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औसत उम्र तो बढऩा तय, क्या यह अच्छा भी रहेगा?
30-Jun-2024 1:27 PM
औसत उम्र तो बढऩा तय, क्या यह अच्छा भी रहेगा?

अगली चौथाई सदी में, 2050 तक हिन्दुस्तानियों की औसत उम्र 70 बरस से बढक़र 77 बरस पहुंच जाएगी, और एक प्रतिष्ठित और विश्वसनीय मेडिकल अध्ययन के मुकाबले हिन्दुस्तानियों में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की उम्र कुछ अधिक ही बढ़ेगी जो कि 75 बरस के आदमी के मुकाबले 80 बरस की हिन्दुस्तानी औरत की रहेगी। एक प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका, द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुकाबले योरप के बहुत से देशों में 2050 तक लोग साढ़े 85 बरस औसत उम्र के हो सकते हैं, और इसकी एक वजह उनका बेहतर और समझदारी का खानपान है, और दूसरी वजह पैदल चलना, या साइकिल चलाना है जो कि योरप में बहुत अधिक प्रचलित है।

अब हिन्दुस्तान तो एक गाने पर अधिक भरोसा करता है, तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार..., अब ऐसी कामना के बाद बहुत अधिक मेहनत करने की किसी को जरूरत नहीं रहती है, इसलिए हिन्दुस्तान के अधिकतर समाजों में खानपान लोगों की आर्थिक क्षमता के अनुपात में खासा गरिष्ठ रहता है। यहां तक कि जो धार्मिक उपवास होते हैं, उनमें भी खानपान बहुत ही भयानक दर्जे का रहता है जिससे सेहत का नुकसान छोड़ और कुछ नहीं हो सकता। फिर संपन्नता बढऩे के साथ-साथ हिन्दुस्तान के अधिकतर लोग अपने घर के आसपास तक जाने के लिए भी कार या स्कूटर, मोटरसाइकिल इस्तेमाल करते हैं, ताकि बदन पर किसी तरह का जोर न पड़े। कसरत और खेलकूद की फैशन भी गिने-चुने लोगों के बीच रहती है। इन्हीं सब वजहों से हिन्दुस्तानियों की औसत उम्र योरप की अधिकतम औसत उम्र से 8-10 बरस पीछे रहने जा रही है। 

लेकिन औसत उम्र का बढ़ जाना, लोगों का अधिक समय तक जिंदा रहना, यह एक-दूसरे को शुभकामना देने की हद तक तो ठीक है कि लोग शतायु हों। लेकिन शुभकामना से परे शतायु होने वाले लोगों की जिंदगी का आखिरी एक चौथाई हिस्सा कैसा गुजरेगा, इसकी कल्पना भी भयानक है। जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं, उन्हें भी 75 बरस की उम्र के बाद खराब हालत में ही देखा जाता है। शायद पूरी उम्र में वे सेहत का ध्यान नहीं रखते हैं, और बदन आखिरी के बरसों में पूरा हिसाब चुकता करता है। महंगे और बड़े अस्पतालों तक जिनकी पहुंच है, वे भी बुढ़ापा तकलीफदेह ही झेलते हैं। इसलिए आज जब दुनिया बढ़ती हुई औसत उम्र की भविष्यवाणी को लोगों की बेहतरी का एक पैमाना मानती है तो मुझे उसमें यह भी लगता है कि क्या यह बढ़ी हुई औसत उम्र, यानी आखिरी का बढ़ा हुआ हिस्सा पूरा का पूरा अधिक तकलीफ वाला हिस्सा नहीं रह जाएगा? 

अभी इसी हफ्ते छत्तीसगढ़ में ही एक दिन में दो जगहों पर दो जवान बेटों ने अपने-अपने बाप निपटा दिए। अब ऐसा कत्ल होने पर तो इसकी खबर बनी, और हमारी नजर पड़ी, लेकिन खबर बनने के पहले तक परिवारों के भीतर जो तनाव रहता है, और जो खासकर घर के बूढ़ों के साथ चलता है, क्या वह सचमुच ही लंबा जीने लायक जिंदगी रहेगी? कुछ श्रवण कुमार किस्म के लोग भी होंगे जिन्हें यह चर्चा काफी कड़वी लगेगी कि हर घर में तो परिवार के बुजुर्गों का अपमान होता नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि अपमान से नीचे का दर्जा भी उपेक्षा का होता है जो चलने-फिरने में मजबूर बुजुर्गों को आहत करते रहता है। ऐसे में हिन्दुस्तान हो या योरप, जहां कहीं भी लोगों की औसत उम्र बढ़ेगी, और उसके चलते बुढ़ापा और लंबा हो जाएगा, वहां पर उन बुजुर्गों के साथ कई किस्म की भावनात्मक समस्याएं भी होंगी। आज भी बहुत से बुजुर्ग वृद्धाश्रमों को आल-औलाद के घर से बेहतर पाते हैं, क्योंकि वहां न तो किसी से उनकी कोई अपेक्षा रहती, और न ही कोई उपेक्षा उन्हें चोट पहुंचाती जो कि आल-औलाद के हाथों तकलीफ की बात रहती है। 

इंसान अमर बनने की हसरत रखते हैं, दुनिया के तानाशाह, बड़े-बड़े नेता, बड़े कारोबारी, भला कौन ऐसे नहीं हैं जो कि मरना ही नहीं चाहते। कई लोगों के बारे में ऐसी कहानियां प्रचलन में रहती हैं वे कौन-कौन से इलाज कराकर, नौजवान लोगों का खून लेकर, खानपान में कुछ चुनिंदा और बहुत महंगी चीजें जुटाकर जिंदगी को जारी रखना चाहते हैं। सावधानी एक अच्छी बात है, और रोजाना के कामकाज से या कसतर से बदन को चुस्त-दुरूस्त रखना भी बड़ी अच्छी बात है क्योंकि उससे उम्र लंबी हो या न हो, जब तक जिंदगी है तब तक बदन फिट बने रहता है। सावधान लोग ये तमाम कोशिशें भी करते हैं, लेकिन इससे परे एक सबसे बड़ी वजह जिंदगी को लंबा और बेहतर बनाने में काम आती है, वह है लोगों का तनावमुक्त रहना। 

यह बात कहना अधिक आसान है, इस पर अमल मुश्किल रहता है। आज जब हम अपने आसपास परिवारों के भीतर इतना तनाव देख रहे हैं कि लोग एक-दूसरे को मार डाल रहे हैं, या जरा-जरा सी बात पर जान दे दे रहे हैं, तो फिर यह बात बड़ी जाहिर है कि ऐसे परिवारों में तनावमुक्त रहना मुमकिन नहीं है, और तनाव के साथ लंबा जीना मुमकिन नहीं है। फिर एक बात यह भी है कि जिंदगी में अगर इतना तनाव है, तो उसे ढोते हुए इतना लंबा सफर करने का भी क्या फायदा? 

फिलहाल आज इस मुद्दे पर मैं इसलिए चर्चा कर रहा हूं कि लोगों की हसरत बनी हुई है, वे मरते हुए भी एक और पीढ़ी देखकर जाना चाहते हैं, एक और पीढ़ी की शादी देखकर जाना चाहते हैं। ऐसी उम्मीदें बहुत अच्छी हैं, लेकिन इनके साथ-साथ लोगों को सेहतमंद और तनावमुक्त भी बने रहना होगा, तभी उनकी हसरतें मुमकिन हो पाएंगी। भारत की आबादी को लेकर 77.5 बरस की औसत उम्र एक नजरिए से देखने पर दहशत भी पैदा करती है, खासकर महिला को देखकर कि अगर उसकी औसत उम्र 80 बरस तक पहुंच जाएगी, और परिवार-समाज में उसकी आज जैसी दुर्गति बनी रहेगी, तो फिर वह उतना लंबा जीकर भी क्या करेगी? 

इस कॉलम को पढऩे वाले अधिकतर लोगों के पास अपने-अपने परिवार की वजहें हैं, उनकी कहानियां हैं, और पिछली पीढ़ी के बुजुर्गों का भोगा हुआ सुख और दुख भी है। आज लोगों को यह सोचना चाहिए कि 2050 तक अगर औसत उम्र खासी बढऩे वाली है, तो क्या उसके लिए लोग तैयार हो रहे हैं, तन और मन को, और धन को भी तैयार रख रहे हैं? इन तमाम मुद्दों पर परिवार के भीतर सोचने की जरूरत है, और हो सकता है कि आज सोची गई बात का ऐसा असर हो कि जिंदगी के आखिरी के बढ़े हुए बरस जीना कुछ आसानदेह और सुखभरा हो जाए। 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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