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अहमदाबाद, 30 अप्रैल। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहली बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के चार महंतों को महामंडलेश्वर बनाया है। इन चारों महंतों को यहां गुजरात में आयोजित एक कार्यक्रम में महामंडलेश्वर बनाया गया।
कार्यक्रम के मुख्य आयोजकों में से एक, राजेश शुक्ला ने कहा कि 1,300 वर्षों में यह पहली बार है कि हिंदू धर्म में समानता की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के संतों को 'महामंडलेश्वर' की उपाधि प्रदान की गई है।
नेशनल इंटेलेक्चुअल एडवाइजरी के मुख्य रणनीतिकार एवं एक गैर सरकारी संगठन ‘वन मोर चांस’ के प्रमुख ट्रस्टी शुक्ला ने कहा, "हमने हिंदू धर्म या 'सनातन धर्म' को भाषा और क्षेत्रवाद के बंधनों से मुक्त करने के लक्ष्य के साथ चार साल पहले यह पहल शुरू की थी। हमें ऐसे महामंडलेश्वर चाहिए जो समाज, धर्म और देश के लिए काम करें। हम सब एकसाथ आए और आज हमारी मेहनत रंग लायी।’’
शुक्ला ने कहा, ‘‘गुजरात के जिन चार व्यक्तियों को आज महामंडलेश्वर बनाया गया, वे समाज के कमजोर वर्गों से थे। यह 1,300 वर्षों में पहली बार है जब अखाड़ा परिषद ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्तियों को महामंडलेश्वर बनाया है। यह नयी परंपरा आज शुरू हुई है और मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि हम अगले 3 से 4 वर्षों में ऐसे 100 महामंडलेश्वर बनाएंगे''
नये महामंडलेश्वरों में गोंडल के दासी जीवन की जगह के संत श्री शानलदासजी मंगलदासजी, भावनगर के राजपारा में कबीर मंदिर के संत श्री शामलदासजी प्रेमदासजी, भावनगर के वाल्मीकि अखाड़े के संत श्री किरणदासजी और सुरेंद्रनगर में थान गांव में संत अक्कल साहेब समाधि स्थल के संत श्री कृष्णवदनजी महाराज शामिल हैं।
साइंस सिटी के पास आयोजित कार्यक्रम में पट्टाभिषेक का अनुष्ठान अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी जी महाराज और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव और जूना अखाड़ा इंटरनेशनल के संरक्षक महंत हरिगिरि जी महाराज ने किया। (भाषा)