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कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेज़ी अख़बार द टेलीग्राफ़ ने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को विज्ञापनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के अत्यधिक इस्तेमाल से जुड़ी एक याचिका पर नोटिस जारी किया गया है.
टेलीग्राफ़ लिखता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को एक नोटिस जारी किया है. ये नोटिस एक जनहित याचिका के मामले में जारी किया गया है जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का सरकारी विज्ञापन में अत्यधिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है.
याचिका में कोविड वैक्सीन सर्टिफ़िकेट, राशन कार्ड और सरकार की ओर से मिलने वाले अनाज की बोरियों पर प्रधानमंत्री की तस्वीर होने का ज़िक्र किया गया है.
'कॉमन कॉज़' नाम के एक एनजीओ ने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि सरकारी एडवरटोरियल को ख़बर की तरह पेश किया जा रहा है.
एनजीओ की ओर से मामले की वकालत कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत किशोर ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के साल 2015 में जारी किए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही है जिसे कोर्ट ने एनजीओ कॉमन कॉज़ की ही एक याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया था.
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी विज्ञापनों में टैक्स भरने वालों के पैसे का इस्तेमाल राजनेताओं का 'पर्सनैलिटी कल्ट' बनाने में नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने ये भी कहा कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायधीश, सिर्फ़ इन्हीं तीन संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की तस्वीर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में बदलाव करते हुए राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों की भी तस्वीर को सरकारी विज्ञापन में इस्तेमाल करने की इजाज़त दी थी.
लेकिन इस याचिका में कहा गया है, " यह देखा गया है कि इन पदाधिकारियों की तस्वीरों का इस्तेमाल सरकारी विज्ञापनों में 'पर्सनैलिटी प्रोजेक्शन' के लिए बहुत आसानी से किया जा रहा है "
"ये बैचेन करने वाली बात है कि जो अनाज़ लोगों में बांटे जाते हैं उनकी बोरियों पर भी प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाई जाती है. लोगों को दिए जाने वाले वैक्सीन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की तस्वीर होती है. राज्यों के मुख्यमंत्री भी उन्हें मिली हुई छूट का दुरुपयोग कर रहे हैं. "
एनजीओ का आरोप है कि राज्य सरकारें वो विज्ञापन छपवा रही हैं जो उनके कार्यक्षेत्र से बाहर हैं और ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया जा रहा है ताकि नेता के व्यक्तित्व को स्थापित किया जा सके.
शिकायत ये भी की गई है कि चुनावों से पहले सरकारी विज्ञापन छापा जा रहा है, इसका दुरुपयोग होने की संभावना है और अन्य पार्टियों को यह एक असमान चुनावी मैदान देता है.