राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 10 जुलाई | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई को मंत्रिपरिषद के साथ बैठक की अध्यक्षता कर सकते हैं, जिसमें चल रहे कोविड -19 संकट के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री प्रत्येक मंत्री से उनके भविष्य के रोडमैप के बारे में एक संक्षिप्त योजना लेंगे, जिससे कोविड -19 महामारी के कारण संकट का प्रबंधन किया जा सके। महामारी ने अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों, विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र और अन्य मामलों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
इस बैठक में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जैसे प्रमुख मंत्रालयों से संबंधित कई उल्लेखनीय मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है, जिसे अब मनसुख मंडाविया द्वारा संभाला जा रहा है। धर्मेद्र प्रधान को शिक्षा मंत्रालय का प्रभार मिला है।
मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद यह इस तरह की दूसरी बैठक होगी।
केंद्र सरकार में बड़े फेरबदल के एक दिन बाद गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद की बैठक हुई थी।
फेरबदल और विस्तार की कवायद के बाद प्रधानमंत्री के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ-साथ मंत्रिपरिषद की बैठकें बुलाना आम बात है।
बुधवार की कवायद में 36 नए मंत्रियों को शामिल किया गया और सात पुराने मंत्रियों को पदोन्नति दी गई थी। (आईएएनएस)
पटना, 10 जुलाई | बिहार के पुलिसकर्मी मापदंडों के मुताबिक अगर अब वर्दी नहीं पहनेंगे तो अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। पुलिस मुख्यालय द्वारा इसके लिए एक आदेश निकाला गया है। पुलिस महानिदेशक एस के सिंघल द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि कई मामलों में देखा गया है कि कर्तव्य अवधि के दौरान पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मी वर्दी के बजाय अन्य परिधानों में होते हैं। यही नहीं वर्दी धारण करने का तरीका एवं उसका रखरखाव भी निर्धारित मापदंडों के मुताबिक नहीं होता है।
ऐसा करने से न केवल वर्दी के प्रति असम्मान प्रतीत होता है बल्कि आमजनों में पुलिस की छवि भी धूमिल होती है। ऐसे में बेहतर पुलिसिंग में वर्दी के महत्व देखते हुए सरकार द्वारा पुलिस बल के सभी अधिकारी और कर्मी को कर्तवय अवधि के दौरान वर्दी पहनने का निर्देश दिया गया है।
आदेश में कहा गया है जिन कार्यालयों में वर्दी पहनने की बाध्यता नहीं है वहां भी परिधान मर्यादित एवं कार्यालय के अनुरूप होने के निर्देश दिए गए हैं।
वरीय अधिकारियों को भी स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि वे समय-समय पर थानों और प्रतिनियुक्त स्थलों पर जाकर औचक निरीक्षण करें। औचक निरीक्षण के दौरान निर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया गया है।
पुलिस महानिदेषक द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि वर्दी पुलिस सेवा से जुड़े कर्मिकों को विशिष्ट पहचान कराता है। साफ-सुथरा और तरीके से पहनी गई वर्दी पुलिसकर्मी की आमजनों के बीच एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत करता है तथा अनुशासन के प्रति प्रतिबद्घता को भी दर्शाता है। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 9 जुलाई | यहां के सरकारी टीआईएमएस अस्पताल में काम करने वाले एक दंपति को कोविड मरीजों को लूटने और अस्पताल में कोविड पीड़ितों से कीमती सामान लूटने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। साइबराबाद पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि इस सिलसिले में सात मामलों में पति-पत्नी चिंतालपल्ली राजू और लताश्री के पास से 10 लाख रुपये का चोरी का सामान बरामद किया गया है।
पुलिस ने बताया कि बरामद सामानों में 16 तोला सोने के गहने और 80 तोला चांदी की पायल शामिल हैं।
सात मामलों में इलाज के दौरान मरने वाले तीन मरीजों के शरीर से सोने के गहने चोरी करने वाले तीन मामले शामिल हैं, जबकि चार मामले उन मरीजों को लूटने से जुड़े हैं जो होश में नहीं थे।
गुप्त सूचना के आधार पर आरोपियों को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे चोरी के जेवर बेचने की कोशिश कर रहे थे।
माधापुर के डीसीपी एम. वेंकटेश्वरू ने बताया कि पूछताछ करने पर दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया।
अस्पताल से चोरी की घटनाओं में वृद्धि के बाद, पुलिस ने निगरानी तेज कर दी थी। दोनों को न्यायिक रिमांड पर भेज दिया गया है।(आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 10 जुलाई | ओडिशा के जाजपुर जिले में एक दुखद घटना में एक महिला की सर्पदंश से मौत हो गई, लेकिन सर्पदंश से पहले उसने अपने बेटे को बचा लिया। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
मृतक महिला की पहचान जाजपुर जिले के दशरथपुर प्रखंड के देउलाबाद गांव की प्रियदर्शिनी राउत के रूप में हुई है।
ग्रामीणों ने बताया कि प्रियदर्शिनी की गुरुवार दोपहर अपने बेटे को बचाने के दौरान जहरीले सांप के काटने से मौत हो गई।
घटना उस वक्त हुई जब गुरुवार दोपहर करीब तीन बजे प्रियदर्शिनी अपने ढाई साल के बेटे को सुला रही थी। उसी समय, उसने एक कोबरा को अपने बेटे के पास आते देखा। उसने तुरंत सांप को पकड़ लिया, लेकिन सांप ने उसके दाहिने हाथ पर काट लिया।
प्रियदर्शिनी को जाजपुर के जिला अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बाद में स्थानीय सांप हेल्पलाइन के सदस्यों ने इलाके से कोबरा को बचाया।
प्रभारी निरीक्षक मानस रंजन चक्र ने कहा कि अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज कर लिया गया है और शुक्रवार सुबह पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार को सौंप दिया गया है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को हकीकत में बदलने की जरूरत है, ताकि आधुनिक भारत के युवा जो कि विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मों से संबंध रखते हैं और अपनी इच्छा से विवाह करना चाहते हैं, उन्हें विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सामना न करना पड़े। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि आर्टिकल 44 में जिस समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड की उम्मीद जताई गई है, अब उसे हकीकत में बदलना चाहिए, क्योंकि यह नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करेगा और अब यह मात्र आशा नहीं रहनी चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह की एकल पीठ ने कहा, अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर दोहराया गया है।
अदालत ने कहा कि ऐसा नागरिक संहिता सभी के लिए समान होगा और विवाह, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम होगा। कोर्ट ने कहा कि यह समाज के भीतर विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों से उत्पन्न होने वाले संघर्षों और अंतर्विरोधों को कम करेगा।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए अनुच्छेद 44 के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि अदालतों को बार-बार व्यक्तिगत कानूनों में उत्पन्न होने वाले संघर्षों का सामना करना पड़ता है और विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के व्यक्ति, जो वैवाहिक बंधन में बंधते हैं, ऐसे संघर्षों से जूझते हैं।
उन्होंने उद्धृत किया कि शीर्ष अदालत ने 1985 के अपने फैसले में, एकरूपता लाने और इन संघर्षों को खत्म करने की आशा व्यक्त करते हुए कहा था, यह भी खेद की बात है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बना हुआ है। यह प्रदान करता है कि राष्ट्र भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
अदालत ने कहा कि किसी भी समुदाय से इस मुद्दे पर अनावश्यक रियायतों के साथ बिल्ली के गले में घंटी बजाने जैसी संभावना नहीं दिखती है। यह स्टेट ही है, जिस पर देश के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता हासिल करने का कर्तव्य है और निस्संदेह, उसके पास ऐसा करने की विधायी क्षमता है।
बता दें कि काफी समय से समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसे लेकर अब शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड आवश्यक है।
समान नागरिक संहिता की पैरवी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिटती जा रही है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने अपने फैसले में कहा कि आज का भारत धर्म, जाति, समुदाय से ऊपर उठ चुका है। आधुनिक हिंदुस्तान में धर्म-जाति की बाधाएं भी खत्म हो रही हैं। इस बदलाव की वजह से शादी और तलाक में दिक्कत भी आ रही है। आज की युवा पीढ़ी इन दिक्कतों से जूझे यह सही नहीं है। इसी के चलते देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू होना चाहिए।
शीर्ष अदालत के 1985 के फैसले का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि तब से तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है और यह स्पष्ट नहीं है कि यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
अदालत ने कहा, तदनुसार, वर्तमान फैसले की प्रति सचिव, कानून और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए।
उच्च न्यायालय ने एक निचली अदालत के एक आदेश को खारिज करते हुए उक्त बातें कही।
दरअसल अदालत जब तलाक के एक मामले में सुनवाई कर रही थी तो उसके सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि तलाक पर फैसला हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक दिया जाए या फिर मीना जनजाति के नियम के तहत।
इस मामले में पति हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार तलाक चाहता था, जबकि पत्नी चाहती थी कि वो मीना जनजाति से आती है तो उसके अनुसार ही तलाक हो, क्योंकि उस पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता।
इसलिए वह चाहती थी कि पति द्वारा फैमिली कोर्ट में दाखिल तलाक की अर्जी खारिज की जाए। पत्नी की इस याचिका के बाद पति ने हाईकोर्ट में उसकी दलील के खिलाफ याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने पति की अपील को स्वीकार किया और यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की जरूरत महसूस करते हुए उपरोक्त बातें कहीं।(आईएएनएस)
धर्मशाला, 9 जुलाई | कोरोना की दूसरी लहर के कहर ढाने के बाद नियमों में कुछ छूट दी गई तो उत्तर भारत में मैदानी इलाकों के लोग पहाड़ों की तरफ रुख करने लगे हैं। हालांकि वह फुर्सत के लम्हें बिताने के बीच कोरोना नियमों को भूल गए हैं और अधिकतर सैलानी बिना मास्क और सामाजिक दूरी के नियमों को ताक पर रखे हुए दिखाई दिए हैं। इस बीच हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के मैक्लोडगंज हिल स्टेशन पर फिल्माई गई एक वीडियो ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है, क्योंकि वीडियो में एक झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाला बच्चा बिना मास्क घूम रहे सैलानियों को मास्क पहनने को कहता दिखाई दे रहा है। यह बच्चा एक प्लास्टिक का डंडा लेकर सैलानियों से सख्ती से मास्क के बारे में पूछता दिखाई दे रहा है कि आपका मास्क कहां है?
पांच वर्षीय अमित का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने भी बच्चे को सम्मानित किया है और उसका हौसला बढ़ाया है। यही नहीं छुट्टी मनाने पहाड़ों पर आने वाले लोगों को जागरूक करने के लिए उसे जागरूकता प्रहरी बनाया है।
मैदानी इलाकों में गर्मी बढ़ने के बाद राज्य में पर्यटकों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी जा रही है, जिससे डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि उनका कोविड-अनुचित व्यवहार महामारी की तीसरी लहर को ट्रिगर कर सकता है।
इस बीच लापरवाह लोगों को जागरूक करने का बीड़ा यह गरीब बच्चा अमित उठाता है, जिसके माता-पिता गुब्बारे बेचकर अपनी आजीविका कमाते हैं। मैक्लोडगंज के पास भागसूनाग की गलियों में एक वीडियो में वह लोगों को प्लास्टिक की छड़ी से इशारा करके मास्क पहनने के लिए कहता दिखाई देता है।
जब वीडियो वायरल हुआ, तो स्थानीय पुलिस भी अमित से प्रभावित हुई और उसे भोजन और कपड़े प्रदान किए। एक तस्वीर में एक नई हिमाचली टोपी और कपड़े पहने हुए वह पुलिस वाहन पर बैठा दिखाई दिया है, जो कि अब कोविड-उपयुक्त व्यवहार का नया शुभंकर यानी जागरूकता प्रहरी बन गया है।
इंस्टाग्राम पर शेयर किए गए वीडियो के कैप्शन में लिखा है, इस नन्हे बच्चे को धर्मशाला की सड़कों पर लोगों से मास्क पहनने के लिए कहते देखा गया। उसके पास पहनने के लिए जूते भी नहीं हैं। इन लोगों के मुस्कुराते चेहरों को देखिए। यहां कौन पढ़ा-लिखा है और कौन अशिक्षित?
वीडियो में अमित खुद एक मास्क पहने हुए दिखाई दे रहा है और अपने पास से गुजरने वाले उन सभी लोगों को टोकते हुए पूछ रहा है, तुम्हारा मास्क कहां है? (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष केंद्र के नए आईटी नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कार्यवाही की बहुलता का हवाला देते हुए केंद्र ने सभी याचिकाओं को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था। दिल्ली, बंबई, मद्रास और केरल उच्च न्यायालयों सहित कई उच्च न्यायालय आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं।
केंद्र ने अपनी याचिका में कहा, ओटीटी प्लेटफॉर्म को विनियमित करने का मुद्दा शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और संजीव खन्ना ने इस तरह के सभी मामलों को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका को जस्टिस फॉर राइट्स फाउंडेशन द्वारा दायर एक अपील के साथ टैग किया, जो अदालत के समक्ष लंबित है।
पीठ ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाने का निर्देश देने से भी इनकार कर दिया।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष आईटी नियमों को चुनौती देने वाले मामले लंबित हैं। पीठ ने जवाब दिया, हम एक लंबित एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) के साथ टैग करेंगे। पीठ ने कार्यवाही पर रोक लगाने के केंद्र के अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया।
पीठ ने कहा, हम आज उस आदेश को पारित नहीं करेंगे। हम सिर्फ 16 जुलाई को उपयुक्त पीठ के समक्ष टैगिंग और सूची कर रहे हैं। इसके बाद बेंच ने स्थानांतरण याचिका को स्पेशल लीव पिटीशन के साथ टैग किया और 16 जुलाई के लिए उपयुक्त बेंच के सामने भेजा है।
केंद्र ने अपनी याचिका में कहा कि सभी याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने से नए आईटी नियमों की वैधता पर व्यापकता, कार्यवाही की बहुलता और अलग-अलग न्यायिक विचारों से बचा जा सकेगा।
केंद्र ने तर्क दिया कि यदि व्यक्तिगत याचिकाओं पर उच्च न्यायालयों द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्णय लिया जाता है, तो इसका परिणाम उच्च न्यायालय और इस अदालत के निर्णयों के बीच संघर्ष की संभावना में हो सकता है।
केंद्र ने प्रस्तुत किया, याचिकाकर्ता द्वारा उक्त नियमों को पहले ही इस अदालत के रिकॉर्ड में रखा जा चुका है और उनकी पर्याप्तता, वैधता और अन्य संबंधित मुद्दे इस अदालत के समक्ष विचाराधीन हैं।
आईटी नियमों को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह सरकार को डिजिटल समाचार पोर्टलों पर सामग्री को वर्चुअली निर्देशित करने में सक्षम बनाता है। (आईएएनएस)
हरियाणा में महापंचायतें आयोजित की जा रही हैं, जिनमें मुस्लिम-विरोधी भड़काऊ भाषण दिए जा रहे हैं. सवाल उठ रहे हैं की पुलिस और प्रशासन इन महापंचायतों और उनमें दिए गए भड़काऊ भाषणों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
हरियाणा में अभी तक ऐसी दो महापंचायतें हो चुकी हैं. पहली 30 मई को नूह में हुई थी और दूसरी चार जुलाई को पटौदी में. दोनों इलाके दिल्ली से लगभग दो-ढाई घंटों की दूरी पर स्थित हैं दोनों में हरियाणा के बाकी हिस्सों के मुकाबले मुस्लिम आबादी ज्यादा है. नूह तो मेवात के ऐतिहासिक इलाके का हिस्सा है जो हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है. दोनों महापंचायतों में कई हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया और विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए. भाषण देने वालों में हरियाणा में बीजेपी के प्रवक्ता सूरज पाल अम्मु भी शामिल हैं.
इन भाषणों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. कई वीडियो तो खुद भाषण देने वालों ने सोशल मीडिया पर डाले हैं. नूह में हुई पहली महापंचायत में 16 मई को नूह में कुछ लोगों द्बारा पीट पीट कर मारे गए जिम प्रशिक्षक आसिफ की हत्या के आरोपियों के समर्थन में भाषण दिए गए. पटौदी वाली महापंचायत में "लव-जिहाद", "बाजार-जिहाद", "जमीन-जिहाद" जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ और मुसलमानों पर तरह तरह के आरोप लगाए गए. सूरज पल अम्मू ने नूह में दिए अपने भाषण का वीडियो खुद फेसबुक पर लगाया था, जिसमें वो कहते हुए नजर आ रहे हैं, "कहा जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई. किसके भाई? ये भाई नहीं, कसाई हैं...हम इन्हें गोली मार देंगे."
जामिया में गोली चलाने वाला
यह वीडियो उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर से हटा दिया है, लेकिन यह सोशल मीडिया पर आज भी मौजूद है. पटौदी महापंचायत में कई और वक्ताओं के अलावा अम्मु ने फिर से भड़काऊ भाषण दिए. इस भाषण के वीडियो भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. इनमें से एक वीडियो में वो कह रहे हैं, "इन पाकिस्तानी कुत्तों को हम मकान किराए पर नहीं देंगे इस प्रस्ताव पर मुझे आपत्ति है...इन हरामजादों को देश से बाहर निकालो यह प्रस्ताव पास होना चाहिए."
इस महापंचायत में भाषण देने वालों में रामभक्त गोपाल भी शामिल थे जिसने जनवरी 2020 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बाहर नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर गोली चलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया था. गोपाल के भी वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. उनमें से एक में वो, "जब मुल्ले काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे" का नारा लगा रहे हैं.
बताया जा रहा है कि रामभक्त गोपाल नूह महापंचायत में भी मौजूद थे और उन्होंने वहां भी भड़काऊ भाषण दिए थे.
लेकिन नूह और पटौदी दोनों ही जगह पुलिस ने इन भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं की है. मानेसर के डीसीपी ने मीडिया को बताया कि उन्हें इस महापंचायत की पहले से सूचना थी और महापंचायत के समय वहां पुलिस तैनात थी. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि महापंचायत में 500-600 लोगों ने हिस्सा लिया था और कई भाषण दिए गए थे. जब पूछा गया कि भाषणों के खिलाफ उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, तो उन्होंने कहा कि अभी तक उन्हें कोई शिकायत नहीं मिली है.
आखिर ध्रुवीकरण क्यों
स्थानीय मीडिया में आई खबरों में दावा किया गया है कि इन दो महापंचायतों के अलावा इससे छोटे स्तर पर इन इलाकों में कई पंचायतें हो चुकी हैं और आने वाले दिनों में और भी महापंचायतें आयोजित करने की योजना है. स्थानीय पत्रकार मनदीप पुनिया ने बताया कि पटौदी में घोषणा की गई कि अगली महापंचायत यहां से 25 किलोमीटर दूर रेवाड़ी में बुलाई जाएगी. उसके बाद वहां से करीब 55 किलोमीटर और आगे महेंद्रगढ़ में भी एक महापंचायत बुलाए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है.
इन महापंचायतों और इनमें दिए जाने वाले मुस्लिम-विरोधी भाषणों को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है. हरियाणा में विधान सभा चुनावों में अभी तीन साल बाकी हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 2022 में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. जानकारों का मानना है कि संभव है कि इस तरह के आयोजनों के जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही हो. मेवात इलाके में उत्तर प्रदेश का मथुरा और उसके आस-पास के इलाके भी आते हैं. उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मानते हैं कि इन महापंचायतों का उत्तर प्रदेश चुनावों से संबंध हो यह मानने के पुख्ता कारण हैं.
वो बताते हैं कि इस समय बीजेपी का पूरा का पूरा चुनावी अभियान साम्प्रदायिक लाइनों पर ही चल रहा है और इससे पार्टी का एक उद्देश्य यह भी है कि धर्म के बैनर तले सभी जातियों को एक साथ लाया जा सके. उत्तर प्रदेश में 2012-13 में व्यापक रूप से सिर्फ ध्रुवीकरण ही नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक हिंसा भी हुई थी. विशेष रूप से मेरठ, मुजफ्फरनगर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य इलाकों में दंगे भड़क उठे थे. 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे और 50,000 से भी ज्यादा लोग बेघर हो गए थे.
2013 फिर से?
दंगों के पहले हरियाणा की इन महापंचायतों की तरह ही उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की महापंचायतें बुलाई गई थीं और इसी तरह के भाषण दिए गए थे. दंगों के बाद 2014 के लोक सभा चुनावों में बीजेपी को प्रदेश की 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई. फिर 2017 में विधान सभा चुनावों में भी पार्टी ने जीत हासिल कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई. प्रधान कहते हैं कि इस बार नए कृषि कानूनों और किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों के बीच बीजेपी के खिलाफ बहुत गुस्सा है.
उनका मानना है कि चूंकि पिछली बार की तरह इस बार यहां साम्प्रदायिक चिंगारी भड़काना मुश्किल है, इसलिए संभव है कि बीजेपी ने सोचा हो कि यह काम हरियाणा से किया जाए. उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के और भी संकेत मिल रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और न्यूजलॉन्ड्री के सम्पादक अतुल चौरसिया ने बताया कि प्रदेश में कथित जबरन धर्मांतरण के कुछ मामलों में पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते द्वारा जांच शुरू करा के "लव-जिहाद" की साजिश को हवा दी जा रही है. अतुल मानते हैं कि यह भी ध्रुवीकरण कराने की ही एक कोशिश हो सकती है.
इसके अलावा मई में बाराबंकी में स्थनीज़ा प्रशासन द्वारा दशकों पुरानी एक मस्जिद के तोड़ दिए जाने को भी ध्रुवीकरण के ही एक हथकंडे के रूप में देखा गया था. हालांकि कई जानकारों का यह भी मानना है कि उत्तर प्रदेश में इस समय बीजेपी की रणनीति अलग अलग जातियों को अपने बैनर तले लाने पर केंद्रित है. लेखक और राजनीतिक विश्लेषक बद्री नारायण ने डीडब्ल्यू से कहा कि इस समय बीजपी उत्तर प्रदेश में "अलग अलग सामाजिक समूहों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है."
उत्तर प्रदेश में जैसे जैसे चुनाव और करीब आते जाएंगे, पार्टियां अपने समर्थकों की लामबंदी के लिए तरह तरह के रास्ते अपनाएंगी. देखना होगा कि हरियाणा में आने वाले दिनों में इस तरह की और महापंचायतें होती हैं या नहीं और पिछली महापंचायतों में जो भाषण दिए गए हैं उन पर पुलिस कोई कार्रवाई करती है या नहीं. (dw.com)
यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि बेलारूस से यूरोपीय संघ में बड़ी संख्या में अवैध प्रवास के मामले सामने आते हैं. लिथुआनिया का कहना है कि प्रतिबंधों के जवाब में बेलारूस यूरोपीय ब्लॉक को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.
लिथुआनिया की प्रधानमंत्री इनग्रिडा शिमोनाइट ने बुधवार को घोषणा की कि उनकी सरकार लिथुआनिया और बेलारूस को अलग करने वाली सीमा पर एक अतिरिक्त अवरोध का निर्माण करेगी. उन्होंने यह भी कहा कि पड़ोसी देश बेलारूस से आने वाले लोगों की निगरानी के लिए इस सीमा पर सैनिक भी तैनात किए जाएंगे. हालांकि प्रधानमंत्री शिमोनाइट ने कुछ समय पहले इस योजना को "समय की बर्बादी" कहा था.
पूर्व सोवियत संघ के ये दोनों देश एक-दूसरे से 678 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं और इस सीमा की बाड़बंदी पर करीब डेढ़ करोड़ यूरो का खर्च आएगा.
इस अचानक हृदय परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह पिछले कुछ हफ्तों में बड़ी संख्या में सीमा पार करके आने वाले प्रवासी हैं. यह सीमा यूरोपीय संघ की बाहरी सीमा है. यूरोपीय संघ के अधिकारियों का मानना है कि बेलारूस, चुनाव में धांधली और मानवाधिकार हनन समेत कई मुद्दों पर पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों का बदला लेना चाह रहा है.
लिथुआनिया की सरकार का कहना है कि साल 2021 के पहले छह महीनों में अवैध रूप से सीमा पार करने के 1300 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जबकि साल 2020 में यह संख्या सिर्फ 81 थी.
राजनीतिक हथियार के तौर पर प्रवासियों का इस्तेमाल?
शिमोलाइट कहती हैं, "हम इस प्रक्रिया का आकलन हाइब्रिड आक्रामकता के रूप में करते हैं, जो लिथुआनिया के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे यूरोपीय संघ के खिलाफ है. प्रतिबंधों की वजह झूठे चुनाव परिणाम, नागरिक समाज के दमन और मानवाधिकार हनन थे."
मंगलवार को बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जेंडर लुकाशेंको ने धमकी दी थी कि युद्धग्रस्त देशों के प्रवासियों को यूरोपीय संघ में बिना किसी बाधा के प्रवेश करने दिया जाएगा. लिथुआनिया में प्रवेश करने वाले ज्यादातर प्रवासी अफगानिस्तान, इराक और सीरिया के हैं.
शिमोनाइट कहती हैं, "बेलारूसी शासन एजेंसियां अवैध प्रवासियों के प्रवाह को जारी रखने में सक्रिय और निष्क्रिय रूप से शामिल हैं. सीमा पार करने के लिए परिस्थितियां जानबूझकर बनाई गई हैं और हमें लगता है कि इसके पीछे अन्य बातों के अलावा, हमारे राज्य को नुकसान पहुंचाने और स्थिति को अस्थिर करना ही उद्देश्य है."
हालांकि यह स्थिति नई नहीं है लेकिन हाल के हफ्तों में यह काफी ज्यादा बढ़ गई है. जून में यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन से पहले लिथुआनिया के राष्ट्रपति गितानास नौसेदा ने यूरोपीय नेताओं से कहा था कि बेलारूस तेजी से प्रवासियों को एक राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग कर रहा है.
तुर्की की क्या भूमिका है?
लिथुआनिया के विदेश मंत्री गेब्रियालियस लैंड्सबर्गिस ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने बेलारूस के दूतावास के प्रमुख को बेलारूस से लगी सीमा के पार प्रवासियों के प्रवाह को रोकने संबंधी बातचीत के लिए बुलाया था.
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि उन्होंने तुर्की के विदेश मंत्री से बेलारूस से लिथुआनिया में आने वाले प्रवासियों की पहचान करने में मदद करने के लिए कहा था. उनका कहना था, "बेलारूस से लिथुआनिया में प्रवेश करने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा तुर्की से, तुर्की एयरलाइंस के जरिए आता है. हम मानते हैं कि तुर्की उनकी पहचान जानता है. तुर्की के सहयोग से, हम उनकी पहचान और मांग को आसानी से निर्धारित कर सकते हैं."
शिमोनाइट कहती हैं, "बेलारूस की राजधानी मिन्स्क को बगदाद से जोड़ने के लिए कई ट्रैवल एजेंसीज और सीधी उड़ानें हैं. साथ ही बेलारूस और अन्य देशों में कई एजेंसियां ऐसी हैं जो पर्यटकों को बेलारूस जाने के लिए लुभाती हैं. जहाज से मिन्स्क आने वाले ज्यादातर लोग इराक की राजधानी बगदाद से ही आते हैं."
लिथुआनियाई सरकार के मुताबिक, उन्हें यह भी पता चला है कि कई प्रवासियों के पास तो सीमा पर पहुंचते वक्त बेलारूस की सरकारी हवाई कंपनी बेलाविया के बोर्डिंग कार्ड भी थे.
यूरोपीय संघ के परिवहन को अवरुद्ध करने की धमकी
लिथुआनिया की राजधानी विलनियस में सरकार अगले हफ्ते संसद का एक विशेष सत्र भी बुलाएगी, जिसमें कानून के मसौदों के अनुमोदन पर विचार किया जाएगा. ये कानून "शरणार्थियों की आवेदन प्रक्रियाओं को सरल और तेज" करेगा, क्योंकि ऐसे मामलों में वैध प्रवासियों के साथ भी कई बार दुर्व्यवहार होता है.
यूरोपीय संघ में प्रवासियों के अवैध प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के अलावा, बेलारूस के मजबूत नेता लुकाशेंको ने बेलारूस के रास्ते से जाने वाले यूरोपीय सामानों को अवरुद्ध करने की भी धमकी दी है.
साल 1994 में रूस से स्वतंत्र होने के बाद से लेकर अब तक बेलारूस पर शासन करने वाले लुकाशेंको ने दावा किया कि पिछले साल अगस्त में उनके दोबारा चुने जाने के बाद चुनाव में धांधली के आरोप लगाते हुए देश में उथल-पुथल करने की कोशिश की गई, जिसकी वजह से महीनों तक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन और सामूहिक गिरफ्तारियां हुईं. उन्होंने अपनी कार्रवाइयों पर पश्चिमी प्रतिबंधों का बार-बार विरोध किया है. (dw.com)
एसएम/आईबी (डीपीए, रॉयटर्स)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शुक्रवार को कथित रिश्वत मामले में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट (एनआईएसजी) के सहायक प्रबंधक जय प्रकाश गुप्ता को एक अन्य व्यक्ति के साथ गिरफ्तार किया। सीबीआई के एक प्रवक्ता ने कहा कि एजेंसी ने यूआईडीएआई और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट के बीच एक समझौता ज्ञापन के तहत जयपुर में यूआईडीएआई के स्टेट रिसोर्स पर्सन (एसआरपी) के रूप में कार्यरत गुप्ता और जयपुर में तंवर कम्प्लीट सर्विसेज के मालिक हेमराज तंवर को गिरफ्तार किया है।
अधिकारी ने कहा कि एजेंसी ने तंवर और दिल्ली या जयपुर में तैनात यूआईडीएआई के अज्ञात लोक सेवकों के खिलाफ एक शिकायत पर मामला दर्ज किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि निजी फर्म के मालिक ने शिकायतकर्ता से 25,000 रुपये का अनुचित लाभ की मांग की थी। जयपुर या नई दिल्ली के यूआईडीएआई के अज्ञात लोक सेवकों को शिकायतकर्ता को उसकी ऑपरेटर आईडी बहाल करने में सुविधा के लिए यह रकम मांगी गई थी, जिसे मार्च, 2021 में निलंबित कर दिया गया था।
अधिकारी ने बताया कि अधिकारी को गिरफ्त में लेने के लिए एक जाल बिछाया गया और उक्त निजी व्यक्ति को शिकायतकर्ता से 20,000 रुपये की रिश्वत की मांग करते और स्वीकार करते हुए पकड़ा गया।
अधिकारी ने कहा, जांच के दौरान गुप्ता की भूमिका भी सामने आई, जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने कहा कि एजेंसी ने दोनों आरोपियों के परिसरों की तलाशी ली है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | आयकर विभाग ने हैदराबाद स्थित एक समूह पर तलाशी एवं जब्ती अभियान चलाया। समूह रियल एस्टेट, निर्माण, अपशिष्ट प्रबंधन और इंफ्रास्ट्रक्च र क्षेत्र में कारोबार करता है। समूह के अपशिष्ट प्रबंधन का कारोबार पूरे भारत में फैला हुआ है। जबकि रियल एस्टेट गतिविधियां मुख्य रूप से हैदराबाद में केंद्रित हैं।
तलाशी और जब्ती अभियान के दौरान कई आपत्तिजनक दस्तावेज, कई सारे खुलेशीट आदि जब्त किए गए, जो बेहिसाब लेनदेन में समूह की संलिप्तता को साबित करते हैं। यह पाया गया कि समूह ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान अपनी अधिकतम हिस्सेदारी, समूह की सिंगापुर स्थित एक नॉन रेजिडेंट इकाई को बेच दी थी और बड़ी मात्रा में पूंजीगत लाभ का फायदा उठाया था।
समूह ने बाद में संबंधित पार्टियों के साथ शेयर खरीद/बिक्री/नॉन आर्म लेंथ वैल्यूड सब्सक्रिप्शनऔर बाद में बोनस जारी करने जैसी आकर्षक योजनाओं के जरिए उस लाभ को हस्तांतरित कर दिया।
उसने ऐसा कैपिटल गेन के जरिए अर्जित कमाई को नुकसान के रूप में दिखाने के लिए किया, जो आपत्तिजनक साक्ष्य/दस्तावेज बरामद किए गए हैं, वह साबित करते हैं कि संबंधित कैपिटल गेन को समायोजित करने के लिए कृत्रिम नुकासन दिखाया गया। तलाशी अभियान में लगभग 1200 करोड़ रुपये का कृत्रिम नुकसान का पता चला है, जिस पर कर की देनदारी बनती है।
इसके अलावा तलाशी के दौरान यह भी पाया गया कि समूह ने गलत तरीके से 288 करोड़ रुपये के डूबत ऋण का दावा भी किया। इसके लिए रिलिटेड पार्टी ट्रांजेक्शन के जरिए अर्जित किए गए लाभ को छुपाया गया। तलाशी के दौरान इस कृत्रिम/गलत दावे से संबंधित आपत्तिजनक दस्तावेज भी पाए गए हैं।
तलाशी की कार्रवाई में समूह के एसोसिएट्स के साथ बेहिसाब नकद लेनदेन का भी पता चला है और इसकी मात्रा और तौर-तरीकों की जांच की जा रही है।
तलाशी एवं जब्ती अभियान और विभिन्न आपत्तिजनक दस्तावेजों की प्राप्ति के आधार परसमूह की कंपनियों और उसके एसोसिएटों ने 300 करोड़ रुपये की बेहिसाब आय होने की बात स्वीकार की है। इसके अलावा समूह बकाया करों का भुगतान करने के लिए भी सहमत हुआ है। इस संबंध में आगे की जांच जारी है।(आईएएनएस)
भोपाल, 9 जुलाई | मध्य प्रदेश की कोरोना संक्रमण के कारण आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है, इसे दुरुस्त करने के राज्य सरकार के प्रयास जारी है। इसी क्रम में सरकार ने आगामी वर्ष 2022 तक सौ से अधिक खनिज ब्लाक्स की नीलामी की योजना बनाई है। केंद्रीय खनिज मंत्री प्रहलाद जोशी से प्रदेश के खनिज संबंधित विषयों पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कोविड से अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हुई है। खनिज गतिविधियां अर्थ-व्यवस्था को गति देती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत के संकल्प को पूरा करने में अधिकतम सहयोग करना हमारा संकल्प है। प्रदेश में माइनिंग गतिविधियों को गति देने के लिए हर संभव प्रयास किये जायेंगे। हमारा प्रयास होगा कि वर्ष 2022 तक प्रदेश में एक सौ से अधिक खनिज ब्लाक्स की नीलामी हो।
केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि खनिज गतिविधियां मूलभूत अर्थ-व्यवस्था में योगदान देती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा है कि आत्म-निर्भर भारत के निर्माण के लिए खनिज क्षेत्र में प्रक्रियाओं को सरलीकृत कर खनिज ब्लाक्स की नीलामी में तेजी लाई जाए। इसके लिये विभिन्न कानूनों में आवश्यक सुधार भी किया गया है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के अंतर्गत कार्यवाही जारी है।
मुख्यमंत्री चैहान ने कहा कि प्रदेश में कोयले के भंडार प्रचुर मात्रा में हैं। प्रदेश में कोयला खनन का कार्य भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। मध्यप्रदेश में इन कंपनियों को कोल गैसीफिकेशन और लिक्विडिफिकेशन के लिए कार्य करने के निर्देश दिए जाएं। इससे पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा के स्रोत को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग द्वारा बैतूल और छतरपुर जिले में दुर्लभ खनिजों की खोज के लिए सर्वे जारी है। यह कार्य समय-सीमा में पूर्ण किया जाये।
बैठक में जानकारी दी गई कि प्रदेश में मुख्य खनिज की 831 खदानों से वर्ष 2020-21 में 2908 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। गौण खनिज की 6338 खदानों से वर्ष 2020-21 में 1538 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। आगामी वर्षों में नीलाम होने वाले खनिज ब्लाक्स से 50 साल तक लगभग 30 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | विशेष एनआईए अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ दर्ज कथित भ्रष्टाचार के मामले में तलोजा जेल में बंद बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वाजे से पूछताछ करने की अनुमति दे दी है। सूत्रों ने बताया कि वित्तीय जांच एजेंसी जल्द ही मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह से भी पूछताछ करेगी। ईडी के जानकार सूत्रों के मुताबिक आने वाले दिनों में सिंह को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
इससे पहले दिन में, ईडी के अधिकारियों ने कहा कि एजेंसी शनिवार को मुंबई में जेल परिसर के अंदर वाजे से पूछताछ करेगी। गुरुवार को एक विशेष अदालत ने ईडी को वाजे के पास जाकर जेल में उसका बयान दर्ज करने की अनुमति दी थी।
19 मई को, वाजे ने ईडी से दावा किया था कि उसने दिसंबर 2020-फरवरी 2021 के बीच मुंबई में बार से कथित तौर पर देशमुख के आदेश पर 4.70 करोड़ रुपये जमा किए थे।
वाजे ने कहा कि बाद में उन्होंने पूर्व मंत्री के पीए कुंदन शिंदे (जो अब इसी मामले में गिरफ्तार हैं) उनको एक अन्य पीए संजीव पलांडे के साथ राशि सौंप दी थी।
वहीं ईडी ने कहा कि शिंदे ने वाजे को जानने से इनकार किया है और जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। हालांकि वह और पलांडे दोनों सीधे अपराध में शामिल थे।
देशमुख, जिन्हें अपने खिलाफ आरोपों के कारण पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, वो हाल ही में पूछताछ के लिए ईडी के तीन समन पर पेश नहीं हुए और किसी भी कठोर कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
वाजे को उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास 20 जिलेटिन स्टिक और धमकी भरे नोट के साथ एक एसयूवी खड़ी करने और उसके बाद वाहन मालिक मनसुख हिरन की मौत के सनसनीखेज मामले में गिरफ्तार किया गया था।
बाद में, वाजे ने एक नोट लिखा जिसमें आरोप लगाया गया कि देशमुख ने उन्हें सेवा में बहाल करने के लिए 2 करोड़ रुपये की मांग की थी और मुंबई में होटल व्यवसायियों और बार से प्रति माह 100 करोड़ रुपये जमा करने का लक्ष्य रखा था।
उन्होंने शिवसेना के परिवहन मंत्री अनिल परब पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि ठेकेदारों से पैसे लेने को भी कहा गया था।
देशमुख और परब दोनों ने इन आरोपों का खंडन किया है और इसे महाविकास अघाड़ी सरकार की छवि को खराब करने और उन्हें बदनाम करने की विपक्षी भारतीय जनता पार्टी की रणनीति करार दिया है। (आईएएनएस)
लखनऊ : यूपी के चंदौली में दलितों पर दबंगई का मामला सामने आया है. दबंगों पर लाठी-डंडे से लैस होकर दलित बस्ती पर हमला बोलने का आरोप है. आरोपियों ने दलितों की झोपड़ियां जला दीं, महिलाओं के साथ बदलसलूकी की और जमकर तांडव मचाया. इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. दरअसल, जमीन विवाद में क्षत्रिय दबंगों ने तांडव मचाया. यह घटना सदर कोतवाली के बर्थरा कला गांव में हुई है. इस मामले में सदर कोतवाली पुलिस भी मामले की खाना-पूर्ति में जुटी है. दोनों पक्षों से कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की याचिका ठुकरा दी है. उच्चतम न्यायालय ने जाति आधारित आरक्षण को खत्म करने के लिए समयसीमा तय करने की याचिका पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वो इस पर सुनवाई नहीं करेगा.याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट जाति आधारित आरक्षण को खत्म करने की समय सीमा तय करे. सुप्रीम कोर्ट की एकल पीठ ने भी यही फैसला दिया था. लेकिन खंडपीठ ने कहा कि वो एक जज का फैसला था, पूरी पीठ का नहीं.
नीति सलाहकार कंपनी डलबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि महामारी के दौरान भारत में महिलाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. बिना पैसा दिए उनसे काम कराया गया. यहां तक कि वे भरपेट खाना भी नहीं खा सकीं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
भारत की केंद्र सरकार ने मंत्रिमंडल में में हुए बदलाव के बाद केंद्र सरकार में महिला मंत्रियों की संख्या बढ़कर 11 हो गई. स्थानीय मीडिया में इसकी काफी चर्चा हुई और सोशल मीडिया पर भी सभी महिला मंत्रियों की एक-साथ ली गई तस्वीर शेयर की जाती रही. इस तस्वीर के जरिए भारत में महिलाओं की स्थिति मजबूत होने का दावा किया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि कोरोना काल में भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब हुई है. नीति सलाहकार कंपनी डलबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि महामारी के दौरान भारत में महिलाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. बिना पैसा दिए उनसे काम कराया गया. यहां तक कि वे भरपेट खाना भी नहीं खा सकीं.
यह रिपोर्ट पिछले साल मार्च से अक्टूबर के बीच 15 हजार महिलाओं से बात कर तैयार की गई है. इसमें कहा गया है कि कम कमाई वाले घरों में महिलाओं के लिए संसाधनों और सुविधाओं तक पहुंच में कमी आई है. रिपोर्ट के मुताबिक हर 10 में से 1 महिला को इस दौरान भूखा रहना पड़ा है. जबकि 16 फीसदी के लिए सैनिटरी नैपकिन और जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मुश्किल हो गई. हालात खराब होने का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि 2019 में ही राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के आंकड़ों में बताया जा चुका था कि भारत में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा ऐसा घरेलू काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है.
हिंसा, शोषण और मैरिटल रेप की घटनाएं बढ़ीं
इस दौरान महिलाओं पर हिंसा और शोषण में भी बढ़ोतरी हुई है और मैरिटल रेप की शिकायतें बढ़ी हैं. प्रताड़ना और शोषण के खिलाफ महिलाओं की मदद के लिए लखनऊ में 'सुरक्षा' नाम की संस्था चलाने वाली डॉ स्वर्णिमा सिंह बताती हैं, "कोरोना काल में महिलाओं के प्रति हिंसा के दोगुने से ज्यादा मामले हमारे पास आ रहे हैं. इनमें आर्थिक वजह सबसे महत्वपूर्ण है. लेकिन एक महत्वपूर्ण वजह पुरुषों के गैरकानूनी संबंध भी हैं. कई पुरुष जिनके अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला से संबंध थे, उनका खुलासा इस दौरान हुआ क्योंकि वे लगातार घर पर रहे."
महिलाएं छोटी नौकरियां या ब्यूटी पार्लर जैसे छोटे बिजनेस करके घर का खर्च चलाने में मदद करती थीं लेकिन कोरोना काल में वे बेरोजगार हो गईं. ऐसे हालात में अगर पति की भी नौकरी छूटी तो बच्चों की फीस का इंतजाम मुश्किल हो गया. डॉ स्वर्णिमा सिंह बताती हैं, "ऐसे ही एक मामले में फीस न भरने पर बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया. इसके बाद पति ने पत्नी के साथ मारपीट शुरू कर दी. हाल ही में यह मामला हमारे पास आया है. कोरोना काल में कमाई न होने के चलते मध्यमवर्गीय परिवारों में ऐसे मामले ज्यादा आ रहे हैं."
वे कहती हैं, "दरअसल, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन, सीधी आर्थिक मदद और कुछ अन्य तरीकों से सहायता दी गई है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए ऐसी कोई कोशिश नहीं हुई है. मध्यम वर्गीय लोगों का आत्मसम्मान बहुत जल्दी आहत होता है और अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहते हैं. ऐसी हालत में कई परिवार कर्ज के बोझ तले भी दबते गए हैं, जिससे हिंसा और शोषण के मामले और बढ़े हैं."
घरेलू काम के दबाव में महिलाओं ने छोड़ी नौकरी
'नो नेशन फॉर वुमन' किताब की लेखिका प्रियंका दुबे महिलाओं पर भारी दबाव की बात कहती हैं. उनके मुताबिक, "कोरोना काल में कई वजहों से लोगों ने घरेलू सहायकों को हटाया. जिसके चलते घर के काम का सारा बोझ महिलाओं पर आ गया. बच्चों की स्कूलिंग भी एक बड़ा मसला रही. भारत में घर पर स्कूलिंग की ट्रेनिंग नहीं होती. फिर भी बच्चों को घर में स्कूलिंग देने का सारा बोझ महिलाओं पर ही आया. साथ ही सारा दिन घर पर रहने के चलते उनकी माता-पिता या सास-ससुर की देखभाल की जिम्मेदारी भी बढ़ी. सामाजिक संरचना के चलते किचन के सारे काम महिलाओं के ही माने जाते हैं. ऐसे में महिलाओं का अपना जीवन खत्म हो गया और उनके पास आराम के घंटे नहीं बचे."
महिलाओं पर महामारी के प्रभाव की जानकारी देने वाली डेलॉयट की 'विमेन एट वर्क' रिपोर्ट से यह बात साबित होती है. इसमें भारत की 78 प्रतिशत महिलाओं ने नौकरी छोड़ने की वजह घर में बढ़े काम को बताया है. जबकि 61 प्रतिशत महिलाओं ने अपने करियर को लेकर उत्साह खत्म होने और 42 प्रतिशत ने मानसिक स्वास्थ्य को काम छोड़ने की वजह बताया है. प्रियंका दुबे इसके लिए समाज की पुरुषवादी मानसिकता को जिम्मेदार मानती हैं. उनके मुताबिक "अगर किसी महिला के लिए नौकरी की परिस्थितियां मुश्किल हैं तो उसे सुविधाएं उपलब्ध कराने के बजाए, नौकरी छोड़ देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है." ऐसे में कोरोना काल में महिलाओं के नौकरी छोड़ने के लिए सुरक्षा की चिंता और यातायात सुविधाओं की कमी भी जिम्मेदार रही है.
कोरोना के दौरान महिलाओं ने खोई सालों की प्रगति
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना 'जेंडर गैप इंडेक्स 2021' रिपोर्ट में भारत 28 पायदान लुढ़क गया है. अब यह 156 देशों के बीच 140वें स्थान पर है. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाओं के अर्थव्यवस्था में योगदान और उनके लिए मौजूद अवसरों में पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत की कमी आई है और कुल लेबर फोर्स में उनका योगदान सिर्फ 22 फीसदी रह गया है. सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में महिलाओं की बेरोजगारी दर पुरुषों के मुकाबले दोगुनी (17 प्रतिशत) है. यानी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं ने कोरोना काल में नौकरियां खोई हैं. आंकड़ों के मुताबिक पहले जहां महिलाएं प्रति सप्ताह 770 रुपये कमा रही थीं, वहीं अब उनकी कमाई घटकर 180 रूपये प्रति सप्ताह रह गई है. इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि जिन महिलाओं की नौकरियां गई हैं, उनमें से ज्यादातर ने नौकरियों की तलाश ही छोड़ दी है.
प्रियंका दुबे कहती हैं, "महिलाएं अगर बाहर जाकर काम करती हैं तो उन्हें सामाजिकता का अहसास होता है और वे अपनी बातें दोस्तों से शेयर कर पाती हैं. अगर ऐसा नहीं हो पाता तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है." डॉ स्वर्णिमा सिंह भी कहती हैं, "इस दौरान महिलाओं में डिप्रेशन, एंजायटी और स्ट्रेस के मामले तेजी से बढ़े हैं. आर्थिक आजादी के छिनने से भविष्य को लेकर उनमें असुरक्षा का भाव भी बढ़ा है. एक बार नौकरी छोड़ने के बाद आप आत्मविश्वास भी खो देते हैं. ऐसे में इन महिलाओं को फिर से घरों से बाहर निकलकर काम करने का आत्मविश्वास दे पाना मुश्किल होगा."
जानकारों के मुताबिक कोरोना काल में पिछले कई सालों में महिलाओं को लेकर हुई प्रगति एक झटके में खत्म हो गई है. वे महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को चक्रीय और एक पुरुषवादी समाज का नतीजा मानते हैं और इसके समाधान के तौर पर शिक्षा की बात कहते हैं. लेकिन कोरोना काल के आंकड़े जानकारों को और डरा रहे हैं. पिछले साल के अंत में एक स्टडी में 37 प्रतिशत स्कूली बच्चियों ने कहा था कि वे निश्चित तौर पर नहीं कह सकती कि वे स्कूल लौट पाएंगीं. ऐसे में जानकारों को लड़कियों के बाल विवाह के मामले बढ़ने का भी डर है. जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) के अब तक आए आंकड़े पहले ही दिखा रहे हैं कि 2015 के बाद से भारत में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. (dw.com)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आगरा जेल में 14 से 22 साल की अवधि तक चिरकालिक अपराधियों के बीच बंद 13 कैदियों को अंतरिम जमानत दे दी, जो अपराध के समय किशोर साबित होने के बावजूद जेल हिरासत में थे। यह प्रस्तुत किया गया था कि कैदियों के अपराध करने के समय वे किशोर थे, मगर यह स्थापित करने के बावजूद उनकी रिहाई नहीं हो सकी थी।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने आरोपी को निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा, यह विवाद में नहीं है कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा 13 याचिकाकर्ताओं को किशोर के रूप में रखा गया है। व्यक्तिगत बांड पेश करके उन्हें अंतरिम जमानत दी जाए।
दोषियों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि यह अवैध हिरासत का मामला है और इससे पहले शीर्ष अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया था।
उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने प्रस्तुत किया, हमें जमानत से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन हमें सत्यापन करने की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने एक जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य की दयनीय स्थिति को उजागर करने वाली एक याचिका पर जवाब मांगा था, जहां 13 अपराधी अपराध के समय किशोर घोषित होने के बावजूद आगरा जेल में बंद हैं।
दोषियों का प्रतिनिधित्व करने वाले मल्होत्रा ने कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के अचूक फैसलों के बावजूद, जिसमें कहा गया कि उनकी आयु 18 वर्ष से कम है, फिर भी उनकी तत्काल रिहाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
याचिका में दोषियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई है, जिन्हें 14 से 22 साल की अवधि के लिए कैद किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि हालांकि अधिकांश मामलों में उनकी विभिन्न आईपीसी अपराधों के तहत दोषसिद्धि के खिलाफ वैधानिक आपराधिक अपील उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
याचिका में कहा गया है कि जेजेबी ने फरवरी 2017 और मार्च 2021 के बीच अपने आदेशों के माध्यम से स्पष्ट रूप से कहा कि कथित घटना की तारीख को ये सभी याचिकाकर्ता 18 साल से कम उम्र के थे। याचिका में कहा गया है कि संबंधित अदालत ने उन्हें किशोर घोषित किया है।
याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) (संशोधन) अधिनियम, 2006 के अनुसार, किशोर होने की याचिका मुकदमे के किसी भी चरण में और मामले के अंतिम निपटारे के बाद भी उठाई जा सकती है।
इस कानून का हवाला देते हुए, याचिका में तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता कट्टर अपराधियों के बीच जेलों में बंद हैं, जो जेजे अधिनियम के उद्देश्य और उद्देश्यों को पराजित करता है।
याचिका में तर्क दिया गया कि इन याचिकाकर्ता की तत्काल रिहाई की आवश्यकता और यह साथ ही समय की भी आवश्यकता है कि इन याचिकाकतार्ओं की तत्काल रिहाई को इस तथ्य के मद्देनजर निर्देशित किया जाए कि न केवल वे किशोर घोषित किए गए हैं, बल्कि वे पहले ही किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 16 के साथ पठित धारा 15 के तहत प्रदान की गई हिरासत की अधिकतम अवधि, अर्थात 3 वर्ष, से गुजर चुके हैं।
इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा गया कि यह अनुच्छेद जीवन व स्वतंत्रता की गारंटी देता है और याचिका में जेजे बोर्ड के आदेश के आलोक में याचिकाकर्ताओं की तत्काल रिहाई के लिए प्रार्थना की गई है। (आईएएनएस)
दुबई, 8 जुलाई | अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने गुरुवार को अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मनु साहनी को तत्काल प्रभाव से क्रिकेट की वैश्विक संस्था से हटने के लिए कहा है। आईसीसी ने यह भी बताया कि उसके कार्यकारी सीईओ जिओफ अलार्डिस आईसीसी की कार्यकारी बोर्ड के साथ करीब से काम करते रहेंगे।
क्रिकबज की रिपोर्ट के अनुसार, साहनी को हटाने का फैसला ग्रेग बारक्ले के नेतृत्व में बोर्ड की आपातकालीन बैठक में लिया।
आईसीसी ने बयान जारी कर कहा, "सीईओ साहनी को क्रिकेट की वैश्विक संस्था तत्काल प्रभाव से छोड़नी होगी। अलार्डिस कार्यकारी सीईओ के रूप में बोर्ड के साथ काम करते रहेंगे।"
आईसीसी ने निलंबित मुख्य कार्यकारी अधिकारी पर फैसला लेने के लिए बोर्ड की आपातकालीन बैठक बुलाई थी। साहनी ने विश्व संस्था पर एकतरफा, गैर-पारदर्शी और अनुचित निर्णय लेने का आरोप लगाया था।
इससे पहले, प्राइसवाटरहाउसकूपर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा की गई एक समीक्षा के बाद साहनी को इस साल मार्च में छुट्टी पर भेजा गया था, जिसमें उनपर कथित रूप से दुराचार का आरोप लगाया गया था। (आईएएनएस)
कोच्चि, 8 जुलाई (आईएएनएस)| लक्षद्वीप में रहने वालीं फिल्मी हस्ती सुल्ताना एक स्थानीय टीवी चैनल पर दिए अपनी विवादास्पद टिप्पणी के बाद से चर्चा में हैं। उन्होंने कहा था कि कवरत्ती की पांच सदस्यीय पुलिस टीम ने गुरुवार को यहां उनके फ्लैट पर छापा मारा है। अपने फ्लैट के बाहर मीडिया से बात करते हुए सुल्ताना ने कहा है कि मेरे फ्लैट में छापेमारी हुई है। इन्होंने मेरे छोटे भाई के लैपटॉप और मोबाइल को भी चेक किया है, जो 12वीं कक्षा का छात्र है।
सुल्ताना ने कहा, "मुझे इस बारे में नोटिस नहीं दिया गया था, ये यूं ही चले आए थे। मुझे पता है कि पुलिस हमें परेशान करने के लिए ये सभी हथकंडे अपना रही है। मैं इसके लिए कानून का रास्ता नहीं अपनाउंगी क्योंकि मैंने जांच के साथ हमेशा से सहयोग किया है और आगे भी करूंगी।"
बीते शुक्रवार को सुल्ताना को झटका उस वक्त लगा, जब केरल हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ कवरत्ती पुलिस द्वारा दर्ज मामले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
हालांकि कोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी है, लेकिन उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए एक नई याचिका के साथ फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया है, जिसके लिए वह पिछले महीने लक्षद्वीप पर ही थीं। वह पूछताछ के लिए पुलिस के सामने तीन दिन पेश भी हुईं।
उनकी परेशानी तब शुरू हुई, जब लक्षद्वीप की भाजपा इकाई के अध्यक्ष अब्दुल खादर ने सुल्ताना के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, क्योंकि उन्होंने 7 जून को यहां के एक टीवी चैनल की डिबेट में कहा था कि केंद्र ने लक्षद्वीप में कोविड के प्रसार के लिए जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया है। शिकायतकर्ता का मानना है कि इस तरह का बयान देने के लिए वह देशद्रोही हैं।
हालांकि सुल्ताना ने हाल ही में टीवी पर दिए अपने इस बयान के लिए माफी मांग ली है, लेकिन यहां की पुलिस ने शिकायत के आधार पर ही आगे बढ़ने का फैसला लिया है।
कवरत्ती पुलिस ने उनके खिलाफ गैर जमानती आरोप (देशद्रोह) का मामला दर्ज किया है। सुल्ताना लक्षद्वीप के चेलथ द्वीप की रहने वाली हैं। एक मॉडल होने के अलावा उन्होंने कई मलयालम फिल्मों में भी काम किया है।
मुंबई, 8 जुलाई | प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने गुरुवार को दूसरी बार पेश हुए, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे ने दावा किया है कि उनके खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें और उनके परिवार को 'राजनीतिक रूप से टारगेट' किया जा रहा है। पुणे लैंड डील से जुड़ी जांच के सिलसिले में जारी पूछताछ के लिए मुंबई में ईडी कार्यालय जाते समय उन्होंने कहा, '' मेरे खिलाफ मामला राजनीति से प्रेरित है। मुझे और मेरे परिवार के सदस्यों को बदनाम करने के लिए हमें राजनीतिक रूप से निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि, मैं जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग कर रहा हूं।''
ईडी ने 68 वर्षीय खडसे को उनके दामाद गिरीश चौधरी को 2016 में जमीन के एक भूखंड की खरीद में कथित धन शोधन और अन्य अनियमितताओं के सिलसिले में गिरफ्तार करने के एक दिन बाद तलब किया।
खडसे ने कहा, ''जो कुछ हो रहा है, पूरा महाराष्ट्र देख रहा है, क्योंकि मामले की पहले ही पांच बार जांच हो चुकी है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी, फिर भी इसकी फिर से जांच की जा रही है।''
ईडी ने तर्क दिया है कि खडसे और चौधरी ने 31 करोड़ रुपये से अधिक की मौजूदा बाजार दर के मुकाबले पुणे के पास भोसरी में सरकारी स्वामित्व वाले भूखंड को 3.75 करोड़ रुपये में खरीदा था।
एजेंसी को यह भी संदेह है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में तत्कालीन राजस्व मंत्री के रूप में खडसे ने कथित तौर पर अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए संबंधित अधिकारियों को अपने परिवार के सदस्यों के साथ लेन-देन करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने तर्क दिया कि सौदे के लिए धन का स्रोत वास्तविक नहीं था, पैसा शेल कंपनियों के जरिए भेजा गया था।
भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व वरिष्ठ नेता, खड़से को तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ राजनीतिक मतभेदों के बाद लगभग पांच वर्षों के लिए राजनीतिक एकांतवास में भेज दिया गया था और इसके बाद वह अक्टूबर 2020 में एनसीपी में शामिल हो गए।
खडसे ने ईडी कार्यालयों के बाहर मीडिया से संक्षेप में बात करते हुए कहा, '' मैंने भाजपा छोड़ दी और एनसीपी में शामिल हो गया, इसलिए मुझे इस तरह परेशान किया जा रहा है। यह एक राजनीतिक साजिश है।''
इस बीच बुधवार को पूछताछ के बाद चौधरी को विशेष अदालत में पेश किया गया, जिसने उन्हें ईडी की हिरासत में भेज दिया है। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 8 जुलाई| तेलंगाना के यादाद्री भोंगिर जिले में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। जहां एक महिला ने कथित तौर पर अपनी दो बेटियों को फांसी पर लटकाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने गुरुवार को यह जानकारी दी। तुरपुनुरी उमरानी (32) ने अपनी तीनों बेटियों हर्षिनी (13), लकी (11) और शाइनी (8) को रामनगर स्थित अपने आवास पर फांसी पर लटका दिया और फिर खुद को फांसी लगा ली। हालांकि, उसकी सबसे छोटी बेटी मौत से बच गई।
उमरानी के पति वेंकटेश, जो घर के बाहर सो रहे थे, गुरुवार की सुबह अपनी सबसे छोटी बेटी के रोने की आवाज सुन उठे। जैसे ही दरवाजा खोला, तो उसने अपनी पत्नी और दो बेटियों को लोहे के बीम से लटका हुआ पाया।
शाइनी मौत से बच गई क्योंकि उमरानी ने जिस कपड़े से उसे बीम से लटकाया था, वो फट गया।
पुलिस को शक है कि महिला ने गुरुवार तड़के अपनी बेटियों और खुद की हत्या कर दी। पुलिस उपायुक्त के. नारायण रेड्डी ने कहा कि कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है।
माना जा रहा है कि आर्थिक तंगी के चलते उसने यह कदम उठाया है। हालांकि, पुलिस अधिकारी ने कहा कि वे इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या दंपति के बीच कोई विवाद था।
इस जोड़े की शादी को 14 साल हो चुके थे। वेंकटेश आदतन शराब पीने वाला बताया जाता है। (आईएएनएस)
गांधीनगर, 8 जुलाई | गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने गुरुवार को घोषणा की कि राज्य सरकार ने अहमदाबाद रथ यात्रा मार्ग पर कर्फ्यू और 12 जुलाई को प्रसाद वितरण पर प्रतिबंध के प्रावधान के साथ अनुमति देने का फैसला किया है। जडेजा ने संवाददाताओं से कहा, "स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और गुजरात सरकार के निरंतर प्रयासों से हम राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी लाने में सफल रहे हैं। अभी ठीक होने की दर 98.54 प्रतिशत से अधिक है और संक्रमण दर 0.1 प्रतिशत है। राज्य में केवल 65 पॉजिटिव मामले थे और कल एक भी मौत की सूचना नहीं थी। पिछले 24 घंटों के दौरान, अहमदाबाद में केवल 2 पॉजिटिव मामले थे और वसूली दर 98.5 प्रतिशत थी।"
जडेजा ने कहा, "इन सभी को देखते हुए और प्राचीन अनुष्ठान को आगे बढ़ाने के लिए जनता की भावनाओं को समझते हुए, हमने इस साल की रथयात्रा के लिए सीमित तरीके से अनुमति देने का फैसला किया है।"
जडेजा ने कहा, "हालांकि, गुजरात सरकार ने अहमदाबाद रथयात्रा की अनुमति दे दी है, हम जनता से घर के अंदर रहने और इसे टेलीविजन पर देखने का अनुरोध करते हैं।"
मंत्री ने कहा, "केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सुबह मंदिर में मंगला आरती में शामिल होंगे, जबकि मुख्यमंत्री रूपाणी डिप्टी सीएम नितिन पटेल की मौजूदगी में पाहिंद समारोह करेंगे और सीमित संख्या में ही लोगों को अनुमति दी जाएगी।"
जडेजा ने बताया कि रथ यात्रा में निशान, डंका, तीन रथ और महंत/ट्रस्टी के वाहन वाले पांच वाहनों को ही शामिल होने की अनुमति होगी।
जडेजा ने कहा, "खालासी युवा, जो परंपरागत रूप से तीन रथ खींचते हैं, उन्हें टीके लगवाने और आरटीपीसीआर नेगेटिव लाने की आवश्यकता होगी।" उन्होंने कहा कि कुल साठ युवा तीन रथ खींचेंगे।
इस वर्ष रथयात्रा जुलूस में हाथियों, झांकी ट्रकों, अखाड़े, भजन मंडलियों आदि को भाग लेने की अनुमति नहीं है।
जडेजा ने कहा, "स्थानीय अधिकारी यात्रा के पूरे 19 किलोमीटर के छोटे मार्ग पर एक सख्त कर्फ्यू सुनिश्चित करेंगे, जिसे पांच घंटे में पूरा करना होगा।" (आईएएनएस)
केर्न ऊर्जा कंपनी ने कहा है कि उसे एक फ्रांसीसी अदालत से पेरिस में भारत सरकार की संपत्ति जब्त करने की अनुमति मिल गई है. केर्न और भारत सरकार के बीच करोड़ों का टैक्स विवाद चल रहा है और कंपनी हर्जाना वसूलना चाह रही है.
लंदन में शेयर बाजार में सूचीबद्ध केर्न में एक बयान में बताया कि फ्रांस के एक ट्रिब्यूनल ने इस मामले में पेरिस में स्थित भारत सरकार की करीब 20 संपत्तियों को फ्रीज करने का आदेश दिया है. इन संपत्तियों का कुल मूल्य दो करोड़ यूरो से भी ज्यादा है. कंपनी का कहना है, "ये इन संपत्तियों का मालिकाना हक लेने की तैयारी में एक आवश्यक कदम है. यह कदम यह भी सुनिश्चित करता है कि अगर इन संपत्तियों को बेचा जाता है तो उससे होने वाली कमाई केर्न को ही मिलेगी." कंपनी ने यह भी बताया कि उसने भारत सरकार के खिलाफ इस तरह के और मामले अमेरिका, ब्रिटेन, नेदरलैंड्स, सिंगापुर और क्यूबेक में भी दर्ज कराए हुए हैं.
भारत सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि उसे इस मामले पर किसी भी फ्रांसीसी अदालत से कोई भी सन्देश नहीं मिला है और जब मिलेगा तब वो "उचित कानूनी कदम" उठाएगी. भारत में तेल और गैस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी केर्न को दिसंबर में द हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने इस मामले में 1.2 अरब डॉलर से भी ज्यादा के हर्जाने का हकदार घोषित किया था. ये कंपनी और भारत सरकार के बीच बीती तारीख से लगाए गए कुछ टैक्स दावों पर चली एक लंबी लड़ाई का नतीजा था. कंपनी का कहना है कि अब सरकार का उस पर कुल 1.7 अरब डॉलर बकाया है.
समझौते की संभावना
द हेग अदालत के आदेश के खिलाफ भारत ने अपील दायर की है, लेकिन इस बीच केर्न ने इस राशि को हासिल करने के लिए विदेशों में भारत सरकार की कई संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति मांगी है. इनमें एयर इंडिया की संपत्ति भी शामिल है. कंपनी का कहना है कि अगर सरकार समझौता नहीं करती है तो वो इन संपत्तियों को जब्त कर सकती है. लेकिन कंपनी ने यह भी कहा है, "हम अभी भी चाहते यह हैं कि हमारा भारत सरकार के साथ एक मैत्रीपूर्ण समझौता हो जाए और इस मामले को खत्म किया जाए." भारत सरकार ने अपने ताजा बयान में कहा है कि वो "अपने केस को जोरों के साथ लड़ेगी."
यह विवाद 2012 में शुरू हुआ था जब तत्कालीन यूपीए सरकार ने कुछ कंपनियों पर बीती तारीख से पूंजीगत लाभ टैक्स लगाने का फैसला किया था. इनमें केर्न के अलावा टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन भी शामिल थी. वोडाफोन भी आर्बिट्रेशन कोर्ट में मामले को ले गई थी और जीत गई थी. इन मामलों से विदेशी निवेशक डर गए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को भी धक्का लगा था. उनके बाद सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कहा है कि वो भविष्य में बीती तारीख से टैक्स नहीं लगाएगी, लेकिन मौजूदा मामलों में लड़ रही है. (dw.com)
रॉयटर्स (सीके/एए)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से दो बार की सांसद मीनाक्षी लेखी ने गुरुवार को विदेश राज्य मंत्री और संस्कृति राज्य मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। लेखी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जेपी नड्डा और पूरी टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा, "उन्होंने योग्यता और कड़ी मेहनत को प्राथमिकता दी और सभी को जगह दिया।"
लेखी ने अपने कैबिनेट 2.0 में महिला नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा, "लोग महिला सशक्तिकरण की बात करते थे, लेकिन पीएम मोदी ने इसे संभव बनाया कि देश में सशक्त महिलाओं का नेतृत्व हो। यह प्रशंसनीय है।"
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विदेश मंत्रालय की टीम में लेखी और राजकुमार सिंह का स्वागत किया।
जयशंकर ने अपने ट्विटर पर शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "मिनाक्षी लेखी, राजकुमार रंजन और विदेश मंत्री की टीम का स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। विश्वास है कि एक साथ, हम विदेशों में भारत के हित को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देंगे। मेरे सभी नए मंत्री सहयोगियों को बधाई और उनके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | ओडिशा से राज्यसभा सदस्य अश्विनी वैष्णव ने इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी और रेलवे मंत्रालय का कार्यभार संभाला है। उन्होंने संचार मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला है।
वैष्णव ने दोनों मंत्रालयों में रविशंकर प्रसाद का स्थान लिया। प्रसाद 2019 से संचार विभाग संभालने के अलावा 2016 से आईटी मंत्रालय संभाल रहे थे।
1994 बैच के एक पूर्व आईएएस अधिकारी, वैष्णव ने पिछले 15 वर्षों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभाला है और विशेष रूप से पीपीपी ढांचे में उनके योगदान के लिए जाने जाते थे।
उनके पास व्हार्टन स्कूल, पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री और आईआईटी कानपुर से एमटेक की डिग्री है।
वैष्णव ने जनरल इलेक्ट्रिक और सीमेंस जैसी प्रमुख वैश्विक कंपनियों में नेतृत्व की भूमिका निभाई है।
आईटी मंत्रालय नए आईटी दिशानिर्देशों पर ट्विटर के साथ विवाद में रहा है, जबकि संचार के मोर्चे पर, भारत 5 जी के रोलआउट का इंतजार कर रहा है जो पहले से ही समय से पीछे चल रहा है।
इसके अलावा, दूरसंचार क्षेत्र में वित्तीय तनाव और एजीआर बकाया नए मंत्री के सामने अन्य प्रमुख मुद्दे होंगे।
हालांकि अन्य प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों ने नए आईटी नियमों का अनुपालन किया है, लेकिन इन दिशानिर्देशों का निरंतर और सख्त कार्यान्वयन वैष्णव के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य रहेगा।
वैष्णव ने बुधवार को ट्वीट किया, "पीएम नरेंद्र मोदी जी के आशीर्वाद से मैं कल कार्यभार संभालूंगा और उनके विजन को साकार करने के लिए अथक प्रयास करूंगा। "
उद्योग जगत ने भी 50 वर्षीय मंत्री से काफी उम्मीदें जताई हैं।
आईसीईए के अध्यक्ष पंकज मोहिंद्रू ने कहा, "हम चाहते हैं कि नया पदाधिकारी अब तक अर्जित लाभ को समेकित करे - विशेष रूप से मोबाइल फोन निर्माण में।"
महिंद्रू ने कहा, "इलेक्ट्रॉनिक्स 2 लाख करोड़ डॉलर के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक वस्तु है। यह हमारी और वैश्विक अर्थव्यवस्था में हर कार्यक्षेत्र में व्याप्त है। नया नेतृत्व भारत को सामान्य रूप से विनिर्माण और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के आधार पर एक अग्रणी अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ा सकता है।"
एनएएसएससीओएम के अध्यक्ष, देबजानी घोष ने ट्वीट किया, "अश्विनी वैष्णव को बधाई। भारत के तकनीकी क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व और प्रभाव बढ़ने के अवसरों की पहले कमी थी। इस दशक को भारत का 'हैशटैग टेक्ड' बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपके साथ काम करने के लिए हम तत्पर हैं।" (आईएएनएस)