अंतरराष्ट्रीय
-अनंत प्रकाश
पाकिस्तान में सियासी हालात बेहद तेज़ी के साथ बदलते दिख रहे हैं. सरकार से लेकर विपक्षी दलों तक सभी अलग-अलग स्तर पर बैठकों में व्यस्त हैं.
जहां एक ओर इमरान ख़ान सरकार अविश्वास प्रस्ताव की चुनौती से पार पाने की कोशिश कर रही है. वहीं, दूसरी ओर विपक्षी दल इमरान ख़ान सरकार को सत्ता से बेदखल करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं.
पाकिस्तान के विपक्षी दल पहले ही सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान कर चुके हैं. यही नहीं, विपक्षी दल आने वाले दिनों में सड़क पर उतरने का भी एलान कर रहे हैं.
माना जा रहा है कि शुक्रवार को नेशनल असेंबली में सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
अविश्वास प्रस्ताव कितनी बड़ी समस्या
इस प्रस्ताव को पेश कराने से लेकर उसे पारित कराने के बीच विपक्ष को एक लंबा सफ़र तय करना है क्योंकि 342 सांसदों वाली पाकिस्तानी संसद में अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए विपक्ष को कम से कम 172 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत होगी. फ़िलहाल पाकिस्तान के तमाम विपक्षी दलों के पास इतने सांसद नहीं हैं.
वहीं, इमरान सरकार के पास 155 सांसद हैं और सहयोगी दलों के साथ मिलकर कुल 176 सांसद हैं.
ऐसे में विपक्षी दल इमरान सरकार के घटक दलों को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, सरकार भी अपने सहयोगियों को अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश कर रही है.
लेकिन घटक दलों की ओर से कुछ सासंदों द्वारा सरकार के ख़िलाफ़ बयानबाजी करने के बाद सरकार सकते में आ गई है.
सरकार के सामने संकट ये है कि अगर इन सांसदों ने, जिनकी संख्या कम से कम 12 बताई जा रही है, अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट दे दिया तो सरकार ख़तरे में पड़ सकती है.
सरकार ने इसी समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. लेकिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट के हाथों निराशा हाथ लगी है.
ऐसे में सवाल उठता है कि अब इमरान ख़ान सरकार के पास क्या विकल्प शेष हैं और आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अविश्वास प्रस्ताव से पहले इस्तीफ़ा देने से इनकार करते हुए कहा है कि वह अपने पत्ते जल्द खोलेंगे.
जहां विपक्षी दल 26 मार्च को इस्लामाबाद पहुंचने की बात कर रहे हैं, वहीं इमरान ख़ान भी 27 मार्च को इस्लामाबाद में ही एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार के लिए आने वाले दिन कितनी बड़ी चुनौती लेकर आ सकते हैं.
गुरुवार को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहे बीबीसी उर्दू सेवा के संवाददाता शहज़ाद मलिक बताते हैं, "ये बात सही है कि सरकार के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होंगे क्योंकि पाकिस्तान के तमाम विपक्षी दल एकजुट हैं, और ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार अविश्वास प्रस्ताव में मात खा सकती है."
बाग़ी सांसदों को वापस बुलाने की कोशिश
इमरान सरकार ने अपने ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करने वाले सांसदों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इस नोटिस में पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 63 (ए) का ज़िक्र था जो कि दलबदल से जुड़ा है.
सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गई जहां उसने 63 (ए) को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या सरकार के ख़िलाफ़ मतदान करने पर इन सांसदों को आजीवन चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है.
इसे सरकार द्वारा बाग़ी सांसदों पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन इस कोशिश में इमरान ख़ान सरकार को असफलता हाथ लगी है.
शहज़ाद बताते हैं, "पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में कहा है कि जो अपराध हुआ ही नहीं है, उसके आधार पर हम कैसे किसी को अपराधी घोषित कर सकते हैं.''
इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि अगर सांसदों को मतदान नहीं करने दिया गया तो ये उनके साथ अन्याय होगा. अदालत के मुताबिक़ सांसद वोट डाल भी सकते हैं और स्पीकर उनके मतों की गिनती करने के लिए बाध्य भी हैं.
लेकिन पाकिस्तान की सियासी सरगर्मियों पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हारून रशीद मानते हैं कि सरकार फ़िलहाल कुछ समय हासिल करने की कोशिश में लगी हुई है.
वह कहते हैं, "पाकिस्तान संसद की एक रवायत रही है कि जब किसी संसद सदस्य का निधन हो जाता है तो संसद की कार्यवाही शुरू होने पर उनके लिए दुआएं करने के बाद संसद स्थगित हो जाती है. लेकिन विपक्षी दल जैसे पीपल्स पार्टी आदि कह रहे हैं कि भले ही शुक्रवार को सत्र न चले, लेकिन इसके अगले दिन या जल्द ही स्पीकर को संसद का सत्र बुलाना चाहिए ताकि अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हो सके.
लेकिन सरकार की सूरते-ए-हाल देखें तो ऐसा लगता है कि सरकार चाहती है कि उसे अपने बचाव के लिए कुछ वक़्त मिल जाए. लेकिन विपक्ष ने एलान किया है कि कुछ लोगों का मार्च 26 मार्च को इस्लामाबाद के लिए बढ़ेगा. इस तरह विपक्षी दल भी सरकार पर दबाव डालना चाहते हैं कि जल्द से जल्द संसद का सत्र बुलाया जाए.
इमरान ख़ान 27 मार्च को इस्लामाबाद में एक बहुत बड़ा जलसा करने वाले हैं जिसके बारे में वह पाकिस्तान के लोगों से कह रहे हैं कि वे आएं और बताएं कि वे किसके साथ खड़े हैं. ऐसे में राजनीतिक खींचतान का दौर जारी है.
और इमरान ख़ान सरकार चाहती है कि इस मामले में मतदान रमज़ान के बाद हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब विपक्ष सरकार को इतना लंबा समय देगा. उनकी कोशिश ये होगी कि अगर वे 26 तारीख़ से आकर इस्लामाबाद में बैठना शुरू हो जाएंगे तो ये जल्द से जल्द यानी रमज़ान से पहले ही निपट जाए तो बेहतर है."
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में जिस भी पार्टी की हुक़ूमत हो, उसमें पाकिस्तानी सेना का दखल रहता है और पाकिस्तान के विपक्षी दल एक लंबे समय तक इमरान ख़ान को 'सेलेक्टेड पीएम' कहते रहे हैं.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और सेना के बीच संबंध में दूरियां आ गई हैं क्योंकि इस मुद्दे पर अब तक सेना की ओर से इमरान ख़ान को राहत पहुंचाने वाला बयान नहीं आया है.
हारून रशीद कहते हैं, "पाकिस्तान के इतिहास से अलग इस बार पाकिस्तानी सेना ने इस मामले में एक तटस्थ रुख़ अख़्तियार किया हुआ है. अफ़वाहें जो भी उड़ रही हों लेकिन अब तक सेना ने खुलकर इस मामले में कुछ भी नहीं कहा है."
ऐसे में जानकारों का यही मानना है कि आनेवाला समय इमरान ख़ान के लिए आसान नहीं होगा. मौजूदा संकट से उबरने के लिए उन्हें काफ़ी सियासी मशक्कत करनी पड़ सकती है और और वो नहीं चाहेंगे कि उनकी सरकार किसी भी सूरत में गिर जाए. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने ब्रसेल्स में यूरोपीय परिषद के शिखर सम्मेलन को संबोधित किया.
अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि रूस ने उनके देश में कितनी भारी तबाही मचाई है. साथ ही उन्होंने यूक्रेन के समर्थन में एकजुट होने के लिए यूरोपीय देशों का शुक्रिया अदा किया.
इसके बाद अपनी स्पष्टवादी शैली में ज़ेलेंस्की ने यूरोपीय नेताओं से कहा कि उन्होंने रूस को रोकने के लिए बहुत देर से काम शुरू किया.
उन्होंने कहा, ''आपने प्रतिबंध लगाया. हम उसके लिए आभारी हैं. ये शक्तिशाली क़दम है. लेकिन इसमें थोड़ी देर हो गई. पहले ऐसा करने का एक मौका था.‘’
उन्होंने कहा कि अगर प्रतिबंध पहले लग गए होते तो शायद रूस युद्ध शुरू नहीं करता.
उन्होंने नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन की ओर भी इशारा करते हुए कहा कि अगर इसे पहले ब्लॉक कर दिया गया होता, तो "रूस ने गैस का संकट पैदा नहीं किया होता"
ज़ेलेंस्की ने इसके बाद पड़ोसी देशों से यूक्रेन को यूरोपीय संघ में शामिल करने का अनुरोध किया.
उन्होंने कहा- ''मैं आपसे कहता हूं- देर मत कीजिए.‘’ (bbc.com)
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने गुरुवार को काबुल का दौरा किया, अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद ये चीन के विदेश मंत्री का पहला दौरा था.
अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय न्यूज़ चैनल टोलो न्यूज़ के मुताबिक़ इस दौरे का मुख्य मक़सद आर्थिक, राजनीतिक और निवेश के मुद्दों पर चर्चा करना था.
गुरुवार को एक रूसी प्रतिनिधिमंडल भी कई मुद्दों पर चर्चा करने के लिए काबुल पहुंचा.
चीनी विदेश मंत्री ने सबसे पहले उप प्रधानमंत्री, मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर और विदेश मामलों के कार्यवाहक मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताकी से मुलाक़ात की.
अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मामलों के प्रवक्ता अब्दुल क़हर बल्खी ने कहा,"दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने राजनीतिक, आर्थिक और पारगमन के मुद्दों, एयर कॉरिडोर, शैक्षणिक छात्रवृत्ति, वीज़ा जारी करने, खदानों के क्षेत्र में काम शुरू करने जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा की."
चीन के विदेश मंत्री वांग यी का काबुल दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया के देश तालिबान सरकार को मान्यता देने से कतरा रहे हैं. ऐसे में गुरुवार को चीनी विदेश मंत्री का औचक दौरा अहम माना जा रहा है.
इससे पहले वांग यी पाकिस्तान में मौजूद थे जहां उन्होंने दो दिवसीय ओआईसी की बैठक में हिस्सा लिया. इसके बाद उन्हें भारत दौरे पर आना था. लेकिन वे इससे पहले अचानक काबुल पहुंच गए.
ओईआसी की बैठक में भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर को लेकर चीन के विदेश मंत्री ने टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा, ‘’कश्मीर के मुद्दे पर हम कई इस्लामी दोस्तों की आवाज़ सुन रहे हैं, चीन की भी इसे लेकर यही इच्छा है.‘’
इस बयान पर भारत ने कड़ा एतराज़ जताया है.
वांग यी इस वक़्त भारत के दौरे पर हैं. (bbc.com)
यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच भारत सरकार ने वित्त मंत्रालय के नेतृत्व में कई मंत्रालयों का एक समूह गठित किया है. ये समूह रूस से व्यापार में आ रही चुनौतियों के समाधान को लेकर काम कर रहा है. इस बात की जानकारी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में दी. अंग्रेज़ी अख़बारद हिंदूने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है.
विदेश मंत्री के बयान से ये संकेत मिलता है कि 40 से अधिक देशों का प्रतिबंध झेल रहे रूस के साथ भारत के व्यापार संबंधों को बनाए रखने के लिए सरकार की तरफ़ से बड़े कदम उठाए जा रहे हैं.
दरअसल, राज्यसभा में रूस और यूक्रेन पर भारत के रुख़ को लेकर कई सवाल पूछे गए. इनमें से कुछ में संयुक्त राष्ट्र में भारत के मतदान से परहेज़ करने, साथ ही व्यापार और अमेरिका के साथ संबंधों पर भारतीय नीति को लेकर चिंता जताई गई. जवाब में एस जयशंकर ने कहा कि भारत का रुख़ दृढ़ और स्पष्ट रहा है और ये शांति के पक्ष में है. उन्होंने कहा कि विदेश नीति के फ़ैसले हमेशा ''राष्ट्रीय हित'' में लिए जाते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि यूक्रेन की स्थिति को व्यापार से जोड़ने का सवाल नहीं उठता.
एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि भारत, रूस से बहुत कम कच्चा तेल आयात करता है जो एक फ़ीसदी से भी कम है और कई देश भारत से 20 गुना ज़्यादा तेल रूस से आयात करते है. उन्होंने कहा कि भारत रूस-यूक्रेन को ध्यान में रखते हुए भुगतान समेत कई पहलुओं पर गौर कर रहा है और इसके लिए कई मंत्रालयों को मिलाकर एक समूह का गठन भी किया गया है. (bbc.com)
क़तर में आयोजित एक रक्षा प्रदर्शनी में ईरान के मिलिट्री अफ़सरों के भाग लेने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, "क़तर में आयोजित दोहा डिफ़ेंस शो में ईरान के मिलिट्री अधिकारियों और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स के अफ़सरों की मौजूदगी को लेकर हम काफ़ी निराश और परेशान हैं."
ईरान को खाड़ी क्षेत्र की सामुद्रिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताते हुए नेड प्राइस ने कहा, "हम डिफ़ेंस शो में उनकी मौजूदगी और उनके नौसैनिक साज़ोसामान के प्रदर्शन को पूरी तरह से खारिज करते हैं.
ईरान ने दोहा डिफ़ेंस शो में अपने विमान, मिसाइल और दूसरे सैनिक साज़ोसामान देखने के लिए रखा है. इस प्रदर्शनी में दुनिया के कई देशों ने अपने नौसैनिक जहाजों को भी शामिल किया है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, क़तर अमेरिका का क़रीबी सहयोगी है लेकिन जिस अल-उदेद एयरबेस पर ये डिफ़ेंस शो हो रहा है, वहीं पर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) के सेंट्रल कमांड का क्षेत्रीय मुख्यालय है.
अमेरिका खाड़ी क्षेत्र में यूएस नेवी के जहाजों के आवागमन पर निगरानी रखता है.
अमेरिका ने ईरान की सेना के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने पर कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. ख़ासकर रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स को अमेरिका एक चरमपंथी संगठन करार देता है.(bbc.com)
पाकिस्तान में इमरान ख़ान हुकूमत के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर आज प्रस्तावित बहस अब नेशनल असेंबली की कार्यवाही स्थगित हो जाने के कारण सोमवार तक के लिए टल गई है.
सत्र के स्थगन पर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने कहा कि यह एक संसदीय परंपरा है कि सदन के किसी सदस्य की मृत्यु की स्थिति में उनके लिए प्रार्थना के बाद अगली बैठक तक के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है.
उन्होंने कहा कि नेशनल असेंबली का अगला सत्र अब सोमवार, 28 मार्च को होगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर प्रक्रिया के मुताबिक़ कार्रवाई की जाएगी.
बीबीसी संवाददाता शहजाद मलिक के मुताबिक, शुक्रवार सुबह हुई बैठक में विपक्ष के 159 सदस्य मौजूद थे और उनमें से कुछ ने स्पीकर की घोषणा पर नाराजगी जताई.
असद कैसर द्वारा बैठक स्थगित करने के बाद, विपक्ष के नेता ने व्यवस्था के मुद्दे पर बोलने की कोशिश की, लेकिन अध्यक्ष ने इसे नजरअंदाज कर दिया. (bbc.com)
बीजिंग, 25 मार्च। चीन के तलाशी दल को एक दूसरा ब्लैक बॉक्स मिला है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि यह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का डेटा रिकॉर्डर है। चीन सरकार के आधिकारिक मीडिया ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
चाइना डेली की खबर के अनुसार दूसरे ब्लैक बॉक्स का पता लगा लिया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि ‘कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर’ (सीवीआर) के रूप में बरामद किये गए पहले ब्लैक बॉक्स का बीजिंग स्थित प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जा रहा है।
दूसरा ब्लैक बॉक्स विमान के पीछे के हिस्से में था और उसे ‘फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर’ (एफडीआर) बताया जा रहा है। एफडीआर में विमान की गति, ऊंचाई और दिशा के अलावा पायलट द्वारा की गई कार्रवाई और महत्वपूर्ण प्रणालियों का प्रदर्शन दर्ज होता है। चाइना ईस्टर्न एयरलाइन्स की उड़ान संख्या एमयू5735, करीब 29,100 फुट की ऊंचाई से दो मिनट 15 सेकंड के भीतर 9,075 फुट की ऊंचाई पर आ गई थी और पर्वतीय इलाके में विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया थ, जिसके बाद से सीवीआर मिलने की प्रतीक्षा की जा रही थी।
चीन के नागर विमानन प्रशासन के विमान सुरक्षा कार्यालय के प्रमुख झू ताओ ने कहा कि वर्तमान में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि सीवीआर की डेटा भंडारण इकाई नष्ट हो गई होगी। वुझु शहर के एक गांव में सोमवार को दुर्घटनाग्रस्त हुए बोईंग 737-800 विमान पर 132 यात्री सवार थे और इनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा। (भाषा)
ल्वीव (यूक्रेन), 25 मार्च। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने यूक्रेन का साथ देने और रूस पर प्रतिबंध लगाने के लिए यूरोपीय संघ के नेताओं का शुक्रिया अदा किया।
इन प्रतिबंधों में, नई नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन के माध्यम से रूस को यूरोप में प्राकृतिक गैस पहुंचाने से रोकने का जर्मनी का निर्णय भी शामिल है।
जेलेंस्की ने, हालांकि इन कदमों के पहले न उठाए जाने पर अफसोस जताया और कहा कि ऐसा करने पर रूस आक्रमण करने से पहले दो बार सोचता।
ब्रसेल्स में बृहस्पतिवार को यूरोपीय संघ (ईयू) की बैठक के दौरान जेलेंस्की ने कीव से वीडियो के जरिये उपस्थित नेताओं से यूक्रेन को संघ में शामिल करने के आवेदन पर तेजी से कार्रवाई करने की अपील भी की। उन्होंने कहा, ‘‘मैं, आपसे विलंब न करने का आवेदन करता हूं। हमारे लिए यही एक मौका है।’’
उन्होंने जर्मनी और विशेष रूप से हंगरी से यूक्रेन की इस कोशिश को अवरुद्ध न करने की भी अपील की।
जेलेंस्की ने हंगरी के राष्ट्रपति विक्टर ओरबान से कहा, ‘‘विक्टर, क्या आपको पता है मारियुपोल में क्या हो रहा है? मैं चाहता हूं कि आप फैसला करें कि आप किसके साथ हैं।’’
यूरोपीय संघ में शामिल देशों के नेताओं में से ओरबान को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बेहद करीबी माना जाता है।
जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन निश्चित रूस से एक ‘‘निर्णायक क्षण में है और जर्मनी भी जरूर हमारे साथ आएगा।’’ (एपी)
सियोल, 25 मार्च। उत्तर कोरिया ने अपने नेता किम जोंग-उन के आदेशानुसार अपनी सबसे बड़ी अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) के परीक्षण की पुष्टि की है।
ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका के साथ ‘‘लंबे समय से टकराव’’ के मद्देनजर तैयारी करते हुए उत्तर कोरिया अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार कर रहा है।
उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया की ओर से शुक्रवार को एक खबर में इस प्रक्षेपण की पुष्टि की गई। इससे एक दिन पहले, दक्षिण कोरिया तथा जापान ने कहा था कि 2017 के बाद से अपने पहले लंबी दूरी के परीक्षण में उत्तर कोरिया ने राजधानी प्योंगयांग के पास एक हवाई अड्डे से एक आईसीबीएम का प्रक्षेपण किया है।
उत्तर कोरिया की आधिकारिक ‘कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ (केसीएनए) ने बताया कि ह्वासोंग-17 (आईसीबीएम) 6,248 किलोमीटर (3,880 मील) की अधिकतम ऊंचाई पर पहुंची और उत्तर कोरिया तथा जापान के बीच समुद्र में गिरने से पहले उसने 67 मिनट में 1,090 किलोमीटर (680 मील) का सफर तय किया।
एजेंसी ने दावा किया कि परीक्षण ने वांछित तकनीकी उद्देश्यों को पूरा किया और यह साबित करता है कि आईसीबीएम प्रणाली को युद्ध की स्थिति में तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है।
दक्षिण कोरियाई और जापानी सेनाओं ने भी ऐसे ही प्रक्षेपण विवरण दिये थे। उसके बार में विशेषज्ञों का कहना है कि मिसाइल 15,000 किलोमीटर (9,320 मील) तक के लक्ष्य को निशाना बना सकती है, अगर उसे एक टन से कम वजन वाले ‘वारहेड’ (मुखास्त्र) के साथ सामान्य प्रक्षेप-पथ पर दागा जाए।
‘केसीएनए’ ने मिसाइल के प्रक्षेपण की कुछ तस्वीरें भी साझा कीं। तस्वीरों में देश के नेता किम जोंग-उन मुस्कराते हुए ताली बजाते नजर आ रहे हैं।
एजेंसी ने किम के हवाले से कहा कि उनका नया हथियार उत्तर कोरिया की परमाणु ताकतों के बारे में दुनिया को एक स्पष्ट संदेश देगा। उन्होंने (किम ने) अपनी सेना को एक विकट एवं तमाम तकनीक से लैस सेना बनाने का संकल्प किया, जो किसी भी सैन्य खतरे तथा धमकी से न डरे और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ लंबे समय से चले आ रहे टकराव का सामना करने के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार कर ले।
दक्षिण कोरियाई सेना ने जल, थल और हवा से अपनी मिसाइल का परीक्षण कर उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण का जवाब दिया था।
दक्षिण कोरिया ने यह भी कहा है कि उत्तर कोरियाई मिसाइल परीक्षण केन्द्र और इसके कमान एवं सुविधा केन्द्र पर सटीक निशाना साधने की पूरी तैयारी है।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ने अमेरिका में पत्रकारों से कहा कि इस प्रक्षेपण पर शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में एक बैठक होने की उम्मीद है।
यह इस साल उत्तर कोरिया का 12वां प्रक्षेपण था। गत रविवार को उत्तर कोरिया ने समुद्र में संदिग्ध गोले दागे थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया अपने शस्त्रागार को आधुनिक बनाने के लिए तेजी से कार्रवाई कर रहा है और ठप पड़ी परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता के बीच अमेरिका पर रियायतें देने के लिए इसके जरिये दबाव डालना चाहता है।
उत्तर कोरिया, 2017 में तीन आईसीबीएम उड़ान परीक्षणों के साथ अमेरिका की सरजमीं तक पहुंचने की क्षमता का प्रदर्शन कर चुका है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे बड़ी मिसाइल ह्वासोंग-17 विकसित करने का मकसद, उत्तर कोरिया द्वारा मिसाइल रक्षा प्रणालियों को और आगे बढ़ाने के लिए उसे कई हथियारों से लैस करना भी हो सकता है। ह्वासोंग-17 मिसाइल के बारे में सबसे पहले अक्टूबर 2020 में दुनिया को पता चला था। (एपी)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने दुनिया भर के लोगों से गुरुवार को यूक्रेन के लिए अपना समर्थन दिखाते हुए सड़कों पर उतरने की अपील की.
उन्होंने अपने नए वीडियो संबोधन में ये बात कही. युद्ध शुरू होने से लेकर अब तक ये पहली बार है जब उन्होंने अंग्रेजी में संबोधन किया.
उन्होंने कहा, ‘’रूस का युद्ध सिर्फ़ यूक्रेन के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि हर जगह लोगों की आज़ादी के खिलाफ़ है, और दुनिया को रूस के बर्बर बल प्रयोग को रोकने की ज़रूरत है.
उन्होंने दुनिया भर के लोगों से अपील करते हुए कहा, ‘’अपने कार्यालयों, अपने घरों, अपने स्कूलों और विश्वविद्यालयों से बाहर आइए, शांति के नाम पर बाहर आइए, यूक्रेन का समर्थन करने के लिए, स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए, जीवन का समर्थन करने के लिए यूक्रेनी प्रतीकों के साथ सड़कों पर उतरिए."
ज़ेलेंस्की का संबोधन ब्रसेल्स में नेटो के शिखर सम्मेलन से कुछ घंटे पहले सामने आया है, जहाँ पश्चिमी देशों के बीच पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्से की सुरक्षा को मज़बूत करने पर सहमति होने की उम्मीद है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन रूसी आक्रमण के एक महीने पूरे होने पर इस बैठक में भाग लेंगे. (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पूरे देश से अपील की है कि वे राजधानी इस्लामाबाद में रविवार में होने वाली सभा में शामिल हों और देश को ये संदेश दें कि वे ख़रीद फ़रोख़्त के ख़िलाफ़ हैं. गुरुवार को एक वीडियो संदेश में इमरान ख़ान ने कहा कि एक ख़ास ग्रुप पिछले 30 वर्षों से इस देश को लूट रहा है और अब ये लोग इस पैसे का इस्तेमाल खुले तौर पर जन प्रतिनिधियों के विवेक को ख़रीदने के लिए कर रहे हैं.
इमरान ख़ान ने क़ुरान का भी हवाला दिया और कहा कि अल्लाह का हुक़्म है क़ुरान में कि अच्छाई के साथ खड़े होना है और बुराई के ख़िलाफ़ खड़े होना है. उन्होंने कहा कि देश को सांसदों के विवेक को ख़रीदने वालों से स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे इसके ख़िलाफ़ हैं और कोई भी ख़रीद फ़रोख़्त के माध्यम से देश के लोकतंत्र को नुक़सान नहीं पहुँचा सकता. बुधवार को भी इमरान ख़ान ये कह चुके हैं कि विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव नाकाम होगा. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि वे इस्तीफ़ा नहीं देंगे और सेना के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.
पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने आठ मार्च को अविश्वसास प्रस्ताव पेश किया था. उन्होंने पीएम इमरान ख़ान पर कुप्रबंधन और अर्थव्यवस्था को ख़राब करने का आरोप लगाया था. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की बैठक 25 मार्च को होने वाली है. लेकिन इमरान ख़ान का कहना है कि वे किसी भी परिस्थिति में इस्तीफ़ा नहीं देंगे. इमरान ख़ान ने ये भी स्पष्ट किया कि उनके सेना के साथ अच्छे संबंध हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में सेना की ग़लत तरीक़े से आलोचना की गई. अविश्वास प्रस्ताव पास कराने के लिए 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में विपक्ष को 172 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता है. लेकिन सत्ताधारी तहरीक़े इंसाफ़ पार्टी का आरोप है कि विपक्ष सांसदों को इमरान सरकार के ख़िलाफ़ वोट करने के लिए रिश्वत दे रहा है.
तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से खोलने के कुछ ही घंटों बाद अचानक बंद करने का आदेश दे दिया. कट्टरपंथी इस्लामी समूह द्वारा नीति उलटने पर अब भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है.
समाचार एजेंसी एएफपी ने जब तालिबान के प्रवक्ता इनामुल्लाह समांगानी से इस बारे में पूछा कि क्या लड़कियों को स्कूलों से घर जाने का आदेश दिया गया है तो उन्होंने कहा, "हां, यह सच है." एएफपी की एक टीम जरघोना हाईस्कूल के पास वीडियो बना रही थी, तब एक शिक्षक ने सभी छात्राओं को घर जाने का आदेश दिया.
पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद पहली बार कक्षा में वापस आईं छात्राओं ने अपना बस्ता समेटा और आंसुओं के साथ घर की ओर लौट गईं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने नए तालिबान शासन की सहायता और मान्यता पर बातचीत में सभी के लिए शिक्षा के अधिकार को बातचीत के मुख्य बिंदु में रखा है.
तालिबान के प्रवक्ता समांगानी ने तत्काल स्कूलों को बंद करने का कारण नहीं बताया. इस बीच शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता अजीज अहमद रायन ने कहा, "हमें इस पर टिप्पणी करने की इजाजत नहीं है." काबुल में उमरा खान गर्ल्स स्कूल की टीचर पलवाशा ने कहा, "मैंने अपनी छात्राओं को रोते हुए और कक्षाएं छोड़ने के लिए अनिच्छुक देखा. लड़कियों को रोते हुए देखना बहुत ही दर्दनाक है."
संयुक्त राष्ट्र की दूत डेब्राह लियोन्स ने स्कूलों को बंद करने की रिपोर्ट को "परेशान" करने वाला बताया. उन्होंने ट्वीट किया, "अगर सच है, तो संभवतः क्या कारण हो सकता है?"
पिछले साल जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी, तब कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल बंद थे, लेकिन दो महीने बाद केवल लड़कों और छोटी लड़कियों की कक्षाएं फिर से शुरू करने की अनुमति दी थी.
तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं.
बुधवार को लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से शुरू करने का आदेश केवल मामूली रूप से देखा गया, देश के कुछ हिस्सों से ऐसी रिपोर्टें भी आईं कि कक्षाएं अगले महीने से शुरू होंगी, इसमें तालिबान के आध्यात्मिक गढ़ कंधार भी शामिल है.
शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि कि स्कूलों को फिर से खोलना हमेशा से सरकार का उद्देश्य था और तालिबान अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुक रहा है. मंगलवार को शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रायन ने कहा था, "हम अपने छात्रों को शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी के तहत ऐसा कर रहे हैं."
तालिबान ने जोर देकर कहा था कि वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि 12 से 19 साल की लड़कियों के लिए स्कूल अलग-अलग हों और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार काम करें.
इससे पहले तालिबान सरकार ने महिलाओं को बिना पुरुषों के लंबी यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. तालिबान के आदेश के मुताबिक जो महिलाएं लंबी दूरी की यात्रा करना चाहती हैं उनके साथ कोई नजदीकी पुरुष रिश्तेदार होना जरूरी है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के खिलाफ रुख लेने के लिए भारत पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ता जा रहा है. भारत भी पश्चिमी खेमे से लगातार बातचीत कर रहा है और युद्ध की समाप्ति की मांग पर जोर दे रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से फोन पर बातचीत की. एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि दोनों नेताओं ने यूक्रेन पर विस्तार से चर्चा की और मोदी ने युद्ध की समाप्ति और बातचीत के रास्ते पर लौट आने के लिए बार बार की गई भारत की अपील को दोहराया.
उन्होंने जोर दिया कि भारत का विश्वास है कि अंतरराष्ट्रीय कानून और सभी देशों की टेरिटोरियल अखंडता और संप्रभुता के प्रति सम्मान ही समकालीन वैश्विक व्यवस्था का आधार है. दोनों नेताओं ने भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा की और आपसी सहयोग को और बढ़ाने की संभावना पर सहमति व्यक्त की.
भारत से "बहुत निराश"
मोदी ने जॉनसन को भारत आने का निमंत्रण भी दिया. इस बातचीत को मोदी द्वारा यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को लेकर ब्रिटेन की चिंताओं को शांत कराने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
अमेरिका की तरह ब्रिटेन ने भी कई बार भारत के रुख से असंतुष्टि का संकेत दिया है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की कार्रवाई में साथ देने की अपील की है. बल्कि ब्रिटेन की व्यापार मंत्री ऐन-मेरी ट्रेवेल्यान ने कुछ ही दिनों पहले कहा कि ब्रिटेन भारत के रूख से "बहुत निराश" है.
उसके बाद भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने की खबरों के बीच अमेरिकी विदेश मंत्रालय की वरिष्ठ अधिकारी विक्टोरिया नुलैंड भारत आईं और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला से मिलीं. उनकी यात्रा के बीच ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वॉशिंगटन में बयान दिया कि यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत का रुख "ढीला" है.
परीक्षा की घड़ी
नुलैंड ने भारतीय मीडिया संस्थानों को दिए साक्षात्कार में कहा कि "लोकतांत्रिक देशों को एक साथ रहना चाहिए" और "रूस-चीन एक्सिस भारत के लिए अच्छा नहीं है." 23 मार्च को वॉशिंगटन में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक ताजा बयान में अमेरिका-भारत साझेदारी पर जोर दिया.
उन्होंने कहा कि भारत क्वॉड देशों के समूह में एक स्वच्छंद और खुले भारत-प्रशांत प्रांत के साझा सपने को साकार करने में अमेरिका के लिए एक आवश्यक पार्टनर है. उन्होंने भी नुलैंड की तरह कहा कि भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से जो सुरक्षा संबंध हैं, अब अमेरिका भारत के साथ उस तरह के संबंधों के लिए तैयार है.
स्पष्ट है कि रूस के प्रति भारत के रुख में बदलाव लाने को लेकर पश्चिमी देशों की बेचैनी बढ़ रही है. ऐसे में भारत के लिए रूस और पश्चिम के बीच संबंधों में संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है.
बुधवार 23 मार्च को भारत एक बार फिर परीक्षा की घड़ी का सामना करेगा जब संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन युद्ध पर एक के बाद एक तीन प्रस्ताव लाए जाएंगे. पूर्व में भारत ने रूस की आलोचना करने वाले प्रस्तावों पर मत डालने से खुद को बाहर रखा है. देखना होगा इस बार भारत की क्या रणनीति रहती है. (dw.com)
कीव पर कब्जे की कोशिश में रूसी सेना का सामना भारी प्रतिरोध से हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति यूरोपीय नेताओं से यूक्रेन पर चर्चा करने ब्रसेल्स आ रहे हैं. यूक्रेन को सहायता बढ़ाने और रूस पर नए प्रतिबंध का एलान संभव है.
यूक्रेन पर रूस के हमले का आज 28वां दिन है. राजधानी कीव के नगर प्रशासन से जुड़े अधिकारियों ने बताया है कि रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की राजधानी पर पूरी रात और बुधवार सुबह तड़के तक हमले किए. इन हमलों में दो जिलों की कई इमारतें ध्वस्त हो गई हैं. एक शॉपिंग मॉल, कुछ निजी इमारतें और कई बहुमंजिली इमारतों पर ये हमले किए गए हैं. इनमें चार लोग घायल हुए हैं. उत्तर पश्चिमी इलाके की ओर से बुधवार तड़के धमाकों और गोलियों की आवाजें सुनाई दे रही थीं. रूसी सेना कीव के उपनगरों पर नियंत्रण के जरिए राजधानी को घेरने की फिराक में है.
कीव के लिए संघर्ष
कीव पर कब्जे की कोशिश के दौरान रूसी सैनिकों का कड़े प्रतिरोध से सामना हो रहा है और कई बार उन्हें कदम वापस भी खींचने पड़े हैं. पश्चिमी खुफिया एजंसियों का आकलन है कि रूसी सेना का नुकसान बढ़ता जा रहा है. हालांकि घेराबंदी का सामना कर रहे यूक्रेनी शहरों की मानवीय दशा भी तेजी से खराब हो रही है. अमेरिका का अनुमान है कि रूस ने हमले की 10 फीसदी से ज्यादा क्षमता अब तक गंवा दी है. इसमें सैनिक, टैंक और दूसरी चीजें शामिल हैं. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का कहना है कि यूक्रेन के सैनिक देश के कई हिस्सों में अब जवाबी हमले कर रहे हैं. दक्षिणी शहर खेरसान जो रूस के कब्जे में चला गया था वहां अब यूक्रेनी सैनिकों का जवाब हमला चल रहा है.
यूक्रेन में बंदूकों की दुकान के आगे खूब भीड़ लग रही है और युद्ध शुरू होने के बाद बड़ी संख्या में लोग बंदूकें खरीद रहे हैं. बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और बंदूक चलाने की ट्रेनिंग लेकर सेना के साथ लड़ाई में शामिल हो रहे हैं.
रूसी सेना ने चेर्निहीव शहर पर बमबारी कर एक पुल को ध्वस्त कर दिया है. इस शहर पर रूसी सेना की घेराबंदी है. यह पुल यहां फंसे आम लोगों को बाहर निकालने और मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए इस्तेमाल हो रहा था. डेसना नदी पर बना यह पुल शहर को राजधानी कीव से जोड़ता था. रूसी सैनिकों की घेरेबंदी में फंसे शहर में बिजली और पानी की सप्लाई बंद है और नगर प्रशासन के मुताबिक शहर मानवीय संकट का सामना कर रहा है.
रूसी सैनिकों ने चेर्नोबिल के परमाणु संयंत्र के पास एक प्रयोगशाला को भी ध्वस्त कर दिया है. यहां परमाणु कचरे के प्रबंधन को बेहतर बनाने पर रिसर्च होता था. रूसी सेना ने पिछले महीने युद्ध शुरू होने के बाद ही इस बंद हो चुके संयंत्र पर कब्जा कर लिया था. यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है, "प्रयोगशाला में बेहद सक्रिय नमूने और रेडियोन्यूक्लाइड मौजूद हैं जो अब दुश्मनों के हाथ में हैं." रेडियोन्यूक्लाइड रासायनिक तत्वों के अस्थिर परमाणु हैं जो विकिरण पैदा करते हैं.
यूक्रेन की परमाणु नियामक एजेंसी ने सोमवार को बताया था कि संयंत्र के चारों ओर विकिरण पर नजर रखने वाले उपकरणों ने काम बंद कर दिया है.
मुश्किल में मारियोपोल
रूस के जंगी जहाजों से मारियोपोल पर लगातार बम और मिसाइलें गिराई जा रही हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि रूसी सैनिकों ने मारियोपोल पहुंचने की कोशिश में जुटे राहतकर्मियों का रास्ता बंद कर दिया है और उसने राहत कर्मियों और बस ड्राइवरों को बंधक भी बना लिया है. ये लोग मारियोपोल में राहत का सामान ले कर जा रहे थे वहां इसकी बहुत जरूरत है. उनका यह भी कहना है कि रूस ने इस रास्ते के लिए रजामंदी पहले ही दी थी.
जेलेंस्की ने वीडियो के जरिए जारी राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है, "हम मारियोपोल के निवासियों के लिए स्थायी मानवीय गलियारा बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमारी सारी कोशिशें रूसी हमलावर गोलीबारी या फिर जान बूझ कर फैलाए आतंक से नाकाम कर दे रहे हैं."
यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री ने 11 बस ड्राइवरों और चार राहतकर्मियों को उनकी गाड़ियों के साथ बंधक बनाने की बात कही है जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है. इस बीच मंगलवार को 7,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकालने में सफलता मिली है. जेलेंस्की का कहना है कि मारियोपोल में अभी भी एक लाख से ज्यादा लोग भोजन, पानी, बिजली और गर्मी की सप्लाई के बगैर रह रहे हैं. जंग से पहले यहां चार लाख से ज्यादा लोग रहते थे. संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक अब तक 35 लाख लोग यूक्रेन से बाहर निकले हैं.
फ्रांस के अधिकारियों ने कहा है कि लोगों को सुरक्षित निकालने में मदद करने वाली और आपातकालीन सेवा मुहैया कराने वाली गाड़ियां पेरिस से बुधवार को रवाना हो रही हैं जो यूक्रेन की आपातकालीन सेवा को दी जाएंगी. फ्रांस के विदेश और गृह मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि 100 दमकल कर्मचारी और राहतकर्मी गाड़ियों और उपकरणों को रोमानिया में यूक्रेन की सीमा तक ले जाया जाएगा. इनमें 11 आग बुझाने वाली गाड़ियां, 16 बचाव करने वाली गाड़ियां और 23 ट्रकों में 49 टन स्वास्थ्य और आपातकालीन उपकरण भेजे जा रहे हैं. इससे पहले मंगलवार को 21 एंबुलेंसें भेजी गईं.
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने बताया है कि यूक्रेन को स्ट्रेला मिसाइल भेजी जा रही है. यह मिसाइलें पूर्वी जर्मनी के पास थीं जिन्हें अब यूक्रेन को उसकी रक्षा के लिए दिया जा रहा है. जर्मनी ने हाल ही में यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई शुरू की है.
अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस कमेटी के प्रमुख बुधवार को रूस पहुंचे हैं ताकि रूसी हमले के कारण पैदा हुए मानवीय संकट के अलग अलग मुद्दों पर बातचीत की जा सके. उम्मीद का जा रही है कि आईसीआरसी के प्रमुख पीटर माउरर युद्धबंदियों, राहत के अभियानों और युद्ध से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा करेंगे. इससे पहले वह यूक्रेन भी गए थे. उनकी मुलाकात रूस के आईसीआरसी के प्रमुख से भी होगी. आईसीआरसी की रूसी शाखा उन लोगों की मदद कर रही है जो युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेन से रूस आए हैं.
ब्रसेल्स में बाइडेन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन पर चल रहे युद्ध के बारे में यूरोपीय नेताओं से चर्चा करने के लिए ब्रसेल्स आ रहे हैं. यहां नाटो और यूरोपीय संघ के नेता आपस में यूक्रेन की सहायता और युद्ध रोकने के उपायों पर चर्चा करेंगे. यूक्रेन की लंबे समय तक मदद करने के लिए एक विशेष कोष पर भी चर्चा होगी. आशंका है कि कुछ नए प्रतिबंधों का एलान होगा. इसके साथ ही यूक्रेन को और अधिक सैन्य सहायता पर भी चर्चा की जाएगी. जो बाइडेन यहां से पोलैंड भी जाएंगे. पोलैंड में बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे हुए हैं. अब तक यूक्रेन से निकले करीब आधे से ज्यादा लोग पोलैंड ही गए हैं.
बुधवार को पोलैंड की सरकार ने रूसी दूतावास के 45 कर्मचारियों को जासूसी के आरोप लगने के बाद देश छोड़ने का आदेश दे दिया. इस बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बुधवार को एक बार फिर यूक्रेन संकट के बारे में रूसी प्रस्ताव पर चर्चा होनी है. इस मामले में तीन बार पहले वोटिंग हो चुकी है और अब सुरक्षा परिषद के सामने रूसी प्रस्ताव है.
रूस की संसद ने एक कानून को मंजूरी दी है जिसके तहत यूक्रेन युद्ध में हिस्सा लेने वालों को मिलिट्री वेटरन का दर्जा दिया जाएगा. वेटरन का दर्जा मिलने पर उन्हें मासिक भुगतान के अलावा, टैक्स में छूट, सस्ते दर पर सामान और इलाज में प्राथमिकता की सुविधा मिलती है.
एनआर/आरपी (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)
पहली बार जिन लोगों ने यूरोपीय संघ के किसी भी देश में शरण पाने लिए आवेदन किया है, उनकी संख्या में 2021 में काफी बढ़ोत्तरी आई है. यूरोपीय संघ के सांख्यिकी कार्यालय यूरोस्टैट के आंकड़े इसमें 28 फीसदी की उछाल बताते हैं.
(dw.com)
यूरोप के लिए 2015-16 का साल शरणार्थियों की आमद के मामले में रिकॉर्ड बना गया. सीरिया में युद्ध शुरू होने के कारण वहां से जान बचाकर भागने वालों के आने का सिलसिला सालों तक चलता रहा. उस साल अपने यूरोपीय संघ के देशों में सबसे बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे. साल 2021 के आंकड़े हालांकि उस चरम से काफी नीचे हैं लेकिन साल दर साल तुलना करें तो उसमें करीब 28 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है.
इस समय यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध के कारण भी लगातार लोगों का भागना जारी है. इसके मद्देनजर अभी से ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि इस साल पिछले साल का रिकॉर्ड टूटना तय है. युद्ध के एक महीने में ही यूक्रेन से 35 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं.
2021 का हाल
यूरोस्टैट ने जानकारी दी है कि साल 2021 में 535,000 ऐसे लोगों के आवेदन मिले, जो यूरोपीय संघ के बाहर के देशों से आए थे और पहली बार शरण मांगी थी. यह आंकड़े यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों से लिए गए हैं. इस तरह की तादाद इसके पहले सन 2014 में देखी गई थी. पिछले साल भी शरण मांगने वालों में सबसे बड़ा हिस्सा सीरियाई लोगों का ही रहा. पिछले करीब एक दशक से सीरियाई लोगों का हिस्सा इन आवेदनों में सबसे ज्यादा है. बीते साल यह करीब 18 फीसदी के आसपास था.
सीरिया के बाद जो देश आते हैं, उनमें हैं अफगानिस्तान के 16 फीसदी और इराक के 5 फीसदी लोग. साल दर साल की संख्या को देखा जाए, तो केवल एक साल में ही शरण मांगने वाले अफगानों की तादाद में 90 फीसदी का उछाल आया है. कारण बना दशकों चली हिंसा और फिर पुनर्निमाण की राह पर बढ़ रहे अफगानिस्तान में तालिबान शासन की फिर से वापसी. अगस्त 2021 में करीब दो दशक के बाद एक बार फिर तालिबान सत्ता में आ गए.
वहीं, साल दर साल ही देखा जाए तो सीरिया और इराक से आकर यूरोप में शरण के लिए आवेदन करने वालों में भी 50 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है.
कमी भी दिखी
ऐसा भी नहीं कि सभी देशों से लोग यूरोप आकर शरण मांग रहे हैं. कोलंबिया जैसे देश से लोगों के आवेदनों में 55 प्रतिशत की कमी भी आई. वहीं, वेनेजुएला के लोगों के एप्लिकेशन भी 43 फीसदी कम आए. पिछले साल रूसी लोगों के शरण मांगने में भी 20 फीसदी की कमी दर्ज हुई.
सभी आवेदकों की उम्र को देखा जाए तो इसमें करीब एक तिहाई 18 साल से कम उम्र के हैं. 65 से ऊपर की उम्र वालों को देखें तो पुरुषों के मुकाबले वृद्ध महिलाएं ज्यादा हैं. सभी को देखें तो हर तीन में से एक भी महिला नहीं है यानि कुल मिलाकर शरण मांगने वालों में पुरुषों की संख्या कहीं ज्यादा है.
कायम है जर्मनी का जलवा
सारे आवेदकों में से 28 फीसदी ने जर्मनी में शरण लेनी चाही है. इसके बाद यूरोप के जिन देशों में शरण मांगी गई है वे हैं फ्रांस, स्पेन, इटली और ऑस्ट्रिया. इन चारों देशों को मिलाकर शरणार्थियों का हिस्सा बनता है करीब दो-तिहाई.
इसके अलावा साइप्रस जैसे यूरोपीय देश में उनकी आबादी के अनुपात में इस साल सबसे ज्यादा शरणार्थियों ने आवेदन डाला. यूरोस्टैट ने कहा है कि लगभग 759,000 लोगों का आवेदन पिछले साल के अंत तक बाकी रहा और उन्हें शरण दिए जाने पर अंतिम फैसला नहीं आया है.
आरपी/एनआर (रॉयटर्स)
यूक्रेन का कहना है कि युद्ध में जान गंवाने वाले उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारियों की बढ़ती संख्या रूस के लिए चिंता का सबब बन गई है.
बुधवार को क्रीमिया के शहर सेवास्तोपोल में ब्लैक सी फ्लीट की डिप्टी कमांडर आंद्रेई पालीई के अंतिम संस्कार में सैकड़ों लोग जमा हुए. बंदूकों की सलामी के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. रूस की दक्षिणी बंदरगाह नोवोरोशिस्क के स्थानीय प्रशासन ने 28 फरवरी को एक बयान जारी कर मेजर जनरल आंद्रेय सुखोवेत्स्की की मौत की पुष्टि की थी. इस बयान में बताया गया था कि मेजर जनरल सुखोवेत्स्की ने सीरिया, अबखाजिया और उत्तरी कॉकेशस में सेवाएं दी थीं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइल पोडोलियाक ने रविवार को छह ऐसे रूसी जनरलों के नाम गिनाए, जो 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद मारे जा चुके हैं. यूक्रेन का कहना है कि इनके अलावा दर्जनों कर्नल और अन्य सैन्य अधिकारी इस युद्ध में मारे गए हैं.
सही संख्या नदारद
रूस के रक्षा मंत्रालय ने इन मौतों की पुष्टि नहीं की है. 2 मार्च को उसने बताया था कि यूक्रेन में उसके 498 सैनिक मारे गए हैं. उसके बाद से नया आंकड़ा जारी नहीं किया गया है. यूक्रेन का दावा है कि रूस के 15,600 जवान और अधिकारी यूक्रेन में मारे जा चुके हैं. हालांकि इन दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती.
पोलैंड स्थित सलाहकार संस्था रोखन के निदेशक कोनराड मूजिका का कहना है कि यूक्रेन के दावे सही हो सकते हैं लेकिन असल संख्या इससे ज्यादा नहीं होगी और इन दावों की पुष्टि करने का कोई जरिया नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर हम दो जनरलों की भी बात करें तो यह बड़ी बात है. ना सिर्फ हम जनरलों की बात कर रहे हैं बल्कि कर्नल भी मारे गए हैं जो बहुत वरिष्ठ अधिकारी होते हैं.”
मूजिका कहते हैं कि इन मौतों से यह संकेत तो मिलता है कि रूस को यूक्रेन की आर्टिलरी के ठिकानों की सही समझ नहीं थी और यूक्रेन को रूस के वरिष्ठ अधिकारियों के ठिकाने का पता लगाने में कामयाबी मिल रही है, जो संभवतया उनके मोबाइल फोन के सिग्नलों के जरिए किया जा रहा है.
कर्नल ज्यादा हैं, कॉरपोरेल कम
मॉस्को स्थित एक वरिष्ठ विदेशी राजनयिक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "मेरे लिए जरूरी यह है कि जनरल ही नहीं, कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों की मौत की रिपोर्ट बहुत आ रही हैं, जो कि रूस की सेना की रीढ़ हैं.” इस राजनयिक के मुताबिक रूस की सेना बहुत ज्यादा केंद्रित और वर्गीकृत है और उसमें पश्चिमी सेनाओं की तरह अत्याधिक कुशल जूनियर अफसरों की कमी है.
वह बताते हैं, "कर्नल बहुत ज्यादा हैं और कॉरपोरोल बहुत कम. तो जहां किसी तरह का फैसला लेने की बात होती है, तब वो काम जो पश्चिमी में बहुत कम रैंक के अधिकारी करते हैं वे भी उच्च पदस्थ अधिकारियों तक जाते हैं.”
इस राजनयिक का कहना है कि बहुत ज्यादा वर्गीकृत सेना होने के कारण वरिष्ठ अधिकारियों को भी मोर्चे पर जाना पड़ रहा है ताकि वहां फैसले लिए जा सकें या रणनीति में बदलाव आदि किए जा सकें. ऐसी स्थिति में ये अफसर खतरे में पड़ जाते हैं. वह कहते हैं, "केंद्रीकृत कमांड और नियंत्रण, फैलाव की कमी और सुरक्षित संवाद की कमी ने सीनियर अफसरों को उन जगहों पर पहुंचा दिया है जहां उन्हें यूक्रेन के मानवहति ड्रोन आसानी से पहचान कर हमला कर पा रहे हैं.”
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण शुरू किया था जिसे पूरा एक महीना हो चुका है. इस दौरान हजारों लोग मारे गए हैं और लाखों की संख्या में विस्थापित हो चुके हैं. कुछ अनुमान बताते हैं कि विस्थापित लोगों की संख्या एक करोड़ को पार कर चुकी है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 24 मार्च। विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस से यहां मुलाकात की और यूक्रेन, अफगानिस्तान और म्यांमा की बदलती परिस्थितियों सहित विश्व निकाय की सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर विचार विमर्श किया।
शृंगला मंगलवार को न्यूयार्क पहुंचे और संयुक्त राष्ट्र तथा अरब देशों के लीग के बीच सहयोग को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की ब्रीफिंग में बुधवार को हिस्सा लिया। यह ब्रीफिंग संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की काउंसिल प्रेसिडेंसी के तहत आयोजित की गयी। संरा सुरक्षा परिषद की ब्रीफिंग की अध्यक्षता यूएई के मंत्री खलीफा शाहीन अलमरार ने की।
यूएनएससी की ब्रीफिंग के बाद शृंगला ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गुतारेस से मुलाकात की।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट किया, ‘‘विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने संरा महासचिव एंतोनियो गुतारेस से मुलाकात की। (तथा) यूक्रेन, अफगानिस्तान और म्यांमा सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर विचार विमर्श किया।
सूत्रों ने बताया कि दोनों नेताओं के बीच बैठक करीब एक घंटे तक चली और उन्होंने यूक्रेन की स्थिति पर भी चर्चा की।
ऐसा समझा जाता है कि गुतारेस ने कहा कि भारत उन कुछेक देशों में शामिल है जिनका पूरी दुनिया में सम्मान होता है और भारत जैसे देश को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, क्योंकि मौजूदा स्थिति में यह दोनों पक्षों से सम्पर्क कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से कई बार बातचीत की है और हिंसा के बजाय कूटनीतिक बातचीत और संवाद का रास्ता अपनाने की अपील की है।
पिछले सप्ताह गुतारेस ने कहा था कि वह चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इजरायल और तुर्की सहित तमाम देशों से संपर्क बनाए हुए हैं, ताकि इस युद्ध की समाप्ति के लिए मध्यस्थता के प्रयास किये जा सकें।
सूत्रों ने बताया कि संरा महासचिव ने रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पेट्रोलियम उत्पाद तथा खाद्य सामग्रियों पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी चिंता जताई है, क्योंकि यदि यह संकट जारी रहता है तो कई देशों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
सूत्रों के अनुसार, गुतारेस संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका तथा इस बात को लेकर सकारात्मक थे, कि भारत के साथ बातचीत संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण होगी।
शृंगला के यूएनएससी की ब्रीफिंग में शामिल होने के कुछ घंटे बाद, 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में, रूस के उस प्रस्ताव पर मतदान हुआ जिसमें यूक्रेन की बढ़ती मानवीय जरूरतों को तो स्वीकार किया गया था, लेकिन रूसी आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं था। बहरहाल, वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
रूस को प्रस्ताव पारित कराने के लिए 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में न्यूनतम नौ वोट की आवश्यकता थी, साथ ही जरूरी था कि चार अन्य स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन में से कोई भी ‘वीटो’ का इस्तेमाल ना करे। हालांकि, रूस को केवल अपने सहयोगी चीन का समर्थन मिला, जबकि भारत सहित 13 अन्य परिषद सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।(भाषा)
कीव, 24 मार्च । यूक्रेन की राजधानी कीव में गोलाबारी में एक रूसी पत्रकार की मौत हो गई।
एक स्वतंत्र रूसी समाचार प्रतिष्ठान ‘द इनसाइडर’ ने बताया कि पत्रकार ओक्साना बौलिना बुधवार को मारी गईं। बौलिना, राजधानी कीव के पोडिल जिले में रूसी गोलाबारी से हुए नुकसान के बारे में ‘रिपोर्टिंग’ कर रही थीं और उसी दौरान स्वयं भी हमले की जद में आ कर मारी गईं।
‘द इनसाइडर’ के अनुसार, बौलिना के साथ मौजूद एक अन्य नागिरक की भी मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए, जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा है।
इससे पहले बौलिना, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलोचक एलेक्सी नवेलनी के ‘एंटी-करप्शन फाउंडेशन’ के लिए काम करती थीं। प्राधिकारियों के इस संगठन को ‘‘चरमपंथी’’ घोषित करने के बाद बौलिना को रूस छोड़ना पड़ा था।(एपी)
वाशिंगटन, 24 मार्च। रूस ने देश की राजधानी मॉस्को में अमेरिकी दूतावास से कई अमेरिकी राजनयिकों को निष्कासित कर उन्हें ‘‘अस्वीकार्य व्यक्ति’’ घोषित कर दिया किया है। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी दी।
इस महीने की शुरुआत में, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के मिशन से 12 राजनयिकों को यह कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि वे ‘‘जासूसी गतिविधियों’’ में शामिल हैं। इस कदम को रूस ने ‘‘शत्रुतापूर्ण कार्रवाई’’ करार दिया था और संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के मेजबान देश के रूप में अमेरिका द्वारा प्रतिबद्धताओं का घोर उल्लंघन बताया था।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बुधवार को कहा, ‘‘ हम अमेरिकी दूतावास को 23 मार्च को रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से ‘‘अस्वीकार्य व्यक्ति’’ घोषित किए गए राजनयिकों की एक सूची मिलने की पुष्टि करते हैं।’’
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद दोनों देशों के बीच शब्दों और प्रतिबंधों की जंग तेज हो गई है। अमेरिका ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें व्यक्तिगत तथा आर्थिक प्रतिबंध शामिल हैं। रूस ने भी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत कई अमेरिकी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए हैं।
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ यह हमारे द्विपक्षीय संबंधों में रूस का नवीनतम अनुपयोगी एवं निरर्थक कदम है। हम रूसी सरकार से अमेरिकी राजनयिकों तथा कर्मचारियों के अनुचित निष्कासन को समाप्त करने का आह्वान करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ अब पहले से कहीं अधिक, यह महत्वपूर्ण है कि हमारी सरकारों के बीच संचार कायम करने के लिए हमारे देशों के पास आवश्यक राजनयिक कर्मी हों।’’ (भाषा)
न्यूयॉर्क, 23 मार्च। मॉडर्ना ने बुधवार को दावा किया कि उसके कोविड-रोधी टीके की हल्की खुराक छह साल से कम उम्र के बच्चों पर भी प्रभावी है। अगर नियामक इससे सहमत होते हैं तो छोटे बच्चों का कोविड टीकाकरण इस गर्मी से ही शुरू हो सकता है।
मॉडर्ना ने कहा कि आने वाले सप्ताह में वह अमेरिका और यूरोप के नियामकों से छह साल से छोटे बच्चों के लिए दो हल्की खुराक दिए जाने के संबंध में मंजूरी का अनुरोध करेगा। कंपनी अमेरिका में बड़े बच्चों और किशोरों के लिए भी अधिक खुराक वाले उसके टीके के लिये मंजूरी चाहती है।
अमेरिका में फिलहाल पांच साल से कम उम्र के करीब 18 लाख बच्चे टीकाकरण के दायरे में नहीं हैं। हालांकि, अन्य टीका निर्माता कंपनी फाइजर अभी स्कूल जाने वाले बच्चों तथा 12 और इससे अधिक आयुवर्ग के लिए टीके की पेशकश कर रही है। (एपी)
(सज्जाद हुसैन)
इस्लामाबाद, 23 मार्च। नेशनल असेंबली में नेता प्रतिपक्ष शहबाज शरीफ ने बुधवार को दावा किया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वर्ष 2019 में सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को विस्तार देने में जान-बूझकर देरी की ताकि प्रक्रिया पर 'विवाद' उठें।
डॉन न्यूज की खबर के मुताबिक, शरीफ ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने हमेशा सेना का सम्मान किया जबकि सैन्य बलों को निशाना बनाने वाले एक सोशल मीडिया अभियान के पीछे खान के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का हाथ था।
शहबाज शरीफ की यह टिप्पणी ऐसे समय में सामने आयी है, जब इमरान खान वर्ष 2018 में देश की सत्ता संभालने के बाद सबसे कठिन राजनीतिक परीक्षा का सामना करने जा रहे हैं। पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिसे लेकर शुक्रवार को संसद का सत्र बुलाया गया है।
खबर के मुताबिक, शरीफ ने कहा कि जब 2019 में प्रधानमंत्री खान ने सेना प्रमुख के कार्यकाल को विस्तार देने का प्रयास किया था, तब अधिसूचना में तीन बार संशोधन किया गया था। हालांकि, शरीफ ने स्वीकार किया कि उनके पास अपने दावे की पुष्टि करने के लिए कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। (भाषा)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक में कश्मीर का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि कश्मीर और फलस्तीन के मुद्दे पर मुस्लिम देश नाकाम रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
इमरान खान ने मुसलमानों की समस्याओं से निपटने और दुनिया भर में शांति लाने के लिए इस्लामी दुनिया की एकता का आह्वान किया है. मंगलवार को शुरू हुई इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों की बैठक में इमरान खान ने अपने उदघाटन भाषण के दौरान यह बयान दिया. साथ ही उन्होंने एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया. कश्मीर पर उनका ताजा बयान ऐसे समय पर आया है जब उन्होंने पिछले दिनों भारत की विदेश नीति की तारीफ की थी.
उन्होंने बैठक में कश्मीर मुद्दे पर मदद नहीं मिलने का इशारा किया. उन्होंने कहा, "कश्मीर में दिन के उजाले की लूट की जा रही है. जबकि मुस्लिम दुनिया इसे मौन रूप से देख रही है. भारत जम्मू-कश्मीर राज्य की आबादी को मु्स्लिम बहुल राज्य से मुस्लिम अल्पसंख्यक राज्य में बदल रहा है."
"कश्मीर के लोगों को निराश किया"
साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने का मुद्दा भी उठाया. खान ने अपने बयान में कहा, "हमने फलस्तीन और कश्मीर दोनों जगह के लोगों को निराश किया है. मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है हम उनके लिए कुछ नहीं कर पाए. वो हमें गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि हम आपस में ही बंटे हुए हैं और इस बात को वो ताकतें अच्छी तरह से जानती हैं. हम मुसलमान करीब 1.5 अरब लोग हैं और फिर भी इस घोर अन्याय को रोकने के लिए हमारी आवाज काफी नहीं है. हम किसी देश पर कब्जा करने की बात नहीं कर रहे हैं. हम बस कश्मीर और फलस्तीन के लोगों के मानवाधिकारों की बात कर रहे हैं."
खान ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय कानून जो उनकी तरफदारी करते हैं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जो उनके अधिकारों की बात करता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कश्मीर के लोगों से वादा भी किया था कि उन्हें जनमत संग्रह के जरिए अपना भविष्य निर्धारण का अधिकार दिया जाएगा लेकिन वो अधिकार कश्मीरियों को कभी नहीं दिया गया बल्कि कश्मीरियों से विशेष राज्य का दर्जा भी गैरकानूनी तरीके से छीन लिया गया." इमरान खान ने अब क्यों की भारत की तारीफ?
खान ने ओआईसी की बैठक में कश्मीर और फलस्तीन का मुद्दा क्यों उठाया यह भी दिलचस्प है, क्योंकि घरेलू राजनीति में वे अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं और उनकी सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
दूसरी ओर इसी बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी शामिल हुए, हालांकि चीन पर खुद लाखों उइगुर मुसलमानों को कैद करने के आरोप लगते रहे हैं. यी ने कहा, "चीन और इस्लामिक देशों के बीच मित्रता का लंबा इतिहास है. चीन इस्लामिक देशों के साथ आपसी समझ और सहयोग को बढ़ाना चाहता है."
इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, कई सांसदों ने छोड़ा साथ
खान इसी हफ्ते नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने वाले हैं. विपक्ष ने उन पर अर्थव्यवस्था और विदेश नीति के गलत प्रबंधन का आरोप लगाया है. (dw.com)
आज भी मिडवाइफ के पेशे में बहुत कम आदमी हैं. जिसके नाम में ही 'वाइफ' हो, उससे जुड़ने में हिचक होना ही एक कारण है या कोई और अंतर होता है जब लेबर रूम में एक पुरुष बच्चा पैदा करवाए.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट-
17 घंटे तक दर्द झेलने के बाद एक स्वस्थ बच्चा पैदा हुआ. मां थक के चूर. पिता ने चैन की सांस ली. और बाकी सब खुश. यह दृश्य तो आम है, लेकिन ठहरिए. लेबर रूम में बच्चा पैदा करवाने वाला मिडवाइफ तो एक आदमी है. नाम है जोनास क्यूपर्स. उम्र 30 साल. जर्मनी जैसे विकसित यूरोपीय देश में आज भी जोनास जैसे पेशेवर गिने-चुने ही मिलते हैं. अनुमान है कि पूरे देश में 24,000 के आसपास मिडवाइफ हैं. इनमें से पुरुषों की संख्या सटीक तौर पर बताना मुश्किल है, लेकिन कुछ भरोसेमंद स्रोतों के हवाले से जर्मनी में पुरुष मिडवाइफों की संख्या छह से 30 के बीच मानी जा सकती है.
मिडवाइफ की क्लास में लड़के
जोनास ने जर्मनी के बीलेफेल्ड शहर के खास मिडवाइफरी के स्कूल में ट्रेनिंग ली है. उन्होंने महिलाओं के दबदबे वाले पेशे में आने का फैसला क्यों लिया? वह कहते हैं, "मिडवाइफ तो नहीं, लेकिन मेडिकल पेशे में मैं हमेशा से जाना चाहता था. मैंने अल्टरनेटिव प्रैक्टिशनर के तौर पर ट्रेनिंग भी ली." जोनास बताते हैं कि जब उनके दोस्त मिडवाइफ के पेशे में जाने लगे, तब उनकी भी दिलचस्पी जगी. जब खुद जोनस ने डिलीवरी रूम में इंटर्नशिप की, तो वह अनुभव यादगार रहा. वह कहते हैं, "जब मैंने पहले बच्चे का जन्म करवाया, तो मैं बहुत बहुत खुश था."
फिलहाल जर्मनी में मिडवाइफ की पढ़ाई को मानकीकृत किया जा रहा है. इसे बैचलर्स के डिग्री कोर्स में बदला जा रहा है. इसमें पढ़ाई के साथ साथ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग को भी रखा गया है. जोनास के लिए यह सब 2020 में शुरू हुआ. एक मिडवाइफ के तौर पर उनका काम डिलीवरी रूम से लेकर पोस्टपार्टम वार्ड, जच्चा और बच्चा वॉर्ड में रहता है. जोनास ने एक फ्रीलांसर के तौर पर प्राइवेट मिडवाइफों के साथ काम भी किया है. वह बताते हैं कि हर जगह उन्हें अपनी सर्विस के लिए बहुत पॉजिटिव फीडबैक मिला. मां बनने जा रही महिलाएं, परिवार और खुद उनके सहकर्मी एक पुरुष मिडवाइफ के साथ काम करके खुश ही होते हैं.
क्या आदमी यह काम औरतों से अलग करते हैं
प्रसूति-विज्ञान या आम भाषा में कहें तो दाई का काम अब जोनास को बहुत पसंद आता है. बच्चे को जन्म देने जा रही महिलाओं का साथ देना, उनकी चिंताएं और डर दूर करना, उनके सवालों के सही जवाब देना और जन्म देने की पूरी प्रक्रिया में उनका साथ देना. बच्चे के जन्म के बाद भी एक मिडवाइफ नए माता-पिता को शुरुआती जानकारी और तौर-तरीके सिखाकर अपनी सेवाएं देता है. इसमें शामिल है डायपर बदलने, नहलाने की ट्रेनिंग, ब्रेस्टफीडिंग का सही तरीका और समय वगैरह.
इसके साथ साथ नवजात के जीवन के पहले महीने में मिडवाइफ घर जाकर बच्चे की सेहत और वजन बढ़ने पर नजर रखता है. क्या एक पुरुष मिडवाइफ किसी मामले में महिलाओं से अलग होता है? जोनास तो ऐसा नहीं मानते. लेकिन, उनके कुछ मरीजों ने ऐसा जरूर कहा कि वह बच्चों के साथ महिलाओं से भी ज्यादा सावधानी और सौम्यता से पेश आते हैं.
करियर बनाने और कमाई के मौके
विशेषज्ञ बताते हैं कि आने वाले समय में इस पेशे में पुरुषों की आमद और बढ़ने की उम्मीद है. पूरे यूरोप में कई जगहों पर उनकी सेवाओं की मांग है और यह करियर बनाने का एक अच्छा विकल्प है. जानकार यह भी कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पुरुषों के आने से इस पेशे में आमदनी भी बढ़ेगी और पेशेवरों का सम्मान भी. हैनोवर के एफएचएम संस्थान में मिडवाइपरी साइंस विभाग के प्रमुख श्वेंगर फिंक के अनुसार जर्मनी में भी मिडवाइफों की कमी है, जिसके कारण छोटे अस्पतालों के कई डिलीवरी रूमों को अस्थाई और कहीं-कहीं स्थाई रूप से बंद करना पड़ा.
जोनास का मामला देखें, तो बीलेफेल्ड और हैनोवर दोनों शहरों के एफएचएम सेंटरों में वह एकलौते पुरुष मिडवाइफ हैं. लेकिन श्वेंगर फिंक की मानना है कि यह तस्वीर बदलेगी. जर्मनी के मुकाबले इटली जैसे दूसरे यूरोपीय देशों में माहौल थोड़ा अलग है. इटली जैसे कुछ और देशों में भी इस पेशे को केवल महिलाओं का काम नहीं माना जाता. जोनास को भी एक बार एक अनुभव हुआ था, जब डिलीवरी रूम में ज्यादा अनुभवी मिडवाइफ ने पूछा था कि वह कैसे महिलाओं की योनि की जांच कर सकते हैं. इसके जवाब में जोनास ने उन अनगिनत पुरुष गाइनेकोलॉजिस्ट की मिसाल दी, जिनसे कोई ऐसे सवाल नहीं पूछता.
जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में मिडवाइफों की राज्य स्तरीय एसोसिएशन की अध्यक्ष बारबरा ब्लोमायर कहती हैं, "पुरुष मिडवाइफों के साथ लोगों का अनुभव अच्छा रहा है. हालांकि, अंत में यह महिला का फैसला होना चाहिए अगर वह किसी महिला मिडवाइफ को ही लेना चाहे." जोनास भी चुनने का आजादी का समर्थन करते हैं और बताते हैं कि कई बार डिलीवरी रूम में पिता बनने जा रहे पुरुष उनको वहां पाकर ज्यादा राहत महसूस करते हैं. जोनास कहते हैं, "हालात ऐसे होते हैं कि गर्भवती महिला दर्द में है और उनके पार्टनर भी उसकी ज्यादा मदद नहीं कर पाते. ऐसे में वह माहौल पुरुषों के लिए काफी मुश्किल होता है और मेरे वहां रहने से उन्हें भी सहारा मिलता है." (dw.com)
यूक्रेन के एक केमिकल प्लांट से अमोनिया गैस लीक हुई है. खेती के फर्टिलाइजर में इस्तेमाल होने वाली यह तेज गंध वाली गैस असल में हमारे लिए जहरीली है.
डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉएंड की रिपोर्ट-
यूक्रेन के नागरिक रक्षा विभाग ने बहुत जल्दी इस गैस लीक पर प्रतिक्रिया दी. यूक्रेन के पूर्वोत्तर के सुमी शहर में एक केमिकल प्लांट से अमोनिया लीक हो गई. प्रशासन ने स्थानीय लोगों से बंकरों और ग्राउंड फ्लोर अपार्टमेंट में शरण लेने को कहा.
अमोनिया जहरीली गैस है. यह एक गैस है, जो हवा से भारी होती है और हमारे वातावरण में ऊपर उठती जाती है. इसलिए भी अमोनिया गैस के हवा में मिल जाने की सूरत में निवासियों को नीचे हो जाने की सलाह दी जाती है. या तो लोगों को नीचे किसी अंडरग्राउंड लेवल पर चले जाना चाहिए या फिर कम से कम ऊपर की मंजिलों से ऊपर कर नीचे आ जाना चाहिए. ऐसा करने से इसकी संभावना कम हो जाएगी कि लोग अमोनिया को ना सूंघें.
रिपोर्टों से पता चला है कि रूसी बमबारी की चपेट में आकर यूक्रेन के केमिकल प्लांट को नुकसान हुआ. यहां फर्टिलाइजर बनाने के लिए सबसे जरूरी सामान अमोनिया रखा था. स्थानीय प्रशासन ने गैस के रिसाव को रोकने में कामयाबी पाई है.
अमोनिया क्या है?
अमोनिया एक केमिकल कंपाउंड है, जो नाइट्रोजन और हाइड्रोजन से मिलकर बनता है. यह विश्व में सबसे ज्यादा उत्पादित किए जाने वाले रसायनों में से एक है. हर साल 17 करोड़ टन अमोनिया पैदा होता है. इसका 80 फीसदी हिस्सा नाइट्रोजन फर्टिलाइजर बनाने में इस्तेमाल होता है.
यूक्रेन को यूरोप का अन्न का कटोरा कहा जाता है. यहां बहुत सारा अनाज उपजाया जाता है और उसमें उर्वरकों की भी भारी खपत होती है. देश की काली मिट्टी अनाज उगाने के लिए बहुत उपजाऊ मानी जाती है.
अमोनिया का इस्तेमाल गंदी गैसों को साफ करने में भी होता है और फ्रिज में रेफ्रिजरेंट के रूप में भी. भविष्य में हाइड्रोजन फ्यूल को बढ़ावा देने में भी अमोनिया के इस्तेमाल का एक विकल्प है. अमोनिया में काफी ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन स्टोर होता है, जिसे रिलीज करने के लिए बाहर से ऊर्जा देने की जरूरत होती है.
कितनी जहरीली है?
आज तक अमोनिया का जहरीला असर होने के बहुत कम मामले सामने आए हैं. इसकी गंध ही इतनी तेज और खराब होती है कि इसके हवा में इसके घुले होने का पता चल जाता है. खेतों से उठने वाली ताजा फर्टिलाइजर या घोड़े के तबेलों से आने वाली गंध से तो आप परिचित होंगे.
कई बार बेहोश हो गए लोगों को होश में लाने के लिए पैरामेडिक उनके नाक के पास लाकर अमोनिया का घोल सुंघाते हैं. लेकिन अगर कोई बहुत ज्यादा अमोनिया सूंघ ले, तो वह उसके लिए जहरीला हो सकता है. आंखें, नाक और गले में जलन महसूस होती है और छींकने या खांसने जैसी महसूस होता है. इससे आंखों में पानी आ जाता है और सिर दर्द भी हो सकता है.
अगर मात्रा और भी ज्यादा हो, तो अमोनिया सूंघने वाले इंसान को सांस लेने में परेशानी और सीने में दर्द की शिकायत होती है. ऐसे में आराम दिलाने के लिए बहुत सारी ताजी हवा और भाप लेनी चाहिए.
कैसे बनाई जाती है अमोनिया?
यह प्रकृति में पाई तो जाती है, लेकिन बहुत कम मात्रा में. जहां कहीं भी पौधे और जानवरों का मल सड़ रहा होता है, वहां से यह गैस निकलती है.
इंसान के शरीर में अमोनिया बनता है और अमीनो एसिड (प्रोटीन के सबसे छोटे टुकड़े) को तोड़ने में काम आता है. यह खून में घुलकर लिवर तक पहुंचती है. लिवर में इसका स्तर बहुत ज्यादा न बढ़ जाए, इसके लिए शरीर में एक यूरिया चक्र चल रहा होता है. इससे अमोनिया बदल जाती है. पेशाब की तेज गंध इसी के कारण होती है.
पहले फर्टिलाइजर के लिए अमोनिया हासिल करने के लिए चूना पत्थर को अमोनियम क्लोराइड के साथ गर्म किया जाता था. बाद में अमोनिया का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन होने लगा. इसे हेबर-बॉश प्रक्रिया कहते हैं, जिसमें नाइट्रोजन और हाइड्रोजन गैसों को साथ लाया जाता है. यह रिएक्शन बहुत ज्यादा दबाव और तापमान (450 डिग्री सेल्सियस) वाले माहौल में मेटल कैटेलिस्ट की मौजूदगी में कराया जाता है. (dw.com)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुखर आलोचक ऐलेक्सी नावाल्नी को एक रूसी अदालत ने धोखाधड़ी का दोषी करार दिया है. नावाल्नी पहले से जेल में हैं और उन्हें नौ साल की जेल की सजा सुना दी गई है.
45 साल के नावाल्नी मॉस्को से पूर्व की तरफ एक जेल शिविर में बंद हैं. वो पैरोल की शर्तों के उल्लंघन के लिए पहले से ही साढ़े तीन साल की जेल काट रहे हैं. उन्होंने कहा है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को नाकाम करने के लिए उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं.
ताजा मामले में अदालत ने उन्हें नौ साल की जेल की सजा सुनाई है. इस मामले को भी नावाल्नी ने राजनीति से प्रेरित बताया है. जेल के सुरक्षा अधिकारियों से भरे हुए एक कमरे में जज ने नावाल्नी के सामने ही उनके खिलाफ आरोप पढ़े. अपने वकीलों के पास खड़े नावाल्नी कमजोर नजर आ रहे थे.
लेकिन कागजात पढ़ते हुए वो शांत और निर्भीक लग रहे थे. अभियोजन पक्ष ने अदालत से मांग की थी कि नावाल्नी को धोखाधड़ी और अदालत की अवहेलना के आरोपों पर अधिकतम सुरक्षा वाली जेल में 13 सालों के लिए बंद कर दिया जाए.
नावाल्नी को पिछले साल जर्मनी से वापस रूस पहुंचने के बाद जेल में बंद किया था. जर्मनी में वो अपना इलाज करवा रहे थे. उन पर 2020 में साइबेरिया की एक यात्रा के दौरान सोवियत काल के एक नर्व एजेंट से हमला किया था. उन्होंने हमले का पुतिन पर आरोप लगाया था.
क्रेमलिन ने कहा था कि नावाल्नी को जहर दिए जाने का कोई सबूत नहीं मिला था और अगर ऐसा हुआ भी था तो उसमें रूस की कोई भी भूमिका नहीं थी. आखिरी बार 15 मार्च को इस मामले में सुनवाई हुई थी और उसके बाद नावाल्नी ने विद्रोही स्वर अपनाए रखा.
उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा, "अगर जेल की सजा जो चीजें कहे जाने की जरूरत है उन्हें कहे जाने के मेरे मानवाधिकार की कीमत है...तो वो 113 सालों की मांग कर सकते हैं. मैं अपने शब्दों और कर्मों का त्याग नहीं करूंगा."
रूस के अधिकारियों ने नावाल्नी और उनके समर्थकों को ऐसे विद्रोहियों के रूप में दिखाने की कोशिश की है जिन्होंने पश्चिम के समर्थन के जोर पर रूस को अस्थिर करने का दृढ संकल्प कर लिया है. उनके कई साथी रूस के अंदर जेल या प्रतिबंधों का सामना करने की जगह देश छोड़ कर चले गए.
नावाल्नी के विपक्षी आंदोलन को "चरमपंथी" बता कर बंद कर दिया गया है, लेकिन उनके समर्थक अभी भी अपना राजनीतिक रुख सोशल मीडिया पर व्यक्त करते हैं. उन्होंने यूक्रेन में रूस के सैन्य हस्तक्षेप का भी विरोध किया है.
सीके/एए (रॉयटर्स/एपी)