राष्ट्रीय
भोपाल, 19 सितंबर | मध्यप्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उन परीक्षार्थियों के लिए यह अच्छी खबर है जो परीक्षा की निर्धारित आयु सीमा को पार कर गए हैं। राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि पीएससी के परीक्षार्थियों की निर्धारित आयु सीमा में एक बार के लिए तीन साल की बढ़ोतरी की जाती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को कहा है कि कोरोना महामारी के कारण मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा स्थगित रही, इसके चलते कई छात्र निर्धारित अधिकतम आयु सीमा को पार कर गए। पिछले दिनों छात्रों ने इस स्थिति से अवगत कराया था, लिहाजा सरकार ने ओवर एज हुए छात्रों के हित में एक बड़ा फैसला लिया है।
चौहान ने आगे कहा है कि पीएससी परीक्षा के लिए जो निर्धारित अधिकतम आयु है उसमें तीन साल की बढ़ोतरी की जाती है। यह आयु सीमा में बढ़ोतरी सिर्फ एक साल के लिए होगी, क्योंकि कोरोना के कारण पीएससी की परीक्षा स्थगित होने से कई छात्र ओवर एज हो गए हैं इसलिए उन्हें एक मौका देने के लिए यह फैसला लिया गया है। (आईएएनएस)|
कानपुर (उत्तर प्रदेश), 19 सितंबर | उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में एक दिहाड़ी मजदूर का शव बांस के पेड़ से लटका मिला और उसके घुटने जमीन पर टिके हुए थे। मृतक के परिजन ने हत्या की आशंका जताते हुए गांव के ही एक व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया है। बताया जा रहा है कि दोनों के बीच रात में झगड़ा हुआ था।
मृतक की पहचान अरविंद के रूप में हुई है और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
पुलिस ने फोरेंसिक टीम की मदद से सबूत जुटाकर जांच शुरू कर दी है।
थाना प्रभारी योगेश कुमार सिंह ने कहा कि फोरेंसिक टीम को बुलाया जा रहा है और सबूत जुटाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। (आईएएनएस)|
गांधीनगर, 19 सितंबर | गुजरात विधानसभा का दो दिवसीय मानसून सत्र बुधवार से हंगामेदार होने की संभावना है, क्योंकि उस दिन विभिन्न कर्मचारियों द्वारा सरकार के विरोध में मार्च निकाला जाएगा। वहीं पशुपालकों ने उस दिन राज्यभर में दूध नहीं बेचने का फैसला किया है। विपक्ष भी विभिन्न मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरने की तैयारियों में जुटा हुआ है। जैसे- लंपी वायरस, महंगाई और कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना बहाली की मांग आदि।
राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.पी. सिंह रावत ने एक प्रेस बयान में घोषणा की कि सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग को लेकर 21 सितंबर को राज्य विधानसभा की ओर मार्च करेंगे।
उन्होंने सभी कर्मचारी संघों से भी अपना समर्थन देने और शांतिपूर्ण मार्च में शामिल होने की अपील की है। बयान में कहा गया है, "यह पांच लाख सरकारी कर्मचारियों के न्याय के लिए एक मार्च है।"
गुजरात राज्य परिवहन निगम कर्मचारी संघ अपनी लंबित मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है। उन्होंने 21 और 22 सितंबर को विरोध में राज्य परिवहन की बसों को सड़कों से हटाने का आह्वान किया है। यदि वे विरोध पर कायम रहते हैं, तो राज्य सचिवालय के कम से कम 40 प्रतिशत कर्मचारी गांधीनगर में ड्यूटी से नदारद रहेंगे।
रविवार को मालधारी महापंचायत की बैठक में निर्णय लिया गया कि 21 सितंबर को कोई भी पशुपालक खुले बाजार में या यहां तक कि सहकारी या डेयरियों को दूध नहीं बेचेगा। हड़ताल से दूध की आपूर्ति भले ही बाधित न हो, लेकिन एक दिन के लिए दूध का आना कम हो सकता है। वे शहरी क्षेत्रों में गुजरात मवेशी नियंत्रण (रखरखाव) विधेयक का विरोध कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि गांवों के चरागाहों को शहरी क्षेत्रों में मिला दिया जाए। (आईएएनएस)|
लखनऊ, 19 सितंबर | उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। 18वीं विधानसभा के दूसरे सत्र में सत्ता पक्ष ने शांति से सत्र चलाने का अनुरोध किया है, वहीं विपक्ष ने महंगाई और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार घेरने का ऐलान किया है। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि सत्र के पहले दिन दिवंगत सदस्य को श्रद्धांजलि दी जाएगी और 20 सितंबर को तीन सदस्यों को जन्मदिन की बधाई दी जाएगी। इसके अगले दिन दिवंगत पूर्व सदस्यों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और 22 सितंबर को प्रश्नकाल के बाद का समय महिला सदस्यों को चर्चा के लिए आरक्षित रहेगा, जो कि देश की सभी विधानसभाओं से अनूठा होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 सितंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र से पूर्व रविवार को भाजपा और सहयोगी दलों के विधानसभा एवं विधान परिषद सदस्यों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा, "इस बार के मानसून सत्र में हमने 22 सितंबर का दिन दोनों सदनों की महिला सदस्यों के लिए आरक्षित रखा है। देश की किसी विधानसभा में ऐसा पहली बार हो रहा है। उस दिन विधानसभा की 47 और विधान परिषद की 6 महिला सदस्य ही अपना विषय रखेंगी।"
उन्होंने महिला सदस्यों से अनुरोध करते हुए कहा कि वह राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की महिलाओं के सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के दृष्टिगत चलाए जा रहे मिशन शक्ति कार्यक्रम के विषय में जरूर बोलें। सीएम योगी ने संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना से अनुरोध करते हुए कहा कि इस दिन को विशेष बनाने के लिए महिला सदस्य को दोनों सदनों में पीठासीन अधिकारी बनाएं।
विधानसभा अध्यक्ष ने सभी दल के नेताओं से अनुरोध किया कि वे अपना-अपना पक्ष सदन में शालीनता एवं संसदीय मर्यादा के अंतर्गत रखें और प्रेमपूर्ण वातावरण में सदन में बहस करें। इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि "जनता ने बड़े विश्वास के साथ सभी विधायकों चुनकर भेजा है। उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना हम सबका दायित्व है। सदन में गंभीर और प्रभावी चर्चा से जनता के सम्मान में वृद्धि होगी।"
सर्वदलीय बैठक में सभी दलीय नेताओं ने विधान सभा अध्यक्ष को सदन चलाने में सहयोग देने का आश्वासन दिया। संसदीय कार्यमंत्री ने कहा कि विपक्ष अगर चाहेगा तो सदन की कार्यवाही अच्छे से चलेगी। सदन चलाना है या नहीं, यह विपक्ष पर निर्भर करेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार तो चाहती है कि सदन अधिक से अधिक दिन तक चले और जनहित के मुद्दें पर सार्थक चर्चा हो। इसलिए हमने विपक्ष से सदन चलाने में मदद मांगी है। इस मौके पर सपा ने पूर्व मंत्री आजम खां पर चल रहे मुकदमों की जांच कराने की भी मांग रखी। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 19 सितंबर | पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सोमवार को भाजपा में शामिल हो जाएंगे। उनके साथ उनके बेटे, बेटी और अन्य कई करीबी नेताओं के भी भाजपा में शामिल होने की संभावना है। अमरिंदर सिंह, अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का विलय भी भाजपा में करने वाले हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर अपनी नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का गठन करने वाले अमरिंदर सिंह पहले ही अपने कई करीबी नेताओं को भाजपा में शामिल करा चुके हैं।
पंजाब में संगठन को मजबूत करने और जनाधार बढ़ाने के मिशन में लगी भाजपा अपनी राज्य इकाई की टीम में बड़े पैमाने पर बदलाव की तैयारी में है और यह माना जा रहा है कि भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी जल्द ही उन्हें पंजाब में कोई बड़ी भूमिका दे सकती है। उनके करीबी नेताओं को भी पार्टी संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।
बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू से टकराव के कारण कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का गठन किया था। उस समय चुनावी रणनीति के तहत अमरिंदर सिंह ने अपने कई करीबियों को भाजपा में शामिल कराया था, लेकिन स्वयं अपने राजनीतिक दल के बैनर तले ही भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। हालांकि अमरिंदर सिंह न तो अपनी पटियाला सीट बचा पाए और न ही अपनी पार्टी के किसी उम्मीदवार को जीता पाएं। आम आदमी पार्टी की आंधी में भाजपा के मंसूबे भी धरे के धरे रह गए।
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर अब भाजपा राज्य में संगठन का पुनर्गठन करने में जुट गई है और भाजपा के रणनीतिकारों का यह मानना है कि अमरिंदर सिंह के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को पंजाब में अपना जनाधार बढ़ाने और संगठन को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। (आईएएनएस)|
-अरविंद छाबड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह पंजाब के फरीदकोट रियासत की संपत्ति विवाद का फ़ैसला कर दिया.
इस रियासत के अंतिम राजा हरिंदर सिंह बराड़ की पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में फैली करीब 20,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को लेकर करीब 33 सालों से विवाद चल रहा था. विवादित संपत्ति में क़िला, इमारतें, सैकड़ों एकड़ ज़मीन, एयरोड्रम, ज्वैलरी, विंटेज कारों के अलावा बैंक में पड़े करोड़ों रुपये शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने रियासत की संपत्ति को राजा हरिंदर सिंह बराड़ की दोनों जीवित बेटियों को सौंप दिया है.
इस विवाद को पूरी तरह से समझने से पहले फरीदकोट रियासत की पूरी संपत्ति पर एक नज़र डाल लेते हैं. इस संपत्ति का बाज़ार मूल्य करीब 20 हज़ार करोड़ रुपये आंका गया. इसमें माशोबरा और शिमला में मौजूद भूखंड शामिल हैं. इस संपत्ति में दिल्ली के कॉपरनिकस मार्ग पर 10 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर फैला फरीदकोट हाउस भी है. संपत्ति में इसके अलावा दिल्ली के डिप्लोमेटिक एनक्लेव 1, न्याय मार्ग पर भी डेढ़ एकड़ में फैला फरीदकोट हाउस, ओखला में इंडस्ट्रियल प्लॉट और रिवेरा अपार्टमेंट शामिल है.
इसके अलावा चंड़ीगढ़ के सेक्टर 17 में होटल का प्लॉट, फरीदकोट में 10 एकड़ में फैला राज महल, फरीदकोट में 10 एकड़ में फैले किला मुबारक़ के अलावा चंडीगढ़ में पांच एकड़ में फैला सूरजगढ़ क़िला शामिल है.
राजा हरिंदर सिंह पंजाब के फरीदकोट रियासत के राजा थे. 1948 में भारत सरकार के साथ हुए समझौते के बाद उन्होंने अपनी रियासत का विलय भारत में किया था. इस समझौते के बाद भारत में शामिल रजवाड़ों को उनकी निजी संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व कायम रखा गया था.
फरीदकोट रियासत की संपत्ति के बारे में पंजाब में रह रहे इतिहासाकर हरजेश्वर पाल सिंह कहते हैं, "फरीदकोट के राजा ने रेलवे और अस्पताल निर्माण सहित विकास के कई काम किए थे. यहां यह भी समझना होगा कि फरीदकोट की रियासत हमेशा ब्रिटिशों के साथ थी. उनका ब्रिटिशों के साथ समझौता था. 1845 में जब पहला एंग्लो सिख युद्ध हुआ था तब फरीदकोट का राजा पहाड़ सिंह ने ब्रितानियों का साथ दिया था."
हालांकि राजा हरिंदर सिंह के भाई के पोते अमरिंदर सिंह ने बीबीसी से कहा कि उस दौर की चीज़ों को सही नज़रिए से आंका जाना चाहिए. उन्होंने बताया, "उस समय में राजे रजवाड़ों को अपनी रियासत की रक्षा करनी होती थी. राजा पहाड़ सिंह को ब्रिटिश और महाराजा रणजीत सिंह में से किन्हीं एक को चुनना था, उन्होंने ब्रितानियों का साथ लेना बेहतर समझा. ऐसा उस दौर में कई रियासतों ने किया था."
पेशे से बैंकर अमरिंदर सिंह के मुताबिक उनका बचपन फरीदकोट क़िले के सामने बनी इमारत में हुआ है. उन्होंने बताया, "मेरे दादाजी क़िले के सामने बने पैलेस में रहने लगे थे. यह करीब चार एकड़ में फैला हुआ था, हालांकि कुछ हिस्सा परिवार ने बेच दिया है. मैं आज भी वहां जाता रहता हूं, वह मेरा स्थानीय आवास है."
फरीदकोट के महाराजा ब्रिजेंदर सिंह का निधन 1918 में हुआ था जबकि उनकी पत्नी महारानी मोहिंदर कौर का निधन 15 मार्च, 1991 को हुआ था. इनके दो बेटे थे. हरिंदर सिंह और मंजीत इंदर सिंह.
राजा हरिंदर सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1915 को हुआ जबकि उनका निधन 16 अक्टूबर, 1989 को हुआ था. राजा की पत्नी रानी नरिंदर कौर का निधन 19 अप्रैल, 1986 को हुआ था. राजा हरिंदर सिंह और रानी नरिंदर कौर की तीन बेटियां और एक बेटा था. उनके बेटे हरमोहिंदर सिंह का निधन 13 अक्टूबर, 1981 को हो गया था. उनकी तीन बेटियां थीं- राजकुमारी अमृत कौर, महारानी दीपेंदर कौर (एक बेटा जय चंद महताब और बेटी निशा खेर) और राजकुमारी महीप इंदर कौर थीं.
जबकि राजा के छोटे भाई मंजीत इंदर सिंह के परिवार में एक बेटा भरत इंदर सिंह और राजकुमारी देविंदर कौर शामिल थे. भरत इंदर सिंह के बेटे अमरिंदर सिंह हैं जबकि राजकुमारी देविंदर कौर की बेटी राजकुमारी हरमिंदर कौर हैं.
राजा ने अपनी संपत्ति की वसीयत की थी?
राजा हरिंदर सिंह की कुल मिलाकर तीन वसीयत सामने आयी थी. पहली वसीयत 1950 में की गई थी. इसमें उन्होंने कुछ बैंक खातों और रोहतक रोड, दिल्ली पर स्थित चार फ्लैटों का जिक्र करते हुए विशेष संपत्ति को तीन बेटियों में बराबर बराबर करने की इच्छा जाहिर की थी.
1952 में उनकी दूसरी वसीयत की गई थी, जिसमें पहली वसीयत के मुताबिक कुछ विशेष संपत्तियों का जिक्र था. लेकिन इस वसीयत में उन्होंने अपनी बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर को कोई संपत्ति नहीं दी थी. उन्होंने वसीयत में उल्लेख की गई संपत्ति को दो बेटियों राजकुमारी दीपेंदर कौर और राजकुमारी महीप इंदर कौर में बराबर-बराबर बांटने का निर्देश दिया था.
राजकुमारी अमृत कौर को संपत्ति क्यों नहीं?
राजा की दूसरी वसीयत के मुताबिक वे अपनी बड़ी बेटी अमृत कौर को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं देना चाहते थे. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, 'ऐसा ज़ाहिर हो रहा है कि बड़ी बेटी ने पिता की इच्छा के विपरीत शादी की थी, इसी वजह से उन्हें संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं देने का फ़ैसला लिया होगा.'
हालांकि तीन साल के बाद, लंदन में राजा ने पंजीकृत दस्तावेज बनवाया जिसके मुताबिक बड़ी बेटी को 25 साल पूरी करने या पति से क़ानूनी तौर पर अलग होने तक संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. इसलिए दूसरी वसीयत से अलग इस समझौते में बड़ी बेटी को संपत्ति से अलग नहीं किया गया था.
तीसरी वसीयत के चलते विवाद
राजा हरिंदर सिंह का निधन 1989 में हुआ था और उनके अंतिम संस्कार के भोग समारोह के दिन उनकी तीसरी वसीयत सामने आयी, जो कथित तौर पर 1 जून, 1982 को की गई थी. यह भी कहा गया कि उनकी तीसरी वसीयत बड़ी बेटी को दी गई थी और जब यह वसीयत की गई थी तब तक उनके इकलौते बेटे का निधन हो गया था.
इस तीसरी वसीयत में कहा गया कि रियासत की पूरी संपत्ति की देखरेख एक ट्रस्ट महारावल खेवाजी ट्रस्ट करेगा और इसके ट्रस्टी में महाराजा की दो बेटियां राजकुमारी दीपेंदर कौर और राजकुमारी महीप इंदर कौर, शामिल होंगी. इस ट्रस्ट में एक सदस्य महाराजा की मां महारानी मोहिंदर कौर के परिवार का भी शामिल होगा.
तीसरी वसीयत को मिली अदालत में चुनौती
फरीदकोट रियासत के महाराजा के छोटे भाई कुंवर मंजीत इंदर सिंह ने सिविल अदालत में राजा की तीसरी वसीयत को चुनौती देते हुए कहा कि राजा का कोई जीवित पुत्र नहीं है इसलिए संपत्ति पर उनका हक बनता है.
वहीं तीसरी वसीयत में राजकुमारी अमृत कौर को कोई हिस्सेदारी नहीं मिली थी, लिहाजा उन्होंने भी सिविल अदालत में अपील दाखिल की उन्होंने अपने पिता की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा मिलना चाहिए.
वहीं महारावल खेवाजी ट्रस्ट भी एक पक्ष के तौर पर अदालती कार्रवाई का हिस्सा थे. राजकुमार अमृत कौर ने 1993 में अदालत से तीसरी वसीयत को अमान्य क़रार देने की मांग की थी.
निचली अदालत का आदेश क्या था?
2013 में निचली अदालत ने दोनों मुकदमों का निपटारा कर दिया था. अदालत ने तीसरी वसीयत को फर्जी दस्तावेज़ पाया और कहा कि कई संदिग्ध परिस्थितियां इस ओर इशारा कर रही हैं. निचली अदालत ने वंशानुक्रम के आधार पर कुंवर मंजीत इंदर सिंह के दावे को भी खारिज कर दिया था.
निचली अदालत ने राजकुमारी अमृत कौर को महारानी दीपेंद्र कौर के साथ आधी आधी संपत्ति का हिस्सा देने का फ़ैसला सुनाया. राजा की तीसरी बेटी राजकुमारी महीप इंदर कौर का निधन इस विवाद के दौरान ही 2001 में हो गया था और वह अविवाहित थीं. अदालत ने ट्रस्ट को भी अमान्य करार दिया.
निचली अदालत के फ़ैसले से राजकुमारी दीपेंदर कौर, महारावल खेवाजी ट्रस्ट और भरत इंदर सिंह ने चुनौती दी. पांच साल के बाद 2018 में अपील पर सुनवाई करने वाली अदालत ने निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया. इसके बाद मामला पंजाब और हरियाणा के हाईकोर्ट में गया. हाईकोर्ट ने भी माना कि तीसरी वसीयत एक फर्जी दस्तावेज़ था और से कुंवर मंजीत इंदर सिंह के दावे में भी कोई दम नज़र नहीं आया.
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला क्या आया?
सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल से भी पुराने विवाद पर अंतिम फ़ैसला सुनाते हुए राजा हरिंदर सिंह बराड़ की संपत्ति पर दोनों जीवित बेटियों का हक बताया.
भारत के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इसी साल जुलाई में इस मामले पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा था. बेंच ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फ़ैसले को कायम रखा है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अब तक रियासत की संपत्ति की देखरेख कर रही महारावल खेवाजी ट्रस्ट को तत्काल प्रभाव से भंग करने का फ़ैसला भी सुनाया.
तीसरी वसीयत के साथ छेड़छाड़ का पता कैसे चला?
राजा हरिंदर सिंह बराड़ की बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर ने इस विवाद में प्राइवेट फॉरेंसिक एक्सपर्ट जस्सी आनंद की मदद ली थी. जस्सी आनंद के मुताबिक राजकुमारी अमृत कौर ने तीसरी वसीयत में तुरंत ही गड़बड़ियां भांप ली थी.
जस्सी आनंद ने बताया, "हमलोगों ने तीसरे वसीयत को हर पहलू से देखा परखा. राजा काफ़ी पढ़े लिखे थे और उनकी लिखावट काफी सुंदर थी. यह वसीयत से ज़ाहिर नहीं हो रहा था, क्योंकि स्पेलिंग की कई ग़लतियां थीं, उनके हस्ताक्षर के साथ भी छेड़छाड़ लग रहा था. वसीयत को तैयार करने में कई टाइपराइटरों का इस्तेमाल किया गया था."
महाराजा के भाई के परिवार को कोई हिस्सेदारी मिलेगी?
सुप्रीम कोर्ट ने महाराजा के भाई के परिवार को एक चौथाई हिस्सा देने का आदेश दिया है. इस परिवार का दावा था कि रियासत का उत्तराधिकार पुरुष को ही मिलता है, लिहाजा के महाराजा के बेटे के जीवित नहीं रहने के चलते संपत्ति का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए था. इस दावे को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे ख़ारिज ही रखा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महारानी मोहिंदर कौर की वसीयत के मुताबिक परिवार को संपत्ति की हिस्सेदारी दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "1989 में राजा के निधन के समय उनकी मां महारानी मोहिंदर कौर जीवित थीं. प्रथम श्रेणी के वारिसों में से एक होने के नाते दिवंगत महाराजा की संपत्ति में हिस्सा लेने में महारानी सफल होतीं. इसलिए, महारानी मोहिंदर कौर के उत्तराधिकार/विरासत के आधार पर अपीलकर्ता को अनुपातिक हिस्सेदारी दी जा रही है."
अमरिंदर सिंह ने बताया, "हमें सभी संपत्ति में एक चौथाई हिस्सा मिला है.
अब क्या होगा, क्या अदालती लड़ाई ख़त्म हो गई?
अब परिवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक संपत्ति की हिस्सेदारी का बंटवारा करना होगा. एक तरीक़ा ये हो सकता है कि परिवार एक साथ बैठकर यह तय करे कि किसे कौन सी संपत्ति मिलेगी. दूसरा तरीक़ा यह है कि अदालत ही संपत्ति का विभाजन करे. अमरिंदर सिंह के मुताबिक अदालत में वक्त भी काफ़ी लगेगा.
क्या यह मुक़दमेबाजी का अंत है? अलग-अलग अदालतों में लगभग 33 साल की लंबी लड़ाई के बाद भी इसका दावा नहीं किया जा सकता है. अमरिंदर सिंह कहते हैं, ''पारिवारिक कलह तो ख़त्म हो गई. लेकिन मुकदमेबाजी जारी रहेगी क्योंकि हमारे पास बहुत सारी संपत्तियां हैं, जिनमें से कई दूर-दराज के इलाक़ों में हैं.
-सलमान रावी
नई दिल्ली, 18 सितंबर। मध्य प्रदेश में मंदसौर के किसानों के बीच फिर असंतोष फैला हुआ है. यहां जगह-जगह प्रदर्शन भी हो रहे हैं. वजह है- किसानों को उनकी लहसुन की फ़सल के उचित भाव का नहीं मिलना.
मंदसौर में भारत की सबसे बड़ी लहसुन की मंडी है जहां दूर-दूर से किसान अपनी फ़सल इस आस से लेकर आते हैं ताकि उन्हें अपनी लहसुन की उपज के उचित भाव मिल जाए.
मंडी के बाहर दूर-दूर तक ट्रालियों की लाइनें लगी हैं. दूर दराज़ के इलाकों से आए किसान यहाँ चार पांच दिनों से जमे हैं. कोई सागर से अपनी फ़सल लेकर आया है तो कोई भोपाल के पास से. यहाँ पर राजस्थान से भी किसान अपना लहसुन बेचने आए हैं.
भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अनुसार पूरे भारत में सबसे ज़्यादा लहसुन की खेती मध्य प्रदेश में ही होती है. इसके बाद राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में इसकी पैदावार होती है.
मंदसौर की मंडी के व्यापारी बताते हैं कि जो खेती मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होती है उसकी गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है और मांग भी.
लेकिन मंडी में मौजूद किसान कहते हैं पिछले तीन सालों से लहसुन की पैदावार की उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाया था. मगर इस साल तो लहसुन के भाव इतने ज़्यादा गिर गए हैं कि किसानों को उसे पैदा करने में आई लागत भी नहीं मिल पा रही है.
किसानों का आरोप है कि ईरान और चीन से आई लहसुन ने बाज़ार ख़राब कर दिया है. वहीं, वो ये भी कहते हैं कि इस साल लहसुन का निर्यात भी नहीं हो पा रहा है.
इस साल मध्य प्रदेश में लहसुन की बम्पर फ़सल हुई है जिसने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में पूरे भारत में 3.1 अरब मिट्रिक टन लहसुन की फ़सल हुई है जिसमें अकेले मध्य प्रदेश का योगदान 70 प्रतिशत का है. इस साल फ़सल और भी ज़्यादा हुई है.
लागत से भी कम पैसे
मंदसौर के सरकारी कृषि उत्पादन मंडी के प्रभारी जगदीश चंद बाबा ने बीबीसी से कहा कि इस साल किसान लहसुन की जो फ़सल मंडी में लेकर आए हैं उसकी गुणवत्ता पहले से हल्की है. इस वजह से कीमतें नहीं मिल पा रही हैं.
वे कहते हैं, "यहाँ फ़सल गुणवत्ता के हिसाब से बिकती है. जैसी क्वालिटी होती है रेट उसी हिसाब से ही मिल रहे हैं."
लेकिन इस बार भाव इतने कम हो गए हैं कि किसान या तो अपनी फ़सल मंडी में ही छोड़कर चले जा रहे हैं या फिर उसे नदी और नालों में बहा दे रहे हैं. कुछ किसान तो अपने उत्पाद को जला भी रहे हैं क्योंकि उन्हें लागत से भी कम पैसे मिल रहे हैं.
लेकिन जगदीश चंद बाबा कहते हैं कि अब जो फ़सल मंडी में आ रही है वो फ़सल आखिरी है, जो किसानों के घरों में चार महीने से रखी हुई थी.
उनका कहना था, "ऊटी वाली 'क्वालिटी' की लहसुन को अब किसानों ने दो चार दिनों में बोना शुरू भी कर दिया है. अंतिम समय में किसानों का माल मंडी पहुँच रहा है. जिन किसानों ने स्टॉक भी कर रखा है उन्हें तो बेचना ही है लाकर के. अब तो ख़राब होने आ गई है लहसुन...."
अधिकारी वजह क्या बता रहे हैं?
लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर महिला मज़दूरों को भी रोज़गार देती है
मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2020-21 के सर्वेक्षण के अनुसार दस साल पहले तक प्रदेश की कुल 94,945 हेक्टेयर ज़मीन पर लहसुन का उत्पादन होता था. मगर अब इसका उत्पादन इस वर्ष तक 1,93,066 हेक्टेयर तक पहुँच गया है जो कि लगभग दोगुना है. इसलिए इस बार लहसुन का उतना भाव नहीं मिल रहा है.
अधिकारी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में लहसुन काफ़ी अच्छे भाव में बिका था. इसलिए सभी किसानों ने दूसरी फ़सल नहीं लगाई और ज़्यादातर किसानों ने लहसुन ही बोया जिसकी वजह से फ़सल की पैदावार बहुत ही ज़्यादा हो गई.
बालाराम चौधरी अपनी फ़सल बेचने धर्म नगरी उज्जैन के पास के गाँव से आए हैं. वो सरकार की दलील को नहीं मानते.
वे बीबीसी से कहते हैं, "इतना भारी भरकम उत्पादन नहीं हो गया है कि सरकार ने भाव इतने कम कर दिए हैं. ज़मीन तो उतनी ही है. ज़मीन तो बढ़ नहीं गई है. इस बार गेहूं का भी मध्य प्रदेश में अच्छा उत्पादन हुआ है. लहसुन का भी अच्छा उत्पादन हुआ. ये दोनों ही उत्पाद 'रोटेशन' में लगे हुए थे जिसके बावजूद भी लहसुन के भाव नहीं मिल पा रहे हैं."
सरकारी नीतियां ख़राब हैं
बालाराम चौधरी का आरोप है कि सरकार की नीतियाँ ख़राब हैं. वे कहते हैं कि सरकार ही लहसुन का निर्यात ठीक से नहीं कर रही है.
लेकिन इन सब के बीच लहसुन की खेती करने वाले किसान बेहाल हो रहे हैं. मंदसौर के पास जावरा की मंडी का भी यही हाल है जहां लहसुन से भरी ट्रालियों की लाइन लगी हुई है.
मंदसौर ज़िले के किसान जगदीश पाटीदार कुज्रौत गाँव के रहने वाले हैं. वे कहते हैं कि इस महंगाई के दौर में लहसुन के उत्पादन में भी ख़र्च बढ़ गया है. मिसाल के तौर पर वे बताते हैं कि एक बीघे में लहसुन बोने से लेकर मंडी तक लाने में एक किसान को कम से कम बीस से पच्चीस हज़ार का ख़र्च आता है.
लेकिन पाटीदार कहते हैं कि इस साल स्थानीय लहसुन की बिक्री 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल हो रही है. इस कारण काश्तकार बहुत परेशान हैं.
उनका कहना था, "किसान अपनी फ़सल को लेकर मंडी तक बहुत मुसीबत से आते हैं. अब किसानों को भाव भी नहीं मिल पा रहा है. माल लाने वाली गाड़ी तक का किराया भी पूरा नहीं हो रहा है. इस कारण कुछ किसान अपना उत्पाद यहीं छोड़ कर चले जा रहे हैं या जला रहे हैं. क्या करें?"
मंडी में हमारी मुलाक़ात राम प्रसाद से हुई जो बहुत दूर का सफ़र तय कर अपनी उपज के साथ मंदसौर पहुंचे हैं. वो राजस्थान के शाजापुर के रहने वाले हैं. (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 18 सितंबर | आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सम्मेलन में अरविंद केजरीवाल द्वारा दिए गए भाषण की निंदा करते हुए भाजपा ने कहा है कि बिना किसी पोर्टफोलियो के मुख्यमंत्री बने हुए केजरीवाल आत्ममुग्ध और बयान बहादुर हैं। अन्ना हजारे के पत्र का जिक्र करते हुए भाजपा ने कहा कि सत्ता का नशा केजरीवाल पर चढ़ गया है। भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि आज की बैठक में अरविंद केजरीवाल ने अपनी तुलना कान्हा से कर न केवल अपनी आत्ममुग्धता का परिचय दिया है बल्कि अपने नेताओं को जेल जाने के लिए तैयार रहने की बात कह कर भ्रष्टाचार को भी महिमामंडित करने का प्रयास किया है। आम आदमी पार्टी को कट्टर बेईमान और भ्रष्ट पार्टी बताते हुए संबित पात्रा ने कहा कि केजरीवाल अपने मंत्रियों को भी भ्रष्टाचार कर हिस्सा देने और जेल जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केजरीवाल मेधा पाटकर के नाम पर गुजरात की जनता को झुका नहीं सकते।
पात्रा ने आरोप लगाया कि सारा भ्रष्टाचार केजरीवाल ही करवा रहे हैं लेकिन अपने आपको बचाने के लिए वो किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करते। उन्होंने न्यायपालिका पर सवाल उठाने के लिए केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि शराब घोटाला मामले में भाजपा ने दो वीडियो स्टिंग दिखाया है लेकिन केजरीवाल इसका जवाब नहीं दे पा रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने न्यायपालिका के अलावा मीडिया को लेकर दिए गए केजरीवाल के बयान पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की मीडिया और न्यायपालिका डरी हुई नहीं है और अपनी जिम्मेदारी का पालन कर रही है, इसलिए केजरीवाल बौखला रहे हैं।
पात्रा ने आगे कहा कि जब किसी राज्य में चुनाव आता है तो अरविंद केजरीवाल की नौटंकी शुरू हो जाती है। वो कहते हैं कि सर्वे आ गया है मैं जीत गया हूं, सभी लोग उनसे डरने लगे हैं। उन्होंने केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्हें हैरानी है कि अब तक केजरीवाल ने यह दावा क्यों नहीं किया कि जो बाइडेन भी उनसे डरने लगे हैं। ऐसा ही हिमाचल और उत्तराखंड में बोल रहे थे। आज पता नहीं आम आदमी पार्टी वहां कहां है।
उन्होंने आगे कहा कि 18 राज्यों में भाजपा की सरकार है, लेकिन हम कहते हैं कि हम लोग सेवक हैं, भगवान जनता है लेकिन मात्र दो राज्यों में सरकार आने के बाद केजरीवाल खुद को भगवान मानने लगे हैं। इतिहास में सबसे कम समय के अंदर अगर किसी सरकार में सबसे ज्यादा मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप के कारण इस्तीफा देना पड़ा हो तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी है।
कर्ज को लेकर केजरीवाल के दावे पर सवाल उठाते हुए पात्रा ने कहा कि कैग की रिपोर्ट यह बताती है कि पिछले चार सालों में दिल्ली का कर्ज कई गुना बढ़ गया है और अब दिल्ली पर लगभग 3 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है और यह हालत तब है जब दिल्ली में कई मदों पर होने वाली खर्च की राशि और पेंशन सहित कई मदों का भुगतान केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। (आईएएनएस)
भोपाल, 18 सितंबर | गरीब, कमजोर वर्ग की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए चलाया जा रहा आजीविका मिशन नई इबारत लिख रहा है। मध्यप्रदेश में इस अभियान के तहत बने स्व सहायता समूह ने कई महिलाओं को मजदूर से मालिक बनने का मौका दे दिया है। इस बदलाव ने उनकी जिंदगी को न केवल खुशियों से भरा है बल्कि वे अपने साथियों को भी नया रास्ता दिखाने का काम कर रही है।
मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत तीन लाख 86 हजार से अधिक महिला स्व सहायता समूह काम कर रहे हैं। इन समूह के जरिए लगभग 45 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं। यह महिला समूह सब्जी उत्पादन, दूध उत्पादन, अगरबत्ती, हैंड वाश, साबुन निर्माण, कृषि और पशुपालन आधारित आजीविका गतिविधियों और आजीविका पोषण वाटिका के संचालन का काम कर रहे हैं।
इन स्व सहायता समूह से जुड़ी एक हैं श्योपुर की सहरिया आदिवासी सुनीता। यह कभी 30 से 50 रुपये की प्रतिदिन मजदूरी किया करती थी मगर आज वे मालिक बन गई हैं। उन्होंने स्व सहायता समूह से जुड़ कर 70 हजार का कर्ज लिया, जिससे उन्होंने आटा चक्की स्थापित की। आटा चक्की ऐसी चली कि वे हर महीने 30 हजार रुपये से ज्यादा कमाने लगी तो उन्होंने कर्ज की रकम चुकाई और आगे बढ़ी। फिर उन्होंने 50 हजार का कर्ज लेकर खेती के काम में लगाया और ट्यूबवेल खुदवाया। इतना ही नहीं उनका ढाई बीघा जमीन में अमरूद का बागान है इसके अलावा एक चार पहिया वाहन खरीद चुकी है, जिसे आजीविका वाहन कहती है।
सुनीता आदिवासी अपने बीते दिनों को याद करती हैं और वर्तमान की स्थिति की तुलना करती हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वे कहती हैं कि कभी उन्हें मजदूरी के लिए परेशान होना पड़ता था मगर आज वे खुद मालिक बन गई है और हर महीने 70 हजार से ज्यादा रुपए कमा रही हैं। उनकी साल भर की आमदनी 10 लाख से ज्यादा है।
ऐसी ही कुछ कहानी है शयोपुर जिले के कराहल की। उसके राधा स्व सहायता समूह की कलिया बाई कुशवाहा बताती हैं कि जब स्व सहायता समूह से जुड़ी तो उसके बाद उनकी जिंदगी में बदलाव का दौर शुरू हुआ। कई बार तो पहले ऐसे दिन आ जाते थे जब उन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। वे और पति मिलकर मुश्किल से डेढ़ सौ रुपए प्रतिदिन कमाते थे। आज स्थितियां बदली हैं। उन्होंने स्व सहायता समूह से कर्ज लिया और फिर एक हाथ ठेला खरीदा जिसके साथ बर्फ का गोला बन कर, जिसे आइसक्रीम भी कहते हैं, बेचना शुरू किया और सिलाई मशीन खरीदी। धीरे-धीरे स्थितियां बदली और आज वे खुद मालिक बन गई है।
कलिया बाई बताती हैं कि उनके राधास्वामी सहायता समूह से 40 समूह जुड़े हुए हैं, जिनमें लगभग साढ़े चार सौ महिलाएं काम कर रही हैं, इनमें से 300 महिलाएं ऐसी हैं जो रोजगार की तलाश में घर छोड़कर जाती थी, मगर आज उनकी स्थिति बदल गई है। महिलाओं को मछली पालन का भी प्रशिक्षण दिया गया है और समूह एक लाख रुपये साल तक कमाने लगे हैं।
कुल मिलाकर देखें तो मध्यप्रदेश में आजीविका मिशन के अधीन काम कर रहे स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की स्थिति में लगातार बदलाव आ रहा है। यह ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि मजदूर और नौकर से महिलाएं मालिक बन गई। (आईएएनएस)
रांची, 18 सितंबर | झारखंड की राजधानी रांची से 32 किलोमीटर दूर पहाड़ी की तलहटी में स्थित आरा केरम गांव की सीमा में दाखिल होते ही साफ-सुथरी सड़क के किनारे एक बोर्ड दिखता है। इस बोर्ड पर गांव में रहने के नियम लिखे गये हैं। ये नियम हैं- श्रमदान, नशाबंदी, लोटा बंदी (खुले में शौच पर प्रतिबंध), चराई बंदी (मवेशियों को लावारिस छोड़ने पर रोक), कुल्हाड़ी बंदी (पेड़-पौधे काटने पर रोक), दहेज प्रथा बंदी, प्लास्टिक बंदी और डीप बोरिंग बंदी।
ये वो नियम हैं, जो गांव के लोगों ने आपसी सहमति से तकरीबन पांच साल पहले खुद पर लागू किये थे। इन नियमों का असर यह हुआ कि ओरमांझी प्रखंड के आरा केरम गांव ने स्वावलंबन और विकास का एक ऐसा मॉडल खड़ा कर दिया, जिसकी चर्चा अब झारखंड के साथ पूरे देश में होती है।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम में इस गांव के मॉडल की सराहना कर चुके हैं। झारखंड के दूसरे जिलों में आदर्श गांव के लिए आरा-केरम का मॉडल अपनाने की पहल हो रही है। खूंटी जिला प्रशासन ने आरा-केरम के ग्रामीणों का यह मॉडल एक साथ जिले के 80 गांवों में लागू करने की योजना पर काम शुरू दिया है।
खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड अंतर्गत अलंकेल टोला के ग्रामीणों ने भी ऐसे ही नियम खुद के ऊपर लागू किये हैं। कोडरमा जिले की ग्राम पंचायतों के 50 नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों के एक समूह ने इसी महीने गांव का दौरा कर यहां के तौर-तरीकों को समझने की कोशिश की। कोडरमा के डीसी आदित्य रंजन खुद इस समूह की अगुवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी योजना है कि कोडरमा जिले की हर पंचायत में कम से कम एक गांव इस तर्ज पर विकसित हो।
आरा केरम गांव ने नशाबंदी, जल प्रबंधन, स्वच्छता, शिक्षा, जैविक खेती, बागवानी सहित विभिन्न क्षेत्रों में मिसाल कायम की है। गांव की आबादी बमुश्किल एक हजार के आसपास है। वर्ष 2018 के पहले गांव गांव के लोग रांची या ओरमांझी में दैनिक मजदूरी करने जाते थे, लेकिन उन्होंने श्रमदान कर देसी जुगाड़ से पहाड़ से बहते झरने के पानी को, एक निश्चित दिशा दी, जिससे न केवल मिट्टी का कटाव और फसल की बबार्दी रुकी, बल्कि खेतों को भी पानी मिल रहा है।
हर खेत तक बिना पंप के पानी पहुंचाना इतना आसान नहीं था। इसके लिए पहाड़ से उतरने वाले पानी से लेकर जमीन में बहने वाले पानी को रोकने के उपाय किये गये। इसके लिए मनरेगा की योजनाओं का सहारा लिया गया। झारखंड के तत्कालीन मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने गांव के लोगों को खूब प्रेरित किया। ग्रामीणों ने श्रमदान भी किया।
सबसे पहले पहाड़ से बहने वाले पानी को रोकने के लिए पहाड़ में लूज बोल्डर स्ट्रक्च र बनाया गया। इसके जरिए पानी की रफ्तार कम हुई और पहाड़ की मिट्टी का कटाव कम हुआ। इसके साथ ही गांव की ढलान वाली जमीन पर ट्रेंच बनाकर खेतों तक पानी पहुंचाया जाने लगा। पहाड़ की तराई पर दो तालाब बनाए गये। उसी तालाब से आज सिर्फ पाइप लगाकर पानी खेतों तक पहुंच जाता है।
गांव की 95 फीसद आबादी आज आजीविका के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। 70 प्रतिशत किसान सालों भर सब्जी की खेती करते हैं। लगभग 35 एकड़ भूमि में ड्रिप इरिगेशन से खेती होती है। यहां 400 एकड़ में फैले वन क्षेत्र को बचाने के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं।
आरा गांव के प्रधान गोपाल राम बेदिया बताते हैं कि श्रमदान और परस्पर सहयोग से आरा कैरम गांव के लोगों ने 12 डोभा (छोटे तालाब), तीन सौ एकड़ में ट्रेंच, 20 एकड़ में आम बागवानी, 5 एकड़ भूमि में औषधीय पौधे, 35 नाडेप (पीट कंपोस्ट) और 80 मवेशी शेड का निर्माण किया है।
ग्राम प्रधान ने बताया कि जब हमारी सभा गांव में होती है तो वहां सभी परिवार के एक सदस्य की उपस्थिति अनिवार्य होती है। इसी क्रम में प्रति परिवार पांच रुपये की बचत कर ग्राम कोष में जमा किया जाता है। उसी पैसे से और श्रमदान कर गांव का विकास किया जाता है।
श्रमदान गांव के विकास का मुख्य आधार है। श्रमदान में भी सभी घरों के लोग भाग लेते हैं। आरा गांव के बीचो-बीच चौक पर एक पोल पर लाडडस्पीकर लगाया गया है, जिससे आवाज देकर सुबह चार बजे बच्चों और उनके अभिभावकों को जगाया जाता है। बच्चे जागने और नित्यक्रम के बाद पढ़ाई में जुट जाते है, वहीं पूरे गांव में एक साथ झाड़ू लगाकर साफ-सफाई का अभियान चलाया जाता है।
ग्रामीण हर वृहस्पतिवार को बैठक कर चल गांव में चल रही योजनाओं पर चर्चा करते है। आरा-केरम को झारखंड सरकार ने राज्य का पहला नशामुक्त गांव घोषित किया है।
स्वच्छता के लिए गांव के लोगों ने बरसाती जल जमाव के स्रोतों को मिट्टी से पाटा, घरों की नालियों को ढका और गांव में जगह-जगह इकट्ठे कूड़े का भी प्रबंधन किया और धीरे-धीरे गांव मच्छरों से आजाद हो गया। इस अभियान के तहत गांव के सभी घरों के आगे चार गुणा तीन फीट के गड्ढे का निर्माण कराया गया है, जिसमें घर से बाहर निकलने वाले पानी संरक्षित किया जा रहा है।
इसके साथ ही बारिश में सड़क बहने वाले पानी का भी काफी हद तक संरक्षण संभव हो सका। ग्रामीण जैविक खेती को अधिक से अधिक बढ़ावा देने के लिए अमृत मिट्टी का निर्माण भी कर रहे है। अमृत मिट्टी सूखे पत्तों, गुड़ और गोबर तथा गोमूत्र की सहायता से बनाई जाती है।
कोरोना काल में जब तमाम स्कूलों पर ताले लटके थे, तब यहां ग्राम सभा ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कराते हुए दो शिफ्ट में गांव के स्कूल में कक्षाएं चलाईं। यहां 11 शिक्षकों ने दो पालियों में बच्चों को रोजाना पढ़ाना जारी रखा। (आईएएनएस)
बहराइच, 18 सितंबर | गौरक्षा के नाम पर भले ही लिचिंग की तमाम घटनाएं सामने आई हों, लेकिन यूपी के बहराइच जिले के रहने वाले पप्पू किदवई का बेसहारा गोवंश की सेवा का काम पिछले 37 सालों से पूरी तन्मयता से जारी है। उन्होंने निराश्रित गोवंश की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। तराई क्षेत्र के आसपास जानवरों को तकलीफ होने पर पप्पू किदवई न सिर्फ उनके इलाज का इंतजाम करते हैं, बल्कि विरासत में मिले औषधियां बनाने के हुनर से उन्हें दवाएं भी देते हैं। इलाके के लोगों को उम्मीद रहती है कि किदवई है तो बेसहारा पशुओं को कोई खतरा नहीं है। गोवंश के इलाज के लिए न तो वे किसी से कोई सहायता लेते हैं और न ही कोई संगठन उनको मदद करता है। वे दिन-रात बेजुबान मवेशियों की सेवा में डटे रहते हैं।
धर्म व समाज के बंदिशों की परवाह किए बगैर पप्पू किदवई पांच वक्त की नमाज के साथ गोवंश की सेवा में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि 1985 से गौसेवा में जुटे है। गाय, भैंस, कुत्ता, बिल्ली या कोई भी जानवर हो, जो घायल हो या कोई बीमारी हो तो उसका इलाज करते हैं। इसके अलावा अगर कोई भी बुलाता है तो उसके जानवरों का नि:शुल्क इलाज करते हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी खेती से होने वाली आमदनी से दवाएं बनाते हैं और पशुओं की सेवा करते हैं। बेटाडीन, आयोडेस्क, सुमैग जैसे मलहम घर पर तैयार कर लेते हैं। उनको यह हुनर उनके पिता से मिला है। उनके पिता ए.एच. किदवई पशु चिकित्सा विभाग में कार्यरत होने के साथ-साथ पशुओं के इलाज के कई अचूक नुस्खे और गुर जानते थे। उन्होंने बताया कि पशुओं के इलाज में कई डॉक्टर भी उनका परामर्श लेते हैं।
स्वतंत्रता सेनानी, सादगी और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रफी अहमद किदवई के परिवार से नजदीकी तालुक रखने के कारण सेवा और जरूरतमंदों के प्रति संवेदना पप्पू किदवई को विरासत में मिली है। पप्पू किदवई ने बताया कि वे अब तक तकरीबन पांच हजार जानवरों का इलाज कर चुके हैं। इसके अलावा, जिन पशुओं के कीड़े पड़ जाते हैं या कोई टूट-फूट होती है तो न सिर्फ उसकी सेवा करते है, बल्कि वह जब तक ठीक नहीं हो जाता, तब तक उसकी पूरी देखरेख करते हैं। इतना ही नहीं, वह अन्य लोगों को भी गौवंश पालने से जुड़े लाभों के बारे में बताते हैं और उन्हें जागरूक करने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि जानवरों में कई प्रकार की बीमारी होती है जिसके बारे में लोगो को जागरूक करना होता है।
पप्पू किदवई ने बताया कि उन्हें बीएल चौबे से भी बहुत कुछ ज्ञान मिला है। बताया कि श्रावस्ती पशु कल्याण केंद्र से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया कि छोटे से बड़े इलाज कर लेते हैं। अगर कोई गरीब आता है उसको दवा की जरूरत होती है तो उसे अपने पास से नि:शुल्क दवा देते हैं। अभी तक इलाज में अपने घर से कई लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। पप्पू किदवई ने बताया कि उन्हें बेसहारा पशुओं के इलाज की प्रेरणा एक घोड़े के इलाज से मिली थी।
पप्पू किदवई ने बताया कि घायल और बीमार बेसहारा गोवंश को पकड़ने में पुलिसवाले और अन्य लोग मदद करते है। उन्होंने यह भी कहा कि इस काम में उन्हें पशुचिकित्सा अधिकारी बलवंत सिंह और एसके रावत से बहुत मदद मिली है। लायंस क्लब की ओर से बहुत जगह नि:शुल्क दवा वितरण का काम भी किया गया है। पप्पू किदवई ने अपील की कि सरकार गौशाला बनवाने के साथ-साथ उनके लिए चारे की भी व्यवस्था करे, गांवों में खाली पड़ी जमीनों को इस्तेमाल किया जा सकता है। उनका कहना था कि लोग चारे के अभाव में ही जानवरों को सड़कों पर खुला छोड़ते हैं।
गाजीपुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (सीवीओ) एसके रावत ने बताया कि जब वह बहराइच में पोस्टेड थे, तब वह पप्पू किदवई से मिले थे, किदवई जानवरों से लगाव रखते हैं, वे कई वर्षों से जानवरों की सेवा भी कर रहे हैं। उन्हें जानवरों के इलाज की जानकारी भी है और डॉक्टरों से परामर्श भी ले लेते हैं। बहराइच के रहने वाले धर्मेंद्र बताते हैं कि सड़कों पर एक्सीडेंट से चोटिल हुए पशुओं की सेवा पप्पू किदवई काफी सालों से कर रहे हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 सितंबर | दिल्ली के तिमारपुर में 1940 के करीब अंग्रजों के जमाने के ट्रीटमेंट प्लांट हुआ करते थे, अब उसी जगह पर दिल्ली सरकार प्राकृतिक एसटीपी बनाने के अलावा एक झील भी विकसित कर रही है। इस प्रोजेक्ट का कुल बजट 100 करोड़ है इसमें अकेले प्राकृतिक एसटीपी बनाने का ही बजट 64 करोड़ है। दिल्ली सरकार जिस जगह झील विकसित कर रही है वहां सालों पहले ब्रिटिश ट्रीटमेन्ट प्लांट हुआ करते थे, जो गंदा पानी साफ करने के लिए प्रयोग में आते थे। इस कारण तिमारपुर की जमीन पर गंदा पानी हुआ करता था और बदबू भी बहुत आती थी।
दिल्ली जल बोर्ड ने सालों पहले इस जगह को इस्तेमाल करना भी छोड़ दिया था। वहीं इस साइट पर डीजेबी का ऑक्सिडेशन पॉन्ड है, इसलिए अब इस जमीन पर प्राकृतिक एसटीपी बनाया जा रहा और बची हुई जमीन पर झील विकसित की जा रही है। स्थानीय लोगों को यहां झील और बायोडायवर्सिटी पार्क का काफी लंबे वक्त से इंतजार है।
इस प्रॉजेक्ट के पूरा होने के बाद यहां जमीन में पानी का स्तर तो ऊपर आएगा और साथ ही जैव विविधता भी बढ़ेगी। इसके साथ ही दिल्ली में बन रही अलग अलग झील से आने वाले समय में राजधानी के पास पानी के अपने सोर्स भी होंगे।
झील और एसटीपी बनने के अलावा यहां ब्रॉड वॉक, चिल्ड्रन कैफे, फूड कोर्ट, फुटबॉल ग्राउंड, पाकिर्ंग, फ्लावर गार्डन, म्यूजिक कैफे, लिटरेचर कैफे, किड्स प्ले एरिया भी होगा।
दिल्ली सरकार, दिल्ली को 'झीलों का शहर' बनाने के सपने को साकार करने में जुटी है। इस परियोजना के तहत पहले चरण में सरकार की ओर से 250 जलाशयों और 23 झीलों को जीवंत किया जा रहा है। इसका उद्देश्य शहरी बाढ़ को रोकना और अवरुद्ध नालियों से बचने के लिए विभिन्न जलाशयों का निर्माण करना है।
दिल्ली सरकार 'सस्टेनेबल मॉडल' का उपयोग कर झीलों का कायाकल्प कर रही है। झीलों के आस-पास पर्यावरण तंत्र को जीवंत करने के लिए देसी पौधे लगाए जा रहे है। साथ ही सभी जल निकायों को सुंदर रूप देने की दिशा में लगातार मेहनत की जा रही है।
दरअसल दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) 2018 से तैयारी कर रहा है कि दिल्ली को झीलों का शहर की सूची में शामिल किया जाए लेकिन अभी तक ऐसा संभव नहीं हो सका है। अधिकारियों के मुताबिक, यह उम्मीद जताई जा रही है कि 2024 आखिर तक दिल्ली को झीलों का शहर बना दिया जाएगा। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 18 सितंबर | केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के खिलाफ जमकर बरसे और कहा कि वह केंद्र से संपर्क करेंगे, क्योंकि केरल सरकार ने दिसंबर 2019 में कन्नूर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इतिहास सम्मेलन के दौरान उन पर हुए हमले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। आरिफ मोहम्मद खान ने आरोप लगाया कि भारतीय इतिहास सम्मेलन के दौरान इतिहासकार इरफान हबीब और अन्य ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ डेढ़ घंटे से अधिक समय तक बात की और जब वह इसका जवाब दे रहे थे तो उन पर शारीरिक रूप से हमला करने का प्रयास किया गया था। केरल के राज्यपाल ने आरोप लगाया कि हमले में उनके एडीसी मनोज पांडे की शर्ट फट गई थी।
राज्यपाल ने कोच्चि में मीडियाकर्मियों से कहा कि इन सब के पीछे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की साजिश थी। केरल पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की।
आरिफ मोहम्मद खान केरल माकपा के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन के खिलाफ जमकर उतरे, जिन्होंने शनिवार को मीडियाकर्मियों को बताया कि राज्यपाल या उनके कार्यालय ने इस मामले में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की है। इस पर राज्यपाल ने मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा, "यदि राष्ट्रपति, उनके दल या राज्यपाल, उनके दल पर हमला किया जाता है तो पुलिस को स्वत: संज्ञान लेना पड़ता है। माकपा नेता को यह भी नहीं पता है।"
केरल के राज्यपाल ने यह भी कहा कि वह सोमवार को कन्नूर विश्वविद्यालय में हुए हमले का वीडियो जारी करेंगे। उन्होंने कहा कि वह केरल के मुख्यमंत्री द्वारा लिखे गए पत्रों को जारी करेंगे। (आईएएनएस)
पटना, 18 सितंबर | पितरों (पूर्वजों) की मुक्ति और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में पिंडदान के लिए गया को श्रेष्ठस्थल माना गया है। आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने के अमावस्या तक को पितृपक्ष या महालया पक्ष कहा गया है। इस पक्ष में देश, विदेश के लाखों लोग गया आकर पितरों की पिंडदान और तर्पण करते हैं।
कहा जाता है कि पहले गया में 365 पिंडवेदियां थी लेकिन फिलहाल 54 पिंडवेदियां है, जिसमें 45 पिंडवेदी और नौ तर्पणस्थल है जहां लोग पितृपक्ष में पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। मान्यता है कि गया के अक्षयवट स्थित विपंडवेदी पर पिंडदान के बाद गयावाल पंडों के सुफल के बाद ही श्राद्धकर्म को पूर्ण या सफल माना जाता है।
अन्य पिंडवेदियों पर आम तौर पर तिल, गुड़, चावल, जौ से पिंडदान किया जाता है कि लेकिन अक्षयवट में खोआ, खीर से पिंडदान करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितर को सनातन अक्षय ब्रह्न्लोक की प्राप्ति होती है।
अक्षयवट के पंडा विरन लाल ने आईएएनएस को बताया कि गया में पिंडदान कर्मकांड की शुरूआत फल्गु से होती है, वहीं, अंत अक्षयवट में होती है। ब्रह्म योनि पहाड़ के तलहटी में स्थित अक्षयवट के संबंध में मान्यता है यह सैकड़ों वर्ष पुराना वृक्ष है, जो आज भी खड़ा है।
गया श्राद्ध का विधान कब से प्रारंभ हुआ, इसका कहीं वर्णन नहीं मिलता। कहा जाता है कि अनादि काल से यहां कर्मकांड चला आ रहा है, तबसे अक्षयवट की वेदी पर पिंडदान करना आवश्यक माना जा रहा है।
तीर्थवृत सुधारिनी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक अक्षयवट के निकट भोजन करने का भी अपना अलग महत्व है। अक्षयवट के पास पूर्वजों को दिए गए भोजन का फल कभी समाप्त नहीं होता। वे कहते हैं कि पूरे विश्व में गया ही एक ऐसा स्थान है, जहां सात गोत्रों में 121 पीढ़ियों का पिंडदान और तर्पण होता है।
यहां पिंडदान में माता, पिता, पितामह, प्रपितामह, प्रमाता, वृद्ध प्रमाता, प्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, पिताकुल, माताकुल, श्वसुर कुल, गुरुकुल, सेवक के नाम से किया जाता है। गया श्राद्ध का जिक्र कर्म पुराण, नारदीय पुराण, गरुड़ पुराण, वाल्मीकि रामायण, भागवत पुराण, महाभारत सहित कई धर्मग्रंथों में मिलता है।
अक्षयवट में धागा बांधने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि यहां धागा बांधने से मन्नत मांगने से कार्य पूरे हो जाते हैं।
गया श्राद्ध में अक्षयवट की महत्ता इसी से आंकी जा सकती है कि गयावाल पंडा अक्षयवट में आकर पितर पूजा करने वालों को अंतिम सुफल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि जो भी गया श्राद्ध करने के निमित्त आते हैं सर्वप्रथम अपने गयावाल पंडा के चरण पूजा करते हैं। गया वाले पंडा के निर्देशानुसार कोई अन्य ब्राह्मण विभिन्न विधियों पर पिंडदान तथा तर्पण का विधि विधान पूर्ण कराते हैं।
जब सभी स्थानों पर पिंडदान तथा तर्पण का कार्य पूर्ण हो जाता है तब गयावाल पंडा अपने यजमान के साथ अक्षयवट जाते हैं, यहां एक वेदी पर पिंडदान करने के पश्चात पंडा उन्हें सुफल प्रदान करते हैं।
पंडा उन्हें आशीर्वाद के तौर पर प्रसाद भेंट करते हैं। गया श्राद्ध का कर्मकांड अक्षयवट में ही संपन्न होता है। अक्षय वट में शुभ फल प्राप्त करने के बाद ही गया श्राद्ध को पूर्ण हुआ माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिन तक का कर्मकांड करते हैं, लेकिन सुफल के लिए अंतिम पिंडदान अक्षयवट में ही करना होता है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 सितंबर | उत्तर प्रदेश से लोक सभा के 80 सांसद चुनकर आते हैं और 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
प्रदेश की सभी 80 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल करने के लिए भाजपा एक साथ कई मोर्चो पर तेजी से काम करने में जुट गई है। पार्टी का फोकस 2019 में हारी हुई 16 लोक सभा सीटों के साथ-साथ उन सीटों पर भी है जहां से भाजपा सांसद लगातार जीत रहे हैं खासतौर से उन सीटों पर जहां से एक ही नेता ने लोक सभा का पिछला दोनों चुनाव जीता हो।
लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर सांसदों की लोकप्रियता और जनता से उनका जुड़ाव भी जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा इससे पहले भी कई बार विभिन्न राज्यों में नेताओं के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की धार को कुंद करने के लिए बड़े पैमाने पर अपने चुने हुए नेताओं का टिकट काट चुकी है और भाजपा को इसका लाभ भी हासिल हुआ है।
इसलिए भाजपा के टिकट पर एक ही सीट से लगातार चुनाव जीतने वाले सांसद, खासतौर से ऐसे सांसद जो 2014 और 2019 का चुनाव एक ही क्षेत्र से जीते हैं, उन्हें 2024 में भी अपनी सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी लोकप्रियता साबित करनी होगी।
पार्टी के आला नेता लगातार उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों का दौरा कर सांसदों के कामकाज को लेकर फीडबैक ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एवं बृजेश पाठक, नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और यूपी भाजपा संगठन महासचिव धर्मपाल लगातार प्रदेश के अलग-अलग जिलों का दौरा कर लोक सभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं और साथ ही सांसदों के कामकाज और लोकप्रियता को लेकर फीडबैक भी ले रहे हैं। सूत्रों की मानें तो चुनाव आते-आते भाजपा कई स्तरों पर उम्मीदवार के चयन को लेकर सर्वे भी कराएगी और इन तमाम सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ही यह तय किया जाएगा कि किस सीट से किस नेता को चुनावी मैदान में उतारा जाए, किस सांसद का सीट बदला जाए और किस सांसद का टिकट काट दिया जाए।
अब बात उन 16 लोक सभा सीटों की जिन पर 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था। 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को 62 और उसके सहयोगी अपना दल को 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ अमेठी को तो जीत लिया था लेकिन रायबरेली से सोनिया गांधी को हरा नहीं पाई थी। समाजवादी पार्टी भी 2019 में मैनपुरी, आजमगढ़ और रामपुर जैसे अपने गढ़ को बचा पाने में कामयाब हो गई थी (हालांकि हाल ही में हुए उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर दोनों को जीत लिया है), तो वहीं मायावती की बसपा ने भी क्षेत्रीय समीकरणों और सपा से गठबंधन का लाभ उठाते हुए 10 सीट अपनी झोली में डाल ली थी।
लेकिन 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा सोनिया गांधी और मुलायम सिंह यादव समेत सभी विपक्षी नेताओं के मजबूत गढ़ को ढहाकर प्रदेश की सभी 80 लोक सभा सीटें जीतना चाहती है। इसलिए इन 16 सीटों को लेकर भाजपा खास तैयारी कर रही है। पार्टी ने इन सभी 16 सीटों पर कमजोर बूथों की पहचान कर ली है। इन कमजोर बूथों में ज्यादातर यादव, मुस्लिम और जाटव बहुल है। इन सीटों पर पार्टी बूथ वाइज तैयारी करेगी।
भाजपा ने इन सीटों पर दिग्गज विपक्षी नेताओं को घेरने के लिए पहले ही अपने मंत्रियों की फौज को जमीन पर उतार दिया है। मोदी सरकार के मंत्री लगातार इन लोक सभा क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को और मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को सौंपी गई है। दोनों नेताओं को कई अन्य सीटों की भी जिम्मेदारी दी गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और अन्नपूर्णा देवी को भी 2019 में हारी हुई तीन-तीन लोक सभा सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। (आईएएनएस)
चेन्नई, 18 सितंबर | तमिलनाडु में तेनकासी पुलिस ने एक दुकानदार महेश्वरन को अनुसूचित जाति के बच्चों को स्नैक्स और कैंडी देने से मना करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। जिला प्रशासन ने दुकान को सील कर उसका लाइसेंस रद्द कर दिया। पुलिस ने कहा कि अनुसूचित जाति के बच्चों के एक समूह ने शनिवार को नाश्ता और कैंडी खरीदने के लिए महेश्वरन से संपर्क किया। उसने उन्हें देने से मना कर दिया और कहा कि उन्हें नाश्ता और कैंडी या उसकी दुकान से कुछ भी नहीं मिलेगा।
जब बच्चों ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके समुदाय के गांव के बुजुर्गो ने फैसला किया है कि वे अनुसूचित जाति के लोगों को कुछ भी नहीं बेचेंगे। महेश्वरन के स्नैक्स और कैंडी देने से इनकार करने का वीडियो जब वायरल हुआ तो तेनकासी के जिला कलेक्टर पी. आकाश ने मामले में हस्तक्षेप कर जांच के आदेश दिए।
जांच में पता चला कि एक विवाह समारोह के दौरान अनुसूचित जाति के युवकों का विवाद मध्य जाति के युवकों से हो गया था और पुलिस ने दोनों पक्षों के युवकों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। मध्यम जाति के एक युवा के. रामचंद्रन को एक रक्षा बल के साथ इंटरव्यू में भाग लेना था, लेकिन वह एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत आरोप के चलते उपस्थित नहीं हो सका। इसके बाद मध्यम जाति के लोग नाराज हो गए। उन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों को बहिष्कृत करने का फैसला किया।
रामचंद्रन को तेनकासी जिले में करीवलम वंतल्लूर पुलिस ने गिरफ्तार किया और बाद में शनिवार की रात महेश्वरन को भी गिरफ्तार कर लिया गया। (आईएएनएस)
पुडुचेरी, 18 सितंबर | केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में इन्फ्लुएंजा के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। इसके चलते कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए स्कूल 25 सितंबर तक बंद रखने का फैसला लिया गया है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की सिफारिश पर कक्षा 1 से 8 तक के स्कूलों को बंद करने का आदेश जारी किया गया है। यह आदेश मुख्यमंत्री एन. रंगासामी और शिक्षा मंत्री ए. नमस्सिवयम ने जारी किया है।
स्कूल शिक्षा निदेशालय ने शनिवार को एक बयान में कहा कि छुट्टियां एलकेजी और यूकेजी के छात्रों के लिए भी लागू होंगी।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि पिछले एक सप्ताह में विभिन्न स्वास्थ्य क्लीनिकों से मिली जानकारी के मुताबिक, बच्चों में इन्फ्लुएंजा के मामलों में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अधिकारियों ने कहा कि ज्यादातर बच्चे तेज बुखार और खांसी से पीड़ित होने के बावजूद स्कूल आ रहे हैं, जिससे बीमारी के फैलने आ अंदेशा है।
कराइक्कल के एक सरकारी अस्पताल के डॉ. आर. संथानाकृष्णन ने आईएएनएस बातचीत में कहा : "फ्लू जैसी बीमारी तब फैलती है, जब बच्चे संक्रमित व्यक्तियों के सीधे संपर्क में होते हैं। इसके चलते स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के बीच मामलों में काफी तेजी आई है।"
उन्होंने कहा कि बच्चों को घर पर रहना चाहिए, फेस मास्क का उपयोग करना चाहिए, सामाजिक दूरी बनाए रखना चाहिए और बीमारी को फैलने से रोकने के लिए नियमित रूप से साबुन से हाथ धोना चाहिए।
पुडुचेरी स्वास्थ्य विभाग ने पूरे क्षेत्र में सरकारी क्लीनिक खोले हैं। एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 मामलों में गिरावट के बाद लोग बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर बिना मास्क लगाए घूम रहे हैं। इससे फ्लू जैसा वायरल फीवर तेजी से फैल रहा है।
अधिकारियों ने बुखार से संक्रमित मरीजों को फेस मास्क पहनने और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों से खुद को अलग करने का निर्देश दिया है। (आईएएनएस)
भोपाल, 17 सितम्बर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि चीते 70 साल बाद भारतीय धरती पर वापस आ गए हैं और इस कदम से जंगल और घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली होगी।
प्रधानमंत्री ने नामीबिया से लाए गए पांच नर और तीन मादाओं को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान के बाड़ों में रिहा कर दिया और इसे पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण की दिशा में प्रयास करार दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "1952 में देश से चीते विलुप्त हो गए थे, लेकिन दशकों तक, उनके पुनर्वास के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया था। आज, जैसा कि हम 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहे हैं, देश ने चीतों को एक नई ऊर्जा के साथ पुनर्वास करना शुरू कर दिया है।"
उन्होंने कहा कि पर्यटकों और वन्यजीव उत्साही लोगों को केएनपी में चीतों को देखने के लिए कुछ महीने इंतजार करना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा, "चीतों को भारत वापस लाने से खुले जंगल और घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में मदद मिलेगी और स्थानीय समुदाय के लिए आजीविका के अवसर भी बढ़ेंगे।"
उन्होंने कहा कि 'प्रोजेक्ट चीता' दुनिया की पहली अंतर-महाद्वीपीय बड़ी जंगली मांसाहारी अनुवाद परियोजना है।
विशेष रूप से, प्रधानमंत्री मोदी के 72 वें जन्मदिन को चिह्न्ति करने के लिए 17 सितंबर को विशेष कार्यक्रम निर्धारित किया गया था।
चीते दो सप्ताह तक केएनपी के एक निर्धारित क्षेत्र में रहेंगे जिसके बाद उन्हें पार्क में छोड़ दिया जाएगा।
मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ वन अधिकारी के अनुसार, "चीते दो सप्ताह तक केएनपी के तहत एक निर्धारित क्षेत्र में रहेंगे। एक बार जब वे इस क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल हो जाएंगे, तो उन्हें पार्क में छोड़ दिया जाएगा।"
वरिष्ठ वन अधिकारी ने बताया कि सभी चीतों के गले में विशेष रेडियो-कॉलर लगा हुआ ताकि उनकी गति का पता आसानी से लगाया जा सके। अफ्रीकी और भारतीय जंगली जानवरों के विशेषज्ञों की एक विशेष संयुक्त टीम हर दिन उनके स्वास्थ्य और आवाजाही की निगरानी करेगी।
मध्य प्रदेश के विशाल वन परि²श्य में 748 वर्ग किमी में फैला, केएनपी आठ चीतों का नया घर है। विशेष रूप से, यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ में कोरिया के साल जंगलों के बहुत करीब है, जहां लगभग 70 साल पहले देशी एशियाई चीते को आखिरी बार देखा गया था।
मध्य प्रदेश में वन अधिकारियों के अनुसार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में स्थित लगभग एक दर्जन राष्ट्रीय उद्यानों के सर्वेक्षण के बाद केएनपी को चीतों के लिए उपयुक्त गंतव्य के रूप में चुना गया था।
कूनो शायद देश के कुछ वन्यजीव स्थलों में से एक है, जहां सालों पहले पार्क के अंदर से लगभग 24 गांवों और उनके पालतू पशुओं को पूरी तरह से स्थानांतरित कर दिया गया था। गाँव के स्थल और उनके कृषि क्षेत्र अब घासों द्वारा ले लिए गए हैं और उन्हें सवाना निवास स्थान के रूप में प्रबंधित किया जाता है।
सरकार की योजना के अनुसार, कूनो भारत में चार बड़ी बिल्लियों (बाघ, शेर, तेंदुआ और चीता) के आवास की संभावना प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे पहले की तरह सह-अस्तित्व में रहें। जबकि शेरों की एकमात्र जीवित आबादी गुजरात में है, कूनो को शुरू में दूसरा घर प्रदान करने का प्रस्ताव दिया गया था।
इस अवसर पर मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पाटे, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भूपेंद्र यादव, ज्योतिरादित्य एम सिंधिया और अश्विनी चौबे मौजूद थे।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को कहा था, "हम एक बाघ राज्य, एक तेंदुआ राज्य थे और अब चीता राज्य बन रहे हैं।"
नई दिल्ली, 17 सितंबर। मध्य प्रदेश के शिवपुर में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि उन्हें लाखों माताओं का आशीर्वाद प्राप्त है. उन्होंने महिलाओं को अपनी प्रेरणा का स्रोत भी बताया.
उन्होंने कहा, "विश्वकर्मा जयंती पर स्वयं सहायता समूहों का इतना बड़ा सम्मेलन, अपने आप में बहुत विशेष है. मैं आप सभी को, सभी देशवासियों को विश्वकर्मा पूजा की भी शुभकामनाएं देता हूं. मुझे आज इस बात की भी खुशी है कि भारत की धरती पर अब 75 साल बाद चीता फिर से लौट आया है. अब से कुछ देर पहले मुझे कुनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने का सौभाग्य मिला."
"पिछली शताब्दी के भारत और इस शताब्दी के नए भारत में एक बहुत बड़ा अंतर हमारी नारी शक्ति के प्रतिनिधित्व के रूप में आया है. आज के नए भारत में पंचायत भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक नारीशक्ति का परचम लहरा रहा है. जिस भी सेक्टर में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है, उस क्षेत्र में, उस कार्य में सफलता अपने आप तय हो जाती है.
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता इसका बेहतरीन उदाहरण है, जिसको महिलाओं ने नेतृत्व दिया है. पिछले 8 वर्षों में स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने में हमने हर प्रकार से मदद की है. आज पूरे देश में 8 करोड़ से अधिक बहनें इस अभियान से जुड़ी हैं. हमारा लक्ष्य है कि हर ग्रामीण परिवार से कम से कम एक बहन इस अभियान से जुड़े.""गांव की अर्थव्यवस्था में, महिला उद्यमियों को आगे बढ़ाने के लिए, उनके लिए नई संभावनाएं बनाने के लिए हमारी सरकार निरंतर काम कर रही है. 'वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट' के माध्यम से हम हर जिले के लोकल उत्पादों को बड़े बाज़ारों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. सितंबर का ये महीना देश में पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है.
भारत की कोशिशों से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोटे अन्नाज के वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है. 2014 के बाद से ही देश, महिलाओं की गरिमा बढ़ाने, महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान में जुटा हुआ है. शौचालय के अभाव में जो दिक्कतें आती थीं, रसोई में लकड़ी के धुएं से जो तकलीफ होती थी, वो आप अच्छी तरह जानती हैं.""देश में 11 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाकर, 9 करोड़ से ज्यादा उज्जवला के गैस कनेक्शन देकर और करोड़ों परिवारों में नल से जल देकर, आपका जीवन आसान बनाया है. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उन्हें समाज में भी उतना ही सशक्त करता है. हमारी सरकार ने बेटियों के लिए बंद दरवाजे को खोल दिया है. बेटियां अब सैनिक स्कूलों में भी दाखिला ले रही हैं, पुलिस कमांडो भी बन रही हैं और फौज में भी भर्ती हो रही हैं. (bbc.com/hindi)
-ए. डी. बालासुब्रमणियन
पेरियार की जयंती 17 सिंतबर पर पढ़िए यह आलेख-
आज़ादी से पहले और इसके बाद के तमिलनाडु में पेरियार का गहरा असर रहा है और राज्य के लोग उनका कहीं अधिक सम्मान करते हैं.
पेरियार के नाम से विख्यात, ई. वी. रामास्वामी का तमिलनाडु के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्यों पर असर इतना गहरा है कि कम्युनिस्ट से लेकर दलित आंदोलन विचारधारा, तमिल राष्ट्रभक्त से तर्कवादियों और नारीवाद की ओर झुकाव वाले सभी उनका सम्मान करते हैं, उनका हवाला देते हैं और उन्हें मार्गदर्शक के रूप में देखते हैं.
तर्कवादी, नास्तिक और वंचितों के समर्थक होने के कारण उनकी सामाजिक और राजनीतिक ज़िंदगी ने कई उतार चढ़ाव देखे.
1919 में उन्होंने अपने राजनीतिक सफ़र की शुरुआत कट्टर गांधीवादी और कांग्रेसी के रूप में की. वो गांधी की नीतियों जैसे शराब विरोधी, खादी और छुआछूत मिटाने की ओर आकर्षित हुए.
उन्होंने अपनी पत्नी नागमणि और बहन बालाम्बल को भी राजनीति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. ये दो महिलाएं ताड़ी के दुकानों के विरोध में सबसे आगे थीं. ताड़ी विरोध आंदोलन के साथ एकजुटता में उन्होंने स्वेच्छा से खुद अपने नारियल के बाग नष्ट कर दिए.
उन्होंने सक्रिय रूप से असहयोग आंदोलन में भाग लिया और गिरफ़्तार किए गए. वो कांग्रेस के मद्रास प्रेसिडेंसी यूनिट के अध्यक्ष बने.
वायकोम सत्याग्रह
1924 में केरल में त्रावणकोर के राजा के मंदिर की ओर जाने वाले रस्ते पर दलितों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने का विरोध हुआ था. इसका विरोध करने वाले नेताओं को राजा के आदेश से गिरफ़्तार कर लिया गया और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कोई नेतृत्व नहीं था. तब, आंदोलन के नेताओं ने इस विरोध का नेतृत्व करने के लिए पेरियार को आमंत्रित किया.
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए पेरियार ने मद्रास राज्य काँग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया. वो गांधी के आदेश का उल्लंघन करते हुए केरल चले गए.
त्रावणकोर पहुंचने पर उनका राजकीय स्वागत हुआ क्योंकि वो राजा के दोस्त थे. लेकिन उन्होंने इस स्वागत को स्वीकार करने से मना कर दिया क्योंकि वो वहां राजा का विरोध करने पहुंचे थे.
उन्होंने राजा की इच्छा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया, अंततः गिरफ़्तार किए गए और महीनों के लिए जेल में बंद कर दिए गए. केरल के नेताओं के साथ भेदभाव के ख़िलाफ़ उनकी पत्नी नागमणि ने भी महिला विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया.
काँग्रेस सम्मेलन में जातीय आरक्षण के प्रस्ताव को पास करने के उनके लगातार प्रयास असफल हुए. इस बीच एक रिपोर्ट सामने आई कि चेरनमादेवी शहर में काँग्रेस पार्टी के अनुदान से चलाए जा रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ खाना परोसते समय अलग व्यवहार किया जाता है.
पेरियार ने ब्राह्मण अय्यर से सभी छात्रों से एक समान व्यवहार करने का आग्रह किया. लेकिन न तो वो अय्यर को इसके लिए राजी कर सके और न ही काँग्रेस के अनुदान को रोक पाने में कामयाब हुए. इसिलिए उन्होंने काँग्रेस छोड़ने का फैसला किया.
काँग्रेस छोड़ने पर उन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया जिसका लक्ष्य गैर-ब्राह्मणों (जिन्हें वो द्रविड़ कहते थे) में आत्म-सम्मान पैदा करना था. बाद में वो 1916 में शुरू हुई एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन (जस्टिस पार्टी के रूप में विख्यात) के अध्यक्ष बने.
द्रविड़ कज़गम
1944 में उन्होंने अपने आत्म-सम्मान आंदोलन और जस्टिस पार्टी को मिला कर द्रविड़ कज़गम का गठन किया.
उन्होंने रूस का दौरा किया जहां वो कम्युनिस्ट आदर्शों से प्रभावित हुए और कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र का पहला तमिल अनुवाद प्रकाशित किया. महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर उनके विचार इतने प्रखर हैं कि उन्हें आज के मानदंडों में भी कट्टरपंथी माना जाएगा.
उन्होंने बाल विवाह के उन्मूलन, विधवा महिलाओं की दोबारा शादी के अधिकार, पार्टनर चुनने या छोड़ने, शादी को इसमें निहित पवित्रता की जगह पार्टनरशिप के रूप में लेने, इत्यादि के लिए अभियान चलाया था.
उन्होंने महिलाओं से केवल बच्चा पैदा करने के लिए शादी की जगह महिला शिक्षा अपनाने को कहा.
कट्टर नास्तिक थे पेरियार
उनके अनुयायियों ने वैवाहिक अनुष्ठानों को चुनौती दी, शादी के निशान के रूप में थली (मंगलसूत्र) पहनने का विरोध किया. उन्हें एक महिला सम्मेलन में ही पेरियार की उपाधि दी गई.
पेरियार का मानना था कि समाज में निहित अंधविश्वास और भेदभाव की वैदिक हिंदू धर्म में अपनी जड़ें हैं, जो समाज को जाति के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटता है जिसमें ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊपर है. इसलिए, वो वैदिक धर्म के आदेश और ब्राह्मण वर्चस्व को तोड़ना चाहते थे. एक कट्टर नास्तिक के रूप में उन्होंने भगवान के अस्तित्व की धारणा के विरोध में प्रचार किया.
दक्षिणपंथी कट्टर विरोधी क्यों?
वो दक्षिण भारतीय राज्यों के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के ख़िलाफ़ थे. उन्होंने दक्षिण भारत राज्यों की एक अलग द्रविड़नाडू (द्रविड़ देश) की मांग की थी. लेकिन दक्षिण के अन्य राज्य उनके विचारों से सहमत नहीं हुए. वो वंचित वर्गों के आरक्षण के अगुवा थे और 1937 में उन्होंने तमिल भाषी लोगों पर हिंदी थोपने का विरोध किया था.
पेरियार ने समूचे तमिलनाडु का दौरा किया और कई सभाओं में लोगों को संबोधित किया. अपने अधिकांश भाषणों में वो बोला करते थे, "कुछ भी सिर्फ़ इसलिए स्वीकार नहीं करो कि मैंने कहा है. इस पर विचार करो. अगर तुम समझते हो कि इसे तुम स्वीकार सकते हो तभी इसे स्वीकार करो, अन्यथा इसे छोड़ दो."
नास्तिक और ब्राह्मण विरोधी राजनीति के बावजूद अपने दोस्त और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से उनके व्यक्तिगत संबंध अच्छे थे.
उनकी पहचान तर्कवाद, समतावाद, आत्म-सम्मान और अनुष्ठानों का विरोधी, धर्म और भगवान की उपेक्षा करने वाले, जाति और पितृसत्ता के विध्वंसक के रूप में है.
दक्षिणपंथी उनकी आलोचना उस व्यक्ति के रूप में करते हैं जिन्होंने उनकी धार्मिक भावनाओं, परंपराओं को अपमानित किया. (bbc.com/hindi)
-दीपाली जगताप
महाराष्ट्र, 17 सितंबर। वेदांता-फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट के महाराष्ट्र के हाथों से निकलने के बाद महाराष्ट्र के हाथ से एक बड़ा ड्रग पार्क प्रोजेक्ट भी निकल रहा है.
पहली योजना के मुताबिक़ केंद्र सरकार तीन राज्यों में ये प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती थी. महाराष्ट्र इनमें से एक प्रतिद्वंदी राज्य था. लेकिन अब ये प्रोजेक्ट गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में शुरू किया जाएगा.
राज्य में बड़े निवेश राज्य के हाथ से बाहर निकलने को लेकर राजनीति भी तेज़ हो गई है. हालांकि कई बड़े प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र को प्रस्तावित किया गया था और राज्य अग्रणी प्रतिद्वंदी भी था. इससे कई सवाल खड़े हुए हैं.
महाराष्ट्र में ओद्योगिक निवेश आख़िर कैसे अपने अंजाम तक पहुंचता हैं? पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के हाथ से क्यों निकल रहे हैं? या क्या राज्य में निवेश अब कम होता जा रहा है? क्या जो राज्य कभी ओद्योगिक विकास में सबसे आगे था वो अब पिछड़ने लगा है? इसके पीछे कारण क्या हैं?
बल्क ड्रग पार्क प्रोजेक्ट को क्या हुआ?
महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे और पूर्व ओद्योगिक मंत्री शुभाष देसाई ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र को बल्क ड्रग पार्क प्रोजेक्ट मिल सकता था लेकिन अब इसे दूसरे राज्यों को दे दिया गया है.
उन्होंने पूछा है, "अब ये प्रोजेक्ट तीन अन्य राज्यों को दिया जा रहा है. क्या ओद्योगिक मंत्री ये समझते हैं कि बेहतर सुविधाएं होने के बावजूद महाराष्ट्र ने ये प्रोजेक्ट गंवा दिया है?"
महाविकास अघाड़ी सरकार इस प्रोजेक्ट पर 2020 से काम कर रही थी. इस प्रोजेक्ट के दिल्ली-मुंबई कॉरिडोर पर महाराष्ट्र में स्थापित करने को लेकर चर्चा भी थी. इस प्रोजेक्ट के लिए रायगढ़ ज़िले में मुरुड और रोहा को चयनित कर लिया गया था.
पूर्व सरकार की कैबिनेट बैठक में पूर्व मंत्री शुभाष देसाई ने इस प्रोजेक्ट को प्रस्तावित भी किया था. ये बताया गया था कि बल्क ड्रग प्रोजेक्ट में 2500 करोड़ रुपए निवेश किए जाएंगे.
महाराष्ट्र ओद्योगिक विकास परिषद (एमआईडीसी) ने बताया था कि ये प्रोजेक्ट फार्मा क्षेत्र के निर्माताओं को विश्व स्तरीय सुविधाएं देगा.
ये भी बताया गया था कि केंद्र सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए 1000 करोड़ रुपए निवेश करेगी. हालांकि केंद्र सरकार के ये प्रोजेक्ट अब गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में स्थापित किया जाएगा.
ये प्रोजेक्ट क़रीब 30 हज़ार करोड़ का था. ये माना गया था कि इससे 75 हज़ार नई नौकरियां पैदा होंगी.
सरकार की आलोचना के बाद उद्योग मंत्री उदय सामंत ने घोषणा की है कि ये प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में ही लगेगा. उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र अपने पैसे से बल्क ड्रग पार्क स्थापित करेगा. साथ ही नागपुर में एयरबस-टाटा प्रोजेक्ट भी शुरू होगा."
बल्क ड्रग पार्क में फार्मा क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां यूनिट लगाएंगी, जहाँ दवाएं और कैप्सूल बनाए जाएंगे. बल्क ड्रग पार्क को एक्टिव फार्मा इग्रीडिएंट (एपीआई) भी कहा जाता है.
महाराष्ट्र में घटा है विदेशी निवेश
अगर महाराष्ट्र में विदेशी निवेश को देखा जाए तो ये कहा जा सकता है कि पिछले पाँच सालों में ख़ासकर कोरोना संकट के बाद राज्य में विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है.
एमआईडीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ 2016-17 में हुए एक लाख 32 हज़ार करोड़ रुपए के विदेशी निवेश में से 65.7 हज़ार करोड़ रुपए महाराष्ट्र में निवेश हुए.
2017-18 में राज्य में 87 हज़ार 412.7 करोड़ रुपए का निवेश हुआ जबकि 2018-19 में 77 हज़ार 847 करोड़ रुपए का निवेश हुआ.
2019-20 में राज्य में 76 हज़ार 617 करोड़ रुपए का निवेश हुआ था. लेकिन कोरोना महामारी के बाद राज्य का औद्योगिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इसलिए राज्य में 2020-21 में सिर्फ़ 26 हज़ार 220 करोड़ रुपए का निवेश हुआ.
2016-17 के मुक़ाबले बीते पाँच सालों में राज्य में निवेश 70 प्रतिशत तक कम हुआ है.
एमआईडीसी के मुताबिक़ बीते 20 सालों में 2000-2020 के बीच देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश में से 29 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हुआ है.
एमआईडीसी का दावा है कि कई क्षेत्रों में उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र पूरे देश में सबसे आगे है. एमआईडीसी का ये भी कहना है कि बीते पांच सालों में राज्य में कुल विदेशी निवेश का 28 प्रतिशत हुआ है.
इज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस या कारोबार को करने की आसानी के मामले में महाराष्ट्र कहां है?
केंद्र सरकार के इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन (डीआईपीपी) विभाग के साल 2015 में आरबीआई द्वारा प्रकाशित सर्वे के मुताबिक़ महाराष्ट्र इस सूचकांक में देश में आठवें नंबर था. साल 2016 में इसी सूचकांक में महाराष्ट्र 10वें नंबर पर था. लेकिन साल 2017 और 18 में महाराष्ट्र शीर्ष दस राज्यों की सूची से बाहर होकर 13वें नंबर पर आ गया था.
ग़ौर करने वाली बात ये है कि इन सर्वे में 2019 तक आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर था. अगर महाराष्ट्र और गुजरात की तुलना की जाए तो 2015 में गुजरात पहले नंबर पर था. 2016 में गुजरात तीसरे, 2017 में पांचवें और 2018 में दसवें नंबर पर था.
एमआईडीसी के मुताबिक़ क्या है महाराष्ट्र की ताक़त?
अगर कोई कंपनी महाराष्ट्र में निवेश का विचार करती है तो प्रोजेक्ट तैयार करने में महाराष्ट्र कई बिंदुओं पर तैयारी करता है.
इस प्रक्रिया में एमआईडीसी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि एमआईडीसी ही प्रोजेक्ट के लिए प्लॉट (ज़मीन), सड़कें, पानी, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली, सड़क की लाइटें आदि उपलब्ध कराती है. इसके अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं भी एमआईडीसी ही देती है.
एमआईडीसी महाराष्ट्र सरकार के तहत नोडल निवेश एजेंसी के रूप में काम करती है. एमआईडीसी का प्रमुख उद्देश्य राज्य में निवेश बढ़ाने वाली योजनाएं तैयार करना ही है.
एमआईडीसी की अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित इसके प्रमुख कार्यकारी अधिकारी डॉ. एपी अनबलगान के बयान में कहा गया है, "हम समूची निवेश प्रक्रिया के दौरान उद्योग की मदद करने और चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारा मक़सद उद्योग को बढ़ावा देने वाला माहौल बनाना और इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है "
जब महाराष्र में ओद्योगिक निवेश के लिए कंपनियों के साथ बातचीत की जाती है तो उन्हों बताया जाता है कि महाराष्ट्र में क्या-क्या सुविधाएं और सरकार की तरफ़ से किस-किस तरह की छूटें दी जाएंगी.
एमआईडीसी कंपनियों से अपील करते हुए कहती है कि राज्य में ज़मीन और सुविधाएं हासिल करने में उन्हें कोई दिक्क़त नहीं होगी.
एमआईडीसी का मुख्य काम ही राज्य में उद्योग लाना. लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और राज्य के लोगों के लिए रोज़गार के अधिक मौके पैदा करना है.
एमआईडीसी कहती है कि उसका मक़सद क्षेत्रीय रूप से समावेशी, पर्यावरण के लिए अनुकूल और सभी के लिए समावेशी ओद्योगिक विकास करना है.
कंपनियों से बातचीत के समय संबंधित क्षेत्र से जुड़े नियमों और ज़रूरतों पर भी चर्चा की जाती है. महाराष्ट्र की सरकार कंपनियों को ये समझाने की कोशिश करती है कि यह उनके लिए सबसे सही पसंद है और महाराष्ट्र ऐसे प्रोजेक्ट को चलाने में सक्षम है.
महाराष्ट्र से जुड़े कुछ अहम बिंदुओं पर नज़र डालते हैं
महाराष्ट्र विकास में देश का सबसे बड़ा योगदान करता है. देश का 15 प्रतिशत जीडीपी महाराष्ट्र ही देता है
महाराष्ट्र में देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश का 31.4 प्रतिशत निवेश हुआ है
महाराष्ट्र का लक्ष्य साल 2022 तक 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने का है
महाराष्ट्र में तीन अंतरराष्ट्रीय, 8 राष्ट्रीय एयरपोर्ट और 20 अन्य रनवे हैं
महाराष्ट्र में चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति, 2 बड़े और 53 छोटे बंदरगाह हैं
महाराष्ट्र में 9.1 करोड़ स्मार्टफ़ोन और 3.2 करोड़ इंटरनेट यूज़र हैं.
क्या कहना है विशेषज्ञों का
बीबीसी इंडिया के बिज़नेस संवाददाता निखिल इनामदार कहते हैं, "ये सच है कि महाराष्ट्र को एक ओद्योगिक राज्य के रूप में जाना जाता था. लेकिन अब अन्य राज्यों से कड़ी टक्कर मिल रही है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इस मामले में आगे निकल रहे हैं. ये राज्य बेहद आक्रामक तरीक़े से उद्योगों को अपनी तरफ़ खींच रहे हैं. उन्होंने निवेश को आकर्षित करने के लिए राज्य की एक सकारात्मक छवि बना ली है."
"अगर आप हैदराबाद का उदाहरण लें तो माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल जैसी बड़ी कंपनियां वहाँ हैं. वहाँ स्टार्टअप और आईटी क्षेत्र की कंपनियों में भी निवेश हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई सालों से वाइब्रेंट गुजरात मॉडल को बढ़ावा दे रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि निवेश कितना है और उससे कितना फ़ायदा मिल रहा है? लेकिन छवि निर्माण की वजह से निवेशकों को ये ज़रूर लगता है कि राज्य उद्योग के लिए सही है."
इनामदार कहते हैं कि निवेश को आकर्षित करने के लिए किसी भी राज्य के प्रशासन और सरकार को समान रूप से सक्षम और आक्रामक होना चाहिए.
जानकारों का कहना है कि इंडस्ट्री में तरक्की राज्य में राजनीतिक अस्थिरता, राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था कितनी मज़बूत है इस पर निर्भर करती है.
महाराष्ट्र से फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट नहीं लगने के बारे में बात करते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि, "अब तक अगर कोई निवेश करना चाहता था तो महाराष्ट्र पहली पसंद हुआ करता था. जब हम सत्ता में थे तो यशवंत घरे नाम का एक अधिकारी होता था. उनका एक ही काम था और वो था इंडस्ट्री को प्रमोट करना. अब सारा सिस्टम सुस्त हो गया है. निवेश के लिए माहौल बनाना होगा. इसे करना ही होगा. अब राज्य के बारे में सोचना होगा. मुझे लगता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष को आपस में लड़ना बंद करना होगा."
हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में राज्य सरकार ने लाइसेंस की संख्या 70 से घटाकर 10 कर दी है और ऐसा दूसरे क्षेत्रों के लिए भी करना ज़रूरी है.
वरिष्ठ पत्रकार विनय देशपांडे कहते हैं, "इंडस्ट्रियल सेक्टर के लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है कि महाराष्ट्र में इंडस्ट्रियल सेक्टर की क्या छवि है. क्या राज्य में सत्ता बदलने के बाद नीतियां बदल जाएंगी? क्या कोई नई नीति हमारे लिए नुकसानदायक होगी? क्या उद्योगपतियों को शक है? मुझे लगता है कि इन चीजों पर विचार किया जाना चाहिए."
उन्होंने कहा, "इसके अलावा कुछ जगह बिजली और पानी की क्रॉस सब्सिडी से निवेशकों या कंपनियों को ये महसूस होता है कि उन्हें ठगा जा रहा है. क्या इससे नकारात्मक छवि बनती है? इस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है."
विनय देशपांडे ने कहा, "महाराष्ट्र में निवेश करें जैसे प्रोग्राम लाए जाते हैं, लेकिन क्या वे सिर्फ ऐसे प्रोग्राम हैं जिनसे विज्ञापन किया जा रहा है. इन प्रोग्राम के नतीजे क्या हैं? हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि उनसे कितना निवेश हमें मिला है. (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 17 सितंबर | केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि भारत में शनिवार को पिछले 24 घंटों में 5,747 नए मामले सामने आए हैं और 29 लोगों की मौत हुई है। ताजा मौतों के आंकड़े के साथ कोविड के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 5,28,302 हो गई। वहीं 5,618 मरीज महामारी से ठीक भी हुए हैं। कोरोना वायरस से उबरने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर अब 4,39,53,374 हो गई है। नतीजतन, रिकवरी दर 98.71 प्रतिशत है।
इस बीच, रोजाना पॉजिटिविटी रेट 1.69 प्रतिशत है, जबकि हफ्ते का पॉजिटिविटी रेट 1.74 प्रतिशत है।
साथ ही, इसी अवधि में कुल 3,40,211 कोरोना टेस्ट किए गए, जिसकी कुल संख्या बढ़कर 89.12 करोड़ से अधिक हो गई।
शुक्रवार को देश में संक्रमण के 6,298 मामले सामने आए थे। (आईएएनएस)|
सैन फ्रांसिस्को, 17 सितंबर | राइड-हेलिंग प्लेटफॉर्म उबर ने शनिवार को कहा कि 18 वर्षीय हैकर द्वारा डेटा उल्लंघन में उसके उपयोगकर्ताओं की कोई भी निजी जानकारी उजागर नहीं की गई थी। कंपनी ने एक ताजा बयान में कहा कि उसकी जांच और प्रतिक्रिया के प्रयास जारी हैं।
उबर ने कहा, "हमारे पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि घटना में संवेदनशील उपयोगकर्ता डेटा (जैसे यात्रा इतिहास) तक पहुंच शामिल है।"
एक 18 वर्षीय हैकर ने उबर की आंतरिक प्रणालियों में सेंध लगाई, अमेजन वेब सर्विसेज और गूगल क्लाउड प्लेटफॉर्म सहित कंपनी के टूल तक पहुंच गया और कर्मचारियों को लगा कि कोई शरारत कर रहा है।
हैकर ने कंपनी के इंटरनल कम्युनिकेशन सिस्टम स्लैक पर एक मैसेज पोस्ट कर खुद को उबर के कर्मचारियों से अवगत कराया।
उबर ने कहा कि उबर, उबर ईट्स, उबर फ्रेट और उबर ड्राइवर एप समेत हमारी सभी सेवाएं चालू हैं।
कंपनी ने दोहराया कि उसने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अधिसूचित किया है।
राइड-हेलिंग प्लेटफॉर्म ने कहा, "आंतरिक सॉफ्टवेयर टूल जिन्हें हमने कल एहतियात के तौर पर हटा लिया था, आज सुबह ऑनलाइन वापस आ रहे हैं।"
अक्टूबर 2016 में, हैकर्स ने उबर को बड़े पैमाने पर साइबर सुरक्षा हमले के साथ टारगेट करते हुए 57 मिलियन ग्राहकों और ड्राइवरों के गोपनीय डेटा को उजागर किया।
इस बार, किशोर हैकर ने गोपनीय कंपनी की जानकारी सूचीबद्ध की और एक हैशटैग पोस्ट करते हुए कहा कि उबर आंतरिक संचार प्लेटफॉर्म स्लैक पर 'अपने ड्राइवरों को कम भुगतान करता है।'
हैकर ने कहा कि उसने उबर सिस्टम में सेंध लगाई, क्योंकि 'उनके पास कमजोर सुरक्षा थी।' (आईएएनएस)|
श्रीनगर, 17 सितंबर | जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाके उरी में तेंदुए द्वारा उठाई गई एक नाबालिग लड़की का शव मिला है। पुलिस ने यह जानकारी दी।
पुलिस ने कहा कि मुनिजाह के रूप में पहचानी गई एक नाबालिग लड़की अपने माता-पिता के साथ उरी सीमा तहसील के बिझामा जंगलों में एक पहाड़ी घास के मैदान में रह रही थी, जब एक तेंदुए ने उस पर हमला किया और उसे जबड़े से पकड़कर घने जंगल में ले गया।
स्थानीय लोगों की मदद से पुलिस टीम को शुक्रवार देर शाम जंगल में छह साल की बच्ची का शव मिला। (आईएएनएस)|
गुवाहाटी, 17 सितंबर | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने यहां घोषणा की कि पार्टी 1 नवंबर को 'भारत जोड़ो यात्रा' के असम संस्करण 'असम जोड़ो यात्रा' शुरू करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को पटरी से उतारने में सफल नहीं होंगे।
रमेश ने कहा, "सरमा पार्टी के विधायकों को प्रभावित करने की कितनी भी कोशिश कर लें, कांग्रेस नहीं रुकेगी। हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई विधायक सरमा की तरह पार्टी छोड़ देता है।"
उन्होंने कहा कि सरमा को कांग्रेस के बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए और असम के कल्याण के लिए काम करने पर ध्यान देना चाहिए।
सरमा ने पहले राहुल गांधी की आलोचना की थी और उन्हें पाकिस्तान से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने की सलाह दी थी और कहा था कि देश के विभाजन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार थी।
इस संदर्भ में रमेश ने मीडियाकर्मियों से कहा कि भाजपा शासन में एक तरह से देश का बंटवारा हो गया है।
उन्होंने कहा, "देश जबरदस्त आर्थिक असमानता, सामाजिक ध्रुवीकरण और सत्ता के केंद्रीकरण का सामना कर रहा है। भाजपा ने समाज के विभिन्न वर्गो के बीच बड़े पैमाने पर विभाजन पैदा किया है।"
रमेश ने दावा किया, "आज लोग धर्म, संस्कृति और यहां तक कि खान-पान को लेकर बंटे हुए हैं। राज्य सरकारों के अधिकार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने छीन लिए हैं।"
पार्टी के वरिष्ठ नेता ने अगले साल अरुणाचल प्रदेश से गुजरात तक दूसरे चरण की 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू करने की कांग्रेस की योजना के बारे में भी संकेत दिया। (आईएएनएस)|