रायपुर

ग्लूकोमा के 90 प्रतिशत रोगी समय पर इलाज से हो सकते हैं ठीक
13-Mar-2021 5:03 PM
ग्लूकोमा के 90 प्रतिशत रोगी समय पर इलाज से हो सकते हैं ठीक
एम्स में ग्लूकोमा सप्ताह, कई कार्यक्रम - प्रतियोगिताएं 
 
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 मार्च। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेत्र रोग विभाग के तत्वावधान में 7 से 13 मार्च के मध्य विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शुक्रवार को इस कड़ी में वेबीनार आयोजित कर ग्लूकोमा का जल्द से जल्द पता लगाने और समय पर इसका उपचार शुरू करने पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना था कि यदि समय पर ग्लूकोमा की जानकारी मिल जाए तो 90 प्रतिशत रोगियों का सफल उपचार संभव है।
 
वेबीनार का उद्घाटन करते हुए निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर ने कहा कि ग्लूकोमा के लक्षणों और इसके उपचार को आसान भाषा में आम लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है जिससे सभी इसके दुष्प्रभावों के बारे में अवगत हो सके। उन्होंने इसके लिए समाज के सभी वर्गों के साथ मिलकर संयुक्त रणनीति बनाने पर जोर दिया।
 
विभागाध्यक्ष डॉ. सोमेन मिश्रा ने बताया कि भारत में लगभग 11.2 मिलियन 40 वर्ष या अधिक आयुवर्ग के ग्लूकोमा रोगी हैं। यदि इसका शुरूआत में ही पता लगा लिया जाए तो इसका उपचार संभव है। एक बार एडवांस स्टेज में पहुंच जाने के बाद ग्लूकोमा के दुष्प्रभावों को दूर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक तिहाई मामलों को समय रहते चिन्हित नहीं किया जा सकता है। इतने ही रोगी या तो सही उपचार नहीं ले पाते या पूरा उपचार नहीं करते जिससे ग्लूकोमा की वजह से अंधत्व की स्थिति हो जाती है। डॉ. नीता मिश्रा ने ग्लूकोमा के लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. अंकुर श्रीवास्तव ने ग्लूकोमा के उपचार के विभिन्न चरणों के विषय में बताया। डॉ. विजया साहू ने ग्लूकोमा के मेडिकल मैनेजमेंट के बारे में जानकारी दी। वेबीनार में डॉ. लुबना खान ने भी भाग लिया।
 
विभाग की ओर से ग्लूकोमा सप्ताह के अंतर्गत झीठ स्थित ग्रामीण स्वास्थ्य प्रशिक्षण केंद्र पर रोगियों की स्क्रिनिंग की गई। इसमें 300 से अधिक रोगियों का चेकअप किया गया। विभाग में विभिन्न प्रतियोगिताओं आयोजित की गई। इसके साथ ही पोस्टर प्रजेंटेशन के माध्यम से रोगियों को जागरूक बनाया गया।
 
कालामोतिया क्या है?
इस बीमारी में आंख के अंदर का दबाव बढ़ जाता है जिससे आंख की नस प्रभावित होती है। इससे बाहरी दृष्टि क्षेत्र कम हो जाता है और मरीज में अंधत्व तक हो सकता है।

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