राष्ट्रीय
दिल्ली, 3 दिसंबर | पूर्व लोकसभा सांसद जगदीश ठाकोर को कांग्रेस हाईकमान ने शुक्रवार को गुजरात प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने जगदीश ठाकोर की गुजरात प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति का ऐलान किया। दरअसल कांग्रेस ने गुजरात में अपने ओबीसी मत बैंक को साधने के लिए इस बार अध्यक्ष पद की कमान पूर्व सांसद जगदीश ठाकोर को सौंपी है। नियुक्ति से ठीक पहले गुरुवार शाम को जगदीश ठाकोर ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से रघु शर्मा के साथ जाकर मुलाकात की और आश्वस्त किया कि वह इस जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाएंगे।
गुजरात के कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश प्रभारी रघु शर्मा के साथ अपने विचार-विमर्श में एक वरिष्ठ नेता को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने की वकालत की थी। वहीं केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भी (हार्दिक पटेल) एक युवा नेता को पार्टी के रूप में नियुक्त करने के सुझाव को ठुकरा दिया गया।
सूत्रों के अनुसार राज्य के नेताओं के साथ विचार-विमर्श प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को ये फीडबैक दिया गया था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जानने वाले नेता को शीर्ष पर नियुक्त किया जाना चाहिए। दरअसल राज्य के तमाम नेताओं ने हार्दिक पटेल को पदोन्नत करने का विरोध किया, जो पिछले कई साल से गुजरात के कार्यकारी अध्यक्ष थे।
पार्टी नेताओं के अनुसार जिन नामों पर विचार किया गया। उनमें पूर्व लोकसभा सदस्य जगदीश ठाकोर का नाम सबसे पहले था उसके बाद राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल, जो पार्टी के दिल्ली प्रभारी हैं, उनको भी नियुक्त करने के लिए सुझाव मिले हैं। कहा जाता है कि दोनों नेता मध्य वर्ग के हैं और भरत सिंह सोलंकी, सिद्धार्थ पटेल और अर्जुन मोढवाडिया जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ तालमेल बैठा सकते हैं।
गौरतलब है कि इसी साल फरवरी-मार्च में हुए पंचायत व पालिका चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा व नेता विपक्ष परेश धनाणी ने इस्तीफा दे दिया था। इसके कुछ दिनों के बाद प्रदेश कांग्रेस प्रभारी राजीव सातव का निधन हो गया था। जिसके बाद गुजरात में संगठन में बदलाव का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 1 माह पहले पार्टी हाईकमान ने गुजरात के नए प्रभारी रघु शर्मा को नियुक्त किया और जिसके बाद अब राज्य में जगदीश ठाकोर के तौर पर नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की गई है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में 3 नए कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए जा सकते हैं। जिनमें हार्दिक पटेल के अलावा सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात के नेताओं को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, ताकि पार्टी के पदाधिकारियों में शक्ति संतुलन के साथ जातिगत समीकरण भी साधे जा सकें। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 दिसम्बर | दिल्ली उच्च न्यायालय अगले साल 3 फरवरी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समान-विवाह के पंजीकरण का विरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा और इसके पंजीकरण को धर्म-तटस्थ या धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत करने पर फैसला करेगा।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इसी तरह के मामलों के साथ याचिका पर सुनवाई करेगी और इसे 3 फरवरी के लिए सूचीबद्ध करेगी।
इससे पहले, पीठ लेस्बियन, गेय, बायसेक्शुयल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (एलजीबीटीक्यू प्लस) समुदाय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विशेष हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत समान-विवाह को मान्यता देने की मांग की गई थी।
शुक्रवार को याचिकाकर्ता सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन द्वारा एडवोकेट शशांक शेखर के माध्यम से दायर हस्तक्षेप आवेदन में यह प्रस्तुत किया गया था कि ऐसी शादियों को या तो विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए या मुस्लिम विवाह कानून और सिखों का आनंद विवाह अधिनियम जैसे सभी धार्मिक कानूनों के तहत अनुमति दी जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि इसे धर्म-निरपेक्ष बनाया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ऐसे विवाहों के पंजीकरण पर आपत्ति दर्ज की है क्योंकि यह अधिनियम सीधे वेद और उपनिषद जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों से लिया गया है, जहां एक विवाह को 'केवल एक जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच अनुमति' के रूप में परिभाषित किया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि अगर ऐसे विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के अलावा अन्य अधिनियमों जैसे विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं, तो कोई आपत्ति नहीं है। यदि इसे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत होना चाहिए, तो यह सभी धर्मों के लिए होना चाहिए।
इससे पहले कि अदालत हिंदुओं के लिए समान-विवाह के पक्ष में फैसला करे, उसे पहले उन प्रणालियों पर विचार करना चाहिए जहां विवाह केवल एक 'नागरिक अनुबंध' है जैसे निकाह। याचिकाकतार्ओं ने यह भी कहा कि 10,000 साल से अधिक के इतिहास वाले हिंदुओं के लिए समान-विवाह के पंजीकरण की अनुमति देने से पहले, इसे मुस्लिमों (1,400 वर्ष पुराने), ईसाई (2,000 वर्ष पुराने), पारसी (2,500 साल पुराना) जैसे नए धर्मों के साथ शुरू करना चाहिए।
30 नवंबर को, हाईकोर्ट ने एक याचिका पर देश में समलैंगिक विवाह की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी, जिसमें एक याचिकाकर्ता ने एलजीबीटी समुदाय की मान्यता को लगभग आठ प्रतिशत आबादी का गठन किया था।
इससे पहले, केंद्र ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया था कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह की संस्था की स्वीकृति किसी भी असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों या किसी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में न तो मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकार की जाती है। (आईएएनएस)
भारत में इंसानों द्वारा मैला ढोने को 2013 में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग इस काम में लगे हुए हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार इस प्रथा में लगे हुए लोगों में से करीब 97 प्रतिशत दलित हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
ये आंकड़े केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिए हैं. आरजेडी के सांसद मनोज झा ने मंत्रालय से पूछा था कि सिर पर मैला ढोने के काम में शामिल व्यक्तियों की जाति-आधारित अलग अलग संख्या क्या है, उन्हें आर्थिक प्रणाली में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए सरकार ने क्या क्या प्रयास किए हैं.
सरकार ने सवाल के जवाब में बताया है कि हाथ से मैला उठाने की प्रथा को 2013 में लाए गए एक कानून (एमएस अधिनियम) के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके बावजूद मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि अभी भी देश में 58,098 लोग इस काम में लगे हुए हैं.
97 प्रतिशत मैनुअल स्कैवेंजर दलित
मंत्रालय ने यह भी बताया कि कानून के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान के लिए जाति के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होगा लेकिन फिर भी उनकी पहचान करने के लिए अधिनियम के प्रावधानों के तहत ही सर्वेक्षण कराए गए हैं.
जिन 58,098 व्यक्तियों की मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान हुई है, उनमें से सिर्फ 43,797 व्यक्तियों के जाति से संबंधित आंकड़े उपलब्ध हैं. पाया गया कि इनमें से 42,594 यानी 97 प्रतिशत से भी ज्यादा मैनुअल स्कैवेंजर अनुसूचित जातियों से संबंध रखते हैं. इसके अलावा 421 अनुसूचित जनजातियों से, 431 अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) से और 351 अन्य वर्गों से हैं.
मैला ढोने की प्रथा के अंत के लिए काम कर रहे एक्टिविस्टों का लंबे समय से कहना रहा है कि यह काम दलितों से ही करवाया जाता है. ताजा सरकारी आंकड़े इन दावों की सच्चाई बयां कर रहे हैं.
सरकार ने अपने जवाब में यह भी बताया कि इस काम में लगे लोगों को दूसरे कामों में लगवाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए एक परिवार में एक पहचानशुदा मैनुअल स्कैवेंजर को 40,000 रुपयों की एकबारगी नकद सहायता दी जाती है. अभी तक इस योजना के तहत सभी 58,098 व्यक्तियों को यह नकद राशि दे दी गई है.
हजारों लोग आज भी ढोते हैं मैला
इसके अलावा मैनुअल स्कैवेंजरों और उनके आश्रितों को दो साल तक कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के दौरान उन्हें हर महीने 3,000 रुपयों का वजीफा भी दिया जाता है. इस तरह का प्रशिक्षण अभी तक सिर्फ 18,199 लोगों को दिया गया है.
अगर कोई मैनुअल स्कैवेंजर स्वच्छता से संबंधित किसी परियोजना या किसी स्वरोजगार परियोजना के लिए कर्ज लेना चाहता है तो उसे पांच लाख रुपयों तक की पूंजीगत सब्सिडी दी जाती है. ऐसी सब्सिडी अभी तक सिर्फ 1,562 लोगों को दी गई है.
हालांकि अगस्त 2021 में इसी मंत्रालय ने लोक सभा में दिए गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि 58,098 मैनुअल स्कैवेंजरों की संख्या 2013 से पहले की है और 2013 में एमएस अधिनियम के लागू होने के बाद इसे एक प्रतिबंधित गतिविधि घोषित कर दिया गया है. मंत्रालय ने कहा था कि अब देश में मैनुअल स्कैवेंजरों की गणना नहीं की जाती है.
लेकिन मैला ढोने की प्रथा के अंत के लिए काम करने वाली संस्था सफाई कर्मचारी आंदोलन का दावा है कि देश में अभी भी 26 लाख ड्राई लैट्रिन हैं जिनकी सफाई का जिम्मा किसी ना किसी व्यक्ति पर ही होता है. इसके अलावा 36,176 मैनुअल स्कैवेंजर देश के रेलवे स्टेशनों पर रेल की पटरियों पर गिरे शौच को साफ करते हैं.
संस्था का यह भी दावा है कि 7.7 लोगों को नालों और गटरों को साफ करने के लिए उनमें भेजा जाता है. उन्हें आवश्यक सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जाते. नालों में जहरीली गैसें होती हैं जिन्हें सूंघने की वजह से अक्सर सफाई करने वालों की मौत हो जाती है. संस्था के मुताबिक अभी तक ऐसी 1,760 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. (dw.com)
90 साल के एक बुजुर्ग व्यवसायी गणेश शंकर पांडेय अपने बच्चों के व्यवहार से इस कदर खफा हैं कि अपनी पूरी संपत्ति उन्होंने सरकार को दान करने की ठान ली है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
आगरा के पीपलमंडी में रहने वाले गणेश शंकर पांडेय की उम्र करीब नब्बे साल है. उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं. उनके मुताबिक, पिछले करीब 40 साल से दोनों बेटे उनसे न तो कोई मतलब रखते हैं और न ही उनका हाल-चाल लेते हैं. गणेश शंकर पांडेय अपने तीन अन्य भाइयों के साथ पीपलमंडी निरालाबाद में रहते हैं और मसालों का व्यवसाय करते थे.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "मतलब रखने की बात तो छोड़िए, मुझसे बहुत ही असभ्य तरीके से पेश आते थे. अशोभनीय बातें करते थे. मैं मानसिक रूप से बहुत परेशान रहा. तीन साल पहले ही मैंने वसीयत डीएम के नाम लिख दी लेकिन वो स्वीकृत नहीं हुई. अब जाकर मैजिस्ट्रेट ने उसे स्वीकार किया है."
कोई दबाव नहीं
गणेश शंकर ने अपनी वसीयत में लिखा है, "जब तक मैं जिंदा हूं, अपनी चल और अचल संपत्तियों का मालिक व स्वामी रहूंगा. मरने के बाद मेरे हिस्से की जमीन डीएम आगरा के नाम हो जाएगी. मैं पूरी तरह से फिलहाल स्वस्थ हूं. मानसिक रोग से पीड़ित नहीं हूं."
आगरा के सिटी मैजिस्ट्रेट प्रतिपाल चौहान ने गणेश शंकर पांडेय की वसीयत मिलने की पुष्टि की है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "पिछले गुरुवार को जनता दर्शन में गणेश शंकर पांडेय जी आए थे. वो अपनी रजिस्टर्ड वसीयत लेकर आए थे जो कि डीएम आगरा के नाम पर रजिस्टर्ड कराई गई थी. 250 वर्ग गज के मकान की वसीयत उन्होंने कर रखी थी. वसीयत में उन्होंने यही वजह बताई है कि बच्चे उनका ध्यान नहीं दे रहे थे, इसी से खिन्न होकर उन्होंने यह कदम उठाया है."
सिटी मैजिस्ट्रेट प्रतिपाल चौहान के मुताबिक, सर्कल रेट के अनुसार यह संपत्ति करीब दो करोड़ रुपये है. हालांकि इसकी कीमत तीन करोड़ रुपये से भी ज्यादा की बताई जा रही है. प्रतिपाल चौहान कहते हैं, "जब वह आए थे तो उनके साथ उनके भाई थे. उनके बेटे या बेटियां साथ नहीं थे. जिला प्रशासन की इसमें कोई भूमिका नहीं है. कोई भी व्यक्ति इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह किसी के भी नाम अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकता है. जिला प्रशासन ने न तो ऐसा करने को उनसे कहा है और न ही वसीयत वापस लेने के लिए कोई दबाव बनाया जाएगा."
भाइयों को आपत्ति नहीं
सिटी मैजिस्ट्रेट ने बताया कि गणेश शंकर पांडेय ने संपत्ति के जो कागजात दिए हैं उन्हें जमा कर लिया गया है और अब तक उनके परिजनों ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई है.
आगरा में थाना छत्ता के पीपलमंडी निरालाबाद के रहने वाले निवासी गणेश शंकर पांडेय ने अपने तीन अन्य भाइयों के साथ मिलकर साल 1983 में करीब एक हजार वर्ग गज जमीन खरीदी थी. कुछ समय के बाद संपत्ति का बंटवारा हो गया और गणेश शंकर पांडेय के हिस्से में करीब 250 गज जमीन आई जिस पर उन्होंने मकान बनवाया है.
गणेश शंकर पांडेय ने अपनी इस संपत्ति को तीन साल पहले ही सरकार को देने का फैसला कर लिया था और जिलाधिकारी के नाम पर वसीयतनामा लिखा लिया था. उसके बाद उन्होंने उसे रजिस्टर्ड कराकर सिटी मैजिस्ट्रेट को सौंप दिया. बेहद आहत मन से वह कहते हैं, "मैं चाहता तो ये संपत्ति अपने भाइयों के नाम पर या फिर अपनी बेटियों के नाम पर या किसी और के नाम पर भी कर सकता था लेकिन यदि ऐसा करता तो उन लोगों को परेशानी होती. बेटे संपत्ति का विवाद खड़ा करते और जिसे भी मैं अपनी संपत्ति देता, उसे परेशान होना पड़ता. यही सोचकर मैंने उसे सरकार को देने का फैसला कर लिया. मुझे लगता है कि न सिर्फ मेरे बच्चों को बल्कि ऐसे अन्य बच्चों को भी सीख मिलेगी जो अपने बूढ़े मां-बाप का ध्यान नहीं रखते."
गणेश शंकर पांडेय कहते हैं कि अपने इस फैसले को अब वो किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेंगे. उनके मुताबिक, उन्होंने पूरी तरह से सोच-समझकर ये फैसला लिया है और अब इसे पलटना संभव नहीं है. फिलहाल वह अपने भाइयों के साथ उसी मकान में रह रहे हैं. इस मामले में गणेश शंकर पांडेय के बेटों से बात नहीं हो सकी है लेकिन उनके भाइयों को उनके इस फैसले पर कोई आपत्ति नहीं है.
पहला नहीं है मामला
भारत में हालांकि ऐसे मामले कम ही सामने आते हैं जब कोई व्यक्ति वारिसों के बावजूद अपनी संपत्ति सरकार को दान कर दे लेकिन कानून के मुताबिक, ऐसा करने के लिए कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है. भारतीय कानून के मुताबिक, उप-रजिस्ट्रार से गिफ्ट डीड का पंजीकरण कराना अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो हस्तांतरण अमान्य होगा. एक बार गिफ्ट डीड पंजीकृत होने के बाद ही संपत्ति के स्वामित्व के शीर्षक में परिवर्तन संभव है.
कानून के मुताबिक, दान भी रजिस्टर्ड होना चाहिए और इसमें दोनों पक्षों की सहमति भी होनी चाहिए, भले ही दूसरा पक्ष सरकार ही क्यों न हो? पिछले दिनों उड़ीसा के कटक जिले में एक 63 वर्षीय महिला मिनाती पटनायक ने अपने तीन मंजिला घर और जेवर समेत करोड़ों रुपये की संपत्ति एक रिक्शा चालक को दान कर दी थी. रिक्शा चालक बुद्ध सामल कई दशक से इस परिवार की सेवा कर रहे थे. बुजुर्ग महिला इस रिक्शा चालक की सेवा से इतनी ज्यादा प्रभावित हुईं कि उसने अपनी करोड़ों की संपत्ति उसे दान में दे दी. (dw.com)
भारत में स्टैंड-अप कॉमेडियन इन दिनों दक्षिणपंथी विचारधारा वाले समूहों और व्यक्तियों के निशाने पर हैं. उनके शो कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए रद्द कर दिए जा रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
कानून और व्यवस्था की समस्याओं का हवाला देते हुए मुनव्वर फारूकी के स्टैंड-अप कॉमेडी शो की अनुमति से इनकार करने के बाद अब कर्नाटक पुलिस ने एक और स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा को बेंगलुरु में शो की इजाजत देने से इनकार किया है. कामरा ने अपने शो रद्द होने की सूचना ट्विटर पर दी है. साथ ही उन्होंने शो रद्द होने पर भी कटाक्ष किया है. उन्होंने अपने ट्वीट में दो कारण बताए हैं. पहला-आयोजन स्थल पर 45 लोगों के बैठने की इजाजत से इनकार और दूसरा- शो को लेकर मिल रही धमकियों की वजह से. कामरा आगे अपने ट्वीट में लिखते हैं, "मेरा शो होने पर आयोजन स्थल को बंद करवा देने की धमकी ने भी काम खराब किया. मुझे लगता है यह भी कोविड प्रोटोकॉल और नई गाइडलाइंस का हिस्सा है. मुझे लगता है मुझे वायरस के वेरिएंट की तरह देखा जा रहा है."
कामरा ने कहा, "ट्विटर पर उन लोगों के लिए जो सोच रहे हैं कि कामरा कैसे कॉमेडी करता है, जबकि एक फारूकी को कॉमेडी छोड़नी पड़ती है. हम इस तथ्य से सांत्वना पा सकते हैं कि शासक वर्ग कम से कम समानता के साथ अत्याचार करने की कोशिश कर रहा है."
कामरा आगे कहते हैं, "हो सकता है कि अगर हम ऐसे ही समान उत्पीड़न की राह पर चलें तो, जलवायु परिवर्तन के बाद के युग में कभी समान आजादी के मुकाम तक पहुंच सके."
बोलने से दिक्कत
कामरा के शो रद्द करने के कुछ दिनों पहले एक और स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने अपने शो रद्द होने के बाद कॉमेडी छोड़ने को लेकर एक पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली थी. फारूकी लंबे समय से दक्षिणपंथी संगठनों के निशाने पर रहे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा था, "नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया, अब बस, अलविदा! अन्याय."
फारूकी का यह बारहवां शो था जिसे पिछले दो महीनों में रद्द कर दिया गया था. बेंगलुरू पुलिस ने एक बयान में उन्हें "विवादास्पद व्यक्ति" करार दिया और कहा कि कानून और व्यवस्था के उल्लंघन और सांप्रदायिक सद्भाव खराब होने के डर से मुनव्वर फारूकी का शो रद्द कर दिया गया था. इससे पहले स्थानीय दक्षिणपंथी समूहों ने फारूकी और शो के आयोजकों को धमकी दी थी.
आवाज चुप कराने की कोशिश
फारूकी की घोषणा पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और शशि थरूर के अलावा विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और फिल्मी हस्तियों ने 29 वर्षीय कॉमेडियन के साथ एकजुटता व्यक्त की. राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा था, "नफरत नहीं जीतेगी, मेरा विश्वास रखिए. हार नहीं माननी, रुकना नहीं है." हालांकि राहुल ने अपने ट्वीट में किसी का जिक्र नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि उन्होंने यह ट्वीट फारूकी के सिलसिले में किया था.
फारूकी को जनवरी में मध्य प्रदेश के इंदौर में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें अपने शो पर "आपत्तिजनक चुटकुले" बनाने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद उन्हें उन जोक्स के लिए 37 दिनों तक जेल में रहना पड़ा जो उन्होंने बोले नहीं थे. गुजरात के रहने वाले फारूकी अपने शो में सरकार, राजनीतिक नेताओं का मजाक उड़ाते हैं. कई बार वे अपने शो में रूढ़िवादी प्रथाओं पर भी निशाना साधते हैं.
वीर दास भी आ गए थे निशाने पर
फारूकी को जनवरी में गिरफ्तार किया गया था और अब दिसंबर आ गया है लेकिन उस मामले पर चार्जशीट तक दायर नहीं की गई है. मामला अदालत में है और यह तय नहीं हो पाया है कि कौन दोषी है और कौन बेगुनाह. राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि कानून व्यवस्था बनाए रखे लेकिन सिर्फ इस वजह से किसी कॉमेडियन का शो रद्द कर देना अनुचित है कि कलाकर कुछ गलत बोल देगा. ऐसे में यह उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.
पिछले महीने भारतीय कलाकार वीर दास ने अमेरिका में स्टैंड-अप कॉमेडी के दौरान टू इंडियाज मोनोलॉग पढ़ा था. जिसको लेकर भारत में काफी बवाल मचा. दास ने दो भारत के बारे में बात की थी. एक अच्छे और एक बुरे. इसके बाद उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी की गई. समाज के एक वर्ग के लोगों का कहना था कि भारत के बारे में विदेशी धरती में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थी. (dw.com)
नई दिल्ली, 2 दिसम्बर | राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने गुरुवार को सरकार और विपक्ष से 12 सांसदों के निलंबन मामले पर गतिरोध को हल करने को कहा है। मौजूदा गतिरोध से आहत उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब सदस्यों को निलंबित किया गया है। इस तरह के निलंबन 1962 से 2010 के बीच 11 बार हो चुके हैं।
उन्होंने कहा, "क्या वे सभी अलोकतांत्रिक थे? यदि हां, तो इसका इतनी बार सहारा क्यों लिया गया?"
उन्होंने इसे 'अलोकतांत्रिक' करार देने के लिए विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा, "कुछ सम्मानित नेताओं और इस अगस्त सदन के सदस्यों ने, अपने विवेक से 12 सदस्यों के निलंबन को अलोकतांत्रिक बताया।"
"पिछले सत्र के दौरान कुछ सदस्यों ने तिरस्कारपूर्ण आचरण किया था, जिसे मैंने स्पष्ट रूप से अपवित्रता के कृत्यों के रूप में कहा है।"
उन्होंने कहा कि यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि सदन का अपमान 'लोकतांत्रिक' है, लेकिन इस तरह की तिरस्कार के खिलाफ कार्रवाई अलोकतांत्रिक है जो दुर्भाग्यपूर्ण है और देश के लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा कि सदस्यों ने अपने 'अनियंत्रित कार्य' पर खेद व्यक्त किया, लेकिन निलंबन को रद्द करना चाहते हैं।
उच्च सदन ने सोमवार को 11 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान सदन में हंगामा करने पर 12 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया था।
निलंबित सांसद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, माकपा और शिवसेना से हैं। (आईएएनएस)
बेंगलुरू, 2 दिसम्बर | कर्नाटक पुलिस ने एक गड्ढे से बचने के प्रयास में अपनी बाइक से गिरे युवक की मौत के मामले में बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के इंजीनियर और एक ट्रक चालक को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि इस मामले में सड़क ठेकेदार के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। गिरफ्तार व्यक्तियों में महादेवपुरा जोन के एक सहायक कार्यकारी अभियंता एस सविता (34) और एक ट्रक चालक आर रवि (31) शामिल है। दोनों आरोपियों के खिलाफ तेज रफ्तार व लापरवाही से वाहन चलाने से मौत का मामला दर्ज किया गया है।
यातायात के संयुक्त आयुक्त रविकांत गौड़ा ने कहा कि बीबीएमपी एईई सविता ने गड्ढा भरने को सुनिश्चित नहीं करके पूरी तरह से लापरवाही की है। उन्होंने कहा कि सविता को लापरवाही से हुई मौत के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
ये घटना शनिवार को हुई थी। खाना पहुंचाने वाला एक कर्मचारी अजीम अहमद (21) थानिसंद्रा मेन रोड पर एक गड्ढे की वजह से नियंत्रण खो बैठा और एक मालवाहक ट्रक के चपेट में आ गया था।
इस घटना ने आम लोगों की तीखी आलोचना की थी और बेंगलुरु की सड़कों की दुर्दशा और नागरिक एजेंसी बीबीएमपी द्वारा खराब रखरखाव को उजागर किया था। उच्च न्यायालय द्वारा सरकार को कार्रवाई करने और समय सीमा देने के बावजूद, वाहन सवारों के लिए, विशेष रूप से दोपहिया वाहनों के लिए, गड्ढे मौत का जाल बने हुए हैं।
पुलिस का कहना है कि अभी ठेकेदार की शिनाख्त नहीं हो पाई है। अजीम परिवार का इकलौता कमाने वाला था। इस बीच, बीबीएमपी इनकार के मोड में है और पुलिस को बताया कि दुर्घटना दोपहिया सवार द्वारा अचानक ब्रेक लगाने और ट्रक चालक के तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई।
नागरिक एजेंसी ने पुलिस को आगे बताया है कि जिस दुर्घटनास्थल पर यह घटना हुई उसे गड्ढा नहीं माना जा सकता क्योंकि दुर्घटनास्थल के पास नागरिक कार्य चल रहे हैं। पुलिस ने कहा कि वे मामले को आगे बढ़ाएंगे और नागरिक प्राधिकरण द्वारा लापरवाही साबित करने के लिए केस लड़ेंगे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 दिसम्बर | दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीएस रावत को राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो के रूप में चुना गया है। प्रोफेसर रावत बीते 100 वर्षों के इतिहास में यह सम्मान प्राप्त करने वाले रसायन विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के तीसरे प्रोफेसर हैं। उनके पीएचडी पर्यवेक्षक डॉ डीएस भाकुनी को वर्ष 1977 में इस अकादमी का फेलो चुना गया था। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत की सबसे पुरानी साइंस एकेडमी है। प्रोफेसर रावत की प्रयोगशाला में विकसित अणुओं में से एक ने पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए नैदानिक परीक्षणों में प्रवेश किया है।
गौरतलब है कि दुनिया भर में 10 मिलियन से अधिक लोगों को पार्किंसंस रोग है। पार्किंसंस रोग (पीडी) एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव विकार है और इसके इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीएस रावत ने एक खास प्रोटीन की पहचान की है जिससे इस बीमारी का उपचार संभव है। इस अनुसंधान में मैकलीन अस्पताल, बोस्टन भी दिल्ली विश्वविद्यालय का सहयोगी है।
पीडी के सामान्य लक्षण कंपकंपी, अकड़न, धीमी गति और चलने में कठिनाई है, जो संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं जैसे अवसाद, चिंता और उदासीनता का कारण बनता है।
इस रोग का प्राथमिक कारण मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित सब्सटेंशिया निग्रा में न्यूरॉन कोशिकाओं की मृत्यु है। यह डोपामाइन की कमी का कारण बनता है। कुछ प्रोटीन ऐसे हैं जो डोपामाइन न्यूरॉन्स के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।
प्रो रावत ने बताया कि वह दवा खोज और नैनो-कैटेलिसिस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने 26 पीएचडी छात्रों का पर्यवेक्षण किया है और 44 के एच-इंडेक्स के साथ 157 शोध पत्र और नौ पेटेंट प्रकाशित किए हैं।
उन्होंने बायोएक्टिव समुद्री प्राकृतिक उत्पादों पर एक पुस्तक भी लिखी है। यह पुस्तक नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर (सर) डीएचआर बार्टन, एफआरएस और द्वारा अग्रेषित की गई थी। पुस्तक की समीक्षा शीर्ष अंतरराष्ट्रीय रसायन विज्ञान पत्रिकाओं में से एक, जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुई थी।
प्रोफेसर रावत दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन परीक्षा के रूप में कार्यरत रहे हैं। उनके नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली में कई सुधार शुरू किए गए, जैसे एक ही दिन में रिकॉर्ड 1.78 लाख डिजिटल डिग्री जारी करना, 28 दिनों में सभी यूजी पाठ्यक्रमों के परिणाम घोषित करना। उन्होंने एक साल की छोटी अवधि में पूरी परीक्षा प्रणाली को डिजिटल कर दिया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 दिसम्बर | राज्य सभा सांसदों के निलंबन के खिलाफ विरोधी दलों ने गुरुवार को भी संसद भवन परिसर में गांधी प्रतिमा के पास धरना दिया। गुरुवार को विरोधी दलों ने काली पट्टी और काला मास्क लगाकर अपना विरोध जताया।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी विरोधी दलों के इस प्रदर्शन में शामिल हुए।
आईएएनएस से बातचीत करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि निलंबन वापसी तक हमारा प्रदर्शन जारी रहेगा। उन्होंने माफी मांगने से साफ तौर पर इनकार करते हुए कहा कि आखिर इन 12 सांसदों की गलती क्या है ? ये तो लोगों की आवाज उठा रहे थे ।
आईएएनएस से बातचीत करते हुए कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 5 राज्यों में आने वाले विधान सभा चुनाव को देखते हुए सरकार संसद को जानबूझकर चलने नही देना चाहती है, ताकि जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा न हो सके। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय सहायता में कटौती से अफगान अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है. दो दशक चले युद्ध और आंतरिक कलह की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर हो चुकी थी.
संयुक्त राष्ट्र ने 1 दिसंबर को जारी अपनी एक नई रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि अफगानिस्तान की जीडीपी एक साल के भीतर 20 प्रतिशत सिकुड़ सकती है. रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता में कमी एक "अभूतपूर्व राजकोषीय झटका" है. दशकों से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था युद्ध और सूखे के कारण कमजोर हुई है.
इस परेशान करने वाली स्थिति का जिक्र 2021-2022 के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अफगानिस्तान सामाजिक-आर्थिक आउटलुक में किया गया है. एशिया के लिए यूएनडीपी की निदेशक कानी वाग्नराजा ने बताया कि रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 2021-2022 के दौरान 20 प्रतिशत कम हो जाएगा, जो पहले से ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर देगा. इस आउटलुक के मुताबिक, आने वाले सालों में जीडीपी 30 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है.
अफगानिस्तान के हालात बेहद चिंताजनक
वाग्नराजा का कहना है कि सीरिया की अर्थव्यवस्था पांच साल के युद्ध के बाद गहरी मंदी में है लेकिन अफगानिस्तान में ऐसा सिर्फ पांच महीनों में हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के अन्य सूत्र का कहना है "जनसंख्या की जरूरतों और संस्थानों की कमजोरी के मामले में यह ऐसी स्थिति है जो पहले कभी नहीं देखी गई. यमन, सीरिया, वेनेजुएला इस स्थिति के करीब नहीं आते."
अमेरिका और नाटो बलों की वापसी के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता का प्रवाह भी बंद हो गया है. यह अंतरराष्ट्रीय सहायता अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत और उसके वार्षिक बजट का 80 प्रतिशत है.
महिलाओं को नौकरी देने की मांग
वाग्नराजा का कहना है कि एक बार राहत प्रक्रिया बहाल हो जाने के बाद बीमार और लकवाग्रस्त संस्थानों का सक्रिय होना बहुत जरूरी होगा क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की प्रक्रिया शुरू होगी. उन्होंने कहा कि यह पुनर्वास बेरोजगारों के लिए रोजगार का स्रोत होगा. अफगानिस्तान का सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण वर्तमान शासकों को महिलाओं को वेतन वाली नौकरियों से वंचित नहीं करने की चेतावनी देता है और अगर ऐसा किया जाता है तो विकास दर में और पांच प्रतिशत की गिरावट आएगी.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने तालिबान सरकार से महिलाओं को रोजगार की मुख्यधारा में शामिल करने का आग्रह किया है. यूएनडीपी के मुताबिक अफगानिस्तान में नियमित नौकरियों में 20 प्रतिशत महिलाओं की छंटनी की जा सकती है और इससे पैदा हुई आर्थिक कठिनाई को कम करने में भी मदद मिलेगी.
एए/वीके (एएफपी)
असम में एक छात्र नेता की पीट-पीट कर हत्या के मामले का मुख्य अभियुक्त सड़क हादसे में मारा गया है. इसे लेकर बीती मई से अब तक कुल 28 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो चुकी है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के बीच पुलिस हिरासत में और मुठभेड़ में होने वाली मौतों के मामले में पूर्वोत्तर राज्यों में असम पहले स्थान पर है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वर्ष 2001 से वर्ष 2020 के बीच बीते 20 वर्षों में देश भर में पुलिस हिरासत 1,888 मौतें हुई हैं. लेकिन इन मामलों में अब तक महज 26 पुलिस वालों को ही दोषी ठहराया जा सका है. एनसीआरबी वर्ष 2017 से हिरासत में मौत के मामलों में गिरफ्तार पुलिसकर्मियों का आंकड़ा जारी कर रहा है.
बीते चार वर्षों में हिरासत में हुई मौतों के मामलों में 96 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है. असम में मई से अब तक हिरासत में हुई मौतों के मामले बढ़ने के बाद विपक्ष और गैर-सरकारी संगठनों ने सरकार और पुलिस की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है.
ताजा मामला
ऊपरी असम के जोरहाट जिले में सोमवार को अखिल असम छात्र संघ (आसू) के एक नेता अनिमेश भुइयां की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. पुलिस ने इस मामले में मुख्य अभियुक्त नीरज दास समेत 13 लोगों को गिरफ्तार किया था. लेकिन बुधवार तड़के पुलिस की जीप से कूद कर भागने का प्रयास करने के दौरान सड़क हादसे में नीरज की मौत हो गई.
जोरहाट के एसपी अंकुर जैन ने पत्रकारों को बताया, "नीरज ने पूछताछ के दौरान पुलिस को नशीली दवाओं के भंडार में बारे में जानकारी दी थी. उसे लेकर पुलिस की टीम बरामदगी के लिए जा रही थी. लेकिन नीरज ने जीप से कूद कर भागने की कोशिश की. इसी दौरान पीछे से आने वाले पुलिस के वाहन से उसे टक्कर लग गई. अस्पताल ले जाने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.”
लेकिन पुलिस के इस दावे पर सवाल उठने लगे हैं. इसकी वजह यह है बीती 10 मई को कार्यकाल संभालने वाले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस मुद्दे पर पहले ही विवादित बयान दे चुके हैं. सत्ता संभालने के बाद उन्होंने साफ कहा था कि अपराधियों के मामले में सरकार शून्य सहनशीलता की नीति पर आगे बढ़ेगी.
उनके शपथ लेने के दो महीने के भीतर ही पुलिस ने कथित तौर पर हिरासत से भागने का प्रयास कर रहे करीब 12 संदिग्ध अपराधियों को मार गिराया गया था. विपक्ष की ओर से उठते सवालों के बाद इसे उचित ठहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि आरोपी पहले गोली चलाए या भागने की कोशिश करे तो कानूनन पुलिस को गोली चलाने का अधिकार है.
असम पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक मई से सितंबर तक के पांच महीनों के दौरान मुठभेड़ की 50 घटनाएं हुईं जिनमें 27 लोग मारे गए और 40 घायल हो गए. ऐसे तमाम मामलों में संदिग्ध उग्रवादियों या अपराधियों ने या तो कथित तौर पर पुलिसवालों के हथियार छीनने की कोशिश की या फिर हिरासत से भागने का प्रयास किया था.
विपक्ष का आरोप
हिरासत में होने वाली मौतों की लगातार बढ़ती तादाद को ध्यान में रखते हुए विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने बीजेपी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुलिस पर खुलेआम हत्या करने का आरोप लगाया है. असम मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों का संज्ञान लेते हुए बीती सात जुलाई को सरकार से इन मौतों से संबंधित हालातों की जांच कराने का निर्देश दिया था.
आयोग के सदस्य नब कमल बोरा का कहना है कि मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक जिन लोगों की मौत हुई वे हिरासत में थे और हथकड़ी पहने थे.ऐसे में इसका पता लगाना जरूरी है कि उनकी मौत किन हालात में हुई. इससे पहले नई दिल्ली स्थिति एक एडवोकेट आरिफ ज्वादर ने भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से हिमंत बिस्वा सरमा के कार्यकाल के दौरान हिरासत में होने वाली मौतों की शिकायत की थी.
राज्य के पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत का कहना है कि पुलिस आखिरी उपाय के तौर पर ही फायरिंग का सहारा लेती है. ऐसे तमाम मामलों में कानूनी दायरे में रह कर ही ताकत का प्रयोग किया गया है. अपराधी पुलिस वालों से या तो हथियार छीनने का प्रयास कर रहे थे या फिर हिरासत से भागने का. उनका दावा है कि पुलिस बल अब पहले से ज्यादा जवाबदेह और पारदर्शी है.
असम के एक पूर्व डीजीपी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "पुलिस हिरासत में होने वाली मौतें चिंता का विषय हैं. लेकिन जब राज्य का मुखिया ही प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर इसका समर्थन कर चुका हो तो ऐसी घटनाएं बढ़ना स्वाभाविक है.”
एक मानवाधिकार कार्यकर्ता सुविमल लाहिड़ी कहते हैं, "शायद असम सरकार अपराध की जगह अपराधियों को खत्म करने की नीति पर आगे बढ़ रही है. ऐसे में फिलहाल ऐसे मामले कम होने की कोई उम्मीद नहीं नजर आती.” (dw.com)
कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए उग्रवादियों के परिवार शवों को ना लौटाने की नीति पर सख्त नाराज हैं. अधिकारियों ने शवों को लौटाने की जगह अब उन्हें दूर-दराज के इलाकों में दफनाना शुरू कर दिया है.
डॉयचे वैले पर समान लतीफ की रिपोर्ट-
मुश्ताक अहमद वाणी का किशोर बेटा भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया. एक विवादित मुठभेड़ में श्रीनगर के बाहरी इलाके में उसे मार दिया गया. यह मुठभेड़ पिछले साल 30 दिसंबर को हुई थी, जिसमें कुल तीन लोग मारे गए थे. मुश्ताक अहमद वाणी के लिए बेटा खो देना तो दुखदायी था, उन्हें आखिरी वक्त में उसकी शक्ल देखना भी नसीब नहीं हुआ. सेना ने उनके बेटे का शव लौटाने से इनकार कर दिया.
इसके बाद वाणी ने जनता से समर्थन की मांग की. प्रदर्शन करते वाणी को जब पुलिस घसीटकर ले जा रही थी तो वह श्रीनगर के लाल चौक में चिल्ला रहे थे, "आज यह मेरा बेटा है, कल तुम्हारा होगा."
जज्बाती अपील
मुश्ताक के बेटे के शव को सुरक्षा बलों ने दक्षिणी कश्मीर स्थित उसके घर से 150 किलोमीटर दूर उत्तर में सोनमर्ग में दफनाया था. 11 महीने से मुश्ताक अपने बेटे के शव की मांग कर रहे हैं. हाल ही में वह सोशल मीडिया पर एक वीडियो में नजर आए जिसमें उन्होंने जज्बाती अपील करते हुए कहा कि जो कब्र उन्होंने अपने बेटे के लिए उनके पुश्तैनी कब्रिस्तान में खोदी थी, वो अब भी खाली है.
वाणी ने कहा, "हम अपने बेटे के शव का इंतजार कर रहे हैं. जब भी किसी का बेटा मरता है, हमें अपने बेटे की याद आती है. हम अधिकारियों से गुजारिश करते हैं कि उसका शव लौटा दें."
भारतीय कश्मीर में मुश्ताक अहमद वाणी जैसे सैकड़ों लोग हैं जो अपने परिजनों के शवों की मांग कर रहे हैं. 15 नवंबर को श्रीनगर के हैदरपुरा इलाके में हुई एक मुठभेड़ के बाद यह मांग और विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने तीन लोगों को मार गिराया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मुठभेड़ फर्जी थी.
वाणी ने अपने वीडियो में इस मुठभेड़ के बारे में कहा, "जैसे तीन निर्दोष नागरिकों को हैदरपुरा में मारा गया, उन्होंने मेरे बेटे को भी एक फर्जी मुठभेड़ में मारा था. जब तक मैं जिंदा हूं अपने बेटे का शव वापस पाने के लिए संघर्ष करता रहूंगा."
क्यों नहीं लौटाए जा रहे शव?
अप्रैल 2020 से भारतीय सुरक्षा बलों ने आतंकवाद रोधी अभियानों में मारे गए लोगों के शव लौटाना बंद कर दिया है. इसके पीछे उन्होंने कोविड-19 को एक वजह बताया है. इन शवों को अब दूर-दराज सीमांत इलाकों में दफनाया जाता है.
18 नवंबर को स्थानीय सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखकर आग्रह किया कि लोगों के शव उनके परिजनों को लौटाए जाएं.
परिजनों के बढ़ते विरोध के चलते पिछले हफ्ते पहली बार भारत सरकार ने दो नागरिकों के शव कब्र से बाहर निकालकर परिजनों को सौंपे. अल्ताफ अहमद बट और मुदासिर गुल हाल ही में श्रीनगर में एक मुठभेड़ में मारे गए थे. उनके परिजनों का कहना है कि सुरक्षा बलों ने उनका कत्ल किया था.
इन दोनों के शवों को हंदवाड़ा उप जिले श्रीनगर से करीब 130 किलोमीटर दूर सीमा के पास एक कब्रिस्तान में दफनाया गया था. तब से परिजन और अन्य स्थानीय लोग लगातार विरोध कर रहे थे जिसके बाद आखिरकार अधिकारियों ने वे शव लौट दिए और उन्हें पुश्तैनी कब्रिस्तानों में दफनाया गया.
उग्रवाद का खतरा
भारतीय सेना के एक अधिकारी ने डॉयचे वेले को बताया कि सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार आमतौर पर प्रदर्शनों में बदल जाते हैं और उनमें सक्रिय उग्रवादी भी शामिल होते हैं और इन्हें नई भर्तियों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
अधिकारी ने कहा, "मिलिटेंट के अंतिम संस्कार में मृत्यु का महिमामंडन अक्सर युवा लड़कों को उग्रवाद की ओर आकर्षित करेगा. उस चक्र को तोड़ने की जरूरत थी."
2018 में पुलिस के एक अध्ययन के मुताबिक आधे से ज्यादा नए उग्रवादी मारे गए किसी उग्रवादी के घर के दस किलोमीटर के दायरे से आए थे. भारतीय मीडिया में चर्चित रही इस रिपोर्ट के मुताबिक, "ऐसा देखा गया है कि अक्सर अपने दोस्तों के शव और अंतिम संस्कार को देखकर किशोर उग्रवाद का हिस्सा बनने का मन बनाते हैं."
हालांकि कुछ अधिकारी मानते हैं कि शव लौटाए जाने चाहिए. जम्मू कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद कहते हैं कि उग्रवादियों के अंतिम संस्कार चिंता की बात तो हैं लेकिन मुठभेड़ में मारे गए आम नागरिकों और उग्रवादियों के शव लौटाए जाने चाहिए.
उन्होंने कहा, "स्थानीय लड़कों के शव उनके परिवारों को इस शर्त पर फौरन लौटा दिए जाने चाहिए कि वे जल्द से जल्द उनका अंतिम संस्कार कर देंगे और सिर्फ रिश्तेदारों को मैयत में शामिल होने की इजाजत होगी. प्रदर्शन की इजाजत नहीं होनी चाहिए." (dw.com)
भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविड वैक्सीन का निर्यात शुरू कर दिया है. नोवावैक्स की पहली खेप इंडनोशिया को भेजी गई है. हालांकि भारत और डब्ल्यूएचओ ने इसे मान्यता नहीं दी है.
जिस वैक्सीन को अभी भारत ने भी मान्यता नहीं दी है, सीरम इंस्टीट्यूट ने उसका निर्यात शुरू कर दिया है. नोवावैक्स की चार करोड़ खुराक इंडोनेशिया को भेजी गई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कोवैक्स को मान्यता नहीं दी है लेकिन इंडोनेशिया ने इसे मान्यता दे दी है
दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक सीरम ने नोवावैक्स या कोवोवैक्स की एक लाख 37 हजार 500 खुराक पिछले हफ्ते इंडोनेशिया को निर्यात की हैं. इस बीच सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैश्विक वैक्सीन आवंटन नेटवर्क गावी को इस साल के आखिर तक कोवैक्स या एस्ट्राजेनेका की चार करोड़ खुराक देने का वादा किया है. इंस्टीट्यूट ने अपना उत्पादन बढ़ा दिया है.
तेज होगा निर्यात
भारत सरकार ने कहा कि इस हफ्ते अफ्रीका के लिए तेजी से और टीकों को मान्यता दी जाएगी ताकि ओमिक्रॉन वेरिएंट से लड़ने में मदद मिल सके. यह कोवैक्स के जरिए या फिर द्विपक्षीय समझौतों के जरिए किया जाएगा.
पिछले हफ्ते ही सीरम ने कोवैक्स के जरिए नेपाल और ताजिकिस्तान को 14 लाख खुराक भेजी थीं. उससे पहले भारत सरकार ने वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा रखी थी ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके. इस खेप से पहले सीरम ने कोवैक्स को 3 करोड़ खुराक ही उपलब्ध करवाई थीं. कंपन का कोवैक्स के साथ 55 करोड़ खुराक उपलब्ध करवाने का समझौता है. वैक्सीन की ये खुराकें मुख्यतया गरीब देशों के लिए हैं.
गावी के एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सीरम से दवाओं की डिलीवरी कागजी कार्रवाई पर निर्भर करेगी क्योंकि इसमें विभिन्न देशों के साथ लायबिलीटी समझौते भी शामिल करने होंगे. साथ ही निर्माता को दवा की आयु जैसे आंकड़े पहले से उपलब्ध करवाने होंगे ताकि विभिन्न देश सप्लाई को स्वीकार या अस्वीकार कर सकें.
भारत में मांग घटी
सीरम ने अब कोविशील्ड का उत्पादन अप्रैल के मुकाबले करीब चार गुना बढ़ा दिया है और अब 24 करोड़ खुराक प्रति माह बनाई जा रही हैं. सूत्रों के मुताबिक सीरम अब निर्यात बढ़ाने को लेकर उत्सुक है क्योंकि भारत की घरेलू मांग में कमी आई है. हालांकि सीरम इंस्टीट्यूट ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
वैसे, भारत में अभी भी वैक्सीन की काफी जरूरत महसूस की जा रही है. करोड़ों लोग अपनी दूसरी खुराक के तय समय से भी ज्यादा देर से इंतजार कर रहे हैं. बहुत से लोगों को दूसरी खुराक के लिए 12 से 16 हफ्ते का इंतजार करना पड़ रहा है.
भारत ने अब तक अपनी 84 प्रतिशत वयस्क आबादी यानी करीब 94 करोड़ लोगों को कम से कम एक खुराक दे दी है जबकि 48 प्रतिशत को दोनों खुराकें मिल चुकी हैं. अभी 18 वर्ष से कम आयु के लोगों का टीकाकरण शुरू नहीं हुआ है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
तिरुपति, 1 दिसम्बर | प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर मंदिर की ओर जाने वाली एक घाट सड़क को तिरुमाला पहाड़ियों के ऊपर बुधवार को बंद कर दिया गया क्योंकि भूस्खलन से तीन स्थानों पर सड़क क्षतिग्रस्त हो गई थी। मंगलवार देर रात बड़े-बड़े बोल्डर सड़क पर लुढ़क गए जिससे वाहनों की आवाजाही ठप हो गई। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अधिकारियों ने वाहनों को रोककर मलबे को साफ कराने के लिए 'अर्थ मूवर्स' गाड़ी का सहारा लिया है। अधिकारी इस दौरान हुए नुकसान का आंकलन लगाने के लिए जांच और मरम्मत कराने की योजना पर काम कर रहे थे।
सड़कों को हुए नुकसान को देखते हुए सभी वाहनों को रोक दिया गया है और उन्हें डाउन घाट रोड से वाहनों को जाने दिया जा रहा था।
महीने में यह दूसरी बार है जब घाट वाली सड़क पर भूस्खलन हुआ है। भारी बारिश के कारण भूस्खलन हुआ, घाट की सड़कों को 11 नवंबर को बंद कर दिया गया था और 20 नवंबर को फिर से खोला गया था।
भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण घाट की सड़कों पर रखे बोल्डर लुढ़क गए। प्रसिद्ध पहाड़ी मंदिर को तिरुपति से जोड़ने वाली सड़कों पर पेड़ भी उखड़कर गिर गए।
पहले घाट मार्ग पर चार स्थानों पर भूस्खलन से सुरक्षा में लगाई गई दीवार क्षतिग्रस्त हो गई जबकि दूसरे घाट मार्ग पर 13 भूस्खलन हुए। भारी बारिश ने दोनों फुटपाथ (अलीपिरी और श्रीवारी मेट्टू) को भी क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे अधिकारियों को उन्हें बंद करना पड़ा।
बारिश से वैकुंठम कतार परिसरों और चार माडा सड़कों पर भी पानी भर गया था। टीटीडी चेयरमैन के मुताबिक टीटीडी को करीब चार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। तिरुमाला और तिरुपति में 17 से 19 नवंबर के बीच 19 सेंटीमीटर बारिश दर्ज की गई, जो पिछले 30 वर्षो में सबसे अधिक है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 दिसम्बर | मथुरा में भव्य कृष्ण मंदिर के निर्माण को लेकर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के ट्वीट पर बोलते हुए केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि इसके लिए मथुरा में सबको सहमति से जगह दे देनी चाहिए।
आईएएनएस से बात करते हुए केंद्रीय मंत्री ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण और काशी मे बाबा विश्वनाथ मंदिर के भव्य पुनर्निर्माण का जिक्र करते हुए कहा कि पूरे देश के श्रद्धालुओं के लिए यह सुंदर कार्य कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि तीर्थ स्थल आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ पर्यटन का भी हब बन जाता है।
आईएएनएस से बात करते हुए राजस्थान के अलवर से भाजपा लोक सभा सांसद महंत बालकनाथ ने कहा कि मथुरा में भगवान श्री कृष्ण का ही मंदिर था और यह भगवान श्री कृष्ण जी का अधिकार है और उन्हें यह अधिकार मिलना चाहिए।
उन्होंने अयोध्या में लंबे संघर्ष के बाद भव्य राम मंदिर निर्माण का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय संविधान और नियमों का पालन करते हुए उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद ही अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बन रहा है। मथुरा में भी अंतत: सच्चाई की ही जीत होगी। (आईएएनएस)
बेंगलुरु, 1 दिसम्बर | स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि शहर में नर्सिंग पाठ्यक्रम से गुजर रहे केरल के 72 छात्रों के कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण के बाद मैसूर जिले में हाई अलर्ट जारी किया गया है। उपायुक्त बगदी गौतम ने मामलों का जल्द पता लगाने और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए मैसूर में 5,000 कोविड परीक्षण करने का आदेश दिया है।
कावेरी नर्सिंग छात्रावास के लगभग 43 छात्रों और सेंट जोसेफ कॉलेज के 29 छात्रों ने कोरोना का सकारात्मक परीक्षण किया है, जिससे लोगों और स्वास्थ्य अधिकारियों में दहशत फैल गई।
अधिकारियों के अनुसार, जिला प्रशासन ने केरल से मैसूर के प्रवेश बिंदुओं पर सख्त कदम उठाए हैं। यात्रियों के लिए आरटी-पीसीआर परीक्षण नकारात्मक परिणाम अनिवार्य कर दिया गया है।
मैसूर को कोविड की दोनों लहरों के दौरान भारी नुकसान हुआ था और लंबे समय तक राज्य में दूसरे स्थान पर सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए थे।
जल्द ही संक्रमण पर काबू पाने का विश्वास व्यक्त करते हुए जिला प्रभारी मंत्री एस.टी. सोमशेखर ने कहा कि मैसूर के साथ-साथ चामराजनगर जिलों में भी सभी आवश्यक सावधानियां बरती जा रही हैं।
इस बीच, दो दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों के नमूनों में डेल्टा वायरस के लिए नकारात्मक परीक्षण के बाद बल्लारी से राहत मिली है। नमूने एकत्र किए गए और नए ओमिक्रॉन वैरिएंट के डर से परीक्षण के लिए भेजे गए। स्वास्थ्य अधिकारी डॉ भास्कर ने पुष्टि करके कहा कि परीक्षण नकारात्मक है और उनके संपर्क में आने वाले परिवार के सदस्यों को लक्षणों के लिए आइसोलेशन में रखा गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 दिसम्बर | माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने बुधवार को एचआईवी से संबंधित जानकारी के लिए एक समर्पित खोज संकेत के साथ अपनी हैशटैग देयर इल हेल्प अधिसूचना सेवा का विस्तार किया। अधिसूचना संकेत एचआईवी के आसपास मूल्यवान और आधिकारिक संसाधन प्रदान करेगा और लोगों को जरूरत पड़ने पर मदद पाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
ट्विटर इंडिया की सार्वजनिक नीति शगुफ्ता कामरान ने एक बयान में कहा, "हम ट्विटर पर सार्वजनिक बातचीत के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह सुनिश्चित करना कि व्यक्ति आधिकारिक स्रोतों से विश्वसनीय जानकारी प्राप्त कर सकें, उस मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।"
यह लॉन्च लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी और संसाधनों तक पहुंचने में मदद करने के लिए ट्विटर के प्रयासों का एक विस्तार है और एशिया प्रशांत सहित अमेरिका के अलावा ब्राजील, हांगकांग, इंडोनेशिया, भारत, जापान, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, एसपी-लाटम, ताइवान, थाईलैंड और यूएस में उपलब्ध होगा।
कामरान ने कहा, "हमने यह भी माना है कि एचआईवी के बारे में कलंक का मुकाबला करने के लिए जनता के लिए मुफ्त और हैशटैग ओपन इंटरनेट तक पहुंच महत्वपूर्ण है।"
कामरान ने कहा, "इसलिए, हमने पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों और स्थानीय गैर-लाभकारी संगठनों के साथ भागीदारी की है ताकि लोगों को एचआईवी के बारे में सटीक जानकारी तक पहुंच प्रदान की जा सके, जिससे उन्हें मदद मिल सके और एचआईवी के लिए एक समर्पित हैशटैग देयर इज हेल्प अधिसूचना प्रॉम्प्ट लॉन्च किया जा सके।"
इस संकेत के साथ, जब लोग एचआईवी और/या एड्स से संबंधित कीवर्ड की खोज करते हैं, तो शीर्ष खोज परिणाम में अब हिंदी और अंग्रेजी में एक अधिसूचना शामिल होगी, जो उन्हें विश्वसनीय जानकारी और सहायता के स्रोतों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
ट्विटर के डेटा से पता चलता है कि एचआईवी के बारे में बातचीत हर साल 1 दिसंबर को हैशटैग वर्ल्ड एड्स डे के आसपास होती है। 2020 में, वैश्विक स्तर पर एचआईवी के बारे में करीब 9 मिलियन ट्वीट्स थे, जिनमें से 1 मिलियन से अधिक ट्वीट्स दिसंबर 2020 में उत्पन्न हुए थे।
हैशटैग देयर इज हेल्प एचआईवी सर्च प्रॉम्प्ट के शुभारंभ के लिए, ट्विटर ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन, स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ भागीदारी की है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 दिसम्बर | ट्विटर ने उन तस्वीरों में दिखाए गए व्यक्तियों की अनुमति के बिना निजी मीडिया, जैसे कि फोटो और वीडियो को साझा करने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म पहले से ही अपनी नीतियों के तहत अपमानजनक व्यवहार के स्पष्ट उदाहरणों को शामिल करता है। नीति के विस्तार से प्लेटफॉर्म को मीडिया पर कार्रवाई करने की अनुमति मिलेगी जो बिना किसी स्पष्ट अपमानजनक कंटेंट के साझा की जाती है, बशर्ते इसे चित्रित व्यक्ति की सहमति के बिना पोस्ट किया गया हो।
ट्विटर ने मंगलवार देर रात एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, "व्यक्तिगत मीडिया, जैसे कि चित्र या वीडियो साझा करना, किसी व्यक्ति की गोपनीयता का संभावित रूप से उल्लंघन कर सकता है और भावनात्मक या शारीरिक नुकसान पहुंचा सकता है।"
कंपनी ने सूचित किया, "निजी मीडिया का दुरुपयोग सभी को प्रभावित कर सकता है, लेकिन महिलाओं, कार्यकर्ताओं,असंतुष्टों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। जब हमें एक रिपोर्ट प्राप्त होती है कि एक ट्वीट में अनधिकृत निजी मीडिया है, तो हम अब इसके अनुरूप कार्रवाई करेंगे।"
मौजूदा नीति के तहत, ट्विटर पर पहले से ही अन्य लोगों की निजी जानकारी, जैसे फोन नंबर, पते और आईडी प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है।
इसमें निजी जानकारी को उजागर करने की धमकी देना या दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल है।
ट्विटर ने कहा, "मीडिया और सूचनाओं के दुरुपयोग के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं जो ऑनलाइन कहीं और उपलब्ध नहीं हैं, जो व्यक्तियों की पहचान को परेशान करने, डराने और प्रकट करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपलब्ध हैं।"
जब ट्विटर को चित्रित व्यक्तियों द्वारा, या किसी अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा सूचित किया जाता है कि उन्होंने अपनी निजी इमेज या वीडियो साझा करने के लिए सहमति नहीं दी है, तो यह इसे हटा देता है।
यह नीति सार्वजनिक हस्तियों या व्यक्तियों को दिखाने वाले मीडिया पर लागू नहीं होती है, जब मीडिया और साथ में ट्वीट पाठ सार्वजनिक हित में साझा किए जाते हैं या सार्वजनिक प्रवचन में मूल्य जोड़ते हैं।
नीति का विस्तार तब हुआ जब ट्विटर के संस्थापक और सीईओ जैक डोर्सी ने अपने इस्तीफे की घोषणा की और भारतीय मूल के सीटीओ पराग अग्रवाल को नया सीईओ बनाया गया।
ट्विटर ने सितंबर में सेफ्टी मोड नाम से एक फीचर शुरू किया था जो कुछ खातों को सात दिनों के लिए अस्थायी रूप से ब्लॉक कर देता है यदि वे उपयोगकर्ताओं का अपमान करते हुए या बार-बार घृणित टिप्पणी भेजते हुए पाए जाते हैं। (आईएएनएस)
कोलकाता, 1 दिसम्बर | दक्षिण 24 परगना जिले के मोहनपुर गांव में बुधवार सुबह एक रिहायशी इमारत में हुए भीषण विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। पुलिस ने यह जानकारी दी। पुलिस के अनुसार, घर के मालिक ने पटाखे बनाने के लिए भारी मात्रा में अवैध विस्फोटकों का ढेर लगाया था, जिसके कारण विस्फोट हुआ। घर के मालिक-आशिम मंडल और उनके दो कर्मचारी-विस्फोट में मारे गए।
स्थानीय लोगों के मुताबिक मंडल पिछले दस साल से मोहल्ले में अवैध पटाखा फैक्ट्री चला रहा था। एक स्थानीय निवासी ने कहा, "यह एक रिहायशी इलाका है और हमें डर था कि इस तरह का विस्फोट हो सकता है। हमने उनसे कई बार अनुरोध किया और पुलिस को भी सूचित किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ।"
स्थानीय लोगों के अनुसार, विस्फोट की तीव्रता इतनी अधिक थी कि आसपास के कुछ घरों के शीशे टूट गए और शव विस्फोट स्थल से करीब 200 मीटर दूर मिले। पुलिस के मुताबिक, विस्फोट छत पर हुआ और कंक्रीट की छत ढह गई।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है और हमने फोरेंसिक टीम को सूचित कर दिया है। एक बार जब वे अपनी रिपोर्ट दे देंगे तो हम विस्फोटकों की प्रकृति और विस्फोट के सही स्थान को समझ पाएंगे।" (आईएएनएस)
पिछली सरकार के 100 पुलिस और सुरक्षाकर्मी तालिबान शासन के दौरान मार दिए गए या जबरन गायब कर दिए गए. यह दावा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मंगलवार 30 नवंबर को अफगानिस्तान पर एक नई रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से पूर्व पुलिसकर्मी और सुरक्षा कर्मियों को मारना या जबरन गायब करना जारी रखा है. रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य माफी के बावजूद देश में हत्याएं हो रही हैं.
एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान सरकार के सशस्त्र बलों द्वारा 100 से अधिक ऐसे व्यक्तियों को मार डाला गया या उनको गायब कर दिया गया जो पूर्व सरकार के लिए काम कर रहे थे.
रिपोर्ट में पिछली सरकार में सेना और पुलिस द्वारा जवाबी कार्रवाई की एक श्रृंखला के रूप में कार्रवाई का वर्णन किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबानी आतंकवादी सरकारी रिकॉर्ड की मदद से आतंकवादियों को निशाना बनाने वाले लोगों की तलाश जारी रखे हुए हैं.
इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने आत्मसमर्पण किया था और उन्हें तालिबान ने माफी दी थी. एक अन्य मानवाधिकार संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय तालिबान कमांडरों ने अपनी खुद की सूची तैयार की है और उनके अनुसार उन्होंने अक्षम्य कृत्य किए हैं.
भय और दहशत का माहौल
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन घटनाओं में तालिबान आतंकवादियों द्वारा हत्याओं ने देश के कई हिस्सों में भय और दहशत का माहौल पैदा कर दिया है. रिपोर्ट कहती है कि ऐसे सभी लोग खुले तौर पर पिछली सरकार से नाता तोड़ने की घोषणा कर रहे हैं और मौजूदा सरकार के कार्यकर्ताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि इससे उनकी जान बच सकती है.
एचआरडब्ल्यू में सहयोगी एशिया निदेशक पेट्रीशिया गॉसमैन कहती हैं, "तालिबान नेतृत्व का माफी का वादा स्थानीय कमांडरों को पूर्व अफगान सुरक्षा बलों की हत्याओं से रोक नहीं पा रहा है."
तालिबान के निशाने पर
ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक तालिबान के सामान्य माफी के वादे ने स्थानीय कमांडरों को जवाबी कार्रवाई करने से नहीं रोका और वे धीरे-धीरे सेना, खुफिया एजेंसियों और पुलिस कर्मियों को निशाना बना रहे हैं. दूसरी ओर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद ने 27 नवंबर को एक जनसभा में लोगों को संबोधित करते हुए प्रतिशोध की संभावित रिपोर्टों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि अगर किसी पूर्व अधिकारी ने गलत किया तो उसे अपराध के अनुसार सजा दी जाएगी.
ऐसी भी खबरें हैं कि नंगरहार प्रांत में आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट से जुड़े संदिग्धों और सहानुभूति रखने वालों को निशाना बनाया जा रहा है. तालिबान के सदस्यों ने पिछले मंगलवार को उसी प्रांत में इस्लामिक स्टेट के सदस्यों के एक ठिकाने पर धावा बोल दिया, जिससे भीषण गोलाबारी हुई. यह संघर्ष आठ घंटे से अधिक समय तक चला. नंगरहार की खुफिया एजेंसी के प्रमुख ताहिर मुब्रीज ने कहा कि गोलीबारी के दौरान एक पुरुष और एक महिला ने अपनी विस्फोटक जैकेट उड़ा दी थी और दो संदिग्ध जिहादियों को हिरासत में लिया गया था.
एए/वीके (डीपीए, एपी)
मेघायलय में 25 मिनट में 25 किलोमीटर दूर एक ऐसे गांव में दवा पहुंच गई जहां आमतौर पर पहुंचने में घंटों लगते. ऐसा ड्रोन से संभव हुआ, जो देश में पहली बार है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
पूर्वोत्तर मे बसा मेघालय देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां ड्रोन के जरिए दवाओं की डिलीवरी शुरू हुई है. पूर्वोत्तर और देश के दुर्गम इलाकों में यह पहल बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. देश के कई दूर-दराज इलाके ऐसे हैं जहां स्वास्थ्य केंद्र तक समय पर दवाइयां नहीं पहुंच पाती हैं.
जिस ड्रोन के जरिए दवाओं को दुर्गम इलाके में भेजा गया उसे गुरुग्राम स्थित एक कंपनी ने ही बनाया है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई इस योजना के कामयाब रहने के बाद अब राज्य और देश के दूसरे हिस्सों में भी इसे लागू करने पर विचार किया जा रहा है.
पहली बार ड्रोन से डिलीवरी
मेघालय के पश्चिमी खासी हिल्स जिले में पहली बार एक ड्रोन ने शुक्रवार को 25 मिनट में 25 किलोमीटर की दूरी तय कर नोंगस्टोइन से मावेत स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक जीवनरक्षक दवाओं की सफलतापूर्वक डिलीवरी कर इतिहास रच दिया. मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने कहा कि देश में पहली बार दवाएं ड्रोन के जरिए पहुंचाई गई हैं.
उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, "आज हमने मेघालय में नोंगस्टोइन से मावेत स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक ई-वीटीओएल ड्रोन के माध्यम से दवाओं की आपूर्ति की. अपनी तरह के इस पहले कार्यक्रम में ड्रोन ने 25 मिनट से भी कम समय में 25 किलोमीटर की दूरी तय की. यह भारत में अपनी तरह की पहली योजना है.” उनका कहना है कि यह अनूठी परियोजना दुर्गम क्षेत्र में दवाओं की आपूर्ति को सुगम बनाएगी.
जिस ड्रोन का इस काम के लिए इस्तेमाल किया गया उसे गुरुग्राम की टेक ईगल कंपनी ने बनाया है. उसके साथ इस परियोजना में मेघालय सरकार और स्मार्ट विलेज मूवमेंट (एसवीएम) भी साझीदार हैं. इस परियोजना का मकसद दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए हेल्थकेयर सप्लाई चेन की तस्वीर बदलना है.
नई उम्मीद
मुख्यमंत्री संगमा कहते हैं, "ड्रोन तकनीक स्वास्थ्य सेवा के भविष्य को बदल सकती है. यह स्वास्थ्य सेवा सप्लाई चेन की मदद से दुर्गम आबादी तक पहुंचने में मदद करेगी.” मुख्यमंत्री के मुताबिक डिलीवरी के लिए एक ई-वीटीओएल (वर्चुअल टेक ऑफ एंड लैंडिंग) ड्रोन (Aquila X2) का इस्तेमाल किया गया था.
स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दवाओं की डिलीवरी के लिए एक ड्रोन की तैनाती पायलट आधार पर की गई थी. अब हम इस परियोजना को बड़े पैमाने पर लागू करने पर विचार कर रहे हैं.
पूर्वोत्तर में ज्यादातर इलाके बेहद दुर्गम हैं. खासकर मेघालय, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में तो कई इलाके ऐसे हैं जहां जाने के लिए कई दिनों तक पैदल चलना पड़ता है. इन इलाकों में आपात स्थिति में जीवन रक्षक दवाएं पहुंचाना अब तक चुनौतीपूर्ण रहा है. इसके लिए हेलीकॉप्टर सेवा पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन मौसम प्रतिकूल होने की स्थिति में यह सेवा भी ठप रहती थी. अब मेघालय में उक्त पायलट परियोजना की कामयाबी ने इन इलाकों के लोगों में उम्मीद की एक नई किरण जगा दी है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. धीरेन महंत कहते हैं, "पूर्वोत्तर के दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह परियोजना किसी वरदान से कम नहीं है. आपात स्थिति में जीवनरक्षक दवाओं की फौरन डिलीवरी कर इससे लोगों की जान बचाने में काफी मदद मिलेगी.” (dw.com)
तिरुपति, 30 नवंबर | भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमण ने मंगलवार को तिरुमला मंदिर के प्रसिद्ध पुजारी पाला शेषाद्री को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें 'डॉलर शेषाद्री' के नाम से जाना जाता है। उनका अंतिम संस्कार मंदिर शहर में किया गया। दिल्ली से रेनीगुंटा हवाईअड्डे पर पहुंचने के बाद प्रधान न्यायाधीश गाड़ी से सीधे डॉलर शेषाद्री के घर पहुंचे और उनके पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी) का सोमवार को विशाखापत्तनम में हृदय गति रुकने से निधन हो गया।
सीजेआई ने कहा कि वह डॉलर शेषाद्री के बिना तिरुमला की कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने शेषाद्री के निधन को अपने और उनके परिवार के लिए एक बड़ी क्षति करार दिया। मीडियाकर्मियों से बात करते हुए उन्होंने याद किया कि उनके साथ उनका 25 साल पुराना जुड़ाव था।
उन्होंने कहा कि जब भी वह या उनके परिवार के सदस्य तिरुमला में दर्शन के लिए आते थे, डॉलर शेषाद्री मुस्कुराकर उनका अभिवादन करते थे और अनुष्ठान करने में उनकी मदद करते थे। सीजेआई ने कहा, "मुझे दुख होता है कि मैं उन्हें दोबारा नहीं देख पाऊंगा।"
न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि डॉलर शेषाद्रि भगवान वेंकटेश्वर के सबसे प्रिय भक्त थे और श्रीवारी की सेवा में अंतिम सांस लेने के लिए भाग्यशाली थे।
डॉलर शेषाद्री 'कार्तिका दीपोत्सव' में शामिल होने के लिए विशाखापत्तनम में थे।
इस बीच, उनका अंतिम संस्कार सत्य हरिश्चंद्र वैकुंठधामम में किया गया। उनके भाई रामानुजम ने अंतिम संस्कार किया।
इससे पहले, शेषाद्री की अंतिम यात्रा उनके आवास से शुरू हुई। टीटीडी के अध्यक्ष वाई.वी. सुब्बा रेड्डी, विधायक भूमा करुणाकर रेड्डी, चेविरेड्डी भास्कर रेड्डी, राज्य सरकार के सलाहकार अजय कल्लम और अन्य ने शेषाद्री को अंतिम विदाई दी।
शेषाद्री 1978 से प्रसिद्ध पहाड़ी मंदिर की सेवा कर रहे थे। हालांकि उन्होंने 31 जुलाई, 2006 को सेवानिवृत्ति प्राप्त की, लेकिन लगातार सरकारों ने ओएसडी के रूप में उनका कार्यकाल बढ़ाया था।
मंदिर के इतिहास और सभी अनुष्ठानों से अच्छी तरह वाकिफ रहने वाले शेषाद्री टीटीडी में सबसे प्रमुख व्यक्ति थे, जो दुनिया के सबसे अमीर हिंदू मंदिर के मामलों का प्रबंधन करता है। जब भी कोई वीआईपी मंदिर में आता था तो शेषाद्री की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती थी।(आईएएनएस)
संभव है कि अगले साल कोरोना वायरस महामारी कमजोर हो कर एक स्थानिक रोग बन जाए लेकिन अगर टीका मिलने में मौजूदा असमानताएं जारी रहीं और नए वेरिएंट आते रहे तो हालात कैसे होंगे?
यह सच है कि इस समय दुनिया भर के देश वायरस के एक नए और चिंताजनक वेरिएंट से निपटने की तैयारी कर रहे हैं और यूरोप में महामारी का फिर से प्रकोप फैला हुआ है. इसके बावजूद स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगले साल महामारी पर नियंत्रण पाना संभव है.
वायरस पर काबू पाने की सारी जानकारी और उपाय मौजूद हैं. सुरक्षित और प्रभावी टीकों का भंडार बढ़ता जा रहा है और नए नए इलाज भी सामने आ रहे हैं. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि जिन कड़े कदमों को उठाने की जरूरत है वो हम उठाएंगे या नहीं.
टीकों की अरबों खुराकें
कोविड संकट पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य विशेषज्ञ मारिया वान करखोव ने हाल ही में पत्रकारों से कहा था, "इस महामारी का पथ हमारे ही हाथों में है. क्या हम ऐसे पड़ाव पर पहुंच सकते हैं जहां हमने 2022 में संक्रमण के प्रसार पर नियंत्रण पा लिया हो? बिलकुल."
उन्होंने आगे कहा, "हम ऐसा अभी तक कर चुके होते, लेकिन हमने नहीं किया है." टीकों को बाजार में आए एक साल हो चुका है और अभी तक दुनिया भर में करीब 7.5 अरब खुराकें दी जा चुकी हैं.
अगले साल जून तक करीब 24 अरब खुराकें बन कर तैयार होने की संभावना है. इतना दुनिया की पूरी आबादी के लिए काफी है लेकिन गरीब देशों में टीकों की भारी कमी और कुछ लोगों में टीके के विरोध की वजह से कई देशों में हालात बुरे हैं.
डेल्टा जैसे नए और ज्यादा संक्रामक वेरिएंटों ने संक्रमण की लहर पर लहर पैदा कर दी है और इस वजह से क्षमता से ज्यादा भरे हुए अस्पतालों में ट्यूब लगाए हुए मरीजों और अपने निकट संबंधियों के लिए ऑक्सीजन ढूंढते लोगों की कतारों के दृश्य अभी भी देखने को मिल रहे हैं.
पैनडेमिक से एंडेमिक
दुनिया भर के देश अभी भी खुलने और फिर तालाबंदी लगाने के फैसलों के बीच घूम रहे हैं. लेकिन इन सब के बावजूद, कई विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी का यह चरण जल्दी ही खत्म हो जाएगा.
उनका कहना है कि कोविड पूरी तरह से गायब तो नहीं होगा लेकिन यह मोटे तौर पर एक नियंत्रित एंडेमिक या स्थानिक रोग बन जाएगा जिसके साथ हम फ्लू की तरह रहना सीख लेंगे.
इरविन में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के महामारीविद एंड्रू नॉयमर कहते हैं कि कोविड एक तरह "फर्नीचर का हिस्सा बन जाएगा." हालांकि टीका मिलने में भारी विषमताएं एक बहुत बड़ी चुनौती हैं.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े दिखाते हैं कि ऊंची आय वाले देशों में तो करीब 65 प्रतिशत लोगों को कम से कम एक खुराक मिल चुकी है, लेकिन कम आय वाले देशों में यह आंकड़ा सिर्फ सात प्रतिशत पर है.
एक महंगी विषमता
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस असंतुलन को एक नैतिक अत्याचार बताया है और अमीर देशों को कहा है कि जब तक पूरी दुनिया में सबसे कमजोर लोगों को कम से कम एक खुराक नहीं मिल जाती तब तक वो पूरी तरह से टीका प्राप्त लोगों को बूस्टर खुराक ना दें.
लेकिन उसकी अपील का कोई असर नहीं हुआ है और बूस्टर खुराकें दी जा रही हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ जोर दे कर कहते हैं कि कोविड को कुछ स्थानों पर बिना किसी रोक के बढ़ते देने से नए और पहले से ज्यादा खतरनाक वैरिएंटों के उभरने का खतरा बढ़ जाता है. इससे पूरी दुनिया पर जोखिम बढ़ जाएगा.
भारत के अशोका विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान और जीव विज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन भी कहते हैं कि यह अमीर देशों के भी हित में ही होगा कि वो यह सुनिश्चित करें कि गरीब देशों को भी टीके मिलें.
उन्होंने कहा, "यह मान लेना अदूरदर्शी होगा कि खुद को टीके लगा कर उन्होंने समस्या को खत्म कर लिया है." अगर इस असंतुलन को ठीक नहीं किया गया तो विशेषज्ञों की चेतावनी है कि आगे जा कर स्थिति और भी खराब हो सकती है.
सीके/एए (एएफपी)
अस्पतालों में डिलीवरी और परिवार नियोजन के साधनों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के चलते यूपी में जनस्वास्थ्य की तरक्की की बातें कही जा रही हैं लेकिन जानकार इससे जुड़े कई मापदंडों को लेकर अब भी परेशान हैं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस- 5) की दूसरी कड़ी जारी की. इसके बाद उत्तर प्रदेश में जन स्वास्थ्य की प्रगति को सराहा गया लेकिन जानकार कई अन्य मापदंडों पर यूपी के खराब प्रदर्शन को लेकर चिंतित हैं. मसलन उत्तर प्रदेश में आज भी 50 से कम उम्र की आधी से ज्यादा महिलाओं में खून की कमी है. राज्य में महिलाओं के प्रति हिंसा में कोई खास कमी नहीं हुई है और यहां के लोगों में एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूकता में भी काफी कमी आई है.
इतना ही नहीं राज्य में हर पांच में से चार महिलाओं को मां बनने से पहले फॉलिक एसिड जैसी जरूरी दवाएं नहीं मिल पातीं. अभी भी यूपी के सरकारी अस्पतालों में सीजेरियन की सुविधाएं नहीं हैं. इतना ही नहीं तीन-चौथाई बच्चों को जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध नहीं मिल पा रहा है. जानकार मानते हैं, इन समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
सरकारी अस्पतालों में सीजेरियन नहीं
जानकार कहते हैं कि यूपी में अस्पतालों में डिलीवरी बढ़ी है लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सीजेरियन के जरिए ज्यादातर बच्चे प्राइवेट अस्पतालों में ही पैदा हो रहे हैं. सरकारी अस्पतालों में 100 में से सिर्फ 6 बच्चे सीजेरियन से पैदा हो रहे हैं. पब्लिक हेल्थ पर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था वात्सल्य की डॉ नीलम सिंह भी इस बात पर मुहर लगाती हैं. वह बताती हैं, "यूपी के सरकारी अस्पतालों में सीजेरियन की सुविधाएं ही नहीं हैं. इससे भी खतरनाक हैं प्राइवेट हॉस्पिटल, जहां अब ज्यादातर सीजेरियन हो रहे हैं. क्योंकि कई बार इनमें गायनेकोलॉजिस्ट ही नहीं होते, पैसों के लालच में सामान्य डॉक्टर ही डिलीवरी करा देते हैं. यह खतरनाक हो सकता है."
नेशनल न्यूट्रिशन मिशन के तहत महिला और बाल स्वास्थ्य पर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काम कर चुके विनय कुमार कहते हैं, "यूपी में अधिकतर मांएं पैदा होने के तुरंत बाद बच्चों को दूध नहीं पिला रही हैं. इसकी वजह उन्हें ब्रेस्टफीडिंग के लिए स्पेशल काउंसलिंग न मिल पाना है जबकि इसके लिए जानकार स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति की जाती है लेकिन ऐसी कोई सुविधा जमीन पर न मौजूद होने के चलते, बच्चे ऐसे जरूरी पोषण से छूट जा रहे हैं. इसका असर उनके बाद से जीवन में दिखेगा."
कुपोषण से बच नहीं सकते बच्चे
डिलीवरी के बाद भी विशेषज्ञ डॉक्टरों के न होने के चलते गड़बड़ियां जारी रहती हैं. विनय कुमार कहते हैं, "मां के पहले गाढ़े दूध का महत्व जानने के बाद भी डॉक्टर बाहर से पाउडर्ड मिल्क लाकर बच्चे को पिलाने की सलाह देते हैं. इस तरह के दूध की बिल्कुल मनाही है, फिर भी. ऐसा दूध कंपनियों और डॉक्टरों की साठ-गांठ से बेचा जाता है. फिर अगले छह महीने भी इसी तरह बाहर का दूध पिलाने का क्रम जारी रहता है, जबकि सामान्यत: बच्चे को मां का दूध पिलाया जाना चाहिए. यह बाद में बच्चे के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है."
जानकार बताते हैं कि एनएफएचएस के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 6 महीने से 2 साल के बीच 94 फीसदी बच्चों को पर्याप्त खाना नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में कुपोषण को खत्म करने का सपना भी बेईमानी है. बिना पूरे पोषण के बच्चों का विकास कैसे होगा. यही वजह है कि अब भी 100 में से 40 बच्चों की उम्र के हिसाब से लंबाई कम है. और बहुत से बच्चों का उम्र के हिसाब से वजन नहीं बढ़ रहा. इसके अलावा अति कुपोषित बच्चों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है. ओवरवेट बच्चों की संख्या भी बढ़कर दोगुनी हो गई है. 5 साल से कम उम्र के 66 फीसदी बच्चे एनिमिक हैं, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 63 फीसदी था.
सरकार का ढीला रवैया
विनय कुमार बताते हैं कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए बच्चों को आंगनवाड़ी और स्कूल में दवाएं दिए जाने की व्यवस्था की जाती है लेकिन अधिकांशत: ये दवाएं यहां तक पहुंचती ही नहीं. उनका मानना है, कोरोना के बाद ये हालात और खराब हुए हैं क्योंकि अब ज्यादातर बच्चे स्कूल और आंगनवाड़ी जा ही नहीं रहे. जिससे यह प्रक्रिया पूरी तरह से रुक गई है और सरकार इसके लिए अतिरिक्त प्रयास भी नहीं कर रही.
जानकार मानते हैं कि मिड डे मील या आंगनवाड़ी के खाने की गुणवत्ता के प्रति समाज का संदेह, भ्रष्टाचार, भोजन बनाने की ठीक व्यवस्था का न होना भी बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली वजहें हैं. वे यह भी कहते हैं कि कुपोषण की शुरुआत तो मां से ही हो जाती है. एनिमिक महिला जब प्रेग्नेंट होती है तो बच्चे के कुपोषित पैदा होने का डर रहता है. यूपी में आधी से ज्यादा महिलाओं को एनिमिया है. ऐसे में बच्चों को कुपोषण से कैसे बचा सकते हैं, वह भी बिना आयरन, फॉलिक एसिड जैसे तत्वों की कमी पूरी किए बिना?
डॉ नीलम सिंह कहती हैं, "कुपोषण कई वजहों से बना हुआ है. यह एक लंबी और कई चरण की प्रक्रिया है. शादी की उम्र, फैमिली प्लानिंग, अवेयरनेस इन सबका बहुत रोल होता है. ऐसे में किशोरावस्था से ही लड़कियों के स्वास्थ्य पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है."
स्वास्थ्यकर्मियों की खराब छवि
जानकार सरकारी स्वास्थ्यकर्मियों, जैसे एएनएc, आशा और आंगनवाड़ी कर्मियों की खराब छवि को भी सरकारी प्रयासों के ढंग से लागू न हो पाने की एक वजह मानते हैं. उनके मुताबिक न ही इन स्वास्थ्यकर्मियों का ईमानदारी से, योग्यता के आधार पर चयन होता है और न ही उन्हें पर्याप्त ट्रेनिंग मिल पाती है. साथ ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में उन्हें सम्मानजनक मेहनताना भी नहीं मिलता. इन वजहों से उनकी सोशल इमेज बहुत कमजोर होती है और कई बार महिलाएं और उनके परिवार इन स्वास्थ्यकर्मियों की बातों पर ध्यान नहीं देते.
विनय कहते हैं कि दक्षिण भारतीय राज्यों के मुकाबले आधी या उससे भी कम सैलरी पाने वाली ये स्वास्थ्यकर्मी सर्वे भरने और चुनाव की ड्यूटी करने जैसे काम भी करती हैं. ऐसे में जनस्वास्थ्य का काम कई बार प्राथमिकता नहीं रह जाता. डॉ नीलम सिंह उत्तर भारत में ऐसी कई स्वास्थ्यकर्मियों के कुशल न होने पर भी चिंता जताती हैं.
जानकार मानते हैं यूपी में सरकार की ओर से स्वास्थ्य कार्यक्रमों और बीमारियों के प्रति जागरूकता के कार्यक्रमों में भी कमी आई है, जिससे एड्स जैसी बीमारियों के बारे में लोगों की जानकारी कम हो रही है. (dw.com)
बार्बाडोस ने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ को राष्ट्राध्यक्ष के पद से हटा दिया है और अब यह देश एक गणतंत्र बन गया है. मंगलवार को देश को पहला राष्ट्रपति मिला जिसके चलते चार सौ साल बाद देश गणतंत्र बन गया.
मंगलवार 29 नवंबर की आधी रात से बार्बाडोस एक गणतंत्र राष्ट्र बन गाय. राजधानी ब्रिजटाउन के चैंबरलेन ब्रिज पर जमा सैकड़ों लोगों ने खुशियों से नारे लगाते हुए इस पल का स्वागत किया. भारी भीड़ के बीच हीरोज स्क्वायर पर बार्बाडोस का राष्ट्रगान बजाया गया और 21 तोपों की सलामी दी गई.
इस मौके पर ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स मौजूद थे. उनके देखते देखते महारानी एलिजाबेथ का ध्वज उतारा गया और देश को औपचारिक स्वतंत्रता मिल गई. प्रिंस चार्ल्स ने कहा कि उनकी मां ने इस मौके पर बधाई भेजी हैं.
उन्होंने कहा, "इस गणतंत्र की स्थापना एक नई शुरुआत है. हमारे अंधियारे भूतकाल से, इतिहास पर धब्बे के रूप में मौजूद दासता की दर्दनाक यातनाओं से निकलकर देश के लोगों ने बेमिसाल ताकत के साथ अपना रास्ता बनाया है.”
55 साल पहले हुआ आजाद
ब्रिटेन की महारानी एलिजेबेथ द्वितीय अब भी 15 देशों की राष्ट्राध्यक्ष हैं. इनमें युनाइटेड किंग्डम के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जमैका शामिल हैं. बार्बाडोस ने महारानी को राष्ट्राध्यक्ष के पद से हटाकर नई शुरुआत की है. उनकी जगह अब सैंड्रा मेसन देश की राष्ट्रपति होंगी.
इस मौके पर सांस्कृति कार्यक्रम और भाषण तो हुए ही, बार्बाडियन गायिका रिहाना को राष्ट्रनायक भी घोषित को घोषित किया गया. बार्बाडोस में 1625 में एक ब्रिटिश जहाज पहुंचा था और उसने किंग जेम्स 1 के क्षेत्र घोषित कर दिया था. उसके बाद सैकड़ों साल तक यह देश अंग्रेजों का गुलाम रहा और 55 साल पहले आजादी का ऐलान किया. लेकिन महारानी तब भी देश की राष्ट्राध्यक्ष बनी रही.
बार्बाडोस की तरह अन्य देशों में भी इस तरह की बहस होती रहती है कि महारानी को वहां का राष्ट्राध्यक्ष होना चाहिए या नहीं. बार्बाडोस को गणतंत्र घोषित करने के अभियान का नेतृत्व करने वालीं प्रधानमंत्री मिया मोटली ने इस समारोह का नेतृत्व किया. देश के एक कवि विंस्टन फैरल ने समारोह में कहा, "अब हमारा वक्त है. गन्ने के खेतों से निकलकर हम अपने इतिहास पर दावा कर रहे हैं.”
ब्रिजटाउन में एक नागरिक रास बिंगी ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं. मैं शराब और सिगरेट के धुएं के साथ नए गणतंत्र को सलामी दूंगा.”
दासता का इतिहास
प्रिंस चार्ल्स ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि इंग्लैंड का इतिहास दासता से दागी है लेकिन दोनों देशों के बीच मौजूदा दौर में अच्छे रिश्ते रहे हैं. ब्रिटेन गुलामी को बीते समय का पाप बताता है लेकिन कुछ लोग मुआवजे की मांग भी करते हैं.
बार्बाडोस में 1627 से 1833 के बीच छह लाख से ज्यादा लोग गुलाम बनाकर लाए गए थे. इन गुलामों से गन्ने के खेतों में काम कराया गया जिससे अंग्रेज जमींदारों ने भारी मुनाफा कमाया.
कार्यकर्ता डेविड डेनी ने गणतंत्रता दिवस का जश्न तो मनाया लेकिन इस मौके पर प्रिंस चार्ल्स को बुलाए जाने से वह खुश नहीं थे. उन्होंने कहा कि शाही परिवार ने सदियों तक गुलामों की बिक्री से लाभ उठाया है. डेनी ने कहा, "हमारा आंदोलन चाहता है कि शाही परिवार मुआवजा दे.”
बार्बाडोस कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रहेगा, जो उन 54 देशों का समूह है जिन पर ब्रिटिश शाही परिवार ने शासन किया है. इनमें अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप और एशिया के देश शामिल हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)