राष्ट्रीय
जौनपुर (उप्र) 28 दिसंबर | जौनपुर से भारतीय जनता पार्टी के विधायक रमेश मिश्रा ने बलुआ गांव में शहीद स्मारक पर शिलान्यास स्थल पर अपना नाम नहीं देखने के बाद विवाद खड़ा कर दिया। वहीं नींव पूजन में खुद को आमंत्रित न किए जाने के कारण उन्होंने पूजा स्थल पर रखे आसनों और अन्य वस्तुओं को लात मारकर हंगामा खड़ा कर दिया।
रमेश मिश्रा द्वारा हंगामा करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि वह मौके पर जाते हैं और वहां खड़े लोगों से पूछते हैं कि यहां क्या हो रहा है।
लोगों ने उन्हें सूचित किया कि शहीद स्मारक के नवीनीकरण के एक गेट के लिए नींव रखने की योजना बनाई गई है, यह सुनते ही मिश्रा कथित तौर पर गुस्सा हो गए और सवाल किया कि स्थानीय विधायक होने के बावजूद उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया।
मिश्रा ने कहा कि विधानसभा क्षेत्र में शिलान्यास समारोह के दौरान यह अनिवार्य है कि नींव पत्थर पर क्षेत्र के प्रतिनिधि का नाम होना चाहिए।
बाद में मिश्रा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री से इसकी शिकायत करेंगे।
हालांकि बाद में एक संदेश के माध्यम से उन्होंने स्पष्ट किया कि वह ऐसे कार्यक्रमों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की उपस्थिति के बारे में अधिकारियों को सरकारी आदेश की याद दिला रहे थे।
मिश्र जौनपुर में बदलापुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। (आईएएनएस)
कथित सुसाइड नोट में अमरजीत सिंह ने लिखा है कि वह किसान आंदोलन के समर्थन में और कृषि कानूनों के खिलाफ जान दे रहे हैं, ताकि सरकार जनता की आवाज सुनने को मजबूर हो जाए. पुलिस का कहना है कि वह 18 दिसंबर को लिखे गए सुसाइड नोट की सच्चाई की जांच कर रही है
नई दिल्ली, 28 दिसंबर| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर देश की पहली ड्राइवरलेस ट्रेन सेवा के साथ एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड सर्विस शुरू करने के दौरान केंद्र सरकार के इस दिशा में चल रहे प्रयासों की जानकारी दी। प्रधानमंत्री मोदी ने आंकड़ों के जरिए वर्ष 2014 के बाद से देश में तेजी से मेट्रो सेवाओं के विस्तार की जानकारी दी। उन्होंने देश की पहली मेट्रो सेवा शुरू करने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, साल 2014 में देश में सिर्फ 248 किलोमीटर मेट्रो लाइन्स आपरेशनल थीं। आज ये करीब तीन गुनी यानी सात सौ किलोमीटर से ज्यादा है। वर्ष 2025 तक हम इसका विस्तार 1700 किलोमीटर तक करने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि वर्ष 2014 में सिर्फ 5 शहरों में मेट्रो रेल थी। आज 18 शहरों में मेट्रो रेल की सेवा है। वर्ष 2025 तक 25 से ज्यादा शहरों तक मेट्रो सेवाओं का विस्तार करने की तैयारी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं ये करोड़ों भारतीयों के जीवन में आ रही ईज ऑफ लिविंग के प्रमाण हैं। ये सिर्फ ईंट पत्थर, कंक्रीट और लोहे से बने इंफ्रास्ट्रक्च र नहीं हैं बल्कि देश के नागरिकों, देश के मिडिल क्लास की आकांक्षा पूरा होने के साक्ष्य हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, हमारी सरकार ने मेट्रो पॉलिसी बनाई और उसे चौतरफा रणनीति के साथ लागू भी किया। हमने जोर दिया स्थानीय मांग के हिसाब से काम करने पर, हमने जोर दिया स्थानीय मानकों को बढ़ावा देने पर, हमने जोर दिया मेक इन इंडिया विस्तार पर, हमने जोर दिया आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग पर।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुछ दशक पहले जब शहरीकरण का असर और इसका भविष्य, दोनों ही बिल्कुल साफ था तो उस समय एक अलग ही रवैया देश ने देखा। भविष्य की जरुरतों को लेकर उतना ध्यान नहीं था, आधे-अधूरे मन से काम होता था, भ्रम की स्थिति बनी रहती थी। आधुनिकीकरण के लिए एक ही तरह के मानक और सुविधाएं उपलब्ध कराना बहुत जरूरी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर कॉमन मोबिलिटी कार्ड को इस दिशा में एक बड़ा कदम बताते हुए कहा, आप जहां कहीं से भी यात्रा करें, आप जिस भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करें, ये एक कार्ड आपको इंटीग्रेटेड एक्सेस देगा।
इससे पहले प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जनकपुरी पश्चिम-बोटोनिकल गार्डेन के बीच दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर देश के पहली ड्राइवरलेस ट्रेन परिचालन सेवा का शुभारंभ किया। दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर सेवा की शुरूआत के बाद पिंक लाइन पर भी 2021 के मध्य तक ड्राइवरलेस ट्रेन की सुविधा शुरू होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान संबोधन में कहा, मुझे आज से लगभग 3 साल पहले मजेंटा लाइन के उद्घाटन का सौभाग्य मिला था। आज फिर इसी रुट पर देश की पहली ऑटोमेटेड मेट्रो का उद्घाटन करने का अवसर मिला। ये दिखाता है कि भारत कितनी तेजी से स्मार्ट सिस्टम की तरफ आगे बढ़ रहा है। (आईएएनएस)
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लखनऊ, 28 दिसंबर | उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में अब गाय के गोबर से गमले बन रहे हैं। इससे पौधों को नया जीवन और तेजी से विकास होगा। इसके लिए नगर निगम ने एक निजी संस्था से करार किया है। इसकी शुरूआत आगामी 14 जनवरी को कान्हा उपवन में होगी। सिटिजन डेवलपमेंट फाउंडेशन की अध्यक्ष शालिनी सिंह ने बताया कि गमले बनाने के लिए गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा गेंहू की पराली, मैदा व लकड़ी की छाल का इस्तेमाल होगा। मैदा लकड़ी, छाल, गोबर और पराली के मिश्रण को मजबूती देगा और गिरने पर यह गमले जल्दी टूटेंगे नहीं। इन्हें खूबसूरत बनाने के लिए रंगा भी जाएगा। गमले बनाने की मशीन भी आ चुकी है। इसमें स्वयं सहयता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
नगर-निगम के संयुक्त निदेशक अरविंद कुमार राव ने कहा कि पर्यावरण को बचाने और वृक्षों के विकास को देखते हुए अपने यहां गोबर के गमले बनाने का उत्पादन हो रहा है। इसे बेचने की जिम्मेदारी संस्था की होगी। इससे नगर निगम की आय होगी। लोगों की भी सेहत ठीक रहेगी। (आईएएनएस)
पटना, 28 दिसंबर| मानव बलि मामले में जमुई पुलिस ने दो महिलाओं सहित और तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसके बाद गिरफ्तार हुए लोगों की संख्या पांच हो गई। मृतक सौरभ कुमार (7) की हत्या उसके चाचा तूफानी यादव (35) ने 22 दिसंबर को की थी। उसने अपने छोटे भाई कारू यादव और एक तांत्रिक जनार्दन गिरि (50) की बातों में आकर घटना को अंजाम दिया।
जमुई के एसपी प्रमोद कुमार मंडल ने कहा कि तूफानी यादव कारू यादव के माध्यम से गिरि के संपर्क में आया था। बलिदान के दिन तीनों ने 22 दिसंबर को सोनो पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले कोहिला गांव में तूफानी यादव की झोपड़ी में एक तंत्र- अनुष्ठान किया था। उन्होंने बलिदान को अंजाम देने से पहले ताड़ी (नशीला पेय पदार्थ) पी थी।
मंडल ने कहा, "अनुष्ठान के बाद तूफानी घर गया और सौरभ को गांव की सड़क के बीच लेकर आया, इससे पहले उसने उसे पास की दुकान से बिस्किट का पैकेट खरीद कर दिया था। इसके बाद तूफानी ने एक तलवार की मदद से सौरभ की बलि दे दी।"
मंडल ने बताया कि सौरभ तूफानी यादव के बड़े भाई केवल यादव का बेटा था। वे गांव में अलग-अलग रहते थे। तूफानी यादव के पहले बेटे की बीमारी के कारण पिछले साल मृत्यु हो गई थी और उनकी तीन महीने की बेटी भी पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। कथित तौर पर कारू यादव और जनार्दन गिरि ने उसे अपनी बेटी की जान बचाने के लिए मानव बलि देने का सुझाव दिया था।
हत्या के बाद तूफानी, कारू और जनार्दन गांव से सटे पास के जंगल में भाग गए थे। ग्रामीणों में से किसी ने भी उनका पीछा करने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि तूफानी के हाथ में तलवार थी।
अधिकारी ने कहा "हमने तूफानी की मां कुंती देवी (60) और पत्नी सिंधु देवी (31) को गिरफ्तार किया है, उन्होंने तूफानी को उकसाने की भूमिका निभाई थी और उन्हें 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया था। दो अलग-अलग टीमों द्वारा तूफानी और कारू को शनिवार को जंगल से और जनार्दन को झारखंड में जिला गिरिडीह से गिरफ्तार किया गया।"
(आईएएनएस)
शामली (उप्र), 28 दिसंबर। एक व्यक्ति ने अपनी नव-विवाहित पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज की है, जिसमें उसने कहा है कि उसकी पत्नी नकदी और सोने के आभूषण लेकर घर से भाग गई। शामली पुलिस स्टेशन में दर्ज अपनी शिकायत में, पिंकू, जो शामली जिले के सिंबलका गांव का निवासी है, ने कहा कि उसकी शादी 25 नवंबर को हुई थी। बागपत जिले की निवासी उसकी पत्नी 26 दिसंबर की रात से लापता है।
पिंकू ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी घर से भाग गई है और 70,000 रुपये नकद और सोने के गहने साथ ले गई है।
पुलिस प्रवक्ता के अनुसार, पत्नी के गांव में पूछताछ से पता चला कि उसका परिवार भी अपने घर से 'लापता' है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | पार्टी के स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी व्यक्तिगत यात्रा पर विदेश चले गए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस बात की पुष्टि की है। उनकी यात्रा ऐसे समय में हुई है जब पार्टी सोमवार को अपना स्थापना दिवस मना रही है और देश भर में तिरंगा यात्रा निकाल रही है।
राहुल गांधी ने गुरुवार को कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था और उन्हें एक ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया था कि वो सरकार से किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए कहें।
उन्होंने संसद के संयुक्त सत्र बुलाकर कृषि कानूनों को वापस लेने की भी मांग की थी।
(आईएएनएस)
जेल में ज़िंदगी मुश्किल होती है लेकिन हाल के कुछ हफ़्तों में भारत के जेल अधिकारियों ने क़ैदियों की ज़िंदगी और दुश्वारियों भरी बना दी है और उनके प्रति क्रूरता से पेश आ रहे हैं.
ख़ास तौर पर उन क़ैदियों के ख़िलाफ़ जो सरकार को लेकर मुखर आलोचक रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों ने इन्हें 'मानव अधिकारों को बचाव करने वाला' बताया है.
इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के तालोजा जेल के अधिकारियों को इस बात की याद दिलाई थी कि वो क़ैदियों की ज़रूरतों को लेकर 'मानवतावादी' का रुख़ अपनाएं.
जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्निक ने कहा था, "हमें जेलरों के लिए वर्कशॉप करने की ज़रूरत है. कैसे इतनी छोटी ज़रूरतों को पूरा करने से मना किया जा सकता है. ये सब मानवता के दायरे में आते हैं."
यहाँ जिन 'छोटी ज़रूरतों' की बात की गई है वो एक्टिविस्ट गौतम नवलखा का चश्मा है. जिसे देने से उन्हें जेल के अंदर मना कर दिया गया था.
जजों की ये टिप्पणी तब आई थी जब गौतम के परिवार वालों ने मीडिया में यह बात कही थी कि उनका चश्मा जेल में चोरी हो गया है और जब परिवार वालों ने नया चश्मा भेजा तब जेल के अधिकारियों ने उसे लेने से मना कर दिया.
उनकी साथी साहबा हुसैन कहती हैं, "उन्हें 30 नवंबर को उनका चश्मा चोरी होने के तीन दिन बाद मुझे कॉल करने की इजाज़त दी गई. वो 68 साल के हैं. उन्हें अधिक पावर के चश्मे की ज़रूरत पड़ती है. उसके बिना वो लगभग अंधे हो जाते हैं."
मार्च में कोरोना की वजह से लॉकडाउन होने के बाद परिवार वालों और वकीलों को जेल जाकर मिलने पर पाबंदी लगा दी गई है. जेल में बंद क़ैदियों को पार्सल लेने की भी इजाज़त नहीं है.
साहबा हुसैन कहती हैं कि गौतम नवलखा ने उन्हें बताया था कि उन्होंने जेल अधीक्षक से बात की है और अधीक्षक ने इस बात का भरोसा दिया है कि उन्हें उनका चश्मा मिल जाएगा.
दिल्ली में रहने वाली साहबा हुसैन तुरंत बाज़ार गईं और उन्होंने नया चश्मा खरीद उसे तीन दिसंबर को डाक से भेज दिया.
वो बताती हैं, "मैंने तीन-चार दिनों के बाद जब चेक किया तब पता चला कि पार्सल पाँच दिसंबर को जेल पहुँच चुका था लेकिन उसे लेने से मना कर दिया गया और पार्सल वापस लौटा दिया गया."
इसके बाद ही जजों ने 'मानवता' याद दिलाने वाली टिप्पणी की. सोशल मीडिया पर भी तब इसे लेकर लोगों का ग़ुस्सा फूटा. जेल अधिकारियों ने फिर जाकर उन्हें एक नया चश्मा दिया.
गौतम नवलखा कोई मामूली क़ैदी नहीं हैं. वो एक ग़ैर सरकारी संगठन पीपल्स यूनियन फोर डेमोक्रेटिक राइट्स के पूर्व सचिव हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के लिए नागरिक अधिकार मिलने की लड़ाई में बिताया है. उनके काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है.
वो अप्रैल से भीमा कोरेगांव मामले में जेल में हैं. वो उन 16 कार्यकर्ताओं, कवियों और वकीलों में से एक हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव में आयोजित दलितों की रैली में उन्हें हिंसा करने के लिए भड़काने के मामले में गिरफ़्तार किया गया है. यह रैली एक जनवरी, 2018 को आयोजित की गई थी. इन सभी क़ैदियों ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है.
गौतम नवलखा अकेले ऐसे नहीं हैं जिन्हें जेल के अंदर इस तरह की बुनियादी ज़रूरतों को देने से मना किया गया है.
फादर स्टेन स्वामी
father stan swamy photo by ravi prakash
अभी कुछ दिनों पहले ही फादर स्टेन स्वामी को जेल में स्ट्रॉ और सिपर देने से मना कर दिया गया. वो भी भीमा कोरेगाँव मामले में ही जेल में बंद हैं.
83 साल के एक्टिविस्ट और पादरी फादर स्टेन स्वामी पर्किंसन की बीमारी से पीड़ित हैं. उनके वकीलों ने कोर्ट में बताया है कि वो कप को अपने हाथों से पकड़ कर नहीं रख सकते हैं क्योंकि उनके हाथ कांपते रहते हैं.
कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना ग़ुस्सा निकालते हुए इसे एक घटिया हरकत बताया है और उन्हें तालोजा जेल में सीपर भेजने को लेकर एक अभियान चलाया गया. इसके बाद जल्द ही सिपर फॉर स्टेन ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. कई लोगों ने जेल भेजने के लिए ऑनलाइन ख़रीदे सिपर की स्क्रीनशॉट भी शेयर की.
मुंबई के रहने वाले दीपक वेंकटेशन ने फ़ेसबुक पर लिखा, "जेल में स्ट्रॉ और सिपर की बाढ़ ला दीजिए. पूरी दुनिया को बता दीजिए कि हम अब भी एक राष्ट्र के तौर पर इंसानी जज्बा रखते हैं. हो सकता है कि हमने ग़लत नेता चुन लिया हो लेकिन हमारे अंदर इंसानियत अब भी बाक़ी है. एक 83 साल के बुज़ुर्ग को स्ट्रॉ नहीं मिल रहा हो, जिस देश में हम रहते, वो ऐसा तो नहीं हो सकता."
तीन हफ़्ते बाद फादर स्टेन स्वामी के वकील जब कोर्ट में इसे लेकर गए तो जेल के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें सिपर दिया जा चुका है.
वरवर राव
ververa rao, photo from twitter
पिछले महीने 80 साल के माओवादी विचारक वरवर राव को कोर्ट के दखल देने के बाद अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया.
उनकी वकील इंदिरा जय सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट में कहा कि उनके मुवक्किल बिस्तर पर बीमार पड़े हुए हैं और उन्हें कोई मेडिकल सहायता नहीं दी जा रही है. उनका कैथेटर तीन महीने से नहीं बदला गया."
उन्होंने सरकार पर लापरवाही का इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि वरवर राव की जेल में ही मौत हो सकती है.
जुलाई में वरवर राव को जेल में कोविड-19 हो गया था. उनके परिवार ने जब इसे लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बयान दिया तब जाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया.
लाइव लॉ वेबसाइट के संस्थापक और भारतीय अपराध क़ानून के विशेषज्ञ एमए राशिद कहते हैं, "पिछले पाँच छह सालों से राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में डाल कर राजनीतिक असहमति को कुचलने की कोशिश सरकार की ओर से की जा रही है. "
"इनमें से कई पर राजद्रोह का मामला चलाकर उन्हें 'एंटी-नेशनल' भी घोषित किया गया है. ऐसे क़ैदियों को, भले ही उनके मामले में अभी सुनवाई चल रही हो, जेल के अंदर दयनीय हालत में सालों अपनी सुनवाई के इंतज़ार में रहने पर मजबूर किया जा रहा है."
राशिद बताते हैं कि कैदियों को संविधान के अंतर्गत अधिकार मिले हुए हैं. उन्हें मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराने या फिर सिपर या स्ट्रॉ जैसी बुनियादी ज़रूरत की चीज़ें नहीं देना भारतीय न्यायव्यवस्था को अनसुना करना है.
वो बताते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने अपने 1979 के ऐतिहासिक फ़ैसले में यह कहा था कि क़ैदियों को भी सम्मान के साथ जीने का हक़ है. उनके मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते हैं."
"तब से सुप्रीम कोर्ट और दूसरे कोर्ट हमेशा क़ैदियों के मानवाधिकारों को बरकरार रखने को लेकर फ़ैसले देते रहे हैं."
लेकिन जिन लोगों ने जेल में वक़्त बिताया है, उनका कहना है कि भारत के जेलों में मानव अधिकार है ही नहीं.
सफ़ूरा ज़रगर
दिल्ली के तिहाड़ जेल में 74 दिनों तक रहने वालीं एक गर्भवती छात्र सफ़ूरा ज़रगर ने हाल ही में मुझ से कहा था कि उन्हें और दूसरे क़ैदियों को जेल में बुनियादी चीज़ें भी देने से मना किया गया.
दिल्ली में भड़की हिंसा के मामले में उन्हें अप्रैल में गिरफ़्तार किया गया था. उनके ऊपर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है. उनकी गिरफ़्तारी से लोगों में ग़ुस्से की भावना देखी गई. उन्हें जून में जमानत पर रिहा किया गया.
उन्होंने बताया, "मैं नंगे पाँव सिर्फ़ दो जोड़ी कपड़ों के साथ जेल गई थी. मेरे पास एक बैग था जिसमें शैम्पू, साबुन, टूथपेस्ट, टूथब्रश जैसी चीज़ें थीं. लेकिन उसे अंदर नहीं ले जाने दिया गया. मुझे मेरे जूते भी बाहर खुलवा दिए गए थे. मेरे जूते थोड़े हील वाले थे. मुझे बताया गया कि इसकी इजाज़त नहीं है."
उन्हें तब हिरासत में लिया गया था जब कोविड-19 की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था.
वो बताती हैं, "मैं किसी भी मिलने आने वाले से मिल नहीं सकती थी. ना ही पार्सल ले सकती थी और ना ही पैसे ले सकती थी. पहले 40 दिनों तक मुझे घर पर कॉल करने की भी इजाज़त नहीं थी. इसलिए मैं हर छोटी चीज़ के लिए दूसरे क़ैदियों के रहम पर निर्भर थी."
अप्रैल में जब सफ़ूरा ज़रगर की गिरफ़्तार हुई थीं तब वो उस समय तीन महीने की गर्भवती थीं. वो बताती हैं कि साथ के क़ैदियों ने उन्हें चप्पल, अंडर गारमेंट्स और कंबल दिए.
जेल में कई हफ़्तों तक रहने के बाद उनके वकील ने कोर्ट में याचिका डाली ताकि उन्हें पाँच जोड़ी कपड़े मिल सके.
फरवरी में दिल्ली में दंगे भड़के थे जिसमें 53 लोगों की मौत हुई थी. इनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे. इन दंगों के आरोप में ज़रगर समेत कई मुसलमान स्टूडेंट एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार किया गया है.
अभियुक्तों का कहना है कि वे विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे थे और उनकी दंगे में कोई भूमिका नहीं थी.
इन गिरफ़्तारियों का वकीलों, कार्यकर्ताओं और अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों ने निंदा की है.
लेकिन जो लोग गिरफ़्तार हुए वो जेल में ही रहने पर मजबूर हैं. उनकी ज़मानत की अर्जी लगातार ख़ारिज की जा रही है और वो अपनी बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं.
पिछले महीने जेल में बंद 15 में से सात कार्यकर्ताओं ने चप्पल और गर्म कपड़े नहीं मिलने की शिकायत की थी. एक जज ने तब मजबूर होकर जेल के अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि वे ख़ुद जाकर जेल का दौरा करेंगे.
सफ़ूरा ज़रगर बताती हैं, "चूंकि हम लोग आवाज़ उठाते हैं इसलिए जेल के अधिकारी हमें पंसद नहीं करते थे. वो हर हफ़्ते नए कायदे-क़ानून लेकर जा जाते थे और इसका इस्तेमाल हमें परेशान करने के लिए करते थे. "
कोविड-19 की वजह से लगी पाबंदियाँ अब भी लागू हैं. कैदियों के परिवार के लोगों का कहना है कि वो इस हालात में कुछ खास नहीं कर सकते सिवाए बहुत आपात स्थिति में कोर्ट में अपील करने के जैसा कि साहबा हुसैन ने नवलखा को चश्मे दिलवाने के मामले में किया है. (bbc)
दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के नाम जो संदेश दिया, उसमें छिपे संकेतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्रिसमस के दिन उन्होंने पीएम किसान सम्मान योजना में शामिल किसानों के खातों में 18,000 करोड़ रुपये सीधे ट्रांसफर करने का बटन दबाया।
ठीक उसी वक्त, मुझे सांता क्लॉस और उनके तोहफों वाली कहानियां याद आईं और मैंने खुद को समझाया कि हो सकता है कि त्योहारों के मौसम में ऐसी किसी चीज की उम्मीद की जा रही हो। लेकिन अगले ही पल मोदी ने कहा, "क्रिसमस के दिन, यह किसानों के लिए तोहफा है।"
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री के मुताबिक प्रधानमंत्री ने वर्चुअल तरीके से तकबरीन 8 करोड़ किसानों को संबोधित किया। इसका मतलब यह है कि उन्होंने खेती-किसानी में लगे देश के कुल किसानों में से 50 फीसदी से ज्यादा को संबोधित किया। इस लिहाज से उनका यह संबोधन 'ऐतिहासिक' हुआ, जैसा कि उनके द्वारा लिया गया लगभग हर कदम और फैसला आधिकारिक रूप से ऐतिहासिक ही होता है।
उन्होंने आश्वासन दिलाया कि सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) हटाने और कृषि को कॉरपोरेट के हवाले करने को लेकर किसानों के मन में जो डर है, वो बेमतलब है। उन्होंने कई बार इस बात को दोहराया, "सरकार ऐसा नहीं कर रही है।"
हालांकि, उनके संबोधन का एक बड़ा भाग विपक्षी पार्टियों के नाम समर्पित रहा कि कैसे पार्टियों ने किसानों और उनकी परेशानियों का 'राजनीतिकरण' कर दिया है। उन्होंने एक के बाद एक कई बिंदु गिनाए कि कैसे विपक्षी पार्टियां या गैर-भाजपाई दल राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए कृषि संकट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
उन्होंने अपनी सरकार की योजनाएं गिनाते हुए कई बार दोहराया कि, "जब वे दशकों तक सरकार में थे, तो कुछ भी नहीं हुआ। छोटे किसान गरीब होते गए और वे चुनावों पे चुनाव जीतते गए। मेरी सरकार कृषि में एक नई सोच ला रही है।"
देश के हर क्षेत्र से चुने गए किसानों के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने दो सवाल पूछे: "क्या निजी कंपनियों के साथ व्यापार करने से आपको अपनी ज़मीन खोनी पड़ी?" और "क्या सरकारी नियंत्रण वाले बाजारों के बाहर माल बेचने से आपकी ज्यादा कमाई नहीं हो रही है?"
उनसे बात करने वाले किसानों ने इनकार में जवाब दिया। उन्होंने किसानों से अनुरोध किया कि वे अपने गावों में इस संदेश को फैलाएं।
लेकिन विपक्षी पार्टियों पर किसानों के मुद्दों का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने एक ऐसा एजेंडा सेट कर दिया, जिसको लेकर खुश हुआ जा सकता है कि किसान और किसानी राजनीति की मुख्यधारा में आ चुकी है।
उन्होंने जिक्र किया कि कैसे पश्चिम बंगाल सरकार ने अब तक पीएम किसान योजना को भी लागू नहीं किया है। इस राज्य में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, और भाजपा कि कोशिश है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटा सके।
उन्होंने जिक्र किया कि क्यों अब तक केरल ने कृषि उपज विपणन समिति स्थापित नहीं की है, जबकि सत्ताधारी पार्टी दिल्ली और पंजाब में किसानों का समर्थन कर रही थी। भाजपा केरल में भी रास्ता बनाने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने ये भी कहा की कैसे राजस्थान के स्थानीय चुनावों में, जो लोग तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, उनकी हार हुई। उन्होंने कहा- "चुनावी नतीजे हमारे कानूनों का समर्थन करते हैं।"
विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगों को बिना संबोधित किए उन्होंने यह साफ कर दिया कि यह सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों के बीच की जंग है। प्रदर्शन कर रहे किसानों को उन्होंने अपने भाषण से बाहर ही रखा।
लेकिन जिस बात के लिए खुश होना चाहिए वो ये है कि किसानों के प्रदर्शन ने प्रधानमंत्री का ध्यान खींचा, वो भी ऐसे कि उन्हें किसानों की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए इस प्रभावशाली आयोजन की मदद लेनी पड़ी। इस मुद्दे को सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों के बीच का मुद्दा बनाकर वे कृषि को राजनीतिक संवाद में ले आए। (downtoearth)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों पर बहस की चुनौती दी तो भाजपा की दिल्ली इकाई ने उनके लिए कुर्सी लगवाकर आमंत्रित किया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी के आवास पर प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता और सभी भाजपा नेता मुख्यमंत्री केजरीवाल का इंतजार करते रहे। आदेश गुप्ता और मनोज तिवारी ने कहा कि आज भले ही मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी व्यस्तता के कारण न पहुंचे हों, लेकिन आगे वे अपनी सुविधानुसार समय और स्थान बताएं तो भाजपा नेता उन्हें तीनों कृषि कानूनों के फायदे बताएंगे।
तिवारी ने कहा कि उन्होंने आज केजरीवाल को चर्चा के दौरान पिलाने के लिए स्पेशल चाय की भी व्यवस्था की थी, लेकिन बुलावे के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं आ रहे हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को सिंघु बॉर्डर पर जाकर प्रदर्शनकारी किसानों से मुलाकात कर केंद्र सरकार से तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की। इस दौरान उन्होंने कानूनों पर बहस की चुनौती देते हुए कहा, "मैं किसी भी केंद्रीय मंत्री को चुनौती देता हूं कि वह किसानों के साथ खुली बहस करें, जिससे पता चल जाएगा कि ये कृषि कानून लाभदायक हैं या हानिकारक।"
केंद्र सरकार के किसी मंत्री ने उनकी चुनौती तो नहीं स्वीकार की, लेकिन दिल्ली भाजपा इकाई ने जरूर उन्हें बहस के लिए आमंत्रित किया। इसकी पहल भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने की। मनोज तिवारी के 24, मदर टेरेसा क्रिसेंट रोड स्थित आवास पर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता भी पहुंचे।
आदेश गुप्ता ने कहा कि दूसरे राज्यों मे जाकर मुख्यमंत्री केजरीवाल कहते हैं कि कृषि कानून के क्या लाभ हैं, उन्हें यह समझाने के लिए कोई नहीं आया। आज जब उनको यह समझाने के लिए बुलाया, तो वे आए नहीं।
मनोज तिवारी ने कहा कि कुछ दिनों पहले निगम के तीनों महापौर मुख्यमंत्री के दरवाजे के बाहर कई दिनों तक रहे, लेकिन केजरीवाल बाहर निकलकर मिलने तक नहीं आए। अब कृषि कानूनों पर बहस के लिए बुलावे के बाद भी वह नहीं आए।
--आईएएनएस
उत्तर प्रदेश से रणविजय सिंह, मध्यप्रदेश से राकेश कुमार मालवीय, छत्तीसगढ़ से शिरीष खरे और हरियाणा से शाहनवाज आलम की रिपोर्ट
पीएम किसान सम्मान योजना के तहत 11.40 करोड़ किसान पंजीकृत हैं, लेकिन 7वीं किस्त नौ करोड़ किसानों को देने की बात कही जा रही है। डाउन टू अर्थ ने उन किसानों से बात की, जिन्हें पैसा नहीं मिल रहा है। पीएम किसान की वेबसाइट के मुताबिक अगस्त-नवंबर 2020-21 तिमाही की किस्त 10,07,30,803 किसानों को भेजी गई है, जबकि इससे पहले की तिमाही में यह संख्या अधिक थी। अप्रैल-जुलाई 2020-21 में 10,46,07,572 किसानों को 2,000 रुपए की राशि भेजी गई थी।
हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कहा था कि लगभग 14.5 करोड़ किसानों को पीएम किसान सम्मान की राशि दी जा सकती है, लेकिन अब तक 11.40 करोड़ किसानों का ही पंजीकरण किया गया है। किसानों को यह राशि क्यों नहीं मिल रही है? डाउन टू अर्थ ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों से बात की-
उत्तर प्रदेश
"सरकार किसानन के दुई हजार रुपया देत हय, लेकिन हमका एकव नाई मिला," किसान सम्मान निधि को लेकर यह बात यूपी के सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले किसान संजय कुमार (36) कहते हैं।संजय ने बताया कि किसान सम्मान निधि के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के बाद वह कई बार ब्लॉक पर गए हैं। हर बार उनसे कहा गया कि अब से 2 हजार रुपए आना शुरू हो जाएगा, लेकिन अभी तक एक किश्त भी नहीं आई है। संजय को उम्मीद है कि 25 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री देश के 9 करोड़ किसानों के खाते में 2 हजार रुपए की सातवीं किश्त भेजेंगे तो उनके खाते में भी पैसा आ जाएगा। हालांकि फिलहाल यह मूमकिन नहीं लगता, क्योंकि जिन किसानों की पिछली किश्तें बकाया हैं उनकी सातवीं किश्त 25 दिसंबर को नहीं आएगी।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले किसान संजय कुमार। फोटो: रणविजय सिंह
यूपी में ऐसे किसानों की संख्या करीब 28 लाख है। इन 28 लाख किसानों में किसी को एक भी किश्त नहीं मिली, किसी को एक-दो किश्तें मिली हैं तो किसी का पैसा गलत बैंक खाते में जा रहा है। इन किसानों से बात करने पर पता चला कि यह छोटी मोटी गड़बड़ियां है जो जानकारी दर्ज करते वक्त हुई हैं। जैसे - किसी का आधार नंबर गलत हो गया तो किसी का खाता संख्या ही गलत चढ़ चुका है। अब इसे ठीक कराने के लिए यह ब्लॉक और लेखपाल के चक्कर काट रहे हैं।
इन गड़बड़ियों पर यूपी के प्रमुख सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने 'डाउन टू अर्थ' से बताया कि "हमें ऐसी गड़बड़ियों की जानकारी है। शिकायत मिलने पर इसे सही किया जाता है। किसान सम्मान निधि के तहत प्रदेश में 2 करोड़ 41 लाख किसानों का पंजीकरण हुआ है। इतने किसानों को किश्तें मिलनी चाहिए। इसमें से लगभग 14 लाख किसानों की किश्तें इसलिए नहीं मिल पा रही कि इनका आधार नंबर गलत चढ़ गया है या फिर इनका नाम गलत है। यह संख्या पहले बहुत थी जिसे हम कम करके 14 लाख पर लाए हैं।
देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि 25 दिसंबर को यूपी के 2 करोड़ 13 लाख किसानों को सातवीं किश्त मिलेगी। इसके अलावा प्रदेश के 14 लाख किसान ऐसे हैं जिनकी पिछली किश्तें बकाया हैं, जब उनको पिछली किश्तें मिल जाएंगी तब सातवीं किश्त उनको भेजी जाएगी। 14 लाख वह किसान जिनके खातों में गड़गड़ियां हैं और अन्य 14 लाख वह किसान जिनकी पिछली किश्तें बकाया है।
सीतापुर जिले के बरोसा गांव के अजीत प्रताप सिंह (32) भी उन 28 लाख किसानों में शामिल हैं जिनके खाते में गड़बड़ी देखने को मिल रही है। अजीत के खाते में शुरुआत की तीन किश्तें तो आईं हैं लेकिन चौथी और पांचवी किश्त किसी दूसरे के खाते में चली गई। अजीत कहते हैं, "मैंने कई बार शिकायत की। हरगांव ब्लॉक पर लेखपाल से भी मिलकर आया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। मेरे नाम से आया पैसा किसी दूसरे के खाते में जा रहा है और मैं कुछ नहीं कर सकता।"
इसी तरह बागपत जिले के शाहपुर बड़ौली गांव के किसान राम कुमार (41) ने अक्टूबर 2019 में पीएम किसान सम्मान निधि के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। राम कुमार बताते हैं, “रजिस्ट्रेशन कराए हुए साल भर से ज्यादा हो गया। अभी तक एक भी किश्त नहीं आई है। पहले मैंने खूब भाग दौड़ की। कई महीने तक ब्लॉक के चक्कर काटे, अब छोड़ दिया है।”
डाउन टू अर्थ ने इसी साल अप्रैल के महीने में यूपी में पीएम किसान सम्मान निधि की गड़बड़ियों पर एक खबर की थी। उस खबर में सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले 71 साल के ललऊ की कहानी थी। ललऊ ने तब बताया था कि पीएम किसान सम्मान निधि पाने के लिए खूब भाग दौल की, लेकिन उनका पैसा नहीं आया। अब करीब 6 महीने बीतने के बाद भी ललऊ के खाते में एक भी किश्त नहीं पहुंची है, जबकि उनका रजिस्ट्रेशन पिछले साल हो चुका था।
मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के शिवदत्त पाठक ने एक साल किसान सम्मान निधि के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी कर पंजीयन करा लिया था। उनका पंजीयन सफल भी हो गया। पर अभी तक उन्हें इस सम्मान निधि की राशि नहीं मिल पाई है। होशंगाबाद जिले के रोहना गांव के किसान राजेश सामले भी अपने पिताजी मृत्यु के बाद एक साल पहले इस योजना में पंजीयन करवा चुके हैं। पर उन्हें भी अब सम्मान राशि नहीं मिल पाई है।
दमोह जिले की हटा तहसील के बरखेड़ा चैन निवासी ओमप्रकाश पटेल की तीन किश्तों के बाद राशि नहीं आई है। ओमप्रकाश ने यह सोचा कि लॉकडाउन और महामारी की वजह से सरकार ने इस योजना का पैसा अभी खाते में नहीं डाला है, इसलिए उन्होंने इसके बारे में पता भी नहीं किया है।
रीवा जिले के किसान राजमन यादव चौकिया डभौरा बस्ती में रहते हैं। उन्होंने भी इस योजना में पंजीयन करवाया था और सभी दस्तावेज जमा किए थे। इसके बावजूद उन्हें एक भी किस्त नहीं मिल सकी है। इस बारे में जब पटवारी से पूछा तो वह भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा है।
नरोत्तम लाल पटेल हटा दमोह जिले के किसान हैं। उन्होंने भी आनलाइन आवेदन किया था। उन्हें इस योजना की एक भी किस्त नहीं मिली थी। उनके बेटे छत्रसाल ने जब पोर्टल पर चेक किया तो पता चला कि खाता संख्या में एक अंक ज्यादा दर्ज था, जबकि इसके पंजीयन के वक्त पासबुक की फोटो कॉपी भी लगाई थी। इसके बाद खाता संख्या को अपडेट करवा गया। इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद एक दिन छोड़कर तीन किस्तें उनके खाते में जमा हो पाईं।
होशंगाबाद जिले के एक गांव में कॉमन सर्विस सेंटर के संचालक प्रकाश ने बताया कि इस साल जो लोग भी अपना पंजीयन करवा रहे हैं उनके पंजीयन अप्रूव नहीं हो रहे हैं। पंजीयन के लिए लाइन तो ओपन है, लेकिन जब तक अप्रूवल नहीं मिलेगा, तब तक इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल सकेगा।
पन्ना जिले के इंद्रसिंह पटी कल्याणपुर गांव के युवा हैं। एक संस्था के साथ जुड़कर वह अपने गांव में लोगों को मनरेगा, पीएम किसान और अन्य योजनाओं का लाभ दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं। इंद्र ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या थी कि लोगों को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी ही नहीं थी, लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है, और उन्हें उसका उपयोग करना भी नहीं आता।
उन्होंने पिछले आठ महीने में सौ से ज्यादा किसानों के आवेदन करवाए हैं, जिससे लोगों को लाभ मिलना शुरु भी हुआ है। जिन लोगों को पंजीयन के बावजूद लाभ नहीं मिलता उनमें सबसे ज्यादा मुश्किल आधार कार्ड, बैंक खातों की गलत एंट्री से संबंधित है। लेकिन हर पंचायत में इंद्र जैसे नौजवान नहीं हैं, जो अपने दूसरे कामों के साथ लोगों को इस तरह भी मदद कर सकें।
छत्तीसगढ़
आरती दानी छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले के सिलतारा गांव की एक महिला किसान हैं। वे अपनी सवा एकड़ की जमीन पर पति के साथ मिलकर मक्का की खेती करती हैं। अपने चार सदस्यों वाले इस छोटे से परिवार की आजीविका का मुख्य जरिया खेती ही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पंजीयन कराने के बाद इसी साल मई में उनके बैंक खाते में पहली किस्त के तौर पर 2,000 रुपए की राशि जमा हुई। लेकिन, उसके बाद अगली किस्त के तौर पर अगस्त में मिलने वाली 2,000 रुपए की राशि उनके खाते में नहीं पहुंची। अब उन्हें दिसंबर में मिलने वाली 2,000 रुपए की किस्त का इंतजार है।
आरती दानी बताती हैं, "एक बार जब मेरा पंजीयन हो चुका है और एक लाभार्थी के रुप में जब मैं इसके पात्र हूं, यहां तक की मुझे मेरी पहली किस्त का पैसा भी दिया जा चुका है तो समझ नहीं आता कि अगली किस्त क्यों रोक दी गई।" आरती ने इस बारे में जानने की कोशिश भी की। लेकिन, उन्हें अपने सवाल का जवाब नहीं मिला। असल में उन्हें नहीं पता कि उनके सवाल का जवाब देने वाली एजेंसी कौन-सी है।
आमतौर पर एक सामान्य किसान यह जानने के लिए हद से हद पटवारी और तहसीलदार तक ही जा सकता है। लेकिन, आरती की तरह कई किसानों को पटवारी और तहसीलदार से भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। वहीं, आरती की तरह बतौर लाभार्थी कई किसानों के नाम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के पोर्टल में तो दर्ज दिखाए दे रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायत है कि उन्हें इस योजना का पैसा मिलना बंद हो गया है।
छत्तीसगढ़ के किसान नेता राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि इस राज्य में पांच एकड़ से कम रकबा वाले करीब 32 लाख किसान हैं। किंतु, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत करीब 24 लाख किसानों का पंजीयन हुआ। हर किस्त के बाद केंद्र सरकार द्वारा जो सूची अपडेट होनी चाहिए, शायद वह सूची अपडेट नहीं हो रही है।
जांजगीर जिले के तीन लाख 29 हजार किसानों का पंजीयन किया गया था। यहां पहली किस्त दो लाख 40 हजार किसानों के खाते में आई। फिर दूसरी किस्त एक लाख 83 हजार किसानों को ही मिली। उसके बाद तीसरी किस्त 75 हजार किसानों को ही दी गई। अंत में चौथी किस्त 35 हजार किसानों तक ही आई। दुर्ग जिले में कुंडा गांव के बुजुर्ग किसान आई के वर्मा को भी पिछली दो किस्तों का पैसा नहीं मिला है।
हरियाणा
कैथल जिले के पुंडली तहसील के गांव फरल के किसान गुणी प्रकाश ठाकुर के पास तीन एकड़ जमीन है। 64 वर्षीय किसान गुणी प्रकाश को पीएम किसान सम्मान की एक भी किस्त नहीं मिली। गुणी प्रकाश का कहना है कि जमाबंदी के वक्त मेरा नाम गुण प्रकाश कर दिया गया, जबकि मेरे आधार, राशन कार्ड और बैंक अकाउंट में नाम गुणी प्रकाश है। नाम के अंतर को लेकर शपथ पत्र भी दिया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। जमाबंदी सही करवाने के लिए जन्म प्रमाण पत्र और पुरानी खतियान मांगी जा रही है। आधार, राशन कार्ड और बैंक में नाम बदलवाना भी संभव नहीं है। अब हार कर मैंने उम्मीद ही छोड़ दी।
इसी तरह फरल गांव के ही कलेक्टर सिंह का कहना है कि उनके पिता के नाम दली राम की स्पेलिंग गलती होने की वजह से अब तक उन्हें सम्मान निधि नहीं मिला है। सुखबीर सिंह के जमा बंदी में पिता का नाम हिन्दी में ज्ञान सिंह की जगह 'गयान' लिखा है। कृषि विभाग कहता है कि गयान और ज्ञान एक ही नहीं है। यह कहकर आवेदन रद्द कर दिया। दो बार आवेदन रद्द होने के बाद अब तक आवेदन नहीं किया है। इस गांव के किसानों का दावा है कि एक साल तक आवेदन लंबित होने के बाद उन्हें अब रद्द किया जा रहा है। करीब 200 किसानों के आवेदन रद्द किए जा चुके है।
वहीं, तीन एकड़ जमीन के मालिक गुरुग्राम (गुड़गांव) के पातली गांव के किसान अशोक कुमार कहते है, उन्होंने बीते वर्ष सितंबर में इस योजना के तहत रजिस्टर्ड कराया था। पहली बार इस साल उन्हें 18 अप्रैल को 2000 रुपये मिला है। अभी तक उन्हें अगस्त से नवंबर के बीच मिलने वाली किस्त भी नहीं मिली है।
पहली किस्त के वक्त पूरे प्रदेश में 19,23,238 किसान पंजीकृत थे और 18,69,950 किसानों को लाभ मिला था, वहीं छठीं किस्त के वक्त 14,64,657 पंजीकृत किसान थे और 1168389 किसानों को लाभ मिला, जबकि सातवीं किस्त के लिए हरियाणा सरकार ने 12,53,982 किसानों को चिह्नित किया है। जिसे सम्मान निधि मिलेगा।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, इस योजना का लाभ लेने के लिए जिन किसानों ने सीएससी सेंटरों पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाया था, उन किसानों की जमीन की तस्दीक नहीं हो पाई। कई किसानों के जमाबंदी, अकाउंट या आधार कार्ड में गलती होने की वजह से भी सम्मान निधि नहीं मिल पा रही है। बता दें कि सातवीं किस्त के लिए कृषि विभाग द्वारा जमीन की तस्दीक के लिए एक फॉर्म जारी किया गया है। इसे किसानों को भरकर खंड कृषि कार्यालय में जमा कराने के बाद फॉर्म को गांव का नंबरदार व हलका पटवारी तस्दीक कराना होगा। इसमें साफ लिखा है कि उन किसानों को ही योजना का लाभ दिया जाएगा जो एक फरवरी 2019 से पहले जमीन पर मालिकाना हक रखते हैं।
पीएम किसान सम्मान निधि के नोडल अधिकारी सुनील का कहना है कि इस योजना में पहले कई अपात्र लोग शामिल हो गए थे। पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ ले रहे लाभार्थियों का वेरिफिकेशन किया जा रहा है। जो अपात्र लोग इस योजना का लाभ ले रहे थे, उनका लिस्ट से नाम हटा दिया गया है। पैसे सीधे लाभार्थी के अकाउंट में जाता है इसलिए सभी जानकारी देनी अनिवार्य है। (downtoearth)
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर हैं.
बीजेपी, कांग्रेस से लेकर अकाली दल इस मुखरता को 'केजरीवाल की अवसरवादिता' क़रार दे रहे हैं.
वहीं, आम आदमी पार्टी का दावा है कि वो किसानों के साथ उस दिन से खड़ी है जब से ये क़ानून लोकसभा और राज्य सभा में पास किए गए थे.
इस मुद्दे पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बादल और केजरीवाल के बीच पिछले कई हफ़्तों से 'ट्विटर जंग' छिड़ी हुई रही.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, "इन कृषि क़ानूनों के बारे में किसी भी मीटिंग में कोई चर्चा नहीं की गई थी और अरविंद केजरीवाल आपके बार-बार दोहराये गए झूठ से ये नहीं बदलने वाला है. और बीजेपी भी मुझपर दोहरे मापदंड रखने का आरोप नहीं लगा सकती है क्योंकि आपकी तरह मेरा उनसे किसी किस्म का गठजोड़ नहीं है."
नोटिफ़ाई किया तो सदन में कानून क्यों फाड़ा?
विपक्षी पार्टियों का सवाल है कि जब दिल्ली सरकार ने कृषि क़ानून को नोटिफ़ाई कर दिया तो उसके बाद उन्हें सदन में फाड़ने का मतलब क्या है?
इस बारे में आप विधायक जर्नेल सिंह ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "जिस दिन किसी क़ानून पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं, उस दिन उसे नोटिफाई या डिनोटिफाई करने की किसी स्टेट की ताक़त नहीं रह जाती है. अगर राज्य सरकार के हाथ में होता तो पंजाब सरकार अपने यहाँ रद्द कर लेती तो किसानों को इतने महीनों से यहाँ बैठने और धक्के खाने की क्या ज़रूरत थी?"
वो कहते हैं, "ये सिर्फ़ गुमराह करने के लिए बोला जा रहा है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की विधानसभा में भी और आंदोलन के पहले दिन से अपना रुख़ स्पष्ट किया है."
लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि जब पंजाब सरकार ने क़ानून को नोटिफ़ाई नहीं किया तो आम आदमी पार्टी ने ऐसा क्यों किया?
क्या ये सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति को क़रीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह मानते हैं कि वो पंजाब में कांग्रेस और अकालियों के ख़िलाफ़ एंटी-इन्कमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) के कारण ख़ुद को दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश में लगी है.
जगतार सिंह कहते हैं, "आम आदमी पार्टी की ओर से जिस तरह तीन कृषि क़ानूनों को असेंबली में फाड़कर फेंका गया, उसे देखकर ऐसा लगता है कि वो ख़ुद को इस तरह पेश करके साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में किसानों का समर्थन हासिल कर सकते हैं."
"पिछले चुनावों में पंजाब में इनकी काफ़ी सक्रियता थी. ऐसा लगता था कि आम आदमी पार्टी सरकार भी बना सकती है. जनता ने इन्हें समर्थन भी दिया. लेकिन इनसे कुछ ग़लतियां हुईं. उस ज़माने में इनके साथ कुछ अति महत्वाकांक्षी लोग भी थे. इससे इन्होंने अपना ही नुकसान कर लिया."
साल 2017 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब के चुनाव में 20 सीटें हासिल करके प्रमुख विपक्षी दल के रूप में पंजाब की राजनीति में एक जगह हासिल की थी. लेकिन इसके बाद आम आदमी पार्टी में कई स्तरों पर आपसी कलह सामने आई.
जगतार सिंह बताते हैं, "पंजाब में जब आम आदमी पार्टी को विपक्षी दल का मैंडेट दिया गया तब उसे ये संभाल नहीं पाए. इनके 20 विधायक भी एक साथ नहीं रह पाए. पार्टी बँट गई. इन्हें बहुत अच्छा मौक़ा मिला था. लेकिन इन्होंने जनता के मैंडेट के साथ धोखा किया."
"इसके बाद से अभी तक लोग इन पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है. हालाँकि मैं ये भी कहता हूँ कि पंजाब की राजनीति में एक तीसरी पार्टी की जगह बनी हुई है और ये लोग उसी स्पेस के लिए संघर्ष कर रहे हैं."
जगतार सिंह कहते हैं, "ऐसे में मुझे लगता है कि जिस तरह वे अपनी राजनीति को किसानों पर केंद्रित कर रहे हैं, वो इसी वजह से है. क्योंकि इन्होंने उस क़ानून को नोटिफ़ाई भी किया है और ऐसा करने का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे सके."
गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक आम आदमी पार्टी
एक ओर आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में दख़ल बढ़ाती हुई दिख रही है, वहीं पार्टी ने गुजरात और उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने का एलान कर दिया है.
पार्टी ने 2022 में उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव को लड़ने का फ़ैसला कर लिया है. इसके साथ साथ पार्टी ने अपनी तरह की राजनीति को भी शुरू कर दी है.
आम आदमी पार्टी को आंदोलन के दिनों से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी मानते हैं कि पार्टी के हालिया राजनीतिक कदमों में चुनावी रणनीति की झलक मिलती है.
वो कहते हैं, "इस समय मैं जो कुछ देख रहा हूँ, उससे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी एक तरफ पंजाब और हरियाणा की राजनीतिक ज़मीन छोड़ना नहीं चाहती है. क्योंकि ये जो किसान आंदोलन है, वो मूलत: पंजाब और हरियाणा के ही किसानों का आंदोलन है. ऐसे में वह इस क्षेत्र की राजनीति में अपने दख़ल को बनाए रखना चाहते हैं. यही नहीं, वो वहां मजबूती से अपने पैर जमाना चाहते हैं."
लेकिन सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक जटिलता वाले राज्य में उतर सकती है. क्योंकि जहां दिल्ली के चुनाव जनता की मूल ज़रूरतें जैसे बिजली और पानी के मुद्दे पर जीते जाते हैं.
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सत्ता की सीढ़ी जाति, धर्म और बाहुबल से होकर गुजरती है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी उस जगह पहुँच चुकी है जहाँ वो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बीजेपी, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी को टक्कर दे सके.
उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक लंबे अरसे से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मानते हैं कि अब उत्तर प्रदेश में भी वह राजनीतिक जगह बनने लगी है जिसे आम आदमी पार्टी हासिल कर सकती है.
वो कहते हैं, "उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव की चुप्पी से एक ऐसी जगह खाली हुई है जिसे आम आदमी पार्टी भर सकती है. हालाँकि, इनके पास अभी ज़मीन पर नेटवर्क नहीं है. लेकिन इनके पास वक़्त है."
शरत प्रधान के मुताबिक़, "उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ बरसों में एक ऐसे मतदाता वर्ग का विकास हुआ है, जो नेता की छवि और उसके काम के आधार पर उसे वोट देना चाहता है. वो तलाश रहा है कि वह किसे वोट दे."
"ये वोटर बीजेपी को नहीं डालना चाहता, मायावती को भी नहीं डालना चाहता है और अखिलेश से वह नाउम्मीद हो गया है. कांग्रेस से किसी तरह की उम्मीद होने का सवाल ही नहीं उठता है. ये मतदाता वर्ग यूपी में बैठकर दिल्ली को देख रहा है, अपने रिश्तेदारों से दिल्ली सरकार के हालचाल ले रहा है."
"लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली की तरह पहली बार में यूपी की राजनीति में इतिहास रच देगी. अभी इसका संघर्ष अपनी जगह बनाने का है और इसके लिए भी इसे कड़ी मेहनत करनी होगी."
आम आदमी पार्टी जिस तरह से आगामी चुनावों के लेकर अपनी रणनीति बना रही है, उससे इतना तय है कि पार्टी इन राज्यों में अपना विकास करने की कोशिश करेगी.
सवाल ये भी है कि उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी नेतृत्व दिल्ली की ओर से जाएगा या वहाँ के स्थानीय नेतृत्व पर आम आदमी पार्टी पर भरोसा करके चुनाव में उतरेगी.?
फ़िलहाल जरनैल सिंह दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भी उनकी पार्टी 'काम की राजनीति' करने के लिए ही उतरेगी. (BBC)
नीतीश कुमार समय समय पर अपनी राजनीति से लोगों को चौंकाते आए हैं. पटना के कर्पूरी भवन में रविवार को जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्होंने एक बार फिर से सबको चौंकाते हुए आरसीपी सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान थमा दी.
जनता दल यूनाइटेड के अंदर आरसीपी की स्थिति लंबे समय से नीतीश कुमार के नंबर दो रही है, ऐसे में इस बदलाव को लेकर लोगों को बहुत अचरज नहीं है. ये भी कहा जा रहा है कि आरसीपी भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हों लेकिन पार्टी की कमान सीधे नीतीश कुमार के हाथों में ही रहेगी.
इस बदलाव पर जनता दल यूनाइडेट के प्रवक्ता प्रगति मेहता ने बताया, "आरसीपी जी पार्टी के संगठन महासचिव की भूमिका पहले से ही निभा रहे थे. वे एक कुशल संगठनकर्ता हैं. ऐसे में नीतीश जी ने उन्हें पार्टी की ज़िम्मेदारी अधिकारिक तौर पर सौंपा है, इससे वे सरकार को कहीं ज़्यादा वक्त दे पाएंगे और आरसीपी जी संगठन को ज़्यादा मज़बूती दे पाएंगे."
लेकिन नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने और आरसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की कहानी इतनी सपाट नहीं होगी, इस ओर इशारा करते हुए पटना के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने बताया, "लोगों को ध्यान होगा मई, 2019 में केंद्र सरकार में जेडीयू के शामिल होने पर आरसीपी सिंह के मंत्री बनने की चर्चा सबसे ज़्यादा थी, लेकिन बाद में कोटे से केवल एक मंत्री बनाए जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फ़ैसला लिया. उनकी प्रतिक्रिया थी कि वे केवल भागीदारी के लिए भागीदारी नहीं चाहते. लेकिन इसके बाद बिहार सरकार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया जिसमें बीजेपी का कोई मंत्री नहीं बनाया गया."
मणिकांत ठाकुर के मुताबिक, "इसके बाद से लेकर बिहार विधानसभा चुनाव तक आरसीपी सिंह बहुत सक्रिय नहीं देखे गए. नीतीश जी के आस पास अशोक चौधरी, ललन सिंह जैसे नेता ज़्यादा दिखे लेकिन आरसीपी की सक्रियता कम रही. वे नीतीश के साथ किसी समारोह में भी नहीं दिखे. कहीं ना कहीं उनकी नाराज़गी थी."
RCP SINGH
आरसीपी नीतीश के लिए कोई दूसरे नहीं
वैसे आरसीपी सिंह नीतीश कुमार से कभी नाराज़ हुए हों, ये बात सार्वजनिक तौर पर कभी सामने नहीं आई. हालांकि इससे पहले भी एक मौका ऐसा ज़रूर आया था जब पार्टी में उनके दूसरे नंबर के हैसियत को चुनौती मिली थी.
ये मौका आया था सितंबर, 2018 में जब नीतीश कुमार प्रशांत किशोर को पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर लेकर आए थे. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीरों को याद कीजिए, नीतीश कुमार की दाहिनी ओर प्रशांत किशोर बैठे थे और बायीं ओर वशिष्ठ नारायण सिंह. तब तक दाहिनी ओर आरसीपी सिंह ही बैठते आए थे.
पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर प्रशांत किशोर का पार्टी के अंदर भी नीतीश कुमार के बाद वाली स्थिति में आ गए थे. ऐसे में ही मीडिया ने आरसीपी सिंह से वो सवाल पूछ लिया था, जिसका अंदाजा हर किसी को हो रहा था, आरसीपी सिंह से तब पूछा गया था क्या प्रशांत किशोर को उनका कद कम करने के लिए लाया गया है?
आरसीपी सिंह ने इसका मंजे हुए राजनेता की तरह जवाब दिया था, "मैं तो महज़ पाँच फुट चार इंच लंबा हूँ. आप मुझे कितना छोटा कर सकते हैं?"
ये जवाब राजनीति को अच्छी तरह से समझने वाला ही दे सकता है. आरसीपी सिंह के इस जवाब के मायने का अंदाज़ा आज की स्थितियों में देखकर लगाइए- प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड से बाहर हैं और अपने इलेक्शन मैनेजमेंट का काम कर रहे हैं और आरसीपी सिंह पार्टी के अध्यक्ष बन गए हैं.
हालांकि अध्यक्ष बनने से काफी पहले ही आरसीपी सिंह ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर प्रशांत किशोर को अलग राह चुन लेने की सलाह दे दी थी. तब प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से मिलने भी गए लेकिन कहा गया कि नीतीश कुमार ने उन्हें दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं देने को कहा. हालांकि प्रशांत किशोर को यह अंदाज़ा ज़रूर हो गया था कि आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के लिए कोई दूसरे नहीं हैं.
जेएनयू से आईआर और आईएएस अधिकारी का टैग
यह स्थिति तब है कि जब आरसीपी सिंह कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं. वे नौकरशाही के रास्ते से नीतीश कुमार के भरोसे से राजनीति में आए हैं और अब नीतीश कुमार की राजनीति को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी उन पर आ गई है. यह आरसीपी सिंह ने क़दम क़दम हासिल किया है. उनका राजनीतिक जीवन भी उनके नौकरशाही के करियर की तरह ही धीरे धीरे जमा है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल रिलेशन में एमए करने के बाद आरसीपी सिंह 1984 में यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी बने. इस दौरान वे रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर और फतेहपुर के ज़िलाधिकारी रहे. इस दौरान उनकी नज़दीकी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा से बढ़ी.
साल 1996 में बेनी प्रसाद वर्मा केंद्रीय दूर संचार मंत्री थे तब आरसीपी सिंह उनके निजी सचिव थे. बेनी प्रसाद वर्मा ने ही आरसीपी सिंह की मुलाक़ात नीतीश कुमार से कराई थी. आरसीपी सिंह एक तो नीतीश कुमार के ही गृह ज़िले नालंदा के थे और स्वजातीय भी थे.
इन दो बातों के अलावा आरसीपी की कुशलता ने भी नीतीश कुमार को अपना मुरीद बनाया होगा तभी उन्होंने रेल मंत्री के तौर पर आरसीपी सिंह को अपना निजी सचिव बनाया और जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यूपी कैडर के अधिकारी को अपने राज्य में पदस्थापित कराने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया.
आरसीपी सिंह प्रधान सचिव के तौर पर पटना चले आए और देखते देखते वे नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए.
शासन के कामकाज के साथ साथ वे जनता दल यूनाइटेड में अहम होते गए. चूंकि पार्टी एक तरह से नीतीश कुमार के इर्दगिर्द ही घूम रही थी लिहाजा किसी के लिए भी नीतीश कुमार तक पहुंचने का रास्ता आरसीपी सिंह से होकर गुजरता था.
आरसीपी का कद कितना बड़ा?
आरसीपी सिंह की पकड़ इतनी मुस्तैद हुई कि उनके बारे में बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि बिहार में हर नियुक्ति-तबादले में एक आरसीपी टैक्स देना होता है.
इसी दौर में जनता दल यूनाइटेड के अंदर संसाधनों के इंतजाम का जिम्मा भी आरसीपी सिंह के इर्द गिर्द सिमटता गया. 2010 में उन्होंने आईएएस से इस्तीफ़ा दिया और नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेजा. 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा पहुंचे और शरद यादव की जगह राज्यसभा में पार्टी के नेता भी मनोनीत किए गए.
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं, "आरसीपी सिंह एक नौकरशाह थे, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं तक वे कार्यकर्ता के तौर पर ही पहुंचते रहे हैं. कार्यकर्ता भी उनसे जुड़ते चले गए. वे सहजता से सबके लिए उपलब्ध रहते हैं. जिस शख्स के बारे में कहा जाता है कि वे पूरा बिहार चलाते हैं, वे आज भी सैंट्रो कार में चलते हैं, बिना किसी ताम झाम के."
कार्यकर्ताओं के साथ इसी जुड़ाव के चलते आरसीपी सिंह जनता दल यूनाइटेड के लिए सबसे महत्वपूर्ण शख्स बनकर उभरे हैं.
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "बिहार की राजनीति में ये कयास भी लगने लगे थे कि जनता दल यूनाइटेड में विभाजन हो जाएगा और बहुत सारे लोग आरसीपी के साथ चले जाएंगे. ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए भी नीतीश कुमार ने आधिकारिक तौर पर उन्हें ज़िम्मेदारी देने का मन बनाया होगा."
हालाँकि यह देखना भी दिलचस्प होगा कि जनता दल यूनाइटेड के लिए भी स्थितियां बहुत अनुकूल नहीं रह गई हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद पार्टी के सामने खुद को सशक्त बनाए रखने की चुनौती है.
एक ओर बीजेपी की कोशिश भी जनता दल यूनाइटेड के वोट बैंक को अपने पाले में करने की दिख रही है वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्ष भी दम साधने का मौका नहीं देना चाहता.
ऐसे में सरकार और पार्टी दोनों को एक साथ संभालने की चुनौती ने भी नीतीश कुमार को अपना बोझ कम करने और आरसीपी सिंह को सामने करने के लिए मज़बूर किया होगा.
नीतीश-आरसीपी की केमिस्ट्री
दरअसल आरसीपी सिंह ने जनता दल यूनाइटेड के अंदर कई तरह के प्रकोष्ठ और बूथ कमिटी तक बनाकर पार्टी के अंदर एक संगठन को मूर्त रूप देने की जो कोशिश की है, उसके चलते भी विपरीत हालात के बावजूद पार्टी इस बार सरकार में आने में कामयाब हुई है.
मणिकांत ठाकुर जनता दल यूनाइटेड में आरसीपी सिंह की ताजपोशी और नीतीश कुमार की मौजूदा स्थिति को एक पुराने उदाहरण से जोड़ते हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे एक तरह से जनता दल यूनाइटेड का वह दौर याद आता है जब अध्यक्ष तो शरद यादव थे लेकिन वहां से नीतीश कुमार के सामने उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई. आशंका यही है कि कहीं नीतीश कुमार उस स्थिति की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं?"
हालाँकि नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच वैसी ट्यूनिंग शायद ही कभी रही हो जो नीतीश और आरसीपी के बीच दो दशक से भी लंबे समय से बनी हुई है. दोनों की आपसी केमिस्ट्री कुछ ऐसी है कि एक के बिना दूसरे का काम भी नहीं चल सकता.
आरसीपी कभी जनाधार वाले नेता नहीं हो सकते, लिहाजा नीतीश कुमार को उस तरह की चुनौती कभी नहीं दे सकते जैसा कोई जनाधार वाला नेता दे सकता था. दूसरी तरफ नीतीश कुमार के चेहरे के बिना आरसीपी अपने दम पर संगठन के बूते कोई करिश्मा नहीं दिखा सकते.
लेकिन दोनों मिलकर पार्टी को उन चुनौतियों से निकाल ज़रूर सकते हैं जिसका सामना पार्टी इन दिनों कर रही है, लिहाजा हो सकता है कि दोनों ने मिलकर काम करने का लक्ष्य बनाया हो.
पार्टी के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं, "राजनीतिक दलों में अध्यक्ष का पद कोई छोड़ता है क्या, बताइए. लेकिन नीतीश जी ने पार्टी के हितों को देखते हुए यह क़दम उठाकर दिखाया है कि वे परिवार और सगे संबंधियों के लिए राजनीति नहीं कर रहे हैं और आरसीपी सिंह इस ज़िम्मेदारी के लिए सबसे उपयुक्त नेता हैं, ये स्थिति उन्होंने सालों साल संगठन में काम करके हासिल की है."
आरसीपी की आईपीएस बेटी भी चर्चित रही हैं
आरसीपी सिंह की सबसे बड़ी ख़ासियत पर्दे के पीछे चुपचाप अपने काम करने वाले शख़्स की रही है. वे अब तक नीतीश कुमार के लिए ट्रब्यूल शूटर की ज़िम्मेदारी निभाते आए हैं, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्हें पर्दे से बाहर आकर भी ज़िम्मेदारी निभानी होगी.
अब तक उनके अच्छे और ख़राब काम नीतीश कुमार के साये में ढके रहे हों, अब उनके फ़ैसलों का सार्वजनिक असर भी देखने को मिलेगा.
वैसे हाल के सालों में आरसीपी सिंह नीतीश से नज़दीकी की वजह से नहीं बल्कि अपनी बेटी के लिए चर्चा में रहे हैं. उनकी बेटी लिपी सिंह 2016 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 26 अक्तूबर को मुंगेर में पुलिस और आमलोगों की झड़प और पुलिस फायरिंग को लेकर सवाल उठे थे.
तब मुंगेर की एसपी लिपी सिंह ही थीं, बाद में चुनाव आयोग के निर्देश लिपि सिंह और ज़िलाधिकारी को ज़िले से हटाना पड़ा था.
इससे पहले लिपी सिंह कभी नीतीश कुमार के नज़दीकी रहे बाहुबली नेता अनंत सिंह पर कार्रवाई के लिए भी चर्चा में रही थीं. आरसीपी सिंह के दामाद और लिपि सिंह के पति सुहर्ष भगत बिहार कैडर के आईएस अधिकारी हैं और इन दिनों बांका के ज़िलाधिकारी हैं. आरसीपी सिंह की दूसरी बेटी लता सिंह ने क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत को अपना पेशा बनाया है. (bbc)
लखनऊ, 27 दिसंबर | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को यहां कहा कि सिख गुरुओं द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदान को राज्य के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि छात्र इससे प्रेरणा ले सकें और राष्ट्र निर्माण में योगदान कर सकें। अपने सरकारी आवास पर 'साहिबजादा दिवस' के अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, खालसा पंथ ने हिंदू धर्म और देश की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी जानकारी आने वाली पीढ़ियों को दी जानी चाहिए।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह के चार बेटों की कुर्बानियां आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा होंगी, क्योंकि उन्होंने हिंदुओं और देश की रक्षा के लिए खुद को बलिदान कर दिया।
सीएम ने कहा कि बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के बलिदानों को सभी को जानना चाहिए।
उन्होंने कहा, मैं राज्य के शिक्षा मंत्री को सिख गुरुओं की भूमिका को पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव देता हूं। हम 27 दिसंबर को 'साहिबजादा दिवस' मनाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह दिन वास्तव में 'बाल दिवस' है, क्योंकि साहिबजादों ने कम उम्र में सर्वोच्च बलिदान दिया था।
यह दिन स्कूलों में एक उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए और साहिबजादों के सम्मान के रूप में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए, जो बच्चों को प्रेरित करेगा। दिसंबर क्रिसमस के लिए जाना जाता था, अब इसे साहिबजादा के लिए जाना जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, राज्य सरकार गुरु नानक देव से संबंधित सभी स्थानों की पहचान कर रही है और सौंदर्यीकरण का काम प्राथमिकता से किया जा रहा है।
इस अवसर पर बोलते हुए, राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य परविंदर सिंह ने कहा, यह पहली बार है कि मुख्यमंत्री के निवास पर साहिबजादा दिवस मनाया जा रहा है, जहां पहले इफ्तार पार्टी की मेजबानी होती थी।
आदित्यनाथ ने इस अवसर पर केसरिया पगड़ी सहित पारंपरिक सिख पोशाक पहनी।
--आईएएनएस
दिल्ली, 28 दिसंबर | कोरोना महामारी के चलते सोना 2020 में निवेशकों के लिए निवेश का पसंदीदा उपकरण बना रहा। पिछले साल की तुलना में इस साल घरेलू वायदा बाजार में सोने में 28 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न मिला है, जो 2011 के बाद पीली धातु में सबसे ज्यादा सालाना रिटर्न है। वहीं, वैश्विक बाजार की बात करें तो कॉमेक्स पर सोने में करीब 22 फीसदी का रिटर्न मिला है।
कोरोना काल में सोने में देसी और विदेशी बाजारों में सोने ने ऐतिहासिक ऊंचाई हासिल की। घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर सात अगस्त को सोने का भाव रिकॉर्ड 56,191 रुपये प्रति 10 ग्राम तक उछला, जो अब तक सबसे ऊंचा स्तर है।
हालांकि इस साल एमसीएक्स पर सोने का निचला स्तर 16 मार्च को 38,400 रुपये प्रति 10 ग्राम था। इस प्रकार निचले स्तर से सोने के भाव में इस साल 17,791 रुपये यानी 46.3 फीसदी का उछाल आया।
लेकिन सालाना र्टिन की बात करें तो पिछले साल 31 दिसंबर 2019 को एमसीएक्स पर सोने का भाव 38,108 रुपये प्रति 10 ग्राम था, जबकि पिछले कारोबारी सत्र में 24 दिसंबर को 50,064 रुपये प्रति 10 ग्राम रहा। इस प्रकार सोने के भाव में 31 दिसंबर 2019 के मुकाबले 28 फीसदी की तेजी आई है।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार कॉमेक्स पर सोने का भाव 31 दिसंबर 2019 को 1,550.60 डॉलर प्रति औंस था, जबकि बीते सत्र में 24 दिसंबर को सोने का भाव 1,882.90 डॉलर प्रति औंस रहा। इस प्रकार पिछले साल के मुकाबले इस साल सोने में अब तक 21.86 फीसदी का रिटर्न मिला है।
कॉमेक्स पर 16 मार्च को सोने का भाव 1,458.80 डॉलर प्रति औंस था जोकि साल 2020 का सबसे निचला स्तर है, जबकि सात अगस्त 2020 को सोना कॉमेक्स पर 2,089.20 डॉलर प्रति औंस तक उछला जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। इस तरह इस साल निचले स्तर से सोने में 630 डॉलर यानी 43 फीसदी से ज्यादा की तेजी दर्ज की गई।
कोरोना वायरस संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के उपाय के तौर पर दुनिया के विभिन्न देशों में लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाए गए, जिस कारण आर्थिक गतिविधियां चरमरा गईं। ऐसे में निवेशकों के लिए निवेश के साधन के तौर पर सोना पसंदीदा साधन बन गया।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | प्रदर्शनकारी किसानों से मिलने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रविवार शाम दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पहुंचे। किसानों के बीच पहुंचकर मुख्यमंत्री ने केंद्रीय कृषि कानूनों को काला कानून कहा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुताबिक कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की यह आंदोलन अब आर-पार की लड़ाई हो चुका है। सिंघु बॉर्डर पहुंचकर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा, "किसान अपनी खेती बचाने के लिए कड़ाके की ठंड में बैठे हैं। भाजपा का एक भी मंत्री और नेता नहीं है, जो इन कानूनों के फायदे बता सके। किसानों से जमीन छीनकर पूंजीपति दोस्तों को देने के लिए ये काले कानून लाए गए हैं।"
गुरु गोविंद सिंह के चार बेटों एवं माता जी की शहादत दिवस पर उन्हें याद करने के लिए सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली सरकार की पंजाब एकेडमी ने कीर्तन दरबार आयोजित किया था। सीएम अरविंद केजरीवाल इस कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने ने कहा कि हम सब लोग गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों और माता जी की शहादत को नमन करने के लिए इकट्ठे हुए हैं।
सीएम ने कहा कि पिछले 32 दिनों से खुले आसमान के नीचे सड़क पर सोने को मजबूर हैं। अभी तक यहां पर 40 से ज्यादा लोगों की शहादत हो चुकी है।
केजरीवाल ने कहा, "इस मंच के जरिए इतने पवित्र स्थान से मैं हाथ जोड़कर केंद्र सरकार से अपील करता हूं ये तीनों काले कानून वापस ले लो। आज किसानों को आतंकवादी, राष्ट्रद्रोही कहा जा रहा है। किसान आतंकवादी, राष्ट्रद्रोही हो गए, तो तुम्हार पेट कौन भरेगा? तुमको रोटी कौन देगा?"
उन्होंने कहा कि ये बड़े-बड़े नेता आते हैं, और कहते हैं कि इससे किसानों की जमीन नहीं जाएगी। जमीन तो आज भी किसानों के पास ही है। कहते हैं कि एमएसपी नहीं जाएगी, एमएसपी अभी भी तो है। मंडी नहीं जाएगी। तब आखिर कानून क्यों लाए हो? कानून को फाड़कर फेंक दो। किसानों को कोई फायदा नहीं बता पा रहे। बड़े नेता कह रहे हैं कि कानून से कोई नुकसान नहीं होगा। किसानों का कोई नुकसान नहीं होगा, पर फायदा क्या होगा और फायदा होगा किसका।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आज पूरा देश दो भागों में बंटा हुआ है। एक वे कुछ लोग हैं, जो इन करोड़ों किसानों का नुकसान करके कुछ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं और दूसरे वे लोग हैं, जो इन करोड़ों किसानों के साथ खड़े हैं।
उन्होंने कहा, "एक ये लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है। मैं आज यहां से चुनौती देता हूं कि केंद्र सरकार अपने सबसे बड़े नेता, जिसको इन कानूनों के बारे में पता है, वो आ जाए और हमारे किसानों के नेता आ जाएं। दोनों जनता के बीच में बहस कर लें। दोनों में से किसको ज्यादा जानकारी है, पता चल जाएगा।"
--आईएएनएस
चंडीगढ़, 28 दिसंबर | पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा को फटकार लगाते हुए कहा कि पार्टी को किसानों की लड़ाई के लिए उनकी छवि खराब करना और शहरी नक्सली कहकर उनके इंसाफ की लड़ाई को बदनाम करना बंद करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा, "अगर भाजपा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे संकटग्रस्त नागरिकों और आतंकवादियों, उग्रवादियों और गुंडों के के बीच अंतर नहीं कर सकती, तो इसे आम लोगों की पार्टी होने का दिखावा बंद कर देना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि एक पार्टी जो नागरिकों को विरोध करने के उनके लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने पर उन्हें नक्सली और आतंकवादी करार देती है, उसने नागरिकों पर शासन करने के सारे अधिकार खो दिए हैं।
भाजपा के महासिचव तरुण चुग ने पंजाब के किसानों को शहरी नक्सली करार दिया था, जिसपर सिंह ने कहा कि इस बयान के साथ ही भाजपा नेता ने अपने राजनीतिक एजेंडा को प्रमोट करने के लिए अपनी हताशा प्रदर्शित की है।
उन्होंने कहा कि नाराज किसानों द्वारा इस तरह के विरोध प्रदर्शन न केवल पंजाब में, बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी हो रहे हैं।
अमरिंदर ने कहा, "क्या इन सभी जगहों पर विरोध कर रहे किसान आपको नक्सलियों की तरह लग रहे हैं? और क्या इसका मतलब है कि हर जगह कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो गई है?"
मुख्यमंत्री ने कहा कि विभिन्न किसान नेताओं ने खुद आंदोलनकारियों से अपील की थी कि वे मोबाइल टावरों से बिजली न काटें, मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ स्थानों पर यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि किसान क्रोध में ये कदम उठा रहे हैं, जिन्हें आगे अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है।
--आईएएनएस
अगरतला/गुवाहाटी, 28 दिसंबर | असम के बाद अब त्रिपुरा में ब्रिटेन से लौटे एक और व्यक्ति कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया। हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि उसका नमूना पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) को भेजा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह उत्परिवर्ती कोरोनावायरस स्ट्रेन से संक्रमित थे, जिसने यूरोपीय देश को चुनौती दी है।
त्रिपुरा के कोविड-19 निगरानी अधिकारी दीप देबबर्मा ने बताया कि ब्रिटेन के स्वदेश लौटने वाले अभी होम आइसोलेशन में हैं और मंगलवार को एनआईवी से उनके सैंपल की रिपोर्ट आने की उम्मीद है।
त्रिपुरा में कोरोना के अब तक 33,237 मामले सामने आए हैं, जबकि 382 लोग इस खतरनाक बीमारी का शिकार हो चुके हैं।
असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमांता बिस्वा सरमा ने इससे पहले गुवाहाटी में कहा था कि हाल ही में ब्रिटेन से करीब 102 लोग असम आए हैं और उनमें से एक कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया और उसका नमूना पुणे के एनआईवी को भेजा गया है, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या यह कोविड-19 के नए वायरस का मामला तो नहीं है।
मेघालय में ब्रिटेन से किसी भी व्यक्ति के राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। राज्य सरकार ने उन लोगों से भी आग्रह किया है जो हाल ही में ब्रिटेन से लौटे हैं, वे अलगाव में रहें और अपने यात्रा इतिहास के बारे में सूचित करें।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मेघालय में अब तक ब्रिटेन की यात्रा इतिहास वाले पांच लोगों का पता चला है और स्वास्थ्य कर्मी अपने लक्षणों को बारीकी से देख रहे हैं।
--आईएएनएस
अयोध्या, 27 दिसंबर | अयोध्या में राममंदिर का निर्माण में बाधा आ रही है, क्योंकि मंदिर के नीचे भुरभुरी मिट्टी होने के कारण पाइलिंग यानी पिलर डालने में समस्या आ रही है। राममंदिर ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने कहा कि आईआईटी, इंजीनियरिंग संस्थानों और निर्माण कंपनियों के विशेषज्ञों के साथ परामर्श जारी है।
राय के अनुसार, परीक्षण में पिलरों को 125 फीट की गहराई तक ले जाया गया था और 28 दिनों के बाद उसे 700 टन वजन के साथ-साथ भूकंप के झटके देकर जांच किया गया, लेकिन परिणाम मानदंडों के अनुसार नहीं आए, जिसके चलते काम वहीं रुक गया।
समस्याओं के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी तरफ पानी का प्रवाह है, जहां सरयू नदी से पवित्र अभयारण्य बनाया जाना है।
17 मीटर नीचे तक कोई 'मूल मिट्टी' नहीं है और उसके नीचे एक भुरभुरी मिट्टी पाई जा रही है, जो नींव को मजबूत पकड़ बनाने से रोकता है।
राय ने कहा कि मद्रास, बॉम्बे, गुवाहाटी और सूरत के आईआईटी के विशेषज्ञों को जोड़ते हुए, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) रुड़की, टाटा, लार्सन एंड टुब्रो और मंदिर के प्रोजेक्ट मैनेजर जगदीश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि कैसे एक मजबूत आधार सुनिश्चित किया जाए और वाटर इनफ्लो मुद्दे से निपटा जाए।
उन्होंने कहा, "जमीन के नीचे पानी के संभावित प्रवाह को रोकने के लिए राम मंदिर के आसपास जमीन के नीचे एक रिटेनिंग वॉल बनाई जाएगी।"
राय ने कहा कि मंदिर की नींव पर काम जनवरी से शुरू होगा, क्योंकि विभिन्न आईआईटी और इंजीनियरिंग संस्थानों के विशेषज्ञ एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। (आईएएनएस)
अमरावती, 27 दिसंबर | आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में रविवार को एक ट्रक से टकरा जाने के बाद मोटरसाइकिल में आग लग गई, जिसपर सवार दो लोग जिंदा जल गए। पुलिस ने कहा कि टक्कर इतनी जोरदार थी कि मोटरसाइकिल का पैट्रोल टैंक फट गया, जिसके चलते उसमें आग लग गई। आग की लपटों की चपेट में आने से दोनों व्यक्तियों की मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस के अनुसार दुर्घटना में बाइक पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई, जबकि ट्रक आंशिक रूप से जल गया।
मृतकों की पहचान रोशी रेड्डी (65) और नारायण रेड्डी (45) के रूप में की गई, दोनों एक ही जिले के बोगलकट्टा गांव के निवासी थे। यह हादसा तब हुआ जब वह एक मंदिर का दर्शन करके घर लौट रहे थे। (आईएएनएस)
प्रमोद कुमार झा
दिल्ली, 27 दिसंबर | आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश में जुटी मोदी सरकार ने 'वोकल फॉर लोकल' के मंत्र के साथ कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर भारत अभियान का आगाज किया तो गांव, गरीब और किसान को उसके केंद्र में रखा और इनसे जुड़ी तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों पर विशेष जोर दिया गया। इसी कड़ी में सरकार ने कृषि सुधार के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए अध्यादेश के माध्यम से कृषि से संबंधित तीन नये कानूनों को लागू किया। लेकिन इन कानूनों को लेकर किसान और सरकार के बीच तकरार जारी है।
संसद के मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू किया गया। मगर अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।
सरकार का कहना है कि कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020 से किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए राज्यों में संचालित एपीएमसी मंडियों के अलावा एक और विकल्प मिला है और राज्यों में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियों के बाहर खरीद-बिक्री पर शुल्क नहीं होने से किसानों को उनके उत्पादों का वाजिब दाम मिलेगा। मगर, आंदोलन की राह पकड़े किसानों का मानना है कि एपीएमसी के बाहर कॉरपोरेट खरीदार भले ही कुछ साल उन्हें अच्छा दाम दे मगर इससे जब एपीएमसी मंडियां तबाह हो जाएंगी तब निजी मंडियों के कॉरपोरेट खरीदारों को उन्हें औने-पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर होना पड़ेगा। इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर भी उनको एतराज है। हालांकि सरकार ने एपीएमसी संचालित मंडियों के भीतर और बाहर कारोबार में समानता लाने की ²ष्टि से एक समान शुल्क की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है। सरकार ने किसानों को इसके अलावा कानून से जुड़ी किसानों की अन्य आपत्तियों का भी समाधान करने के प्रावधानों शामिल करने का आश्वासन दिया है।
सरकार का कहना है कि कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 से छोटे किसानों को लाभ मिलेगा क्योंकि वे प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, होलसेलर्स, बड़े रिटेलर्स और एक्सपोटर्स के साथ फसल का करार कर पाएगा और फसल की कीमत पहले ही तय हो जाएगी जिससे हार्वेस्टिंग के समय फसल का बाजार भाव कम होने पर भी किसानों को करार में पहले से तय कीमत ही मिलेगी। साथ ही, किसानों को नई टेक्नोलोजी, बीज व अन्य साधन स्पांसर मुहैया करवाएगा जोकि छोटे किसानों के लिए मुश्किल होता है। मगर, किसानों को आशंका है कि खेती के इस करार में उन्हें अपनी जमीन के मालिकाना हक से वंचित होना पड़ सकता है। सरकार ने इस पर स्पष्टीकरण दिया है करार फसल को होगा न कि खेत का। इस कानून में भी सरकार ने किसानों के सुझावों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के जरिए अनाज, दलहनों, आलू, प्याज, खाद्य तेल व तिलहनों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी से बाहर कर दिया है। नये कानूनी प्रावधानों के अनुसार, विशेष परिस्थितियों में ही इन पर स्टॉक लिमिट लगाई जा सकती है। बताया जाता है कि इन वस्तुओं को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने का मकसद इनके भंडारण, प्रसंस्करण की सुविधा का विस्तार करना है जिसका फायदा किसानों को ही मिलेगा।
कृषि क्षेत्र सुधार के लिए नए कानून लाने और कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के तहत की गई घोषणाओं से पहले ही मोदी सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के आम बजट में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 16 सूत्री कार्ययोजना की घोषणा की थी। इन घोषणाओं के तहत कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कृषि उड़ान से लेकर खराब होने वाले कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए पीपीपी मोड में किसान रेल चलाने का एलान शामिल था।
कोरोना काल में केंद्र सरकार की ओर से एक लाख करोड़ रुपये के कृषि इन्फ्रास्ट्रक्च र फंड की घोषणा कृषि सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे फसलों की कटाई के बाद के प्रबंधन की बुनियादी सुविधा यानी पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्च र का निर्माण होगा जिसका लाभ आखिरकार किसानों को होगा।
मोदी सरकार द्वारा 2020 में कृषि के क्षेत्र को बढ़ावा देने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के मकसद से लिए गए तमाम फैसलों में अहम तीनों नये कृषि कानून हैं जिन्हें सरकार किसी भी सूरत में वापस लेने को तैयार नहीं है और दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे किसान संगठन तीनों कानूूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं।
सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की वार्ताएं बेनतीजा रहने के बाद अब किसानों की ओर से 29 दिसंबर को फिर अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है। किसान संगठनों की ओर से अगले दौर की वार्ता के लिए जो एजेंडा सरकार के पास भेजा गया है उसमें शामिल चार मुद्दों में तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाली क्रियाविधि पहले नंबर पर है।
इसके अलावा, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए लाभदायक एमएसएपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर वे सरकार से बातचीत करना चाहते हैं। अगले दौर की वार्ता के लिए प्रस्तावित अन्य दो मुद्दों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में ऐसे संशोधन जो अध्यादेश के दंड प्रावधानों से किसानों को बाहर करने के लिए जरूरी हैं और किसानों के हितों की रक्षा के लिए विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के मसौदे में जरूरी बदलाव शामिल हैं।
ऐसे में साल 2020 के आखिर में मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए कृषि सुधार पर जारी तकरार के खत्म होने का इंतजार बना रहेगा। (आईएएनएस)
ग्वालियर, 27 दिसंबर | केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जिला प्रशासन ने एक ऐसे व्यापारी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है, जिसने किसानों के साथ धोखाधड़ी की और भाग गया। प्रशासन ने उस व्यापारी की जमीन और मकान नीलाम कर किसानों को रकम दिलाई है। मामला ग्वालियर के भितरवार तहसील का है। यहां किसानों से धोखाधड़ी करने वाले व्यापारी की संपत्ति की सार्वजनिक नीलामी की कार्रवाई की गई।
व्यापारी ने किसानों की उपज खरीदी और भाग गया। कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह को जब इस मामले की जानकारी हुई तो उन्होंने तत्काल व्यापारी के विरुद्ध बेलगढ़ा थाने में एफआईआर दर्ज कराई तथा पुलिस के माध्यम से व्यापारी को पकड़ने के निर्देश दिए। कलेक्टर के निर्देश पर एसडीएम भितरवार अश्विनी रावत ने व्यापारी की जमीन एवं मकान को नीलाम करने की कार्रवाई भी तत्परता से शुरू की।
प्रशासन ने व्यापारी बलराम उर्फ बब्लू का मकान एक लाख 45 हजार रुपये में तथा उसकी जमीन दो लाख 75 हजार रुपये में नीलाम कर दी। नीलामी की राशि से 6 किसानों को राशि वापस कराई गई।
बताया गया है कि भितरवार तहसील के ग्राम बाजना के कृषकगण देवेंद्र सिंह पुत्र रामसिंह रावत एवं अन्य 23 किसानों से ग्राम बाजना निवासी बलराम उर्फ बल्लू द्वारा नवंबर में धान एवं अन्य फसल खरीदी गई तथा 1730 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान का भुगतान 15 दिन में करने का आश्वासन दिया। किसानों का भुगतान समय पर न करने के साथ ही वह गांव से अपने मकान में ताला लगाकर धोखाधड़ी करते हुए भाग गया।
अनुविभागीय अधिकारी को जब इस धोखाधड़ी की शिकायत प्राप्त हुई तो उन्होंने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अधिनियम 1920 के तहत प्रकरण दर्ज किया तथा बलराम पुत्र मंगाराम परिहार निवासी बाजना को सूचना पत्र जारी किया गया। इसके साथ ही सुलह बोर्ड का गठन किया गया।
सुलह बोर्ड द्वारा बताया गया है कि चूंकि आरोपी फरार है, सुलह नहीं की जा सकती। लिहाजा, आरोपी की संपत्ति को कुर्क कर नीलाम किया जाए। बोर्ड द्वारा जानकारी ली गई कि आरोपी के पास ग्राम बाजना में 20 गुणा 50 वर्गफुट में मकान तथा शामिल खाते में भूमि है। पटवारी के प्रतिवेदन के आधार पर संपत्ति कुर्क कर वारंट जारी किया गया।
बताया गया है कि शनिवार को तहसील मुख्यालय पर नीलामी की कार्रवाई की गई, जिसमें मकान एक लाख 45 हजार रुपये में तथा भूमि दो लाख 75 हजार रुपये में नीलाम हुई। नीलामी में प्राप्त हुई राशि को जिन किसानों के साथ धोखाधड़ी हुई थी उनको वितरित की गई।
अनुविभागीय अधिकारी भितरवार, अश्विन कुमार ने बताया कि बलराम परिहार उर्फ बल्लू के विरुद्ध पुलिस थाना बेलगढ़ा में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। पुलिस आरोपी को पकड़ने की कोशिश कर रही है। (आईएएनएस)
अमरावती, 27 दिसंबर | ब्रिटेन से आंध्र प्रदेश में लौटने वाले छह यात्रियों समेत उनके संपर्क में आए चार व्यक्ति अब तक कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों ने रविवार को इसकी जानकारी दी है। ब्रिटेन से आंध्र प्रदेश में लौटे कुल 1,216 यात्रियों में से 1,187 की पहचान कर ली गई है और बाकी के 29 यात्रियों का पता लगाने का प्रयास जारी है।
कुल 1,162 यात्रियों को क्वॉरंटाइन किया गया है। यहां से लौटे छह यात्री कोरोना की जांच में पॉजिटिव पाए गए हैं। इनमें से दो गुंटूर जिले से हैं और एक-एक क्रमश: गोदावरी, कृष्णा, अनंतपुर और नेल्लोर जिले के रहने वाले हैं।
अधिकारियों ने ब्रिटेन से लौटे यात्रियों के संपर्क में आए 3,282 लोगों की भी पहचान कर ली है और परीक्षण के लिए इनके नमूने भी भेज दिए गए हैं। इनमें से चार अब तक कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। इनमें से एक गुंटूर जिले का है, जबकि एक नेल्लोर का रहने वाला है। (आईएएनएस)
इम्फाल, 27 दिसंबर | केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को अपने दिल में बसाए रखा है और इसी वजह से वह इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर केंद्रीय फंड्स दे रहे हैं। साथ ही प्रधानमंत्री ने दशकों पुराने आतंकवाद को यहां शांत किया और शांति की स्थापना की
शाह ने यहां कई परिरयोजनाओं की आधारशिला रखने के बाद कहा, "पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास मोदी जी का मंत्र है, इसलिए उन्होंने (प्रधानमंत्री) और उनके नेतृत्व वाली सरकार ने इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को प्रोत्साहित किया है और सभी वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए काम किया है।
यहां हाप्ता कंगजेईबंग मैदान में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक इस क्षेत्र के सभी राज्यों का लगभग 40 बार दौरा कर चुके हैं। मोदी जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस क्षेत्र को एक नई पहचान दी है।"
"भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद, पूर्वोत्तर क्षेत्र को विकास में प्राथमिकता दी गई है।"
एक दिवसीय यात्रा पर रविवार को गुवाहाटी से यहां आए गृहमंत्री ने कहा कि पहले, मणिपुर आतंकवाद, नाकाबंदी, बंद, आंदोलन के लिए जाना जाता था, लेकिन वर्तमान में, अधिकांश आतंकवादी संगठन अपनी हिंसक गतिविधियों से दूर हो गए हैं और मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं।
कांग्रेस की आलोचना करते हुए, शाह ने कहा कि पार्टी मणिपुर की कई समस्याओं को हल करने में विफल रही। कांग्रेस का यहां 2017 तक शासन था।
गृहमंत्री ने कहा, "पिछले तीन वर्षों के दौरान, मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रही है।
शाह असम और मणिपुर की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के अंतिम चरण में, रविवार दोपहर को गुवाहाटी से इंफाल पहुंचे और चूराचंदपुर में एक मेडिकल कॉलेज सहित सात परियोजनाओं की नींव रखी।
शाह ने कहा कि रविवार को अनावरण किए गए प्रोजेक्ट पर्याप्त रोजगार के अवसर लाएंगे और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद को काफी बढ़ावा देंगे। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि राज्य में एक फोरेंसिक साइंस कॉलेज स्थापित किया जाएगा और मुख्यमंत्री से इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए कहा है।
शाह ने कहा कि राज्य के युवाओं के पास उत्कृष्ट आईटी कौशल है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बारे में अच्छी तरह से जानते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि मोदी ने मंत्रियों को हर 15 दिनों में पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा करने को कहा था।
गृहमंत्री ने घोषणा की कि राज्य में एक स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी शुरू हो रही है, जबकि इंफाल अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
दिल्ली रवाना होने से पहले, शाह ने कुछ नागरिक समाज संगठनों के नेताओं और महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ बंद दरवाजे की बैठक की। (आईएएनएस)
चंड़ीगढ़, 27 दिसंबर | कृषि कानून के खिलाफ किसानों के विरोध के बीच, हरियाणा में नगरपालिका चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। मगर काफी कम मतदान हुआ। राज्य में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी और कांग्रेस आमने सामने रही।
मतदान के अंत तक अंबाला, पंचकूला और सोनीपत के नगर निगमों का मतदान प्रतिशत क्रमश: 52 प्रतिशत, 35 प्रतिशत और 48 प्रतिशत रहा।
चुनाव अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि और जगहों का आंकड़ा आने पर मतदान का प्रतिशत और बढ़ने की उम्मीद है।
अक्टूबर 2019 में राज्य में भाजपा-जेजेपी गठबंधन के सत्ता में आने के बाद ये राज्य में पहला चुनाव हैं।
मेयर और अंबाला, पंचकूला और सोनीपत के नगर निगमों के वार्डो के सदस्यों और रेवाड़ी की नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष और सदस्यों और सांपला (रोहतक), धारूहेड़ा (रेवाड़ी) और उकलाना (हिसार) नगरपालिका समितियों के सदस्यों के लिए मतदान हुआ।
मतगणना 30 दिसंबर को होगी। (आईएएनएस)