राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 2 फरवरी | दिल्ली पुलिस की ओर से कई किसानों और उनके नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की खबरों के बीच मंगलवार को विवेक तन्खा की अगुवाई में कांग्रेस के कानून विभाग ने इस मामले में कानूनी मदद के लिए टीमों का गठन किया। कानूनी विभाग द्वारा पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है, "पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के कानूनी विभाग के प्रतिनिधि किसानों और पत्रकारों को राहत और निवारण के संबंध में मदद करने के लिए पहले से ही ली गई कानूनी सेवाओं के बारे में अवगत कराने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर किसान नेताओं से मिलेंगे।"
विभाग सार्वजनिक रूप से चार राज्यों के प्रत्येक जिले में वकीलों की एक सूची प्रदर्शित करेगा, जो जेलों का दौरा करेंगे और लापता व्यक्तियों के बारे में पता लगाएंगे और पुलिस थानों का भी दौरा करेंगे।
दिल्ली पुलिस ने सोमवार को कहा कि किसानों के आंदोलन और विरोध के संबंध में किसी को भी अवैध तरीके से हिरासत में नहीं रखा गया है। पुलिस ने लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील भी की।
दिल्ली पुलिस के पीआरओ ईश सिंघल ने कहा, "हमने किसान आंदोलन के संबंध में अब तक कुल 44 मामले दर्ज किए हैं और कुल 122 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार किए गए लोगों के अलावा, पुलिस स्टेशनों में किसी को भी हिरासत में नहीं रखा गया है। उन सभी के रिकॉर्ड, जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है।"
दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा कि गिरफ्तार किए गए लोगों के परिजन संबंधित पुलिस थानों से भी जानकारी ले सकते हैं।
अधिकारी ने कहा, "हमने लोगों को सुविधा देने के लिए अपनी वेबसाइट पर जानकारी डाल दी है। हम लोगों से अनुरोध करेंगे कि वे किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें।"
इस बीच दिल्ली से लगते तीन बॉर्डर पर बैरिकेड्स और शिलाखंडों को सड़क को रखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए और अधिक किसानों के पहुंचने की आशंकाओं के बीच गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए हैं।
निगरानी रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है और सीमावर्ती क्षेत्रों में सघन चेकिंग की जा रही है। नतीजतन, राजधानी में बड़े पैमाने पर ट्रैफिक भी प्रभावित हो रहा है। जगह-जगह जाम लग रहा है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | केरल में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रमुख जगत प्रकाश नड्डा विभिन्न महत्वपूर्ण संगठनात्मक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए तीन फरवरी से राज्य का दो दिवसीय दौरा करेंगे। भाजपा मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी ने एक बयान में कहा, "नड्डा पार्टी की केरल इकाई की कोर समिति को संबोधित करेंगे और बुधवार को तिरुवनंतपुरम में पार्टी के नव निर्वाचित पार्षदों और ब्लॉक, जिला पंचायत सदस्यों से भी मुलाकात करेंगे।"
उन्होंने कहा कि भाजपा प्रमुख पद्मनाभस्वामी मंदिर भी जाएंगे और बुधवार की शाम को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगियों के साथ बैठक करेंगे।
बलूनी ने कहा, "गुरुवार को वह कोचीन पहुंचेंगे और प्रदेश पदाधिकारियों, प्रभारियों, संयोजकों, जिला अध्यक्षों और जिला महासचिवों की एक बैठक को संबोधित करेंगे। इस बैठक में विधानसभा क्षेत्र के प्रभारी और संयोजक भी भाग लेंगे। भाजपा प्रमुख त्रिशूर स्थित वडक्कुनाथन मंदिर मैदान में शाम को एक विशाल सार्वजनिक रैली को संबोधित करेंगे।" (आईएएनएस)
पत्रकार मनदीप पुनिया को आज रोहिणी ज़िला कोर्ट के चीफ़ मैट्रोपॉलिटेन मजिस्ट्रेट ने 25 हज़ार रुपये के निजी मुचलके पर ज़मानत दे दी है.
मनदीप की ज़मानत की जानकारी ’द कैरावान’ मैगज़ीन के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल ने एक ट्वीट के ज़रिए दी है.
मनदीप पुनिया 'द कैरेवान' सहित कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए किसानों के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते रहे हैं.
एडिटर्स गिल्ड ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मनदीप पुनिया को ज़मानत मिल गई है.
शनिवार शाम को सिंघु बॉर्डर से पत्रकार मनदीप पुनिया को गिरफ़्तार का गया था जिसके बाद रविवार को उन्हें तिहाड़ जेल में ही मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
शनिवार को मनदीप की गिरफ़्तारी की ख़बरें सबसे पहले सोशल मीडिया पर आनी शुरू हुई थीं, उनकी गिरफ़्तारी की आधिकारिक पुष्टि पुलिस ने कई घंटों तक नहीं की थी.
शनिवार शाम सात बजे के क़रीब एक वीडियो वायरल होना शुरू हुआ जिसमें पुलिस एक व्यक्ति को खींचकर ले जाने की कोशिश करती हुई दिख रही है.
इसके बाद देर रात मनदीप पुनिया के बारे में पत्रकारों ने ट्वीट करना शुरू किया कि पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया है लेकिन उन्हें कहाँ ले जाया गया है इसकी जानकारी सुबह तक लोगों को नहीं मिल सकी थी. (bbc.com)
-सरोज सिंह
भविष्य निधि यानी पीएफ़ के पैसे को लोग अपने बुढ़ापे का सहारा मानते हैं. घर बनाना हो या फिर बेटी की शादी करनी हो, जीवन भर की इसी कमाई पर सालों से लोग भरोसा जताते आए हैं.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ कोरोना महामारी के शुरुआती तीन महीने में तक़रीबन 80 लाख लोगों ने पीएफ़ में जमा पैसे निकाल कर महीनों तक गुज़ारा किया, जब लोगों की नौकरियाँ चली गई.
वैसे पीएफ़ में जमा राशि निकालने के नियम कड़े हैं, लेकिन महामारी की वजह से आर्थिक संकट से राहत देने के लिए सरकार ने सबसे पहले जिन क़दमों का एलान किया था, उनमें से एक बड़ा क़दम पीएफ़ से पैसा निकालने की सुविधा देना भी था.
लेकिन आपकी कमाई के इस हिस्से पर भी केंद्र सरकार की नज़र है.
बजट 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एलान किया है कि जो भी कर्मचारी भविष्य निधि (PF) में किसी वित्तीय वर्ष में 2 लाख 50 हज़ार रुपए से ज़्यादा का योगदान देते हैं, उन्हें उसके ब्याज पर टैक्स देना होगा.
ये लोग पीएफ़ से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स छूट का दावा नहीं कर पाएँगे. ये टैक्स कर्मचारी के योगदान पर ही लगेगा. ये नया प्रावधान 1 अप्रैल 2021 से लागू होगा.
ज़ाहिर है ये ऐसा प्रावधान है, जो देश के हर कर्मचारी वर्ग को प्रभावित करता है.
आसान भाषा में आपको समझाने के लिए बीबीसी ने बात की टैक्स एक्सपर्ट गौरी चड्ढा से. पढ़िए उनसे सवाल जवाब के अंश ताकि आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाए.
पीएफ़ के ब्याज पर टैक्स की बात से सैलरी क्लास को कितनी चिंता होनी चाहिए?
अभी तक पीएफ़ में जो भी योगदान होता था, वो 1 लाख 50 हज़ार तक इनकम टैक्स के 80C के छूट के दायरे में आता था. साथ ही पीएफ़ पर मिलने वाला ब्याज़ भी टैक्स के दायरे से बाहर था.
लेकिन 1 अप्रैल 2021 से इसमें थोड़ा बदलाव आएगा. कर्मचारी का पीएफ़ में योगदान 1 लाख 50 हज़ार तक है तो इनकम टैक्स में 80C में उसपर छूट तो मिलेगी. लेकिन कर्मचारी का योगदान पीएफ़ में 2 लाख 50 हज़ार से ऊपर है, तो उसके ब्याज पर अब टैक्स चुकाना पड़ेगा.
दरअसल पीएफ़ का एक हिस्सा कंपनी देती है, जिसमें आप काम करते हैं और एक हिस्सा कर्मचारी देता है. नए प्रावधान वाला टैक्स केवल कर्मचारी के योगदान पर ही लगेगा.
अगर कर्मचारी का पीएफ़ में सालाना योगदान 3 लाख है तो...?
ऐसे में 2 लाख 50 हज़ार तक के कर्मचारी के पीएफ़ योगदान पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. बाक़ी बचे 50 हज़ार के योगदान पर ही टैक्स लगेगा.
मान लीजिए कि पीएफ़ पर ब्याज दर 8.5 फ़ीसदी है. तो बाक़ी बचे 50 हज़ार के योगदान पर कर्मचारी को 4250 रुपए मिले. अब अगर कर्मचारी 30 फीसदी वाले टैक्स स्लैब में आता है तो कर्मचारी को 1275 रुपए टैक्स के तौर पर देने पड़ेंगे. इस पर 4 फ़ीसदी का स्वास्थ्य और शिक्षा सेस जोड़ दिया जाए, तो ये टैक्स बैठेगा 1326 रुपए.
यानी अगर सालाना कर्मचारी 3 लाख रुपये पीएफ़ में जमा करता है, तो उसे टैक्स के रूप में अब 1326 रुपये देने होंगे, जो अब से पहले नहीं लगता था.
ये टैक्स उतना ही कटेगा, जिस टैक्स स्लैब में कर्मचारी की सैलरी है. यानी कर्मचारी की सैलरी अगर 30 फ़ीसदी वाले टैक्स स्लैब में है, तो पीएफ़ योगदान 2.50 लाख से ऊपर के ब्याज पर 30 फ़ीसदी ही टैक्स कटेगा.
जिन लोगों की सैलरी ज़्यादा है, इस घोषणा का असर उन पर ही ज़्यादा पड़ेगा. कम सैलरी वालों की पीएफ़ कॉन्ट्रीब्यूशन 2 लाख 50 हज़ार होती भी नहीं है.
एक मोटा हिसाब लगाएँ, तो जिन कर्मचारियों का पीएफ़ में मासिक योगदान 20 हज़ार 833 रुपए तक है, उनको इस नए प्रावधान से चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है.
क्या वॉलंटरी प्रॉविडेंट फ़ंड (VPF) के योगदान पर भी इसका असर पड़ेगा?
बिल्कुल, इस नए प्रावधान का असर वॉलंटरी प्रॉविडेंट फ़ंड पर भी पड़ेगा. अगर पीएफ़ में कर्मचारी का योगदान मासिक 11 हज़ार रुपए है और वॉलंटरी प्रॉविडेंट फ़ंड में भी योगदान 11 हज़ार रुपए है. तो कुल मिला का कर्मचारी का पीएफ़ और वीपीएफ़ मिला योगदान 22 हज़ार रुपए मासिक हो गया. इसका मतलब सालाना 2 लाख 50 हज़ार से ज़्यादा का योगदान हुआ. 2 लाख 50 हज़ार के ऊपर के अतिरिक्त योगदान के ब्याज पर कर्मचारी को टैक्स चुकाना पड़ेगा.
दरअसल ये नया प्रावधान इसी वॉलंटरी प्रॉविडेंट फ़ंड के तहत पैसा बचाने वालों के लिए के लिए किया गया है. बहुत कर्मचारी इस वीपीएफ़ की वजह से इस 2 लाख 50 हज़ार के दायरे में आ सकते हैं. केवल सैलरी पर कटने वाले पीएफ़ की वजह से कम लोग ही इस प्रावधान के दायरे में आएँगे.
तो क्या वॉलंटरी प्रॉविडेंट फ़ंड में पैसा जमा करना फ़ायदे का सौदा नहीं रहा?
इसका सीधा जवाब नहीं हो सकता. ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस उम्र के इंसान है और आप वीपीएफ़ में कितना योगदान करते हैं. ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि बचत के बाक़ी पैसे आपने कहाँ-कहाँ लगा रखे हैं और आपका फ़ाइनेंशियल पोर्ट फ़ोलियो कैसा है.
आम तौर पर जानकार बचत के लिए एक फ़ॉर्मूला बताते हैं. आप अपनी उम्र को 100 से घटा दें, जो भी अंक आए उतना पैसा आप बचत खाते में डालना चाहिए. इसमें से 60 फ़ीसदी इक्विटी फ़ंड में लगाएँ और 40 फ़ीसदी डेट फ़ंड में. इक्विटी फ़ंड का मतलब शेयर मार्केट और म्यूचुअल फ़ंड से है और डेट फ़ंड का मतलब पीएफ़, वीपीएफ़, एनपीएस, टैक्स फ़्री बॉन्ड, एफ़डी से है.
सरकार ने ऐसा क़दम क्यों उठाया ?
सरकार की दलील है कि इस क़दम से बचत के अलग-अलग तरीक़ों में एकरूपता लाने की कोशिश की गई है. जिन कर्मचारियों को ज़्यादा सैलरी मिलती है और एक बड़ा हिस्सा पीएफ़ में इंवेस्ट करके ब्याज के पैसे को टैक्स फ़्री करवा लेते थे, सरकार उन पर शिंकजा कसना चाहती है. (bbc.com)
चंडीगढ़, 2 फरवरी | दो महीने से अधिक समय से किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर संकट के समाधान में केंद्र द्वारा 'पर्याप्त देरी' को गंभीरता से लेते हुए पंजाब के राजनीतिक दलों ने मंगलवार को तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की। बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया, "संकट के समाधान में केंद्र द्वारा 'अनुचित देरी' के चलते न केवल शांतिपूर्ण आंदोलनकारी और उनके परिवार पीड़ित हैं, बल्कि कई किसानों और कृषि मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जिससे उन्हें अपूरणीय क्षति हुई और देश के लोगों को दुख पहुंचा है।"
पार्टियों ने भारत सरकार से उन किसानों की शिकायतों का निवारण करने का आग्रह किया।
बैठक में 'दिल्ली में प्रायोजित हिंसा' की निंदा करते हुए, फैसला लिया गया कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेगा और किसानों के आंदोलन पर चिंता के अन्य मामलों के साथ-साथ इस मुद्दे को उठाएगा।
इस मुद्दे पर राज्य के दलों के बीच आम सहमति बनाने के लिए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह द्वारा बैठक बुलाई गई। बैठक में 26 जनवरी को लालकिले पर हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों की लापरवाही की उचित न्यायिक जांच की मांग की गई।
सभी राजनीतिक दलों (बैठक का बहिष्कार करने वाली भाजपा को छोड़कर) के प्रतिनिधियों ने पंजाब से 32 सहित 40 किसान यूनियनों के समूह द्वारा की गई कार्रवाई और स्थिति की सराहना की।
आम आदमी पार्टी (आप) के प्रतिनिधि दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों की सुरक्षा के लिए पंजाब पुलिस की तैनाती की अपनी मांग को लेकर वॉकआउट कर गए, फिर भी प्रस्ताव पारित हो गया। मुख्यमंत्री ने आप ेकी मांग को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया।
बैठक के अंत में आप नेताओं द्वारा मुद्दा उठाए जाने पर अमरिंदर सिंह ने पूछा, "हम राज्यों के लिए अधिक संघीय शक्तियों के बारे में बात करते हैं, फिर हम यह कैसे कर सकते हैं?"
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, "अगर हिमाचल प्रदेश और हरियाणा पुलिस पंजाब में आती है तो आप क्या करेंगे?"
प्रस्ताव में केंद्र से न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों का वैधानिक अधिकार बनाने का भी आह्वान किया गया और भारतीय खाद्य निगम व अन्य एजेंसियों के माध्यम से केंद्र द्वारा खाद्यान्नों की खरीद जारी रखने की मांग की।
बैठक में प्रस्तावित नए बिजली (संशोधन) अधिनियम, 2020 को वापस लेने के लिए केंद्र से आग्रह करते हुए नए पर्यावरण संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2020 को वापस लेने की भी मांग की गई।
संकल्प में किसानों के संघर्ष में योगदान देने के लिए उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत की सराहना की गई। साथ ही, पंजाब के किसानों को समर्थन देने के लिए हरियाणा के किसानों का आभार भी जताया गया। (आईएएनएस)
-सलमान रावी
मुज़फ्फ़रनगर में हुए दंगों के सिलसिले में जांच की जो रिपोर्ट सामने आई, उसमें ये कहा गया कि 29 सितंबर, 2013 को हुई इस महापंचायत के बाद से ही 'पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ गया' था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस इलाक़े के कई गाँव दंगे की चपेट में आ गए थे.
इन दंगों में दोनों पक्षों के कई लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की गई, जिसमें भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के नाम भी शामिल थे.
'गन्ना बेल्ट' के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश के इस इलाक़े को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का मज़बूत गढ़ माना जाता रहा था. यहाँ की राजनीति में हमेशा ही किसान और उनसे जुड़े मुद्दे ही हावी रहे हैं. अलग-अलग राजनीतिक दलों पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने किसानों के मुद्दों हो भुनाकर ही इस क्षेत्र में वोट हासिल किए हैं.
लेकिन दंगों के बाद से इस क्षेत्र की राजनीति पूरी तरह से बदल गई और इस इलाक़े के राजनीतिक दंगल में भारतीय जनता पार्टी ने ज़ोरदार 'एंट्री' मारी. इतनी ज़ोरदार कि इस इलाक़े के सबसे बड़े और मज़बूत किसान माने जाने वाले चौधरी अजित सिंह को भी हार का सामना करना पड़ा.
'दंगों से प्रभावित हुए' ग़ुलाम मोहम्मद जौला को किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का बहुत क़रीबी माना जाता था. दंगों से आहत जौला ने ख़ुद को भारतीय किसान यूनियन से अलग कर लिया और एक नया संगठन - भारतीय किसान मज़दूर मंच बना डाला.
तारीख़: 29 जनवरी 2021
स्थान: सिसौली, मुज़फ़्फ़रनगर
आयोजन: महापंचायत
आठ सालों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में होने वाली ये सबसे बड़ी महापंचायत थी, जिसमें हज़ारों की संख्या में किसान और ग्रामीण जमा हुए. मंच पर महेंद्र सिंह टिकैत के क़रीबी रहे ग़ुलाम मोहम्मद जौला भी मौजूद थे.
किसान नेता चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी मंच पर आते हैं और वो ग़ुलाम मोहम्मद जौला के पैर छूकर प्रणाम करते हैं. नरेश टिकैत ग़ुलाम मोहम्मद जौला को गले से लगा लेते हैं.
महापंचायत को संबोधित करते हुए जौला वहाँ मौजूद किसान और जाट नेताओं से कहते हैं - "जाटों ने दो ग़लतियाँ कर डालीं. एक चौधरी अजित सिंह को हराया और दूसरा मुसलामानों पर हमला किया."
ग़ुलाम मोहम्मद जौला के इस बयान के बावजूद पूरी महापंचायत में सन्नाटा छाया रहा. किसी ने उनकी इस बात का कोई विरोध नहीं किया.
भारतीय किसान यूनियन के कुछ नेताओं ने बीबीसी से कहा कि 'सन्नाटा इसलिए छा गया था क्योंकि महापंचायत में आए सभी जाट और किसान नेताओं का मानना था कि जो ग़ुलाम मोहम्मद जौला कह रहे थे. वो सही था.'
लेकिन बीकेयू के नेता मानते हैं कि जौला जो कह रहे थे, उसकी नींव 2018 के जनवरी महीने में ही पड़ गई थी, जब ग़ुलाम मोहम्मद जौला और नरेश टिकैत ने मिलकर जाटों और मुसलमानों को आपस में फिर जोड़ने की मुहिम शुरू की थी.
जानकार कहते हैं- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और किसानों ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी से किनारा कर अपना राजनीतिक भविष्य भारतीय जनता पार्टी में तलाशना शुरू कर दिया था. देखते ही देखते, टिकैत बंधुओं ने भी खुलकर ख़ुद को इस नई राजनीति में ढालना शुरू कर दिया.
नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के क़रीबी बीकेयू के कुछ नेताओं ने बीबीसी से कहा, "साल 2018 में ग़ुलाम मोहम्मद जौला और नरेश टिकैत ने 20 सदस्यों की कमेटी बनाई थी, जिसने गाँव-गाँव जाकर मुसलमान और जाट किसानों से "पुरानी बातों को भूलकर फिर से एकजुट होने" के लिए मनाना शुरू किया था. इस क़वायद के बावजूद दोनों ही पक्षों ने कभी एक दूसरे पर किसी राजनीतिक दल के पक्ष लेने या विरोध करने के लिए कोई दबाव नहीं डाला."
ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा को लेकर अभी माहौल गर्म था ही कि इसी बीच पत्रकारों से बात करते हुए राकेश टिकैत भावुक हो गए. उनका ये वीडियो इस क़दर वायरल हुआ कि जो किसान आंदोलन से चले गए थे, वो लौट आए.
इस बार वो लोग भी ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुँच रहे हैं, जो पहले सीधे तौर पर आंदोलन में शामिल नहीं थे. ये लोग किसी एक धर्म या जाति के नहीं हैं.
किसानों और आम गाँववालों के अलावा कई राजनीतिक हस्तियाँ भी किसान नेता राकेश टिकैत से मिलने ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुँचीं. मुलाक़ात करने वालों में अकाली दल के नेता और पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल के अलावा उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, जयंत चौधरी और दीपेन्द्र सिंह हुड्डा भी शामिल थे.
चौधरी अजित सिंह के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव ने राकेश टिकैत से फ़ोन पर बात कर अपना समर्थ देने के घोषणा की.
तो क्या राकेश टिकैत दिल्ली की सरहदों पर किसानों का आंदोलन संचालित करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा से अलग तरीक़ा अपनाए हुए हैं?
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के धरने के संयोजक आशीष मित्तल ऐसा नही मानते.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, "शुरू में तो किसी नेता को मंच पर आने ही नहीं दिया गया था."
वो कहते हैं, "शुरू में किसी भी राजनीतिक दल को हमने मंच से अलग ही रखा. लेकिन 26 जनवरी की रात से सब कुछ बदल गया और आंदोलन काफ़ी फैल गया. इसलिए राजनीतिक दलों के नेता भी आ रहे हैं और समर्थन देने की घोषणा कर रहे हैं."
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मित्तल कहते हैं कि अब भी किसी राजनीतिक दल के नेता को मंच से बोलने नहीं दिया जाता है.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेता वीजू कृष्णन कहते हैं, "26 जनवरी के बाद से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर नेता एकजुटता दिखाने पहुँच रहे हैं. उनका कहना है कि किसान संगठन सभी से समर्थन मांग रहे हैं और लोग आगे आकर समर्थन भी दे रहे हैं."
नया प्रस्ताव
हाल ही में एक समाचार एजेंसी ने ख़बर चलाई जिसमें राकेश टिकैत के हवाले से कहा गया कि- वे चाहते हैं कि मौजूदा केंद्र सरकार अगले 36 महीनों तक तीनों कृषि क़ानूनों को स्थगित रखे. यानी इस सरकार के बाक़ी के बचे हुए कार्यकाल तक. यहाँ भी राकेश टिकैत ने मोर्चा से अलग लाइन ले ली, क्योंकि मोर्चा का कहना है कि जब तक तीनों क़ानून पूरी तरह से वापस नहीं होते, किसानों का आंदोलन वापस नहीं होगा.
ये प्रस्ताव नरेश टिकैत की तरफ़ से भी आया है कि सरकार 18 महीने की जगह 2024 तक के लिए नए कृषि क़ानून क्यों नहीं रद्द कर देती? ये सुझाव नरेश टिकैत ने बीबीसी हिंदी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है.
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अविक साहा का कहना है, "अभी तक तक राकेश टिकैत की बातें आंदोलन को नुक़सान नहीं पहुँचा रहीं हैं. अलबत्ता उन्होंने और भी ज़्यादा समर्थन जुटाने का काम किया है. वो इसी तरह बात करते हैं बिना किसी लाग-लपेट के, इसलिए मोर्चा को कोई आपत्ति नहीं है."
साहा ने बीबीसी से कहा, "हर व्यक्ति का अपना विचार होता है, जिसे वो रखने के लिए स्वतंत्र है. संयुक्त किसान मोर्चा हर उस संगठन और व्यक्ति का स्वागत करता है जो किसानों की मांगों के समर्थन में आगे आए हैं."
लेकिन हाल ही में किसान आंदोलन से अलग हुए राष्ट्रीय किसान मज़दूर संगठन के अध्यक्ष वीएम सिंह का आरोप है कि पहले समर्थन देने आने वाले नेताओं या राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को मंच पर जाने की अनुमति नहीं थी. वो सामने नीचे बैठा करते थे.
वीएम सिंह कहते हैं कि 26 जनवरी के बाद से अब नेता न सिर्फ़ मंच पर आ रहे हैं, बल्कि वहाँ से अपना संबोधन भी कर रहे हैं.
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वीएम सिंह ने टिकैत बंधुओं पर सत्तारूढ़ दल के लिए काम करने का आरोप भी लगाया था, जिसे बीकेयू के नेता आशीष मित्तल ने ख़ारिज करते हुए कहा, "सिर्फ़ एक अभय चौटाला थे, जिन्होंने मंच से लोगों को संबोधित किया था. बाक़ी के जितने नेता आए, एक तो उन्हें भाषण नहीं देने दिया गया. अगर किसी ने किसानों को संबोधित भी किया, तो उन्होंने मंच के नीचे से किया न कि मंच से."
टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन के संयोजक संजय माधव कहते हैं, "अगर वाकई में राकेश टिकैत ने 36 महीनों के लिए कृषि क़ानूनों को स्थगित करने की मांग की है तो ये उनका निजी विचार हो सकता है जिसका आदर करना चाहिए. लेकिन आंदोलन से संबंधित कोई भी नीतिगत फ़ैसला इसमें शामिल 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की आम राय से ही होगा."
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता चाहे जो कहें, ये बात तो सच है कि राकेश टिकैत, किसान आंदोलन में काफ़ी देर से शामिल हुए, लेकिन आज की तारीख़ में सबसे अधिक चर्चा में हैं.
जानकार कहते हैं कि 26 जनवरी को जो कुछ हुआ, उससे आंदोलन की छवि ख़राब हुई. ऐसा समय भी आया, जब लगने लगा कि आंदोलन ख़त्म हो जाएगा. लेकिन वो राकेश टिकैत ही हैं जिन्होंने इसमें दोबारा जान फूँक दी. इसलिए वो जो करते हैं, उस पर मोर्चा के नेताओं को फिलहाल ज़्यादा आपत्ति नहीं है.
वो कहते हैं कि राकेश टिकैत आंदोलन में काफ़ी देर से शामिल हुए थे, लेकिन इस वक़्त वही आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बन गए हैं. (bbc.com)
जयपुर, 2 फरवरी | राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस को करारा झटका देते हुए टोंक जिले के निवाई से स्थानीय नगरपालिका चुनाव जीतने वाले 17 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के पार्षद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए हैं, जिससे भाजपा के खाते में एक और सीट बढ़ गई है और अब पार्टी की जीत 25 सीटों पर हो गई है। गुरुवार को राज्य में 90 सीटों के लिए हुए स्थानीय चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस 19 सीटों तक ही सीमित रही।
स्थानीय नगरपालिका बोर्ड चुनाव सत्तारूढ़ कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के लिए भी एक प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। दोनों पार्टियां अधिकतम सीटों पर अपने बोर्ड बनाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही हैं।
राज्य की 90 सीटों पर हुए स्थानीय चुनावों में भाजपा ने 24 सीटें जीतीं, वहीं कांग्रेस को निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन की उम्मीद है, जो बाकी सीटों पर असली किंगमेकर की भूमिका में उभरे हैं।
कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अजय माकन ने कहा कि पार्टी लगभग 52 सीटों पर अपना बोर्ड बनाएगी, जबकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया ने उनके दावे पर सवाल उठा दिया, क्योंकि भाजपा ने 24 सीटें जीतीं, इसलिए कांग्रेस 52 सीटों पर अपने बोर्ड कैसे बना सकती थी।
राकांपा के पार्षदों ने कांग्रेस से बागी तेवर दिखाए, जो सत्तारूढ़ दल को छोड़कर राकांपा में शामिल हुए और अब उनका राज्य में भाजपा में विलय हो गया है।
राजनीतिक सूत्रों ने पुष्टि की कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपने बोर्ड बनाने के लिए 90 में से कम से कम 45 इकाइयों में अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं। इस बीच पार्षदों को एक साथ रखा जा रहा है, जहां चेयरपर्सन के मतदान के लिए उन्हें 7 फरवरी तक रहना होगा।
90 में से भाजपा और कांग्रेस कम से कम छह सीटों पर समान संख्या में हैं और इसलिए क्रॉस वोटिंग का खतरा है। यही वजह है कि दोनों पार्टियों ने क्रॉस वोटिंग को रोकने के लिए अपने उम्मीदवारों को एक साथ रखा है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) मंत्रालय ने मंगलवार को 'नारी शक्ति पुरस्कार-2020' के लिए नामांकन करने की अंतिम तिथि छह फरवरी तक बढ़ा दी। डब्ल्यूसीडी मंत्रालय ने यह घोषणा करते हुए बताया कि यह पुरस्कार हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रदान किया जाता है, जो 8 मार्च को पड़ता है।
मंत्रालय महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में किए असाधारण कार्यों के लिए यह पुरस्कार प्रदान करता है।
पुरस्कार में एक प्रशस्तिपत्र और 2 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
महिलाओं को निर्णय लेने की भूमिकाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में महिला कौशल विकास, ग्रामीण महिलाओं के लिए बुनियादी सुविधाओं की सुविधा, गैर-पारंपरिक क्षेत्रों जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, खेल, कला, संस्कृति में महिलाओं को बढ़ावा देना और उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण काम करने के लिए व्यक्तियों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों, संस्थाओं और अन्य को 'नारी शक्ति पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है।
डब्ल्यूसीडी मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "दिशानिर्देशों के अनुसार, कम से कम 25 साल की उम्र और संबंधित क्षेत्र में कम से कम 5 साल तक काम करने वावा कोई भी व्यक्ति को आवेदन करने के लिए पात्र हैं।"
यह पुरस्कार उन लोगों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के रास्ते में उम्र, भौगोलिक बाधाओं को या संसाधनों की कमी को आड़े नहीं आने दिया। (आईएएनएस)
ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ ने 'आत्मनिर्भरता' शब्द को साल 2020 के लिए ऑक्सफ़ोर्ड हिंदी शब्द चुना है.
ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ के अनुसार, "साल का शब्द किसी ऐसे शब्द को चुना जाता है, जिससे बीते साल का मूड और लोगों की व्यवस्तता झलकती हो और जिसका आने वाले दौर में भी सांस्कृतिक महत्व होता है. आत्मनिर्भरता शब्द का अर्थ और सोच बीते साल अधिकतर भारतीयों की भावना का हिस्सा रहा है."
एक प्रेस रिलीज़ जारी कर ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज़ ने कहा है कि "बीता साल भारत के लिए काफ़ी मुश्किलों भरा रहा था. यहाँ कोरोना महामारी के कारण लंबा और सख़्त लॉकडाउन लगाया गया. लोगों की आवाजाही को लेकर लगाई गई पाबंदियों का सीधा असर यहाँ की अर्थव्यवस्था पर पड़ा, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए. इस मुश्किल दौर में लोगों ने अपनी कोशिशें जारी रखीं और आत्मनिर्भरता का प्रमाण दिया."
हिंदी वर्ड ऑफ़ द ईयर की सलाहकार समिति की कृतिका अग्रवाल ने कहा, "हमें कई शब्द एंट्री के तौर पर मिले थे लेकिन आत्मनिर्भरता शब्द को इसलिए चुना गया, क्योंकि ये शब्द अनगिनत भारतीयों की दैनिक संघर्ष और महामारी के ख़िलाफ़ उनकी जंग को दर्शाता है."
कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कोविड-19 पैकेज की घोषणा की थी, उस दौरान आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा था कि महामारी से निकलने के लिए हमें "एक देश के तौर पर, एक समाज के तौर पर, एक अर्थव्यवस्था के तौर पर और स्वयं के तौर पर आत्मनिर्भर होना होगा."
इसके बाद से ही इस शब्द का इस्तेमाल काफ़ी बढ़ गया और आम बोलचाल में भी लोग इस शब्द का इस्तेमाल करने लगे. साल 2021 के गणतंत्र दिवस की परेड में भी इसकी झलक देखने को मिली, जब बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने 'मेड इन इंडिया' या 'आत्मनिर्भर भारत' के नाम से एक झाँकी निकाली.
हालांकि ऑक्सफ़ोर्ड लैंग्वेजेज ने ये भी कहा है कि "आत्मनिर्भरता की अवधारणा नई नहीं है बल्कि गाँव की अर्थव्यवस्था को लेकर महात्मा गांधी के विज़न से मिलता-जुलता है. गांधी का कहना था कि अपने आप में एक आत्मनिर्भर इकाई के तौर पर गाँव का विकास होना चाहिए."
1960 और 70 के दशक में भारत सरकार ने हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के नाम से जो क़दम उठाए थे, वो भी इसी दिशा में की गई कोशिशें थी. देश के भीतर खाद्य संकट से निपटने के लिए उस दौर में सरकार ने इस तरह के क़दम उठाए थे.
गांधी का आत्मनिर्भरता का विज़न
अपनी किताब 'स्वतंत्रयोत्तर भारत में ग्राम्य विकास और गांधी दर्शन' में केशन पांड्या लिखते हैं, "गांधी जी ने अपने विभिन्न लेखों तथा व्याख्यानों में गाँवों में सत्ता के विकेंद्रीकरण का विचार दिया था. वे प्रत्येक गाँव को अपनी भौतिक आवश्कताओं की पूर्ति के संभव में यथासंभव आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे."
गाँव में व्यवस्था कैसी होनी चाहिए और वहाँ की अर्थव्यवस्था कैसी हो, इसके बारे में गांधी की अवधारणा का ज़िक्र पीटर गॉन्ज़ालेविस ने अपनी किताब 'गांधी के क्रांति के महाप्रतीक' में किया है.
वो लिखते हैं कि गांधी का मानना था कि "प्रत्येक गाँव को उस सीमा तक आत्मनिर्भर और अपने मामलों को व्यवस्थित करने में सक्षम होना चाहिए, जिससे वो पूरी दुनिया के ख़िलाफ़ भी स्वयं की रक्षा कर सके. यह पड़ोसियों या दुनिया पर निर्भर रहने और सहायता प्राप्त करने से रोकता नहीं है."
"स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी ने प्रत्येक गाँव को भोजन के लिए अपनी फसल और कपड़े के लिए स्वयं का कपास उगाने के लिए प्रोत्साहित किया." (bbc.com)
नई दिल्ली, 2 फरवरी| नए कृषि कानूनों के विरोध में विपक्षी दलों के हंगामे के बीच मंगलवार को लोकसभा की कार्यवाही लगातार दूसरी बार स्थगित हुई। लोकसभा की कार्यवाही शाम सात बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी| दसवीं और बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के लिए डेटशीट जारी जारी कर दी गई है। सीबीएसई की इन बोर्ड परीक्षाओं की शुरूआत 4 मई से होनी है। सीबीएसई द्वारा जारी की गई डेटशीट के मुताबिक 6 मई को दसवीं कक्षा के छात्रों के लिए इंग्लिश की परीक्षा आयोजित की जाएगी। 10 मई को हिंदी ,11 मई को उर्दू, 15 को विज्ञान, 20 को होम साइंस, 21 मई को गणित और 27 मई को सामाजिक विज्ञान की परीक्षा ली जाएगी। इसी प्रकार से बारहवीं कक्षा के छात्र 4 मई को अंग्रेजी की परीक्षा देंगे। 5 मई को टैक्सेशन का एग्जाम होगा। 8 मई को फिजिकल एजुकेशन, 10 मई को इंजीनियरिंग ग्राफिक, 12 मई को बिजनेस स्टडी, 17 मई को अकाउंटेंसी, 18 मई को केमिस्ट्री, 19 मई को राजनीतिक विज्ञान, 24 मई को बायोलॉजी, 25 मई को अर्थशास्त्र, 31 मई को हिंदी और 1 जून को गणित की परीक्षा होगी।
सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं का विस्तृत ब्यौरा लेने के लिए छात्र सीबीएसई की वेबसाइट देख सकते हैं। सीबीएसई ने मंगलवार शाम 10वीं एवं 12वीं की पूरी डेट शीट वेबसाइट पर अपलोड कर दी है।
इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, "डेटशीट तय करते समय हमने इस बात की बहुत कोशिश की है की महत्वपूर्ण विषयों की परीक्षा के बीच छात्रों को समय मिले। छात्र तनावमुक्त रहें। हमारी कोशिश रही है कि हम छात्रों से जुड़े रहें और छात्र आनंद के साथ अपनी तैयारी करें।"
निशंक ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि छात्र अब डेटशीट प्राप्त होने के बाद और अच्छे से तैयारी कर सकेंगे। विषम परिस्थितियों में भी छात्रों ने स्वयं को साबित किया है। मैं अध्यापकों के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं। अध्यापकों ने योद्धा की भूमिका निभाई है। उन्होंने अभिभावकों के साथ मिलकर छात्रों को संरक्षण प्रदान किया है।"
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा, "अब धीरे-धीरे देश को कोरोना संक्रमण से मुक्ति मिल रही है। इस दौरान देशवासियों ने आपदा को अवसर में तब्दील किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दो-दो वैक्सीन आई हैं। हालांकि जब तक सब कुछ पूरी तरह से ठीक न हो जाए, तब तक सभी को चौकस रहना होगा एवं दूसरों को भी जागरूक करते रहना होगा।"
बोर्ड परीक्षाएं 4 मई से शुरू होकर 10 जून तक चलेंगी। वहीं 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं का रिजल्ट 15 जुलाई तक घोषित कर दिया जाएगा। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 2 फरवरी | बिहार में हुए बिजली सुधार को कोई नकार नहीं सकता है। सत्ताधारी पार्टियां भी इस सुधार को चुनाव में फायदा लेती रही है। इस बीच, बिहार में लागू स्मार्ट प्रीपेड मीटर को अब पूरे देश में लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतरमण ने सोमवार को संसद में पेश आम बजट में स्मार्ट प्रीपेड मीटर को देश में लागू करने का प्रस्ताव दिया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी केंद्रीय बजट को स्वागत योग्य बताते हुए कहा है कि प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने की बिहार की योजना अब पूरे देश में लागू होगी। इस काम को केंद्र सरकार ने आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।
बिहार में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का काम तेजी से चल रहा है। बिहार में 2018 में नॉर्थ एवं साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनर्जी एफिशियंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) से करार किया। इसके बाद 2019 में मंत्रिमंडल की बैठक में स्मार्ट प्रीपेड मीटर राज्य में लगाने का निर्णय लिया गया। प्रारंभ में इसे कुछ जिलों तक सीमित रखा गया था।
विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य में अब तक एक लाख से ज्यादा उपभोक्ताओं के स्मार्ट प्रोपेड मीटर लगाए जा चुके हैं। इस बीच, सरकार ने इस काम को और तेज करने का निर्णय लिया है। उपभोक्ताओं के मीटर अब बड़े पैमाने पर प्रीपेड में तब्दील कर दिए जाएंगे। कनेक्शन प्रीपेड होने से उपभोक्ता बिना पेमेंट किए बिजली का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा।
सार्वजनिक क्षेत्र की ईईएसएल ने बिहार की दो बिजली डिस्ट्रब्यूशन यूनिटस से राज्य में 23.4 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के लिए पिछले सप्ताह करार किया है।
ईईएसएल ने कहा है कि यह पहली बार है जब राज्य में इतने बड़े स्तर पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जा रहे हैं। इससे राज्य के बिजली क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा।
बयान में कहा गया है कि ईईएसएल ने साउथ बिहार पावर डिस्ट्रब्यूशन कंपनी लिमिटेड और नॉर्थ बिहार डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड के साथ राज्य में 23.4 लाख स्मार्ट प्रीमेड मीटर लगाने के लिए करार किया है।
बिहार के बिजली मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव भी कहते हैं, बिजली क्षेत्र को बड़ा तकनीकी और कमर्शियल नुकसान झेलना पड़ रहा है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर बिहार के लिए इस चुनौती को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मुझे भरोसा है कि इन मीटर से राज्य के बिजली क्षेत्र को काफी फायदा होगा और बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति में इससे सुधार आएगा।
बिहार में बिजली खपत में लगातार वृद्धि हो रही है। आंकडों के मुताबिक साल 2012-13 में राज्य में प्रति व्यक्ति बिजली खपत मात्र 145 यूनिट थी जो 2018-19 में बढकर 345 यूनिट हो गई है। कहा जा रहा है कि राज्य में उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। (आईएएनएस)
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ , 2 फरवरी | तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के जरिए राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अपनी खोयी जमीन को पाने में जुटा है। हलांकि इस आंदोलन में अन्य विपक्षी दल भी राजनीति चमकाने के प्रयास में लगे है। मगर इसका सियासी फायदा रालोद को मिलने की संभावनाएं अभी नजर आ रही हैं।
26 जनवरी को लाल किला की घटना के बाद जब चारों तरफ से किसान आंदोलन को दबाने की कोशिशें हुई, तो एक बारगी लगा था कि अब यह आंदोलन इतिहास बनकर रह जाएगा। मगर 28 जनवरी की रात गाजीपुर बॉर्डर पर रोते हुए राकेश टिकैत ने जब भावनात्मक अपील की तो वहीं से किसान आंदोलन ने पलटी मार दी। नतीजा, पुलिस की हिम्मत नहीं हो सकी कि वह राकेश टिकैत को गिरतार कर ले। इसके बाद से हुई महापंचायतों में भाकियू रालोद की दोस्ती का रंग चटक होने लगा है। किसान आंदोलन पर चढ़ रहा सियासी रंग रालोद को संजीवनी भी दे सकता है।
पश्चिमी यूपी की राजनीति में हमेशा से किसान प्रभावित रही है। इसी कारण चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री की गद्दी पर विराजमान हुए थे। अजित सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं जो लगभग हर सरकार में मंत्री रहे हैं। वे कपड़ों की तरह सियासी साझेदार बदलते रहे हैं।
नए-नए प्रयोग करने वाले रालोद के रिकॉर्ड पर गौर करें तो वर्ष 2002 में भाजपा से गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ते हुए रालोद के कुल 14 विधायक जीते थे। वर्ष 2009 में भाजपा से गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा और उनके पांच सांसद जीते। उस चुनाव में रालोद के कोटे में सात सीटें आयीं और यह अब तक का उसका सबसे ठीक ग्राफ रहा है। वर्ष 2012 में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े विधानसभा चुनाव में महज नौ सीटे ही मिली। 2014 नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर उदय होने का साल था जो रालोद के लिए बेहद निराशाजनक रहा। यहीं से उनके धरातल पर जाने की कहानी शुरू होती है।
2017 में कांग्रेस से मिलकर लड़ने के बाद भी रालोद एक विधानसभा सीट छपरौली ही जीत पाई और वह विधायक भी भाजपा में चला गया। साल 2019 में लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न होने के बावजूद जातीय समीकरण के चलते इन्हें सपा-बसपा के बीच गठबंधन में जगह मिली। वहां भी यह सफल नहीं हो सके। तब से लगातार अपनी सियासी जमीन बचाने के प्रयास में लगे हैं। 28 जनवरी की रात किसानों के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। उसको जयंत ने सही समय पर लपक कर आगे बढ़ने में लगे। 29 जनवरी को हुई पंचायत में नरेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर में पंचायत बुलाई, यहीं समीकरण में बदलाव देखे गये। यहां नरेश ने जयंत को मंच में बुलाकर एकता का संदेश दिया। 2019 में चुनाव में जयंत के परिवार सफलता न मिलने पर मलाल भी व्यक्त किया।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की 2012, 2014, 2017, 2019 के चुनावों में सीटें कम हुई है। इनका जनाधार कम हुआ है। अजीत सिंह राजनीति से रिटायरमेंट ले चुके है। उनकी बातों का वजन अब किसानों की बीच नहीं बचा है। वह किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाए। अजीत सिंह जननेता नहीं बन पाए। चरण सिंह के बेटे के नाते उनकी प्रासंगिकता नहीं बन पायी। किसान आंदोलन से उन्हें संजीवनी मिली है। मुस्लिम, जाट की एकता से उन्हें सफलता मिलती रही है। वह भी मुजफ्फरनगर दंगे से टूट गयी थी। लेकिन वह इस किसान आंदोलन के माध्यम से एक बार फिर बनती दिख रही है। टिकैत को लगता है कि यूपी में यह आंदोलन राजनीति के समर्थन से फल-फूल सकता है। अभी होने वाले पंचायत चुनाव में रालोद अपनी संभवानाएं तलाशेगी। इस आन्दोलन से उन्हें आशा की किरण नजर आ रही है। पंचायत चुनाव में 50-60 लोग जीत जाते हैं तो उसी के आधार पर वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का रोडमैप तैयार करेंगे। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 2 फरवरी | भव्य राम मंदिर के निर्माण हेतु चंदा जुटाने के लिए अब केरल में कांग्रेस के नेता भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे ही एक नेता हैं - अलाप्पुझा जिला कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष रघुनाथन पिल्लै। उन्होंने मंदिर निर्माण की खातिर चंदा इकट्ठा करने के लिए (30 जनवरी से लेकर 28 फरवरी तक) एक मुहिम शुरू की है। इस प्रयास के लिए वह अब विवादों में भी घिरते नजर आ रहे हैं। आरएसएस कार्यकर्ता भी सक्रिय रूप से धन जुटाने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिल रहे हैं। रघुनाथन पिल्लै ने मंदिर के मुख्य पुजारी को दान सौंपकर अलाप्पुझा के कदविल मंदिर में राम मंदिर निधि संग्रह अभियान की शुरुआत की थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता अब पिल्लै के खिलाफ मुखर होने लगे हैं।
माकपा के राज्य सचिव ए विजयराघवन ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, कांग्रेस और आरएसएस-भाजपा गठबंधन ने केरल में हमेशा जुड़वां बच्चों की तरह काम किया है और यह केरल के राजनीतिक कार्यकतार्ओं के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कई कांग्रेस नेता हमेशा से ऐसा करते रहे हैं। कांग्रेस को ऐसा करने के बाद धर्मनिरपेक्षता के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
हालांकि पिल्लै ने कहा कि इस विवाद का कारण कांग्रेस में आंतरिक प्रतिद्वंद्विता है। उन्होंने पल्लीपुरम पट्टार्य समाजम के अध्यक्ष के रूप में कार्यक्रम का शुभांरभ किया था और उनका सार्वजनिक जीवन सभी के सामने है।
केपीसीसी (केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी) के महासचिव ए.ए. शुकूर ने भी पिल्लै का बचाव करते हुए कहा कि पिल्लै एक सच्चे आस्तिक हैं और उन्होंने समाजम के अध्यक्ष के रूप में समारोह का उद्घाटन किया था और इस पर विवाद खड़ा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। रघुनाथन एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हैं और उन्होंने हमेशा आरएसएस का विरोध किया है। यह विवाद अनावश्यक है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | 'चौरी चौरा' घटना के 100 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 फरवरी को शताब्दी समारोह का उद्धघाटन करेंगे। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री इस घटना पर एक डाक टिकट भी जारी करेंगे जो आम लोगों को इस घटना की याद दिलाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम राज्य के सभी 75 जिलों में 4 फरवरी 2021 से शुरू होगा और 4 फरवरी 2022 तक जारी रहेगा। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित रहेंगे। आपको बता दें कि, 4 फरवरी 1922 को हुई इस घटना में भारतीयों ने ब्रिटिश पुलिस चौकी में आग लगा दी थी जिसमे चौकी के अंदर छुपे हुए 23 पुलिसकर्मी जिंदा जल के मर गए थे। जिसके बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। इसी घटना के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जुड़ा और भारत की आजादी में शामिल क्रांतिकारियों की 'नरम दल' और 'गरम दल' बने। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | गृह मंत्रालय ने 29 जनवरी को इजरालय दूतावास के पास हुए बम विस्फोट मामले की जांच देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी-एनआईए को सौंप दी है। गृह मंत्रालय ने मंगलवार को आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि की।
दिल्ली पुलिस ने कहा था कि विस्फोट शहर के मध्य में स्थित 5 औरंगजेब रोड पर हुआ था। (आईएएनएस)
गाजीपुर बॉर्डर, 2 फरवरी | कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन जारी है, ऐसे में गणतंत्र दिवस के बाद से बॉर्डर पर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का आना बदस्तूर जारी है। इसी क्रम में मंगलवार को शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत किसानों के समर्थन में गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे। राउत ने भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत से मुलाकात कर अपना और अपनी पार्टी का समर्थन दिया।
इस दौरान शिव सेना के नेता संजय राउत ने आईएएनएस से कहा, मुझे उद्धव ठाकरे जी ने खास तौर पर भेजा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री किसानों के समर्थन में हैं। 26 जनवरी के बाद हमने जो माहौल देखा और जिस तरह राकेश टिकैत जी के आंखों में आंसू देखे, उसके बाद हम कैसे रह सकते थे?
राउत ने कहा, बॉर्डर पर हाल ही में जो कुछ भी हुआ है उससे पूरा देश बीजेपी से नाराज है, वहीं राकेश टिकैत जो तय करेंगे वही हमारी आगे की रणनीति होगी।
जब संजय राउत से पूछा गया कि आखिर दो महीने बाद क्यों बॉर्डर आए, तो इस सवाल के जवाब में राउत ने कहा, अब आंदोलन को ताकत देने की जरूरत है।
क्या शिव सेना बीजेपी से नाराज है, जिस तरह वो किसानों के साथ कर रही है? इस सवाल के जवाब में राउत ने आईएएनएस से कहा, हम किसानों के साथ हैं, राजनीति मत करिए।
सरकार और किसान संगठनों की 11 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है।
दूसरी ओर गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद से किसान संगठन जिस तरह दवाब में महसूस कर रहे थे, वहीं राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का समर्थन मिलने के बाद से इस आंदोलन को फिर से मजबूती के साथ आगे बढाने की कोशिश की जा रही है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | कृषि कानूनों को लेकर मंगलवार को विपक्ष के हंगामे के कारण बार-बार कार्यवाही स्थगित होने के बाद आखिरकार राज्यसभा की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई। बार-बार स्थगन के बाद तीसरी बार कार्यवाही शुरू होने पर भी विपक्ष का हंगामा थमता नहीं देखकर इसे दिनभर के लिए स्थगित करना पड़ गया।
विपक्ष द्वारा सभापति एम. वेंकैया नायडू के स्थगन नोटिस को स्वीकार करने से इनकार करने के बाद राज्यसभा को पहली बार पूर्वाह्न 10.30 बजे तक स्थगित कर दिया गया। दूसरा पूर्वागह्न 11.30 बजे तक था, और कार्यवाही शुरू होने के बाद तीसरा स्थगन दोपहर 12.30 बजे तक के लिए कर दिया गया। इसके बाद, सदन को विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के कारण दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया।
बजट पेश किए जाने के एक दिन बाद संसद में जबरदस्त हंगामा हुआ।
राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कृषि कानूनों पर विपक्ष द्वारा दिए गए स्थगन नोटिस को अस्वीकार कर दिया था। इससे विपक्षी सदस्य भड़क गए और वॉक आउट किया। फिर कुछ देर बाद सदन में लौटे विपक्षी सदस्यों ने सभापति के आसन के पास नारे लगाए।
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, "विपक्ष को सभापति के फैसले को मानना चाहिए।"
सभापति ने कहा, "कल (बुधवार) राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच चल रही बातचीत पर चर्चा की जा सकती है।"
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, द्रमुक के टी. शिवा, बहुजन समाज पार्टी के अशोक सिद्दार्थ, माकपा के ई. करीम ने स्थगन नोटिस दिया था। विपक्ष ने राज्यसभा के नियम 267 के तहत नोटिस दिया।
नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा, "मामला गंभीर है और किसान महीनों से आंदोलन कर रहे हैं, इसलिए इस मामले पर चर्चा होनी चाहिए।" यही बात बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने भी कही।
विपक्ष ने राज्यसभा के कामकाज को स्थगित करने और कृषि कानूनों को निरस्त करने की भी मांग की। इससे पहले, शुक्रवार को 18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था।
शुक्रवार को 18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध किया था। (आईएएनएस)
गाजीपुर बॉर्डर, 2 फरवरी कृषि कानूनों पर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। पुलिस की तरफ से बॉर्डर को पूरी तरह सील कर दिया गया है। कंक्रीट की दीवार और कटीले तारों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने दोपहर का खाना पुलिस द्वारा लगाई गई बैरिकेड के पास जमीन पर बैठ कर खाया। राकेश टिकैत ने इस दौरान कहा कि हम कानून का सम्मान करते हैं, ये लड़ाई अक्टूबर महीने तक चलेगी। जिसकी तैयारियां की जा रही हैं।
बीते 2 महीने से अधिक समय से किसान कृषि कानून का विरोध कर रहें हैं। गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद से बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। वहीं गाजीपुर बॉर्डर को पूरी तरह बंद कर दिया गया है।
नोएडा, गाजियाबाद ओर मेरठ से दिल्ली की ओर जाने वाले लोगों के लिए बॉर्डर को दिल्ली पुलिस ने बिल्कुल बंद कर दिया है। जिसके कारण स्थानीय लोगों को भारी जाम से जूझना पड़ रहा है। (आईएएनएस)
गोरखपुर, 2 फरवरी | जंगे आजादी के पहले संग्राम (1857) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूवार्ंचल के तमाम रजवाड़ों, जमीदारों (पैना, सतासी, बढ़यापार नरहरपुर, महुआडाबर) की बगावत हुई थी। इस दौरान हजारों की संख्या में लोग शहीद हुए। इस महासंग्राम में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल आवाम पर हुक्मरानों ने अकल्पनीय जुल्म ढाए। बगावत में शामिल रजवाड़ों और जमींदारों को अपने राजपाट और जमीदारी से हाथ धोना पड़ा। ऐसे लोग अवाम के हीरो बन चुके थे। इनके शौर्यगाथा सुनकर लोगों के सीने में फिरंगियों के खिलाफ बगावत की आग लगातार सुलग रही थी। उसे भड़कने के लिए महज एक चिन्गारी की जरूरत थी।
ऐसे ही माहौल में उस क्षेत्र में महात्मा गांधी का आना हुआ। 1917 में वह नील की खेती (तीन कठिया प्रथा) के विरोध में चंपारण आए थे। उनके आने के बाद से पूरे देश की तरह पूवार्ंचल का यह इलाका भी कांग्रेस मय होने लगा था। एक अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बनकर उभरे। स्वदेशी की उनकी अपील का पूरे देश में अप्रत्याशित रूप से प्रभावित हुआ। चरखा और खादी जंगे आजादी के सिंबल बन गये। ऐसे ही समय 8 फरवरी 1920 को गांधी जी का गोरखपुर में पहली बार आना हुआ। बाले मियां के मैदान मे आयोजित उनकी जनसभा को सुनने और गांधी को देखने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा था। उस समय के दस्तावेजों के अनुसार यह संख्या 1़5 से 2़5 लाख के बीच रही होगी। उनके आने से रौलट एक्ट और अवध के किसान आंदोलन से लगभग अप्रभावित पूरे पूवार्ंचल में जनान्दोलनों का दौर शुरू हो गया। गांव-गांव कांग्रेस की शाखाएं स्थापित हुईं। वहां से आंदोलन के लिए स्वयंसेवकों का चयन किया जाने लगा। मुंशी प्रेम चंद (धनपत राय) ने राजकीय नार्मल स्कूल से सहायक अध्यापक की नौकरी छोड़ दी। फिराक गोरखपुरी ने डिप्टी कलेक्टरी की बजाय विदेशी कपड़ों की होली जलाने के आरोप में जेल जाना पसंद किया। ऐसी ढ़ेरों घटनाएं हुईं। इसके बाद तो पूरे पूवार्ंचल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ माहौल बन चुका था। गांधी के आगमन के करीब साल भर बाद 4 फरवरी 1921 को गोखपुर के एक छोटे से कस्बे चौरी-चौरा में जो हुआ वह इतिहास बन गया। इस घटना के दौरान अंग्रजों के जुल्म से आक्रोशित लोगों ने स्थानीय थाने को फूंक दिया। इस घटना में 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। इस घटना से आहत गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। चौरी-चौरा के इस घटना की पृष्ठभूमि 1857 के गदर से ही तैयार होने लगी थी।
लोग इस पूरी पृष्ठभूमि को जानें। जंगे आजादी के लिए आजादी के दीवानों ने किस तरह अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। कितनी यातनाएं सहीं, इसी मकसद से चौरी-चौरा के सौ साल पूरे होने पर योगी सरकार ज्ञात और अज्ञात शहीदों की याद में साल भर कार्यक्रम करने जा रही है। मंशा साफ है। भावी पीढ़ी भी आजादी के मोल को समझे। उन सपनों को अपना बनाएं जिसके लिए मां भारती के सपूतों ने खुद को कुर्बान कर दिया। खुद में देशप्रेम का वही जोश, जज्बा और जुनून पैदा करें जो उस समय के आजादी के दीवानों में था। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 2 फरवरी | आग लगने के बाद कुआं खोदने की परंपरा पुरानी है, मध्य प्रदेश में फुटपाथी बुजुर्गो के मामले में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। इंदौर देश का साफ-सुथरा शहर है, यहां के नगर निगम का अमला तो सड़क सफाई के नाम पर हाड़ कंपा देने वाली सर्दी के बीच फुटपाथी बुजुर्गो को ही कचरा गाड़ी से शहर के बाहर छोड़ने चल दिया था। मामला उजागर होने के बाद बुजुर्गों को रैनबसेरा में आसरा मिला और अब राज्य के कई हिस्सों में फुटपाथ पर जिंदगी गुजार रहे बुजुर्गों को ठंड से बचाने का अभियान चलाया जा रहा है।
इंदौर में बुजुर्गों के साथ हुए अमानवीय बर्ताव के बाद तीन कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई, साथ ही प्रशासन ने फुटपाथ पर वक्त गुजारने वाले बुजुर्गों के लिए दीनबंधु अभियान शुरु किया है। संभागायुक्त डॉ. पवन कुमार शर्मा के अनुसार यह अभियान फुटपाथ पर रहने वाले लोगों और भिक्षावृत्ति में संलग्न व्यक्तियों के पुनर्वास, सहायता, स्वास्थ्य रक्षा आदि शुरु किया गया है। इस विशेष अभियान के अंतर्गत संभाग के सभी जिलों में एक साथ पुनर्वास तथा राहत की कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
बताया गया है कि इंदौर संभाग के जिलों में ठंड से बचाव के लिये जरूरतमंदों को कहीं कंबल बांटे जा रहे हैं तो कहीं संवेदनशील पहल करते हुए उनके खाने-पीने तथा आश्रय की व्यवस्था की जा रही है।
संभागायुक्त व निगम प्रशासक डॉ. शर्मा ने बताया कि असहाय व्यक्तियों व भिक्षुकों के बचाव के लिये निगम के रैन बसेरा में गर्म कपड़े, कंबल, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है। शहर में सड़क किनारे रहने, सोने वाले बेसहारा व्यक्ति तथा भिक्षावृत्ति करने वाले व्यक्तियों का अरविंदो हॉस्पिटल के सहयोग से मेडिकल चेकअप कराने का अभियान चलाया जा रहा है। साथ ही मेडिकल चेकअप उपरांत आवश्यकता अनुसार चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।
भारत सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा भिक्षुकों की संख्या के आधार पर भिक्षुक पुनर्वास के लिए चयनित 10 शहरों में इंदौर को भी शामिल किया गया है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य भिक्षावृत्ति करने वाले समुदाय को चिन्हांकित कर उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था करना है। इस योजना के आरंभिक चरण में शहर में भिक्षावृत्ति एवं भिक्षुकों के रहने वाली जगहों का वास्तविक चिन्हांकन, सर्वेक्षण डेटा का कलेक्शन एवं क्लासिफिकेशन, सर्वेक्षण से प्राप्त डाटा अनुसार भिक्षुकों को उनकी कौशल क्षमता-अक्षमता के आधार पर पुर्नवास कराया जायेगा।
इंदौर संभाग के बड़वानी, खरगोन, खंडवा, अलिराजपुर, धार और झाबुआ में सड़क किनारे जीवन बिताने वाले बुजुर्गों और भीख मांगने वालों के लिए सहायता मुहैया कराई जा रही है।
इसी तरह जबलपुर में भी फुटपाथ पर वक्त गुजरने वालों की मदद के लिए जिला प्रशासन आगे आया है। यहां बढ़ती ठंड के मद्देनजर सड़क किनारे, खुले में एवं फुटपाथों पर सोने वाले निराश्रित और बेसहारा लोगों को रैन बसेरों तक पहुंचाने के लिए व्यापक मुहिम चलाई जा रही है।
जिलाधिकारी कर्मवीर शर्मा ने निगमायुक्त अनूप कुमार को साथ लेकर रात को शहर के कई क्षेत्रों का भ्रमण कर खुले में सोने वाले निराश्रित, बेसहारा और भिक्षुकों से व्यक्तिगत चर्चा की एवं उन्हें तत्काल ही बस एवं अन्य वाहनों से रैन बसेरों तक पहुंचाने की व्यवस्था कराई। वहीं शहरी क्षेत्र के एसडीएम एवं नगर निगम की अधिकारियों की अलग-अलग टीमें बनाई हैं, जो नियमित रूप से वाहनों के साथ शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर खुले में रात बिताने वाले लोगों को चिन्हित करेंगे एवं संबंधित स्थलों के आसपास संचालित रैन बसेरों में भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे।
आम तौर पर ठंड आते ही प्रमुख स्थलों पर अलाव जलाने का सिलसिला शुरु हो जाता था, मगर इस बार बहुत कम ही स्थान ऐसे हैं जहां अलाव जैसी व्यवस्था की गई है। एक तरफ जहां बुजुर्गों और भीख मांगने वालों के लिए वो इंतजाम नहीं किए गए हैं जो पहले कभी हुआ करते थे, वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों से अमानवीय व्यवहार किया गया है। अब सरकारी मशीनरी हरकत में आई है, देखना हेागा यह सक्रियता कब तक रहती है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फ़रवरी : पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्रीय कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पंजाब भवन में सर्वदलीय बैठक बुलाई है. बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमरिंदर सिंह मंगलवार को पंजाब भवन पहुंचे. वह सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं. सर्वदलीय बैठक शुरू करने से पहले सिंह और बैठक में शामिल अन्य नेताओं ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के लिए दो मिनट का मौन रखा और श्रद्धांजलि दी.
अमरिंदर सिंह ने ट्वीट में कहा, "हमारे किसानों को इस तरह से जान गंवाते देखना दर्दनाक है. इन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ संघर्ष के दौरान हम 88 किसानों को खो चुके हैं. उन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए जान दे दी. सर्वदलीय बैठक की शुरुआत से पहले हमने दो मिनट का मौन रखा और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की."
(एएनआई)
लखनऊ , 2 फरवरी | उत्तर प्रदेश सरकार ने शासन स्तर पर शीर्ष 10 अधिकारियों के तबादले देर रात कर दिए। जिसमें अपर मुख्य सचिव भर्जा अरविंद कुमार से विभाग की जिम्मेदारी छीन ली गई है। वहीं आलोक टंडन के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से रिक्त अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त (आइआइडीसी) पद का अतिरिक्त प्रभार मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी को सौंप दिया गया है। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखे जाने के बाद इस विभाग में वषों बाद अपर मुख्य सचिव और पावर कारपोरेशन के सीएमडी के पद पर अलग-अलग आईएएस को तैनात किया गया है। अब कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक सिन्हा को जहां ऊर्जा व अतिरिक्त ऊर्जा विभाग का भी दायित्व सौंपा गया है, वहीं एम़ देवराज पावर कारपोरेशन के सीएमडी और जल विद्युत निगम व उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम तथा पारेषण निगम के अध्यक्ष बनाए गए हैं। हालांकि, अरविंद कुमार के प्रति सरकार का भरोसा बना हुआ है और उन्हें अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के साथ आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग की एक साथ जिम्मेदारी दी गई है।
विधानमंडल के बजट सत्र से पहले अपर मुख्य सचिव वित्त एवं वित्त आयुक्त संजीव मित्तल का तबादला करते हुए इस पद पर एस़ राधा चौहान को तैनात किया गया है। बजट की तैयारियों के बीच मित्तल को हटाने के पीछे वित्त विभाग की अड़ंगेबाजी वाली कार्यशैली को माना जा रहा है।
एस़ राधा चौहान को अपर मुख्य सचिव वित्त एवं वित्त आयुक्त की नई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। राधा के पास महिला कल्याण तथा बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग का अब अतिरिक्त प्रभार रहेगा।
इन तबादलों से सरकार ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि अफसरों द्वारा जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा स्वीकार नहीं होगी। दरअसल, संजीव मित्तल के खिलाफ वित्तीय प्रावधान के बावजूद वित्तीय आवंटन से जुड़े प्रस्ताव लटकाने की शिकायतें आम हो गई थीं। निवेशकों के वित्तीय प्रोत्साहन से जुड़े प्रस्तावों को लटकाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ी टिप्पणी की थी और उनकी कार्यशैली को लेकर आगाह किया था।
मुख्यमंत्री के सचिव आलोक कुमार की जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्हें सचिव मुख्यमंत्री के साथ व्यावसायिक शिक्षा एवं प्राविधिक शिक्षा का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इसी तरह अपर मुख्य सचिव, आवास, दीपक कुमार से नगर विकास विभाग ले लिया गया है। अब चिकित्सा शिक्षा से हटाए गए रजनीश दुबे को नगर विकास विभाग का अपर मुख्य सचिव बना दिया गया है। चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में अपर मुख्य सचिव के नियंत्रण में काम कर रहे प्रमुख सचिव आलोक कुमार द्वितीय अब चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में नेतृत्व देंगे। (आईएएनएस)
झाबुआ/भोपाल, 2 फरवरी | अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए जा रहे धन संग्रह अभियान को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने भाजपा पर हमला बोलते हुए विवादित बयान दिया है। भूरिया का कहना है कि भाजपा के लोग दिन में राम मंदिर के नाम पर जुटाई जाने वाली राशि से रात को शराब पीते हैं। भाजपा ने इस बयान को शर्मनाक बताया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूरिया ने कहा है कि पहले राम मंदिर के नाम पर हुए चंदे में करोड़ों रुपये जुटाए गए थे, इस राशि को भाजपा के लेाग दबाए बैठे हुए हैं। इस राशि को मंदिर टस्ट में जमा किया जाना चाहिए। अब फिर भाजपा के लोग घर-घर जाकर चंदा जुटा रहे है, दिन में चंदा जुटाते हैं और रात को नदी पर जाकर शराब पीते हैं।
भूरिया के इस बयान को राज्य सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने शर्मनाक बताया है और कहा है कि कांग्रेस ने हमेशा राम के नाम को बदनाम करने की कोशिश की है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का अभियान सिर्फ भाजपा का नहीं बल्कि देश के करोड़ों लोगों का है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 फरवरी | कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हुए विपक्ष ने हंगामा कर मंगलवार को राज्यसभा की कार्यवाही दूसरी बार स्थगित करने के लिए मजबूर कर दिया। राज्यसभा की कार्यवाही पूर्वाह्न 10.30 बजे फिर से शुरू होने के बाद उपसभापति हरिवंश ने सदन को पूर्वाह्न 11.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
संसद में स्थगन नोटिस खारिज होने के बाद विपक्ष ने हंगामा किया। विपक्षी दलों ने मंगलवार को राज्यसभा से वॉकआउट किया और बाद में सदन में लौटने के बाद सभापति के आसन के पास नारेबाजी की।
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, "विपक्ष को सभापति के फैसले को मानना चाहिए।" इसके बाद सदन को पूर्वाह्न 10.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।
सदन की कार्यवाही शुरू होने के कुछ मिनटों बाद राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कृषि कानूनों पर विपक्ष द्वारा दिए गए स्थगन नोटिस को खारिज कर दिया।
सभापति ने कहा, "कल (बुधवार) राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच चल रही बातचीत पर चर्चा की जा सकती है।"
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, द्रमुक के टी. शिवा, बहुजन समाज पार्टी के अशोक सिद्दार्थ, माकपा के ई. करीम ने स्थगन नोटिस दिया था। विपक्ष ने राज्यसभा के नियम 267 के तहत नोटिस दिया।
नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा, "मामला गंभीर है और किसान महीनों से आंदोलन कर रहे हैं, इसलिए इस मामले पर चर्चा होनी चाहिए। यही बात बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने भी कही।"
विपक्ष ने राज्यसभा के कामकाज को स्थगित करने और कृषि कानूनों को निरस्त करने की भी मांग की है। इससे पहले, शुक्रवार को 18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था।
शुक्रवार को 18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध किया था। (आईएएनएस)