राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 8 जुलाई । पेट्रोल-डीजल के दाम गुरुवार को लगातार दूसरे दिन स्थिर रहे।
देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अनुसार, दिल्ली में पेट्रोल की कीमत आज लगातार 10वें दिन 80.43 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रही। यह 27 अक्टूबर 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। डीजल भी लगातार दूसरे दिन 80.78 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रहा।
कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में पेट्रोल की कीमत क्रमश: 82.10 रुपये, 87.19 रुपये और 83.63 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रही। डीजल का भाव कोलकाता में 75.89 रुपये, मुंबई में 79.05 रुपये और चेन्नई में 77.91 रुपये प्रति लीटर पर पर अपरिवर्तित रहा। (वार्ता)
नई दिल्ली, 9 जुलाई (वार्ता)। देश में कोविड-19 की भयावह होती स्थिति के बीच पिछले 24 घंटों में संक्रमण के सर्वाधिक 24,879 नये मामले सामने आये हैं तथा 487 संक्रमितों की मौत हुई है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 24,879 नए मामले सामने आए हैं जिससे संक्रमितों की संख्या 7,67,296 हो गयी है। इस अवधि में 487 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या बढक़र 21,129 हो गई है।
इस दौरान हालांकि अच्छी बात यह रही कि स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है तथा 19,547 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 4,76,378 लोग रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 2,69,789 सक्रिय मामले हैं।
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में संंक्रमण के 6,603 मामले दर्ज किए गए जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,23,724 पर पहुंच गया है तथा 198 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या बढक़र 9,448 हो गयी है। राज्य में 1,23,192 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में संक्रमितों की संख्या 3,756 बढक़र 1,22,350 पर पहुंच गयी है और इसी अवधि में 64 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 1700 हो गयी है। राज्य में 74,167 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी ने कहर बरपा रखा है और यहां अब तक 1,04,864 लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं तथा इसके संक्रमण से मरने वालों की संख्या 3,213 हो गयी है। यहां 748,199 मरीज रोगमुक्त हुए हैं और इन्हें विभिन्न अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या मामले में चौथे स्थान पर है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में अब तक 38,333 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 1993 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 27,289 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 31,156 मामले सामने आए हैं तथा इस वायरस से 845 लोगों की मौत हुई है जबकि 20,331 मरीज ठी हुए हैं।
दक्षिण भारतीय राज्यों में तेलंगाना और कर्नाटक में कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में संक्रमितों की संख्या 29,536 हो गयी है और 324 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 17,279 लोग अब तक इस महामारी से ठीक हो चुके है। कर्नाटक में 28,877 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 470 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में 11,876 लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
पश्चिम बंगाल में 24,823 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 827 लोगों की मौत हुई है और अब तक 16,291 लोग स्वस्थ हुए हैं। राजस्थान में भी कोरोना का प्रकोप जोरों पर है और यहां संक्रमितों की संख्या 22,063 हो गयी है और अब तक 482 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 16,866 लोग पूरी तरह ठीक हुए है। आंध्र प्रदेश में 22,259 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 264 हो गयी है। हरियाणा में 18,690 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 282 लोगों की मौत हुई है। इस महामारी से मध्य प्रदेश में 629, पंजाब में 178, जम्मू-कश्मीर में 149, बिहार में 107, उत्तराखंड में 46, ओडिशा में 48, केरल में 27, झारखंड में 22, असम में 16, छत्तीसगढ़ और पड्डुचेरी में 14, हिमाचल प्रदेश में 11, गोवा में आठ, चंडीगढ़ में सात, अरुणाचल प्रदेश में दो तथा त्रिपुरा, लद्दाख और मेघालय में एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है।
कर्नाटक के नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व में सोमवार को एक ब्लैक पैंथर देखा गया। एक फारेस्ट रेंज ऑफिसर ने उसे देखा, और उसकी तस्वीरें इंस्टाग्राम पर छा गई हैं। कल तक दो लाख से अधिक लोग उसे पसंद कर चुके थे।
जेब्रा की एक तस्वीर ने आज सोशल मीडिया पर हजारों लोगों को मोह लिया, और सैकड़ों लोगों को मजबूर किया कि वे इस पहेली का जवाब दें। दो जेब्रा की यह तस्वीर एक आईएफएस अधिकारी परवीन कासवान ने ट्विटर पर सुबह पोस्ट की थी। वे अक्सर शानदार तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करते ही रहते हैं, और उनकी पोस्ट मीडिया में खबर बनते रहती है। इस बार उन्होंने पूछा कि दो जेब्रा में से सामने का सिर किस जेब्रा का है, बाएं वाले का, या दाएं वाले का? और सैकड़ों लोगों के जवाब मिलेजुले आए। यह तस्वीर अफ्रीका के जंगलों में एक विख्यात वन्यजीवन फोटोग्राफर सरोश लोधी की खींची हुई है।
नई दिल्ली, 8 जुलाई (वार्ता)। देश में दुर्लभ प्रजाति के ‘दोहरे नारियल’ वाले एकमात्र पेड़ को बचाने के हरसंभव प्रयास तेज कर दिए गए हैं। लंबे समय से लुप्तप्राय इस प्रजाति के दूसरे पौधे तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अब तक इनमें सफलता नहीं मिली है।
पश्चिम बंगाल में हावड़ा के आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान में स्थित इस नारियल के पेड़ का शीर्ष दो-तीन साल पहले एक फफूंद की चपेट में आ गया था जिसके बाद इसका विकास बाधित हो गया था। पिछले एक साल से इसमें एक भी नया पत्ता नहीं निकला है और इसके अन्य पत्ते पीले पड़ते जा रहे हैं जिसने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पत्रिका फल-फूल में हाल में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार अंग्रेजों ने 1894 में दोहरे नारियल वाला इस नारियल पेड़ को लगाया था। करीब 125 साल पुराना यह मादा पेड़ अब मरने के कगार पर पहुंच गया है जिसके कारण इसे बचाने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
नारियल की इस प्रजाति के पेड़ करीब 1200 साल तक जीवित रह सकते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह पेड़ अलग इलाके और जलवायु में है जिसके कारण यह अपना जीवन काल पूरा नहीं कर सकता। यह पेड़ लगभग 30 मीटर लंबा होता है । मादा पेड़ पर हरे रंग के फल लगते हैं और हृदय के अकार के होते हैं। फल का भार 15 से 20 किलो का होता है और पांच से आठ साल में परिपक्व होता है।
संस्थान के क्यूरेटर एस एस हामिद के अनुसार इस पेड़ के मरने से पहले कोई परिपक्व फल तैयार हो जाता है तो दूसरा पेड़ तैयार किया जा सकता है। अंग्रेजों ने भारत, श्रीलंका और थाईलैंड में दोहरे नारियल के पेड़ लगाए थे। ऐसे नारियल के पेड़ सेशेल्स द्वीप पर पाए जाते हैं।
नई दिल्ली, 8 जुलाई (वार्ता)। देश के अग्रणी वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने छोटी अवधि के लिए ऋण लेने वाले ग्राहकों को बुधवार को राहत देते हुए एमसीएलआर में 0.05 से 0.10 फीसदी का कटौती का ऐलान किया है।
बैंक की तरफ से जारी बयान के अनुसार नयी दरें 10 जुलाई से लागू होंगी। बैंक ने कहा कि देश के बैंकिंग तंत्र में उसका एमसीएलआर सबसे कम है। एसबीआई के इस निर्णय के बाद तीन माह के कर्ज पर एमसीएलआर घटकर 6.65 फीसदी रह गया है।
एमसीएलआर की दरें घटने का मतलब है कि अब बैंक के गृह ऋण की ईएमआई कम हो जाएगी किंतु यह कटौती सिर्फ तीन माह के लिए है,ऐसे में इसका लाभ केवल उन्हीं ग्राहकों को मिलेगा, जिनके गृह ऋण की पुन: निर्धारण तिथि जुलाई अथवा अगस्त माह में आती है। इससे पहले 10 जून को भी बैंक ने दरें 0.25 फीसदी घटकर सात प्रतिशत की थीं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 22 मई को रेपो रेट में 0.40 फीसदी की कटौती कर इसे चार प्रतिशत कर दिया था। एमसीएलआर वह दर होती है जिससे नीचे कोई भी बैंक लोन नहीं दे सकता है। बैंक की छह माह की अवधि के लिए वर्तमान में एमसीएलआर 6.95 प्रतिशत है। बैंक ने लगातार 14 वीं बार एमसीएलआर कम किया है।
नई दिल्ली, 8 जुलाई। गांधी परिवार से जुड़े तीन ट्रस्टों में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच होगी। केंद्र सरकार ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। गृह मंत्रालय ने इस जांच के लिए एक इंटर-मिनिस्टेरियल कमेटी बनाई है। इसका अर्थ है कि कमेटी में कई मंत्रालय के लोग शामिल होंगे।
कांग्रेस ने इसे भयभीत मोदी सरकार की कायरतापूर्ण कार्रवाई करार दिया है। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। इसके मुताबिक आयकर अनियमितताओं और विदेशी फंड लेने के प्रावधानों के कथित उल्लंघन के लिए राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की जांच होगी।
इसमें यह भी बताया गया है कि इन ट्रस्टों पर प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट(पीएमएलए), इनकम टैक्स एक्ट(आईटी एक्ट), फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) के तहत जांच होगी। जांच समिति की कमान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के स्पेशल डायरेक्टर को सौंपी गई है।
कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि कांग्रेस का नेतृत्व इससे डरने वाला नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, मोदी जी को लगता है कि सारी दुनिया उनके जैसी है. वो सोचते हैं कि हर किसी की कोई कीमत होती है या हर किसी को डराया जा सकता है। वो ये कभी नहीं समझेंगे कि जो सच्चाई के लिए लड़ते हैं उनकी न कोई कीमत होती है और न ही उन्हें डराया जा सकता है।
इससे पहले पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसका नेतृत्व घबरायी हुई मोदी सरकार के इस कायरतापूर्ण कार्रवाई से डरने वाला नहीं है। राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना जून 1991 में हुई थी जबकि राजीव गांधी चैरेटिबल ट्रस्ट 2002 में अस्तित्व में आया था।
दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी इन दोनों ट्रस्टों की प्रमुख हैं। इन दिनों वो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की भी अध्यक्ष हैं। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि इन ट्रस्टों का वित्तीय लेन-देन पूरी तरह से पारदर्शी है और कहीं कुछ गलत नहीं किया गया है लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है। (bbc)
नई दिल्ली, 8 जुलाई (भाषा)। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर अपनी चिंता जताई। साथ ही आर्थिक सुनामी के लिए चेताने की बात कहते हुए बीजेपी और मीडिया द्वारा मजाक उड़ाए जाने का भी जिक्र किया। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, लघु और मध्यम उद्यम नष्ट हो गए हैं। बड़ी कंपनियां गंभीर तनाव की स्थिति में हैं। बैंक संकट में हैं। मैंने महीनों पहले कहा था कि एक आर्थिक सुनामी आ रही है और देश की इस सच्चाई के बारे में चेताने पर भाजपा और मीडिया ने मेरा मजाक उड़ाया था।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौजूदा वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट के अनुमानों की पृष्ठभूमि में एक दिन पहले यानी मंगलवार को दावा किया था कि सरकार का आर्थिक कुप्रबंधन लाखों परिवारों को बर्बाद करने वाला है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। राहुल गांधी ने देश की आर्थिक विकास दर में गिरावट के पूर्वानुमान से जुड़ी कुछ खबरें शेयर करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, भारत का आर्थिक कुप्रबंधन एक त्रासदी है जो लाखों परिवारों को बर्बाद करने वाला है। इसे अब मौन रहकर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
उधर, सरकार ने सोमवार को कहा कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। कोरोना वायरस संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्था को पुनरूद्धार एवं वृद्धि के रास्ते पर लाने के लिये अनुकूल नीतिगत उपायों के साथ आने वाले समय में और तेजी से पुनरूद्धार की उम्मीद है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की जून में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वृद्धि दर शून्य से नीचे 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। यह अप्रैल, 2020 में जारी आईएमएफ के अनुमान के मुकाबले 6.4 प्रतिशत अंक कम है।
नई दिल्ली, 8 जुलाई (एजेंसी)। गृह मंत्रालय ने राजीव गांधी फाउंडेशन समेत गांधी परिवार से जुड़े तीन ट्रस्टों में वित्तीय लेनदेन में तथाकथित गड़बड़ी की जांच के लिए अंतरमंत्रालय समिति का गठन किया है। प्रवर्तन निदेशालय के विशेष निदेशक इस समिति के प्रमुख होंगे। अंतरमंत्रालय समिति राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट, इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की भी जांच करेगी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया है कि मंत्रालय ने एक अंतर-मंत्रालय कमेटी का गठन किया गया है, जो कि राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की जांच करेगी।
बताया जा रहा है कि इस जांच में मनी लॉड्रिंग एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 एक्ट के नियमों के उल्लंघन की जांच की जाएगी।
क्या है राजीव गांधी फाउंडेशन?
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विजन और सपनों को पूरा करने के लिए उनके नाम से इस फाउंडेशन की शुरुआत 21 जून 1991 को की गई थी। राजीव गांधी फाउंडेशन की वेबसाइट पर बताया गया है कि 1991 से 2009 तक फाउंडेशन ने स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और तकनीक, महिला एवं बाल विकास, अपंगता सहयोग, शारीरिक रूप से निशक्तों की सहायता, पंजायती राज, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन आदि क्षेत्रों में काम किया। 2010 में फाउंडेशन ने शिक्षा क्षेत्र पर फोकस करने का फैसला किया। संघर्ष से प्रभावित बच्चों को शैक्षणिक मदद, शारीरिक रूप से निशक्त युवाओं की गतिशीलता बढ़ाने और मेधावी भारतीय बच्चों को कैंब्रिज में पढऩे हेतु वित्तीय सहायता आदि जैसे कार्यक्रम फाउंडेशन की ओर से चलाए जाते हैं।
कौन हैं ट्रस्टी?
राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सुमन दुबे, राहुल गांधी, डॉ. शेखर राहा, प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन, डॉक्टर अशोक गांगुली, संजीव गोयनका और प्रियंका गांधी वाड्रा भी फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं।
बीजेपी का आरोप है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2005-2008 के बीच पीएम राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा ट्रासंफर किया गया। बीजेपी का कहना है कि राजीव गांधी फाउंडेशन ने कई कॉर्पोरेट से भारी पैसा लिया। बदले में सरकार ने कई ठेके दिए। बीजेपी का कहना है कि यूपीए शासन में कई केंद्रीय मंत्रालयों के साथ सेल, गेल, एसबीआई आदि पर राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा देने के लिए दबाव बनाया गया। देश की जनता इसका कारण जानना चाहती है।
पीएम राहत कोष से फंड ट्रांसफर का आरोप
बीजेपी का आरोप है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2005-2008 के बीच पीएम राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा ट्रासंफर किया गया। बीजेपी का कहना है कि राजीव गांधी फाउंडेशन ने कई कॉर्पोरेट से भारी पैसा लिया। बदले में सरकार ने कई ठेके दिए। बीजेपी कहा कि यूपीए शासन में कई केंद्रीय मंत्रालयों के साथ सेल, गेल, एसबीआई आदि पर राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा देने के लिए दबाव बनाया गया। देश की जनता इसका कारण जानना चाहती है।
इरप्पा नाइक ने 20 बरसों तक पैसे जमा किए ताकि वह गरीब बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल खोल सकें।
-अनूप कुमार सिंह
इरप्पा नाइक का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे। दो जून की रोटी का जुगाड़ भी बहुत मश्किल से हो पाता था ऐसे में पढ़ाई के बारे में सोचने का सवाल ही नहीं था। घर चलाने के लिए इरप्पा के दो बड़े भाइयों को भी मजबूर होकर पढ़ाई छोडऩी पड़ी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए नायक कहते हैं, मेरे दादा (बड़े भाई) बहुत ही होनहार छात्र थे लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोडऩी पड़ी। हालांकि फिर भी उन्होंने मुझे पढ़ाया और स्कूल की फीस भरने के लिए उन्होंने एक्स्ट्रा शिफ्ट में मजदूरी की। जब नाइक 10वीं क्लास में थे तब एक दिन उन्होंने तय किया कि वह अपने भाई के निस्वार्थ मेहनत का कर्ज चुकाने के लिए जरूर कुछ करेंगे। वर्ष 2000 में उन्होंने महाराष्ट्र के मिराज शहर के बाहरी इलाके में गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए एक निशुल्क स्कूल खोलकर उस वादे को पूरा किया।
51 वर्षीय नाइक ने बताया कि मेरे भाई ने गरीबी को आड़े नहीं आने दिया और मेरी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। यह जीवन की एक ऐसी सीख थी जिसे मैंने हमेशा याद रखा। 10वीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने से पहले ही मैंने यह ठान लिया था कि अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं गरीब और वंचित बच्चों को पढ़ाऊंगा।
नाइक अपने फैसले पर अडिग रहे और वह पिछले 20 वर्षों में पहली से दसवीं क्लास तक के 500 बच्चों को पढ़ा चुके हैं। इनमें से ज़्यादातर छात्र दैनिक मजदूरी करने वालों और कचरा बीनने वालों के बच्चे हैं।
काम और स्कूल के बीच भागदौड़
साल 1987 में नाइक ने सांगली जिले के वालचंद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पूरा किया। नाइक परिवार के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी। बेशक, नाइक के माता-पिता को उनसे एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी की उम्मीद थी और वह उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे।
नौकरी के साथ-साथ वह अपने क्षेत्र के आसपास के बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, लेकिन उनकी बस्ती में कक्षा चलाने के लिए कोई जगह नहीं मिली। उन्होंने बताया कि स्कूल बनाने के सपने को तब पंख लगे जब मैं एक सरकारी ठेकेदार के रूप में काम कर रहा था। अच्छे क्लासरूम और यूनिफॉर्म के साथ ही मुझे स्कूल को रजिस्टर करने के लिए परमिशन की भी जरूरत थी। इसलिए मैंने अपना सपना पूरा करने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए। उनके माता-पिता ने भी पूरा साथ दिया। पैसे इक_ा हो जाने के बाद उन्होंने शहर के बाहरी इलाके में एक छोटी सी जमीन खरीदी और दस कक्षाओं (हर ग्रेड के लिए एक कक्षा) का निर्माण कराया।
एक स्थानीय विधायक की मदद से उन्होंने अपने स्कूल को महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड में रजिस्टर कराया और 20 बच्चों के साथ ‘क्रांतिवीर उमाजी नाइक हाई स्कूल’ नाम से मराठी-माध्यम स्कूल शुरू किया।
बच्चों की जिंदगी में बदलाव
नाइक के लिए बच्चों के माता-पिता को घर से इतनी दूर स्कूल में उन्हें पढऩे भेजने के लिए मनाना काफी मुश्किल काम था। लेकिन उन्होंने इस समस्या का भी हल निकाला और स्कूल बस की व्यवस्था करके एक ड्राइवर नियुक्त किया जो रोजाना बच्चों को स्कूल लाता और छोड़ता था। लेकिन एक और समस्या थी। नाइक ने आगे बताया,
अधिकांश माता-पिता ने खराब आर्थिक स्थिति के कारण अपने बच्चों को मुफ्त स्कूल में भेजने से मना कर दिया। कुछ बच्चे कंस्ट्रक्शन साइट पर अपने माता-पिता के साथ काम करने जाते थे। वे आजीविका के लिए अपने बच्चों से काम कराते थे और बाल श्रम जैसे गैरकानूनी काम को नजऱअंदाज करते थे।
तब उन्होंने अपना उदाहरण देकर बच्चों के अभिभावकों को समझाया कि कैसे इतनी गरीबी में उन्होंने पढ़ लिख कर नौकरी पाई। इसके बाद कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किया।
बच्चों की संख्या बढऩे पर उन्होंने ग्यारह शिक्षकों को काम पर रखा। तीन साल पहले तक (जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी थी), उन्होंने अपनी सारी तनख्वाह लगा दी थी।
वर्तमान में राज्य शिक्षा विभाग तीन शिक्षकों के वेतन का भुगतान करता है जबकि बाकी शिक्षकों को नाइक तनख्वाह देते हैं। स्कूल विभाग छात्रों को मिड-डे मील भी देता है जिससे उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाता है। नाइक बच्चों के यूनिफॉर्म और स्टेशनरी जैसे अन्य खर्चे भी उठाते हैं। उन्होंने हाल ही में स्कूल के खर्चों को पूरा करने के लिए अपने परिवार की जमीन का एक हिस्सा बेच दिया। वह कहते हैं, स्कूल चलाने के लिए हम 50,000 रुपये हर महीने खर्च करते हैं। जब से मैंने अपनी नौकरी छोड़ी है, चीज़ें काफी मुश्किल हो गईं हैं। वह शिक्षा विभाग से अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने की योजना पर काम कर रहें हैं। वह नहीं चाहते कि उनके छात्रों को पैसे के लिए शिक्षा से समझौता करना पड़े।
अंत में वह कहते हैं, मेरे 200 छात्रों ने दसवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और उच्च शिक्षा के लिए छोटे-छोटे व्यवसायों में लगे हैं। इससे मुझे स्कूल चलाने के लिए बहुत ताकत मिलती है और उम्मीद है कि मेरा स्कूल उनका जीवन बदल सकता है।
यदि आप नाइक को स्कूल चलाने में मदद करना चाहते हैं, तो बैंक खाते में सहायता राशि भेजकर योगदान कर सकते हैं –
क्रांतिवीर उमाजी नायक शिक्षा प्रसारक
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
खाता संख्या : 20144935260
IFSC: MAHB0000235
आप इस नंबर पर इरप्पा नाइक से संपर्क कर सकते हैं : 9545262849
मूल लेख : गोपी करेलिया
संपादन : अर्चना गुप्ता
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उत्तरप्रदेश 8 जुलाई। कानपुर कांड में जांच के दायरे में आए एसटीएफ के डीआईजी अनंतदेव तिवारी का योगी सरकार ने मंगलवार को तबादला कर दिया। साथ ही दो अन्य अधिकारियों को भी इधर से उधर किया गया है।
गौरतलब है कि गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गुंडों की फायरिंग में शहीद हुए 8 पुलिस अफसरों में शामिल सीओ देवेंद्र मिश्र का पत्र सोमवार को उनकी बेटी ने पुलिस को घर में रखी फाइल से निकालकर दिया था। इसके बाद सोमवार को ही सीओ कार्यालय को सील कर दिया गया था। इस मामले में तत्कालीन एसएसपी अनंतदेव तिवारी पर सवाल उठ रहे थे कि जब सीओ ने उन्हें पत्र लिखकर विकास दुबे और निलंबित थानेदार विनय तिवारी की साठगांठ की पोल खोली थी तब उन्होंने दोनों पर कार्रवाई क्यों नहीं की। इसके बाद देर शाम योगी सरकार ने अनंत देव तिवारी समेत चार आईपीएस का तवादला कर दिया।
सीओ देवेंद्र मिश्र के पत्र को लेकर तत्कालीन एसएसपी और मौजूदा डीआईजी (एसटीएफ ) अनंतदेव तिवारी जांच के घेरे में हैं। सोमवार को यह पत्र सीओ की बेटी ने ही घर में मिली फाइल से निकालकर दिखाया था। यह पत्र फिलहाल किसी रिकार्ड में नहीं है। शक है कि इसे गायब कर दिया गया है। इसके बाद आईजी लखनऊ लक्ष्मी सिंह को मंगलवार सुबह बिल्हौर स्थित सीओ कार्यालय जांच के लिए भेजा गया। उन्होंने दस्तावेजों का निरीक्षण किया। कई पुलिसकर्मियों से पूछताछ भी की।
इस बीच, फॉरेंसिक टीम ने सीओ का कंप्यूटर सील करके लखनऊ स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा है, ताकि कंप्यूटर की हार्डडिस्क से यह पता लगाया जा सके कि यह पत्र इस कंप्यूटर से टाइप हुआ था या नहीं।
उधर, शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा के स्वजन वायरल पत्र को लेकर स्थानीय पुलिस के दावों से आहत है। उनका कहना है कि पुलिस में गंभीरता का अभाव नजर आ रहा है, साथ ही मामले की जांच में शामिल डीआईजी (एसटीएफ ) को भी कठघरे में खड़ा करते हुए नैतिकता के आधार पर जांच टीम से हटाए जाने की मांग भी उठाई थी।
बलिदानी सीओ देवेंद्र मिश्रा के बड़े साढू कमलाकांत ने मंगलवार को मीडिया के सामने आकर कहा कि वायरल पत्र से स्पष्ट हो गया है कि तत्कालीन एसएसपी एवं मौजूदा एसटीएफ -डीआईजी अनंतदेव तिवारी ने पत्र पर कोई संज्ञान नहीं लिया था। इससे उनकी सत्य्निष्ठा सवालों के घेरे में है और जांच के बाद ही पता चलेगा कि वह दोषी हैं या नहीं।
उन्होंने आगे कहा, "कोई भी व्यक्ति खुद अपनी जांच नहीं कर सकता। न्याय का सामान्य सा सिद्धांत है कि जिन लोगों पर संदेह होता है उन्हें जांच से दूर रखा जाता है। खुद संदेह के दायरे में आया व्यक्ति क्या जांच करेगा। सही जांच कमेटी का चयन किया जाना चाहिए, वरना ऐसे लोग तो सच पर धूल डाल देंगे।"
स्थानीय पुलिस के रिकार्ड में उस पत्र के न होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पुलिस के रिकार्ड में उस पत्र का न होना चिंता का विषय है, कहीं कुछ गड़बड़ है, जिसकी जांच की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, "अगर मान भी लें कि शहीद पुलिसकर्मियों का पत्र अधिकारियों तक नहीं पहुंचा तो अब पत्र सामने आने के बाद पुलिस अफसर क्या कार्रवाई कर रहे हैं। गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हो पाई है। पुलिस को उसका सुराग भी नहीं मिल पा रहा है, जबकि पिछले कुछ दिनों से ताबड़तोड़ कई जगह छापेमारी जारी है।"
अपराधी विकास दुबे पांच दिन बाद भी गायब है। यूपी पुलिस की तमाम टीमें उसकी तलाश में जुटी हुई हैं। पुलिस ने मंगलवार 5को उसके कई ठिकानों पर दबिश भी दी। उसके गांव में मौजूद हर घर को खंगाला गया है। (navjiwan)
नई दिल्ली, 7 जुलाई। केरल में सोना तस्करी का मुद्दा तूल पकड़ रहा है। विदेश से आए 30 किलो सोने ने राजनीतिक हलकों में हंगामा मचा दिया है। विपक्षी दल मुख्यमंत्री विजयन पर सवाल उठा रहे हैं तो कई शक्तिशाली अधिकारियों पर पर गाज गिर गई है। केरल सरकार ने तस्करी केस में नाम आने की वजह से सूचना प्रौद्योगिकी सचिव और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव एम शिवशंकर का तबादला कर दिया। सोमवार को सरकार ने इस केस में आरोपी सूचना प्रौद्योगिकी सलाहकार स्वपना सुरेश की सेवा समाप्त कर दी थी। कथित तौर पर वह प्रधान सचिव की करीबी हैं और अभी फरार चल रही हैं।
मुख्यमंत्री पी विजयन के कार्यालय की ओर से जारी संक्षिप्त बयान में कहा गया, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव एम शिवशंकर का तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर किया जा रहा है, उनकी जगह आईएएस पीर मोहम्मद लेंगे। एम शिवशंकर राज्य सरकार के बेहद प्रभावशाली नौकरशाह माने जाते थे।
रविवार को तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सीमा शुल्क अधिकारियों ने भारी मात्रा में सोना बरामद किया था। यह सोना यूएई के वाणिज्य दूतावास के लिए आए बैगों में भरा हुआ था। हवाई अड्डे के सूत्रों ने बताया कि सोना शौचालयों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों से भरे बैग में रखा हुआ था। तस्करी के आरोप में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व कर्मचारी को हिरासत में लिया गया है। पूर्व कर्मचारी को हिरासत में लेने के बाद जांच के लिए कोच्चि ले जाया गया है। आरोपी को जब यह पता चला कि उसके सामान की जांच होगी तो उसने सीमा शुल्क अधिकारियों को धमकी भी दी। इस बीच जय हिंद टेलीविजन चैनल ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कथित रूप से हवाई अड्डे पर यूएई के वाणिज्य दूतावास के पूर्व कर्मचारी की मदद करने की कोशिश की थी।
मुख्यमंत्री पी. विजयन ने आरोपी महिला अधिकारी की नियुक्त से जुड़े कारकों की जानकारी नहीं है। उन्होंने विपक्ष के आरोपों पर जवाब दिया कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने किसी भ्रष्टाचार में शामिल लोगों के साथ कभी कोई संवाद नहीं किया और राज्य की जनता यह जानती है। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल नहीं बच पाएंगे।
केरल में विपक्षी कांग्रेस और भाजपा ने आरोप लगाया है कि राज्य के आयकर विभाग की महिला (वाणिज्य दूतावास की एक पूर्व कर्मचारी) ‘राजनयिक बैग से 30 किलोग्राम सोने की तस्करी में शामिल है। आयकर विभाग मुख्यमंत्री के पास है और उसके अगुवा विजयन के प्रधान सचिव एम शिवशंकर थे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्नितला ने यह आरोप लगाते हुए इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की कि मुख्यमंत्री कार्यालय ‘अपराधियों का अड्डा’ बन गया है। भाजपा प्रमुख के सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि सीमाशुल्क अधिकारियों को इस जब्ती के शीघ्र बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया था। (न्यूजरूमपोस्ट)
नई दिल्ली 7 जुलाई (एजेंसी)। हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री केयर्स फंड के तहत मिलने वाले वेंटिलेटर पर सवाल खड़े किए गए थे। अब वेंटिलेटर बनाने वाली संस्था की ओर से राहुल गांधी को जवाब दिया गया है और सभी आरोपों को नकारा गया है। इसके साथ ही AgVa के मालिक, प्रोफेसर दिवाकर वैश ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा कि आप डॉक्टर नहीं हैं लेकिन मैं उन्हें डेमो देना चाहता हूं।
पीएम केयर्स फंड के तहत AgVa हेल्थकेयर वेंटिलेटर बना रही है। इसके को-फाउंडर प्रोफेसर दिवाकर वैष ने कहा है कि उनके वेंटिलेटर पर जो सवाल खड़े किए जा रहे हैं, वो निराधार हैं। क्वालिटी के आधार पर उनका वेंटिलेटर हर मानक पर खरा उतरता है।
प्रोफेसर दिवाकर ने कहा कि हमारे वेंटिलटर करीब 5 से दस गुना तक सस्ते हैं, एक वेंटिलेटर की कीमत 10-15 लाख तक होती है। लेकिन हमारे वेंटिलेटर की कीमत डेढ़ लाख रुपये तक है। इन प्रोडक्ट्स में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का जाल काम करता है, क्या वो लोग (विरोध करने वाले) स्वदेशी प्रोडक्ट को बढ़ावा नहीं देंगे।
प्रोफेसर दिवाकर ने कहा कि कुछ लोगों को टेक्निकल चीजों की बात पता नहीं थी और वो मार्केटिंग से थे, उन्होंने इसपर सवाल किया। अब राहुल गांधी जी को ये बात पता नहीं होगी, क्योंकि वो डॉक्टर तो है नहीं.. इसलिए उन्होंने इसे रिट्वीट कर दिया।
कांग्रेस नेता ने इन वेन्टिलेटरों की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लगते हुए कहा था कि देश के कई प्रतिष्ठित अस्पताल, डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि अग्वा कंपनी ने बेकार और दोयम दर्जे के वेंटिलेटर सप्लाई किए हैं, जिसमें गड़बड़ी करके यह दिखाया जाता है कि ऑक्सीजन सप्लाई इतनी हो रही है और जबकि होती नहीं है। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि पीएम केयर्स की अपारदर्शिता के कारण देश की जनता के जीवन को खतरे में डाला जा रहा है और लोगों के पैसे का इस्तेमाल घटिया क्वॉलिटी के उत्पाद खरीदने में किया जा रहा है।
रायपुर 07 जुलाई 2020 । सड़क दुर्घटना पीड़ितों कि मदद के लिए आगे आने वाले नागरिकों को प्रोत्साहित करने के अनुक्रम में आज दिनांक 07 जुलाई 2020 को छत्तीसगढ़ यातायात पुलिस प्रमुख श्री आर. के. विज भारतीय पुलिस सेवा ने श्री अखिलेख द्विवेदी एवं श्री धु्रव जांगड़े को प्रषंसा पत्र देकर सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि दिनांक 03 जुलाई 2020 को सांयः 19.15 बजे कृषि विष्वविद्यालय, रायपुर के सामन राष्ट्रीय राजमार्ग (पूल के उपर में) एक व्यक्ति को घायल अवस्था में औंधे मुंह पड़ा देखकर वाहन चालक ख्वाजा सलीम ने यातायात रोक कर घायल व्यक्ति को सड़क किनारे लाने का प्रयास किया। इस दौरान मीडिया कर्मी श्री अखिलेख द्विवेदी एवं श्री धु्रव जांगड़े भी पहुंचे, सब मिलकर घायल को सड़क किनारे लेकर आये एवं हाईवे पेट्रोल वाहन को दूरभाष पर सूचित करने पर थोड़ी देर में हाईवे पेट्रोल वाहन में पहुंचे कर्मचारियों ने घायल व्यक्ति को मेकाहारा अस्पताल ले जाकर उपचार कराया।
इस बात की प्रबल संभावना थी कि कोई भी वाहन पुल के उपर सड़क में पड़े घायल व्यक्ति को रौंद सकता था या अचानक सड़क में पड़े घायल को देखकर बचाने के प्रयास में अनियंत्रित होकर पूल की रेली से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो सकता था।
उल्लेखनीय है कि सड़क दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्षी सहित कोई भी बाईस्टैडर या गुडसेमेरिटन किसी घायल व्यक्तियों को निकटतम अस्पताल में लेकर जा सकता है तथा उस बाईस्टैडर या गुडसेमेरिटन को तुरंत जाने की अनुमति दे दी जायेगी उन्हें किसी प्रकार से परेषान नहीं किया जायेगा। पुलिस को सूचना देने अथवा आपातकालिन सेवाओं हेतु फोन काॅल करता है उसे फोन पर अथवा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना नाम और व्यक्तिगत विवरण देने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।
नई दिल्ली, 7 जुलाई । डीजल के दाम सात दिन के विराम के बाद मंगलवार को फिर बढ़ गए, जबकि पेट्रोल की कीमत लगातार आठवें दिन स्थिर रही।
देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अनुसार, दिल्ली में पेट्रोल की कीमत आज 80.43 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रही। यह 27 अक्टूबर 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। डीजल का मूल्य 25 पैसे बढक़र 80.78 रुपये प्रति लीटर के नये रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में पेट्रोल की कीमत क्रमश: 82.10 रुपये, 87.19 रुपये और 83.63 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रही। डीजल का भाव कोलकाता में 25 पैसे बढक़र 75.89 रुपये, मुंबई में 22 पैसे बढक़र 79.05 रुपये और चेन्नई में 19 पैसे की वृद्धि के साथ 77.91 रुपये प्रति लीटर पर हो गया।(वार्ता)
मध्य्प्रदेश, 7 जुलाई । पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, दिल्ली और नर्मदा बेसिन प्रोजेक्टस कम्पनी लिमिटेड के बीच हुए अनुबंध के बाद 99 गांवों के लगभग 55 हजार लोगों पर विस्थापन का खतरा बढ़ गया है। इनमें लगभग 50 गांव आदिवासियों के हैं, जहां लगभग 30 हजार आदिवासी रह रहे हैं।
दरअसल, पिछले दिनों पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, दिल्ली और नर्मदा बेसिन प्रोजेक्टस कम्पनी लिमिटेड, मध्यप्रदेश के बीच 22 हजार करोड़ का अनुबंध हुआ है। इसमें नर्मदा घाटी की कुल 12 परियोजनाएं शामिल हैं। इनमें चार जल विद्युत और 8 बहुद्देश्यीय (जल विद्युत और सिंचाई दोनों) योजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं से राज्य को 225 मेगावाट बिजली प्राप्त होगी।
अब तक राज्य सरकार 4 परियोजनाओं की डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) बनाई है। इन 4 परियोजनाओं की वजह से लगभग 55 हजार ग्रामीण प्रभावित होंगे, जबकि अभी आठ परियोजनाओं की डीपीआर तैयार नहीं हुई, जिसका असर बाद में दिखाई देगा।
ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी परियोजना 1980 के दशक से शुरू हुई थी, जिसके अंतर्गत 29 बड़े बांधों को बनाया जाना था। अब तक इनमें से आठ का निर्माण हो चुका है। और इनमें से लगभग 625 गांव के 96,500 परिवार विस्थापित हुए यानी लगभग 4,82,500 ग्रामीण अब तक विस्थापित हो चुके हैं।
यहां सबसे बड़ा सवाल है कि राज्य सरकार अब तक इन हजारों परिवारों का तो ठीक से पुनर्वास कर नहीं पाई है, ऐसे में नए 55 हजार और ग्रामीणों को विस्थापित कर कैसे उनका पुनर्वास होगा।
इस संबंध में बरगी बांध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा कहते हैं कि 03 मार्च, 2016 के विधानसभा सत्र में विधायक जितेंद्र गहलोत द्वारा नर्मदा नदी पर 29 बड़े बांध की योजना सबंधी पूछे गए सवाल के जवाब में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिखित जवाब दिया था कि राघवपुर, रोसरा, बसनिया, अपर बुढनेर आदि परियोजना नए भू-अर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि होने, डूब क्षेत्र में वनभूमि आने के कारण निरस्त की गई है।
वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने जब इन योजनाओं को निरस्त करने की बात बकायदा विधानसभा में कही है तो ऐसे में इन परियोजनाओ को नए सिरे से किस आधार पर अनुबंध किया गया है। सबसे बड़ी बात है कि राज्य सरकार इस प्रकार के अनुबंध लॉकडाउन के दौरान किया है। ताकि इसका विरोध न हो सके।
नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कारपोरेशन द्वारा इन 12 परियोजनाओं में से एक बसानिया जल विद्युत परियोजना के अध्ययन में बताया गया है कि 2,256 हैक्टेयर सघन जंगल, 6,033 हैक्टेयर खेती की जमीन और 50 जल स्त्रोत खत्म हो जाएंगे। यह अध्ययन तो सीधे तौर पर विस्थापित होने वाले 50 आदिवासी गांवों का है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इसके अतिरिक्त इस परियोजना के पूरा होने के बाद उसके आसपास के लगभग सात किलोमीटर की परिधि में आने वाले 34 और गांवों के सघन जंगल 4,774, कृषि भूमि 3,860 हेक्टेयर और कुल 66 जल स्त्रोत अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे।
नर्मदा घाटी में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 29 बड़े बांध प्रस्तावित हैं, इसमें बरगी, तवा, बारना, इंदिरा सागर(पुनासा), ओंकारेश्वर, महेश्वर, मटियारी, हालोन बांध का निर्माण हो चुका है। हालोन बांध से मंडला एवं बालाघाट जिले के अधिकतर विस्थापित परिवार आज भी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं।
बरगी बांध के उपर बुढनेर,राघवपुर, रोसरा और बसानिया बांध बनना बाकी है। भारत सरकार और मध्यप्रदेश के बीच हुए अनुबंध के अन्तर्गत डिंडोरी और मंडला जिले के राघवपुर, रोसरा एवं बसनिया बांध से 65 मेगावाट जल विद्युत परियोजना बनाया जाना प्रस्तावित है।
इन तीनों विद्युत परियोजनाओं से 8,367 हैक्टर क्षेत्र में बसे किसानों को विस्थापित किया जाएगा। इन तीन परियोजनाओं पर पूर्व में कुल लागत 1,283.12 करोड़ अनुमानित थी, लेकिन अब इसकी लागत दोगुना से ज्यादा आंकी जा रही है।(downtoearth)
नई दिल्ली 7 जुलाई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने खाद्यान्न, दवाइयां और वित्तीय मदद नहीं मिलने की वजह से 12 साल की एक नेत्रहीन लड़की की मौत होने के मामले में एक जनहित याचिका पर मंगलवार को आप सरकार से जवाब मांगा. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस लड़की को इन चीजों से इसलिए वंचित किया गया क्योंकि उसके पास आधार कार्ड नहीं था जिसके लिए रेटिना स्कैन जरूरी होता है.
शाहदरा के स्वामी दयानंद अस्पताल में एक जुलाई को इस लड़की की मौत हो गयी जहां उसे ले जाया गया था.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जलान की पीठ ने तथ्यों को संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया. आप सरकार को 14 जुलाई तक नोटिस का जवाब देना है.
पीठ ने दिल्ली सरकार को याचिकाकर्ता सौरभ सिंह याचिका में उठायी गयी समस्याओं के समाधान के सुझाव देने का भी निर्देश दिया है.
सिंह ने कहा कि लॉकडाउन और बाद में उसमें दी गयी ढीलों के दौरान दिव्यांग लोग खाद्य केंद्रों पर नहीं पहुंच पाये और न ही वे राशन या वित्तीय मदद के संदर्भ में कोई मदद हासिल कर पाये .
सिंह के वकील कबीर घोष ने कहा कि पहले 30 जून को इस याचिका पर तत्काल सुनवाई की दरख्वास्त की गयी लेकिन यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया एवं अगले ही दिन एक जुलाई को दोपहर में लड़की की मौत हेा गयी.
याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में कई ऐसे दिव्यांग हैं जिन्हें कोई सहायता नहीं मिली क्योंकि उनके पास राशन कार्ड या दिव्यांगता प्रमाणपत्र नहीं हैं. जिनके पास दिव्यांगता प्रमाणपत्र है , उन्हें भी विकलांगता पेंशन से वंचित रखा गया.(theprint)
दुबई, 7 जुलाई । कुवैत में विदेशी कामगारों की संख्या में कटौती के लिए तैयार विधेयक के मसौदे को अगर ‘नेशनल असेंबली’ (विधायिका) मंजूरी दे देती है तो करीब आठ लाख भारतीयों को खाड़ी के इस देश को छोड़ना पड़ सकता है.
नेशनल असेंबली की विधि एवं विधायिका समिति पहले ही विदेशियों का देशों के आधार पर कोटा तय करने के इस विधेयक को संवैधानिक करार दे चुकी है.
विधेयक के मुताबिक, कुवैत की कुल आबादी में भारतीयों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए.
कुवैती अखबार गल्फ न्यूज के मुताबिक, अगर इस कानून को मंजूरी मिल जाती है तो करीब आठ लाख भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है, क्योंकि विदेशी नागरिकों में सबसे अधिक 14.5 लाख की हिस्सेदारी अकेले भारतीयों की है.
कुवैत की मौजूदा आबादी 43 लाख है, जिसमें से कुवैती नागरिकों की संख्या करीब 13 लाख है जबकि विदेशियों की आबादी 30 लाख है.
तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोना वायरस की महामारी के चलते विदेशी कामगारों का विरोध बढ़ा है और यहां की विधायिका और सरकारी अधिकारियों से कुवैत से विदेशी कामगारों को कम करने की मांग की जा रही है.
खबर के मुताबिक पिछले महीने कुवैत के प्रधानमंत्री शेख सबाह अल खालिद अल सबाह ने कुल आबादी में विदेशियों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया था.
नेशनल असेंबली के अध्यक्ष मरज़क अल गहनेम ने कुवैत टीवी से कहा कि सांसदों के एक समूह कुवैत से विदेशी कामगारों की संख्या में चरणबद्ध तरीके से कटौती करने के लिए विधेयक का विस्तृत मसौदा जमा करेगा.
कुवैत टाइम्स ने उनके हवाले से कहा, ‘कुवैत की वास्तविक समस्या आबादी का ढांचा है जहां पर 70 प्रतिशत आबादी विदेशी कामगारों की है. इससे भी गंभीर बात यह है कि 33.5 लाख विदेशियों में 13 लाख या तो अनपढ़ हैं या मुश्किल से लिख-पढ़ सकते हैं.’
गहनेम ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि हम डॉक्टर और कुशल कामगारों की भर्ती कर सकते हैं न कि अकुशल मजदूरों की. यह विकृति का संकेत है और वीजा कारोबारियों ने इस संख्या के बढ़ने में योगदान किया है.’
असेंबली अध्यक्ष ने कहा कि मसौदा कानून में उनकी कोशिश विदेशी कामगारों की अधिकतम संख्या तय करने की है, जिनकी संख्या में चरणबद्ध तरीके से कमी लाई जाएगी जैसे इस साल 70 प्रतिशत है, अगले साल 65 प्रतिशत और इसी तरह आने वाले वर्षों में कमी आएगी.
अरब न्यूज की खबर के मुताबिक विदेशी कोटा विधेयक को संबंधित समिति को विचार करने के लिए भेजा जाएगा. इसमें कहा गया है कि भारतीय की संख्या राष्ट्रीय जनसंख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए जिसका मतलब है कि आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा.
कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के मुताबिक, करीब 28 हजार भारतीय कुवैती सरकार में नर्स, राष्ट्रीय तेल कंपनियों में इंजीनियर और कुछ वैज्ञानिक के तौर पर काम करते हैं.
दूतावास के मुताबिक, अधिकतर भारतीय कामगार (करीब 5.23 लाख) निजी क्षेत्र में काम करते हैं. इनके अलावा 1.6 लाख लोग वहां काम कर रहे भारतीयों के आश्रित हैं, जिनमें से 60 भारतीय छात्र हैं जो कुवैत स्थित 23 भारतीय स्कूलों में पढ़ते हैं.
विधेयक को संबंधित समिति को सौंपा जाएगा ताकि विस्तृत योजना बनाई जा सके. विधेयक में इसी तरह का प्रस्ताव अन्य देशों के नागरिकों के लिए भी है.
उल्लेखनीय है कि कुवैत भारतीयों द्वारा देश भेजी जाने वाली राशि का सबसे बड़ा केंद्र है. वर्ष 2018 में कुवैत में रह रहे कामगारों ने करीब 4.8 अरब डॉलर की धनराशि भारत भेजी थी.
उल्लेखनीय है कि कुवैत में कोविड-19 के अधिकतर मरीज विदेशी कामगार हैं जो भीड़-भाड़ वाले घरों में रहते हैं. अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के मुताबिक कुवैत में अब तक 50,644 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं और 373 लोगों की जान जा चुके है.(thewire)
आंध्र प्रदेश, 7 जुलाई । आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में सात मई 2020 को हुए गैस लीक हादसे की जांच रिपोर्ट में फैक्टरी को चलाने वाली कंपनी एलजी पॉलीमर्स को लापरवाही का दोषी पाया गया है. राज्य सरकार द्वारा बिठाई गई जांच में सामने आया है कि लापरवाही बरते जाने का यह स्तर था कि फैक्ट्री में चेतावनी देने का सिस्टम भी काम नहीं कर रहा था. हादसे में देर रात स्टाइरीन गैस लीक होने की वजह से 12 लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग अस्पताल में भर्ती हो गए थे.
एलजी पॉलीमर्स का यह केमिकल प्लांट गोपालपट्नम इलाके में एक गांव के नजदीक स्थित है. सात मई की रात को इसके 5,000 टन के दो ऐसे टैंकों से गैस लीक हुई जिनकी मार्च में तालाबंदी लागू होने के बाद से देख रेख नहीं हुई थी. गैस लीक होने के बाद सोए हुए लोग जब अचानक उठ कर अपने अपने घरों से बाहर भागे तो कई लोग बेहोश हो कर सड़क पर ही गिर पड़े और कईयों ने आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ महसूस की.
पुलिस, एंबुलेंस और आग बुझाने वाली गाड़ियां वहां पहुंच गईं और सभी प्रभावित लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया. उसके बाद हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए यह जांच बिठाई गई थी.
हादसे के 21 कारण
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में हादसे के पीछे 21 मुख्य कारण गिनाए हैं, जिनमें गैस के भंडारण के तरीके के डिजाइन का गलत होना, पुरानी टंकी के रखरखाव में लापरवाही और खतरे के संकेतों को अनदेखा करना शामिल हैं. रिपोर्ट में इन 21 कारणों में से 20 के लिए कंपनी को जिम्मेदार ठहराया गया है. प्लांट में तीन टंकियां हैं जिनमें स्टाइरीन मोनोमर नाम का केमिकल रखा जाता था. इन टंकियों में से सबसे पुरानी टंकी में एक केमिकल प्रतिक्रिया की वजह से तापमान बढ़ने लगा और जितने स्तर तक अनुमति है उस से छह गुना से भी ज्यादा बढ़ गया.
समिति ने जांच रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी के प्रबंधन ने चार अप्रैल से पॉलीमर के स्तर में बढ़ोतरी को नजरअंदाज किया हुआ था और 25 अप्रैल से 28 अप्रैल बीच स्तर काफी बढ़ गया. समिति ने यह भी कहा, "कंपनी प्रबंधन पॉलीमर के स्तर को स्टाइरीन के लिए सुरक्षा के मानक की जगह गुणवत्ता का मानक समझता है." समिति ने यह भी कहा है कि भविष्य में इस तरह के हादसे को दोबारा होने से बचाने के लिए फैक्टरी को आवासीय इलाकों से दूर कर देना ही ठीक होगा."
एलजी पॉलीमर्स की मूल कंपनी एलजी केम ने मंगलवार को कहा कि उसने सुरक्षा के कई कदम उठाए थे. कंपनी ने एक वक्तव्य में कहा, "हमने जांच में पूरा सहयोग किया है और हम जांच के नतीजों का भी ईमानदारी से पालन करेंगे और उनके अनुकूल कदम उठाएंगे.
भारत में औद्योगिक हादसे
भारत में इस तरह के औद्योगिक हादसों का एक लंबा इतिहास है. इनमें 1984 में भोपाल में हुई गैस लीक त्रासदी को सबसे बुरा हादसा माना जाता है. इसमें आधिकारिक तौर पर करीब 3,800 लोगों की मौत हो गई थी जबकि अनधिकृत तौर पर 16,000 लोगों के मरने का दावा किया जाता है. गौस के रिसाव से 5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे. उसके पहले 1944 में बॉम्बे डॉक्स विस्फोट, 1975 में बिहार के धनबाद में चसनाला खदान हादसा, 2009 में जयपुर तेल डिपो आग, 2009 में ही कोरबा चिमनी हादसा और 2010 में दिल्ली में मायापुरी रेडियोलॉजिकल हादसे को बड़े औद्योगिक हादसों में माना जाता है.
छोटे हादसों की संख्या इनसे कहीं ज्यादा है. एक अनुमान के अनुसार, 2014 से 2016 के बीच फैक्ट्री हादसों में 3,562 श्रमिकों की जान चली गई और 51,000 से भी ज्यादा श्रमिक घायल हो गए. इसका मतलब हर दिन औसत तीन मौतें हुईं और 47 लोग घायल हुए. ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल की एक स्टडी के अनुसार भारत में हर साल 48,000 श्रमिक व्यावसायिक दुर्घटना में मरते हैं.
हालांकि भारत श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कई कानून है लेकिन देश में फैक्टरियों का निगरानी तंत्र अत्यंत कमजोर है, जिसकी वजह से हादसे होते रहते हैं. ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल के अनुसार हर 506 रजिस्टर्ड फैक्टरियों पर निगरानी के लिए सिर्फ एक इंस्पेक्टर है. उद्योग ने भी खर्च को कम रखने के लिए सुरक्षा पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया है. (एजेंसी)
नई दिल्ली (एजेंसी ) 7 जुलाई । पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है, अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक रात-दिन वैक्सीन बनाने में जुटे हैं, इस बीमारी को लेकर लगातार शोध भी जारी है, जिसके तहत हर रोज नई बात सामने आ रही है, ताजा स्टडी में कहा गया है कि कोरोना वायरस से केवल फेफड़े ही संक्रमित नहीं हो रहे हैं बल्कि इसकी वजह से शरीर के अन्य अंगों की नसों में खून के थक्के जमने लगते हैं, फ्रांस में हुई स्टडी में कहा गया है कि कोरोना के बेहद गंभीर मरीजों में देखा गया है कि उनकी नसों में खून के थक्के जम गए।
स्टडी में बताया गया है कि एक अस्पताल में कोरोना के करीब 100 मरीज थे, जिनमें से 23 काफी गंभीर स्थिति में थे, इन 23 मरीजों की फेफड़ों की धमनियों में खून के थक्के जम गए थे, स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना रोगियों के प्लेटलेट्स भी कम होने लगते हैं, प्लेटलेट्स काउंट का कम होना भी कोरोना वायरस का लक्षण है। फेफड़ों से संक्रमण आगे बढ़ने पर ये शरीर के अन्य अंगों पर अटैक करता है और बॉडी के अन्य पार्ट की नसों में खून जमने लगता है, इन थक्कों का फेफड़े, हृदय, ब्रेन पर प्रभाव होता है जिसकी वजह से स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, मालूम हो कि खून के थक्के के बनने को लेकर ज्यादातर डेटा चीन के रोगियों से इकट्ठा किया गया ।
गौरतलब है कि पूरी दुनिया में इस वायरस ने कहर बरपा रखा है। दुनिया भर में इसके संक्रमितों की संख्या 1.14 करोड़ से अधिक हो गई है जबकि 5.33 लाख से ज्यादा लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। वहीं भारत की बात करें तो इस वायरस से संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 7 लाख के पार पहुंच गया है । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 24 घंटे में देश में कोरोना के मामले एक बार फिर 20 हजार से ज्यादा सामने आए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 22,252 नए मामले सामने आए हैं और 467 लोगों की मौत हुई है। कोरोना पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 7,19,665 है जिसमें 2,59,557 सक्रिय मामले, 4,39,948 ठीक/डिस्चार्ज/विस्थापित मामले और 20,160 मौतें शामिल हैं।
नई दिल्ली (एजेंसी ) 7 जुलाई । अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा है कि अमेरिका टिकटॉक सहित अन्य चीनी सोशल मीडिया ऐप पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। पोम्पियो ने सोमवार फॉक्स न्यूज को दिए साक्षात्कार में कहा, "हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं।" उन्होंने कहा कि लोगों के सेलफोन में चीनी ऐप के संबंध में यह कुछ ऐसा है 'जिस पर हम विचार कर रहे हैं।'
भारत ने पहले ही यह कहते हुए टिकटॉक सहित 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन ऐप ने शत्रु तत्वों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा पर प्रभाव डालने के लिए रास्ता खोल दिया। पोम्पिओ ने कहा कि लोगों को ऐप केवल तभी डाउनलोड करना चाहिए "अगर आप अपनी निजी जानकारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में चाहते हैं।" टिकटॉक की अमेरिका में अच्छी-खासी मौजूदगी है। इसने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
माइक पोम्पिओ ने आगे कहा कि अमेरिका को चीन के साथ अब अलग तरीके से पेश आना होगा क्योंकि अधिक राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने की उम्मीद में उन्हें आर्थिक अवसर प्रदान करने की पुरानी नीति काम नहीं आई। पोम्पिओ ने साक्षात्कार में कहा, ‘‘यह सिद्धांत कि अधिक आर्थिक अवसर प्रदान करने से चीन के लोगों को अधिक राजनीतिक स्वतंत्रता और अधिक मौलिक अधिकार मिलेंगे, सही साबित नहीं हुआ। यह काम नहीं आया। मैं पुराने शासकों की आलोचना नहीं कर रहा हूं, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह सफल नहीं हुआ और इसका मतलब है कि अमेरिका को दूसरा रास्ता अपनाना होगा।''
नई दिल्ली, 7 जुलाई। कोविड-19 वैक्सीन लॉन्च करने के लिए 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित कर विवादों के घेरे में आए आईसीएमआर के दावे पर देश की सबसे बड़ी विज्ञान अकादमी भारतीय विज्ञान अकादमी (आईएएससी) ने भी सवाल उठाया है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड-19 का स्वदेशी वैक्सीन चिकित्सकीय उपयोग के लिए 15 अगस्त तक उपलब्ध कराने के मकसद से चुनिंदा चिकित्सकीय संस्थाओं और अस्पतालों से कहा है कि वे भारत बॉयोटेक के सहयोग से विकसित किए जा रहे संभावित वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को परीक्षण के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज करें।
ऐसी किसी समयसीमा को निर्धारित किए जाने को अव्यावहारिक बताते हुए आईएएससी ने जोर देकर कहा कि मनुष्यों में उपयोग के लिए वैक्सीन के विकास के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक रूप से निष्पादित क्लीनिकल ट्रायल्स की आवश्यकता होती है।
आईएएससी की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘संक्रमण से लडऩे के लिए मानव शरीर में एंटीबॉडी बनने में भी समय लगता है। इसके बाद इनका असर, डाटा रिपोर्टिंग इत्यादि में एक लंबा वक्त चाहिए होता है। हर चरण के परिणाम की समीक्षा के आधार पर ही उसे अगले दौर में प्रवेश दिया जाता है। अगर इसमें किसी भी तरह की कोताही बरती गई तो बड़ा नुकसान हो सकता है।’
आईएएससी ने आगे कहा, ‘अगर पहले या दूसरे चरण में परीक्षण का परिणाम संतोषजनक नहीं आता है तो उस अध्ययन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इन्हीं कारणों के चलते ऐसे परीक्षणों को समयसीमा में बांधना गलत है। इस तरह के आदेशों से देश के नागरिकों में उम्मीद जगेगी जो अगर पूरी नहीं हुई तो उनका विश्वास टूट सकता है।’
बता दें कि बीते 2 जुलाई को आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने 12 चुनिंदा संस्थानों को पत्र लिखकर कहा था कि वे भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करें।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा वैक्सीन को मानव परीक्षण के लिए दिए जाने के बाद भार्गव द्वारा वैक्सीन को जनस्वास्थ्य के लिए इस्तेमाल किए जाने के लिए तैयार करने की 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित करने पर वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं।
भार्गव की इस घोषणा को राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह से देखा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर वैक्सीन लॉन्च कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे।
हालांकि, वैज्ञानिकों और राजनीतिक दलों की आलोचनाओं के बाद शनिवार को आईसीएमआर ने बयान जारी कर कहा कि अनावश्यक लालफीताशाही से बचने के लिए बिना किसी आवश्यक प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए वैक्सीन के विकास में तेजी लाने का आदेश दिया गया है। (thewirehindi.com)
टुमकुरू (कर्नाटक), 7 जुलाई (एएनआई)। कोरोना वायरस संक्रमण के बीच कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चर्चा लगातार होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार इस बात का दावा कर रहा है कि भारत में अभी तक कम्युनिटी ट्रांसमिशन के मामले सामने नहीं आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मंत्री जेसी मधुस्वामी ने सोमवार को कहा कि कर्नाटक में कोरोना का संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैलने लगा है।
टुमकुरू जिला के प्रभारी मंत्री मधुस्वामी ने मीडिया को बताया, टुमकूर के कोविड अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस के आठ मरीजों की स्वास्थ्य स्थिति काफी चिंताजनक है। जानकारी के मुताबिक उनके बचने की संभावना कम ही है। हम इस बात को महसूस कर रहे हैं साथ ही साथ डर भी रहे हैं कि कोरोना का संक्रमण कम्युनिटी स्तर पर हो रहा है।
उन्होंने कहा, हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं, जहां जिला अधिकारियों के लिए इसे रोकना मुश्किल है। भले ही हम इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं स्थिति हाथ से निकल रही है।
मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, डिप्टी सीएम अश्वथ नारायण, चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. सुधाकर ने कर्नाटक में कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इनकार किया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, कर्नाटक में 13,255 और 372 लोगों सहित 23,474 कोरोनो वायरस के मामले हैं।
किन्नौर/तवांग, 7 जुलाई। कोरोना संकट के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप का आना जारी है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के झटके महसूस किए गए। तीनों ही जगहों पर भूकंप की तीव्रता काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा के बाद किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
हिमाचल में रात 1 बजकर 3 मिनट पर भूकंप के झटके लगे। भूकंप का केंद्र किन्नौर के पूर्वोत्तर इलाके में 7 किमी धरती के नीचे था। वहीं, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में मंगलवार को 5.0 तीव्रता का भूकंप आया। नैशनल सेंटर फॉर सिसमॉलजी के मुताबिक, यूपी की राजधानी लखनऊ से 59 किमी उत्तर-पूर्वोत्तर में धरती के 5 किमी नीचे भूकंप का केंद्र था। भूकंप के झटके सुबह 9 बजकर 55 पर महसूस किए गए।
देश-विदेश के कई इलाकों में बीते दिनों लगातार भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी इलाके में भी हाल ही में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। (navbharattimes.indiatimes.com)
परिवार चाहता है मामले की जांच
AIIMS सूत्र भी बताते हैं कि कहीं ना कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से संक्रमित दिल्ली के पत्रकार की सुइसाइड मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एम्स प्रशासन की तरफ से पत्रकार तरुण सिसोदिया की मौत को लेकर बयान जारी किया गया है, लेकिन बयान के बाद भी सवाल बने हुए हैं, जिसके जवाब के लिए एम्स और एम्स ट्रॉमा सेंटर प्रशासन से लगातार प्रयास किया गया, लेकिन उनकी चुप्पी बनी हुई है।
एम्स सूत्र भी बताते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा गया है।
एम्स प्रशासन की तरफ से बयान जारी कर बताया गया है कि कोविड की वजह से तरुण को एम्स ट्रॉमा सेंटर में 24 जून को एडमिट किया गया था। वह फिलहाल टीसी-1 आईसीयू में था, जो पहली मंजिल पर है।
एम्स ने अपने बयान में कहा है कि तरुण की रिकवरी बेहतर थी और रूम एयर में सांस ले पा रहे थे। इसलिए सोमवार को तरुण को आईसीयू से वॉर्ड में शिफ्ट करने की योजना थी। एम्स ने अपने बयान में उनके ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का भी जिक्र किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि इसको लेकर न्यूरो और सायकायट्री के डॉक्टर को दिखाया गया था।
उनके फैमिली मेंबर को लगातार तरुण की सेहत को लेकर जानकारी दी जा रही थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि तरुण के परिवार के लोग उनके जर्नलिस्ट दोस्तों से फोन करके अपडेट लेते थे। एक दिन ऑक्सीजन पाइप को लेकर दिक्कत आई थी तो उनके दोस्तों ने इसकी सूचना एम्स प्रशासन को दी थी, तब जाकर उसे ठीक किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि अगर अस्पताल की तरफ से जानकारी दी जा रही थी तो परिवार के लोग अस्पताल के बजाय दूसरे को फोन क्यों करते? एम्स ने अपने बयान में आगे लिखा है कि दोपहर 1: 55 बजे तरुण आईसीयू से निकल कर भागे, बताया गया है कि उनके पीछे हॉस्पिटल अटेंडेंट भी भागे। तरुण चौथी मंजिल पर पहुंच गया, वहां विंडो तोड़कर छलांग लगा दी, जिसके बाद उन्हें आनन फानन में आईसीयू में एडमिट किया गया, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी बचा नहीं पाए।
एम्स के सूत्र का कहना है कि प्रशासन की यह यह थ्योरी भी थोड़ी अटपटी लग रही है, क्योंकि एक मरीज, जो पिछले कई दिनों से कोविड संक्रमण की वजह से आईसीयू में एडमिट है, जिसे सांस लेने में दिक्कत है, वह पहली मंजिल से चौथी मंजिल तक भाग कर पहुंच गया और हॉस्पिटल अटेंडेंट उस तक पहुंच नहीं पाया।
एक बीमार मरीज ने विंडो तोड़ दिया और हॉस्पिटल अटेंडेंट फिर भी वहां नहीं पहुंच सका। कहीं न कहीं सिक्यॉरिटी स्तर पर कमी दिख रही है। एक आईसीयू से मरीज निकल जाता है और उसे रोक नहीं पाता है। ऐसे और भी सवाल हैं, जिनके जवाब एम्स को देने चाहिए। एनबीटी ने ऐसे कई सवाल और भी एम्स प्रशासन से पूछे, लेकिन जवाब नहीं मिला। वॉर्ड बदलने का भी एम्स प्रशासन पर आरोप है, लेकिन एम्स की चुप्पी गंभीर सवाल खड़ा दिया है। (navbharattimes.indiatimes.com)