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दीपिका पादुकोण: मॉडल, ऐक्टर, विवाद से लेकर कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल के रेड कार्पेट तक
19-May-2022 1:57 PM
दीपिका पादुकोण: मॉडल, ऐक्टर, विवाद से लेकर कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल के रेड कार्पेट तक

वंदना

मैं अपनी लाइफ़ के ना हर सीन में स्टार हूँ"- 2010 में हिंदी फ़िल्म 'ब्रेक के बाद' का ये डायलॉग दीपिका पादुकोण का है. आज 12 साल बाद ये फ़िल्मी डायलॉग हक़ीकत बन चुका है.

18 साल की एक नई नवेली मॉडल जो टीवी विज्ञापनों में दिखती थी, हिमेश रेशमिया के म्यूज़िक वीडियो में नज़र आती थी, आज वही दीपिका पादुकोण हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की टॉप हीरोइनों में से एक हैं, हॉलीवुड में काम कर चुकी हैं. उनका अपना प्रोडक्शन हाउस है. टाइम मैगज़ीन की टाइम इम्पैक्ट 100 की लिस्ट में इस साल दीपिका का नाम है.

दीपिका की छवि आज न सिर्फ़ मशहूर फ़िल्मस्टार के तौर पर है, बल्कि एक ऐसी कलाकार के तौर पर भी है जो फ़िल्मों से बाहर कई मुद्दों पर अपनी सोच रखती हैं.

जब 2020 में जेएनयू में छात्रों पर हमले की घटना हुई तो वो यूनिवर्सिटी जाकर छात्रों के साथ खड़ी नज़र आती हैं.

वो खुलकर अपने डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ पर बात करती हैं. कई बार फ़िल्म सेट पर अपने साथ थेरेपिस्ट रखती हैं और छिपाती नहीं हैं. जैसे हालिया फ़िल्म 'गहराइयां' में उन्होंने किया.

फ़िल्मों की बात करें तो उनकी इमेज एक मेहनती और प्रोफ़ेशनल कलाकार की है.

ज़रा सोचिए फ़िल्म का सेट जहाँ एक बड़ी स्टार अपने साथ पेंसिल बॉक्स लेकर आती हैं, रूलर और पेंसिल से अपने डायलॉग के नीचे लकीरें खींचती हैं, हर किरदार को एक अलग रंग देकर सबके डायलॉग को अलग रंगों में ढालती हैं ताकि जब वो स्क्रिप्ट देखे तो हर किरदार अपने रंग लिए उनकी आँखों के सामने रहे.

कुछ ऐसी ही है दीपिका पादुकोण और इस वक़्त वाक़ई दीपिका अपनी लाइफ़ के हर सीन में स्टार हैं.

कान फ़ेस्टिवल की ज्यूरी में शामिल
उनके स्टारडम को नया ग्लोबल आयाम मिला है, इस बार के कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल से. इस बार की ज्यूरी में जिन कलाकारों को रखा गया है उनमें दीपिका पादुकोण भी शामिल हैं.

भारत से अब तक सिर्फ़ ऐश्वर्या राय, शेखर कपूर, विद्या बालन, नंदिता दास और शर्मिला टैगौर ही ज्यूरी का हिस्सा रही हैं.

दीपिका की कहानी भी किसी हिंदी फ़िल्म के स्क्रीनप्ले जैसी ही है. एक स्क्रीनप्ले जिसमें एंट्री धमाकेदार है, लेकिन कहानी फिर थोड़ी ढलान की ओर जाने लगती है और जैसे-जैसे फ़िल्म क्लाइमेक्स की ओर जाने लगती है, स्क्रीनप्ले में ज़बर्दस्त एनर्जी आती है. एक धमाकेधार री-एंट्री होती है. दीपिका की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

'ओम शांति ओम' से 'गहराइयाँ' तक
18 साल की दीपिका को लोगों ने सबसे पहले बतौर मॉडल टीवी पर लिरिल और क्लोज़ अप के विज्ञापनों में देखा.

देखने वालों को शायद हिमेश रेशमिया का म्यूज़िक वीडियो भी याद हो जब हिमेश बड़े स्टार थे और इंडस्ट्री में नई-नई आई दीपिका ने उसमें काम किया था.

और फिर हिंदी फ़िल्मों में उनकी धमाकेधार एंट्री हुई जब 2007 वो शाहरुख़ के साथ 'ओम शांति ओम' में नज़र आईं- शांति और सैंडी के डबल रोल में.

बबलगम के बुलबुले बनाती सैंडी के 'ओम शांति ओम' के उस रोल से लेकर फ़िल्म 'गहराइयाँ' की अलिशा तक दीपिका ने अपनी रेंज और काबिलियत साबित की है.

उनके अलग-अलग किरदारों में हर तरह के रंग और तेवर देखने को मिले हैं.

कभी वो फ़िल्म 'राम लीला' (2013) की तीखे तेवर वाली लीला हैं जो कहती हैं ''बेशर्म, बदतमीज़, ख़ुदगर्ज़ होता है, पर प्यार तो ऐसा ही होता है.''

तो कभी वो प्यार के फ़साने को लेकर कशमकश में डूबी फ़िल्म 'तलाश' (2015) की तारा हैं जो सोचती है, ''एक दिन मुझे पता लगा था कि सैंटा क्लॉज़ नहीं होता, बहुत बुरा लगा था. पर क्या करें होता नहीं है. ये लव, ये सोलमेट्स ऐसा कुछ होता नहीं है."

और कभी प्यार में डूबी मस्तानी हैं .जब 'बाजीराव मस्तानी' (2015) में बाजीराव (रणवीर सिंह) की पत्नी काशीबाई (प्रियंका) मस्तानी को पति छीन लेने का उलाहना देती है तो प्यार में डूबी मस्तानी ( दीपका) कहती है -''उन्होंने हमारा हाथ पकड़ा पर आपका छोड़ा तो नहीं.''

और कभी वो नर्म, नाज़ुक पर अंदर से मज़बूत 'ये जवानी है दीवानी' की नैना हैं जो रहती तो आज में है लेकिन उसके दिल के कोने में कहीं बीते हुए कल की यादें दबी हैं जो मानती है कि ''यादें मिठाई के डिब्बे की तरह होती हैं, एक बार खुला तो सिर्फ़ एक टुकड़ा नहीं खा पाओगे.''
फ़ाइटर दीपिका

'पीकू', 'छपाक', 'गहराइयां', 'पद्मावत', 'हैप्पी न्यू ईयर', 'चेन्नई एक्सप्रेस' पिछले दस सालों में हर तरह की फ़िल्में और रोल दीपिका ने निभाए और ख़ुद को साबित किया. पर दीपिका की ये कामयाबी धीमी आँच पर हांडी में पकती खीर की तरह है, जो धीरे-धीर खौलती है और फिर अपनी मिठास घोलती है.

हमने दीपिका का वो दौर भी देखा है जब उनकी फ़िल्में नहीं चल पा रही थीं. निजी ज़िंदगी में वो बुरे दौर से गुज़र रही थीं. अपने दक्षिण भारतीय लहजे के कारण शुरू-शुरू में कई लोग उन्हें अपनी फ़िल्मों में लेना भी नहीं चाहते थे.

एकाध फ़िल्मों को छोड़ दें तो 2008 से लेकर 2012 के बीच दीपिका ने कुछ ऐसी फ़िल्में कीं जिसके बाद फ़िल्म चुनने की उनकी समझ पर सवाल उठने लगे.

लेकिन अपनी मेहनत, लगन और प्रोफ़ेशनल रवैये से दीपिका ने ज़बर्दस्त वापसी की.

बिल्कुल एक एथलीट की तरह जो मैच में अच्छी शुरुआत करता है, पर उसे पटखनी पर पटखनी मिलती है और वो रेस में पिछड़ने लगता है, लेकिन हार कभी नहीं मानता. दीपिका उसी खिलाड़ी की तरह हैं.
बैडमिंटन चैम्पियन दीपिका

दरअसल दीपिका सच में खिलाड़ी ही हैं. डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में 5 जनवरी 1986 को जन्मी दीपिका नेशनल लेवल की बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं.

दीपिका के पिता प्रकाश पादुकोण भारत ने नंबर वन पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी थे, तो उसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए दीपिका ने भी इसे गेम को अपनाया और राष्ट्रीय स्तर पर खेलीं. बरसों तक उनका रूटीन था तड़के सुबह उठकर प्रैक्टिस के लिए और फिर स्कूल जाना.

लेकिन धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी मॉडलिंग में होने लगी और उन्होंने स्कूल के समय से ही बतौर मॉडल काम करना शुरू कर दिया.

लेकिन वो एथलीट वाली ट्रेनिंग उनके फ़िल्मी करियर में भी देखने को मिलती है, ख़ासकर तब जब कि उन्होंने नाकामयाबी वाला दौर भी देखा है.

हार्पर बाज़ार पत्रिका को दिए इंटरव्यू में दीपिका ने कहा था, " एथलीट होने के नाते आप आख़िरी दम तक लड़ते हो. जब आप मैच खेलते हो तो आप गेम बीच में नहीं छोड़ देते ना ? आप अंत तक खेलते हैं क्योंकि क्या पता आख़िर में क्या हो जाए."

जब दीपिका ने बताया मैं डिप्रेशन में थी

ऐसा नहीं है कि स्टार वाली इमेज लिए दीपिका ने कभी ख़ुद को कमज़ोर या अकेला खड़ा नहीं पाया.

2015 में दीपिका ने सबको चौंका दिया था, जब उन्होंने बताया था कि वे डिप्रेशन की शिकार थीं और थेरेपी ले रही थीं.

2019 में बीबीसी से बात करते हुए दीपिका ने बताया था, "2013 में मेरी फ़िल्में हिट रही थीं. वो मेरे लिए अच्छा लेकिन बहुत व्यस्त साल था. मुझे याद है 15 फ़रवरी 2014 की सुबह जब मैं उठी तो एक अजीब-सा एहसास हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आया कि मेरे साथ क्या हो रहा है. मैं कभी भी रोने लगती थी. बहुत लो महसूस किया करती थी.''

वह बताती हैं, '' मैं अपने होने पर ही सवाल उठाने लगी थी. मुझे पता ही नहीं था कि ये दरअसल डिप्रेशन है. मैंने दवाई नहीं ली क्योंकि मैंने सुना था कि इनकी लत लग जाती है. मैं बिल्कुल जागरुक नहीं थी. एक स्टिग्मा था डिप्रेशन को लेकर. मैं किसी से ये सब बता नहीं पा रही थी. इसलिए मैंने सोचा कि मुझे इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए.''

इसके बाद दीपिका ने न सिर्फ़ डिप्रेशन पर बात करनी शुरू की बल्कि 2015 में 'लिव लव लाफ़' नाम की एक संस्था भी बनाई ताकि मेंटल हेल्थ को लेकर जागरुकता बढ़ सके और लोगों को मदद मिल सके.
'फ़िल्म क्रू के लिए मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हो'

दीपिका ख़ुद प्रोड्यूसर भी हैं और अपने इंटरव्यू में दीपिका कई बार ये कह चुकी हैं कि फ़िल्म सेट पर सबके लिए एक मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट होना चाहिए जो फ़िल्म क्रू की मदद कर सके और सबका वर्क लाइफ़ बैलेंस होना चाहिए.

दीपिका उन चंद अभिनेत्रियों में शामिल हैं जो प्रोडक्शन में भी काम कर रही हैं. दीपिका के प्रोडक्शन हाउस का नाम है 'का (Ka) प्रोडक्शन्स'. मिस्र में इसका मतलब होता है रूह, ख़ासकर वो हिस्सा जो आप चले जाने के बाद पीछे छोड़ जाते हैं.

अपने प्रोडक्शन हाउस तले उन्होंने एसिड अटैक पर बनी फ़िल्म 'छपाक' बनाई है और '83' भी.

दीपिका, राजनीति और विवाद

फ़िल्मों से परे, राजनीति में दीपिका का दख़ल तो नहीं रहा, लेकिन जब 2020 में वो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों से मिलने गई थीं तो कई लोगों ने इसे एक तरह का राजनीतिक क़दम बताया था.

दीपिका ने तब कहा था, "छात्रों के साथ जो हुआ उसे देखकर मुझे तकलीफ़ हुई. मैं उम्मीद करती हूँ कि ये सामान्य बात न बन जाए. ये डरावना है. हमारे देश की नींव ऐसी नहीं थी."

किसी ने दीपिका की हिम्मत की दाद दी थी तो कइयों ने विरोध भी किया.

जैसा किसी भी बड़ी हस्ती के साथ होता है, तारीफ़ के साथ कई बार विवाद से भी दीपिका का सामना हुआ है.

2015 में दीपिका ने वोग मैगज़ीन के लिए #mychoice नाम का वीडियो शूट किया था. इस वीडियो में वो औरतों के हक़ और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने की बात करती हैं.

वीडियो में दीपिका ने ये भी कहा था "शादी के बाहर यौन संबंध बनाने, शादी के बग़ैर यौन संबंध बनाने और शादी ना करने की मर्ज़ी उनकी है."

तब कई लोगों ने दीपिका की आलोचना की थी कि महिलाओं के हक़ की बात करना एक बात है, लेकिन शादी के बाहर यौन संबंध बनाने की बात को जायज़ ठहराना कहाँ तक सही है फिर वो पुरुष हो या औरत.

फ़िल्मों की बात करें तो 'कॉकटेल' जैसी फ़िल्म के चयन को लेकर भी सवाल उठे. ये फ़िल्म हिट रही थी और दीपिका के करियर का टर्निंग प्वॉइंट भी. लेकिन कई फ़िल्म समीक्षकों ने इसे रिग्रेसिव फ़िल्म बताया था और एक फ़ीमेल आइकन होने के नाते कइयों ने सवाल भी उठाए कि क्या दीपिका को ऐसा रोल करना चाहिए था जिसमें वो अपनी पहचान और आज़ादी खोने की क़ीमत पर एक संस्कारी लड़की बनना चाहती है -सिर्फ़ एक लड़के के लिए.

क्यों दीपिका ने कहा 'ये मेरा पैसा है?'
हालांकि सवाल उठाने वालों को जवाब देना भी दीपिका जानती हैं. जब रणवीर सिंह से शादी के बाद उन्होंने फ़िल्म 'छपाक' बनाई थी तो एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया था, ''आपने फ़िल्म प्रोड्यूस की है, देखा जाए तो रणवीर भी प्रोड्यूसर बन गए क्योंकि घर का ही पैसा है.''

इस बार दीपिका ने कहा था कि ''माफ़ करिए जनाब ये मेरा पैसा है!''

ये मेरा पैसा है...ये कह पाने तक का सफ़र ही दीपिका का हासिल माना जा सकता है. सफ़र जो मॉडलिंग और छोटे विज्ञापनों से शुरू हुआ था.

टाइम इम्पैक्ट की लिस्ट में शामिल

विज्ञापनों से जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा याद आता है. क्लोज़-आप वाला विज्ञापन दीपिका के बिल्कुल शुरुआती दौर का था जिसमें वो टूथपेस्ट को देखकर उसके साथ डांस करती हैं. शूटिंग के दौरान टूथपेस्ट ट्यूब दरअसल थी ही नहीं. शूटिंग के बाद वो एनिमेट किया गया था लेकिन जब शूटिंग हो रही थी तो उन्हें दरअसल एक डंडे को देखकर अपनी आँखों की मूवमेंट करनी थी जिस पर निशान लगे हुए थे कि आँखें कैसे हिलानी हैं.

ये शायद दीपिका के हुनर और कैमरा के सामने सहजता की शुरुआती निशानी थी. आज वही दीपिका दुनिया के बड़े ब्रांड के लिए विज्ञापन करती हैं. 'लुई वितों' जैसे ब्रांड के लिए काम करने वाली पहली बॉलीवुड ऐक्ट्रेस हैं.

2018 में वो सबसे प्रभावशाली लोगों की टाइम की सूची में शामिल थीं तो 2022 में टाइम-इम्पैक्ट-100 की लिस्ट में. यानी प्रभाव से इम्पैक्ट का सफ़र दीपिका ने चंद सालों में तय किया है.

ग्लैमर से इम्पैक्ट तक
प्रभाव से इंम्पैक्ट का ये सफ़र उनके किरदारों में भी दिखता है. 'पीकू' की उस बेटी में दिखता है जो सिंगल है. वो रिश्ते बनाकर भी नहीं बनाती और अपने पिता की देखभाल के लिए उनके साथ रहती है ताकि वो अकेले न रह जाएँ.

'छपाक' की उस मालती में वो इम्पैक्ट दिखता है जो एसिड अटैक के बाद बिखर जाती है. एक सीन में हमले के बाद टूट चुकी मालती (दीपिका) अपना सारा पुराना सामान, चमकीले कपड़े, झुमके फेंक देना चाहती है.

जब माँ टोकती है तो मालती तपाक से कहती है, "नाक नहीं है न कान है, झुमका कहाँ पहनूँगी?"

लेकिन वो ज़िंदगी का सफ़र फिर शुरू करती है. मालती के चेहरे पर एसिड अटैक पीड़िता का दर्द और उसकी तड़प तो दिखती है लेकिन वो लड़की कभी भी बेचारी नहीं दिखती.

ऐसे किरदारों का सफ़र अपने साथ लिए दीपिका पादुकोण आज कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल तक आ पहुँची है. ओम शांति ओम से कान तक...

तो यहाँ वही डायलॉग याद आता जो शुरू में लिखा था- मैं अपनी लाइफ़ के ना हर सीन में स्टार हूँ" (bbc.com)

 

 

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