खेल
टोक्यो, 6 अगस्त | भारत की महिला हॉकी टीम को शुक्रवार को खेले गए कांस्य पदक के मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों 3-4 से हार का सामना करना पड़ा। साल 2016 के रियो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाली ब्रिटिश टीम ने अपने आठवें ओलंपिक में तीसरी बार कांस्य पदक जीता है। तीसरी बार ओलंपिक खेल रहे भारत को चौथा स्थान मिला। ओई हॉकी स्टेडियम नार्थ पिच पर हुए इस मैच में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला। अपना तीसरा ओलंपिक खेल रहा भारत एक समय 0-2 से पीछे चल रहा था लेकिन उसने दनादन तीन गोल दागकर हाफ टाण तक 3-2 की लीड ले ली। लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने लगातार दो गोल दाग मैच अपने पक्ष में कर लिया।
इंग्लैंड के लिए एलेना रेयर (16वें), सारा राबर्टसन (24वें), होली पिएरे (35वें) और ग्रेस बॉल्सडन (48वें) ने किया जबकि भारत के लिए गुरजीत कौर ने (25वें, 26वें) दो गोल किए जबकि वंदना कटारिया (29वें) ने एक गोल किया। ब्रिटेन को 12 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिसमें से तीन को उसने गोल में बदला। भारत को कुल 8 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिनमें से दो में गोल हुए।
पहला क्वार्टर खाली जाने के बाद ब्रिटेन ने दूसरे क्वार्टर में 60 सेकेंड के भीतर गोल करते हुए 1-0 की लीड ले ली। उसके लिए मैच का पहला गोल एलेना रेयर ने किया। यह एक फील्ड गोल था।
इस गोल ने मानो ब्रिटिश टीम में जान फूंक दी और उसने 24वें मिनट में एक और गोल कर 2-0 की लीड ले ली। यह गोल सारा राबर्टसन ने किया। यह भी एक फील्ड गोल था।
ब्रिटिश टीम हाफटाइम लीड के साथ प्रवेश करती, उससे पहले ही भारत ने एक के बाद एक दनादन तीन गोल कर 3-2 की लीड ले ली।
गुरजीत कौर ने भारत का खाता 25वें मिनट में मिले पेनाल्टी कार्नर पर खोला और फिर उसके एक मिनट बाद एक और गोल कर स्कोर 2-2 कर दिया। भारत ने पेनाल्टी कार्नर पर गुरजीत द्वारा किए गए गोलों की मदद से शानदार वापसी कर ली थी।
अब भारतीय टीम उत्साह से भर चुकी थी। उसने मौके बनाने शुरू किए और उसी क्रम में उसे 29वें मिनट में एक शानदार सफलता मिली। वंदना कटारिया ने फील्ड गोल के जरिए भारत को 3-2 से आगे कर दिया।
हाफ टाइम तक भारत 3-2 से आगे था। हाफ टाइम की सीटी बजने के पांच मिनट बाद ही ब्रिटेन ने गोल कर स्कोर 3-3 कर दिया। यह गोल कप्तान होली पिएरे ने किया। तीसरे क्वार्टर में भारतीय टीम कोई गोल नहीं कर सकी।
चौथा और अंतिम क्वार्टर जब शुरु हुआ तो मैच का रोमांच चरण पर था। दोनों टीमों के पास मेडल पाने के लिए अंतिम 15 मिनट थे। इस क्रम में हालांकि ब्रिटेन को सफलता मिल गई। 48वें मिनट में उसने पेनाल्टी कार्नर पर गोल कर 4-3 की लीड ले ली। यह गोल ग्रेस बॉल्सडन ने किया।
भारत की महिला टीम के लिए यह ओलंपिक में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन कहा जा सकता है। दुनिया की नौवें नम्बर की भारतीय टीम तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए दुनिया की नम्बर-2 आस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची थी। सेमीफाइनल में हालांकि उसे हार मिली।
यह भारत का तीसरा ओलंपिक था। मास्को (1980) के 36 साल के बाद उसने रियो ओलंपिक (2016) के लिए क्वालीफाई किया था। भारत अंतिम रूप से चौथे स्थान पर रहा था लेकिन उस साल वैश्विक बहिष्कार के कारण सिर्फ छह टीमों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था।
इसके बाद भारत ने 2016 के रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन वह 12 टीमों के टूर्नामेंट में अंतिम स्थान पर रही थी। भारत को पूल स्तर पर पांच मैचों में सिर्फ एक ड्रॉ नसीब हुआ था।
टोक्यो में भारत ने ग्रुप स्तर पर खराब शुरुआत की थी। उसे लगाता तीन मैचों में हार मिली। इसके बाद उसने दो मैच लगातार जीते और ब्रिटेन के हाथों आयरलैंड की हार के कारण नॉकआउट के लिए क्वलीफाई करने में सफल रही।
नॉकआउट के पहले मैच में भारत ने आस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया लेकिन सेमीफाइनल में उसे अर्जेटीना के हाथों 1-2 से हार मिली। (आईएएनएस)
टोक्यो. भारतीय महिला हॉकी टीम ब्रॉन्ज मेडल से चूक गई. ब्रिटेन ने भारत को 4-3 से हराया. हालांकि भारतीय महिला टीम के शानदार प्रदर्शन को फैंस सालों तक याद रखेंगे. टीम का यह ओलंपिक में ओवरऑल सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है. इससे पहले भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था. टीम 41 साल बाद मेडल जीतने में सफल हुई थी. भारत को टोक्यो में अब तक 2 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज सहित 5 मेडल मिले हैं.
मैच में ब्रिटेन की टीम ने शानदार शुरुआत की. हालांकि पहले क्वार्टर में दोनों ही टीमें गोल नहीं कर सकीं. 16वें मिनट में एलिना सियान के शॉट को दीप ग्रेस एक्का ने रोकने की कोशिश की, लेकिन गेंद स्टिक से लगकर पोस्ट में चली गई. इस तरह से ब्रिटेन ने 1-0 की बढ़त बना ली. 24वें मिनट में साराह रॉबटर्सन ने गोल करके ब्रिटेन को 2-0 की बड़ी बढ़त दिलाई. हालांकि इसके बाद भारतीय टीम ने वापसी की. 25वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर पर गुरजीत कौर ने गोल करके स्कोर 1-2 कर दिया. 26वें मिनट में गुरजीत ने एक बार फिर कॉर्नर पर गोल करके स्कोर 2-2 से बराबर कर दिया. 29वें मिनट में वंदना कटारिया ने गोल करके भारत को 3-2 से आगे कर दिया. हाफ टाइम तक स्कोर यही रहा. दूसरे क्वार्टर में 5 गोल हुए.
यलो कार्ड ने अंतर पैदा किया
भारतीय गोलकीपर सविता पूनिया ने मैच के दौरान कॉर्नर ही नहीं बचाए. बल्कि ब्रिटेन के कई हमलों को भी रोका. 35वें मिनट में ब्रिटेन की कप्तान होली वेब ने गोल करके स्काेर 3-3 से बराबर कर दिया. तीसरे क्वार्टर के बाद स्कोर 3-3 से बराबर रहा. चौथे क्वार्टर में उदिता को यलो कार्ड मिला. इस कारण वे 5 मिनट तक मैदान से बाहर थीं. इसका टीम को खामियाजा भुगतना पड़ा. ब्रिटेन को लगातार तीन कॉर्नर मिले और 48वें मिनट में ग्रेस बाल्स्डॉन ने गोल करके टीम को 4-3 से आगे कर दिया. इसके बाद गोल नहीं हुआ और ब्रिटेन ने ब्रॉन्ज मेडल जीता.
तीसरी बार ओलंपिक में उतरी टीम
महिला टीम सिर्फ तीसरी बार ओलंपिक में उतरी. 2016 रियाे ओलंपिक में टीम 12 वें नंबर पर रही थी. इसके अलावा 1980 में टीम चौथे नंबर पर रही थी. हालांकि उस समय सेमीफाइनल के मुकाबले नहीं थे. इस तरह से टोक्यो में टीम का प्रदर्शन ओलंपिक इतिहास का बेस्ट प्रदर्शन है.
टोक्यो, 6 अगस्त| भारत के गुरप्रीत सिंह शुक्रवार को आयोजित टोक्यो ओलंपिक की 50 किलोमीटर रेस वॉक स्पर्धा में कोई स्थान नहीं हासिल कर सके क्योंकि वह पूरी ही नहीं कर पाए। पोलैंड के डेविड तोमाला ने इस स्पर्धा का स्वर्ण जीता जबकि जर्मनी के राबर्ट हिल्बर्ट को रजत तथा कनाडा के इवान डंफी को कांस्य मिला।
ओलंपिक की सबसे कठिन स्पर्धाओं में से एक में 59 धावकों ने हिस्सा लिया। इनमें से 47 ही पूरी कर सके जबकि दो को अयोग्य करार दिया गया। शेष फिनिश लाइन तक नहीं पहुंच सके।
फिनिश लाइन तक नहीं पहुंच पाने वालों में सेना मे काम करने वाले भारत के गुरप्रीत सिंह भी हैं।
तोमाला ने 3:50:08 घंटे समय के साथ पहला स्थान हासिल किया। इसी तरह हिल्बर्ट ने दूसरा स्थान पाने के लिए 3:50:44 घंटे और डंफी ने 3:50:59 घंटे समय लिया। (आईएएनएस)
-मनोज चतुर्वेदी
भारतीय टीम 135 करोड़ देशवासियों की उम्मीदों पर खरी उतरकर 41 सालों से ओलंपिक पदक से चली आ रही दूरी को ख़त्म करके देश को ख़ुशी से झुमा दिया है.
भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता. 1928 से 1956 तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर अपनी बादशाहत कायम की थी. पर 1980 के मॉस्को ओलंपिक के बाद भारत से सफलता रूठ गई थी.
कई बार भारतीय टीम खोई प्रतिष्ठा को पाने के इरादे से गई, लेकिन अपने इरादों में सफल नहीं हो सकी. पर मनप्रीत की अगुआई वाली भारतीय टीम आख़िरकार भारत की पदक से दूरी ख़त्म करने में सफल हो गई.
भारत की ज़्यादातर आबादी ने हॉकी में पदक जीतने की कथाएं सुनी ही थीं. लेकिन अब भारतीय नागरिक ख़ासतौर से युवा पीढ़ी ने पहली बार भारतीय टीम को पदक जीतते देख लिया है.
भारतीयों का इस खेल से भावनात्मक लगाव रहा है, इसलिए इस पदक के अन्य पदकों के मुक़ाबले अलग ही मायने हैं. सही मायनों में इस सफलता ने देश को खुशी से सराबोर कर दिया है.
खेल समाप्ति से साढ़े चार मिनट पहले जर्मनी टीम ने पैनिक बटन दबाकर अपने गोलकीपर स्टेडलर को बाहर बुलाकर सभी 11 खिलाड़ियों को हमलों में उतार दिया.
खेल समाप्ति से छह सेकेंड पहले जर्मनी को मैच का दसवां पेनल्टी कॉर्नर मिल जाने से भारतीय टीम और खेल प्रेमियों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं.
लेकिन भारतीय डिफ़ेंस ने शानदार बचाव करके भारत का पोडियम पर चढ़ना पक्का कर दिया. इससे ढाई मिनट पहले भी जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला पर भारतीय डिफ़ेंस की मुस्तैदी से जर्मनी को अपने इरादों में सफल नहीं होने दिया.
भारत की ज़बर्दस्त वापसी
भारतीय टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें वापसी करने की क्षमता है. दूसरे क्वार्टर की शुरुआत में दो गोल खा जाने से एक बार तो लगा कि भारत मुकाबले से बाहर होने जा रहा है. लेकिन टीम ने धीरे-धीरे खेल पर नियंत्रण बनाकर बराबरी करके जता दिया कि भारतीय खिलाड़ी भी किसी से कम नहीं हैं.
भारत ने दूसरे क्वार्टर के आख़िरी चार मिनट में खेल की दिशा को एकदम से बदल दिया और 3-3 की बराबरी करके यह दिखाया कि 41 सालों बाद पोडियम पर चढ़ने का उनका जज़्बा खत्म नहीं हुआ है.
भारत ने यह बराबरी पेनल्टी कॉर्नर पर जमाए गोलों से हासिल की. पहले मौके पर हार्दिक ने रिबाउंड पर गोल जमाया और फिर हरमनप्रीत ने ड्रैग फ़्लिक से गोल जमाया.
इस समय तक भारतीय टीम पूरी लय में खेलने लगी थी और इस कारण जर्मनी के खेल में गिरावट देखने को मिली.
गेंद क्लियर करने में देरी ने मुश्किल में डाला
भारतीय डिफ़ेंस ने बेल्जियम के ख़िलाफ़ की गई ग़लतियों को एक बार दोहराकर टीम को शुरुआत में ही मुश्किल में डाल दिया.
जर्मन हमलों के समय भारतीय डिफ़ेंडरों ने गेंद को क्लियर करने में देरी करके उनके फ़ॉरवर्ड को गेंद पर कब्ज़ा जमाने के मौके देकर उन्हें गोल पर निशाने साधने के मौके दे दिए.
सही मायनों में जर्मनी के पहले तीनों गोल भारतीय डिफ़ेंस की ग़लतियों के नतीजे रहे. आमतौर पर श्रीजेश दीवार की तरह डटे नज़र आते हैं. लेकिन जब वो फ़ुल बैक और मिडफ़ील्डर हमलावरों को सर्किल से पहले रोकने में कामयाब नहीं रहे, तो उन पर अतिरिक्त दवाब आने लगा, लेकिन फिर भी वह डटे रहे.
भारत ने बदल दी खेल की तस्वीर
भारत ने ज़ोरदार वापसी करके तीसरे क्वार्टर की शुरुआत में बढ़त बनाकर जर्मनी पर दवाब बना दिया. भारत के इससे पहले हाफ़ में बराबरी पाने से मनोबल ऊंचा हो गया और हमारे खिलाड़ी स्वाभाविक खेल खेलने लगे.
भारत ने दूसरे हाफ़ यानी तीसरे कवार्टर की बहुत ही आक्रामक अंदाज़ से शुरुआत की और जर्मनी के डिफ़ेंस को छितराकर उन्हें दवाब में ला दिया. भारत ने शुरुआत में ही दो गोल जमाकर 5-3 की बढ़त बना ली.
इस दौरान भारतीय हमलों के कारण जर्मन डिफ़ेंडरों से ग़लतियां होनी शुरू हो गई थीं और भारत ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया.
भारत के लिए चौथा गोल रूपिंदर पाल सिंह ने पेनल्टी स्ट्रोक पर किया. यह पेनल्टी स्ट्रोक मनदीप के ख़िलाफ़ गोल के सामने स्टिक लगाकर रोकने पर दिया गया. जर्मनी अभी इस झटके से उबर भी नहीं पाई थी कि भारत ने सिमरनजीत के गोल से 5-3 की बढ़त दिला दी.
दबाव में बिखरा स्टेडलर का बचाव
जर्मन टीम के गोलकीपर की दुनिया के बेहतरीन गोलकीपरों में गिनती होती है. लेकिन भारत के दो गोल जमाकर बराबरी पाने के बाद वह अपनी धड़कनों को काबू रखने में असफल रहे. उनके ऊपर इसके बाद लगातार दवाब रहा और भारत के चार गोल जमाने के दौरान उनका स्वाभाविक बचाव नहीं नज़र आया.
वहीं चौथा गोल करके जर्मनी की टीम जब वापसी करने का प्रयास कर रही थी, तब ही हाउके पीछे से ग़लत टैकल करने की वजह से पीला कार्ड लेकर बाहर चले गए. इससे उनकी वापसी की लय बिगड़ गई.
जर्मनी ने पहले क्वार्टर में ज़्यादा ऊर्जा लगाने का नतीजा भुगता
जर्मनी टीम ने पहले क्वार्टर में दबदबा बनाने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा ऊर्जा लगा दी. इससे उनका खेल पर दबदबा तो बन गया पर उनके खिलाड़ी इसके बाद इस गति का प्रदर्शन करने में असफल रहे.
इसका भारत ने भरपूर फ़ायदा उठाया और हमलावर रुख़ अपनाकर जर्मनी को हमले बनाने के बजाय बचाव में व्यस्त कर दिया. भारत की यह रणनीति कारगर साबित हुई और जर्मनी के हमलों में कमी आ गई और जो हमले हुए भी उनमें पैनापन नज़र नहीं आया.
जर्मन टीम तेज़ गति की हॉकी खेलने के लिए जानी जाती है. भारत को इसके लिए गेंद को नियंत्रण में रखकर खेल की गति को धीमा करने की ज़रूरत थी. लेकिन जर्मन खिलाड़ियों ने अपनी गति से भारतीय खिलाड़ियों को आपस में पासिंग नहीं करने दी.
इससे जर्मनी पहले क्वार्टर में पूरा दबदबा बनाने में सफल रही. भारतीय खिलाड़ी सही ढंग से आपस में पासिंग तक नहीं कर सके. कई बार जर्मन खिलाड़ी उनसे गेंद छीनकर हमले बनाकर अपना दबदबा बनाते रहे.
इस क्वार्टर के खेल को देखकर लग नहीं रहा था कि भारत की हॉकी पदक से दूरी ख़त्म भी हो पाएगी. लेकिन भारतीय खिलाड़ियों के बुलंद इरादों ने मैच की तस्वीर ही नहीं बदली बल्कि देशवासियों को जीत की भावनाओं में बहा दिया. (bbc.com)
-प्रदीप कुमार
ओलंपिक खेलों में 41 साल के लंबे इतिहास के बाद भारतीय टीम ने कामयाबी हासिल की है. हॉकी जैसे तेज़ खेल की दुनिया में 41 साल का मतलब खिलाड़ियों की कई पीढ़ियों का निकल जाना है.
इन 41 सालों में भारत के मोहम्मद शाहिद, परगट सिंह, धनराज पिल्लई, दिलीप तिर्की, वीरेन रस्किन्हा जैसे खिलाड़ी चमके ज़रूर, लेकिन अपनी चमक से वे वो इतिहास नहीं रच पाए जो इतिहास पी. श्रीजेश और अमित रोहिदास की जोड़ी ने टोक्यो में रच दिया.
पहले तो सारी उम्मीदों और आकलनों को धता बताते हुए भारतीय टीम सेमी फ़ाइनल तक पहुंची और वर्ल्ड की नंबर एक खिलाड़ी बेल्जियम से हारने के बाद जर्मनी की कहीं मज़बूत टीम को रोमांच और रफ़्तार भरे खेल में पछाड़कर ओलंपिक में पदक के सूनेपन को ख़त्म कर दिया.
इस पूरी कामयाबी में भारतीय गोलकीपर पी. श्रीजेश वाक़ई में भारतीय हॉकी टीम के लिए 'दीवार' साबित हुए. उनकी भूमिका का अंदाज़ा जर्मनी के ख़िलाफ़ मुक़ाबले में लगाने से पहले ज़रा इन पलों पर नज़र डालिए - मैच के दसवें मिनट में जर्मन मिडफ़ील्डर मैट्स ग्रैमबाक के शॉट को श्रीजेश ने रोका. इसके बाद 20वें मिनट में एक बार पी. श्रीजेश ने अगर जर्मन फ़ॉरवर्ड फ़्लोरियन फ़ूक के शॉट्स को बेहतरीन अंदाज़ में डायवर्ट ना किया होता तो यह शर्तिया गोल होता.
तीसरे क्वार्टर में वैसे तो भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा था, लेकिन 45वें मिनट में श्रीजेश ने बचाव कर भारत की बढ़त को 5-3 से बरक़रार रखा.
लेकिन श्रीजेश किन मज़बूत इरादों के साथ इस मुक़ाबले में उतरे थे इसकी झलक चौथे क्वार्टर के अंतिम छह मिनटों में देखने को मिली जब उन्होंने दो पेनल्टी कॉर्नर को बेकार कर दिया. मैच के आख़िरी लम्हों वाले पेनल्टी कॉर्नर को जैसे ही उन्होंने रोका वैसे ही भारत ने इतिहास बना दिया था.
जर्मनी के लुकास विंडफ़ेडर को वैसे भी दुनिया के सबसे बेहतरीन ड्रैग फ़्लिकरों में गिना जाता है. वैसे आधुनिक हॉकी में कोई भी ड्रैग फ़्लिकर जब झन्नाटेदार शॉट्स लगाता है तो वह 150-160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आती है. इस स्पीड का अंदाज़ा लगाइए. गेंद पलक झपकते ही गोलपोस्ट तक पहुंचती है. ऐसे समय में गोलकीपर का अनुमान या ध्यान, कुछ भी भटका तो गोल.
लेकिन दबाव के आख़िरी छह मिनटों में ना तो श्रीजेश का अनुमान ग़लत साबित हुआ और ना ही ध्यान भटका.
श्रीजेश की इस काबिलियत के बारे में भारत के पूर्व गोलकीपर पी सुबैया ने बताया, "दरअसल इस पूरे मैच में श्रीजेश एक चैम्पियन खिलाड़ी के तौर पर उभरे. उन्होंने जिन पलों में गोल बचाए वो निर्णायक थे."
दरअसल श्रीजेश दूसरे गोलकीपरों की तरह कई मौकों पर चूके भी और इस मैच में वह देखने को भी मिला. यही वजह है कि जर्मनी की टीम चार गोल करने में कामयाब रही, लेकिन दबाव के क्षणों में चट्टान की तरह डटे रहने का माद्दा उनमें है. इतना ही नहीं जब लगता है कि टीम की लुटिया अब डूबने वाली है तब जैसे वो सामने आकर कहते हैं कि 'मैं हूं ना.'
टोक्यो ओलंपिक उद्घाटन समारोह की रंगारंग तस्वीरें देखिए
पी. सुबैया कहते हैं, "ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सात गोल खाने वाले मैच को अगर आप अपवाद मानें तो श्रीजेश ने पूरे टूर्नामेंट में उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है. उन्होंने कई बेहतरीन बचाव किए जिसकी बदौलत ही टीम 41 साल बाद इतिहास रच सकी है."
जिस रोमांचक मुक़ाबले में नौ गोल हुए हों वहां एक गोलकीपर का कम से कम चार गोल के बचाव का अंतर ही वह पहलू है जिसके दम पर कोई टीम 41 साल बाद इतिहास रचने में कामयाब होती है. टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत के हर मुक़ाबले में कम से कम दो-तीन मौके ऐसे रहे हैं जहां पी. श्रीजेश ने शानदार बचाव किया.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल टोक्यो ओलंपिक में श्रीजेश के योगदान के बारे में बताते हैं, "कई बार ऐसा मौका आया जब विपक्षी टीम ने दो-दो या तीन भी, पेनल्टी कॉर्नर बैक टू बैक हासिल किए. इस वक्त दबाव काफ़ी ज़्यादा हो जाता है, लेकिन श्रीजेश ने उन पलों में भी निराश नहीं किया."
आज के युवा और तेज़ तर्रार हॉकी के दौर में पी श्रीजेश 35 साल के हैं, लेकिन 41 साल बाद ओलंपिक मेडल लाने का जज़्बा ऐसा है कि इतिहास रचने के बाद वे गोलपोस्ट पर उछलकर चढ़ बैठते हैं.
दरअसल हॉकी की कोई टीम बेहतरीन तभी साबित होती है जब उसके पास अनुभवी गोलकीपर हो. अनुभव हासिल करने में वक्त तो लगता ही है.
भारत के पूर्व गोलकीपर और कोच रहे पी सुबैया बताते हैं, "कम से कम दस साल बाद ऐसी स्थिति आती है जब किसी गोलकीपर के प्रदर्शन में निरंतरता आती है. इस लिहाज़ से देखें तो श्रीजेश अपने सबसे बेहतरीन दौर में हैं. जर्मनी का गोलकीपर युवा था, वह बड़े मैच का दबाव नहीं झेल सका और भारत ने मैच पलट दिया."
सौरभ दुग्गल कहते हैं, "श्रीजेश का अनुभव ही भारतीय टीम के काम आया और श्रीजेश ने भी अपने अनुभव का पूरा फ़ायदा उठाया. वो आख़िरी तक बिखरे नहीं."
यही वजह है कि कामयाबी हासिल करने के बाद पी श्रीजेश की हंसी थमने का नाम नहीं ले रही थी. दरअसल उनकी यह हंसी बीते 15 साल के उनके उतार-चढ़ाव की ही नहीं है बल्कि भारतीय हॉकी के सुनहरे इतिहास में ये लंबे समय तक याद की जाएगी.
इस हंसी के पीछे 41 साल से पदकों के सूनेपन को ख़त्म करने का गर्व तो झलक ही रहा था. साथ में अपनी एक लड़ाई को मंज़िल तक पहुंचा देने का भाव भी नज़र आ रहा था.
हॉकी प्रेमियों को याद ही होगा कि 2017 में सुल्तान अज़लान शाह हॉकी के दौरान पी श्रीजेश एक ऑस्ट्रेलिया खिलाड़ी से टकरा गए थे, उनका घुटना ज़ख़्मी हो गया था.
तब टीम के डच कोच रॉलैंड ऑल्टमैन थे. उन्होंने जब श्रीजेश को घुटने के गंभीर रूप से चोटिल होने की जानकारी दी तो श्रीजेश ने उनसे कहा था, 'आर यू जोकिंग.'
मणिपुर से क्यों निकलते हैं इतने ज़्यादा ओलंपिक स्तर के खिलाड़ी?
टोक्यो में हारने के बाद लवलीना बोलीं, 'खुश नहीं हूं, बेहतर कर सकती थी'
लेकिन यह मज़ाक़ नहीं था, इस चोट के चलते आठ महीने तक वे खेल के मैदान से दूर रहे. इसके बारे में श्रीजेश मीडिया को कई मौकों पर बता चुके हैं कि इसके बाद उन्होंने दूसरी बार चलना सीखा.
तब यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि शायद श्रीजेश कभी वापसी नहीं कर पाएंगे, लेकिन ना केवल वो वापस लौटे बल्कि दुनिया के 'सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर' की जगह तक पहुंच गए.
श्रीजेश ने 15 साल पहले दक्षिण एशियाई खेलों से भारतीय सीनियर टीम के साथ अपना सफ़र शुरू किया था.
केरल के इराकुलम से निकले श्रीजेश बचपन में एथलीट बनना चाहते थे. स्प्रिंट और लॉन्ग जंप में उनकी दिलचस्पी थी, लेकिन जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल के उनके शुरुआती प्रशिक्षकों ने उन्हें हॉकी की तरफ़ प्रेरित किया.
शुरुआती दिनों में वे एक औसत गोलकीपर ही साबित हो रहे थे, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता में कहीं कोई कमी नहीं दिख रही थी.
करियर शुरू होने के पांच साल बाद एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी के फ़ाइनल में उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक नहीं दो-दो पेनल्टी स्ट्रोक का बचाव करके दिखाया था. तब से उन्हें नेशनल हीरो के तौर पर देखा जाने लगा.
2013 में भारत को एशिया कप में जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही. उसके बाद 2014 की चैम्पियंस ट्रॉफ़ी में टीम भले चौथे स्थान पर रही, लेकिन श्रीजेश बेस्ट गोलकीपर आंके गए.
2016 की चैम्पियंस ट्रॉफी और 2016 के रियो ओलंपिक में भी पी श्रीजेश ने अपने खेल से लोगों को प्रभावित किया. 2016 की चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के दौरान भारतीय टीम को सिल्वर मेडल मिला था और उस टीम की कप्तानी भी श्रीजेश ही कर रहे थे.
हालांकि बाद में टीम का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहने के चलते कप्तानी, टीम के युवा स्टार मनप्रीत सिंह को सौंपी गई. लेकिन श्रीजेश ने इसे कोई इगो का सवाल नहीं बनाया. भारत के कोच रह चुके हरेंद्र सिंह ने एक चैनल पर ओलंपिक मेडल की कायमाबी पर कहा, 'श्रीजेश निस्संदेह मौजूदा समय में दुनिया के सबसे बेहतरीन गोलकीपर हैं. '
उन्होंने कहा कि किसी भी गोलकीपर को एडजस्ट होने में टाइम लगता है और श्रीजेश को भी करियर के शुरुआती दिनों में संघर्ष करना पड़ा. लेकिन वे संघर्षों से निखर कर सामने आए हैं और हर मुश्किल पल में उन्होंने ख़ुद को दीवार साबित किया है.
चौंकिए नहीं, टीम के दूसरे गोलकीपर अमित रोहिदास रहे जो कि एक डिफ़ेंडर हैं.
28 साल के अमित रोहिदास के शानदार खेल की तारीफ़ करते हुए भारत के पूर्व गोलकीपर पी. सुबैया ने कहा, "भारत के लिए दूसरे गोलकीपर की भूमिका निभाई अमित रोहिदास ने. उन्होंने एक बेहतरीन डिफ़ेंडर के तौर पर आधे से ज़्यादा मौकों पर टीम के लिए गोल बचाने का काम किया."
अमित रोहिदास ने सेमी फ़ाइनल में बेल्जियम के 14 पेनल्टी कॉर्नर में से सात का बचाव अपने शरीर पर गेंदें झेलकर किया था. कांस्य पदक के मुक़ाबले में उनके अलावा उनके सब्स्टीट्यूट सुमित कुमार ने भी यही भूमिका अदा की.
वैसे पूरे टूर्नामेंट में अमित रोहिदास का खेल सबसे बेहतरीन रहा. पी सुबैया कहते हैं, "टोक्यो ओलंपिक में भारत की कायमाबी की असली हीरो श्रीजेश और रोहिदास की जोड़ी है. दोनों ने एक-दूसरे को ना केवल सपोर्ट किया है बल्कि एक-दूसरे का उत्साह भी बढ़ाए रखा."
अमित रोहिदास की सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि पेनल्टी कॉर्नर के दौरान वे बड़ी तेज़ी से ड्रैग फ़्लिकर की ओर भागते हैं. उनकी इस वजह से ड्रैग फ़्लिकर को अपनी रणनीति तक बदलनी पड़ी.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल बताते हैं, "मैच ख़त्म होने से छह मिनट पहले उन्होंने इसी तरह से ड्रैग फ़्लिकर को छकाया. इस मैच में कम से कम दो प्रत्यक्ष और दो मौकों पर अप्रत्यक्ष तौर पर गोल बचाया."
जर्मनी जैसी टीम दर्जन भर पेनल्टी कॉर्नर हासिल करके भी मैच नहीं जीत सकी तो इसमें अमित रोहिदास का अहम योगदान रहा.
हॉकी की नर्सरी से निकले हैं रोहिदास
अमित रोहिदास ओडिशा के पहले ऐसे ओलंपियन हैं जो जनजातीय समुदाय से नहीं हैं. हालांकि अपने राज्य की ओर से ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले छठे पुरुष और कुल मिलाकर दसवें खिलाड़ी हैं.
भारतीय हॉकी की नर्सरी माने जाने वाले सुंदरगढ़ के सुनामारा गांव में जन्मे अमित रोहिदास बचपन से अपने ही गांव से निकले मशहूर डिफ़ेंडर दिलीप तिर्की को आदर्श मानते रहे हैं.
अपने करियर के शुरुआती दिनों में वे फ़ॉरवर्ड खिलाड़ी के तौर पर खेलते थे, लेकिन राउरकेला के स्पोर्ट्स हॉस्टल में उनके कोच बिजय लकड़ा ने उन्हें डिफ़ेंडर के तौर पर खेलने की सलाह दी. दो साल के अंदर ही वे राज्य टीम का हिस्सा बन गए.
2013 में उन्हें नेशनल टीम में जगह मिली, लेकिन अगले तीन साल तक वे टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए. वे अपने खेल को सुधारते रहे और 2017 में उन्होंने वापसी की, जिसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सौरभ दुग्गल अमित रोहिदास के बारे में कहते हैं, "अमित रोहिदास जिस पॉजिशन पर खेलते हैं, वहां खेलना आसान नहीं होता है. कई बार चोट लगने की संभावना होती है, लेकिन मौजूदा दौर में आप कह सकते हैं कि वे सबसे बेहतरीन डिफ़ेंडर हैं."
ओलंपिक में हिस्सा लेने से पहले अमित रोहिदास ने कहा था कि 12 साल की मेहनत के बाद ओलंपिक टीम में शामिल होने का मौका मिला है, ये मेरे सबसे बड़े सपने के पूरा होने जैसा है.
इस टूर्नामेंट में अपना 100 इंटरनेशनल मैच पूरा करने वाले रोहिदास को शायद ही अंदाज़ा रहा होगा कि उनका सपना इस ख़ूबसूरत मोड़ पर जाकर पूरा होगा. (bbc.com)
टोक्यो, 5 अगस्त | भारत की पुरुष हॉकी टीम ने एक समय 1-3 से पीछे होने के बावजूद शानदार खेल दिखाते हुए 41 साल के अंतराल के बाद ओलंपिक पदक जीतने का गौरव हासिल किया है। भारत ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक के लिए हुए रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराया। भारतीय टीम सेमीफाइनल में बेल्जियम के हाथों हार गई थी। इसके बाद उसे कांस्य जीतने का मौका मिला था। जर्मनी के खिलाफ एक समय भारतीय टीम 1-3 से पीछे चल रही थी लेकिन सात मिनट में चार गोल करते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने मैच की दिशा अपनी ओर मोड़ दी।
भारत के लिए सिमरनजीत सिंह (17वें, 34वें मिनट) ने दो गोल किए, जबकि हार्दिक सिंह (27वें मिनट), हरमनप्रीत सिंह (29वें मिनट) और रूपिंदरपाल सिंह (31वें मिनट) ने एक-एक गोल दागे जबकि जर्मनी के लिए तिमूर क्रूज (दूसरा मिनट), निकलास वालेन (24वें), बेनेडिक्ट फर्क (25वें मिनट) और लुकास विंडफेडर (48वें मिनट) ने एक-एक गोल किया।
भारत ने अंतिम बार 1980 के मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। कांस्य पदक की बात की जाए तो भारत ने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में नीदरलैंड्स को हराकर यह पदक जीता था।
टोक्यो में भारत का यह चौथा पदक है। भारत हॉकी के अलावा वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में पदक जीत चुका है जबकि कुश्ती में रवि दहिया भारत के लिए रजत पदक पक्का कर चुके हैं। रवि गुरुवार को ही अपना फाइनल खेलेंगे। अगर वह जीत गए तो वह भारत के लिए व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले दूसर खिलाड़ी बन जाएंगे। इससे पहले 2008 में बीजिंग में अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी में स्वर्ण जीता था।
इस हार के साथ जर्मनी के हाथों 2016 के रियो ओलंपिक के बाद लगातार दूसरा कांस्य जीतने का मौका निकल गया।
बहरहाल, मैच का पहला गोल दूसरे मिनट में जर्मनी के तिमोर ओरुज ने किया। ओरुज ने एक बेहतरीन फील्ड गोल के जरिए अपनी टीम को 1-0 से आगे कर दिया।
जर्मनी ने इसी अंतर से दूसरे क्वार्टर में प्रवेश किया। सिमरनजीत सिंह ने हालांकि इस क्वार्टर की शुरुआत में ही 17वें मिनट में गोल कर स्कोर 1-1 कर दिया। यह एक फील्ड गोल था।
निकलास वालेन ने हालांकि 24वें और फिर बेनेडिक्ट फुर्क ने 25वें मिनट में गोल कर जर्मनी को एक बार फिर 3-1 से आगे कर दिया।
भारत ने भी हाल नहीं मानी और 27वें तथा 29वें मिनट में गोल कर स्कोर 3-3 से बराबर कर दिया। 27वें मिनट में हार्दिक सिंह ने पेनाल्टी कार्नर पर गोल किया जबकि 29वें मिनट में भी पेनाल्टी कार्नर पर ही गोल हुआ जो हर्मनप्रीत सिंह ने किया।
हाफटाइम तक स्कोर 3-3 था।
इसके बाद तो भारत नहीं रुका और एक के बाद एक गोल कर 5-3 की लीड ले ली। रुपिंदर पाल सिंह ने 31वें मिनट में पेनाल्टी स्ट्रोक पर भारत के लिए चौथा गोल किया जबकि हर्मनप्रीत सिंह ने 34वें मिनट में अपना दूसरा और टीम के लिए पांचवां गोल किया।
जर्मन टीम भी हार मानने वाली नहीं थी। उसने 48वें मिनट में अपना चौथा गोल कर मैच में रोमांच ला दिया। जर्मनी के लिए यह गोल लुकास विंडफेडर ने पेनाल्टी कार्नर पर किया। अब स्कोर 4-5 हो चुका था। अंतिम समय में जर्मन टीम ने कई हमले किए लेकिन भारतीय डिफेंस मुस्तैद था। उसने तमाम हमलों को नाकाम कर स्कोर की रक्षा की और 41 साल से चले आ रहे सूखे को समाप्त किया। (आईएएनएस)
टोक्यो, 5 अगस्त| भारत की दिग्गज महिला पहलवान विनेश फोगाट फ्रीस्टाइल कुश्ती के 53 किग्रा भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में हार गईं हैं। माकुहारी मेसे हॉल एक के मैट-बी पर हुए क्वार्टर फाइनल मैच में विनेश को दो बार की विश्व चैम्पियन बेलारूस वेनेसा कालाजिंसकाया ने 9-3 से से हराया।
इससे पहले, विनेश ने राउंड ऑफ-8 मुकाबले में विनेश ने स्वीडन की सोफिया मैगडालेना मैटसन को 7-1 से हराया।
वेनेसा अगर फाइनल में पहुंच गईं तो विनेश को रेपेचेज खेलने का मौका मिलेगा और वह रेपेचेज के दो मैच जीतकर कांस्य जीत सकती हैं।
भारत रियो में पहले ही पुरुष कुश्ती में एक रजत पक्का कर चुका है। रवि दहिया फाइनल में पहुंच चुके हैं। महिला वर्ग में हालांकि अंशु गुरुवार को ही अपना रेपेचेज-1 मुकाबला हार गईं। इस तरह उनके हाथ से कांस्य जीतने का मौका निकल गया। (आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 5 अगस्त| प्रख्यात रेत कलाकार ओडिशा निवासी सुदर्शन पटनायक ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को बधाई देने के लिए ओडिशा के पुरी समुद्र तट पर 10 फीट लंबा रेत का बॉक्सिंग ग्लव्स बनाया। भारत की लवलीना बोगोर्हेन ने टोक्यो में दुनिया की नंबर-1 सुरमेनेली के खिलाफ महिलाओं के वेल्टरवेट सेमीफाइनल (69 किग्रा) में हारने के बाद कांस्य पदक जीता।
इस प्रकार मीराबाई चानू और पीवी सिंधु के बाद टोक्यो खेलों में भारत के लिए पदक जीतने वाली तीसरी महिला एथलीट बन गईं।
सुदर्शन ने भारत का गौरव संदेश के साथ लवलीना के लिए 10 फीट के मुक्केबाजी दस्ताने बनाए।
उन्होंने इस मूर्ति को बनाने के लिए लगभग 8 टन रेत का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, हम लवलीना को ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के लिए बधाई देते हैं। (आईएएनएस)
टोक्यो, 5 अगस्त| टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों के 10 किलोमीटर मैराथन स्विमिंग स्पर्धा का स्वर्ण पदक जर्मनी के फ्लोलियन वेलब्रोक के खाते में गया है। सात लैप की इस स्पर्धा में 1500 मीटर फ्रीस्टाइल के कांस्य पदक विजेता जर्मनी के वेलब्रोक ने 1:48:33.7 घंटे का समय लेकर स्वर्ण पदक हासिल किया। वहीं हंगरी के क्रिस्टोफर रासोवस्की ने 1:48:59.0 घंटे का समय निकाला और दूसरे स्थान पर रहते हुए रजत पदक अपने नाम किया।
इटली के जार्जियो पाल्टीनिएरी ने 1:49:01.1 घंटे का समय निकाला और कांस्य पर कब्जा जमाया। रियो 2016 के चैंपियन नीदरलैंड्स के फेरी वेटरमैन सातवें स्थान पर रहे।
1. फ्लोरियन वेलब्रोक (जमनी) - 1:48:33.7
2. क्रिस्टोफर रासोवस्की (हंगरी) - 1:48:59.0
3. जार्जियो पाल्टीनिएरी (एटली) - 1:49:01.1 (आईएएनएस)
टोक्यो, 5 अगस्त| भारत की महिला पहलवान अंशु मलिक ने कांस्य पदक जीतने का मौका हासिल किया है। महिलाओं के 57 किलोग्राम वर्ग के प्री-क्वार्टर फाइनल मुकाबले में अंशु इरीना कुराचकिना से हार गई थीं। इरीना अब फाइनल में पहुंच गईं और इसीलिए अंशु को रेपेचेज खेलने का मौका मिला है। ओलंपिक में कुश्ती प्रतियोगिता के नियमों के अनुसार, अंतिम फाइनलिस्ट के खिलाफ हारने वालों को कांस्य पदक के लिए हारने वाले सेमीफाइनलिस्ट के खिलाफ आपस में लड़ने का मौका मिलता है।
प्री-क्वार्टर फाइनल में बेलारूसी इरीना ने अंशु को हराया, जबकि क्वार्टर फाइनल में उन्होंने रूसी ओलंपिक समिति (आरओसी) की वेलेरिया कोब्लोवा को हराया। इसके बाद उन्होंने सेमीफाइनल में बुल्गारिया की एवेलिना निकोलोवा को हराया।
फाइनल में उनके प्रवेश से अंशु और वेलेरिया दोनों को कांस्य पदक के लिए सेमीफाइनलिस्ट एवेलिना को हराने का मौका मिलेगा।
लेकिन ऐसा होने के लिए, सेमीफाइनल चरण से पहले बेलारूसी से हारने वाले दो पहलवान अंशु और वेलेरिया को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ना होगा। सुबह 7.37 बजे होने वाली इस बाउट के विजेता को एवलिना के खिलाफ कांस्य पदक के लिए लड़ने का मौका मिलेगा।
संक्षेप में, अंशु को कांस्य पदक जीतने के लिए दो मुकाबलों में जीत हासिल करनी है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 5 अगस्त| भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया आज इतिहास रचने उतरेंगे। रवि ने सेमीफाइनल में कजाक पहलवान के खिलाफ जिस तरह का खेल दिखाया, उससे लगता है कि वह भारत के लिए कुश्ती में स्वर्ण जीतने वाला पहला पहलवान बनकर भारतीय खेल जगत में हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाना चाहेंगे। पुरुष फ्रीस्टाइल के 57 किग्रा भार वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में पीछे चल रहे होने के बावजूद कजाखस्तान के नूरइस्लाम सनायेव को हराकर फाइनल में प्रवेश करने के साथ ही रवि ने वैसे तो अपने और देश के लिए रजत पदक पक्का कर लिया है लेकिन उनका इरादा यहीं रुकने का नहीं होगा।
कुश्ती में लंदन ओलंपिक में सुशील कुमार रजत पदक जीत चुके हैं। रवि इससे भी आगे जाना चाहेंगे लेकिन इसके लिए उन्हें फाइनल में रूस के जायूर उगयेव की चुनौती को समाप्त करनी होगी।
वैसे रवि के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा क्योंकि उगयेव दो बार के विश्व चैम्पियन (2018, 2019) हैं और जो यह मानते हैं कि सफलता 99 फीसदी मेहनत और एक फीसदी टैलेंट पर आश्रित होती है।
जिस साल (2019) में उगयेव ने नूर सुल्तान में विश्व चैम्पियनशिप का सोना जीता था, उसी साल रवि ने इसी वर्ग में कांस्य जीता था। वह मौजूदा एशियाई चैम्पियन (2020, 2021) और यू23 विश्व चैम्पियनशिप (2018) के रज पदक विजेता हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन के कांस्य पदक जीतने के बाद क्रिकेट के कुछ हस्तियों ने उनकी इस उपलब्धि को सराहा है। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग, ईशांत शर्मा और वेंकटेश प्रसाद के अलावा अन्य लोगों ने सोशल मीडिया पर लवलीना को जीत की बधाई दी।
पूर्व क्रिकेटर सहवाग ट्वीट करते हुए लिखा , शानदार लवलीना! ओलंपिक पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज। कांस्य जीतने पर बधाई।
विजेंदर सिंह (2008 बीजिंग) और एमसी मैरी कॉम (2012 लंदन) के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली लवलीना तीसरी मुक्केबाज हैं। असम की मुक्केबाज के प्रयास की बदौलत भारत ने अब टोक्यो में एक रजत और दो कांस्य पदक जीतकर 2016 के रियो ओलंपिक खेलों की अपनी तालिका में सुधार किया है।
भारत के पूर्व तेज गेंदबाज वेंकटेश प्रसाद ने पोस्ट किया, भारत के लिए तीसरा पदक। अपने पहले ओलंपिक में पदक जीतने पर हार्दिक बधाई। लवलीना आपको आने वाले समय के लिए शुभकामनाएं।
भारत के तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा ने ट्वीट करते हुए लिखा, रिंग की बाजीगर। भारत को आप पर गर्व है, लवलीना बोरगोहेन। टोक्यो ओलंपिक में हमारे देश के लिए तीसरा पदक जीतने के लिए धन्यवाद! ऐसे ही आगे बढ़ते रहिए। जय हिंद।(आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त | भारतीय गेंदबाजों ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए यहां ट्रेंट ब्रिज में खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच के पहले दिन लंच तक इंग्लैंड को शुरूआती झटके दिए। इंग्लैंड ने अबतक दो विकेट पर 61 रन बनाए हैं। लंच ब्रेक तक डॉमिनिक सिब्ले 67 गेंदों पर दो चौकों की मदद से 18 रन और कप्तान जोए रूट 10 गेंदों पर तीन चौकों के सहारे 12 रन बनाकर क्रीज पर मौजूद हैं। भारत की ओर से जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज को अबतक एक-एक विकेट मिला है।
इससे पहले, इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। लेकिन बुमराह ने मैच के पहली ओवर की पांचवीं गेंद पर ही रोरी बर्न्स (0) को पगबाधा आउट कर मेजबान टीम को पहला झटका दिया।
इसके बाद सिब्ले और जैक क्राव्ली के बीच दूसरे विकेट के लिए 42 रन की साझेदारी हुई लेकिन सिराज ने क्राव्ली को आउट कर इंग्लैंड को दूसरा झटका दिया। क्राव्ली ने 68 गेंदों पर चार चौकों की मदद से 27 रन बनाए।(आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त | भारत की महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को यहां जारी टोक्यो ओलंपिक के 69 किग्रा भार वर्ग, जिसे वेल्टरवेट कटेगरी भी कहा जाता है, उसके सेमीफाइनल मुकाबले में बुधवार को तुर्की की बुसेनाज सुरमेनेली के हाथों 0-5 से हार का सामना कर कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा है। सभी जजों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया और इसके साथ ही असम की मुक्केबाज लवलीना का फाइनल में जाने का सपना चकनाचूर हो गया और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। लवलीना के कांस्य जीतने के साथ ही भारत ने टोक्यो ओलंपिक में अपना तीसरा पदक हासिल कर लिया है।
लवलीना से पहले भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने रजत और बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने महिला एकल वर्ग में भारत को टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक दिलाया है।
इसी के साथ ही भारत ने 2016 रियो ओलंपिक के अपने प्रदर्शन से बेहतर किया है जहां उसे एक रजत और एक कांस्य पदक ही हासिल किया था।
सुरमेनेली ने पहले और दूसरे राउंड में सभी पांचों जजों को प्रभावित किया और 10-10 अंक बटोरे जबकि लवलीना को पांचों जजों से पहले दो राउंड में नौ-नौ अंक मिले। सुरमेनेली तीसरे राउंड में भी लवलीना पर भारी पड़ती दिखीं और उन्होंने तीसरे राउंड में भी सभी जजों से 10-10 अंक लिए। लवलीना को तीसरे राउंड में दो जजों ने नौ-नौ अंक और तीन जजों ने आठ-आठ अंक दिए।
विश्व चैंपियनशिप और एशियाई चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी लवलीना भारत के लिए ओलंपिक मुक्केबाजी में पदक सुनिश्चित करने वाली दूसरी महिला और तीसरी मुक्केबाज हैं। इससे पहले एमसी मैरीकोम (2012 लंदन ओलंपिक) और विजेंदर सिंह (2008 बीजिंग ओलंपिक) ने भारत के लिए कांस्य पदक जीते हैं।
लवलीना का टोक्यो ओलंपिक में सफर यादगार रहा और उन्होंने अंतिम-16 राउंड के मुकाबले में जर्मनी की एदिन एपेट को 3-2 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। इसके बाद लवलीना का सामना ताइवान की नेन चिन चेन से हुआ, जहां वह 4-1 से विजयी रहीं।
क्वार्टर फाइनल में जीत हासिल करने के साथ ही लवलीना ने देश के लिए पदक पक्का कर लिया था। हालांकि, देश को उनसे स्वर्ण पदक लाने की उम्मीद जगी थी लेकिन सेमीफाइनल में हार के साथ यह सपना टूट गया।
लवलीना की हार के साथ ही भारत का टोक्यो ओलंपिक में मुक्केबाजी इवेंट में सफर समाप्त हो गया है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 4 अगस्त| भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया और दीपक पुनिया ने यहां जारी टोक्यो ओलंपिक में कुश्ती के अपने-अपने भार वर्गो में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में जगह बना ली है।
रवि ने पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग के 1/4 फाइनल मुकाबले में बुल्गारिया के गिओरजी वांगेलोव को 14-4 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई।
इस बीच, एक अन्य पहलवान दीपक ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए फ्रीस्टाइल 86 किग्रा के 1/4 फाइनल मैच में चीन के जुशेन लीन को 6-3 से पटखनी देकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
रवि का सेमीफाइनल में मुकाबला कजाखस्तान के नुरइस्लाम सनायेव से होगा जबकि दीपक का सामना अमेरिका के डेविड मोरिस टेलर से होगा।
इससे पहले, रवि ने ओपनिंग बाउट में कोलंबिया के ऑस्कर टाइगरेरोस को 13-2 से हराया था। उन्होंने यह बाउट टेकनीकल सुपेरिओरिटी के द्वारा जीती। (आईएएनएस)
टोक्यो ओलंपिक में बुधवार को दिन की शुरुआत में ही भारत के लिए उम्मीद जगाते हुए जैवलीन थ्रो (भाला फेंक) एथलीट नीरज चोपड़ा ने फ़ाइनल के लिए क्वालीफ़ाई कर लिया है.
फ़ाइनल में क्वालीफ़ाई करने के लिए 83.50 मीटर दूर भाला फेंकना ज़रूरी था और नीरज ने अपने पहले ही थ्रो में 86.65 मीटर का थ्रो फेंककर ये सफलता हासिल कर ली.
नीरज का निजी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 88.07 मीटर है. अब उनका फ़ाइनल मुक़ाबला सात अगस्त को होगा.
आज ही एक अन्य भारतीय जैवलीन थ्रो एथलीट शिवपाल सिंह का भी मुक़ाबला है. नीरज चोपड़ा ग्रुप ए टीम में थे और शिवपाल ग्रुप बी में हैं. (bbc.com)
-अरविंद छाबड़ा
ओलंपिक खेलों में भारत अब तक महिला हॉकी में कोई मेडल हासिल नहीं कर सका है, ऐसे में टोक्यो के ओइ हॉकी स्टेडियम में भारतीय टीम बुधवार को इतिहास बनाने के लिए उतरेगी. काग़ज़ पर कहीं मज़बूत अर्जेंटीना को अगर भारतीय महिला टीम हराने का करिश्मा कर पाई तो उसका कम से कम सिल्वर मेडल पक्का हो जाएगा.
वैसे भारतीय महिला टीम के लिए सेमीफ़ाइनल में पहुंचना भी बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि टीम पहली बार सेमीफ़ाइनल में पहुंचने में कामयाब रही है. चार दशकों के बाद महिला के साथ साथ पुरुष टीम भी टोक्यो में अंतिम चार में पहुंचने में कामयाब रही. लेकिन पुरुष हॉकी में बेल्जियम ने भारत को फ़ाइनल से पहले ही रोक दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या महिला टीम वह करिश्मा कर पाएगी जो पुरुष टीम नहीं कर सकी?
भारतीय महिला टीम ने तीसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लिया है. 1980 के मास्को ओलंपिक में पहली बार महिला हॉकी को शामिल किया गया. भारतीय टीम वहां चौथे पायदान पर रही थी. इसके बाद ओलंपिक में अगली बार खेलने के लिए भारत को 36 साल तक इंतज़ार करना पड़ा. रियो ओलंपिक में भारतीय महिला टीम कोई मुक़ाबला नहीं जीत सकी और उसे अंतिम स्थान से संतोष करना पड़ा था.
ख़राब शुरुआत के बाद वापसी
टोक्यो में भारत की शुरुआत बेहद ख़राब रही. भारतीय महिला हॉकी टीम को अपने पहले तीनों मुक़ाबले में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद टीम के डच कोच शॉर्ड मारिन ने टीम की आलोचना की. उन्होंने यहां तक कहा कि टीम वह कर रही है जिसके लिए टीम प्रबंधन मना कर रहा है यानी खिलाड़ी व्यक्तिगत तौर पर खेल रही हैं, टीम के रूप में नहीं.
ऐसे में जब हर किसी को आशंका होने लगी थी कि भारतीय महिला टीम इस बार रियो ओलंपिक की तरह अंतिम पायदान पर रहेगी, तभी खिलाड़ियों ने अपने गियर बदले. टीम ने पहले आयरलैंड को हराया और इसके बाद साउथ अफ़्रीका को हराकर क्वार्टर फ़ाइनल में प्रवेश किया. क्वार्टर फ़ाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ज़ोरदार जीत हासिल करके सेमीफ़ाइनल में प्रवेश किया.
वहीं दूसरी ओर अर्जेंटीना ने क्वार्टर फ़ाइनल में जर्मनी को 3-0 से हराया है. वैसे अर्जेंटीना की शुरुआत भी हार से हुई थी, जब न्यूज़ीलैंड ने उन्हें हरा दिया था, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.
लेकिन जर्मनी को जिस तरह से अर्जेंटीना ने हराया है, उससे ज़ाहिर होता है कि उनकी फ़ारवर्ड कहीं ज़्यादा आक्रामकता से खेल रही हैं. इतना ही नहीं, उनमें जीत हासिल करने की भूख भी नज़र आ रही है क्योंकि रियो ओलंपिक में टीम क्वार्टर फ़ाइनल में ही बाहर हो गई थी.
भारत की रणनीति
सेमी फ़ाइनल के अहम मुक़ाबले में भारत की महिला खिलाड़ियों को एक टीम के तौर पर खेलना होगा. इसके अलावा उन्हें उन तरक़ीबों को भी अपनाना होगा जिन्हें खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपनाया था.
वैसे तो पेनल्टी कॉर्नर पर गोल दागने में भारत का औसत बहुत ख़राब है, लेकिन टीम ने क्वार्टर फ़ाइनल में मिले मौक़े का फ़ायदा उठाया था. गुरजीत कौर ने बेहतरीन ड्रैग फ़्लिक के ज़रिए जो गोल दागा, वह आख़िर में निर्णायक साबित हुआ. यानी मौक़े पर पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने की काबिलियत फिर से दिखानी होगी. मज़बूत टीमों के सामने ज़्यादा मौके नहीं मिलते हैं, इसलिए उन्हें हर मौके का फ़ायदा उठाना होगा.
अर्जेंटीना की टीम अपने आक्रामक खेल के लिए जानी जाती है, ऐसे में भारतीय रक्षा पंक्ति को मुस्तैद रहना होगा. भारतीय पुरुष हॉकी टीम के गोलकीपर श्रीजेश को 'दीवार' कहा जाता है, लेकिन टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मुक़ाबले में ख़ुद को 'दीवार' साबित किया. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के सामने कई शानदार बचाव किए. लेकिन टीम की पूरी रक्षा पंक्ति को मज़बूत रहना होगा.
इसके अलावा टीम के खिलाड़ियों को यह समझना होगा कि जब वे ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं तो फिर अर्जेंटीना को भी हरा सकते हैं, क्योंकि ग्रुप मुक़ाबलों में अर्जेंटीना को ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा था. (bbc.com)
-वंदना
भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक सेमीफ़ाइनल में जगह बनाकर इतिहास रच दिया है.
हॉकी यूँ तो टीम गेम है और किसी भी जीत में पूरी टीम का योगदान रहता है, लेकिन आइए नज़र डालते हैं उन चंद खिलाड़ियों पर जिनकी इस ओलंपिक सफ़र में अहम भूमिका रही है.
वंदना कटारिया
भारतीय महिला हॉकी के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ- ओलंपिक में हैट्रिक. वंदना कटारिया ने दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ अहम ओलंपिक मैच में एक नहीं तीन-तीन गोल कर सबको रोमांचित कर दिया था. अगर ये मैच भारत हार जाता तो सेमीफ़ाइनल में जगह नहीं बना पाता. वंदना पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक में हैट्रिक बनाया.
29 साल की वंदना भारतीय हॉकी टीम की सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से एक हैं. ओलंपिक में जाने से पहले तक वो 240 मैच खेल कर 64 गोल कर चुकी थीं.
हरिद्वार के पास रोशनाबाद गाँव से आने वाली वंदना ने जब हॉकी खेलनी शुरू की थी तो आसपास वालों को घोर आपत्ति थी. इन आपत्तियों के बीच दो ही लोग चट्टान की तरह अड़े रहे थे- ख़ुद वंदना और उनके पिता नाहर सिंह. वंदना छिप-छिप कर प्रैक्टिस करती थीं.
सब लोगों के ख़िलाफ़ जाकर पिता ने बेटी का साथ दिया और वंदना भारतीय टीम तक पहुँचीं.
इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, तब वंदना की ओलंपिक की तैयारी भी ज़ोरों पर थी. उन्हीं दिनों उनके पिता का निधन हो गया. वंदना उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाई थीं क्योंकि ओलंपिक की तैयारी चल रही थी और वो बायो बबल में थीं. तब वंदना ने कहा था कि उन्हें भारत और अपने पिता दोनों के लिए कुछ करना है.
ख़ुद को रॉजर फ़ेडरर फ़ैन बताने वाली वंदना ने ओलंपिक में ही नहीं दूसरी कई प्रतियोगिताओं में भी भारत को जीत दिलाई है. साल 2013 के जूनियर महिला वर्ल्ड कप में भी वो टॉप स्कोरर थीं.
गुरजीत कौर
महिला हॉकी टीम का ओलंपिक सेमीफ़ाइनल तक पहुँचना बहुत से लोगों के लिए किसी सपने की तरह है. क्वॉर्टर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मुश्किल मैच में जिस खिलाड़ी के गोल ने भारत को जीत दिलाई वो थी पंजाब की गुरजीत कौर. ये गुरजीत का पहला ओलंपिक है.
गुरजीत कौर को भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे बेहतर ड्रैग फ़्लिकर में गिना जाता है.
पंजाब में पाकिस्तान सीमा से सटे छोटे से गाँव से आने वाली गुरजीत के गाँव में लड़कियों के लिए खेल का माहौल नहीं था. उनके पिता की इच्छा था कि बेटियाँ पढ़-लिख जाएँ. वो गाँव से रोज़ पास के कस्बे में बेटी को छोड़ने जाते थे. चूँकि इतने पैसे नहीं थे कि वो शहर तक दो-दो चक्कर लगाएँ तो उनके पिता सुबह से शाम तक स्कूल के बाहर ही खड़े रहते थे. लेकिन बाद मे हॉस्टल में रहते हुए गुरजीत ने लड़कियों को हॉकी खेलते देखा और लगा कि इसमें कुछ कर सकते हैं. ड्रैग फ़्लिक क्या होती है तब गुरजीत ने इसका नाम भी नहीं सुना था.
लेकिन मैच दर मैच गुरजीत अपने खेल को निखारती गईं. ओलंपिक शुरू होने से पहले वो 87 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी थीं और 60 गोल कर चुकी थीं.
हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह को वो अपना आइडल मानती हैं. गुरजीत पर दोहरी ज़िम्मेदारी रहती है. वो डिफ़ेंडर भी हैं और ड्रैग फ़्लिकर भी. ओलिंपक में जाने से पहले गुरजीत से बातचीत में मैंने पूछा था कि इस ओलंपिक के उनके लिए क्या मायने हैं तो उन्होंने कहा था कि अगर भारतीय महिला टीम पदक जीतती है तो ये न सिर्फ़ ऐतिहासिक होगा बल्कि लड़कियों को एक संदेश जाएगा कि वो कुछ भी कर सकती हैं.
भारत को सेमीफ़ाइनल तक लाने का श्रेय जिन खिलाड़ियों को दिया जा रहा है उसमें गोलकीपर सविता का नाम ज़रूर लिया जाएगा. अगर सवीता ने गोल न रोके होते तो ये कहानी कुछ और ही होती.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ बहुत ही अहम मैच में सविता ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया. जब गुरजीत कौर ने पहला गोल किया तो ऑस्ट्रेलियाई ख़ेमे ने भी दबाव बढ़ा दिया, लेकिन गोलकीपर सविता ने ऑस्ट्रेलिया की कोई कोशिश कामयाब नहीं होने दी. वो एक के बाद एक सेव करती चली गईं, ख़ासकर पेनल्टी कॉर्नर के दौरान.
एक मंझी हुई गोलकीपर की तरह सविता ने हर एंगल को कवर करते हुए गोल होने से रोका.
भारत के लिए 200 से भी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी सविता को अब लोग 'द वॉल' कहने लगे हैं जिन्हें भेदना ऑस्ट्रेलिया के लिए मुश्किल हो गया था.
हरियाणा से आने वाली सविता ने 18 साल की उम्र में भारत के लिए खेलना शुरू किया था और 31 साल की उम्र में उनका सफ़र जारी है.
शुरुआत में तो सविता का हॉकी में रुझान भी नहीं था. ख़ासकर जब उनकी माँ बीमार रहतीं तब सविता घर का भी काम करती थीं. लेकिन सविता के दादा ने उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया. घर से कई किलोमीटर दूर, बसों में धक्के खाते हुए भारी हॉकी किट लेकर सविता को जाना पड़ता था.
लेकिन एक बार सविता ने दिलचस्पी लेनी शुरू की तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2019 के एशियन गेम्स के सिल्वर मेडल को वो अपना सबसे यादगार लम्हा मानती हैं, लेकिन अब शायद ये जगह ओलंपिक को मिल जाएगी.
नेहा गोयल
दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ ओलंपिक मैच में जब भारत 4-3 से जीता तो मैच में वंदना कटारिया की हैट्रिक के बाद अहम गोल नेहा गोयल का था. हरियाणा से आने वाली नेहा अपना पहला ओलंपिक ही खेल रही हैं.
हॉकी के मैदान और ज़िंदगी दोनों में नेहा ने बहुत संघर्ष किया है. बहुत ग़रीब परिवार से आने वाली नेहा का बचपन मुश्किलों भरा था, पिता को शराब की लत थी. माँ फ़ैक्टरियों में काम करके गुज़र करती थीं और पिता की मौत के बाद तो नेहा और उनकी बहनें भी माँ के साथ काम करती थीं ताकि गुज़ारा चल सके. उन्होंने हॉकी बचपन में तब खेलना शुरू किया जब किसी ने कहा कि वहाँ पहनने के लिए जूते और कपड़े मिलेंगे.
नेहा के टैलेंट को देखकर कोच प्रीतम सीवच ने उन्हें कोचिंग दी और साल 2011 में नेहा जूनियर टीम का हिस्सा बनीं और साल 2014 में सीनियर टीम का. नेहा कई बार टीम से अंदर-बाहर हुईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पहले ही ओलंपिक में गोल कर चुकी हैं.
नवनीत
कुछ दिन पहले तक एक समय था जब भारतीय महिला टीम अपने सारे ओलंपिक मैच हार रही थी. ऐसे वक़्त में आयरलैंड के ख़िलाफ़ मैच में गोल कर नवनीत ने भारत को उसकी पहली जीत दिलाई थी. ये गोल हमेशा भारत के लिए ख़ास रहेगा.
25 साल की नवनीत हरियाणा से आती हैं. घर के पास ही शाहबाद हॉकी अकैडमी थी. वहीं से हॉकी में दिलचस्पी जागी और साल 2005 में हॉकी खेलना शुरू कर दिया.
जूनियर वर्ल्ड में साल 2013 में हिस्सा लेने वाली नवनीत अब ओलंपिक तक पहुँच गई हैं. ओलंपिक से पहले वो 24 अंतरराष्ट्रीय गोल कर चुकी थीं, लेकिन आयरलैंड के ख़िलाफ़ उनके गोल को लंबे समय तक याद रखा जाएगा. (bbc.com)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पास 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद पहली बार ओलंपिक फाइनल खेलने का मौका था लेकिन उसने बेल्जियम के हाथों सेमीफाइनल मैच 2-5 से गंवाते हुए यह मौका भी गंवा दिया। अब भारतीय टीम कांस्य जीतने का प्रयास करेगी, जो उसने अंतिम बार 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में जीता था। भारत का कांस्य पदक के लिए जर्मनी से मुकाबला होगा।
ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच पर खेले गए इस मैच में एक समय भारत 2-1 से आगे था लेकिन एलेक्सजेंडर हेंडरिक्स (19वें, 49वें, 53वें) की शानदार हैट्रिक के दम पर मौजूदा वल्र्ड चैम्पियन बेल्जियम ने भारत को एकतरफा हार को मजबूर कर दिया।
बेल्जियम के खिलाफ मिली हार के बाद भारत का सोना जीतने का सपना भले ही टूट गया लेकिन जर्मनी के खिलाफ वह तीसरे स्थान पर रहकर देश के लिए कांस्य हासिल करना चाहेगी।
जर्मनी को एक अन्य सेमीफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। स्वर्ण पदक मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया का सामना अब बेल्जियम से होगा।
ऑस्ट्रेलिया ने ओलंपिक में सिर्फ एक बार स्वर्ण पदक जीता है। उसे 2004 एथेंस ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला था जबकि बेल्जियम को 2016 रियो ओलंपिक में अर्जेटीना ने 2-4 से हराया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु का मंगलवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे पर सैकड़ों की संख्या में प्रशंसक इकट्ठा हुए और सिंधु का ढोल बाजों के साथ स्वागत किया।
सिंधु ने टोक्यो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। वह पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने ओलंपिक में भारत के लिए दो बार पदक जीते हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने सिंधु को 30 लाख रूपये की ईनामी राशि देने की घोषणा की है। सिंधु ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था।
सिंधु ने यहां पहुंचने पर कहा, "मैं बहुत खुश और उत्साहित हूं। कई लोगों ने मुझे बधाई दी। मैं बैडमिंटन संघ और सभी लोगों का प्यार और समर्थन देने के लिए धन्यवाद देती हूं।" (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त | भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकर पहले ही इतिहास रच चुकी है और अब उसका सामना बुधवार को अर्जेटीना से होना है, जहां उसकी नजरें फाइनल में पहुंचने पर होगी। क्वार्टर फाइनल में विश्व की नंबर-2 टीम ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद भारतीय टीम का मनोबल अर्जेटीना के खिलाफ बढ़ा है। उन्होंने उम्मीद से ज्यादा प्रदर्शन किया है और उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और शीर्ष टीमों के खिलाफ उसे खेलने का अनुभव हासिल हुआ है। हालांकि, वह ओलंपिक खेलों के फाइनल में जाने के इस मौके को गंवाना नहीं चाहेगी।
ओलंपिक शुरू होने से पहले विश्व रैंकिंग में नौंवें स्थान पर रही भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर नया मानक तय किया है।
भारतीय डिफेंडर और गोलकीपर सविता पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया था और उनपर अर्जेटीना के विरूद्ध इस प्रदर्शन को दोहराने का जिम्मा रहेगा। हालांकि, अर्जेटीना की टीम ऑस्ट्रेलिया से काफी अलग है। वह काफी फिट टीम है।
अर्जेटीना के पास अगुसटीना गोरजेलानी के रूप में शॉट कॉर्नर विशेषज्ञ मौजूद हैं जबकि फॉरवर्ड अगुसटीना अल्बर्टारिओ ने दो मैदानी गोल किए हैं।
भारतीय टीम को अर्जेटीना की टीम का कुछ हद तक आईडिया है। उसने इस साल जनवरी में इनके खिलाफ मुकाबला खेला था। हालांकि, वो दोस्ताना मैच था और खिलाड़ी वहां ओलंपिक के अनुरुप गंभीर नहीं थे।
कप्तान रानी रामपाल के नेतृत्व वाली महिला टीम को ग्रुप चरण में विश्व की नंबर-1 टीम नीदरलैंड के खिलाफ 1-5 से, जर्मनी के खिलाफ 0-2 से और ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ 1-4 से हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, उसने आयरलैंड के खिलाफ 1-0 से जीत दर्ज की और फिर दक्षिण अफ्रीका को 4-3 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जाने की उम्मीद बरकरार रखी। फिर ग्रेट ब्रिटेन ने आयरलैंड को हराया और भारतीय टीम क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गई।
अर्जेटीना के खिलाफ भारतीय टीम को अधिक आक्रामक होने और मौके भुनाने के साथ ही बेहतर तरीके से डिफेंड करने की जरूरत है।
भारतीय टीम के पास खोने को कुछ नहीं है और उसे इस मैच में खुलकर खेलने की जरूरत है।(आईएएनएस)
नॉटिंघम, 3 अगस्त | भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने मंगलवार को कहा है कि पिछले दौरों के तुलना में इस बार इंग्लैंड दौरे के लिए टीम की तैयारी बेहतर है। कोहली ने कहा कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले के बाद पांच मैचों की टेस्ट सीरीज से पहले डेढ़ महीने से अधिक का फासला था जिससे इंग्लैंड में बदलते मौसम में टीम ढल गई।
कोहली ने इंग्लैंड के खिलाफ मैच की पूर्व संध्या पर कहा, "हमने अतीत के मुकाबले इस बार बेहतर तैयारी की है। ब्रेक मिलने से स्थिति ने हमें मौसम में ढलने का समय दिया क्योंकि यहां जल्द ही मौसम बदल जाता है।"(आईएएनएस)
हॉकी: पुरुष हॉकी के दूसरे सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने जर्मनी को 3-1 से हरा दिया है. पहले सेमीफाइनल में भारतीय टीम को बेल्जियम ने 5-2 से मात दी थी. अब कांस्य पदक के लिए भारत का मुकाबला जर्मनी से होगा.
राज्य स्तरीय ऑनलाइन एमेच्योर शतरंज स्पर्धा का समापन
रायपुर , 3 अगस्त। छत्तीसगढ़ प्रदेश शतरंज संघ द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय ऑनलाइन बिलो 1700 शतरंज स्पर्धा का समापन हुआ । इस अवसर पर महासमुंद जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष डॉ डी एन साहू बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कोरबा जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष दिनेश लांबा ने की।
जिला शतरंज संघ दुर्ग के अध्यक्ष ईश्वर सिंह राजपूत ने जानकारी देते हुए बताया की मुख्य अतिथि श्री साहू ने खेल के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए खेलकूद जरूरी है । खेलकूद हमारे अंदर उर्जा ,चुस्ती व स्फूर्ति लाता है । इसलिये इसे दैनिक दिनचर्या में शामिल रखे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिनेश लांबा ने खिलाडिय़ों को संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ी रोजाना शतरंज अभ्यास के लिए 5 से 7 घंटे का समय निकाले । खिलाडिय़ों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए हम कृत संकल्पित है। इसके लिए हम बड़े-बड़े आयोजनों के साथ कोचिंग केम्प की व्यवस्था भी करेंगे ।
कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन आयोजन सचिव हेमन्त खुटे ने किया । प्रतियोगिता को सफल बनाने में अंतराष्ट्रीय निर्णायक अलंकार भिवगड़े, फीडे आर्बिटर रवि कुमार,फीडे आर्बिटर रोहित यादव,नेशनल आर्बिटर अनीश अंसारी ,टेक्नीशियन आशुतोष साहू,जूम आर्बिटर मयंक,राकी देवांगन व आयोजन समिति के सरोज वैष्णव का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
स्पर्धा के परिणाम इस प्रकार है : ओपन केटेगरी में-प्रभमन सिंह मल्होत्रा कोरबा ( 4 अंक), गौतम केसरी अम्बिकापुर( 4 अंक), 3 निश्चय तिवारी कोरबा (4 अंक), विश्वजीत सिंह दुर्ग (3 अंक), अर्नव ड्रोलिया रायपुर (3 अंक), शुभम बसोने रायपुर (3 अंक), ईशान सैनी दुर्ग(3 अंक), प्रांजल बिसवाल रायगढ़ (3 अंक), अर्पित सिंह रायपुर (2.5अंक), अलंकृत सिंह रायपुर(2.5 अंक)। वूमेन केटेगरी में : यशस्वी उपाध्याय रायपुर (3 अंक), सौम्या अग्रवाल रायपुर (2 अंक), जसमन कौर कोरबा( 2 अंक), परी तिवारी कोरबा (1 अंक), तनीषा ड्रोलिया रायपुर( 1 अंक), अनुष्का जैन रायपुर( 1 अंक)।
-प्रदीप कुमार
भारत और बेल्जियम के बीच हॉकी का सेमी फ़ाइनल मुक़ाबले में पिछड़ने के बाद भारत की शुरुआत ठीक रही थी और आधे समय तक दोनों टीमें बराबरी पर थीं.
बावजूद इसके बाद भारत ये मैच 2-5 के बड़े अंतर से गंवा बैठा. इस हार के लिए बेल्जियम का इकलौता शख़्स ज़िम्मेदार रहा जिसका नाम है एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स.
हेंड्रिक्स ने इस मैच में पेनल्टी स्ट्रोक्स को गोल में तब्दील करते हुए हैट-ट्रिक जमाई.
हेंड्रिक्स किस तबीयत के खिलाड़ी हैं, इसका अंदाज़ा इसी ओलंपिक में रविवार को भी दिखा था जब वे क्वॉर्टर फ़ाइनल में स्पेन के ख़िलाफ़ खेलने उतरे थे. बेल्जियम ने ये मुक़ाबला 3-1 से जीता और इसमें दो गोल एलेक्ज़ेडर ने किए थे.
लेकिन ये पूरी कहानी नहीं है. कहानी ये है कि क्वॉर्टर फ़ाइनल मुक़ाबले से ठीक दो दिन पहले ग्रेट ब्रिटेन के साथ मुक़ाबले में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स चोटिल हो गए थे. ब्रिटिश खिलाड़ी की स्टिक से उनके माथे पर चोट लगी थी, इस चोट के चलते उनके सिर से खून की धार निकल आई थी.
डॉक्टरों को उन्हें ठीक करने के लिए छह टांके लगाने पड़े थे, तीन बाहर से और तीन अंदर की तरफ़. अगले दिन शनिवार को उन्होंने अपना एमआरआई कराया, जिससे पता चला कि कोई अंदरूनी चोट नहीं है.
टीम के प्रमुख कोच शेन मेकलियॉड को चिंता ज़रूर थी, लेकिन हेंड्रिक्स ने पांच छह रेडियोलॉजिस्ट से क्लीयरेंस हासिल करके कोच ही नहीं अपनी टीम को भी चिंताओं से मुक्त रखा.
अगर इससे भी आप उनके खेल के प्रति जज़्बे को नहीं माप पा रहे हों तो टोक्यो ओलंपिक में उनका स्कोर कार्ड देख लीजिए.
सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले तक वे सात मुक़ाबलों में 14 गोल कर चुके हैं, टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल उनके स्टिक से निकले हैं.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल हेंड्रिक्स के इस प्रदर्शन पर बताते हैं, "अगर कोई खिलाड़ी ओलंपिक जैसे विश्वस्तरीय टूर्नामेंट में लगातार स्कोर कर रहा है तो आप ये तो यक़ीन मानिए कि वो अपने फ़न में सर्वश्रेष्ठ है."
रिज़र्व खिलाड़ी से स्टार खिलाड़ी तक का सफ़र
दरअसल, पांच साल पहले रियो ओलंपिक के दौरान बेल्जियम का प्रदर्शन शानदार रहा था. टीम गोल्ड मेडल नहीं जीत पाई थी, लेकिन अर्जेंटीना के हाथों फ़ाइनल हारने तक बेल्जियम का प्रदर्शन लाजवाब था और इस बेमिसाल प्रदर्शन में एलेक्जेंडर हेंड्रिक्स का कोई योगदान नहीं था क्योंकि वे टीम के रिर्ज़व खिलाड़ी थे और पूरे टूर्नामेंट के दौरान उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा था.
उन्हें अपनी टीम के प्रदर्शन पर गर्व तो हो रहा था, लेकिन उन्होंने उस वक्त तय कर लिया था कि अपने सपनों को साकार करने के लिए वे और ज़्यादा मेहनत करेंगे ताकि टीम प्रबंधन उन्हें रिज़र्व खिलाड़ी ना बना पाए.
जिन लोगों को 2018 में भुवनेश्वर में खेले गए वर्ल्ड चैम्पियनशिप की याद होगी, उन्हें एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स ज़रूर याद होंगे. हेंड्रिक्स उस टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे और उनके सात गोलों की बदौलत ही बेल्जियम की टीम वर्ल्ड चैम्पियन बनने में कामयाब हुई थी.
ओलंपिक में गाँजा अब भी क्यों प्रतिबंधित है
टोक्यो ओलंपिक: भारतीय निशानेबाज़ों के साथ आख़िर हो क्या रहा है?
सौरभ दुग्गल बताते हैं, "देखिए हेंड्रिक्स की कामयाबी में उनका अपना कौशल तो है ही साथ में उनकी टीम का भी योगदान है, टीम के बाक़ी खिलाड़ी पेनल्टी कॉर्नर हासिल करके उनके लिए मौका बनाते हैं और उनकी ख़ासियत ये है कि वे मौके को भुना लेते हैं."
आधुनिक हॉकी की तेज़ रफ़्तार और बड़े टूर्नामेंटों का दबाव इतना ज़्यादा होता है कि मौके को भुना पाना इतना आसान भी नहीं होता, लेकिन हेंड्रिक्स इस काम को बखूबी निभा रहे हैं कि क्योंकि महज़ पांच साल की उम्र से ही उन्होंने हॉकी को अपना लिया था.
संयोग ये था कि उनके माता-पिता जहां रह रहे थे, वहां से दो गली की दूरी पर ही एक हॉकी क्लब था, जहां एलेक्ज़ेंडर पांच साल की उम्र में पहुंच गए और 14 साल की उम्र तक उनका नाम बेल्जियम की नेशनल हॉकी सर्किट में फैलने लगा था.
लेकिन उन्हें रातों रात कामयाबी नहीं मिली, बल्कि सीढ़ी दर सीढ़ी उन्होंने ख़ुद को साबित किया. पहले अंडर 16 टीम में आए, फिर अंडर 18 और उसके बाद अंडर 21 की टीम में उन्होंने ख़ुद को निखारा.
इन सबके बाद 2010 में सिंगापुर में खेले गए यूथ ओलंपिक खेलों में बेल्जियम को कांस्य पदक दिलाने में उन्होंने टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा 11 गोल दागे थे. 2012 में महज़ 18 साल की उम्र में वे बेल्जियम की नेशनल टीम में शामिल हो गए. अगले साल उन्हें बेल्जियम का सबसे उभरता खिलाड़ी चुना गया.
बावजूद इसके 2016 के रियो ओलंपिक में उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा. सौरभ दुग्गल बताते हैं, "पिछले कुछ सालों में बेल्जियम की हॉकी में इतना सुधार हुआ है कि हेंड्रिक्स जैसी प्रतिभाओं को भी मौका हासिल करने के लिए इंतज़ार करना पड़ा है."
मौजूदा समय में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स की गिनती दुनिया के सबसे ख़तरनाक ड्रैग फ़्लिकरों में तो होती है, पर विपक्षी टीमों पर उनका ख़ौफ़ उस तरह का नहीं दिखता जैसा पाकिस्तान के सोहेल अब्बास, ब्रिटेन के कैलम जाइल्स, नीदरलैंड्स के टेएके टेकेमा, ऑस्ट्रेलिया के ट्रॉय एल्डर या फिर भारत के संदीप सिंह का दिखता रहा था.
इस बारे में सौरभ दुग्गल कहते हैं, "देखिए हैंड्रिक्स की ब्रैंडिंग उस तरह से नहीं हो पाई हो, लेकिन वे इन सबसे कम भी नहीं हैं. ब्रैंडिंग नहीं होने की एक वजह यह है कि हेंड्रिक्स का कर्न्वजन रेट औसत जैसा ही है, बहुत शानदार नहीं है. लेकिन उनकी ख़ासियत ये है कि वे अपनी रिस्ट का मूवमेंट भी प्रभावी तरीके से करते हैं."
वैसे आपको ये जानकर और भी अचरज हो सकता है कि 27 साल के हेंड्रिक्स काफ़ी पढ़े-लिखे हॉकी खिलाड़ी हैं. एंटवर्प यूनिवर्सिटी से ऑनर्स ग्रेजुएट होने के बाद वो एप्लाइड इकॉनोमिक साइंसेज़ में मास्टर्स डिग्री हासिल कर चुके हैं. (bbc.com)