महासमुन्द

रासायनिक खाद के ज्यादा इस्तेमाल से बंजर होने का खतरा बढ़ा, उत्पादन घटा
06-Jul-2024 1:53 PM
रासायनिक खाद के ज्यादा इस्तेमाल से बंजर होने का खतरा बढ़ा, उत्पादन घटा

मिट्टी के नमूनों में सबसे ज्यादा बसना-सरायपाली की हालत खराब 

मिट्टी के 98 फ ीसदी नमूनों में नाइट्रोजन की कमी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 6 जुलाई। कृषि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जिले में रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से कृषि भूमि के बंजर होने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। भूमि में पोषक तत्वों की कमी होने लगी है। अब भी किसान समय रहते जागरुक नहीं हुए तो आने वाले कुछ सालों में अनाज के उत्पादन का ग्राफ  काफी नीचे चला जाएगा। मृदा प्रयोगशाला महासमुंद में इस साल 2023-2024 में 5945 मिट्टी के नमूनों की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार मिट्टी के 98 फीसदी नमूनों में नाइट्रोजन की कमी पाई गई है। केवल 2 प्रतिशत में ही नाइट्रोजन बचा हुआ है, जो चिंताजनक है। इसके कारण फसल बौने हो रहे हैं। साथ ही धान का उत्पादन भी घट रहा है। यही नहीं, यहां के उपजे अनाज के सेवन से मानव शरीर में प्रोटीन की मात्रा घट गई है।

गौरतलब है कि अधिक धान उत्पादन करने के चक्कर में जिले के किसान अपने खेतों में यूरिया और डीएपी खाद की मात्रा में प्रतिदिन इजाफा कर रहे हैं।

 जिसके कारण कृषि योग्य भूमि में धीरे-धीरे पोषक तत्वों की कमी होने लगी है। साथ ही धान का उत्पादन भी लगातार घट रहा है। अधिकारियों की मानें तो अगर बीते 10 साल तक यहीं स्थिति रही तो मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इससे भूमि बंजर हो जाएगी। विभाग का कहना है कि किसानों को शिविर के माध्यम से रासायनिक खाद का ज्यादा उपयोग नहीं करने को लेकर समझाइश दी जा रही है। साथ ही गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट खाद को महत्व देने कहा जा रहा है। ताकि मिट्टी में गुणवत्ता बनी रहे।

मिट्टी परीक्षण करने वाले वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी महासमुंद के डीएस दीवान ने बताया कि जांच में मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी पाया गया है। सुधार के लिए रासायनिक खाद का कम से कम प्रयोग करने की ज़रुरत है। जैविक खाद के उपयोग से पोषक तत्वों को बरकरार रखा जा सकता है। मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में जिले के महासमुंद, पिथौरा, सरायपाली, बसना, बागबाहरा से लाए गए मिट्टी के नमूनों में सबसे ज्यादा बसना और सरायपाली की स्थिति खराब है।

 विशेषज्ञों की मानें तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए नाइट्रोजन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसकी मात्रा कम होना एक खतरनाक संकेत है। ज्यादातर किसान फसल कटाई के बाद खेत में मौजूद ठूंठ को जला देते हैं। इससे लाभकारी केंचुआ सहित अन्य जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। इससे नाइट्रोजन की कमी होती है।

 शासन ने पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया है। बावजूद फसल कटाई के बाद किसान पराली को जला देते हैं। पोटाश कम होने से जड़ों का विकास कम हो जाता है। सल्फर की अल्प मात्रा से सब्जियों को नुकसान होता है।

सल्फर की अल्प मात्रा से सब्जियों को नुकसान होता है। आयरन की कमी से पौधे की वृद्धि रुक जाती है। जिंक में कमी से बीज का पैदावार कम होता है। कॉपर की कमी से फसलों में बीमारी होती है। अगर बोरान की कमी हुई तो पौधों का बढऩा रुक जाता है। साथ ही बीमारी होने लगती है। मैंगनीज कम होने से फसलों में बीमारी पनपती है।

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