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असम से वन भैंसा लाने पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई
22-Mar-2023 4:31 PM
असम से वन भैंसा  लाने  पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 22 मार्च।
छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा असम से चार और मादा वन भैंसा लाने पर आज छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गौतम भादुड़ी एवं न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की युगल पीठ ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है।
छत्तीसगढ़ वन विभाग ने तीन वर्ष पूर्व अप्रैल 2020 में असम के मानस टाइगर रिजर्व से एक नर और एक मादा सब एडल्ट को पकडक़र छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण में 25 एकड़ के बाड़े में रखा है। वन विभाग की योजना यह है कि इन वन भैंसों को बाड़े में रखकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा। इसके विरोध में रायपुर के नितिन सिंघवी ने जनवरी 2022 में जनहित याचिका दायर की थी, जो लंबित है। वन भैसा वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम के शेड्यूल एक का वन्य प्राणी है।

जनहित याचिका के लंबित रहने के दौरान होली पूर्व मार्च 2023 में चार और मादा वन भैंसा लाने के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग ने असम टीम भेजी है। कोर्ट ने आज अगले आदेश तक असम से अगले आदेश तक असम से चार वन भैंसा आने पर रोक लगा दी है।
छत्तीसगढ़ में जब वन भैसे लाए जाने थे, तब छत्तीसगढ़ वन विभाग ने योजना बनाई थी कि असम से मादा वन भैसा लाकर, उदंती के नर वन भैसों से नई जीन पूल तैयार करेंगे। तब भारत सरकार की सर्वोच्च संस्था भारतीय वन्यजीव संस्थान ने दो बार आपत्ति दर्ज की। उसने कहा कि  छत्तीसगढ़ और असम के वन भैंसा के जीन को मिक्स करने से छत्तीसगढ़ के वन भैसों की जीन पूल की विशेषता बरकरार नहीं रखी जा सकेगी। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बताया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की जीन पूल विश्व में शुद्धतम है। सीसीएमबी नामक डीएनए जांचने वाली संस्थान ने भी कहा है कि असम के वन भैसों में भौगोलिक स्थिति के कारण आनुवंशिकी फर्क है। सर्वोच्च न्यायालय ने टीएन गोदावरमन प्रकरण में आदेश किया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की शुद्धता बरकरार रखी जाए।

असम के वन भैंसा दलदली इलाके में, तराई के नीचे के जंगलों में, अमूमन साल भर सामान्य और कम तापमान में रहते हैं, जबकि छत्तीसगढ़ के वन भैसें कठोर भूमि पर और अत्यधिक गर्मी में रहते हैं। इन्हीं सब कारणों से एनटीसीए ने सैदान्तिक सहमति देते वक्त असम वन विभाग को कहा था कि वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण में भेजने के पूर्व इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। बाद में एनटीसीए ने असम वन विभाग को याद भी दिलाया कि वन भैसों के संबंध में इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। इसके बावजूद भी छत्तीसगढ़ वन विभाग असम से दो वन भैसों पकड़ कर लेकर आ गया और अब 4 को पकडऩे फिर चला गया।

सिंघवी ने बताया कि इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट और नेचुरल हैबिटेट रिपोर्ट अलग-अलग होती है। बारनवापारा छत्तीसगढ़ के वन भैसों का नेचुरल हैबिटेट हो सकता है परंतु असम से वन भैसों आने के पूर्व इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए, ताकि यह पता लग सके कि दूसरी जलवायु में रहने वाले वन भैंसा छत्तीसगढ़ की जलवायु में रह पाएंगे या नहीं? यह रिपोर्ट आज तक नहीं दी गई है।

उन्होंने बताया कि असम का मानस टाइगर रिजर्व, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के अधीन आता है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 38-ओ के तहत टाइगर रिजर्व के अन्दर एनटीसीए की बिना अनुमति के कोई जानवर भी नहीं पकड़ा जा सकता। एनटीसीए की तकनीकी समिति ने असम के वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में पुनर्वासित करने के करने के पूर्व पारिस्थितिकी अर्थात इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट मंगवाई थी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि असम के वन भैसों छत्तीसगढ़ में रह सकते हैं कि नहीं? परन्तु छत्तीसगढ़ वन विभाग बिना इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी अध्यन कराए और एनटीसीए को रिपोर्ट बिना वन भैसों को ले कर आ गया है।

छत्तीसगढ़ वन विभाग को भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और छत्तीसगढ़ शासन ने जो अनुमति दी है, वह वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 12 बीबी1  के तहत है। इसके अनुसार शेड्यूल  एक के वन्य प्राणी को ट्रांसलोकेट करने उपरांत वापस समुचित प्राकृतिक हैबिटेट में छोड़ा जाना अनिवार्य है, जबकि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इन्हें बाड़े में कैद कर रखा है।

सिंघवी ने कहा कि वन विभाग द्वारा इन वन भैसों को आजीवन बाड़े में रखा जाना है। असम से लाए गए वन भैसों से पैदा हुए वन भैसों को भी जंगल में नहीं छोड़ा जायेगा, यानि बाड़े में ही संख्या बढाई जाएगी। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने वन में वापस वन भैसों को छोडऩे ने नाम से अनुमति ली और उन्हें प्रजनन के नाम से बंधक बना रखा है। यह वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध है। बंधक बनाये रखने के कारण कुछ समय में वन भैसे अपना स्वाभाविक गुण खोने लगते हैं।

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