रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14जनवरी। प्रदेश के शासकिय कॉलेजों के प्राचार्यों ने रोजाना एक कालखंड (पीरीएड)पढ़ाने के निर्देश को तिलांजली दे दी है। इतना ही नहीं बड़ी संख्या में प्राचार्य दोपहर भोज के लिए घर जाने के बाद वापस अगले ही दिन बाते है। प्रदेश में कभी निजी और अनुदान प्राप्त कॉलेज बहुतायत में रहे है। किंतु बीते एक दशक में शासकिय कॉलेजों की संख्या मं बड़ी वृद्धि हुई है।
प्रदेश में अब,निजी से अधिक शासकिय कॉलेज 259 हो गए है। ऐसे में सरकार ने अपने हर प्रोफेसर का अध्यापन में उपयोग करने जोर लगाया है। राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने, इसको तहत सभी प्राचार्यों, प्रभारी प्राचार्यांे को दिन में एक क्लास लेने की व्यवस्था की है। यह ,7वें वेतन आयोग में महाविद्यालयीन शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 62 से 65 करते ही अनिवार्य किया गया था। इसके पीछे मंशा यी है कि 30-35 वर्षों के अध्यापन वाले प्राचार्यों के पढ़ाई की बात अलग ही होती है। अनुभाग का निचोड़ उनके अध्यापन में होगा और ज्ञान का प्रचार कर सकेंगे। किंतु यह बाते उद्देश्य , कथन मंशा तक ही सिमट कर रह गयी है। 7 वें वेतन आयोग के नियम अनुसार, इन प्राचार्यों को 62 से 65, 3वर्ष तक पढ़ाने की अनिवार्यता भी है। तभी 65 वर्ष की सेवा मानी जाएगी। लेकिन प्रदेश भर में कोई प्राचार्य ,क्लास नहीं ले रहे हैं। छात्रहित मं लिए गए निर्णय- निर्देशों को तिलांजलि दे दी है। प्राचार्य दिन भर प्रशासनिक कार्यो में निकाल देते हैं। वैसे बड़ी संख्या में कॉलेज प्रभारियों के भरोसे चल रहा है। तो कई वरिष्ठ प्रोफेसर ,विभाग के दफ्तरों में जमे हुए हैं। जो कॉलेजों में पदस्थ हैं। वे सरकारी कामों में दिन कांट रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि 10 वर्ष पूर्व यह व्यवस्था अपने ेविषय पर की गई थी,लेकिन प्राचार्योंका कालखंड केवल टाइम टेबल में होता था। इस पर कभी किसी प्राचार्य ने ले लिया तो ठीक । जानकारों का कहना है कि जब प्रोफेसर,सहायक प्रोफेसरों की निगरानी के नियम व्यवस्था है। तो प्राचार्यों के लिए एक कालखंड अघ्यापन बाध्यकारी किया जाना चाहिए।