अंतरराष्ट्रीय
यूक्रेन पर रूसी हमले के 24 दिन हो चुके हैं. पूरी दुनिया की निगाहें इस वक़्त मारियुपोल और ज़पोरजिया और यूक्रेन के दूसरे शहरों पर हैं, जहां रूसी हमले लगातार तेज हो रहे हैं.
लेकिन यूक्रेनी सांसद किरा रुदिक ने चेतावनी दी है कि इस बीच रूसी सेना अगले कुछ दिनों के भीतर राजधानी कीएव पर कब्ज़े की एक और कोशिश कर सकती है.
रुदिक यूक्रेन में विपक्षी दल गोलोस पार्टी की नेता हैं. बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि लोग कीएव में नए रूसी हमलों का मुक़ाबला करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ''कीएव में लगातार बमबारी हो रही है. पिछले तीन दिनों में हमने चार मकानों को रूसी मिसाइलों से ध्वस्त होते देखा है. हमें लगता है कि अगले सप्ताह रूस शहर में घुसने की एक और कोशिश करेगा. ''
रुदिक ने कहा, '' पिछली बार उसके सैनिक इसमें नाकाम रहे थे. शहर के बाहरी इलाक़ों से उनका हमला लगातार जारी है. लेकिन हमारी सेना रूसी सेना को पीछे धकेल रही है. अभी तक कीएव के लोग ठीक हैं. हर दिन हम जीत रहे हैं.
'' हम आगे के लिए लगातार तैयारी कर रहे हैं. हम ज्यादा खाना और पानी इकट्ठा कर रहे हैं. हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारी रक्षा तैयारी और मज़बूत बने. ''
उन्होंने कहा कि युद्ध ने देश में लोकतंत्र से जुड़े काम को ख़त्म नहीं किया है. यूक्रेन और इसके संसद का काम जारी है. क़ानूनों पर काम लगातार जारी है. (bbc.com)
यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों का कहना है कि उनकी सेना ने 14,700 रूसी सैनिकों को मारा है.
यूक्रेन पर रूस के हमले का 25 वां दिन चल रहा है. यूक्रेनी शहर मारियुपोल, जपोरजिया और राजधानी कीएव में भीषण लड़ाई जारी है.
यूक्रेन के सेनाप्रमुख के स्टाफ की ओर से किए गए एक फेसबुक अपडेट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि यूक्रेनी सेना ने 25 दिनों की लड़ाई में रूस के 14,700 सैनिकों को मार दिया है.
इस अपडेट में यह भी दावा किया गया है कि यूक्रेनी सेना ने बड़ी तादाद में रूसी सेना के साजोसामान भी नष्ट किए हैं. इनमें 476 टैंक और 200 से ज्यादा लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन शामिल हैं. इसके अलावा हथियार ले जा जाने वाले 1487 वाहन भी ध्वस्त किए गए हैं.
हालांकि बीबीसी इनकी पुष्टि नहीं कर सका है. पश्चिमी देशों के सूत्रों का कहना है कि अब तक की लड़ाई में रूसी सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
अमेरिकी रक्षा सूत्रों का आकलन है कि अब तक की लड़ाई में कम से कम 7000 रूसी सैनिक मारे गए हैं और 21 हजार घायल हुए हैं. (bbc.com)
दक्षिणी बेल्जियम में एक कार के भीड़ पर चढ़ने से कम से कम छह लोगों की मौत हो गई है. ये घटना राजधानी ब्रसेल्स से क़रीब पचास किलोमीटर दूर एक छोटे क़स्बे में हुई है.
क़रीब 60 लोग रविवार को एक कार्निवाल में शामिल होने की तैयारी कर रहे थे, जब उन पर तेज़ रफ़्तार कार चढ़ गई.
पुलिस के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया है कि इस हादसे में कई लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.
इस घटना की परिस्थितियों की जांच की जा रही है लेकिन पुलिस का कहना है कि ये एक आतंकवादी घटना नहीं है.
पुलिस की प्रवक्ता क्रिस्टीना इयानोको ने कहा, "ये एक हादसा है, एक दुखद हादसा. कार लोगों पर चढ़ गई और आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उसे तुरंत रोक लिया."
पुलिस के मुताबिक़ कार के ड्राइवर और अन्य सवारों को हिरासत में रखा गया है. पुलिस ने बेल्जियम मीडिया में आई उन रिपोर्टों का खंडन किया है जिनमें दावा किया गया था कि ये हादसा पुलिस के कार का पीछा करने के दौरान हुआ है.
बेल्जियम की गृह मंत्री एनेलीज वेरलिंडेन ने ट्विटर पर लिखा, "आज सुबह हुए हादसे में मारे गए और घायल लोगों के परिजनों के लिए मेरी गहरी संवेदनाएं हैं. एक शानदार पार्टी होनी थी लेकिन वो दुखद हादसे में बदल गई. हम हालात पर नज़र रखे हुए हैं." (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूसी सेना के मारियुपोल शहर के घेराव को 'भयंकर घटना' कहा है जिसे 'आने वाली कई सदियों तक याद रखा जाएगा'.
ताज़ा घटना में मारियुपोल शहर के प्रशासन ने कहा है कि रूसी सेना ने एक स्कूल पर बमबारी की है. इस स्कूल में क़रीब 400 लोग पनाह लिए हुए थे, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे.
उन्होंने कहा, "मारियुपोल को घेरकर रखना इतिहास में युद्ध अपराध के तौर पर दर्ज किया जाएगा. ये एक शांतिपूर्ण शहर था, इसपर हमला करने वाले जो कर रहे हैं उसे सदियों तक याद रखा जाएगा. यूक्रेन के लोग इसके बारे में जितना अधिक दुनिया को बताएंगे, उतना ही हमें समर्थन मिलेगा. यूक्रेन में रूस जितनी अधिक हिंसा करेगा, उसके लिए इसका परिणाम उतना ही बुरा होगा."
इससे पहले मारियुपोल के मेयर वेदिम बॉयशेन्को ने कहा था कि शहर से हज़ारों लोगों को जबरन रूस ले जाया जा रहा है.
हालांकि उनके इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है.
मिल रही रिपोर्टों के अनुसार रूस की तरफ से लगातार हो रही बमबारी के बीच शहर में अभी भी क़रीब तीन लाख लोग फंसे हुए हैं. जो लोग किसी तरह यहां से निकलने में कामयाब हुए हैं, उनका कहना है कि यहां कि गलियों में लाशें बिखरी हुई हैं.
यूक्रेन के मारियुपोल शहर के एक स्टील प्लांट में भारी विस्फोट की ख़बरों के बाद यूक्रेनी सांसदों ने कहा है कि अज़ोव्स्ताल नाम की यह फैक्ट्री पूरी तरह ध्वस्त हो गई है.
उन्होंने कहा कि रूसी बमबारी की वजह से इसकी यह हालत हुई है. यह यूरोप के सबसे सबसे बड़ी स्टील संयंत्रों में से एक है.
अजोवस्तोल के डायरेक्टर जनरल ने टेलीग्राम पर बताया कि फैक्टरी को निशाना बनाया गया है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि इसे कितना नुकसान हुआ है.
उन्होंने कहा कि युद्ध शुरू होने के साथ ही फैक्टरी के कामगारों ने सुरक्षा उपाय अपनाने शुरू कर दिए था ताकि यह यहां रहने वालों के लिए खतरा न बने.
यह स्टील प्लांट मारियुपोल की अहम परिसंपत्तियों में शामिल है. बीते कई दिनों से रूसी सेना इस शहर को कब्जे में लेने के लिए हमले दर हमले कर रही है.
मारियुपोल छोटा शहर है लेकिन रणनीतिक लिहाज से यह यूक्रेन और रूस दोनों के लिए काफी अहम है. मारियुपोल पर कब्ज़ा होने से यहां से पूर्वी क्षेत्र के शहरों दोनेत्स्क और लुहांस्क को क्राइमिया से सड़क मार्ग के ज़रिए जोड़ा जा सकेगा.
दोनेत्स्क और लुहांस्क शहरों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्ज़ा है. माना जा रहा है कि मारियुपोल पर कब्ज़े के बाद यह क्राइमिया से भी जुड़ जाएगा. रूस ने 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने कब्ज़े में ले लिया था. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमार ज़ेलेन्स्की ने स्विट्ज़रलैंड में वीडियो लिंक के ज़रिए एक स्पीच दी है जिसमें उन्होंने स्विट्ज़रलैंड की कुछ कंपनियों की आलोचना की है.
स्विट्ज़रलैंड के संसद के सामने वीडियो के ज़रिए एक रैली को संबोधित करते हुए ज़ेलेन्स्की ने कहा कुछ कंपनियों ने रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाए हुए हैं. उन्होंने ख़ासकर नेस्ले पर निशाना साधा.
इसके उत्तर में नेस्ले ने कहा है कि उसने रूस में अपना व्यापार काफी हद तक कम कर दिया है लेकिन उसने ये फ़ैसला किया है कि वो रूसी लोगों को ज़रूरी खाने-पीने के सामान की सप्लाई जारी रखेगा और वहां मौजूद अपने कर्मचारियों की मदद करना जारी रखेगा.
हालांकि कंपनी ने ये भी कहा कि रूस से उसके मौजूदा काम से उसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है, वो देश में और निवेश नहीं कर रहा है और न ही अपने उत्पादों को बेचने के लिए प्रोमोशन कर रहा है.
राष्ट्रपति ज़ेलेस्न्की ने स्विस बैंकों से भी अपील की कि वो अपने पास जमा रूस के रईसों का पैसा फ्रीज़ करें. उन्होंने दावा किया कि जिन लोगों ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा है उनका पैसा इन बैंकों की तिजोरी में है.
स्विट्ज़रलैंड में हुई इस रैली में हज़ारों लोगों ने शिरकत की. देश के राष्ट्रपति इग्नाज़ियो कैसिस भी इस दौरान स्टेज पर एक बैनर लिए खड़े नज़र आए. इस पर लिखा था- 'हम यूक्रेन के साथ हैं, युद्ध तुंरत रुकना चाहिए.' (bbc.com)
मास्को, 20 मार्च। रूस की सेना ने कहा है कि उसने लंबी दूरी की हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों से यूक्रेनी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है।
रूस के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मेजर जनरल इगोर कोनाशेनकोव ने रविवार को कहा कि किंझाल हाइपरसोनिक मिसाइल ने काला सागर तट पर मायकोलेव बंदरगाह के पास कोस्तियनतिनिवका में यूक्रेन के ईंधन डिपो पर हमला किया।
लगातार दूसरे दिन रूस ने किंझाल मिसाइल का इस्तेमाल किया। यह मिसाइल ध्वनि से 10 गुना अधिक गति से 2,000 किलोमीटर दूर लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। एक दिन पहले रूसी सेना ने कहा था कि पश्चिमी यूक्रेन के कार्पेथियन में डिलियाटिन के आयुध डिपो को नष्ट करने के लिए किंझाल का पहली बार युद्ध में इस्तेमाल किया गया।
कोनाशेनकोव ने उल्लेख किया कि कैस्पियन सागर से रूसी युद्धपोतों द्वारा छोड़ी गई कलिब्र क्रूज मिसाइलें भी कोस्तियनतिनिवका में ईंधन डिपो पर हमले में शामिल थीं। उन्होंने कहा कि काला सागर से दागी गई कैलिबर मिसाइल का इस्तेमाल उत्तरी यूक्रेन के चेर्निहाइव क्षेत्र के निजिन में बख्तरबंद उपकरणों के मरम्मत संयंत्र को नष्ट करने के लिए किया गया।
कोनाशेनकोव ने कहा कि मिसाइलों द्वारा एक और हमले ने उत्तरी जाइटॉमिर क्षेत्र में ओव्रुच में एक यूक्रेनी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाया। (एपी)
ल्वीव (यूक्रेन), 20 मार्च। रूसी सेना से चारों ओर से घिरे और युद्ध से सबसे अधिक प्रभावित यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल में रूस के सैनिक और भीतरी क्षेत्र तक प्रवेश कर गए हैं। मारियुपोल में भीषण लड़ाई के कारण एक प्रमुख इस्पात संयंत्र को बंद कर दिया गया है और स्थानीय अधिकारियों ने पश्चिमी देशों से और अधिक मदद की गुहार लगाई है।
मारियुपोल के पुलिस अधिकारी माइकल वर्शनिन ने पश्चिमी नेताओं को संबोधित एक वीडियो में आस पास सड़क पर मलबे बिखरे दृश्य को दिखाते हुए कहा, ‘‘बच्चे, बुजुर्ग मर रहे हैं। शहर को नष्ट कर दिया गया है और धरती से इसका नामो निशान मिटा दिया गया है।’’
‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ से यूक्रेन के एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि पिछले दिनों दक्षिणी शहर मायकोलाइव में हुए एक रॉकेट हमले को लेकर जानकारी भी सामने आनी शुरू हो गई है, जिसमें 40 नौसैनिक मारे गए थे।
रूसी सेनाओं ने पहले ही मारियुपोल का संपर्क अजोव सागर से काट दिया है। यूक्रेन के गृह मंत्री के सलाहकार वादिम देनिसेंको ने कहा कि यूक्रेन और रूसी सेना ने मारियुपोल में अजोवस्टल लौह संयंत्र को लेकर लड़ाई लड़ी। देनिसेंको ने टेलीविजन पर कहा, ‘‘यूरोप में सबसे बड़े धातुकर्म संयंत्रों में से एक वास्तव में नष्ट हो रहा है।’’
मारियुपोल नगर परिषद ने इसके कुछ समय बाद दावा किया कि रूसी सैनिकों ने शहर के हजारों निवासियों ज्यादातर महिलाओं और बच्चों को रूस में जबरन स्थानांतरित कर दिया। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि लोगों को कहां ले जाया गया और ‘एपी’ इस दावे की तुरंत पुष्टि नहीं कर सकता।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के सलाहकार ओलेक्सी एरेस्टोविच ने कहा कि मारियुपोल की सहायता करने वाली नजदीकी सेना पहले से ही ‘‘दुश्मन की भारी ताकत’’ के विरुद्ध संघर्ष कर रही थी और ‘‘वर्तमान में मारियुपोल का कोई सैन्य समाधान नहीं है।’’
जेलेंस्की ने रविवार तड़के कहा कि मारियुपोल की घेराबंदी इतिहास में रूसी सैनिकों द्वारा किए गए युद्ध अपराध के रूप में दर्ज होगी।
युद्ध में रूसी सैनिकों की मौत के आंकड़े में भिन्नता है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक इस युद्ध में रूस के हजारों सैनिक मारे गए हैं। 2008 में जॉर्जिया के साथ युद्ध के दौरान पांच दिनों की लड़ाई में रूस के 64 सैनिकों की जान गई थी। अफगानिस्तान में 10 वर्षों में लगभग 15,000 और चेचन्या में लड़ाई के वर्षों में 11,000 से अधिक रूसी सैनिक मारे गए।
रूसी सेना ने शनिवार को कहा कि उसने युद्ध में पहली बार अपनी नवीनतम हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया। मेजर जनरल इगोर कोनाशेनकोव ने कहा कि किंजल मिसाइलों ने इवानो-फ्रैंकिवस्क के पश्चिमी क्षेत्र में यूक्रेन की मिसाइलों और विमान से दागे जाने वाले गोला-बारूद के एक भूमिगत गोदाम को नष्ट कर दिया।
हालांकि, अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने कहा कि अमेरिका हाइपरसोनिक मिसाइल के इस्तेमाल की पुष्टि नहीं कर सकता। युद्ध शुरू होने के बाद से संयुक्त राष्ट्र के संगठनों ने 847 से अधिक नागरिकों की मौत की पुष्टि की है, हालांकि वे मानते हैं कि वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 33 लाख से अधिक लोग यूक्रेन से पलायन कर गए हैं। (एपी)
(हरिंदर मिश्रा)
यरुशलम, 20 मार्च। इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने भारत-इजरायल संबंधों को परस्पर ‘‘सराहना और सार्थक सहयोग’’ पर आधारित बताते हुए कहा कि वह दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर अप्रैल के पहले सप्ताह में भारत का दौरा करेंगे।
इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नवाचार और प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और साइबर और कृषि एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करना है।
इजरायल के प्रधानमंत्री के विदेश मीडिया सलाहकार ने एक बयान में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर शनिवार, दो अप्रैल 2022 को भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा करेंगे।’’
बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं की मुलाकात पिछले वर्ष अक्टूबर में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी26) से इतर हुई थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के अपने समकक्ष बेनेट को भारत की आधिकारिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था।
यह यात्रा दोनों देशों और नेताओं के बीच महत्वपूर्ण संबंध की पुष्टि करेगी तथा इजरायल और भारत के बीच संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर होगी।
सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यह दो से पांच अप्रैल तक चार दिवसीय दौरा होगा।
मीडिया सलाहकार ने कहा, ‘‘यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रणनीतिक गठबंधन को आगे बढ़ाना और मजबूत करना एवं द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करना है। इसके अलावा, दोनों नेता नवाचार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान एवं विकास, कृषि तथा अन्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा करेंगे।’’
बेनेट अपनी यात्रा के दौरान अपने भारतीय समकक्ष, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और स्थानीय यहूदी समुदाय के लोगों से भी मुलाकात करेंगे। बयान में कहा गया है कि यात्रा का पूरा कार्यक्रम और अतिरिक्त विवरण अलग से जारी किया जाएगा।
बेनेट ने प्रेस बयान में कहा, ‘‘मैं अपने मित्र, प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा को लेकर खुश हूं और साथ में हम अपने अपने देशों के संबंधों को आगे की दिशा में बढ़ाते रहेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मोदी ने भारत और इजराइल के बीच संबंधों की फिर से शुरुआत की और इसका ऐतिहासिक महत्व है। हमारी दो अनूठी संस्कृतियों - भारतीय संस्कृति और यहूदी संस्कृति के बीच संबंध गहरे हैं और वे अगाध सराहना एवं सार्थक सहयोग पर आधारित हैं।’’
इजरायल के प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘हम भारतीयों से कई चीजें सीख सकते हैं और यही हम करने का प्रयास करते हैं। साथ में हम नवाचार और प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और साइबर, कृषि और जलवायु परिवर्तन के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग का विस्तार करेंगे।’’ (भाषा)
नयी दिल्ली, 19 मार्च। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शनिवार को यूक्रेन पर रूस के हमले को ‘बहुत गंभीर’ मामला करार देते हुए कहा कि इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की जड़े ‘हिल’ गई हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि बल के प्रयोग से किसी भी क्षेत्र में यथास्थिति को बदलने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री किशिदा ने यह टिप्पणी 14वीं भारत-जापान शिखर वार्ता के बाद मीडिया से संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में की।
सम्मेलन के बाद यहां जारी संयुक्त बयान में मोदी और किशिदा ने यूक्रेन में हिंसा को तत्काल रोकने का आह्वान किया और विवाद का समाधान बातचीत के जरिये निकालने पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया।
बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने संघर्ष पर गंभीर चिंता जताई और खासतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर इसके वृहद असर का आकलन किया। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने यूक्रेन में मानवीय संकट पर भी चर्चा की।
मोदी के साथ 14वें भारत-जापान शिखर सम्मेलन के तहत बातचीत करने के बाद किशिदा ने मीडिया से कहा, ‘‘मैंने मोदी से कहा है कि एकतरफा तरीके से बल के जरिये यथास्थिति को बदलने की कोशिश को किसी भी क्षेत्र में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हम दोनों सभी विवादों का अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने की जरूरत पर सहमत हुए हैं।’’
किशिदा ने संवादाताओं से कहा, ‘‘हमने यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा की। यूक्रेन पर रूस का हमला गंभीर मुद्दा है और इसने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की जड़े हिला दी हैं। हमें इस मामले को ‘मजबूत संकल्प’ के साथ देखने की जरूरत है।’’
वहीं, मोदी ने अपने संबोधन में प्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन पर रूस के हमले का उल्लेख नहीं किया लेकिन भू-राजनीतिक घटनाओं का संदर्भ दिया जिससे नयी चुनौती पैदा हो रही है।
देर रात संवाददाताओं से बातचीत में जापान की प्रेस सचिव हिकारिको ओने ने कहा कि बातचीत के दौरान यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर लंबी चर्चा हुई और जापानी प्रधानमंत्री ने मॉस्को की कार्रवाई के खिलाफ ‘गंभीर निंदा’ को दोहराया और इसे ‘घृणित’ करार दिया।
हिकारिको ने कहा, ‘‘किशिदा हिरोशिमा से हैं जहां पर परमाणु बम गिराया गया था। उन्होंने कहा कि कोई भी परमाणु खतरा बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि किशिदा ने मोदी से पुतिन पर दबाव बनाने को कहा, ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को मुक्त और खुला बनाए रखा जा सके।
हिकारिको ने कहा कि किशिदा और मोदी चार बिंदुओ पर सहमत हुए जिनमें दुनिया में कहीं भी बल के आधार पर यथास्थिति को बदलने की कोशिश को स्वीकार नहीं करने और विवाद का शांतिपूर्ण समाधान तलाशना शामिल है।
उन्होंने कहा कि दोनों नेता ‘गतिरोध को तोड़ने’ के लिए तत्काल हिंसा को बंद करने का आह्वान करने और यूक्रेन एवं उसके पड़ोसी देशों का समर्थन करने पर सहमत हुए हैं।
भारत द्वारा रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल खरीदने के सवाल पर प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हमें इस खबर की जानकारी है। सम्मेलन में किशिदा ने जापान का रुख रखा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर (यूक्रेन संकट से निपटने के लिए) कदम उठाना चाहिए।’’
चीन की बढ़ती हठधर्मिता पर जापान की प्रेस सचिव ने कहा कि मोदी और किशिदा पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में एकतरफा तरीके से बल के आधार पर यथास्थिति बदलने की किसी भी कोशिश को मजबूती से विरोध करने पर सहमत हुए।
दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘दोनों प्रधानमंत्रियों ने यूक्रेन में चल रहे संघर्ष और मानवीय संकट पर गंभीर चिंता जताई और वृहद असर का आकलन किया, खासतौर पर हिंद प्रशांत क्षेत्र में।
बयान में कहा गया, ‘‘उन्होंने समसमायिक विश्व व्यवस्था को संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान के आधार पर बनाने पर जोर दिया।’’
बयान के अनुसार दोनों नेताओं ने प्रतिबद्धता जतायी कि यूक्रेन में उत्पन्न मानवीय संकट से निपटने के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे। (भाषा)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 20 मार्च । अमेरिका के एक सिख संगठन ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में 400 वनक्षेत्र विकसित करने की घोषणा की है।
सिख पर्यावरण दिवस (एसईडी) के अवसर पर की गई घोषणा के अनुसार, सिख संगठन ‘इकोसिख’ ने कहा कि उसने आयरलैंड में 1150 पेड़ और ब्रिटेन के डर्बीशायर में 500 पेड़ लगाए हैं।
इसके अलावा कनाडा के सरे में 250 पेड़ों वाला वनक्षेत्र विकसित किया गया है।
‘इकोसिख’ ने अपनी परियोजनाओं में स्थानीय सरकारों और गुरुद्वारों से सहयोग लिया। संगठन ने शनिवार को एक बयान में कहा कि इन वनों को ‘गुरु नानक पवित्र वन’ कहा जाता है, जिसका नाम सिख धर्म के संस्थापक के नाम पर रखा गया है। यह अभियान 2019 में शुरू हुआ था, जब सिखों ने गुरु नानक का 550वां प्रकाश पर्व मनाया था।
इकोसिख (यूएसए) के संस्थापक और वैश्विक अध्यक्ष रजवंत सिंह ने कहा, ‘‘पवित्र वन परियोजना एक समुदाय आधारित पहल बन गई है और दुनिया भर में सैकड़ों लोग इस अभियान में शामिल हो गए हैं। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए एक ठोस कदम है और अच्छी खबर यह है कि लगाए गए सभी पेड़ जीवित हैं।’’
उन्होंने कहा कि पिछले 36 महीनों में इकोसिख ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और जम्मू सहित पूरे भारत में कई राज्यों में वनक्षेत्र विकसित किए हैं। प्रत्येक जंगल में देशी प्रजातियों के 550 पेड़ हैं। उन्होंने कहा कि ये जंगल जापानी मियावाकी पद्धति का पालन करते हुए बनाए गए हैं और पूरे पंजाब और भारत में गूगल मैप्स पर टैग किए गए हैं।
हर साल एसईडी के अवसर पर दुनिया भर में सैकड़ों सिख संस्थान और गुरुद्वारे कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा पानी और ऊर्जा बचाने की दिशा में कदम उठाते हैं। (भाषा)
रूसी घेराबंदी में फंसे मारियुपोल शहर के मेयर का कहना है कि बमबारी का शिकार हुए थिएटर के मलबे में फंसे लोगों को निकालना शहर में जारी भीषण लड़ाई की वजह से मुश्किल हो गया है.
वादिन बॉयशेंको ने बीबीसी से कहा है कि जब लड़ाई थमती है तब ही राहत और बचाव दल मलबा हटा पाते हैं.
यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि थिएटर स्थल को स्पष्ट रूप से नागरिक ठिकाना बताया गया था, बावजूद इसके रूस ने इस पर बमबारी की. रूस ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.
रूस की सेनाओं ने मारियुपोल की घेराबंदी कर रखी है. शहर में बिजली, पानी और गैस की आपूर्ति बंद हो गई है.
रूस ने शहर के लिए मानवीय मदद का रास्ता भी रोक दिया है. अभी भी शहर में क़रीब तीन लाख लोग हैं.
यूक्रेन के मुताबिक रूस ने अस्पताल, चर्च और अनगिनत रिहायशी इमारतों पर हमले किए हैं. स्थानीय अधिकारियों का अनुमान है कि शहर की 80 फ़ीसदी इमारतों या तो पूरी तरह तबाह हो गई हैं या उन्हें इतना नुक़सान हुआ है कि ठीक नहीं किया जा सकता है.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से सबसे भीषण लड़ाइयां मारियुपोल शहर के इर्द-गिर्द ही हुई हैं.
अजोव सागर के तट पर बसा ये बंदरगाह शहर यूक्रेन के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम हैं.
यदि रूस इस पर क़ब्ज़ा कर लेता है तो वह रूस समर्थित अलगाववादी लड़ाकों के नियंत्रण वाले पूर्वी क्षेत्रों दोनेस्त्सक और लुहांस्क और रूस के नियंत्रण वाले क्राइमिया के बीच सड़क मार्ग स्थापित कर पाएगा. रूस ने साल 2014 में क्राइमिया पर नियंत्रण कर लिया था.
शुक्रवार को अपने एक बयान में रूस ने कहा था कि मारियुपोल के इर्द-गिर्द फंदा कस रहा है. वहीं बॉयशेंको का कहना है कि शहर के भीतर टैंक हैं और भारी तोपखानों से गोलीबारी की जा रही है और हर तरह के भारी हथियार यहां मौजूद हैं. बॉयशेंको का बयान रूस के दावे की पुष्टि करता है.
शहर से संपर्क भी मुश्किल हो गया हैं. यहां फ़ोन नेटवर्क दिन में कुछ घंटों के लिए ही चल पा रहे हैं. रूस की लगातार बमबारी के बीच आम नागरिक बेसमेंटों या घरों के भीतर ही रह रहे हैं. वो बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
इससे पहले दिए एक साक्षात्कार में बॉयशेंको ने बताया था कि शहर का केंद्रीय इलाक़ा पूरी तरह बर्बाद हो गया है.
उन्होंने कहा था, "शहर के भीतर कोई छोटे से छोटा इलाक़ा भी ऐसा नहीं है जिस पर युद्ध के निशान ना हों."
बॉयशेंको ने बताया, "भीषण लड़ाई की वजह से बर्बाद हुए थिएटर का मलबा हटाना बेहद ख़तरनाक़ हो गया है. बुधवार को हुए हमले के बाद से मलबे में अभी भी लोग फंसे हुए हैं."
उन्होंने बताया, "जब कुछ देर के लिए शांति होती है तब मलबा हटाया जाता है और लोगों को बाहर निकाला जाता है."
ये थिएटर सोवियत युग की एक विशाल इमारत था. सेटेलाइट तस्वीरों में थिएटर के बाहर रूसी भाषा में 'बच्चे' लिखा हुआ था जो ये बताने के लिए था कि इस इमारत का इस्तेमाल शरण लेने के लिए किया जा रहा है.
इमारत के भीतर फंसे हुए अधिकतर लोग बुज़ुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं जो अंधेरे कमरों में छुपे थे.
शनिवार को जारी एक वीडियो में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि बाहर निकाले गए कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हैं, अभी तक हमले में हुई मौतों के बारे में जानकारी नहीं है.
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूस ने घेराबंदी में फंसे शहरों के लिए मानवीय मदद रोककर युद्ध अपराध किए हैं. उन्होंने कहा, "ये पूरी तरह से जानबूझकर अपनाई जा रही रणनीति है. उनके (रूसी सेना) के पास स्पष्ट आदेश हैं कि यूक्रेन में किसी भी तरह से मानवीय त्रास्दी पैदा करें ताकि यूक्रेन के लोग कब्ज़ाधारियों के साथ सहयोग करें."
मारियुपोल के अधिकारियों का कहना है कि अब तक की लड़ाई में शहर में कम से कम ढाई हज़ार लोग मारे जा चुके हैं. हालांकि उनका ये भी कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है. मारे गए बहुत से लोगों की लाशों को ख़तरे की वजह से नहीं उठाया जा रहा है. बहुत से लोगों को सामूहिक क़ब्रों में दफ़न किया गया है.
बॉयशेंको का कहना है कि अब तक चालीस हज़ार लोग शहर छोड़ चुके हैं जबकि बीस हज़ार लोग शहर से सुरक्षित निकाले जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. आम नागरिक निजी वाहनों में शहर छोड़कर जा रहे हैं.
उनका कहना है कि मानवीय रास्ता बनाने के प्रयास नाकाम हुए हैं. यूक्रेन का आरोप है कि रूस ने संघर्ष विराम पर सहमत होने के बावजूद मारियुपोल पर हमले जारी रखे हैं.(bbc.com)
-कैथरीन स्नोडेन और लॉरेन टर्नर
पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन और सर जॉन मेजर चाहते हैं कि यूक्रेन में व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई की जांच के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया जाना चाहिए.
दुनिया भर के 140 से अधिक राजनेताओं, अधिवक्ताओं और शिक्षाविदों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं. इसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद नाज़ी युद्ध अपराधियों की जांच के लिए गठित नूरमबर्ग अदालत की तरह ही क़ानूनी व्यवस्था बनाकर यूक्रेन पर हमले की जांच की मांग की गई है.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय पहले से ही यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों के लिए पुतिन की जांच कर रहा है.
लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि आईसीसी की शक्तियां सीमित हैं.
आईसीसी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के अनुमोदन के बिना आक्रमण के अपराध की जांच नहीं कर सकता है और रूस सुरक्षा परिषद में वीटो कर सकता है.
पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने बीबीसी से कहा है कि बर्लिन की दीवार के पतन के बाद से हम ये मानकर चल रहे थे कि लोकतंत्र और क़ानून का शासन हमेशा रहेगा. लेकिन पुतिन शक्ति के दम पर इसमें बदलाव कर रहे हैं.
उन्होंने रेडियो 4 के टुडे प्रोग्राम से बात करते हुए कहा, "अगर हमने अभी संदेश नहीं दिया तब हमें दूसरे देशों में भी आक्रामकता देखनी होगी."
जब उनसे पूछा गया कि क्या वो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी मानते हैं तो उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति बाइडन ने भी ऐसा ही कहा है और यही मेरा भी विचार है."
इस सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी कहा है.
वहीं रूस ने इस टिप्पणी को 'अस्वीकार्य और अक्षम्य बयानबाज़ी बताया है.'
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी रूस पर यूक्रेन में युद्ध अपराध करने के आरोप लगाए हैं.
गोर्डन ब्राउन नेकहा कि युद्ध में नागरिक ठिकानों पर अंधाधुंध बमबारी की गई है जो अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि ये मानवीय संघर्ष विराम का उल्लंघन है और एक तरह का 'परमाणु ब्लैकमेल है.'
रूस की सेनाओं ने यूक्रेन के कई शहरों में नागरिक इलाक़ों पर भारी बमबारी की है.
गुरुवार को रूस की घेराबंदी में फंसे तटीय शहर मारियुपोल के एक थियेटर पर बम गिराए गए. यहां सैकड़ों नागरिकों ने शरण ले रखी थी. यूक्रेन ने मारियुपोल के एक अस्पताल पर रूस के मिसाइल हमले को भी युद्ध अपराध करार दिया है.
ब्राउन ने कहा कि यूक्रेन की सरकार राष्ट्रपति पुतिन पर युद्ध अपराधों के तहत मुक़दमा चलाए जाने की मांग कर रही है और ये चेतावनी दी जानी चाहिए कि पुतिन को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का सामना करना ही होगा.
ऐसा माना जा रहा है कि युद्ध अपराध ट्राइब्युनल अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अतिरिक्त कार्य करेगा.
इस याचिका को अभी तक क़रीब साढ़े सात लाख लोगों का समर्थन मिल चुका है जिसमें कई चर्चित लोग भी शामिल हैं.
यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा और ब्रितानी सुप्रीम कोर्ट की पूर्व प्रमुख लेडी हेल ने भी इस याचिका पर दस्तख़त किए हैं. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रोफ़ेसर फ़िलीप सेंड्स क्यूसी और नूरमबर्ग मिलिट्री ट्राइब्युनल के पूर्व अभियोजक बेनयामिन फेरेंज, लेबर नेता केनेडी क्यूसी और यूरोपीय मानवाधिकार अदालत के पूर्व प्रमुख सर निकोलास ब्रात्ज़ा ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं.
डेली मेल अख़बार में लिखते हुए गोर्डन ब्राउन ने कहा है कि एक नया ट्राइब्युनल अंतरराष्ट्रीय क़ानून में इस 'कमीट को पूरा कर सकता है जिसके 'ज़रिए पुतिन न्याय से बच सकते हैं.'
ब्राउन ने लिखा, "हमें तेज़ी से काम करना होगा ताकि हम यूक्रेन के लोगों को ये भरोसा दे सकें कि हम सिर्फ़ बोल नहीं रहे हैं बल्कि हम क़दम उठाना चाहते हैं- और हमें पुतिन का साथ देने वालों को ये अहसास कराना होगा कि फंदा कस रहा है. अगर वो स्वयं पुतिन से दूरी नहीं बनाते हैं तो उन्हें मुक़दमों का सामना करना पड़ सकता है और जेल जाना पड़ सकता है."
जर्मनी के शहर नूरमबर्ग में हुआ नूरमबर्ग ट्रॉयल दुनिया का पहला अंतराष्ट्रीय अपराध मुक़दमा था जिसमें नाज़ी जर्मनी के कुख़्यात लोगों पर आपराधिक मुक़दमे चले थे. आरोपों में आक्रामक युद्ध करना, युद्ध के सिद्धांतों का उल्लंघन करना और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध शामिल थे.
अपने लेख में ब्राउन ने लिखा, "ब्रिटेन जो अपने आप पर लोकतांत्रिक मूल्यों और क़ानून के शासन के लिए गर्व करता है, से ये संदेश जाना चाहिए. नूरमबर्ग में हमने नाज़ी अपराधियों को सज़ा दी थी, आठ दशक बाद हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि पुतिन को भी एक दिन न्याय का सामना करना होगा."
यूक्रेन के सांसद दिमित्रो गूरिन ने बीबीसी को बताया है कि उन्हें इस बात को लेकर संदेह है कि ये प्रस्ताव वास्तव में पुतिन पर मुक़दमा चलाने तक पहुंच सकेगा.
उन्होंने कहा, "सबसे पहले तो आपको उन्हें पकड़ना होगा. ट्राइब्युनल जब बनेगा तब के लिए एक अच्छा विचार है और हम ग्रेट ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों और अमेरिका का शुक्रिया अदा करते हैं, लेकिन आपको जानना चाहिए कि हम फिलहाल युद्ध के एक बिलकुल ही अलग चरण में हैं."
"जब ये युद्ध शुरू हुआ था तब ये सिर्फ़ एक पारिस्थितिक युद्ध था- सेना के ख़िलाफ़ सेना थी, लेकिन अब ये वैसा युद्ध नहीं हैं, बीते दो सप्ताह से यूक्रेन में नरसंहार हो रहा है."
रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता भी चल रही है लेकिन ब्रितानी विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने चेतावनी दी है कि रूस इस वार्ता का इस्तेमाल एक धुंधलके की तरह कर रहा हो सकता है.
टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "यदि कोई देश शांतिवार्ता के लिए गंभीर होगा तो वह नागरिक ठिकानों पर अंधाधुंध बमबारी नहीं करेगा."
इसी बीच कंज़रवेटिव सांसद जॉनी मर्सर ने शुक्रवार को बताया है कि उन्होंने हाल ही में यूक्रेन की यात्रा की है जहां उन्होंने हर तरफ़ बर्बादी देखी है. साथ ही प्रदर्शनों और 'अतुलनीय मानवीय भावना' को भी देखा है.
सेना में रहे जॉनी मर्सर ने राजधानी कीव की अपनी तस्वीरें पोस्ट की हैं जहां वो अस्पताल में घायल लोगों से मिलते दिख रहे हैं.
उन्होंने डेली टेलीग्राफ़ अख़बार में लिखा है कि उन्होंने डोनेत्स्क के एक पूर्व सांसद के निमंत्रण पर यूक्रेन की यात्रा करने का निर्णय लिया. हालांकि ब्रिटेन की सरकार ने अपने नागरिकों को यूक्रेन न जाने की सलाह दी है.
जॉनी मर्सर ने द टाइम्स को बताया, "मैंने इस बारे में किसी को नहीं बताया, मैं बस ग़ायब हो गया. मैंने तय किया कि ऐसा करना सही है."
इसी बीच ब्रितानी सरकार ने बताया है कि अब तक यूक्रेन को बीस लाख मेडिकल आइटम दान दिए जा चुके हैं. इनमें दर्दनिवारक दवाइयां, इंसुलिन, इंजेक्शन और इंटेंसिव केयर में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल उपकरण शामिल हैं.
यूक्रेन के लिए शनिवार को कैंट से 18 अग्निशमन वाहनों का एक काफ़िला भी निकला है. इन इंजनों को ब्रिटेन के अग्निशमन दलों ने यूक्रेन के लिए दान किया है.
वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन पोलैंड के लिए रवाना हुए हैं जहां वो यूक्रेन के लोगों के लिए दान सामग्री देंगे.
ऑक्सफर्डशर फ़ूड प्रोजेक्ट के तहत यूक्रेन के लोगों के लिए मदद जुटाई गई है. कैमरन इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. (bbc.com)
नयी दिल्ली, 19 मार्च। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को अपने जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत बनाने सहित विभिन्न मुद्दों पर ‘सार्थक’ बातचीत की।
किशिदा के यहां पहुंचने से कुछ घंटे पहले जापान के समाचार पत्र निक्केइ ने खबर दी थी कि किशिदा अपनी यात्रा के दौरान भारत में अगले पांच वर्ष में 42 अरब डॉलर के निवेश की योजना की घोषणा कर सकते हैं।
किशिदा अपराह्न तीन बजकर 40 मिनट पर एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ यहां पहुंचे। जापान सरकार के प्रमुख के तौर पर यह उनकी पहली भारत यात्रा है।
मोदी के कार्यालय ने ट्वीट किया, ‘‘(प्रधानमंत्री मोदी) जापान के साथ मित्रता को मजबूती दे रहे हैं। प्रधानमंत्री -मोदी और किशिदा- के बीच दिल्ली में सार्थक बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के उपायों पर विचार विमर्श किये।’’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि मोदी और किशिदा के बीच वार्ता के एजेंडे में बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के अलावा पारस्परिक हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे भी शामिल थे।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14वीं भारत-जापान वार्षिक शिखर वार्ता के लिए अपने समकक्ष किशिदा की आगवानी की। (बातचीत के) एजेंडे में हमारे बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के अलावा पारस्परिक हितों के द्विपक्षीय संबंध शामिल हैं।’’
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी मीडिया परामर्श के अनुसार जापानी प्रधानमंत्री रविवार सुबह आठ बजे यहां से रवाना हो जाएंगे। भारत के दौरे की समाप्ति के बाद किशिदा कम्बोडिया की यात्रा करेंगे।
भारत के लिए रवाना होने से पहले किशिदा ने कहा था कि यूक्रेन पर रूसी हमला अस्वीकार्य है और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में इस तरह की कार्रवाई की कभी अनुमति नहीं दी जाएगी।
जापानी प्रधानमंत्री ने कहा कि वह यूक्रेन की स्थिति पर भारत और कम्बोडिया के नेताओं से भी चर्चा करेंगे।
प्रधानमंत्र मोदी ने किशिदा के जापानी प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अक्टूबर 2021 में उनसे बातचीत की थी। दोनों पक्षों ने विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी को और मजबूत करने की इच्छा जतायी थी।
यह वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ भी मना रहा है।
मोदी और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच वार्षिक शिखर वार्ता दिसम्बर 2019 में गुवाहाटी में होनी थी, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून को लेकर वहां जारी व्यापक प्रदर्शन के कारण इसे रद्द करना पड़ा था।
उसके बाद 2020 और 2021 में भी कोविड-19 महामारी के कारण इसे आयोजित नहीं किया जा सका था। (वार्ता)
ल्वीव (यूक्रेन), 19 मार्च (एपी)। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि रूसी सेनाएं बड़े शहरों को घेर रही हैं और इस तरह की दयनीय स्थिति पैदा करना चाहती हैं कि यूक्रेन के नागरिकों को उनका सहयोग करना पड़े।
हालांकि, जेलेंस्की ने शनिवार को चेताया कि ये रणनीति सफल नहीं होगी और यदि रूस युद्ध को समाप्त नहीं करता है तो उसे लंबे समय तक नुकसान उठाना पड़ेगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने क्रेमलिन (रूस के राष्ट्रपति कार्यालय) पर जानबूझकर ‘‘मानवीय संकट’’ पैदा करने का आरोप लगाया।
जेलेंस्की ने राष्ट्र के नाम अपने वीडियो संदेश में कहा, ‘‘यह पूरी तरह से सोची-समझी चाल है। बस अपने लिए तस्वीर है कि मॉस्को के उस स्टेडियम में 14,000 लाशें हैं और हजारों घायल लोग हैं। ये वो कीमत है जो रूस को अब तक युद्ध में चुकानी पड़ी है।’’ वीडियो कीव में बाहर रिकॉर्ड किया गया था, उनके पीछे राष्ट्रपति कार्यालय था।
यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा, 'क्षेत्रीय अखंडता बहाली और यूक्रेन के लिए न्याय का समय आ गया है। ऐसा नहीं करने की सूरत में रूस को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, जिससे वे पीढ़ियों तक उभर नहीं पाएंगे।'
जेलेंस्की ने फिर से पुतिन से सीधे उनसे मिलने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह मिलने का समय है, बात करने का समय। मैं चाहता हूं कि खासकर मास्को में हर कोई मेरी बात सुने।’’
इस बीच, यूक्रेन के शहरों पर रूसी सैनिकों की भीषण गोलाबारी के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना की प्रशंसा में एक विशाल रैली का आयोजन किया।
रूस के राष्ट्रपति ने शुक्रवार को खचाखच भरे मास्को स्टेडियम को संबोधित किया और कहा कि क्रेमलिन के सैनिकों ने ‘‘कंधे से कंधा मिलाकर’’ लड़ाई लड़ी और एक-दूसरे का समर्थन किया। उन्होंने उत्साही भीड़ से कहा, ‘‘इस तरह की एकता लंबे समय से नहीं दिखी थी।’’
आक्रमण के कारण रूस के भीतर युद्ध-विरोधी विरोध प्रदर्शन हुए और रैली को लेकर संदेह था कि कहीं यह क्रेमलिन-निर्मित देशभक्ति का प्रदर्शन तो नहीं था। कार्यक्रम उस वक्त हुआ जब रूस को युद्ध के मैदान में अपेक्षा से अधिक नुकसान झेलना पड़ा।
पुलिस ने कहा कि मास्को कार्यक्रम के लिए लुज्निकी स्टेडियम में और उसके आसपास 200,000 से अधिक लोग थे, जिसमें देशभक्ति के गीत जैसे ‘‘मेड इन द यूएसएसआर’’ गाए गए, जिसके शुरुआती बोल थे ‘‘यूक्रेन एंड क्रीमिया, बेलारूस एंड मोल्दोवा, इट इज ऑल माई कंट्री।’’
पुतिन की उपस्थिति ने हाल के सप्ताह के दौरान उनके अपेक्षाकृत अलग-थलग रहने के विपरीत एक बदलाव को चिह्नित किया, जब उन्हें दुनिया के नेताओं और अपने कर्मचारियों के साथ असाधारण रूप से लंबी मेजों पर या वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मिलते हुए दिखाया गया है।
संघर्ष से हटकर तीन रूसी अंतरिक्ष यात्री शुक्रवार को यूक्रेनी ध्वज के रंगों से मेल खाते हुए चमकीले पीले और नीले रंग के फ्लाइट सूट पहने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचे। युद्ध शुरू होने के बाद से कई लोगों ने देश के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यूक्रेन के झंडे और उसके रंगों का इस्तेमाल किया है।
यूक्रेन के साथ कई दौर की वार्ता में रूसी वार्ताकारों का नेतृत्व करने वाले व्लादिमीर मेदिंस्की ने रैली के बाद कहा कि दोनों पक्ष यूक्रेन के नाटो में नहीं शामिल होने और तटस्थ स्थिति अपनाने के मुद्दे पर समझौते के करीब पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि रूसी मीडिया के हवाले से उन्होंने कहा कि यूक्रेन के विसैन्यीकरण के मुद्दे पर दोनों दोनों पक्ष करीब आधा दूरी तय कर चुके हैं।
उधर, कीव में शनिवार को भी भारी गोलाबारी जारी रही और रूसी सेना ने पोलैंड की सीमा के करीब ल्वीव के बाहरी इलाके में एक विमान मरम्मत केंद्र की स्थापना की। यूक्रेन के अधिकारियों ने शुक्रवार देर रात कहा कि रूसी घेरे वाले दक्षिणी बंदरगाह शहर मारियुपोल का अजोव सागर तक नियंत्रण खो चुका है और रूसी सेना अब भी शहर पर धावा बोलने की कोशिश कर रही है।
रूसी घेराबंदी का सामना कर रहे मारियुपोल में स्थित अजोवस्ताल स्टील इकाई पर रूस ने नियंत्रण कर लिया है। ये इकाई यूरोप की सबसे बड़ी स्टील इकाइयों में से एक है।
यूक्रेन के गृह मंत्रालय में सलाहकार वाडिम डेनिसेंको ने शनिवार को कहा, ' मैं यह कह सकता हूं कि हम इस भारी-भरकम आर्थिक संपत्ति को खो चुके हैं। असल में, यूरोप की सबसे बड़ी स्टील इकाई को तबाह किया जा रहा है।'
कीव क्षेत्रीय प्रशासन ने शनिवार को कहा कि उत्तर-पश्चिम कीव के उपनगरीय बुचा, होस्तोमेल, इरपिन और मोशचुन में जबरदस्त हमले किए गए हैं। प्रशासन ने कहा कि राजधानी कीव से 165 किलोमीटर दूर स्थित स्लावुतिच शहर 'अलग-थलग' पड़ गया है।
इस बीच, रूसी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मेजर जनरल इगोर कोनासेंकोव ने शनिवार को कहा कि रूसी बलों ने अपनी हालिया हाइपरसोनिक मिसाइल का लड़ाई में पहली बार उपयोग किया है।
उन्होंने कहा कि इस मिसाइल के जरिए उस स्थान को निशाना बनाया गया, जहां यूक्रेन ने अपनी मिसाइलें रखी हुई थीं।
वहीं, यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री इरयाना वेरेशचुक ने शनिवार को कहा कि यूक्रेन और रूस के अधिकारी युद्धग्रस्त मारियुपोल, कीव और लुहांस्क क्षेत्र में मानवीय सहायता पहुंचाने और आम लोगों को बाहर निकलने देने के लिए 10 मानवीय गलियारे बनाने को लेकर सहमत हुए हैं।
उन्होंने खेरसोन शहर के लिए भी मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की योजना का ऐलान किया जोकि मौजूदा समय में रूसी बलों के नियंत्रण में है।
जेलेंस्की के एक सलाहकार मिखाइलो पोदोलीक ने रूसी मूल्यांकन को ‘‘मीडिया में तनाव भड़काने वाले’’ के रूप में चित्रित किया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘हमारी स्थिति बदली नहीं है। युद्धविराम, सैनिकों की वापसी और ठोस फार्मूलों के साथ मजबूत सुरक्षा गारंटी।’’
इस बीच, नार्वे में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के युद्ध अभ्यास के दौरान एक विमान दुर्घटना में चार अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गयी। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोर ने शनिवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि इस अभ्यास का यूक्रेन युद्ध से लेना-देना नहीं है।
जोनास स्टोर ने ट्वीट कर कहा कि शुक्रवार की रात हुई इस दुर्घटना में अमेरिका के चार सैनिकों की मौत हो गयी।
उन्होंने ट्वीट किया, “अमेरिका के यह सैनिक नाटो के एक संयुक्त युद्धाभ्यास में हिस्सा ले रहे थे। हम मारे गए सैनिकों के परिवारों और साथियों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हैं।’’
नार्वे की सेना के मुताबिक दुर्घटना का शिकार हुआ विमान अमेरिकी नौसेना का वी-22बी ऑस्प्रे विमान था।
न्यूजीलैंड की खाड़ी में दो दर्जन से ज्यादा व्हेल मारी गई हैं. यह 10वां मौका है जब इस खाड़ी में व्हेलें फंसी हैं. ऐसा बार बार क्यों हो रहा है?
न्यूजीलैंड के संरक्षण विभाग के मुताबिक, अब तक लंबे फिन वाली 29 पायलट व्हेलों की मौत हो चुकी है. गुरुवार देर शाम गोल्डन बे कही जाने वाली खाड़ी में 34 व्हेलों के फंसने की जानकारी मिली थी. संरक्षण विभाग के प्रवक्ता डेव विंटरबर्न का कहना है कि पांच व्हेलों को बचाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन उनके बचने की उम्मीदें भी कम ही हैं क्योंकि "व्हेलें काफी समय से पानी से बाहर हैं."
विभाग के मुताबिक शुक्रवार सुबह ऊंची लहरों के दौरान पांच व्हेलों को समंदर में वापस पहुंचाने की कोशिश की गई. लेकिन इतने बड़े और विशाल जीवों को बिना नुकसान पहुंचाए सागर में लौटाना आसान नहीं है.
व्हेलों के झुंड का इस तरह तटों पर फंसना और मारा जाना नया नहीं है. विज्ञान और विशेषज्ञ अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि महासागरों में मौजूद ये विशाल स्तनधारी जीव तटों पर क्यों अटक जाते हैं. विंटरबर्ग कहते हैं, "यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन व्हेलों को इस तरह तटों पर फंसना प्राकृतिक है."
गोल्डन बे में व्हेलें जिस जगह पर निढाल पड़ी हैं, उसे फेयरवेल स्पिट भी कहा जाता है. फेयरवेल स्पिट तस्मान सागर में एक पतली लकीर जैसा इलाका है. वहां 26 किलोमीटर लंबी और 800 मीटर चौड़ी एक जमीनी रेखा समंदर को बांटती हैं. व्हेलें इसी रेतीले तट में फंसी हैं.
व्हेलें सोनार सिग्नल छोड़ती हैं. यह सिग्नल दूसरे जीवों या तटों से टकराकर वापस लौटते हैं. इससे व्हेलों को इलाके और भोजन की सटीक जानकारी मिलती है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि छिछले समंदर में व्हेलों का सोनार नेविगेशन सिस्टम गड़बड़ा जाता है. इसके कराण व्हेलें रास्ता भटक जाती हैं और ऊंची लहरों के साथ वे छिछले इलाके तक पहुंच जाती हैं. लेकिन कुछ घंटे बाद लहरें तो नीचे उतर जाती हैं पर व्हेलें वहीं फंसी रह जाती हैं.
व्हेलों की दुनिया का सफर
फेयरवेल स्पिट में बीते 15 साल में व्हेलों के अलग-अलग झुंड 10 बार फंस चुके हैं. इस इलाके में व्हेलों के फंसने का सबसे बड़ा मामला फरवरी 2017 में सामने आया. तब करीब 700 व्हेलें रेत में अटक गई थीं. बचाव की तमाम कोशिशों के बावजूद 250 व्हेलों ने दम तोड़ दिया था.
पायलट व्हेलें न्यूजीलैंड के आस पास महासागर में मिलने वाली सबसे आम प्रजाति हैं. पायलट व्हेलें 20 फुट तक लंबी हो सकती हैं. झुंड में रहने वाली समुद्री स्तनधारी जीवों की ये प्रजाति सबसे ज्यादा तटों पर अटकती है.
पेरिस, 18 मार्च। फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनुअल मैक्रों ने शुक्रवार को अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन से मारियूपोल की घेराबंदी हटाकर मानवीय मदद पहुंचाने की अनुमति देने और तत्काल संघर्ष विराम का आदेश देने की अपील की।
मैक्रों ने पुतिन से फोन पर 70 मिनट तक बात की। इससे पहले, दिन में पुतिन ने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज से फोन पर बात की थी। शॉल्ज ने भी पुतिन से तत्काल संघर्ष विराम का अनुरोध किया।
फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय एलिसी पैलेस ने कहा कि मैक्रों ने यूक्रेन में आम नागरिकों पर हमले और मानवाधिकारों का सम्मान करने में रूस की नाकामी को लेकर एक बार फिर चिंता जतायी।
राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि जवाब में पुतिन ने यूक्रेन को युद्ध के लिए जिम्मेदार बताया। (एपी)
जिनेवा, 18 मार्च। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी एजेंसी के अनुमान के अनुसार यूक्रेन में अब तक कुल 65 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, जबकि 32 लाख लोग पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईओएम) के अनुमान से पता चलता है कि यूक्रेन विस्थापन के मामले में पिछले तीन सप्ताह में ही सीरिया से आगे निकल चुका है, जहां साल 2010 में भीषण युद्ध की शुरुआत हुई थी। सीरिया में अब तक 1 करोड़ 30 लाख से अधिक लोग या तो विस्थापित हो चुके हैं या फिर देश छोड़कर चले गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का यह अनुमान शुक्रवार को प्रकाशित एक दस्तावेज में सामने आया है। (एपी)
क्या हो अगर आपको पता चले कि आपकी करोड़ों की लॉटरी लग गई है? सहयद एक नॉर्मल इंसान इसके बाद अपने लिए आलीशान घर, गाड़ी और जरुरत की सारी चीजें खरीदेगा. या फिर अपना कर्जा उतारेगा. हो सकता है कुछ लोग इसके बाद रोड ट्रिप पर ही निकल जाएं. लेकिन बहुत कम ही लोग होंगे जो ऐसा होने के बाद पैसों को दान दे दें. थाईलैंड में रहने वाले एक बौद्ध भिक्षु ने कुछ ऐसा ही किया.
थाईलैंड में रहने वाले फ्रा क्रू फनोम वहां के एक मंदिर के सेक्रेटरी हैं. Wat Phra That Phanom Woramahawihan नाम के इस मंदिर के सेक्रेटरी ने एक दिन पूजा करने के दौरान एक बोर्ड देखा जिसपर 605 लिखा था. उसे ये भगवान का इशारा लगा. उसने सोचा कि वो इस नंबर का एक लॉटरी टिकट खरीदेगा. आगे उसने ऐसा ही किया. फिर से हुआ, उसने सबके होश उड़ा दिए.
फनोम इसके बाद अपने रिश्तेदारों के साथ डिनर के लिए गया. वहां उसने कुछ लॉटरी टिकट वालों से बात करके स्पेसिफिक नंबर वाले टिकट लेने चाहे. लेकिन कई ने इससे इंकार कर दिया. लेकिन इसके बाद खुद ही एक टिकट बेचने वाला उसके पास आया और उससे टिकट खरीदने की रिक्वेस्ट करने लगा. हालांकि, उसे 605 की जगह 905 नंबर का टिकट मिला.
कुछ दिनों बाद उसे पता चला कि उसने चार करोड़ की लॉटरी जीत ली है. लेकिन इस बौद्ध भिक्षु ने पैसों को वापस सोसाइटी की मदद के लिए भेज दिया. उसने सारे पैसे दान में दे दिए. इसके अलावा हर बौद्ध भिक्षु को भी थोड़े थोड़े पैसे बांट दिए. मंदिर में काम करने वाले मजदूरों को भी उसने कुछ अमाउंट डोनेट कर दिया. लोग इस बौद्ध भिक्षु की काफी तारीफ कर रहे हैं.
-जेन वेकफील्ड
ट्विटर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा डीपफ़ेक वीडियो पोस्ट किया गया जिसमें वो युद्ध समाप्त करने की घोषणा कर रहे हैं.
इसी बीच, इस सप्ताह यूट्यूब और मेटा ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का एक डीपफ़ेक वीडियो हटाया जिसमें वो रूस के समक्ष आत्मसमर्पण की बात कर रहे हैं.
युद्ध में दोनों ही पक्ष प्रभावित करने वाले मीडिया कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं. सवाल उठता है कि इस युद्ध में ग़लत जानकारियों को लेकर ये डीपफ़ेक वीडियो क्या दर्शाते हैं.
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का डीपफ़ेक बहुत विश्वसनीय नहीं था और यूक्रेन में बहुत से लोगों ने इसे मज़ाक में लिया.
इस वीडियो में वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की एक पोडियम के पीछे से बोल रहे हैं. वे यूक्रेन के लोगों से हथियार डालने के लिए कह रहे हैं. वीडियो में उनका सिर शरीर के मुक़ाबले अधिक बड़ा और धुंधला नज़र आ रहा है. यही नहीं उनकी आवाज़ भी अधिक ग़हरी सुनाई दे रही है.
अपने अधिकारिक इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में असली राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इस वीडियो को बचकाना हरकत बताया है.
लेकिन यूक्रेन के सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक कम्यूनिकेशन ने चेतावनी दी है कि रूस की सरकार ऐसे ही डीपफ़ेक वीडियो का इस्तेमाल करके यूक्रेन के लोगों को हथियार डालने के लिए उकसा सकती है.
मेटा के सिक्यूरिटी पॉलिसी प्रमुख नैथेनियल ग्लाइशर ने ट्विटर पर कई सिलसिलेवार ट्वीट कर के बताया है कि उन्होंने तुरंत डीपफ़ेक वीडियो की समीक्षा की और इसे भ्रामक मीडिया को लेकर कंपनी की पॉलिसी के तहत हटा दिया गया.
वहीं यूट्यूब का भी कहना है कि उसने भी भ्रामक जानकारियों को लेकर अपनी नीति के तहत इस वीडियो को हटा दिया है.
डीपफ़ेक्स किताब की लेखिका नीना श्चिक के मुताबिक ज़ेलेंस्की के वीडियो को डिलीट करना सोशल मीडिया कंपनियों के लिए आसान जीत की तरह था क्योंकि ये वीडियो इतना बदतर था कि इसे आम दर्शकों ने भी आसानी से पकड़ लिया.
वे कहती हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस वीडियो से निबटने के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं लेकिन ये प्लेटफॉर्म दूसरी भ्रामक जानकारियों से निबटने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रहे हैं.
"युद्ध को लेकर बहुत सी भ्रामक जानकारियां हैं जिन्हें अभी तक झूठ नहीं ठहराया गया है. भले ही ये वीडियो बहुत ख़राब और क्रूड हों लेकिन नज़दीकी भविष्य में मामला इतना आसान नहीं होगा."
वे कहती हैं, "बावजूद इसके ये वीडियो विश्वसनीय मीडिया में भरोसा कम तो करेगा ही."
नीना श्चिक कहती हैं, "लोग ये मानने लगेंगे कि कुछ भी फ़र्ज़ी या फ़ेक हो सकता है."
"ये एक नया हथियार है और दृश्यों के ज़रिए झूठ फैलाने का संभावित तरीक़ा है और हर कोई इसका इस्तेमाल कर सकता है."
मृत रिश्तेदारों के एनिमेशन बनाने का टूल बहुत चर्चित हुआ है और मॉय हेरिटेज़ वेबसाइट अब डीपफ़ेक के बोलने की क्षमता भी दे रही है.
डीपफ़ेक तकनीक कई चेहरे
रिश्तेदारों के पुराने तस्वीरों से डीपफ़ेक एनिमेशन बनाने वाला टूल बहुत चर्चित हुआ है और अब इसे बनाने वाली कंपनी मॉयहेरिटेज एक नया फ़ीचर लाइवस्टोरी लेकर आई हैं जिसके जरिए चरित्र बोल भी सकते हैं.
लेकिन पिछले साल जब दक्षिण कोरिया के प्रसारक नेटवर्क एमबीएन ने बताया कि वो अपनी एक न्यूज़रीडर किम जू हा के डीपफ़ेक का इस्तेमाल कर रहा है तब इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई थी.
कुछ लोग इस बात से प्रभावित थे कि वो कितना असली दिख रहीं थीं जबकि बाकी ये चिंता ज़ाहिर कर रहे थे कि इससे किम जू हा की नौकरी जा सकती है.
डीपफ़ेक तकनीक के ज़रिए अब पोर्न वीडियो भी बनाए जा रहे हैं. कुछ वेबसाइटें यूजर को तस्वीरों को न्यूड करने की तकनीक भी दे रही हैं.
और इसका इस्तेमाल व्यंग्य के लिए भी किया जा सकता है. पिछले साल चैनल 4 ने महारानी का डीपफ़ेक बनाकर नए साल का संदेश साझा किया था.
हालांकि राजनीति के क्षेत्र में अभी डीपफ़ेक का इस्तेमाल दुर्लभ ही है.
अगर डीपफ़ेक पकड़ा ना जाए तो?
विटनेस डॉट ओआरजी के निदेशक सेम ग्रेगरी कहते हैं कि ज़ेलेंस्की का वीडियो डीपफ़ेक की समस्या का अच्छा उदाहरण है.
"ये बहुत अच्छा डीपफ़ेक नहीं था इसलिए शुरुआत में ही पकड़ लिया गया. यूक्रेन ने इसका पर्दाफ़ाश कर दिया था और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने स्वयं सोशल मीडिया पर इसे फ़र्ज़ी बताया, ऐसे में फ़ेसबुक के लिए इसे हटाना आसान नीतिगत फ़ैसला था."
लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चिंता है कि न ही उनके पास डीपफ़ेक को पकड़ने के टूल हैं और न ही उन्हें डीबंक (फ़र्ज़ी ठहराने) करने की क्षमता.
लेकिन बीते साल एक ऑनलाइन डिटेक्टर ने बताया था कि म्यांमार के एक वरिष्ठ राजनेता का एक सही माना गया वीडियो वास्तव में डीपफ़ेक था. इस वीडियो में ये राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप स्वीकार करते दिख रहे थे. अभी इस बात को लेकर बहस है कि ये वीडियो असली था या डीपफ़ेक था.
ग्रेगरी कहते हैं, "सौ प्रतिशत सबूत का अभाव और लोगों की ये मानने की अनिच्छा की ये डीपफ़ेक था, वास्तविक माहौल में डीपफ़ेक की चुनौतियों को प्रदर्शित करता है."
"कुछ सप्ताह पहले राष्ट्रपति पुतिन का एक डीपफ़ेक वीडियो आया था और इसे अधिकतर लोगों ने व्यंग्य ही माना था. हालांकि व्यंग्य और भ्रामक जानकारी के बीच रेखा बहुत मोटी नहीं है."
बीबीसी मॉनिटरिंग के शायान सरदारीजादेह का विश्लेषण
बुधवार को यूक्रेन के टीवी चैनल यूक्रानिया 24 के प्रसारण के दौरान ज़ेलेंस्की के वीडियो का ट्रांस्क्रिप्ट सबसे पहले टिकर पर दिखाई दिया.
बाद में इसका स्क्रीनशॉट और पूरा भाषण उसकी वेबसाइट पर नज़र आया.
यूक्रानिया 24 ने बाद में पुष्टि की कि उसकी वेबसाइट और टिकर को हैक कर लिया गया था. बुधवार को अधिकतर समय ये वेबसाइट बंद रही.
बाद में ये वीडियो रूस में टेलीग्राम और रूस के फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीके पर जमकर शेयर किया गया.
वहां से ये फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी पहुंच गया.
काफ़ी समय से ये चेतावनी दी जाती रही कि डीपफ़ेक तकनीक युद्ध जैसे हालातों में घातक साबित हो सकती है.
हालांकि भरोसेमंद डीपफ़ेक बनाना महंगा और समय लेने वाला काम है.
इस युद्ध में अभी तक पुराने वीडियो और छेड़छाड़ करके बनाए जा रहे मीम अभी तक दुष्प्रचार का सबसे प्रभावी तरीक़ा नज़र आ रहे हैं.
ज़ेलेंस्की का डीपफ़ेक न ही बहुत अच्छे से बनाया गया था और न ही ये भरोसा करने लायक था. अभी तक इतना ख़राब डीपफ़ेक हमने नहीं देखा है.
लेकिन ये ग़ौर करने वाली बात है कि युद्ध के दौरान एक डीपफ़ेक बनाया गया और उसे साझा किया गया है.
हो सकता है कि आगे आने वाले डीपफ़ेक इतने ख़राब न हों.
-ज़ुबैर अहमद
यूक्रेन में लड़ाई अभी शुरुआती दौर में है लेकिन पश्चिमी देशों को डर है कि यह महीनों और वर्षों तक खिंच सकती है.
यूक्रेन पर रूसी हमले की तुलना या तो 1979 के सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान पर हमले से की जा रही है या फिर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण से.
सोवियत संघ को 10 साल के अंदर शिकस्त खाकर लौटना पड़ा था और दूसरे मामले में अमेरिका को 20 साल बाद कुछ हासिल किए बग़ैर लौटना पड़ा था. दोनों मामलों में हार आक्रमण करने वाले देश की हुई थी.
तो क्या रूसी हमले के बाद यूक्रेन की हालत अफ़ग़ानिस्तान जैसी हो सकती है, अमेरिकी हमले के बाद वाला अफ़ग़ानिस्तान या फिर सोवियत हमले के बाद वाला.
अमेरिका में कुछ प्रभावशाली शख़्सियतें ये चाहती हैं कि यूक्रेन में रूस को उसी तरह के दलदल में फंसाया जाए जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ को फंसाया गया था जिसके बाद हमलावर फौज की भारी शिकस्त हुई थी और 10 साल बाद उन्हें अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर वापस जाना पड़ा था.
उनका तर्क है कि अमेरिका और नेटो उसी तरह से वॉलंटियर्स और ग़ैर-सरकारी एक्टर्स को हथियार और ट्रेनिंग देंगे जिस तरह से इन देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन से लड़ने के लिए मुजाहिदीन को तैयार किया था, यहाँ भी ऐसा ही होगा.
अमेरिका की भूतपूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, "याद रखें, 1980 में रूसियों ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था. रूसियों के लिए इसका अंत अच्छा नहीं था... सच यह है कि एक बहुत ही प्रेरित, अच्छी तरह से फंडेड और सशस्त्र विद्रोह ने मूल रूप से रूसियों को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकाल दिया."
सोवियत सैनिकों ने 24 दिसंबर 1979 को अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया था और 10 साल तक वहां रहने के बाद 1989 में उन्हें हार के बाद अपने देश भागना पड़ा था. अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मर्ज़ी का शासन लागू करने में विफल होने के बाद सोवियत संघ ने 1988 में अमेरिका, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और सोवियत सैनिकों की वापसी 15 फ़रवरी, 1989 को पूरी हुई.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने हालिया 'स्टेट ऑफ़ द यूनियन' संबोधन में इसी पॉलिसी को अपनाने की तरफ़ इशारा भी किया था. उस भाषण में उन्होंने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन पर हमला करने के बदले एक लंबे अरसे तक क़ीमत चुकानी पड़ेगी.
शिकागो में रहने वाले लेखक ब्रैंको मार्सेटिक ने जो बाइडन पर पर एक चर्चित किताब लिखी है, वे कहते हैं कि फ़िलहाल वाशिंगटन में कई तरह की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं. उनमें से एक ये है कि रूस को यूक्रेन के दलदल में फँसाया जाए.
बीबीसी से एक ईमेल इंटरव्यू में वो कहते हैं, "मेरे विचार में दोनों तरफ़ के राजनेताओं (रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी) और बाइडन के प्रशासन में अधिकारियों के बीच राय अलग-अलग है. लेकिन ये (रूस को यूक्रेन में फंसा कर रखना) निश्चित रूप से कुछ लोगों के लिए पसंदीदा विकल्प है. हम जानते हैं कि बाइडन प्रशासन कम-से-कम पिछले दिसंबर से इस तरह के परिणाम के लिए स्पष्ट रूप से योजना बना रहा है."
वे कहते हैं, "इस बार अमेरिका और उसके नेटो सहयोगी देशों ने ये साफ़ तौर पर तय कर लिया है कि वो इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल नहीं होंगे. मेरी समझ में इनकी कोशिश ये रहेगी कि रूस को उलझाकर रखा जाए. यूक्रेन की अखंडता पर आक्रमण हुआ है, इसे देखते हुए रूस पर कई तरह के सख्त प्रतिबंध लगाए जाएँ, उनका अंतिम लक्ष्य ये है कि आर्थिक और सैन्य रूप से रूस को कमज़ोर किया जाए."
अचल मल्होत्रा कहते हैं, "अगर आप पश्चिमी देशों को देखें तो पुतिन को एक विलेन की तरह से पेश किया जा रहा है. इसके अलावा रूस को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग किया जा रहा है. दूसरी तरफ़ उनकी कोशिश ये है कि यूक्रेन के अंदर जारी प्रतिरोध को राजनयिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहायता करके ज़िंदा रखें. अगर इसका कोई हल नहीं निकला तो ये युद्ध सालों तक चल सकता है और यूक्रेन एक स्थायी युद्ध क्षेत्र बन सकता है."
मौजूदा संकट 2014 से ही चला आ रहा है जब रूस ने यूक्रेन से जुड़े इसके पूर्वी हिस्से क्राइमिया पर हमला करके क़ब्ज़ा कर लिया था. नेटो और अमेरिका से यूक्रेन की सैनिक मदद उसी समय शुरू हो गई थी.
स्कॉट रिटर अमेरिका में रूसी मामलों के एक विशेषज्ञ हैं और अमेरिकी मरीन फोर्स के कमांडर रह चुके हैं. वो बग़दाद में एक हथियार निरीक्षक भी रह चुके हैं. उनके अनुसार अमेरिका और नेटो 2015 से ही यूक्रेन की सेना को प्रशिक्षित कर रहे हैं.
एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि अमेरिका और नेटो के सैनिक 2015 से नेटो के यवोरिव सुविधा केंद्र में डोनबास (पूर्वी यूक्रेन) में लड़ाई के लिए हर साल यूक्रेन की सेना के पांच बटालियन को ट्रेन करने का काम कर रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि आठ साल में यूक्रेन की 40 बटालियन को ट्रेनिंग दी जा चुकी है."
आम नागरिकों को दी जा रही है ट्रेनिंग
पश्चिमी देशों के सैकड़ों वालंटियर्स यूक्रेन में रूसी सेना से लड़ने के लिए वहां पहुँच रहे हैं, उन्हें हथियारों की आपूर्ति भी की जा रही है. यूक्रेन के आम नागरिकों को भी शहरी युद्ध में सशस्त्र और प्रशिक्षित किया जा रहा है.
शिकागो में अमेरिकी विश्लेषक ब्रैंको मार्सेटिक के मुताबिक़ यूक्रेन में सक्रिय नियो-नाज़ी और विदेश से आ रहे रंगभेद समर्थकों के हाथों में हथियार देना ख़तरे से खाली नहीं. वे कहते हैं, "पश्चिमी देशों के समर्थन वाले यूक्रेन में प्रतिरोध करने वाले बलों से ख़तरा अमेरिका को बना रहेगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता".
उनका कहना है कि यूक्रेन में जारी प्रतिरोध को हथियार और ट्रेनिंग देना उसी तरह से देखा जाना चाहिए जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका ने मुजाहिदीन को दिया था. उन्हें इस बात का ख़तरा है कि अपने हाथों में हथियार उठाने वाले रंगभेद समर्थक गोरे लोग अमेरिका वापस आकर हिंसक न हो जाएँ.
वो आगे कहते हैं, "अल्ट्रा-नेशनलिस्ट और अन्य सुदूर दक्षिणपंथी चरमपंथियों की यूक्रेन में लंबे समय से एक ख़तरनाक और प्रभावशाली उपस्थिति रही है और जिस तेज़ी और आसानी से पश्चिमी देशों के हथियार यूक्रेन में आ रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं कि वो उनके हाथों में आएंगे, वास्तव में, हम जानते हैं कि उनके पास ये हथियार पहले से ही हैं."
ब्रैंको मार्सेटिक के मुताबिक़, अब इनमें से कई पश्चिमी चरमपंथी अपनी हिंसक गतिविधियों के लिए वास्तविक दुनिया का अनुभव प्राप्त करने के लिए यूक्रेन की यात्रा भी कर रहे हैं. "चिंता की बात यह है कि हम इन सबका अंजाम उस वक़्त ही जान पाएंगे जब तक कि बहुत देरी हो चुकी होगी."
बीस साल बाद यानी पिछले साल उन्हें अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर जाना पड़ा था.
जिस तरह अचानक पश्चिमी देशों के सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ा उससे अमेरिका की काफ़ी बदनामी हुई और कहा गया कि अमेरिका और नेटो की अफ़ग़ानिस्तान में शिकस्त हुई है.
अचल मल्होत्रा कहते हैं कि राष्ट्रपति बाइडन के लिए यूक्रेन एक बड़ी चुनौती है. इस साल नवंबर में अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव है. बाइडन को अमेरिका के अंदर ये दिखाना है कि अमेरिका अब भी वर्ल्ड लीडर है और वो रूस का यूक्रेन में डटकर मुक़ाबला कर रहा है. अगर यूक्रेन में रूस की जीत हुई तो अमेरिका की छवि को काफी बड़ा नुकसान हो सकता है.
अचल मल्होत्रा कहते हैं, "ऐसा हो सकता है. रूस अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी स्थिति झेल चुका है. अमेरिका भी अफ़ग़ानिस्तान में नाकामी देख चुका है. अमेरिका वियतनाम में शिकस्त खा चुका है. ये इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका और उसके साथी देश यूक्रेन में प्रतिरोध को कब तक मज़बूती से चला पाएँगे."
इस समय युद्ध के साथ-साथ रूस और यूक्रेन ने बातचीत के ज़रिए मसले का हल निकालने की कोशिश जारी रखी है. लेकिन संकेत ऐस मिल रहे हैं कि रूस केवल अपनी शर्तों पर ही यूक्रेन से वापस जाएगा.
उसकी शर्तों में जो बातें शामिल हैं इसमें ख़ास ये हैं: यूक्रेन नेटो में शामिल न हो, यूक्रेन की सेना हथियार डाल दे और यूक्रेन क्राइमिया को मान्यता दे.
राष्ट्रपति पुतिन ये भी चाहते हैं कि यूक्रेन में उनके समर्थन वाली सरकार स्थापित हो. अगर यूक्रेन ने शर्तें मान लीं तो हार अमेरिका और नेटो की होगी. (bbc.com)
"हम तो उनसे कुछ नहीं मांगते, ये अपनी बीवियों को ख़ुश रखें लेकिन बूढे मां-बाप को भी बेआसरा न छोड़ें."
ये शब्द थे पेशावर हाई कोर्ट में अपने और अपने पति की देख-रेख के लिए अपील करने वाली एक मां के, जो छह बेटे होने के बावजूद बुढ़ापे में बेआसरा हैं और उनके बेटे मां-बाप को अपने पास रखने के लिए रज़ामंद नहीं.
पेशावर हाई कोर्ट में एक ऐसी अपील पर सुनवाई हुई जो बूढ़े मां-बाप की ओर से अदालत में दी गई थी.
इस अपील में बूढ़े माता-पिता ने बताया है कि उनके छह बेटे हैं, जिनमें से पांच नौकरीपेशा हैं और एक विकलांग है.
किराए पर रह रहे हैं मां-बाप
अपील में कहा गया है कि उन्होंने अपने बेटों की परवरिश, शिक्षा और शादी-ब्याह के लिए अपना सब कुछ बेच दिया था और अब वो ख़ुद किराए के मकान में रहते हैं जिसका वो किराया भी नहीं दे पा रहे हैं.
ये मामला अदालत में सामने आया है जिस पर जस्टिस रूहुल अमीन ने कहा कि अगर बच्चे अपने परिजनों को अपने पास नहीं रखते तो हम उन्हें अपने पास रख लेंगे.
उन बुज़ुर्ग परिजनों की ओर से वकील अफ़शां बशीर अदालत में पेश हुईं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि आज अदालत में जब सुनवाई शुरू हुई तो उन माता-पिता का सिर्फ़ एक बेटा अदालत में पेश हुआ जबकि बाक़ी चार अदालत में नहीं थे.
उन्होंने बताया कि सुनवाई के दौरान बेटे कहा कि वो माता-पिता को हर महीने कुछ रुपये देंगे, जिस पर अदालत ने कहा कि उन्हें पैसों की नहीं मुहब्बत की ज़रूरत है.
अफ़शां बशीर एडवोकेट के मुताबिक़ बूढ़े माता-पिता इस वक़्त किराए के मकान में रहते हैं जिसका किराया कोई 4000 रुपये है और वो ये किराया अदा नहीं कर सकते हैं.
स्थानीय पत्रकार अदालत में मौजूद थे, उन्होंने बीबीसी को बताया कि अदालत ने बेटे से पूछा कि बूढ़े माता-पिता को बेसहारा क्यों छोड़ा है. अदालत ने बुज़ुर्ग महिला निसार बीबी से पूछा कि क्या आप अपने बच्चों से ख़ुश हैं, जिस पर बेटों की मां ने कहा मां को तो बच्चे मारें भी तो मां ख़फ़ा नहीं होती, और ये बातें कहते हुए निसार बीबी की आंखो में आंसू भर आए.
निसार बीबी ने अदालत में कहा कि 'उनके बेटे अपनी-अपनी बीवियों को ख़ुश रखें मगर परिजनों को बेआसरा न छोड़ें. हमने अपने बच्चों की बहुत मेहनत और मुहब्बत से परवरिश की है.'
बेटों की शादी के लिए बेच दिया था मकान
उन्होंने कहा कि उनकी शादियों के लिए अपना निजी मकान बेचा और बाक़ी जो जमा-पूंजी थी सब ख़र्च कर दी और 'अब हम दरबदर की ठोकरें खा रहे हैं.'
इस दौरान अदालत ने बेटे से कहा कि मां-बाप ने अपने बच्चों के लिए अपना मकान बेच दिया और बेटों ने मां-बाप के साथ क्या सलूक किया, सिर्फ़ हज़ार-हज़ार रुपये देने से मां-बाप के ख़र्चे पूरे नहीं होते.
अदालत ने अपनी टिप्पणी के दौरान कहा कि सरकार की ओर से माता-पिता के कल्याण के लिए जारी ऑर्डिनेंस भी क़ानून की शकल नहीं ले सका, 'क्या ये ऑर्डिनेंस सिर्फ़ लोगों को दिखाने के लिए था.'
बीते साल सितंबर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने माता-पिता की सुरक्षा ऑर्डिनेंस 2021 जारी किया था जिसके तहत बच्चे परिजनों को अपने घरों से ज़बरदस्ती नहीं निकाल सकते चाहे वो अपने घर में रह रहे हों या किराए के मकान में.
इस ऑर्डिनेंस के तहत माता-पिता को घरों से बेदख़ल करने वाले बच्चों को एक साल तक क़ैद और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
अदालत ने संबंधित पुलिस थाने के एसएचओ से कहा कि आगे कि सुनवाई के दौरान सभी बेटों को अदालत में पेश किया जाए.
अफ़शां बशीर एडवोकेट ने बताया कि बुज़ुर्ग माता-पिता का एक बेटा विदेश में रहता है जबकि दो यहां नौकरी करते हैं, एक सिक्योरिटी में है और दूसरा मुंशी है.
उन्होंने बताया कि बुज़ुर्ग महिला उनके पास एक-दो बार आई थीं और अपनी परेशानी बताई थी जिसके बाद मानवीय सहानुभूति के आधार पर अदालत में अपील की.
बेटों के घर नहीं जाना चाहते हैं
इस अपील में उन्होंने संबंधित सरकारी संस्थाओं और बुज़ुर्ग माता-पिता के बेटों को एक पार्टी बनाया है. इस अपील में कहा गया है कि बुज़ुर्ग माता-पिता को एहसास प्रोग्राम और बेनज़ीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम और अन्य इस तरह के प्रोग्राम से भी कोई मदद नहीं की जा रही है.
अदालत में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार आमिर जमील ने बताया कि इस अपील की सुनवाई के दौरान भी मां अपने बेटे से कह रही थी कि तुम परेशान न होना हम मजबूर हैं. इन बच्चों के पिता गौहर अली एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हैं और जब उनसे बात करना चही तो उन्होंने कहा कि वो बात नहीं कर सकते.
उनकी पत्नी ने कहा, "उन्हें अब बच्चों के पास वापस न भेजा जाए, बल्कि उनके लिए अलग कोई इंतज़ाम अगर हो सकता है तो वो किया जाए क्योंकि अतीत में भी ऐसे ही फ़ैसले हुए और रज़ामंदी से हमें बेटों के हवाले किया गया और बाद में तमाम बेटे ज़िम्मेदारियां एक-दूसरे पर डालने लगे कि तुम अब मां-बाप को रखो."
अदालत में पेश होने वाले इस मुक़दमे की कहानी भी बॉलीवुड की फ़िल्म 'बाग़बान' से मिलती-जुलती है जिसमें बाप का किरदार अमिताभ बच्चन और मां का किरदार हेमा मालिनी ने अदा किया था.
इस फ़िल्म में भी माता-पिता के रिटायरमेंट और बेटों के नौकरीपेशा होने के बाद मां-बाप के लिए बेटों के घरों में जगह कम पड़ जाती है और बेटे आपस में एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारियां डालते हैं कि मां-बाप को अब तुम रखो. (bbc.com)
ईरान सरकार ने ईरानी मूल की ब्रितानी नागरिक नाज़नीन ज़घारी रैट्क्लिफ़ को छह साल तक हिरासत में रखने के बाद बीते बुधवार रिहा कर दिया है.
नाज़नीन को साल 2016 में ईरान सरकार ने कथित रूप से जासूसी करने के मामले में हिरासत में लिया था.
ईरानी अधिकारियों ने दावा किया था कि नाज़नीन तेहरान में ईरान सरकार के तख़्तापलट की साजिश रच रही थीं लेकिन उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
नाज़नीन के ख़िलाफ़ क्या थे आरोप
ईरान के रिवॉल्युशनरी गार्ड्स ने इस मामले में दावा किया था कि नाज़नीन अपनी ईरान यात्रा के दौरान विदेश से जुड़े एक विरोधी नेटवर्क का नेतृत्व कर रही थीं.
वहीं, नाज़नीन का कहना था कि वह ईरानी नववर्ष मनाने के लिए अपनी बेटी गेबरिएला के साथ माता-पिता के घर तेहरान पहुंची थीं.
इस मामले में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के साथ साथ बीबीसी मीडिया एक्शन ने बयान जारी करके बताया था कि वह ईरान में काम के सिलसिले से नहीं बल्कि छुट्टियां मनाने गई थीं.
नाज़नीन ने साल 2021 में परोल पर रहते हुए अपनी सज़ा का अंतिम साल तेहरान स्थित अपने माता-पिता के घर पर बिताया.
लेकिन इसके बाद ईरान सरकार के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करने से जुड़े एक मामले में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें एक साल जेल की सज़ा और एक साल का यात्रा प्रतिबंध लगाया गया.
नाज़नीन ने इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की लेकिन इस कोशिश में वह सफल न हो सकीं.
ब्रितानी विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने इस फ़ैसले की निंदा करते हुए इसे नाज़नीन के साथ बरती जा रही क्रूरता की भयावह निरंतरता बताया था.
ईरान ने नाज़नीन को साल 2016 में हिरासत में लिया गया था जिसके बाद अप्रैल से जून तक उनसे गहन पूछताछ की गई और एकांत कारावास में रखा गया था.
इसके बाद सितंबर 2016 में तेहरान की रिवॉल्युशनरी कोर्ट ने उन्हें पांच साल क़ैद की सज़ा सुनाई.
नाज़नीन ने इस मामले में साल 2017 के अप्रैल महीने ईरान की सुप्रीम कोर्ट में में अपील दर्ज की गई लेकिन उनके हाथ निराशा लगी.
इसके बाद अगस्त 2018 में उन्हें तीन दिन के लिए रिहा किया गया जिससे वह अपनी बेटी गेबरिएला से मिल सकीं.
साल 2019 के जनवरी महीने में मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिलने पर नाज़नीन ने तीन दिन तक भूख हड़ताल शुरू की.
इसके बाद 2019 के जून महीने में ही बिना शर्त रिहाई के लिए उन्होंने 15 दिनों की भूख हड़ताल की.
साल 2020 के मार्च महीने में महामारी की वजह से उन्हें जेल से अस्थाई रूप से रिहा किया गया. इसके बाद से वह तेहरान में अपने माता-पिता के घर पर रहीं.
साल 2020 के सितंबर महीने में उन्हें बताया गया कि उन्हें एक अन्य मामले में कानूनी मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.
साल 2021 के अप्रैल में उन्हें फिर एक साल जेल की सज़ा सुनाई गयी. साल 2021 के अक्टूबर महीने में उन्होंने दूसरी बार अपील की लेकिन इस बार भी उनके हाथ निराशा लगी.
इसके बाद मार्च 2022 में नाज़नीन को रिहा कर दिया गया और वह ब्रिटेन वापस लौट रही हैं.
आख़िर क्या था मामला?
नाज़नीन के रिचर्ड रैट्क्लिफ़ पिछले काफ़ी समय से अपनी पत्नी की रिहाई के लिए मुहिम चला रहे थे. और इस दौरान वह लंदन में अपनी बेटी के साथ रह रहे थे.
रिचर्ड रैट्क्लिफ़ ने अपनी पत्नी की सज़ा को लेकर बताया था कि उनकी पत्नी से कहा गया है कि उनकी हिरासत की वजह ईरान और ब्रिटेन के बीच 1970 के दशक से चला आ रहा कई मिलियन पाउंड का विवाद है. और नाज़नीन को हिरासत में रखकर ईरान ब्रिटेन पर इस विवाद का समाधान करने का दबाव बनाना चाहता था.
ईरान का दावा था कि ब्रिटेन को 1500 चीफ़्टेन टैंक के लिए दिए गए पैसे को वापस लौटाना चाहिए.
बता दें कि ईरान ने सत्तर के दशक में ब्रिटेन से 1500 चीफ़्टेन टैंक ख़रीदने के लिए अग्रिम भुगतान किया था.
लेकिन ब्रिटेन ने ये टैंक ईरान को नहीं दिये और इसके बदले में अग्रिम भुगतान भी वापस नहीं किया. ऐसे में ईरान का दावा था कि ब्रिटेन को 400 मिलियन पाउंड की रकम लौटानी होगी.
नाज़नीन की रिहाई के बारे में सूचना देते हुए ट्रस ने बताया कि इस रकम को ब्रितानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और विधिक नियमों के तहत चुका दिया गया है.
उन्होंने बताया कि इस बारे में ईरान के साथ ओमान की मदद से पिछले कुछ महीनों से बातचीत जारी थी.
इसके बाद जानकारी सामने आई है कि नाज़नीन ओमान से होते हुए ब्रिटेन लौट रही हैं. (bbc.com)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 18 मार्च। अमेरिकी सांसदों के एक द्विदलीय समूह ने भारत से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के खिलाफ बृहस्पतिवार को आवाज उठाने का आग्रह किया।
कांग्रेस सदस्य जो विल्सन और भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना के नेतृत्व में सांसदों ने अमेरिका में भारत के शीर्ष राजदूत तरनजीत सिंह संधू को फोन करके इस मामले पर चर्चा की।
खन्ना ने कहा कि उन्होंने विल्सन के साथ मिलकर राजदूत संधू से फोन पर बात की और दौरान भारत से यूक्रेन में नागरिकों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा निशाना बनाए जाने के खिलाफ आवाज उठाये जाने का आग्रह किया।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘दोनों दलों में भारत के मित्र उससे शांति के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करने का आग्रह कर रहे हैं।’’
विल्सन ने ट्वीट किया, ‘‘अपने सहयोगी के साथ मिलकर अमेरिका में भारत के राजदूत को फोन किया। यह महत्वपूर्ण है कि विश्व नेता यूक्रेन में पुतिन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की निंदा करें।’’
दो दिनों में यह दूसरी बार है जब अमेरिकी सांसदों ने भारत से यूक्रेन के खिलाफ सैन्य हमले को लेकर रूस की निंदा करने का आग्रह किया है।
एक दिन पहले, दो सांसदों टेड डब्ल्यू लियू और टॉम मालिनोवस्की ने भारत से रूस की निंदा करने का आग्रह किया था।
उन्होंने संधू को लिखे एक पत्र में कहा, ‘‘हालांकि हम रूस के साथ भारत के संबंधों को समझते हैं, हम संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो मार्च के मतदान से दूर रहने के आपकी सरकार के फैसले से निराश हैं।’’ (भाषा)
कोई खतरनाक शख्स अचानक से साधू बन जाए तो ताज्जुब होना लाज़िम हो जाता है. दिमाग में ये सवाल बार-बार उठने ही लगता है कि आखिर एक खूंखार इंसान इतना कैसे और क्यूं बदल गया. ऐसे ही कोई भी जीव अपनी प्रवृति के विपरित काम करने लगे तो आश्चर्य तो होगा ही. हाल ही में एक ऐसा ही वीडियो सामने आया जिसने ये सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया.
Dr. Ajayita ने ट्विटर अकाऊंट @DoctorAjayita पर उन्होंने एक वीडियो शेयर किया जिसमें मगरमच्छों की भरमार के बीच अचानक एक मछली छटकती हुई आ पहुंची, मगर किसी ने भी उसे देख लार नहीं टपकाई. बाद में एक मगरमच्छ ने कोशिश भी की तो बाकी साथियों ने उसे रोक दिया. जिसे देखकर मन में ये सवाल उठा कि क्या खतरनाक मगरमच्छ वेजिटेरियन होने लगे हैं!
क्या मगरमच्छ होने लगे शाकाहारी!
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो है तो बड़ा मज़ेदार, साथ ही सवाल भी खड़े करता है कि आखिर क्यों और कैसे? दरअसल इस वायरल वीडियो में मगरमच्छों के जमघट के बीच अचानक एक मछली छटकती हुई कही से आ टपकी. लेकिन हैरानी तो इस बात पर हुई कि आंखों के सामने शिकार होते हुए भी किसी ने उस मछली की तरफ आंख उठाकर देखा भी नहीं. 13 सेकेंड के इस वीडियो को जिसने भी देखा वो इसका आखिरी सीन देखकर हंसे बिना नहीं रह सकता. क्रोकोडायल्स की खूंखार प्रजाति से ऐसी उम्मीद कोई नहीं कर सकता था जैसा उन्होंने किया. सबसे मजेदार तो ये रहा कि जब हर मगर ने मछली की जान छोड़ दी तभी मौके का फायदा उठाने के लिए दूर पड़ा एक मगरमच्छ आ पहुंचा. वो मछली की तरफ लपका भी लेकिन तब उसके साथियों ने ही मछली को उसके मुंह का निवाला नहीं बनने दिया. और दो मगर ने मिलकर उस तीसरे मगर को पानी में पटक दिया.
वीडियो जितने ही मज़ेदार हैं कमेंट्स भी
वीडियो पर इतने ही मज़ेदार कमेंट भी देखने को मिले. तो कुछ लोगों ने आपत्ति भी जताई. एक यूज़र ने लिखा ये वीडियो ठीक वैसा ही है जैसा किसी शादी में वेज दोस्त नॉनवेज खाने वालों के साथ करते हैं. तो एक ने इस मछली को Luckiest fish in the world कहा. दुखी जीवन जीने के लिए उसे भी उसी कुंड में प्रवेश करना पड़ता है ! एक यूज़र इस वीडियो पर होने वाले मज़ाक से अपसेट थी. लिहाज़ा उसने लिखा “जीवन के लिए संघर्ष करती एक मछली को देखना कैसा मज़ाक है? क्रूरता का कोई अंत नहीं है!” वहीं वीडियो शेयर करने वाली Dr Ajayita ने इस पर कैप्शन दिया No Wally no, you are on a diet!.
बरसों तक ईरान की जेल में बंद रहने के बाद ब्रिटेन के दो नागरिक स्वदेश लौट आए हैं। ईरानी परमाणु संधि के दौरान कैदियों की आपसी रिहाई के चलते इन लोगों को आजादी मिल पाई।
ईरानी मूल की ब्रिटिश नागरिक नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ और अनुशेह अशूरी सालों तक ईरानी जेल में रहने के बाद आखिरकार रिहा होकर ब्रिटेन लौट आए हैं। गुरुवार को दोनों ब्रिटेन के ऑक्सफर्डशर स्थित सैन्य हवाई अड्डे ब्राइज नॉर्टन पर पहुंचे। साथ ही, ब्रिटेन ने बताया है कि ईरानी मूल के अमेरिकी पर्यावरणविद मुराद ताबाज को बुधवार को फरलो पर रिहा किया गया है। ताबाज भी ब्रिटिश नागरिक हैं।
इससे पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ट्विटर पर लिखा, इस बात की पुष्टि करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ और अनुशेह अशूरी की ईरान में अन्यायपूर्ण हिरासत खत्म हो गई है और वे यूके लौट रहे हैं।
जगारी-रैटक्लिफ के पति रिचर्ड ने कहा कि लगता है एक अरसे से जारी यह कठिन परीक्षा खत्म हुई। लंदन स्थित अपने घर से पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, यह ख्याल कि हम एक आम जिंदगी जी पाएंगे, कि हमें लड़ते नहीं रहना होगा, कि यह लंबी यात्रा लगभग खत्म हो गई है, बहुत राहत की बात है।
अशूरी के परिवार की ओर से जारी एक बयान में उनकी रिहाई की कोशिशें करने वालों को शुक्रिया कहा गया। परिवार ने कहा, 1672 दिन पहले हमारे परिवार की नींव हिल गई थी जब हमारे पिता और पति को अन्यायपूर्ण रूप से हिरासत में लेकर हमसे दूर कर दिया गया था। अब हम उस नींव के फिर से निर्माण के बारे में सोच सकते हैं क्योंकि हमारा मील का पत्थर लौट आया है। अशूरी को 2019 में इस्राएल की जासूसी एजेंसी मोसाद के लिए जासूसी करने के आरोप में दस साल की कैद सुनाई गई थी।
जासूसी के आरोप
जगारी-रैटक्लिफ को ईरानी सेना ने 3 अप्रैल 2016 को तेहरान में गिरफ्तार किया था। तब वह अपनी 22 महीने की बेटी गैब्रिएला के साथ अपने माता-पिता के पास ईरानी नव वर्ष मनाने के बाद ब्रिटेन लौटने की कोशिश कर रही थीं। ईरानी अदालत में उन पर ईरानी सरकार का तख्तापलट करने की साजिश का दोष सिद्ध हुआ। उनकी संस्था और परिवार इस आरोप का खंडन करते रहे हैं। संस्था ने कहा था कि वह निजी यात्रा पर ईरान गई थीं और वहां कोई काम नहीं कर रही थीं।
जगारी-रैटक्लिफे के नियोक्ता एंटोनियो जापुला ने कहा कि जब दुनिया उथल-पुथल से गुजर रही है तब उनकी रिहाई उम्मीद की नई रोशनी है। जापुला की कंपनी एक समाजसेवी संस्था है जो थॉमसन-रॉयटर्स से संबंद्ध है लेकिन स्वतंत्र रूप से काम करती है।
फरवरी में ईरान ने इन दोनों की रिहाई का ऐलान तब किया था जबकि 2015 की परमाणु संधि को फिर से जिंदा करने के लिए बातचीत चल रही थी। तब ईरान ने कहा कि वह ईरान की जब्त संपत्तियों की मुक्ति और पश्चिमी जेलों में बंद उसके नागरिकों के बदले इन दोनों को रिहा करने को तैयार है।
करीब दो हफ्ते पहले ईरानी परमाणु समझौता समाप्ति की ओर पहुंच रहा था जब रूस ने यूक्रेन पर हमले के बाद कुछ नई शर्तें जोड़ दीं। ऐसा प्रतीत होता है कि अब रूस ने अपनी मांगें कम कर दी हैं जो परमाणु संधि से ही जुड़ी हैं।
ब्रिटेन ने चुकाया कर्ज
ईरान की अर्धसरकारी समाचार एजेंसी फार्स ने कहा है कि जगारी-रैटक्लिफ और अशूरी को तब रिहा किया गया जब ब्रिटेन ने अपना पुराना कर्ज चुका दिया। ईरानी शासकों का कहना है कि ब्रिटेन पर देश के पूर्व सम्राट यानी शाह का 40 करोड़ पाउंड यानी लगभग 40 अरब रुपये का कर्ज बकाया था। यह धन ब्रिटेन ने 1,750 टैंकों और अन्य वाहनों के लिए लिया था लेकिन 1979 की क्रांति के बाद इन वाहनों की डिलीवरी नहीं की गई।
अमेरिका-ईरान के बीच सुलह कराने में जुटे हैं बड़े देश
ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि ब्रिटेन इस कर्ज को चुकाने के रास्ते खोज रहा था। एक बयान में उन्होंने कहा, हमें नाजनीन, अनुशेह और मुराद और उनके परिजनों के हौसले पर फख्र है। उन्होंने वो झेला है जो किसी परिवार को कभी ना झेलना पड़े। और यह लम्हा बहुत बड़ी राहत लेकर आया है।
साथ ही, ट्रस ने कहा कि ब्रिटेन ने अपना कर्ज भी चुका दिया है। उन्होंने कहा, जैसा कि हमने कहा था, हमने कर्ज चुका दिया है। उन्होंने कहा कि ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के अनुसार ही कर्ज चुकाया गया है और इस धन का इस्तेमाल मानवीय जरूरतों का सामान खरीदने में ही किया जाएगा।
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)