राष्ट्रीय
उत्तराखंड, 28 अक्टूबर। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार (27 अक्टूबर) को केंद्रीय जांच ब्यूरो को एक पत्रकार द्वारा उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की प्राथमिकी दर्ज करने और जांच करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की पीठ ने उस मामले में यह फैसला दिया जिसमें एक उमेश शर्मा (स्थानीय समाचार चैनल समचार प्लस के मालिक) ने रावत से संबंधित एक वीडियो (जुलाई 2020 में) बनाया था जो वर्ष 2016 में गौ सेवा आयोग का नेतृत्व करने के लिए झारखंड में एक व्यक्ति (एएस चौहान) की नियुक्ति के लिए उनके रिश्तेदारों के खातों में रुपये ट्रांसफर करने में रावत (भाजपा के झारखंड प्रभारी के रूप में) की कथित भूमिका के लिए था।
न्यायालय के समक्ष मामला [एफआईआर संख्या 265/ 2020] इसके लिए, डॉ हरेंद्र सिंह रावत ने उमेश शर्मा (याचिकाकर्ता) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। एफआईआर [265/ 2020] उस मामले से संबंधित थी जिसमें याचिकाकर्ता ने उपरोक्त समाचार आइटम / वीडियो ( त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों) को साझा किया था। उक्त समाचार आइटम / वीडियो में, याचिकाकर्ता (उमेश शर्मा) ने कथित रूप से प्रतिवादी नंबर 2 / शिकायतकर्ता (डॉ हरेंद्र सिंह रावत) और उनकी पत्नी सविता रावत से संबंधित कुछ बैंक खातों के साथ एक कंप्यूटर स्क्रीन पर दस्तावेज दिखाए।
याचिकाकर्ता (उमेश शर्मा) ने दावा किया कि वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद, शिकायतकर्ता (डॉ हरेंद्र सिंह रावत) और उनकी पत्नी के खातों में पैसा जमा किया गया था, जो त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए रिश्वत के रूप में था। वीडियो में, याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया था कि सविता रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी की असली बहन है और त्रिवेंद्र सिंह रावत को शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी के बैंक खातों में जमा राशि के माध्यम से रिश्वत के पैसे का एहसास हुआ।
इसके बाद, याचिकाकर्ता (उमेश शर्मा) द्वारा इस बहुत ही एफआईआर को रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की गई, जो कि उसके खिलाफ जुलाई 2020 में [एफआईआर नंबर 265/ 2020] प्रतिवादी नंबर 2 / शिकायतकर्ता (डॉ। हरेंद्र सिंह रावत) द्वारा दर्ज की गई थी। एफआईआर नंबर 100/ 2018 की पृष्ठभूमि यह ध्यान दिया जा सकता है कि एफआईआर नंबर 265/ 2020 याचिकाकर्ता के खिलाफ इकलौता मामला नहीं था, वास्तव में, याचिकाकर्ता के खिलाफ पूर्व में कई एफआईआर दर्ज की गई थीं। लेकिन हम केवल एफआईआर नंबर 100/ 2018 पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिस पर न्यायालय ने भी गहराई से चर्चा की थी। [एफआईआर नंबर 100/ 2018 ] - 10.08.2018 को, पहले शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता (उमेश शर्मा) और चार अन्य लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की, जो पुलिस स्टेशन राजपुर, जिला देहरादून में एफआईआर नंबर 100/ 2018 में आईपीसी की धारा 386, 388, 120क्च के तहत दर्ज की गई थी।
इस एफआईआर में न्यूज चैनल समचार प्लस के एक पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया था कि उमेश शर्मा अन्य लोगों के साथ मिलकर स्टिंग ऑपरेशन करते थे और उसके बाद ये लोग खुफिया कैमरे के जरिए मंत्रियों और अधिकारियों को फंसाते थे। यह आरोप लगाया गया कि उमेश शर्मा अपने चैनल पर समाचार प्रसारित नहीं करते हैं और एक पूर्व नियोजित साजिश के तहत वह उन्हें ब्लैकमेल करके पैसा कमाते हैं। कोर्ट का विश्लेषण न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि सुलझे हुए कानूनी पद के मद्देनजर, यदि एफआईआर नंबर 100/ 2018 और तत्काल एफआईआर [एफआईआर नंबर 265/ 2020] एक ही अपराध के संज्ञान के संबंध में या अपराध के संबंध में थी, जिसमें समान लेनदेन किए गए थे, निश्चित रूप से को एफआईआर नंबर 265/ 2020 को पंजीकृत नहीं किया जाना चाहिए था।
गौरतलब है कि एफआईआर नंबर 100/ 2018 को बड़े पैमाने पर दर्ज किया गया था कि उसे (समाचार प्लस के एक पूर्व कर्मचारी) ब्लैकमेलिंग, राजनीतिक अस्थिरता राज्य में अशांति और अस्थिरता, सरकार को अस्थिर करने के लिए रिश्वत, राज्य में अशांति और हिंसा आदि के कारणों के लिए स्टिंग ऑपरेशन करने की धमकी दी गई थी। गौरतलब है कि एफआईआर नंबर 100/ 2018 का सार यह था कि याचिकाकर्ता (उमेश शर्मा) राज्य सरकार को अस्थिर करने और राज्य में अशांति और हिंसा फैलाने की साजिश में शामिल था।
एफआईआर नंबर 100/ 2018 में भी पूर्व-नियोजित साजिश शब्द का इस्तेमाल किया गया था। अब, अगर हम दोनों एफआईआर [एफआईआर नंबर 100/ 2018 और एफआईआर नंबर 265/ 2020 ], की तुलना करते हैं तो हम इस तथ्य की सराहना करेंगे कि कृत्य अलग-अलग हैं, उदाहरण के लिए, पहले शिकायतकर्ता (समाचार प्लस के पूर्व कर्मचारी) के माध्यम से स्टिंग करना ), जिन्होंने एफआईआर नंबर 100/ 2018 दर्ज की और सोशल मीडिया प्रकाशन (यानी, एफआईआर नंबर 265/ 2020) का उपयोग करके शिकायतकर्ता (डॉ हरेंद्र सिंह रावत) पर झूठे आरोप लगाए। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि राज्य के अनुसार, बड़े संदर्भ में, राज्य सरकार के खिलाफ एक साजिश थी। इससे पूरा लेन-देन एक हो गया। इस संदर्भ में, न्यायालय ने कहा कि यदि लेन-देन एक था, तो पुलिस पिछली प्राथमिकी के तहत एफआईआर नंबर 265/ 2020 मामले की जांच की जा सकती थी [यानी, एफआईआर नंबर 100/ 2018] और दूसरी एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं थी [एफआईआर नंबर 265/ 2020]। दूसरे शब्दों में, न्यायालय ने कहा कि 2020 की एफआईआर में लगाए गए आरोपों की जांच एफआईआर नंबर 100/ 2018 में जांच की जा सकती है, क्योंकि वे कथित रूप से उत्तराखंड राज्य (राज्य के बयानों के अनुसार) में गड़बड़ी पैदा करने की बड़ी साजिश का हिस्सा थे।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि एक ही लेन-देन के तहत किए गए अपराधों के संबंध में लगातार एफआईआर स्वीकार्य नहीं है। विशेष रूप से, 2020 की इस प्राथमिकी में, बाद में उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। राज्य ने तर्क दिया कि शर्मा का इरादा राज्य में अशांति पैदा करना है। इसके लिए, अदालत ने कहा कि धारा 124-ए (राजद्रोह) को जोडऩा यह दर्शाता है कि आलोचना की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया जा रहा है और यह समझ से परे है कि ये धारा क्यों जोड़ी गई थी।
याचिकाकर्ता के खिलाफ जो भी आरोप हैं, वे भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के साथ दूर से भी नहीं जुड़ते हैं। प्रथम दृष्ट्या धारा 124-ए आईपीसी के तहत अपराध नहीं है। यह खंड क्यों जोड़ा गया है, यह समझ से परे है।इसके अलावा, इस पहलू पर राज्य की ओर से जो कुछ भी कहा गया है, उसमें कोई मेरिट नहीं है।
बाद में, अदालत ने यह देखते हुए प्राथमिकी को रद्द कर दिया कि धारा 420, 467, 468, 469, 471, 120क्च आईपीसी के तहत कोई भी अपराध याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं किया गया था। विशेष रूप से न्यायालय ने कहा, इस अदालत ने विचार किया है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ इस मामले में कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है और राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण है। तत्काल मामले में प्राथमिकी को खारिज किया जाता है। भ्रष्टाचार के आरोपों के मुद्दे पर न्यायालय का विचार था कि, तत्काल मामले में, याचिकाकर्ता ने टीएसआरसीएम के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। उन्होंने व्हाट्सएप संदेश, रिकॉर्ड की गई बातचीत, बैंक जमा रसीदें दी हैं और यह भी आरोप लगाया है कि ए एस चौहान को कुछ जमीन दी गई थी, लेकिन इन मुद्दों की कभी जांच नहीं की गई। कोर्ट ने आगे कहा, भ्रष्टाचार एक ऐसा खतरा है, जो जीवन के हर क्षेत्र में घुस गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो समाज ने इसे सामान्य कर दिया है। इसके अलावा न्यायालय ने कहा, क्या इस अदालत को याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए बिना जांच के आरोपों को लोगों की स्मृति में डूबने देना चाहिए या अदालत को इस मामले की जांच के लिए कुछ कार्यवाही करनी चाहिए ताकि हवा को साफ किया जा सके? अदालत ने इस सवाल पर आगे विचार किया कि क्या पत्रकार द्वारा टीएसआरसीएम के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए अदालत मुकदमे का आदेश दे सकती है। विशेष रूप से, याचिकाकर्ता द्वारा एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा वर्तमान याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने भ्रष्टाचार के संबंध में उन आरोपों की कोई जांच नहीं की, जो उन्होंने सोशल मीडिया प्रकाशन में लगाए थे। इस संदर्भ में, न्यायालय ने बैंगलोर विकास प्राधिकरण बनाम विजया लीजिंग लिमिटेड और अन्य (2013) 14 एससीसी 737, के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया जिसमें किसी चुनौती के अभाव में पारित एक आदेश वैध था।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि यह आवश्यक नहीं है कि प्राथमिकी दर्ज करने या जांच के आदेश देने से पहले, जिस व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का प्रस्ताव है या जांच का आदेश दिया गया है उसे एक पक्ष बनाया जाए। कोर्ट का विचार था कि राज्य के मुख्यमंत्री, त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, सच को उजागर करना उचित होगा।
यह राज्य के हित में होगा कि संदेह साफ हो जाए। इसलिए, याचिका की अनुमति देते समय, न्यायालय ने आरोपों की प्रकृति के मद्देनजर जांच के लिए भी प्रस्ताव दिया। अदालत का विचार था कि सीबीआई को तत्काल याचिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाना चाहिए और कानून के अनुसार मामले की जांच करनी चाहिए। निष्कर्ष उक्त चर्चा के मद्देनजऱ न्यायालय ने आदेश दिया, तात्कालिक एफआईआर [265/2020] में लगाए गए आरोप याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाते हैं। तत्काल एफआईआर [265/2020] में लगाए गए आरोपों की जांच एफआईआर नंबर 100/ 2018 में की जा सकती है।
वास्तव में, इसी लेनदेन पर दूसरी एफआईआर दर्ज करना (यानी उत्तराखंड सरकार के खिलाफ साजिश , जो एफआईआर नंबर 100/ 2018 की विषय-वस्तु है), कानून में तत्काल एफआईआर [265/2020] का पंजीकरण स्वीकार्य नहीं है। धारा 420, 467, 468, 469, 471 और 120 बी आईपीसी के तहत, पुलिस स्टेशन नेहरू कॉलोनी, जिला देहरादून में दर्ज एफआईआर 265 को को रद्द किया जाता है। • पुलिस अधीक्षक, सीबीआई देहरादून को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज करें और कानून के अनुसार मामले की जांच तत्परता से करें। (hindi.livelaw.in)
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर| गोएयर की आंतरिक जांच समिति ने अपने एक वरिष्ठ कार्यकारी को यौन उत्पीड़न का दोषी पाया है। यह जानकारी सूत्रों से मिली। सूत्रों के अनुसार, यह शिकायत कॉरपोरेट कम्यूनिकेशंस और पब्लिक रिलेशंस विभाग की महिला कर्मचारियों ने की थी।
यह देखते हुए एयरलाइन ने जांच शुरू की।
एयरलाइन के प्रवक्ता ने कहा, "गोएयर सभी को समान अवसर देता है और हम एक ऐसे काम के माहौल को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं जो हमारी महिला कर्मचारियों के पेशेवर विकास के लिए अनुकूल है और संगठन के भीतर सभी स्तरों पर अवसर की समानता को प्रोत्साहित करता है।"
उन्होंने आगे कहा, "कंपनी के पास ऐसे मामलों की जांच करने और उचित उपाय करने के लिए एक समिति सहित 'यौन उत्पीड़न नीति' भी है। महिला कर्मचारियों के लिए माहौल अनुकूल हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के लिए कंपनी प्रतिबद्ध है।" (आईएएनएस)
वेंकटचारी जगन्नाथन
चेन्नई, 28 अक्टूबर| हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज सी.एस. कर्णन चेन्नई पुलिस की साइबर अपराध शाखा में अपने खिलाफ मामला दर्ज होने से खुश हैं क्योंकि वह पिछले कई वर्षों से इसी के लिए लड़ रहे थे।
कर्णन ने आईएएनएस को बताया, "मुझे खुशी है कि मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। जब यह मामला मुकदमे में जाएगा, तो मैं जनता को उन मुद्दों से अवगत करा पाऊंगा जिनके लिए मुझे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 2017 में अदालत की अवमानना के लिए 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा था।"
उन्होंने यह भी कहा कि जांच के लिए बुलाए जाने पर वे चेन्नई पुलिस के साथ सहयोग करेंगे।
कर्णन के वकील पीटर रमेश कुमार ने आईएएनएस को बताया, "10 महिला वकीलों द्वारा उनके खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के बाद साइबर क्राइम विंग ने रिटायर्ड जस्टिस कर्णन के खिलाफ मामला दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करने के लिए कहा था।"
कर्णन ने कहा, "मुझ पर आईपीसी की धारा 295 और 351 के तहत और महिला उत्पीड़न कानूनों के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।"
मद्रास हाई कोर्ट की एक अधिवक्ता एस. देविका ने कर्णन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। कर्णन ने कहा, "शिकायतकर्ता एक पीड़ित पार्टी नहीं है। सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट की जज आर. बनुमथी जो कि सीधे तौर पर पीड़ित हैं वही शिकायत दर्ज करा सकती हैं।"
कर्णन ने हाल ही में एक वीडियो जारी किया था जिसमें उन्हें आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए और न्यायपालिका के अधिकारियों के खिलाफ यौन हिंसा की धमकी देते हुए सुना गया था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों ने महिला कर्मचारियों के साथ यौन उत्पीड़न किया और उन्होंने कथित पीड़ितों के नाम भी लिए थे।
कर्णन ने कहा, "वे अदालत की अवमानना के लिए मेरे खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं? वास्तव में उन्हें इसी के लिए कार्रवाई करनी चाहिए न कि पुलिस की शिकायत पर।"
बनुमथी के घर जाने के मुद्दे पर कर्णन ने कहा, "मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैंने विजिटर बुक में अपना नाम लिखा और सुरक्षा अधिकारी की अनुमति से उस ब्लॉक में गया जहां वह रहतीं हैं। उनके घर का दरवाजा खटखटाया।"
कर्णन ने आरोप लगाया कि बनुमथी के दामाद और बेटी ने उनके साथ मारपीट करने की कोशिश की और उनके खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की थी।
बता दें कि जब कर्णन कलकत्ता उच्च न्यायालय में जज थे तब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अदालत की अवमानना करने के लिए 6 महीने की जेल की सजा सुनाई थी। उन्हें कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उन्होंने अपनी 6 महीने की सजा भी पूरी की थी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अंबानी बंधुओं- मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी- से जेड प्लस सिक्यॉरिटी कवर वापस लेने की याचिका खारिज कर दी। उसने बॉम्बे हाईकोर्ट की इस टिप्पणी का समर्थन भी किया कि उच्चस्तरीय सुरक्षा उन्हें दी जानी चाहिए जिनकी जान को खतरा हो और जो सुरक्षा का खर्च चुकाने को तैयार हों। याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए अंबानी बंधुओं से सुरक्षा वापस लेने की मांग की थी कि वो खुद के खर्च पर अपनी सुरक्षा की व्यवस्था करने में सक्षम हैं।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, कानून का राज सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है। इसमें ऐसे नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना भी शामिल है जिनकी जान को खतरा हो। रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के रेवेन्यू का भारत की जीडीपी पर बड़ा प्रभाव है। इन लोगों की जान को खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने किए कई गंभीर सवाल
अंबानी बंधुओं की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि दोनों उद्योगपति भाइयों और उनके परिवार पर खतरा है। उन्होंने कहा, हम सरकार की तरफ से मिली सुरक्षा के बदले पेमेंट कर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि क्या हर वो आदमी जिसे जान का खतरा महसूस हो और जो सुरक्षा का खर्च उठाने को तैयार हो, उसे सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए? कोर्ट ने कहा, हमारी राय है कि अगर कोई प्राइवेट इंडिविजुअल पेमेंट करने में सक्षम है तो सरकार को उसे सुरक्षा मुहैया करा ही देनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकार को किसी के खतरे और उसकी सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करती रहनी चाहिए।
मनमोहन सरकार में मिली थी अंबानी को सुरक्षा
ध्यान रहे कि 2013 में मुकेश अंबानी को जेड प्लस सिक्यॉरिटी देने का मुद्दा बहुत जोर पकड़ा था। तब सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार से देश के सबसे अमीर शख्स को जेड प्लस सिक्यॉरिटी देने पर जवाब-तलब किया था। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आखिर अंबानी को जेड प्लस सिक्यॉरिटी क्यों दी गई? सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज प्रमुख मुकेश अंबानी की सुरक्षा पर सरकार के फैसले कहा कि ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान की जा रही है जबकि आम आदमी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। कोर्ट ने ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने पर सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में सुरक्षा की कमी के कारण आम लोग असुरक्षित हैं। अदालत ने कहा कि अमीर लोग प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों की सेवाएं ले सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था, यदि उनकी सुरक्षा को खतरे का अंदेशा है तो उन्हें निजी सुरक्षा कर्मियों की सेवाएं लेनी चाहिए। पंजाब में निजी कारोबारियों को सुरक्षा प्रदान की जाती है लेकिन अब यह संस्कृति मुंबई तक पहुंच गई है। कोर्ट ने कहा, हमारा किसी व्यक्ति विशेष को सुरक्षा प्रदान करने से कोई सरोकार नहीं है लेकिन हम तो आम आदमी की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। केंद्र सरकार ने अपनी बढ़ती आलोचना के मद्देनजर बाद में सफाई दी थी कि उनकी सुरक्षा में जो खर्च आएगा वह अंबानी खुद वहन करेंगे।
करीब 15 लाख खर्च उठा रहे अंबानी
तब सीआरपीएफ के तत्कालीन महानिदेशक प्रणय सहाय ने हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स से कहा था, सिक्यॉरिटी पर्सनल की सैलरी और एस्कॉर्ट वाहनों के संचालन पर करीब 15 लाख रुपये खर्च होंगे। उन्होंने कहा था कि यह खर्च अंबानी खुद उठाएंगे क्योंकि गृह मंत्रालय के आदेश में स्पष्ट लिखा है कि अंबानी को सुरक्षा पेमेंट के आधार पर दी गई है। (navbharattimes.indiatimes.com)
श्रीनगर, 28 अक्टूबर| राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर शहर में कई स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र का कार्यालय भी शामिल है, ये छापेमारी टेरर फंडिंग मामले में चल रही जांच का हिस्सा है। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बलों के स्थानीय पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों की सहायता से, रेजिडेंसी रोड इलाके में 'ग्रेटर कश्मीर के कार्यालय पर छापा मारा गया।
इसी तरह 'अथ्रोट' नाम के एक स्थायीन एनजीओ के कार्यालय, डल झील से चलने वाले 'एच.बी. हिल्टन' नाम के हाउसबोट, मानवाधिकार कार्यकर्ता खुरम परवेज का निवास और पुराने शहर के दो अन्य स्थानों पर छापे मारे गए हैं। (आईएएनएस)
मुंबई, 28 अक्टूबर | अभिनेता महेश ठाकुर वेब सीरीज 'मोदी: सीएम टू पीएम' के दूसरे सीजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका निभाएंगे।
उमेश शुक्ला निर्देशित इस सीरीज में मोदी के किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक और फिर उसके बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीन कार्यकाल पूरे करने और अंतत: भारत के प्रधानमंत्री बनने तक का पूरा सफर दिखाया गया है।
सीरीज के पहले सीजन में अभिनेता आशीष शर्मा ने युवा नरेंद्र मोदी की भूमिका निभाई थी।
महेश ठाकुर ने कहा, "बचपन से हमने अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्भुत यात्रा के बारे में सुना है। यह एक ऐसी कहानी है जो हमारे देश के इतिहास में एक बड़ा परिवर्तन दिखता है। ऐसे प्रतिष्ठित चरित्र को निभाना सम्मान की बात है, लेकिन इसके साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी जुड़ी हैं। मैं दर्शकों की प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्साहित हूं। मुझे विश्वास है कि वे सीरीज को पसंद करेंगे।"
इस सीरीज का दूसरा सीजन 12 नवंबर से इरोस नाउ पर स्ट्रीम होगा।(आईएएनएस)
चेन्नई, 28 अक्टूबर | चेन्नई पुलिस की साइबर क्राइम विंग ने उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज सी.एस. कर्णन के खिलाफ मामला दर्ज किया है। कर्णन के वकील पीटर रमेश कुमार ने आईएएनएस को बताया, "10 महिला वकीलों द्वारा उनके खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के बाद साइबर क्राइम विंग ने रिटायर्ड जस्टिस कर्णन के खिलाफ मामला दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करने के लिए कहा था।"
उन्होंने कहा कि मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 295 और 195 के तहत दर्ज किया गया है।
कर्णन ने हाल ही में एक वीडियो जारी किया था जिसमें उन्हें आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए और न्यायपालिका के अधिकारियों के खिलाफ यौन हिंसा की धमकी देते हुए सुना गया था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों ने महिला कर्मचारियों के साथ यौन उत्पीड़न किया और उन्होंने कथित पीड़ितों के नाम भी लिए थे।
बता दें कि जब कर्णन कलकत्ता उच्च न्यायालय में जज थे तब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अदालत की अवमानना करने के लिए 6 महीने की जेल की सजा सुनाई थी। उन्हें कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उन्होंने अपनी 6 महीने की सजा भी पूरी की थी। (आईएएनएस)
बिहार चुनाव: कोरोना काल के पहले चुनाव में वोटिंग जारीइमेज स्रोत,PRAKASH SINGH/AFP VIA GETTY IMAGES
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के लिए आज पहले चरण का मतदान जारी है. बिहार विधानसभा चुनाव भारत में कोराना महामारी के बीच पहला चुनाव है.
पहले चरण के मतदान में बिहार के 16 ज़िलों की कुल 71 सीटों पर वोटिंग हो रही है.
एनडीए की तरफ़ से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 35 सीट, बीजेपी 29, जीतन राम मांझी की हम-एस छह और मुकेश सहनी की वीआईपी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है.
पहले चरण में लोक जनशक्ति पार्टी 41 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी ने पहले चरण में जेडीयू के सभी 35 उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं.
इस बार लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए से बाहर है. चिराग़ पासवान नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ वोट देने की अपील कर रहे हैं.
पहले चरण के मतदान में 2.14 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं.
इनमें से कई ज़िले माओवादी अतिवाद से ग्रसित रहे हैं. दूसरे चरण का मतदान तीन और आख़िरी चरण का मतदान सात नवंबर को है. बिहार के चुनावी नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.
पहले चरण के चुनाव में गया टाउन विधानसभा सीट पर सबसे ज़्यादा 27 उम्मीदवार किस्मत आज़मा रहे हैं जबकि बांका ज़िले के कटोरिया विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम पाँच उम्मीदवार मैदान में हैं.
पहले चरण के चुनाव में कई प्रमुख नेता मैदान में हैं. जमुई से राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाज़ी में गोल्ड मेडल जीतने वाली 27 साल की श्रेयसी सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.
जमुई लोकसभा क्षेत्र से चिराग़ पासवान सांसद हैं और उन्होंने श्रेयसी सिंह का समर्थन किया है. श्रेयसी को आरजेडी के विजय प्रकाश यादव टक्कर दे रहे हैं.
विजय प्रकाश यादव जमुई से 2015 में विधायक चुने गए थे. विजय प्रकाश यादव पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश यादव के भाई हैं. जयप्रकाश यादव की बेटी दिव्या प्रकाश भी तारापुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं.
इसके अलावा गया टाउन से बीजेपी के प्रेम कुमार, विजय कुमार सिन्हा लखीसराय से, बाँका से रामनारायण मंडल, जहानाबाद से कृष्णानंदन प्रसाद सिन्हा, दिनारा से जयकुमार सिंह और राजपुर से संतोष कुमार निराला चुनावी मैदान में हैं.
इमामगंज से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मैदान में हैं और उन्हें आरजेडी से उदय नारायण चौधरी टक्कर दे रहे हैं. उदय नारायण चौधरी जेडीयू से आरजेडी में आए हैं.
मुक़ाबला
बिहार चुनाव में इस बार मुख्य मुक़ाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए और तेजस्वी के नेतृत्व वाले गठबंधन के बीच है.
नीतीश कुमार लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए जनादेश मांग रहे हैं.
राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां हैं. इस गठबंधन ने बिहार चुनाव में बेरोज़गारी और कोरोना महामारी की शुरुआत में लगे लॉकडाउन से उपजे हालात को चुनावी मुद्दा बनाया है.
तेजस्वी यादव विपक्ष के मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं और उन्होंने 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है.
दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं और उनके ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर की बात भी कही जा रही है.
नीतीश कुमार चुनावी सभाओं में कह रहे हैं कि उनकी हार से बिहार में कथित 'जंगल राज' की वापसी हो जाएगी.
नीतीश से पहले बिहार में लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी के शासनकाल को मीडिया के एक धड़े में और विपक्षी पार्टियों के बीच 'जंगल राज' कहा जाता था.
दूसरी ओर 30 साल के तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को रोज़गार और शिक्षा को मुद्दे पर जमकर घेरा है.(bbc)
बिहार चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा में सबको कोविड-19 की मुफ्त वैक्सीन देने का वादा किया है
- Banjot Kaur
कोविड-19 वैक्सीन किसको पहले दी जाएगी या मुफ्त में दी जाएगी या नहीं, अब तक यह नहीं किया गया है। इस बात की जानकारी केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 वैक्सीन के लिए गठित विशेषज्ञों के समूह ने दी।
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी बिहार चुनाव में यह वादा कर रही है कि बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनी तो बिहार में सबसे पहले मुफ्त में वैक्सीन वितरित की जाएगी।
इस विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष विनोद पॉल ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वैक्सीन पहले किसे दी जाएगी, ऐसे सिद्धांतों पर विचार विमर्श किया जा रहा है, क्योंकि अगर वैक्सीन की आपूर्ति असीमित नहीं होती है तो हमें इसकी प्राथमिकता तय करनी ही होगी।
उन्होंने कहा कि कुछ राज्य सरकारों ने इस तरह के बयान दिए हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं, लेकिन हमने राज्यों से अनुरोध किया है कि जब तक पूरी तस्वीर सामने नहीं आ जाती, तब तक वे इंतजार करें।
पॉल ने कहा कि वैक्सीन वितरण के मानदंड तय करने के लिए एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए।
उन्होंने दावा किया कि जहां तक वैक्सीन की पहुंच का सवाल है, संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी। प्राथमिकता के हिसाब से वैक्सीन की पहुंच बनाने में कोई समस्या नहीं आएगी।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के लोगों के लिए फ्री-फॉर-ऑल ’वैक्सीन का दावा किया था। हालांकि, उनके सहयोगी केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने अपने साप्ताहिक सोशल मीडिया कार्यक्रम के कम से कम दो एपिसोड में कहा था कि इसे सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन पर काम करने वाले अन्य लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
हर्षवर्धन के मुताबिक, केंद्र सरकार ने न सिर्फ बिहार बल्कि देश के सभी राज्यों को प्राथमिकता वाले समूहों की सूची तैयार करने और इसे अक्टूबर-अंत तक केंद्र में जमा करने की बात कही थी।
प्रदूषण और कोविड-19
क्या दिल्ली के बढ़ते वायु प्रदूषण का कोविड-19 मृत्यु दर पर प्रभाव पड़ेगा? इस बारे में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारत में इस तरह का कोई अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन लेकिन यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी है कि प्रदूषण की वजह से कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई।
उन्होंने बताया कि वहां लॉकडाउन के दौरान और लॉकडाउन के बाद कोविड-19 की मृत्यु दर का अध्ययन किया गया और पाया कि लॉकडाउन खुलने के बाद मृत्यु दर में वृद्धि हुई।
भार्गव ने यह भी कहा कि विदेशों में हुए अध्ययनों में वायरस के कण पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 में पाए गए हैं। हालांकि, यह ज्ञात नहीं था कि वे कण सक्रिय थे या मृत।
भार्गव ने कहा कि मास्क पहनना ही एकमात्र रास्ता है। यह आपको कोरोनावायरस और प्रदूषण दोनों से बचाएगा। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या एक ही मास्क वायरस और प्रदूषण कणों दोनों के खिलाफ काम कर सकता है। भार्गव ने दावा किया कि भारत में बच्चों में कोविड-19 के केस बहुत कम है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि कुछ राज्यों ने मामलों में काफी गिरावट दिखाई है। लेकिन उन्होंने कहा कि ये राज्य खुद को कोरोना मुक्त घोषित करने के लिए किसी तरह की प्रतियोगिता न करें।
पॉल ने कहा कि यूरोप और अमेरिका के कई देशों ने दिखाया कि महामारी फिर से चरम पर पहुंच गई है और इसे भारत के लिए एक चेतावनी संकेत के रूप में काम करना चाहिए।(downtoearth)
- आसिफ एस खान
केंद्र सरकार द्वारा मंगलवार को जारी अहम नोटिफिकेशन के तहत अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने के लिए स्थानीय प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं होगी। यानी बीजेपी सरकार ने कानून के जरिये यह प्रावधान कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में अब देश का कोई भी नागरिक जमीन खरीद सकता है। इस फैसले से सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला भड़क गए हैं।
पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने केंद्र की ओर से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए अधिसूचित नए भूमि कानूनों को 'छल' और 'विश्वास का हनन' करार दिया। उमर अब्दुल्ला ने तंज कसते हुए कहा, "भूमि कानून में संशोधन से अब जम्मू-कश्मीर बिकने के लिए तैयार है।" उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "जम्मू-कश्मीर में जमीन के मालिकाना हक के कानून में जो बदलाव किए गए हैं, वो कबूल करने लायक नहीं हैं। अब तो बिना खेती वाली जमीन के लिए स्थानीयता का सबूत भी नहीं देना है। अब जम्मू-कश्मीर बिक्री के लिए तैयार है, जो गरीब जमीन का मालिक है, अब उसे और मुश्किलें झेलनी होंगी।"
उमर अब्दुल्ला ने बीजेपी पर अवसरवादी राजनीति करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने संशोधित भूमि नियमों को लेकर अधिसूचना जारी करने को बीजेपी की सस्ती राजनीति करार दिया। उन्होंने कहा, "दिलचस्प बात यह है कि केंद्र ने तब तक इंतजार किया जब तक कि एलएएचडीसी के चुनाव नहीं हो गए और बीजेपी ने लद्दाख को भी बेचने से पहले बहुमत हासिल कर लिया। बीजेपी के आश्वासनों पर भरोसा करने के लिए लद्दाख के लोगों को यही मिला है।"
बता दें कि केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया था। इसके बाद 31 अक्तूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। इसके केंद्र शासित प्रदेश बनने के एक साल बाद जमीन के कानून में बदलाव किया गया है।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में सिर्फ वहां के निवासी ही जमीन की खरीद कर सकते थे, मगर मोदी सरकार की नई अधिसूचना के मुताबिक, अब बाहर के लोग भी यहां जमीन खरीद सकते हैं।(आईएएनएस के इनपुट के साथ)(navjivan)
पटना, 28 अक्टूबर | बिहार में विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में आज 71 विधानसभा क्षेत्र के करीब 214 करोड़ मतदाता 1,066 प्रत्याशियों के राजनीतिक भविष्य का फैसला कर रहे हैं.
प्रथम चरण के चुनाव में कड़ी टक्कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और विपक्षी दलो के महगठबंधन के बीच माना जा रहा है। वहीं कुछ क्षेत्रों में अन्य राजनीतिक दल और निर्दलीय प्रत्याशी मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने के प्रयास में भी हैं।
बिहार में प्रथम चरण में 214 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग आज करेंगे। मतदान के लिए 31,380 केंद्र बनाए गए हैं। सभी मतदान केंद्रों पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की तैनाती की गई है।
चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश के अनुसार, सभी मतदान केंद्रों पर सामाजिक दूरी का पालन करते हुए मतदान होगा। सभी मतदान केंद्रों पर एक हजार मतदाता मतदान में शामिल होंगे। मतदाताओं को मास्क, गमछा या तौलिया से मुंह ढककर मतदान के लिए जाना होगा। केंद्रों पर थर्मल थमार्मीटर से मतदाताओं के शरीर के तापमान की जांच होगी, उनके हाथ सेनिटाइज कराए जाएंगे और इसके बाद ग्लब्स पहनकर मतदान देना होगा।
प्रथम चरण में 1066 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इस चरण में कई हाइप्रोफाइल सीटें हैं और कई बड़े नेता मैदान में हैं। इस कारण यह उनके लिए प्रतिष्ठा का भी सवाल है।
प्रथम चरण के चुनाव में राजग की ओर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 29, जनता दल युनाइटेड के 35, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के छह और विकासशील इंसान पार्टी के एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जबकि महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 42, कांग्रेस के 21 और भाकपा (माले) के आठ प्रत्याशी चुनावी समर में हैं।
बिहार में विधानसभा की 243 सीटों के लिए तीन चरणों में चुनाव होना है। इसके तहत प्रथम चरण के लिए 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर, दूसरे चरण के लिए 3 नवंबर को 94 सीटों पर और तीसरे चरण के लिए 7 नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा। वहीं वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर | केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए कृषि से संबंधित तीन कानूनों के विरोध में किसान संगठनों ने देशव्यापी आंदोलन करने फैसला लिया है। इस सिलसिले में दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज साहब में मंगलवार को हुई एक बैठक में आगामी पांच नवंबर को देशभर में हाईवे जाम करने रखने का फैसला लिया गया है। बैठक में शामिल हुए भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आईएएनएस को बताया कि देश के विभिन्न प्रदेशों के सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की यहां एक बैठक हुई, जिसमें पांच नवंबर को दिन के 12 बजे से शाम चार बजे तक पूरे देश में हाईवे जाम रखने का फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके बाद किसान 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच किया जाएगा।
भाकियू नेता ने कहा, "पूरे देश में काले कानूनों के विरुद्ध साझा आंदोलन लड़ने का फैसला लिया गया है जिसमें पांच नवंबर को 12 बजे से चार बजे तक पूरे देश में हाईवे जाम किए जाएंगे और 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच किया जाएगा और इन आंदोलनों को मजबूती से लड़ने के लिए पांच सदस्यीय एक कमेटी बनाई गई है।"
इस कमेटी में पंजाब से सरदार बलबीर सिंह राजेवाल, महाराष्ट्र से राजू शेट्टी, उत्तर प्रदेश से सरदार वीएम सिंह , योगेंद्र यादव और हरियाणा से गुरनाम सिंह चढूनी शामिल है।
उन्होंने कहा कि बैठक में यह भी फैसला लिया गया है कि देश के जो अन्य संगठन जो अभी तक आंदोलन में शामिल नहीं हो सके हैं या अलग-अलग जगह पर आंदोलन कर रहे हैं, उन सभी को भी इस आंदोलन में शामिल किया जाए, उनसे समन्वय बढ़ाने का काम भी यह कमेटी करेगी।
संसद के मानसून सत्र में दोनों सदनों से पारित हुए कृषि से जुड़े तीन अहम विधेयकों, कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 अब कानून बन चुके हैं।
सरकार का कहना है कि नये कानून से कृषि के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव आएगा, लेकिन किसान संगठन बताते हैं कि इन कानूनों का फायदा किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट को होगा। गुरनाम सिंह ने कहा कि किसान संगठनों की मांग है कि इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और किसानों को उनकी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी देने के लिए नया कानून बनाया जाए।
पंजाब से सरदार बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि किसानों को आशंका है कि उनको बिजली बिल में जो अनुदान मिल रहा है वह भी सरकार आने वाले दिनों में समाप्त कर सकती है।(आईएएनएस)
लखनऊ, 28 अक्टूबर | उत्तर प्रदेश में अब शराब और बीयर की फुटकर दुकानें सुबह 10 से रात 10 बजे तक खुलेंगी। इस संबंध में आबकारी विभाग के अपर आयुक्त हरीशचंद्र ने आदेश जारी किया है। अभी तक इन दुकानों के संचालन का समय सुबह 10 बजे से रात नौ बजे तक का था। हलांकि कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर बनाए गए कंटेनमेंट जोन में पहले की तरह पाबंदी रहेगी। शराब विक्रेता वेलफेयर एसोसिएशन ने प्रदेश में शराब की दुकानों की समयावधि बढ़ाने का स्वागत किया है।
कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने पर शराब की दुकानें भी बंद हो गई थीं। राजस्व का नुकसान रोकने के लिए शासन ने चार मई को शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लिया। सुबह 10 से शाम सात बजे तक दुकानें खोलने की अनुमति मिली। करीब दो माह बाद दुकानें रात नौ बजे तक खोलने की अनुमति दी गई थी।
एसोसिएशन के महामंत्री कन्हैया लाल मौर्या ने बताया प्रदेश के हजारों लाइसेंसी कारोबारियों ने आबकारी विभाग के अधिकारियों को मांगपत्र देकर दुकानों के समय अवधि बढ़ाने की मांग थी। समय अवधि कम होने से निर्धारित कोटा उठाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था त्योहारों को देखते हुए या निर्णय उचित हैं। प्रदेश के लाइसेंसी कारोबारियों द्वारा इस निर्णय का स्वागत किया है और विभाग का आभार जताया है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर | दिल्ली विधानसभा की कमेटी ने दिल्ली में गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटियों के चुनाव की तैयारियों को लेकर मंगलवार को गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय के साथ एक अहम बैठक की। इस दौरान गुरुद्वारा प्रबंधन निदेशालय से गुरुद्वारा सिख प्रबंधन कमेटियों के चुनाव की तैयारियों के बारे में जानकारी ली गईं। दिल्ली सरकार की तरफ से दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटियों के चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सरकार प्रबंधन कमेटियों का चुनाव सही समय पर निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराना सुनिश्चित करेगी। कमेटी को गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय ने बताया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण शुरू कर दिया गया है और हर वार्ड में अधिकारी नियुक्त कर दिए हैं।
अधिकारी घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन शुरू कर दिए हैं। साथ ही ऑनलाइन मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
आम आदमी पार्टी के विधायक एवं विधानसभा की कमेटी के सदस्य जरनैल सिंह ने कहा, "दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी में 46 वार्ड हैं, जिनमें चुनाव होने हैं। इस संबंध में विधानसभा में कमेटियों की बैठक हुई। इस बैठक में गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय के अधिकारी को भी बुलाया गया था।"
कमेटी ने निदेशालय को निर्देशित किया कि प्रबंधन कमेटियों का चुनाव समय से और निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराया जाना सुनिश्चित किया जाए। गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय ने कमेटी को बताया कि 22 अक्टूबर से लेकर 20 नवंबर तक मतदाता सूची का पुनरीक्षण का कार्य किया जाएगा।
जरनैल सिंह ने बताया कि 2017 का चुनाव को देखा जाए, तो उस चुनाव में पूरी दिल्ली में सिर्फ 1.75 लाख वोट पड़े थे, जबकि दिल्ली में सिखों की आबादी इससे कई गुना अधिक रहती है। अधिक से अधिक मतदाता सूची का पुनरीक्षण (रिवीजन) हो सके और अब तक मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने से वंचित रहने वाले ज्यादा से ज्यादा लोगों को उसमें शामिल किया जा सके, यही हमारा उद्देश्य है। इस दौरान कमेटी ने यह भी देखा कि जितने वोट बने हैं, उसमें से करीब 45 फीसदी के आसपास वोट ही पड़े।
उन्होंने कहा, "अगर मौजूदा कमेटी की बात की जाए, तो वो सिर्फ 76000 वोट से चुनाव जीती है। हमारी कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा वोट बने। कमेटी ने गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय को मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने का भी निर्देश दिया गया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट डालने के लिए आगे आएं और सही समय पर निष्पक्ष तरीके से ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी से चुनाव में हो सके।"(आईएएनएस)
भोपाल, 28 अक्टूबर | कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट मध्यप्रदेश में विधानसभा के उप-चुनाव में प्रचार करने आए हैं। पायलट की उनके पूर्व सहयोगी रहे पूर्व क्रेद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से ग्वालियर में मुलाकात हुई। इस मुलाकात को लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है। सूत्रों का कहना है कि सिंधिया की पायलट से ग्वालियर में मुलाकात हुई है। इस दौरान दोनों के बीच क्या चर्चा हुई इसका खुलासा नहीं हो पाया है।
ज्ञात हो कि सिंधिया ने मार्च में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामना था। सिंधिया के साथ 22 कांग्रेस विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी। उसके बाद ही कांग्रेस की कमल नाथ सरकार गिर गई थी। वर्तमान में राज्य में 28 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव होने जा रहा है। पायलट दो दिवसीय दौरे पर आए हैं।(आईएएनएस)
नोएडा, 28 अक्टूबर | नोएडा मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एनएमआरसी) ने ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर एक सराहनीय कदम उठाया है। नोएडा सेक्टर-50 मेट्रो स्टेशन को अब ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग ही संचालित करेंगे। यानी कि अब ये मेट्रो स्टेशन 'रेनबो स्टेशन' के नाम से जाना जाएगा। मेट्रो स्टेशन पर टिकट काउंटर से लेकर हाउस कीपिंग सर्विस की सारी जिम्मेदारी ट्रांसजेंडर्स (किन्नरों) को दी गई है। वहीं टिकट काउंटर और रिसेप्शन का कामकाज अब दिल्ली निवासी माही गुप्ता ने संभाला है।
दरअसल, ये कदम ट्रांसजेंडर को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उठाया गया है। वहीं मंगलवार को सेक्टर-50 मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया गया। जिले के सांसद महेश शर्मा ने इसका उद्घाटन किया। साथ ही नोएडा के विधायक पंकज सिंह और एमडी रितु माहेश्वरी इस मौके पर उपस्थित रहे।
हालांकि एनएमआरसी की इस पहल की खूब चर्चा भी हो रही है। एएमआरसी का कहना है कि ट्रांसजेंडर को भी मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इस तरह की पहल की जरूरत है।
बसेरा समाजिक संस्थान की तरफ से दो ट्रांसजेंडर की भर्ती की गई है। इस संस्थान की प्रोग्राम मैनेजर रिजवान अंसारी उर्फ रामकली ने आईएएनएस को बताया, "हमारी तरफ से माही गुप्ता और सूरज (काजल) की भर्ती हुई है। इस पहल को लेकर हम बहुत खुश हैं। हम ऋतु माहेश्वरी जी का धन्यवाद करते हैं। वहीं उनके द्वारा भी हम लोगों को धन्यवाद दिया गया है और उन्होंने कहा है कि हम आगे भी इसी तरह से भर्ती करते रहेंगे।"
उन्होंने कहा, "यूपी में इस तरह का कदम उठाना बहुत बड़ी बात है, क्योंकि यहां उठाया गया इस पहल की गूंज दूर तक जाएगी। बहुत सारे लोगों ने आज मुझे फोन किया और बोला है कि हमारी भी इस तरह की नौकरी लगवाएं।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)| पत्रकार तरुण तेजपाल के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के मामले में समय-सीमा 31 मार्च 2021 तक बढ़ाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अगर वह वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मुकदमे के लिए तैयार हो जाएंगे, तो यह दो महीने के अंदर समाप्त हो जाएगा। कोविड-19 महामारी के बीच शिकायतकर्ता महिला ने अपनी क्रास एग्जामिनेशन वीडियोकांफ्रेंस के जरिए कराने की मांग की थी, तेजपाल ने हालांकि इसका कड़ाई से विरोध किया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया कि मुकदमे की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति ने वैध आधार पर मामले में सुनवाई को बढ़ाया है। पीठ ने कहा कि 31 प्रत्यक्षदर्शियोंकी जांच होनी बाकी है।
गोवा सरकार की ओर से पेश सॉलिस्टिर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट की बात पर सहमति जताई। वहीं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जोर देकर कहा कि सुनवाई को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
पीठ ने सिब्बल से कहा, "आप वीडियो कांफ्रेंस के जरिए ट्रायल के लिए तैयार नहीं हैं, नहीं तो यह दो महीने के अंदर समाप्त हो जाता।"
संक्षिप्त सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई की अंतिम तिथि 31 मार्च 2021 तक बढ़ा दी। पहले सुनवाई इसी साल 31 दिसंबर को समाप्त होनी थी।
लखनऊ, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)| एक महिला जो हाथरस पीड़िता की 'भाभी' के रूप में अपने आप को प्रचारित कर रही थीं, वो वही हैं जो खुद को आगरा में 15 साल की लड़की संजली की 'मौसी' बता रही थीं। आगरा की इस लड़की को उसके कथित प्रेमी ने 2018 में जिंदा जला दिया था। उन्होंने उन दिनों आगरा का दौरा किया था और शव का दाह संस्कार रोकने की भी कोशिश की थी। स्थानीय लोगों द्वारा पुलिस को बुलाए जाने पर वह वहां से चली गई। पीड़िता के परिवार ने भी उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया था।
'मौसी' और फिर 'भाभी' के रूप में पहचान बनाने वाली महिला दरअसल जबलपुर के एक अस्पताल की फिजीशियन डॉ. राजकुमारी बंसल हैं और वह जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डॉक्टर रह चुकी हैं।
हाथरस मामले की जांच कर रही एसआईटी ने पाया कि 'भाभी' 16 सितंबर से 22 सितंबर के बीच हाथरस पीड़ित परिवार के साथ सहानुभूति जताने के लिए रहीं।
जब इस महिला के बारे में कहानियों का दौर शुरू हुआ और एक स्थानीय समाचारपत्र ने उसके बारे में छापा, तो डॉ. राजकुमारी बंसल ने कहा, "मैं मानवीय आधार पर परिवार के साथ थी। मेरा पीड़ित परिवार के साथ कोई संबंध नहीं है। मैं इस मुश्किल समय में परिवार के साथ रहना चाहती थी, और उनके आग्रह पर मैं वहां थी।"
उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में विवाहित महिलाओं को 'भाभी' के रूप में पुकारा जाना आम बात है।
राजकुमारी ने उन खबरों का भी खंडन किया, जिसमें कहा गया था कि उनके नक्सलियों से संबंध हैं। उसने कहा, "अगर यह सच है कि मैं नक्सलियों के साथ हूं, तो अधिकारियों को यह साबित करना होगा।"
उन्होंने बताया कि उनके हाथरस प्रवास के दौरान भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी वहां आए थे।
उसने कहा, "मेरे प्रवास के दौरान, भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर परिवार से मिलने आए थे। कुछ लोगों और मीडियाकर्मियों ने मेरा वीडियो शूट किया जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और कुछ लोगों ने मुझे माओवादी भी कहा है। ये निंदनीय और बेबुनियाद आरोप हैं।"
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)| देश के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में सरकारी एजेंसियों से किसानों से एमएसपी पर धान की खरीद तेज कर दी है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, चालू खरीफ विपणन सीजन के दौरान करीब 160 लाख टन धान की खरीद हो चुकी है, जोकि पिछले साल के मुकाबले करीब 19 फीसदी ज्यादा है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, केरल और गुजरात में सरकारी एजेंसियों ने 26 अक्टूबर तक 159.55 लाख टन धान की खरीद कर ली थी, जबकि पिछले साल इस सीजन के दौरान इसी अवधि तक 134.52 लाख टन धान की खरीद हुई थी। इस प्रकार, पिछले साल के मुकाबले धान की सरकारी खरीद 25 लाख टन यानी 18.60 फीसदी ज्यादा हो चुकी है।
खास बात यह है कि 159.55 लाख टन में से 107.81 लाख टन धान की खरीद सिर्फ पंजाब में हुई है, जोकि कुल खरीद का 67.57 फीसदी है।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इसका लाभ 13.64 लाख किसानों को मिला है, जिनसे सरकारी एजेंसियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,868 रुपये प्रति क्विंटल पर 159.55 लाख टन धान खरीदा है, जिसका कुल मूल्य 30,123.73 करोड़ रुपये है।
वहीं, मूंग, उड़द और मूंगफली की सरकारी खरीद 26 अक्टूबर तक 1,543.11 टन हुई है। जबकि भारतीय कपास निगम ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में 26 अक्टूबर तक किसानों से 3,98,683 गांठ (एक गांठ में 170 किलो) कपास एमएसपी पर किसानों से खरीदी है।
नई दिल्ली, 27अक्टूबर। रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों और दूसरी लोन संस्थाओं को निर्देश दिया है कि वे मोरेटोरियम पीरियड के दौरान बकाया EMI पर ग्राहकों से ब्याज ना वसूले। सरकार ने कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह 2 करोड़ रुपए तक के लोन की EMI पर लगने वाले ब्याज की भरपाई अपनी तरफ से करेगा। मंगलवार को RBI ने इस मामले में एक नोटिफिकेशन जारी किया है।
क्या है यह स्कीम?
सुप्रीम कोर्ट में चली लंबी बहस के बाद सरकार और सुप्रीम कोर्ट इस बात पर सहमत हुई कि सरकार EMI पर लगने वाला ब्याज माफ करेगी। सरकार के इस स्कीम के तहत 1 मार्च से लेकर 31 अगस्त के बीच सिंपल इंटरेस्ट और कंपाउंड इंटरेस्ट के बीच का जो फर्क है उसकी भरपाई सरकारी खजाने से होगा। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि यह पैसा सीधे ग्राहकों के खाते में आएगा या लोन की रकम में एडजस्ट किया जाएगा।
अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक, यह साफ है कि सरकार बैंकों की भरपाई करेगी। इस स्कीम के तहत फायदा लेने के लिए एक तय समय से पहले आवेदन करना होगा।
किसे होगा इस स्कीम का फायदा?
सरकार ने कहा है कि 2 करोड़ रुपए तक के लोन की EMI पर लगने वाला ब्याज वह चुकाएगा। बैंकों, NBFC और सरकारी-कोऑपरेटिव बैंकों से लिए गए लोन इस दायरे में आएंगे।
हालांकि इसमें एक शर्त है। शर्त ये है कि इस स्कीम के दायरे में सिर्फ वही लोन आएंगे जो 29 फरवरी 2020 तक NPS घोषित ना हुए हों। यह बॉरोअर पर निर्भर करेगा कि वह तीन महीने की EMI पर इस स्कीम का फायदा ले या फिर 6 महीने के लिए।
स्कीम का फायदा सभी के लिए
वैसे तो इस मामले की शुरुआत मोरेटोरियम पीरियड में EMI ना चुका पाने वालों के लिए किया गया था। लेकिन अब सरकार इस स्कीम का फायदा सबको देगी। यानी जिन लोगों ने 1 मार्च से लेकर 31 अगस्त के बीच EMI चुकाया है उन्हें भी इसका फायदा मिले। इस स्कीम का फायदा सबको देने की वजह ये है कि वक्त पर EMI चुकाने वालों को नुकसान ना हो। (moneycontrol)
वोडाफोन से बीती हुई तारीख से टैक्स वसूलने को एक अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के द्वारा गलत ठहराए जाने के बावजूद मामला अभी शांत नहीं हुआ है. भारत सरकार ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दे सकती है.
मामला 2007 में टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन द्वारा इसी क्षेत्र की एक और कंपनी हचीसन के भारत में व्यापार और संपत्ति को खरीदने से जुड़ा है. उसी साल सितंबर में भारत सरकार ने वोडाफोन को आदेश दिया था कि वो इस खरीद पर पूंजी लाभ टैक्स के रूप में 7,990 करोड़ रुपए जमा करे. भारत सरकार ने 2016 में एक बार फिर वोडाफोन को टैक्स नोटिस भेज दिया और इस बार मूल मांग पर ब्याज मिला कर कुल रकम को बढ़ा कर लगभग 22,000 करोड़ रुपए कर दिया.
पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने वोडाफोन के हक में फैसला देते हुए टैक्स की मांग को गैर वाजिब बताया और भारत सरकार को इस पर आगे ना बढ़ने का आदेश दिया. तब से यह अटकलें लग रही थीं कि भारत सरकार अब मामले को आगे बढ़ाएगी या नहीं.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार को सलाह दी है कि इस फैसले के खिलाफ अपील की जानी चाहिए क्योंकि कोई भी अंतरराष्ट्रीय अदालत किसी देश की संसद द्वारा पारित कानून के खिलाफ फैसला नहीं दे सकती है. वोडाफोन का शुरू से कहना रहा है एक यह एक अंतरराष्ट्रीय डील थी और इस पर उसके द्वारा भारत सरकार को कोई भी टैक्स देय नहीं था.
वोडाफोन मामले पर भारत और विदेश में कई निवेशकों ने कहा कि पीछे की तिथि से टैक्स लगाना एक बुरा उदाहरण है क्योंकि इस से टैक्स नियमों में स्थिरता पर आघात होता है.
क्या है मामला
कंपनी ने टैक्स नोटिस को पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के पक्ष में फैसला दिया. 2012 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नाकाम करने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आय कर कानून में संशोधन कर के उसे पीछे की तारीख से लागू करने का प्रस्ताव रखा. संसद ने संशोधन पारित कर दिया और वोडाफोन पर फिर से टैक्स भरने की बाध्यता स्थापित हो गई.
भारत और विदेश में कई निवेशकों ने इस कदम की निंदा की और कहा कि पीछे की तिथि से टैक्स लगाना एक बुरा उदाहरण है क्योंकि इस से टैक्स नियमों में स्थिरता पर आघात होता है. टैक्स नियमों में स्थिरता को निवेश के मूल आधारों में से एक माना जाता है.
अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद भारत सरकार ने बातचीत के जरिए वोडाफोन के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास किया. 2014 तक ये प्रयास चलते रहे लेकिन अंत में इनके बेनतीजा रहने पर वोडाफोन ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के दरवाजे पर दस्तक दी. (DW)
लखनऊ, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)| कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंगलवार को कहा कि रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे व्यापारियों को कर्ज की नहीं, बल्कि विशेष सहायता पैकेज की जरूरत है। यूपी में रेहड़ी-पटरी वालों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस की नेता ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान रेहड़ी-पटरी वाले और छोटे दुकानदार काफी ज्यादा प्रभावित हुए।
उन्होंने कहा, "घर चलाना उनके लिए मुश्किल हो गया है, उनकी जीविका बर्बाद हो गई है।"
प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना को स्ट्रीट वेंडर्स की मदद के लिए 1 जून को लांच किया गया था। दरअसल, कोविड-19 महामारी की वजह से इनकी जीविका चौपट हो गई थी, जिसे देखते हुए यह योजना लाई गई है।
तमिलनाडु में हिरासत में दो व्यक्तियों के मारे जाने के मामले में पुलिस पर लगे आरोपों को सीबीआई ने सही ठहराया है. संस्था ने कहा है कि पिता-पुत्र को घंटों तक इतना मारा गया कि पुलिस स्टेशन की दीवारों पर खून के छींटे लगे थे.
58 वर्षीय जयराज और उनके 31 वर्षीय पुत्र बेनिक्स को 19 जून को तमिलनाडु के थूथिकोरिन में पुलिस ने उनकी मोबाइल फोन की दुकान को प्रशासन द्वारा तय समय से 15 मिनट ज्यादा खुला रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया था. 22 जून की शाम पुलिस ने बेनिक्स को अस्पताल में भर्ती कराया और उसके लगभग एक घंटे बाद उसकी अस्पताल में ही मौत हो गई. उसी रात पुलिस ने जयराज को भी अस्पताल में भर्ती कराया और अगली सुबह उसकी भी मौत हो गई.
पुलिस ने दावा किया था कि उन दोनों ने पुलिसकर्मियों से लड़ाई की थी और गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए सड़क पर लेट कर खुद को घायल कर लिया था. मृतकों के संबंधियों ने कहा था कि दोनों के शरीर पर और विशेष रूप से दोनों के कूल्हों और मलद्वार के आस पास इतनी गहरी चोट थी कि वहां जरा भी चमड़ा नहीं बचा था. अब इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में पुलिस के खिलाफ हिंसा और कानून के उल्लंघन के आरोपों को सही ठहराया है.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार सीबीआई ने चार्जशीट में लिखा है कि पुलिस ने पिता-पुत्र को शाम के 7:45 से ले कर सुबह के तीन बजे तक पीटा. सीबीआई के अनुसार पुलिस उन दोनों को सबक सिखाना चाहती थी कि पुलिस के साथ कैसे पेश आना चाहिए. यही नहीं, पुलिस ने अपने जुर्म को छुपाने के लिए दोनों के खिलाफ फर्जी एफआईआर भी दर्ज की.
भारत में हिरासत में लोगों का मारा जाना एक बड़ी समस्या है. पिछले एक दशक में कम से कम 17,146 लोग न्यायिक और पुलिस हिरासतों में मारे गए, यानि औसत हर रोज पांच लोग.
इसके अलावा पुलिस ने दोनों को अगले दिन अदालत ले जाने से पहले उनके खून से सने कपड़े दो बार बदले और उन कपड़ों को उनके परिवार के सदस्यों को देने की जगह एक सरकारी अस्पताल के कूड़ेदान में फेंक दिया. चार्जशीट यह भी कहती है कि दोनों को लगभग नग्न कर के उन्हें एक टेबल पर झुका कर उनके हाथ और पैर पकड़ पर पीटा गया.
जयराज ने पुलिस को बताया भी कि उन्हें उच्च रक्तचाप और मधुमेह की बीमारी है और वो ऐसी चोटें सह नहीं सकेंगे, लेकिन पुलिसवालों ने उनकी एक ना सुनी और मार-पीट को जारी रखा. सीबीआई की चार्जशीट ने पुलिस पर पहले से लगे आरोपों को स्थापित कर दिया है और तमिलनाडु में भी पुलिस का बर्बर चेहरा सबके सामने ला दिया है.
भारत में हिरासत में लोगों का मारा जाना एक बड़ी समस्या है. पिछले एक दशक में कम से कम 17,146 लोग न्यायिक और पुलिस हिरासतों में मारे गए, यानि औसत हर रोज पांच लोग. इनमें से 92 प्रतिशत मौतें 60 से 90 दिनों की अवधि वाली न्यायिक हिरासतों में हुई थी. शेष मौतें पुलिस हिरासत में हुईं जो 24 घंटे की अवधि की होती है. (DW)
पणजी, 27 अक्टूबर| देशभर में लगाए गए लॉकडाउन का प्रतिकूल प्रभाव लगभग सभी स्तरों पर पड़ा है। गोवा भी इससे अछूता नहीं रहा है। लॉकडाउन के चलते यहां के पर्यटन उद्योग को 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। गोवा में चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष मनोज काकुलो ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी और साथ ही राजस्व की कमी को पूरा करने व अधिक रोजगार सृजन के लिए राज्य सरकार से तत्काल प्रभाव से खनन कार्यो को शुरू करने की अपील की।
काकुलो ने यहां अपने एक बयान में कहा, "विभिन्न एजेंसियों द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि राज्य का पर्यटन उद्योग यहां के लिए राजस्व कमाने का सबसे बड़ा स्रोत है। लॉकडाउन के चलते इसे 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।"
काकुलो ने गोवा में खनन गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा उठाए गए 'सक्रिय कदम' का स्वागत किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय खान मंत्री प्रह्लाद जोशी संग बैठकें शामिल हैं।
उन्होंने आगे कहा, "खनन गतिविधियों के पुन: संचालन से रॉयल्टी और करों के रूप में राज कोष में वृद्धि होगी, जिसकी अभी बहुत ज्यादा जरूरत है और साथ ही महामारी की इस चुनौतीपूर्ण घड़ी में गोवा के हजारों निवासियों को आजीविका का एक अहम स्रोत भी प्राप्त होगा।" (आईएएनएस)
समीरात्मज मिश्र
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर। घटना यूपी के ललितपुर की है। जहां पहले एक व्यक्ति ने कथित तौर पर तीन साल की एक बच्ची का अपहरण किया। बाद में उसे लेकर रेलवे स्टेशन पहुँचा और फिर भोपाल जाने वाली ट्रेन पर सवार हो गया। हालांकि अभियुक्त और उसकी यह हरकत सीसीटीवी फ़ुटेज में क़ैद हो गई थी। इस दौरान घरवालों ने पुलिस को बच्ची के गुमशुदा होने की ख़बर दे दी थी। जिसके बाद पुलिस हरकत में आई और ट्रेन को बिना कहीं रोके ललितपुर से भोपाल तक दौड़ाया गया।
बच्ची को अपहरणकर्ता के हाथों सुरक्षित बचा लिया गया लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो उस पर पहली बार में यक़ीन किसी को नहीं हुआ।
ललितपुर के पुलिस अधीक्षक मिजऱ्ा मंजऱ बेग ने बीबीसी को बताया, रविवार शाम एक महिला ने रेलवे स्टेशन पर आकर पुलिस को ख़बर दी कि उसकी तीन साल की बेटी का अपहरण हो गया है। महिला ने यह भी बताया कि अपहरणकर्ता को उसने एक ट्रेन में चढ़ते हुए देखा है। उनकी जानकारी के आधार पर सीसीटीवी फ़ुटेज खँगाले गए तो युवक बच्ची को लेकर राप्तीसागर एक्सप्रेस ट्रेन पर चढ़ता हुआ मिला। यह तय किया गया कि भोपाल तक इस ट्रेन को नॉन-स्टॉप चलाया जाए ताकि भोपाल में उसे आसानी से गिरफ़्तार किया जा सके।
एसपी मंजऱ बेग बताते हैं, जब भोपाल में कऱीब ढाई घंटे बाद ट्रेन रुकी तो वहां की पुलिस पहले से ही अलर्ट पर थी। ट्रेन से बच्ची को बरामद कर लिया गया। अपहर्ता कोई और नहीं बल्कि बच्ची के पिता ही थे। पति-पत्नी में लड़ाई हुई थी जिसके बाद पति बच्ची को लेकर भाग आया था। हालांकि पत्नी ने यह नहीं बताया था कि बच्ची को उसका पिता ही लेकर गया है।
भारतीय रेलवे के इतिहास में शायद यह पहला मौक़ा है, जब किसी अपहर्ता को पकडऩे और अग़वा बच्ची को छुड़ाने के लिए ट्रेन को नॉन-स्टॉप दौड़ाया गया हो।
कऱीब दो सौ किलोमीटर की इस दूरी में ट्रेन को कहीं पर भी नहीं रोका गया। हालांकि इस बीच ट्रेन के कई स्टॉप हैं। ट्रेन ललितपुर से चली और सीधे भोपाल स्टेशन पर ही रुकी।
बच्ची को ढूंढ़ते हुए परिजन ललितपुर स्टेशन पर मौजूद आरपीएफ़ जवानों से मिले और उन्हें बच्ची के खोने और किसी व्यक्ति को उसे लेकर भागते हुए देखने की सूचना दी। सीसीटीवी कैमरे में अपहर्ता दिखाई दिया जो बच्ची को लेकर ट्रेन में सवार हो रहा था। लेकिन जब तक आरपीएफ़ के जवान कुछ कर पाते, तब तक ट्रेन चल चुकी थी।
इस मामले की जानकारी झांसी में आरपीएफ़ के इंस्पेक्टर को दी गई और फिर भोपाल के ऑपरेटिंग कंट्रोल को इस बारे में बताया गया।
आरपीएफ़ के इंस्पेक्टर ने उनसे अनुरोध किया कि ट्रेन को ललितपुर से भोपाल के बीच कहीं न रोका जाए तो बच्ची को सकुशल उतार लिया जाएगा। ऑपरेटिंग कंट्रोल के अफ़सरों ने ऐसा ही किया। ट्रेन न रुकने के कारण अपहर्ता को कहीं उतरने का मौक़ा नहीं मिला और मजबूरन उसे भोपाल तक जाना पड़ा।
ट्रेन जैसे ही भोपाल स्टेशन पर रुकी, पुलिस की टीम ने अपहर्ता को पकड़ लिया। बाद में पता चला कि अपहर्ता कोई और नहीं बल्कि बच्ची के पिता ही हैं। बाद में पुलिस वालों की मौजूदगी में वह बच्ची को लेकर फिर ललितपुर आया।
ललितपुर के एसपी मिजऱ्ा मंजऱ बेग के मुताबिक़, परिजनों को एक-दूसरे से मिला दिया गया। हालांकि इस बारे में न तो बच्ची के पिता ने कोई बात की और न ही बच्ची की मां ही कुछ बोलने को तैयार हो रहे हैं।
पुलिस के मुताबिक़, बच्ची के पिता लक्ष्मी नारायण ललितपुर के आज़ादपुरा में किराये पर रहते हैं। पति पत्नी में किसी बात को लेकर विवाद हो गया तो लक्ष्मी नारायण बाहर खेल रही अपनी ही बच्ची को लेकर चले गए।
चूंकि उनका घर रेलवे स्टेशन के पास ही है इसलिए बच्ची की मां और दूसरे लोगों ने उसे ले जाते हुए देख लिया और स्टेशन तक पीछा किया। हालांकि बच्ची की मां का कहना है कि उसे ये नहीं पता था कि लक्ष्मी नारायण ही बच्ची को लेकर जा रहे हैं। (bbc.com)