राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| देश में गुरुवार को एक ही दिन में 69,652 नए कोरोनावायरस मामले दर्ज हुए जो कि अब तक के दैनिक मामलों में सबसे ज्यादा है। इसके बाद देश में मामलों की कुल संख्या बढ़कर 28,36,925 हो गई है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि पिछले 24 घंटों में कोविड-19 के कारण 977 लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जिससे अब राज्य में कुल मृत्यु संख्या 53,866 हो चुकी है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में अभी कुल सक्रिय मामले 6,86,395 हैं। वहीं अब तक कोरोना मुक्त हुए लोगों की कुल संख्या 20,96,664 हो चुकी है। पिछले 24 घंटों में 58,794 लोग अस्पताल और क्वारंटीन सेंटर्स से डिस्चार्ज हुए हैं। इसके बाद देश में रिकवरी दर 73.91 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
सरकार ने कहा कि 19 अगस्त तक कुल 3,26,61,252 नमूनों का परीक्षण किया जा चुका है।
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में 1,60,728 सक्रिय मामले हैं। यहां 4,46,881 लोग अब तक संक्रमण से उबर चुके हैं। वहीं पिछले 24 घंटों में 346 लोगों की मौत के साथ यहां मौतों की कुल संख्या 21,033 हो गई है।
आंध्र प्रदेश में वर्तमान में 86,725 सक्रिय मामले हैं। पिछले 24 घंटों में 8,061 लोगों के ठीक होने के साथ यहां अब तक कुल 2,26,372 लोग इस घातक वायरस से उबर चुके हैं। इसके अलावा राज्य ने पिछले 24 घंटों में 86 मौतें भी दर्ज कीं, जिससे यहां मृत्यु संख्या 2,906 पर पहुंच गई है।
वहीं कर्नाटक में कुल 81,113 सक्रिय मामले हैं। यहां अब तक 1,64,150 लोग ठीक हो चुके हैं और पिछले 24 घंटों में 126 मौतों के साथ राज्य में इस वायरस के कारण मरने वालों की संख्या 4,327 हो चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां 11,137 सक्रिय मामले हैं। पिछले 24 घंटों में 1,320 लोगों के ठीक होने के साथ अब तक 1,40,767 लोग ठीक हो चुके हैं। पिछले 24 घंटों में वायरस से 9 लोगों की मौत के साथ राजधानी में अब तक हुई मौतों की संख्या 4,235 हो चुकी है।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| पद्म विभूषण पंडित जसराज का 17 अगस्त को 90 साल की उम्र में अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन के बाद उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि बापूजी का दिल एक बच्चे की तरह था। वह लगातार सीखते रहने में विश्वास रखते थे। दुर्गा जसराज ने आईएएनएस को बताया, "मैं, मेरे भाई (संगीतकार शारंग देव) बापूजी को अपने पिता के रूप में पाकर धन्य और भाग्यशाली महसूस करती हूं, क्योंकि हम सभी भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में उनके योगदान के बारे में जानते हैं। लेकिन उन्होंने जिस तरह अपना जीवन व्यतीत किया उससे हमें उनके नक्शेकदम पर चलने की प्रेरणा मिली।"
उन्होंने आगे कहा, "हम एक ऐसे घर में पले-बढ़े हैं, जहां उनके कम से कम सात से 10 छात्र हमारे साथ रहते थे, क्योंकि वे गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी उनसे पैसे नहीं लिए क्योंकि उनके लिए यह "विद्या दान" था। जब हम बड़े हो रहे थे, तब तक बापूजी एक सुपरस्टार बन चुके थे लेकिन तब भी उनके पास हम सभी के लिए समय होता था।"
संगीत में विभिन्न प्रयोगों के लिए मशहूर पंडित जसराज को लेकर उनकी बेटी कहती हैं, "बापूजी बहुत खुले विचारों वाले थे और हमेशा हमें प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। लेकिन बापूजी कुछ चीजों को लेकर बहुत सख्त थे। अनुशासन और शारीरिक फिटनेस को लेकर वो बहुत सख्ती बरतते थे। उन्होंने हमेशा कहा कि यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं तो आप किसी भी चीज में उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकते।"
उन्होंने बताया, "बापूजी का दिल बच्चे की तरह था। वह हमेशा कुछ न कुछ नया सीखते रहते थे। लॉकडाउन के दौरान दुनिया भर में फैले स्टूडेंट्स को संगीत सिखाने के लिए उन्होंने टेक्नॉलॉजी का उपयोग करना सीखा।"
सुशांत सिंह राजपूत मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेशवर पांडे की रिया चक्रवर्ती पर टिप्पणी सुर्ख़ियाँ बटोर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला सीबीआई को सौंप दिया है और ये भी कहा है कि बिहार सरकार ने सीबीआई जाँच की जो सिफ़ारिश की थी, वो सही थी. कोर्ट ने ये भी कहा कि पटना में दर्ज एफ़आईआर में भी कुछ ग़लत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बिहार के डीजीपी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करने की औकात रिया चक्रवर्ती की नहीं है. डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि बिहार पुलिस ने जो भी किया, वो सही था और क़ानून के दायरे में था.
पत्रकारों ने गुप्तेश्वर पांडे से रिया चक्रवर्ती के उस बयान के बारे में पूछा था, जिसमें रिया ने बिहार पुलिस की जाँच में राजनीति की बात की थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी ज़िक्र किया था. रिया चक्रवर्ती ने बिहार पुलिस की जाँच पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की थी.
हालांकि अब बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने इस मामले में क्षमा मांग ली है. एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर उनकी बात से कोई तकलीफ़ है तो वे क्षमा मांगते हैं.
गुप्तेश्वर पांडे ने कहा, "मुझे कोई समझा दे कि इसमें क्या अभद्र है, क्या अमर्यादित है और क्या ग़ैर क़ानूनी है. मैंने कहा कि उनकी हैसियत नहीं है कि वो बिहार के माननीय मुख्यमंत्री पर रिया चक्रवर्ती कोई अभद्र, अशोभनीय टिप्पणी करें. अगर इससे उनको कोई तकलीफ़ है. उनको लगता है कि मैंने ये औकात शब्द का जो इस्तेमाल किया है, उससे उनकी गरिमा को चोट पहुँची है, तो इसके लिए मुझे क्षमा मांगने में कोई संकोच नहीं है. लेकिन केवल महिला होने की लिबर्टी ये नहीं है कि आप किसी प्रांत के मुख्यमंत्री, वैसा मुख्यमंत्री जो अपनी ईमानदारी के लिए और अपनी इंसाफ़पसंदी के लिए जाना जाता है, उस पर आप कोई अमर्यादित, अशोभनीय टिप्पणी करे. अगर मेरी बात से कोई तकलीफ़ है तो क्षमा मांगते हैं."
बिहार के रहने वाले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत 14 जून को मुंबई स्थित अपने आवास पर मृत पाए गए थे. मुंबई पुलिस ने इसे आत्महत्या कहा था. बाद में सुशांत सिंह के पिता केके सिंह ने पटना पुलिस में एफ़आईआर दर्ज कराई और रिया चक्रवर्ती पर आत्महत्या के लिए उकसाने के साथ-साथ अन्य गंभीर आरोप भी लगाए.
नीतीश ने जताई ख़ुशी
लेकिन मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस को जाँच में सहयोग नहीं किया और अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए. बाद में रिया चक्रवर्ती सुप्रीम कोर्ट पहुँच गईं. इस बीच बिहार सरकार ने इस मामले में सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश भी कर दी और केंद्र सरकार ने सिफ़ारिश मंज़ूर भी कर ली. और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई जाँच को हरी झंडी दे दी है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर की है और कहा है कि उन्हें अब उम्मीद है कि सुशांत सिंह मामले में न्याय हो पाएगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से बिहार सरकार का पक्ष सही साबित हुआ है और ये भी स्पष्ट हो गया है कि इस मामले में कोई राजनीतिक दख़ल नहीं था.
रिया चक्रवर्ती पर टिप्पणी करते हुए बिहार के डीजीपी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग के कारण ही सुशांत सिंह राजपूत को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है.
रिया चक्रवर्ती के मामले में बिहार के डीजीपी ने मुंबई पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे. गुप्तेश्वर पांडे का कहना है कि जब उनके आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी को बेवजह क्वारंटीन किया गया, तभी उन्होंने अपना मुँह खोला.
मीडिया में अपने बयानों के कारण चर्चित गुप्तेश्वर पांडे ने कहा कि उन्हें सरकार ने बिहार पुलिस का पक्ष रखने को कहा है और वे कोई राजनीतिक बयान नहीं दे रहे हैं.
सोशल मीडिया पर घिरे डीजीपी
बिहार के डीजीपी के औकात वाले बयान पर सोशल मीडिया में भी ख़ूब चर्चा हो रही है. ट्विटर पर सलमान नाम के एक यूज़र ने आईपीएस एसोसिएशन को टैग करते हुए लिखा है- क्या है ये. क्या ये महिलाओं का सम्मान है. कृपया कोई कार्रवाई करें. एक तरफ़ बोलते हैं नारी का सम्मान करो, दूसरी तरफ़ नारी की औकात निकाल के उसका अपमान करते हैं.
एक और यूज़र अभिषेक ने लिखा है- किसी औरत की "औकात" पर बोलने वाले आप कोन होते हैं गुप्तेश्वर पांडेय जी?
बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के पक्ष में भी कुछ लोगों ने टिप्पणी की है.
एक यूजर ऋषभ राजपूत ने लिखा है कि हम भारतीय औकात शब्द का इस्तेमाल करते रहते हैं.(bbc)
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दायर की है, जिसमें अवमानना मामले के संबंध में उनकी सजा पर सुनवाई टालने की गुहार लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि जब तक इस संबंध में एक समीक्षा याचिका दायर नहीं की जाती और अदालत द्वारा इस पर विचार नहीं किया जाता, तब तक सजा पर सुनवाई को टाल दिया जाए। भूषण को दो ट्वीट के माध्यम से न्यायपालिका पर टिप्पणी करने के मामले में अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है और गुरुवार को उनकी सजा सुनाने के बारे में फैसला होना है।
अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर एक आवेदन में उन्होंने कहा है किया कि मानव निर्णय अचूक नहीं है और सभी प्रावधानों के बावजूद निष्पक्ष सुनवाई तथा न्यायपूर्ण निर्णय सुनिश्चित करने में गलती संभव है और त्रुटियों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अर्जी में कहा गया है, आपराधिक अवमानना कार्यवाही में यह अदालत एक ट्रायल कोर्ट की तरह काम करती है और यह अंतिम अदालत भी है। धारा 19 (1) हाईकोर्ट द्वारा अवमानना का दोषी पाए गए व्यक्ति को अपील का वैधानिक अधिकार देती है। यह फैक्ट है कि अदालत के फैसले के खिलाफ कोई भी अपील नहीं है और यह दोगुना आवश्यक हो जाता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत सावधानी बरती जाए कि न्याय केवल किया ही नहीं जाए, बल्कि यह होता हुआ दिखे भी।
शीर्ष अदालत में 2009 के अवमानना मामले में भूषण की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि भूषण 14 अगस्त के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा दायर कर सकते हैं, जिन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है।
भूषण ने सुप्रीम कोर्ट और प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबड़े के खिलाफ कथित तौर पर ट्वीट किया था, जिस पर स्वत: संज्ञान लेकर अदालत कार्यवाही कर रही है।
प्रशांत भूषण ने 27 जून को अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ और दूसरा ट्वीट प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ किया था। 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रशांत भूषण को नोटिस मिला।
प्रशांत भूषण ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था कि जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और प्रधान न्यायाधीश की भूमिका को लेकर सवाल पूछेंगे।
छिंदवाड़ा, 19 अगस्त (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में प्रेमी जोड़े की याद में हर साल आयोजित किए जाने वाले गोटमार मेले में परंपरा के मुताबिक दो पक्षों में जमकर पत्थरबाजी हुई। इस पत्थरबाजी में 25 लोगों केा चोटें आई हैं। छिंदवाड़ा मुख्यालय से 98 किलोमीटर दूर विकासखंड पांढुर्णा में वर्षो से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, पोला पर्व के दूसरे दिन गोटमार मेला भरता है। इस वर्ष कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव और रोकथाम के दृष्टिगत अनुविभाग स्तरीय आपदा प्रबंधन समूह और शांति समिति की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार, मेला समिति द्वारा सांकेतिक रूप से गोटमार मेला मनाने के लिए सुबह 10 बजे तक झंडा मां चंडिका देवी के मंदिर में समर्पित कर पूजन व आरती के बाद मेला समाप्त कर जनता कर्फ्यू का निर्णय लिया गया था, मगर प्रशासन के निर्देशों को दरकिनार कर पांढुर्णा और सांवरगांव के लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाए।
छिंदवाड़ा के पुलिस अधीक्षक विवेक अग्रवाल ने बताया है कि गोटमार में कुल 25 लोगों के घायल होने की सूचना मिली है, जिनका उपचार किया गया। दूसरी ओर, स्थानीय लोग घायलों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बता रहे हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि गोटमार मेले केा लेकर किंवदंती है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के ने प्रेम प्रसंग था और उसने सावरगांव की लड़की से चोरी-छिपे प्रेम विवाह कर लिया था। जब वह लड़का अपने साथ लड़की को लेकर जाम नदी पार कर रहा था, तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने उन पर पत्थरों से हमला कर दिया था।
प्रचलित किंवदंती के अनुसार, जब सावरगांव के लोगों के पथराव करने की सूचना पांढुर्णा के लोगों हुई तो वे भी जवाब में पथराव करने लगे। दोनों गांवों के लोगों द्वारा किए गए पथराव से प्रेमी जोड़े की मौत हो गई थी। बाद में दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर क्षेत्र में स्थित किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का हर साल आयोजन होता है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
धार, 20 अगस्त (आईएएनएस)| हर पिता का सपना होता है कि उसका बेटा सफलताओं के कीर्तिमान स्थापित करें और जब कोई बाधा सामने आती है तो वह मुकाबला करने से भी नहीं हिचकता। मध्यप्रदेश के धार जिले में भी ऐसी ही कुछ बात सामने आई है, जहां बेटे को परीक्षा दिलाने के लिए पिता ने 105 किलोमीटर साइकिल चलाई। वाक्या धार जिले के मनावर तहसील के बायडीपुरा गांव का है। यहां मजदूरी करने वाले शोभाराम के बेटे ने माध्यमिक शिक्षा मंडल की दसवीं की परीक्षा दी थी मगर उसे सफलता नहीं मिली। राज्य सरकार ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में असफल छात्रों के लिए रुक जाना नहीं योजना शुरू की। इसके तहत असफल छात्र दोबारा परीक्षा दे सकते हैं और अपना भविष्य संवार सकते हैं।
शोभाराम के बेटे आशीष भी दसवीं की परीक्षा में असफल रहा और उसे भी रुक जाना नहीं योजना के तहत परीक्षा देनी थी मगर कोरोना महामारी के कारण सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद होने पर उसके सामने एक बड़ी समस्या आ गई, क्योंकि मोटरसाइकिल आदि उसके पास थी नहीं, लिहाजा उसने साइकिल से ही जिला मुख्यालय पर स्थित परीक्षा केंद्र तक पहुंचने का फैसला लिया। उसके घर से परीक्षा केंद्र की दूरी 105 किलोमीटर है।
शोभाराम ने बेटे आशीष को साइकिल पर बैठाया और चल दिया परीक्षा केंद्र की ओर जहां परीक्षा होनी थी। शोभाराम ने लगभग 7 घंटे साइकिल चलाई तब वह कहीं जाकर परीक्षा केंद्र तक पहुंच पाया।
सोशल मीडिया पर शोभाराम का वीडियो वायरल हो रहा है। शोभाराम 3 दिन का राशन बांधकर गांव से परीक्षा दिलाने आया है। वह अपने बेटे को अधिकारी बनाना चाहता है। वह अपने साथ बिछौना भी लेकर आया है, क्योंकि होटल आदि में रुकने की उसकी हैसियत नहीं है।
मुंबई, 19 अगस्त (आईएएनएस)| महाराष्ट्र में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को सुशांत सिंह मौत मामले की सीबीआई जांच को अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। बीजेपी के कई नेता अब महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वहीं जानेमाने वकील उज्जवल निकम ने भी इसे 'एक ऐतिहासिक फैसला' करार दिया। विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "अब दिवंगत अभिनेता और उसके फैंस को न्याय मिलने की उम्मीद की जा सकती है।"
फडणवीस ने कहा, "इस फैसले ने न्यायिक प्रणाली में विश्वास बढ़ाया है। महाराष्ट्र सरकार को अब खुद का अवलोकन करने की जरूरत है, जिस तरह से उन्होंने केस को हैंडल किया। मुझे विश्वास है कि सीबीआई जल्द ही अपनी जांच शुरू करेगी।"
निकम ने कहा कि, " इस फैसले का दूरगामी प्रभाव दिखेगा। इतिहास में यह पहली बार है कि अपराध किसी अन्य जगह हुआ, एफआईआर कहीं और दर्ज की गई और तीसरी एजेंसी-सीबीआई इसकी जांच करेगी।"
उन्होंने कहा कि, " सुशांत सिंह की मौत मामले में पूरे देश में इस बात पर संदेह जताया जा रहा था कि यह आत्महत्या है या हत्या। साथ ही मुंबई पुलिस की क्षमता पर भी सवाल उठे, जिसने समय पर इस संदेह को मिटाने के लिए कार्य नहीं किया।"
वहीं प्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष किरिट सोमैया ने कहा, "अब तो ठाकरे सरकार की दादागीरी खत्म होगी।"
सोमैया ने साथ ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख और मुंबई पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह से इस्तीफे की मांग की।
भाजपा नेता नीतीश राणे ने राज्य के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे पर ट्वीट कर निशाना साधा, "अब बेबी पेंगुईन तो गियो। इट इज शोटाइम।"
वहीं दूसरी तरफ शिवसेना नेता और शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों की निंदा की है। साथ ही उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद ही इस पर टिप्पणी करेंगे।
इटावा, 19 अगस्त (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के आगरा में करीब 15 घंटे की सनसनी फैलाने के बाद आखिरकार अगवा बस को इटावा में बरामद कर लिया गया है। पुलिस ने बताया कि सभी यात्री सुरक्षित हैं और मध्यप्रदेश के थाना नौगांव पहुंचे हैं। किसी के साथ किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। इटावा पुलिस अधीक्षक अधीक्षक अकाश तोमर ने बताया कि आगरा जनपद से एक बस अगवा हुई थी। बुधवार दोपहर में हाइजेक बस इटावा के बलरइ थाना क्षेत्र के लखेरे कुआं पर ढाबे पर बस बड़ी मिली है। इसे एक व्यक्ति लाया था। उन्होंने कहा, "इस मामले में हम आगरा पुलिस के साथ सहयोग से काम कर रहे हैं।"
आगरा के अतरिक्त पुलिस अधीक्षक रवि कुमार ने बताया कि मंगलवार रात आगरा के न्यू दक्षिणी बाइपास से हाइजैक बस को इटावा में बराबद कर लिया गया है। उसमें बैठे सभी यात्री सुरक्षित हैं। वे अपने गंतव्य को जा रहे हैं। सभी से मध्यप्रदेश के नौगांव थाना क्षेत्र में बात की गई है। किसी के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। हाईजैक होने के बाद बस से यात्री दूसरी बस में चले गए थे, लेकिन किसी के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया गया है। सभी यात्रियों को छतरपुर के नौगांव थाने में रुकवा लिया गया और उनसे बातचीत की गई। सभी सुरक्षित हैं, किसी के साथ कोई घटना नहीं हुई है। इस घटना को अंजाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सभी की पहचान की जा रही है। मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा।
ज्ञात हो कि आगरा के मलपुरा के न्यू दक्षिणी बाईपास स्थित रायभा टोल प्लाजा के पास से 34 यात्रियों को लेकर गुरुग्राम से मध्यप्रदेश के पन्ना जा रही बस को बुधवार सुबह हाईजैक कर लिया गया है।
चालक के अनुसार, गाड़ी सवार कुछ लोगों ने बस का पीछा करके रुकवाया। उन्होंने खुद को फाइनेंस कर्मी बताया था। बस को रोकने के बाद उन्होंने इसे अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद बस को लेकर आगे बढ़े। रास्ते में एक ढाबे पर बस को रोका और सभी यात्रियों के पैसे वापस करवाए। खाना भी खिलाया। इसके बाद उन्होंने एत्मादपुर क्षेत्र में चालक को उतार दिया।
चालक ने मलपुरा थाने आकर पुलिस को सूचना दी। घटना की जानकारी के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया।
आगरा के एसएसपी बबलू कुमार ने घटना के बारे में कहा कि उनकी टीम ने बस में मौजूद सवारियों से बात की है। उन्होंने बताया, "रात सवा दो बजे इस बस ने जैसे ही इटावा टोल क्रॉस किया, पीछे से आए कुछ लोगों ने उसे रोक लिया। उन्होंने यात्रियों से खुद को फाइनेंस कर्मी बताया। उन्होंने बस और परिचालक को खाना खिलाया। दोनों को 300-300 रुपये भी दिए, फिर उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद वे यात्रियों को गंतव्य तक छोड़ देने की बात कहते हुए बस अपने साथ ले गए। बस मालिक का मंगलवार को ही देहांत हुआ था। वह किस्त नहीं दे पा रहा था।"
पूरे मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए मुख्यमंत्री योगी और यूपी के गृह विभाग ने भी रिपोर्ट तलब की है। सरकार और पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि 34 यात्रियों से भरी बस को अगवा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)| दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के परिवार को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच के आदेश दिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पटना पुलिस की कार्रवाई उचित थी। न्यायाधीश हृषिकेश कुमार की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि, चूंकि मृतक अभिनेता के पिता विचाराधीन संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं, इसलिए पटना पुलिस की कार्रवाई न्यायसंगत है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "पुलिस द्वारा सं™ोय अपराध की सूचना मिलने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। पूर्व के उदाहरणों से पता चलता है कि जांच के दौरान यह कहने का कोई अर्थ नहीं है कि संबंधित पुलिस स्टेशन के पास मामले की जांच करने के लिए क्षेत्रीय अधिकार नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि पटना पुलिस ने शिकायत दर्ज करने में कोई कानूनी गड़बड़ी नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "शिकायत में आरोपों की स्वभाविकता को देखते हुए, जो धन के गबन और विश्वासघात से संबंधित है, बिहार पुलिस द्वारा क्षेत्राधिकार की कवायद क्रम में है। जांच के स्तर पर उन्हें एफआईआर को मुंबई पुलिस को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं।"
पीठ ने आगे कहा, इसी वजह से बिहार सरकार सीबीआई को जांच सौंपने के लिए सहमति देने को लेकर सक्षम है और सीबीआई द्वारा जारी जांच को वैध माना जाता है।
सुशांत के पिता केके सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने दलील दी थी कि जब मृतक अभिनेता की संपत्ति के संबंध में गलत व्यवहार और आपराधिक विश्वासघात का आरोप लगाया गया है और संबंधित संपत्ति कथित अपराध से संबंधित है, तो आखिरकार इसका हिसाब देना होगा।
हालांकि, उन तर्कों का महाराष्ट्र सरकार के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध किया। वहीं वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने रिया चक्रवर्ती का प्रतिनिधित्व किया।
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी है। ऐसे में सीबीआई मुंबई पुलिस को पत्र लिखकर सभी साक्ष्य और बीते दो महीनों में लिए गए बयान की रिकॉर्ड सौंपने के लिए जल्द कह सकती है। सीबीआई के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, जांच में जुटाए गए सभी साक्ष्य को साझा करने के लिए एजेंसी मुंबई पुलिस को पत्र लिखेगी।
सीबीआई मुंबई पुलिस से ऑटोप्सी रिपोर्ट, अपराध स्थल की तस्वीरों का विवरण मांगेगी और इसे सीएफएसएल में तैनात फोरेंसिक विशेषज्ञों के साथ साझा किया जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि एजेंसी उन सभी व्यक्तियों के बयानों की मांग करेगी जिनके बयान पिछले दो महीनों में दर्ज किए गए थे और साथ ही दिवंगत अभिनेता के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की भी मांग करेगी जो मुंबई पुलिस के पास हैं।
सूत्रों ने कहा कि इस मामले की जांच कर रही सीबीआई की आईटी सेल की एक टीम जल्द ही मुंबई का दौरा करेगी और क्राइम सीन को फिर से रीक्रिएट करेग। साथ ही अगर जरूरत पड़ी तो वह अधिक कर्मियों के लिए मुंबई की सीबीआई शाखा से मदद भी लेगी।
सीबीआई इस बात की भी जांच करेगी कि अभिनेता के परिवार द्वारा इस साल की फरवरी में व्हाट्सएप के माध्यम से मुंबई पुलिस में की गई शिकायत पर कार्रवाई क्यों नहीं की। सूत्र ने कहा कि मुंबई पुलिस के अधिकारियों की भी सीबीआई एसआईटी द्वारा जांच की जाएगी।
सुशांत की रहस्यमयी मौत की सीबीआई जांच का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह घटनाक्रम सामने आया है।
गौरतलब है कि 34 वर्षीय अभिनेता को 14 जून को मुंबई के बांद्रा में अपने फ्लैट में मृत पाया गया था। सीबीआई ने सुशांत के पिता के.के. सिंह और उनकी बड़ी बहन रानी सिंह का पिछले सप्ताह ही बयान दर्ज किया था।
एजेंसी ने सीबीआई जांच के लिए बिहार सरकार की सिफारिश के आधार पर दिवंगत अभिनेता की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती, उसके भाई शोविक, उसके पिता इंद्रजीत, उसकी मां संध्या, सुशांत के घर के मैनेजर सैमुअल मिरांडा और पूर्व प्रबंधक श्रुति मोदी और अन्य लोगों के खिलाफ 6 अगस्त को मामला दर्ज कर लिया है।
सुमित सक्सेना
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)| सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई जांच का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट को एक मामले के रूप में याद किया जाएगा, जहां एक एकल न्यायाधीश की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया।
न्यायाधीश हृषिकेश रॉय ने न्यायाधीश एल. एस. पेंटा निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा, "संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत, यह न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र की कवायद में इस तरह के निर्णय पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है, जो किसी भी विषय या मामले के सामने लंबित होने पर पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक है। किसी भी विषय या मामले में अदालत में लंबित कोई भी कार्यवाही शामिल होगी और यह अदालत में लगभग हर तरह की कार्यवाही को शामिल करेगी, जिसमें नागरिक (सिविल) या अपराध (क्रिमिनल) जैसे मामले शामिल हैं।"
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 142 (1) के तहत पूर्ण न्याय करने की उसकी शक्ति पूरी तरह से अलग स्तर की है और एक अलग गुणवत्ता की है।
न्यायाधीश रॉय ने पेंटा के फैसले का हवाला देते हुए कहा, "पूर्ण न्याय करने के लिए अनुच्छेद 142 (1) के तहत न्यायालय की यह शक्ति पूरी तरह से अलग स्तर की है और एक अलग गुणवत्ता की है। किसी विषय या मामले में पूर्ण न्याय की क्या आवश्यकता होगी, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। साथ ही उस शक्ति का प्रयोग करते हुए न्यायालय ने एक ठोस कानून के प्रावधानों पर विचार किया है।"
पेंटा के फैसले का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति रॉय ने कहा, "यह अनुपात (रेशो) स्पष्ट करता है कि एक योग्य मामले में सुप्रीम कोर्ट न्याय प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 142 में प्रदत्त शक्तियों को लागू कर सकता है। इस मामले में अजीब परिस्थितियों के लिए आवश्यक है कि इस मामले में पूर्ण न्याय किया जाए। यह कैसे हासिल किया जाना है, यह अब तय किया जाना चाहिए।"
न्यायाधीश रॉय ने कहा कि बिहार और महाराष्ट्र सरकारें एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक हस्तक्षेप के तीखे आरोप लगा रही हैं और जांच संदेह के घेरे में आ गई है। न्यायमूर्ति रॉय ने कहा, "दुर्भाग्य से इन घटनाओं में देरी और जांच को गलत ठहराने की प्रवृत्ति है। ऐसी स्थिति में सत्य के हताहत होने और न्याय के शिकार होने की उचित आशंका है।"
न्यायमूर्ति रॉय ने कहा कि जांच में जनता का विश्वास सुनिश्चित करना और मामले में पूर्ण न्याय करते हुए न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 द्वारा प्रदत्त शक्तियों को लागू करना उचित समझता है।
न्यायमूर्ति रॉय ने महाराष्ट्र सरकार की उस दलील को ठुकरा दिया कि है, जिसमें स्थानीय पुलिस द्वारा जांच किए जाने पर जोर दिया जा रहा था।
न्यायमूर्ति रॉय ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को सीबीआई को हस्तांतरित करने को कहा है।
नई दिल्ली, 19 अगस्त। कोरोना वायरस महामारी ने ना सिर्फ अर्थव्यवस्था बल्कि नौकरी पेशा वालों की भी कमर तोड़कर रख दी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो कोरोना काल के बीच यानी अप्रैल से अब तक 1.89 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। ये अपने आप में हैरान करने वाले आंकड़े हैं। उधर, लगातार बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था समेत कई मुद्दों को लेकर मोदी सरकार को घेरने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर बढ़ती बेरोजगारी को लेकर मोदी सरकार को घेरा है।
4 महीनों में क़रीब 2 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाई: राहुल गांधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक समाचार पोर्ट की खबर का हवाला देते हुए केंद्र में बैठी मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि पिछले 4 महीनों में क़रीब 2 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवायी हैं। राहुल गांधी ने कहा कि 2 करोड़ परिवारों का भविष्य अंधकार में है। राहुल गांधी ने तंज कसते हुए कहा कि फेसबुक पर झूठी खबरें और नफ़रत फैलाने से बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था के सर्वनाश का सत्य देश से नहीं छुप सकता है। आपको बता दें, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि अप्रैल से अब तक 1.89 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। रिपोर्ट की माने तो पिछले महीने यानी जुलाई में लगभग 50 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई है। आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में 1.77 करोड़ और मई में लगभग 1 लाख लोगों की नौकरी गई। जून में लगभग 39 लाख नौकरियां मिली लेकिन जुलाई में करीब 50 लाख लोगों की नौकरी चली गई।
‘वेतनभोगी नौकरियां 2019-20 के औसत से लगभग 1.90 करोड़ कम हैं'
जिस खबर का हवाला कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिया है उसमें लिखा गया है कि सीएमआईई के सीईओ महेश व्यास ने कहा है कि, ‘वेतनभोगियों की नौकरियां जल्दी नहीं जाती, लेकिन जब जाती है तो, दोबारा पाना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए ये हमारे लिए चिंता का विषय है।’ उन्होंने कहा, ‘वेतनभोगी नौकरियां 2019-20 के औसत से लगभग 1.90 करोड़ कम हैं।’ अनुमानों के मुताबिक देश में कुल रोजगार में वेतनभोगी रोजगार का हिस्सा केवल 21 फीसदी है। अप्रैल में कुल जितने लोग बेरोजगार हुए उनमें इनकी संख्या केवल 15 फीसदी थी। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर विभिन्न सेक्टर की कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के वेतन काटे या फिर उन्हें बिना भुगतान के छुट्टी दे दी। (navjivan)
नई दिल्ली, 19 अगस्त(भाषा)। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत फेफड़ों में संक्रमण होने के बाद बुधवार को और खराब हो गई. सेना के ‘रिसर्च एंड रेफरल’ अस्पताल ने यह जानकारी दी. 84 वर्ष के मुखर्जी को 10 अगस्त को यहां अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां दिमाग में जमे खून के थक्के को निकालने के लिए उनका ऑपरेशन किया गया था और तब से वह कोमा में हैं. इससे पहले कोविड-19 जांच में उनके संक्रमित होने की भी पुष्टि हुई थी.
मुखर्जी का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि वह अब भी जीवनरक्षक प्रणाली पर हैं. प्रणब मुखर्जी के बेटे एवं पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी ने कहा कि उनके पिता की हालत में सुधार के सकारात्मक संकेत हैं. अस्पताल ने एक बयान में कहा, ‘‘ श्री प्रणब मुखर्जी की हालत थोड़ी और बिगड़ गई है क्योंकि उनके फेफड़े में संक्रमण हो गया है. वह अब भी जीवनरक्षक प्रणाली पर हैं और विशेषज्ञों का एक दल उनका इलाज कर रहा है.’’
अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर दी ये जानकारी
वहीं अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट किया कि उनके पिता की हालत स्थिर है. उन्होंने कहा, ‘‘सभी शुभकामनाओं और डॉक्टरों की कड़ी मेहनत के बाद, मेरे पिता की हालत अब स्थिर है...सुधार के सकारात्म्क संकेत दिखे हैं. मैं आप सभी से अनुरोध करता हूं, उनके जल्द ठीक होने की कामना करें.’’
मुखर्जी 2012 से 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे. प्रणब मुखर्जी को 26 जनवरी 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
मुंबई, 19 अगस्त (आईएएनएस)| प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को तबलीगी जमात मरकज के प्रमुख मौलाना साद और अन्य लोगों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में मुंबई और दिल्ली सहित कई स्थानों पर छापेमारी की। सूत्रों की ने इसकी जानकारी दी। ईडी के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक छापेमारी 20 स्थानों पर की गई, जिसमें दिल्ली में सात, मुंबई में पांच, हैदराबाद में चार और करेल के तीन स्थान शामिल हैं।
दिल्ली में जाकिर नगर इलाके में मौलाना साद के निवास पर छापा मारा गया, वहीं साद के कथित सहयोगी के मुंबई में अंधेरी और एसवी रोड इलाके के आवासीय परिसर में तलाशी ली गई।
अधिकारियों ने छापेमारी की विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है।
अप्रैल में दिल्ली पुलिस ने मौलान साद के खिलाफ लॉकडाउन नियमों का उलंघन के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसके बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था। उसी सिलसिले में ये छापेमारी की गई है।
नवनीत मिश्र
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)| लंबे समय की खामोशी के बाद बजरंग दल की सक्रियता फिर बढ़ने जा रही है। विश्व हिंदू परिषद ने अपने इस युवा संगठन के कार्य विस्तार की योजना पर काम शुरू किया है। पूरे देश में विश्व हिंदू परिषद अपनी सदस्य संख्या बढ़ाएगा। राम मंदिर आंदोलन को मुकाम मिलने के बाद आगे कुछ नए अभियान भी संचालित करने की तैयारी है। आगामी समय में होने वाली भर्तियों के लिए युवाओं से संपर्क अभियान चल रहा है। विहिप का कहना है कि बजरंग दल से जुड़ने वाले युवाओं में सेवा, सुरक्षा और संस्कार की भावना होती है।
विश्व हिंदू परिषद के मुताबिक उसके पास इस वक्त 23 लाख सक्रिय युवाओं की टीम है। हर तीन वर्ष पर संगठन भर्ती अभियान शुरू करता है। 2018 के बाद से संगठन में युवाओं की नई भर्तियां नहीं हुईं हैं। साल के आखिर से लेकर अगले साल तक नई भर्तियां होने की संभावना है। ऐसे में बजरंग दल युवाओं को जोड़ने के लिए अभी से जुट गया है। बजरंग दल विभागवार बैठकें करने में जुटा है।
विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे ने दिल्ली में बजरंग दल के कार्यविस्तार को लेकर पिछले हफ्ते दो अहम बैठकें कीं। बजरंग दल के झंडेवालान और दक्षिणी विभाग की बैठकों में उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए संगठन के कार्यविस्तार की रूपरेखा समझाई। इस दौरान कार्यविस्तार का संकल्प पास हुआ। संगठन सूत्रों का कहना है कि इससे संकेत मिले हैं कि बजरंग दल अब पूरे देश में इसी तरह अब कार्यविस्तार की योजना पर काम करेगा।
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने आईएएनएस से कहा, देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए ऊजार्वान युवाओं को जोड़ने में बजरंग दल ने अहम भूमिका निभाई है। इस संगठन को और मुखर करने के लिए कार्य विस्तार की योजना पर काम शुरू हुआ है। जहां बजरंग दल की इकाई नहीं है, वहां भी संगठन का विस्तार होगा। बड़ी संख्या में देश, समाज और धर्म की रक्षा के लिए युवाओं को संगठन से जोड़ा जाएगा।
बजरंग दल की स्थापना 8 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में उस समय हुई थी, जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीराम जानकी रथ यात्रा को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। तब विश्व हिंदू परिषद ने यात्रा की सुरक्षा के लिए शारीरिक रूप से मजबूत युवाओं की टोली गठित की थी, जिसे बजरंग दल का नाम दिया गया था। राम मंदिर आंदोलन में इस युवा संगठन ने अहम भूमिका निभाई, जिसके राष्ट्रीय सुर्खियां हासिल हुईं। बजरंग दल के विनय कटियार संस्थापक संयोजक रहे थे। बजरंग दल का वर्ष 1993 में अखिल भारतीय संगठन तैयार हुआ। जिसके बाद पूरे देश में बजरंग दल की इकाइयां गठित हुईं।
मैसूरु, 19 अगस्त (आईएएनएस)| कर्नाटक शहर के श्री चमाराजेंद्र जूलॉजिकल पार्क में एक पशु विनिमय कार्यक्रम के तहत दक्षिण अफ्रीका के एन वान डाइक चीता केंद्र से तीन चीते लाए गए हैं। मैसुरु चिड़ियाघर के निदेशक अजय कुलकर्णी ने आईएएनएस को बताया, "14-16 महीने के एक नर और दो मादा अफ्रीकी चीता को सोमवार को यहां लाया गया, जिसे अंतर्राष्ट्रीय पशु विनिमय कार्यक्रम के तहत एयर फ्रेट कैरियर में जोहानिसबर्ग से बेंगलुरु लाया गया है।"
कुलकर्णी ने कहा, "हैदराबाद में नेहरू जूलॉजिकल पार्क, जिसमें चीता है उसके बाद हमारा दूसरा चिड़ियाघर है। 2011 से हमारे पास चार जर्मनी चीता थे, जिसकी 12-14 साल की उम्र में 2019 में मौत हो गई।"
निर्देशक ने कहा, "चीता को जल्द ही चिड़ियाघर में 7,000 वर्ग मीटर के घने क्षेत्र में घूमने और दौड़ने के लिए छोड़ दिया जाएगा, क्योंकि उन्हें तेज दौड़ने के लिए बहुत जगह की आवश्यकता होती है।"
क्लिक करें और पढ़ें :कोरोना के बीच, अफ्रीका से हिंदुस्तान पहुंचे तीन चीता !
चिड़ियाघर में घूमनें आए सैकड़ों आगंतुक इस बार लुप्तप्राय अफ्रीकी बिल्ली की प्रजातियों को देख पाएंगे।
चिड़ियाघर में बाघ, तेंदुए और शेर भी दिखाई देंगे।
यह चिड़ियाघर 128 साल पुराना है, जिसे 1892 में मैसूर के महाराजा चमाराजेंद्र वोडेयार ने बनवाया था, यह शहर के बाहरी इलाके में 175 एकड़ में फैला हुआ है, जहां दुनियाभर के 25 देशों में से 168 प्रजातियों सहित लगभग 1,450 प्रजातियां पाई जाती हैं।
बीजिंग, 19 अगस्त (आईएएनएस)| चीनी शोधकर्ताओं ने हाल ही में निष्कर्ष दिया है कि सार्वजनिक शौचालयों में फ्लश करने से वायरस के वाहक कणों के फैलने की संभावना रहती है, जिसमें कोविड-19 भी शामिल हैं। 'फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में पाया गया है कि जब सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने के बाद कोई फ्लश करता है तो इनसे कोविड-19 के कण वायु में महज छह सेकेंड से भी कम समय के अंदर दो फीट तक ऊपर उठते हैं, ऐसे में व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा रहता है।
शोधकर्ताओं के इस काम से पता चलता है कि सार्वजनिक शौचालयों में किसी वायरस से संक्रमित होने की संभावना कहीं अधिक रहती है, खासकर एक ऐसी महामारी के वक्त।
अन्य कई शोधों में भी इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि मल व मूत्र दोनों से ही वायरस का संचरण संभव है।
चीन में स्थित यंग्जहौ विश्वविद्यालय से शोध के अध्ययनकर्ता जियांगडॉन्ग लियू ने कहा, "इसके लिए हमने कंप्यूटेशनल तरल गतिकी की एक विधि का इस्तेमाल किया, ताकि फ्लश करने के दौरान अणुओं की गतिविधियों का एक खाका तैयार किया जा सके।"
शौचालय का इस्तेमाल करने के बाद जब हम फ्लश करते हैं, तब गैस और लिक्वि ड इंटरफेस के बीच एक संपर्क तैयार होता है। इसके परिणामस्वरूप यूरिनल से एयरोसोल के कणों का काफी बड़ी मात्रा में प्रसार होता है, शोधकर्ताओं ने इन्हीं पर गौर किया और इनकी जांच की।
लियू ने कहा कि इससे प्राप्त निष्कर्ष परेशान कर देने वाले हैं, क्योंकि शौचालय में फ्लश करते वक्त निकलने वाले छोटे-छोट कण अधिक दूरी तक प्रसार करने वाले होते हैं। इन अणुओं में 57 फीसदी से कण ऐसे होते हैं जिनका प्रसार शौचालय के स्थान पर दूर तक होता है।
शोधकर्ताओं ने लिखा कि जब पुरुष किसी सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो ये छोटे-छोटे कण टॉयलेट फ्लश करने की तुलना में उनकी जांघों तक पहुंचने में महज 5.5 सेकेंड का समय लेते हैं, इससे थोड़ा ऊपर तक पहुंचने में करीब 35 सेंकेड तक का वक्त लगता है।
लियू ने कहा कि इन कणों की ऊपर तक जाने की गति टॉयलेट की फ्लशिंग से कहीं ज्यादा होती है।
ऐसे में सुझाव इस बात का दिया गया कोविड-19 जैसे किसी महामारी के वक्त संक्रमण दर को रोकने के लिए मास्क का उपयोग करना बेहद आवश्यक है। शौचालयों का इस्तेमाल करते वक्त भी इनका इस्तेमाल करना न भूलें।
फातिमा खान
नई दिल्ली, 19 अगस्त। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि वो अपने भाई राहुल गांधी से पूरी तरह सहमत हैं कि किसी ग़ैर-गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
प्रियंका ने कहा है, ‘शायद (त्याग) पत्र में तो नहीं लेकिन कहीं और उन्होंने कहा है कि हममें से किसी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए और मैं उनके साथ पूरी तरह सहमत हूं’। उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे विचार में पार्टी को अपना रास्ता भी ख़ुद तलाशना चाहिए’।
प्रियंका का सब कुछ बताने वाला ये इंटरव्यू, इंडिया टुमॉरो: कन्वर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जेनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स, नामक किताब में छपा है। 13 अगस्त को प्रकाशित हुई इस किताब के लेखक, प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह हैं।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि पार्टी अध्यक्ष, भले ही वो गांधी परिवार से न हो, उनका बॉस होगा। उनका हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘अगर वो (पार्टी अध्यक्ष) कल मुझे कहते हैं कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि अंडमान व निकोबार में है, तो मैं ख़ुशी से अंडमान व निकोबार चली जाऊंगी’।
2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर, पार्टी की अंदरूनी बैठक में कथित रूप से ज़ोर देकर कहा था कि अगला अध्यक्ष किसी ग़ैर-गांधी को बनाया जाना चाहिए।
लेकिन कुछ ही समय बाद, पिछले साल अगस्त में सोनिया गांधी को अंतरिम पार्टी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के अंदर मांग उठ रही है कि कांग्रेस को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने चाहिए।
इंटरव्यू में प्रियंका ने ये भी कहा कि 2013 में जब बीजेपी ने, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने शुरू किए, तो उसके बाद उन्होंने अपना हर लेन-देन अपने बेटे रेहान को दिखाया था, जो उस वक़्त महज़ 13 साल का था।
प्रियंका को ये कहते हुए बताया गया है, ‘जब मेरे पति पर सारे आरोप लगाए गए तो सबसे पहले मैंने ये किया कि अपने बेटे के पास गई और एक एक लेन-देन उसे दिखाया’।
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने इस बारे में अपनी बेटी को भी समझा दिया। मैं अपने बच्चों से कुछ नहीं छिपाती, चाहे वो मेरी ग़लतियां हों, या कमियां हों। मैं उनके साथ बहुत खुली हुई हूं’।
कांग्रेस महासचिव ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय में उनके पति से होने वाली पूछताछ, जो ‘घंटों चलती थी’, और इस मामले में तमाम टीवी बहसों का, उनके बच्चों पर असर पडऩे लगा था।
किताब में वो कहती हैं, ‘मेरा बेटा लडक़ों के बोर्डिंग स्कूल में था और इन चीज़ों की वजह से उसे बहुत परेशानियां पेश आतीं थीं’।
प्रियंका इस बारे में भी बात करती हैं कि जब उनके बच्चे छोटे थे, तभी से वो उनके साथ मीडिया रिपोर्ट्स पर बात करतीं थीं, जो उनके परिवार के बारे में चर्चा करतीं थीं। वो कहती हैं कि ऐसे ही एक लेख में आरोप लगाया गया था कि उनकी इतालवी नानी, सोनिया गांधी की मां, रूसी ख़ुफिया एजेंसी केजीबी की एजेंट थीं और प्राचीन वस्तुएं भारत से बाहर ले जाया करतीं थीं’।
प्रियंका कहती हैं, ‘ज्लेकिन मेरी नानी एक ठेठ इतालवी नानी हैं’। प्रियंका आगे कहती हैं, ‘वो अपना सारा समय किचन में पास्ता सॉस बनाने, घर साफ करने, कपड़े इस्त्री करने में गुज़ारती हैं और मेरे बच्चे ये जानते थे ज्हमें ख़ूब हंसी आई ये सोचकर, कि वो एंटीक्स की तस्करी करतीं थीं, रूसी भाषा में बात करतीं थीं और केजीबी के लोगों से कहीं छिपकर मिला करतीं थीं’।
उन्होंने आगे कहा, ‘इस सच्चाई से ये उनका पहला परिचय था कि अपने परिवार के बारे में, वो जो कुछ देखते या पढ़ते हैं, उस सब पर यक़ीन नहीं करना चाहिए’।
प्रियंका का इंटरव्यू किताब में छपने वाले, नई पीढ़ी के ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञों के सिलसिलेवार इंटरव्यूज़ का एक हिस्सा है।
परिवार में हत्याएं
इंटरव्यू में, प्रियंका अपने परिवार में हुई दो हत्याओं की भी बात करती हैं- 1984 में उनकी दादी इंदिरा गांधी की और 1991 में उनके पिता राजीव गांधी की- जिन्होंने उनके बचपन को ज़बर्दस्त तरीक़े से प्रभावित किया।
प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है, ‘तो दो हत्याओं के बीच सात सालों में, हम दरअसल अपने पिता की हत्या के ख़तरे के साए में जीए’। उन्होंने आगे कहा, ‘मैं तब तक सोती नहीं थी, जब तक उन्हें घर में वापस आते हुए सुन नहीं लेती थी। जब भी वो घर से बाहर जाते थे, मुझे लगता था कि वो वापस नहीं आएंगे’।
वो कहती हैं कि इसके नतीजे में, उन्होंने बहुत प्रयास किए हैं ये सुनिश्चित करने में कि उनके बच्चों को एक ‘सामान्य स्कूल’ मिले।
ये पूछे जाने पर कि उनके पिता के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, उसका बोझ उनके बच्चों को ढोना पड़ेगा, प्रियंका कहती हैं, ‘वो इस तरह की इंसान नहीं हैं, जो यहां बैठकर कहेंगी कि कितनी दुखी जि़ंदगी है’।
‘मुझे भी हत्या का बोझ उठाकर चलना पड़ा, उन्हें भी अपने परिवार के खिलाफ राजनीतिक प्रचार का बोझ उठाकर चलना होगा, जैसे गांव में कोई बच्चा गऱीबी का बोझ उठाकर चलता है’।
प्रियंका ने आगे चलकर ये भी बताया कि वो, ‘स्कूल में बेहद मिलनसार और प्रतियोगी बच्ची थीं’, लेकिन अपने बच्चों की निजता बनाए रखने के लिए, जीवन में आगे चलकर एकांतप्रिय हो गईं।
जब उनकी दादी प्रधानमंत्री थीं, तब वो जिन दबावों को झेलतीं थीं, उनके बारे में बोलते हुए प्रियंका कहती हैं कि स्कूल में उन्हें ‘हर चीज़ में डाल दिया जाता था’, क्योंकि ये माना जाता था कि उनकी दादी आकर देखेंगी।
वो कहती हैं, ‘तो इस तरह की दुनिया में पलकर बड़े होने में, एक चीज़ तो ये होती है कि आपके लिए ख़ुद का आंकलन करना मुश्किल हो जाता है’। उन्होंने आगे कहा, ‘आपको नहीं पता कि आप जिम्नास्टिक्स की टीम में इसलिए हैं कि आप एक अच्छे जिम्नास्ट हैं, या फिर इसलिए कि आपकी दादी आकर आपके जिम्नास्टिक्स मुक़ाबले देखेंगी’।
प्रियंका और चुनाव
प्रियंका ने इस बारे में भी बात की है कि कैसे 1999 में एक विपासना केंद्र में कुछ समय बिताने के बाद उन्होंने राजनीति में नहीं आने का फैसला किया था।
वो याद करती हैं, ‘1999 में, एक सवाल था कि क्या मुझे चुनाव में खड़ा होना चाहिए और मैंने सोचा कि यहां रहकर मैं अपना मन नहीं बना पाऊंगी, क्योंकि हर कोई मुझे बताएगा कि उनके खय़ाल में, मुझे क्या करना चाहिए’।
प्रियंका कहती हैं कि पिता की हत्या पर वो अभी भी, पीड़ा और ग़ुस्से में थीं, और इसी रिट्रीट में उन्होंने अपनी भावनाओं को, प्रॉसेस करना शुरू किया।
लेकिन, उसके दो दशक बाद, 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, प्रियंका आधिकारिक रूप से राजनीति में शामिल हो गईं- और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर, कांग्रेस महासचिव का पद संभाल लिया।
प्रियंका कहती हैं, ‘हर चीज़ को तबाह होते देखकर, जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने लड़ाई लडक़र बनाईं थीं’, उन्होंने आखऱिकार राजनीति में आने का फैसला किया।
किताब में उनके हवाले से कहा गया है, ‘अपने आसपास ये सब होते देखकर, ऐसा करना नामुमकिन हो गया कि आप अपने बच्चों की देखभाल करते हुए ये ढोंग करते रहें कि आपका इससे कोई वास्ता नहीं है। मैं अब ये और नहीं कर सकती थी’।
अपनी दादी से की जाने वाली तुलना, ख़ासकर उनकी कम्युनिकेशन स्किल्स और शख्सियत पर बात करते हुए, प्रियंका कहती हैं कि उनके अंदर, अपने परिवार के सभी सदस्यों की ख़ासियतें मौजूद हैं।
वो आगे कहती हैं, ‘अगर आप मुझे किसी पार्टी में ले जाएं, तो मैं किसी कोने में बैठी होंगी, और किसी से बात नहीं कर रही होंगी। अगर आप मुझे किसी गांव में ले जाएं, तो मैं हर किसी से बात कर रही होंगी’।
राहुल गांधी, उनके ‘सबसे अच्छे दोस्त’
प्रियंका ने अपने भाई, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अपने रिश्तों और दोनों के बीच ‘बुनियादी अंतर’ पर भी बात की है।
प्रियंका कहती हैं, ‘मेरे मुक़ाबले, वो ज़्यादा दूर की सोचते हैं। मैं वर्तमान में जीती हूं’। वो आगे कहती हैं, ‘वो 15 साल आगे की सोचते हैं, लेकिन अगर आप मुझसे 15 साल आगे का पूछेंगे, तो मैं तो अगले पांच दिन का ही सोचती रह जाऊंगी, और इतनी दूर की सोच ही नहीं पाऊंगी’।
वो आगे कहती हैं, ‘अगर मेरे अंदर ग़ुस्से के कोई अवशेष बचे हैं तो उनमें उससे भी कम हैं। वो यक़ीनन मुझसे ज़्यादा समझदार हैं’।
प्रियंका कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों ‘घर तक सीमित’ थे, और कई बार ‘ऐसा लम्बा अकेलापन होता था, जिसमें बस हम दो एक ख़ाली घर में घूम रहे होते थे और पैरेंट्स काम के सिलसिले में अक्सर बाहर घूमते रहते थे’।
प्रियंका ये भी कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों बहुत लड़ते थे। ‘अब, मैं कहूंगी कि वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं’।
‘सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’
प्रियंका कहती हैं कि वो ‘विरासत के बहुत खिलाफ’ हैं, और वो सियासत में इसलिए नहीं हैं कि उन्हें किसी विरासत को बनाए रखना है।
वो कहती हैं, ‘मैं समझती हूं कि बच्चों के पास विरासत नहीं होनी चाहिए। हमें उनके लिए कोई विरासत नहीं छोडऩी चाहिए, अच्छी या बुरी। उन्हें आज़ाद होना चाहिए’।
‘और इसलिए, सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’।
कांग्रेस ने नए मीडिया को देर से समझा
किताब में प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है कि कांग्रेस पार्टी को ‘कुछ समय लगा, ये समझने में कि नया मीडिया कैसा है’।
वो कहती हैं, ‘1980 के दशक में, अख़बार में कोई लेख छप जाता था, जिससे एक सम्मानित दूरी बनाकर आप अपना काम करते रहते थे। वो फॉर्मूला काम करता था’। वो आगे कहती हैं, ‘आज, ये काम नहीं करता, आज, जब तक आप न बोलें, आपकी बात वहां नहीं पहुंचती’।
प्रियंका कहती हैं कि कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी का प्रचार ‘अंदर तक घुसा हुआ’ रहा है।
वो कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि बीजेपी के प्रचार का प्रभाव इतना मज़बूत रहा है, और इतना अंदर तक घुसा है कि जो लोग हमारे कऱीब हैं, जो हमारे जीने के तरीक़े को देखते हैं, उन्होंने भी शायद चीज़ों पर सवाल उठाए हैं’।
‘ये प्रचार इतने अच्छे से आयोजित था, और इतने लंबे समय तक चला कि जब तक हमें समझ में आया कि हमें भी अपना पक्ष रखना चाहिए, तब तक नुक़सान पहुंच चुका था’। (hindi.theprint.in)
नई दिल्ली, 19 अगस्त। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ए.पी. शाह ने कहा है कि देश चुनी हुई तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस कोविड-19 के दौर में संसद एक ‘भूतहे शहर’ में तब्दील हो गयी है, न्यायपालिका ने अपनी भूमिका को त्याग दिया है, जवाबदेही की पूरी प्रणाली को कमज़ोर कर दिया गया है और केंद्रीय कार्यपालिका इतनी ताक़तवर हो गयी है कि जो चाहे करती जा रही है।
जस्टिस शाह रविवार को सिविल सोसायटी समूहों द्वारा आयोजित एक जन संसद वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। द हिंदू में छपी रपट के मुताबिक जस्टिस शाह ने कहा कि 23 मार्च को संसद के बजट सत्र का अवसान कर दिया गया जबकि अतीत में 1962 और 1971 के युद्धसंकट के समय भी संसद चलती रही। यहाँ तक कि 2001 में संसद पर हमले के दूसरे दिन भी बैठक हुई। दूसरे देशों में भी इस दौरान संसद चलती रही चाहे बैठकें वर्चुअल तरीके से हुई हों। कोशिश ये रही कि विधायी कार्य चलता रहे।
इसके विपरीत, भारतीय संसद ‘मार्च 2020 से एक भूतहा शहर बना हुआ है,’ न्यायमूर्ति शाह ने कहा। उन्होंने कहा कि संकट के समय में लोगों को नेतृत्व प्रदान करने में विफल होने के अलावा इसने सरकार को जवाबदेही से भी मुक्त कर दिया जैसा कि वह चाहती है। जस्टिस शाह के मुताबिक जवाबदेही अब स्मृतियों की बात हो गयी क्योंकि सवाल उठाने वाला कोई नहीं बचा है।
जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायपालिका एक बार फिर निराश किया है। उन्होंने इमरजेंसी से तुलना करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के विभाजन, सीएए और इलेक्टोरल बॉंड जैसे अहम मसलों को नजऱअंदाज़ करना या सुनवाई में देरी करने से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायकर्ता की अपनी भूमिका न निभाकर सरकार को मनमर्जी करने की छूट दे दी है। उन्होंने चेताया कि महामारी के नाम पर जवाबदेही की व्यवस्था को कमजोर किया जाना एक खतरनाक ट्रेंड है जो बताता है कि भारत एक इलेक्टेड ऑटोक्रेसी (चुने हुए लोगों की तानाशाही) की ओर बढ़ रहा है।
जस्टिस शाह ने कहा कि सरकारों पर लगाम लगाने के लिए बनी सभी संस्थाओं को कपटपूर्वक कमजोर किया जा रहा है। 2014 से ही सुचिंतित तरीके से इन संस्थाओं को धीरे-धीरे ध्वस्त किया जा रहा है ताकि सरकार पर कोई अंकुश न रहे।
इस मौके पर प्रसिद्ध समाजाकि कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि सरकार ने महामारी की आपदा का इस्तेमाल अपनी नीतियों को बेहद अलोकतांत्रिक तरीके से लागू करने के लिए किया है। उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों से लेकर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नियमों को करने और बिना संसद की सहमति के नयी शिक्षा नीति लाना इसकी बानगी है। (mediavigil)
नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)| पुरानी दिल्ली में हुई पतंगबाजी ने इस बार भी सैकड़ों परिंदों से उनके उड़ने का हक छीन लिया। हर साल की तरह इस साल भी लोगों ने बेपरवाह होकर पतंगबाजी की, जिसके कारण 1000 से अधिक पक्षी घायल हुए। वहीं 150 से अधिक पक्षियों की मांझे से कट कर जान चली गई। चांदनी चौक स्थित बर्ड हॉस्पिटल में सैंकड़ों की तादाद में वो पक्षी है जो की पतंगबाजों के शौक के चलते अस्पताल में भर्ती हुये हैं। भलेहि ही इस बार चाइनीज मांझे पर रोक लगी हो, लेकिन हिंदुस्तानी मांझों की वजह से भी पक्षियों के जीवन पर उतना ही असर पड़ा।
1 अगस्त से 15 अगस्त तक करीब 1500 पक्षी अस्पताल में भर्ती हुये हैं। जिसमें से करीब 80 फीसदी पतंगबाजी का शिकार हुए हैं। अन्य पंखे से कट कर घायल हुए हैं। इन पक्षियों में ज्यादातर कबूतर, तोते और चील हैं। हालांकि इस बार मोर भी मांझों से कट कर घायल हुये हैं।
पक्षियों के अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार 1 अगस्त से 15 अगस्त तक रोजाना करीब 10 पंक्षियों की मृत्यु हुई है। वहीं कुछ ऐसे परिंदे भी हैं जो की जिंदगी भर अब उड़ नहीं सकते।
चांदनी चौक स्थित जैन मंदिर में चल रहे दुनिया के पहले चैरिटी पक्षी अस्पताल के सचिव सुनील जैन ने आईएएनएस को बताया, 1 अगस्त से 15 अगस्त तक हमारे पास करीब 1500 पक्षी आये हैं। जिसमें से कुछ के पंख कटे हुए थे, तो वहीं कुछ पंक्षियों के गले मे गहरा घाव भी थे।
जमुना पार, वेलकम कॉलोनी और शाहदरा इलाके में ज्यादा पक्षी घायल हुए हैं। 1 अगस्त से 15 अगस्त तक 70 से 80 पक्षी अस्पताल में रोजाना भर्ती हो रहे थे।
सुनील ने बताया, मांझों की वजह से पंक्षी इतनी बुरी तरह जख्मी होते हैं कि कई पक्षियों की गर्दन तक अलग हो जाती हैं। इस बार करीब 150 से अधिक पक्षियों की मृत्यु भी हुई है। हमारे पास 1 तरीक से 15 तरीक तक 10 से 11 पक्षियों की मृत्यु हुई।
हमारे अस्पताल में पूरी कोशिश होती है कि इन पक्षियों की जान बच जाए, लेकिन पक्षी इतनी बुरी तरह घायल होते हैं कि बचाना असंभव हो जाता है।
कोरोना का बड़ा भाई कैंसर भी कहर ढहाने वाला है..!
भारत में कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। अब मौतों के आंकड़े रेकॉर्ड बनाने लगे हैं। देश में मंगलवार को कोविड-19 महामारी से एक दिन से सबसे ज्यादा 1,099 लोगों की मौत हुई। यह तीसरी बार है जब रोजाना मौत की संख्या 1,000 के आंकड़े को पार कर गई। इससे पहले 13 अगस्त को सबसे ज्यादा 1008 लोगों की जान गई थी।
इस बीच भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र ने कहा है कि इस साल भारत में कैंसर के मामले 13.9 लाख रहने का अनुमान है, जो 2025 तक 15.7 लाख तक पहुंच सकते हैं।
आईसीएमआर ने कहा कि राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम रिपोर्ट, 2020 में दिया गया यह अनुमान 28 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री से मिली सूचना पर आधारित है। इसने कहा कि इसके अलावा 58 अस्पताल आधारित कैंसर रजिस्ट्री ने भी आंकड़ा दिया।
बयान के अनुसार, तंबाकू जनित कैंसर के मामले 3.7 लाख रहने का अनुमान है, जो 2020 के कैंसर के कुल मामले का 27.1 फीसद हेागा। इसमें यह भी कहा गया है कि पूर्वोत्तर इलाकों में इस कैंसर का ज्यादा प्रभाव दिखेगा।
बयान में कहा गया है, 'महिलाओं में छाती के कैंसर के मामले दो लाख (यानी 14.8 फीसद), गर्भाशय के कैंसर के 0.75 लाख (यानी 5.4 फीसद), महिलाओं और पुरूषों में आंत के कैंसर के 2.7 लाख मामले (यानी 19.7 फीसद) रहने का अनुमान है। बता दें कि एक ओर जहां पुरुषों में, फेफड़े, मुंह, पेट और अन्नप्रणाली के कैंसर सबसे आम होते हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के लिए स्तन और गर्भाशय के कैंसर सबसे आम हैं।
इधर कोरोना के मोर्चे पर
राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों के अनुसार मंगलवार को कोविड-19 के कुल मामले 27.6 लाख से ज्यादा केस हो गए। इससे पहले सोमवार को 53,230 नए मामले सामने आए थे। रविवार को कुल 7.3 लाख टेस्ट किए गए थे, जिसके कारण शायद अगले दिन मामले कम आए।
सोमवार को 9 लाख टेस्ट और मंगलवार को बढ़ गए केस
इससे उलट सोमवार को 9 लाख टेस्ट किए गए हैं और मंगलवार को केस बढ़ गए। केस और टेस्ट की संख्या के विश्लेषण से एक बात हाल के दिनों में स्पष्ट हो गई है कि दोनों के बीच एक सीधा सा संबंध है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को सबसे ज्यादा करीब 8.7 लाख टेस्ट किए गए थे। ऐसे में अगले दिन सबसे ज्यादा 67,000 कोरोना के नए मरीज सामने आए।
आंध्र में भी 3 लाख से ज्यादा
शनिवार को टेस्ट घटकर 7.5 लाख से कम हो गए, इसके चलते अगले दिन 57,799 केस आए। मंगलवार को आंध्र प्रदेश देश का तीसरा ऐसा राज्य बना, जहां कोरोना के कुल मामले 3 लाख के आंकड़े को पार कर गए हैं। राज्य में 9,652 नए केस आए और टैली 3,06,261 पहुंच गई।
उधर, महाराष्ट्र में कोविड-19 से 422 मौतें हुई हैं, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है। राज्य में 11,119 नए कोविड मरीज बढ़े हैं जिसमें से 8.3 प्रतिशत या 931 लोग मुंबई से हैं।
इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कल यानी मंगलवार को कहा था कि कोविड-19 के प्रतिदिन नए मामलों और बीमारी के कारण होने वाली मौत के मामलों में 13 अगस्त से गिरावट देखी गई है। हालांकि मंत्रालय ने कोई ढिलाई बरते जाने को लेकर चेतावनी दी और कहा कि पांच दिन की गिरावट महामारी के संदर्भ में एक छोटी अवधि है। स्वास्थ्य मंत्रालय में सचिव राजेश भूषण ने प्रेसवार्ता में कहा कि प्रतिदिन सात से आठ लाख जांच के सतत स्तर के बावजूद कोविड-19 की संक्रमण दर 10.03 प्रतिशत से घटकर 7.72 प्रतिशत रह गई है।
उन्होंने कहा कि इस महामारी से स्वस्थ हुए लोगों की संख्या 20 लाख के करीब पहुंच गई है जो कोरोना वायरस संक्रमण के सक्रिय मामलों की संख्या की तुलना में स्वस्थ हुए लोगों की संख्या 2.93 गुना अधिक है। भूषण ने कहा, ‘इस बीमारी से अब तक 19,77,779 लोग स्वस्थ हो चुके हैं। इस समय 6,73,166 मरीजों का इलाज चल रहा है और वे चिकित्सा देखरेख में हैं।’ उन्होंने कहा कि मृत्यु दर भी दो प्रतिशत से नीचे आ गई है। भूषण ने कहा, ‘प्रतिदन मृत्यु दर घटकर 1.92 प्रतिशत और साप्ताहिक औसत मृत्यु दर 1.94 प्रतिशत हो गई है। दोनों दो फीसदी से नीचे हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘प्रतिदिन 9 लाख तक जांच हो रही है जो बड़ी बात है। बीमारी को नियंत्रित करने और मृत्यु दर को घटाने के लिए जांच महत्वपूर्ण है।’(एजेंसी)
-प्रियंका दुबे
बिहार के समस्तीपुर ज़िले के सैदपुर की मुख्य सड़क से भीतर प्रवेश करने पर आगे एक ऐसा बिंदु आता है जहां से आगे बागमती नदी में आई बाढ़ का पानी सड़क और पास ही खड़े आम के बगीचों में फैला हुआ है.
यहीं एक सूखे बचे हिस्से से निकलने वाली एक कच्ची पगडंडी आपको सैदपुर ग्राम पंचायत के राजकीय बुनियादी विद्यालय की ओर ले जाएगी.
बिहार के समस्तीपुर ज़िले के कल्याणपुर ब्लॉक में पड़ने वाले इस स्कूल का आहता एक विशालकाय नीम के पेड़ से शुरू होता है.
उस नीम के पेड़ पर बने ऊँचे चबूतरे पर खड़े होकर जब मैंने देखा, तो चारों तरफ़ बांस के सहारे टिकी काली-सफ़ेद पन्नियों से बनी तिरपालों वाली अस्थायी झुग्गियों की लम्बी क़तारें नज़र आईं यह बाढ़ पीड़ितों के लिए स्थानीय स्तर पर चलाया जा रहा एक राहत शिविर है.
बागमती के शरणर्थी
चबूतरे पर खड़े-खड़े मैं पल भर के लिए ठिठक गई. मेरे सामने जो था वो मेरे लिए चौंकने वाला दृश्य था.
मेरी पीढ़ी के लोग विभाजन की विभीषिकाओं और शरणार्थी कैम्पों के बारे कई वृतांत पढ़ते-सुनते हुए बड़े हुए हैं. फिर नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों के रहने के लिए जम्मू में बनवाए गए शरणार्थी कैम्पों के बारे में भी पढ़ा-सुना था. लेकिन नब्बे का दशक मेरे जीवन का भी पहला दशक था इसलिए अपनी आंखों से देखा कुछ भी नहीं था.
लेकिन आज इस चबूतरे पर खड़े हुए जहां तक देख पा रही थी - वहां तक लोग तिरपाल की झुग्गियों में रहने को मजबूर थे. पूछने पर मालूम हुआ कि पंद्रह दिन पहले तक यहाँ तक़रीबन 4,000 बाढ़ प्रभावित लोग रह रहे थे.
बीते हफ़्ते कुछ बाढ़ प्रभावित गाँवों में बागमती का पानी थोड़ा उतरा है तो कई परिवार बाढ़ में टूटे अपने घरों को सुधारने, कीचड़ साफ़ करने और साँपों को भगा कर वापस रहना शुरू करने की कोशिश में वापस चले गए हैं. लेकिन इसके बाद भी फ़िलहाल इस राहत शिविर में 7 गांवों के 2,000 से ऊपर लोग रह रहे हैं.
राहत शिविर में रहने वाले जगदीश राय बताते हैं, "अभी यहां समस्तीपुर के परसारा, तकिया, कनुआ, सौऊरी, सेमरी और सैदपुर गाँव के लोग रह रहे हैं. साथ ही मुज़फ़्फ़रपुर के खड़कपुर गाँव के बाढ़ प्रभावित भी यहीं हैं. सभी के घरों में बागमती की बाढ़ का पानी घुसा हुआ है. अब पानी कब उतरेगा और कितने दिन और यहाँ रहना पड़ेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता".
उस चबूतरे से पूरे राहत शिविर का एक 180 डिग्री का दृश्य नज़र आता था. चारों ओर काली-सफ़ेद तिरपालों के टेंट और उनके सामने बंधे किसानों के मवेशी. टेन्टों के सामने ऊँघते, सोते या बातें करते हुए लोग.
खुले घूमते मवेशियों से भरे हुए रास्तों के बीच पानी की कुप्पे भर कर अपनी झोपड़ियों में ले जाती महिलाएँ. चारों तरफ़ फैली गंदगी, गोबर और इसी गंदगी और कीचड़ के ऊपर सूखते बाढ़ पीड़ितों के कपड़े.
इसी बीच बरसात के यह मुश्किल दिन काटने के लिए बाढ़ पीड़ितों के बच्चे स्कूल के पोखर में मछली मारने में व्यस्त थे. वहीं दूसरी ओर कीचड़ के बीच ज़मीन के एक छोटे से सूखे टुकड़े पर बैठ कर बतियाती तीन महिलाओं के चेहरे की पथरीली उदासी को देखकर न जाने क्यों मुझे अमृता शेरगिल के प्रसिद्ध चित्र 'थ्री विमन' की याद आ गई.
सवाल यह था कि यह ग्रामीण घर और खलिहान तक फैले हुए अपने पूरे जीवन को समेट कर एक चार कदम जितनी लम्बी तिरपाल की झुग्गी में कैसे समेट सकते थे?
ज़ाहिर है, सभी की घर-गृहस्थी बागमती के पानी के साथ बह गई थी. कुछ के पशु भी डूब गए थे. यहां तक पहुँचे लोग बड़ी मुश्किल से ख़ुद को अपने-अपने मवशियों को ज़िंदा बचा कर निकल पाए थे.
यहां झुग्गियाँ तानने के बाद कच्चे चूल्हे बनाए गए और रोज़ की लकड़ी जुटा कर रोज़ के ईंधन का प्रबंध किया जाने लगा.
बिहार में बाढ़ की विभीषिका का जो वर्णन हम बिहार के साहित्यकारों की कविताओं और उपन्यासों में पढ़ते रहे हैं - वह विभीषिका असल जीवन में कितनी क्रूर, निर्दयी और दुरूह हो सकती थी, उसे सिर्फ़ इस राहत शिविर के बीच खड़े होकर ही महसूस किया जा सकता है.
ऐसे भारतीय नागरिकों की आंखों में झांक कर जो अपना सब कुछ एक गरजती-उफनती नदी में बह जाते हुए देखने के बाद पेड़ों के नीचे फिर से ख़ाली हाथ जीवन शुरू करने को विवश हैं.
इसी सोच में गुम थी कि साऊरी गाँव की निवासी 68 वर्षीय जमुना देवी ने मुझे अपनी तिरपाल दिखाते हुए कहा, "हम मुसहर हरिजन हैं. पहले ही बहुत कठिनाई में रहते थे और अब बाढ़ की वजह से सब कुछ तहस-नहस हो गया है. गांव में हमारे पूरे टोले में इतना-इतना (कमर तक इशारा करते हुए) पानी भर गया था. जो भी दो हाथों में अट सका, वो लेकर हम शाम तक ही यहाँ भाग आए."
"अब यहां रहते-रहते बीस दिन हो गए. एक तिरपाल मिली है और दिन में एक वक़्त खिचड़ी मिल जाती है, बस. शौच खुले में जाना पड़ता है. नहाने धोने के लिए कोई जगह नहीं हैं."
"दो चापाकल हैं लेकिन हज़ारों की भीड़ में दो चापाकल से क्या होता है? कुछ लोग पड़ोस के गाँव से पानी भर के लाते हैं तो कुछ पोखर का पानी पका के इस्तेमाल करते हैं".
कोरोना: हर जगह पानी भरा हुआ है तो दूरी कैसे बनाएँ?
बिहार में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों के मद्देनज़र मैं इस यात्रा के दौरान लगतार सभी से दो हाथ की दूरी बनाकर बात करने का निवेदन करती रही.
सैदपुर राहत शिविर में भी स्थानीय ग्रामीणों के घिरे होने पर जब मैं सभी से दूरी बांधकर बात करने के लिए कह रही थी तभी भीड़ से आई एक युवक की आवाज़ से मुझे चौंका दिया, "जब चारों तरफ़ बागमती का पानी भरा है तो दूरी बनाकर रहने के लिए हम लोग कहाँ जाएँगे?"
"जगह तो इतनी सी ही है- अपनी और मवेशियों की जान बचाकर यहां किसी तरह दिन गुज़ारें या कोरोना के चक्कर में पानी में जान ही गवां दें?"
चारों तरफ़ से पानी से घिरे बिहार के बाढ़ पीड़ित कोरोना के लिए ज़रूरी सोशल डिसटेंसिंग की एहतिहात कैसे बरकरार रख सकते थे?
युवक का यह चुभता हुआ सवाल एक क्षण में मेरे भीतर के शहरी को शर्मिंदा कर ग्रामीण जीवन की वास्तविक चुनौतियों से रूबरू करवा गया.
राहत शिविर में सामुदायिक भोजन
दोपहर 3.30 बजे राहत शिविर में खाना परोसा गया. आम के पेड़ों के एक कीचड़, बदबू और गंदगी से भरे बगीचे में दो पंगतों में बैठ बच्चे और बूढ़े काग़ज़ की पत्तलों में परोसी गई खिचड़ी का रहे थे.
पूरे इलाक़े में इस्तेमाल किए गए काग़ज़ के पत्तलों के ढेर बिखरे पड़े थे. पानी में सड़ते अनाज की दुर्गंध चारों ओर फैली हुई थी. गीली मिट्टी पर बैठ कर खिचड़ी खाते हुए भारत के इन बाढ़ पीड़ित नागरिकों को देखना एक पीड़ादायक और मार्मिक दृश्य का साक्षी होना था.
बाढ़ पीड़ित सतहू पासवान कहते हैं, "यहां लोगों की हालत ख़राब है. अभी तक हम लोगों को सरकार की ओर से बाढ़ पीड़ितों के लिए जारी किया गया 6 हज़ार रुपया भी नहीं मिला है."
"सिर्फ़ एक वक़्त का खाना दिया जाता है. उसमें भी बीस दिन से रोज़ खिचड़ी ही दी जा रही है. एक दिन भी कुछ और नहीं बनाया गया. सिर्फ़ खिचड़ी खा कर कोई कब तक रह सकता है? दूसरे वक़्त के व्यवस्था हम लोग ख़ुद अपने टेन्ट में करते हैं".
समस्तीपुर के कलेक्टर शशांक शुभांकर बताते हैं कि उनके ज़िले में बाढ़ के टूटे तटबंधों के ऊपर 9 राहत शिविर चल रहे हैं जबकि ज़िले की कुल बाढ़ पीड़ित जनसंख्या ढाई लाख है.
वो कहते हैं, "सैदपुर में बाढ़ पीड़ितों को चापाकल, सामुदायिक रसोई, टोयलेट और टेन्ट उपलब्ध करवाए गए हैं. इसके अलावा 6 हज़ार रुपए की बाढ़ क्षतिपूर्ति राशि भी बाँटी जा रही है. प्रशासन आने वाले दिनों के लिए भी पूरी तरह तैयार है और जिन लोगों को भी राहत राशि नहीं मिल पाई है, उन्हें देने की प्रक्रिया चल रही है".
प्रशासन के दावों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच मौजूद गहरे फ़ासले में ही शायद बिहार के बाढ़ पीड़ितों के जीवन का सच मौजूद है.
बिहार डायरी का चौथा पन्ना आज यहीं ख़त्म होता है.(bbc)
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)| फेसबुक और उसकी मैसेजिंग सेवा ऐप व्हाट्सएप से संबंधों को लेकर विपक्ष की आलोचनाओं का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर पलटवार किया है। भाजपा ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संबंध विपक्षी कांग्रेस के साथ ही तृणमूल कांग्रेस के साथ जोड़ते हुए तीखा प्रहार किया है।
कांग्रेस ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उसने फेसबुक के मुद्दे पर भाजपा पर हमला करना जारी रखा और साथ ही दावा किया कि फेसबुक की वरिष्ठ एक्जीक्यूटिव अंखी दास 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और सांसदों के संपर्क में थी।
दूसरी ओर, भाजपा ने इस पूरे मामले में कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी के साथ ही विजया मूर्ती और कविता के. के. जैसे अन्य लोगों के अलावा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के फेसबुक से कथित पिछले जुड़ाव का हवाला दिया।
भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने आईएएनएस को बताया कि फेसबुक की सार्वजनिक नीति टीम में शामिल विजया मूर्ति ने पिछले दिनों कांग्रेस के लिए काम किया था।
मालवीय ने दावा किया कि मूर्ति ने युवा कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी चुनावी परियोजना में काम किया था। जनवरी 2012 और अप्रैल 2015 के बीच उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार वह एक सामाजिक-राजनीतिक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) से भी जुड़ी रहीं।
मालवीय ने यह भी आरोप लगाया कि कविता के. के., जिनकी लिंक्डइन प्रोफाइल से पता चलता है कि वह सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी के लिए काम कर रही हैं और वह अतीत में तृणमूल कांग्रेस के सांसद के लिए भी काम कर चुकी हैं।
कविता के लिंक्डइन प्रोफाइल में 2015 और 2017 के बीच टीएमसी नेता डेरेक ओ. ब्रायन के लिए प्रिंसिपल पॉलिसी एसोसिएट के रूप में काम करने का उल्लेख है।
मनीष तिवारी के इनकार के बावजूद, मालवीय ने दावा किया कि उन्होंने अतीत में अटलांटिक काउंसिल के लिए काम किया था।
भाजपा के आईटी सेल प्रमुख ने कहा, तिवारी को अटलांटिक काउंसिल का एक प्रतिष्ठित सीनियर फेलो नियुक्त किया गया था, जिसे बदले में फेसबुक से राजनीतिक प्रचार करने का काम सौंपा गया था। आप इसे पसंद कीजिए या मत कीजिए, मगर यह एक तथ्य (फैक्ट) है।
उन्होंने दावा किया कि 2019 के आम चुनावों में भाजपा की मूल विचारधारा वाले 700 फेसबुक पेज हटा दिए गए थे। उन्होंने कहा कि इन पेजों पर लाखों समर्थक भी जुड़े थे, लेकिन उन्हें हटा दिया गया।
अटलांटिक काउंसिल द्वारा नौ जनवरी 2017 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इसके तत्कालीन दक्षिण एशिया केंद्र के निदेशक भरत गोपालस्वामी के हवाले से कहा गया है, मनीष तिवारी का हमारी टीम में स्वागत करते हुए हमें खुशी हो रही है। हम उनकी भारत सरकार की सेवा के लिए वर्षों की विशेषज्ञता से उत्सुक हैं और वह दक्षिण एशिया सेंटर की टीम के लिए एक अमूल्य अनुवृद्धि के तौर पर होंगे, क्योंकि हम भारत और उपमहाद्वीप पर अपनी प्रोग्रामिंग को बढ़ाने जा रहे हैं।
तिवारी ने जोर देकर कहा कि यह महज उन्हें बदनाम करने का एक अभियान हैं। उनका दावा है कि वह दक्षिण एशिया सेंटर के एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ फेलो थे, जहां उनका कार्यकाल एक जनवरी, 2017 से 31 दिसंबर, 2019 तक था। उनका दावा है कि वह भाजपा के जय पांडा के उत्तराधिकारी के तौर पर थे।
इस बीच कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी पूरे मामले पर भाजपा की आलोचना की है, जिसका मालवीय ने भी जवाब दिया है।
उन्होंने दावा किया कि फेसबुक-इंडिया के एमडी अजीत मोहन ने संप्रग के दौर में योजना आयोग के साथ काम किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि एक अन्य फेसबुक कर्मचारी सिद्धार्थ मजूमदार, जिन्होंने 'कंपनी की सार्वजनिक नीति टीम में काम किया था', उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी अहमद पटेल के साथ भी काम किया है।
(आईएएनएस)सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, कोरोनोवायरस महामारी के बीच अपनी नौकरी गंवाने वाले वेतनभोगियों की संख्या अप्रैल से अब तक 1.89 करोड़ हो गई है, पिछले महीने लगभग 50 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई है। आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल महीने में 1.77 करोड़ वेतनभोगियों की नौकरी चली गई, मई में लगभग 1 लाख, जबकि जून में लगभग 39 लाख और जुलाई में करीब 50 लाख लोगों की नौकरी चली गई।
सीएमआईई सीईओ महेश व्यास ने कहा, "जबकि वेतनभोगियों की नौकरियां जल्दी नहीं जाती, लेकिन जब जाती है तो, दोबारा पाना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए ये हमारे लिए चिंता का विषय है।"
उन्होंने कहा, "2019-20 में वेतनभोगी नौकरियां औसतन लगभग 190 लाख थीं। लेकिन पिछले वित्त वर्ष में इसकी संख्या कम होकर अपने स्तर से 22 प्रतिशत नीचे चली गई।"
सीएमआईई के नए आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इस अवधि के दौरान लगभग 68 लाख दैनिक वेतन भोगियों ने अपनी नौकरी खो दी। हालांकि, इस दौरान लगभग 1.49 करोड़ लोगों ने किसानी की।
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर विभिन्न सेक्टर की कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के वेतन काटे या फिर उन्हें बिना भुगतान के छुट्टी देदी।
उद्योग निकायों और कई अर्थशास्त्रियों ने बड़े पैमाने पर कंपनियों पर महामारी के प्रभाव से बचने और नौकरी के नुकसान से बचने के लिए उद्योग को सरकारी समर्थन देने का अनुरोध किया।(navjivan)
मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने फ़ैसला किया है कि प्रदेश की सभी नौकरियां अभी प्रदेश के मूल निवासियों के लिए आरक्षित होंगी.
मंगलवार को इसकी घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कहा कि इसके लिए जो भी ज़रूरी क़ानून है वह जल्द बनाया जाएगा.
मुख्यमंत्री ने यह ऐलान ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर किया.
उन्होंने कहा, "मेरे प्रिय प्रदेशवासियों, अपने भांजे-भांजियों के हित को ध्यान में रखते हुए हमने निर्णय लिया है कि मध्यप्रदेश में शासकीय नौकरियाँ अब सिर्फ मध्यप्रदेश के बच्चों को ही दी जाएंगी. इसके लिए आवश्यक क़ानूनी प्रावधान किया जा रहा है. प्रदेश के संसाधनों पर प्रदेश के बच्चों का अधिकार है."
मुख्यमंत्री की घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि अभी तक प्रदेश के बाहर के बच्चे बड़ी तादाद में नौकरी में आवेदन करते थे और चुने भी जाते थे. इसमें किसी भी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी. लेकिन इसके बाद क्या स्थिति बनती है, यह देखना होगा.
वहीं मुख्यमंत्री ने अभी यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि प्रदेश के बाहर के जो लोग यहां पर रह रहे हैं उनके लिए क्या नियम होंगे.
प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस घोषणा को ऐतिहासिक फ़ैसला बताया है.
कांग्रेस ने किया फ़ैसले का स्वागत
वहीं विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है.
कांग्रेस मीडिया सेल के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, "मध्यप्रदेश सरकार को इस मुद्दे की ख़बर 15 साल तक नहीं आयी और 15 साल तक मध्यप्रदेश की जनता और विद्यार्थियों का शोषण हुआ. जब हमारी सरकार ने 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की और दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश से 10वीं की परीक्षा पास करने की अनिवार्यता की मांग की. तब जाकर इस सरकार ने यह कदम उठाया है."
भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, "देर आए दुरुस्त आए. मध्यप्रदेश के बच्चों का जिस भी निर्णय में हित छुपा है कांग्रेस पार्टी उसका स्वागत करती है."
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कुछ दिनों पहले मांग की थी कि सरकार सरकारी नौकरी में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देने के लिए क़ानून बनाए. उन्होंने कहा था कि मौजूदा समय में नौजवान बेरोज़गार हो रहे हैं इसलिए यह ज़रूरी है कि उन्हें सरकारी नौकरी में मौका दिया जाए.
उन्होंने यह भी कहा था कि सरकारी नौकरी उन्हें ही दी जानी चाहिए जिन्होंने 10वीं की परीक्षा प्रदेश से पास की हो.
उमर अब्दुल्ला का तंज़
लेकिन इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ देश के नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पर तंज़ कसा है. उन्होंने ट्वीट किया, "जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नौकरियां तो सभी के लिए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सिर्फ राज्य के लोगों के लिए ही."
इसके पहले कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ ने भी निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के युवाओं को 70 फ़ीसदी आरक्षण देने की बात कही थी. उन्होंने भी लगभग एक साल पहले इसके लिए क़ानून बनाने की बात कही थी.
उन्होंने कहा था, "निजी क्षेत्रों में राज्य के स्थायी निवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी. नई औद्योगिक इकाई शुरू होने पर इसे लागू किया जाएगा. इसके तहत कुल रोज़गार का 70 प्रतिशत मध्य प्रदेश के स्थायी निवासियों को ही देना होगा."
क्या इसके पीछे राजनीति है?
इस पूरी घोषणा को प्रदेश में होने वाले उपचुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है. मध्यप्रदेश में इस वक़्त भाजपा की सरकार है और उन्हें 27 सीटों पर उपचुनाव लड़ना है. अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकार में बने रहना है तो उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतनी होगी.
माना जा रहा है कि यह घोषणा उसी चुनाव को देखते हुए की गई है. सरकार ने इसके लिए क़ानून में संशोधन की बात भी की है.
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता मानते हैं कि यह पूरा फ़ैसला चुनाव को लेकर किया गया है.
उन्होंने कहा, "इससे बहुत ज़्यादा फ़ायदा नहीं होना है लेकिन सरकार को उम्मीद है कि वो इस मुद्दे से फ़ायदा उठाएगी. यह मामला अभी लंबा चलेगा और तब तक चुनाव भी ख़त्म हो जाएंगे."
उनका यह भी कहना है कि प्रदेश में सरकारी नौकरी मिलना सरकार ने ही मुश्किल बना दिया है.
उन्होंने कहा, "सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 कर दी गई उसके अलावा बड़ी तादाद में शिक्षकों को संविदा पर रखा गया है. सरकारी नौकरी की कमी नहीं है बल्कि नीति ऐसी है जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकारी नौकरियां तो है ही नहीं."(bbc)