अंतरराष्ट्रीय
जनरल मिन आंग ह्लाइंग जिन्होंने म्यांमार में सैनिक शासन लागू किया
सैन्य तख़्तापलट के बाद सेना के जनरल मिन ऑन्ग ह्लाइंग म्यांमार में सबसे ताकतवर व्यक्ति बन चुके हैं. 64 वर्षीय ह्लाइंग इसी साल जुलाई के महीने में रिटायर होने वाले थे. लेकिन आपातकाल की घोषणा के साथ ही म्यांमार में ह्लाइंग की पकड़ काफ़ी मजबूत हो गई है.
लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए मिन ऑन्ग ह्लाइंग ने एक लंबा सफर तय किया है. सेना में प्रवेश के लिए दो असफल प्रयासों के बाद ह्लाइंग को तीसरी बार में नेशनल डिफेंस एकेडमी में प्रवेश मिला.
इसके बाद म्यांमार की ताकतवर सेना तत्मडा में जनरल के पद तक पहुंचने का सफर उन्होंने धीरे-धीरे तय किया है.
तख़्तापलट से पहले कितने मज़बूत थे ह्लाइंग?
म्यांमार में 1 फरवरी 2021 को हुए तख़्तापलट से पहले भी जनरल ह्लाइंग कमांडर इन चीफ़ के रूप में राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावशाली थे. म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था शुरू होने के बाद भी ह्लाइंग ने म्यांमार की सेना तत्मडा की ताकत को कम नहीं होने दिया. इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी निंदा का सामना करना पड़ा और संजातीय अल्पसंख्यकों पर सैन्य हमलों के लिए प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा.
लेकिन अब जबकि म्यांमार उनके नेतृत्व में सैन्य शासन में प्रवेश कर रहा है तब जनरल ह्लाइंग अपनी ताकत बढ़ाने और म्यांमार का आगामी भविष्य तय करने की दिशा में काम करते दिख रहे हैं.
यंगून यूनिवर्सिटी में क़ानून के छात्र रहे ह्लाइंग को अपने तीसरे प्रयास में म्यांमार की रक्षा सेवा अकादमी में जगह मिली थी. इसके बाद उन्होंने पैदल सैनिक से लेकर जनरल तक का सफर तय किया. इस सफर में उन्हें लगातार पदोन्नति मिलती रही और साल 2009 में वह ब्यूरो ऑफ़ स्पेशल ऑपरेशन - 2 के कमांडर बने.
इस पद पर बने रहते हुए ह्लाइंग ने उत्तर पूर्वी म्यांमार में सैन्य अभियानों को संभाला जिसकी वजह से जातीय अल्पसंख्यक शरणार्थियों को चीनी सीमा से लेकर पूर्वी शान प्रांत और कोकांग क्षेत्र छोड़कर भागना पड़ा.
ह्लाइंग की टुकड़ियों पर हत्या, बलात्कार और आगजनी के तमाम आरोप लगे. लेकिन इसके बावजूद वह लगातार ऊपर बढ़ते गए और अगस्त 2010 में ज्वॉइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ बने.
इसके कुछ महीनों बाद ही साल 2011 के मार्च महीने में ह्लाइंग ने कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को पछाड़ते हुए लंबे समय तक म्यांमार की सेना का नेतृत्व करने वाले सेनानायक थान श्वे की जगह ली.
ह्लाइंग के सेना नायक बनने पर ब्लॉगर और लेखक ह्लाऊ दावा करते हैं कि ह्लाइंग और वह एक दूसरे को बचपन से जानते हैं. उन्होंने ह्लाइंग को परिभाषित करते हुए कहा कि "ह्लाइंग बर्मा की बर्बर सेना के संघर्षों में तपे सैनिक" हैं. लेकिन उन्होंने ह्लाइंग को एक स्कॉलर और जेंटलमैन की उपाधि से भी परिभाषित किया.
राजनीतिक प्रभुत्व और नरसंहार
ह्लाइंग ने सेनाध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल म्यांमार में लंबे समय तक रहे सैन्य शासन ख़त्म होने और लोकतंत्र के आगमन के साथ शुरू किया था. लेकिन इसके बाद भी वह तत्मडा की शक्ति बरकरार रखने के प्रति तत्पर रहे.
सेना के समर्थन वाले राजनीतिक दल यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी के सत्ता में आने के साथ ही ह्लाइंग के राजनीतिक प्रभुत्व और सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति में भारी इज़ाफा हुआ.
लेकिन 2016 में संपन्न हुए अगले चुनाव में जब आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी सत्ता में आई तब उन्होंने बदलाव को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक कार्यक्रमों में आंग सान सू ची के साथ दिखना शुरू किया.
एनएलडी की ओर से संविधान परिवर्तन और सैन्य ताकत को सीमित करने के प्रयास किए गए.
लेकिन इन सभी प्रयासों को धता बताते हुए ह्लाइंग ने ये सुनिश्चित किया कि संसद में सेना के पास 25 फीसदी सीटें रहें और सुरक्षा से जुड़े सभी अहम पोर्टफोलियो सेना के पास रहें.
साल 2016 - 2017 में सेना ने उत्तरी रख़ाइन स्टेट में संजातीय अल्पसंख्यक समुदाय रोहिंग्या के ख़िलाफ़ आक्रामक कार्रवाई की जिसकी वजह से रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा.
इसके बाद ह्लाइंग को कथित 'नरसंहार' के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा का सामना करना पड़ा.
अगस्त 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने कहा कि "म्यांमार सेना के कमांडर इन चीफ़ मिन आंग ह्लाइंग समेत अन्य शीर्ष जनरलों के ख़िलाफ़ रख़ाइन प्रांत में नरसंहार और रख़ाइन, कचिन और शान प्रांत में 'मानवता के ख़िलाफ़ अपराध' और 'युद्ध अपराधों के लिए जांच होनी चाहिए और सजा मिलनी चाहिए."
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के इस बयान के बाद फेसबुक ने उनका अकाउंट डिलीट कर दिया. इसके साथ ही उन सभी लोगों और संस्थाओं का भी अकाउंट डिलीट कर दिया गया जिनके बारे में कहा गया कि उन्होंने म्यांमार में मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है या करने में एक भूमिका अदा की है.
अमरीका ने साल 2019 में उन पर दो बार नस्लीय सफाई (एथनिक क्लींज़िंग) और मानवाधिकार उल्लंघन में उनकी भूमिका के लिए प्रतिबंध लगाए हैं. साल 2020 जुलाई में ब्रिटेन ने भी उन पर प्रतिबंध लगाए हैं.
सत्ता पर कब्जा
साल 2020 के नवंबर महीने में संपन्न हुए आम चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने एकतरफ़ा जीत हासिल की.
लेकिन इसके बाद तत्मडा और सेना के समर्थन वाले दल यूएसडीपी ने बार बार चुनाव नतीजों को विवादित करार दिया. यूएसडीपी ने व्यापक चुनावी घोटाले का आरोप लगाया है. लेकिन चुनाव आयोग ने इन आरोपों का खंडन किया.
इसके बाद 1 फरवरी को नई सरकार को औपचारिक रूप से स्वीकार्यता मिलनी थी. लेकिन सरकार और सेना के बीच जारी विवाद की वजह से तख़्तापलट की आशंकाएं भी जताई जा रही थीं.
मिन आंग ह्लाइंग ने 27 जनवरी को 1962 और 1988 के तख़्तापलट का उदाहरण देते हुए चेतावनी दी कि "अगर संविधान का पालन नहीं करना है तो उसे ख़त्म कर देना चाहिए"
हालांकि, 30 जनवरी तक उनके दफ़्तर ने ह्लाइंग के बयान से पीछे हटते हुए कहा कि मीडिया ने संविधान ख़त्म करने की सैन्य अफसरों के बयान को तोड़ - मरोड़कर पेश किया है.
हालाकि, 1 फरवरी की सुबह तत्माडॉ ने स्टेट काउंसिलर आंग सान सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत कई नेताओं को हिरासत में लेकर साल भर के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी.
ह्लाइंग ने इसके बाद म्यांमार की सत्ता को अपने हाथ में लेकर चुनाव में कथित घोटाले के मुद्दे को प्राथमिकता पर रखा है.
ह्लाइंग के नेतृत्व में की गई नेशनल डिफेंस एवं सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में कहा गया है कि काउंसिल चुनाव में घोटाले के आरोपों की जांच करेगी और नए चुनाव कराएगी. इस तरह से एनएलडी की जीत को अवैध करार दिया गया है.
मिन आंग ह्लाइंग इस साल जुलाई महीने में कमांडर इन चीफ़ के पद से रिटायर होने वाले थे क्योंकि वह 65 वर्ष की आयु को पार कर चुके हैं. लेकिन उन्होंने अब स्वयं को एक और साल दे दिया है. लेकिन म्यांमार में सैनिक शासन लौटने की वजह से ह्लाइंग संभवत: लंबे समय के लिए पद पर बने रह सकते हैं. (bbc.com)
-फ़्लोरा ड्ररी
म्यांमार सेना ने ऐलान किया है कि उन्होंने देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली है. सेना आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया है.
साथ ही देश के मुश्य शहरों की सड़कों पर सैनिक तैनात कर दिए गए हैं और संचार व्यवस्थाओं पर सीमित रोक लगा दी गई है.
अब से 10 साल पहले सेना ने सत्ता का हस्तांतरण जनता की चुनी हुई सरकार को किया था.
तख्तापलट की ख़बर से देश में एक बार फिर डर का माहौल पैदा हो गया है. साल 2011 में ही यहां पांच दशकों से चले आ रहे दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था. सोमवार तड़के ही आंग सान सू ची और अन्य राजनेताओं की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर देश में नाउम्मीदी के उस दौर को ज़िंदा कर दिया है जिससे ये देश एक बार बाहर निकल चुका था.
सू ची और उनकी एक वक्त की प्रतिबंधित रह चुकी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी ने 2015 में बीते 25 वर्षों में देखे गए सबसे स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के बाद देश का नेतृत्व किया.
सोमवार सुबह पार्टी को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करना था. लेकिन हुआ कुछ. संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में परदे के पीछे से सेना ने म्यांमार पर कड़ी पकड़ बना रखी थी. इसमें सबसे बड़ा योगदान म्यांमार के संविधान का है जिसमें संसद की सभी सीटों का एक चौथाई हिस्सा सेना के हाथों में रहता है और देश के सबसे शक्तिशाली मंत्रालयों का नियंत्रित करने की गारंटी सेना को देता है.
ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर ये हुआ क्यों? और अब आगे क्या होने वाला है?
संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची सहित राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
'ट्रंप जैसे चुनावी फ्रॉड के दावे'
बीबीसी के दक्षिण एशिया संवाददाता जोनाथन हेड ने बताया है कि सोमवार को म्यांमार की संसद का पहला सत्र होना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बीते साल नवंबर में होने वाले चुनाव में आंग सान सू ची की पार्टी एनएलडी को 80 फ़ीसदी वोट मिले. ये वोट आंग सान सू ची की सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लगने वाले आरोपों के बावजूद मिले.
इन नतीज़ों के बाद सेना के समर्थन प्राप्त विपक्षी पार्टी ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया. इस आरोप को एक बयान की शक्ल देते हुए नए कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने हस्ताक्षर के साथ बयान जारी किया और इसके साथ ही देश में साल भर लंबा आपातकाल लागू हो गया.
म्यांमार के कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने अपने बयान में कहा, "चुनाव आयोग 8 नवंबर को हुए आम चुनाव में वोटर लिस्ट की बड़ी गड़बड़ियों को ठीक करने में असफ़ल रहा है."
लेकिन इस आरोप को साबित करने के लिए उनके पास पुख़्ता सबूत नहीं थे.
ह्यूमन राइट वॉच, एशिया के डिप्टी डायरेक्टर फ़िल रॉबर्टसन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ज़ाहिर तौर पर आंग सान सू ची को चुनाव में बड़ी जीत मिली. लेकिन नतीजे आने के बाद चुनावों में धांधली के आरोप लगाए गए. ये सब कुछ ट्रंप के दावों जैसा लग रहा था जहां आरोपों को साबित करने के कोई सबूत नहीं थे."
नवंबर में हुए चुनावों में सेना के समर्थन वाली यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवेलपमेंट पार्टी (यूएसपीडी) भले ही चुनाव जीतने से पीछे रह गई हो लेकिन इससे सेना का जो संसद में दख़ल है वो कम नहीं होने वाला था. साल 2008 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया जिसके तहत सेना के पास 25 फ़ीसदी सीटों का आधिकार होता है. साथ ही तीन अहम मंत्रालय- गृह, रक्षा और सीमाओं से जुड़े मामलों के मंत्रालय का अधिकार पूरी तरह से सेना के पास होता है.
तो क्या एनएलडी की जीत के बाद संविधान में संशोधन किए जाने की संभावना थी?
बीबीसी दक्षिण एशिया के संवाददाता जोनाथन हेड कहते हैं कि इसके आसार ना के बराबर थे क्योंकि ऐसा करने के लिए सदन में 75 फीसदी समर्थन की ज़रूरत है. जो तब तक असंभव है जब तक सेना के पास संसद में 25 फ़ीसदी वोट हैं.
जापान में रह रहे म्यांमार के लोग सेना के विरोध में सड़कों पर उतर चुके हैं.
यंगून (रंगून) में मौजूद पूर्व पत्रकार आए मिन ठंट ने बीबीसी को बताया कि "सोमवार को जो हुआ उसके पीछे एक अन्य वजह भी हो सकती है. सेना के लिए ये एक शर्म की बात हो गई होगी क्योंकि उन्हें चुनाव में हार की उम्मीद नहीं थी. जिनके परिवार वाले सेना में हैं उन्होंने भी उनके खिलाफ़ ही वोट किया होगा."
वो ये भी कहती हैं, "ये समझना होगा कि देश में सेना अपने आपको किस तरह देखती है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया आंग सान सू ची को 'राष्ट्रमाता' कहती है लेकिन सेना यहां खुद को 'राष्ट्रपिता' मानती है."
नतीजतन, जब सत्ता की बात आती है तो यहां सेना "दायित्व और हक़" की भावना महसूस करती है. हाल के सालों में म्यांमार अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दिशा में अधिक खुला है, माना जाता है कि ये सेना को पसंद नहीं आया.
मिन कहती है कि यहां सेना किसी भी बाहरी को ख़तरे की तरह देखती है. मिन का मानना है कि कोरोना महामारी और अल्पसंख्यक रोहिंग्या को मताधिकार से वंचित रखने पर अंतराष्ट्रीय आलोचनाओं ने भी सेना के लिए इस तरह का कदम उठाने का ये वक्त उपयुक्त बना दिया.
हालांकि मिन कहती हैं कि जो कुछ हुआ है उससे वो स्तब्ध हैं.
भविष्य में क्या होगा?
ज़ाहिर है कि जानकार भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आख़िर सेना ने ऐसा अभी क्यों किया क्योंकि इससे सेना को कोई बड़ा फ़ायदा होता नज़र नहीं आ रहा है.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के एशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े जेरार्ड मैकैथी कहते हैं, "यह ध्यान देने वाली बात है कि वर्तमान प्रणाली म्यांमार की सेना के लिए काफी फायदेमंद है. इसमें वाणिज्यिक हितों और राजनीतिक कवर में पूरी तरह से स्वायत्तता, बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय निवेश है. सब कुछ सेना के हाथों में है."
जेरार्ड कहते हैं कि ये भी हो सकता है कि सेना विपक्षी पार्टी यूएसडीपी को आगे के चुनाव में बेहतर और मज़बूत बनाने के लिए ये कर रही है.
वहीं ह्यूमन राइट वॉच के फ़िल रॉबर्टसन मानते हैं कि सेना का ऐसा क़दम म्यांमार को एक बार फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर देगा. दूसरी ओर देश के भीतर भी इस कारण गुस्सा पैदा होगा.
वह कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि म्यांमार के लोग इस क़दम को आसानी से स्वीकार कर लेंगे. लोग एक बार फिर सैन्य सत्ता वाले भविष्य की ओर नहीं बढ़ना चाहते. देश को लोग आंग सान सू ची को सैन्य सत्ता के ख़िलाफ़ एक चट्टान के तौर पर देखते हैं."
"लोगों को उम्मीद है की बातचीत से ये मुद्दा सुलझा लिया जाएगा. लेकिन अगर इसके ख़िलाफ़ बड़े प्रदर्शन होने लगे तो देश के बीतर संकट की स्थिति पैदा होने का ख़तरा हो सकता है."
जम्मू, 1 फरवरी| संघर्ष विराम उल्लंघन की एक और घटना में, पाकिस्तान ने सोमवार को जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास बिना उकसावे के फायरिंग शुरू कर दी और मोर्टार से गोले दागे। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल देवेंद्र आनंद ने कहा, "शाम सात बजकर 45 मिनट पर, पाकिस्तान ने पुंछ के मानकोट सेक्टर में बिना उकसावे के संघर्ष विराम का उल्लंघन किया।"
उन्होंने कहा, "भारतीय सेना ने भी इसका करारा जवाब दिया।"
पाकिस्तान हाल के वर्षो में जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन करता आ रहा है।
सीमा पार गोलाबारी के कारण एलओसी के करीब रहने वाले हजारों लोगों की जान लगातार खतरे में है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 1 फरवरी | पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने खिलाफ 8 फरवरी से शुरू होने वाले सीनेट महाभियोग ट्रायल के लिए एक नई कानूनी टीम की घोषणा की है। उन्होंने पहले की टीम से प्रमुख अटॉर्नी और चार अन्य वकीलों के निकल जाने के बाद यह घोषणा की है। द हिल न्यूज वेबसाइट के मुताबिक, रविवार को जारी एक बयान में ट्रंप ने कहा कि नई टीम का नेतृत्व वकील डेविड स्कोन और ब्रूस एल. केस्टर जूनियर करेंगे।
पोलिटिको न्यूज आउटलेट ने शनिवार को अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि साउथ कैरोलाइना के एक वकील बुत बावर्स जो ट्रंप के ट्रायल की अगुवाई करने वाले थे और कथित तौर पर एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार थे, उन्होंने ट्रंप की कानूनी टीम को छोड़ दिया, जिसके बाद ट्रंप ने नई कानूनी टीम की घोषणा की है।
न्यूज रिपोर्ट में कहा गया है कि एक और वकील लेवर डेबोराह बारबियर भी टीम के साथ नहीं हैं।
साथ ही शनिवार रात, सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि तीन अन्य वकीलों, जोश हॉवर्ड, जॉनी गैसर और ग्रेग हैरिस भी टीम से निकल गए हैं।
13 जनवरी को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने कैपिटल हिल में 6 जनवरी को हुए दंगों के बाद ट्रंप पर दूसरी बार महाभियोग चलाया, जो इमारत के बाहर उनके हजारों समर्थकों को संबोधित करने के बाद हुआ था। (आईएएनएस)
दुबई, 1 फरवरी| दुबई की एक अदालत ने एक भारतीय व्यापारी द्वारा पुलिस को 200,000-दिरहम (54,448 डॉलर) रिश्वत की पेशकश करने के आरोप में व्यापारी को दो साल की जेल की सजा सुनाई है। एक मीडिया रिपोर्ट में सोमवार को यह जानकारी दी गई। गल्फ न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुबई की अदालत ने 51 वर्षीय भारतीय व्यवसायी को पिछले साल जून में दो पुलिसकर्मियों को 10,000-10,000 दिरहम की पेशकश करने का दोषी पाया था। व्यवसायी ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जाने पर रिश्वत की पेशकश की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने दो अन्य भारतीय पुरुषों को भी इस मामले में दोषी करार दिया और व्यवसायी का समर्थन करने और उसे उकसाने के लिए दो साल की जेल की सजा सुनाई, क्योंकि वे रिश्वत की रकम पुलिस अधिकारियों को सौंपने के लिए लाए थे।
जेल की सजा पूरी होने के बाद तीनों को डिपोर्ट किया जाएगा। (आईएएनएस)
कभी मजदूरों को कोई छुट्टी नहीं मिला करती थी. फिर हफ्ते में एक दिन और दो दिन की छुट्टी मिली. अब नया आयडिया, हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी. बढ़िया है ना? जापान में इसे लागू करने के बारे में सोचा जा रहा है.
डॉयचेवेले पर जूलियान रायल की रिपोर्ट
कोरोना महामारी से पैदा स्थिति के बीच जापान में नए वर्किंग कल्चर की मांग उठ रही है. जापान की संसद इस बारे में बहस कर रही है कि क्या कंपनियों को अपने कर्मचारियों को चार दिन काम और तीन दिन के वीकेंड का ऑफर देना चाहिए. उम्मीद है कि इससे कर्मचारियों पर काम का दबाब घटेगा और "कारोशी" का जोखिम कम होगा. जापानी भाषा में इस शब्द का इस्तेमाल अत्यधिक काम के कारण होने वाली मौत के लिए होता है.
जापान के कर्मचारी दफ्तर में बहुत देर तक काम करने और अपनी सालाना छुट्टियां ना लेने के लिए मशहूर हैं. कई लोगों को लगता है कि अगर छुट्टी ले ली तो इससे ऑफिस के दूसरे साथियों को परेशानी हो सकती है. लेकिन कोरोना महामारी के दौर में कई चीजें बदल रही हैं और नए बदलावों की मांग उठ रही है. जापानी संसद में सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद कुनिको इनोगुची ने प्रस्ताव रखा है कि पारंपरिक तौर पर सोमवार से शुक्रवार तक पांच दिन काम करने की बजाय कर्मचारियों को सिर्फ चार दिन ही काम करने की अनुमति दी जाए.
कई कंपनियों में पहले ही फ्लेक्सिबल वर्किंग सिस्टम पर अमल हो रहा है. लेकिन कोरोना महामारी ने जापान के कॉरपोरेट कल्चर में बड़े बदलाव के लिए जारी बहस को गंभीर बना दिया है. इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि तीन दिन के वीकेंड के प्रस्ताव को कर्मचारियों और कंपनियों की तरफ से समर्थन मिलेगा. ओसाका की हनान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर तेरुओ साकुरादा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैं तो कहूंगा कि कंपनियों की तरफ से इसकी संभावना दिए जाने की बजाय इसे अनिवार्य बनाया जाए."
आदर्श था निकम्मा होना
प्राचीन ग्रीस के दार्शनिकों के बीच काम को निंदनीय माना जाता था. अरस्तू ने काम को आजादी विरोधी बताया तो होमर ने प्राचीन ग्रीस के कुलीनों के आलसीपने को अभीष्ठ बताया. उस जमाने में शारीरिक श्रम सिर्फ महिलाओं, मजदूरों और गुलामों का काम था.
प्रोफेसर साकुरादा कहते हैं, "जापान का आर्थिक तंत्र बहुत ज्यादा दबाव में है. महामारी ने स्थिति को और खराब किया है. हमें जरूरी बदलाव करने होंगे ताकि यह पर्याप्त मजबूत बना रहे और भविष्य में कंपनियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके."
हाल के दशकों में जापानी अर्थव्यवस्था का फोकस मैन्युफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर और फाइनेंशियल सर्विसेज की तरफ गया है. यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि जापान की मौजूदा 12.6 करोड़ की जनसंख्या इस सदी के आखिर तक घटकर 8.3 करोड़ हो सकती है.
साकुरादा कहते हैं कि वर्किंग कल्चर में इसलिए भी बदलाव जरूरी है, ताकि लोग काम के बोझ के तले ना मरे. 2016 में सरकार के एक अध्ययन में पता चला कि जापान में हर पांच में से एक व्यक्ति के कारोशी की तरफ जाने का जोखिम है. एक चौथाई जापानी कंपनियों में कर्मचारियों को हर महीने लगभग 80 घंटे का ओवरटाइम करना होता है जिसमें ज्यादातर के लिए भुगतान नहीं होता है. इसी का नतीजा है कि जापान में हर साल सैकड़ों लोग दिल के दौरे और अन्य बीमारियों से मर रहे हैं. कई बार काम के दबाव में कई लोग आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.
तरक्की
इंसान की फितरत में है आगे बढ़ना. वह एक जगह रुका नहीं रह सकता. अगर कंपनी अपने कर्मचारियों को ऐसा अहसास करा रही है कि अगले 10-20 सालों में भी उनकी कोई तरक्की नहीं होगी और वे वही काम करते रहेंगे, तो ऐसे में कर्मचारियों को रोक कर रखना मुश्किल है.
अप्रैल 2019 में लागू एक कानून के मुताबिक कोई कंपनी महीने में अपने कर्मचारी से 100 घंटे से ज्यादा का ओवरटाइम नहीं करा सकती है. इसका उल्लंघन करने पर कंपनियों पर जुर्माना लगाया जाता है. आलोचक कहते हैं कि इस कानून में कई खामियां हैं. साकुरादा को उम्मीद है कि काम के दिनों को घटाकर इन्हें दूर किया जा सकता है.
माइक्रोसॉफ्ट जापान और मिजुहो फाइनेंशियल ग्रुप ने एक स्कीम शुरू की जिसके तहत कर्मचारी काम के दिनों में से कोई एक दिन चुन सकते हैं जिस दिन वे काम नहीं करना चाहते. वहीं कपड़ों के कारोबार में लगी कंपनी फास्ट रिटेलिंग ने 2015 में सबसे पहले अपने कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन काम करने का ऑफर दिया था. कंपनी की प्रवक्ता पेई ची तुंग कहती हैं, "हमने कई बदलाव किए हैं ताकि हमारे कर्मचारी अच्छे माहौल में काम कर पाएं क्योंकि हम अपनी प्रतिभाओं को बनाए रखना चाहते हैं."
सांसद इनोगुची के प्रस्ताव पर अमल करने के लिए सरकार की तरफ से वित्तीय समर्थन की जरूरत होगी, खासकर शुरुआती चरण में सिर्फ चार दिन काम शुरू करने वाली कंपनियों के लिए. इस प्रस्ताव की राह में सबसे बड़ी बाधा बुजुर्ग और पारपंरिक सोच रखने वाले मैनेजर लेवल के कर्मचारी हो सकते हैं, जिन्होंने अपना खून पसीना बहाकर जापान को आर्थिक पावरहाउस बनाया है. कम दिन काम करने प्रस्ताव पर उन्हें लगेगा कि नई पीढ़ी कंपनी और देश के प्रति अपनी वचनबद्धता को लेकर लापरवाही दिखा रही है.
नेपीती. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद वहां के सैन्य प्रशासन ने देश में सभी यात्री उड़ानें रोक दी है. इस बीच, म्यांमार के ताजा घटनाक्रम से चीन की टेंशन बढ़ गई है. चीन, म्यांमार का महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है और उसने यहां खनन, आधारभूत संरचना और गैस पाइपलाइन परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘म्यांमार में जो कुछ हुआ है, हमने उसका संज्ञान लिया है और हम हालात के बारे में सूचना जुटा रहे हैं.’
चीन-म्यांमार के रिश्तों में दूरियां भी आई हैं
चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अधिनायकवादी शासकों का समर्थन करती रही है. हालांकि, म्यांमार में चीनी मूल के अल्पसंख्यक समूहों और पहाड़ी सीमाओं के जरिए मादक पदार्थ के कारोबार के खिलाफ कार्रवाई करने के कारण कई बार रिश्तों में दूरियां भी आई हैं.
म्यांमार में हवाई अड्डे बंद
उधर, म्यांमार में अमेरिकी दूतावास ने अपने फेसबुक पेज पर कहा कि यांगून के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को जाने वाली सड़क सोमवार को बंद कर दी गई हैं. यह देश का सबसे बड़ा शहर है. उसने ट्विटर पर लिखा कि ‘खबरों से संकेत मिलता है कि म्यामां में सारे हवाई अड्डे बंद दिये गये हैं.
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट, एक साल के लिए सेना के कब्जे में देश
अमेरिका की घटना पर पूरी नजर
अमेरिकी दूतावास ने यह कहते हुए ‘सुरक्षा अलर्ट’ भी जारी किया कि उसे म्यांमार की नेता आंग सान सू की को हिरासत में लेने और यांगून समेत कुछ स्थानों पर इंटरनेट सेवाएं बंद कर देने की जानकारी मिली है. उसने कहा, ‘बर्मा (म्यांमार) में नागरिक और राजनीतिक अशांति की संभावना है और हम स्थिति पर नजर रखेंगे.’ बता दें कि अमेरिका म्यांमार के पुराने नाम बर्मा का उपयोग करता है.
इस याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि देश ने अतीत में बहुत सारी सांप्रदायिक हिंसा देखी भी है, लेकिन आज सोशल मीडिया के दौर में यह आक्रामकता केवल क्षेत्रीय या स्थानीय आबादी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पूरे देश को अपने साथ ले लेती हैं. अफवाहें, व्यंग्य और घृणा एक स्थानीय सांप्रदायिक झड़प में आग लगाने का काम करती है परंतु यही आग सोशल मीडिया के जरिए तुरंत पूरे देश में फैल जाती है. इसने स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष और राष्ट्रीय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीच सामाजिक दूरी को कम कर दिया है.आज एक स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष को कुछ ही सेकंड्स में राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा सकता है.
सोशल मीडिया हानिकारक भूमिका
दलील में कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया एक हानिकारक भूमिका निभा रहा है और इस दुरुपयोग को रोकने का समय आ गया है. याचिका में यह तर्क दिया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइटें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं. क्योंकि इनका उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और मैच फिक्सिंग, आतंकवाद, हिंसा भड़काने और अफवाह फैलाने वाले उपकरण के रूप में किया जा रहा है. याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया इंस्ट्रूमेंट्स जैसे ब्लॉग्स, माइक्रोब्लॉग्स, डायलॉग बोड्र्स, एसएमएस और शायद सबसे ज्वलंत समस्या यानी सोशल नेटवर्किंग वेब साइट्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप इत्यादि हैं.
रूस में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान 5,100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार में किया गया है. विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी की पत्नी यूलिया को भी हिरासत में लिया गया है. सरकार ने सुरक्षा बलों की अभूतपूर्व तैनाती की है.
रविवार को रूस के कई शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे. उनकी मांग है कि विपक्षी नेता नावाल्नी को रिहा किया जाए. राजधानी मॉस्को में सैकड़ों लोगों ने "आजादी" और "पुतिन इस्तीफा दो" के नारों के साथ प्रदर्शन किया. दंगा नियंत्रक पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने की कोशिश की. बाद में वे मात्रोस्काया तिशिना जेल की तरफ चले गए जहां नावाल्नी को रखा गया है.
स्थिति पर नजर रखने वाले एक समूह ओवीडी इंफो ने कहा है कि पुलिस ने अब तक 5,100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. अकेले राजधानी मॉस्को में 1,600 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें नावाल्नी की पत्नी यूलिया नावाल्नाया भी शामिल हैं. विपक्षी कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी है. प्रदर्शन में हिस्सा लेने से पहले यूलिया ने इंस्टाग्राम पर लिखा था, "अगर आज हम खामोश रहे तो कल वे हममें किसी को भी प्रताड़ित करेंगे."
नावाल्नी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कट्टर आलोचक हैं और उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हैं. पिछले दिनों जर्मनी से मॉस्को लौटते ही नावाल्नी को गिरफ्तार कर लिया गया था. बीते साल अगस्त में नावाल्नी को जहर देने की कोशिश की गई, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए जर्मनी लाया गया था.
रूसी विरोध का चेहरा
रूस में विरोध करने वालों के बीच एक बुलंद आवाज और मजबूत छवि अलेक्सेई नावाल्नी की है. नावाल्नी ने 2008 में एक ब्लॉग लिख कर रूसी राजनीति और सरकारी कंपनियों के कथित गंदे कामों की ओर लोगों का ध्यान खींचा. उनके ब्लॉग में लिखी बातें अकसर इस्तीफों की वजह बनती हैं जो रूस की राजनीति में दुर्लभ बात है.
डीडब्ल्यू की मॉस्को संवाददाता एमिली शेरविन का कहना है कि रविवार को पुलिस और प्रदर्शनकारियों में चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा. उन्होंने ट्वीट किया, "जब भी पुलिस प्रदर्शन वाली जगह पर लोगों को जाने से रोकती थी, तो नावाल्नी के कार्यालय की तरफ से टेलीग्राम पर प्रदर्शन की नई जगह की घोषणा हो जाती. यह अभूतपूर्व है और बेलारूस की याद दिलाता है."
नावाल्नी की टीम का कहना है कि उन्होंने रूस के अलग-अलग 11 टाइमजोनों को देखते हुए देश के 100 शहरों में प्रदर्शनों की योजना बनाई है. मॉस्को में सड़कों पर उतरे लोगों का कहना है कि बात सिर्फ नावाल्नी की नहीं है, बल्कि वे एक बेहतर रूस हासिल करने के लक्ष्य के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं जहां जीने के लिए बेहतर परिस्थितियां हों. एक युवा प्रदर्शनकारी ने एमिली शेरविन को बताया, "मैं इसलिए सड़क पर हूं क्योंकि मेरे देश में जो हो रहा है, उसमें मेरी हिस्सेदारी होनी चाहिए. मुझे यहां रहना है." एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, "यह बहुत अपमान की बात है. उन्होंने हमारा सब कुछ चुरा लिया. मैं एक तेल भंडार के पास रहती हूं और वे लोगों से सब कुछ चुरा रहे हैं."
वहीं, एक प्रदर्शनकारी ने राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना साधते हुए कहा, "मेरा दो साल का बेटा है. अगर पुतिन अगले 16 साल तक सत्ता में रहते हैं, जैसा कि उन्होंने योजना बनाई है, तो मेरा बेटा तो बस उनके राज में ही बड़ा होगा और मुझे नहीं लगता कि उससे कुछ भला होने वाला है."
रूस में सरकार विरोधी प्रदर्शन
प्रदर्शनकारी कहते हैं कि वे एक बेहतर रूस चाहते हैं
चौतरफा निंदा
पुलिस ने चेतावनी दी थी कि रविवार को होने वाले प्रदर्शन गैरकानूनी हैं. गृह मंत्रालय ने कहा कि इनमें हिस्सा लेने वाले को जेल भेजा जाएगा. मॉस्को में प्रदर्शनकारियों की आवाजाही को रोकने के लिए पुलिस ने अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए.
अमेरिका ने रूस में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई की आलोचना की है और नावाल्नी को रिहा करने की मांग की है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने ट्वीट किया, "लगातार दूसरे हफ्ते शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों के खिलाफ रूसी अधिकारियों ने जिस तरह सख्त बल प्रयोग किया है, अमेरिका उसकी निंदा करता है."
रूस ने अमेरिकी आलोचना पर पलटवार करते हुए इसे रूस के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी बताया है.
यूरोपीय आयोग के उपाध्यक्ष जोसेफ बोरेल ने भी रूस के घटनाक्रम की आलोचना की है और इसे रूसी अधिकारियों की तरफ से "बल का अनुचित प्रयोग" बताया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, "लोगों को दमन के भय के बिना प्रदर्शन करने का अधिकार होना चाहिए. रूस को अपनी अंतरराष्ट्रीय वचनबद्धताओं का पालन करना चाहिए."
नावाल्नी को रूसी अधिकारियों ने 2014 में मिली निलंबित सजा की शर्तों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. इसी हफ्ते एक अदालत तय करेगी कि उन्हें साढ़े तीन साल की कैद दी जाए या नहीं. रविवार को हुए प्रदर्शन से पहले कई और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया.
एके/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
ओटावा, 1 फरवरी | कनाडा में कोविड-19 महामारी से मरने वालों की संख्या 20,000 से अधिक हो गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, कनाडा में मौत का आंकड़ा 20,016 है, जबकि मामले बढ़कर 782,467 हो गए हैं।
ओंटारियो और क्यूबेक में कोविड मामलों और मौतों में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है।
दोनों प्रांतों ने लगभग 16,000 मौतों के साथ सबसे अधिक मौतें दर्ज की हैं।
ओंटारियो में 6,180 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि क्यूबेक में 9,700 से अधिक लोगों की मौत हुई है।
टोरंटो में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि होने के छह सप्ताह बाद 9 मार्च, 2020 को पहली मौत दर्ज की गई थी।
29 जनवरी को, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कोविड-19 और इसके वेरिएंट के प्रसार को रोकने के लिए गैर-आवश्यक यात्रा के खिलाफ नए उपायों की घोषणा की।
अब तक, कनाडा में 952,296 कोविड-19 वैक्सीन की खुराक दी गई है, जबकि देश भर में 2.2 करोड़ से अधिक परीक्षण भी किए गए हैं। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 1 फरवरी । बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि जियाउर रहमान, हुसैन मुहम्मद इरशाद और खालिदा जिया की पूर्ववर्ती सरकारों ने 1971 मुक्ति संग्राम और भाषा आंदोलन के गौरवशाली इतिहास से उनके पिता और राष्ट्र के जनक बंगबंधु का नाम मिटाने के प्रयास में पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के कई दस्तावेजों को नष्ट कर दिया है।
हसीना ने रविवार को यहां जतिया संसद भवन में मुजीब बोरशो कार्यक्रम, मुजीब बोरशो की वेबसाइट 2020-2021 और उनके भाषण के डिजिटल संस्करण के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, "यह साबित हो चुका है कि इतिहास को कभी भी मिटाया नहीं जा सकता है।"
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आईएसआई दस्तावेजों के 14 संस्करणों में से सात को पहले ही प्रकाशित कर चुकी है जो मुख्य रूप से बंगबंधु के खिलाफ थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के वास्तविक इतिहास को उन संस्करणों को पढ़ने से समझा जा सकता है।
बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हसीना ने कहा कि वह सभी आगंतुकों की पुस्तकों को विभिन्न देशों की सरकारों और राज्यों के प्रमुखों और आम लोगों की टिप्पणियों के साथ संरक्षित कर रही हैं, ताकि लोगों को इतिहास से जुड़ी चीजों के बारे में पता चल सके।
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि संसद की देश के लोकतंत्र की निरंतरता में भूमिका है क्योंकि लोगों के प्रतिनिधियों को यहां लोगों के कल्याण के बारे में कुछ कहने की गुंजाइश मिलती है।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार संसद को चलाने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं पैदा कर रही थी, लेकिन विपक्ष में रहते हुए उनके बुरे अनुभव थे।
उन्होंने निष्पक्ष तरीके से संसद चलाने के लिए स्पीकर को धन्यवाद दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने मुजीब बोरशो को 16 दिसंबर तक बढ़ा दिया है, क्योंकि उनके पास देश की आजादी की स्वर्ण जयंती और राष्ट्र के जनक की जन्म शताब्दी मनाने की योजना है। अगर आने वाले दिनों में कोरोनोवायरस की स्थिति में सुधार होता है।
उन्होंने कहा कि बंगबंधु का सपना था कि वह लोगों को एक अलग देश दें और मुस्कान लाएं, लेकिन वह अपनी इच्छा को पूरी तरह से पूरा नहीं कर सके क्योंकि 15 अगस्त 1975 को उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 1 फरवरी | कैलिफोर्निया में भारतीय मूल के एक कानूनी प्रवर्तन अधिकारी को इन आरोपों के साथ गिरफ्तार किया गया है कि उन्होंने खुद पर गोली लगने के झूठे आरोप लगाए हैं और दावा किया है कि बॉडी कैमरे के चलते उन्होंने खुद को बुलेट लगने से बचा लिया है। अधिकारियों ने इस घटना की जानकारी दी है।
शेरिफ कार्यालय ने कहा, जासूसों ने अपने सबूतों में पाया कि सांता क्लारा काउंटी में एक शेरिफ डिप्टी सुखदीप गिल ने एक मनगढ़ंत कहानी बनाई है, जिसके चलते उन्हें 29 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
जनवरी, 2020 की इस घटना में उन्हें एक हीरो की तरह से सराहा गया है, जिसने अपनी बताई कहानी में अविश्वसनीय ढंग से भागने का वर्णन किया था।
गिल ने दावा किया था कि उन्होंने गांव के किसी सड़क के किनारे अपने ऑफिस की गाड़ी पार्क की थी, तभी घात लगाए बदमाशों ने उन पर हमला किया और बंदूक से उन पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा था कि बॉडी कैमरे की वजह से एक गोली उन पर लगने से चूक गई। बॉडी कैमरों का उपयोग पुलिस कर्मी अकसर अपने पहनने के लिए करते हैं, जिससे उनकी कई तरह की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है।
अब इसे लेकर किसी नतीजे पर आने से पहले जासूसों की एक टीम ने जांच शुरू की और पाया कि घात लगाने और गोली चलाने की घटना में कोई सच्चाई नहीं थी।
शेरिफ कार्यालय ने आगे बताया कि स्थानीय अभियोजक द्वारा उन पर झूठी रिपोर्ट बनाने और गाड़ी व कैमरे को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए गए हैं। (आईएएनएस)
मोगादीशू, 1 फरवरी | सोमालिया की राजधानी मोगादीशू में एक कार बम धमाके में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई और कई अन्य बुरी तरह घायल हो गए। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, यह धमाका रविवार शाम 5 बजे आदेन अद्दे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा के पास एक सुरक्षा चौकी के समीप स्थित अफरीक होटल के नजदीक हुआ। इस होटल में सरकारी अधिकारी भी आते रहते हैं।
इस कार में विस्फोटक लदा हुआ था। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यह विस्फोट आतंकी संगठन अल-शबाब ने किया है। उन्होंने कहा, इस हमले में पांच लोगों के मारे जाने की मैं पुष्टि कर सकता हूं। विस्तृत जानकारी बाद में दूंगा।
अल-शबाब ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि इस होटल में आने वाले सरकारी अधिकारी उनके निशाने पर थे। अपुष्ट खबरों में कहा गया है कि इस हमले में पूर्व रक्षा मंत्री बाल-बाल बच गए और होटल के अंदर लोगों को भी बचा लिया गया है।
गौरतलब है कि सोमालिया में 8 फरवरी को राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। (आईएएनएस)
म्यांमार की सेना ने तख्तापलट करते हुए देश की कमान अपने हाथ में ले ली है. सेना ने म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची, राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई नेताओं को हिरासत में लेने के बाद एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया है.
(dw.com)
म्यांमार की नेता सू ची, राष्ट्रपति विन मिंट और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रैसी (एनएलडी) के कई वरिष्ठ नेताओं को सोमवार तड़के सेना ने कार्रवाई करते हुए हिरासत में ले लिया. सेना ने इसके बाद देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया. म्यांमार की शक्तिशाली सेना की इस कार्रवाई की चौतरफा आलोचना हो रही है. संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने म्यांमार के इस घटनाक्रम पर चिंता जाहिर की है. एनएलडी के प्रवक्ता मायो नयुंट ने कहा, "हमने सुना है कि उन्हें सेना ने हिरासत में ले लिया है... अब जो स्थिति हम देख रहे हैं, हमें यह मानना होगा कि सेना तख्तापलट कर रही है."
म्यांमार की सत्तारूढ़ एनएलडी ने सोमवार को कहा कि देश की सेना ने रात भर चले छापे के दौरान सू ची को हिरासत में ले लिया और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को सैन्य तख्तापलट में "उठा" लिया. सेना की ओर से संचालित टीवी पर सोमवार को कहा गया कि सेना ने देश को अपने कब्जे में ले लिया है और एक साल के लिए आपातकाल घोषित किया है. सेना का कहना है कि उसने पूर्व जनरल मिंट स्वे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया है. मायो नयुंट ने जनता से अपील करते हुए कहा, "मैं लोगों से आग्रह करता हूं कि वे जल्दबाजी में प्रतिक्रिया न करें और मैं चाहता हूं कि वे कानून के मुताबिक काम करें."
राष्ट्रीय टीवी प्रसारण बंद
सैन्य कार्रवाई के कुछ घंटों बाद सरकारी प्रसारक एमआरटीवी ने कहा कि वह कुछ तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहा है और प्रसारण जारी रखने में सक्षम नहीं होगा. म्यांमार रेडियो और टेलीविजन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, "मौजूदा संचार समस्याओं के कारण हम विनम्रतापूर्वक आपको सूचित करना चाहेंगे कि म्यांमार रेडियो पर प्रसारण जारी नहीं रख पाएंगे." देश के सबसे बड़े शहर यंगून में एक चश्मदीद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सिटी हॉल के बाहर के सैनिकों को तैनात किया गया है. यंगून में सोमवार सुबह इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं. इंटरनेट निगरानी सेवा नेटब्लॉक के मुताबिक सोमवार को म्यांमार की राष्ट्रीय इंटरनेट कनेक्टिविटी सामान्य से 75 फीसदी कम हो गई.
दशकों से देश पर राज कर चुकी सेना और सरकार के बीच तनाव बीते कुछ समय में बढ़ा है. पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव को लेकर सेना संतुष्ट नहीं थी और वह चुनाव में धोखाधड़ी का मुद्दा उठा रही थी. हालांकि म्यांमार के राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग ने सेना की ओर से लगाए गए चुनावों में धोखाधड़ी होने के आरोपों से इनकार कर दिया था. सू ची की पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. म्यांमार के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि नेताओं को चुनावी धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पिछले हफ्ते म्यांमार के सेना प्रमुख जनरल मिन आंग लाइ ने सेना को संबोधित करते हुए तख्तापलट का संकेत दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर देश में कानून का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है तो "आवश्यक" कदम उठाए जा सकते हैं. हालांकि शनिवार को सेना ने एक बयान में कहा था कि लाइ के बयान का गलत मतलब निकाला गया.
तख्तापलट की आलोचना
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने म्यांमार की स्थिति पर चिंता जताई है. एंटोनियो के प्रवक्ता स्टेफानी दुजारक ने एक बयान में कहा, "काउंसलर सू ची, राष्ट्रपति और कई वरिष्ठ नेताओं को नई संसद के सत्र के पहले हिरासत में लिए जाने की महासचिव कड़ी निंदा करते हैं." दूसरी ओर व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका उन रिपोर्टों से चिंतित है कि म्यांमार की सेना ने देश के लोकतांत्रिक बदलाव को खोखला कर दिया है और आंग सांग सू ची को गिरफ्तार किया है. उनके मुताबिक इस घटना के बारे में राष्ट्रपति जो बाइडेन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जानकारी दी है.
भारत ने भी स्थिति पर चिंता जताई है और एक बयान में कहा है कि वह बारीकी से घटना पर नजर बनाए हुए है. भारत ने कहा कि उसने हमेशा ही म्यांमार में लोकतांत्रिक बदलाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का समर्थन किया है. सू ची ने 1988 में सैन्य-विरोधी प्रदर्शनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 2012 के संसदीय चुनाव से पहले कई सालों तक उन्हें नजरबंद किया गया था.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
निखिला नटराजन
न्यूयार्क, 1 फरवरी| कोरोना की मार झेल रही अमेरिकी जनता फिलहाल कोविड राहत अनुदान पाने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है, लेकिन इसी बीच उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस द्वारा एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू के कारण उनकी बहुत फजीहत हो रही है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार कांग्रेस के माध्यम से जनता को 1.9 ट्रिलियन डॉलर की महत्वाकांक्षी महामारी राहत देने की कोशिश में जुटी है। लेकिन, अभी योजना पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई है।
हैरिस के इस इंटरव्यू के कारण कई डेमोक्रेट नेता भी बुरी तरह नाराज हैं। उन्होंने इस प्रस्तावित महामारी राहत पैकेज को वेस्ट वर्जिनिया के लिए एक बड़ा मुद्दा बताए जाने के कारण हैरिस की आलोचना की। डेमोकट्र नेता हैरिस के बयान को अनुचित और औचित्यहीन बता रहे हैं।
गौरतलब है कि हैरिस का यह बयान उस वक्त आया जब इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि आखिर लोगों को महामारी राहत पैकेज मिलने में कितने दिन लगेंगे। इस पर हैरिस ने कहा कि वेस्ट वर्जिनिया के लिए यह एक बड़ा मुद्दा है। यहां हर सात में से एक परिवार भूखा है, हर छह में से एक परिवार मकान का किराया नहीं दे पा रहा है और हर चार में से एक छोटे कारोबारी या तो अपना धंधा कर रहे हैं या कर चुके हैं। इसलिए यह न केवल वेस्ट वर्जिनिया, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा मुद्दा है।
उनके इस इंटरव्यू पर अपनी प्रतिक्रिया में वेस्ट वर्जिनिया के सीनेटर जो मैनचिन ने कहा कि मैंने इंटरव्यू देखा। मैं यह विश्वास ही नहीं कर पा रहा हूं। हम कोई बीच का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए हम सबको साथ आना होगा। यह साथ मिलकर काम करने का कोई तरीका नहीं है। (आईएएनएस)
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेने के लिए तख़्तापलट कर लिया है. इससे पहले म्यांमार की सेना ने नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची को गिरफ़्तार कर लिया था. उनकी पार्टी के प्रवक्ता ने बयान जारी कर इसकी जानकारी दी थी. बीते कुछ समय से, सरकार और सेना के बीच हाल ही में संपन्न हुए चुनाव के नतीजों को लेकर तनाव जारी था.
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने नवंबर महीने में हुए चुनाव में भारी अंतर से जीत हासिल की थी लेकिन सेना का दावा है कि चुनाव प्रक्रिया में धोखाधड़ी हुई है. सेना ने सोमवार को संसद की बैठक को स्थगित करने का आह्वान किया है.
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी के प्रवक्ता ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से कहा, 'सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिंट और दूसरे नेताओं को तड़के हिरासत में ले लिया गया था'. उन्होंने आशंका जताई कि आने वाले समय मे उन्हें भी हिरासत में लिया जा सकता है.
अपने समर्थकों और आम लोगों के आक्रोश को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा है, "मैं अपने लोगों से कहना चाहता हूं कि जल्दबाज़ी में कदम न उठाएँ और क़ानून के मुताबिक चलें."
बीबीसी दक्षिण-पूर्व एशिया के संवाददाता जॉनथन हेड का कहना है कि म्यामांर की राजधानी नेपीटाव और मुख्य शहर यंगून में सड़कों पर सैनिक मौजूद हैं.
उन्होंने कहा है कि ये पूरी तरह तख़्तापलट लगता है जबकि पिछले हफ़्ते तक सेना उस संविधान का पालन करने की बात कर रही थी जिसे सेना ने ही दस साल पहले बनाया था.
इस संविधान के तहत सेना को आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है लेकिन आंग सान सू ची जैसे नेताओं को हिरासत में लेना एक ख़तरनाक और उकसाने वाला कदम हो सकता है जिसका कड़ा विरोध देखा जा सकता है.
वहीं, बीबीसी बर्मा सेवा ने बताया कि राजधानी में टेलीफ़ोन और इंटरनेट सेवाएं काट दी गई हैं.
चुनाव में क्या हुआ था?
बीती 8 नवंबर को आए चुनावी नतीजों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83% सीटें जीत ली थीं. इस चुनाव को कई लोगों को आंग सान सू ची सरकार के जनमत संग्रह के रूप में देखा. साल 2011 में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद से ये दूसरा चुनाव था.
लेकिन म्यांमार की सेना ने इन चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए हैं. सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के अध्यक्ष के ख़िलाफ़ शिकायत की गई है.
हाल ही में सेना द्वारा कथित भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने की धमकी देने के बाद तख़्तापलट की आशंकाएं पैदा हो गई हैं. हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है.
कौन हैं आंग सान सू ची?
आंग सान सू ची म्यांमार की आज़ादी के नायक रहे जनरल आंग सान की बेटी हैं. 1948 में ब्रिटिश राज से आज़ादी से पहले ही जनरल आंग सान की हत्या कर दी गई थी. सू ची उस वक़्त सिर्फ दो साल की थीं.
सू ची को दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला के रूप में देखा गया जिन्होंने म्यांमार के सैन्य शासकों को चुनौती देने के लिए अपनी आज़ादी त्याग दी.
साल 1991 में नजरबंदी के दौरान ही सू ची को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया. 1989 से 2010 तक सू ची ने लगभग 15 साल नज़रबंदी में गुजारे.
साल 2015 के नवंबर महीने में सू ची के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने एकतरफा चुनाव जीत लिया. ये म्यांमार के इतिहास में 25 सालों में हुआ पहला चुनाव था जिसमें लोगों ने खुलकर हिस्सा लिया.
म्यांमार का संविधान उन्हें राष्ट्रपति बनने से रोकता है क्योंकि उनके बच्चे विदेशी नागरिक हैं. लेकिन 75 वर्षीय सू ची को म्यांमार की सर्वोच्च नेता के रूप में देखा जाता है.
लेकिन म्यांमार की स्टेट काउंसलर बनने के बाद से आंग सान सू ची ने म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में जो रवैया अपनाया उसकी काफ़ी आलोचना हुई.
साल 2017 में रखाइन प्रांत में पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या मुसलमानों ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ली थी.
इसके बाद सू ची के अंतरराष्ट्रीय समर्थकों ने बलात्कार, हत्याएं और संभावित नरसंहार को रोकने के लिए ताकतवर सेन की निंदा नहीं की और ना ही अत्याचारों को स्वीकार किया.
कुछ लोगों ने तर्क दिया कि वह एक समझदार राजनेता हैं जो कि एक ऐसे बहु-जातीय देश का शासन चलाने की कोशिश कर रही हैं जिसका इतिहास काफ़ी जटिल है.
लेकिन सू ची ने 2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान जो सफाई पेश की, उसके बाद उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति ख़त्म हो गई.
हालांकि, म्यांमार में आंग सान सू ची को द लेडी की उपाधि हासिल है और बहुसंख्यक बौद्ध आबादी में वह अभी भी काफ़ी लोकप्रिय हैं. लेकिन ये बहुसंख्यक समाज रोहिंग्या समाज के लिए बेहद कम सहानुभूति रखता है.
नई दिल्ली, 1 फरवरी| अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत आबिदा हुसैन ने खुलासा किया है कि ओसामा बिन लादेन ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का समर्थन और वित्त पोषण (फंडिंग) किया था। आबिदा ने कहा, हां, उन्होंने (ओसामा बिन लादेन) एक समय मियां नवाज शरीफ का समर्थन किया था। हालांकि, यह एक जटिल कहानी है।
उन्होंने एक निजी टेलीविजन चैनल जियो टीवी के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "वह (ओसामा) नवाज शरीफ की वित्तीय सहायता करते थे।"
खबर के मुताबिक पाकिस्तान ने खबर दी थी कि नवाज शरीफ की सरकार में कैबिनेट के पूर्व सदस्य रहे हुसैन ने याद किया कि एक समय बिन लादेन लोकप्रिय था और अमेरिकियों समेत हर किसी को पसंद था, लेकिन बाद में उन्हें अजनबी माना गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव हारने के बाद उन्हें नवाज शरीफ के पहले प्रीमियर के दौरान राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया था।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में दूत के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उनका अधिकांश संवाद राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान के साथ हुआ करता था।
खान ने उन्हें 18 महीने में पाकिस्तान द्वारा अपना परमाणु कार्यक्रम पूरा करने तक अमेरिकी को बातचीत में व्यस्त रखने का जिम्मा सौंपा था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनयिकों, सीनेटरों और कांग्रेसियों सहित अमेरिकी प्रशासन परमाणु कार्यक्रम के निष्पादन के खिलाफ पाकिस्तान को सलाह देता था।
चूंकि परमाणु कार्यक्रम राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में था, इसलिए उन्होंने कहा कि उनकी अधिकांश बातचीत उनके साथ हुई करती थी, न कि प्रधानमंत्री के साथ। इसकी वजह यह भी है कि रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान को किसी पर भरोसा नहीं था। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 31 जनवरी | अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद स्टीफेन लिंच वैक्सीन लगाने के बाद भी कोरोनावायरस पॉजिटिव पाए गए हैं। वो मैसाचुसेट्स से सांसद हैं।
द हिल न्यूज वेबसाइट ने शनिवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा कि लिंच को फाइजर और बायोएनटेक की कोविड-19 वैक्सीन की दूसरी खुराक मिली थी और वो 20 जनवरी को राष्ट्रपति जो बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने से पहले कोरोना निगेटिव थे।
सांसद प्रवक्ता, मौली रोज टार्पी ने एक बयान में शनिवार को कहा, आज दोपहर अमेरिकी प्रतिनिधि स्टीफन एफ. लिंच का कॉविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है।
टार्पी ने कहा कि लिंच को आइसोलेट कर दिया गया है और आने वाले हफ्ते में प्रॉक्सी से मतदान करेंगे।
हालांकि लिंच में बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं।
यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार, टीकाकरण के बाद शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण होने में कुछ हफ्ते लगते हैं।
इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति टीके के बाद भी वायरस से संक्रमित हो सकता है। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 31 जनवरी | अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के लिए चुनी गईं भारतीय मूल की पहली सांसद प्रमिला जयपाल ने अप्रवासियों के लिए पूरी सुविधाओं के साथ एक बड़ी राहत पैकेज की मांग की है और साथ में जरूरतमंद कामगारों को नागरिकता दिलाए जाने का भी मार्ग प्रशस्त किया है। मीडिया रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। द अमेरिकन बाजार ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट में कहा, पिछले हफ्ते आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कांग्रेशनल प्रोग्रेसिव कॉकस की अध्यक्ष जयपाल ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रगतिशील कामों के लिए काफी अच्छा प्रयास किया है, लेकिन अमेरिकियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित राहत पैकेज 1900 अरब डॉलर, 3000 या 4000 अरब डॉलर होनी चाहिए थी।
बाइडेन के 1900 अरब डॉलर के 'अमेरिका रेस्क्यू प्लान' में 400 अरब डॉलर का उपयोग कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए किया जाएगा, जिसमें टेस्टिंग और वैक्सीनेशन केंद्र जैसी चीजें होंगी। 1000 अरब डॉलर का फंड डायरेक्ट सपोर्ट के रूप में बांटे जाएंगे और 400 अरब डॉलर का उपयोग कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित छोटे व्यवसायों और समुदायों के लिए किया जाएगा।
डेमोक्रेट्स के उत्साह दिखाए जाने के बावजूद भी कुछ रिपब्लिकन सीनेटरों ने 2000 अरब डॉलर के प्राइस टैग पर अपना विरोध जताया, क्योंकि दिसंबर, 2020 में 900 अरब डॉलर के बिल को मंजूरी दिलाए जाने के बाद उनका मकसद इस आर्थिक राहत पैकेज को थोड़ा कम करना था।
द अमेरिकन बाजार ने प्रमिला के बयान के हवाले से कहा, "यह कोई सामान्य वक्त नहीं है। बस, हम इसे सामान्य दिखाए जाने का प्रयास कर रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "रिपब्लिकन पार्टी के प्रति मेरा सब्र सीमित है। वे चिता जताते हैं और एकता व आगे बढ़ने जैसी बाते करते हैं। मगर उनकी ही पार्टी के नेता ने बगावत की थी, लेकिन फिर भी कई लोगों ने उनका समर्थन करना जारी रखा।"
प्रमिला जयपाल ने आगे यह भी कहा, "बाइडेन ने जहां से शुरुआत की है, उसे देखकर काफी अच्छा महसूस हो रहा है। उन्हें अभी एक लंबा सफर तय करना है।" (आईएएनएस)
येरुशलम, 31 जनवरी | इजरायली सेना ने रविवार को एक फिलिस्तीनी नागरिक की गोली मारकर हत्या कर दी। फिलिस्तीनी नागरिक ने वेस्ट बैंक में इजरायली सेना के एक जवान को छुरा घोंपने की कोशिश की थी। इजरायली सेना ने रविवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना येरुशलम के दक्षिण में एक बस्ती के पास चौराहे, गश एट्जि़यन जंक्शन पर हुई।
इजरायल के एक सैन्य प्रवक्ता ने तीन चाकुओं की तस्वीर जारी की, और कहा कि इनका इस्तेमाल हमले के लिए किया गया था।
इजरायली मीडिया में सामने आए वीडियो फुटेज में संदिग्ध अपनी जेब से एक वस्तु निकालते हुए और इजरायली सेना के जवान की ओर बढ़ते हुए दिख रहा है। उसे उसी वक्त गोली मार दी गई।
सेना ने कहा कि शख्स को गोली मार दी गई और बाद में मौत की पुष्टि की गई।
इस्राइली सेना का कोई जवान घायल नहीं हुआ।
पिछले कुछ वर्षों में, आमतौर पर किसी आतंकवादी संगठन से संबंध नहीं रखने वाले फिलिस्तीनी हमलावर वेस्ट बैंक में इजराइली सेना वेस्ट बैंक में बसने वालों के खिलाफ कथित रूप से छुरा घोंपने, गोली चलाने और कार-रैंपिंग हमलों को अंजाम देने की घटनाओं में शामिल रहे हैं। (आईएएनएस)
ब्रासीलिया, 31 जनवरी | ब्राजील में बीते 24 घंटे में कोरोनावायरस महामारी से 1,279 नई मौतें दर्ज हुई हैं और इसी के साथ यहां मरने वालों की संख्या 223,945 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी के मुताबिक, इसी दौरान 58,462 लोग कोरोना की जांच में पॉजिटिव पाए गए हैं और इसी के साथ देश में संक्रमितों की संख्या 9,176,975 हो गई है।
यहां के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य साओ पाउलो पर कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा है। यहां संक्रमितों और मृतकों की संख्या क्रमश: 1,773,024 और 52,954 है।
पूरी दुनिया में अमेरिका के बाद ब्राजील दूसरा ऐसा देश है, जहां कोरोना ने अपना कहर सबसे ज्यादा बरपाया है। इस मामले में तीसरे नंबर पर भारत है।
ब्राजील में अभी कोरोना महामारी की दूसरी लहर है। यहां इसी के चलते दिसंबर से मामलों और मौतों की संख्या अधिक है। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 31 जनवरी | एक पाकिस्तानी आतंकी विरोधी अधिकारी की अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा पेशावर शहर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। सुरक्षा अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने कहा कि बंदूकधारी ने शनिवार को शहर में सेंट्रल जेल के बाहर काउंटर-टेररिज्म डिपार्टमेंट (सीटीडी) के कर्मियों पर गोली चला दी, जिससे सीटीडी इंस्पेक्टर की मौत हो गई।
हमले में सीटीडी का एक और अधिकारी घायल हुआ है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
अभी तक किसी भी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। (आईएएनएस)
-इक़बाल अहमद
पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते सरकार और विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप के अलावा अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के आरोप में जेल में बंद उमर सईद शेख़ की रिहाई से जुड़ी ख़बरें सुर्ख़ियों में रहीं.
सबसे पहले बात डेनियल पर्ल हत्या केस की.
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के अभियुक्त चरमपंथी अहमद उमर सईद शेख़ समेत चार लोगों को रिहा कर दिया है. वॉल स्ट्रीट जर्नल के ब्यूरो चीफ़ डेनियल पर्ल की साल 2002 में हत्या कर दी गई थी. वो पाकिस्तान में सक्रिय चरमपंथी समूहों पर स्टोरी करने गए थे. निचली अदालत ने उमर सईद समेत चार लोगों को अपहरण और हत्या का दोषी पाते हुए फ़ाँसी की सज़ा सुनाई थी.
लेकिन साल 2020 के अप्रैल में सिंध हाई कोर्ट ने शेख़ और उनके साथियों को केवल डेनियल पर्ल के अपहरण का दोषी क़रार दिया और उनकी सज़ा कम कर दी. चूँकि वो चारों अपहरण की सज़ा पहले ही जेल में काट चुके थे इसलिए अदालत ने उनकी रिहाई के आदेश दे दिए थे.
Ahmed Omar Saeed Sheikh.png photo from wikipedia
डेनियल पर्ल के परिवार के विरोध के बाद पाकिस्तानी सरकार ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
लेकिन पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दे दिया.
अख़बार जंग के अनुसार अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने कहा है कि अमेरिका उमर शेख़ के ख़िलाफ़ अमेरिका में कार्रवाई करने के लिए तैयार है. अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि उमर शेख़ और उनके साथियों की सज़ा सुनिश्चित कराने के लिए उन्होंने पाकिस्तानी विदेश मंत्री से फ़ोन पर बातचीत की है. ब्लिंकेन ने उमर शेख़ की रिहाई के फ़ैसले को पाकिस्तान समेत दुनिया भर में दहशतगर्दी के शिकार बनने वालों के लिए अपमान क़रार दिया है.
अख़बार जंग के अनुसार सिंध की राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने उमर शेख़ की रिहाई के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है.
पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस मामले में सिंध सरकार और केंद्र सरकार पूरी तरह एक साथ हैं. ग़ौरतलब है कि सिंध में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार है जबकि केंद्र में इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ की सरकार है.
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार शुक्रवार को पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी की अमेरिका के नए विदेश मंत्री से पहली बातचीत थी. अख़बार के अऩुसार शाह महमदू क़ुरैशी ने उन्हें मुबारकबाद दी और दोनों देशों के बीच संबंधों को और बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया.
क़ुरैशी ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक हल के लिए दोनों देश इच्छुक हैं और ज़रूरत इस बात की है कि अफ़ग़ानिस्तान में सबसे पहले हिंसक वारदातों में कमी लाए जाए ताकि अफ़ग़ानिस्तान समस्या के राजनीतिक हल के लिए रास्ता हमवार हो.
अख़बार के अनुसार बातचीत के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि डेनियल पर्ल हत्या केस में क़ानून का पालन करना दोनों देश के हित में है.
अमेरिका और तालिबान ने एक दूसरे पर आरोप लगाया है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के लिए हुए दोहा समझौते का उल्लंघन किया जा रहा है.
अख़बार दुनिया के अनुसार एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के कारण अफ़ग़ानिस्तान शांति समझौते को ख़तरा पैदा हो गया है.
दोहा में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका लगभग हर दिन दोहा समझौते का उल्लंघन कर रहा है.
तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि नागरिक इलाक़ों में बमबारी की जा रही है.
तालिबान प्रवक्ता ने अमेरिका के उन आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया कि तालिबान दोहा समझौते का पालन नहीं कर रहा है.
इससे पहले अमेरिका ने कहा था कि बाइडन प्रशासन दोहा समझौते को पूरी तरह लागू करने और अफ़ग़ानिस्तान में जंग को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन तालिबान हमले में कमी और अल-क़ायदा के साथ संबंध ख़त्म करने के वादे को पूरा नहीं कर रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट
photo from social mediaislamic state
इस्लामिक स्टेट (आईएस) की गतिविधियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन के लिए केवल ढाई हज़ार अमेरिकी फ़ौज काफ़ी है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फ़ौज के पूरी तरह हटने का मामला अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच समझौते पर निर्भर है.
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान को हिंसा की जिस नई लहर का सामना है ऐसे में तालिबान नेतृत्व को यह बात समझनी चाहिए कि वो अमेरिकी सेना की वापसी और स्थायी शांति के लिए किए जाने वाले फ़ैसले को और मुश्किल बना रहे हैं.
दूसरी तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने बाइडन प्रशासन से अपील की है कि वो अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना हटाने में जल्दबाज़ी न करें.
अख़बार दुनिया के अनुसार संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर समस्या के हल के लिए अपनी सेवा देने की पेशकश की है.
अख़बार के अनुसार इस साल के पहले प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यूएन महासचिव ने पाकिस्तान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी के सवाल का जवाब देते हुए कहा, "कश्मीर का कोई सैन्य हल नहीं है, क्योंकि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ी तबाही का कारण होगा."
अख़बार के अनुसार महासचिव ने आगे कहा, "मेरा यक़ीन है कि नियंत्रण रेखा और भारत प्रशासित कश्मीर में तनाव का ख़ात्मा निश्चित तौर पर बहुत ज़रूरी है और मेरा ख्याल है कि दोनों देश कश्मीर की समस्या के हल के लिए मिलकर गंभीरता से बातचीत करें."
पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार और विपक्ष के बीच एक दूसरे पर हमलों का दौर जारी है. ताज़ा मामला ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की ताज़ा रिपोर्ट का है.
अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की साल 2019-20 की रिपोर्ट कहती है कि भ्रष्टाचार के मामले में पाकिस्तान और सात अंक नीचे चला गया है.
imran khan from his twitter page
मुस्लिम लीग (नवाज़) ने ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट को इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ चार्जशीट क़रार देते हुए कहा, "यह रिपोर्ट सरकार के भ्रष्टाचार का मुंह बोलता सबूत है. आज देश में सबसे भ्रष्ट सरकार है."
इसके जवाब में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा, "बड़े-बड़े डाकू मिलकर मुझे ब्लैकमेल कर रहे हैं. एक भगोड़ा लीडर लंदन में बैठकर इंक़लाबी बन रहा है. यह सब पार्टी को एकजुट रखने के लिए सरकार के जाने की तारीख़ें बताते रहते हैं. फ़ज़लुर्रहमान भ्रष्ट आदमी हैं, उनको मौलाना कहना उलेमा का अपमान है. फ़ज़लुर्रहमान मदरसे के बच्चों को इस्तेमाल करके अरबपति बने हैं." (bbc.com)
-रजनीश कुमार
नेपाल में जामा मस्जिद
29 साल के संघर्ष दाहाल नेपाल में मधेस इलाक़े के महोत्तरी ज़िले के हैं. ये 16 जनवरी 2018 को वामपंथी संगठन के एक कार्यक्रम में शामिल होने पाकिस्तान के लाहौर गए थे. संघर्ष दाहाल नेपाल से अपने दोस्त वीरेंद्र ओली के साथ 14 जनवरी को पाकिस्तान के लिए रवाना हुए थे.
वीरगंज में भारत के इमिग्रेशन ऑफिस में इनसे क़ड़ी पूछताछ हुई. संघर्ष दाहाल बताते हैं कि भारतीय अधिकारियों को ये समझाना बहुत मुश्किल हुआ कि वे पाकिस्तान क्यों जा रहे हैं.
हालाँकि किसी तरह समझाकर वो बाघा बॉर्डर के ज़रिए पाकिस्तान में दाखिल हुए. संघर्ष कहते हैं, ''पाकिस्तान में जाना मेरी आँख खोलने वाली परिघटना है. चूँकि मैं भारत होते हुए पाकिस्तान गया इसलिए वहाँ के सुरक्षा बलों की नज़र में हम दोनों चढ़े हुए थे. हम पर पाकिस्तानी सेना और वहाँ की ख़ुफ़िया एजेंसी की निगाहें थीं. वहाँ के होटल किसी तरह पाकिस्तानी कॉमरेड की मदद से रखने को तैयार हुए. लेकिन रात में सेना के लोग आए हमें बाहर निकलना पड़ा. फिर किसी दूसरे होटल में जगह मिली.''
वीरेंद्र ओली और संघर्ष दाहाल
संघर्ष कहते हैं, ''सेना और सुरक्षा बलों के शक को छोड़ दें तो जितना प्यार पाकिस्तान के लोगों ने दिया वो बता नहीं सकता. ऐसा लग रहा था कि अपने ही लोग हैं. हमें हिन्दी आती थी तो वहाँ लोगों से संवाद में भी दिक़्क़त नहीं हुई. नेपाल के मधेसी तो दिखने में भी पाकिस्तानियों और भारतीयों से बहुत अलग नहीं होते. इसी का फ़ायदा उठाकर मैं वामपंथी संगठनों के विरोध मार्च में भी शामिल हो गया.''
संघर्ष कहते हैं कि पाकिस्तान जाने से पहले वो भी पाकिस्तान को भारतीयों की तरह देखते थे. संघर्ष के मन में पाकिस्तान को लेकर अब बिल्कुल अलग नज़रिया है.
जब आप नेपाल में आएं और पाकिस्तान या पाकिस्तानियों को लेकर यहाँ के लोगों से पूछें तो एक बड़ा तबका है कि जो बहुत सकारात्मक सोचता है. हालाँकि एक तबका ऐसा भी है जो पाकिस्तान को कट्टर मुल्क समझता है.
मोहना अंसारी मधेसी ज़िला नेपालगंज की हैं. वे नेपाल मानवाधिकार आयोग की कमिश्नर रही हैं. मोहना कहती हैं कि पाकिस्तान को लेकर नेपाल में लोगों की सोच बँटी हुई है. मधेसियों और पहाड़ियों की सोच अलग-अलग है.
मोहना कहती हैं, ''मधेसी इलाक़ों में लोग भारतीय हिन्दी न्यूज़ चैनल देखते हैं. हिन्दी न्यूज़ चैनलों में पाकिस्तान को जिस तरह से पेश किया जाता है, वो वैसे ही देखते हैं. हालाँकि जो कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े रहे हैं उनके साथ ऐसा नहीं है.''
मोहना कहती हैं, ''नेपाल में जो हिन्दी न्यूज़ चैनल और लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा देखते हैं उनके मन में पाकिस्तान और पाकिस्तानी कट्टर हैं. ये पाकिस्तान को उसी तरह से देखते हैं जैसे भारत की बहुसंख्यक आबादी देखती है. दूसरी तरफ़ भारत के हिन्दूवादी संगठन भी मधेस इलाक़े में ज़्यादा सक्रिय हैं और ये संगठन भी आम नेपालियों की पाकिस्तान के प्रति उनकी सोच को प्रभावित करते हैं.''
मोहना अंसारी
मोहना कहती हैं पाकिस्तान को लेकर नेपाल में दो धारा है. वो कहती हैं, ''एक नज़रिया भारत की बहुसंख्यक आबादी वाला है तो दूसरा नज़रिया चीन वाला है. चीन और पाकिस्तान में दोस्ती है. नेपाल में जो चीन का समर्थन करते हैं वो पाकिस्तान को नेपाल के दोस्त के तौर पर ही देखते हैं.''
उमेश यादव मधेसी इलाक़े के सप्तरी ज़िले के हैं. वो ओली सरकार में सिंचाई मंत्री थे. उमेश यादव कहते हैं कि भारत की सीमा सुरक्षा में अब भी नेपाली लगे हुए हैं और भारत की आज़ादी में भी नेपाली शामिल रहे हैं. वो कहते हैं, ''हम मनोवैज्ञानिक रूप से भारत से जु़ड़े हैं ऐसे में पाकिस्तान को लेकर हमारी सोच क्या होगी यह भारतीयों की सोच से प्रभावित होती है.''
काठमांडू के 30 साल के मोइन-उद्दिन बिज़नेस में मास्टर की पढ़ाई कर टीच नेपाल नाम के एक एनजीओ में नौकरी करते थे. वो कहते हैं, ''मैं तब्लीग़ी ज़मात से जुड़ा हूँ. तब्लीग़ी के लोग पाकिस्तान से नेपाल आते हैं. उनके साथ बात करने पर यही अहसास हुआ कि वे नेपालियों के बारे में अच्छा सोचते हैं. कई बार तो मैंने देखा है कि जब पाकिस्तान और इंडिया के बीच क्रिकेट मैच होता है तो भारत से नाराज़गी जताने के लिए नेपाल के हिन्दू भी पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. हालांकि ऐसा नाकाबंदी के बाद हुआ है क्योंकि आम नेपालियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी थी.''
हालाँकि पाकिस्तान में इस्लाम को लेकर कुछ होता है तो नेपाल के मुसलमानों के बीच भी इसकी हलचल होती है. फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर कार्टून छपा तो नेपाल की जामा मस्जिद से 28.10.2020 को एक बयान जारी किया गया.
इस बयान में लिखा गया था, ''हमारे पैग़ंबर को लेकर फ़्रांस में एक कार्टून बनाया गया. यह हमारे पैग़ंबर का अपमान था. फ़्रांस इसे रोकने के बजाय और शह दे रहा है. संपूर्ण इस्लामी समाज इससे ग़ुस्से में है. हम नेपाली मुसलमान इस अपमानजनक काम का विरोध करते हैं. हम सभी मुसलमानों से कम से कम फ़्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का आग्रह करते हैं. पैग़ंबर का सम्मान ही सब कुछ है और इसके सामने कुछ भी मायने नहीं रखता.''
मोइन-उद्दिन
मोइन-उद्दिन कहते हैं कि पाकिस्तान और नेपाल के बीच बहुत आवाजाही नहीं है इसलिए भी दोनों मुल्क के लोग एक दूसरे के बारे में बहुत नहीं जानते हैं. नेपाल और पाकिस्तान के बीच सीधे कोई फ्लाइट नहीं है. अगर किसी नेपाली को फ्लाइट से पाकिस्तान जाना है तो उन्हें क़तर के दोहा होते हुए जाना पड़ता है. इसमें डेढ़ से दो दिन का वक़्त लगता है. इसके लिए आज की तारीख़ में एक नेपाली को लगभग एक लाख नेपाली रुपये किराया देना पड़ता है.
काठमांडू और इस्लामाबाद के बीच कोई फ्लाइट नहीं
काठमांडू के महाराजगंज में पाकिस्तान का दूतावास है. वहाँ काम करने वाले एक पाकिस्तानी स्टाफ़ ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, ''हमें इस्लामाबाद जाने के लिए काठमांडू से दोहा या दुबई जाना पड़ता है. इसमें कम से कम 21 घंटे का वक़्त लगता है. इसके अलावा 1300 डॉलर किराया लगता है. अगर काठमांडू से इ्स्लामाबाद के लिए सीधे फ्लाइट होती तो दो घंटे का समय लगता. मैं नेपाल में तीन सालों से हूं. नेपाली लोग बहुत प्यार देते हैं. मेरे पास कई बार पैसे नहीं होते तो नेपाली बिना पैसे के ही सब्ज़ी दे देते हैं. भारतीयों और हमारी ज़ुबान एक ही है इसलिए ज़्यादातर नेपाली पूछते हैं कि मैं इंडियन हूं तो मैं बहुत सफ़ाई नहीं देता और कह देता हूं कि हाँ इंडियन ही हूँ."
नेपाल नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के प्रवक्ता राजकुमार क्षेत्री कहते हैं, ''सात साल पहले काठमांडू से इस्लामाबाद की एक फ्लाइट चलती थी. वो फ्लाइट पाकिस्तान एयरलाइंस की थी. लेकिन बाद में पैसेंजर नहीं मिलने के कारण फ्लाइट बंद करनी पड़ी.''
इसी महीने 16 जनवरी को ख़बर आई कि 10 नेपालियों की एक टीम ने पाकिस्तान और चीन की सीमा तक फ़ैले काराकोरम रेंज के पर्वत K2 को सर्दी के मौसम में फ़तह कर लिया. यह इतिहास में पहली बार हुआ है. इससे पहले की सारी कोशिश नाकाम रही थी. नेपालियों की इस टीम का नेतृत्व निर्मल पुर्जा कर रहे थे. इन्होंने पाकिस्तान से जाकर ही k2 फ़तह किया था.
निर्मल पुर्जा से पाकिस्तान के बारे में पूछा तो उन्होंने जमकर तारीफ़ की. निर्मल पुर्जा ने बीबीसी से कहा, ''पाकिस्तानियों ने दिल जीत लिया. k2 समिट पूरा करने में पाकिस्तानियों ने दिल खोलकर मदद की. समिट पूरा करने के बाद पाकिस्तान में हीरो की तरह स्वागत किया गया. वहाँ के सेना प्रमुख ने अलग से मिलकर बधाई दी और पूरे मिशन के बारे में पूछा. राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात हुई. मुझे तो लगता है कि भारतीयों को भी पाकिस्तान से मिलकर रहना चाहिए. दोनों भाई की तरह हैं. दोनों आपस में लड़ते हैं तो कोई तीसरा आदमी फ़ायदा उठा लेता है.''
नेपाल और पाकिस्तान संबंध
पाकिस्तान और नेपाल में 19 मार्च 1960 को राजनयिक रिश्ते बहाल हुए. तब से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं. नेपाल ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते को हमेशा भारत की नीति से अलग रखा. यहाँ तक कि भारत और पाकिस्तान में जंग हुई तो नेपाल ने किसी का पक्ष नहीं लिया. नेपाल ने कभी ये भी नहीं कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और न ही पाकिस्तान के दावे का समर्थन किया.
नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि नेपाल को किसी का पक्ष लेने की ज़रूरत भी नहीं है. उन्होंने कहा, ''नेपाल के भी अपने द्विपक्षीय हित हैं और उसी हिसाब से काम करेगा. भारत और नेपाल को रिश्तों में कई ऐतिहासिक बोझ हैं और इसे दोनों देश जब उठाकर नहीं फेंकते हैं तब तक नेपाल के लिए भारत के पक्ष में खुलकर आसान मुश्किल है.''
नेपाल और पाकिस्तान दोनों के चीन से अच्छे संबंध हैं. चीन और पाकिस्तान के बीच सीपीईसी का भी नेपाल समर्थन करता है. नेपाल भी चीन की वन बेल्ट रोड परियोजना में शामिल है. हालाँकि भारत इसका विरोध करता है. पाकिस्तान और नेपाल के बीच उच्चस्तरीय दौरे की शुरुआत 1961 में 10 से 16 सितंबर तक किंग महेंद्र की यात्रा से होती है. तब किंग महेंद्र का स्वागत पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने किया था.
किंग महेंद्र को उस दौरे में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाज़ा गया था. इसके बदले में नेपाल ने भी अयूब ख़ान को ओजस्वी राजन्या से सम्मानित किया था. 1963 में नौ से 12 मई तक नेपाल के दौरे पर अयूब ख़ान आए. इसके बाद दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आना-जाना लगा रहा. सबसे हाल में पाँच मार्च 2018 को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद ख़क़ान अब्बासी काठमांडू आए थे और फिर पीएम ओली ने भी पाकिस्तान का दौरा किया था. (bbc.com)
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने कहा है कि वो होनहार विदेशियों को अपनी नागरिकता देगा. ये वो लोग होंगे जो खाड़ी के इस देश को अपने योगदान से और बेहतर बना सकें.
यूएई के उप-राष्ट्रपति और दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम ने कहा है कि देश के नागरिक बनने की योग्यता रखने वाले काबिल विदेशियों में निवेशक, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार और ऐसे लोग होंगे जो ख़ासतौर पर हुनरमंद हैं.
उनका कहना है कि होनहार विदेशी और उनके परिवारों के सदस्य दोहरी नागरिकता रख सकेंगे.
दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम जिस कड़े पैमाने पर विदेशियों को यूएई की नागरिकता देने की बात कर रहे हैं, उसमें कम आय वाले लोग शायद ही फिट हो सकें.
शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम का कहना है कि इसका मकसद उन लोगों को आकर्षित करना है जो 'हमारी विकास यात्रा में योगदान' दे सकें.
इसके लिए अलग से कोई आवेदन प्रक्रिया नहीं होगी. यूएई के शाही लोग और अधिकारी किसी विदेशी नागरिक को नागरिकता देने के लिए नामित करेंगे. इसके बाद यूएई की कैबिनेट तय करेगी कि उसे मंज़ूरी देना है या नहीं.
ये पहल ऐसे समय की जा रही है जब कोरोना महामारी और तेल की कम क़ीमतों के दौर की वजह से हज़ारों विदेशी यूएई को छोड़कर चले गए हैं.
अबुधाबी से निकलने वाले अख़बार 'द नेशनल' के मुताबिक, इस नई व्यवस्था से ख़ास क्षेत्रों के विशेषज्ञों और विदेशी निवेशकों को यूएई में अपनी जड़ें जमाने का मौका मिलेगा.
बीबीसी के अरब अफ़ेयर्स एडिटर सेबस्टियन अशर का कहना है कि आर्थिक और पर्यटन केंद्र के लिहाज से सऊदी अरब अमीरात विदेशियों पर निर्भर है. वहां रहने वाली बहुसंख्यक आबादी विदेशियों की ही है जो वर्कफोर्स में 90 प्रतिशत से अधिक हैं.
विदेशी कामगारों को अक़्सर रिन्यूबल वीज़ा दिए जाते हैं जो कई वर्ष तक मान्य होते हैं और रोज़गार से जुड़े होते हैं.
कम आय वाले श्रमिकों ने संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को बनाने में अहम भूमिका अदा की है. ये वो लोग हैं जो निर्माण, सेवा-सत्कार, रिटेल और ट्रैवल सेक्टर में काम करते हैं और वहां से कमाए धन को अपने वतन भेजकर घरवालों की मदद करते हैं.
इनमें से कई लोग वर्षों से संयुक्त अरब अमरीत में रह रहे हैं लेकिन उन्हें नागरिकता हासिल नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें सोशल वेलफेयर संबंधित फ़ायदे नहीं मिलते हैं.
संयुक्त अरब अमीरात में काम आय वालों की अनदेखी होती रही है जबकि दूसरी ओर निवेशक, छात्र और पेशेवरों के लिए लंबे समय तक रहने की पेशकश हुई है. (bbc.com)
बीजिंग, 30 जनवरी| संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को 28 जनवरी को न्यूयार्क में कोविड-19 रोधी टीका लगाया गया। उन्हें न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के निकट एक स्कूल में टीका लगाया गया। इस के बाद उन्होंने ट्वीट कर टीका लगने पर धन्यवाद व्यक्त किया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से न्यायपूर्ण ढंग से सभी लोगों को टीका उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। (आईएएनएस)
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)