ताजा खबर

भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम: क्या लंबे समय तक टिकेगा समझौता?
26-Feb-2021 10:04 PM
भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम: क्या लंबे समय तक टिकेगा समझौता?

-प्रवीण शर्मा

गुरुवार को भारत और पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्षविराम का ऐलान किया है. दोनों देशों की सेनाओं के डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिटरी ऑपरेशंस (डीजीएमओ) के बीच हुई बातचीत के बाद इस संघर्षविराम का ऐलान किया गया है.

इसके तहत 24-25 फरवरी की मध्यरात्रि से दोनों देश नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बंद करेंगे और संघर्षविराम के लिए हुए पिछले समझौतों का पालन करेंगे.

25 फरवरी को रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए साझा बयान में कहा गया है, "भारत और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशंस ने हॉटलाइन के ज़रिए चर्चा की. दोनों पक्षों ने नियंत्रण रेखा और दूसरे सभी सेक्टरों पर मौजूदा हालात की खुले और सौहार्दपूर्ण माहौल में समीक्षा की."

इसमें आगे कहा गया है, "आपसी हितों को ध्यान में रखते हुए और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों डीजीएमओ एक दूसरे से जुड़े उन गंभीर मुद्दों पर बातचीत करेंगे, जिससे इलाक़े में शांति भंग होने या हिंसा बढ़ने का ख़तरा हो."

इस बयान में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष सभी समझौतों और एलओसी और अन्य सभी सेक्टरों पर संघर्षविराम का सख्ती से पालन करने पर भी सहमत हैं.

अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने बताया अच्छा फ़ैसला

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने खुशी जताई है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रेसिडेंट वोल्कन बोज़किर ने दोनों देशों के बीच हुए संघर्षविराम का स्वागत किया है और कहा है कि मूल मुद्दों को सुलझाने और शांति बनाए रखने की दोनों देशों की प्रतिबद्धता अन्य देशों के लिए भी उदाहरण है.

अमेरिका ने भी इस कदम का स्वागत किया है. अमेरीका ने इसे दक्षिण एशिया में शांति और स्थायित्व के लिए एक सकारात्मक कदम बताया है.

समझौते से बातचीत का रास्ता खुलने की उम्मीद
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया संघर्षविराम को सकारात्मक कदम मानते हैं. भाटिया कहते हैं, "2003 के संघर्षविराम को रीफ्रेज़ किया गया है. इससे भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्तों को सुधारने में मदद मिलेगी."

वे कहते हैं, "इसके साथ ही हॉटलाइन और फ्लैग मीटिंग्स जैसे दोनों देशों के बीच सीबीएम (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स या भरोसा बढ़ाने के उपाय) की भी बात की गई है. गोलीबारी की वजह से ये सब रुक गया था."

भाटिया मानते हैं कि पाकिस्तान को इसकी ज़्यादा ज़रूरत थी क्योंकि वो अभी भी एफ़एटीएफ की ग्रे लिस्ट में है. साथ ही इससे भारत को भी फायदा होगा.

वरिष्ठ पत्रकार गज़ाला वहाब कहती हैं कि ये एक सकारात्मक कदम है. वे कहती हैं, "किसी भी देश के लिए लगातार तनाव में रहना मुमकिन नहीं है. तनाव के दौर में द्विपक्षीय समझौते, कारोबार समेत हर चीज़ पर बुरा असर पड़ता है. इस लिहाज़ से ये अच्छी शुरुआत हुई है और उम्मीद है कि आगे हालात और सुधरेंगे."

पहले भी दोनों मुल्कों के बीच संघर्षविराम हुआ है और ये लंबे वक्त तक कायम भी रहा. 2003 के बाद बड़े वक्त तक सीमाओं पर शांति रही है.

वहाब कहती हैं, "उस दौरान तो लोग एलओसी के पार जाकर खेतीबाड़ी भी कर लेते थे. ऐसे में अगर दोनों देश इस समझौते का पालन करते हैं तो भविष्य में बातचीत के दरवाज़े भी खुलेंगे."

रणनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सैकत दत्ता कहते हैं, "चीन के साथ पिछले साल से तनाव चल रहा है. ऐसे में सरकार नहीं चाहती थी कि चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ सीमाओं को लेकर तनाव रहे."

वे कहते हैं कि इस लिहाज से ये समझौता ठीक है.

सैकत दत्ता कहते हैं कि 2014 के बाद से संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. इसी दौरान ही चरमपंथी घटनाएं और लोगों के हताहत होने की संख्या में भी इज़ाफा हुआ है.

दत्ता मानते हैं कि 2003 से लेकर 2014 तक संघर्षविराम उल्लंघन की ज्यादा घटनाएं नहीं हुईं और यह दौर तकरीबन शांत रहा.

पिछले कुछ सालों में बढ़ी हैं गोलीबारी की घटनाएं

भारत और पाकिस्तान के बीच साल 2003 में संघर्षविराम हुआ था. हालांकि, कुछ वर्ष तक चलने के बाद ये बस एक नाममात्र का ही समझौता रह गया और दोनों देशों के बीच अक्सर सीमाओं पर गोलीबारी और संघर्षविराम के उल्लंघन की घटनाएं होती रहती हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, 2020 में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में इज़ाफा हुआ है.

जम्मू और कश्मीर से लगती सीमा पर 2020 में संघर्षविराम उल्लंघन के 5,133 मामले हुए जो कि 2019 में संघर्ष विराम उल्लंघन की 3,479 घटनाओं के मुकाबले 47.5 फीसदी ज्यादा हैं.

2020 में इन घटनाओं के चलते 46 मौतें हुई हैं. इनमें 22 आम नागरिक और 24 सुरक्षाबल शामिल हैं. इस साल भी अब तक 300 के करीब संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाएं हुई हैं.

2018 में जम्मू और कश्मीर में संघर्षविराम उल्लंघन की 2,936 घटनाएं हुईं और इनमें 61 सुरक्षाबल और आम नागरिक मारे गए. 2017 में इन घटनाओं की संख्या 971 रही. इस दौरान 12 आम नागरिकों और 19 सुरक्षाबल मारे गए.

इस तरह से आंकड़ों से पता चलता है कि गुज़रे कुछ वर्षों में भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम उल्लंघन के मामलों में इज़ाफ़ा हुआ है.

क्या टिकाऊ होगा समझौता?
दोनों देशों के बीच विवादों के पुराने इतिहास, चरमपंथ, घुसपैठ और संघर्षविराम के उल्लंघन के ख़राब अनुभवों को देखते हुए यह सवाल ज़रूर पैदा हो रहा है कि यह संघर्षविराम कितना लंबा चल पाएगा?

लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया कहते हैं, "दरअसल पाकिस्तान गोलीबारी की आड़ में घुसपैठ कराता है. अगर वे घुसपैठ रोकते हैं तो आगे बातचीत शुरू हो सकती है."

गज़ाला वहाब कहती हैं, "दोनों देशों का इस संघर्षविराम पर टिके रहना ही सबसे बड़ी चुनौती है. इस मसले पर राजनीतिक अवसरवाद का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए."

भाटिया संघर्षविराम के बार-बार टूटने का ज़िक्र करते हुए आशंका जताते हैं कि आगे की बातचीत इसको लागू करने के तरीके पर निर्भर करेगी.

वे कहते हैं कि ये संघर्षविराम पहली बार तो नहीं हुआ है. 2003 में पहली बार संघर्षविराम समझौता हुआ और तब ये 4-5 साल ही चला. 2007 में गोलीबारी की घटनाएं होने लगी थीं.

भाटिया कहते हैं, "2013 में मैं बतौर डीजीएमओ वाघा बॉर्डर गया था और पाकिस्तान के डीजीएमओ से बात हुई थी. उसके बाद संघर्षविराम जारी रहा. ये फिर टूट गया. 2018 में फिर से संघर्षविराम पर बातचीत हुई और ये फिर टूट गया. इस बार भी देखना होगा कि ये कितना लंबा टिकता है."

भाटिया कहते हैं, "संघर्षविराम तभी तक टिक पाएगा जब पाकिस्तान घुसपैठ पर लगाम लगाता है. अगर 3-4 साल भी संघर्षविराम टिक जाता है तो भी बड़ी बात होगी."

हालांकि, वे पाकिस्तान की मंशा पर शक जताते हैं. वे कहते हैं, "पाकिस्तान की प्रॉक्सी वॉर की एक नीति रही है. ऐसे में मुझे लगता नहीं है कि वे घुसपैठ को रोकेंगे."

सैकत दत्ता कहते हैं, "संघर्षविराम के टिकाऊ होने की राह में दो बड़ी चुनौतियां हैं. पहला ये कि हम पाकिस्तान पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. दूसरा ये कि मौजूदा सरकार की डोमेस्टिक पॉलिसी में फॉरेन पॉलिसी का घालमेल होता दिखाई देता है. घरेलू राजनीति में पाकिस्तान के मुद्दे का इस्तेमाल होता रहा है. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि यह संघर्षविराम कब तक टिकेगा."

गज़ाला वहाब कहती हैं कि अगर हमें शांति चाहिए तो पाकिस्तान को एक राजनीतिक मुद्दे के तौर पर इस्तेमाल करना भी बंद होना चाहिए. दोनों ही तरफ से ये होना चाहिए.

क्या मूल मुद्दों पर होगी बात?
साझा बयान में दोनों पक्षों ने मूल मुद्दों को सुलझाने की बात की है लेकिन इसे लेकर भी भ्रम पैदा हो रहा है.

वहाब कहती हैं, "ये एक दिलचस्प चीज़ है क्योंकि हमारे मूल मुद्द और उनके मसले अलग-अलग हैं. हम चरमपंथ को मुख्य मुद्दा मानते हैं. उनका मुख्य मसला कश्मीर है. ऐसे में अगर बात होगी तो दोनों के मसलों पर बात होगी. हमारी सरकार ने कहा है कि हम कश्मीर के मसले पर बात नहीं करेंगे क्योंकि यह हमारा आंतरिक मसला है. इस पर भी विवाद पैदा हो सकता है."

दोनों देशों के मूल मुद्दों को सुलझाने के ज़रिए शांति बहाली करने के मसले पर लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया कहते हैं, "संघर्षविराम पर सहमति पहला कदम है. पिछले सत्तर साल से जारी मसले एक दिन में हल नहीं हो सकते हैं. हालांकि, इस पर आगे कैसे बढ़ा जाएगा, ये इस संघर्षविराम को किस तरह से लागू किया जाता है इस पर निर्भर करेगा."

सरकार का मक़सद स्पष्ट नहीं

जानकारों का मानना है कि अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि सरकार ने किस मकसद से संघर्षविराम किया है, क्योंकि पिछले कई सालों से सरकार की नीति ये रही है कि पाकिस्तान से किसी तरह की बातचीत नहीं करनी है.

वहाब कहती हैं, "अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि सरकार का क्या मकसद है. क्या ऐसा किसी शॉर्ट टर्म लक्ष्य को हासिल करने के लिए किया गया है? क्या ये चीन के तनाव को देखते हुए हुआ है? या वाकई में सरकार को ये लगता है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारे जाने चाहिए."

वहाब को उम्मीद है कि आगे चलकर इस बारे में ज्यादा स्पष्टता आएगी.  (bbc.com)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news