मनोरंजन
नयी दिल्ली, 6 जुलाई (भाषा)। सोशल मीडिया मंच ट्विटर ने फिल्मकार लीना मणिमेकलाई के उस ट्वीट को हटा दिया है जिसमें उन्होंने अपने वृत्तचित्र “काली” का पोस्टर लगाया था। इस पोस्टर को लेकर विवाद पैदा हो गया है।
कनाडा के टोरंटो में रहने वाली मणिमेकलाई ने दो जुलाई को किये ट्वीट में “काली” का पोस्टर साझा किया था जिसमें देवी को धूम्रपान करते और एलजीबीटीक्यू समुदाय का झंडा पकड़े दर्शाया गया था।
मूल पोस्ट के स्थान पर एक संदेश लिखा गया है कि, “लीना मणिमेकलाई के ट्वीट को कानून के तहत की जा रही मांग के मद्देनजर भारत में नहीं दिखाया जा रहा है।”
यह स्पष्ट नहीं है कि ट्विटर ने ट्वीट को कब हटाया।
दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस ने मंगलवार को इस विवादास्पद पोस्टर को लेकर मणिमेकलाई के खिलाफ अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की थी।
कनाडा में हिंदू समुदाय के नेताओं की ओर से शिकायत मिलने के बाद ओटावा में भारतीय उच्चायोग ने कनाडाई अधिकारियों से आग्रह किया था कि फिल्म से संबंधित “उकसावे वाली सामग्री” को हटाया जाए।
लंदन, 6 जुलाई। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवींद्रनाथ टैगोर के बेहद लोकप्रिय मानसून गीतों का एक संगीत वीडियो लंदन में रिलीज़ किया गया। इस गीत को शायर एवं गीतकार जावेद अख्तर ने बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया है।
‘मेघ ही मेघ’ गीत के जारी होने के मौके पर अख्तर के साथ उनकी अभिनेत्री पत्नी शबाना आज़मी भी थीं। इसे लंदन स्थित गैर लाभकारी संगठन ’बैठक यूके’ ने सोमवार शाम को ताज होटल में आयोजित एक कार्यक्रम में जारी किया।
इस वीडियो के लिए ब्रिटिश भारतीय कलाकार संगीता दत्ता, शौमिक दत्ता और कथक नर्तकी शिवानी ने एक साथ काम किया है। (भाषा)
‘बैठक यूके’ की निदेशक संगीता ने कहा, “ जावेद साहब की टैगोर की कृतियों के अनुवाद दुनिया भर में बहुत प्रसिद्ध हैं और यह वीडियो एक और ऐसी महान कविता के लिए हमारी श्रद्धांजलि है, जो मानसून को जीवंत करती है।”
हैदराबाद, 5 जुलाई | साउथ सुपरस्टार अल्लू अर्जुन एक के बाद एक नई फिल्म की शूटिंग में व्यस्त होने वाले हैं, इसके बाद अभिनेता के पास वक्त की कमी रहेगी। ऐसे में अल्लू अर्जुन ने काम ने थोड़ा वक्त निकाल कर परिवार संग रहने की सोची है और इसीलिए अल्लू पत्नी और बच्चों के साथ तंजानिया पहुंच गए हैं। अभिनेता की पत्नी अल्लू स्नेहा ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर छुट्टी से एक पारिवारिक तस्वीर पोस्ट की। फोटो में अल्लू अर्जुन अपनी पत्नी और बच्चों, बेटे अल्लू अयान और बेटी अल्लू अरहा के साथ अच्छा समय बिताते हुए दिखाई दे रहे हैं।
ये खुबसूरत अल्लू परिवार की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है।
कहा जाता है कि सीक्वल, 'पुष्पा : द रूल' की पटकथा पूरी हो चुकी है और शूटिंग की तैयारी शुरू करने के लिए अल्लू अर्जुन के जल्द ही हैदराबाद लौटने की उम्मीद है।
'पुष्पा : द राइज' में अल्लू अर्जुन एक दलित व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं, जो एक चंदन तस्करी सिंडिकेट का बॉस बन जाता है।
निर्माताओं के अनुसार, पुष्पा की प्रेमिका, श्रीवल्ली की भूमिका निभाने वाली रश्मिका मंदाना की अगली कड़ी में एक बड़ी भूमिका होगी। (आईएएनएस)
बॉलीवुड अभिनेत्री शमिता शेट्टी घर-घर में जाना पहचाना नाम है. उन्हें हाल ही में बिग बॉस ओटीटी और फिर बिग बॉस सीजन-15 में देखा गया. बिग बॉस सीजन-15 में शमिता टॉप-5 में रहीं. हालांकि, बिग बॉस के घर में शमिता शेट्टी को कई बार एज शेमिंग का सामना करना पड़ा था. तेजस्वी प्रकाश और शमिता के बीच कई झगड़े सुर्खियों में आए थे. शो के अंदर और बाहर भी शमिता शेट्टी इसका ज़िक्र करती आई हैं.
ऐसे में बीबीसी हिन्दी ने शमिता शेट्टी से ख़ास बातचीत की है. इस दौरान शमिता ने डिप्रेशन, बिग बॉस और अपने परिवार को लेकर खुलकर बातचीत की.
'मैं आंटी हूं तो तुम भी अंकल हो'
बिग बॉस शो में एज शेमिंग को लेकर शमिता शेट्टी कहती हैं कि जिन 'शब्दों' का बिग बॉस के घर के अंदर इस्तेमाल हुआ था, उन्हें अब वो 'शब्द' बाहर भी सुनने को मिलते हैं. वो कहती हैं, ''मैं थोड़े वक्त तक दुखी थी. जो लोग ऐसा कर रहे थे वो शिक्षित लोग थे और वो बाहरी दुनिया में अलग तरह के हैं. बड़ी आसानी से वो ये सब भूल जाते हैं. लेकिन वो क्या मैसेज दे रहे हैं बाहर. उन लोगों की वजह से जिस 'शब्द' का इस्तेमाल घर के अंदर मेरे लिए किया गया था वो अब बाहर इस्तेमाल हो रहा है. मुझे समझ नहीं आ रहा था क्यों ऐसी चीज़ें कही गई थीं क्योंकि वहां कुछ लोग मेरी उम्र के थे. अगर आप मुझे आंटी कहते हैं तो आप अंकल हैं.''
हालांकि, शमिता कहती हैं कि अब वो इन सब चीज़ों से उबर चुकी हैं.
'बिग बॉस मेरे लिए खुद को दिखाने का मौका था'
पिछले साल ही बिग बॉस ओटीटी शुरू हुआ था और शमिता शेट्टी ने इस शो में हिस्सा लिया था. ये वो वक्त था जब शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा मुसीबतों से घिरे हुए थे और उन्हें पोर्नोग्राफ़िक फ़िल्में बनाने और उसे किसी ऐप के ज़रिए मुहैया कराने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
शमिता अपनी बहन शिल्पा और परिवार के बेहद क़रीब हैं तो ऐसे वक्त में उन्होंने बिग बॉस ओटीटी में जाने का फैसला क्यों लिया? इस सवाल के जवाब में शमिता कहती हैं कि उनका परिवार भी ये चाह रहा था कि वो इस शो का हिस्सा बनें. शमिता का कहना है, ''ईमानदारी से कहूं तो ये कमिटमेंट मैंने बहुत पहले दी थी और मुझे उस कमिटमेंट को पूरा करना था. मेरा परिवार भी ये चाह रहा था कि मैं वहां जाऊं और रहूं. बहुत सारी चीज़ें मेरे बारे में भी बोली जा रही थीं जिसका मुझसे कोई वास्ता नहीं था. मैंने ये सोचा कि मुझे खुद को दिखाने का ये मौका है.''
फ़िल्मों की संख्या के लिहाज़ से शमिता का बॉलीवुड करियर बहुत लंबा नहीं रहा है. शमिता शेट्टी ये खुद भी कहती हैं कि उन्हें अच्छी फ़िल्में नहीं मिलीं जिसका उन्हें मलाल है. शमिता की बहन शिल्पा बॉलीवुड की सबसे बड़ी अभिनेत्रियों में से एक रही हैं तो क्या इस वजह से चीज़ें आसान हो जाती हैं? इस सवाल पर शमिता कहती हैं, ''मेरा मानना है कि चीज़ें और मुश्किल हो जाती हैं. ख़ासकर, जब आप किसी फ़िल्मी बैकग्राउंड से आते हैं और आपके परिवार का कोई सदस्य इस इंडस्ट्री में होता है तो लगातार तुलना की जाती है. मुझे नहीं पता कि ये तुलना क्यों की जाती है कोई भी दो शख़्स एक नहीं हो सकते.''
शिल्पा शेट्टी के साथ शमिता शेट्टी की तुलना होती रही है, इस पर शमिता कहती हैं, ''हर कोई अपनी किस्मत साथ लेकर आता है और किस्मत का अहम किरदार होता है. शायद मेरी किस्मत मेरे साथ नहीं थी कि मुझे इतना काम नहीं मिला या इतना अच्छा काम नहीं मिला. एक आर्टिस्ट के लिए अपनी क्रिएटिविटी ज़ाहिर नहीं कर पाना परेशान करने वाला होता है.''
एक दौर ऐसा भी आया था जब शमिता शेट्टी डिप्रेशन में चली गई थीं. वो कहती हैं कि शुरू-शुरू में तो उनको पता ही नहीं चला कि उनके साथ क्या हो रहा है. शमिता बताती हैं, ''उस वक्त मैं एक रिलेशनशिप में थी और वो बहुत अच्छा शख़्स था, वो मुझसे कहता रहता था कि शमिता तुम्हारे साथ कुछ सही नहीं चल रहा है. जब आप उस दौर से गुजरते हैं तो आपको खुद पता नहीं होता है कि क्या हो रहा है. मैं खोई-खोई रहती थी. मुझे पता भी नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है. मेरे परिवार ने उस दौर में मेरा बहुत सपोर्ट किया. वो दौर बहुत मुश्किल भरे थे. हर रोज़ आपको लड़ना पड़ता था. पहला स्टेप ये होता है कि आपको मानना होगा कि आख़िर हो क्या रहा है. जो लोग डिप्रेशन में होते हैं उनके लिए हर रोज़ ही एक लड़ाई है.''
शमिता शेट्टी आगे कहती हैं कि जब किसी को पता चलता है कि आप डिप्रेशन से गुज़र रहे हैं तो पहली सोच ये होती है कि ये आदमी कमज़ोर है. ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि जो लोग इस फेज़ से गुजर चुके हैं और इससे बाहर आए हैं वो बहुत ही मजबूत लोग हैं.
शमिता कहती हैं कि जो चीज़ उन्हें अपने लिए करना था वो नहीं कर सकीं, इस वजह से वो डिप्रेशन में चली गई थीं.''मेरी फ़िल्मों और दूसरी चीज़ों के बीच लंबे गैप थे. दुर्भाग्यपूर्ण था, मैं ये नहीं चाहती थी. लेकिन मुझे अच्छा काम नहीं मिल रहा था. मैं ये नहीं चाहती थी कि मैं सिर्फ़ दिखने के लिए काम करूं. लेकिन इन सबके बीच भी मैं शो कर रही थी मैं कमा रही थी और मैं अपना घर चला रही थी. लोगों को लगता है कि जब आप फ़िल्में नहीं करते हैं तो आप पैसे नहीं कमा रहे हैं. लेकिन ये सही नहीं है.'' (bbc.com)
नयी दिल्ली, 4 जुलाई। डॉक्यूमेंट्री ‘काली’ के पोस्टर पर देवी को धूम्रपान करते और एलजीबीटीक्यू का झंडा थामे दिखाये जाने के कारण आलोचनाओं का शिकार हो रहीं फिल्म निर्माता लीना मणिमेकलाई ने सोमवार को कहा कि वह जब तब जिंदा हैं तब तक बेखौफ अपनी आवाज बुलंद करना जारी रखेंगी।
‘काली’ के पोस्टर ने सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया है और यह विवाद ‘अरेस्ट लीना मणिमेकलाई’ हैशटैग के साथ ट्रेंड कर रहा है। सोशल मीडिया पर इसका विरोध करने वालों का आरोप है कि फिल्म निर्माता धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हैं। इस बीच ‘गौ महासभा’ नामक संगठन के एक सदस्य ने कहा है कि उन्होंने दिल्ली पुलिस में इसकी शिकायत की है।
जुबानी हमलों के जवाब में, टोरंटो निवासी फिल्म निर्देशिका ने यह कहते हुए पलटवार किया है कि वह (इसके लिए) अपनी जान देने को भी तैयार हैं।
मणिमेकलाई ने इस विवाद को लेकर एक लेख के जवाब में एक ट्विटर पोस्ट में तमिल भाषा में लिखा, ‘‘मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है। जब तक मैं जीवित हूं, मैं बेखौफ आवाज बनकर जीना चाहती हूं। अगर इसकी कीमत मेरी जिंदगी है, तो इसे भी दिया जा सकता है।’’
मदुरै में जन्मी फिल्म निर्माता ने शनिवार को माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर ‘काली’ का पोस्टर साझा किया था और कहा था कि यह फिल्म टोरंटो में आगा खान संग्रहालय में 'रिदम्स ऑफ कनाडा' खंड का हिस्सा है।
मणिमेकलाई ने लोगों से पोस्टर के संदर्भ को समझने के लिए फिल्म देखने का भी आग्रह किया। उन्होंने दूसरे लेख के जवाब में कहा, ‘‘फिल्म एक शाम टोरंटो शहर की सड़कों पर काली के टहलने के दौरान की घटनाओं के बारे में है। अगर वे फिल्म देखते हैं, तो वे 'अरेस्ट लीना मणिमेकलाई' के बजाय 'लव यू लीना मणिमेकलाई' हैशटैग लगाएंगे।’’
'गौ महासभा' के सदस्य अजय गौतम ने कथित तौर पर देवी को ‘‘अपमानजनक और आपत्तिजनक तरीके से’’ पेश करने के लिए फिल्म निर्माता के खिलाफ अपनी पुलिस शिकायत की एक प्रति पत्रकारों को भेजी। उनका कहना है कि इससे ‘‘शिकायतकर्ता सहित लाखों भक्तों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।’’
साइबर सेल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उन्हें अभी तक शिकायत नहीं मिली है।
कई ट्विटर यूजर्स ने मणिमेकलाई की कड़ी आलोचना की है। (भाषा)
मुंबई, 4 जुलाई। अभिनेत्री कंगना रनौत हिंदी फिल्मों के गीतकार जावेद अख्तर द्वारा दायर मानहानि के मामले में सोमवार को अंधेरी उपनगरीय मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुईं।
नवंबर 2020 में अख्तर द्वारा उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद अदालत में यह उनकी तीसरी पेशी है।
अख्तर (76) ने अपनी शिकायत में रनौत पर एक टेलीविजन साक्षात्कार में उनके खिलाफ मानहानिकारक बयान देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि इससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।
गीतकार ने दावा किया था कि जून 2020 में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के कथित तौर पर आत्महत्या करने के बाद, रनौत ने एक टीवी साक्षात्कार के दौरान बॉलीवुड में एक ‘मंडली' होने का जिक्र करते हुए उनका नाम घसीटा था। (भाषा)
मुंबई, 3 जुलाई (भाषा)। अभिनेता वरुण धवन का कहना है कि हिंदी सिनेमा में पारिवारिक फिल्मों की संख्या में बड़े पैमाने पर गिरावट आई है, क्योंकि बॉलीवुड पश्चिमी सिनेमा से काफी हद तक ‘‘प्रभावित’’ है।
‘मैं तेरा हीरो’, ‘ढिशूम’ और ‘जुड़वा-दो’ जैसी मनोरंजक फिल्मों में अभिनय कर चुके धवन ने कहा कि फिल्म उद्योग महामारी के दौरान एक और संक्रमण के दौर में है, जहां हर कोई उन फिल्मों के बारे में अनिश्चित है जो बॉक्स ऑफिस पर काम करेंगी।
धवन ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमने बड़े पैमाने पर, मसाला पारिवारिक मनोरंजन बनाना बंद कर दिया है क्योंकि हम पश्चिमी सिनेमा से बहुत अधिक प्रभावित हैं... शुरुआत में, कोई नहीं जानता कि किस प्रकार की फिल्म काम करेगी। फिर भी हर सप्ताह हम ज्ञान देते हैं कि यह काम करता है, वह काम करता है।’’
अभिनेता ने अपनी आखिरी फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर थ्री’ के दो साल बाद धर्मा प्रोडक्शंस की फिल्म ‘जुगजुग जीयो’ के साथ बड़े पर्दे पर वापसी की।
करण जौहर द्वारा समर्थित और राज मेहता के निर्देशन में बनी कॉमेडी फिल्म ने 24 जून को रिलीज होने के बाद से घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ रुपये और दुनिया भर में 100 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की है।
धवन ने कहा कि प्रोडक्शन हाउस और ‘जुगजुग जीयो’ के उनके सह-कलाकार अनिल कपूर और कियारा आडवाणी हमेशा पारिवारिक मनोरंजन से जुड़े रहे हैं क्योंकि वह भी इस शैली में विश्वास करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘धर्मा पारिवारिक मनोरंजन में विश्वास करता है। करण जौहर इस शैली में विश्वास करते हैं और उन्होंने हमेशा किया है। मैं इस शैली में विश्वास करता हूं, मैंने हमेशा ऐसी फिल्म की हैं... मेरा करियर इसी पर आधारित है। अनिल कपूर और कियारा भी इसमें विश्वास करते हैं।’’
‘जुगजुग जीयो’ के बाद 35 वर्षीय अभिनेता की दो फिल्म आने वाली हैं। इसमें फिल्म निर्माता अमर कौशिक की मॉन्स्टर कॉमेडी ‘भेदिया’ और नितेश तिवारी की प्रेम कहानी ‘बवाल’ शामिल है।
-वंदना
चुप तुम रहो, चुप हम रहें... एक ख़ूबसूरत शाम और मेहमानों से सजी महफ़िल में गीत गाता एक क्लब सिंगर. जिसने भी 1996 की हिंदी फ़िल्म 'इस रात की सुबह नहीं देखी' को देखा है, उन्हें ये गीत याद होगा.
पूरी फ़िल्म में वो क्लब सिंगर सिर्फ़ और सिर्फ़ इस गाने में दिखाई देता है. दुबला-पतला सा एक युवक जो कुछ सालों में तमिल फ़िल्मों का सुपरस्टार और हिंदी फ़िल्मों का हीरो बनने वाला था- नाम था आर माधवन, जो अब नई फ़िल्म 'रॉकेट्री' में नज़र आ रहे हैं.
चंद सेकेंड के इस रोल में आर माधवन की मौजूदगी तो दर्ज नहीं हुई थी और फ़िल्में अभी दूर थी. लेकिन टीवी पर वो एक्टर नाम बनने की ओर क़दम बढ़ा चुके थे. 90 के दशक में एक के बाद उनके सीरियल आए- बनेगी अपनी बात, साया, घर जमाई, सी हॉक्स... और इनके ज़रिए वो अच्छे ख़ास मशहूर हो गए.
वैसे फ़िल्मों में माधवन ने अपना डेब्यू तमिल या हिंदी में नहीं, 1997 की इंग्लिश फ़िल्म 'इन्फ़र्नो' और 1998 में आई 'शांति शांति शांति' नाम की एक कन्नड़ फ़िल्म से किया था. आर माधवन उन चंद अभिनेताओं में से एक हैं, जो हिंदी, तमिल और कुछ हद तक दूसरी भाषाओं में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं.
दक्षिण भारत के कई सुपरस्टार हिंदी फ़िल्मों में काम कर चुके हैं, जैसे रजनीकांत, चिरंजीवी, नागार्जुन, कमल हासन, मोहनलाल, पृथ्वीराज, राणा दग्गुबती और इनकी कुछ फ़िल्में हिट भी रहीं.
लेकिन श्रीदेवी, वैजयंतीमाला, रेखा, हेमा मालिनी, जया प्रदा जैसी अभिनेत्रियों के उलट, दक्षिण भारतीय हीरो को हिंदी फ़िल्मों में सीमित सफलता मिली है. रामचरण, एनटीआर जूनियर जैसे हीरो का तात्कालिक क्रेज़ ज़रूर है, लेकिन ये अभी शुरुआती दौर है. माधवन इस क्रम का अपवाद कहे जा सकते हैं, जिन्होंने इस धारणा को तोड़ा है.
कुछ दिन पहले बीबीसी से बातचीत में माधवन ने अपनी सफलता को यूँ बयां किया था, "दरअसल मैं दोनों भाषा ठीक तरह से बोल लेता हूँ. मैं (तब के) बिहार और आज के झारखंड (जमशेदपुर) में पला-बढ़ा हूँ. चूँकि हिंदी ठीक से बोल लेता हूँ, तो दर्शकों को मेरे साथ रिलेट करना आसान हो गया. मैं तमिल परिवार से हूँ, तो वो भाषा भी ठीक से बोल लेता हूँ. मणिरत्नम जी ने मुझे इंट्रोड्यूस किया है. तमिल इंडस्ट्री में भी मुझे स्वीकार करने में लोगों को कोई दिक्कत नहीं हुई.''
उन्होंने कहा था, ''मैं सिक्स पैक वाला हीरो तो हूँ नहीं. रोमांटिक फ़िल्में कम ही की हैं मैंने. लेकिन मैंने जो भी फ़िल्में की हैं, वो ये सोचकर की हैं कि युवा दर्शकों को ये न लगे कि 'मैडी रीचेबल' है. मैं उनके लिए एस्पिरेशनल होना चाह रहा था. उन्हें लगे कि चाहे वो 'तनु वेड्स मनु' का मनु हो या 'थ्री इडियट्स' का फ़रहान- मैडी में एक क्षमता है, जो हममें भी होनी चाहिए. तो मैंने ऐसे ही रोल चुने, जो एस्पिरेशनल हों और वो लोगों को पसंद आया."
आर माधवन की इस सफलता के क्रम को समझने के लिए उनके अतीत में भी झाँकना होगा. आर माधवन की पैदाइश झारखंड के जमदेशपुर में हुई- हिंदी परिवेश, तमिल परिवार और महाराष्ट्र में पढ़ाई. इसका उन पर मिला-जुला असर हुआ. एक्टर बनना कोई शुरुआती सपना नहीं था.
फ़िल्म 'थ्री इडियट्स' के फ़रहान वाला सीन जहाँ माँ-बाप बेटे के इंजीनियर बनाना चाहते हैं, कुछ वैसा ही मिलता-जुलता क़िस्सा माधवन की ज़िंदगी में भी था. बोर्ड में 58 फ़ीसदी नंबर आए. एनसीसी कैडेट के रूप में प्रदर्शन इतना अच्छा रहा कि इंग्लैंड भेजा गया, जहाँ ब्रिटिश आर्मी के साथ ट्रेनिंग ली.
बीएससी इलेक्ट्रॉनिक्स किया जैसा कि माँ-बाप की ख़्वाहिश थी कि इंजीनियर जैसा कुछ बने. लेकिन सबकी इच्छा के ख़िलाफ़ माधवन ने पब्लिक रिलेशन्स में मास्टर्स किया. कोल्हापुर में पब्लिक स्पीकिंग की क्लास भी लेने लगे, तो ज़बरदस्त हिट हो गए. बाद में मुंबई आकर थोड़ी बहुत मॉडलिंग की, तो वहाँ से सीरियल और फ़िल्मों का रास्ता खुल गया.
माधवन का फ़िल्मी सफ़र
टुकड़ों-टुकड़ों में ये तब्दीलियाँ होती रहीं, लेंकिन माधवन के करियर में बड़ा बदलाव तब आया, जब 2000 में उन्हें मणिरत्नम ने अपनी तमिल फ़िल्म अलईपायुदे में लिया और फिर 2001 में तमिल फ़िल्म 'मिन्नले' आई. रोमांटिक हीरो के तौर पर बस माधवन युवाओं के दिल में बस गए और फिर तमिल फ़िल्म 'रन' से माधवन ने एक्शन में एंट्री ली. मणिरत्नम की फ़िल्म युवा के जिस रोल में आपने अभिषेक बच्चन को देखा, वो रोल 2004 में तमिल फ़िल्म में माधवन ने ही किया था.
'एक लड़की देखी बिल्कुल बिजली की तरह. एक चमक और मैं अपना दिल खो बैठा. बस अब एक ही तमन्ना है. रहना है उसके दिल में'.
यही वो डायलॉग और फ़िल्म है, जिससे आर माधवन ने 2001 में हिंदी फ़िल्मों में बतौर रामोंटिक हीरो एंट्री ली. उस वक़्त तो फ़िल्म पिट गई, लेकिन माधवन 'मैडी' के नाम के उस रोमांटिक रोल से मशहूर हो गए.
माधवन तमिल में सुपरस्टार रोल में स्थापित होते गए, तो 2005 के बाद से हिंदी फ़िल्मों में ज़्यादा दिखने लगे. हिंदी में उन्होंने छोटा रोल या सह कलाकार का रोल करने में भी गुरेज़ नहीं किया. जैसा उनकी फ़िल्म 'दिल विल प्यार व्यार' का डायलॉग भी है- 'बड़ी चीज़ों की क़ीमत कभी छोटी नहीं हुआ करती.'
फिर चाहे फ़िल्म 'गुरु' (2007) के आदर्शवादी पत्रकार श्याम सक्सेना का रोल हो, जो अभिषेक बच्चन (धीरूभाई) को चैलेंज करता है, 'मुंबई मेरी जान' का निखिल हो, जो मुंबई ब्लास्ट के बाद डिप्रेशन से गुज़र रहा है या फिर 'रंग दे बसंती' (2006) का फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट अजय सिंह राठौड़ हो, जो सिखाकर जाता है कि 'कोई भी देश परफ़ेक्ट नहीं होता, उसे बेहतर बनाना पड़ता है.'
या फिर थ्री इडियट्स का फ़रहान जिसकी ये बात आज भी चेहरे पर शरारत भरी प्यारी मुस्कान ला देती है कि 'दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन दोस्त फ़र्स्ट आ जाए तो ज़्यादा दुख होता है'.
हिंदी फ़िल्मों में 2009 की फ़िल्म 'थ्री इडियट्स' एक तरह से उनके लिए गेमचेंजर साबित हुई. हालांकि, बीच-बीच में उनकी कई हिंदी फ़िल्में फ्लॉप भी हुईं. और यही वो वक़्त था, जब माधवन ने फ़िल्मों से ब्रेक ले लिया.
कैसे किया ख़ुद को रिइन्वेन्ट
माधवन को लगातार मिलती रही सफलता को इस नज़रिए से भी देखा जा सकता है कि उन्होंने अपने आप को रिइन्वेंट किया है. उनका रोमांटिक हीरो वाला अच्छा ख़ासा फेज़ चल रहा था. लेकिन 2010-11 के आसपास 40 की उम्र में उन्होंने बैकसीट लेते हुए कई सालों का ब्रेक लिया और नए तरीके से वापसी की. तब उनकी फ़िल्म 'तनु वेड्स मनु' रिलीज़ हुई ही थी और ज़बरदस्त धूम मचा रही थी.
पीटीआई से बातचीत में माधवन ने कहा था, "ब्रेक लेने को लेकर मैं थोड़ा नर्वस तो था. लेकिन सिर्फ़ बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करते रहने का कोई मतलब नहीं है, अगर आप अच्छी फ़िल्मों में काम नहीं कर रहे हो. मैंने आमिर ख़ान से ये सीखा. 'लगान' के दौरान उन्होंने भी चार साल का ब्रेक लिया था. अगर आप अच्छा काम नहीं करते, तो लोगों को भी याद नहीं रहता."
वापसी के बाद माधवन ने 'इरुधी सुत्रु' जैसी तमिल फ़िल्म की, जिसमें वो किसी रोमांटिक या एक्शन हीरो के रूप में नहीं, बल्कि एक बॉक्सिंग कोच के रोल में थे, जो एक युवा लड़की को ट्रेन करने का चैलेंज लेते हैं.
इस रोल के लिए माधवन ने बॉक्सिंग सीखी, एक असल मार्शल आटर्स खिलाड़ी को रोल के लिए मनाया. इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और माधवन को फ़िल्मफेयर अवॉर्ड. जब हिंदी में 'साला ख़डूस' फ़िल्म को रिलीज़ करने की बारी आई, तो माधवन ने ख़ुद इसे डिस्ट्रीब्यूट करने का ज़िम्मा उठाया. माधवन ने एनकाउंटर स्पेशिलस्ट का जो रोल सुपरहिट तमिल फ़िल्म 'विक्रम वेधा' में किया था, आज ऋतिक रोशन वही रोल हिंदी में करने जा रहे हैं.
करियर और ज़िंदगी में रिस्क लेने की बात पर माधवन कहते हैं, "मुझे ख़तरा कभी नज़र ही नहीं आता. ख़तरा नज़र आए तो मैं डरूँ न. कभी-कभी तो ऐसी जगह घुस गया हूँ, जहाँ लगता है कि मैं कहाँ जा रहा हूँ. चाहे वो एक्टिंग हो, पहली बार निर्देशन हो, पब्लिक स्पीकिंग का करियर हो या मोटसाइकिल और स्कीइंग का शौक हो, मैं एक हद तक सफल रहा हूँ. मैंने लाइफ़ में संघर्ष नहीं किया. मैं तो एक्टर बनने आया ही नहीं था. राह चलते इंसान को एक्टर बना दिया. मणिरत्नम ने सच में एक राह चलते इंसान को साउथ में सुपरस्टार बना दिया. राजकुमारी हिरानी, राकेश मेहरा इन सबने बुलाया. शाहरुख़ ख़ान मेरी पहली निर्देशित फ़िल्म में हैं. इसमें कुछ संघर्ष नहीं है. मैं इसे संघर्ष कहूँगा तो भगवान मेरे से ख़फ़ा हो जाएँगे. मैंने हर पल का आनंद लिया है."
फ़िल्में और रोल ही नहीं, माधवन ने समय के साथ नए माध्यमों को भी अपनाया है. 2018 में उन्होंने ब्रीद के साथ पहली बार वेबसिरीज़ में भी क़दम रखा.
और 50 साल की उम्र में माधवन ने ख़ुद को नया चैलेंज दिया. उन्होंने फ़िल्म डाइरेक्ट, प्रोडयूस और लिखने का ज़िम्मा उठाया और वो भी एक मुश्किल विषय पर- इसरो वैज्ञानिक डॉक्टर एस नांबी नारायण की कहानी, जिन्हें जासूस करार दिया गया और करियर तबाह हो गया लेकिन दशकों बाद वो बेक़सूर साबित हुए.
सिर्फ़ हीरो की भूमिका में काम करने वाले माधवन ने तब फ़िल्म बनाने का बीड़ा उठाया, जब फ़िल्म शुरु होने के कुछ दिन बाद निर्देशक अलग हो गए, जबकि इससे पहले माधवन को निर्देशन का कोई तज़ुर्बा नहीं है.
डॉक्टर नांबी नारायण पर बनी रॉकेटरी
डॉक्टर नांबी नारायण की बात चली है तो उनकी कहानी किसी भी फ़िल्मी थ्रिलर से कम नहीं है. 30 नंवबर, 1994 की दोपहर देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक नांबी को अचानक गिरफ़्तार कर लिया जाता है. उस व़क्त डॉक्टर नांबी इसरो के क्राइजेनिक रॉकेट इंजन कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे थे. इस प्रोजेक्ट के लिए वो रूस से तकनीक ले रहे थे. अख़बारों ने रातोंरात उन्हें 'गद्दार' घोषित कर दिया, एक ऐसा गद्दार जिसने मालदीव की दो महिलाओं के हनी ट्रैप में फंसकर रूस से भारत को मिलने वाली टेक्नोलॉजी पाकिस्तान को बेच डाली.
उन पर भारत के सरकारी गोपनीय क़ानून (ऑफ़िशियल सीक्रेट लॉ) के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए. जब भी उन्हें जेल से अदालत में सुनवाई के लिए ले जाया जाता, भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती. झूठों आरोपों के एवज़ में 2018 में डॉक्टर एस नांबी नारायणन को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवज़े के तौर पर 50 लाख रुपए देने का आदेश दिया.
विज्ञान, भावनाओं, न्याय और दर्दनाक सफ़र वाली इसी कहानी को आर माधवन अपनी नई फ़िल्म 'रॉकेटरी' में लेकर आए हैं.
एक एक्टर, एक प्रोड्यूसर के बाद बतौर निर्देशक के तौर पर आना माधवन की ख़ुद को परखने की ये शायद नई कसौटी है. इस फ़िल्म के किरदार में फिट होने के लिए माधवन ने अपने दाँत और जबड़ा तुड़वाकर नए तरीक़े से सेट करवाए, ताकि वो डॉक्टर नांबी जैसे दिख सकें.
रॉकेटरी वो फ़िल्म जिसके लिए माधवन को शाहरुख़ ख़ान ने कहा था कि उन्हें इस फ़िल्म का हिस्सा बनना है और उन्हें कोई भी रोल चलेगा.
ये वही माधवन हैं, जिनकी पहली फ़िल्म 'अकेली' 1997 में बनी, तो कभी रिलीज़ ही नहीं हो पाई, क्योंकि कोई ख़रीदने वाला नहीं था और अभी कुछ साल पहले आख़िरकार यूट्यूब पर रिलीज़ की गई.
ऐसा नहीं है कि माधवन ने औसत या फ़्लॉप फ़िल्में नहीं की. दिल विल प्यार व्यार, जोड़ी ब्रेकर, झूठा ही सही, रामजी लंदनवाले, सिंकदर ऐसी कई फ़िल्में हैं, जो आईं और चली गईं. लेकिन वक़्त, उम्र, दर्शक, तकनीक, ओटीटी जैसे नए मीडियम, इन सबके हिसाब से ख़ुद को ढालते हुए माधवन ने ख़ुद की लगातार नई पहचान बनाई है.
माधवन की छवि एक ऐसे शख़्स की तरह मन में उभरती है, जो स्टार तो हैं पर स्टारडम की उलझनों से थोड़ा दूर.
जब मेरी सहयोगी मधु पाल ने माधवन से ये सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब कुछ यूँ दिया, ''मुझे बच्चन साहब, कमल हासन, रजनीकांत जी सबसे मिलने का मौक़ा मिला है. मैं समझता हूँ कि स्टारडम कभी न कभी हमसे दूर हो जाएगा. हम सब तो बच्चन बनकर नहीं रह पाँएगे. ये शानो-शौक़त हमसे चली ही जानी है, पर अगर हम उसी स्टारडम वाले माइंडसेट में रहेंगे तो बाद के दिन बर्बाद हो जाते हैं.''
''मैंने शुरुआत से यही सोचा है कि अपनी औकात में रहूँ. जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाऊँगा. मैं मानता हूँ कि स्टारडम को बस इतना ही इस्तेमाल करूँ कि कुछ देर के लिए स्क्रीन पर लोगों को ख़ुश कर सकूँ. बाक़ी मैं ख़ुद को दूसरे बंधनों से मुक़्त करना चाहता हूँ."
वेदांत माधवन के पिता के रूप में नई पहचान
वैसे इन दिनों एक्टर, डाइरेक्टर, राइटर से परे माधवन की एक नई पहचान भी है- 16 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय तैराक वेदांत माधवन के पिता जो भारत के लिए कई मेडल जीत चुके हैं.
माधवन कहते हैं, वेदांत भी जानता है कि जितनी चर्चा उसकी हो रही है, उसकी एक वजह ये है कि वो आर माधवन का बेटा है, जबकि उससे बेहतर तैराकी करने वाले बच्चे भी हैं. मैं ख़ुश हूँ कि वेदांत इस बात को समझता है. उसे बचपन से ही तैराकी का शौक रहा है. थ्री इडियट्स करने की वजह से मैं समझ चुका था कि मुझे उसे आज़ादी देनी होगी.
वे कहते हैं, मुझे ये भी पता है कि कभी न कभी मैं उसका दुश्मन सा बन जाऊँगा जैसे पिता और बच्चों के बीच तक़रार होता है. पर प्यार भी है. किसी भी पिता की तरह मुझमें भी वो सारी भावनाएँ हैं- डर, घबराहट, प्यार.
मुंबई, 1 जुलाई। पिछले साल के क्रूज़ ड्रग मामले में स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) से क्लीन चिट पाने वाले बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन ने बृहस्पतिवार को एक विशेष एनडीपीएस अदालत के समक्ष याचिका दायर कर अपना पासपोर्ट वापस किए जाने का आग्रह किया।
अदालत ने एनसीबी को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई के लिए 13 जुलाई की तारीख तय की।
आर्यन खान को एनसीबी ने पिछले साल अक्टूबर की शुरुआत में हाई-प्रोफाइल ड्रग्स मामले में गिरफ्तार किया था, लेकिन जांच एजेंसी ने मई में दायर आरोपपत्र में उनका नाम आरोपी के रूप में नहीं लिया।
एनसीबी ने ‘‘पर्याप्त सबूतों के अभाव’’ के कारण आर्यन खान और पांच अन्य को छोड़ दिया था।
आर्यन खान ने ज़मानत की शर्तों के तहत अदालत में अपना पासपोर्ट जमा किया था।
बृहस्पतिवार को उन्होंने अपने वकीलों के माध्यम से विशेष अदालत में एक आवेदन दायर किया, जिसमें आरोप-पत्र का हवाला देते हुए पासपोर्ट वापस करने की मांग की गई, जिसमें उनका नाम नहीं है।
चौबीस वर्षीय आर्यन को एनसीबी ने पिछले साल तीन अक्टूबर को मुंबई के तट पर गोवा जाने वाले एक क्रूज जहाज़ पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया था।
मुंबई उच्च न्यायाल द्वारा ज़मानत दिए जाने से पहले आर्यन खान ने 20 दिनों से अधिक समय जेल में बिताया। (भाषा)
मुंबई, 30 जून अभिनेत्री व टीवी प्रस्तोता मंदिरा बेदी ने अपने पति एवं निर्देशक राज कौशल की पहली पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए बृहस्पतिवार को सोशल मीडिया पर एक भावुक संदेश पोस्ट किया।
‘‘प्यार में कभी-कभी’’ और ‘‘शादी का लड्डू’’ जैसी फिल्मों से पहचान बनाने वाले कौशल का दिल का दौरा पड़ने से गत वर्ष निधन हो गया था। वह 50 वर्ष के थे।
बेदी ने इंस्टाग्राम पर हाथ से लिखा एक नोट साझा किया, जिसमें लिखा है, ‘‘तुम्हारे बिना बीते 365 दिन। तुम्हारी बहुत याद आती है, राजी।’’
बेदी और कौशल ने 1999 में शादी की थी और उनके दो बच्चे- बेटा वीर और बेटी तारा हैं। (भाषा)
मुंबई, 30 जून। अभिनेत्री व टीवी प्रस्तोता मंदिरा बेदी ने अपने पति एवं निर्देशक राज कौशल की पहली पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए बृहस्पतिवार को सोशल मीडिया पर एक भावुक संदेश पोस्ट किया।
‘‘प्यार में कभी-कभी’’ और ‘‘शादी का लड्डू’’ जैसी फिल्मों से पहचान बनाने वाले कौशल का दिल का दौरा पड़ने से गत वर्ष निधन हो गया था। वह 50 वर्ष के थे।
बेदी ने इंस्टाग्राम पर हाथ से लिखा एक नोट साझा किया, जिसमें लिखा है, ‘‘तुम्हारे बिना बीते 365 दिन। तुम्हारी बहुत याद आती है, राजी।’’
बेदी और कौशल ने 1999 में शादी की थी और उनके दो बच्चे- बेटा वीर और बेटी तारा हैं। (भाषा)
मुंबई, 29 जून। तापसी पन्नू की बायोपिक शाबाश मिठू का पहला गाना फतेह मंगलवार को रिलीज हो गया।
साल्वेज ऑडियो कलेक्टिव एंड चरण द्वारा रचित यह ट्रैक प्रतिष्ठित क्रिकेटर मिताली राज के जीवन पर आधारित फिल्म में दिखाए गए धैर्य और ²ढ़ संकल्प की कहानी कहता है।
गीत बायोपिक की भावना का प्रतीक है। गीत का मूल सभी बाधाओं से लडऩे और कभी हार न मानने की भावना में निहित है। यह हर युवा लडक़ी और महिला को उनके सपनों का पीछा करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक श्रद्धांजलि है।
शाबाश मिठू एक प्रेरणादायक क्रिकेटर की यात्रा का अनुसरण करता है, जिसने भारतीय महिला क्रिकेट को सबसे आगे लाया, 16 साल की छोटी उम्र में डेब्यू किया, 22 साल की उम्र में टीम की कप्तानी की, और 23 साल से अधिक का रिकॉर्ड तोड़ करियर बनाया।
वायकॉम18 स्टूडियोज द्वारा निर्मित और श्रीजीत मुखर्जी द्वारा निर्देशित यह फिल्म 15 जुलाई को सिनेमाघरों में आने के लिए तैयार है। (आईएएनएस)
मुंबई, 27 जून कॉमेडी ड्रामा ‘जुगजुग जियो’ ने पहले तीन दिनों में 36.93 करोड़ रूपये की कमाई की है । निर्माताओं ने सोमवार को यह जानकारी दी।
धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले राज मेहता के निर्देशन में बनी यह पारिवारिक मनोरंजक फिल्म 24 जून को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है जिसमें कई बड़े सितारे हैं।
धर्मा प्रोडक्शन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने एक पोस्टर में पहले सप्ताहांत पर फिल्म की कमाई का आंकड़ा जारी किया। इस फिल्म ने पहले दिन 9.28 करोड़ रूपये, दूसरे दिन 12.55 करोड़ रूपये और तीसरे दिन 15.10 करोड़ रूपये कमाये। इस तरह पहले सप्ताह उसने 36.93 करोड़ रूपये कमाये।
धर्मा प्रोडक्शन ने ट्वीट किया, ‘‘प्यार आपका सतरंग दा। बॉक्स ऑफिस पर यह आपका बेशुमार आशीर्वाद है। जुगजुग जियो के लिए आप सभी को धन्यवाद। ’’
आधुनिक जीवन के संबंधों पर आधारित, प्रगतिशील बतायी जा रही फिल्म ‘जुगजुग जियो’ तलाक के दो मामलों से दो-चार हो रहे एक परिवार की कहानी है।
फिल्म में वरूण धवन, अनिल कपूर, कियारा आडवाणी, नीतू कपूर, मनीष पॉल, प्रजाकता कोली ने काम किया है। (भाषा)
-अशोक पाण्डे
पंचम दा की धुनों में लगातार हवा, बारिश और धूप की जुगलबंदी सुनाई देती है. उनके संगीत की रेंज इतनी बड़ी और भव्य है कि वह कब-कहाँ आपको अपने आगोश में ले लेगा कहा नहीं जा सकता.
पंचम दा होते तो वे 27 जून को अपना 83वां जन्मदिन मना रहे होते.
आप 'चिंगारी कोई भड़के' या 'ओ मांझी रे अपना किनारा' सुनते हुए उदास हो सकते हैं और 'महबूबा महबूबा' या 'तुम क्या जानो मोहब्बत क्या है' में उनकी गूंजती-भारी आवाज़ के अनूठेपन में डूब सकते हैं. 'आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे' और 'हमें तुमसे प्यार कितना' जैसे उनके असंख्य गीत आपको गहरी रूमानियत में डुबो सकते हैं.
गुलज़ार की 1977 की फिल्म है 'किताब'. उसमें रात के धुंधलके में चलने वाली रेलगाड़ी का एक उम्रदराज़ खलासी हर रात एक बेनाम स्टेशन से गाड़ी के गुजरने का इंतज़ार करता है. उस स्टेशन का नीम-अंधेरा एक प्रौढ़ होती औरत की हंसी से रोशन होता है जो गाड़ी को लालटेन से हरा सिग्नल दिखाने का काम करती है.
रेल की सीटी, इंजन के माथे पर जलती बत्ती और लालटेन के विजुअल के बाद गिटार पर अजीब-सी बेहोशी और तनाव पैदा करने वाला फ्लैंजर इफेक्ट बजना शुरू होता है. फिर धन्नो नाम की वह स्त्री दिखाई देती है. कुल दस-पांच सेकंड को अपनी झलक दिखाने वाली यह नायिका खलासी के जीवन का उजाला है और वह गाता है -'धन्नो की आंखो मे है रात का सुरमा और चांद का चुम्मा.'
गाने के शब्द, उसका संगीत और फिल्मांकन सब कुछ किसी साइकोलोजिकल थ्रिलर की गति से घटता है और अपने मोहपाश में बांध लेता है. खलासी को महबूबा की झलक मिल गई है. वह और उत्साह में आकर गाता जाता है.
फ्लैंजर इफेक्ट में गिटार बजता जाता है. किसी आशिक की सांस सरीखी ट्रेन की सीटी गिटार की आवाज को एक रहस्यमय धौंकनी बना रही है. इसी रफ़्तार में हमें घिरती हुई शाम का नीली रात में बदलना दिखाई देता है. प्रेयसी के साथ बिताये किसी अन्तरंग क्षण की स्मृति को दोबारा से जीता हुआ खलासी अपनी मोहब्बत को जबान देता है -'धन्नो का गुस्सा है पीर का जुम्मा और चांद का चुम्मा.
अमूमन ऐसे तेज़ गानों का एक समापन होता है - एक रिलीज जिसमें तीन-चार मिनट तक बांधी गई काइनेटिक ऊर्जा को ठहराव मिलता है -जैसे बांध में इकठ्ठा किया गया पानी नहर में छोड़ा जाता है. इस गाने में कोई रिलीज नहीं है. वह उसी रफ़्तार पर ख़त्म भी होता है. धन्नो के आशिक बने अभिनेता राममोहन के ईमानदार एक्स्प्रेशन इस रफ़्तार को सुकून बख्शते हैं.
रमेश अय्यर के गिटार और मारुतिराव कीर के तबले के विकट संयोजन के अलावा एम संपत का कैमरा और गुलजार के निर्देशन में किए गए इस अकल्पनीय प्रयोग ने फिल्म देखने-सुनने वालों को अचरज और प्रसन्नता से भर दिया था.
इन सब के बावजूद सच यह है कि धन्नो का यह गाना सिर्फ और सिर्फ पंचम दा का है. जैसे उस्ताद मछुआरों का फेंका जाल नदी के शांत बहाव को बाधा पहुंचाए बिना उसकी सतह के बड़े हिस्से पर पसर जाता है, उनकी आवाज़ भी कई परदों को भेदती हुई गिटार और तबले की असंभव जुगलबन्दी के समानांतर फैलती जाती है.
आज से चालीस-पैंतालीस साल पहले ऐसी आधुनिक कम्पोज़िशन का खयाल तक कर सकना दूर की कौड़ी रहा होगा. पंचम दा के संगीत की अद्भुत यात्रा को समझने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने खोलने पड़ेंगे.
1862 में त्रिपुरा के राजा ईशानचन्द्र देव बर्मन की असमय मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे ब्रजेन्द्रचन्द्र ने गद्दी संभाली. थोड़े ही समय बाद ब्रजेन्द्रचन्द्र की भी हैजे के कारण मौत हो गई. कायदे से ईशानचन्द्र के छोटे बेटे नवद्वीपचन्द्र को अगला राजा बनना था लेकिन अदालत के एक आदेश के तहत ईशानचन्द्र के भाई बीरचन्द्र को गद्दी हासिल हुई.
इस घटनाक्रम के बाद नवद्वीपचन्द्र अपने परिवार को लेकर कोमिला चले गए जो आज बांग्लादेश का हिस्सा है. इन्हीं नवद्वीपचन्द्र देव बर्मन की नौ संतानों में सबसे छोटे थे सचिन देव बर्मन यानी राहुल देव बर्मन के पिता.
यह कल्पना करना दिलचस्प है कि अगर सब कुछ हिसाब से चला होता और नवद्वीपचन्द्र राजा बन गए होते तो संभवतः हम एसडी बर्मन और आरडी बर्मन के संगीत से वंचित रह गए होते. भारतीय फिल्म संगीत में पिता-पुत्र की इस कमाल जोड़ी ने मिल कर किस कदर समृद्ध किया है, उसका ठीक-ठीक बखान तक नहीं किया जा सकता.
एस डी बर्मन या सचिन दा ने बचपन से ही शास्त्रीय संगीत से लेकर बंगाल की समृद्ध लोक-संगीत परम्परा को आत्मसात करने का काम तो किया ही, साहेब अली जैसे फकीरों से सूफी गीतों और नजरुल इस्लाम जैसे महाकवियों से कविता की तालीम हासिल की.
करियर की शुरुआत में एसडी ने रेडियो में गाना और संगीत का ट्यूशन देना शुरू किया. 1937 में उन्होंने अपनी एक शिष्या से विवाह कर तो लिया पर राजपरिवार ने अपनी नवेली बहू को समुचित सम्मान नहीं दिया. इस बात से खफा एसडी ने खुद को त्रिपुरा की अपनी राजसी जड़ों से दूर करना शुरू किया और फिर कभी त्रिपुरा नहीं गए.
दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो ही रहा था जब 27 जून 1939 को उनके घर एक बालक जन्मा जिसे राहुल नाम दिया गया. घरेलू नाम धरा गया तुबलू. तुबलू के आगे चलकर पंचम बनने के बारे में कई किस्से हैं.
एक किस्सा यह चलता है कि शिशु राहुल पाँच सुरों में रोया करते थे, जबकि दूसरे के मुताबिक़ जब भी रियाज़ करते हुए एसडी बर्मन 'सा' गाते थे, बालक राहुल सप्तसुर के पांचवें सुर यानी 'पा' गाना शुरू कर देते. खुद राहुल का कहना था कि उन्हें यह नाम उनके पारिवारिक मित्र और पुराने अभिनेता अशोक कुमार का दिया हुआ था.
एक जिद्दी और बड़े जीनियस का बेटा होना पंचम के लिए आसान नहीं रहा होगा. वे लड़कपन में प्रवेश कर रहे थे जबकि बंबई में उनके पिता भारतीय सिनेमा के संगीत का वह दौर रच रहे थे जिसे गोल्डन एज कहा जाने वाला था. हिन्दी फिल्मों में हिन्दुस्तानी क्लासिकल को आधार बना कर एक से एक मीठी धुनें बनाई जा रही थीं जिनमें राग और स्वर के अलावा भाषा की भी शुद्धता को जरूरी तत्व के तौर पर शामिल किया जाता था.
ग्यारह-बारह साल की उम्र से पंचम ने अपने पिता के साथ स्टूडियो जाना शुरू किया और फ़िल्मी संगीत को रेकॉर्ड किए जाने की बारीकियां नज़दीक से देखीं और सीखीं. बेटे की नैसर्गिक संगीत प्रतिभा को पहचान कर एसडी बर्मन ने उसे जल्दी ही अपना सहायक बना लिया.
बिना किसी ट्रेनिंग के पंचम ने तब तक अनेक तरह के साज़ बजाना सीख लिया था. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी के अनुसार पूरे देश में आरडी बर्मन जैसा माउथऑर्गन बजाने वाला कोई न था. बहुत कम लोग जानते हैं कि 'है अपना दिल तो आवारा' में माउथऑर्गन का जो टुकड़ा बजता है, पंचम दा का बजाया हुआ है.
राजश्री प्रोडक्शन की सुपरहिट 'दोस्ती' के गानों में बजने वाला अविस्मरणीय माउथऑर्गन का टुकड़ा भी उन्हीं का बजाया हुआ है. बाद के सालों में पंचम दा ने उस्ताद अली अकबर खान,पंडित समता प्रसाद और सलिल चौधरी से बाकायदा प्रशिक्षण भी लिया.
पिता के सहायक के तौर पर काम करते हुए कई बार यह भी होता था कि पंचम किसी बात पर अड़ जाते और एसडी नाराज होकर स्टूडियो से चले जाते. एसडी कहते एक वायोलिन से काम चल जाएगा, पंचम कहते तीन वायोलिन के अलावा एक सैक्सोफोन भी चाहिए होगा. बेटे को अक्सर पिता की ज़िद के आगे हार माननी पड़ती थी.
बतौर स्वतंत्र संगीत निर्देशक पंचम दा की पहली फिल्म थी1961 में बनी महमूद की 'छोटे नवाब'. इस फिल्म में एक उल्लेखनीय गीत है - "मतवाली आँखों वाले, ओ अलबेले दिल वाले." महमूद और हेलन पर फिल्माए गए इस छह मिनट लम्बे गीत में आरडी बर्मन ने अपनी उस अविश्वसनीय प्रतिभा की शुरुआती झलक प्रस्तुत की जिसने अगले बीस-तीस सालों तक एक-से-एक नए प्रयोग करते हुए हिन्दी फिल्म संगीत को हमेशा के लिए बदल दिया.
गीत की शुरुआत तेज़ रफ़्तार कास्टानेट्स की थापों से होती है जिसके बाद लैटिन अमेरिका की फ्लेमेंको शैली वाला अकूस्टिक गिटार बजता है. डांस फ्लोर पर महमूद और हेलन का नृत्य शुरू होता है और गिटार ख़त्म होते ही ऊंचे सुर में मोहम्मद रफ़ी विशुद्ध अरबी शैली में पूरे चालीस सेकेण्ड तक हमिंग करते हैं. असल गीत डेढ़ मिनट बाद शुरू होता है. गीत में कास्टानेट्स, गिटार और वायोलिन के अनूठे मिश्रण के अलावा पारंपरिक जिप्सी संगीत की गूँजें भी सुनाई देती हैं.
फ़िल्मी गाने उन दिनों आम तौर पर तीन से चार मिनट के होते थे. एक राग, एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे. बंधे-बंधाये ढर्रे वाले संगीत उपकरण और फ़िजूल माने जाने वाले प्रयोगों से दूरी. इस एक गीत में आरडी बर्मन ने सारे नियमों को तोड़ते हुए कुछ ऐसा करने की कोशिश की जिसके लिए संभवतः लोग तैयार नहीं थे.
अपनी बात दुनिया तक पहुंचा सकने में आरडी को पांच बरस और लगने थे, वो वक़्त तब आया जब 1966 में 'तीसरी मंज़िल' आई. 'आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा' और 'ओ हसीना जुल्फों वाली' जैसे गाने पहले कभी नहीं सुने गए थे. नासिर हुसैन की इस फिल्म में पंचम ने वह कर दिखाया जिसे हर संगीतकार करना चाहता है.
उन्होंने इतने सारे और इतनी तरह के साजों का इस्तेमाल किया कि विशेषज्ञ तक हैरान रह गए -वाइब्राफोन, वायोलिन, चैलो, चाइम, ट्रम्पेट, ड्रम्स, सैक्सोफोन, कांगो, ट्राईएंगल, कास्टानेट्स और न जाने क्या-क्या. दशकों से मुख्यतः वायोलिन, सितार, गिटार और तबले पर निर्भर रहने वाले फिल्म संगीत में यह एक अभिनव प्रयोग था जिसमें मनोहारी सिंह और कर्सी लॉर्ड जैसे दिग्गज अरेंजरों की मदद से परफेक्शन हासिल की गई थी.
यह 1960 की दहाई के बीच के साल थे - पश्चिमी देशों में एक नए किस्म के सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो रहा था. लेड जैप्लिन, जॉन लेनन, लेनर्ड कोहेन और बीटल्स का ज़माना था. कविता में बीटनिक कवियों ने सारी बनी-बनाई धारणाओं को ध्वस्त करने का बीड़ा उठाया हुआ था. हिप्पी आन्दोलन अपने चरम पर था और संसार भर के युवा दुनिया को एक बनाने का सपना देख रहे थे. यह चेतना भारत भी पहुँची. नया सिनेमा बनाया गया, नए साहित्य का सृजन हुआ और युवाओं ने यात्राएं करना शुरू किया.
आरडी बर्मन के सर्वश्रेष्ठ काम के पीछे उस समय की उस वैश्विक चेतना ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई. अपने युग की आत्मा को अगर किसी ने पूरी तरह आत्मसात किया तो वह पंचम ही थे. यह उन्हीं का हौसला था कि उन्होंने अपने संगीत में लैटिन अमेरिका के साल्सा, फ्लेमेंको और साम्बा को भी जगह दी और अफ्रीकी लोकधुनों को भी.
उनकी रचनाओं में तमाम पाश्चात्य शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के तत्वों का भी समावेश पाया जाता है और अरबी संगीत का भी. मशहूर जैज़ गायक लुई आर्मस्ट्रांग को अपना आदर्श मानने वाले पंचम दा ने जैज़ के अलावा इलैक्ट्रोनिक रॉक, फंक और ब्राज़ील के मशहूर बोसा नोवा संगीत को भी अपने काम का हिस्सा बनाया. 1987 में मशहूर लैटिन अमेरिकी कम्पोज़र होसे फ्लोरेस के साथ मिलकर उन्होंने 'पान्तेरा' नाम का एक शानदार अल्बम भी रिलीज किया.
वैश्विक चेतना से भरपूर इस शानदार संगीतकार ने बंगाली लोकसंगीत और हिन्दुस्तानी क्लासिकल के सारे आयामों के अलावा हमारे देश की सांस्कृतिक बहुलता और विविधता को भी पूरा सम्मान दिया और अकल्पनीय प्रयोग किए. 1981 की फिल्म 'कुदरत' में उन्होंने 'हमें तुमसे प्यार कितना' को किशोर कुमार से भी गवाया और परवीन सुल्ताना से भी, जो दरअसल परंपरागत ठुमरी शैली में है.
पंचम दा ने अपनी सुनी हर ध्वनि को अपने काम में जगह दी या देने की कोशिश की. बारिश की बूंदों का गिरने से लेकर, किसी भिखारी की सदा और चरवाहों के अपने पशुओं के साथ होने वाले संवाद से लेकर पेड़ों-पत्त्तियों की सरसराहट - सब कुछ उनकी स्मृति में दर्ज होता रहा.
रेगमाल, बांस, कप, प्लेट, शंख, कंघी, कांच की बोतलें और गत्ते-लकड़ी के बक्से जैसी चीजें उनकी धुनों में संगीत उपकरणों की तरह प्रयोग हुईं. कोई कल्पना करेगा कि 'शोले' में खुद पंचम दा का गाया 'महबूबा, महबूबा' यूनान के एक गीत से प्रेरित है जिसमें आने वाले अंतरालों को भरने के लिए पानी से भरी बीयर की बोतलों से निकलने वाली आवाज़ों का इस्तेमाल किया गया.
1960 और 1970 के दौरान स्थापित हुए क्रमशः शम्मी कपूर और राजेश खन्ना के कल्ट पंचम दा के संगीत के बगैर संभव नहीं थे. 1980 का दशक उनके उतार का ज़माना था. हिन्दी फिल्मों से रोमांस जा रहा था और एंग्री यंग मैन जैसी थीम्स और डिस्को जैसे तत्वों का प्रवेश हो रहा था. नासिर हुसैन और देव आनंद जैसे निर्माताओं ने, जो पंचम दा के संगीत के बिना अपनी फिल्मों की कल्पना नहीं कर पाते थे, दूसरे संगीत निर्देशकों को आजमाना शुरू किया. यह मुश्किल दौर था लेकिन उनके चमकीले संगीत की कौंध जब-तब दिखाई दे जाती थी.
4 जनवरी 1994 को कुल 54 साल की आयु में जब दिल के दौरे से पंचम दा का असमय देहांत हुआ वे विधु विनोद चोपड़ा की '1942 ए लव स्टोरी' का संगीत रच रहे थे. यह बड़ी विडम्बना है कि जिन पंचम दा को दस-बारह साल पहले चुक गया माना जा रहा था, अगले साल इसी संगीत के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया.
आरडी बर्मन के यहां एक तरफ परम्परा को लेकर गहरा आदर दिखाई देता है तो दूसरी तरफ उसे लांघ जाने का बेचैन हौसला भी. यह शानदार विरोधाभास अक्सर उनके एक ही प्रोजेक्ट में देखने को मिल जाता था. मिसाल के तौर पर 1972 की फिल्म 'परिचय' में एक तरफ 'बीती ना बिताई रैना' जैसा शास्त्रीय गीत भी है तो 'सा रे के सा रे गा मा को ले के गाते चले' जैसी बेहद आधुनिक और जीवंत कम्पोजीशन भी. अपनी समकालीनता को लगातार समृद्ध करते चले जाने वाले वे ऐसे सचेत कलाकार थे जिनके लिए नए रास्तों का बनाया जाना सबसे महत्वपूर्ण था.
जब उन्होंने हिन्दी सिनेमा संगीत में अपने पहले धमकभरे कदम रखे थे, उन्हें तकरीबन विद्रोही माना गया लेकिन चालीस सालों बाद भी उनकी शुरुआती धुनें तमाम शक्लों-सूरतों में हर पीढ़ी को रिझा सकने में कामयाब हैं. गानेवाले के स्वर, उपकरणों के प्रयोग और रेकॉर्डिंग की तकनीकों तक ऐसा कोई इलाका उन्होंने नहीं छोड़ा जिसमें कुछ भी नया किये जाने की गुंजाइश थी.
पाश्चात्य संगीत से गहरे प्रभावित उनके संगीत में मूलतः हिन्दुस्तानी आत्मा का वास था. उनकी सबसे बड़ी खूबी यही है कि उन्होंने फिल्म संगीत को बने बनाए चौखट से मुक्त कर उसमें खिलंदड़ी और शरारत के लिए जगह निकाली.
आज निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि एआर रहमान और विशाल भारद्वाज और उन जैसे तमाम युवा संगीतकारों के पास अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए जिस तरह की स्पेस उपलब्ध है वहां तक पहुँचने वाले तमाम रास्ते पंचम दा के बनाए हुए हैं. उनका काम इस लिहाज़ से कभी पुराना नहीं पडेगा. मुख्यधारा से बाहर तो हरगिज़ कभी न जाएगा. (bbc.com)
लंदन, 25 जून | हॉलीवुड की जानी मानी गायिका अभिनेत्री लेडी गागा, गोताखोर टॉम डेली और पहला सर्व पुरुष 'स्ट्रिक्टली कम डांसिंग' युगल 2022 के ब्रिटिश एलजीबीटी अवार्डस के विजेताओं में से थी। सूत्रों के अनुसार, वोग के निर्देशक एडवर्ड एनिनफुल और गायिका एलिसिया कीज ने शुक्रवार को लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम का लुत्फ उठाया।
इस कार्यक्रम को कॉमेडियन सू पार्किन्स द्वारा होस्ट किया गया था।
अवार्ड शो यूके का सबसे बड़ा एलजीवीटी प्लस अवार्ड इवेंट है। 50 वर्षीय एनिनफुल ने अपना 'ग्लोबल मीडिया ट्रेलब्लेजर' पुरस्कार दिए जाने पर कहा, "मैं 2022 के एलजीबीटी अवार्डस का हिस्सा बनकर बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं, खासकर जब यूके 50 साल के गौरव का जश्न मना रहा है।"
"पश्चिम लंदन में एक युवा, अश्वेत समलैंगिक व्यक्ति के रूप में बढ़ते हुए मैं केवल उस दिन की कल्पना कर सकता था जब इस तरह के आयोजन मेरे जैसे लोगों को मनाएंगे, और अन्य अविश्वसनीय ट्रेलब्लेजर आज रात पहचाने जाएंगे।"
"मेरी आशा है कि हम सभी अगली पीढ़ी के लिए सकारात्मक बदलाव पर जोर देते रहेंगे।"
'सेलिब्रिटी एली ऑफ द ईयर' पुरस्कार से सम्मानित कीज ने वीडियो लिंक के माध्यम से कहा, "व्यक्तिगत स्तर पर, मैं आज रात इस पुरस्कार को स्वीकार करने के लिए सम्मानित महसूस कर रहा हूं। मुझे हर तरह के लोगों को जानने का सौभाग्य मिला है, जब से मैं था एक छोटी लड़की और सौभाग्य से विविधता की सुंदरता और समृद्धि से अवगत कराया। वह सभी रंग, सभी धर्म, सभी शैलियां, सभी विश्वास, सभी प्यार, सभी लोग हैं।"
41 वर्षीय हिटमेकर ने साझा किया, "मेरा विश्वास करो, मुझे पता है कि नफरत सिखाई जाती है और निर्णय सिखाया जाता है, लेकिन हम प्रकाश हैं और हम प्यार हैं।"
"मैं कभी-कभी विश्वास नहीं कर सकता कि कितनी नफरत पर काबू पाना है, लेकिन जहां प्रकाश और प्रेम है, वहां अंधेरा और घृणा नहीं हो सकती।"
इस बीच, 28 वर्षीय डेली ने एलजीबीटी प्लस विरोधी कानूनों के खिलाफ बोलने के बाद 'स्विंटन इंश्योरेंस स्पोर्ट्स पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर' पुरस्कार प्राप्त किया।
ओलंपियन डेम केली होम्स 'सेलिब्रिटी अवार्ड' के लिए रात में एक आश्चर्यजनक प्रस्तुतकर्ता थीं, जब पूर्व एथलीट ने जून के मध्य में समलैंगिक होने के लिए 34 साल की चुप्पी तोड़ी थी। रिपोर्ट की मानें तो, यह पुरस्कार गागा ने जीता।
'स्ट्रिक्टली कम डांसिंग' की जोड़ी 35 वर्षीय जोहान्स राडेबे और 33 वर्षीय जॉन व्हाइट को शो जज शर्ली बल्लास द्वारा 'मीडिया मोमेंट ऑफ द ईयर' ट्रॉफी सौंपी गई। (आईएएनएस)
मुंबई, 24 जून | हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की जानी मानी अभिनेत्री उर्वशी रौतेला फिल्म 'द लीजेंड' से पैन इंडिया फिल्म में डेब्यू कर रही हैं। इस फिल्म को लेकर अभिनेत्री काफी खुश हैं, उन्होंने अपनी फिल्म को लेकर कहा है कि फिल्म रोमांस, हास्य, एक्शन और ट्विस्ट से भरी हुई है। अपनी फिल्म के लिए उत्साह व्यक्त करते हुए उर्वशी ने कहा, "आखिरकार! अखिल भारतीय अभिनेत्री बनने का मेरा लक्ष्य मेरी अखिल भारतीय रिलीज फिल्म के ट्रेलर के लॉन्च के साथ साकार हुआ, जो रोमांस, हास्य, एक्शन और साजिश के बारे में है। पूरी फिल्म में ट्विस्ट है।"
उन्होंने आगे कहा, "अपने शानदार परिवेश, जीवंत संगीत, हास्य धुनों और आवश्यक सामाजिक संदेश के साथ, यह एक बड़े बजट का मुख्यधारा का मनोरंजन है।"
आपको बता दे अभिनेत्री उर्वशी रौतेला फिल्म में 'माइक्रोबायोलॉजिस्ट और आईआईटीयन' की भूमिका निभाती नजर आएंगी।
फिल्म शिक्षा प्रणाली के बारे में एक संदेश भी देगी। (आईएएनएस)
चेन्नई, 24 जून | सेंसर बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने निर्देशक हरि की तमिल एक्शन एंटरटेनर 'यानाई' की रिलीज को मंजूरी दे दी है। इस फिल्म में अरुण विजय और प्रिया भवानी शंकर मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म को मंजरी एक स्वच्छ यू/ए प्रमाण पत्र के साथ मिली है।
फिल्म की इकाई ने एक पोस्टर जारी करने का विकल्प चुनकर इस खबर की पुष्टि की है, कि फिल्म को सेंसर कर दिया गया था और इसे यू/ए प्रमाणपत्र दिया गया है।
मास एंटरटेनर, जो मूल रूप से इस साल 6 मई को रिलीज होने वाली थी, लेकिन अब 1 जुलाई तक के लिए टाल दी गई है।
अभिनेता अरुण विजय ने कहा था कि, यूनिट ने निर्देशक लोकेश कनकराज की एक्शन ब्लॉकबस्टर विक्रम के सिनेमाघरों में मजबूत प्रदर्शन की सुविधा के लिए फिल्म की रिलीज को 1 जुलाई तक के लिए स्थगित करने का फैसला किया था।
फिल्म के सैटेलाइट और डिजिटल राइट्स जी ग्रुप ने पहले ही खरीद लिए हैं।
ड्रमस्टिक प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित, फिल्म मुख्य रूप से 'बी' और 'सी' सेंटर ऑडियन्स पर लक्षित है।
फिल्म ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं क्योंकि यह पहली ग्रामीण स्क्रिप्ट है जिसे अरुण विजय लगभग 12 साल के अंतराल के बाद कर रहे हैं। (आईएएनएस)
-वंदना
बात तब की है, जब 1992 में बतौर हीरो अमिताभ बच्चन की ख़ुदागवाह अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही थी, बच्चन बॉक्स ऑफ़िस पर जमे तो थे पर बतौर लीड हीरो उनका दौर ख़त्म होने को था.
आमिर और सलमान खान क़यातम से क़यामत तक और मैंने प्यार के ज़रिए दस्तक दे चुके थे लेकिन पूरी तरह जमे नहीं थे. यानी नई और पुरानी के बीच की जो जगह होती है, वो जगह ख़ाली सी थी.
तभी नए नवेले निर्देशक राज कंवर ने निर्माता गुड्डु धनोया के साथ मिलकर अपनी पहली फ़िल्म दीवाना बनाने की सोची. तब के रोमांटिक हीरो ऋषि कपूर और नई सनसनी दिव्या भारती के साथ. दूसरे हीरो थे अरमान कोहली. फ़िल्म रिलीज़ हुई 25 जून 1992 को.
कैसे हुई शाहरुख़ की एंट्री
दीवाना यूँ तो दिव्या भारती की कहानी है- एक लड़की जिसकी ज़िंदगी में हादसे पे हादसे होते हैं और कैसे ज़िंदगी उसे अलग दिशा में ले जाती है- कभी उसकी मर्ज़ी से और कभी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़.
दीवाना ऋषि कपूर की भी कहानी है, जिनके ज़रिए कहानी आगे बढ़ती है. ये दोनों फ़िल्म के शुरुआती फ़्रेम से लेकर लगभग आख़िरी तक रहते हैं.
दूसरे हीरो का रोल जो अरमान कोहली का था, वो किरदार कहानी का तीसरा कोण था.. ऋषि कपूर और दिव्या के कहीं बाद. (वही अरमान कोहली जो बिग बॉस में आए थे.)
ख़ैर किस्मत से या बद्किस्मती से अरमान कोहली ने फ़िल्म छोड़ थी और रोल एक नए हीरो को मिल गया. उस हीरो की एक भी फ़िल्म अभी तक रिलीज़ नहीं हुई थी हालांकि टीवी पर उसने कई हिट सीरियल दिए थे.
दो घंटे 35 मिनट की फ़िल्म दीवाना जिसमें पूरा फ़ोकस ऋषि और दिव्या पर.
फ़िल्म में दोनों पर चार रोमांटिक गाने आ चुके हैं. इश्क, मोहब्बत, शादी, मौत...वगैरह वगैरह फ़िल्म में सब कुछ हो चुका है .
फ़िल्म एक ढर्रे पर चल रही होती है तभी एक घंटे और 20वें मिनट पर एंट्री होती है दूसरे हीरो की यानी आधी फ़िल्म निकल जाने के बाद.
अगर आपने थिएटर में या अपने दोस्तों के साथ उस वक़्त ये फ़िल्म देखी हो, जैसे मैंने अपने स्कूल ट्रिप में वीएचएस पर देखी थी, तो वो पल फ्रीज़ फ्रेम की तरह याद रह गया है, जब उस दूसरे हीरो की मुंबई की सड़कों पर बाइक चलाते हुए एंट्री हुई थी. यामहा बाइक नंबर A7755.
विनोद राठौड़ की आवाज़ में वो दूसरा हीरो 'कोई न कोई चाहिए' गाता हुआ मुंबई की सड़कों पर बेधड़क और लापरवाह सा बाइक लेकर एक होर्डिंग के पास जाकर रुकता है.
फ़िल्मी करियर की शुरुआत
होर्डिंग पर कई फ़िल्मों के पोस्टर लगे हैं- जान से प्यारा और ऐ मेरी बुख़ुदी. तब सब इस बात से अंजान थे कि आने वाले वक़्त में, इस बाइक सवार लड़के की फ़िल्मों के पोस्टर असल ज़िंदगी में इन्हीं होर्डिंग पर लगने वाले थे.
उस हीरो का नाम था शाहरुख़ ख़ान, दीवाना उनकी पहली फ़िल्म थी जो रिलीज़ हुई 25 जून 1992 को. अरमान कोहली के हाथ से जो फ़िल्म गई उसने फ़िल्म इंडस्ट्री को उसका नया सुपरस्टार दिया.
किसी को मालूम नहीं था कि सेंकेड लीड वाला हीरो बॉलीवुड का नंबर वन हीरो बनने वाला था.
वैसे दीवाना भले ही सबसे पहले रिलीज़ हुई हो लेकिन जब शाहरुख़ को इस फ़िल्म के लिए साइन किया गया था, तब शुरुआती संघर्ष के बाद वो चार-पाँच फ़िल्में साइन कर चुके थे - दिल आशना है, राजू बन गया जेंटलमैन, चमत्कार, किंग अंकल.
सबसे पहली फ़िल्म उन्हें मिली थी हेमा मालिनी की दिल आशना है. इस फ़िल्म में भी हीरोइन दिव्या भारती ही थी और इसमें भी शाहरुख़ का मेन रोल नहीं था.
शेखर कपूर ने दिलवाया रोल
टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में निर्माता गुड्डु धनोया ने बताया था कि शेखर कपूर के बहुत ज़ोर देने पर ही वो शाहरुख़ से मिलने को तैयार हुए थे और शाहरुख़ चार -पाँच फ़िल्मों को अपनी तारीख़ें दे चुके थे और उनके पास दीवाना के लिए डेट्स ही नहीं थी.
लेकिन शाहरुख़ को कहानी पसंद आ गई और निर्माता को हीरो. दोनों तरफ़ से हाँ के बाद फ़िल्म साइन की गई. इत्तेफ़ाकन साइन की गई सारी फ़िल्मों के बीच में दीवाना की शूटिंग पहले ख़त्म हो गई और वो सबसे पहले रिलीज़ हो गई.
जब 1992 में ये फ़िल्म सिनेमाघरों में आई तो फ़िल्म हिट और गाने सुपरहिट - ऋषि कपूर तो पहले से ही स्टार थे, फ़िल्म के विलेन अमरीश पूरी भी मशहूर थे लेकिन दिव्या भारती और शाहरुख़ ख़ान रातोरात स्टार बन गए और राज कंवर ने अपनी पहली फ़िल्म से ख़ुद को स्थापित किया.
एक ज़िद्दी, अमीर, बेपरवाह, नासमझ लड़के से लेकर एक दिल वाले, जूनुनी आशिक़ के रंग में रंगा राजा का रोल...
वैसे इसमें कुछ भी नया नहीं था. न ही इस रोल में शाहरुख़ मेन हीरो थे, न ही उन्हें पूरा स्क्रीनटाइम मिला और न ही इस रोल में अभिनय की कोई ज़बरदस्त करामात दिखी.
उस वक़्त फ़िल्मफेयर में दिए इंटरव्यू में शाहरुख़ ख़ान ने ख़ुद क्या कहा था, ज़रा पढ़िए- "मैं निर्देशक, निर्माता के लिए बहुत ख़ुश हूँ कि फ़िल्म अच्छी चली. पर मुझे नहीं लगता कि मैंने इस सफलता में कुछ भी योगदान किया. मेरा काम बहुत ही ख़राब था - लाउड, वल्गर, अनियंत्रित, ओवरएक्टिंग कर रहा था और मैं इसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूँ. अगर आप पूरी तैयारी के साथ न उतर पाएँ तो ऐसा ही होता है.
मेरे पास स्क्रिप्ट तक नहीं थी. दरअसल, दीवाना की शूटिंग काफ़ी बाद में शुरु होनी थी लेकिन कुछ दूसरी फ़िल्मों की शूटिंग कैंसल हो गई तो मैंने वो तारीखें दीवाना को दे दी. जब मैंने ख़ुद को स्क्रीन पर देखा तो मैं असहज़ हो गया था. ये ग़ज़ब है कि लोगों ने मुझे फ़िल्म में पसंद किया. शायद इसलिए कि मैं नया चेहरा हूँ. लेकिन दीवाना में जो काम किया वो परफ़ॉर्मेंस मैं न याद रखना चाहता हूँ न दोहराना चाहता हूँ."
लेकिन फिर भी 1992 में आई दीवाना में कुछ तो था कि लोगों ने शाहरुख़ को पसंद किया. लोगों को शायद शाहरुख़ में कुछ नया, कुछ ताज़ा, कुछ अलग मिला. ऐसे वक़्त में जब शहंशाह अमिताभ बच्चन के बाद हिंदी फ़िल्मों को नए बादशाह की तलाश थी.
1992 में फ़िल्म आलोचक निख़्त काज़मी ने लिखा था- शाहरुख़ का रोल वही पुराना और घिसा हुआ है लेकिन वो इसमें नई स्फूर्ति भर पाए. एक ग़ुस्सैल, बाग़ी और उलझे हुए लेकिन मार्मिक प्रेमी के रोल को उन्होंने जैसे किया वो हवा के ताज़ा झोंके की तरह था. दीवाना से एक नए टेलेंट का उदय हुआ है.
रोमांस किंग कैसे बने शाहरुख
पर्दे पर जिस कोमलता, रिश्तों में नसाफ़त और रोमांस के लिए शाहरुख़ बाद में पहचाने जाने लगे, उसकी पहली झलक दीवाना में ही देखने को मिली थी.
जब अमीर बाप का ज़िद्दी आवारा बेटा राजा (शाहरुख़) एक ऐसी लड़की (दिव्या भारती) के इश्क़ में पागल हो जाता है जो अपने पहले पति को खो चुकी है और उसके दिल में किसी के लिए अब कोई जगह नहीं बची है तो बेचैन राजा रातों को दीवारों से सर पटक कर यही कहता है - "हर वक़्त उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने उभरती है और मैं हर वक़्त उस तस्वीर से कहता हूँ कि जा ..चली जा, पीछा मत कर मेरा लेकिन हर बार उसका चेहरा ऐसे उभरता है मेरे सामने... जैसे बादलों से चाँद निकल आया हो. इश्क़ हो गया है मुझे.?"
दोनों बाहें फैलाए दुनिया भर का प्यार लिए अपनी महबूबा को उनमें समेट लेने का जो 'हुनर' शाहरुख़ के नाम है, इसकी पहली झलक भी दीवाना में ही दिखी थी. 'ऐसी दीवानगी देखी नहीं' वाला गाना याद कीजिए जिसमें शाहरुख़ कलाबाज़ी लगाते हुए आते हैं और बाहें फैलाए हुए अपनी दिल की बात रखते हैं.
उस वक़्त वो फैली हुईं बाहें प्यार जताने का एहसास कराती हैं, अब कुछ लोगों के लिए वो रिपीट मोड का पोज़ बन चुकी हैं.
शाहरुख़ के साथ दिव्या भी दीवाना से काफ़ी मशहूर हुईं. फ़िल्म दीवाना में भले ही दिव्या कमोबेश नई थीं लेकिन ऋषि कपूर के सामने वो कहीं भी कम नहीं पड़ती.
कम उम्र में ही गुज़रे दिव्या और राजकंवर
कॉलेज में पढ़ती हँसती खेलती लड़की से लेकर, प्रेम में डूबी एक प्रेमिका, एक पत्नी, एक विधवा और फिर दोबारा शादी कर ज़िंदगी के दोराहे पर खड़ी एक औरत के रोल को एक नई नवेली हीरोइन के तौर पर दिव्या ने ठीक से किया.
उनकी स्क्रीन प्रज़ेंस ग़ज़ब की थी. शाहरुख़ और दिव्या दोनों को ही उस साल का डेब्यू फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला.
ये अजीब इत्तेफ़ाक है कि दिव्या भारती और फ़िल्म के निर्देशक राज कंवर दोनों की ही कम उम्र में मौत हुई. 25 जून 1992 में दीवाना रिलीज़ होने के एक साल से भी कम समय में 5 अप्रैल 1993 में दिव्या भारती की मौत हो गई. उम्र सिर्फ़ 19 साल.
दिव्या भारती टीएनजर ही थीं जब उन्होंने 1990 में वेंकटेश के साथ तेलुगू फ़िल्म और एक तमिल फ़िल्म में पहली बार काम किया था.
हिंदी में विश्वात्मा और शोला और शबनम ने 1992 में धूम मचाई और फिर कुछ ही महीनों बाद आई दीवाना.
फ़िल्म के गानों ने मचाई धूम
30 साल बाद दीवाना और इसके गाने आज भी मशहूर हैं. दरअसल इसके संगीत को फ़िल्म के हिट होने की एक अहम वजह माना जाता है. ये इस दौर की बात है जब फ़िल्में वाकई अपने संगीत के बिनाह पर भी सफल हो जाया करती थीं.
फ़िल्मफेयर वाले पुराने इंटरव्यू में शाहरुख़ ने भी कहा था, "दीवाना के संगीत का फ़िल्म के हिट होने में बड़ा रोला है. काश लोग ये कह पाते कि फ़िल्म का संगीत अच्छा है पर शाहरुख़ उससे भी बेहतर है. लेकिन सच ये है कि इसका संगीत फ़िल्म की बाकी चीज़ों पर भारी पड़ा. राज कंवर ने गीतों को बहुत अच्छे से फ़िल्माया, ऋषि कपूर, दिव्या, अमरीश पुरी, देवेन वर्मा सबने अच्छा काम किया. लेकिन अगर फ़िल्म को याद रखा जाएगा तो नदीम श्रवण की वजह से."
समीर के लिखे गीतों को नदीम श्रवण ने संगीत में सजाया था. ये नदीम श्रवण के उरूज वाला दौर था. 1990 में आशिक़ी के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर अवॉर्ड मिला, 1991 में साजन के लिए और 1992 में दीवाना के लिए लगातार तीसरी बार फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला था.
'सोचेंगे तुम्हे प्यार करें कि नहीं' के लिए गायक कुमार सानू को फ़िल्मफेयर पुरस्कार तो समीर को 'तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार' के लिए बेस्ट गीतकार के लिए फ़िल्मफेयर मिला.
ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं - शाहरुख़ और दिव्या भारत पर फ़िल्माया ये एकलौता गाना था. वैसे अगर आप संगीत को सुनते परखते हैं तो आप 1976 के कन्नड गाने को सुनिए जो फ़िल्म बायालू दारी में गाया गया था.
ये गाना सुनते ही आपको इसकी धुन और 'ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं' की धुन में एक रूपता नज़र आएगी.
शाहरुख़ से दीवाना जैसी ताज़गी की उम्मीद
आज दोबारा देखने पर दीवाना एक साधारण फ़िल्म लगती है. आज के पैमाने पर देखें तो फ़िल्म में शाहरुख़ का बिना दिव्या भारती की मर्ज़ी से उसका पीछा करना, उसके घर आना, उस पर रंग डालना आदि सेमी स्टॉकिंग जैसा लगता है. लेकिन ये 90 की सेंसेबिलिटी के दौर में फ़िल्म थी. फ़िल्म का ड्रामा और संस्पेंस अंत तक बाँधे रखता है.
हिंदी फ़िल्मों की रिवायत है कि अगर दो हीरो होते हैं तो एक मरता है, एक ज़िंदा रहता है. फ़िल्म में शाहरुख़ ख़ान और ऋषि कपूर के ले - देकर साथ में तीन सीन हैं शायद. एक सीन में शाहरुख़ ऋषि कपूर को अपनी पार्टी में लेकर आते हैं और गले लगाते हैं.
उस फ़्रेम में दो हीरो थे- एक 70 और 80 के दशक का रोमांटिक हीरो और एक वो जो आने वाले वक़्त में किंग ऑफ़ रोमांस कहलाने वाला था. जिसके फ़ैन्स भारत में ही नहीं, ब्रिटेन, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड, दुबई, क़तर, अफ़ग़ानिस्तान और न जाने कहाँ कहाँ से आते हैं.
दीवाना ने दुनिया को शाहरुख़ ख़ान दिया- वो शाहरुख़ जो अपनी पहली सफल पारी के बाद अब करियर के ऐसे मकाम पर खड़े हैं जहाँ चाहनेवालों और आलोचकों दोनों को उनसे उसी नएपन, उसी ताज़गी की उम्मीद है जो बाइक पर सवार राजा 'दीवाना' में लेकर आया था या 'माया मेमसाब' के ललित वाला नयापन, 'कभी हाँ कभी न' के सुनील वाली मासूमियत, 'बाज़ीगर वाली दहशत, चक दे इंडिया वाला जुनून, ओम शांति ओम वाला स्वैग या फिर इन सबसे परे एक नई दीवानगी. (bbc.com)
मुंबई, 23 जून। नेटफ्लिक्स ने बृहस्पतिवार को कहा कि एस एस राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ का हिंदी संस्करण दुनियाभर में इस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ‘भारत की सबसे लोकप्रिय फिल्म’ बन गया है।
मूल रूप से तेलुगू में बनी इस फिल्म का हिंदी संस्करण 20 मई को नेटफ्लिक्स पर आया। इससे दो महीने पहले सिनेमाघरों में फिल्म रिलीज हुई थी।
नेटफ्लिक्स के अनुसार ‘आरआरआर’ (हिंदी) दुनियाभर में ‘‘4.5 करोड़ घंटे से ज्यादा समय’’ देखी गयी। फिल्म की अवधि 3 घंटे 2 मिनट की है।
कंपनी ने ट्विटर पर घोषणा की, ‘‘आरआरआर इस समय दुनियाभर में नेटफ्लिक्स पर सबसे लोकप्रिय भारतीय फिल्म है।’’
‘आरआरआर’ 2022 की सबसे सफल भारतीय फिल्मों में से एक भी है जिसने दुनियाभर में बॉक्स ऑफिस पर 1,200 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई की है। (भाषा)
चेन्नई, 23 जून | साउथ इंडस्ट्री की खूबसूरत अभिनेत्री कृति शेट्टी डायरेक्टर वेंकट प्रभु की अपकमिंग फिल्म में मुख्य भूमिका निभाएंगी। इसकी घोषणा गुरुवार को फिल्म के मेकर्स ने की। फिल्म नागा चैतन्य भी लीड रोल में होंगे। यह फिल्म तमिल और तेलुगू भाषा में रिलीज होगी।
ट्विटर पर वेंकट प्रभु ने कीर्ति शेट्टी का फिल्म में स्वागत किया।
फिल्म को अस्थायी रूप से 'एनसी22' के रूप में संदर्भित किया जा रहा है। यह फिल्म वेंकट प्रभु की बतौर निर्देशक पहली तेलुगू फिल्म होगी। एक्टर नागा चैतन्य भी तमिल सिनेमा में प्रवेश करने जा रहे है।
श्रीनिवास सिल्वर स्क्रीन द्वारा निर्मित, पवन कुमार द्वारा प्रस्तुत फिल्म एक एंटरटेनमेंट मूवी होगी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 जून | बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी आज सिनेमा की दुनिया में जहां हैं, वहां पहुंचने में उन्हें लगभग दो दशक लग गए। अभिनेता ने आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर वह शोबिज की दुनिया में नहीं होते, तो वह किसान होते या राजनीति में अपना करियर बना रहे होते।
पंकज वर्तमान में अपनी अपकमिंग फिल्म 'शेरदिल : द पीलीभीत सागा' की रिलीज के लिए तैयार हैं, जो सच्ची घटनाओं से प्रेरित है।
आईएएनएस से बातचीत में पंकज त्रिपाठी ने कहा, "मैं अगर एक्टर नहीं होता, तो किसान होता। मेरे पिता किसान थे और यह मेरा पुश्तैनी काम था। मैं खेती करता या शायद मैं राजनीति में होता।"
45 वर्षीय स्टार पंकज त्रिपाठी ने 2004 में 'रन' और 'ओंकारा' में एक छोटी भूमिका के साथ शुरूआत की थी, लेकिन उनको सफलता साल 2012 में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' से मिली।
पंकज त्रिपाठी ने 'फुकरे', 'मसान', 'निल बटे सन्नाटा', 'बरेली की बर्फी', 'न्यूटन', 'स्त्री', 'लूडो' और 'मिमी' जैसी फिल्मों में शानदार काम किया।
इसके अलावा, पंकज ने 'मिर्जापुर', 'क्रिमिनल जस्टिस', 'योर्स ट्रूली' और 'क्रिमिनल जस्टिस : बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स' जैसी वेब सीरीज में भी काम किया।
एक्टर ने कहा, "मेरा एक्टिंग करियर एक लंबी कहानी है। मुझे इस लाइन में दिलचस्पी थी और इसके लिए मैंने खेती और छात्र राजनीति छोड़ दी और सिनेमा की तरफ आ गया। मुझे नहीं पता कि मैं सफल हूं या नहीं, लेकिन मुझे यहां तक पहुंचने में 15-20 साल लग गए।" (आईएएनएस)
मुंबई, 22 जून | गायक दिलजीत दोसांझ वैंकूवर में संगीत कार्यक्रम का हिस्सा बने और अपने संगीत से फैंस को खुश किया। इस दौरान दिवंगत पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला को भी दिलजीत ने भावुक श्रद्धांजलि दी। दिलजीत ने इंस्टाग्राम पर कॉन्सर्ट से एक क्लिप साझा की, जहां उन्होंने मूसेवाला के लिए एक विशेष सेगमेंट का प्रदर्शन किया। सोशल मीडिया पर उन्होंने वीडियो को कैप्शन दिया, 'वन लव'।
गाना शुरू होने से पहले गायक ने कहा कि यह शो हमारे भाईयों को समर्पित है, फिर उन्होंने गाना शुरू किया। इसके बाद दिलजीत ने दिवंगत रैपर को एक गीत समर्पित किया।
इस दौरान गीत थे, 'मूसे वाला नाम दिलन उते लिखे, भाई खास जोर लग जू मिटुआं वास्ते।'
मूसेवाला के नाम का जिक्र करते ही लोगों की भीड़ ने दिलजीत का हौंसला बढ़ाती नजर आई।
मूसेवाला की 29 मई को दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। (आईएएनएस)
मुंबई, 22 जून | मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने 'जुग जुग जियो' स्टार वरुण धवन और मनीष पॉल को चौंका दिया है, क्योंकि बिग बी सोशल मीडिया पर वायरल 'नच पंजाबन' ट्रेंड में शामिल हो गए हैं। अमिताभ बच्चन ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें वह पर्पल ट्रैक सूट और काले रंग का स्वेटबैंड पहने नजर आ रहे हैं।
इसमें वह आने वाली फिल्म 'जुग-जुग जीयो' के गाने के स्टेप करते नजर आ रहे हैं। इस तस्वीरे को कैप्शन देते हुए स्टार ने लिखा है, "नच पंजाबन नच पंजाबन नच पंजाबन नच।"
अभिनेता वरुण धवन ने कमेंट किया, क्योंकि वह अपने उत्साह को नियंत्रित नहीं कर सके और लिखा, "सर (कई दिल के इमोजी के साथ)।" इसके साथ मनीष पॉल ने लिखा, "यस वी लव यू सर।"
इससे पहले सोमवार को बिग बी ने 1983 में स्टेज पर परफॉर्म करते हुए एक थ्रोबैक वीडियो शेयर किया था। (आईएएनएस)
कोच्छी, 22 जून | लगभग दो महीने की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, अभिनेता-निर्माता विजय बाबू को बुधवार को केरल उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत मिल गई। विजय बाबू पर अभिनेत्री द्वारा बलात्कार का आरोप लगाया गया था जिसके चलते वह जेल में थे।
अभिनेता को 27 जून को पुलिस जांच दल के सामने पेश होने के लिए कहा गया है और पुलिस को उससे पूछताछ के लिए 27 जून से 3 जुलाई के बीच सात दिन का समय दिया गया है।
इसी के बीच में अदालत ने उन्हें किसी भी परिस्थिति में राज्य नहीं छोड़ने को कहा।
22 अप्रैल को कोझीकोड की एक अभिनेत्री ने एनार्कुलम में शिकायत दर्ज कराई कि कोच्चि के एक फ्लैट में विजय बाबू ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया और उसकी पिटाई की।
जैसे ही खबर सामने आई, बाबू अपने सोशल मीडिया हैंडल पर यह दावा करते हुए लाइव दिखाई दिए कि वह इस मामले में 'असली शिकार' थे, उन्होंने कहा कि वह शिकायतर्कता के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाएंगे, जिसका उन्होंने नाम भी लिया।
पुलिस ने प्राथमिक शिकायत के अलावा शिकायतर्कता का नाम उजागर करने को लेकर उनके खिलाफ दूसरा मामला दर्ज किया है। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 21 जून | सामंथा रूथ प्रभु जल्द ही करण जौहर के सेलिब्रिटी टॉक शो 'कॉफी विद करण' में नजर आने वाली हैं। इस शो के दौरान पूर्व पति नागा चैतन्य से तलाक के कारणों के बारे मेंं सामंथा ने कई खुलासे किए हैं। सोशल मीडिया अफवाहों के अनुसार, सामंथा ने अब पहली बार शो में स्टार नागा चैतन्य से अपने तलाक के बारे में बात की है।
सूत्रों के अनुसार, समांथा, जिन्हें 'कॉफी विद करण' के एक सवाल का जवाब देना था, जो कि तलाक को लेकर था तो बेहद ही विनम्र तरीके से अभिनेत्री ने इसके बारें में जबाव दिया।
'कॉफी विद करण' का प्रीमियर जुलाई में डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर होगा।
हालांकि 'ओह बेबी' की अभिनेत्री ने खुलासा किया कि जब उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें नागा चैतन्य को तलाक देना है, तो उन्हें कैसा लगा, तब से उन्होंने तलाक के कारण को गुप्त रखा है।
खैर नागा चैतन्य और सामंखा का तलाक अभी भी रहस्य बना हुआ है किसी ने इसे लेकर कुछ भी बयान नहीं दिया है। (आईएएनएस)