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![झारखंड हाई कोर्ट ने बीएनएस में लिंचिंग की धारा में बताई ग़लती झारखंड हाई कोर्ट ने बीएनएस में लिंचिंग की धारा में बताई ग़लती](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1719900387DLAT.jpg)
झारखंड हाई कोर्ट ने सोमवार को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के यूनिवर्सल लेक्सिसनेक्सिस एडिशन (इंटरनेट पर मौजूद संस्करण) में ग़लतियों पर स्वत: संज्ञान लिया है.
लेक्सिसनेक्सिस क़ानूनी और बिज़नेस से जुटी जानकारी का सबसे बड़ा डेटाबेस है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चंद की बेंच ने बताया कि इस एडिशन में लिंचिंग के प्रावधान बीएनएस धारा 103 (2) को ग़लत तरीके से दर्ज किया गया है.
बीएनएस धारा 103 (2)कहती है, “जब पांच या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल,जाति या समुदाय,लिंग,जन्म स्थान,भाषा,अपने व्यक्तिगत धारणा या किसी अन्य ऐसे ही आधार पर किसी की हत्या करते हैं तो ऐसे समूह के हर सदस्य को मौत की सज़ा या आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी और साथ ही जुर्माना भी देना होगा.”
लेकिन लेक्सिसनेक्सिस एडिशन में ‘ऐसे ही अन्य आधार’ की जगह ‘किसी भी आधार’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है.
कोर्ट ने अपने आकलन में कहा है कि इस ग़लती के ‘गंभीर परिणाम’ हो सकते हैं. बेंच ने पब्लिशर को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अखबारों में भूल-सुधार नोट छापने को कहा है.
एक जुलाई से देश में नए आपराधिक क़ानून लागू हो चुके हैं.
सोमवार से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता,1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ले चुके हैं. (bbc.com/hindi)