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![राजपथ-जनपथ : देखें आगे क्या होता है राजपथ-जनपथ : देखें आगे क्या होता है](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1718541150hadhi_Chauk_NEW_1.jpg)
देखें आगे क्या होता है
सीधे सरल और लो-प्रोफाइल में रहने वाले तोखन साहू का नाम केन्द्रीय मंत्री बनने वालों की सूची में आया, तो प्रदेश भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेता चौंक गए थे। इसकी पर्याप्त वजह भी थी। पहली यह कि तोखन पहली बार सांसद बने हैं। जबकि मंत्री पद की दौड़ में सीनियर नेता और अनुभवी बृजमोहन अग्रवाल, विजय बघेल और संतोष पाण्डेय शामिल थे।
बृजमोहन के कुछ उत्साही समर्थकों ने तो आतिशबाजी की तैयारी कर रखी थी। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सदन, और छत्तीसगढ़ भवन में रूके तमाम सांसद एक-दूसरे के संपर्क में थे। और उनके करीबी लोग शपथ ग्रहण के एक दिन पहले तक पीएमओ से फोन आने का इंतजार कर रहे थे।
चर्चा है कि शपथ ग्रहण के दिन सुबह दो सांसद सीएम विष्णुदेव साय से मिलने पहुंचे। सीएम ने उनसे पूछ लिया कि क्या किसी के पास शपथ के लिए फोन आया है? उस समय तक किसी के पास फोन नहीं आया था। तब साय ने सांसदों से अनौपचारिक चर्चा में संभावना जता दी थी कि हाईकमान कोई नया नाम आगे लाकर चौंका सकती है। सीएम का कथन बाद में सही साबित भी हुआ।
एक चर्चा यह भी है कि हाईकमान ने पहले जांजगीर-चांपा की महिला सांसद कमलेश जांगड़े के नाम पर भी विचार किया गया था। मगर बाद में तोखन के नाम पर मुहर लग गई। बृजमोहन, संतोष और विजय बघेल को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने की एक और वजह सामने आई है, उसके मुताबिक सदन में अकेले भाजपा को बहुमत नहीं मिल पाया है। इस बार विपक्ष काफी ताकतवर है।
ऐसे में सदन के भीतर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए तेज तर्रार सांसदों का होना जरूरी है। बृजमोहन, संतोष और विजय इसमें फिट बैठते हैं। पिछले कार्यकाल में झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे लोकसभा में सत्ता पक्ष की तरफ से अकेले मोर्चा संभाले हुए थे। इस बार बृजमोहन और संतोष व विजय की आवाज भी सुनाई देगी। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
इनको कौन लेकर आया?
भाजपा के रणनीतिकार कुछ भूतपूर्व कांग्रेस नेताओं से परेशान हैं। विशेषकर बलौदाबाजार में आगजनी की घटना के बाद से परेशानी और बढ़ गई है। भाजपा में आने के बाद कुछ भूतपूर्व कांग्रेसियों के हौसले बुलंद हैं, और वो काफी पावरफुल भी हो चुके हैं। इनकी गतिविधियों को लेकर कई शिकायतें प्रदेश भाजपा के प्रमुख लोगों तक पहुंच चुकी है, लेकिन इस पर अंकुश नहीं लग पाया है।
अब भाजपा के अंदरखाने में यह पूछा जाने लगा है कि इन विवादित कांग्रेसियों को पार्टी में किसने शामिल कराया? एक मंत्री तो पार्टी के प्रमुख नेताओं से मिलकर दो-तीन भूतपूर्व कांग्रेसियों का नाम लेकर पूछताछ भी की। पदाधिकारियों ने विवादित नेताओं को भाजपा में शामिल कराने का ठीकरा पूर्व प्रभारी पर फोड़ दिया। चाहे कुछ भी हो, भूतपूर्व कांग्रेसियों की मौज हो गई है, और इस पर लगाम लगाने में पार्टी के रणनीतिकार फिलहाल असफल दिख रहे हैं।
सबसे मजबूत उम्मीदवार
यूं तो एक व्यक्ति के जीवन में भाग्य की अहम भूमिका मानी गई है। राजनीति में तो यह शत प्रतिशत फिट बैठती है। कब कौन कितने बड़े पद पर चुन लिया जाए, बिठा दिया जाए पता नहीं चलता। कर्मचारी से मंत्री तक बना दिए जाते हैं। हर बार की तरह ऐसा इस बार ऐसा हुआ और होने जा रहा है। प्रदेश के एक मंत्री कभी एक कर्मचारी के नाते पूर्व सांसद के निज सहायक रहे हैं। और अब चर्चा है कि एक और निज सहायक, मंत्री नहीं तो विधायक हो सकते हैं।
हालांकि राजधानी की इस सीट से 40 दावेदार हैं। इनमें मंत्री जी के सगे भाई भी शामिल हैं। लेकिन उन्हें बी फार्म नहीं मिलेगा यह भी तय ही है। बचे 38 में संघर्ष शुरू हो चुका है। मंत्री जी, जिसे चाहेंगे उसकी ही टिकट पक्की। अब तक की हलचल में निज सहायक प्रमुख दावेदार, पसंदीदा बनकर उभरे हैं। इलाके के 14 पार्षदों का समर्थन पत्र भी तैयार है। इतना ही नहीं कुछ दावेदार,उनके लिए बैठने को भी तैयार हैं। अब देखना यह है कि भाई साहब लोग क्या चाहेंगे।
दहशत का दूसरा दौर..
बलौदाबाजार हिंसा-आगजनी में अब तक 130 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिन्हें भीम आर्मी और उससे मिलते-जुलते संगठनों का बताया जा रहा है। कहा गया है कि मोबाइल फोन पर ली गई तस्वीरों, वीडियो व सीसीटीवी फुटेज के विश्लेषण से इनकी पहचान हुई। जब से मोबाइल और सीसीटीवी आए हैं, किसी भीड़ में शामिल लोगों की पहचान आसान हो गई है। कानून तोडऩे वालों को शिकंजे में लेना आसान हो गया है। कुछ दशक पीछे जाएं तो ऐसी घटनाओं के बाद पूरे इलाके में पुलिस की दहशत फैल जाती थी। लोग फंसाये जाने के डर से अपने ठिकाने से फरार हो जाते थे। जिन्हें फंसाया जाता था वे बच निकलने का रास्ता ढूंढते थे। ऐसा नहीं है कि वह दौर पूरी तरह खत्म हो गया। बलौदाबाजार हिंसा के जिम्मेदार लोगों पर सख्ती बरतने का सरकार से आदेश हो चुका है। 10 जून की सभा में पूरे प्रदेश से लोग आए थे। इसलिए तलाशी बलौदाबाजार के बाहर भी हो रही है। अब यह आरोप लग रहा है कि दोषियों को पकडऩे के नाम पर बेकसूर लोगों को प्रताडि़त किया जा रहा है। जिनका घटना से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं, उनको हिरासत में लिया जा रहा है। महासमुंद से इसके विरोध में आवाज उठी है। यहां की सतनामी महिला प्रकोष्ठ का कहना है कि पुलिस गांव-गांव घूमकर निर्दोष लोगों को पकड़ रही है। इससे समाज में भय का माहौल बना हुआ है, साथ ही समाज की छवि भी खराब हो रही है। महिला पदाधिकारियों ने निर्दोष लोगों की तुरंत रिहाई की मांग भी की है। लेकिन क्या यह इन महिलाओं की अकेली शिकायत है? बलौदाबाजार और प्रदेश के दूसरे जिलों में भी तो ऐसा नहीं हो रहा है?
करतब नहीं, विवशता है...
कांकेर के वन विभाग के ट्रैप कैमरे में एक तेंदुआ भागता हुआ कैद हुआ है, जिसने बाल्टी को मुंह में दबा रखा है। इस तेंदुए के बारे में कहा गया है कि कुछ दिन पहले उसने एक झोपड़ी का दरवाजा तोड़ दिया था और 75 साल की वृद्ध महिला को उठाकर ले गया था। अगले दिन महिला की क्षत-विक्षत लाश मिली थी। बीते मई महीने में एक पालतू कुत्ते का शिकार करने के लिए दौड़ते समय तेंदुआ एक कुंए में जा गिरा था। वन विभाग ने उसका रेस्क्यू किया। इसके करीब 3 माह पहले एक तेंदुआ खलिहान में सोती हुई महिला को उठाकर ले गया था। इन घटनाओं की वजह बताई जा रही है कि इन्हें जंगल में अपने लिए भोजन और पानी दोनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और वे मानव बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं।