अंतरराष्ट्रीय
नयी दिल्ली, 21 मार्च। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भारत के अपने समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ वर्चुअल शिखर वार्ता में सोमवार को कहा कि रूस के यूक्रेन में ‘भयानक’ आक्रमण करने के बाद युद्धग्रस्त देश में हुई जनहानि के लिए उसे (रूस को) जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता है।
मॉरिसन ने यूक्रेन संकट पर क्वाड देशों के नेताओं की हाल में हुई बैठक का भी जिक्र किया और कहा कि इससे ‘‘हिंद प्रशांत क्षेत्र’’ के लिए घटनाक्रम के ‘‘असर और परिणामों’’ पर चर्चा करने का अवसर मिला।
उन्होंने कहा, ‘‘हम यूरोप में भयानक स्थिति से व्यथित हैं, हालांकि हमारा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अधिक है।’’
वहीं, मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विविध क्षेत्रों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंधों में काफी प्रगति देखी गयी है। उन्होंने यह भी कहा कि वृहद आर्थिक सहयोग समझौते के लिए वार्ता के नतीजे पर पहुंचना आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए अहम होगा।
उन्होंने कहा कि हमारी भागीदारी मुक्त, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खनिज, जल प्रबंधन और अक्षय ऊर्जा के अहम क्षेत्रों में तीव्र गति से सहयोग बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं खुश हूं कि हम दो देशों के बीच वार्षिक शिखर वार्ता का तंत्र स्थापित कर रहे हैं।’’ (भाषा)
बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाले समूह सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि युद्ध के कारण लाखों यूक्रेनी बच्चे गंभीर खतरे में हैं और जो अभी भी फंसे हुए हैं उन्हें तुरंत बचाया जाना चाहिए.
सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि यूक्रेन के अस्पतालों और स्कूलों पर बढ़ते हमलों के कारण अब 60 लाख से अधिक बच्चे गंभीर खतरे में हैं, जिन्हें तत्काल सुरक्षा की आवश्यकता है. समूह के यूक्रेन निदेशक पीट वॉल्श ने कहा, "यूक्रेन में 60 लाख बच्चे गंभीर खतरे में हैं क्योंकि यूक्रेन में युद्ध का एक महीना पूरा हो रहा है."
समूह ने कहा कि रूसी गोलाबारी के कारण 464 स्कूल और 42 अस्पताल क्षतिग्रस्त हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 24 फरवरी को रूसी हमला शुरू होने के बाद से अब तक कम से कम 59 बच्चे मारे गए हैं. वॉल्श ने कहा, "स्कूल बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल होना चाहिए, न कि भय, चोट या मौत की जगह."
यूक्रेन में लगातार हो रहे मिसाइल हमलों और गोलाबारी के कारण अब तक 15 लाख से अधिक बच्चे देश से भागने को मजबूर हो चुके हैं. हालांकि, सेव द चिल्ड्रन का अनुमान है कि देश में अभी भी करीब 60 लाख बच्चे फंसे हुए हैं.
वॉल्श ने कहा, "युद्ध के सिद्धांत बहुत साफ हैं: बच्चों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए और अस्पतालों या स्कूलों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. हमें हर कीमत पर यूक्रेन में बच्चों की रक्षा करनी चाहिए. इस युद्ध के अंत तक और कितनी जानें जाएंगी?"
मानवाधिकार के उच्चायुक्त के कार्यालय ने यूक्रेन में युद्ध के कारण नागरिकों के हताहत होने पर अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि 24 फरवरी से 19 मार्च के बीच कुल 2,361 नागरिक प्रभावित हुए, जिसमें 902 लोग मारे गए और 1,459 घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने केवल मौतों की पुष्टि की है. आशंका है कि मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है.
वहीं यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि रूसी हमले के शुरू होने के बाद से देश के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव के आसपास लड़ाई में कम से कम 260 नागरिक मारे गए हैं.
महिलाएं चुकाती हैं युद्ध और संघर्ष में सबसे ज्यादा कीमत
यूएनएचसीआर का कहना है कि युद्ध से बचने के लिए अब तक 34 लाख लोग पड़ोसी देशों में भाग गए हैं. एक करोड़ लोग देश के भीतर विस्थापित हुए हैं.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)
वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रूस से कहा है कि वह जितनी जल्दी शांति वार्ता शुरू करेगा, उसे उतना ही कम नुकसान होगा. यूक्रेन युद्ध पर हो रही वार्ताएं अभी चेतावनियों और अपीलों के जरिए माहौल टटोल रही हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने शनिवार को रूस के साथ शांति और सुरक्षा के लिए सार्थक बातचीत की अपील की. वीडियो संबोधन में जेलेंस्की ने कहा, "बातचीत रूस के पास एकमात्र मौका है, जिसके जरिए वह अपनी गलतियों से हुए नुकसान को कम कर सकता है."
जेलेंस्की की बातों में रूस के लिए स्पष्ट संदेश था. यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा, "मैं चाहता हूं कि हर कोई मुझे सुने, खासकर मॉस्को में. बैठक का समय आ चुका है, बात करने का समय यही है."
24 फरवरी, 2022 से रूसी हमला झेल रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति ने आगे कहा, "यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता और उसके लिए न्याय बहाल करने का समय आ चुका है." इसके साथ ही उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चेतावनी भी दी, "अन्यथा, रूस का इतना नुकसान होगा कि उससे उबरने में कई पीढ़िया लग जाएंगी."
रूस और यूक्रेन के बीच कुछ हफ्तों से द्विपक्षीय बातचीत भी हो रही है. कई चरणों के बाद भी इस बातचीत से अब तक कोई पुख्ता समाधान नहीं निकला है.
जेलेंस्की के बयान से एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जर्मन चांसलर ओलाश शॉल्त्स से टेलीफोन पर बातचीत की. इस बातचीत में पुतिन ने यूक्रेन पर समझौते की कोशिशों को टालने का आरोप लगाया.
बाइडेन और शी ने क्या बात की?
यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर ही शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भी बातचीत हुई. करीब दो घंटे चली वीडियो कॉन्फ्रेंस में कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. बाइडेन ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसने यूक्रेन में सेना घुसाने वाले रूस का समर्थन किया, तो बीजिंग को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
व्हाइट हाउस के मुताबिक, "राष्ट्रपति ने इस संकट के कूटनीतिक समाधान को लेकर अपना समर्थन जाहिर किया." बयान के अगले हिस्से में कहा गया, "दोनों नेताओं के बीच संवाद की लाइनें खुली रखने और आपसी प्रतिस्पर्धा को मैनेज करने पर भी सहमति बनी."
वहीं चीनी राष्ट्रपति ने भी पहले आपसी संवाद और वैश्विक शांति को लेकर दोनों देशों की भूमिका का जिक्र किया. लेकिन कुछ देर बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अमेरिका को खरी-खरी सुनाई. वीडियो कॉल के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया. इस बयान में नाटो के विस्तारीकरण और पश्चिमी देशों की शीत युद्ध वाली मानसिकता का जिक्र किया गया.
चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में दो चीनी मुहावरों का जिक्र भी किया गया. यह मुहावरे हैं, "जिसने बाघ के गले में घंटी बांधी है, उसी को यह खोलनी होगी" और "ताली एक हाथ से नहीं बजती है."
न्यूक्लियर पावर प्लांट के करीब बसे शहर में कर्फ्यू
इस बीच यूक्रेन युद्ध के 24वें दिन यूक्रेनी सेना ने देश के दक्षिणी शहर जपोरिजिया में 38 घंटे का कर्फ्यू लगा दिया है. शहर के मेयर अनातोलिय कुर्तिएव ने सोशल मीडिया पर कर्फ्यू की जानकारी देते हुए लिखा, "इस दौरान बाहर न निकलें."
कुर्तिएव के मुताबिक शुक्रवार को शहर के बाहरी इलाकों में हुई बमबारी में नौ लोग मारे गए और 17 घायल हुए. जपोरिजिया वही शहर है, जिसके पास मौजूद परमाणु बिजलीघर को रूसी सेना ने दो हफ्ते पहले अपने नियंत्रण में लिया. रूसी सेना पर न्यूक्लियर पावर प्लांट पर हमला करने के आरोप भी लगे. यूक्रेन के अधिकारियों का आरोप है कि रूसी सेना न्यूक्लियर पावर प्लांट के पास विस्फोटकों में धमाका भी कर रही है.
ओएसजे/वीएस (एपी, एएफपी, रॉयटर्स, डीपीए)
बिजली की आपूर्ति को हैकर्स से सुरक्षित रखना ज्यादा महत्वपूर्ण होता जा रहा है, क्योंकि देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को डिकार्बोनाइज कर रहे हैं और बिजली ग्रिड का आधुनिकीकरण हो रहा है.
डॉयचे वैले पर अजीत निरंजन की रिपोर्ट-
फरवरी महीने के अंत में रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर हमला किया था. इस हमले से कुछ मिनट पहले मध्य यूरोप में 5,800 विंड टरबाइनों से जुड़े एक उपग्रह लिंक ने अचानक काम करना बंद कर दिया. इसका असर यह हुआ है कि टरबाइन घूमते रहे, लेकिन वे तब से ऑटोपायलट मोड पर चल रहे हैं और उन्हें दूर से रीसेट नहीं किया जा सकता है. विंड टरबाइन निर्माता कंपनी एनरकॉन ने बीते मंगलवार को प्रेस के लिए जारी बयान में कहा, "यूक्रेन पर रूसी हमले की शुरुआत के साथ ही संचार सेवाएं लगभग एक साथ ठप हो गईं.”
अभी तक इस खराबी के कारण का पता नहीं चला है. हालांकि, कंपनी ने जर्मनी के फेडरल ऑफिस फॉर इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी (बीएसआई) को इस मामले की सूचना दे दी है. कंपनी का कहना है कि उसकी तरफ से किसी तरह की तकनीकी खराबी नहीं आई है. हालांकि, इस मामले में सवाल पूछे जाने पर न तो एनरकॉन ने और न ही बीएसआई ने किसी तरह का कोई जवाब दिया है.
गौरतलब है कि रूस की सेना यूक्रेन के अंदरूनी हिस्से में प्रवेश कर चुकी है. नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है और यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर गोलीबारी की गई है. वहीं, हैकर्स साइबर हमले करके सरकारी वेबसाइटों को निशाना बना रहे हैं. यूक्रेन के बिजली क्षेत्र की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ गई है. युद्ध ने रूस और नाटो गठबंधन के बीच तनाव को बढ़ा दिया है. साथ ही, वैश्विक बिजली की आपूर्ति से जुड़ी साइबर सुरक्षा की कमियां भी उजागर हुई हैं.
अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कंप्यूटर वैज्ञानिक और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ स्टुअर्ट मैडनिक ने कहा, "अगर दुश्मन के विमान आप पर बम गिराएंगे, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि आपकी सेना उन्हें मार गिराएगी. वहीं, अगर कोई साइबर आतंकवादी किसी ठिकाने या प्रतिष्ठान पर हमला कर रहा है, तो आप अपनी सुरक्षा के लिए सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते.”
हैकर्स ने ऊर्जा प्रणालियों को कैसे प्रभावित किया है?
कथित तौर पर रूसी सरकार के समर्थित हैकरों ने 2015 में यूक्रेन के पावर ग्रिड में सेंध लगाई और कंट्रोल सिस्टम को ठप कर दिया था. नतीजा ये हुआ कि राजधानी कीव और देश के पश्चिमी हिस्से में व्यापक तौर पर बिजली कटौती की समस्या पैदा हो गई थी. बिजली ग्रिड पर साइबर हमले का यह पहला मामला था जिसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया गया था. तब से दुनिया भर में इस तरह के कई हमले हो चुके हैं.
पिछले साल, रूसी रैंसमवेयर समूह से जुड़े हैकर्स ने अमेरिका के टेक्सास में एक तेल पाइपलाइन को मैनेज करने वाले कम्प्यूटरीकृत उपकरण को निशाना बनाया था. पाइपलाइन का मालिकाना हक कॉलोनियल पाइपलाइन कंपनी के पास है. इस हमले की वजह से कंपनी को अपना काम रोकना पड़ा और फिर से सिस्टम को चालू करने के लिए फिरौती देनी पड़ी.
जर्मन इंजीनियरिंग फर्म सीमेंस ने बिजली, गैस या पानी जैसी चीजों की सप्लाई करने वाली यूटिलिटी कंपनियों के बीच 2019 में एक सर्वे किया था. इस सर्वे में शामिल आधे से अधिक कंपनियों ने साइबर हमले की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इन हमलों की वजह से हर साल कम से कम एक बार उन्हें अपना काम रोकना पड़ा या काम से जुड़े डेटा का नुकसान हुआ.
कंपनियों ने कहा कि हमलों ने उनके काम को पूरी तरह ‘ठप' कर दिया था. इस वजह से बिजली में कटौती करनी पड़ी, उन्हें नुकसान हुआ और पर्यावरणीय आपदाएं हुईं. सर्वे में शामिल एक चौथाई अधिकारियों ने कहा कि उनकी कंपनी पर ऐसे ‘बड़े हमले' हुए जिनमें ‘हैकिंग के तरीके किसी देश ने विकसित किए थे.'
मैनेजमेंट कंसल्टेंसी मैकिन्से की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, ऊर्जा प्रणालियों पर हमले सप्लाई चेन के हर चरण में हो सकते हैं. बिजली बनाने के लिए ज्यादातर जिन बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जा रहा है उन्हें साइबर सुरक्षा को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था. ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में सुरक्षा से जुड़ी कमियां हो सकती हैं जिसकी वजह से ग्रिड के कंट्रोल सिस्टम तक हैकर पहुंच सकते हैं. घरों में भी स्मार्ट मीटर और इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने से सेवाओं को बाधित करना आसान हो सकता है.
अमेरिकी राज्य कोलोराडो में डेनवर विश्वविद्यालय के पर्यावरण कानून विशेषज्ञ डॉन स्मिथ ने कहा, "ऐसे हजारों तरीके हैं जिनसे हैकर निजी ऊर्जा कंपनियों या ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में सेंधमारी कर सकते हैं.” स्मिथ ने ऊर्जा क्षेत्र में डिजिटल सुरक्षा पर शोध किया है.
संचालन को बाधित करने और ब्लैकआउट जैसी स्थिति पैदा करने के साथ-साथ साइबर हमले उपकरण और बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. मैडनिक ने कहा कि अमेरिका की सरकारी प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों ने दिखाया कि इलेक्ट्रॉनिक हमले किस तरह उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उन्होंने कहा, "अगर आपके जनरेटर में विस्फोट हो जाता है या टरबाइन कंट्रोल से बाहर होकर घूमते हुए अलग हो जाते हैं, तो आपको इसे बदलना होगा. यहां हम ऐसे उपकरणों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्हें बदलने में महीनों नहीं, तो सप्ताह लगते ही हैं.”
क्या नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को साइबर हमलों का ज्यादा खतरा है?
बुनियादी स्तर पर, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर और विंड फार्म को पारंपरिक जीवाश्म ईंधन संयंत्रों की तुलना में साइबर हमलों का ज्यादा खतरा है, क्योंकि वे इंटरनेट से अधिक जुड़े हुए हैं.
जीवाश्म ईंधन वाले बिजली संयंत्र केंद्रीकृत होते हैं. वहीं, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत वाले संयंत्र बड़े क्षेत्रों और सिस्टम में फैले होते हैं. हालांकि, साइबर हमले के दौरान इसका यह फायदा हो सकता है कि नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र का कुछ ही हिस्सा प्रभावित हो, लेकिन इनकी ज्यादा कमियां भी उजागर होती हैं.
जिन जगहों पर नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली का निर्माण होता है वे आबादी वाली जगहों से दूर होती हैं. ऐसे में यहां उत्पन्न होने वाली बिजली के इस्तेमाल के लिए ट्रांसमिशन लाइनों की जरूरत बढ़ जाती है और उपकरणों के कई हिस्सों को एक साथ जोड़ा जाता है.
फिर भी, विशेषज्ञों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन वाले बिजली संयंत्रों में कई तरह की कमियां हैं. अधिकांश कोयला, तेल और गैस संयंत्र नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में बहुत पुराने हैं. इन जीवाश्म ईंधन वाले संयंत्रों को इंटरनेट से जोड़ दिया गया है, लेकिन इन्हें साइबर हमलों से बचाने की कोई स्पष्ट योजना नहीं है.
कई देशों में, जीवाश्म ईंधन वाले संयंत्र के बुनियादी ढांचे का निर्माण कई दशकों पहले किया गया था. मैडनिक कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि साइबर हमले के खिलाफ उनके पास ज्यादा सुरक्षा थी. उन्होंने शायद डाकुओं से संयंत्र को बचाने के लिए सुरक्षा उपाय अपनाए थे, लेकिन साइबर हमले के खिलाफ नहीं.”
सरकार कैसे सुरक्षा कर सकती है?
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन उनके पास अपने बिजली ग्रिड को डिजिटल खतरों से बचाने के लिए ठोस योजनाओं की कमी है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में, कोई संघीय साइबर सुरक्षा रणनीति नहीं है. डॉन स्मिथ ने कहा, "एक ऐसे देश में इसका कोई मतलब नहीं है जो पूरी तरह एक साथ जुड़ा हुआ है.”
अमेरिका में एक राज्य से दूसरे राज्य में बिजली भेजी जाती है. वहीं, यूरोपीय संघ में एक देश से दूसरे देश में बिजली भेजी जाती है. यहां सेवा देने वाली अलग-अलग कंपनियां अपने पड़ोसियों की कमजोरियों के संपर्क में आती हैं. स्मिथ कहते हैं, "ऊर्जा राज्य या देश की सीमाओं पर ध्यान नहीं देती है. जहां भी पाइपलाइन और ट्रांसमिशन लाइनें हैं वे वहां जाती हैं.”
हाल के समय में ऊर्जा से जुड़ी बुनियादी संरचना को लगातार बेहतर बनाया जा रहा है और हैकर्स बुनियादी ढांचे तक पहुंच के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं, इसलिए डिजिटल सुरक्षा के लिए कोई एक खाका तैयार नहीं किया गया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार, कंपनियां और व्यक्ति सभी अपने स्तर पर बेहतर सुरक्षा के लिए कदम उठा सकते हैं. उदाहरण के लिए, कंपनियां साइबर सिक्योरिटी मैनेजर नियुक्त कर सकती हैं जो कमियों की जांच करने और उन्हें दूर करने वाली तकनीक ईजाद कर सकें. सरकारें यूटिलिटी कंपनियों के लिए न्यूनतम साइबर सुरक्षा मानकों को लागू कर सकती हैं और इसकी नियमित तौर पर निगरानी कर सकती हैं. ऊर्जा कंपनियों के कर्मचारी नियमित रूप से अपने पासवर्ड बदल सकते हैं और मैलवेयर के लिए अपने उपकरणों की जांच कर सकते हैं. (dw.com)
ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि रूस पर भारत के रुख को क्वॉड सदस्यों ने स्वीकार किया है और कोई इस बात से नाखुश नहीं है. भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान क्वॉड के सदस्य हैं.
भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फैरल ने पत्रकारों को बताया कि क्वॉड सदस्य जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया इस बात को स्वीकार करते हैं कि रूस पर उनसे अलग है लेकिन इस बात से कोई नाराज नहीं है क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन में जारी युद्ध को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से कोशिशें कर रहे हैं.
बैरी ओ फैरल ने कहा, "क्वॉड देशों ने भारत के रुख को स्वीकार किया है. हम समझते हैं कि हर देश के अपने द्विपक्षीय संबंध होते हैं और भारतीय विदेश मंत्रालय व प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि उन्होंने युद्ध खत्म करने के लिए अपने संपर्कों का इस्तेमाल किया है और कोई देश इससे नाखुश नहीं है.”
भारत का रुख
क्वॉड सदस्यों में भारत ही ऐसा देश है जिसने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की निंदा नहीं की है. इसके उलट भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस विरोधी प्रस्तावों पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसकी रूस ने तारीफ की थी. कई देशों ने भारत पर रूस के खिलाफ रुख अपनाने का दबाव बनाने का भी प्रयास किया लेकिन भारत रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को कायम रखे हुए है व उससे तेल आदि खरीदने का संकेत दे चुका है.
भारत की नजर सस्ते रूसी तेल पर
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सोमवार को एक वर्चुअल मुलाकात होनी है, जिसमें दोनों नेता यूक्रेन की स्थिति और परिणामों पर चर्चा करेंगे. शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि यूक्रेन और हिंद-प्रशांत पर उसके असर के बारे में चर्चा होगी.
जापान ने भी माना
इससे पहले भारत के रुख को जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के भारत दौरे के दौरान भी समर्थन मिला. नरेंद्र मोदी और फूमियो किशिदा ने यूक्रेन युद्ध को रोकने और बातचीत से मसले सुलझाने का संयुक्त आग्रह किया. जापान ने न सिर्फ रूस की कड़ी निंदा की है बल्कि उस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं, जो भारत के रुख के एकदम उलट है.
यूक्रेन युद्ध के बीच जापान के प्रधानमंत्री का भारत दौरा
मोदी से मुलाकात के बाद किशिदा ने कहा, "हम दोनों इस बात की पुष्टि करते हैं कि मौजूदा स्थिति में बलपूर्वक परिवर्तन को किसी भी क्षेत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता और यह आवश्यक है कि विवादों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जाए.”
जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के नेताओं ने इस महीने की शुरुआत में भारत के प्रधानमंत्री के साथ एक बैठक में यूक्रेन युद्ध पर चर्चा की थी. माना जाता है कि इस बैठक में तीनों नेताओं ने मोदी को अपने जैसा रुख अपनाने के लिए मनाने की कोशिश की थी, जिसमें वे नाकाम रहे.
भारत सैन्य और अन्य जरूरतों के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की कुल हथियार खरीद का 60 प्रतिशत से ज्यादा रूस से आता है. अब जबकि भारत चीन के साथ संबंधों में ऐतिहासिक तनाव झेल रहा है तो उसकी हथियारों की जरूरत और बढ़ गई है और ऐसे में रूस के साथ संबंध बनाए रखना उसकी सामरिक शक्ति के लिए जरूरी माना जा रहा है.
वीके/सीके (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिका ने औपचारिक रूप से रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार सेना के अत्याचारों को नरसंहार घोषित करने का फैसला किया है. इससे म्यांमार की सैन्य सत्ता पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने की उम्मीद है.
एक अमेरिकी अधिकारी ने रविवार को कहा कि अमेरिका ने रोहिंग्या अल्पसंख्यकों पर म्यांमार की लंबे समय से चली आ रही सैन्य कार्रवाई को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन सोमवार को वॉशिंगटन में होलोकॉस्ट संग्रहालय में एक कार्यक्रम के दौरान इसकी आधिकारिक घोषणा करेंगे. संग्रहालय म्यांमार में रोहिंग्याओं के शोषण को दिखाने के लिए "नरसंहार के लिए बर्मा का पथ" नामक एक प्रदर्शनी की मेजबानी कर रहा है.
ब्लिंकेन ने पिछले साल दिसंबर में मलेशिया की यात्रा के दौरान कहा था कि अमेरिका "गंभीरता से विचार" कर रहा था कि क्या रोहिंग्या के दमन को "नरसंहार" के रूप में माना जा सकता है.
2018 में रखाइन में संयुक्त राष्ट्र की ओर से भेजे गए तथ्यखोजी दल ने रिपोर्ट दी थी कि 2017 में रखाइन प्रांत में चलाए गए सैन्य अभियान को "नरसंहार के इरादे" की तरह अंजाम दिया गया.
अनिश्चितता के दौर से गुजरते भारत में रोहिंग्या शरणार्थी
वर्तमान में लगभग साढ़े आठ लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ले रखी है. वहां से भागे हुए लोगों का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया गया, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनके घरों को लूटा गया. हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी इस मामले की सुनवाई चल रही है.
नरसंहार घोषित करने का मतलब यह नहीं है कि म्यांमार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. रोहिंग्या के खिलाफ भयानक अभियान के कारण, म्यांमार के सैन्य नेतृत्व पर पहले ही कई प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं. इनमें से कुछ प्रतिबंध तब से लागू हैं जब सैन्य जुंटा ने तख्ता को पलटा नहीं था.
नरसंहार की आधिकारिक घोषणा के बाद कुछ सहायता प्रतिबंधित हो सकती है और कुछ नए जुर्माने लगाए जा सकते हैं. वॉशिंगटन को उम्मीद है कि उसके फैसले से सैन्य जुंटा को जवाबदेह ठहराने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूती मिलेगी.
विदेश विभाग के एक अधिकारी ने रॉयटर्स के हवाले से कहा, "इससे उनके लिए (सैन्य जुंटा) रोहिंग्या का शोषण करना मुश्किल हो जाएगा."
मानवाधिकार समूह रिफ्यूजीज इंटरनेशनल ने अमेरिका के इस कदम की सराहना की है, समूह ने एक बयान में कहा कि "अमेरिका द्वारा म्यांमार में नरसंहार की घोषणा एक स्वागत योग्य और बहुत महत्वपूर्ण कदम है."
सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए अमेरिकी सीनेटर सेन जेफ मैर्केले ने कहा, "मैं रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचारों को नरसंहार के रूप में मान्यता देने के लिए बाइडेन प्रशासन की सराहना करता हूं."
एए/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
नयी दिल्ली, 21 मार्च । ‘कतर एयरवेज़’ के दिल्ली से दोहा जा रहे विमान के ‘कार्गो होल्ड’ में से धुआं निकलने के संकेत के बाद, उसे सोमवार को कराची में आपात स्थिति में उतारा गया। विमान कम्पनी ने यह जानकारी दी।
विमान कम्पनी ने एक बयान में बताया कि विमान कराची में सुरक्षित उतर गया है, जहां आपात सेवाएं उसकी जांच कर रही हैं। सभी यात्रियों को सीढ़ियों के जरिए विमान से उतार दिया गया है।
कम्पनी ने कहा कि घटना की जांच जारी है और यात्रियों को दोहा तक पहुंचाने के लिए राहत उड़ान की व्यवस्था की जा रही है।
विमान कम्पनी ने कहा, ‘‘ हमारे यात्रियों को हुई असुविधा के लिए हम माफी मांगते हैं, आगे की यात्रा के लिए उनकी सहायता की जाएगी।’’
‘कतर एयरवेज़’ ने कहा, ‘‘ 21 मार्च को दिल्ली से दोहा जा रहे विमान संख्या क्यूआर579 के कार्गो होल्ड में से धुआं निकलने के संकेत के बाद आपात स्थिति की घोषणा की गई और उसे कराची में सुरक्षित उतार लिया गया।’’(भाषा)
वेलिंग्टन, 21 मार्च। न्यूजीलैंड के तट पर तूफानी मौसम के कारण एक नौका के डूबने से चार लोगों की मौत हो गई और एक अन्य व्यक्ति लापता है। नौका में 10 लोग सवार थे।
पुलिस ने सोमवार को बताया कि उत्तरी तट पर नॉर्थ केप में रविवार की रात हुए हादसे में पांच लोगों को बचाया गया है। सोमवार को सुबह हेलीकॉप्टर की मदद से दो शव पानी में से निकाले गए। तीसरा शव नौका द्वारा चलाए गए तलाश अभियान में बरामद हुआ।
उन्होंने बताया कि बचाए गए पांच लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां प्राथमिक उपचार देने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई।
न्यूजीलैंड के समुद्री बचाव समन्वय केन्द्र के प्रवक्ता निक बर्ट ने बताया कि आपात सेवाओं को रात आठ बजे सक्रिय किया गया। एक हेलीकॉप्टर सबसे पहले रात 11 बजकर 40 मिनट पर मौके पर पहुंचा। इसके बाद देर रात ढाई बजे नौका के डूबने की पुष्टि हुई।
बर्ट ने बताया कि सोमवार को तलाश अभियान नौसेना के गश्ती दल के समन्वय से चलाया जा रहा है, जिसमें हेलीकॉप्टर और जमीनी दल की मदद से तटरेखा क्षेत्र में खोज की जा रही है।
समाचार वेबसाइट ‘स्टफ’ के अनुसार, मछुआरों की यह नौका उत्तरी बंदरगाह मानगोनुई से बृहस्पतिवार को रवाना हुई थी। नौका पर एक कैप्टन, चालक दल का एक सदस्य और आठ यात्री सवार थे। हादसे में नौका का कैप्टन बच गया है। (एपी)
वाशिंगटन, 21 मार्च। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन म्यांमा में रोहिंग्या मुसलमानों पर वर्षों से हो रहे अत्याचारों को ‘नरसंहार’ घोषित करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिकी अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की सोमवार को यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम में होने वाले एक कार्यक्रम में रोहिंग्या मुसलमानों के दमन को ‘नरसंहार’ घोषित करने की योजना है।
इस घोषणा का मकसद म्यांमा की सैन्य सरकार के खिलाफ नए कदम नहीं उठाना है, क्योंकि वह पहले से ही रोहिंग्या जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभियान को लेकर अमेरिका के कई प्रतिबंधों का सामना कर रही है। म्यांमा की सेना ने साल 2017 में पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान चलाया था।
हालांकि, अमेरिका के इस कदम से म्यांमा सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है, जो द हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में पहले से ही नरसंहार के आरोपों का सामना कर रही है। मानवाधिकार समूह और सांसद अमेरिका के पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन और मौजूदा बाइडन प्रशासन, दोनों पर ही रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों को नरसंहार घोषित करने का दबाव बनाते रहे हैं। (एपी)
-कैगिल कासापोग्लू
इस समय पूरी दुनिया का ध्यान यूक्रेन की ओर है, लेकिन दूसरी ओर मध्यपूर्व के देश यमन के हालात लगातार ख़राब होते जा रहे हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के कारण यमन में महंगाई काफ़ी बढ़ गई है. साथ ही यमन के लिए धन जुटाने की कोशिश कर रहे संयुक्त राष्ट्र की कोशिश भी परवान नहीं चढ़ सकी है.
यमन के हालात को संयुक्त राष्ट्र ने कुछ वक़्त पहले 'दुनिया का सबसे बुरा मानवीय संकट' क़रार दिया था और यह संकट फिर से गहराता जा रहा है.
यमन के लिए फंड जुटाने की संयुक्त राष्ट्र की हाल की कोशिश पूरी नहीं हो सकी. संयुक्त राष्ट्र 16 मार्च को धन जुटाने की अपनी सबसे ताज़ा कोशिश में 4 अरब डॉलर से ज़्यादा की राशि जुटाने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन अभी तक इसका एक तिहाई से भी कम जमा हो पाया है.
देश में पांच ब्रेड फैक्ट्रियां चला रहे ग़ैर-सरकारी संगठन मुस्लिम हैंड्स की प्रोजेक्ट अधिकारी सारा शावक़ी बताती हैं, "यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद से यमन में क़ीमतें दोगुनी हो गई हैं, ख़ासतौर से आटे की क़ीमत काफ़ी बढ़ गई है. पहले एक बोरे की क़ीमत 21-25 डॉलर थी, जो अब 50 डॉलर हो गई है. हमें ब्रेड मुहैया कराने के लिए दूसरी चीज़ों में कटौती करनी पड़ी है."
अरब प्रायद्वीप का सबसे ग़रीब मुल्क यमन अनाज की कुल खपत का क़रीब 90 फ़ीसदी आयात करता है. ध्यान देने की बात ये है कि विश्व बैंक के अनुसार यमन का 40 फ़ीसदी गेहूं यूक्रेन और रूस से ही आता है.
यमन के शहर अदन से बीबीसी से बात करते हुए मुस्लिम हैंड्स के स्थानीय एड वर्कर ने कहा कि वे इसे लेकर काफ़ी फ़िक्रमंद हैं, क्योंकि बढ़ता ख़र्च मानवीय मदद की उनकी परियोजना में रुकावट डाल सकता है.
अदन में पांच बच्चों की मां और विधवा रायदा मोथना अली ऐसी शख़्स हैं, जो दान में मिले अनाज पर ही निर्भर हैं. सारा शावक़ी, रायदा की कही बातें अनुवाद कर हमें बताती हैं. वो कहती हैं, "मैं बुनियादी ज़रूरतों की कमी झेल रही हूं. मेरे पास कोई आय नहीं है. मुझे और मेरे बच्चों को दिन में ब्रेड के दो टुकड़े मिलते हैं और हम सिर्फ़ इतना ही खाते हैं. मुझे नहीं पता कि यदि वो हमें ब्रेड देना बंद कर दें तो मैं क्या करूंगी."
ब्रेड फ़ैक्ट्री में काम करने वाले सालाह अहवास ने हमें बताया कि उन्होंने "ताइज़ शहर में लोगों को रात में खाना तलाशने के लिए कूड़ेदान खंगालते देखा है. उन्हें कोई पहचान न ले, इसलिए वे चेहरा ढंके हुए होते हैं."
एक आकलन के अनुसार, यमन के क़रीब 50 हज़ार लोग पहले से भुखमरी जैसे हालात का सामना कर रहे हैं. वहीं 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक और आर्थिक हल के बिना हालात और भी ख़राब होने की आशंका है.
यमन में 2014 के अंत में युद्ध शुरू हो गया. उस वक्त हूती विद्रोहियों ने देश के सबसे बड़े शहर और राजधानी सना पर क़ाबू कर लिया.
हूती आमतौर पर शिया मुसलमानों के ज़ायदी संप्रदाय से आते हैं और माना जाता है कि उनके पीछे ईरान का समर्थन है.
उन्होंने जिस सुन्नी सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया, उसका नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे. हादी ने अरब स्प्रिंग क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर क़ाबिज़ पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फ़रवरी 2012 में सत्ता छीनी थी.
देश बदलाव के दौर से गुज़र रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे. उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी दक्षिण में लामबंद हो गए.
हूतियों ने इस उथल-पुथल का फ़ायदा उठाया और ज़्यादा इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया. एक संघीय संविधान के साथ सत्ता में साझेदारी के समझौते के हादी के प्रस्ताव को ख़ारिज करते हुए उन्होंने और बड़ी मांग रखी.
दक्षिण में आज़ादी की मांग करने वाले अलगाववादी दक्षिणी सत्ता परिवर्तन परिषद (एसटीसी) ने भी ऐसा ही किया. हूतियों ने हादी को सऊदी अरब भागने पर मजबूर कर दिया, जहां इस समय वो रह रहे हैं. वह अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार के प्रमुख हैं.
लड़ाई देश के भीतर विद्रोह से आगे निकल चुकी थी और अब 'छद्म युद्ध' में बदल गई थी, जिसमें बाहरी तत्व भी शामिल थे.
मार्च 2015 में सऊदी अरब की अगुवाई में खाड़ी के ज़्यादातर सुन्नी मुस्लिम देशों के पश्चिम समर्थित गठबंधन ने देश पर ईरानी असर का ख़ात्मा करने के मक़सद से हूतियों के ख़िलाफ़ हवाई हमले शुरू कर दिए.
इस गठबंधन को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से सैन्य और ख़ुफ़िया मदद मिली. यह अलग बात है कि पिछले साल अमेरिका ने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री रोक दी. देश के कई हिस्सों में लड़ाई और हवाई हमले अब भी जारी हैं.
यमन संकट के आंकड़े डराने वाले
यमन में पिछले सात साल से ज़्यादा समय से जारी युद्ध के आधिकारिक आंकड़े इस मामले की गंभीरता को जाहिर करते हैं.
देश में युद्ध से ज़्यादा, भूख से मौतें हो रही हैं. यमन की 3 करोड़ की आबादी का क़रीब 80 फ़ीसदी हिस्सा जीने के लिए किसी न किसी मदद पर निर्भर है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर), मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओसीएचए), संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से हासिल आंकड़े यमन की भयावह स्थिति को उजागर करते हैं.
इन आंकड़ों के अनुसार, 2021 के अंत तक देश में कम से कम 377,000 लोग मारे जा चुके हैं. पिछले सात सालों से चल रहे इस युद्ध में अब तक दस हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे जा चुके हैं या ज़ख्मी हो गए हैं. इस लड़ाई के चलते वहां अब तक 40 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं.
वहीं देश के 3 करोड़ लोगों में से 1.74 करोड़ लोगों को अभी पेट भरने के लिए मदद की ज़रूरत है. अनुमान है कि इस साल के अंत तक यह गिनती बढ़कर 1.9 करोड़ हो जाएगी.
यमन के 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं, जबकि क़रीब 50 हज़ार लोग पहले से ही भुखमरी जैसे हालातों का सामना कर रहे हैं.
क्या इस संकट का कोई हल है?
यमन में शांति क़ायम करने की पिछली सभी योजनाएं नाकाम हो चुकी हैं, लेकिन समाधान तलाशने के लिए राजनयिक कोशिशें अभी भी जारी हैं.
अधिकारियों के मुताबिक़, सऊदी अरब से काम कर रही खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की योजना इस महीने हूती आंदोलन के नातओं और दूसरे यमनी दलों को बातचीत के लिए रियाद में एक साथ बैठक कराने की है.
इस किस्म की नई पहल का मक़सद संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले शांति प्रयासों को आगे बढ़ाना है. यह सम्मेलन 29 मार्च से 7 अप्रैल के बीच होना है.
हूती विद्रोहियों का कहना है कि वे सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ बातचीत का स्वागत करेंगे, बशर्ते इसका ठिकाना कोई तटस्थ देश हो. उनकी प्राथमिकता यमन के बंदरगाहों और सना हवाई अड्डे पर लगाई गई 'मनमानी' पाबंदियां हटाना है.
लेकिन वाशिंगटन के मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में यमन संघर्ष की एक विश्लेषक नदवा अल दवसारी को नहीं लगता कि ये बातचीत कामयाब होगी. वो कहती हैं, "मुझे पूरी उम्मीद है एक शांतिपूर्ण हल निकलेगा, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत जल्द नहीं होने वाला."
वो कहती हैं, "शांति के लिए कोई तैयारी नहीं है. पक्षकार सुलह को तैयार नहीं हैं. हूती इस सोच को छोड़ने वाले नहीं हैं कि उनके पास शासन करने का ख़ुदाई हक़ है. और हादी 8 साल से विदेश में हैं. संघर्ष को ख़त्म करने में उनकी दिलचस्पी नहीं है. हूतियों की तरह वो भी पैसे बना रहे हैं."
दवसारी के अनुसार, "ऐसे में आप शांति समाधान कैसे निकाल सकते हैं, जबकि इन भागीदारों को किसी भी चीज़ से ज्यादा युद्ध से फ़ायदा हो रहा है?"
सऊदी अरब ने पिछले साल मार्च में भी एक शांति योजना का प्रस्ताव रखा था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हूती और सरकार के बीच युद्ध विराम का सुझाव दिया गया था. वह भी कामयाब नहीं हुआ.
2021 में बाइडेन प्रशासन की तरफ से यमन के प्रति अमेरिकी नीति बदल देने के बाद वाशिंगटन की ओर से भी एक क़दम उठाया गया.
इसने ट्रंप प्रशासन का हूती को दिया आतंकवादी गुट का दर्जा ख़त्म कर दिया और सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन द्वारा किए जा रहे "आक्रामक अभियान" को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया.
क्या कुछ और उपाय संभव है?
यमन के लोग जीवन जीने के लिए काफ़ी हद तक मानवीय मदद पर निर्भर हैं. सहायता एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की कोशिशें दानकर्ताओं के बजट पर निर्भर करती हैं.
लेकिन दुनिया भर में तेल और खाद्य कीमतों में बढ़ोत्तरी के साथ, अधिकांश एजेंसियां अपनी योजनाओं के लिए पूरा पैसा न मिलने को लेकर फ़िक्रमंद हैं.
संयुक्त राष्ट्र को वर्ष 2020 में 3.4 अरब डॉलर की ज़रूरत का आधा ही धन मिला, जबकि बीते साल उसे 2.3 अरब डॉलर दानकर्ताओं से मिले थे. विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफ़पी) को भी यमन को खाद्य सहायता कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसके पास धन की कमी हो गई थी.
संयुक्त राष्ट्र ने 16 मार्च को दानकर्ताओं का यमन की ओर ध्यान दिलाने के लिए एक और कोशिश की. लेकिन दाता देशों से इस विशेष अपील पर संगठन 1.73 करोड़ लोगों की मदद के लिए सिर्फ 1.3 अरब डॉलर ही जुटा पाया. यह संयुक्त राष्ट्र के अनुमान का एक तिहाई है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन संकट के बीच यमन को भुला देना नहीं चाहिए.
ब्रिटेन सरकार ने पिछले साल यमन को मदद में बड़ी कटौती का एलान किया था. यमन ने कहा है कि वो इस साल 'कम से कम' 8.7 करोड़ पाउंड (11.5 करोड़ डॉलर) की मदद देगा, जो साल भर पहले के 21.5 करोड़ डॉलर से काफ़ी कम है.
डब्ल्यूएफ़पी के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने 16 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कहा, "हालात पूरी तरह तबाही भरे हैं, और अब हमारे पास धन नहीं है. हमें यूक्रेन के बच्चों से खाना छीनकर यमन के बच्चों को देने का फ़ैसला करने को विवश न करें."
चैरिटी संगठन मुस्लिम हैंड्स के यमन में निदेशक अब्दुल रहमान हुसैन का कहना है, "यूक्रेन में युद्ध निश्चित रूप से हमारी परियोजनाओं पर असर डालेगा. शायद हमें इसमें कटौती करनी पड़े."
वो चेतावनी देते हैं, "यमन में हम रोज़ाना 50,000 ब्रेड बांटते हैं. लेकिन कीमतें दोगुनी हो जाने के बाद हमें इसे जारी रखने के लिए और ज़्यादा धन की ज़रूरत होगी, नहीं तो कुछ ब्रेड कारखानों को बंद करना पड़ेगा. यूक्रेन में इस समय आफ़त आई है, तो दुनिया यमन जैसे तीसरी दुनिया के देशों से ज़्यादा यूक्रेन पर ध्यान दे रही है. लेकिन यमन को तो बीते आठ सालों से नज़रअंदाज़ किया गया है." (bbc.com)
-आमिर नातेग
"मैं जो कर रही हूं, उस पर शर्मिंदा हूं लेकिन मेरे पास विकल्प क्या है?" ये सवाल है तेहरान की तलाक़शुदा महिला निदा का.
दिन के उजाले में वह हेयरड्रेसर के तौर पर काम करती हैं लेकिन अपनी आजीविका चलाने के लिए निदा रात के अंधेरे में सेक्स वर्कर का काम करती हैं.
निदा बताती हैं, "मैं ऐसे मुल्क़ में रहती हूं जहां महिलाओं को सम्मान की नज़रों से नहीं देखा जाता है, अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, रोजमर्ऱा की ज़रूरतों के दाम हर दिन बढ़ रहे हैं. मेरा एक बच्चा भी है. बेटे की देखभाल का ज़िम्मा मेरे ऊपर है. सेक्स वर्क में पैसे अच्छे मिल जाते हैं. अब मैं डाउन टाउन में एक छोटा सा घर ख़रीदने की योजना बना रहा हूं. यह मेरी ज़िंदगी की दुखद सच्चाई है. मैं हर दिन अपनी आत्मा का सौदा करती हूं."
2012 में ईरान ने अपने देश में वेश्यावृति की समस्या पर क़ाबू पाने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की घोषणा की थी. लेकिन गैर सरकारी संगठनों और स्वतंत्र शोधकर्ताओं के मुताबिक़ इस घोषणा के बाद से देश में सेक्स इंडस्ट्री लगातार बढ़ती गयी है.
ईरान के परंपरागत धार्मिक सत्ता प्रतिष्ठान आधिकारिक तौर पर लंबे समय से देश में सेक्स वर्करों की मौजूदगी को मानने से इनकार करते आए थे.
ईरान के अधिकारियों के मुताबिक़ वेश्यावृति देश के युवाओं का ध्यान भटकाने के लिए पश्चिमी साजिश थी, इसमें शामिल होने के लिए महिलाओं पर दोषी मढ़ा गया.
गैर आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, ईरान में कम उम्र की महिलाएं सेक्स वर्क से जुड़ी हुई हैं. विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक़ 2016 में ईरान में सेक्स वर्क में 12 साल तक लड़कियां शामिल थीं.
ईरान में ड्रग्स सेवन करने वाली महिलाओं का इलाज करने वाले गैर सरकारी संगठन आफ़ताब सोसायटी ने 2019 में अनुमान ज़ाहिर किया था कि तेहरान में दस हज़ार सेक्स वर्कर सक्रिय हैं, इनमें 35 फ़ीसदी महिलाएं शादी शुदा थीं.
तेहरान यूनिवर्सिटी में सोशल वेलफेयर के प्रोफ़ेसर आमिर महमूद हारिक़ी का अनुमान है कि तेहरान में इससे दोगुनी संख्या तक महिला सेक्स वर्कर मौजूद होंगी.
ईरान में महिलाओं के लिए काम के अवसर कम होने से और लैंगिक भेदभाव की मौजूदगी के चलते कई महिलाएं ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मज़बूर हैं. ये महिलाएं अपना भरण पोषण करने के लिए सेक्स वर्क करने को मज़बूर हैं. हालांकि इस पेशे से जुड़े तमाम जोख़िम भी हैं.
तेहरान यूनिवर्सिटी की छात्रा और पार्ट टाइम सेक्स वर्क करने वाली मेहनाज़ बताती हैं, "पुरुष जानते हैं कि ईरान में वेश्यावृति गैर क़ानूनी है, इसमें लिप्त महिलाओं के लिए कड़े दंड का प्रावधान है. ऐसे में पुरुष इसे अपने फ़ायदे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं."
मेहनाज के मुताबिक़, "कई मौकों पर यह मेरे साथ भी हुआ. जब सेक्स करने के बाद भी लोगों ने पैसे नहीं दिए और मैं उनकी अधिकारियों से शिकायत भी नहीं कर सकती थी."
मेहनाज़ के मुताबिक तेहरान में रहना बेहद ख़र्चीला होता जा रहा है और कोई भी दूसरा काम करके वह शहर में अपने रहने का ख़र्च नहीं उठा सकती हैं.
ईरान की 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद नए शासन के दौरान कई सेक्स वर्करों को फांसी दे दी गई थी, कई वेश्यालय बंद हो गए थे. इस दौरान सेक्स के लिए महिलाओं के इस्तेमाल को वैधता देने के लिए ईरान में ज़ावाज़ अल-मुता या आनंद के लिए शादी का चलन बहुत बढ़ गया,
इस चलन के मुताबिक़, महिलाएं एक निश्चित समय के लिए निश्चित रकम के बदले अस्थायी तौर पर किसी पुरुष की पत्नी बनती हैं.
ईरान की शिया इस्लामी व्यवस्था के तहत मुता विवाह की अनुमति है और इसे वेश्यावृति नहीं माना जाता है. यह चलन मशहाद और क्योम जैसे धार्मिक शहरों में भी व्याप्त है, जहां दुनिया भर से शिया समुदाय के लोग धार्मिक वजहों से पहुंचते हैं.
सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज मौजूद हैं जिससे यह ज़ाहिर होता है कि ईरानी पुरुष मशहाद में सेक्स की मांग कर रहे हैं जबकि अधिकारी यह कह रहे हैं कि वे केवल अस्थायी विवाह कर सकते हैं.
अब, ढेरों ऑनलाइन सर्विसेज़ हैं जो ईरान में मुता विवाह कराने की सेवा देते हैं. यह सेवा टेलीग्राम और व्हाट्सऐप पर भी मौजूद है और यह सेवा मुहैया कराने वाले समूहों का दावा है कि उन्हें सरकार की अनुमति मिली हुई है.
वैसे ईरान में खाने पीने की चीज़ों के बढ़ते दामों की वजह से भी वेश्यावृति बढ़ी है. खाने पीने की चीज़ों के बढ़ते दामों की एक वजह ईरान के आण्विक कार्यक्रम के चलते अमेरिकी आर्थिक पाबंदी है. बीते साल से अब तक ईरान में महंगाई दर 48.6% बढ़ चुकी है.
ईरान में बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है और जो लोग नौकरियों में हैं, उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं मिल रहा है.
देश की मौजूदा स्थिति के परिपेक्ष्य में, 20 से 35 साल के ऐसे पुरुषों की संख्या भी बढ़ी है जो पैसों के बदले महिलाओं से सेक्स संबंध बनाने को तैयार है. ईरान के प्रमुख शहरों में पुरुष सेक्स वर्करों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.
28 साल के कामयार ऐसे ही युवा हैं. सुपरमार्केट में कैशियर का काम करने वाले कामयार बीते साल तक माता-पिता के साथ रह रहे थे क्योंकि वे अपना ख़र्च उठाने की स्थिति में नहीं थे. लेकिन अब वे सेंट्रल तेहरान में किराए के अपार्टमेंट में रहते हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे एक दिन विदेश निकल जाएंगे.
उन्होंने बताया, "सोशल मीडिया के ज़रिए मुझे मेरे ग्राहक मिलते हैं. ये महिलाएं 30 से 40 साल के उम्र की हैं. एक बार तो 54 साल की महिला भी मेरी ग्राहक थीं. ये लोग मेरा अच्छा ख़्याल रखते हैं, अच्छे पैसे देते हैं और हमेशा रात में अपने यहां सुलाते हैं. माउथ पब्लिसिटी के ज़रिए मेरे कई ग्राहक हैं."
कामयार एक प्रशिक्षित इंजीनियर हैं लेकिन उन्हें लगता है कि जिस फ़ील्ड से उन्हें मोहब्बत रही, उसमें कोई भविष्य नहीं है.
वे कहते हैं, "मैं हमेशा इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन मेरे लिए कोई नौकरी नहीं है. मैं एक लड़की से मोहब्बत करता था. लेकिन मैं उससे शादी नहीं कर सका क्योंकि मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी. मैं अब जो कर रहा हूं, उस पर गर्व नहीं है मुझे. पैसों के लिए किसी अजनबी के साथ सोना, मेरा सपना नहीं है. मैं शर्मिंदा भी हूं, लेकिन मुझे अपना ख़र्च भी चलाना है. मैं एक ऐसे देश में हूं जहां भविष्य के लिए दुख ही एकमात्र चीज़ है जिसकी मैं कल्पना करता हूं." (bbc.com)
(पहचान छिपाने के लिए सेक्स वर्क में लिप्त लोगों के नाम बदल दिए गए हैं.)
श्रीलंका ईंधन संकट के दौर से गुज़र रहा है. यहां पेट्रोल और केरोसिन तेल के लिए लोग लंबी लाइनें लगा रहे हैं.
रविवार को दो अलग-अलग शहरों में ऐसी ही लाइनों में खड़े दो बुजुर्ग जमीन पर गिर पड़े और उनकी मौत हो गई.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने श्रीलंकाई पुलिस के हवाले से ख़बर दी है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में पेट्रोल और केरोसिन के लिए लाइन में लगे दो बुज़ुर्गों की मौत हो गई. दोनों की उम्र सत्तर साल से अधिक थी.
पुलिस प्रवक्ता नलिन थालडुवा ने कहा कि इनमें से एक बुजुर्ग ऑटोड्राइवर थे. वह डाइबिटीज और दिल की बीमारी से जूझ रहे थे. जबकि दूसरे बुजुर्ग की उम्र 72 साल थी. दोनों काफी देर से लाइन में खड़े थे.
श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति बेहद कमज़ोर हो गई. लिहाज़ा पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के आयात में उसे मुश्किल आ रही है. इसी कारण देश में पेट्रोल, केरोसिन और गैस की भारी किल्लत हो गई.
पेट्रोल पंपों पर लोगों की लंबी कतारें लग रही हैं और घंटों बिजली कटौती हो रही है.
श्रीलंका की आर्थिक हालत इतनी गंभीर है कि कागज़ और प्रिंटिंग के लिए स्याही खरीदने के पैसे न होने की वजह से स्कूली छात्रों की परीक्षा तक रद्द करनी पड़ी है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़ कोविड की वजह से पर्यटन पर आधारित श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है.
भारत ने श्रीलंका को खाद्य उत्पादों, दवाओं और दूसरी जरूरी चीजें खरीदने के लिए एक अरब डॉलर की ऋण सुविधा देने का फैसला किया है.
श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे इसके लिए हाल में भारत आए थे. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन देने समेत आर्थिक और सामाजिक मामलों में हर तरह की मदद का भरोसा दिया है. (bbc.com)
यूक्रेन पर रूसी हमले के 24 दिन हो चुके हैं. पूरी दुनिया की निगाहें इस वक़्त मारियुपोल और ज़पोरजिया और यूक्रेन के दूसरे शहरों पर हैं, जहां रूसी हमले लगातार तेज हो रहे हैं.
लेकिन यूक्रेनी सांसद किरा रुदिक ने चेतावनी दी है कि इस बीच रूसी सेना अगले कुछ दिनों के भीतर राजधानी कीएव पर कब्ज़े की एक और कोशिश कर सकती है.
रुदिक यूक्रेन में विपक्षी दल गोलोस पार्टी की नेता हैं. बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि लोग कीएव में नए रूसी हमलों का मुक़ाबला करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ''कीएव में लगातार बमबारी हो रही है. पिछले तीन दिनों में हमने चार मकानों को रूसी मिसाइलों से ध्वस्त होते देखा है. हमें लगता है कि अगले सप्ताह रूस शहर में घुसने की एक और कोशिश करेगा. ''
रुदिक ने कहा, '' पिछली बार उसके सैनिक इसमें नाकाम रहे थे. शहर के बाहरी इलाक़ों से उनका हमला लगातार जारी है. लेकिन हमारी सेना रूसी सेना को पीछे धकेल रही है. अभी तक कीएव के लोग ठीक हैं. हर दिन हम जीत रहे हैं.
'' हम आगे के लिए लगातार तैयारी कर रहे हैं. हम ज्यादा खाना और पानी इकट्ठा कर रहे हैं. हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारी रक्षा तैयारी और मज़बूत बने. ''
उन्होंने कहा कि युद्ध ने देश में लोकतंत्र से जुड़े काम को ख़त्म नहीं किया है. यूक्रेन और इसके संसद का काम जारी है. क़ानूनों पर काम लगातार जारी है. (bbc.com)
यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों का कहना है कि उनकी सेना ने 14,700 रूसी सैनिकों को मारा है.
यूक्रेन पर रूस के हमले का 25 वां दिन चल रहा है. यूक्रेनी शहर मारियुपोल, जपोरजिया और राजधानी कीएव में भीषण लड़ाई जारी है.
यूक्रेन के सेनाप्रमुख के स्टाफ की ओर से किए गए एक फेसबुक अपडेट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि यूक्रेनी सेना ने 25 दिनों की लड़ाई में रूस के 14,700 सैनिकों को मार दिया है.
इस अपडेट में यह भी दावा किया गया है कि यूक्रेनी सेना ने बड़ी तादाद में रूसी सेना के साजोसामान भी नष्ट किए हैं. इनमें 476 टैंक और 200 से ज्यादा लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन शामिल हैं. इसके अलावा हथियार ले जा जाने वाले 1487 वाहन भी ध्वस्त किए गए हैं.
हालांकि बीबीसी इनकी पुष्टि नहीं कर सका है. पश्चिमी देशों के सूत्रों का कहना है कि अब तक की लड़ाई में रूसी सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
अमेरिकी रक्षा सूत्रों का आकलन है कि अब तक की लड़ाई में कम से कम 7000 रूसी सैनिक मारे गए हैं और 21 हजार घायल हुए हैं. (bbc.com)
दक्षिणी बेल्जियम में एक कार के भीड़ पर चढ़ने से कम से कम छह लोगों की मौत हो गई है. ये घटना राजधानी ब्रसेल्स से क़रीब पचास किलोमीटर दूर एक छोटे क़स्बे में हुई है.
क़रीब 60 लोग रविवार को एक कार्निवाल में शामिल होने की तैयारी कर रहे थे, जब उन पर तेज़ रफ़्तार कार चढ़ गई.
पुलिस के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया है कि इस हादसे में कई लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.
इस घटना की परिस्थितियों की जांच की जा रही है लेकिन पुलिस का कहना है कि ये एक आतंकवादी घटना नहीं है.
पुलिस की प्रवक्ता क्रिस्टीना इयानोको ने कहा, "ये एक हादसा है, एक दुखद हादसा. कार लोगों पर चढ़ गई और आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उसे तुरंत रोक लिया."
पुलिस के मुताबिक़ कार के ड्राइवर और अन्य सवारों को हिरासत में रखा गया है. पुलिस ने बेल्जियम मीडिया में आई उन रिपोर्टों का खंडन किया है जिनमें दावा किया गया था कि ये हादसा पुलिस के कार का पीछा करने के दौरान हुआ है.
बेल्जियम की गृह मंत्री एनेलीज वेरलिंडेन ने ट्विटर पर लिखा, "आज सुबह हुए हादसे में मारे गए और घायल लोगों के परिजनों के लिए मेरी गहरी संवेदनाएं हैं. एक शानदार पार्टी होनी थी लेकिन वो दुखद हादसे में बदल गई. हम हालात पर नज़र रखे हुए हैं." (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूसी सेना के मारियुपोल शहर के घेराव को 'भयंकर घटना' कहा है जिसे 'आने वाली कई सदियों तक याद रखा जाएगा'.
ताज़ा घटना में मारियुपोल शहर के प्रशासन ने कहा है कि रूसी सेना ने एक स्कूल पर बमबारी की है. इस स्कूल में क़रीब 400 लोग पनाह लिए हुए थे, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे.
उन्होंने कहा, "मारियुपोल को घेरकर रखना इतिहास में युद्ध अपराध के तौर पर दर्ज किया जाएगा. ये एक शांतिपूर्ण शहर था, इसपर हमला करने वाले जो कर रहे हैं उसे सदियों तक याद रखा जाएगा. यूक्रेन के लोग इसके बारे में जितना अधिक दुनिया को बताएंगे, उतना ही हमें समर्थन मिलेगा. यूक्रेन में रूस जितनी अधिक हिंसा करेगा, उसके लिए इसका परिणाम उतना ही बुरा होगा."
इससे पहले मारियुपोल के मेयर वेदिम बॉयशेन्को ने कहा था कि शहर से हज़ारों लोगों को जबरन रूस ले जाया जा रहा है.
हालांकि उनके इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है.
मिल रही रिपोर्टों के अनुसार रूस की तरफ से लगातार हो रही बमबारी के बीच शहर में अभी भी क़रीब तीन लाख लोग फंसे हुए हैं. जो लोग किसी तरह यहां से निकलने में कामयाब हुए हैं, उनका कहना है कि यहां कि गलियों में लाशें बिखरी हुई हैं.
यूक्रेन के मारियुपोल शहर के एक स्टील प्लांट में भारी विस्फोट की ख़बरों के बाद यूक्रेनी सांसदों ने कहा है कि अज़ोव्स्ताल नाम की यह फैक्ट्री पूरी तरह ध्वस्त हो गई है.
उन्होंने कहा कि रूसी बमबारी की वजह से इसकी यह हालत हुई है. यह यूरोप के सबसे सबसे बड़ी स्टील संयंत्रों में से एक है.
अजोवस्तोल के डायरेक्टर जनरल ने टेलीग्राम पर बताया कि फैक्टरी को निशाना बनाया गया है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि इसे कितना नुकसान हुआ है.
उन्होंने कहा कि युद्ध शुरू होने के साथ ही फैक्टरी के कामगारों ने सुरक्षा उपाय अपनाने शुरू कर दिए था ताकि यह यहां रहने वालों के लिए खतरा न बने.
यह स्टील प्लांट मारियुपोल की अहम परिसंपत्तियों में शामिल है. बीते कई दिनों से रूसी सेना इस शहर को कब्जे में लेने के लिए हमले दर हमले कर रही है.
मारियुपोल छोटा शहर है लेकिन रणनीतिक लिहाज से यह यूक्रेन और रूस दोनों के लिए काफी अहम है. मारियुपोल पर कब्ज़ा होने से यहां से पूर्वी क्षेत्र के शहरों दोनेत्स्क और लुहांस्क को क्राइमिया से सड़क मार्ग के ज़रिए जोड़ा जा सकेगा.
दोनेत्स्क और लुहांस्क शहरों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्ज़ा है. माना जा रहा है कि मारियुपोल पर कब्ज़े के बाद यह क्राइमिया से भी जुड़ जाएगा. रूस ने 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने कब्ज़े में ले लिया था. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमार ज़ेलेन्स्की ने स्विट्ज़रलैंड में वीडियो लिंक के ज़रिए एक स्पीच दी है जिसमें उन्होंने स्विट्ज़रलैंड की कुछ कंपनियों की आलोचना की है.
स्विट्ज़रलैंड के संसद के सामने वीडियो के ज़रिए एक रैली को संबोधित करते हुए ज़ेलेन्स्की ने कहा कुछ कंपनियों ने रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाए हुए हैं. उन्होंने ख़ासकर नेस्ले पर निशाना साधा.
इसके उत्तर में नेस्ले ने कहा है कि उसने रूस में अपना व्यापार काफी हद तक कम कर दिया है लेकिन उसने ये फ़ैसला किया है कि वो रूसी लोगों को ज़रूरी खाने-पीने के सामान की सप्लाई जारी रखेगा और वहां मौजूद अपने कर्मचारियों की मदद करना जारी रखेगा.
हालांकि कंपनी ने ये भी कहा कि रूस से उसके मौजूदा काम से उसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है, वो देश में और निवेश नहीं कर रहा है और न ही अपने उत्पादों को बेचने के लिए प्रोमोशन कर रहा है.
राष्ट्रपति ज़ेलेस्न्की ने स्विस बैंकों से भी अपील की कि वो अपने पास जमा रूस के रईसों का पैसा फ्रीज़ करें. उन्होंने दावा किया कि जिन लोगों ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा है उनका पैसा इन बैंकों की तिजोरी में है.
स्विट्ज़रलैंड में हुई इस रैली में हज़ारों लोगों ने शिरकत की. देश के राष्ट्रपति इग्नाज़ियो कैसिस भी इस दौरान स्टेज पर एक बैनर लिए खड़े नज़र आए. इस पर लिखा था- 'हम यूक्रेन के साथ हैं, युद्ध तुंरत रुकना चाहिए.' (bbc.com)
मास्को, 20 मार्च। रूस की सेना ने कहा है कि उसने लंबी दूरी की हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों से यूक्रेनी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है।
रूस के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मेजर जनरल इगोर कोनाशेनकोव ने रविवार को कहा कि किंझाल हाइपरसोनिक मिसाइल ने काला सागर तट पर मायकोलेव बंदरगाह के पास कोस्तियनतिनिवका में यूक्रेन के ईंधन डिपो पर हमला किया।
लगातार दूसरे दिन रूस ने किंझाल मिसाइल का इस्तेमाल किया। यह मिसाइल ध्वनि से 10 गुना अधिक गति से 2,000 किलोमीटर दूर लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। एक दिन पहले रूसी सेना ने कहा था कि पश्चिमी यूक्रेन के कार्पेथियन में डिलियाटिन के आयुध डिपो को नष्ट करने के लिए किंझाल का पहली बार युद्ध में इस्तेमाल किया गया।
कोनाशेनकोव ने उल्लेख किया कि कैस्पियन सागर से रूसी युद्धपोतों द्वारा छोड़ी गई कलिब्र क्रूज मिसाइलें भी कोस्तियनतिनिवका में ईंधन डिपो पर हमले में शामिल थीं। उन्होंने कहा कि काला सागर से दागी गई कैलिबर मिसाइल का इस्तेमाल उत्तरी यूक्रेन के चेर्निहाइव क्षेत्र के निजिन में बख्तरबंद उपकरणों के मरम्मत संयंत्र को नष्ट करने के लिए किया गया।
कोनाशेनकोव ने कहा कि मिसाइलों द्वारा एक और हमले ने उत्तरी जाइटॉमिर क्षेत्र में ओव्रुच में एक यूक्रेनी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाया। (एपी)
ल्वीव (यूक्रेन), 20 मार्च। रूसी सेना से चारों ओर से घिरे और युद्ध से सबसे अधिक प्रभावित यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल में रूस के सैनिक और भीतरी क्षेत्र तक प्रवेश कर गए हैं। मारियुपोल में भीषण लड़ाई के कारण एक प्रमुख इस्पात संयंत्र को बंद कर दिया गया है और स्थानीय अधिकारियों ने पश्चिमी देशों से और अधिक मदद की गुहार लगाई है।
मारियुपोल के पुलिस अधिकारी माइकल वर्शनिन ने पश्चिमी नेताओं को संबोधित एक वीडियो में आस पास सड़क पर मलबे बिखरे दृश्य को दिखाते हुए कहा, ‘‘बच्चे, बुजुर्ग मर रहे हैं। शहर को नष्ट कर दिया गया है और धरती से इसका नामो निशान मिटा दिया गया है।’’
‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ से यूक्रेन के एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि पिछले दिनों दक्षिणी शहर मायकोलाइव में हुए एक रॉकेट हमले को लेकर जानकारी भी सामने आनी शुरू हो गई है, जिसमें 40 नौसैनिक मारे गए थे।
रूसी सेनाओं ने पहले ही मारियुपोल का संपर्क अजोव सागर से काट दिया है। यूक्रेन के गृह मंत्री के सलाहकार वादिम देनिसेंको ने कहा कि यूक्रेन और रूसी सेना ने मारियुपोल में अजोवस्टल लौह संयंत्र को लेकर लड़ाई लड़ी। देनिसेंको ने टेलीविजन पर कहा, ‘‘यूरोप में सबसे बड़े धातुकर्म संयंत्रों में से एक वास्तव में नष्ट हो रहा है।’’
मारियुपोल नगर परिषद ने इसके कुछ समय बाद दावा किया कि रूसी सैनिकों ने शहर के हजारों निवासियों ज्यादातर महिलाओं और बच्चों को रूस में जबरन स्थानांतरित कर दिया। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि लोगों को कहां ले जाया गया और ‘एपी’ इस दावे की तुरंत पुष्टि नहीं कर सकता।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के सलाहकार ओलेक्सी एरेस्टोविच ने कहा कि मारियुपोल की सहायता करने वाली नजदीकी सेना पहले से ही ‘‘दुश्मन की भारी ताकत’’ के विरुद्ध संघर्ष कर रही थी और ‘‘वर्तमान में मारियुपोल का कोई सैन्य समाधान नहीं है।’’
जेलेंस्की ने रविवार तड़के कहा कि मारियुपोल की घेराबंदी इतिहास में रूसी सैनिकों द्वारा किए गए युद्ध अपराध के रूप में दर्ज होगी।
युद्ध में रूसी सैनिकों की मौत के आंकड़े में भिन्नता है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक इस युद्ध में रूस के हजारों सैनिक मारे गए हैं। 2008 में जॉर्जिया के साथ युद्ध के दौरान पांच दिनों की लड़ाई में रूस के 64 सैनिकों की जान गई थी। अफगानिस्तान में 10 वर्षों में लगभग 15,000 और चेचन्या में लड़ाई के वर्षों में 11,000 से अधिक रूसी सैनिक मारे गए।
रूसी सेना ने शनिवार को कहा कि उसने युद्ध में पहली बार अपनी नवीनतम हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया। मेजर जनरल इगोर कोनाशेनकोव ने कहा कि किंजल मिसाइलों ने इवानो-फ्रैंकिवस्क के पश्चिमी क्षेत्र में यूक्रेन की मिसाइलों और विमान से दागे जाने वाले गोला-बारूद के एक भूमिगत गोदाम को नष्ट कर दिया।
हालांकि, अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने कहा कि अमेरिका हाइपरसोनिक मिसाइल के इस्तेमाल की पुष्टि नहीं कर सकता। युद्ध शुरू होने के बाद से संयुक्त राष्ट्र के संगठनों ने 847 से अधिक नागरिकों की मौत की पुष्टि की है, हालांकि वे मानते हैं कि वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 33 लाख से अधिक लोग यूक्रेन से पलायन कर गए हैं। (एपी)
(हरिंदर मिश्रा)
यरुशलम, 20 मार्च। इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने भारत-इजरायल संबंधों को परस्पर ‘‘सराहना और सार्थक सहयोग’’ पर आधारित बताते हुए कहा कि वह दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर अप्रैल के पहले सप्ताह में भारत का दौरा करेंगे।
इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नवाचार और प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और साइबर और कृषि एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करना है।
इजरायल के प्रधानमंत्री के विदेश मीडिया सलाहकार ने एक बयान में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर शनिवार, दो अप्रैल 2022 को भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा करेंगे।’’
बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं की मुलाकात पिछले वर्ष अक्टूबर में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी26) से इतर हुई थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के अपने समकक्ष बेनेट को भारत की आधिकारिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था।
यह यात्रा दोनों देशों और नेताओं के बीच महत्वपूर्ण संबंध की पुष्टि करेगी तथा इजरायल और भारत के बीच संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर होगी।
सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यह दो से पांच अप्रैल तक चार दिवसीय दौरा होगा।
मीडिया सलाहकार ने कहा, ‘‘यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रणनीतिक गठबंधन को आगे बढ़ाना और मजबूत करना एवं द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करना है। इसके अलावा, दोनों नेता नवाचार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान एवं विकास, कृषि तथा अन्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा करेंगे।’’
बेनेट अपनी यात्रा के दौरान अपने भारतीय समकक्ष, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और स्थानीय यहूदी समुदाय के लोगों से भी मुलाकात करेंगे। बयान में कहा गया है कि यात्रा का पूरा कार्यक्रम और अतिरिक्त विवरण अलग से जारी किया जाएगा।
बेनेट ने प्रेस बयान में कहा, ‘‘मैं अपने मित्र, प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा को लेकर खुश हूं और साथ में हम अपने अपने देशों के संबंधों को आगे की दिशा में बढ़ाते रहेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मोदी ने भारत और इजराइल के बीच संबंधों की फिर से शुरुआत की और इसका ऐतिहासिक महत्व है। हमारी दो अनूठी संस्कृतियों - भारतीय संस्कृति और यहूदी संस्कृति के बीच संबंध गहरे हैं और वे अगाध सराहना एवं सार्थक सहयोग पर आधारित हैं।’’
इजरायल के प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘हम भारतीयों से कई चीजें सीख सकते हैं और यही हम करने का प्रयास करते हैं। साथ में हम नवाचार और प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और साइबर, कृषि और जलवायु परिवर्तन के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग का विस्तार करेंगे।’’ (भाषा)
नयी दिल्ली, 19 मार्च। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शनिवार को यूक्रेन पर रूस के हमले को ‘बहुत गंभीर’ मामला करार देते हुए कहा कि इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की जड़े ‘हिल’ गई हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि बल के प्रयोग से किसी भी क्षेत्र में यथास्थिति को बदलने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री किशिदा ने यह टिप्पणी 14वीं भारत-जापान शिखर वार्ता के बाद मीडिया से संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में की।
सम्मेलन के बाद यहां जारी संयुक्त बयान में मोदी और किशिदा ने यूक्रेन में हिंसा को तत्काल रोकने का आह्वान किया और विवाद का समाधान बातचीत के जरिये निकालने पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया।
बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने संघर्ष पर गंभीर चिंता जताई और खासतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर इसके वृहद असर का आकलन किया। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने यूक्रेन में मानवीय संकट पर भी चर्चा की।
मोदी के साथ 14वें भारत-जापान शिखर सम्मेलन के तहत बातचीत करने के बाद किशिदा ने मीडिया से कहा, ‘‘मैंने मोदी से कहा है कि एकतरफा तरीके से बल के जरिये यथास्थिति को बदलने की कोशिश को किसी भी क्षेत्र में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हम दोनों सभी विवादों का अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने की जरूरत पर सहमत हुए हैं।’’
किशिदा ने संवादाताओं से कहा, ‘‘हमने यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा की। यूक्रेन पर रूस का हमला गंभीर मुद्दा है और इसने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की जड़े हिला दी हैं। हमें इस मामले को ‘मजबूत संकल्प’ के साथ देखने की जरूरत है।’’
वहीं, मोदी ने अपने संबोधन में प्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन पर रूस के हमले का उल्लेख नहीं किया लेकिन भू-राजनीतिक घटनाओं का संदर्भ दिया जिससे नयी चुनौती पैदा हो रही है।
देर रात संवाददाताओं से बातचीत में जापान की प्रेस सचिव हिकारिको ओने ने कहा कि बातचीत के दौरान यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर लंबी चर्चा हुई और जापानी प्रधानमंत्री ने मॉस्को की कार्रवाई के खिलाफ ‘गंभीर निंदा’ को दोहराया और इसे ‘घृणित’ करार दिया।
हिकारिको ने कहा, ‘‘किशिदा हिरोशिमा से हैं जहां पर परमाणु बम गिराया गया था। उन्होंने कहा कि कोई भी परमाणु खतरा बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि किशिदा ने मोदी से पुतिन पर दबाव बनाने को कहा, ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को मुक्त और खुला बनाए रखा जा सके।
हिकारिको ने कहा कि किशिदा और मोदी चार बिंदुओ पर सहमत हुए जिनमें दुनिया में कहीं भी बल के आधार पर यथास्थिति को बदलने की कोशिश को स्वीकार नहीं करने और विवाद का शांतिपूर्ण समाधान तलाशना शामिल है।
उन्होंने कहा कि दोनों नेता ‘गतिरोध को तोड़ने’ के लिए तत्काल हिंसा को बंद करने का आह्वान करने और यूक्रेन एवं उसके पड़ोसी देशों का समर्थन करने पर सहमत हुए हैं।
भारत द्वारा रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल खरीदने के सवाल पर प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हमें इस खबर की जानकारी है। सम्मेलन में किशिदा ने जापान का रुख रखा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर (यूक्रेन संकट से निपटने के लिए) कदम उठाना चाहिए।’’
चीन की बढ़ती हठधर्मिता पर जापान की प्रेस सचिव ने कहा कि मोदी और किशिदा पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में एकतरफा तरीके से बल के आधार पर यथास्थिति बदलने की किसी भी कोशिश को मजबूती से विरोध करने पर सहमत हुए।
दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘दोनों प्रधानमंत्रियों ने यूक्रेन में चल रहे संघर्ष और मानवीय संकट पर गंभीर चिंता जताई और वृहद असर का आकलन किया, खासतौर पर हिंद प्रशांत क्षेत्र में।
बयान में कहा गया, ‘‘उन्होंने समसमायिक विश्व व्यवस्था को संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान के आधार पर बनाने पर जोर दिया।’’
बयान के अनुसार दोनों नेताओं ने प्रतिबद्धता जतायी कि यूक्रेन में उत्पन्न मानवीय संकट से निपटने के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे। (भाषा)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 20 मार्च । अमेरिका के एक सिख संगठन ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में 400 वनक्षेत्र विकसित करने की घोषणा की है।
सिख पर्यावरण दिवस (एसईडी) के अवसर पर की गई घोषणा के अनुसार, सिख संगठन ‘इकोसिख’ ने कहा कि उसने आयरलैंड में 1150 पेड़ और ब्रिटेन के डर्बीशायर में 500 पेड़ लगाए हैं।
इसके अलावा कनाडा के सरे में 250 पेड़ों वाला वनक्षेत्र विकसित किया गया है।
‘इकोसिख’ ने अपनी परियोजनाओं में स्थानीय सरकारों और गुरुद्वारों से सहयोग लिया। संगठन ने शनिवार को एक बयान में कहा कि इन वनों को ‘गुरु नानक पवित्र वन’ कहा जाता है, जिसका नाम सिख धर्म के संस्थापक के नाम पर रखा गया है। यह अभियान 2019 में शुरू हुआ था, जब सिखों ने गुरु नानक का 550वां प्रकाश पर्व मनाया था।
इकोसिख (यूएसए) के संस्थापक और वैश्विक अध्यक्ष रजवंत सिंह ने कहा, ‘‘पवित्र वन परियोजना एक समुदाय आधारित पहल बन गई है और दुनिया भर में सैकड़ों लोग इस अभियान में शामिल हो गए हैं। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए एक ठोस कदम है और अच्छी खबर यह है कि लगाए गए सभी पेड़ जीवित हैं।’’
उन्होंने कहा कि पिछले 36 महीनों में इकोसिख ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और जम्मू सहित पूरे भारत में कई राज्यों में वनक्षेत्र विकसित किए हैं। प्रत्येक जंगल में देशी प्रजातियों के 550 पेड़ हैं। उन्होंने कहा कि ये जंगल जापानी मियावाकी पद्धति का पालन करते हुए बनाए गए हैं और पूरे पंजाब और भारत में गूगल मैप्स पर टैग किए गए हैं।
हर साल एसईडी के अवसर पर दुनिया भर में सैकड़ों सिख संस्थान और गुरुद्वारे कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा पानी और ऊर्जा बचाने की दिशा में कदम उठाते हैं। (भाषा)
रूसी घेराबंदी में फंसे मारियुपोल शहर के मेयर का कहना है कि बमबारी का शिकार हुए थिएटर के मलबे में फंसे लोगों को निकालना शहर में जारी भीषण लड़ाई की वजह से मुश्किल हो गया है.
वादिन बॉयशेंको ने बीबीसी से कहा है कि जब लड़ाई थमती है तब ही राहत और बचाव दल मलबा हटा पाते हैं.
यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि थिएटर स्थल को स्पष्ट रूप से नागरिक ठिकाना बताया गया था, बावजूद इसके रूस ने इस पर बमबारी की. रूस ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.
रूस की सेनाओं ने मारियुपोल की घेराबंदी कर रखी है. शहर में बिजली, पानी और गैस की आपूर्ति बंद हो गई है.
रूस ने शहर के लिए मानवीय मदद का रास्ता भी रोक दिया है. अभी भी शहर में क़रीब तीन लाख लोग हैं.
यूक्रेन के मुताबिक रूस ने अस्पताल, चर्च और अनगिनत रिहायशी इमारतों पर हमले किए हैं. स्थानीय अधिकारियों का अनुमान है कि शहर की 80 फ़ीसदी इमारतों या तो पूरी तरह तबाह हो गई हैं या उन्हें इतना नुक़सान हुआ है कि ठीक नहीं किया जा सकता है.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से सबसे भीषण लड़ाइयां मारियुपोल शहर के इर्द-गिर्द ही हुई हैं.
अजोव सागर के तट पर बसा ये बंदरगाह शहर यूक्रेन के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम हैं.
यदि रूस इस पर क़ब्ज़ा कर लेता है तो वह रूस समर्थित अलगाववादी लड़ाकों के नियंत्रण वाले पूर्वी क्षेत्रों दोनेस्त्सक और लुहांस्क और रूस के नियंत्रण वाले क्राइमिया के बीच सड़क मार्ग स्थापित कर पाएगा. रूस ने साल 2014 में क्राइमिया पर नियंत्रण कर लिया था.
शुक्रवार को अपने एक बयान में रूस ने कहा था कि मारियुपोल के इर्द-गिर्द फंदा कस रहा है. वहीं बॉयशेंको का कहना है कि शहर के भीतर टैंक हैं और भारी तोपखानों से गोलीबारी की जा रही है और हर तरह के भारी हथियार यहां मौजूद हैं. बॉयशेंको का बयान रूस के दावे की पुष्टि करता है.
शहर से संपर्क भी मुश्किल हो गया हैं. यहां फ़ोन नेटवर्क दिन में कुछ घंटों के लिए ही चल पा रहे हैं. रूस की लगातार बमबारी के बीच आम नागरिक बेसमेंटों या घरों के भीतर ही रह रहे हैं. वो बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
इससे पहले दिए एक साक्षात्कार में बॉयशेंको ने बताया था कि शहर का केंद्रीय इलाक़ा पूरी तरह बर्बाद हो गया है.
उन्होंने कहा था, "शहर के भीतर कोई छोटे से छोटा इलाक़ा भी ऐसा नहीं है जिस पर युद्ध के निशान ना हों."
बॉयशेंको ने बताया, "भीषण लड़ाई की वजह से बर्बाद हुए थिएटर का मलबा हटाना बेहद ख़तरनाक़ हो गया है. बुधवार को हुए हमले के बाद से मलबे में अभी भी लोग फंसे हुए हैं."
उन्होंने बताया, "जब कुछ देर के लिए शांति होती है तब मलबा हटाया जाता है और लोगों को बाहर निकाला जाता है."
ये थिएटर सोवियत युग की एक विशाल इमारत था. सेटेलाइट तस्वीरों में थिएटर के बाहर रूसी भाषा में 'बच्चे' लिखा हुआ था जो ये बताने के लिए था कि इस इमारत का इस्तेमाल शरण लेने के लिए किया जा रहा है.
इमारत के भीतर फंसे हुए अधिकतर लोग बुज़ुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं जो अंधेरे कमरों में छुपे थे.
शनिवार को जारी एक वीडियो में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि बाहर निकाले गए कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हैं, अभी तक हमले में हुई मौतों के बारे में जानकारी नहीं है.
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूस ने घेराबंदी में फंसे शहरों के लिए मानवीय मदद रोककर युद्ध अपराध किए हैं. उन्होंने कहा, "ये पूरी तरह से जानबूझकर अपनाई जा रही रणनीति है. उनके (रूसी सेना) के पास स्पष्ट आदेश हैं कि यूक्रेन में किसी भी तरह से मानवीय त्रास्दी पैदा करें ताकि यूक्रेन के लोग कब्ज़ाधारियों के साथ सहयोग करें."
मारियुपोल के अधिकारियों का कहना है कि अब तक की लड़ाई में शहर में कम से कम ढाई हज़ार लोग मारे जा चुके हैं. हालांकि उनका ये भी कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है. मारे गए बहुत से लोगों की लाशों को ख़तरे की वजह से नहीं उठाया जा रहा है. बहुत से लोगों को सामूहिक क़ब्रों में दफ़न किया गया है.
बॉयशेंको का कहना है कि अब तक चालीस हज़ार लोग शहर छोड़ चुके हैं जबकि बीस हज़ार लोग शहर से सुरक्षित निकाले जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. आम नागरिक निजी वाहनों में शहर छोड़कर जा रहे हैं.
उनका कहना है कि मानवीय रास्ता बनाने के प्रयास नाकाम हुए हैं. यूक्रेन का आरोप है कि रूस ने संघर्ष विराम पर सहमत होने के बावजूद मारियुपोल पर हमले जारी रखे हैं.(bbc.com)
-कैथरीन स्नोडेन और लॉरेन टर्नर
पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन और सर जॉन मेजर चाहते हैं कि यूक्रेन में व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई की जांच के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया जाना चाहिए.
दुनिया भर के 140 से अधिक राजनेताओं, अधिवक्ताओं और शिक्षाविदों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं. इसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद नाज़ी युद्ध अपराधियों की जांच के लिए गठित नूरमबर्ग अदालत की तरह ही क़ानूनी व्यवस्था बनाकर यूक्रेन पर हमले की जांच की मांग की गई है.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय पहले से ही यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों के लिए पुतिन की जांच कर रहा है.
लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि आईसीसी की शक्तियां सीमित हैं.
आईसीसी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के अनुमोदन के बिना आक्रमण के अपराध की जांच नहीं कर सकता है और रूस सुरक्षा परिषद में वीटो कर सकता है.
पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने बीबीसी से कहा है कि बर्लिन की दीवार के पतन के बाद से हम ये मानकर चल रहे थे कि लोकतंत्र और क़ानून का शासन हमेशा रहेगा. लेकिन पुतिन शक्ति के दम पर इसमें बदलाव कर रहे हैं.
उन्होंने रेडियो 4 के टुडे प्रोग्राम से बात करते हुए कहा, "अगर हमने अभी संदेश नहीं दिया तब हमें दूसरे देशों में भी आक्रामकता देखनी होगी."
जब उनसे पूछा गया कि क्या वो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी मानते हैं तो उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति बाइडन ने भी ऐसा ही कहा है और यही मेरा भी विचार है."
इस सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी कहा है.
वहीं रूस ने इस टिप्पणी को 'अस्वीकार्य और अक्षम्य बयानबाज़ी बताया है.'
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी रूस पर यूक्रेन में युद्ध अपराध करने के आरोप लगाए हैं.
गोर्डन ब्राउन नेकहा कि युद्ध में नागरिक ठिकानों पर अंधाधुंध बमबारी की गई है जो अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि ये मानवीय संघर्ष विराम का उल्लंघन है और एक तरह का 'परमाणु ब्लैकमेल है.'
रूस की सेनाओं ने यूक्रेन के कई शहरों में नागरिक इलाक़ों पर भारी बमबारी की है.
गुरुवार को रूस की घेराबंदी में फंसे तटीय शहर मारियुपोल के एक थियेटर पर बम गिराए गए. यहां सैकड़ों नागरिकों ने शरण ले रखी थी. यूक्रेन ने मारियुपोल के एक अस्पताल पर रूस के मिसाइल हमले को भी युद्ध अपराध करार दिया है.
ब्राउन ने कहा कि यूक्रेन की सरकार राष्ट्रपति पुतिन पर युद्ध अपराधों के तहत मुक़दमा चलाए जाने की मांग कर रही है और ये चेतावनी दी जानी चाहिए कि पुतिन को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का सामना करना ही होगा.
ऐसा माना जा रहा है कि युद्ध अपराध ट्राइब्युनल अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अतिरिक्त कार्य करेगा.
इस याचिका को अभी तक क़रीब साढ़े सात लाख लोगों का समर्थन मिल चुका है जिसमें कई चर्चित लोग भी शामिल हैं.
यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा और ब्रितानी सुप्रीम कोर्ट की पूर्व प्रमुख लेडी हेल ने भी इस याचिका पर दस्तख़त किए हैं. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रोफ़ेसर फ़िलीप सेंड्स क्यूसी और नूरमबर्ग मिलिट्री ट्राइब्युनल के पूर्व अभियोजक बेनयामिन फेरेंज, लेबर नेता केनेडी क्यूसी और यूरोपीय मानवाधिकार अदालत के पूर्व प्रमुख सर निकोलास ब्रात्ज़ा ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं.
डेली मेल अख़बार में लिखते हुए गोर्डन ब्राउन ने कहा है कि एक नया ट्राइब्युनल अंतरराष्ट्रीय क़ानून में इस 'कमीट को पूरा कर सकता है जिसके 'ज़रिए पुतिन न्याय से बच सकते हैं.'
ब्राउन ने लिखा, "हमें तेज़ी से काम करना होगा ताकि हम यूक्रेन के लोगों को ये भरोसा दे सकें कि हम सिर्फ़ बोल नहीं रहे हैं बल्कि हम क़दम उठाना चाहते हैं- और हमें पुतिन का साथ देने वालों को ये अहसास कराना होगा कि फंदा कस रहा है. अगर वो स्वयं पुतिन से दूरी नहीं बनाते हैं तो उन्हें मुक़दमों का सामना करना पड़ सकता है और जेल जाना पड़ सकता है."
जर्मनी के शहर नूरमबर्ग में हुआ नूरमबर्ग ट्रॉयल दुनिया का पहला अंतराष्ट्रीय अपराध मुक़दमा था जिसमें नाज़ी जर्मनी के कुख़्यात लोगों पर आपराधिक मुक़दमे चले थे. आरोपों में आक्रामक युद्ध करना, युद्ध के सिद्धांतों का उल्लंघन करना और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध शामिल थे.
अपने लेख में ब्राउन ने लिखा, "ब्रिटेन जो अपने आप पर लोकतांत्रिक मूल्यों और क़ानून के शासन के लिए गर्व करता है, से ये संदेश जाना चाहिए. नूरमबर्ग में हमने नाज़ी अपराधियों को सज़ा दी थी, आठ दशक बाद हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि पुतिन को भी एक दिन न्याय का सामना करना होगा."
यूक्रेन के सांसद दिमित्रो गूरिन ने बीबीसी को बताया है कि उन्हें इस बात को लेकर संदेह है कि ये प्रस्ताव वास्तव में पुतिन पर मुक़दमा चलाने तक पहुंच सकेगा.
उन्होंने कहा, "सबसे पहले तो आपको उन्हें पकड़ना होगा. ट्राइब्युनल जब बनेगा तब के लिए एक अच्छा विचार है और हम ग्रेट ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों और अमेरिका का शुक्रिया अदा करते हैं, लेकिन आपको जानना चाहिए कि हम फिलहाल युद्ध के एक बिलकुल ही अलग चरण में हैं."
"जब ये युद्ध शुरू हुआ था तब ये सिर्फ़ एक पारिस्थितिक युद्ध था- सेना के ख़िलाफ़ सेना थी, लेकिन अब ये वैसा युद्ध नहीं हैं, बीते दो सप्ताह से यूक्रेन में नरसंहार हो रहा है."
रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता भी चल रही है लेकिन ब्रितानी विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने चेतावनी दी है कि रूस इस वार्ता का इस्तेमाल एक धुंधलके की तरह कर रहा हो सकता है.
टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "यदि कोई देश शांतिवार्ता के लिए गंभीर होगा तो वह नागरिक ठिकानों पर अंधाधुंध बमबारी नहीं करेगा."
इसी बीच कंज़रवेटिव सांसद जॉनी मर्सर ने शुक्रवार को बताया है कि उन्होंने हाल ही में यूक्रेन की यात्रा की है जहां उन्होंने हर तरफ़ बर्बादी देखी है. साथ ही प्रदर्शनों और 'अतुलनीय मानवीय भावना' को भी देखा है.
सेना में रहे जॉनी मर्सर ने राजधानी कीव की अपनी तस्वीरें पोस्ट की हैं जहां वो अस्पताल में घायल लोगों से मिलते दिख रहे हैं.
उन्होंने डेली टेलीग्राफ़ अख़बार में लिखा है कि उन्होंने डोनेत्स्क के एक पूर्व सांसद के निमंत्रण पर यूक्रेन की यात्रा करने का निर्णय लिया. हालांकि ब्रिटेन की सरकार ने अपने नागरिकों को यूक्रेन न जाने की सलाह दी है.
जॉनी मर्सर ने द टाइम्स को बताया, "मैंने इस बारे में किसी को नहीं बताया, मैं बस ग़ायब हो गया. मैंने तय किया कि ऐसा करना सही है."
इसी बीच ब्रितानी सरकार ने बताया है कि अब तक यूक्रेन को बीस लाख मेडिकल आइटम दान दिए जा चुके हैं. इनमें दर्दनिवारक दवाइयां, इंसुलिन, इंजेक्शन और इंटेंसिव केयर में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल उपकरण शामिल हैं.
यूक्रेन के लिए शनिवार को कैंट से 18 अग्निशमन वाहनों का एक काफ़िला भी निकला है. इन इंजनों को ब्रिटेन के अग्निशमन दलों ने यूक्रेन के लिए दान किया है.
वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन पोलैंड के लिए रवाना हुए हैं जहां वो यूक्रेन के लोगों के लिए दान सामग्री देंगे.
ऑक्सफर्डशर फ़ूड प्रोजेक्ट के तहत यूक्रेन के लोगों के लिए मदद जुटाई गई है. कैमरन इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. (bbc.com)
नयी दिल्ली, 19 मार्च। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को अपने जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत बनाने सहित विभिन्न मुद्दों पर ‘सार्थक’ बातचीत की।
किशिदा के यहां पहुंचने से कुछ घंटे पहले जापान के समाचार पत्र निक्केइ ने खबर दी थी कि किशिदा अपनी यात्रा के दौरान भारत में अगले पांच वर्ष में 42 अरब डॉलर के निवेश की योजना की घोषणा कर सकते हैं।
किशिदा अपराह्न तीन बजकर 40 मिनट पर एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ यहां पहुंचे। जापान सरकार के प्रमुख के तौर पर यह उनकी पहली भारत यात्रा है।
मोदी के कार्यालय ने ट्वीट किया, ‘‘(प्रधानमंत्री मोदी) जापान के साथ मित्रता को मजबूती दे रहे हैं। प्रधानमंत्री -मोदी और किशिदा- के बीच दिल्ली में सार्थक बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के उपायों पर विचार विमर्श किये।’’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि मोदी और किशिदा के बीच वार्ता के एजेंडे में बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के अलावा पारस्परिक हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे भी शामिल थे।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14वीं भारत-जापान वार्षिक शिखर वार्ता के लिए अपने समकक्ष किशिदा की आगवानी की। (बातचीत के) एजेंडे में हमारे बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के अलावा पारस्परिक हितों के द्विपक्षीय संबंध शामिल हैं।’’
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी मीडिया परामर्श के अनुसार जापानी प्रधानमंत्री रविवार सुबह आठ बजे यहां से रवाना हो जाएंगे। भारत के दौरे की समाप्ति के बाद किशिदा कम्बोडिया की यात्रा करेंगे।
भारत के लिए रवाना होने से पहले किशिदा ने कहा था कि यूक्रेन पर रूसी हमला अस्वीकार्य है और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में इस तरह की कार्रवाई की कभी अनुमति नहीं दी जाएगी।
जापानी प्रधानमंत्री ने कहा कि वह यूक्रेन की स्थिति पर भारत और कम्बोडिया के नेताओं से भी चर्चा करेंगे।
प्रधानमंत्र मोदी ने किशिदा के जापानी प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अक्टूबर 2021 में उनसे बातचीत की थी। दोनों पक्षों ने विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी को और मजबूत करने की इच्छा जतायी थी।
यह वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ भी मना रहा है।
मोदी और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच वार्षिक शिखर वार्ता दिसम्बर 2019 में गुवाहाटी में होनी थी, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून को लेकर वहां जारी व्यापक प्रदर्शन के कारण इसे रद्द करना पड़ा था।
उसके बाद 2020 और 2021 में भी कोविड-19 महामारी के कारण इसे आयोजित नहीं किया जा सका था। (वार्ता)