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इस्लामाबाद, 26 दिसंबर | भारत और पाकिस्तान के बीच अटारी-वाघा सीमा पर इन दिनों संयुक्त परेड (बीटिंग र्रिटीट सेरेमनी) बंद है, जिससे यहां अब यहां का माहौल सूना नजर आ रहा है।
पहले जहां दोनों देशों के सुरक्षा बल आक्रामक अंदाज में एक-दूसरे के सामने परेड करते थे और इसे देखने वाले दर्शकों में भी एक विशेष उत्साह देखने को मिलता था, जो अपने-अपने देश और अपनी सेना का मनोबल बढ़ाते हुए नारे लगाते थे, वहीं अब यहां शांति और सन्नाटा छाया हुआ है।
दो प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच होने वाली यह संयुक्त परेड कोरोनावायरस महामारी के कारण बंद है। इस संयुक्त परेड को देखने के लिए दोनों ही देशों के नागरिक काफी उत्साहित नजर आते हैं और वे अपने संबंधित देशों का झंडा फहराते हुए नारे लगाते हैं, मगर अब लोगों की आवाजाही बंद होने के कारण यहां पहले जैसी रौनक नजर नहीं आ रही है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त परेड अद्वितीय है, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति में भी जारी रहती है। हालांकि इस वर्ष कोरोनावायरस का प्रसार तेज होने के बाद संयुक्त परेड को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया गया है।
मालूम हो कि भारत में अटारी और पाकिस्तान की तरफ पड़ने वाला वाघा बॉर्डर पर आयोजित होने वाली र्रिटीट सेरेमनी के दौरान बीएसएफ जवान अपने सिर तक ऊंचा पैर उठाते हैं और उसे जमीन पर पटकते हैं।
इस संयुक्त परेड में पाकिस्तानी रेंजर्स पंजाब और भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। परेड के दौरान जवान बड़े आक्रामक अंदाज में दिखाई देते हैं। उनके चेहरे पर आक्रामकता के साथ ही गुस्सा भी झलकता है। परेड के दौरान दोनों देश के सुरक्षा बल एक दूसरे की आंखों में आंखें मिलाते हुए जोर से जमीन पर पैर पटकते हुए एक अलग अंदाज में परेड करते हैं। इसे देखने के लिए दोनों देशों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और वे अपने जवानों का जोश बढ़ाने के लिए देशभक्ति के नारे लगाते हैं।
वाघा सीमा के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले एक निवासी ने कहा, "चल रही महामारी के कारण पिछले नौ महीने से वातावरण उदासीन बना हुआ है।"
क्षेत्रीय निवासी ने कहा कि पहले जहां रोजाना यहां का माहौल काफी जीवंत दिखाई देता था और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते सुनाई देते थे, वहीं अब यहां सन्नाटा छाया हुआ है।
यह संयुक्त परेड दुनिया में सबसे अनोखी परेड होने के साथ ही दोनों देशों के नागरिकों के लिए विदेशी पर्यटकों को भी लुभाती रही है। इसे देखने के लिए दोनों देशों के नागरिकों के अलावा विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त परेड 1959 में शुरू हुई थी और तब से यह बिना किसी बड़ी रुकावट के जारी है।
अतीत में दो नवंबर 2014 को वाघा बॉर्डर पर एक आत्मघाती हमले के बाद भारत ने परेड को रद्द कर दिया था।
इसके अलावा 29 सितंबर 2016 को भी भारत ने तनावपूर्ण संबंधों के कारण परेड को रोक दिया।
हालांकि अब कोरोना महामारी के कारण इसमें नौ महीने से भी लंबा ठहराव देखा गया है, जो कि इसके शुरू होने के बाद सबसे लंबी अवधि है।
हालांकि दोनों देश की सेना सीमा पर मौजूद है, मगर लोगों की आवाजाही बंद होने से यहां का माहौल नीरस दिखाई दे रहा है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 26 दिसंबर | संकमण के नमूने जुटाने वाले एक प्रमुख संस्थान ने अनुमान लगाया है कि 1 अप्रैल, 2021 तक अमेरिका में नोवल कोरोनावायरस के कारण 567,000 लोगों की मौत हो सकती है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए नवीनतम अनुमानों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2021 तक, 33,200 लोगों को अनुमानित वैक्सीन रोलआउट द्वारा देश में बचाया जाएगा, अगर तेजी से रोलआउट होगा तो 45,000 लोगों की जान बचाई जा सकती है।
संस्थान ने इसके अलावा, इसके अनिवार्य नियमों के तहत 1 अप्रैल, 2021 को इस 731,000 कुल मौतों का अनुमान लगाया।
आईएचएमई ने कहा, "दैनिक मौतें जनवरी के मध्य में बढ़ने की आशंका है और यदि सरकार संक्रमण के प्रसारित होने वाले स्थानों जैसे भीड़, बार, रेस्त्रा और अन्य स्थानों पर नियम लागू करती है तो इसमें गिरावट हो सकती है।"
उन्होंने कहा, "सरकारी कार्रवाई के अभाव में रोजाना मौतों का आंकड़ा फरवरी के मध्य तक 5,000 से अधिक तक पहुंच सकती हैं।"
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने शनिवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में बताया कि देश में संक्रमण के कुल मामले और मौतों का आंकड़ा क्रमश: 18,756,230 और 330,244 बताया था।
अमेरिका इस समय महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देश है।
--आईएएनएस
बगदाद, 26 दिसंबर, | प्रमुख इराकी शिया धर्मगुरु मुकतदा अल-सईद मुहम्मद अल-सदर ने ईरान और अमेरिका को अपने संघर्षो में बगदाद को शामिल करने के खिलाफ चेतावनी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने शुक्रवार को ट्विटर पर पोस्ट अल-सदर के एक बयान के हवाले से कहा, "अमेरिका-ईरान संघर्ष का इराक शिकार हो गया है और यह बहुत प्रभावित हुआ है जैसे कि यह उनके संघर्षो का अखाड़ा हो।"
उन्होंने कहा, "इसलिए, मैं ईरान से अपने संघर्ष से इराक को दूर रखने के लिए कहता हूं और मैं (अमेरिका) को भी चेतावनी देता हूं।"
उन्होंने कहा, "इराक और इराकी नागरिक दोनों के बीच संघर्ष का हिस्सा नहीं हैं।"
बगदाद-वाशिंगटन संबंध में इस साल 3 जनवरी से थोड़ा तनाव है, क्योंकि एक अमेरिकी ड्रोन ने बगदाद हवाईअड्डे पर एक काफिले पर हमला किया, जिसमें ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशन गार्डस कोर के कुद्स फोर्स के कमांडर कासिम सुलेमानी और इराक के अर्धसैनिक बल के हशद शाबी के उपप्रमुख अबू महदी अल-मुहांदिस मारे गए थे।
ड्रोन हमले के दो दिन बाद, इराकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सरकार को देश में विदेशी ताकतों की मौजूदगी खत्म करने की जरूरत है।
प्रस्ताव के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने, शुरू में इनकार करने के बाद, मार्च से सैनिकों को हटाना शुरू कर दिया।
सितंबर में, अमेरिकी सेना ने घोषणा की थी कि वह इराक में अपने सैनिकों की संख्या 5,200 से घटाकर 3,000 कर देगा।
--आईएएनएस
ट्यूनिस, 26 दिसंबर | ट्यूनीशिया में आपातकाल की स्थिति जो सबसे पहले पांच साल पहले घोषित की गई थी, को छह महीने और बढ़ा दिया गया है। राष्ट्रपति कैस सैयद ने यह घोषणा की। ट्यूनीशियाई नेता की ओर से शुक्रवार को एक आधिकारिक बयान में कहा, "राष्ट्रपति सैयद ने 26 दिसंबर, 2020 से 23 जून, 2021 तक देशभर में आपातकाल की स्थिति का विस्तार करने का फैसला किया।"
बयान में कोई और जानकारी नहीं दी गई है।
प्रेसिडेंशियल गार्ड्स की एक बस पर घातक बम हमले के बाद 24 नवंबर 2015 को आपातकाल की स्थिति घोषित की गई थी। हमले में 12 लोग मारे गए थे।
यह उपाय देश की सुरक्षा बलों को असाधारण शक्तियां प्रदान करता है।
आपातकाल की स्थिति घोषित होने के कुछ महीने पहले, 26 जून, 2015 को देश के इतिहास में सबसे घातक हमला हुआ, जब पोर्ट एल कांटौई में एक पर्यटक रिसॉर्ट में एक बंदूकधारी द्वारा गोलीबारी करने के के बाद 38 लोग मारे गए थे।
उस साल मार्च में, ट्यूनीशियाई राजधानी ट्यूनिस में बारडो नेशनल म्यूजियम पर तीन आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसमें 22 लोग, ज्यादातर पर्यटक मारे गए थे।
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने तीनों हमलों को अंजाम देने का दावा ने किया था।
--आईएएनएस
अदीस अबाबा, 26 दिसंबर | इथियोपिया के बेनिशांगुल-गुमुज क्षेत्रीय प्रांत में हाल ही में एक सशस्त्र हमले से मरने वालों की संख्या बढ़कर 207 हो गई है। देश के संघीय अधिकार समूह ने इस बात की पुष्टि की है। इथियोपियाई मानवाधिकार आयोग (ईएचआरसी) ने शुक्रवार देर रात एक बयान में कहा, "पीड़ितों में 133 पुरुष, 35 महिलाएं, 20 बुजुर्ग 17 बच्चे हैं। मरने वालों में एक एक छह माह का बच्चा भी शामिल है।
हथियारबंद लोगों ये नरसंहार मंगलवार रात को अंजाम दिया था। इनलोगों ने सोते वक्त लोगों को गोली मार दी थी और घरों में आग लगा दी थी। (आईएएनएस)
काबुल, 26 दिसंबर | काबुल में अलग-अलग विस्फोटों में दो पुलिस अधिकारियों सहित चार लोगों की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो गए। एक सरकारी प्रवक्ता ने इन विस्फोटों की पुष्टि की। सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता मासोमा जाफरी ने संवाददाताओं को बताया, "शनिवार सुबह काबुल में हुए विस्फोटों में चार की मौत हो गई और चार घायल हो गए, जिन्हें काबुल एम्बुलेंस सेवा द्वारा अस्पतालों में ले जाया गया।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शहर के पूर्वी इलाके में पुलिस जिला 3, 6, 8 और देह सब्ज में हुए सभी विस्फोट आईईडी की वजह से हुए।
किसी भी समूह ने अब तक हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली है।
इस सप्ताह की शुरुआत में एक रिपोर्ट में, गृह मंत्रालय ने रविवार को दावा किया कि 17 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच देश भर में हुए विस्फोटों में 28 नागरिक मारे गए और 47 अन्य घायल हुए हैं। (आईएएनएस)
बर्लिन, 26 दिसंबर | जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शनिवार को गोलीबारी की एक घटना में कम से कम चार लोग घायल हो गए। स्थानीय मीडिया ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय समाचार संस्थान ने पुलिस सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि यह घटना क्रूजबर्ग जिले में हुई।
यह अभी स्पष्ट नहीं है कि किसने गोलीबारी की है।
घटना के बारे में अधिक जानकारी की प्रतीक्षा है। (आईएएनएस)
बीजिंग, 26 दिसंबर | शोधकर्ताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने मशीन लर्निग तरीकों का उपयोग कर चंद्रमा पर 109,000 प्रभावी क्रेटर्स की पहचान की है, जिनकी पहले पहचान नहीं की गई थी। जिलिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन के बारे में नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
प्रभावी क्रेटर्स चंद्र सतह की सबसे प्रमुख विशेषता है और चंद्रमा की सतह के अधिकांश भाग पर इनका कब्जा रहता है।
पारंपरिक ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन तरीके के साथ आमतौर पर अनियमित और गंभीर रूप से डीग्रेडेड प्रभाव वाले क्रेटर्स का पता लगाना मुश्किल होता है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, क्रेटर्स की पहचान करने और उनकी उम्र का अनुमान लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक स्थानांतरण शिक्षण पद्धति लागू की और पहले से पहचाने गए क्रेटर्स के आंकड़ों के साथ गहरे न्यूरल नेटवर्क को प्रशिक्षित किया।
चीन के चांग-1 और चांग-2 चंद्र जांच द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के संयोजन से शोधकर्ताओं ने 109,956 नए प्रभावी क्रेटर्स की पहचान की। उन्होंने 18,996 नए खोजे गए क्रेटरों की उम्र का भी अनुमान लगाया, जिनका व्यास 8 किलोमीटर से ज्यादा है।
शोधकर्ताओं में से एक जिलिन यूनिवर्सिटी के यांग चेन ने कहा कि चंद्रमा पर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए चांद क्रेटर डेटाबेस का बहुत महत्व है।
यांग ने कहा, "अपनाई गई रणनीति को गड्ढा अध्ययन में सहायता के लिए लागू किया जा सकता है, जो ग्रह अनुसंधान के लिए विश्वसनीय सुझाव देता है।"
यांग ने कहा कि इस अनुसंधान मॉडल को चांग-5 जांच स्थल पर छोटे प्रभाव वाले गड्ढों की पहचान के लिए लागू किया गया है। (आईएएनएस)
अमेरिका के टेनेसी प्रांत के नैशविल शहर में क्रिसमस की सुबह एक धमाका हुआ है.
पुलिस का कहना है कि ये धमाका जानबूझकर किया गया था और इसे एक वाहन से जोड़कर देखा जा रहा है.
धमाका स्थानीय समयानुसार सुबह छह बजे के लगभग हुआ जिसके बाद सिटी सेंटर के ऊपर धुआँ उठता नज़र आया.
फ़ायर डिपार्टमेंट ने बताया है कि तीन घायल लोगों को अस्पताल ले जाया गया है लेकिन किसी के भी गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने की आशंका नहीं है.
धमाके के कारण एक पुलिस अधिकारी के पैरों में चोट आई है. पुलिस ने संदिग्ध वाहन की एक नई तस्वीर भी जारी की है, जिसमें उसे शुक्रवार की सुबह घटनास्थल पर पहुँचते देखा जा सकता है.
'जान-बूझकर किया गया धमाका'
पुलिस प्रवक्ता डॉन आरॉन ने पत्रकारों से कहा, "अभी तक हम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि ये धमाका जान-बूझकर किया गया था.
एल्कोहल, टोबैको और फ़ायरआर्म्स ब्यूरो के जाँचकर्ता और एफ़बीआई की टीम घटनास्थल पर मौजूद है. हालाँकि धमाके की सही वजह का अब तक पता नहीं चल सका है.
आनन-फानन में हुई एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पुलिस के प्रवक्ता डॉन आरॉन ने बताया कि उन्हें सुबह छह बजे के लगभग गोली चलने की आवाज़ से जुड़ी शिकायतें मिलीं.
पुलिस प्रवक्ता ने कहा, "जब बमरोधी दस्ता घटनास्थल पर पहुँचा तो वहाँ उसे एक संदिग्ध वाहन मिला. कुछ देर बाद इस वाहन में धमाका हो गया."
पुलिस का कहना है कि अभी ये साफ़ नहीं है कि धमाके के समय कोई वाहन में मौजूद था या नहीं.
यूट्यूब पर पोस्ट किए सीसीटीवी फ़ुटेज में धमाके से कुछ देर पहले का मंज़र देखा जा सकता है.
उसी समय एक चेतावनी का ऐलान भी किया था और कहा गया था, "अगर आप इस संदेश को सुन रहे हैं तो ये जगह तुरंत खाली कर दें."
सीसीटीवी फ़ुटेज में देखा जा सकता है कि इसके तुरंत बाद ही एक धमाके से चारों ओर धुआँ और आग की लपटें नज़र आती हैं.
'ऐसा लगा जैसे बड़ा बम धमाका'
इस इलाके में रहने वाले बक मैकॉय ने बताया कि धमाके की आवाज़ से उनकी नींद खुल गई थी.
उन्होंने फ़ेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें दीवार से पानी और मलबा गिरता दिख रहा है. वीडियो के बैकग्राउंड में अलार्म की तेज़ आवाज़ भी सुनी जा सकती है.
उन्होंने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "मेरी सभी खिड़कियाँ टूट गईं और शीशे के टुकड़े बगल के कमरे में बिखर गए. अगर मैं उस वक़्त वहाँ खड़ा रहता तो बहुत बुरा हो सकता था."
मैकॉय ने कहा, "ये एक बम धमाके जैसा लगा. ये बड़ा धमाका था."
इस इलाके से मिली तस्वीरों में देखा जा सकता है कि घरों की खिड़कियाँ टूटकर बिखरी हुई हैं, इमारतों को नुक़सान पहुँचा है और पेड़ भी गिर गए हैं.
नैशविल शहर को इसके बेहतरीन रेस्तरां और नाइटलाइफ़ के लिए जाना जाता है.
शहर के मेयर जॉन कूपर ने कहा, "ऐसे लगा जैसे कोई बम ब्लास्ट हो गया हो."
टेनेसी प्रांत के गवर्नर बिल ली ने एक ट्वीट कर कहा है कि वो मामले की जाँच करने के लिए सभी संभव संसाधन उपलब्ध कराएंगे ताकि पता लगाया जा सके कि ये सब कैसे हुआ और इसके पीछे कौन था.
इस घटना के बारे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जानकारी दे दी गई है और विस्तृत जानकारी का इंतज़ार है. (bbc.com)
-मेरिआनो आग्वीरे
मध्य-पूर्व बदल रहा है. इसराइल ने उन कई अरब देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बना लिए हैं जिन्होंने 1948 में उसके बनने के बाद कभी मान्यता नहीं दी थी.
ईरान के ख़िलाफ़ इसराइल की केंद्रीय भूमिका वाला सुन्नी देशों का गठजोड़ और मज़बूत हुआ है और एक दशक पहले अरब क्रांति के बाद ट्यूनीशिया समस्याओं से जूझ रहा है.
इराक़, अल्जीरिया, लेबनान में सामाजिक विरोध इस साल मज़बूत हुए. वहीं, लीबिया और यमन में गृह युद्ध लड़ा जा रहा है.
दूसरी तरफ़, सीरिया की लड़ाई में रूस के दख़ल से राष्ट्रपति बशर-अल-असद की सत्ता बच गई और अब स्पष्ट हो चुका है कि अमेरिका क्षेत्र से वापस जा रहा है.
इस सबके बीच, दशकों से मध्य-पूर्व की राजनीति के केंद्र में रहा फ़लस्तीन का सवाल कहीं पीछे छूट गया है. कई विशलेषक ये कह चुके हैं कि 'दो देश' वाला हल दफ़नाया जा चुका है और अब कई विशेषज्ञ एक देश में दो राष्ट्रीयता वाले विकल्प को बढ़ावा दे रहे हैं.
सऊदी अरब, मिस्र और खाड़ी के दूसरे राजशाही वाले देशों ने इशारा किया है कि फ़लस्तीन को अलग देश बनाए जाने की मांग प्राथमिकता नहीं है और वैसे भी वे इसे संभव होता नहीं देख पा रहे हैं.
सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान ने कहा है कि फ़लस्तीनियों को इसराइल और अमेरिका का दिया शांति प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए वरना चुप बैठना चाहिए.
जनवरी 2020 में ट्रंप सरकार ने शांति का प्रस्ताव पेश किया था जिसे फ़लस्तीनी प्रतिनिधियों ने इसराइल समर्थक कह कर ख़ारिज कर दिया था.
साल 2020 में बिन्यामिन नेतन्याहू ने घोषणा की थी कि वे वेस्ट बैंक के एक-तिहाई हिस्से को इसराइल में मिला लेंगे. ये क़दम उठाने में वह देरी करते रहे, शायद इसलिए क्योंकि अरब देश एक के बाद एक इसराइल को मान्यता देते जा रहे थे.
जुलाई में न्यूयॉर्क टाइम्स में अमेरिकी-यहूदी लेखक पीटर बेनर्ट ने लिखा था, "अब वक़्त आ गया है कि 'दो देश' वाले हल को छोड़ दिया जाए. यहूदी और फ़लस्तीनियों के बराबर अधिकारों के लक्ष्य पर ध्यान दिया जाए."
"अब वक़्त है कि यहूदियों के घर की कल्पना की जाए जो यहूदी देश नहीं है."
उनका कहना है कि ये एक देश हो सकता है जिसमें इसराइल है, वेस्ट बैंक है, गज़ा और पूर्वी यरुशलम है या दो देशों का संघ भी हो सकता है.
इसराइली अख़बार हअरेज़ में टिप्पणीकार गिडियन लेवी ने कहा कि अब उस पर सोचने और शुरुआत करने का वक़्त है जिस पर कभी सोचा नहीं जा सकता था क्योंकि किसी भी हाल में कोई दूसरा विकल्प नहीं है.
दो राष्ट्रीयता वाले एक देश का आइडिया नया नहीं है.
साल 1948 में, दार्शनिक हना अरेंड ने फ़लस्तीन के बँटवारे के बजाय यहूदी, अरबी और दूसरे अल्पसंख्यकों के संघ के साथ बाइनेशनल देश का प्रस्ताव दिया था.
दिवगंत इसराइली नेता और लेखक उरी एवनेरी ने 2013 में ऐसा ही आइडिया दिया था. उनके अलावा फ़लस्तीनी एडवर्ड और यहूदी मूल के ब्रितानी टोनी जुड ने भी ऐसा सुझाया था.
दक्षिण अफ्ऱीका की मानव विज्ञान अनुसंधान परिषद की प्रोफेसर विर्जिनिया टिले ने अपनी किताब फ़लस्तीन/इसराइल: ए कंट्री में भी इसे सुझाया है.
इसराइल के राजनीतिक दायरे में ख़ासकर दक्षिणपंथियों के बीच पिछले दशक में फ़लस्तीन को जोड़ने के विभिन्न मॉडल्स को लेकर एक आशंका रही है.
सभी मॉडल्स में उनके अधिकारों को सीमित किया गया है या बहुत लंबे वक़्त की योजनाएं हैं जिनमें धीरे-धीरे कई पीढ़ियों के बाद उन्हें समान अधिकार मिल पाएंगे.
पीटर बेनर्ट के प्रस्ताव की काफ़ी आलोचना हुई. इसराइली योसी अल्फर ने भी इसकी निंदा की.
सुरक्षा और समझौतों में एक्सपर्ट योसी के मुताबिक़ बाइनेशनल देश का प्रस्ताव मध्य-पूर्व के संघर्षों की हक़ीकत, इसराइल के अतिवादी माहौल और फ़लस्तीनी अथॉरिटी की कमज़ोरी से परे है.
उनके विचार में ये प्रस्ताव दिखाता है कि अमेरिका के लिबरल यहूदी दायरे और इसराइल की हक़ीक़त के बीच कितना अंतर है.
अल्फर के मुताबिक़ बाइनेशनल देश मूल विवाद का हल नहीं निकाल सकता. बल्कि दोनों पक्षों के अतिवादियों के बीच हिंसक टकराव बढ़ सकता है.
उनका कहना है कि अब ज़रूरत है कि इसराइल को विनाश के रास्ते पर जाने से रोका जाए जो वो वेस्ट बैंक को मिलाकर करने वाला है. ये क़दम नस्लवाद के संकट की ओर ले जाएगा.
दूसरे आलोचकों का कहना है कि बाइनेशनल देश में दो लोग नेतृत्व को लेकर लड़ेंगे और बहुत ही कम इसराइली और ना के बराबर इसराइल और फ़लस्तीन में रहने वाले फ़लस्तीनी इस प्रस्ताव के पक्ष में हैं.
पब्लिक ओपिनियन के फ़लस्तीनी एक्सपर्ट ख़लील शिकाकी बताते हैं कि पिछले जून तक ज़्यादातर फ़लस्तीनी एक देश के बजाय दो देशों वाले हल को प्राथमिकता दे रहे थे.
लेकिन इस बात को असंभव मानने वाले लोगों की तादाद अब बढ़ती जा रही है.
वहीं, ज़्यादातर युवा फ़लस्तीनी एक देश को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जिसमें लोकतांत्रिक और समानता की व्यवस्था हो. लेकिन ज़्यादातर यहूदी लोग फ़लस्तीनियों को समान अधिकार दिए जाने के ख़िलाफ़ हैं.
साल 2014 में समानांतर देशों का प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें संभावना जताई गई थी कि दो अलग-अलग देश, एक फ़लस्तीन और एक इसराइल एक ही ज़मीन पर मौजूद हों और अपने-अपने नागरिकों के लिए लगभग एक जैसी आर्थिक, सुरक्षा और कल्याण नीतियां हों. इस प्रस्ताव का स्वीडन सरकार ने भी समर्थन किया था.
दोनों पक्षों के बीच विवाद इतना गहरा है, हर समुदाय के अपने और दूसरे के बारे में नैरेटिव इतने अलग हैं कि अधिकारों का सवाल बना रहेगा.
तेल अवीव यूनिवर्सिटी के योआव पेलेद कहते हैं कि फ़लस्तीनियों को समान नागरिक और राजनीतिक अधिकार तो मिलने ही चाहिए, साथ ही अल्पसंख्यक होने के नाते सांस्कृतिक स्वायतत्ता और सामूहिक अधिकार भी मिलने चाहिए.
अवॉर्ड विजेता इसराइली पत्रकार हेगाई कहते हैं कि ये कहना ग़लत होगा कि हल एक या दो देश बना देने में है क्योंकि महत्वपूर्ण सवाल है कि इसराइल के औपनिवेशिक कब्ज़े को कैसे रोका जाए और फ़लस्तीनियों के अधिकारों को सम्मान मिले.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के फ़लस्तीनी प्रोफ़ेसर राशिद खलीदी ज़ोर देते हैं कि इस विवाद का एक औपनिवेशिक चरित्र भी है जिसकी मुख्य विशेषता है असमान अधिकार.
50 लाख फ़लस्तीनी सेना के नीचे कब्ज़ा की गई जगहों पर रहते हैं जिन्हें कोई अधिकार हासिल नहीं और दूसरी तरफ़ पांच लाख इसराइली उपनिवेशी अधिकारों का आनंद ले रहे हैं.
अलग-अलग मूल के लोग होने के बावजूद आज दो तरह के लोग फ़लस्तीन में रह रहे हैं.
खलीदी कहते हैं कि ये विवाद हल नहीं हो सकता क्योंकि दूसरा पक्ष उसके राष्ट्रीय वजूद को ही नकार रहा है.
फ़लस्तीन समाज कई हिस्सों में बंटा हुआ है. 20 लाख के क़रीब फ़लस्तीनी इसराइल के कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में 167 अलग-अलग क्षेत्रों में रहते हैं. वहीं 20 लाख लोग गज़ा में रहते हैं.
1948 और 1967 के युद्धों में 50 लाख लोग विस्थापित होकर क्षेत्र के विभिन्न कैंपों में रह रहे हैं.
वेस्ट बैंक में महमूद अब्बास की अवैध सरकार है जो इसराइल और अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर करती है. गज़ा में राजनीतिक-सैन्य समूह हमास का प्रशासन है जिसे क़तर, तुर्की और ईरान का समर्थन मिला हुआ है.
इसराइल ने 1967 के छह दिन के युद्ध में वेस्ट बैंक, गोलन हाइट्स और गज़ा को कब्ज़े में ले लिया.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बार-बार निंदा प्रस्तावों के बावजूद इसराइल ने सिर्फ़ गज़ा से साल 2005 में क़दम पीछे हटाए.
साथ ही, इसराइल ने आस-पास के शहरों में 4,63,353 लोग बसा दिए जिनमें ज़्यादातर धार्मिक राष्ट्रवादी हैं जिन्होंने खेतों और पानी के स्रोतों पर नियंत्रण कर लिया. इसराइल ने सेना की मौजूदगी भी बढ़ा दी और तीन लाख लोगों को पूर्व यरूशलम में बसा दिया.
1993 के ओस्लो समझौते में तय हुआ कि फ़लस्तीन की वेस्ट बैंक और गज़ा के हिस्सों में अपनी सरकार होगी.
इसके बाद लगा कि दोनों पक्ष एक स्थायी हल की ओर बढ़ेंगे जिसके मुताबिक़ 1948 तक ब्रिटिश राज में कहे जाने वाले फ़लस्तीन क्षेत्र के 22 फ़ीसदी हिस्से में फ़लस्तीन देश बनेगा.
लेकिन इसराइल के आलोचक कहते हैं कि इस देश की सभी सरकारें फ़लस्तीन की मांगों को लेकर रोड़े अटकाती आई हैं जिससे कि ओस्लो समझौता भी नाकाम हो जाए.
इन मांगों में 1948 और 1967 के युद्ध के रिफ्यूजियों को वापस आने का अधिकार, पूर्व यरूशलम और इसके पवित्र स्थानों पर प्रभुत्व, समझौता होने तक वेस्ट बैंक और गज़ा के औपनिवेश पर रोक और एक डिफेंस सिस्टम शामिल हैं.
इसराइल के आधिकारिक नज़रिए से फ़लस्तीनियों की मांग बहुत ज़्यादा हैं और यथार्थवादी नहीं हैं, फ़लस्तीन के अलग-अलग गुटों का एक जैसा राजनीतिक स्टैंड भी नहीं रहा और बहुत से संगठनों ने आतंकवाद का सहारा लिया.
दूसरी तरफ़, ओस्लो समझौते की मंशा के अस्पष्ट होने और अमेरिका के इसराइली समर्थक होने की वजह से ज़्यादा अड़चनें पैदा हुईं.
फ़लस्तीन कभी देश नहीं बन पाया. इस बीच, इसराइल ने 'ज़मीन के तथ्य' बनाकर कब्ज़े में लिए क्षेत्रों को औपनिवेशिक बनाने की कोशिश की.
इसका संबंध बाइबल में लिखी उस बात से जोड़ा गया कि ईश्वर के वादे के अनुसार यहूदियों को उस ज़मीन पर बसने का अधिकार है.
एक तरफ़ जहां दो देश बनाए जाना का आइडिया असंभव दिख रहा है, वहीं इसराइल अब यहूदी बहुसंख्यकों के देश में बदल रहा है. इसके 9,227,700 लोगों में से 74 फ़ीसद यहूदी हैं, इसके अलावा क़रीब 19 लाख अरबी और साढ़े चार लाख के आस-पास ग़ैर-अरबी ईसाई हैं.
इसके साथ-साथ इसराइल का नियंत्रण वेस्ट बैंक में रहने वाले क़रीब 20 लाख फ़लस्तीनियों पर भी है.
साल 2020 में बिन्यामिन नेतन्याहू ने घोषणा की थी कि वे वेस्ट बैंक के एक-तिहाई हिस्से को देश में मिला लेंगे.
फ़िलहाल, फ़लस्तीनी क्षेत्रों की सुरक्षा इसराइल और अमरीका के सहयोग से फ़लस्तीन अथॉरिटी के पास है.
अगर इसराइल वेस्ट बैंक के हिस्से को जोड़ लेता है तो उसे फ़लस्तीन अथॉरिटी द्वारा दी जा रही सुरक्षा और दूसरी जन सेवाएं भी अपने हाथ में लेनी होंगी.
संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका द्वारा विकास के लिए दी जाने वाली मदद भी बंद हो सकती है.
इसराइल ने अगर पश्चिम तट को जोड़ लिया तो उसके क्षेत्र में फ़लस्तीनी आबादी काफ़ी बढ़ जाएगी.
इसके बाद अगला कदम होगा सभी फ़लस्तीनियों को नागरिकता दी जाए या नहीं और उन्हें मताधिकार दिया जाए या नहीं.
अगर वो ऐसा करता है तो चुनाव में उनकी भूमिका अहम हो जाएगी. और अगर वो ऐसा नहीं करता तो वो लोकतांत्रिक देश नहीं कहलाएगा.
इसराइल की स्थापना करने वाले एक यहूदी और लोकतांत्रिक देश बनाना चाहते थे. बिना अधिकारों या सीमित अधिकारों वाले फ़लस्तीनियों के साथ ये एक नस्लभेदी देश बन जाएगा जैसा दक्षिण अफ़्रीका एक समय था.
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि इसराइल उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है.
यू एस कैंपेन फॉर पैलेस्टीनियन राइट्स के कार्यकारी निदेशक यूसुफ़ मुनय्यर तो यहाँ तक मानते हैं कि फ़लस्तीनी आबादी का दमन और उनका औपनिवेशीकरण एक ऐसा तथ्य है जिसे बदला नहीं जा सकता. उनके अनुसार सवाल ये नहीं है कि क्या सिर्फ़ एक देश होना चाहिए बल्कि ये है कि क्या असल में इस समय भी ऐसा ही है.
इसलिए सवाल ये है कि क्या ये एक रंगभेदी शासन होगा या ऐसा जो कानून के सामने फ़लस्तीनियों की समानता को मानेगा.
साल 2019 में कराए गए कई जनमत सर्वेक्षण दिखाते हैं कि कम से कम आधे इसराइली एनेक्सेशन या राज्य के मिला लिए जाने का समर्थन करते हैं. इसमें से 63 फ़ीसदी दक्षिणपंथी मतदाता हैं.
मगर अधिकतर फ़लस्तीनियों को समान अधिकार दिए जाने के खिलाफ हैं. जिन लोगों के बीच सर्वेक्षण हुआ उनमें से एक तिहाई ये भी मानते थे कि उन लोगों को किसी दूसरी जगह भेज दिया जाना चाहिए.
रब्बाई आर्ये मायर ने 2019 में दावा किया कि दो-राष्ट्र वाला रास्ता भले ही पूरी तरह सही न हो मगर उससे कम से कम एक ऐसा इसराइल तो बनेगा जो यहूदी होगा, लोकतांत्रिक होगा और सुरक्षित होगा.
"राज्य को मिला लेने से आख़िरकार दो राष्ट्र बनेंगे जिनमें एक रंगभेदी होगा और उससे यहूदी राष्ट्र का सपना समाप्त हो जाएगा." (bbc.com)
जोहान्सबर्ग, 26 दिसम्बर | दक्षिण अफ्रीका की प्रीमियर फुटबाल लीग की टीम चिप्पा युनाइटेड ने नस्लीय टिप्पणी के कारण बेल्जियम के अपने कोच को हटा दिया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, चिप्पा युनाइटेड ने बुधवार को बेल्जियम के लुक इयामाएल को कोच नियुक्त किया। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका फुटबाल संघ (एसएएफए) और स्थानीय सरकार ने इसकी आलोचना की।
इसी साल जुलाई में इयामाएल को तनजानिया टीम ने हटा दिया था क्योंकि कोच ने उनके समर्थकों को अनपढ़, बेवकूफ, कुत्ता और बंदर कहा था।
चिप्पा युनाइटेड ने बयान में कहा, "क्लब आधिकारिक तौर पर यह घोषणा करता है कि वह बेल्जियम के लुक इयामाएल की नियुक्ति को वापस लेता है। इयामाएल को कोच नियुक्त करने के बाद क्लब का काफी आलोचना हो रही है। इससे हमारे ब्रांड की ख्याति पर भी असर पड़ा है।"
क्लब ने कहा कि इयामाएल को हटाना उनकी नस्लभेद के खिलाफ अपनाई जाने वाली जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा है। (आईएएनएस)
चीन और रूस की सामरिक नजदीकियां बीते सालों में और बढ़ गई हैं. संयुक्त राष्ट्र से लेकर एशिया प्रशांत के क्षेत्र में यह करीबी ज्यादा साफ दिखाई देती है. हाल में बॉम्बर जहाजों की संयुक्त गश्त ने कई देशों की चिंता बढ़ा दी है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-
चीन और रूस के बीच साझा सामरिक समझ पिछले कई बरसों से लगातार बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में इन दोनों के बीच समन्वय तो देखते ही बनता है. बीते दस सालों में यह समझ और मजबूत हुई है - खास तौर से जब मामला अमेरिका या उसके सैन्य गठजोड़ के एशियाई साथियों से जुड़ा हो. दक्षिण कोरिया इस सामरिक समीकरण में खास तौर पर कमजोर पड़ जाता है. अमेरिका के एशियन अलायंस के दूसरे साथियों - जापान और आस्ट्रेलिया के मुकाबले दक्षिण कोरिया की स्थिति काफी अलग है. इस संदर्भ में उत्तर कोरिया का दक्षिण कोरिया और अमेरिका के प्रति लड़ाकू रवैया और उसके चीन और रूस के साथ दोस्ताना और कुछ हद तक अलायंस पार्टनर जैसे सम्बंध मामले को खासा पेचीदा बना देते हैं. परेशानी का सबब यह भी है कि अमेरिका का अलायंस पार्टनर होने के बावजूद जापान और दक्षिण कोरिया के बीच आपसी खटपट भी काफी है.
उत्तर पूर्व एशिया के इन देशों की इस आपसी खींचतान के बीच चीन और रूस के बढ़ते सैन्य समन्वय का ताजा उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला जब 22 दिसम्बर को चीन और रूस की वायु सेनाओं ने पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में संयुक्त एयर पेट्रोलिंग मिशन को अंजाम दिया.
रूस की वायुसेना के अनुसार उसके टीयू – 95 स्ट्रैटेजिक बॉम्बर जहाजों ने चीन के 4 एच-6के बाॉम्बर जहाजों के साथ मिलकर पूर्वी चीन सागर और जापान सागर पर साथ - साथ उड़ान भरी और गश्त लगाई. रूस और चीन की इस इलाके में की गयी यह दूसरी ऐसी गतिविधि थी. पिछली बार इन दोनों देशों ने ऐसी ही साझा गश्त जुलाई 2019 में लगाई थी. इस दिलचस्प साझा गश्त में शामिल छह लड़ाकू विमान दोकदो द्वीपसमूहों के ऊपर से भी गुजरे. यह द्वीपसमूह, जिन्हें ताकेशिमा द्वीपों के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच सीमा विवाद का हिस्सा हैं. इन द्वीपों पर फिलहाल दक्षिण कोरिया का कब्जा है जिसे जापान स्वीकार नहीं करता और बरसों से इस पर अपना दावा बनाए हुए है.
दक्षिण कोरियाई सूत्रों के अनुसार चीनी लड़ाकू विमान पूर्वी चीन सागर में सोकोट्रा के पास से उसके सीमा क्षेत्र में घुसे. चीन इसे सुयन चट्टान का नाम देता है तो दक्षिण कोरिया इसे लेओडो चट्टान की संज्ञा देता है.
जापान और दक्षिण कोरिया के सीमाक्षेत्र में रूस और चीन के बाॉम्बर विमान क्या कर रहे थे इसका जवाब तो रूस और चीन ही दे सकते हैं, लेकिन इस हरकत से जापान और दक्षिण कोरिया के कान तो खड़े हो ही गए हैं. खास तौर से जापान जिसके सबसे बड़े सैनिक अड्डे और अमेरिका के एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़े सैन्य ठिकाने ओकिनावा के ऊपर भी यह बाॉम्बर विमान दिखाई पड़े. लिहाजा, आनन फानन में जापान ने भी अपने लड़ाकू विमानों को रूस और चीन के विमानों के पीछे लगा दिया जिससे उसके प्रतिरोध का पता चल सके. इस घटना से जापान की चिंताएं भी बढ़ी हैं. जापानी विदेश सेवा के एक उच्च अधिकारी ने चीन की बढ़ती कारगुजारियों को ताइवान की सुरक्षा से जोड़ते हुए कहा है कि जापान की सुरक्षा ताइवान की सुरक्षा से सीधे जुड़ी है, और अमेरिका के बाइडेन प्रशासन को इस पर खास ध्यान देना होगा.
दक्षिण कोरिया के लिए भी यह चिंताजनक बात है क्योंकि रूस और चीन के विमान उसके एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (एडीआईजेड) में घुस आए. दक्षिण कोरिया इन विमानों का कुछ कर तो नहीं पाया, और करे भी क्या? इन दो सैन्य महाशक्तियों को रोकने की क्षमता तो दक्षिण कोरिया में है नहीं, फिर भी उसने अपने लड़ाकू विमान किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए लगा रखे थे. दक्षिण कोरिया चीन जैसी सैन्य क्षमता और आक्रामक रवैया तो रखता नहीं कि वह भी घोषणा कर दे कि यदि कोई विमान उसके एडीआईजेड में घुसेगा तो उसे मार गिराया जाएगा. बहरहाल दक्षिण कोरिया के विदेश और रक्षा मंत्रालयों ने चीन और रूस के अपने समकक्षों को अपनी चिंताओं से अवगत कर दिया है, जिनका हासिल कुछ नहीं होना है यह भी सब को पता है. दक्षिण कोरिया ने यह भी कहा कि चीनी और रूसी विमान उसके एडीआईजेड में घुसे तो सही लेकिन किसी वायुक्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया. अब एक तुलनात्मक रूप से कमजोर, दुश्मनों से घिरा और शांतिप्रिय देश इससे ज्यादा कह भी क्या सकता है?
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार रूस और चीन के इस साझा एयर पेट्रोलिंग को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अक्टूबर 2020 में दिए गए उस बयान से भी जोड़ कर देखते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि रूस और चीन के बीच व्यापक स्तर पर सैन्य सहयोग और अलायंस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
इस साझा एयर पेट्रोलिंग से कुछ बातें तो बिल्कुल साफ हैं. पहली यह कि आने वाले समय में चीन और रूस के बीच सैन्य सहयोग और बढ़ेगा जिसका सीधा असर जापान और दक्षिण कोरिया की सुरक्षा नीतियों और चिंताओं पर पड़ेगा.
जापान और दक्षिण कोरिया के बीच विवादों के चलते इन दोनों ही देशों के पास अमेरिका का मुंह ताकने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखता. हालांकि यह भी साफ है कि अगर जापान और दक्षिण कोरिया पर दबाव बढ़ता है तो वह आपसी सहयोग की तरफ भी बढ़ सकते हैं लेकिन अमेरिकी हस्तक्षेप के बिना यह संभव नहीं होगा.
इस एयर पेट्रोलिंग का तीसरा और महत्वपूर्ण संदेश बाइडेन प्रशासन के लिए है. उत्तर पूर्व एशिया में अमेरिकी प्रभुत्व बनाये रखना बाइडेन प्रशासन के लिए एक कठिन चुनौती होगा. उत्तर कोरिया का मसला तो एक सिरदर्द है ही. अपने साथियों की चिंताओं को दूर करने के साथ साथ अमेरिका को अपने दोस्तों को नजदीक लाने की कोशिश भी करनी पड़ेगी.
जहां तक भारत का सवाल है तो रूस और चीन के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग के इस पर भी दूरगामी परिणाम होंगे. चीन के साथ पिछले दस महीनों से गलवान घाटी और आसपास के इलाकों में चल रहे भारत – चीन सीमा गतिरोध, और अमेरिका और क्वाड के अन्य सदस्यों से बढ़ती सैन्य नजदीकियों के बीच रूस से भारत की दोस्ती अक्सर सवालों के घेरे में आ जाती है. रूस के साथ अपने सैन्य सहयोग को द्विपक्षीय धुरी पर रखना और अमेरिका, पाकिस्तान, या चीन के साथ अपने या रूस के संबंधों से भारत-रूस संबंधों को प्रभावित ना होने देना भारतीय विदेश नीति के समक्ष एक चुनौती है जिससे निपटने को प्राथमिकता देना एक बेहद जरूरी है.
(राहुलमिश्रमलायाविश्वविद्यालयकेएशिया-यूरोपसंस्थानमेंअंतरराष्ट्रीयराजनीतिकेवरिष्ठप्राध्यापकहैं)
दमिश्क, 26 दिसम्बर। सीरिया में इजरायल के एक हवाई हमले में सरकार समर्थक छह लड़ाके मारे गए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, ब्रिटेन स्थित 'सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स' ने एक बयान में कहा कि इजरायल के मिसाइल हमले ने शुक्रवार को रक्षा फैक्ट्रियों को निशाना बनाया, जहां एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र हमा प्रांत के मसियफ शहर में स्थित है।
वॉचडॉग समूह ने कहा कि हमले ने ईरानी लड़ाकों द्वारा चलाए जा रहे हथियार डिपो को नष्ट कर दिया।
वहीं, सीरियाई सेना ने कहा कि उसके एयर डिफेंस ने इजरायल की अधिकांश मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर दिया था जिन्हें मसियफ पर दागा गया था।
सीरियाई संकट के दौरान, इजराइल ने ईरानी ठिकानों सहित सीरियाई मिलिट्री साइट के खिलाफ सैकड़ों हवाई हमले किए हैं।
(आईएएनएस)|
वाशिंगटन, 26 दिसंबर। अमेरिकी राज्य टेनेसी में नैशविले शहर में हुए विस्फोट स्थल पर अधिकारियों को मानव अवशेष मिले हैं। पुलिस ने इसे जानबूझकर किया गया विस्फोट माना था। यह जानकारी कई मीडिया रिपोटरें से मिली है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि मिले अवशेष शुक्रवार को हुए विस्फोट से संबंधित है या नहीं। अवशेषों को मेडिकल परीक्षण के लिए भेज दिया गया है। विस्फोट में तीन लोग घायल हो गए थे।
वहीं यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह संदिग्ध अपराधी के अवशेष हैं या पीड़ित के हैं।
मेट्रो नैशविले पुलिस डिपार्टमेंट (एमएनपीडी) ने ट्वीट कर बताया कि शहर के दूसरे एवेन्यू नॉर्थ इलाके में सुबह 6.30 बजे विस्फोट हुआ था। इसकी जांच जारी है।
पुलिस ने कहा कि, ऐसा प्रतीत होता है कि यह विस्फोट जानबूझकर किया गया।
एमएनपीडी के प्रमुख जॉन ड्रेक ने न्यूज कॉन्फ्रेंस को बताया कि 15 मिनट में बम का विस्फोट होने का संकेत देने वाला एक रिकॉर्ड किया गया संदेश रिक्रिएशनल व्हीकल (आरवी) से आता हुआ सुना गया था।
चेतावनी प्रसारण में आरवी ने कहा, "यदि आप इस संदेश को सुन सकते हैं, तो इसे अभी खाली करें।"
एमएनपीडी के प्रवक्ता डॉन आरोन के अनुसार, अधिकारियों को इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि आरवी के अंदर कोई था या नहीं।
आरोन ने यह भी कहा कि जिस सड़क पर विस्फोट हुआ है, वहां "बुनियादी ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा है।"
डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (डीओजे) ने बयान में कहा कि कार्यवाहक अटॉर्नी जनरल जेफरी रोसेन को विस्फोट के बारे में जानकारी दी गई है और निर्देश दिया है कि सभी डीओजे संसाधनों को जांच में सहायता के लिए उपलब्ध कराया जाए।
(आईएएनएस)
पहाड़ों में भूस्खलन होता रहता है. पहाड़ों के टूटने से अक्सर रास्ते बंद हो जाया करते हैं और इलाके में अगर बस्तियां हों तो वहां भी तबाही मच जाती है. क्या भूस्खलन की भविष्यवाणी करना संभव है.
म्यूनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलगॉय के पहाड़ों में यही पता करने में लगे हैं. म्यूनिख जर्मनी के दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी है और ये इलाका आल्प्स पहाड़ों से लगा है. होखफोगेल इलाके में करिब 2600 मीटर ऊंची चोटी है जहां पिछले सालों में नियमित रूप से भूस्खलन होता रहा है. प्रो. मिषाएल क्राउटब्लाटर की टीम पहाड़ी में आ रही दरारों को जांचने में लगे हैं. आल्प्स की पहाड़ियों में बस्तियां तो हैं ही पहाड़ी रास्तों में ट्रेकिंग के रास्ते भी हैं जहां हर साल हजारों सैलानी ट्रेकिंग करने के लिए और छुट्टियां बिताने जाते हैं. ऐसे में शिलास्खलन से जानमाल को बहुत ही नुकसान हो सकता है. अगर पहाड़ों पर नजर रखी जाए तो अक्सर ये संभावना दिखती है कि कोई पहाड़ गिरेगा, लेकिन कब, इसका अंदाजा नहीं होता.
म्यूनिख के टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रो. मिषाएल क्राउटब्लाटर 2004 से प्राकृतिक खतरों, पहाड़ी चोटियों पर भूस्खलन और पैर्माफ्रॉस्ट सिस्टम पर काम कर रहे हैं. वे अस्थिर पहाड़ों का पता कर वहां भूस्खलन की संभावना की भविष्यवाणी का सिस्टम तैयार कर रहे हैं.
मौसम में बदलाव का असर पहाड़ों की हलचल पर भी हो रहा है. पैर्माफ्रॉस्ट के गलने, चट्टानों के टूटने और भूस्खलन से कीचड़ के नीचे आने से पहाड़ी इलाकों में खतरे बढ़ रहे हैं. आल्प्स का इलाका भी इसमें अपवाद नहीं है. अपने शोध में प्रो. क्राउटब्लाटर आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और फील्डवर्क तथा लैब की परीक्षणों को मिलाकर एक निगरानी व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रहे हैं. वे बताते हैं, हमारी इसमें दिलचस्पी है कि आखिरी वक्त तक देखें कि भविष्यवाणी कहां तक सही साबित होती है. क्या हम तीन दिन पहले इसके बारे में बता सकते हैं?
एक फील्डवर्क के दौरान प्रो. क्राउटब्लाटर की टीम ने पाया कि पहाड़ के दक्षिणी भाग का बड़ा हिस्सा टूट कर 1000 मीटर तक नीचे गिर सकता है. पहाड़ी चट्टान में दरारें दिख रही हैं. कुछ तो 100 मीटर से ज्यादा लंबी हैं. इतनी बड़ी कि उसमें ट्रैक्टर भी समा जाए. क्राउटब्लाटर के यंत्रों से पता चलता है कि हर दिन दरारें 0.4 मिलीमीटर की रफ्तार से बढ़ रही है. सुनने में भले कम लगे लेकिन पहाड़ के लिए ये बहुत ही बड़ा है. मिषाएल क्राउटब्लाटर और उनकी टीम ने उस जगह पर मेजरमेंट इंस्ट्रूमेंट लगा दिया है. बीच बीच में उनकी जांच करनी होती है और जरूरत पड़ने पर मरम्मत भी.
पहाड़ों में निगरानी व्यवस्था लगाने की राह में बाधाएं भी हैं. एक तो माप यंत्रों और सेंसर को लगाने के लिए पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है. टीम के सदस्यों को पर्वतारोहण का अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे मुश्किल जगहों पर पहुंच सकते हैं और मापने वाले यंत्र लगा सकते हैं. यहां लगाए जाने वाले सेंसर बहुत है संवेदनशील हैं और वे मिलीमीटर के सौंवे हिस्से तक को रजिस्टर करते हैं और इसकी सूचना नीचे तक पहुंचाते हैं जहां उनका आकलन किया जाता है. मिषाएल क्राउटब्लाटर बताते हैं कि कभी कभी तो बिजली गिरती है और वह यंत्रों को नष्ट कर देती है. फिर उसे ठीक करने का काम भी होता है. दरारों को मापने के लिए दूरी मापने वाला यंत्र लगाया जाता है जो दरार में हर बदलाव को मापता है और उसकी उसी समय सूचना देता है.
ऐसी जगहों पर अगर सारी दरारें एक साथ खुल जाएं तो वैज्ञानिकों को डर है कि लाखों घनमीटर चट्टानें घाटी में गिरेंगी. इससे निकलने वाली धूल इलाके में घंटों रहेगी और चट्टानें भी लंबे समय तक टूटती रहेंगी. शोर तो होगा ही, धूलों का गुबार पूरे इलाके में दिखेगा और सारे इलाके को धूल में भर देगा.
तीन साल पहले स्विट्जरलैंड के ग्राउबुंडेन इलाके में पिज चेंगालो में पहाड़ टूटा था. 3369 मीटर की ऊंचाई वाली चोटी से चट्टान के टूटने से कुल मिलाकर 40 लाख घनमीटर चट्टानें नीचे घाटी में गिरी थीं. एक गांव को खाली कराना पड़ा था. दुर्घटना में आठ पर्वतारोहियों को चट्टानों ने अपनी चपेट में ले लिया था, उनका अब तक पता नहीं चला है. उसके बाद हुआ भूस्खलन कीचड़ के साथ नीचे आया और बोंडो कस्बे को तहस नहस कर गया. पहाड़ के गिरने पर जान माल के नुकसान का डर तो बना ही रहता है.
प्रो. क्राउटब्लाटर की टीम को अपनी जांच के दौरान लगता है कि अगर पहाड़ का दक्षिणी हिस्सा गिरा तो पहाड़ के दूसरे हिस्से में स्थित अलगौय के इलाके पर भी असर होगा. यहां कोई रिहायशी इलाका तो नहीं है, लेकिन यहां से होकर ट्रेकिंग का एक मशहूर रास्ता गुजरता है. भूविज्ञानी मिषाएल डीत्से कहते हैं, „अगर चट्टान वहां से एकबारगी तेजी से गिरता है, तो यहां स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी और फिर और चट्टानों के गिरने की संभावना होगी." दरार मापने के लिए वे ड्रोन का भी सहारा लेते हैं ताकि उन तस्वीरों से दरार का अंदाजा लगाया जा सके. ड्रोन से ली गई तस्वीरों की मदद से दरार का थ्रीडी ग्राफिक तैयार होता है. इस तरह दरार को सेंटीमीटर के दायरे में देखा जा सकता है. इस घटना का इस्तेमाल निगरानी के उपकरणों को टेस्ट करने के लिए भी किया जा रहा है.
भूविज्ञानियों का कहना है कि पहाड़ों में भूस्खलन को तकनीकी मदद से रोका नहीं जा सकता है. बचाव के लिए उनके बारे में जानना जरूरी है और जो इलाके खतरनाक हैं, वहां से लोगों को हटाना ही सबसे अच्छा उपाय है. खतरे वाले इलाकों को जानने के लिए निगरानी सिस्टम जरूरी है. 2017 में स्विट्जरलैंड में बोंडो में लोगों को कुछ नहीं हुआ क्योंकि समय रहते ही वहां के करीब 100 निवासियों को हटा लिया गया. मिषाएल क्राउटब्लाटर की टीम ने सारे उपकरण लगा दिए हैं. उन्हें उम्मीद है कि चट्टान के गिरने से पहले वे घाटी में रहने वाले लोगों और सैलानियों को चेतावनी दे पाएंगे.
बेटी की शादी के लिए दहेज में मकान देना जरूरी होने के कारण बहुत से लड़कियों की जिंदगी दुश्वार हो गई है. श्रीलंका के इस समाज में एक तरफ बेटियां कुआरीं बैठी हैं तो दूसरी तरफ मकान की कीमतें आसमान छू रही हैं.
रिजीना (बदला हुआ नाम) के लिए यह एक और तकलीफदेह दिन था. वह परिवार के साथ अपनी बहन के लिए दूल्हा खोज रही हैं लेकिन इस बार भी नाकाम रहीं. बीते एक दशक में उनके साथ कुल मिला कर ऐसा 46वीं बार हुआ. रेजीना के परिवारवालों ने जब शादी के लिए दहेज में घर देने में असमर्थता जताई तो दूल्हे के परिवार वालों से ज्यादातर मुलाकातें कुछ मिनटों में ही निबट गईं.
रिजीना का घर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से करीब 350 किलोमीटर दूर साइंथामारुथु में है. यहां स्थानीय मुस्लिम परिवारों में लड़की को दहेज में घर देने की रिवायत है. इसके बगैर शादी नहीं होती. लड़के के परिवार वाले मिलने पर पहला सवाल ही यही पूछते हैं. रिजीना बताती हैं, "जब हम कहते हैं कि खरीदने की कोशिश कर रहे हैं तो बातचीत वहीं टूट जाती है."
रिजीना को उनके मां बाप ने दहेज में घर दिया था. श्रीलंका के पूर्वी तट वाले इस इलाके में मकान की कीमतें बहुत ज्यादा हो गई हैं और उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो घर खरीद सकें. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि दहेज में घर देने की प्रथा के कारण यहां मकान की कीमतें आसमान छू रही है और ऐसी महिलाओं की तादाद बढ़ती जा रही है जिनकी शादी नहीं हुई या फिर जिनके पास कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता और सामाजशास्त्र की लेक्चरर मिन्नाथुल सुहीरा कहती हैं, "दहेज इस संस्कृति का ऐसा दानव बन गया है जिसे रोक पाना संभव नहीं हो रहा. एक औसत परिवार के लिए भारी कर्ज लेकर जमीन और मकान खरीदना बहुत मुश्किल है." सुहीरा ने बताया कि यह एक जटिल मुद्दा है जिसे कोई सुलझाना नहीं चाहता. बहुत सारे लोग दहेज के लिए जमीन और मकान खरीदने के कारण कर्ज में डूबे हैं. दहेज के मामले में यहां कोई समझौता नहीं होता.
जीवन की सुरक्षा
श्रीलंका के भीड़भाड़ वाले पूर्वी तट के इलाके में जमीन की भारी मांग है. सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि कुछ गांवों में तो प्रति किलोमीटर एक लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. 10 साल पहले साइंथामारुथु में 25 वर्गमीटर जमीन की कीमत 50000 श्रीलंकाई रुपये थी आज यही जमीन आठ लाख रुपये से ज्यादा की है. स्थानीय लोग बताते हैं कि इलाके में उच्च शिक्षा पाने में असमर्थ महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा है. ऐसे में उन्हें कोई नौकरी नहीं मिलती है. अपना गुजारा चलाने के लिए उनके पास शादी ही एक मात्र जरिया है.
दूसरी तरफ जो महिलाएं काम करती हैं वो खुद से बेहतर पति चाहती हैं. इसका मतलब है कि उनके मां बाप को और ज्यादा जमीन और बड़े घर दहेज के लिए जुटाने होंगे. जिन महिलाओं की शादी नहीं हो पाती उन्हें अपने खर्च के लिए मां बाप पर आश्रित होना पड़ता है. स्थानीय कार्यकर्ता कालिलु रहमान ने बताया, "जब मां बाप मर जाते हैं तो वो करीबी रिश्तेदारों पर आश्रित हो जाती हैं."
विदेशी पैसा
श्रीलंका के पूर्वी तटीय इलाके की आबादी लगातार बढ़ रही है और ऐसे में जितनी जमीन वहां है उस पर दबाव बढ़ता जा रहा है. फिलहाल साइंथामारुथु में करीब 30,000 लोग रहते हैं. 2012 की जनगणना से यह करीब 18 फीसदी ज्यादा है. नतीजा यह है कि हर परिवार के पास मौजूद जमीन का टुकड़ा एक दशक पहले की तुलना में अब बस एक तिहाई ही बचा है. अमपरा जिले के लैंड ऑफिसर एमएम रफी बताते हैं, "250 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा बीते 10 सालों में एक बस्ती में तब्दील हो गया है जिसमें तमाम घर हैं और कई परिवार रह रहे हैं."
दूसरा कारण मध्यपूर्व के देशों में रहने वाले यहां के लोग भी हैं. ये लोग अपनी बहनों और बेटियों के दहेज के लिए जमीन खरीदते हैं जिसके कारण कीमतें बढ़ती जा रही है. उदाहरण के लिए तटवर्ती गांव आक्काराईपट्टू के हर तीन परिवार में एक परिवार का कोई ना कोई सदस्य विदेश में है. इनके पास पैसा है इसलिए वो काफी सारी जमीन खरीद सकते हैं और फिर बाजार में उनका एकाधिकार चल रहा है. कीमतें बढ़ गई हैं और दूसरे लोग जमीन नहीं खरीद सकते. लोग यह भी कहते हैं कि कीमतें बढ़ने के कारण बाहर रहने वालों के लिए यह एक सुरक्षित निवेश भी बन गया है.
राजनीतिक कार्यकर्ता सिराज मशूर बताते हैं कि अधिकारी दहेज की मुश्किलों को सुलझाने में इसलिए भी नाकाम हो रहे हैं क्योंकि वे इसे समस्या के तौर पर देखते ही नहीं. समाज के ज्यादातर लोग इसे उचित मानते हैं.
मकान के लिए जिंदगी
कालमुनाई शहर में 54 साल के मोहम्मद राजिक दो बच्चों के पिता हैं और 2005 से ही 75 वर्गमीटर का मकान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह मकान उनकी बेटी के लिए है जो अब 28 साल की हो गई है और बीते एक दशक से शादी के इंतजार में है. जब तक यह मकान नहीं बन जाता राजिक के पास दहेज में देने के लिए कुछ नहीं है. समस्या यह है कि उनके इस मकान के अगल बगल खाली जमीन भी नहीं तो वह अपना मकान बढ़ा नहीं सकते. राजिक बताते हैं, "लड़के वाले कम से कम 150 वर्गमीटर का मकान मांगते हैं."
राजिक की कमाई एक दिन में बमुश्किल से 180 श्रीलंकाई रुपये है और मकान को पूरा करने के लिए उन्हें कम से कम 10 लाख रुपये की जरूरत है. वे कहते हैं, "जब जमीन और दहेज की बात हो तो कोई इस बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं होता. यह हमारे समाज के लिए एक नासूर बन गई है. मैं 15 साल से अपनी सारी बचत इस मकान में लगा रहा हूं. यह असंभव हो गया है."
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
कुछ लोग बिना काम के खाली नहीं बैठ पाते. उन्हें खुद को व्यस्त रखकर ही चैन मिलता है. ब्रिटेन में पहले लॉकडाउन के दौरान ऐसे कई लोगों ने जहां तहां से खजाना खोज निकाला.
जंगलों और खुले इलाकों में मेटल डिटेक्टर के साथ घूमते कुछ लोग. ब्रिटेन में पहले ऐसा नजारा आम था. ऐसे लोगों को ट्रेजर हंटर्स यानि खजाने की खोज करने वाले कहा जाता है.कोरोना वायरस के कारण पहले लॉकडाउन के दौराने खजाने की खोज पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
प्रतिबंध की वजह से लोग घरों में कैद से हो गए. बोरियत मिटाने के लिए कई लोगों ने अपने ही गार्डन और घरों में फावड़े चलाने शुरू कर दिए. अब उनकी सफलता हैरान करने वाली है. ब्रिटिश म्यूजियम के मुताबिक इस दौरान कुल 47,000 पौराणिक चीजें सामने आईं.
क्या क्या मिला?
इन 47,000 चीजों में टुडर का खजाना भी शामिल है. टुडर 16वीं शताब्दी में एक बड़ा कुलीन परिवार था. खजाने में 63 सोने के सिक्के और एक चांदी का सिक्का मिला है. ये सभी 15वीं शताब्दी के आखिरी दौर से 16वीं शताब्दी की शुरुआत के बीच के सिक्के हैं.
बागवानी का काम करने वाले एक शख्स को खर पतवार हटाते समय दक्षिणी इंग्लैंड के न्यू फॉरेस्ट इलाके में यह खजाना मिला. ब्रिटिश म्यूजियम के विशेषज्ञों को भी इस बात का कोई अंदाजा नहीं लग रहा है कि ये खजाना उस गार्डन में कैसे पहुंचा.
पश्चिमोत्तर लंदन के एक बगीचे में भी दक्षिण अफ्रीका की नस्लभेदी सत्ता अपारथाइड के सिक्के मिले हैं. सभी 50 सिक्के सोने के हैं.
इनके अलावा डर्सले और ग्लूकेस्टेर्शर में मध्य काल की मुहरें भी मिली हैं. हालांकि इन पर पुरातत्व विज्ञानियों को नकली होने का शक भी हो रहा है. हैम्पशर में मिश्रित तांबे की मदद बनाया गया रोमनकालीन फर्नीचर मिला है. यह 43 से 2000 ईसवी के बीच का है. इसमें पौराणिक ग्रीक देवता ओशनस का चेहरा साफ देखा जा सकता है.
ब्रिटेन और जर्मनी में मेटल डिटेक्टर की मदद से वीरान इलाकों की खाक छानना आम तौर पर प्रतिबंधित है. इसके लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. यह इजाजत इसी शर्त पर दी जाती है कि खोज में जो भी मिलेगा, उसे प्रशासन के पास जमा कराया जाएगा. इसके बाद एक समिति इन चीजों का मूल्यांकन करती है और खोजकर्ता को ईनाम के तौर पर एक हिस्सा देती है.
लाहौर में चीन की मदद से मेट्रो रेल सेवा शुरू हुई है. स्थानीय यात्रियों की सुविधा तो बढ़ गई है लेकिन हजारों लोग अपनी संपत्ति और रोजी रोटी पर संकट के कारण नाखुश हैं. मेट्रो रेल ने इन लोगों का सुख चैन छीन लिया है.
1.8 अरब अमेरकी डॉलर की इस परियोजना का पहला चरण अक्टूबर में शुरू हो गया. इससे शहर के ट्रैफिक और प्रदूषण दोनों में भारी कमी आएगी. दक्षिण एशिया के सबसे प्रदूषित शहरों में एक लाहौर के लिए यह खुशी की बात है लेकिन इसकी वजह से सैकड़ों लोगों का भविष्य अनिश्चय में झूल रहा है. अहमद का कहना है, "मैं कहीं और नहीं जाना चाहता. मैंने पूरी जिंदगी में सिर्फ इसी जगह को जाना है." फिलहाल उन्होंने विख्यात मौज दरिया के पीछे एक कमरा किराए पर लिया है लेकिन उन्हें डर है कि इलाके में मेट्रो स्टेशन आने के बाद यहां किराया बढ़ जाएगा और तब उन जैसे लोगों का गुजारा मुश्किल होगा.
चीनी रेलवे नोरिंको इंटरनेशनल और उसके पाकिस्तानी साझीदारों की चलाई ऑरेंज लाइन चीन की उन दो दर्जन परियोजनाओं में शामिल है जिसे खरबों डॉलर के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दुनिया के कई देशों में शुरू किया गया है. हर दिन ढाई लाख लोग इस रेल सेवा का इस्तेमाल करते हैं. बेहद सस्ती कही जाने वाली रेल सेवा का किराया 40 पाकिस्तानी रुपये है. सस्ती होने के साथ ही इसमें यात्रियों को आरामदायक और आधुनिक तकनीक से लैस यात्रा का मजा मिलता है.
अनारकली के चमचमाते मेट्रो स्टेशन के सामने खड़े स्थानीय निवासी 54 साल के कफील चौधरी का कहना है कि इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी कोरोना वायरस की महामारी के कारण मंदी का सामना कर रही है.
चौधरी का कहना है, "इस तरह की आधुनिक सेवा के पाकिस्तान में कम ही उदाहरण हैं. ऐसी ट्रेनें तो केवल यूरोप में ही दिखती हैं लेकिन अब ये चीन की वजह से पाकिस्तान में भी हैं."
"नाकाफी मुआवजा"
ऑरेंज लाइन के कारण विस्थापित हुए लोग इस कारण मुश्किल में हैं, खासतौर से शहर के मेट्रो रूट पर मौजूद ऐतिहासिक इलाके में सदियों से रहते आए लोग. अहमद बताते हैं, "10 लाख रुपये में हमें इस इलाके मे कभी जगह नहीं मिलेगी." सरकारी इमारत महाराजा बिल्डिंग के एक कमरे वाले अपार्टमेंट में उनका परिवार बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहा है.
इस इमारत का एक हिस्सा मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए गिरा दिया गया. इसकी वजह से यहां रहने वाले अहमद समेत करीब 200 लोग बेघर हो गए. बाद में उन्हें उसी इमारत के बचे हिस्से में एक कमरा किराए पर मिल गया. इस इमारत में रहने वाले ज्यादातर लोगों को बस यही लगता है कि शहर के सबसे विख्यात इलाके में मौजूद उनकी संपत्ति छिन गई. अब यहां कीमतें बढ़ रही हैं लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा.
लाहौर डेवलपमेंट अथॉरिटी के मुताबिक इमारत में रहने वाले करीब 50 परिवारों को एकमुश्त 10 लाख पाकिस्तानी रुपया प्रति रूम के हिसाब से दिया गया. हालांकि ज्यादातर लोग इससे नाखुश हैं. उनका कहना है कि घर खाी कराने के लिए वो लोग पुलिस के साथ आए. स्थानीय वकील जरगाम लुकेसर इस मेट्रो का रूट बदलवाने के लिए अभियान चलाने वालों में हैं. उनका कहना है कि निचले तबके के बहुत सारे लोगों को इस मेट्रो रेल के लिए संपत्ति बेचने पर मजबूर किया गया.
लाहौर डेवलपमेंट अथॉरिटी का कहना है कि सरकारी इमारतों में रहने वाले लोगों के मुआवजे के लिए 1.6 अरब और निजी संपत्ति के मालिकों के लिए 20 अरब रुपये निकाले गए थे. जमीन का अधिग्रहण अंग्रेजों के जमाने में बने 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किया गया. इस कानून में सरकार को अधिकार है कि वह मुआवजा और एडवांस नोटिस दे कर लोगों की जमीन अपने कब्जे में ले सकती है.
अथॉरिटी के प्रवक्ता लोगों पर संपत्ति बेचने के लिए दबाव डालने से इनकार करते हैं और साथ ही बाजार भाव से कम मुआवाजा देने की बात से भी. उनका कहना है कि सरकार ने ऐसे लोगों को भी मुआवजा दिया है जिनके पास संपत्ति के पर्याप्त दस्तावेज मौजूद नहीं थे. प्रवक्ता का कहना है, "निवासियों को मानवीय आधार पर सरकार ने पुनर्वास के लिए मुआवजा दिया, वो भी तब जब उनके मालिकाना हक के पूरे दस्तावेज भी नहीं थे."
"मेट्रो ने बनाया गरीब"
महाराजा बिल्डिंग का एक हिस्सा गिराने के बाद वहां रहने वालों को लगा की उनकी मुसीबत खत्म हो गई लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ. इमारत के बाहर पैदल चलने वालों के लिए बना रास्ते पर अब भी धातु की चादरें रखी हुई हैं. ऑरेंज लाइन के लिए मौज दरिया की जब मुख्य मस्जिद ढहा दी गई तो उसके बदले बनी एक कोने में अस्थायी मस्जिद बनाई गई. महाराजा बिल्डिंग में रहने वाली समीना नईम कहती हैं, "ये इमारत अब सुरक्षित नहीं है." सरकार ढहाई गई मस्जिद के बदले एक और मस्जिद बना रही है.
वकील लुकेसार कहते हैं कि सिर्फ स्थानीय लोगों की जिंदगी में ही ऑरेंज लाइन के कारण उथल पुथल नहीं हुई है. उनके मुताबिक, "पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था बिखर गई है. गली में बैठने वाले छोटे दुकानदारों को हटना पड़ा, पेड़ों को हटाया गया, बहुत ज्यादा असर हुआ है." मेट्रो लाइन के रास्ते में आए 600 पेड़ गिरा दिए गए. मौज दरिया समेत कई ऐतिहासिक विरासतों को भी नुकसान पहुंचा.
मेट्रो से नाखुश लोगों की एक दलील यह भी है कि चीन का निवेश पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ बढ़ा रहा है. देश पर अब राष्ट्रीय बजट का 40 फीसदी कर्ज है. मेट्रो के सस्ते टिकट की कीमत पूरे देश की जनता के कंधों पर है. 40 साल की मुमताज कहती हैं, "मैं जब अपने शहर, अपनी जेब, अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण की ओर देखती हूं तो लगता है कि हम और गरीब हो गए."
एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)
मेक्सिको सिटी, 25 दिसम्बर | मेक्सिको में नोवेल कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण के अभियान को शुरू कर दिया गया है। यहां लोगों को अमेरिकी प्रयोगशाला फाइजर और इसके जर्मन सहयोगी बायोएनटेक द्वारा विकसित वैक्सीन दी जा रही है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वैक्सीन के लिए सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों को प्राथमिकता दी जा रही है और इसी के चलते गुरुवार को मारिया इरिन रमिरेज को पहली खुराक दी गई, जो मेक्सिको सिटी में स्थित हॉस्पिटल रूबेन लेनेरो के गहन चिकित्सा विभाग में नर्सिग की हेड हैं। मेक्सिको की राजधानी कोरोनावायरस के प्रकोप से काफी ज्यादा प्रभावित हुआ था। यहां कुल मामलों की संख्या 302,199 तक पहुंच गई थी, जबकि 20,472 लोग मर चुके हैं।
वैक्सीन की इस लॉन्चिंग सेरेमनी में उप स्वास्थ्य मंत्री ह्यूगो लोपेज-गैटल ने कहा कि महामारी अभी भले ही खत्म नहीं हुई है, लेकिन वैक्सीन के साथ इससे और अधिक प्रभावी ढंग से लड़ा जा सकता है। (आईएएनएस)
अबू धाबी, 25 दिसंबर | सऊदी अरब और कुवैत से भारतीय प्रवासी, जो फिलहाल कोविड-19 महामारी के कारण लगे यात्रा प्रतिबंधों के मद्देनजर संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में फंसे हुए हैं, उन्हें अब मुफ्त आवास की सुविधा मिलने जा रही है। एक मीडिया रिपोर्ट में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई।
गल्फ न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 300 प्रवासियों में सबसे अधिक केरल से हैं। उन्होंने यूएई से सऊदी अरब और कुवैत के लिए उड़ान का एक अप्रत्यक्ष मार्ग लिया, क्योंकि भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं थी।
रिपोर्ट के अनुसार, यूएई में 14 दिन की अनिवार्य क्वांरटीन अवधि पूरी होने के बाद भी वह यहीं फंसे रह गए, क्योंकि तब तक खबर आई कि सऊदी अरब और कुवैत में उड़ानों को निलंबित कर दिया गया है।
दुबई मरकज सेंट्रस के स्वयंसेवकों के विंग इंडियन कल्चरल फाउंडेशन (आईसीएफ) ने प्रवासी भारतीयों के नि: शुल्क आवास और भोजन की व्यवस्था के लिए निर्माण कंपनी आसा ग्रुप के साथ मिलकर व्यवस्था की है।
फंसे हुए लोगों में से एक मोहम्मद मुस्तफा ने कहा, "हम चार लोग एक ही रेस्तरां में काम करते हैं। हमने संयुक्त अरब अमीरात में 'क्वांरटीन पैकेज' के लिए लगभग 70,000 रुपये खर्च किए, जिसमें कुवैत के लिए उड़ान भरने से पहले हमारे 14 दिन के क्वांरटीन के लिए सब कुछ शामिल रहा है।" (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 25 दिसंबर | क्रिसमस के पर्व पर अपने राष्ट्र को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप ने कोरोनावायरस के खिलाफ देश के दो वैक्सीन को 'क्रिसमस का चमत्कार' बताया। द हिल न्यूज की वेबसाइट में बताया गया कि ट्रंप और मेलानिया ने गुरुवार को जारी एक वीडियो में लोगों को क्रिसमस के लिए शुभकामनाएं दीं।
राष्ट्रपति ने कहा, "हम सभी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, विनिर्माण इकाइयों में काम करने वाले कर्मियों, सर्विस मेंबर्स के प्रति आभारी हैं, जो इस मुश्किल काम को संभव बनाने के लिए अथक परिश्रम किया है। यह वास्तव में क्रिसमस का एक चमत्कार है।"
देश की पहली महिला ने कहा, "जैसा कि आप जानते हैं इस साल क्रिसमस बीते सालों के क्रिसमस की अपेक्षा अलग है। हम सभी वैशिक महामारी से जूझ रहे हैं, जिसने हम सभी को प्रभावित किया है।"
इन दोनों ने आगे कहा, "हमारे बच्चे सीखने की प्रक्रिया को जारी रखें, इसके लिए अध्यापक/अध्यापिकाओं ने असाधारण काम किया है। विद्यार्थियों ने भी अपने आसपास रहने वाले बुजुर्गो तक जरूरत की चीजें पहुंचाकर उनकी मदद की है। लोगों ने एक-दूसरे से जुड़े रहने का एक नया तरीका ढूंढ़ निकाला है।"
फाइजर और मॉर्डना द्वारा बनाए गए दो वैक्सीन के आपातकालीन वितरण को हाल ही में मंजूरी दे दी गई है। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 25 दिसंबर | पाकिस्तान में ईसाइयों ने शुक्रवार को देशभर में विशेष प्रार्थना के साथ क्रिसमस मनाया। जियो न्यूज के रिपोर्ट अनुसार, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और प्रधान मंत्री इमरान खान ने इस अवसर पर ईसाई समुदाय को शुभकामनाएं दी और इस दौरान कोरोनावायरस के खिलाफ लागू किए गए सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति अल्वी ने अपने संदेश में कहा, "देश के सभी नागरिक धर्म की स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं और संविधान के तहत अपने धर्म का पालन करते हैं।"
इस बीच, खान ने कहा कि सरकार अल्पसंख्यक सहित सभी पाकिस्तानियों द्वारा प्राप्त अवसरों की मौजूदगी और समानता की पवित्रता को बनाए रखने के लिए समर्पित है।
प्रधानमंत्री ने कहा, "अल्पसंख्यक बिना किसी बाधा के देश के विकास और समृद्धि में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "हमारे सभी ईसाई नागरिकों को क्रिसमस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। कृपया कोविड-19 एसओपी को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित रहें।"
ईसाई धर्म पाकिस्तान में तीसरा सबसे बड़ा धर्म है।
पाकिस्तान में ईसाई की आबादी यहां की आबादी का लगभग 1.6 प्रतिशत है।
--आईएएनएस
लिस्बन, 25 दिसम्बर | पुर्तगाल में स्पेन के कुछ शिकारियों ने कुल मिलाकार 540 हिरण और जंगली सुअरों की न केवल निर्ममता से हत्या की है बल्कि इन मरे हुए जानवरों के साथ अपनी तस्वीरें भी खिंचवाई है। लिस्बन में अधिकारियों ने इस पर जांच शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है।
डेलीमेल न्यूजपेपर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकार की यह घटना पुर्तगाल के लिस्बन जिले के अजाम्बुजा में स्थित टोर्रे बेला एस्टेट में हुई है और अब माना जा रहा है कि इस इलाके की अधिकतर हिरणों की अब मौत हो गई है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुई इन भयंकर तस्वीरों में जानवरों के शव सामने रखे नजर आ रहे हैं और इनके पीछे 16 शिकारियों को मुस्कुराते हुए देखा जा सकता है।
देश के इंस्टीट्यूट फॉर नेचर कंजर्वेशन एंड फॉरेस्ट (आईसीएनएफ) ने शिकार की जांच शुरू कर दी है, जो बीते कुछ हफ्तों के दरमियां हुई मालूम पड़ती है।
--आईएएनएस
अमेरिका में ओहायो राज्य के कोलंबस शहर में पुलिस ने एक निशस्त्र ब्लैक व्यक्ति को गोली मार दी थी. तीन सप्ताह से भी कम समय में कोलंबस में पुलिस द्वारा किसी अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति को गोली मार देने की यह दूसरी घटना है.
कोलंबस में पुलिस की गोली से 47-वर्षीय आंद्रे मौरिस हिल के मारे जाने के बाद गुरूवार को देश में एक बार फिर नस्लवाद और पुलिस की क्रूरता के खिलाफ आक्रोश की ताजा लहर दौड़ गई. कुछ ही दिनों पहले इसी शहर में पुलिस ने एक और ब्लैक व्यक्ति को मार गिराया था. ताजा घटना में, हिल को सोमवार को एक घर के गैराज में एक पुलिस अफसर ने कई बार गोली मार दी थी.
अफसर को किसी ने फोन करके वहां हुई एक मामूली घटना के सिलसिले में बुलाया था. बाद में अफसर के शरीर पर लगे कैमरे की फुटेज में देखा गया कि गोली चलने से सिर्फ कुछ सेकंड पहले हिल पुलिसकर्मी की तरफ अपने बाएं हाथ में सेलफोन लिए बढ़ रहे थे. उनका दूसरा हाथ दिखाई नहीं दे रहा था.
कोलंबस पुलिस के मुखिया थॉमस क्विनलन ने गुरूवार को घोषणा की वो एडम कॉय नामक उस पुलिस अधिकारी को "क्रिटिकल मिसकंडक्ट" के आरोपों पर विभाग से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं. उन्होंने एक बयान में कहा, "हमारे विभाग के एक अधिकारी ने पुलिस के कोलंबस डिवीजन के नियम और नीतियों का पालन करने की शपथ का उल्लंघन किया है. इस उल्लंघन की वजह से एक मासूम व्यक्ति की जान चली गई".
स्थानीय मीडिया में आई खबरों के अनुसार, कॉय के खिलाफ पहले भी जरूरत से ज्यादा शक्ति के इस्तेमाल की शिकायतें आई थीं. ताजा घटना में, गोली मारने के बाद कॉय और उनके साथी अफसर ने हिल के पास जाने के पहली कई मिनटों तक इंतजार किया और तब तक हिल जिन्दा थे. बाद में उनकी मृत्यु हो गई. उनके पास कोई भी हथियार नहीं था.
इससे पहले की घटना में चार दिसंबर को कोलंबस में ही 23-वर्षीय केसी गुडसन जूनियर को पुलिस ने तब गोली मारी जब वो अपने घर लौट रहे थे. उनके परिवार ने कहा है कि उनके हाथ में एक सैंडविच था जिसे पुलिस ने गलती से बंदूक समझ लिया. गुरूवार को दर्जनों लोगों ने साथ आकर इन घटनाओं के खिलाफ विरोध दर्ज किया. प्रदर्शनों के दौरान "ब्लैक लाइव्स मैटर" के साइन बोर्ड दिखाए गए और पुलिस द्वारा मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग की गई.
मई में एक और अफ्रीकी-अमरीकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड के इसी तरह पुलिस द्वारा मारे जाने के बाद पूरे देश में नस्लीय अन्याय और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ इस तरह के प्रदर्शन भड़क उठे थे. फ्लॉयड भी निशस्त्र थे और मिनैपोलिस में एक पुलिस अफसर द्बारा अपने घुटनों के नीच उनकी गर्दन दबा देने के बाद उनका निधन हो गया था. वहां मौजूद दूसरे लोगों ने उस घटना का वीडियो बना लिए थे जो बहुत जल्द वायरल हो गया.
फ्लॉयड और उनके जैसे पुलिस की बर्बरता के शिकार बने और व्यक्तियों के परिवारों के लिए अदालत में लड़ने वाले वकील बेन क्रंप ने कहा, "एक बार फिर अफसरों ने एक ब्लैक व्यक्ति को देखा और यह मान लिया कि वो एक खतरनाक अपराधी ही होगा." उन्होंने "पुलिस अफसरों के हाथों बार-बार हो रही इन घटनाओं" की निंदा की.
कोलंबस के मेयर एंड्रू गिंथर ने भी हिल की मौत पर अपनी "नाराजगी" प्रकट की. उन्होंने एक प्रेस वार्ता में कहा, "हिल उन लोगों के परिचित थे जिनके घर में उनकी गाड़ी खड़ी थी" और वो एक "मेहमान थे...घुसपैठिया नहीं." उन्होंने यह भी कहा कि वो इस बात से "बहुत अशांत" हैं कि दोनों पुलिस अफसरों ने हिल को फर्स्ट ऐड भी नहीं दी थी. मेयर ने कॉय को "तुरंत हटाने" की मांग की.
सीके/एए (एएफपी)
इस्लामाबाद, 25 दिसंबर| पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी अदालत ने 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड और प्रतिबंधित जमात-उद-दावा (जेयूडी) के नेता हाफिज सईद को एक अन्य मामले में दोषी पाए जाने के बाद 15 साल की सजा सुनाई है। एक मीडिया रिपोर्ट ने शुक्रवार को यह जानाकरी दी। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, सईद के खिलाफ तीन मामलों के फैसले, जो पिछले साल से सलाखों के पीछे हैं, पहले ही सुनाए जा चुके हैं, जबकि जेयूडी लीडर के खिलाफ आतंकवाद रोधी अदालत (एटीसी) में कई अन्य मामले लंबित हैं।
सईद के अलावा, एटीसी जज एजाज अहमद बुट्टर ने हाफिज अब्दुल सलाम, जफर इकबाल, मुहम्मद अशरफ और याहया मुजाहिद को भी 15 साल और छह महीने की कैद की सजा सुनाई, जबकि हाफिज अब्दुल रहमान मक्की को छह महीने की कैद दी गई। रिपोर्ट में जेयूडी द्वारा जारी किए गए विवरणों के हवाले से जानकारी दी गई है।
जेल की शर्तों के अलावा, दोषी पाए गए सभी लोगों को 200,000 पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना भी भरना होगा।
ताजा फैसला सईद और तीन अन्य को एटीसी द्वारा 19 नवंबर को दो अलग-अलग आतंक-वित्तपोषण मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद आया है।
नवंबर के फैसले में, अदालत ने 110,000 पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना लगाने के अलावा सईद की संपत्ति भी जब्त कर ली थी।
सितंबर में, गृह मंत्रालय ने सीनेट को सूचित किया था कि संघीय सरकार ने जेयूडी और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) से संबंधित कुल 964 संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था।
12 फरवरी को, सईद को दो मामलों में दोषी ठहराया गया और साढ़े पांच साल के लिए जेल भेज दिया गया था।
2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित, सईद अकेले पाकिस्तान में 23 आतंकवादी मामलों का सामना कर रहा है।
पाकिस्तान ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने और धन शोधन करने के लिए देश को 'ग्रे लिस्ट' में रखने के बाद सईद के खिलाफ आरोप लगाए और सख्त कदम उठाए। (आईएएनएस)