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पीएम मोदी का संघर्ष : वर्तमान और भावी पीढ़ियों को याद दिला रहा, 'आपातकाल के वो काले दिन'
25-Jun-2024 3:32 PM
पीएम मोदी का संघर्ष : वर्तमान और भावी पीढ़ियों को याद दिला रहा, 'आपातकाल के वो काले दिन'

नई दिल्ली, 25 जून । 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगाई थी। इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा, "आपातकाल के काले दिन हमें याद दिलाते हैं कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने बुनियादी स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया और भारत के संविधान को कुचल दिया, जिसका हर भारतीय बहुत सम्मान करता है।" इसी बीच पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के 'मोदी आर्काइव' अकाउंट के पोस्ट को रिपोस्ट भी किया। इस पोस्ट में पीएम मोदी इमरजेंसी के दौरान मंच से भाषण देते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस दौरान उन्होंने एक कविता भी पढ़ी थी।

पीएम मोदी ने अपनी पुरानी फोटो एक्स पर शेयर करते हुए लिखा, ''डार्क डेज ऑफ इमरजेंसी बहुत ही चुनौतीपूर्ण समय था। उन दिनों, सभी क्षेत्रों के लोग एक साथ आए और लोकतंत्र पर इस हमले का विरोध किया था। मुझे भी उस दौरान विभिन्न लोगों के साथ काम करने के कई अनुभव मिले। यह थ्रेड उस समय की एक झलक दिखाता है।'' दरअसल, 'मोदी आर्काइव' नाम के अकाउंट से पीएम मोदी की इमरजेंसी के दौरान की एक फोटो शेयर की गई। जिसमें लिखा है, ''नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को एक अप्रत्याशित अवसर (आपदा में अवसर) बताया है, जिसने उन्हें राजनीतिक स्पेक्ट्रम में नेताओं और संगठनों के साथ काम करने का मौका दिया। जिससे उन्हें विभिन्न विचारधाराओं और दृष्टिकोणों से रूबरू होने का मौका मिला। हालांकि, आपातकाल की कहानी 25 जून, 1975 को शुरू नहीं हुई थी, जब इसे लगाया गया था। कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में छात्रों के नेतृत्व में आंदोलन निकाला जा रहा था और गुजरात कोई अपवाद नहीं था। 1974 में, गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन के दौरान नरेंद्र मोदी ने देश में बदलाव लाने में छात्रों की आवाज की शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से देखा। उस वक्त वह आरएसएस के प्रचारक थे। उन्होंने अपने भाषणों के माध्यम से युवा आंदोलन का जोश भी बढ़ाया।" इस दौरान नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी को लेकर मंच से एक कविता भी पढ़ी थी। ''जब कर्तव्य ने पुकारा तो कदम कदम बढ़ गए जब गूंज उठा नारा 'भारत मां की जय' तब जीवन का मोह छोड़ प्राण पुष्प चढ़ गए कदम-कदम बढ़ गए... टोलियां की टोलियां जब चल पड़ी यौवन की तो, चौखट चरमरा गए सिंहासन हिल गए प्रजातंत्र के पहरेदार सारे भेदभाव तोड़ सारे अभिनिवेश छोड़, मंजिलों पर मिल गए चुनौती की हर पंक्ति को सब एक साथ पढ़ गए कदम-कदम बढ़ गए... सारा देश बोल उठा जयप्रकाश जिंदाबाद तो, दहल उठे तानाशाह भृकुटियां तन गई लाठियां बरस पड़ी सीनों पर माथे पर...'' पोस्ट में आगे जिक्र है, ''नरेंद्र मोदी आपातकाल लगने के बाद इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन में शामिल हो गए। वह तब सरकार के खिलाफ पूरी तरह से खड़े हो गए स्वयंसेवकों के साथ मिलकर बैठकें आयोजित की और विरोध के लिए सरकार के द्वारा बैन लगाए गए साहित्य के प्रसार की भी जिम्मेदारी ली। उन्होंने नाथ ज़गड़ा और वसंत गजेंद्रगडकर जैसे वरिष्ठ आरएसएस नेताओं के साथ मिलकर काम किया।'' उन्होंने संविधान, कानूनों और कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों से संबंधित सामग्री को गुजरात से अन्य राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में लोड किया। संघ को जब इस आंदोलन के समय अपना कार्यक्रम रोकना पड़ा तो मजबूर होकर गुजरात लोक संघर्ष समिति की स्थापना की गई।

नरेंद्र मोदी 25 साल की उम्र में इसके महासचिव के पद पर आसीन हो गए। अपने लेखों और पत्राचार के माध्यम से, नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ विद्रोह को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विदेश में नरेंद्र मोदी के सहयोगियों ने 'सत्यवाणी' और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित अन्य समाचार पत्रों की फोटोकॉपी भेजी, जिसमें आपातकाल के उन काले दिनों का विरोध करने वाले लेख शामिल थे। अन्य सत्याग्रहियों की तरह नरेंद्र मोदी अपनी पहचान छुपाने के लिए विभिन्न भेष बदलते रहे। उनको इस रूप में लंबे समय से परिचित उनके अपने लोग भी नहीं पहचान पाए। उन्होंने भेष ऐसा बदला कि एक बार जेल में अधिकारियों को भी धोखा देने में सफल रहे। 1977 में आपातकाल हटा तो नरेंद्र मोदी को 'आपातकाल के वह काले दिन' विषय पर चर्चा में भाग लेने के लिए मुंबई आमंत्रित किया गया था।

कार्यक्रम में योगदान के लिए नरेंद्र मोदी को 250 रुपये भी मिले थे। इसके बाद नरेंद्र मोदी को दक्षिण और मध्य गुजरात का 'संभाग प्रचारक' नियुक्त किया गया। 1978 में नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली पुस्तक 'संघर्ष मा गुजरात' लिखी, जो गुजरात में आपातकाल के खिलाफ भूमिगत आंदोलन में एक नेता के रूप में उनके अनुभवों का एक संस्मरण है। इस किताब को खूब सराहा गया और व्यापक रूप से स्वीकार किया गया। 50 साल बाद, भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी द्वारा आपातकाल के उन काले दिनों के दौरान कांग्रेस द्वारा भारत के लोकतंत्र पर लगाए गए 'काले धब्बे' के बारे में वर्तमान और भावी पीढ़ियों को याद दिलाना जारी है और ऐसा दोबारा नहीं होने देने की कसम खाई है। जब संसद भवन में पहुंचने पर उन्होंने संविधान की किताब को अपने माथे से लगा लिया था। --(आईएएनएस)

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