रायपुर
आर्थिक प्रस्ताव में नीतियों के पुर्ननिर्धारण की जरूरत का संकल्प
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 25 फरवरी। कांगे्रस के राष्ट्रीय अधिवेशन में शनिवार को पारित आर्थिक प्रस्ताव में कहा गया कि महंगाई और बेरोजग़ारी ने लोगों की उम्मीदों को निराशा में बदल दिया है। सत्ता के राजनीतिक केंद्रीकरण ने संघीय ढांचे को ध्वस्त कर दिया है। भारत जोड़ो यात्रा ने सफलतापूर्वक बेरोजगारी और महंगाई सहित कई महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों को केंद्र में रखा।
कांग्रेस स्पष्ट तौर पर मानती है कि मोदी सरकार के पिछले 9 साल शासन की विफलताओं, भयानक त्रुटियों और ग़लत प्राथमिकताओं से भरे हुए हैं। इनकी सबसे बड़ी विफलता इनका अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन है। कोरोना प्रभावित वर्षों से पहले ही नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण जीएसटी को जल्दबाजी में लागू करने के कारण आर्थिक गिरावट शुरू हो गई थी।
नतीजतन, अर्थव्यवस्था, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 6.9 फीसदी की दर से बढ़ी थी, वित्त वर्ष 2019-20 में घटकर 3.7 फीसदी रह गई।
महामारी से प्रभावित वर्षों ने केवल गिरावट को तेज किया। पिछले तीन साल युवाओं के लिए रोजगार सृजन की कमी, सूक्ष्म, लघु और मध्यम व्यवसायों के विनाश, लगातार उच्च मुद्रास्फीति, बढ़ती असमानता, बढ़ते सरकारी कर्ज और रुपये के गिरते मूल्य के लिए जाने जाएंगे। इस संदर्भ में, हमारा मानना है कि आर्थिक नीतियों के पुनर्निर्धारण पर विचार करने का समय आ गया है।
आर्थिक नीतियों का पुनर्निधारण -
1991 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने उदारीकरण के एक नए युग की शुरुआत की थी। उसका ही परिणाम है कि देश ने धन सृजन, नए व्यवसायों और उद्यमियों, एक विशाल मध्यम वर्ग, लाखों नौकरियों, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, निर्यात में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के मामलों में भारी लाभ प्राप्त किया है और यूपीए सरकार के 10 वर्षों के दौरान 27 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया।
मोदी सरकार की जॉबलेस ग्रोथ की विरासत को ख़ारिज़ करते हैं। हमारा मानना है कि नौकरियां हमारी आर्थिक नीति का मुख्य फोकस होनी चाहिए। हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि उद्योग और सेवाएं मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के निवेश और जोखिम उठाने से संचालित होंगी। हमें आकांक्षा, नवाचार, रचनात्मकता और उद्यमशीलता के गुणों को स्पष्ट रूप से अपनाना चाहिए।
हम सरकारी और अर्ध-सरकारी निकायों, सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सभी रिक्तियों को तुरंत भरने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं। एमएसएमई 12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले सबसे बड़े एंप्लॉयर हैं और उन्हें बढऩे और विस्तार करने के लिए पूर्ण समर्थन दिया जाना चाहिए।
शहरी गऱीबों के लिए सुरक्षा प्रदान करने हेतु मनरेगा के समान एक शहरी नरेगा शुरू किया जाना चाहिए। बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और कम एलएफपीआर के साथ, नए श्रम संहिता यदि लागू किए जाते हैं तो श्रमिकों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हम मानते हैं कि श्रमिकों ने हमारे देश को बनाया है; हमें उनके अधिकारों को सुरक्षित करना चाहिए और उन्हें न्याय प्रदान करना चाहिए । प्रौद्योगिकी, इंटरनेट, शहरीकरण और कोविड़-19 महामारी के विस्तार के साथ, कार्य की प्रकृति भी बदल रही है। नीति आयोग के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जून 2022 तक लगभग 77 लाख लोग गिग वर्कर्स के रूप में कार्यरत हैं और 2029-30 तक उनकी संख्या तिगुनी होने की संभावना है। हम उनके अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने में विश्वास करते हैं।
स्वयं सहायता समूहों को उदारतापूर्वक ऋण देने से हजारों रोजगार सृजित होंगे। स्टार्ट-अप्स को जोखिम पूंजी अनुदान, कम ब्याज वाले ऋण और व्यवसाय विकास सहायता प्रदान करने से कई हजार नौकरियां पैदा होंगी। रोजग़ार सृजन के इन उपायों का समर्थन करते हुए, हम स्वीकार करते हैं कि निजी क्षेत्र नौकरियों का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा निर्माता होगा। हमें किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी पहचानना चाहिए और उनसे अपनी फ़सल उगाने, बाज़ार में बेचने और निर्यात करने की अधिकतम स्वतंत्रता का वादा करना चाहिए।
भारत में बढ़ती असमानता ने कई सच उजागर किए हैं। हमारे जैसे बड़े और विविध समाज में, बढ़ती हुई आय और धन असमानता एक सामाजिक बाधक बन जाएगी। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे धनी 5 प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा है, जबकि नीचे के 50 फीसदी के पास संपत्ति का सिर्फ़ 3 प्रतिशत हिस्सा ही है। इसके विपरीत, कुल जीएसटी का लगभग दो-तिहाई (64.3 फीसदी) आबादी के नीचे के 50 फीसदी से आता है और देश के सबसे अमीर 10 फीसदी से केवल 3-4 फीसदी प्रतिशत आता है।
वर्ष 2022 की अपनी असमानता रिपोर्ट में, चांसल, पिकेटी और अन्य ने अनुमान लगाया है कि नीचे के 50 प्रतिशत को राष्ट्रीय आय का केवल 13 प्रतिशत प्राप्त हुआ है। शीर्ष 5 से 10 प्रतिशत (7 से 14 करोड़ लोग) अपने धन प्रदर्शन, खर्च और उपभोग करते हैं, जिससे बाज़ार में चमक बढ़ती है। आर्थिक नीतियों को बनाते समय नीचे के 10 प्रतिशत आबादी के बीच अत्यधिक गऱीबी को एक गंभीर खतरा माना जाना चाहिए और इसका समाधान होना चाहिए।
आय और धन असमानता के साथ-साथ लैंगिक असमानता भी चिंता का कारण है। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) द्वारा जारी 2022 के लिए ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत को 146 देशों में 135वां स्थान दिया गया है। हमें बढ़ती असमानताओं, विशेष रूप से आय और धन, लैंगिक असमानता और क्षेत्रीय असमानताओं पर ध्यान देना चाहिए।