राष्ट्रीय
नासा और हवाई विश्वविद्यालय के हाल ही में किए गए अध्ययन में कहा गया कि चांद की कक्षा में आगामी प्राकृतिक परिवर्तन और जलवायु बदलाव के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर के साथ आने वाले वर्षों में पृथ्वी पर रिकॉर्ड बाढ़ आ सकती है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
नासा ने निकट भविष्य में चांद के अपनी ही कक्षा पर "डगमगाने" की भी संभावना जताई है. अध्ययन के मुताबिक भीषण बाढ़ 2030 के दशक में शुरू होगी और अनुमान है कि अगले दस वर्षों तक विनाशकारी बाढ़ का सिलसिला जारी रहेगा. अध्ययन में अमेरिका पर पड़ने वाले प्रभाव को केंद्रित किया गया है.
विनाशकारी बाढ़ का अनुमान
नेशनल ओशियैनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक 2019 में अमेरिका में हाई टाइड से 600 बाढ़ आई थी. नेचर क्लाइमेट पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है 2030 के दशक में यह संख्या कई गुना बढ़ने की उम्मीद है. नासा के अध्ययन में कहा गया है कि चांद जब अपनी कक्षा से डगमगाएगा तो धरती पर एक दो बार नहीं बल्कि कई बार बाढ़ आएगी. अनुमान जताया गया है कि बाढ़ उन समूहों में आएगी जो एक महीने या उससे अधिक समय तक रह सकती है.
बार-बार आने वाली बाढ़ से समुद्र तट और निचले इलाकों के पास रहने वाले लोगों के लिए खतरा पैदा हो जाएगा. यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के एसिस्टेंट प्रोफेसर फिल थॉम्पसन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ने के साथ-साथ धरती पर प्राकृतिक संकट भी बढ़ेंगे. थॉम्पसन के मुताबिक, "अगर यह महीने में 10 या 15 बार बाढ़ आती है तो कोई व्यवसाय पानी के नीचे काम नहीं कर सकता है. लोगों की नौकरी चली जाएगी क्योंकि वे काम पर नहीं जा सकेंगे."
चांद का डगमगाना
नासा ने कहा कि चांद का डगमगाना कोई नई या खतरनाक चीज नहीं है और पहली बार 1728 में इसके बारे में रिपोर्ट की गई थी और यह 18.6 साल के प्राकृतिक चक्र का हिस्सा है. नासा के मुताबिक चक्र के पहले भाग के दौरान पृथ्वी के नियमित ज्वार को दबाता है और आधे समय में चांद लहरों को तेज कर देता है. नासा के मुताबिक चांद वर्तमान में अपने चक्र के आधे हिस्से में है, जिससे पहले से ही कई तटों पर बाढ़ बढ़ रही है.
यह जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के उच्च स्तर का परिणाम है. 2030 तक दुनियाभर में समुद्र का जलस्तर काफी बढ़ चुका होगा और चांद के डगमगाने के कारण और तीव्र बाढ़ आने लगेगी. नासा के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेलसन के मुताबिक यह अध्ययन तटीय क्षेत्रों को अधिक बाढ़ वाले भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए महत्वपूर्ण है. (dw.com)
भारत ने डेटा स्टोरेज नियमों का उल्लंघन करने के कारण मास्टरकार्ड पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रतिबंध का देश के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र पर बड़ा असर हो सकता है.
मास्टरकार्ड इंक पर प्रतिबंध के भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले ने देश के वित्तीय क्षेत्र को संकट में डाल दिया है क्योंकि इस कारण बैंक नए कार्ड जारी नहीं कर पाएंगे. इससे उनकी कमाई पर असर पड़ेगा और भुगतान जैसी जरूरी सेवाएं भी प्रभावित होंगी.
बुधवार को भारत के केंद्रीय बैंक ने यह आदेश जारी किया था. ऐसा ही आदेश बीते अप्रैल में अमेरिकन एक्सप्रेस के खिलाफ भी जारी हुआ था. लेकिन मास्टरकार्ड पर प्रतिबंध के ज्यादा असर हो सकते हैं क्योंकि भारतीय बाजार में उसकी पैठ कहीं गहरी है और बहुत से वित्तीय संस्थान इस अमेरिकी कंपनी के पेमेंट नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं.
सौ से ज्यादा कार्ड प्रभावित
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के एक विश्लेषण के मुताबिक भारत में कार्यरत 11 स्थानीय और विदेशी बैंक देश में लगभग 100 तरह के डेबिट कार्ड जारी करते हैं जिनमें से एक तिहाई मास्टरकार्ड हैं. और 75 से ज्यादा क्रेडिट कार्ड इस कंपनी की ही सेवाएं प्रयोग करते हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि 22 जुलाई से नए मास्टरकार्ड जारी नहीं किए जा सकेंगे. मास्टरकार्ड पर 2018 में जारी नियमों का पालन न करने का आरोप है, जिनके तहत विदेशी कार्ड कंपनियों को भारतीय भुगतान का डेटा स्थानीय सर्वर पर ही रखना होगा और भारत को उसकी उपलब्धता होनी चाहिए.
रिजर्व बैंक के फैसले का असर मौजूदा ग्राहकों पर नहीं पड़ेगा लेकिन उद्योग जगत के विशेषज्ञ कहते हैं कि कई व्यापारिक प्रतिष्ठानों की गतिविधियां प्रभावित होंगी क्योंकि बैंकों को मास्टरकार्ड के विकल्प के रूप में वीसा जैसी कंपनियों से नए समझौते करने होंगे. बैंकों का कहना है कि इस प्रक्रिया में महीनों लग सकते हैं.
वीसा को फायदा
एक बैंक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि मास्टरकार्ड की प्रतिद्वन्द्वी कंपनी वीसा (Visa) पर जाने में पांच महीने तक का वक्त लग सकता है. चूंकि अमेरिकन एक्सप्रेस और मास्टरकार्ड दोनों ही प्रतिबंधित हैं तो वीसा को मोलभाव में बहुत ज्यादा लाभ मिल जाएगा जबकि इस बाजार में उसका पहले ही अधिपत्य है.
इस वरिष्ठ भारतीय बैंकर ने बताया, "बैंकों के लिए इसका अर्थ होगा अस्थायी रुकावटें, बहुत सारा मोलभाव और कुछ देर के लिए व्यापार में नुकसान.”
भारतीय रिजर्व बैंक ने 2018 में नए नियम जारी किए थे. हालांकि अमेरिकी कंपनियों ने इन नियमों में ढील देने के लिए केंद्रीय बैंक को मनाने की काफी कोशिश की थी लेकिन वे कामयाब नहीं रहीं.
भारत में डेबिट और क्रेडिट कार्डों के जरिए भुगतान में काफी वृद्धि हुई है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि देश में 6.2 करोड़ क्रेडिट कार्ड और 90.2 करोड़ डेबिट कार्ड हैं जिनके जरिए कुल मिलाकर 40.4 अरब डॉलर यानी 22 खरब रुपये से भी ज्यादा का लेनदेन होता है.
मास्टरकार्ड निराश
मास्टरकार्ड ने कहा है कि इस फैसले से वह निराश है और बताई गईं चिंताएं दूर करने पर काम करेगी. गुरुवार को जारी एक बयान में कंपनी ने कहा, "हम भारत सरकार के डिजीटल इंडिया विजन को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इसके लिए हम अपने ग्राहकों और साझीदारों पर लगातार निवेश करते हैं. और (चिंताओं को दूर करने की कोशिश) उसी कड़ी का हिस्सा होंगे.”
मास्टरकार्ड भारत को एक अहम बाजार मानती है. 2019 में उसने अगले पांच साल के भीतर एक अरब डॉलर के निवेश का ऐलान करते हुए कहा था कि भारत को लेकर वह बहुत उत्सुक है. 2014 से 2019 के बीच भी कंपनी ने भारत में एक अरब डॉलर का निवेश किया था.
कंपनी के भारत में कई शोध और विकास केंद्र भी हैं, जहां चार हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं, जो अमेरिका के बाद उसका दूसरा सबसे बड़ा केंद्र है. 2013 में भारत में मास्टरकार्ड के सिर्फ 29 कर्मचारी थे.
बैंकों पर असर
बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले लोग कहते हैं कि मास्टरकार्ड से वीसा पर जाने से बैंकों को फीस और अन्य कई तरह की आय का नुकसान होगा. आरबीआई (RBI) के फैसले पर एक रिसर्च नोट में मैक्वायरी बैंक ने कहा कि क्रेडिट कार्ड एक फायदेमंद उत्पाद थे क्योंकि इन पर 5 से 6 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है.
कई बैंक जैसे आरबीएल की वेबसाइट पर 42 क्रेडिट कार्ड सूचीबद्ध हैं और सभी मास्टरकार्ड की सेवाएं इस्तेमाल करते हैं. यस बैंक के पास सात मास्टरकार्ड हैं और एक भी वीसाकार्ड नहीं है. सिटीबैंक के पास चार मास्टरकार्ड हैं.
आरबीएल ने एक बयान में कहा है कि उसका वीसा के साथ समझौता हो गया है लेकिन उसे लागू करने में 10 हफ्ते का समय लगेगा. एक सूत्र के मुताबिक इस समझौते के मोलभाव में छह महीने का वक्त लगा है.
यस और सिटीबैंक ने कहा है कि नए विकल्पों विचार किया जा रहा है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
भारत ने कश्मीर में पहली बार महिला सैनिकों की तैनाती की है. इस प्रयास की काफी आलोचना हुई है और यह भी पूछा गया है कि स्थानीय महिलाओं के साथ संबंध मजबूत करने और सेना में लैंगिक समानता बढ़ाने में यह कदम कितना कारगर होगा.
डॉयचे वैले पर समान लतीफ की रिपोर्ट
भारत ने अशांत कश्मीर में पहली बार महिला सैनिकों की तैनाती की है. इस कदम को स्थानीय लोगों से संबंध सुधारने और अपने अर्धसैनिक बलों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की भारत की कोशिश बताया जा रहा है. हालांकि ये सवाल भी पूछे जा रहे हैं कि ये कदम कितना कारगर होगा. मई में भारत के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शांतिपूर्ण तरीके से अर्द्धसैनिकल बल असम रायफल्स की एक टुकड़ी को उत्तरपूर्वी राज्य मणिपुर से कश्मीर में शिफ्ट कर दिया था. इस टुकड़ी में कई महिलाएं थीं. इस 34वीं बटालियन को गांदरबल में तैनात किया गया था. यह इलाका भारतीय प्रशासित कश्मीर की गर्मियों की राजधानी श्रीनगर से 38 किमी उत्तर में है.
महिला पैरामिलिट्री टुकड़ी को गांदरबल में गाड़ियों की जांच के लिए बनाई गई चेकपोस्ट पर तैनात किया गया है. यह रास्ता संवेदनशील लद्दाख इलाके की ओर जाता है. आने के कुछ ही दिनों के अंदर इन महिला सैनिकों ने स्थानीय महिलाओं की तलाशी लेने और आसपास के इलाकों में घूमकर स्थानीय महिलाओं और स्कूली लड़कियों से बातचीत शुरू कर दी. इन्होंने बातचीत के लिए कार्यक्रमों का आयोजन भी किया, जिसमें इन्होंने अपनी लड़ाई की तकनीकों का प्रदर्शन किया और सामाजिक मुद्दों पर स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की.
पुरुष सैनिकों के साथ ही काम करने वाली महिला सैनिक कहती हैं कि स्थानीय लोगों से बात करने के मामले में उन्हें पुरुष सुरक्षाबलों के मुकाबले ज्यादा आसानी होती है. पश्चिमी भारतीय राज्य महाराष्ट्र से आने वाली 24 साल की सैनिक रुपाली ढांगर ने बताया, "हम स्थानीय महिलाओं को आत्मविश्वास देने की कोशिश कर रहे हैं. हमारा लक्ष्य उन्हें रोजाना के घरेलू काम छोड़ बाहर निकलकर कुछ नया करने के लिए प्रेरित करना है."
शोषण की शिकायतों के चलते तैनाती
सैन्य अधिकारियों ने बताया कि महिला सैन्यबल की तैनाती से संघर्ष से जूझ रहे कश्मीर में उग्रवाद विरोधी अभियानों के और प्रभावी होने की संभावना है. खासकर रिहायशी इलाकों में खोजी अभियान के दौरान स्थानीय महिलाओं से निपटने में इससे मदद मिलेगी. भारतीय सेना में सभी पुरुष हैं और कश्मीर में तैनात सैनिकों के बारे में स्थानीय महिलाएं कई बार यौन शोषण की शिकायतें करती रही हैं.
पश्चिम बंगाल से आने वाली 27 साल की सैनिक रेखा कुमारी कहती हैं, "हमारा पहला काम यह सुनिश्चित करना है कि उग्रवाद विरोधी अभियानों के दौरान महिलाओं को कोई परेशानी या कठिनाई न हो. खोजी अभियानों के दौरान हम उन्हें सहज रखने की कोशिश करते हैं." हालांकि अब भी यह देखना होगा कि रात के छापेमार और उग्रवाद-रोधी अभियानों में महिलाओं का शामिल होना स्थानीय महिलाओं के डर को खत्म कर रहा है या नहीं. फोर्स मैग्जीन की एक्जीक्यूटिव एडिटर गजाला वहाब मानती हैं कि सेना ने इस इलाके में महिलाओं की तैनाती "यौन शोषण के आरोपों से निपटने के लिए की है."
महिला अधिकारों को लेकर संवेदनशील
मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि भारतीय सेना को ऐसी शिकायतें मिली थीं कि सैनिक खोजी अभियानों के दौरान स्थानीय महिलाओं पर भद्दी यौन टिप्पणियां और इशारे करते हैं, उन्हें गलत तरीके से दबोचने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि उनपर बलात्कार के आरोप भी लगे हैं. एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसअपियर्ड पर्सन्स (APDP) की एक्टिविस्ट साबिया डार कहती हैं, "1990 के दशक में भारतीय सेना खतरनाक स्तर पर ऐसे अपराध करती थी, लेकिन अब मानवाधिकार संस्थाओं के दबाव के चलते ऐसे मामलों (अपराधों) में कमी आई है." डार ने डीडब्ल्यू को बताया कि इन राइफल वुमेन की तैनाती यह दिखाने का प्रयास भी है कि भारतीय सेना कश्मीरी महिलाओं के अधिकारों को लेकर संवेदनशील है.
सितंबर, 2019 में वीमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन नाम के एक वीमेंस एडवोकेसी नेटवर्क ने अपने कश्मीर दौरे के दौरान पाया था कि "स्कूल जाने वाली लड़कियों को सेना के शिविरों से गुजरना पड़ता है और वर्दी वाले सैनिक उनका यौन उत्पीड़न करते हैं. अक्सर सुरक्षाबल सड़क के किनारे अपनी पैंट की चेन खोलकर खड़े होते हैं और उनपर भद्दी टिप्पणियां और इशारे करते हैं." समस्या यह भी है कि कश्मीर में विवादित आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) लागू होने से सेना के किसी भी व्यक्ति पर बिना सरकारी मंजूरी के किसी भी अपराध में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
माहौल को सामान्य बनाने में मदद
34 असम राइफल के कमांडिंग अफसर कर्नल आरएस काराकोती कहते हैं, "महिला सुरक्षाबल जांच अभियानों के दौरान माहौल को सामान्य बनाने में मदद कर सकती हैं." काराकोती ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब राइफल वुमेन जांच अभियान का हिस्सा होती हैं, तब हमें आसानी होती है. वे बातचीत की पहल करने में हमारी मदद करती हैं, जिससे जांच अभियान बिना रुकावट चलता रहता है." हालांकि जब स्थानीय महिलाओं की तलाशी लेते हुए महिला सुरक्षाबलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई थीं तब उनकी काफी आलोचना हुई थी.
उत्तरी कोलोराडो विश्वविद्यालय में राजनीतिक मानवविज्ञानी अतहर जिया कहते हैं, "महिला सैनिकों की तैनाती कश्मीर में युद्ध अपराधों की जेंडर वॉशिंग" और "नरसंहार को लैंगिक न्याय के तौर पर" बेचने जैसा है. वे पूछते हैं, "जेल में सड़ रही महिला राजनीतिक कैदियों के लिए राइफल वुमेन क्या हैं. वे उन महिलाओं के लिए क्या है, जो गंभीर मानवाधिकार हनन और युद्ध हथियार के तौर पर बलात्कार झेल रही हैं. उन महिलाओं के लिए क्या हैं, जिन पर उनके पूरे समुदाय के साथ हमेशा नजर रखी जाती है."
सेना के भीतर भेदभावपूर्ण नीतियां
महिला सैनिकों ने कहा कि स्थानीय लड़कियां अब सेना में भर्ती होना चाहती हैं, हालांकि महिलाओं के लिए सैन्य बलों में भी कई भेदभावपूर्ण नीतियां हैं. साल 2017 में असम राइफल से जुड़ने वाली रेखा कुमारी कहती हैं, "उनसे (स्थानीय महिलाओं से) हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है और वे हमसे दोबारा मिलने की इच्छुक हैं. उनमें से कई भारतीय सेना में शामिल होना चाहती हैं." हालांकि राइफल वुमेन धांगर मानती हैं कि अभी सेना में ही महिला-पुरुष समानता हासिल करने में लंबा समय लगेगा. वे कहती हैं, "भारतीय सेना में अब भी महिला-पुरुष समानता दूर का सपना है. और इससे निपटने के लिए हमें खुद को दिमागी रूप से मजबूत बनाना होगा."
महिला अधिकारियों को वरिष्ठ कमांडिंग पद नहीं दिए जाते. पुरुष सहकर्मियों से उलट न ही उन्हें पूरी जिंदगी के लिए नौकरी मिलती है और न ही रिटायरमेंट की सिक्योरिटी. मार्च में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि महिलाओं को मिलने वाले लाभ के मामले में सेना के मूल्यांकन के मानदंड में कई स्तर पर भेदभाव है. हालांकि महिलाएं 1888 से सेना में हैं, लेकिन वे मुख्यतः चिकित्सा सेवा में काम करती है. 2020 में तीन महिलाओं को तीन सितारा जनरल का पद मिला लेकिन सब की सब चिकित्सा सेवा में थीं. (dw.com)
नई दिल्ली, 15 जुलाई | तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भले ही ईंधन उपभोक्ताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन तेल कंपनियां मौजूदा स्थिति का सबसे ज्यादा फायदा उठा रही हैं, वे पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर अपने मार्जिन को मजबूत कर रही हैं और मुनाफा बढ़ा रही हैं। देश में ईंधन की कीमतों के मौजूदा ऐतिहासिक उच्च स्तर पर, तेल विपणन कंपनियों द्वारा पेट्रोल और डीजल की खुदरा बिक्री पर लिया गया मार्जिन 3 रुपये प्रतिलीटर के उच्च स्तर को छू गया है।
इसका मतलब यह है कि जहां ईंधन की बढ़ती कीमतें उपभोक्ता की जेब में एक बड़ा छेद करती हैं, वहीं कंपनियां अपनी कमाई बढ़ा रही हैं और कोविड-19 महामारी के कारण बने मौजूदा मुश्किल माहौल में अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।
आईसीआईसीआई डायरेक्ट की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते मार्केटिंग मार्जिन और बेहतर ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन के दम पर सभी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को वित्तवर्ष 22 की अप्रैल-जून तिमाही में अपनी कमाई मजबूत कर लेने की उम्मीद है।
ब्रोकरेज रिपोर्ट के अनुसार, निजीकरण बाध्य बीपीसीएल को 2,307.7 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ की उम्मीद है, जो तिमाही-दर-तिमाही में 80.7 प्रतिशत कम है, क्योंकि कंपनी ने इस सालकी पहली तिमाही में 6,993 करोड़ रुपये के असाधारण लाभ की सूचना दी थी।
इसी तरह, एचपीसीएल को उम्मीद है कि वह पहली तिमाही में 1,520.7 करोड़ रुपये के मजबूत लाभ की रिपोर्ट करेगी। हालांकि यह 49.6 प्रतिशत क्यूओक्यू नीचे है, यह अभी भी बहुत अच्छा है, यह देखते हुए कि पहली तिमाही में कोविड वायरस का सबसे विनाशकारी चरण भी देखा गया, जिसने आर्थिक गतिविधियों को बाधित किया और नतीजतन, ईंधन विपणन की मात्रा में गिरावट आई।
आईओसी के संबंध में अनुमान है कि इसका लाभ पीएटी 37.6 प्रतिशत क्यूओक्यू से नीचे 5,480.3 करोड़ रुपये है, लेकिन कंपनी तिमाही के दौरान मार्केटिंग मार्जिन में वृद्धि के कारण लाभ में सुधार करेगी।
1 अप्रैल को वित्तीय वर्ष की शुरुआत के बाद से पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य में नियमित संशोधन के बाद सभी ओएमसी के लिए लाभ आ रहा है। तब से, पेट्रोल की पंप कीमत में 11 रुपये प्रतिलीटर तक की वृद्धि हुई है, जबकि डीजल की कीमत 1 अप्रैल से बढ़ रही है और 9 रुपये प्रतिलीटर तक की वृद्धि हुई है।
विश्लेषकों के अनुसार, इससे ईंधन उपभोक्ताओं को नुकसान हो सकता है, लेकिन इसने ओएमसी के लिए विपणन मार्जिन को लगभग 3 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ा दिया है। इसका मतलब है कि कंपनियों को उम्मीद से ज्यादा बढ़त का फायदा मिल रहा है। (आईएएनएस)
रांची, 15 जुलाई | झारखंड के गुमला जिले के घने जंगलों वाले करूरमगढ़ इलाके में शुक्रवार को सुरक्षा बलों ने एक भीषण गोलीबारी में खूंखार माओवादी मार गिराया, जिसके सिर पर 15 लाख रुपये का इनाम था। माओवादी कम से कम 53 आपराधिक मामलों में शामिल था, जिसमें 20 हत्याएं और हत्या के प्रयास के एक दर्जन से अधिक मामले शामिल थे। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 209 कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) इकाई और झारखंड पुलिस की एक संयुक्त टीम ने कुख्यात माओवादी बुदेश्वर उरांव को बेअसर कर दिया।
सीआरपीएफ ने कहा, "सुरक्षा बल बुदेश्वर पर लगातार नजर रख रहे थे, जिसने इलाके को आतंकित कर दिया था और उसके खिलाफ 20 हत्याओं और हत्या के प्रयास के एक दर्जन से अधिक मामलों सहित कम से कम 53 आपराधिक मामलों में नामजद किया गया था।"
झारखंड सरकार ने उसके सिर पर 15 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की थी।
उरांव और सशस्त्र माओवादियों की उनकी टीम को खुफिया सूचनाओं के आधार पर सुरक्षा बलों ने घेर लिया था। गोलीबारी तब शुरू हुई जब माओवादियों ने अच्छी तरह से स्थापित स्थानों से जवानों पर भारी गोलियां चलाईं।
"सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई की और आगामी मुठभेड़ में, 45 वर्षीय बुदेश्वर उरांव उर्फ लुल्हा को निष्प्रभावी कर दिया गया।"
कुछ देर तक फायरिंग कम होते ही जवानों ने एके-47 राइफल के साथ माओवादी का शव बरामद कर लिया।
सीआरपीएफ ने कहा कि "ऑपरेशन अभी भी जारी है।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 जुलाई | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने गुरुवार को यहां पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके आवास 10 जनपथ पर मुलाकात की। एक घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थीं, लेकिन इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। यह बैठक राजस्थान, पंजाब, कर्नाटक और उत्तराखंड सहित कई राज्यों में पार्टी के सामने संकट के बीच हुई है।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने विभिन्न राज्यों में राजनीतिक स्थिति और अगले साल की शुरूआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में आगामी चुनावों के मद्देनजर पार्टी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी लखनऊ में मुद्रास्फीति और ईंधन की कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने वाले हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी इस मुद्दे पर आयोजित कर रही है। प्रियंका गांधी शुक्रवार से तीन दिवसीय लखनऊ दौरे पर होंगी और आगामी चुनावों की रणनीति तैयार करने के लिए पार्टी के नेताओं से मुलाकात करेंगी।
प्रियंका गांधी अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान सभी जिला और शहर अध्यक्षों सहित सभी प्रदेश समितियों के साथ बैठक करेंगी और विभिन्न किसान संघों से भी मिलने की उम्मीद है।
वह बेरोजगार युवाओं के समूहों के साथ बातचीत करेंगी जो विभिन्न भर्ती मुद्दों से लड़ रहे हैं।
प्रियंका राज्य के कांग्रेस नेताओं के साथ अगले विधानसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र बनाने पर भी चर्चा करेंगी।
महामारी की दूसरी लहर के बाद राज्य में कांग्रेस महासचिव की यह पहली बैठक होगी।
सोमवार को उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की सलाहकार परिषद से मुलाकात की और प्रखंड प्रमुख चुनाव में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा पर चिंता व्यक्त की।
कांग्रेस का कहना है कि वह देश में ईंधन वृद्धि और बढ़ती महंगाई का विरोध कर रही है। पार्टी कानून-व्यवस्था सहित लोगों के मुद्दों को उठाकर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 15 जुलाई | राज्य की राजधानी से करीब 70 किलोमीटर दूर कोल्लम के पास हुई एक अजीबोगरीब घटना सामने आई है। यहां गुरुवार को 100 फीट के एक कुएं की सफाई करने आए चार अस्थाई कर्मचारियों की जहरीली गैस के कारण मौत हो गई। मृतकों में 53 वर्षीय सोमराजन, 36 वर्षीय राजन, 32 वर्षीय मनोज और 24 वर्षीय शिवप्रसाद शामिल हैं।
एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार घटना सुबह करीब 10 बजे की है जब चार सदस्यीय समूह के दो कार्यकर्ताओं ने, जो 100 फीट गहरे कुएं की सफाई करने आए थे, कुएं में जाने का फैसला किया।
प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "कुछ देर कुएं में जाने वाले दोनों की कोई प्रतिक्रिया नहीं सुनने के बाद, एक तीसरे व्यक्ति ने कुएं में जाने का फैसला किया और चौथा व्यक्ति भी उसके पीछे चला गया। चीजें सही नहीं होने के डर से, चिंतित ग्रामीणों ने दमकल को बुलाया।"
जल्द ही दमकल और पुलिस की टीम पहुंची और बचाव कार्य शुरू किया और चारों को बाहर निकालकर अस्पताल ले जाया गया।
अस्पताल पहुंचने के बाद चारों की मौत हो गई।
बचाव अभियान में भाग लेने वाले दमकल अधिकारी को बेचैनी हुई और उन्हें अस्पताल ले जाया गया और उनका इलाज चल रहा है।(आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 15 जुलाई | ओडिशा के 10 तटीय जिलों में कोविड-19 की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं होने के कारण ओडिशा सरकार ने गुरुवार को आंशिक लॉकडाउन को 1 अगस्त तक बढ़ाने की घोषणा की है। मुख्य सचिव एससी महापात्रा ने कहा, "ओडिशा की टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (टीपीआर), जो 1 जुलाई को 5 फीसदी थी, अब 3 फीसदी से नीचे आ गई है। रोजाना संक्रमण के मामले पहले की रिपोर्ट के 3,000 से घटकर 2,000 हो गए हैं। राज्य के कुल रोजाना मामलों में केवल कटक और खुर्दा जिलों में 40 प्रतिशत का योगदान है। इसका मतलब है कि स्थिति में पूरी तरह से सुधार नहीं हुआ है।"
इसलिए, राज्य में आंशिक तालाबंदी को और दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया गया है। महापात्र ने कहा कि जिलों (श्रेणी ए और बी) का प्रचलित वर्गीकरण राज्य में जारी रहेगा और प्रतिबंध लागू किए जाएंगे।
कम संक्रमण दर वाले 20 जिलों (श्रेणी ए) को शुक्रवार से बाकी 10 जिलों (श्रेणी बी) की तुलना में राहत मिलेगा।
खुर्दा, कटक, पुरी, बालासोर, भद्रक, जगतसिंहपुर, जाजपुर, केंद्रपाड़ा, मयूरभंज और नयागढ़ श्रेणी बी में हैं। श्रेणी ए जिले हैं - अंगुल, ढेंकनाल, क्योंझर, सुंदरगढ़, झारसुगुड़ा, बरगढ़, संबलपुर, देवगढ़, कालाहांडी, बलांगीर , नुआपाड़ा, सोनपुर, गंजम, गजपति, कंधमाल, बौध, कोरापुट, नबरंगपुर, मलकानगिरी और रायगढ़ हैं।
महापात्र ने कहा कि 20 ए श्रेणी के जिले में दुकानें सुबह छह बजे से रात आठ बजे तक खुली रहेंगी, वहीं श्रेणी बी के जिलों (तटीय जिलों) में दुकानें सुबह छह बजे से शाम पांच बजे तक खुलेंगी।
इसी तरह, बी श्रेणी के जिलों में सप्ताहांत बंद जारी रहेगा जबकि शेष 10 जिलों में सप्ताहांत बंद नहीं रहेगा। हालांकि, पूरे राज्य में रात का कर्फ्यू रहेगा।
मुख्य सचिव ने कहा, शुक्रवार से राज्य भर में बस (केवल बैठने की क्षमता के साथ), टैक्सी और ऑटो रिक्शा सेवाएं फिर से शुरू होंगी। हालांकि, रथ यात्रा के मद्देनजर 25 जुलाई तक पुरी के लिए किसी भी बस सेवा की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके अलावा, राज्य सरकार ने अंतर-राज्यीय बस संचालन की अनुमति नहीं दी है।
उन्होंने बताया कि जिम, पार्लर, स्पा और सैलून शुक्रवार से पूरे राज्य में कोविड -19 प्रोटोकॉल के पालन में फिर से खुलेंगे, जबकि राज्य भर में स्कूल, सिनेमा हॉल, पार्क, प्रदर्शनियां और मॉल बंद रहेंगे।
विवाह समारोह और अंतिम संस्कार प्रतिबंध लागू रहेंगे जबकि बार बंद रहेंगे। रेस्तरां को केवल टेकअवे की अनुमति होगी और परिसर में अंदर खाने की अनुमति नहीं होगी।
उन्होंने आगे कहा कि शादियों में अधिकतम 25 व्यक्तियों की उपस्थिति और अंतिम संस्कार और अंतिम संस्कार में 20 व्यक्तियों की उपस्थिति, सामुदायिक दावत, सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक सभाओं पर प्रतिबंध 1 अगस्त तक जारी रहेगा।
राज्य सरकार ने भी दर्शकों की भागीदारी के बिना आउटडोर खेल आयोजनों की अनुमति दी है। ओडिशा के सभी 30 जिलों में आउटडोर और इनडोर फिल्म की शूटिंग भी जारी रहेगी।
कृषि, मत्स्य पालन, निर्माण और औद्योगिक सहित सभी आर्थिक गतिविधियां बिना किसी प्रतिबंध के जारी रहेंगी।
महापात्र ने आगे कहा कि पार्क, मॉल, सिनेमा हॉल, प्रदर्शनी, मेला, जात्रा, शिक्षा संस्थान, बार आदि, जिन्हें पिछले लॉकडाउन दिशानिर्देशों में अनुमति नहीं दी गई थी, प्रतिबंधित रहेंगे।
कोविड प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करने वाले 20 कम संक्रमित जिलों में ही साप्ताहिक हाट और रोज के बाजार की अनुमति होगी। हालांकि, 10 तटीय जिलों में रोज वाले बाजार और साप्ताहिक हाट बंद रहेंगे।(आईएएनएस)
करीब 2.3 करोड़ बच्चों को पिछले साल आवश्यक टीके नहीं मिले, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया भर में कोविड-19 से जूझ रही थीं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक यह एक दशक में सबसे अधिक संख्या है.
संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार, 15 जुलाई को एक "पूर्ण तूफान" की चेतावनी देते हुए कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने दुनिया भर में लाखों बच्चों को बुनियादी टीकों से वंचित किया है. संयुक्त राष्ट्र के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल डिप्थीरिया, टेटनस और काली खांसी जैसे संक्रमणों के लिए लगभग 2.3 करोड़ बच्चे नियमित टीकाकरण से चूक गए. यूएन के मुताबिक कोरोना महामारी ने दुनिया भर में स्वास्थ्य प्रणाली को बुरी तरह से प्रभावित किया है.
इस कारण बच्चों को पिछले साल आवश्यक टीका नहीं मिल पाया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में यह संख्या केवल 37 लाख थी, जो पिछले साल 2.3 करोड़ जा पहुंची. यूनिसेफ ने एक ट्वीट में कहा कि पिछले एक साल में लगभग 1.7 करोड़ बच्चों को एक भी आवश्यक टीका नहीं मिला है, जो टीकों की पहुंच में असमानता को दर्शाता है.
तत्काल कार्रवाई की जरूरत
सबसे बुरी तरह प्रभावित देश भारत, पाकिस्तान, मैक्सिको और माली हैं. इसमें भी भारत पहले स्थान पर है जबकि पाकिस्तान दूसरे और इंडोनेशिया तीसरे स्थान पर है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इन देशों में बच्चों की जान बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन में टीकाकरण विभाग की प्रमुख केट ओ ब्रियेन ने पत्रकारों से कहा, "उन बच्चों की संख्या में वृद्धि होगी जो टीके के बिना असुरक्षित हैं और संक्रामक रोगों के और फैलने का खतरा है."
उन्होंने कहा, "यह एक पूर्ण विकसित तूफान है जो आने जा रहा है जिसके बारे में हम अभी बात कर रहे हैं. यह बीमारियों के फैलने को लेकर गहरी चिंता का विषय है. हमें बच्चों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है."
संघर्ष और गरीबी के कारण समस्याएं बढ़ीं
प्रभावित बच्चों में से अधिकांश संघर्ष से प्रभावित स्थानों, दूरदराज के समुदायों या मलिन बस्तियों में रहते हैं जहां उन्हें कई अभावों का सामना करना पड़ता है. कई माता-पिता अपने बच्चों को केवल इसलिए आवश्यक चिकित्सा देखभाल देने में असमर्थ हैं क्योंकि कोविड-19 के कारण कई चिकित्सा सुविधाएं बंद हो गईं हैं या उन्हें डर है कि अगर वे अपने बच्चों को अस्पताल ले गए या टीकाकरण किया तो वे कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दक्षिण एशियाई देश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
कोविड ने बढ़ाई मुश्किलें
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 ने बच्चों के लिए दुनिया के अधिकांश हिस्सों में स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचना मुश्किल बना दिया है, जिससे बच्चों के लिए कम टीकाकरण हो रहा है. यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक प्रकोप ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि टीकाकरण मुश्किल हो सकता है. उनके मुताबिक, "महामारी से पहले भी चिंताजनक संकेत थे कि हम दो साल पहले व्यापक खसरे के प्रकोप समेत रोकी जाने वाली योग्य बीमारी के खिलाफ बच्चों के टीकाकरण की लड़ाई में जमीन खोना शुरू कर रहे थे."
उन्होंने कहा, "महामारी ने स्थिति को बदतर बना दिया क्योंकि पहली प्राथमिकता अन्य सभी टीकों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कोरोना वैक्सीन पर केंद्रित थी. हमें याद रखना चाहिए कि वैक्सीन वितरण हमेशा असमान रहा है, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है." (dw.com)
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
राजद्रोह के कानून की समीक्षा करने की सुप्रीम कोर्ट की घोषणा का स्वागत किया जा रहा है लेकिन इस मामले में कोर्ट की कथनी और करनी में फर्क है. कानून की समीक्षा के लिए कोर्ट को अपने ही एक ऐतिहासिक फैसले के परे देखना होगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया राजद्रोह का कानून "कोलोनियल (उपनिवेशीय)" है. कोर्ट ने कहा कि यह सोचने की जरूरत है कि आजादी के 75 साल बाद आज भी इस कानून की जरूरत है या नहीं. अदालत ने इस कानून को संस्थानों के लिए एक गंभीर खतरा बताया और कहा कि ये सरकार को बिना जवाबदेही के इसके गलत इस्तेमाल की "अत्याधिक शक्ति" देता है.
अदालत ने कहा कि वो राजद्रोह के कानून की वैधता का फिर से निरीक्षण करेगी. उसने केंद्र सरकार को आदेश भी दिया कि वो मेजर जनरल एसजी वोमबत्केरे की याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दे. याचिका में कहा गया है कि इस कानून का अभिव्यक्ति पर "डरावना असर" होता है और यह मुक्त अभिव्यक्ति पर एक अनुचित प्रतिबंध है. राजद्रोह के खिलाफ इस समय सुप्रीम कोर्ट में और भी याचिकाएं लंबित हैं और अदालत ने कहा है कि वो सब पर एक साथ ही सुनवाई करेगी. अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक लंबे समय से इस कानून का विरोध करते आए हैं.
151 साल पुराना कानून
राजद्रोह भारत की दंड दंहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के तहत एक जुर्म है. इसे अंग्रेज अपने शासन के दौरान 1870 में लाए थे. फिर 1898 और 1937 में इसमें संशोधन किए गए. आजादी के बाद 1948, 1950 और 1951 में इसमें और संशोधन किए गए. दशकों पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट और पंजाब हाई कोर्ट ने अलग अलग फैसलों में इसे असंवैधानिक बताया था, लेकिन 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने ''केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य' नाम के फैसले में इसे वापस ला दिया. हालांकि इसी फैसले में अदालत ने कहा कि इस कानून का उपयोग तभी किया जा सकता है जब "हिंसा के लिए भड़काना" साबित हो.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि सरकार की आलोचना करने या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. राजद्रोह का मामला तभी बनेगा जब किसी वक्तव्य के पीछे हिंसा फैलाने की मंशा साबित हो. जून 2021 में इसी फैसले का एक बार फिर हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ पर एक मामले में लगे राजद्रोह के आरोपों को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि 1962 में राजद्रोह को परिभाषित करने वाले 'केदार नाथ सिंह फैसले' के तहत हर पत्रकार को सुरक्षा मिलनी चाहिए.
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि राजद्रोह के कानून का ना सिर्फ सरकारें धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसके खिलाफ कई याचिकाएं लंबित पड़ी हैं. 11 जुलाई को हरियाणा पुलिस ने कम से कम 100 किसानों के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज की. किसान पिछले साल लाए गए नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे और इसी विरोध के तहत उन्होंने हरियाणा विधान सभा के उप-सभापति की गाड़ी पर हमला कर दिया.
हाल में आया उछाल
हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार ने भी राजद्रोह कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की, जिसमें उन्होंने बताया कि 2016 के बाद से राजद्रोह के तहत लोगों के खिलाफ दर्ज किए जाने वाले मामलों में नाटकीय उछाल आया है. उनकी याचिका में दावा किया गया है कि राजद्रोह के तहत 2016 में 35 के मुकाबले 2019 में 93 मामले दर्ज किए गए. इन 93 मामलों में से महज 17 प्रतिशत मामलों में चार्जशीट दायर की गई और अपराध सिद्धि तो सिर्फ 3.3 प्रतिशत मामलों में हुई.
याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह भी बताया गया कि 2019 में 21 मामलों को कोई सबूत ना मिलने की वजह से रद्द करना पड़ा, दो मामले झूठे साबित हुए और छह दीवानी के विवाद पाए गए. लेकिन यह दिलचस्प है कि इस कानून की समीक्षा की बात सुप्रीम कोर्ट खुद कर रही है क्योंकि इस कानून की की अभी तक की पूरी यात्रा में सर्वोच्च अदालत की ही बड़ी अजीब भूमिका रही है. फरवरी 2021 में ही अदालत ने इस कानून की समीक्षा के लिए वकीलों के एक समूह द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया था.
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में वरिष्ठ रेजिडेंट फेलो आलोक प्रसन्ना का कहना है कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह का आरोप झेल रहे लोगों की याचिकाओं को या तो सुना ही नहीं या बहुत देर से सुना. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि अदालत ने उच्च न्यायालयों को राजद्रोह के मामले खारिज करने का भी निर्देश नहीं दिया है. आलोक का मानना है कि सवाल सिर्फ एक कानून का भी नहीं है, बल्कि भारत के न्याय तंत्र की मानसिकता का है और उसी में असल बदलाव की जरूरत है. (dw.com)
हरियाणा के अरावली वन क्षेत्र में अवैध रूप से बसी खोरी बस्ती तोड़ी जा रही है. यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही है. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बस्ती टूटने से करीब एक लाख लोग बेघर हो जाएंगे.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित 10 हजार आवासीय निर्माण को हटाने के लिए आदेश जारी किया था. कोर्ट में आदेश पर रोक लगाने की एक याचिका भी दायर हुई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने राहत नहीं दी थी. कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक नहीं लगाते हुए कहा था, "हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं."
खोरी गांव में कौन रहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से खोरी गांव में रहने वाले लोग अपने सिर से छत छिनती देख चिंतित हैं. गांव में करीब दस हजार परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले अनौपचारिक कामगार, रेहड़ी पर खाना बेचने वाले, सफाई कर्मचारी और ई-रिक्शा चालक हैं.
उनके घर अवैध रूप से संरक्षित वन भूमि पर बनाए गए थे, जो अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं. यह श्रृंखला उत्तरी और पश्चिमी भारत में करीब 700 किलोमीटर तक फैली है.
बुधवार को फरीदाबाद नगर निगम ने भारी बारिश के बावजूद करीब 300 मकान ढहा दिए. मौके पर मौजूद अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की 19 जुलाई की समयसीमा के पहले हजारों और मकान ढहा दिए जाएंगे.
आशियाने को बचाने की कोशिश नाकाम
15 साल पुराने घर ढह जाने के बाद एक महिला ने न्यूज चैनल एनडीटीवी से कहा, "हमारे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. हम यहां भीग जाएंगे. मेरे छोटे बच्चे हैं."
अखबारों में छपी खबरों में बताया गया है कि कैसे बुधवार को तोड़फोड़ के दौरान प्रशासन ने मीडिया को खोरी गांव से दूर रखा. पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी गांव में जाने की इजाजत नहीं दी गई. रिपोर्ट में बताया कि एक होटल में दूरबीन के सहारे तोड़फोड़ देखने का इंतजाम किया गया था.
मंगलवार को हरियाणा सरकार ने खोरी गांव में रहने वाले लोगों के लिए पुनर्वास नीति जारी की, जिसके बाद तोड़फोड़ की शुरुआत की गई है. खोरी गांव में रहने वाले लोगों को डबुआ कॉलोनी और बापू नगर में खाली पड़े फ्लैट दिए जाएंगे. हालांकि, सरकार ने फ्लैट के लिए शर्तें भी लगाई हैं. एक शर्त यह भी है कि परिवार की सालाना आय तीन लाख रुपये से कम होनी चाहिए. घर के मालिक को वोटर कार्ड, बिजली का बिल या फिर परिवार पहचान पत्र में से कोई भी एक दस्तावेज दिखाना होगा.
महामारी के दौरान टूटे मकान
योजना के तहत खोरी गांव में रहने वाले लोगों को वैकल्पिक आवास में रहने के लिए छह महीने तक 2,000 रुपये किराये के रूप में दिए जाएंगे. आवास अधिकार कार्यकर्ताओं ने मकानों के ढहाने के एक दिन पहले योजना के जारी करने की आलोचना की है. कार्यकर्ताओं ने सरकार से असली हकदार की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण कराने और अपने आपको हकदार साबित करने के लिए पर्याप्त समय देने का आग्रह किया है. साथ ही लोगों को काम के लिए कल्याणकारी योजनाओं से भी जोड़ने को कहा है.
खोरी मजदूर आवास संघर्ष समिति के सदस्य निर्मल गोराना कहते हैं, "योजना की घोषणा करने के 24 घंटों के भीतर ही आपने मकानों को ढहाना शुरू कर दिया. यह कैसा कल्याणकारी राज्य है? आप उन्हें इस महामारी के समय मरने के लिए जमीन से उखाड़ नहीं सकते हैं."
मानवाधिकार कानून नेटवर्क के चौधरी ए जेड कबीर कहते हैं, "(जबरन निकालने) के परिणामस्वरूप लोग अत्यंत गरीबी में धकेले जा सकते हैं और यह जीवन के अधिकार को खतरा है." कबीर कहते हैं कि खोरी गांव के लोगों को गरीबी में धकेला जा रहा है.
खोरी बस्ती के लोग सवाल कर रहे हैं कि जब बस्ती अवैध थी तो मोटी रकम लेकर बिजली कनेक्शन क्यों दिया गया था. बुलडोजर और पुलिसवालों के सामने महिलाएं बेबस होती रहीं और उनका सालों पुराना मकान ढहता रहा. (dw.com)
दिल्ली में अब गूगल पर दिल्ली की डीटीसी और कलस्टर बसों की लोकेशन मिल सकेगी. उपयोगकर्ता को गूगल प्लेटफॉर्म पर बसों के वास्तविक समय में मार्ग, सभी बस स्टॉप, आगमन और प्रस्थान का समय प्रदर्शित होगा.
दिल्ली सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बसों की प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए गूगल ऐप्स के साथ सार्वजनिक ट्रांजिट सिस्टम को जोड़ दिया है. इस पहल से ही यह संभव हो सका है.
दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने सार्वजनिक बसों की वास्तविक समय (रियल टाइम) की जानकारी देने के लिए गूगल के साथ साझेदारी की घोषणा की. उन्होंने कहा कि इस कदम से दिल्ली उन वैश्विक शहरों में शामिल हो गई है, जो सार्वजनिक परिवहन की वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करते हैं, ताकि लोग आखिरी मिनट तक अपनी यात्रा की योजना बना सकें.
फोन पर बसों की लोकेशन
एक बार इस परियोजना के शुरू हो जाने के बाद दिल्ली की बसों का स्थिर और गतिशील स्थान का डेटा वास्तविक समय में यात्रियों के लिए उपलब्ध होगा. सवारियों को सभी मार्गों और बस स्टॉप, बस के आगमन और प्रस्थान का समय रीयल टाइम में मिल जाएगा. यहां तक कि बस नंबरों के बारे में भी जानकारी हासिल होगी.
सार्वजनिक बसों की बढ़ती जवाबदेही के साथ किसी भी देरी पर अपडेट के साथ प्रतीक्षा समय को कम करेगा और इससे बस स्टॉप पर भीड़ कम होगी. यह सुविधा हिंदी में भी उपलब्ध है और सवारियां गूगल मैप्स सेटिंग में या डिवाइस भाषा सेटिंग में भी भाषा बदल सकते हैं.
बुधवार को हुए लॉन्च के दौरान गूगल ने एक डेमो भी पेश किया कि कैसे ट्रांजिट डेटा का इस्तेमाल बसों पर वास्तविक समय की जानकारी हासिल करने के लिए किया जा सकता है.
समय की बचत
इसके लिए अपने गूगल या आईओएस डिवाइस पर गूगल मैप्स ऐप्लिकेशन खोलना होगा. अपना गंतव्य दर्ज करें और 'गो' आइकन टैप करें या 'सोर्स' और 'गंतव्य' (डेस्टिनेशन) स्थान दर्ज करें. अगर यह पहले से चयनित नहीं है, तो हरे या लाल रंग में हाइलाइट किए गए समय, बस संख्या, मार्ग और वास्तविक समय आगमन की जानकारी देखने के लिए 'ट्रांजिट' आइकन पर टैप करें. बताए मार्ग को टैप करने से आप मार्ग के स्टॉप के बारे में अधिक जानकारी देख सकते हैं.
आने वाली सभी बसों की सूची देखने के लिए बस स्टॉप पर टैप करें, जहां प्रासंगिक रियल टाइम जानकारी हरी या लाल बत्ती द्वारा दर्शाई जाएगी.
इससे पहले 2018 में दिल्ली सरकार ने सभी बस स्टॉप, रूट मैप, समय सारिणी के जीपीएस फीड समेत रियल टाइम डेटा प्रदान करने के लिए इंद्रप्रस्थ सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी-डी) के तकनीकी सहयोग के साथ ओपन ट्रांजिट डेटा विकसित और प्रकाशित किया था.
साथ ही बस स्थानों की रियल टाइम जीपीएस फीड, जिसका इस्तेमाल तीसरे पक्ष के ऐप डेवलपर्स और शोधकर्ताओं द्वारा किया जा सकता है. इसके अलावा 2018 में, वन कार्ड और वन दिल्ली ऐप भी विकसित किया गया था, जो यूजर्स के लिए सामान्य, गुलाबी टिकट बुक करने के लिए ऐप आधारित टिकटिंग को सक्षम बनाता है और क्यूआर कोड स्कैनिंग के माध्यम से गुजरता है.
एए/वीके (आईएएनएस)
बिहार में पांच साल बाद फिर से जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम आयोजित किया गया. 2016 में प्रदेश में लोकसेवा अधिकार कानून लागू होने के बाद इसे बंद कर दिया गया था. आखिर क्या है जनता दरबार फिर से शुरू करने की वजह?
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को आयोजित इस कार्यक्रम में लोगों की समस्याएं सुनीं और उसके त्वरित समाधान के लिए दिशा-निर्देश जारी किए. शिकायतों को सुनकर मुख्यमंत्री हैरान हुए तथा सरकारी कार्यप्रणाली पर कई बार आश्चर्य भी प्रकट किया. अंतत: उन्हें यह कहना पड़ा कि अच्छा हुआ, जनता दरबार फिर शुरू किया. दरअसल, इस कार्यक्रम से एक ओर मुख्यमंत्री को जनता की समस्याओं से रूबरू होने का मिलता है तो वहीं दूसरी ओर सिस्टम से हैरान-परेशान आमजन को अपनी बात सीधे सीएम तक पहुंचाने का मौका मिल जाता है.
मीडिया के मौके पर मौजूद रहने के कारण शिकायत विशेष खास चर्चा में भी आ जाती है. ऐसे में कई बार उसका समाधान भी हो जाता है या फिर उसकी गुंजाइश बढ़ जाती है. जानकार इस आयोजन को मुख्यमंत्री के लिए व्यवस्था को देखने का आईना मानते हैं. यही काम राजा-महाराजा भी अपने दौर में दरबार लगा कर करते थे. कई कुशल राजा तो वेश बदलकर अपने राज्य में घूमते थे, ताकि वे प्रजा की समस्याओं को समझ सकें व अपनी प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को जान सकें.
फीडबैक पर फिर शुरू हुआ जनता दरबार
2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने फिर से जनता दरबार शुरू करने की बात कही थी. मुख्यमंत्री ने कहा भी, "जब लोगों से मुलाकात होती थी तो वे कहते थे कि जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम को फिर से शुरू किया जाए. यदि इसे जारी रखा जाएगा तो लोगों को सुविधा होगी, क्योंकि बहुत से लोग लोक शिकायत निवारण कानून में नहीं जा पाते हैं. इसी को देखते हुए हमने तय किया कि पिछली बार की तरह ही हर महीने के तीन सोमवार को यह आयोजित किया जाए." मुख्यमंत्री ने साथ ही यह भी कहा कि हमलोगों को लगा कि लोक शिकायत निवारण कानून तो है ही, लेकिन लोगों की बातें भी सुननी चाहिए.
जनता दरबार शुरू होने के बाद मुख्यमंत्री को अपने प्रशासन की समस्याओं से भी सामना हुआ. मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से यह अनुभव हुआ कि लोगों की किस-किस प्रकार की समस्याएं हैं. अपनी यात्राओं के दौरान भी मिलने वाली शिकायतों पर गौर किया और इसी के आधार पर कई तरह के कानून भी बनाए गए. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह देखा गया कि जमीनी विवाद और संपत्ति को लेकर हिंसा के ज्यादा मामले काफी हैं. इसके बाद राज्य में भूमि सर्वे कराने का निर्णय लिया गया जो अभी चल ही रहा है. तभी यह विचार आया कि क्यों न लोगों को इसके लिए कानूनी अधिकार दे दिया जाए और इस तरह लोक शिकायत निवारण कानून 2016 में अस्तित्व में आया.
शिकायतों से हैरान हुए मुख्यमंत्री
लोगों की शिकायतों को सुन कर मुख्यमंत्री को आखिरकार यह कहना पड़ गया, "यह तो गलत है. एक-एक चीज का पता चल रहा है. अच्छा हुआ कि हमने इसे फिर से शुरू कर दिया." उन्होंने कई मौके पर तल्ख अंदाज में कहा, यह ठीक नहीं. एक आंगनबाड़ी सेविका के पति ने 2018 से पत्नी को मानदेय नहीं मिलने की शिकायत की. इस पर सीएम काफी अचंभित हुए. पूछा, ऐसा कैसे हो रहा है. तुरंत ही समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव को लाइन पर लिया. इसी बीच एक अन्य आंगनबाड़ी सेविका ने तीन वर्ष से मानदेय भुगतान नहीं होने की शिकायत की. चौंकते हुए मुख्यमंत्री ने फिर अपर मुख्य सचिव को फोन लगाया, किंतु फोन समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने उठाया. अपर मुख्य सचिव दफ्तर से निकल चुके थे. सीएम ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और तल्ख अंदाज में मंत्री से कहा, "यह ठीक नहीं है. दो मामले सामने आए हैं. सभी जगह पता कीजिए."
इसी बीच समाज कल्याण विभाग के आंगनबाड़ी से ही संबंधित एक और मामला आ गया. समस्तीपुर की महिला ने सीएम को बताया कि जिले के विभूतिपुर प्रखंड में 2017 में ही आंगनबाड़ी सेविका के लिए आवेदन दिया था. अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है. इस बार सीएम झल्ला गए और कहा, ऐसा कैसे हो रहा है. इसी तरह गया के एक मामले में उन्हें शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी को फोन लगाना पड़ गया. मामला गया के एक गांव से संबंधित था. वहां 2007 से ही प्राथमिक विद्यालय के लिए जमीन उपलब्ध थी, लेकिन अब तक भवन नहीं बनाया गया था. शिकायतकर्ता ने उन्हें बताया कि तीन बार इस मामले को जनता दरबार में लाया गया, जिलाधिकारी के पास भी गुहार लगाई गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इस पर नीतीश ने कहा, आश्चर्य है. हमलोगों ने बीसों हजार विद्यालय भवन बनाए. ऐसा कैसे हो रहा है.
तरह तरह की शिकायतें
स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड दिलाने की गुहार लगाते हुए एक युवती ने रोते हुए कहा कि गलती से उसने दो महीने तक स्वयं सहायता भत्ता ले लिया है. इसी वजह से उसे स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के तहत लोन नहीं दिया जा रहा. वह भत्ते की राशि लौटा देगी. उसे लोन दिलवा दिया जाए. उसके पापा विकलांग हैं और सब्जी बेचकर घर चल रहा है. वह आगे पढ़ना चाहती है. इस पर सीएम ने फिर शिक्षा मंत्री से मामले को देख लेने का आग्रह किया. दो युवतियों ने दो-तीन साल पहले ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन राशि अब तक नहीं मिलने की शिकायत की. वहीं एक युवक ने शिकायत के दौरान कहा, उसे ब्लैक फंगस है. उसका उपचार कराया जाए. यह सुनते ही सभी सतर्क हो गए. मुख्यमंत्री ने तुरंत विभागीय अधिकारी के पास युवक को भेजा. बाद में उसकी जांच करवाई गई. हालांकि उसे ब्लैक फंगस नहीं था.
इस बार कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए लोगों ने नौकरी से हटाए जाने की भी काफी शिकायत की. इस पर अधिकारियों ने सीएम को बताया कि मामला शिकायतकर्ता व एजेंसी के बीच का है और उसमें सरकार कहीं भी नहीं आती. नवादा से आए एक युवक ने मुख्यमंत्री से कहा कि भोजपुरी व मगही गीतों में अश्लीलता व हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग हो रहा है वह सामाजिक गरिमा के लिए नुकसानदेह है. इस पर तत्काल रोक लगाए जाने की जरूरत है. यह सुनकर उन्होंने कला-संस्कृति व युवा विभाग को आवश्यक निर्देश दिए. पांच घंटे के इस कार्यक्रम में एक महिला ने जनता दरबार में आने के क्रम में जांच के दौरान अपना लॉकेट गुम होने का भी आरोप लगाया.
कोरोना के कारण प्रक्रिया में बदलाव
कोविड के कारण इसका आयोजन टलता रहा. कोरोना महामारी के इस दौर में काफी एहतियात बरतते हुए जनता दरबार की व्यवस्था में थोड़ा बदलाव किया गया. पहले भी तिथि विशेष पर विभागों को तय किया जाता था और उससे संबंधित शिकायतों को मुख्यमंत्री सुनते थे. संबंधित विभागीय अधिकारी मौके पर मौजूद रहते थे, जो उसके त्वरित समाधान के लिए तत्काल दिशा-निर्देश जारी करते थे. इस बार भी विभाग तय किए गए थे. स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, वित्त, श्रम संसाधन, सामान्य प्रशासन, कला-संस्कृति व युवा, अल्पसंख्यक कल्याण, पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग कल्याण व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग से संबंधित शिकायतें सुनीं गईं.
अब हर महीने के तीन सोमवार को जनता दरबार किया जाना तय किया गया है. बदली व्यवस्था में इस बार मोबाइल ऐप के जरिए शिकायतों को सूचीबद्ध किया गया. जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं था उन्होंने प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुमंडल अधिकारी या जिलाधिकारी के कार्यालय में जनता दरबार में शामिल होने के लिए आवेदन दिया था. आवेदनों पर क्यूआर कोड लगाया गया था. उसे स्कैन करते ही संबंधित शिकायत की जानकारी प्रतिनियुक्त अधिकारी को मिल जाती थी. इस बार शिकायतकर्ताओं को पटना लाने और फिर घर पहुंचाने की भी व्यवस्था की गई. जनता दरबार में आने वालों को कोरोना जांच की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के आधार पर प्रवेश देने की व्यवस्था थी. इस बार 146 लोगों ने अपनी शिकायतें मुख्यमंत्री के समक्ष रखीं, जिनमें 118 पुरुष व 28 महिलाएं थीं.
शिकायत निवारण की खामियां आई सामने
पांच साल बाद शुरू हुए जनता दरबार में जितने लोग अपनी गुहार लगाने अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा लोग बाहर थे. इन शिकायतों ने मुख्यमंत्री के समक्ष सिस्टम की खासकर निचली कतार की करतूतों से अवगत कराया. वहीं ये फरियादें लोक शिकायत निवारण कानून को कटघरे में खड़े करने को काफी थीं. जाहिर है, इस पर राजनीति भी शुरू हो गई. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने तंज कसते हुए कहा, "नीतीश कुमार अधिकारियों के मुख्यमंत्री हैं, जनता के नहीं. तामझाम से शुरू किया गया यह कार्यक्रम एक आईवॉश है."
वहीं प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ कहते हैं, "2005 से 2015 तक लगातार जनता दरबार का आयोजन करने वाले मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जनता दरबार में अब तक कितने आवेदन आए और कितने फरियादियों को न्याय मिला, साथ ही कितने मामले निष्पादित हुए." इसके जवाब में जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय सिंह कहते हैं, "मुख्यमंत्री जनता से सीधा संवाद करते हैं. उनकी पीड़ा सुनकर उसका निवारण करना उनकी कार्यशैली है. सरकार का ही एक ही लक्ष्य है- जनसेवा." बातें जो भी हों, लेकिन इतना तो तय है कि शिकायतों पर मुख्यमंत्री का हैरान होना सिस्टम की करतूत पर उनकी झल्लाहट ही है, जिसे वे कसौटी पर खरा देखना चाहते हैं. (dw.com)
संदीप पौराणिक
भोपाल 14 जुलाई | मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह के खिलाफ कांग्रेस के भीतर ही लामबंदी तेज हो गई है। कांग्रेस के नेता ही दिग्विजय सिंह की कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे हैं तो वही कई नेता उनके बयानों से नाराज हैं मगर खुलकर बोलने का साहस कम ही लोग जुटा पा रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदूवादी संगठनों के सबसे बड़े विरोधियों के तौर पर दिग्विजय सिंह को पहचाना जाता है। जो अकेले कांग्रेस में ऐसे नेता हैं जो संघ, भाजपा और हिंदूवादी संगठनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने के साथ हमला करने से नहीं चूकते। यही कारण है कि उनकी पहचान अल्पसंख्यक परस्त नेता के तौर पर बनती जा रही है।
अभी हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू और मुसलमानों के डीएनए को लेकर बयान क्या दिया उस पर दिग्विजय सिंह ने लगातार प्रतिक्रिया व्यक्त की। उनकी इन प्रतिक्रियाओं को कांग्रेस के किसी भी नेता का साथ नहीं मिला, मगर विरोध में जरूर बातें सामने आने लगी। महाराष्ट्र के नेता और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य विश्व बंधु राय ने तो दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा ही खोल लिया है ।
राय ने पार्टी की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र भी लिखा है और मांग की है कि दिग्विजय सिंह की जुबान पर रोक लगाई जाए। दिग्विजय सिंह पर यहां तक आरोप लगाया गया है कि कमलनाथ सरकार गिराने में भी उनकी भूमिका रही है , इसलिए उनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए क्योंकि जहां-जहां वे रहे हैं पार्टी को नुकसान हुआ है और अभी जिस राज्य में है वहां भी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का तो यहां तक कहना है कि, दिग्विजय सिंह ऐसे बयान देते हैं जिससे कांग्रेस को नुकसान होता है और पार्टी की छवि हिंदू विरोधी की बनती है । इतना ही नहीं वे पार्टी के तमाम ताकतवर नेताओं को किनारे लगाने में भी पीछे नहीं रहते। बात 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान की है, जब उन्होंने समन्वय के नाम पर बुंदेलखंड के कद्दावर नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी को अपने साथ लिया और पुराने गिले-शिकवे दूर करने का भरोसा भी दिलाया, मगर बाद में चतुवेर्दी के साथ सोची-समझी रणनीति के तहत छल किया गया। परिणाम स्वरूप चतुर्वेदी ने राजनीति से ही नाता तोड़ लिया है। यह तो एक घटना मात्र है। मध्यप्रदेश में तमाम जनाधार वाले नेताओं को किनारे लगाने के साथ पार्टी को नुकसान पहुंचाने में दिग्विजय सिंह कभी भी पीछे नहीं रहे हैं। सिर्फ उन्हें अपने हित, स्वार्थ और अपने करीबियों का लाभ ही देखता रहा है। पार्टी को चाहे जितना भी नुकसान क्यों न हो जाए।
दिग्विजय सिंह के बयानों को लेकर मध्य प्रदेश के नेताओं में भी नाराजगी है मगर कोई भी नेता खुलकर नहीं बोल रहा। नाम न छापने की शर्त पर एक नेता का कहना है कि पार्टी की ओर से जब अधिकृत बयान कोई नहीं आता तो दिग्विजय सिंह ऐसे बयान क्यों देते हैं, जिससे पार्टी को नुकसान होता है, इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस में भी भाजपा की तरह दिशा निर्देश जारी किए जाएं और किसी भी नेता को मनमर्जी से बयान देने की आजादी नहीं रहे। समय रहते पार्टी ने दिग्विजय िंसंह जैसे नेताओं पर लगाम नहीं लगाई तो आगामी समय में उत्तर प्रदेष के विधानसभा चुनाव सहित अन्य चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ भी दिग्विजय सिंह के बयानों से खुश नहीं है, यही कारण है कि दिग्विजय सिंह से उन्होंने दूरी बना ली है। आने वाले दिनों में राज्य में तीन विधानसभा और एक लोकसभा क्षेत्र में उप-चुनाव है, इन चुनावों पर भी दिग्विजय िंसंह के बयान असर डाल सकते हैं, इसीलिए कमल नाथ भी दिग्विजय सिंह के साथ सक्रिय होने को तैयार नहीं है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे से जुड़ी सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) को एक अप्रैल 2021 से लेकर 31 मार्च 2026 तक और पांच वर्षों के लिए जारी रखने की मंजूरी दी है। वर्तमान सरकार न्याय प्रशासन की सुविधा के लिए अधीनस्थ न्यायपालिका को अच्छी तरह से सुसज्जित न्यायिक आधारभूत संरचना प्रदान करने की जरूरतों के प्रति संवेदनशील रही है, ताकि सभी के लिए न्याय तक पहुंच आसान हो और उन्हें समय पर न्याय मिल सके। न्यायालयों में लंबित और बकाया मामलों को कम करने के लिए पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचे की व्यवस्था बेहद महत्वपूर्ण है।
योजना पर आने वाली कुल 9,000 करोड़ रुपये की लागत में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 5,357 करोड़ रुपये की होगी, जिसमें ग्राम न्यायालय योजना और न्याय दिलाने एवं कानूनी सुधार से जुड़े एक राष्ट्रीय मिशन के जरिए मिशन मोड में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए 50 करोड़ रुपये की लागत भी शामिल है।
यह योजना न्यायपालिका की बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने में मदद करेगी, क्योंकि अपर्याप्त स्थान के साथ कई न्यायालय अभी भी किराए के परिसर में काम कर रहे हैं और इनमें से कुछ तो बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं। सभी न्यायिक अधिकारियों को आवासीय सुविधा का अभाव भी उनके कामकाज और प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर डालता है।
इस प्रस्ताव से जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए 3800 कोर्ट हॉल और 4000 आवासीय इकाइयों (नई और वर्तमान में चल रही, दोनों किस्म की परियोजनाओं), वकीलों के लिए 1450 हॉल, 1450 शौचालय परिसरों और 3800 डिजिटल कंप्यूटर कक्षों के निर्माण में मदद मिलेगी।
यह देश में न्यायपालिका के कामकाज एवं प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मददगार साबित होगा और नए भारत के लिए बेहतर न्यायालयों के निर्माण की दिशा में एक नया कदम होगा।
मंत्रिमंडल ने 50 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ 5 वर्षों की अवधि के लिए आवर्ती और अनावर्ती अनुदानों को प्रमाणित करके ग्राम न्यायालयों को समर्थन देने के निर्णय को भी मंजूरी दी। हालांकि, अधिसूचित ग्राम न्यायालयों का संचालन शुरू होने और न्याय विभाग के ग्राम न्यायालय पोर्टल पर न्यायाधिकारियों की नियुक्ति किये जाने और इस बारे में रिपोर्ट दिए जाने के बाद ही राज्यों को धन जारी किया जाएगा।
एक वर्ष के बाद इस बात का आकलन किया जाएगा कि ग्राम न्यायालय योजना ने ग्रामीण इलाकों में हाशिए पर रहने वाले लोगों को त्वरित और किफायती न्याय प्रदान करने के अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल किया है या नहीं।
न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे से जुड़ी सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना 1993-94 से चल रही है। न्यायालयों में लंबित और बकाया मामलों को कम करने के लिए पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचे की व्यवस्था बेहद महत्वपूर्ण है।
अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की प्राथमिक जिम्मेदारी भले ही राज्य सरकारों की होती है, लेकिन केंद्र सरकार इस सीएसएस के जरिए सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में न्यायिक अधिकारियों के लिए न्यायालय भवनों और आवासीय क्वार्टरों के निर्माण के लिए राज्य सरकारों के संसाधनों में वृद्धि करती है।
इस योजना की शुरूआत से लेकर 2014 तक, 20 से अधिक वर्षों में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों को सिर्फ 3,444 करोड़ रुपये ही प्रदान किए। इसके ठीक विपरीत, वर्तमान सरकार ने पिछले सात वर्षों के दौरान अब तक 5200 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, जोकि इस क्षेत्र में अब तक दी गई कुल मंजूरी का लगभग 60 प्रतिशत है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई| केंद्र सरकार ने बुधवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) से जिला और अन्य संबंधित स्थानीय अधिकारियों को भीड़-भाड़ वाले स्थानों को नियंत्रित करने और कोविड-19 के उचित प्रबंधन के लिए आवश्यक उपाय करने के लिए सख्त निर्देश जारी करने को कहा। केंद्र की ओर से यह निर्देश ऐसे समय पर सामने आए हैं, जब देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष रूप से सार्वजनिक परिवहन और हिल स्टेशनों पर कोविड मानदंडों का घोर उल्लंघन देखा जा रहा है।
वहीं दूसरी ओर कोरोना की दूसरी लहर के कम हो रहे प्रभाव के बीच अब तीसरी लहर के आने की चर्चा जोर पकड़ रही है। इसलिए संभावना है कि यह अगर लोग सरकार द्वारा निर्दिष्ट उचित सुरक्षा उपायों का पालन करने में विफल रहते हैं तो भारत तीसरी लहर की चपेट में जल्द ही आ सकता है।
सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को एक सलाह या एडवाइजरी जारी करते हुए गृह मंत्रालय (एमएचए) ने स्पष्ट किया कि संबंधित अधिकारियों को कोविड के उचित व्यवहार के सख्त प्रवर्तन में किसी भी ढिलाई के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा भेजी गई एडवाइजरी में यह भी सलाह दी गई है कि संबंधित राज्य सरकारों या केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन, जिला अधिकारियों द्वारा इस संबंध में जारी किए गए आदेशों को व्यापक रूप से जनता और क्षेत्र के अधिकारियों को उनके उचित कार्यान्वयन के लिए प्रसारित किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की 28 जून की एडवाइजरी के अनुरूप कोविड-19 प्रबंधन के लिए लक्षित और त्वरित कार्रवाई के कार्यान्वयन के लिए जारी किए गए एमएचए के 29 जून के आदेश का उल्लेख करते हुए, भल्ला ने सख्त निर्देश जारी किए।
केंद्रीय गृह सचिव भल्ला ने बाजारों, मॉल, साप्ताहिक बाजार, रेस्टोरेंट, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों व पर्यटन स्थलों पर भारी संख्या में एकत्रित हो रही भीड़ के मद्देनजर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन व मुख्य सचिवों को सचेत करते हुए कहा है कि इस पर नियंत्रण करने के लिए जिला व स्थानीय अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी करें, ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को एक बार फिर से फैलने से रोका जा सके।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे अपने पत्र में केंद्रीय गृह सचिव ने आगे कहा है कि कोरोना संक्रमण के मामलों के दर्ज हो रही गिरावट के बाद पाबंदियों को हटाना शुरू कर दिया है। हालांकि, इन प्रतिबंधों को सावधानीपूर्वक हटाया जाना चाहिए।
केंद्रीय गृह सचिव ने कहा कि कोरोना को लेकर परीक्षण तेज गति से आगे भी जारी रखना है। उन्होंने कहा कि कोविड पर काबू पाने के लिए हमें पांच गुना रणनीति टेस्ट-ट्रैक-ट्रीट-वैक्सीनेशन और पालन पर काम करना होगा।
भल्ला ने अपील करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर कोरोना को लेकर सख्त दिशा निदेशरें का पालन करवाने का आदेश जारी करें और इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही देश के लोगों को फिर से परेशानी में डाल सकती है।
अजय भल्ला ने कहा कि बीते दिनों देश के कई हिस्सों से सार्वजनिक परिवहन और पहाड़ी इलाकों में कोरोना के दिशा निर्देशों के उल्लंघन को लेकर अनेकों मामले सामने आए है। इसमें बाजारों में भारी संख्या में एकत्रित हो रहे लोग सोशल डिस्टेंसिंग को नजरअंदाज करते दिखे हैंस, जिसके कारण कुछ राज्यों में कोरोना के मामले फिर से बढ़े हैं और यह चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण का खतरा भी बना हुआ है और लोगों को यह समझना होना कि जब तक सभी को कोविड वैक्सीन नहीं लग जाता है, तब तक हमें सतर्क रहना चाहिए।
एडवाइजरी में चेतावनी दी गई है कि कई राज्यों में कोविड प्रोटोकॉल के गंभीर उल्लंघन से, खासकर सरकारी वाहनों और पहाड़ी इलाकों में, इसके परिणामस्वरूप आर फैक्टर कुछ राज्यों में बढ़ गया है। आर फैक्टर का 1.0 से ज्यादा होना कोविड-19 के तेजी से प्रसार का संकेत है।
बता दें कि आर फैक्टर वह पैमाना है, जिससे यह तय होता है कि एक व्यक्ति कितने और व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है। आर फैक्टर-1 होने का मतलब होता है कि संक्रमित शख्स एक व्यक्ति को संक्रमण दे सकता है। वहीं आर अगर एक से कम रहेगा तो यह उसके संक्रमण को तेजी से रोकने में मदद करता है। यह संक्रमण की चेन को तोड़ने का काम करता है।
गृह सचिव ने जोर देकर कहा कि परीक्षण को उसी उत्साह के साथ जारी रखने की जरूरत है, क्योंकि वायरस की जांच और मामलों की जल्द पहचान के लिए पर्याप्त परीक्षण अत्यंत आवश्यक है।
यह पत्र ऐसे वक्त जारी किया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोविड नियमों के पालन में ढिलाई को लेकर राज्यों को हिदायत दी है। (आईएएनएस)
भारत में अब तक करीब 30 करोड़ से ज्यादा लोग कोविड-19 वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगवा चुके हैं. जिन लोगों ने कोरोना टीके के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया, बिना अनुमति के उनकी यूनिक हेल्थ आईडी बना दी गई.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
भारत में अब तक जिन 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कोरोना टीका लगवाया है, उनमें से ज्यादातर ने टीका लगवाने के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया है. उनकी अनुमति लिए बिना ही सरकार ने उनकी यूनिक हेल्थ आईडी (UHID) भी बना दी. जिन लोगों ने आधार कार्ड के जरिए वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था, वे अपना UHID नंबर अपने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट में देख सकते हैं.
भारत में पब्लिक हेल्थ को डिजिटल बनाने का काम राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) के तहत किया जा रहा है. UHID इसका सबसे अहम हिस्सा है. इसकी मदद से पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को डिजिटल बनाने का प्रयास चल रहा है. जानकार मानते हैं कि UHID जैसी प्रक्रिया के फायदे हो सकते हैं लेकिन बिना कोई कानून बनाए और बिना लोगों से अनुमति लिए यह प्रक्रिया शुरु कर दी गई है. भारत के डेटा सुरक्षा कानून भी बहुत कमजोर हैं, जिसके चलते लोगों की स्वास्थ्य जानकारियों का गलत इस्तेमाल होने का डर है.
बिना अनुमति कैसे बनी यूनिक आईडी
भारत में केंद्र सरकार ने UHID को उन लोगों के आंकड़े जुटाने के उद्देश्य से लॉन्च किया है, जो स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले रहे हैं. UHID के इस्तेमाल के जरिए स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी सारी जानकारियां, जैसे इलाज के पुराने रिकॉर्ड, डॉक्टर की अप्वाइंटमेंट्स, फीस, दी गई दवाओं की जानकारी और तमाम टेस्ट रिपोर्ट एक ही जगह पर स्टोर की जा सकती हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जनवरी में ही वैक्सीनेशन के साथ UHID बनाए जाने की प्रक्रिया शुरु करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था. डिजिटल अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संस्था एक्सेस नाउ के रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "भारत में स्वास्थ्य पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. ऐसे में बिल्कुल साफ नहीं है कि इस योजना को कैसे काम में लाया जाएगा. सबसे बुरी बात यह है कि करोड़ों लोगों की UHID बन गई है लेकिन अभी तक इसे लेकर कोई कानून नहीं है."
टीके के लिए अनिवार्य था आधार कार्ड
सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा था कि इसके लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा. यह भी कहा गया था कि आधार कार्ड के बिना किसी इंसान को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ पाने से नहीं रोका जाएगा लेकिन फिर भी ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों पर वैक्सीनेशन के लिए आधार कार्ड ले जाना अनिवार्य था.
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के डिस्ट्रिक्ट इम्यूनाइजेशन ऑफिसर फखरेयार हुसैन ने UHID बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताया, "जब कोई अपने आधार कार्ड के साथ कोविन पोर्टल या ऐप पर रजिस्टर करता है, तभी यह आईडी क्रिएट हो जाती है." रमनजीत सिंह चीमा इसे असंवैधानिक और अधिकारों का उल्लंघन बताते हैं. उनका मानना है कि अगर यह बात भी मान लें तो भी सरकार को आईडी क्रिएट करने से पहले एक स्क्रीन पॉप अप या एक टिक बॉक्स के जरिए सहमति लेनी चाहिए.
UHID से भारत को खास लाभ नहीं
किसी इंसान के स्वास्थ्य से जुड़ी सभी जानकारियां एक जगह पर होने से हेल्थकेयर सिस्टम के बहुत मजबूत होने की बात कही जा रही है. इससे डॉक्टरों को मरीजों की पूरी मेडिकल हिस्ट्री एक ही जगह मिल जाएगी, जिससे उसके हालिया रोग के बारे में काफी जानकारी मिल सकेगी और डॉक्टर को रोगी के इलाज में आसानी होगी. पहले भी दुनिया के कई देशों में इस तरह की नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया गया है.
यूरोपीय देश एस्टोनिया इस मामले में सबसे आगे है, जहां दुनिया का सबसे अच्छा डिजिटल हेल्थकेयर सिस्टम है. यहां 95 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या का स्वास्थ्य डेटा डिजिटलाइज किया जा चुका है. लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का इस्तेमाल प्रशासनिक सुविधाओं का लाभ देने और मेडिकल रिसर्च के दौरान कई जटिल मॉडल को समझने में भी किया जा सकता है.
डिजिटल सिस्टम से बीमारी से बचाव
ई-हेल्थ सिस्टम के जरिए कई बीमारियों के इलाज और उनसे बचाव के लिए रिसर्च में भी लाभ हो सकता है. हालांकि जानकारों के मुताबिक यह बहुत दूर की कौड़ी है. पब्लिक हेल्थ पर सरकार के साथ मिलकर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था वात्सल्य की डॉ नीलम सिंह बताती हैं, "अभी बिजली, मेडिकल उपकरण और साफ सुथरे स्वास्थ्य केंद्र की उपलब्धता भी नहीं हो सकी है तो सभी मरीजों के डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करना बहुत दूर की बात है."
जिला स्तर के अस्पतालों में मरीजों के डिजिटल रिकॉर्ड रखने के लिए जरूरी इंतजाम कर भी दिया जाए तो डेटा मेंटेन करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की भारी कमी है. अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर डॉ. ऊषा राम भी कहती हैं, "इस योजना को जमीन पर प्रभावी रूप में शुरू करने से पहले आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत होगी."
फायदे नहीं पर समस्याएं कई
जानकार बताते हैं कि मजबूत डेटा सुरक्षा कानून के बिना लोगों के स्वास्थ्य संबंधी डेटा का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है इसलिए केंद्र सरकार को इसे लागू करने से पहले स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा से जुड़े नियम बनाने चाहिए थे. फिलहाल मौजूद डेटा सुरक्षा कानून काफी कमजोर हैं. इसके अलावा डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 की केंद्र सरकार को बहुत ज्यादा अधिकार देने के लिए आलोचना भी हो चुकी है. ऐसे में बिना मजबूत कानून, नियमों और नीतियों के यह कारगर नहीं हो सकेगा. एक समस्या यह भी है कि UHID के तहत लोगों की धार्मिक मान्यताओं, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और राजनीतिक रुचियों की जानकारी हासिल करने की छूट भी दी गई है. ऐसा डेटा नागरिकों की प्रोफाइलिंग करने और उन पर नजर रखने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "सरकारें खास तरह या समुदाय के लोगों को नौकरियों या अन्य सुविधाओं से बाहर करने के लिए इसे इस्तेमाल कर सकती हैं. पुलिस जैसी संस्थाएं स्वास्थ्य से जुड़े डेटा का इस्तेमाल विरोधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को ब्लैकमेल करने तक के लिए कर सकती हैं." जब इतनी संवेदनशील जानकारियां जुटाई जा रही हों तो हमें प्राइवेट कंपनियों से भी सावधान रहने की जरूरत होगी. अगर ऐसे डेटा के प्रबंधन का जिम्मा किसी प्राइवेट कंपनी को मिल जाए तो वह इसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकती है. इतना ही नहीं इंश्योरेंस कंपनियां इसके जरिए गलत दावे कर क्लेम न देने की कोशिशें भी कर सकती हैं.
बड़ी जनसंख्या के लिए खतरे
जब आधार कार्ड की शुरुआत हुई थी तब कहा गया था कि यह स्वैच्छिक होगा. लेकिन धीरे-धीरे इसे हर प्रक्रिया में जरूरी बनाया जाने लगा. चाहे वह मिड-डे मील हो या ईपीएफ पेंशन हर जगह इसकी जरूरत होती है. हालांकि केंद्र सरकार ने UHID को स्वैच्छिक बताया था लेकिन इसे बिना अनुमति करोड़ों लोगों पर थोप दिया गया है. वर्तमान बीजेपी सरकार की मुस्लिम समुदाय विरोधी नीतियों से भी जानकार डरे हुए हैं कि इसका इस्तेमाल भेदभाव को और बढ़ा सकता है. डॉ. ऊषा राम कहती हैं, "UHID को लागू करने से पहले लोगों को इसके बारे में जागरुक करना और इस पर भरोसा दिलाना जरूरी है."
अब ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में मरीजों के पास आधार कार्ड होना अनिवार्य हो गया है. लोगों (खासकर कामगार वर्ग और हाशिए पर खड़े लोगों) के पास इसे न बनवाने का कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा गया है. UHID के साथ भी ऐसा ही होने की उम्मीद है. रमनजीत सिंह चीमा याद दिलाते हैं कि आधार को अनिवार्य करने के पीछे जिस सरकारी अधिकारी की भूमिका थी, UHID के पीछे भी वही अधिकारी है. यूं तो स्वास्थ्य जानकारियों के डिजिटलीकरण के कई फायदे हैं लेकिन ई-हेल्थ सिस्टम स्थापित करने से पहले डेटा या प्राइवेसी के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों का होना भी बहुत जरूरी है.(dw.com)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | केंद्र सरकार ने बाबा रामदेव के नेतृत्व वाले पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट, हरिद्वार को 'सर्च एसोसिएशन' का टैग दिया है, जिससे ट्रस्ट को किए गए दान को आयकर से छूट मिल गई है। अधिसूचना वर्ष 2021-2022 से 2026-27 के दौरान किए गए दान पर लागू होगी और कोई दाता उसी अवधि के लिए कर कटौती का दावा कर सकता है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की अधिसूचना में कहा गया है, "आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 35 की उप-धारा (1) के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, आयकर नियम, 1962 के नियम 5सी और 5डी के साथ पठित, केंद्र सरकार एतद्द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 35 की उप-धारा (1) के प्रयोजनों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए 'रिसर्च एसोसिएशन' श्रेणी के तहत मैसर्स पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट, हरिद्वार को मंजूरी देती है। इसे आयकर नियम, 1962 के नियम 5सी और 5डी के साथ पढ़ें।"
"यह अधिसूचना आधिकारिक राजपत्र (यानी पिछले वर्ष 2021-2022 से) में प्रकाशन की तारीख से लागू होगी और तदनुसार आकलन वर्ष (वर्षो) 2022-23 से 2027-28 के लिए लागू होगी।"
आयकर मानदंडों के अनुसार, 'व्यवसाय और पेशे' के तहत आय की गणना करते समय, एक करदाता को वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए 'अनुमोदित वैज्ञानिक अनुसंधान संघ' को भुगतान की गई किसी भी राशि पर कटौती करने की अनुमति है।
रिसर्च फाउंडेशन को दी गई नई कर मान्यता के साथ, संस्था अब दान में वृद्धि देखने की उम्मीद कर सकती है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने नई टीम घोषित कर दी है। नई टीम में सात उपाध्यक्ष और तीन महामंत्री बनाए गए हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से सांसद राजू बिष्ट को राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया है। इसी तरह रोहित चहल और वैभव सिंह को भी राष्ट्रीय महामंत्री पद मिला है। पश्चिम बंगाल के विधायक अनूप कुमार साहा, महाराष्ट्र के मधुकेश्वर देसाई, बिहार के मनीष सिंह, ओडिशा के अर्पिता अपराजिता बड़जेना, महाराष्ट्र के विधायक राम सतपुते, उत्तर प्रदेश के डॉ. अभिनव प्रकाश और उत्तराखंड की नेहा जोशी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है।
इसी तरह दिल्ली के तेजिंदर पाल सिंह बग्गा, केरल के श्याम राज, तेलंगाना के शहजादी सैय्यद, छत्तीसगढ़ के रवि भगत, हरियाणा के गौरव गौतम, असम के अरुण ज्योति हजारिका और मणिपुर के निन्गथोंजम को राष्ट्रीय मंत्री बनाया गया है। साईं प्रसाद को कोषाध्यक्ष, विनीत त्यागी को कार्यालय प्रभारी और अमनदीप सिंह को मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी मिली है, जबकि कपिल परमार को सोशल मीडिया प्रभारी और वरुण झावेरी को पॉलिसी एंड रिसर्च की जिम्मेदारी मिली है।(आईएएनएस)
लखनऊ, 14 जुलाई | उत्तर प्रदेश आतंक निरोधी दस्ता (यूपी एटीएस) ने अलकायदा से जुड़े तीन और आतंकवादियों को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया है। ये तीनों लखनऊ के ही रहने वाले हैं। गिरफ्तार हुए आतंकियों के नाम शकील, मोहम्मद मुस्तकीम और मुईद है। यूपी एटीएस ने जारी बयान में बताया है कि 11 जुलाई को एटीएस ऑपरेशन में अंसार गजवातुल हिंद से जुड़े दो आतंकियों मिन्हाज और मुशीरुद्द को लखनऊ से गिरफ्तार किया गया था। दोनों अभियुक्तों को कोर्ट के आदेशानुसार 14 दिनों की पुलिस कस्टडी में भेजा गया है। इनसे पूछताछ की जा रही थी।
एटीएस को मिनहाज और मशीरुद्दीन से पूछताछ में इन तीनों के बारे में जानकारी मिली है। तीनों अभियुक्त अलकायदा से जुड़े अंसार गजवा उल हिंद के सदस्य हैं। एटीएस ने बुधवार सुबह वजीरगंज जनता नगर निवासी शकील को बुद्धा पार्क के पास से दबोचा था।
एटीएस के अधिकारी के मुताबिक बीते तीन दिनों से शकील की तलाश की जा रही थी। उसकी तलाश में लखनऊ के कई इलाकों में दबिश दी गई लेकिन वह हाथ नहीं लगा। बुधवार को सुबह शकील की लोकेशन वजीरगंज इलाके में मिली। पेशे से ई रिक्शा चालक शकील को एटीएस की टीम ने बुद्धा पार्क के पास दबोच लिया। एटीएस की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया और सीधे मुख्यालय लेकर चली गई। एटीएस की एक टीम उसके मोबाइल की डिटेल खंगाल रही है। वहीं, उसके ठिकानों पर छापेमारी करने की तैयारी शुरू कर दी गई है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते और पेंशनभोगियों को दी जाने वाली महंगाई राहत को इस साल एक जुलाई से बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने की मंजूरी दे दी। यह मूल वेतन/पेंशन के 17 प्रतिशत की मौजूदा दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
कोविड-19 महामारी से उत्पन्न हुई अप्रत्याशित स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते (डीए) और पेंशनभोगियों को दी जाने वाली महंगाई राहत (डीआर) की तीन अतिरिक्त किस्तों, जो एक जनवरी 2020, एक जुलाई 2020 और एक जनवरी 2021 से देय थीं, पर रोक (फ्रीज) लगा दी गई थी।
अब सरकार ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते और पेंशनभोगियों को दी जाने वाली महंगाई राहत को एक जुलाई 2021 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है, जो मूल वेतन/पेंशन के 17 प्रतिशत की मौजूदा दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि है।
यह वृद्धि एक जनवरी 2020, एक जुलाई 2020 और एक जनवरी 2021 को देय अतिरिक्त किस्तों को दर्शाती है। एक जनवरी 2020 से लेकर 30 जून 2021 तक की अवधि के लिए महंगाई भत्ता/महंगाई राहत की दर 17 प्रतिशत पर ही यथावत रहेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उनके आधिकारिक आवास पर दिन में हुई कैबिनेट समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया।(आईएएनएस)
लखनऊ, 14 जुलाई | उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के जारी महिला सशक्तिकरण अभियान का असर अब हाल ही में संपन्न पंचायत चुनाव में दिखाई दे रहा है। विजयी महिला उम्मीदवारों ने ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत प्रमुख तक प्रमुख पदों पर पुरुषों को पछाड़ दिया है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए कुल 31,212, ब्लॉक प्रमुख के लिए 447 और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद के लिए 42 महिलाओं ने चुनाव जीता है, जो उनके लिए आवंटित एक तिहाई सीटों के कोटे से अधिक है।
पंचायत चुनावों में महिलाओं की बढ़ती जागरूकता और शिक्षित प्रतियोगियों की बढ़ती संख्या को पंचायत चुनावों में महिलाओं की शानदार जीत के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों के रूप में देखा जा रहा है।
यूपी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं ने पंचायत चुनाव में जीत हासिल की है।
पंचायत चुनावों में महिलाओं ने उत्साह से भाग लिया और ग्रामीण जनता उन्हें वोट देने से नहीं हिचकिचाती।
स्थानीय राजनीति में महिलाओं का बढ़ता प्रभुत्व स्पष्ट है और महिलाओं ने 58,176 ग्राम प्रधान पदों में से 31,212 पर जीत हासिल की है, जिसमें 53.7 प्रतिशत सीटों का दावा किया गया है।
राज्य में अखिलेश यादव के शासन के दौरान, केवल 25,809 महिलाओं ने ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव जीता था।
राज्य के 75 जिला पंचायत अध्यक्ष पदों में से 42 में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण मानदंड के अनुसार 24 पदों तक महिलाओं का कब्जा है, जबकि पुरुषों ने केवल 33 सीटों पर जीत हासिल की है।
महिलाओं ने 825 में से 447 सीटों पर जीत का दावा करते हुए ब्लॉक प्रमुख के पदों पर भी जीत हासिल की है।
उल्लेखनीय है कि कई राज्यों में 50 फीसदी आरक्षण होने के बाद भी देश में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व महज 36.87 फीसदी है।
पहली बार ग्राम प्रधान चुनी गई आगरा के बड़ागांव गांव की पढ़ी-लिखी बेटी कल्पना सिंह गुर्जर का मानना है कि शिक्षित महिलाओं को नौकरी करने की बजाय राजनीति में आना चाहिए।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब ट्रस्टी ऋण योजनाओं को बंद करने की मांग करते हैं, तो बहुसंख्यक शेयरधारकों की सहमति आवश्यक होती है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि नोटिस के प्रकाशन के बाद सहमति ली जाएगी। शीर्ष अदालत का फैसला फ्रैंकलिन टेम्पलटन द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया, जिसने अपने निवेशकों की सहमति के बिना साधारण बहुमत से इसकी छह ऋण योजनाओं को बंद करने पर रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने म्यूचुअल फंड नियमों की वैधता को भी बरकरार रखा और उल्लंघन और ट्रस्टियों द्वारा गलत निर्णय के मामले में धारा 11 बी के तहत सेबी को असाधारण मामलों में इन मामलों को उठाए जाने की शक्ति है।
न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि धारा 53 बी के प्रावधानों की जांच नहीं की गई है और यह स्पष्ट किया जाता है कि फैसले को रोकने का उद्देश्य सेबी के समक्ष कार्यवाही को किसी भी मामले में पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने से रोकना है।
पीठ ने यह स्पष्ट किया कि अदालत ने तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया है, इसके बजाय केवल व्याख्या में सैद्धांतिक अभ्यास में कानून की जांच की है। अदालत ने कहा, इसलिए, हमने तथ्यों की बिल्कुल भी जांच नहीं की है। उन्हें खुला छोड़ दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने उन समाचार रिपोटरें पर भी ध्यान दिया कि सेबी ने उसके समक्ष कार्यवाही में एक आदेश पारित किया है और यह आदेश अब एसएटी के समक्ष एक चुनौती में लंबित है। शीर्ष अदालत ने मामले को आगे की कार्यवाही के लिए अक्टूबर 2021 के लिए पोस्ट कर दिया है, जिसमें पक्षकारों को मामले में किसी भी तात्कालिकता के मामले में जल्द सुनवाई के लिए आगे बढ़ने की स्वतंत्रता है।
इससे पहले फरवरी महीने के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फ्रैंकलिन टेम्पलटन को छह बंद स्कीमों के निवेशकों का पैसा 20 दिन में लौटाने का आदेश दिया था। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा था कि फ्रैंकलिन को इन स्कीमों के यूनिटधारकों को तीन सप्ताह के भीतर 9,122 करोड़ रुपये लौटाने होंगे।
बता दें कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ फ्रैंकलिन टेम्पलटन की अपील पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निवेशकों की पूर्व मंजूरी के बिना छह डेट स्कीमों को बंद करने के फ्रैंकलिन के फैसले पर रोक लगा दी थी। दरअसल फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचल फंड ने अप्रैल, 2020 में निकासी के दबाव के बीच छह स्कीमों को बंद कर दिया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 जुलाई | कांग्रेस ने देश में टीकाकरण की धीमी गति और ईंधन वृद्धि को लेकर केंद्र की भाजपा नीत सरकार पर निशाना साधा है, क्योंकि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने आरोप लगाया कि टीकों की कमी और ईंधन की कीमतों में वृद्धि से भाजपा सरकार जनता के घाव पर नमक डाल रही है।
उन्होंने ट्वीट किया, "टीकाकरण की दर में 60 प्रतिशत की गिरावट आई है और इस सरकार में ईंधन की कीमतों में 63 गुना की बढ़ोतरी हुई है। भाजपा लोगों के घाव पर नमक रगड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।"
कांग्रेस देश भर में ईंधन की बढ़ती कीमतों और महंगाई पर विरोध कर रही है और कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने में विफलताओं के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने मंगलवार को महंगाई और ईंधन की बढ़ती कीमतों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला और पेट्रोलियम उत्पादों पर कर और विभिन्न वस्तुओं पर आयात शुल्क कम कर तत्काल राहत की मांग की।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चिदंबरम ने मंगलवार को केंद्र पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश के लोगों को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार महंगाई रोकने में पूरी तरह विफल साबित हुई है और वह जनता की बेबसी का फायदा उठा रही है। उन्होंने सरकार से पेट्रोलियम पदार्थ और जरूरी सामानों से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरें घटाने की मांग की है।
उन्होंने कहा, "देश में महंगाई दर 6 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गई है। यह स्थिति तब है, जब केंद्र और रिजर्व बैंक ने महंगाई दर का लक्ष्य 4 फीसदी तय कर रखा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य आधारित महंगाई दर 6.26 फीसदी तक पहुंच गई है। इसमें शहरी उपभोक्ता महंगाई दर मई में 5.91 फीसदी थी, जो जून में 6.37 फीसदी तक पहुंच गई।"
उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी की जा रही है। कांग्रेस नेता ने कहा कि महंगाई के आगे देश का आम उपभोक्ता बेबस है। सरकार लोगों की बेबसी का फायदा उठा रही है।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि उसे पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में कमी करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "मैं सरकार को सावधान कर दूं, अगर आप यह दिखावा करते हैं कि यह अस्तित्व में नहीं है तो उच्च मुद्रास्फीति (बढ़ रही महंगाई) का मुद्दा दूर नहीं होगा।"
चिदंबरम ने कहा कि राजग सरकार ने यह दिखावा करना जारी रखा है कि मूल्य वृद्धि के बारे में चिंता एक झूठी चिंता है और अगर सरकार इस मुद्दे की अनदेखी करती है, तो यह मुद्दा दूर हो जाएगा। कांग्रेस पार्टी मूल्य वृद्धि के मुद्दे पर सरकार की कठोर लापरवाही की निंदा करती है। (आईएएनएस)
महामारी से उबरने की कोशिशों में पीछे छूट जाने के खिलाफ महिलाओं ने रोम में एक मुहिम शुरू की है. जी20 के मौजूदा अध्यक्ष के रूप में इटली से उम्मीद की जा रही है कि महिलाओं के अधिकारों की मांगों का देश समर्थन करेगा.
रोम में एक तीन-दिवसीय गोष्ठी की शुरुआत हुई है जिसका उद्देश्य है महिलाओं को पुरुषों के साथ बराबरी पर लाने के तरीके निकालना. गोष्ठी में विशेष रूप से इस बात पर भी ध्यान दिया जाएगा कि पूरी दुनिया में महामारी से उबरने की कोशिशों में कहीं महिलाएं पीछे ना छूट जाएं. महिला अधिकार कार्यकर्ता चाह रहे हैं कि इटली के जी-20 के मौजूदा नेतृत्व का फायदा उठाते हुए लैंगिक बराबरी के मुद्दों को उठाया जाए.
इनमें वेतन में बराबरी, फैसले लेने की प्रक्रिया में ज्यादा शामिल किया जाना और महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने वाली पारम्परिक धारणाओं को तोड़ना शामिल है. पहले ही दिन यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन ने गोष्ठी को संबोधित किया और राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं की कमी पर खेद जताया. उन्होंने कहा, "संभव है कि रोम में होने वाले जी-20 के अगले शिखर सम्मलेन में मैं इकलौती महिला नेता रहूंगी."
आर्थिक मदद की शर्त
फॉन डेय लाएन ने इसे और विस्तार से तो नहीं समझाया लेकिन संभव है कि वो जर्मनी में सितंबर में होने वाले चुनावों के बाद अंगेला मैर्केल के जर्मनी की सरकार का नेतृत्व खत्म होने की बात कर रही हों. गोष्ठी में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होती हुई फॉन डेय लाएन ने कहा,"लैंगिक बराबरी का सफर अभी और कितना लम्बा है इसका इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता."
यूरोपीय संघ कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित सदस्य देशों को उबरने के लिए अरबों यूरो की मदद दे रहा है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. इनमें से एक शर्त यह भी है कि आर्थिक बहाली की योजनाओं में और ज्यादा महिलाओं को काम करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाए. संघ के सदस्य देशों में से इटली में ऐतिहासिक रूप से कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम रहा है.
प्रधानमंत्री मारिओ द्राघी ने प्रण लिया है कि उबरने की योजनाऐं महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने का काम करेंगी. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश का विकास उतना मजबूत नहीं रह पाएगा. दशकों से इटली में महिलाएं उनके बच्चों का ख्याल रखने वाले सस्ते संस्थाओं की कमी के बारे में शिकायत करती रही हैं. पुरुषों की घर के कामों में हाथ बताने में भी अरुचि रहती है और महिलाओं का कहना है कि इन दोनों कारण उन्हें नौकरियां करने और उनमें टिकने से रोकते हैं.
महिलाओं को सही तरह का समर्थन
इटली के इंफ्रास्ट्रक्चर और सस्टेनेबल मोबिलिटी के मंत्री एनरिको जीओवानिनी ने माना कि महामारी से उबरने के लिए दी जा रही राशि महिलाओं से ज्यादा पुरुषों की मदद करेगी इसका जोखिम है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कई नौकरियां पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान माने जाने वाले निर्माण क्षेत्र में हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि जिन देशों को यह धनराशि मिल रही है उन्हें ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे सिर्फ पुरुषों के लिए ही रोजगार के अवसर ना बनें.
फॉन डेय लाएन ने कहा कि अगर यूरोपीय संघ को इस दशक के अंदर रोजगार में लैंगिक फासले को 50 प्रतिशत घटाने के अपने लक्ष्य को हासिल करना है तो "महिलाओं को सही तरह का समर्थन" देना होगा. उन्होंने अभिभावकों के लिए लाभ, माताओं और पिताओं के लिए अवकाश और बच्चों और बुजुर्गों के लिए और ज्यादा देखभाल के इंतजाम की मांग की. उन्होंने कहा, "इन नीतियों के लिए सांस्कृतिक स्तर पर बदलाव के साथ साथ पर्याप्त संसाधनों की भी जरूरत है." (dw.com)
सीके/एए (एपी)