अंतरराष्ट्रीय
इस्लामाबाद, 7 फरवरी | पाकिस्तान सेना के हेलीकॉप्टर एक पर्वतारोही और उसकी टीम के दो सदस्यों का पता लगाने में नाकाम रहे हैं, जो दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी के2 के शिखर पर पहुंचने के प्रयास के दौरान लापता हो गए थे। मीडिया ने रविवार को यह जानकारी दी। समाचार पत्र डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, अभियान दल ने बताया, पाकिस्तानी पर्वतारोही अली सदपारा, आइसलैंड के जॉन स्नर्ोी और चिली से एमपी मोहर से पर्वतारोहण शुरू होने के बाद से संपर्क नहीं किया जा सका है। उन्होंने गुरुवार और शुक्रवार की मध्य रात्रि के2 पर चढ़ाई शुरू की थी।
अल्पाइन क्लब के अनुसार, तीन लापता पर्वतारोहियों का पता लगाने के लिए दो पाकिस्तानी सेना के हेलीकॉप्टरों ने शनिवार सुबह एक खोज और बचाव अभियान शुरू किया। उस समय ये पर्वतारोही 30 घंटे से अधिक समय तक संपर्क में नहीं थे।
एसएसटी शीतकालीन अभियान दल के टीम लीडर छांग डावा शेरपा ने कहा कि हेलीकॉप्टरों ने 'लगभग 7,000 मीटर तक की उड़ान भरी और वापस स्कार्दू लौट गए।'
डॉन न्यूज ने एक बयान में कहा, "दुर्भाग्य से, वे कुछ भी पता नहीं लगा सके।"
उन्होंने कहा, "पहाड़ में और यहां तक कि बेस कैंप में हालत खराब हो रही है। हम आगे की प्रगति की तलाश कर रहे हैं, लेकिन मौसम अनुकूल नहीं हैं।"
राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि लापता पर्वतारोही जीवित और ठीक होंगे। वहीं प्रधानमंत्री के विशेष सहयोगी जुल्फीकार बुखारी ने शनिवार रात को एक अपडेट में कहा कि इमरान खान और सेना प्रमुख जावेद बाजवा स्वंय मामले पर नजर रख रहे हैं। (आईएएनएस)
मनीला, 7 फरवरी | फिलीपींस के दवाओ डेल सुर प्रांत में रविवार को रिक्टर पैमाने पर 6.3 तीव्रता के भूकंप का झटका लगा। अधिकारियों ने कहा है भूकंप के कारण नुकसान की आशंका है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, फिलीपीन इंस्टीट्यूट ऑफ सीस्मोलॉजी एंड ज्वालामुखी (फिवोलक्स) ने कहा कि भूकंप दोपहर 12.25 बजे (स्थानीय समय) आया। इसका केंद्र मैग्सेसे शहर से 6 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में 15 मीटर की गहराई पर था। इंस्टीट्यूट ने कहा है कि इस भूकंप के बाद और झटके लग सकते हैं, जो कि नुकसान का कारण भी बनेंगे।
भूंकप का झटका दक्षिण कोटाबातो के कोरोनाडल शहर, कडापवन शहर और मिंडाना क्षेत्र के कई इलाकों में भी महसूस किया गया। भूकंप के बाद तत्काल किसी के हताहत होने या घायल होने की जानकारी नहीं मिली है।
'रिंग ऑफ फायर' के पास होने के कारण फिलीपींस में अक्सर भूकंप आते रहते हैं। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 7 फरवरी | बांग्लादेश पुलिस ने देश में चल रहे टेस्ट क्रिकेट मैच के दौरान कथित रूप से जुए में शामिल होने के आरोप में चटगांव में तीन भारतीय नागरिकों को हिरासत में लिया है।
तीनों की पहचान सुनील कुमार (35), चैतन्य शर्मा (33) और सनी सांगू (30) के रूप में की गई है।
बांग्लादेश और वेस्टइंडीज के बीच टेस्ट मैच के दौरान उन्हें शनिवार को जहुर अहमद चौधरी स्टेडियम से हिरासत में लिया गया था।
चटगांव में पहाड़टली पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी (ओसी), हसन इमाम ने आईएएनएस को बताया, "पूछताछ के दौरान तीनों ने पुलिस को बताया कि वे एक बिजनेस ट्रिप पर हैं, पुलिस यह सत्यापित कर रही है कि वे इसमें शामिल हैं या नहीं।"
हसन ने कहा, "कोविड -19 स्थिति के बाद, किसी भी दर्शक को क्रिकेट मैच के दौरान स्टेडियम में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। ये तीनों विशेष टिकटों के साथ प्रवेश करने में सफल रहे। पुलिस अब टिकटों के सोर्स की तलाश कर रही है।"
हसन ने कहा, "संदिग्ध गतिविधि के कारण एक सुरक्षा एजेंसी द्वारा सूचित जाने के बाद उन्हें पकड़ लिया गया।" (आईएएनएस)
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने जब इंदौर के मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट को शनिवार देर रात फ़ोन किया और उनसे सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर मुनव्वर फ़ारूक़ी के प्रोडक्शन वॉरंट पर लगाई गई रोक और अंतरिम ज़मानत से जुड़े आदेश को चेक करने के लिए कहा, तब जाकर कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी को इंदौर की जेल से रिहा किया गया.
इससे पहले दिन में इंदौर जेल प्रशासन ने फ़ारूक़ी को ये कहते हुए रिहा करने से इनकार कर दिया था कि उन्हें प्रयागराज के सीजेएम यानी मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट की ओर से उनके पहले जारी किए गए प्रोडक्शन वॉरंट को रोकने को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी मिली है.
अख़बार से बात करते हुए इंदौर सेंट्रल जेल के अधीक्षक, राजेश बांगडे ने कहा, "हमें पहले ये आदेश नहीं मिला था, हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इंदौर के मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट को फ़ोन किया और उन्हें वेबसाइट पर अपलोड किए गए आदेशों को चेक करने के लिए कहा और कहा कि अगर ये पहले ही अपलोड हो गए हैं, तो इनका अनुपालन करें. हमने साइट चेक की और देखा कि ये अपलोड थे, इसलिए रात 11 बजे छोड़ा गया."
इंदौर के तुकोगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले में मुनव्वर को अंतरिम ज़मानत देते हुए जस्टिस आर एफ़ नरीमन की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने उत्तर प्रदेश के जॉर्ज टाउन पुलिस स्टेशन में कॉमेडियन के ख़िलाफ़ दर्ज एक अन्य मामले के संबंध में जारी प्रोडक्शन वॉरंट पर रोक लगा दी थी.
हालांकि, शीर्ष अदालत के आदेश के एक दिन बाद, जेल विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि उन्हें प्रयागराज की सीजेएम अदालत से कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है, जिसमें उन्हें प्रोडक्शन वॉरंट पर रोक के बारे में बताया गया हो. (bbc.com)
कनाडा स्थिति पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ़) ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि उसने ना तो भारत में प्रदर्शनों से जुड़ी किसी गतिविधि का कॉर्डिनेशन किया और ना ही रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग या किसी दूसरी हस्ती से किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करवाने के लिए कुछ किया.
दिल्ली पुलिस ग्रेटा थनबर्ग की ओर से शेयर की गई टूलकिट को बनाने और हालात ख़राब करने की कथित साज़िश रचने के मामले में पीजेएफ़ की जांच कर रही है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, पीजेएफ़ के सह-संस्थापकों, मो धालिवाल और अनीता लाल की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उनकी संस्था के बारे में फैलाई जा रही जानकारी "कई मामलों में ग़लत है, और पूरी तरह से झूठ है."
उन्होंने कहा कि ये किसान आंदोनल के दौरान जान गँवाने वाले 200 से ज़्यादा लोगों से जानबूझकर ध्यान हटाने की कोशिश है. उन्होंने कहा कि हमने किसी को ट्वीट करने के लिए पैसे नहीं दिए हैं. (bbc.com)
स्टेफ़नी हेगार्टी
दुनिया को सबसे पहले कोरोना वायरस की चेतावनी देने वाले चीनी डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत को अब एक साल बीत चुका है.
डॉ वेनलियांग को दुनिया भर में एक हीरो की तरह चर्चा की गई. लेकिन डॉ. वेनलियांग की मौत भी आख़िरकार कोरोना वायरस से ही हुई.
चीन के सरकारी मीडिया में उनकी सेहत को लेकर कुछ विरोधाभासी ख़बरें आती रहीं.
लेकिन वुहान अस्पताल, जहां डॉ वेनलियांग काम करते थे और जहां उनका इलाज़ हुआ, ने पिछले महीने ही इस बात की पुष्टि कर दी है कि डॉ. वेनलियांग की मौत हो चुकी है.
34 वर्षीय डॉ. वेनलियांग ने दिसंबर 2019 के आख़िरी दिनों में अपने साथी डॉक्टरों को संक्रमण फैलने के बारे में सूचना दी थी.
इसके बाद डॉ. वेनलियांग वापस काम पर आ गए. ऐसा माना जाता है कि वह एक मरीज़ से संक्रमित हुए. कोरोना वायरस से संघर्ष करते हुए मरने से तीन हफ़्ते पहले तक वह एक अस्पताल में रहे.
डॉ. वेनलियांग ने पिछले साल जनवरी महीने में ही अस्पताल के बिस्तर से चीनी सोशल मीडिया साइट वीवो पर अपनी कहानी पोस्ट की थी.
अपनी बात लिखते हुए उन्होंने लिखा, "सभी को नमस्कार, मैं डॉक्टर ली वेनलियांग, एक ऑप्थेलमॉलोजिस्ट हूं और वुहान सेंट्रल हॉस्पिटल में काम करता हूं."
डॉ. वेनलियांग की कहानी से पता चला कि वुहान में सरकारी संस्थाओं ने कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के शुरुआती दौर में किस तरह ग़ैर-ज़िम्मेदारी से काम किया.
दिसंबर महीने में डॉ. वेनलियांग उस जगह काम कर रहे थे जहां से ये सब शुरू हुआ था. वह कोरोना के केंद्र में थे. दिसंबर महीने में ही उन्होंने वायरस संक्रमण के सात मामले देखे जो कि उन्हें सार्स जैसे लगे.
सार्स वो वायरस था जिसने साल 2003 में वैश्विक महामारी की शक्ल ली थी और दुनिया भर में कहर मचाया था.
ऐसा माना जाता है कि ये मामले वुहान के हुआनन सी फूड बाज़ार से जुड़े थे और सभी मरीज डॉ. वेनलियांग के अस्पताल में क्वारंटीन थे.
तीस दिसंबर को उन्होंने एक चैट ग्रुप में अपने साथी डॉक्टरों को एक संदेश भेजा. इसमें उन्होंने संक्रमण फैलने की चेतावनी दी और कहा कि वे सभी संक्रमण से बचने के लिए प्रोटेक्टिव क्लोदिंग कपड़े पहनें.
उस समय डॉ. वेनलियांग को पता नहीं था कि जो बीमारी सामने आई है, वो पूरी तरह नई बीमारी है. एक नया कोरोना वायरस है जो कि दुनिया पर कहर ढाने वाला है.
बीमार होने के बाद डॉ. ली ने लिखा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि सरकारी संस्थाएं ये क्यों कह रही हैं कि कोई भी स्वास्थ्यकर्मी बीमार नहीं हुआ है.
चार दिन बाद उन्हें पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो में बुलाया गया जहां उन्हें एक पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा गया. इस पत्र में उन पर 'ग़लत बयान देने' का आरोप लगाया जिसकी वजह से 'सामाजिक शांति बुरी तरह भंग' हुई है.
पत्र में लिखा था, "हम आपको चेतावनी देते हैं कि अगर आप इसी तरह जिद्दी बने रहेंगे और ये ग़ैरक़ानूनी गतिविधि जारी रखेंगे तो आप पर क़ानूनी कार्रवाई होगी. आप समझ गए?"
इसके नीचे डॉ. वेनलियांग की हैंडराइंटिंग में लिखा था - "हाँ, मैं समझता हूं."
वेनलियांग उन आठ लोगों में से थे जिन पर पुलिस "अफ़वाह फैलाने" के मामले में जांच कर रही थी.
जनवरी 2020 के अंत में डॉ. वेनलियांग ने इस पत्र की एक प्रति को सोशल मीडिया वेबसाइट वीवो पर पोस्ट किया और बताया कि उनके साथ क्या हुआ है.
जनवरी के शुरुआती हफ़्तों में वुहान के अधिकारियों का कहना था कि जो जानवरों के संपर्क में आए हैं, सिर्फ वही वायरस के शिकार हो सकते हैं. और इंसान से इंसान के बीच संक्रमण नहीं हो रहा है.
अब हम जानते हैं कि ये कितना ग़लत था. इसकी वजह से डॉक्टरों को संक्रमण से बचाने के लिए किसी तरह के दिशानिर्देश नहीं दिए गए.
लेकिन पुलिसकर्मियों से मुलाक़ात के एक हफ़्ते के अंदर ही डॉ. वेनलियांग ग्लूकोमा की शिकार एक महिला का इलाज कर रहे थे. उन्हें नहीं पता था कि वह महिला कोरोना वायरस से संक्रमित थी.
LI WENLIANG
"हम आशा करते हैं कि आप अब शांत हो सकते हैं और अपने व्यवहार की समीक्षा कर सकते हैं." पुलिस ने डॉ. वेनलियांग से जिस पत्र में हस्ताक्षर कराए, उसमें ये बात लिखी थी.
डॉ. वेनलियांग ने अपनी वीवो पोस्ट में बताया था कि दस जनवरी को उन्हें खांसी आने लगी. इसके अगले दिन उन्हें बुखार और दो दिन बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. उनके माता पिता भी बीमार पड़ गए और अस्पताल ले जाए गए.
इसके दस दिन बाद 20 जनवरी को चीन ने संक्रमण को एक इमर्जेंसी घोषित किया. और इसके दो महीने बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक महामारी की संज्ञा दी.
शुरुआती दौर में टेस्टिंग के नतीजे भरोसे योग्य नहीं थे. डॉ. वेनलियांग ने बताया था कि कोरोना वायरस के लिए कई बार उनकी जाँच की गई लेकिन हर बार जांच के नतीजे नकारात्मक आए.
डॉ ली वेनलियांग
इस पोस्ट में उन्होंने बताया "आज न्यूक्लेइक एसिड टेस्टिंग के नतीजे आए हैं और नतीजे सकारात्मक हैं. धूल छंट गई है, आख़िरकार डाइग्नोस हो गया."
उन्होंने अपनी पोस्ट के साथ कुत्ते की एक इमोजी लगाई जिसकी आँखें पलटी हुई थीं और जीभ बाहर की ओर थी.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस पोस्ट पर डॉ. वेनलियांग के सर्मथन में हज़ारों कमेंट आए.
एक यूज़र ने अपने देश के बारे में चिंता जताते हुए लिखा - "डॉ. वेनलियांग एक हीरो हैं, भविष्य में जब डॉक्टरों को संक्रामक बीमारियों से जुड़े संकेत नज़र आएंगे तो वे आगामी चेतावनी जारी करने से पहले ज़्यादा डरेंगे."
"सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए लाखों - करोड़ों डॉ. वेनलियांग वेनलियांग की ज़रूरत है."
इसके कुछ दिनों के अंदर सात फरवरी, 2020 को डॉ. वेनलियांग की मौत हो गई. वह सिर्फ 34 साल के थे.
सोशल मीडिया साइट वीवो पर डॉ. वेनलियांग की मौत की ख़बर फैलने के साथ ही दुख और गुस्से की लहर नज़र आई.
वीवो पर दो ट्रेंडिंग हैशटैग थे - "वुहान सरकार को डॉ. वेनलियांग से माफ़ी मांगनी चाहिए" और "हमें बोलने की आज़ादी चाहिए"
एक कमेंट में लिखा गया, "इसे मत भूलिएगा कि अभी आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस ग़ुस्से को मत भूलिएगा. हमें ऐसा दोबारा नहीं होने देना चाहिए."
चीनी सरकार ने इस ग़स्से और नाराज़गी से निपटने के लिए कई कमेंट्स को सेंसर कर दिया. लेकिन आने वाले समय में चीनी सरकार को ये समझ आया कि चीनी लोगों को इस व्यक्ति के लिए दुखी होने की ज़रूरत है.
एक साल बाद डॉ. वेनलियांग की मूल पोस्ट पर दस लाख से ज़्यादा कमेंट्स हैं. और लाखों लोग डॉ. वेनलियांग को जानने की उम्मीद में उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स तक पहुंचे हैं.
डॉ. वेनलियांग एक बच्चे के पिता थे और दूसरे के पिता बनने वाले थे, उन्हें फ्राइड चिकन और टीवी सोप पसंद थे.
लोग उनके पेज पर गुड मॉर्निंग से लेकर मौसम एवं अपनी ज़िंदगी से जुड़ी जानकारी देने पहुंचते हैं.
एक कमेंट में लिखा है, "गुड मॉर्निंग डॉ. वेनलियांग. कल मेरा अंग्रेजी का इम्तिहान है. उम्मीद है कि अच्छे नंबर आएंगे."
कुछ अन्य लोगों ने अपनी प्रेम कहानी और डिप्रेशन से संघर्ष जैसी व्यक्तिगत कहानियां साझा की.
लेकिन उनकी मौत के एक साल बाद चीन जिस तरह से वायरस को नियंत्रित करने में सफल हो रहा है, उसके बाद ज़्यादातर कमेंट्स में आशा की किरण नज़र आ रही है.
वुहान में ज़िंदगी सामान्य होती दिख रही है. लेकिन उन्होंने सोचा नहीं होगा कि ये वायरस दुनिया किस तरह बदलने जा रहा है. (bbc.com)
जेनेवा, 6 फरवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ट्रेडोस ए. ग्रेबियेसस ने कोविड महामारी के वैक्सीन-निर्माताओं से उत्पादन बढ़ाने का आह्वान किया है। साथ ही उन्होंने उन देशों से यह अपील भी की है कि जब उनके यहां टीकाकरण अभियान पूरा हो जाए तो वे अन्य देशों को भी कोविड वैक्सीन की आपूर्ति करें। शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोविड वैक्सीन विश्व के कई देशों में उपलब्ध नहीं हो पा रही है, इसलिए इसके नकारात्मक प्रभाव भी दिख रहे हैं। हालांकि विश्वभर में जितनी वैक्सीन लगाई गई है, उनकी संख्या संक्रमित लोगों की संख्या से अधिक हो गई है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, लगभग 130 देशों के 2.5 अरब लोगों को अभी एक भी टीका नहीं लग पाया है।
ग्रेबियेसस ने कहा कि अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सभी सरकारों की जिम्मेदारी है। लेकिन, वैक्सीन का उत्पादन करने वाले देश अपने स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गो को टीका लगाने के बाद यह टीका साझा करें, ताकि अन्य देश भी ऐसा ही कर सकें और अपने लोगों की इस बीमारी से रक्षा कर सकें । (आईएएनएस)
बीजिंग, 6 फरवरी | चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) केंद्रीय समिति के पोलित ब्यूरो के सदस्य और केंद्रीय समिति के विदेशी मामलों के कार्यालय के निदेशक यांग च्येछी ने 6 फरवरी को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ फोन पर बातचीत की। यांग च्येछी ने कहा कि चीन-अमेरिका संबंधों के विकास ने दोनों देशों के लोगों को बड़ा लाभ पहुंचाया है और विश्व शांति व समृद्धि को भी बढ़ावा दिया है। चीन और अमेरिका को एक दूसरे के मूल हितों और उनके संबंधित राजनीतिक प्रणालियों और विकास मार्गों का सम्मान करना चाहिए। चीन अमेरिका से अपनी गलतियों को ठीक करने और चीन के साथ चीन-अमेरिका संबंधों का स्वस्थ और स्थिर विकास करने का आग्रह करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि चीन-अमेरिका संबंधों में ताईवान मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है। यह चीन की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता से संबंधित है। अमेरिका को एक-चीन नीति और तीन चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्तियों का सख्ती से पालन करना चाहिए। हांगकांग, शिंगच्याग और तिब्बत से संबंधित मामले चीन के आंतरिक मामले हैं। किसी भी बाहरी ताकत को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है।
यांग च्येछी ने आगे कहा कि दुनिया के सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों व सिद्धांतों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानदंड की रक्षा करनी चाहिए।
वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका-चीन संबंध दोनों देशों और दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका चीन के साथ स्थिर और रचनात्मक द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करना चाहता है। अमेरिका एक-चीन नीति का पालन करना जारी रखेगा और तीन चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्तियों का पालन करता रहेगा। (आईएएनएस)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
काबुल, 6 फरवरी | अफगान के प्रथम उपराष्ट्रपति अमरतुल्लाह सालेह ने शनिवार को पुष्टि की कि खुफिया कर्मियों ने एक अन्य व्यक्ति को नवंबर 2020 में काबुल विश्वविद्यालय हमले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इस हमले में 22 लोगों की मौत हो गई थी। सुरक्षा के क्षेत्र में एक सुरक्षा दल के प्रभारी सालेह ने फेसबुक पोस्ट के जरिए कहा, "शातिर आतंकवादी हमले के पीछे एक अन्य प्रमुख तत्व, जो अभियोजन के अधीन था, मोहम्मद उमर को काबुल शहर के पुलिस जिला 16 में गिरफ्तार किया गया है।"
2 नवंबर 2020 को, दो बंदूकधारियों ने विश्वविद्यालय पर हमला किया गया, जिसमें कम से कम 22 लोगों की जान चली गई थी, जबकि इस हमले में 40 अन्य घायल हो गए थे।
पीड़ितों में लोक प्रशासन संकाय से 18-16 और विधि संकाय से दो छात्र शामिल थे।
फस्र्ट वाइस-प्रेसिडेंट ने अपने पोस्ट में कहा, "जैसा कि लोग जानते हैं, काबुल यूनिवर्सिटी हमले में शामिल एक व्यक्ति को पहले भी गिरफ्तार किया गया था, और उसे मौत की सजा सुनाई गई है। अब हम सब उसकी फांसी के साक्षी बनेंगे।"
हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद आदिल को सुप्रीम कोर्ट ने 1 जनवरी को मौत की सजा सुनाई थी। (आईएएनएस)
-निक बीके
साल 2018 में, रोहिंग्या मुसलमानों के तथाकथित जनसंहार के एक साल बाद, आंग सान सू ची अपनी कैबिनेट में शामिल सैन्य शासकों की तारीफ़ करते नहीं थकती थीं. उस दौर में वे हर क़दम पर उनका बचाव कर रही थीं, जबकि दुनिया के अधिकांश देश अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई सैन्य कार्रवाई की आलोचना कर रहे थे.
अब तीन साल बाद, जब वे एक बार फिर घर में नज़रबंद कर दी गई हैं और इस तख़्तापलट की मुख्य पीड़िता हैं, तब सेना का बचाव करने का उनका फ़ैसला वाक़ई 'एक बुरा फ़ैसला' प्रतीत होता है.
स्पष्ट रूप से ये कहना तो थोड़ा मुश्किल है कि सू ची ने तब निजी, राजनीतिक या देश-भक्ति की वजह से सेना का बचाव किया था. लेकिन उनके समर्थक आपको बतायेंगे कि वे एक कठिन परिस्थिति में थीं और धारा के विपरीत जाना उनके लिए मुश्किल था. जबकि उनके आलोचक कहते हैं कि उस समय रोहिंग्या मुसलमानों का दर्द बाँटने के लिए वे कम से कम दो शब्द तो कह सकती थीं.
ख़ैर अब जो भी है, पर एक लोकतांत्रिक म्यांमार की संभावनाएं फ़िलहाल कम ही दिखाई दे रही हैं.
माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सू ची की छवि ख़राब हुई है, लेकिन म्यांमार में उनके चाहने वाले अब भी बहुत बड़ी संख्या में हैं और उनकी इस लोकप्रियता को कम नहीं किया जा सकता.
हाल ही में हुए चुनावों में सू ची की 'नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी' पार्टी ने 80 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किये थे. ये उनकी बड़ी जीत थी.
आज भी, जब आप यंगून शहर की गलियों में निकलते हैं, तो हर जगह दिखाई देने वाले सू ची के पोस्टर, पेंटिंग और कैलेंडर, 'मदर सू ची' की लोकप्रियता की ओर इशारा करते हैं.
हालांकि, अब इन गलियों में प्रदर्शनकारियों का शोर है. वे बर्तन बजाकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं और वे चाहते हैं कि सू ची को रिहा किया जाये.
म्यांमार में पारंपरिक तौर पर, 'भूतों (बुरी आत्माओं) को भगाने के लिए' बर्तन बजाने का प्रचलन है. सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि 'वो अब सेना को भगाने के लिए बर्तन बजा रहे हैं, ताकि आंग सान सू ची आज़ाद हो सकें.'
रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता वाई वाई नू ने यंगून की सड़कों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है, जिसके साथ उन्होंने लिखा कि "यह देखना बहुत दर्दनाक है."
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इस फ़ुटेज में, एक तस्वीर ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा जो म्यांमार के हिंसक और दुखद इतिहास का प्रतीक है. स्मार्टफ़ोन की रोशनी में चमकती ये तस्वीर आंग सान सू ची के पिता जनरल आंग सान की थी, जिनके बारे में आज भी म्यांमार में सम्मान से बात की जाती है. ब्रितानी शासन से आज़ादी मिलने से पहले ही उनकी हत्या कर दी गई थी. तब उनकी लोकप्रियता बहुत अधिक थी.
वे आधुनिक बर्मी सेना के संस्थापक भी थे जिसे तातमाडॉ के नाम से भी जाना जाता है. उसी सेना ने अब उनकी बेटी को बंदी बना लिया है और एक बार फिर उनकी आज़ादी छीन ली है.
लोगों का मानना है कि म्यांमार में इससे पहले के आंदोलन - चाहे वो 1988 और 2007 का आंदोलन हो - सभी ज़मीन पर लड़े गये. लेकिन इस बार लड़ाई ऑनलाइन होनी है. फ़ेसबुक इसमें सबसे अहम प्लेटफ़ॉर्म कहा जा रहा है जिसे म्यांमार में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. म्यांमार में फ़ेसबुक समाचार और नज़रिये शेयर करने का प्रमुख माध्यम है.
यही वजह है कि म्यांमार की सेना ने तख़्तापलट के बाद सबसे पहले फ़ेसबुक पर पाबंदी लगायी.
एक वजह ये भी है कि फ़ेसबुक ने म्यांमार के सैन्य शासकों को बैन कर दिया था, जो अब तक लोगों में देशभक्ति की भावना भरने, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने और एक ख़ास समुदाय के ख़िलाफ़ ज़हरीली विचारधारा फैलाने के लिए इस प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करते रहे थे. इसीलिए म्यांमार के सैन्य शासक फ़ेसबुक और सोशल मीडिया की ताक़त जानते हैं.
इसी तरह म्यांमार के लोग ये नहीं भूले हैं कि सेना ने उनकी पिछली पीढ़ी के साथ क्या किया था और म्यांमार में सेना की क्या ताक़त है.
सैन्य शासकों के पास तांडव करने की क्षमता है. हालांकि, जानकार मानते हैं कि सेना इस रास्ते को आसानी से नहीं चुनेगी.
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इस बीच आंग सान सू ची और उनके समर्थकों के लिए मंथन करने का विषय ये है कि वो अपनी डिजिटल शक्ति का उपयोग कैसे करें.
कुछ लोगों ने इस दौरान चर्चा में आयी सू ची की एक चिट्ठी पर आशंका जताई है, जिसमें सू ची की ओर से 'तख़्तापलट का विरोध' करने की अपील की गई. पर लोगों का मानना है कि ये सैन्य शासकों की कोई साज़िश हो सकती है, ताकि लोग सड़कों पर निकलें और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाये, या इससे भी बढ़कर कुछ किया जाये.
सू ची के लिए लोगों के सड़कों पर उतर आने का अंतरराष्ट्रीय मीडिया, सोशल मीडिया और टीवी न्यूज़ चैनलों के लिए एक अलग मतलब होगा. इससे उन्हें बेशक हाई-क्वालिटी तस्वीरें और फ़ुटेज मिलेगी. लेकिन '1988 की फ़िल्म' आज भी लोग भूले नहीं है, जब म्यांमार की सेना ने सड़कों को आज़ादी की माँग कर रहे लोगों के ख़ून से भर दिया था.
म्यांमार की पिछली पीढ़ी ने वो सब अपनी आँखों से देखा है, और इसमें कोई नई बात नहीं होगी कि बर्मी सेना एक बार फिर वैसी घटनाओं को अंजाम दे.
हालांकि, म्यांमार के नवीनतम दर्दनाक अध्याय में एक और विरोधाभास है.
मसलन, सू ची का आज़ाद होना और सत्ता में लौटना, बहुत हद तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय की 'सक्रियता और निष्क्रियता' पर निर्भर है.
एक समय था जब सू ची पश्चिमी देशों की लाडली थीं और उन्हें उसूलों के साथ चलने वाली नेत्री समझा जाता था.
लेकिन अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन और उनकी मदद से इनकार कर वे आलोचनाओं में घिर गईं और उनके रवैये से घबराये अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और संगठनों ने उनसे ज़्यादातर पुरस्कार वापस ले लिये.
इससे पहले जब वे 15 वर्षों के लिए 'हाउस अरेस्ट' (घर में नज़रबंद) में थीं, तब पश्चिम के देश उनके साथ खड़े दिखाई देते थे. बीबीसी ने भी उस दौर में सू ची की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाया.
लेकिन 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुए जनसंहार के बाद, सब कुछ बदल गया.
अन्य पश्चिमी मीडिया संस्थानों की तरह, बीबीसी को भी म्यांमार से इंटरव्यू की गुज़ारिशों का जवाब मिलना बंद हो गया.
इससे यह समझा गया कि वे शायद उन लोगों से बात ही नहीं करना चाह रहीं, जो उनके देश की जटिलताओं को कभी नहीं समझ सकते.
एक रिपोर्टर के तौर पर क़रीब दो साल तक म्यांमार कवर करने के दौरान, हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मेरी उनसे सबसे क़रीबी बातचीत हुई.
तब सू ची सेना द्वारा किये गए नरसंहार के आरोपों के जवाब में व्यक्तिगत रूप से बर्मी सेना का बचाव कर रही थीं.
'क्या आप कभी माफ़ी माँगेंगी श्रीमती सू ची?' मैंने यह सवाल उनसे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के प्रांगण में पूछा था, जहाँ वे अपनी एग्ज़ीक्यूटिव कार से उतरी थीं. लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
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तब आंग सान सू ची ने म्यांमार की 'दायित्व-शून्य सेना' के अपराधों को सही ठहराने के प्रयास का चेहरा बनने का निर्णय लिया था.
सेना से व्यापक घृणा के बावजूद, सू ची के इस निर्णय ने म्यांमार में उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया और देश के सम्मान की रक्षा करने के लिए उनकी प्रशंसा की गई.
पर कुछ लोगों का अब मानना है कि सू ची को अब सैन्य तानाशाही से म्यांमार को आज़ाद कराने वाले संघर्ष का चेहरा नहीं होना चाहिए.
हालांकि, म्यांमार के कुछ राजनीतिक विश्लेषक ये कह रहे हैं कि 'ये सैन्य तख़्तापलट का विरोध करने और म्यांमार के बहुसंख्यक लोगों समेत लोकतांत्रिक अधिकारों का समर्थन करने का समय है.'
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के पूर्व राजदूत बिल रिचर्डसन ने कहा है कि "जब मैंने तख़्तापलट के बारे में सुना तो मुझे लगा कि शैतान के साथ समझौता करने का यही नतीजा हो सकता था."
रिचर्डसन 2018 तक सू की के दोस्त थे. लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार के बाद स्थिति बदल गई.
रिचर्डसन ने कहा कि "जब तक सू की निर्वाचित नहीं हुई थीं, तब तक मैं उनके सबसे बड़े प्रशंसकों में से एक था."
रिचर्डसन मानते हैं कि सू ची की पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी को अब नये नेताओं को सामने लेकर आने की ज़रूरत है, ख़ासकर कुछ महिलाएं, जो म्यांमार में पैदा हुए लोकतांत्रिक संकट के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर सकें.
आंग सान सू ची पर जो आरोप लगाये गए हैं, उनके लिए उन्हें जेल की सज़ा हो सकती है, यानी वे फिर कभी राष्ट्र प्रमुख की दौड़ में शामिल नहीं हो सकेंगी.
सैन्य शासकों का दावा है कि 'फ़िलहाल देश में 'इमरजेंसी' की जो स्थिति बनी है, वो बदले तो म्यांमार में चुनाव कराये जा सकेंगे.' इससे यह स्पष्ट है कि वो इस 'चुनावी बाज़ीगरी' के टायर को पंचर करना चाहते हैं, क्योंकि खेल के नियम अगर निष्पक्ष रहे तो लोकतंत्र बड़े आराम से सैन्य शासन को हरा सकता है.
पर मौजूदा स्थिति के बारे में 20 वर्षों तक सू ची के साथी रहे बिल रिचर्डसन क्या सोचते हैं?
इस सवाल पर उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वे महसूस कर रही होंगी कि उन्हें सेना ने धोखा दिया. वो सेना जिसका वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बचाव कर रही थीं. अब उनकी स्थिति बहुत धूमिल है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि बर्मी सेना सू ची को चोट पहुँचाने या उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए चुप करा देने जैसा कोई क़दम नहीं उठायेगी."
और अगर आंग सान सू ची को दोबारा बोलने का मौक़ा दिया गया, तब?
"अगर वे बाहर आकर बोलती हैं और रोहिंग्या लोगों के ख़िलाफ़ हुए अपराधों को इस तरह से स्वीकार करती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उन पर भरोसा हो, उनमें विश्वसनीयता और ईमानदारी दिखाई दे, तो चीज़ें बदल सकती हैं. अभी भी बहुत देर नहीं हुई है. अगर उन्होंने ऐसा किया तो इस तख़्तापलट के ख़िलाफ़ दुनिया कुछ एक्शन ज़रूरी करेगी."
"मैं मानता हूँ कि इसमें जोखिम होगा, लेकिन ऐसा नहीं है कि सू ची ने इससे पहले जोखिम उठाये नहीं हैं."
(निक बीके ब्रसेल्स (बेल्जियम) में बीबीसी के संवाददाता हैं और 2018 से 2020 तक वे म्यांमार में बीबीसी के संवाददाता थे.) (bbc.com)
इस्लामाबाद, 6 फरवरी | दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचने के लिए निकला पाकिस्तान का पर्वतारोही लापता हो गया है। उनकी और उनकी टीम के सदस्यों को खोजने के लिए हवाई खोज अभियान शुरू किया गया है।
जियो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, लापता हुए पर्वतारोही अली सदपारा ने के2 शीतकालीन अभियान 2021 में 8,611 मीटर ऊंची चोटी पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी। इससे एक महीने पहले उनकी यात्रा असफल रही थी। इसके बाद सदपारा और उनकी टीम बुधवार को अपनी यात्रा पर फिर से रवाना हुई थी। तब से ही वह ट्विटर के जरिए अपनी यात्रा को लेकर अपडेट भी दे रहे थे। शनिवार की सुबह करीब 8.20 बजे उन्होंने आखिरी ट्वीट किया था।
सूत्रों का कहना है कि सदापारा और उनकी टीम को दोपहर 3 बजे तक कैंप 3 में पहुंचना था, लेकिन कई घंटों तक उनसे संपर्क ही नहीं हो सका। के2 चीन-पाकिस्तान सीमा पर उत्तरी पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र और चीन के झिंजियांग के टैक्सक्रागन ताजिक ऑटोनोमस काउंटी की दफदार टाउनशिप के बीच स्थित है। यह काराकोरम पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है।
यहां के कठोर मौसम के कारण इस चोटी को सैवेज माउंटेन के नाम से भी जाना जाता है। यहां हवाएं 200 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार से चल सकती हैं और तापमान माइनस 60 डिग्री तक गिर सकता है। यही वजह है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की तुलना में के2 तक जाने वालों की संख्या कम है। (आईएएनएस)
ने पी तॉ, 6 फरवरी | सैन्य तख्तापलट के चलते म्यांमार ने शनिवार को माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर और फोटो-शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम एक्सेस करने पर रोक लगा दी है। इससे 2 दिन पहले ही देश के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियों सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक के खिलाफ भी ऐसी ही कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, म्यांमार के 4 ऑपरेटरों में से एक टेलीनॉर ने बयान जारी कर कहा है कि देश के सभी मोबाइल ऑपरेटरों, अंतर्राष्ट्रीय गेटवे और इंटरनेट सेवा देने वालों को म्यांमार के परिवहन और संचार मंत्रालय से एक निर्देश मिला है कि वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और इंस्टाग्राम को निलंबित कर दें।
मंत्रालय ने देश के दूरसंचार कानून की धारा 77 के तहत ऑपरेटरों से ट्विटर और इंस्टाग्राम एक्सेस करने को अस्थायी रूप से निलंबित करने के लिए कहा है। साथ ही कहा है कि यह कदम सार्वजनिक हित और स्थिरता के लिए उठाया गया है।
बजफीड के अनुसार, फेसबुक ने इस सप्ताह के शुरू में तख्तापलट के बाद म्यांमार को अस्थायी उच्च जोखिम वाली जगह बताया था।
बता दें कि 8 नवंबर, 2020 के संसदीय चुनावों में हुए विवाद के चलते म्यांमार की सेना ने सोमवार को देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था।
तख्तापलट से पहले सेना ने पूर्व स्टेट काउंसलर आंग सान सू की, पूर्व राष्ट्रपति यू विन म्यिंट समेत अन्य एनएलडी अधिकारियों को हिरासत में लिया और एक साल की आपात स्थिति की घोषण भी कर दी। (आईएएनएस)
वेलिंगटन, 6 फरवरी | अपने पदार्पण टेस्ट में भारत के खिलाफ शतक लगाने और पांच विकेट लेने वाले न्यूजीलैंड के पूर्व आलराउंडर ब्रूस टेलर का निधन हो गया। टेलर ने भारत के खिलाफ 1965 में अपने पदार्पण टेस्ट में कोलकाता के ईडन गार्डेंस मैदान पर पहले शतक जड़ा था और फिर गेंदबाजी करते हुए पांच विकेट चटकाए थे।
उस मैच में न्यूजीलैंड 233 रन तक अपने छह विकेट गंवा चुका था और टेलर ने बेर्ट स्टलिफे के साथ मिलकर सातवें विकेट के लिए 163 रनों की साझेदारी की थी। टेलर ने उस मैच में 14 चौकों और तीन छक्कों की मदद से 158 गेंदों पर 105 रनों की पारी खेली थी।
गेंदबाजी में उन्होंने 86 रन देकर भारत के पांच बल्लेबाजों को आउट किया था। हालांकि, मैच बेनतीजा रहा था।
टेलर ने न्यूजीलैंड के लिए कुल 32 मैच खेले थे, जिसमें उन्होंने 30 टेस्ट मैच खेले जबकि दो वनडे मुकाबले। उन्होंने टेस्ट में अपनी टीम के लिए 898 रन बनाए जबकि गेंदबाजी में उन्होंने 26.60 की औसत से 111 विकेट लिए। वहीं उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 74 रन देकर 7 विकेट का था। वहीं उन्होंने दो वनडे मैचों में 22 रन बनाए थे।
न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने कहा, " न्यूजीलैंड क्रिकेट (एनजेडसी) को 77 साल की उम्र में ऑलराउंडर ब्रूस टेलर के निधन का गहरा दुख है। हमारी संवेदनाएं उनके परिवार और करीबी दोस्तों के साथ हैं।" (आईएएनएस)
कोपेनहेगन, 6 फरवरी | यूरोप के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय कार्यालय ने चेतावनी देते हुए कहा कि दुनिया भर के कई देशों में कोविड -19 वेरिएंट पाया गया है, जिसका स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ने की संभावना है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की खबर के अनुसार, "वेरिएंट एक सामान्य घटना है और वे स्वयं में खतरनाक नहीं हैं, लेकिन वे वायरस के व्यवहार को बदल सकते हैं। इसलिए, हमें इन घटनाओं पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है।"
मूल रूप से ब्रिटेन में पाए जाने वाले अत्यधिक संक्रमणीय वैरिएंट सार्स-सीओवी-2- वीओसी 202012/01 यूरोप के 30 देशों में फैल चुका है। 22 जनवरी तक इस नए वेरिएंट के इन देशों में 22,503 मामले दर्ज किए गए हैं। (आईएएनएस)
ने पी तॉ, 6 फरवरी | म्यांमार में सेना के एक अधिकारी ने यहां की पूर्व स्टेट काउंसलर आंग सान सू की सेहत की जानकारी देते हुए बताया कि वह ठीक हैं। म्यांमार में तख्तापलट के बाद आंग सान सू की को हिरासत में ले लिया गया है। अधिकारी के हवाले से सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है।
अधिकारी ने आगे बताया, सोमवार की सुबह उनकी हिरासत के मद्देनजर सू की और पूर्व राष्ट्रपति यू विन मिंट को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून और आयात-निर्यात कानून का उल्लंघन करने के आरोप में 15 फरवरी तक हिरासत में रखा गया है।
पूर्व सत्तारूढ़ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी के संरक्षक यू विन हेटिन को गिरफ्तार किए जाने के बाद शुक्रवार को यह बात सामने आई। इन्हें पार्टी के विश्वासपात्रों में से एक माना जाता है।
पार्टी के सूचना समिति के सदस्य की टो ने एक ऑनलाइन पोस्ट में कहा, "हम जांच कर रहे हैं कि यू विन हेटिन पर किन धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।"
सोमवार तड़के तख्तापलट के ठीक पहले राष्ट्रपति, स्टेट काउंसलर सहित एनएलडी के अन्य सदस्यों को सेना द्वारा हिरासत में ले लिया गया था। (आईएएनएस)
काबुल, 6 फरवरी | दोहा में चल रही शांति वार्ता में आई रुकावट के बाद अफगानिस्तान में लड़ाई और हिंसा बढ़ गई है। इस दौरान यहां 90 से अधिक आतंकवादी और सैनिक मारे गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, हिंसा की ताजी घटनाओं में तालिबान आतंकवादियों ने शुक्रवार को कुंडुज प्रांत के खानबाद जिले में सरकार समर्थित सेना के एक अड्डे पर हमला किया। हमले में 16 फाइटर्स मारे गए और 4 घायल हो गए। इसके अलावा 3 घंटों तक चली लड़ाई में 10 सशस्त्र विद्रोही मारे गए और 5 घायल हुए।
आतंकवादी समूह ने शुक्रवार को बदगीस प्रांत के मुगहर जिले की पुलिस चौकी पर भी हमला करके 7 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। बदगीस के गवर्नर हसमुद्दीन शम्स ने इस घटना की पुष्टि करते हुए कहा, "दोनों पक्षों के लोग हताहत हुए हैं।"
रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि सरकार समर्थित लड़ाकू विमानों ने तालिबान के जन्मस्थान कंधार प्रांत के अरगंदब, पंजवे और डांड जिलों में आतंकवादी समूह के ठिकानों पर हमला किया। इसमें सुरक्षा बलों ने 62 आतंकवादियों को मार गिराया और जबकि 23 घायल हुए।
बता दें कि 5 जनवरी को दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता फिर से शुरू होने के बाद पिछले 19 दिनों से दोहा में अफगान गणराज्य और तालिबान वातार्कारों के बीच कोई बैठक नहीं हुई है। यह वार्ता 12 सितंबर, 2020 से शुरू हुई लेकिन इसने अब तक बहुत कम प्रगति की है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन: व्हाइट हाउस ने शुक्रवार को कहा कि जो बाइडेन प्रशासन यह मानता है कि अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा है और इसके केंद्र में प्रौद्योगिकी है. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में शुक्रवार को कहा, ‘‘चीन के उद्देश्यों के बारे में हमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. वह प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लंबे से कायम अमेरिका की बढ़त को छीनना चाहता है.''
उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसके आर्थिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी दुष्परिणाम होंगे. उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका के साझेदारों और सहयोगियों से संवाद के दौरान यह बात कही.
साकी ने कहा, ‘‘यही एक प्रमुख कारण है कि राष्ट्रपति विज्ञान, प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में और आपूर्ति श्रंखला की सुरक्षा को लेकर बड़े निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.''
हालांकि रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर टेड क्रूज ने एक वीडियो जारी कर आरोप लगाया कि चीन को लेकर बाइडेन प्रशासन का रुख नरम है. दरअसल, हाल में बाइडेन प्रशासन ने चीन से जुड़े शोधकर्ताओं तथा अकादमिक क्षेत्र के लोगों के खिलाफ जांच रोकने या उन्हें आम माफी देने के संकेत दिए थे. साकी के मुताबिक इसका एक कारण यह है कि इन जांचों में बहुत अधिक धन और संसाधनों की आवश्यकता है.
क्वेटा, 6 फरवरी| पाकिस्तान के क्वेटा शहर में एक रैली के पास बम विस्फोट होने से दो लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। बलूचिस्तान सरकार के एक प्रवक्ता ने शनिवार को इस बात की पुष्टि की।
प्रवक्ता लियाकत शाहवानी ने सिन्हुआ समाचार एजेंसी को बताया कि
यह विस्फोट उस समय हुआ जब रैली शहर के डिप्टी कमिश्नर के ऑफिस बिल्िंडग के पास से गुजर रही थी।
उन्होंने कहा कि किसी भी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
क्वेटा के पुलिस सूत्रों ने सिन्हुआ को बताया कि रैली की अगुवाई कर रहे राजनीतिक नेता को आतंकवादियों से धमकी मिल रही थी। उन्होंने कहा कि वह सुरक्षित हैं और नागरिक मारे गए हैं।
शुक्रवार को प्रांत में यह दूसरा विस्फोट था।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इससे पहले, सिबी जिले में एक अन्य रैली के पास विस्फोट होने से 16 लोग घायल हो गए थे। (आईएएनएस)
-अमृता शर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पाकिस्तान के साथ रिश्तों पर फिर से विचार कर रहे हैं.
जो बाइडन के साथ पाकिस्तान के पुराने संबंध रह चुके हैं क्योंकि बाइडन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उप-राष्ट्रपति थे. साल 2008 में उन्हें गै़र-सैन्य सहायता के लिए पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े सम्मान हिलाल-ए-पाकिस्तान से नवाज़ा गया था.
पाकिस्तान के कई लोगों का मानना है कि बाइडन का रुख़ पाकिस्तान के प्रति ट्रंप की तुलना में नरम रहेगा.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने उम्मीदें ज़ाहिर करते हुए कहा था कि बाइडन प्रशासन 'नई नीतियों और पॉलिसी गाइडलाइन" के साथ काम करेगा.
हालांकि अगले चार वर्षों में जो दो क्षेत्र द्विपक्षीय संबंध बनाने में मदद कर सकते हैं, वो हैं - अफ़ग़ानिस्तान में शांति को लेकर पाकिस्तान का रोल, भारत और चीन से पाकिस्तान के संबंध.
अफ़ग़ानिस्तान में शांति की प्रक्रिया
अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया से अमेरिकी सैनिकों के वापस लौटने के बाद पाकिस्तान वहाँ अपनी अहम भूमिका देख रहा है.
चूंकि बाइडन प्रशासन पाकिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान में एक बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद करेगा, इसलिए दोहा में चल रही अंतर-अफगान वार्ता में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर बात हो सकती है.
पाकिस्तान की भूमिका को ध्यान में रखते हुए, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने हाल ही में "अफ़ग़ान शांति व्यवस्था पर अमेरिका-पाकिस्तान सहयोग को जारी रखने के महत्व" पर ज़ोर दिया था.
विदेश मंत्री कुरैशी ने यह भी कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति पाकिस्तान और अमेरिका के बीच "मूलभूत अभिसरण" है.
ट्रंप से अलग होगा बाइडन का रवैया
हालांकि पाकिस्तान में इस बात को लेकर चिंता है कि ट्रंप युग के कुछ समझौतों पर अमेरिकी प्रशासन फिर से विचार कर सकता है. इसी कारण से पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने वार्ता पक्षों से "निरंतर प्रतिबद्धता और ज़िम्मेदारी दिखाने" का आग्रह किया था.
विश्लेषक सलमान ग़नी ने 24 जनवरी को उर्दू टीवी चैनल दुनिया न्यूज़ पर कहा कि पाकिस्तान के लिए "नई स्थिति अच्छी ख़बर नहीं है"
26 जनवरी को लोकप्रिय अख़बार डॉन के एक संपादकीय में कहा गया, "अफ़ग़ानिस्तान दोनों देशों के लिए मायने रखता है क्योंकि पाकिस्तान और अमेरिका, दोनों वहां शांति चाहते हैं."
2018 में जब ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान से सुरक्षा मदद वापस लेने का फ़ैसला किया, तो रिश्तों में थोड़ी खटास आई. ट्रंप ने 33 अरब डॉलर की मदद वापस लेते वक्त पाकिस्तान पर "झूठ और धोखे" का आरोप लगाया था.
हालांकि, 19 जनवरी को नए अमेरिकी रक्षा प्रमुख जनरल लॉयड जे ऑस्टिन ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के क़दमों की सराहना की, लेकिन यह भी जोड़ा कि अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बनाना जारी रखेगा ताकि वो अपने क्षेत्र का इस्तेमाल चरमपंथियों के लिए सुरक्षित आश्रय के रूप में न होने दे.
लेकिन 2002 में हुई अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के मुख्य संदिग्ध उमर सईद की सज़ा पर रोक लगाने के पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के 28 जनवरी के फ़ैसले पर अमेरिका ने "नाराज़गी" जताई और संबंधों में फिर बाधा उत्पन्न हुई.
इस क़दम का असर आगामी फ़ैइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) प्लेनरी मीटिंग पर भी पड़ने की आशंका है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्था आतंकी गतिविधियों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के क़दमों की समीक्षा करेगी.
भारत और चीन को लेकर विदेश नीति
पाकिस्तान के भारत और चीन के साथ रिश्तों का असर भी अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्ते पर पड़ेगा.
अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस द्वारा भारत प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार को लेकर भारत की आलोचना करना पाकिस्तान के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है.
26 जनवरी को डॉन के संपादकीय में लिखा गया, "पाकिस्तान को सतर्क और यथार्थवादी बने रहना चाहिए क्योंकि नए अमेरिकी प्रशासन से उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वो भारत में कश्मीरियों के साथ हो रहे क्रूर व्यवहार को लेकर भारत के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाएगा."
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीन के साथ पाकिस्तान के मज़बूत संबंधों के चलते अमेरिकी से अच्छे रिश्ते बनाना मुश्किल हो सकता है.
पूर्व राजनयिक मलिहा लोधी ने 23 जनवरी को दुनिया न्यूज़ टीवी को बताया, "अगर चीन-अमेरिका संबंध अच्छे होते हैं, तो पाकिस्तान के लिए ये अच्छा होगा."
हालांकि, अन्य विशेषज्ञों की राय अलग है.
डॉन ने एक अर्थशास्त्री के हवाले से लिखा," यह स्पष्ट है कि अब पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार के रूप में अमेरिका और चीन के बीच चयन करना है."
आर्थिक बदलाव
पाकिस्तान अमेरिका की नई सरकार के साथ रिश्ते बनाने के लिए उत्सुक है.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बाइडन को दिए बधाई संदेश में लिखा था कि वो, "पाकिस्तान-अमेरिका के बीच व्यापार और आर्थिक क्षेत्र में बेहतर साझेदारी" की ओर देख रहे हैं.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के "भू राजनीतिक स्थिति से भू-आर्थिक स्थिति की ओर बढ़ते क़दम" को रेखांकित किया था. लेकिन व्यापार से जुड़े जानकार मानते हैं कि अमेरिका की पाकिस्तान को लेकर नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव नहीं आएगा.
डॉन अख़बार में जानकार एजाज़ हैदर ने लिखा, "रिश्ते किस तरफ़ और कैसे जाएंगे, ये इस पर निर्भर करेगा कि अमेरिका को पाकिस्तान की ज़रूरत कब है."
पाकिस्तान बिज़नेस काउंसिल के एहसान ए मलिक ने एक अख़बार में लिखा, "किसी तरह की ट्रेड डील अमेरिका की ओर से होती नहीं दिख रही है."
दोनों देशों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों को एक-दूसरे से कितना फ़ायदा होने वाला है. इसके लिए पाकिस्तान को आगे बढ़कर काम कोशिश करनी होगी. (bbc.com)
एजाज़ हैदर के मुताबिक़, "पाकिस्तान को ऐसे क्षेत्र तलाशने होंगे जहां दोनों देश मिलकर काम कर सकें और एक एक्शन प्लान बनाया जा सकें."
वाशिंगटन, 6 फरवरी (आईएएनएस)| दुनियाभर में कोरोनोवायरस मामलों की कुल संख्या 10.53 करोड़ के पार पहुच चुकी है जबकि 22.9 लाख से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शनिवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि कोरोना के वर्तमान वैश्विक मामले 105,346,199 हैं और 2,296,700 लोगों की मौत हो चुकी है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 26,804,927 मामलों और 459,278 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
वहीं, 10,802,591 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (9,447,165), ब्रिटेन (3,922,910), रूस (3,891,274), फ्रांस (3,355,678), स्पेन (2,941,990), इटली (2,611,659), तुर्की (2,516,889) जर्मनी (2,276,371), कोलंबिया (2,142,660), अर्जेंटीना (1,970,009), मेक्सिको (1,899,820), पोलैंड (1,539,564), दक्षिण अफ्रीका (1,470,516), ईरान (1,452,380), यूक्रेन (1,280,501), पेरू (1,158,337), पेरू (1,158,337), इंडोनेशिया (1,134,854), चेक रिपब्लिक (1,021,477) और नीदरलैंड (1,011,636) हैं।
वर्तमान में 230,034 मौतों के साथ मौतों के मामले में ब्राजील दूसरे स्थान पर है। इसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (162,922) और चौथे पर भारत (154,823) है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (111,477), इटली (90,618), फ्रांस (78,749), रूस (74,520), स्पेन (61,386), जर्मनी (60,843), ईरान (58,336), कोलंबिया (55,403), अर्जेंटीना (48,985), दक्षिण अफ्रीका (45,902), पेरू (41,538), पोलैंड (38,712), इंडोनेशिया (31,202), तुर्की (26,577), यूक्रेन (24,599), बेल्जियम (21,603) और कनाडा (20,603) हैं।
आर्कटिक में हजारों टन डीजल लीक करने वाली रूसी कंपनी पर 2 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया गया है. बीते कुछ सालों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली बेहद ताकतवर कंपनियां भी बच नहीं पा रही हैं.
डॉयचे वैले पर ओंकार सिंह जनौटी का लिखा-
रूस के दुर्गम इलाके साइबेरिया में मई 2020 में अचानक बड़ी संख्या में मछलियां मरने लगीं. आबोहवा में डीजल की बदबू फैल गई. जांच में पता चला कि यह डीजल है, जो दुनिया में पैलाडियम और निकेल की सबसे बड़ी कंपनी नोरिलस्क निकेल(नोरनिकेल) के एक स्टोरेज टैंक से लीक हुआ है. 21,000 टन डीजल के इस रिसाव को रूस के इतिहास की सबसे बड़ी पर्यावरणीय आपदा कहा जाता है.
हादसे ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी बहुत नाराज किया. अब 54 अरब डॉलर मार्केट वैल्यू वाली कंपनी नोरनिकेल पर रूस की एक अदालत ने दो अरब डॉलर का जुर्माना लगाया है. अदालत का कहना है कि यह कार्रवाई पर्यावरण को ठेंगा दिखाने वाली कंपनियों के लिए एक संदेश है.
आधुनिकीकरण का दबाव
कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए रूस की उप प्रधानमत्री विक्टोरिया अब्राह्मशेंको ने कहा, "इस फैसले के बाद बड़े और जोखिम भरे कारखाने के मालिकों का व्यवहार बदलना चाहिए, उन्हें ये देखना चाहिए कि वे अपने प्रोडक्शन को कैसे आधुनिक बना सकते हैं." डिप्टी पीएम ने कहा, "आधुनिकीकरण करना 146 अरब रूबल (दो अरब डॉलर) के हर्जाने के मुकाबले काफी सस्ता है."
आम तौर पर नोरनिकेल के नाम से विख्यात ये कंपनी दुनिया में पैलाडियम और निकेल की सबसे बड़ी उत्पादक है. कंपनी लंबे समय से साइबेरियाई आर्कटिक इलाके में सल्फर डायऑक्साइड का उत्सर्जन करने के लिए भी बदनाम हैं.
पर्यावरण को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता
हाल के हफ्तों में यह दूसरा बड़ा मामला है जब पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने के कारण किसी दिग्गज कंपनी पर भारी जुर्माना लगाया गया है. जनवरी के आखिर में नीदरलैंड्स की एक अदालत ने भी अपने ही देश की पेट्रोलियम कंपनी रॉयल डच शेल को नाइजीरिया के किसानों को हर्जाना देने का आदेश दिया. नाइजर डेल्टा में तेल निकालने समय शेल की पाइलपाइन से तेल लीक हुआ. स्थानीय किसानों ने आरोप लगाया कि इस रिसाव के कारण उनकी जमीन बंजर हो गई. 2008 में शेल पर मुकदमा किया गया. चार गरीब किसान बनाम दिग्गज शेल का यह मुकदमा कई अदालतों से गुजरता हुआ आखिरकार हॉलैंड पहुंचा. और आखिरकार 13 साल बाद शेल को चार किसानों को हर्जाना देने को कहा गया.
बीते कुछ सालों को देखें तो पता चलता है कि अब सरकारें भी ऐसे हादसों को गंभीरता से ले रही हैं. 2010 में मेक्सिको की खाड़ी में 49 लाख बैरल कच्चा तेल लीक करने वाली कंपनी ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) पर अमेरिकी सरकार ने 5.7 अरब डॉलर का जुर्माना ठोंका. दुनिया भर में अब कई पर्यावरण संगठन आबोहवा को नुकसान पहुंचाने वाली कंपनियों के खिलाफ मिलकर मुकदमे लड़ रहे हैं. नीदरलैंड्स की अदालत के फैसले के बाद फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ ने कहा कि यह वैश्विक स्तर पर कंपनियों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाने की दिशा में एक बड़ी जीत है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र को अपने वादे की याद दिलाते हुए कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाया है कि संयुक्त राष्ट्र के वादे के मुताबिक़ जब उन्हें अपना हक़ मिल जाएगा, तब उन्हें इस बात की आज़ादी होगी कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनें या आज़ाद रहें.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के कोटली शहर में शुक्रवार को हुई एकजुटता रैली को संबोधित करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "दुनिया ने कश्मीर के लोगों से साल 1948 में एक वादा किया था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के मुताबिक़, कश्मीर के लोगों को अपने भविष्य का फ़ैसला करने के लिए हक़ मिलना था."
उन्होंने कहा "दुनिया को याद दिलाना है कि कश्मीर के लोगों से जो वादा किया गया था, वो वादा पूरा नहीं हुआ, जबकि इसी सुरक्षा परिषद ने ईस्ट तिमोर को, जो मुस्लिम मुल्क इंडोनेशिया का एक जज़ीरा था, वहां ईसाई ज़्यादा थे, वही हक़ ईस्ट तिमोर को दिया गया. जनमत संग्रह करवाकर उन्हें जल्द आज़ाद करवा दिया गया. मैं संयुक्त राष्ट्र को याद दिलाना चाहता हूं कि उसने पाकिस्तान से अपना वादा पूरा नहीं किया."
इमरान ख़ान ने कहा कि कश्मीरियों को हक़ होगा कि आज़ाद रहें या पाकिस्तान का हिस्सा बनें, ये उनकी मर्ज़ी होगी. उन्होंने कहा, "मैं कश्मीर के लोगों को ये कहना चाहता हूं कि इंशाल्लाह जब आपको अपना ये हक़ मिलेगा और जब कश्मीर के लोग पाकिस्तान के हक़ में फ़ैसला करेंगे, उसके बाद पाकिस्तान कश्मीर के लोगों को अधिकार देगा कि आप आज़ाद रहना चाहते हैं या पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहते हैं. ये आपका हक़ होगा."
उन्होंने दावा किया कि सारी मुसलमान दुनिया आज़ाद कश्मीर के साथ खड़ी है. उन्होंने कहा, "आपके साथ सिर्फ़ पाकिस्तान ही नहीं है बल्कि पूरी मुसलमान दुनिया साथ खड़ी है. अगर मुसलमान हुकूमतें आज किसी भी वजह से आपको सपोर्ट नहीं कर रही हैं, तो मैं ये आपको यकीन दिलाता हूं कि सारी मुसलमान दुनिया की अवाम मक़बूज़ा कश्मीर (आज़ाद कश्मीर) के लोगों के साथ खड़ी है."
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इमरान ख़ान ने कहा, "वो लोग जो मुसलमान भले ही नहीं हैं, लेकिन इंसाफ़ पसंद हैं, वो भी ये बात समझते हैं कि आज कश्मीर के लोगों को वो हक़ देना चाहिए, जो संयुक्त राष्ट्र ने वादा किया था. मैं मक़बूज़ा कश्मीर के लोगों को पैग़ाम देना चाहता हूं कि हमें सब अहसास है, जिस तरह के ज़ुल्म आप पर हुए और हो रहे हैं..... हम सबको पता है कि आपके ऊपर क्या गुज़रती होगी. किस किस्म की तक़लीफ़ों का आप सामना कर रहे हैं. किस किस्म के ज़ालिम का मुक़ाबला कर रहे हैं और खड़े हैं आप. मैं हर फोरम पर आपकी आवाज़ बुलंद करूंगा और कर रहा हूं.....जब तक कश्मीर आज़ाद नहीं हो जाता, आपकी आवाज़ बुलंद करूंगा."
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पाकिस्तान में इमरान ख़ान सरकार हटाने के लिए अमादा विपक्ष
भारत का ज़िक्र करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा, "जब हमारी हुकूमत आई तो हमने दोस्ती का पैग़ाम देने की पूरी कोशिश की. उनको समझाएं कि कश्मीर का मसला ज़ुल्म से हल नहीं होगा. दुनिया की कोई भी ताक़तवर फ़ौज एक आबादी के ख़िलाफ़ नहीं जीत सकती. जब एक क़ौम सारी खड़ी हो जाए, बड़ी से बड़ी फ़ौज फेल हो गई."
इतिहास से सबक लेने की बात करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "दुनिया की तारीख़ हमें बताती है कि अमरीका सुपरपॉवर है, लेकिन वियतनाम में वो नहीं जीत सका. तीस लाख लोगों की कुर्बानी दी, वियतनाम के लोगों ने और आख़िर आज़ाद हो गए. अफ़ग़ानिस्तान की तारीख़ भी यही बताती है. अल्जीरिया में फ्रांस ने कितना ज़ुल्म किया, लेकिन आबादी के ख़िलाफ़ फ्रांस नहीं जीत सका. हिंदुस्तान नौ लाख फ़ौज ले आए, ज्यादा भी फ़ौज ले आए, लेकिन कश्मीर के लोग आपकी ग़ुलामी कभी कुबूल नहीं करेंगे.''
इमरान ख़ान ने कहा, ''भारत यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के मुताबिक कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए गंभीरता दिखाता है, तो शांति के लिए हम दो कदम आगे आने के लिए तैयार हैं. लेकिन शांति और स्थिरता की हमारी इच्छा को कोई हमारी कमज़ोरी ना समझे.'' (bbc.com)
पिछले 100 दिनों में काबुल में आत्मघाती हमलों में कम से कम 360 लोग घायल हुए हैं और 177 लोग मारे गए. डर की वजह से लोग अपने बच्चों को गांव भेज रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा सुरक्षा की उम्मीद है.
हर सुबह जब खान वली कामरान घर से काम पर जाने के लिए निकलते थे, तो डर लगता था कि शाम में वापस लौटने पर बच्चों से मुलाकात होगी या नहीं. आखिरकार उन्होंने एक महीने पहले अपने चारों बच्चों को गांव में पिता के पास भेज दिया. यह कहानी सिर्फ एक कामरान की नहीं है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली एक बड़ी आबादी डर के साये में जी रही है.
दशकों तक युद्ध की विभीषिका झेल चुके अफगानिस्तान में पिछले कुछ सालों में शांति बहाली को लेकर कई प्रयास हुए हैं. माना जाने लगा था कि अब यहां के लोगों के बीच से डर और भय का माहौल दूर होगा, लेकिन राजधानी काबुल के लोगों की जिंदगी दिनों-दिन और बदतर होती जा रही है.
बार-बार हो रहे धमाके
बार-बार हो रहे बम धमाकों से हर कोई दहल रहा है. कभी सरेआम किसी को निशाना बनाया जा रहा है, तो कभी व्यस्त जगहों पर धमाके हो रहे हैं. पिछले साल एक विश्वविद्यालय में हुए बम हमले में दर्जनों लोगों की मौत हो गई थी. बीते मंगलवार को एक मौलवी की कार को बम से उड़ा दिया गया. राजधानी काबुल के व्यस्त इलाके में हुई इस घटना में मौलवी और उनके चालक की मौत हो गई.
लोगों के बीच तनाव और डर का माहौल लगातार बढ़ रहा है. हालांकि, यह साफ नहीं है कि इन घटनाओं के पीछे किसका हाथ है. मौलवी की हत्या की जिम्मेवारी इस्लामिक स्टेट ग्रुप ने ली, लेकिन ज्यादातर मामलों की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर तालिबान पर आरोप लगाती है, लेकिन तालिबान ने ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी से इनकार किया है. साथ ही, तालिबान का संदेह है कि सरकार और विपक्ष का समर्थन करने वाले गुट इन घटनाओं को अंजाम देते हैं और अराजकता फैला रहे हैं.
काबुल में तेजी से बढ़े अपराध
राजधानी काबुल में अपराध तेजी से बढ़े हैं. हथियार के बल पर खुलेआम दिन में दुकान लूटे जा रहे हैं, पार्क में बैठे लोगों को बंदूक दिखाकर लूट लिया जा रहा है, और ट्रैफिक में फंसी कारों में चोरी और तोड़फोड़ की जा रही है. बच्चों और वयस्कों का अपहरण कर उनके परिवार से 50 से 5000 डॉलर तक की फिरौती वसूली जा रही है. 22 साल का आमिर शहर के पॉश इलाके में सैलून चलाता है.पहली उसकी दुकान दस बजे रात तक खुलती थी, लेकिन पिछले साल लूटे जाने के बाद वह सात बजे दुकान बंद कर देता है.
डर का आलम यह है कि काबुल में रहने वाले लोगों ने अंधेरा होते ही घर से बाहर निकलना तक बंद कर दिया है. जो निकलते भी हैं, अपना बटुआ और मोबाइल फोन घर पर ही छोड़ जाते हैं. कामरान कहते हैं, "घर से ऑफिस जाने के लिए जब कार में बैठते हैं, तब डर लगता है. घर से मस्जिद जाने में डर लगता है. जिंदगी नरक बन गई है.” डर इस कदर हावी है कि कामरान ने उस गांव का नाम तक नहीं बताया जहां अपने बच्चों को भेजा है. यही कहानी कई लोगों की है.
टूट रही शांति की उम्मीद
पिछले साल काफी उम्मीद थी कि तालिबान और अमेरिकी सरकार के बीच शांति समझौते के बाद, चार दशक से अधिक समय से चले आ रहे युद्ध का अंत होगा. अफगानिस्तान में शांति आएगी. हालांकि, बाद में तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत की रफ्तार धीमी हो गई. कई अफगानिस्तानियों को डर है कि अपराध में बेतहाशा वृद्धि से देश में युद्ध के हालात बन सकते हैं. वे 1990 के दशक को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय सशस्त्र गुटों ने सत्ता के लिए काफी लड़ाई की थी. यह वो दौर था जब सोवियत संघ पीछे हट गया था और इसके बाद तालिबान की सरकार बनी थी.
करीब 20 साल पहले अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया और अब वह पीछे हट रहा है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले के बाद अमेरिकी सैनिक वापस जा रहे हैं. आज की तारीख में अमेरिकी सैनिकों की संख्या महज 2500 तक सिमट गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें शांति से ज्यादा युद्ध से फायदा है. अफगानिस्तान सरकार के सलाहकार रह चुके तोरेक फरहदी कहते हैं, "यह धर्म की नहीं, सत्ता की लड़ाई है.' वे कहते हैं, "कुछ हत्याएं तालिबान ने की. वहीं, कुछ काबुल के दूसरे संगठनों ने. ये संगठन उस किनारे पर पहुंच चुके हैं जहां इनकी सत्ता, संपत्ति और रुतबा खत्म होने के कगार पर है.'
आईएस और भ्रष्टाचार के बीच पिसती जनता
काबुल पुलिस के प्रवक्ता फिरदौस फरमाज इन हमलों के पीछे तालिबान का हाथ बताते हैं. वे कहते हैं कि ऐसा "सरकार और जनता के बीच दूरी बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.” अफगानिस्तान के लोगों का कहना है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं और देश के लोगों को सुरक्षा नहीं दे पा रही हैं. 2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद देश में करोड़ों डॉलर खर्च किए गए. इसके बावजूद, 3.2 करोड़ की आबादी वाले देश की 72 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे है. पिछड़े इलाकों और देश की सीमा के आसपास अपराध तेजी से बढ़े हैं. स्थानीय टीवी रिपोर्टों के मुताबिक पिछले 100 दिनों में काबुल में आत्मघाती हमलों में 360 लोग घायल हुए और 177 लोग मारे गए.
इस्लामिक स्टेट ने 2020 में अफगानिस्तान में हुए 82 हमलों की जिम्मेदारी ली है. इन हमलों में करीब 821 लोग घायल हुए या मारे गए. इनमें से 21 लोगों की हत्या की गई थी. मरने वालों ज्यादातर या तो सुरक्षाकर्मी थे या शिया मुसलमान. हालांकि, कई लोगों को निशाना बनाकर मारा गया. इनमें ज्यादातर पत्रकार, न्यायाधीश, सामाजिक कार्यकर्ता, युवा बुद्धिजीवी और व्यवसायी हैं. इन ज्यादातर घटनाओं में शामिल अपराधियों का पता नहीं चला. मनोवैज्ञानिक शराफुद्दीन आजिमी कहते हैं कि हिंसा के कारण अफगानिस्तान के लोगों के स्वास्थ्य पर असर हो रहा है. हजारों की संख्या में लोग तनाव संबंधी विकार से पीड़ित हुए हैं. कई लोग अवसाद में चले गए हैं. हर वक्त उन्हें मौत का भय सताता रहता है.
आरआर/एमजे (एपी)
हवा में मौजूद कार्बन को डाइरेक्ट एयर कैप्चर तकनीक की मदद से सोखकर इसे एसिड में बदल दिया जाता है. इसके बाद इसे जमीन से 800 से 2000 मीटर नीचे पहुंचाया जाता है. कुछ समय बाद यह एसिड चट्टान में बदल जाता है.
दक्षिण-पश्चिम आइसलैंड में एक बंजर पहाड़ी पर हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को खींचकर जमीन के नीचे गहरे पत्थर में दबाने के लिए संयंत्र लगाए जा रहे हैं. यह ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निजात पाने का एक तरीका है. हालांकि अभी भी यह काफी खर्चीला है. जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इंजीनियरिंग उपाय 2021 में निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रही है और निवेश आकर्षित कर रही है. माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के साथ-साथ चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेता "नेट जीरो" उत्सर्जन लक्ष्यों को पाने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं पर काम कर रहे हैं. टेस्ला कंपनी के प्रमुख और अरबपति उद्यमी इलॉन मस्क ने कहा है कि वह "कार्बन को सोखने की सबसे अच्छी तकनीक" के लिए 10 करोड़ डॉलर का पुरस्कार देंगे.
आलोचकों का जंगल लगाने पर जोर
रेक्याविक एनर्जी की इकाई कार्बफिक्स के लिए आइसलैंड की साइट बनाने वाली स्विस फर्म क्लाइमवर्क का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जिसे "जलवायु संकट" कहते हैं, उसे सीमित करने के लिए तकनीकी सुधार की जरूरत है. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि उत्सर्जन को कम करने या मौजूदा जंगलों की रक्षा करने और नए पेड़ लगाने की तुलना में वायुमंडल में मौजूद उत्सर्जन को "डाइरेक्ट एयर कैप्चर" (डीएसी) करना काफी खर्चीला है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे ही कार्बन बढ़ते हैं, पेड़ हवा से कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेते हैं जिससे वातावरण में कार्बन की मात्रा कम होती है. वे इस बात पर जोर देते हैं कि नए वृक्षारोपण की तुलना में पुराने पेड़ ज्यादा प्रभावी होते हैं. क्लाइमवर्क के डायरेक्टर और सह-संस्थापक यान वुर्त्सबाखर कहते हैं, "ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा जंगल लगाने चाहिए और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए, लेकिन हम ये या वो से आगे लिकल आए हैं.”
फिलहाल, आइसलैंड का संयंत्र 50 टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और इसे इकट्ठा करता है. अब कार्बन को सोखने की क्षमता बढ़ाकर 4,000 टन तक की जा रही है. कंपनी आठ कार्बन कलेक्टर स्थापित कर रही है. हर एक कलेक्टर मोटे तौर पर एक शिपिंग कंटेनर के आकार का होता है. इस संयंत्र में लगे पंखे एक विशेष फिल्टर की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं. कार्बफिक्स, पानी के साथ कार्बन को मिलाता है जिससे हल्का एसिड बनता है. इस एसिड को बाद में जमीन में 800 से 2,000 मीटर नीचे बेसाल्ट चट्टान में पहुंचा दिया जाता है.
कार्बफिक्स की सीईओ एडा सिफ अराडोटिर कहती हैं कि दो साल के भीतर, जमीन में दबाए गए कार्बन डाइऑक्साइड का 95% हिस्सा पत्थर में बदल गया. हालांकि, सोखी गई कुल हवा में महज 0.04 प्रतिशत हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड का होता है. इसलिए, इसे सोखने और संग्रहित करने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. इसमें काफी ज्यादा उर्जा भी लगती है. आइसलैंड में भूतापीय उर्जा सस्ती है, इसलिए यहां इस प्रक्रिया को यहां अपनाया जा सकता है.
अमेरिकी भुगतान कंपनी स्ट्राइप ने पिछले साल कहा कि हवा से 322 टन कार्बन डाइऑक्साइड निकालने के लिए क्लाइमवर्क को 775 डॉलर प्रति टन का भुगतान करेगा. माइक्रोसॉफ्ट ने जनवरी के अंत में कहा था कि कंपनी 1,400 टन कार्बन को जमीन में दबाने के लिए क्लाइमवर्क में निवेश करेगी, लेकिन क्लाइमवर्क ने प्रति टन कीमत बताने से इनकार कर दिया.
माइक्रोसॉफ्ट में कार्बन हटाने से जुड़े काम की जिम्मेवार एलिजाबेथ विल्मोट ने कहा, "क्लाइमवर्क की ‘डाइरेक्ट एयर कैप्चर टेक्नोलॉजी‘, कार्बन हटाने के हमारे प्रयासों के प्रमुख घटक के रूप में काम करेगी." माइक्रोसॉफ्ट ने पिछले साल कहा था कि कंपनी 2030 तक "कार्बन नेगेटिव" बन जाएगी और स्थापना (1975) के बाद से कंपनी की ओर से पैदा सभी कार्बन को 2050 तक हटा दिया जाएगा."
कार्बन से ईंधन बनाने की पहल
कनाडा स्थित कंपनी कार्बन इंजीनियरिंग भी हवा से कार्बन सोखने पर काम करती है. यह कंपनी कार्बन से ईंधन बनाती है. कंपनी का कहना है कि वह अपने पार्टनर के साथ मिलकर एक साल में दस लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने के लिए डाइरेक्ट एयर कैप्चर डीएसी पर काम कर रही है. यह "4 करोड़ पेड़ों के काम के बराबर है.'
क्लाइमवर्क कंपनी आइसलैंड में संयंत्र के अलावा, स्विट्जरलैंड में भी एक संयंत्र संचालित करती है जो हवा से एक वर्ष में 1,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने करने में सक्षम है. इसके बाद, गैस को स्थानीय ग्रीनहाउस को बेचा जाता है, जहां यह पौधों को बढ़ाने में मदद करता है.
वुर्त्सबाखर कहते हैं, "उच्च लागत सभी डीएसी फर्मों के लिए एक सिरदर्द है. प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड के खर्च को 200 डॉलर से नीचे लाना महत्वपूर्ण है. कैलिफोर्निया राज्य डीएसी कार्बन से बने यातायात में इस्तेमाल होने वाले ईंधन के लिए अनुदान देता है.” कारों या ट्रकों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन बनाने के लिए प्रति टन 200 डॉलर की प्रोत्साहन राशि डीएसी को विकसित करने में मदद कर सकती है. इसमें कार्बन को जमीन में पहुंचाना भी शामिल है.
अरोडोटिर ने कहा कि कार्बन को पत्थर में बदलना एक ऐसा समाधान है जो लाखों वर्षों के लिए ग्रीनहाउस गैसों को जमीन के अंदर दफन कर देगा. यह वृक्षारोपण की तुलना में अधिक स्थायी है. वृक्षारोपण कई वजहों से प्रभावित होते हैं. इनमें, जलवायु परिवर्तन की वजह सूखा पड़ने, तापमान बढ़ने से जंगल में लगने वाली आग, और समुद्र का जलस्तर बढ़ना शामिल है. साथ ही, खेती या अन्य गतिविधियों के लिए पेड़ की कटाई से भी वृक्षारोपण पर प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कोरोना के बावजूद नया प्लांट अप्रैल या मई महीने तक तैयार हो जाएगा और कार्बन को सोखने की प्रक्रिया चालू हो जाएगी.
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने पिछले साल एक रिपोर्ट में कहा था कि यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में 15 डीएसी संयंत्र काम कर रहे थे और साल भर में 9,000 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सोख रहे थे. हालांकि, यह विश्व में उत्सर्जित होने वाले कार्बन का एक छोटा सा हिस्सा है जो सिर्फ 600 अमेरिकियों के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है. आईईए की रिपोर्ट में कहा गया, "और अधिक प्रयासों की जरूरत है."
भविष्य की संभावनाएं
ग्रीनपीस यूके की एक रिपोर्ट में पिछले महीने डीएसी टेक्नोलॉजी पर संदेह करते हुए कहा गया था कि वे "बहुत शुरुआती चरण में और बेहद महंगी" है. "इसका भविष्य काल्पनिक है." यूएन वैज्ञानिक रिपोर्टों में कार्बन के ‘डाइरेक्ट कैप्चर' को जियोइंजीनियरिंग के तौर पर माना गया या जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए पृथ्वी की प्रणालियों में बदलाव के तौर पर देखा गया. जो इसे ‘काल्पनिक तकनीक' की श्रेणी में रखता है.
हालांकि, 2018 के बाद से, डीएसी को "कम करना” या उत्सर्जन में कटौती के तौर पर फिर से वर्गीकृत किया गया है. विज्ञान से जुड़ी नई रिपोर्ट बताती हैं कि वातावरण में प्राकृतिक तरीके या तकनीक से, कार्बन में कुछ हद तक की वृद्धि को अब रोका नहीं जा सकता. हर जगह कार्बन को जमीन के नीचे ले जाना संभव नहीं है. अराडोटिर कहती हैं, "लगभग 5% महाद्वीपों में इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त बेडरॉक है. हालांकि, समुद्र तल की विशाल चौड़ी पट्टी भी इस काम के लिए इस्तेमाल की जा सकती है.' 2014 से लेकर अब तक, कार्बनफिक्स ने भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र की मदद से 65,000 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को जमीन के नीचे दबा दिया है.
आरआर/एमजे (रॉयटर्स थॉमसन फाउंडेशन)
नाक को और खूबसूरत बनाने के लिए नोज सर्जरी करवाई. लेकिन कॉस्मेटिक सर्जरी के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि चाइनीज एक्ट्रेस की जिंदगी तबाह हो गई.
(dw.com)
चीनी एक्ट्रेस गाओ लिऊ ने ट्विटर जैसे चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वाइबो पर अपनी तस्वीरें शेयर की हैं. गाओ ने अपने फॉलोवरों से अपील की है कि वे ऐसी खतरनाक कॉस्मेटिक सर्जरी न करवाएं. तस्वीरों में गाओ लिऊ की नाक का अगला भाग काला और चपटा दिख रहा है. नाक के अगले हिस्से में कोशिकाएं और ऊतक मर चुके हैं.
अपने 50 लाख फॉलोवरों के साथ सर्जरी का अनुभव साझा करते हुए गाओ ने लिखा, "मैंने सोचा कि ये चार घंटे (सर्जरी के) मुझे और ज्यादा खूबसूरत बना देंगे, लेकिन मुझे इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि एक डरावना सपना शुरू होने जा रहा है."
हाथ से निकले कई रोल
गाओ लिऊ के मुताबिक उन्हें लगा कि सर्जरी के बाद उन्हें एक्टिंग के ज्यादा रोल मिलने लगेंगे. लेकिन अब उन्हें आत्महत्या करने जैसे ख्याल आ रहे हैं और हाथ से एक्टिंग के कई रोल निकल गए हैं.
गाओ कहती हैं कि इस सर्जरी के कारण उन्हें 61 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. सर्जरी के कारण उन्हें 4,00,000 युआन (61,800 डॉलर) का नुकसान भी हुआ.
गाओ के अपडेट कर कमेंट करते हुए एक यूजर ने लिखा, "मेरी गाओ लिऊ के प्रति सहानुभूति है, हर किसी को इसे एक चेतावनी की तरह लेना चाहिए और कॉमेस्टिक सर्जरी के खतरों के प्रति आगाह होना चाहिए." इस कमेंट को एक लाख से ज्यादा लोगों ने लाइक किया.
एक और यूजर ने लिखा, "हमें सौंदर्य के प्राकृतिक रूप को ही अपनाना चाहिए." गुआंझो शहर के स्थानीय स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि गाओ के मामले की जांच की जा रही है.
इंटरनेट पर छा जाने की होड़
चीन में प्लास्टिक सर्जरी का बाजार लगातार बढ़ रहा है. चाइनीज मार्केट रिसर्च फर्म आईमीडिया के मुताबिक 2020 में चीन में 1.52 करोड़ लोगों ने ऐसी सर्जरी कराई. डैक्सू कंसल्टिंग के मुताबिक प्लास्टिक सर्जरी के मामले में चीन दुनिया का दूसरा बड़ा बाजार है. इस बाजार की नेट वर्थ 14 अरब डॉलर है.
इस बाजार से अक्सर मेडिकल संबंधी विवाद भी सामने आते हैं. आईमीडिया के अनुमान के मुताबिक चीन में 13,000 से ज्यादा ब्यूटी क्लिनिक हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 12 फीसदी ही कानूनों और नियमावली का पालन करते हैं. प्लास्टिक सर्जरी कराने वालों सबसे ज्यादा युवा महिलाएं हैं. सोशल मीडिया पर खूबसूरत दिखने और इंफ्लुएंसर बनने के चक्कर में यह बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है.
ओएसजे/एमजे (एएफपी)