रायपुर

गोमर्डा में बाघ की मौत मंत्री ने स्वीकारी, लेकिन विभाग की असफलता से इंकार
15-Feb-2024 4:05 PM
गोमर्डा में बाघ की मौत मंत्री ने स्वीकारी, लेकिन विभाग की असफलता से इंकार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 15 फरवरी।
वनमंत्री केदार कश्यप ने बुधवार को विधानसभा में स्वीकार किया कि गोमर्डा अभ्यारण्य में आए बाघ पर निरन्तर ट्रैकिंग के जरिए नजर रखी जा रही थी परन्तु इसके बावजूद बाघ की मौत हो गई, जो दुर्भाग्य पूर्ण है। हालांकि उन्होंने इस बात से इंकार किया कि अभ्यारण्य में बाघों के संरक्षण, संवर्धन, विकास आदि पर वन विभाग प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये खर्च करता है फिर भी बाघों की संख्या निरन्तर कम होती जा रही है जिसका जन स्वीकार्य कारण बताने में विभाग असफल हो रहा है। वे नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत की ध्यानाकर्षण सूचना पर जवाब दे रहे थे।


केदार ने बताया कि सांरगढ़-बिलाईगढ़ वनमण्डल में इलेक्ट्रोक्यूशन (अवैध विद्युत तार) द्वारा वन्यजीवों की मृत्यु के प्रत्येक प्रकरण में भलीभांति आवश्यक कार्यवाही, कर नियमानुसार पकड़े गये आरोपियों के विरूद्ध प्रकरण पंजीबद्ध किया जाकर मई 2023 को नवगठित हुए वनमण्डल में कुल 05 प्रकरणों में 26 आरोपियों को जेल भेजा गया। बाघ की मृत्यु के 10 दिन के अंतर्गत घटना की जानकारी प्रकाश में आने पर आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया तथा बाघ के समस्त अंग जैसे दांत, नाखून, हडिय़ां तथा खाल को पोस्टमार्टम के दौरान सही सलामत बरामद किया गया। 

भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो यह सुनिश्चित करने हेतु योजनाबद्ध प्रकिया का संचालन वनमण्डल द्वारा किया जा रहा है। इसके अंतर्गत समस्त अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में स्थित विद्युत खम्भों की सर्वे उपरांत नंबरिंग (जी.पी.एस. रिडिंग सहित) किया जा कर प्रतिदिन निर्धारित रामय पर अवैध हुकिंग की चेकिंग एवं कासथेकिंग कर तत्संबंध में दैनिक प्रतिवेदन प्राप्त कर उसका संधारण किया जा रहा है। इससे पहले डॉ. महंत ने अपनी सूचना में कहा कि वन विभाग, सर्वसाधन सम्पन्न विभाग है इसमें 100 से अधिक भारतीय वन सेवा के अधिकारियों की सेवाएं उपलका है एवं वन के चप्पे-चप्पे पर वनकर्मी तैनात हैं, फिर भी एक बाघ जिस पर निरन्तर ट्रैकिंग के जरिए नजर रखी जा रही थी, अचानक गायब हो जाता है और उसकी मृत्यु की जानकारी तब प्राप्त होती है जब उसकी लाश सड़-गल चुकी होती है। बाघों के संरक्षण, संवर्धन आदि पर वन विभाग प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये खर्च करता है, फिर भी बाघों की संख्या निरन्तर कम होती जा रही है, जिसका जन स्वीकार्य कारण बताने में विभाग असफल रहा है। 
 

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