिए सुरक्षित नहीं होगा, लेकिन नवेलनी ने किसी की नहीं सुनी और कहा कि वो राजनीतिक प्रवासी बनना पसंद नहीं करेंगे. वो बर्लिन से मॉस्को लौट आए.
उन्हें एयरपोर्ट पर ही हिरासत में ले लिया गया था. (bbc.com)
वाशिंगटन, 3 फरवरी | अमेरिका ने कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति के हिस्से के रूप में सभी सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने वाले यात्रियों को मास्क का उपयोग अनिवार्य कर दिया है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा जारी नियम, हवाई जहाज, ट्रेन, सबवे, बसों, टैक्सियों और सवारी-शेयरों पर यात्रियों के लिए लागू होता है।
(आईएएनएस)
भारतीयों को एयर इंडिया की लंबी उड़ानों की आदत है, लेकिन जर्मन विमान सेवा लुफ्थांसा ने अपनी पहली सबसे लंबी उड़ान भरी. ये उड़ान किसी यात्री विमान की न होकर रिसर्चरों के लिए थी जो अंटार्टिका में रिसर्च करने गए हैं.
लुफ्थांसा के लिए ये रिकॉर्ड उड़ान थी, एयरबस 350-900 के साथ 13,600 किलोमीटर का सफर, जो 15 घंटे 36 मिनट में पूरा हुआ. ये विमान अलफ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों को लेकर हैम्बर्ग से अर्जेंटीना के फॉकलैंड द्वीप के पोर्ट स्टैनली हवाई अड्डे तक गया. 92 रिसर्चरों के लेकर दक्षिण अटलांटिक के द्वीप तक ये नॉनस्टॉप उड़ान जर्मन विमानन कंपनी के इतिहास में सबसे लंबी नॉनस्टॉप उड़ान थी. विमान पर सवार रिसर्चर और शोध नौका पोलरस्टर्न के क्रू सदस्य फॉकलैंड द्वीप पर अपने जहाज में सवार होकर रिसर्च के लिए जाएंगे. वहां वे दो महीने तक अंटार्टिक के समुद्र में मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए आंकड़े जुटाएंगे.
ब्रेमेन के अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के रिसर्चर पहले भी अपने आइसब्रेकर जहाज पोलरस्टर्न के साथ ध्रुवीय इलाकों में शोध करते रहे हैं. लुफ्थांसा के विशेष विमान से फॉकलैंड जाने की जरूरत कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई. इरादा रिसर्चरों को आम यात्रियों से अलग रखने का था ताकि वे संक्रमण लेकर उस इलाके में न पहुंचाएं. उड़ान से पहले सारे यात्रियों और लुफ्थांसा के पाइलट और अन्य क्रू सदस्यों को दो हफ्ते तक क्वारंटीन में रखा गया. उड़ान से पहले लंबी दूरी तक उड़ान भरने में सक्षम लुफ्थांसा के एयरबस जहाज को फ्रैंकफर्ट से हैम्बर्ग लाया गया. हैम्बर्ग हवाई अड्डे के लिए भी ये उड़ान उसके इतिहास की सबसे लंबी उड़ान थी.
ध्रुवीय रिसर्चरों के लिए लुफ्थांसा की यह उड़ान भले ही सबसे लंबी हो, लेकिन दुनिया में कई दूसरी एयरलाइंस भी हैं जो लंबी उड़ानें भरती रही हैं और इस समय भी सामान्य यात्री रूटों पर चल रही है. ऑस्ट्रेलिया की क्वांतास एयरलायंस ने अक्टूबर 2019 में न्यूयॉर्क से सिडनी की 16,200 किलोमीटर की उड़ान 19 घंटे 16 मिनट में पूरी की थी. सिंगापुर एयरलायंस की सिंगापुर से न्यूयॉर्क की सीधी फ्लाइट 15,255 किलोमीटर की है और उसके सफर में 18 घंटे 30 मिनट लगते हैं.
भारतीय विमान सेवा एअर इंडिया भी कई सालों से लंबी दूरी की उड़ानें चला रही है. नई दिल्ली से सैन फ्रांसिस्को की 12,330 किलोमीटर की उड़ान में साढ़े 16 घंटे लगते थे, लेकिन अब वह अटलांटिक रूट का इस्तेमाल कर करीब दो घंटे बचा रहा है, हालांकि इसकी वजह से दोनों शहरों की दूरी करीब 1,600 किलोमीटर ज्यादा हो गई. हाल में एयर इंडिया ने बंगलुरू-सैन फ्रांसिस्को और हैदराबाद-शिकागो रूट शुरू किया है. पिछले महीने एयर इंडिया की सैन फ्रांसिस्को-बंगलुरू की 14,000 किलोमीटर लंबी फ्लाइट को कैप्टेन जोया अग्रवाल के नेतृत्व में पूरी तरह महिला क्रू ने संचालित किया.
कोरोना महामारी ने जिंदगी के हर पहलू को अस्त व्यस्त कर रखा है. इससे अंटार्कटिक का शोध अभियान भी प्रभावित हुआ है. आम तौर पर रिसर्चर दक्षिण अफ्रीका या चिली होकर उस इलाके में पहुंचते हैं. इस समय कोरोना महामारी के कारण सामान्य विमान सेवाएं अस्तव्यस्त हैं. वापसी से पहले लुफ्थांसा का 16 सदस्यों वाला क्रू फॉकलैंड में दो दिनों तक क्वारंटीन में रहेगा और उसके बाद म्यूनिख लौटेगा. लुफ्थांसा का ये अभियान कर्मचारियों में इतना लोकप्रिय था कि कैप्टेन रॉल्फ उसाट के अनुसार 600 हॉस्टेसों ने साथ जाने के लिए अर्जी दी थी.
लुफ्थांसा के विशेष विमान से फॉकलैंड पहुंचने के बाद 50 पुरुषों और महिला वैज्ञानिकों की टीम अपने जहाज पोलरस्टर्न पर सवार होकर शोध के इलाके में जाएंगे और दो महीने तक डाटा जमा करेंगे. ये जगह दक्षिण सागर के अटलांटिक सेक्टर में दक्षिणी इलाके में है. पिछली बार रिसर्चर वहां 2018 में गए थे. तब से उनके द्वारा वहां लगाई गई मशीनें विभिन्न गहराइयों में समुद्र का तापमान मापती है. अब इन आंकड़ों को इकट्ठा कर वापस लाया जाएगा और वहां तैनात मशीनों में नई बैटरियां लगाई जाएंगी.
अभियान खत्म होने के बाद पोलरस्टर्न रिसर्चरों को इलाके से वापस लेकर फॉकलैंड पहुंचाएगा, जहां से वे वापस जर्मनी लौटेंगे. पोलरस्टर्न जहाज एक छोटे से रिसर्चर ग्रुप के साथ समुद्री मार्ग से अप्रैल के अंत में जर्मनी के गोदी नगर ब्रेमरहाफेन लौटेगा.
इस्लामाबाद, 2 फरवरी | पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एक यात्री वैन पलटने से कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई, जबकि 10 अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि वैन कराची की तरफ जा रही थी, जब सुबह घने कोहरे के कारण खराब दृश्यता के कारण क्वेटा-कराची राजमार्ग पर यह दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
घायल लोगों को पास के अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उनमें से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।
पांच बच्चों सहित शवों को पहचान के बाद परिजनों को सौंप दिया गया।
दुर्घटना से सड़क यातायात बाधित हुआ।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के रिपोर्ट अनुसार, पिछले साल बलूचिस्तान के राजमार्गो पर सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 198 लोगों की मौत हुई थी।
इन दुर्घटनाओं में से अधिकांश दुर्घटना क्वेटा-कराची और क्वेटा-झोब राजमार्गो पर हुई है। (आईएएनएस)
लुसाने, 2 फरवरी | अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने 25 नए आईओसी यंग लीडर्स को चुनने की मंगलवार को घोषणा की। इसमें भारत के ऋषव भौमिक भी शामिल हैं। 25 देशों और पांच महाद्वीपों से आने वाले, ये फयूचर्स लीडर्स साप्ताहिक सीखने के मॉड्यूल और नेतृत्व के अवसरों द्वारा समर्थित, स्थायी और खेल-केंद्रित सामाजिक व्यवसाय के मौके बनाएंगे।
इन 25 उम्मीदवारों का चयन 350 उम्मीदवारों में से किया गया है, जिनका कि खेलों के प्रति स्पष्ट जुनूनी पृष्ठभूमि है। इन उम्मीदवारों में 13 महिला और 12 पुरुष शामिल हैं।
फरवरी में शुरू हो रहे इस प्रोग्राम का मकसद प्रतिभाओं के नए पूल को तैयार करना है। इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागियों को चार वर्षो से भी अधिक समय तक 10,000 स्विस फ्रेंक सीड फंडिंग मिलेगा। (आईएएनएस)
बीजिंग, 2 फरवरी | स्थानीय समयानुसार 1 फरवरी के तड़के चीन द्वारा पाकिस्तान को दान स्वरूप दी गयी कोविड-19 की वैक्सीन इस्लामाबाद पहुंच गयी। यह चीन सरकार द्वारा विदेशों को दी गयी पहली खेप की वैक्सीन सहायता है। वैक्सीन ने पाकिस्तान सरकार को महामारी को पराजित करने की आशा दी है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मोहम्मद कुरैशी ने वैक्सीन हस्तांतरण की रस्म में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि चीन ने पाकिस्तान के कठिन वक्त पर पाकिस्तान को वैक्सीन दान की, जिससे पाक-चीन गहरी मैत्री प्रतिबिंबित हुई है। वे पाकिस्तान सरकार और पाक लोगों की ओर से चीन के प्रति आभार प्रकट करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान चीन ने पाकिस्तान में चिकित्सा विशेषज्ञ दल भेजा। चीन के अनुभव ने पाकिस्तान में महामारी रोकथाम कार्य को भारी मदद दी है।
पाकिस्तानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के कार्यवाहक प्रभारी अमीर इकराम ने कहा कि पाकिस्तान में टीकाकरण 3 फरवरी से शुरू होगा। फ्रंट लाईन चिकित्सकों को सर्वप्रथम चीनी वैक्सीन लगायी जाएगी।
पाकिस्तान स्थित चीनी राजदूत नोंग रोंग ने कहा कि चीन अपने वचन का पालन करेगा और दुनिया को हरसंभव सहायता देगा। पाकिस्तान चीन सरकार द्वारा वैक्सीन सहायता देने वाला पहला देश है। पाकिस्तान चीन का घनिष्ठ दोस्त है। चीन आशा करता है कि भविष्य में पाकिस्तान के साथ और अधिक सहयोग करेगा, ताकि और ज्यादा लोग इससे लाभ पा सकें। (आईएएनएस)
जिनेवा, 2 फरवरी | फीफा अध्यक्ष जियानी इन्फेंटिनो ने कहा है कि 2022 में कतर में होने वाले फीफा विश्व कप के दौरान स्टेडियम दर्शकों से भरे रहेंगे। इन्फेंटिनो ने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, " मैं बेहद आश्वस्त हूं कि यह अविश्वसनीय होगा, वैसे ही जादू होगा, दुनिया को एकजुट करेंगे। हम वहीं होंगे जहां हमें होना है।"
फीफा विश्व कप 2022 का आयोजन 21 नवंबर से 18 दिसंबर तक होगा।
इन्फेंटिनो ने साथ ही यह भी घोषणा की कि फीफा कोविड-19 टीके, उपचार और निदान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ अपने अभियान में शामिल हो रहा है।
इन्फेंटिनो ने कहा, " हम सभी को कोरोनोवायरस के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका निभानी होगी। हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भी यह कह रहे हैं कि वे दुनिया भर में टीके, उपचार और परीक्षणों की पहुंच के संबंध में सुनिश्चित करें।" (आईएएनएस)
बीजिंग, 2 फरवरी | आम जीवन में यह सिद्धांत बहुत लोकप्रिय है कि मोबाइल फोन हमारी बातचीत को गुप्त रूप से सुनते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। स्मार्टफोन द्वारा निगरानी किए जाने के बारे में व्यक्तिगत अनुभव साझा करने वाले पोस्ट अक्सर मीडिया में देखे जाते हैं फिर चाहे वह चीनी मीडिया हो या पश्चिमी मीडिया। चीन ने पिछले साल अक्टूबर में देश के पहले व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून के एक मसौदे का खुलासा किया, जिसने लोगों में गोपनीयता संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा की।
श्याओ उपनाम के एक इंटरनेट यूजर उनमें से एक हैं जो आश्वस्त हैं कि उनकी निजी बातचीत उनके फोन द्वारा रिकॉर्ड की गई है। श्याओ को इसकी आशंका तब हुई जब एक बार उनके दोस्त के माता-पिता ने उनसे विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बारे में फोन पर बातचीत की। बातचीत खत्म होने के मात्र दो घंटे बाद ही श्याओ के फोन पर अलीबाबा के एक ऐप पर विश्वविद्यालयों की कक्षाओं के विज्ञापन आने लगे। यह देखकर श्याओ को काफी हैरानगी हुई। बहुत याद करने पर श्याओ को समझ में आया कि यह सब फोन पर हुई बातचीत का नतीजा है।
जब श्याओ ने इस बात की जानकारी अपने दोस्तों को दी, तो उनमें से कई दोस्तों ने ऐसे ही मिलते-जुलते अनुभव के बारे में बताया। कई लोकप्रिय चीनी शॉपिंग, मैसेजिंग और वीडियो ऐप्स को गुप्त रूप से रिकॉडिर्ंग और निजी बातचीत का दुरुपयोग करने के रूप में देखा जाता है। वेइपो पर एक यूजर ने लिखा, एक दिन मेरी पत्नी ने फोन करके चिकन लाने की फर्माइश की। थोड़ी देर बाद जब मैंने अपने फोन पर एक वीडियो ऐप खोला तो उसमें मेरे लिए शुरूआती सभी वीडियो खाना पकाने वाले थे।
इन सभी अनुभवों को सुनकर ऐसा लगता है कि वाकई फोन हम पर पूरी नजर बनाए रखते हैं, लेकिन फोन में ऐप मॉनीटर होना, चिंता का विषय नहीं है। चीनी ऐप फर्म और सूचना सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार इस धारणा की पुष्टि के लिए कोई सबूत भी नहीं हैं।
शॉर्ट वीडियो ऐप टिकटॉक में कार्यरत तकनीकी विशेषज्ञ ली तोंगतोंग के अनुसार, तकनीकी ²ष्टिकोण से उपयोगकर्ताओं की रुचियों और वरीयताओं के बारे में उनकी बातचीत के माध्यम से जानना अन्य कानूनी साधनों की तुलना में प्रभावी नहीं है।
ली ने बताया कि अभी स्वचालित भाषण मान्यता के लिए एल्गोरिथ्म तकनीक अपने शुरूआती दौर में है। इसके अलावा रिकॉर्ड की गई गुप्त आवाज की खराब क्वालिटी के चलते उपयोगकर्ताओं की रोजमर्रा की बातचीत से कुछ डेटा निकाल पाना बेहद मुश्किल है।
शांगहाई स्थित सूचना सुरक्षा विशेषज्ञ एलन का भी यही मानना है कि यह निजी बातचीत की रिकॉडिर्ंग करना या किसी के फोन का डेटा चुराने के लिए बैक-एंड ऑपरेटिंग और कंप्यूटिंग की आवश्यकता होगी, जो कि आसान नहीं है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कंपनियों को उपयोगकर्ताओं के हितों को गोपनीयता संरक्षण के संदर्भ में निजता नीति का पालन करना जरूरी है। ऐसे में अगर इस तरह का घोटाला सामने आ जाए, तो कई नकारात्मक प्रभाव सामने आ सकते हैं, जैसे- यूजर्स का ऐप/कंपनी को छोड़ देना, शेयर की कीमतों में भारी गिरावट, इतना ही नहीं, कंपनी की साख पर बट्टा तक लगा सकती है।
ली के मुताबिक चीन के साइबर सुरक्षा कानून स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि नेटवर्क ऑपरेटरों को कानूनी जानकारी, न्याय और आवश्यकता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और सार्वजनिक रूप से व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, एक ऐप किसी ऐप स्टोर पर उपलब्ध होने से पहले सख्त समीक्षा और परीक्षण से गुजरता है।
एलन ने इस बात पर जोर दिया कि ऐप अपने उपयोगकर्ताओं की छवि के आधार पर ही विज्ञापन दिखाते हैं, जो उन सूचनाओं के माध्यम से बनाए जाते हैं जिन तक पहुंचने की अनुमति यूजर्स खुद देते हैं, जैसे कि उनकी संपर्क सूची, स्थान और फोटो।
फेसबुक डाटा लीक विवाद की वजह से सोशल नेटवकिर्ंग कंपनी फेसबुक को करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ। यूजर्स के डाटा को सुरक्षित न रख पाने की वजह से फेसबुक की काफी आलोचना हुई। फेसबुक डाटा लीक में शुरूआती जांच से पता चला कि थर्ड पार्टी ऐप्स को अनुमति देने की वजह से ही यह घटना संभव हो पाई।
लेकिन इन सब बातों को सोचकर यह करना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुछ सावधानी बरतकर हम अपने डेटा या निजी जानकारियों को लीक होने से आसानी से बचा सकते हैं। इसके अलावा यह सोचना कि सभी ऐप्स हमारे निजी डेटा चुराते हैं, सही नहीं होगा। (आईएएनएस)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
म्यांमार की सेना ने तख्तापलट कर देश की नेता आंग सान सू ची को हिरासत में ले लिया है. डीडब्ल्यू के रोडियोन एबिगहाउसेन कहते हैं कि म्यांमार में लोकतांत्रिक प्रयोग विफल हो गया है.
डॉयचे वैले पर रोडियोन एबिगहाउजेन का लिखा-
म्यांमार की सेना जब 2011 में देश की राजनीति से दूर होने लगी तो सब के मन में यही सवाल था कि सेना आखिर किस हद तक सत्ता को छोड़ेगी. आलोचकों ने सैन्य जनरलों को संदेह की नजर से देखा. उन्होंने इसे लोकतंत्र के लबादे में तानाशाही करार दिया था. वहीं आशावादियों को लगा कि एक नई ईमानदार कोशिश शुरू हो रही है और लोकतंत्र के लिए संभावनाएं पैदा हो रही हैं.
शुरुआती प्रगति
शुरू में सारे संकेत सकारात्मक दिख रहे थे. पूर्व जनरल और सुधारवादी राष्ट्रपति थीन सीन के नेतृत्व में सेना देश में नई संभावनाओं के लिए द्वार खोलने के प्रति गंभीर हुई. आंग सान सू ची को नजरबंदी से रिहा किया गया. उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के बहुत से दूसरे नेताओं को भी जेल से रिहा किया गया. प्रेस पर लगी पाबंदियों में भी ढील दी गई.
म्यांमार में 2015 में संसदीय चुनाव हुए. एनएलडी को भारी जीत मिली. सेना और उसकी समर्थक यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने हार स्वीकार की. इसमें बहुत ज्यादा जोखिम नहीं था. संविधान के अनुसार सेना के पास संसद में एक चौथाई सीटें रहेंगी और रक्षा मंत्रालय, सीमा सुरक्षा और गृह मंत्रालय भी सेना के अधीन होगा. फिर भी सेना ऐसे संकेत दे रही थी कि वह समझौता करने को तैयार है.
पहले जीत, फिर धक्का
एनएलडी ने 2015 के चुनाव में वैधता हासिल करने के बाद सेना को मात देते हुए आंग सान सू ची को स्टेट काउंसिलर के पद पर नियुक्त करने में कामयाबी हासिल की. यह पद प्रधानमंत्री पद के बराबर है लेकिन संविधान में इसका कोई उल्लेख नहीं है.
इसे संभव कर दिखाया एक वकील ने, जिनका नाम था को नी. वह सेना के कटु आलोचक थे और 2017 में यांगोन एयरपोर्ट के सामने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई. हत्या करने वाला व्यक्ति पकड़ा गया, लेकिन इस पूरी साजिश के पीछे मास्टरमाइंड कौन था, इसका पता नहीं चला. लेकिन माना जाता है कि सेना एनएलडी को यह संदेश देना चाहती थी कि हमें चुनौती मत देना. सेना खुद को देश की सुरक्षा और एकता का रखवाला मानती है. उसे यह मंजूर नहीं था कि कोई और खेल के नियम तय करे.
दूसरी तरफ, एनएलडी भी टकराव के रास्ते पर आगे बढ़ती रही. जनता को फायदा पहुंचाने वाले सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पार्टी ने संविधान में बदलाव करने पर अपनी ऊर्जा लगाई. सेना ने इसमें अड़ंगा लगाया.
सू ची और सशस्त्र सेनाओं के कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लैंग के बीच रिश्ते खराब होते चले गए. हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के सामने आंग सान सू ची की पेशी से भी कुछ नहीं बदला. रोहिंग्या लोगों के खिलाफ नरसंहार के मामले में आंग सान सू ची हेग की अदालत में गई थीं जहां उन्होंने म्यांमार की सेना का बचाव किया.
किस हद तक जाएगी सेना
इसके बाद 2020 में म्यांमार में फिर आम चुनाव हुए और एनएलडी ने 83 प्रतिशत वोटों के साथ भारी जीत हासिल की. इस बार सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. निर्वाचित सरकार की तरफ से नियुक्त चुनाव आयोग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया. सेना ने म्यांमार की सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया जिस पर सुनवाई अभी चल रही है.
अब सेना ने तख्तापलट कर दिया है और एक साल तक सत्ता अपने हाथ में रखना चाहती है ताकि सुधार किए जा सकें. इसमें चुनाव आयोग के सुधार भी शामिल हैं. म्यांमार के संविधान का अनुच्छेद 417 तख्तापलट को उचित ठहराता है और अगर देश की संप्रभुता और एकता को खतरा हो तो सेना को सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति देता है. सेना इसे अपना अधिकार समझती है. लेकिन तख्तापलट का मतलब है कि सेना अपने इस अधिकार को बचाने के लिए लोकतंत्र को नष्ट कर सकती है.
तो सेना कितनी हद तक सत्ता छोड़ना चाहती है. जवाब है, किसी भी हद तक नहीं.
इस्लामाबाद, 2 फरवरी | पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहमद उमर सईद शेख की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जो 2002 में अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल के अपहरण और हत्या के मामले में मुख्य अभियुक्त है। अदालत ने शेख को मृत्यु कोठरी (डेथ सेल) से बाहर निकालकर सरकारी विश्राम गृह में स्थानांतरित करने के निर्देश जारी किए। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को शीर्ष अदालत की तीन जजों की पीठ ने सिंध हाईकोर्ट (एसएचसी) के खिलाफ सिंध सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। सिंध सरकार ने सिंध हाईकोर्ट के 24 दिसंबर, 2020 को सुनाए गए फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें शेख को रिहा करने का आदेश सुनाया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि शेख को जेल में एक बेहतर स्थान पर दो दिनों के लिए एक खुले कमरे में रखा जाए, और उसके बाद उसे विश्राम गृह में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जहां उसे सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
हालांकि ब्रिटिश मूल के शेख को स्मार्टफोन या इंटरनेट का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
पीठ ने उनके परिवार को सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक विश्राम गृह में उनसे मिलने और इस समयावधि के दौरान वहां रुकने की अनुमति दी।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने प्रांतीय सरकार की अपील को खारिज कर दिया। इस दौरान सिंध एडवोकेट जनरल (एजी) ने पीठ के सामने दलील दी कि शेख के साथी रेस्ट हाउस (विश्राम गृह) पर हमला कर सकते हैं और उसे भागने में मदद कर सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने अपने इस फैसले से पहले 28 जनवरी को इस मामले में चार आरोपी व्यक्तियों को बरी करने और रिहा करने का फैसला किया था, जिसमें शेख भी शामिल है।
अमेरिका ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वह वाशिंगटन में शेख के खिलाफ मुकदमा चलाने को तैयार है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल के 38 वर्षीय दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख कराची में धार्मिक अतिवाद पर अनुसंधान कर रहे थे और इस दौरान जनवरी 2002 में उनका अपहरण कर लिया गया था।
एक ग्राफिक वीडियो में उसका सिर कलम करते हुए देखा गया है, जिसे अमेरिका में वाणिज्य दूतावास को भेजा गया है। (आईएएनएस)
पेरिस, 2 फरवरी | फ्रांस में बीते 24 घंटे में कोरोना से 455 नई मौतें हुई हैं और 25 जनवरी के बाद से यह पहली दफा है, जब यहां दैनिक हताहतों की संख्या में इजाफा देखने को मिला है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों में इनका खुलासा हुआ है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, नए आंकड़े को शामिल करते हुए इस वक्त यहां मरने वालों की संख्या 76,657 पर बनी हुई है, जो अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको, भारत, ब्रिटेन और इटली के बाद सातवें नंबर पर है।
यहां एक दिन में अस्पतालों में एडमिट हुए मरीजों की संख्या बढ़कर 301 हो गई है और इसी के साथ यहां इस वक्त अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या 27,914 है।
यहां सोमवार को गहन चिकित्सा विभाग में गंभीर हालत में 70 मरीजों की भर्ती हुई है, जो रविवार को एडमिट हुए 45 मरीजों से अधिक है। यहां कुल 3,228 आईसीयू बेडों पर कोरोना के मरीज हैं।
सोमवार को 4,347 नए मामले दर्ज हुए हैं और इसके साथ ही संक्रमितों की कुल संख्या 3,260,308 हो गई है। (आईएएनएस)
अरुण लुईस
न्यूयार्क, 2 फरवरी | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रेस सचिव जेन साकी ने कैलिफोर्निया में महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनादर किए जाने की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए इस घटना पर चिंता व्यक्त की है।
सोमवार को साकी ने कहा कि हमें निश्चित रूप से गांधी के स्मारकों के अनादर पर चिंता होगी और जैसा कि आप जानते हैं, हम निश्चित रूप से इसे व्यक्त भी करेंगे। हम उनकी प्रतिमा के अनादर की घोर निंदा करते हैं और स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।
गांधी जी की प्रतिमा से तोड़-फोड़ करने के बाबत एक रिपोर्टर द्वारा बाइडेन के विचार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यदि राष्ट्रपति के विचारों को आप से साझा करने के लिए मेरे पास और भी कुछ होगा तो मुझे उसे आपसे से शेयर करने में ज्यादा खुशी होगी।
गौरतलब है कि डेविस में 26 जनवरी और 27 जनवरी की मध्य रात्रि को गांधी की मूर्ति को खंडित कर दिया गया था। उनके (प्रतिमा के) पैरों को काट दिया गया था और सिर काट दिया गया था। यह दूसरी बार है जब इस तरह से महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनादर हुआ है। पिछले वर्ष जून में भी इस तरह की घटना सामने आई थी जब उनकी प्रतिमा के निचले हिस्से पर अश्लील चित्र बना दिए गए थे और अपमानजनक शब्द लिखे गए थे।
द हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) ने बाइडेन प्रशासन से इस ताजा घटना को घृणा-अपराध (हेट क्राइम) के रूप में जांच करने के लिए कहा है। एचएएफ के कैलिफोर्निया स्थित एडवोकेसी डायरेक्टर ईशान कटिर ने कहा कि हम इस घृणास्पद अपराध की निंदा करते हैं और होमलैंड सिक्योरिटी और एफबीआई (फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) विभाग से इस घृणित अपराध की जांच करने की मांग करते हैं।
यहां एक बात यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय-अमेरिकियों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में बाइडेन ने इस समुदाय को यह आश्वासन दिया था कि वह न्याय विभाग में ऐसे नेताओं की नियुक्ति की जाएगी जो घृणा अपराधों के अभियोजन को प्राथमिकता देंगे।
राष्ट्रपति के घोषणापत्र में कहा गया है कि वह अपने न्याय विभाग को धर्म-आधारित घृणा अपराधों, और श्वेत राष्ट्रवादी आतंकवाद का सामना करने सहित घृणा अपराधों से निपटने के लिए अतिरिक्त संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने का आदेश देंगे।
हालांकि डेविस में हुई इस निंदनीय घटना के पीछे के लोगों की पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन गांधी जी का सम्मान करने का विरोध श्वेत राष्ट्रवादी समूहों से नहीं, बल्कि दूसरों से हो रहा है।
पिछले साल जब पुलिस की बर्बरता के खिलाफ ब्लैक लाइव्स मूवमेंट अपने चरम पर था तो उस दौरान भी वाशिंगटन में गांधी जी की एक प्रतिमा का अनादर किया गया था। प्रतिमा के नीचे उनके खिलाफ एवं भारत-विरोधी आपत्तिजनक व अपमानजनक बातें लिखी गई थीं।
पुलिस की बर्बरता के खिलाफ इन विरोध प्रदर्शनों को डेमोक्रेटिक पार्टी समर्थन दे रही थी। इसमें व्हाइट (श्वेत) सहित विभिन्न नस्लों के आंदोलनकारी व कट्टरपंथी वाम तत्व भी शामिल थे, जिन्होंने सर्वाजनिक संपत्ति को न सिर्फ नुकसान पहुंचाया बल्कि कई स्मारकों को भी तोड़ दिया।
कैलिफोर्निया की राजधानी सैक्रामेंटो में केसीआरए टीवी के अनुसार, रविवार को गांधी प्रतिमा स्थल पर दो विरोध प्रदर्शन किए गए। एक प्रतिमा के अनादर के खिलाफ था। इसमें प्रतिमा की सुरक्षा की मांग की गई थी। दूसरे वे लोग थे जो इस बात पर खुशी जाहिर कर रहे थे कि मूर्ति वहां से हटा दी गई है। (आईएएनएस)
अरुण लुईस
संयुक्त राष्ट्र, 2 फरवरी | संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर और कई भारतीय पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किए जाने के बारे में सोमवार को जब एक पाकिस्तानी पत्रकार ने सवाल किया तो दुजारिक ने कहा कि देखिए, मैं उस मामले के बारे में विशेष कुछ नहीं जानता हूं। लेकिन, मैं आपको इतना बता सकता हूं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक सार्वभौमिक स्वतंत्रता है और लोगों को अपने मन की बात कहने और खुलकर बोलने में सक्षम होना चाहिए।
गौरतलब है कि नई दिल्ली में 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद नोएडा पुलिस ने शशि थरूर, पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, विनोद के जोस (कारवां) और अन्य पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है।
28 जनवरी को दर्ज की गई एक प्राथमिकी में कहा गया है कि उन्हें 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान एक किसान की मौत से संबंधित ट्वीट करने और गलत खबर फैलाने के लिए नामजद किया गया है।
एडिटर्स गिल्ड ने यह कहते हुए उनके खिलाफ कथित ट्वीट के आधार पर मामला दर्ज किए जाने की भर्त्सना की है कि वे स्थापित पत्रकारिता प्रथाओं के अनुरूप हैं।
एडिटर्स गिल्ड के बयान में कहा गया है कि विरोध-प्रदर्शन के दिन प्रत्यक्षदर्शियों के साथ-साथ पुलिस की ओर से भी कई तरह की खबरें आ रही थीं। इसलिए पत्रकारों के लिए सभी विवरणों को रिपोर्ट करना स्वाभाविक था। यह स्थापित पत्रकारिता प्रथाओं के अनुरूप है। (आईएएनएस)
अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय जगत के नेताओं ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की तीखी आलोचना की है. लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या कार्रवाई करती है.
अमेरिका ने म्यांमार के सैन्य जनरलों पर दोबारा प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है. वहीं म्यांमार में सेना द्वारा तख्तापलट के 24 घंटे बाद भी मंगलवार को देश की नेता आंग सान सू ची के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया है. सोमवार को सेना ने सू ची, राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई नेताओं को हिरासत में लेने के बाद एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया था.
इस बीच मंगलवार को यूएनएससी ने इस मुद्दे पर एक आपात बैठक बुलाई गई है. यूएनएससी की बैठक सैन्य तख्तापलट के बाद पैदा हुए हालात और संभावित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर चर्चा करने के लिए होगी. सोमवार को सेना ने नोबेल पुरस्कार विजेता सू ची समेत कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था और देश के प्रमुख शहरों में सेना को तैनात किया गया है.
सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालने वाली ब्रिटेन की संयुक्त राष्ट्र दूत बारबरा वुडवार्ड ने पत्रकारों से कहा कि वे इस मुद्दे पर "रचनात्मक चर्चा करने की उम्मीद करती है." वुडवार्ड ने कहा, "परिषद उपायों पर ध्यान देगी, देश के नेताओं की रिहाई के विचार पर चर्चा करेगी." साथ ही उन्होंने कहा कि इस समय कोई विशेष उपायों पर चर्चा नहीं की जा रही है.
इस बीच म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून के वाणिज्यिक केंद्र में बैंक मंगलवार को दोबारा खुल गए. तख्तापलट के बाद खराब इंटरनेट कनेक्शन के कारण एक दिन पहले वित्तीय सेवा ठप पड़ गई थी. म्यांमार की राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद देश की स्थिति पर सोमवार को राष्ट्रपति भवन में एक बैठक भी की है.
अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सोमवार को म्यांमार के खिलाफ नए प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, वे भी तख्तापलट की आलोचना करने वाले वैश्विक नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हैं. बाइडेन ने सेना की कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा, "यह कदम देश में लोकतंत्र और कानून पर सीधा हमला है." बाइडेन ने कहा, "हम म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता के हस्तातंरण को पलटने के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाने के साथ वहां लोकतंत्र और कानून के शासन की बहाली के लिए समूचे क्षेत्र और विश्व में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करेंगे."
म्यांमार में बिना खून बहे तख्तापलट
म्यांमार की सेना ने रक्तहीन तख्तापलट में देश की सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया और सू ची, राष्ट्रपति और कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. इसी के साथ सेना ने देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया. सेना के जनरलों का कहना है कि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में धोखाधड़ी हुई थी. सू ची की पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. म्यांमार के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि नेताओं को चुनावी धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य ने चुनाव के परिणामों का सम्मान करने के लिए सेना से कहा है. साथ ही वैश्विक नेताओं ने सू ची की गिरफ्तारी पर गंभीर चिंता जताई है.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)