राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 2 जनवरी | टेलीकॉम प्रमुख भारती एयरटेल ने शुक्रवार को कहा कि उसने ग्राहकों से इंटरकनेक्ट यूसेज चार्जेज (आईयूसी) के लिए अलग से कोई शुल्क नहीं लिया है। एयरटेल ने यह भी कहा कि उसका अनलिमिटेड फ्री कॉल लाभ जारी रहेगा। भारती एयरटेल के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) अजय पुरी ने एक बयान में कहा कि एयरटेल मोबाइल ग्राहक पहले से ही एयरटेल के प्रीपेड बंडलों और पोस्टपेड प्लान के साथ सभी नेटवर्क पर असीमित मुफ्त कॉल का आनंद ले रहे हैं।
उन्होंने कहा, ''एयरटेल में, हम अपने ग्राहकों को बेस्ट-इन-क्लास अनुभव प्रदान करने के लिए आसक्त हैं। एयरटेल मोबाइल ग्राहक पहले से ही हमारे प्रीपेड बंडलों और पोस्टपेड प्लान के साथ सभी नेटवर्क पर असीमित मुफ्त कॉल का आनंद ले रहे हैं।''
पुरी ने कहा, ''वास्तव में, एयरटेल ने अपने ग्राहकों से आईयूसी के लिए अलग से कोई शुल्क नहीं लिया है और असीमित कॉलिंग का लाभ हमारे ग्राहकों के लिए जारी रहेगा।''
वहीं दूसरी ओर रिलायंस जियो ने शुक्रवार को घोषणा की कि एक जनवरी से सभी घरेलू कॉल मुफ्त हो जाएंगी, क्योंकि सभी घरेलू वॉयस कॉल के लिए आईयूसी को समाप्त कर दिया गया है।
शून्य आईयूसी व्यवस्था पहले जनवरी 2020 से लागू होने वाली था, लेकिन इसका कार्यान्वयन एक जनवरी 2021 तक टाल दिया गया।
बतां दे कि आईयूसी एक इंटर-ऑपरेटर चार्ज है। आईयूसी मूलरूप से दो सर्विस प्रोवाइडरों के बीच की सेटलमेंट होती है। ये तब लगता है जब कोई यूजर एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क पर कॉल करता है।
--आईएएनएस
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया मॉडल विकसित किया है, जो किसी देश के आर्थिक आंकड़ों की मदद से उस देश में मौजूद रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट) के स्तर का पता लगा सकता है। यह मॉडल एम्स्टर्डम इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ एंड डेवलपमेंट के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। यह मॉडल किसी देश की औसत आय, लोग स्वास्थ्य पर अपनी जेब से औसतन कितना खर्च करते हैं, साथ ही वहां सरकारी तंत्र में कितना भ्रष्टाचार मौजूद है, इन सबके आधार पर उस देश में मौजूद एंटीबायोटिक प्रतिरोध के स्तर की गणना करता है। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में प्रकाशित हुआ है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दशकों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का स्तर बढ़ता जा रहा है। यह सही है कि एंटीबायोटिक दवाएं किसी मरीज की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती है, पर जिस तरह से स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है उससे एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स की समस्या उत्पन्न हो रही है। आज छोटी-छोटी बीमारियों में भी डॉक्टर इन्हें खाने की सलाह दे रहे हैं। धीरे-धीरे दवाएं बैक्टीरिया पर कम प्रभावी होती जा रही हैं। इनका दूसरा खतरा पशुधन उद्योग के चलते उत्पन्न हुआ है,जहां ज्यादा पैदावार के लिए मवेशियों में अनियंत्रित तरीके से एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है, जोकि स्वास्थ्य के लिए खतरा है। वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक स्तर पर एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का प्रसार हर वर्ष 1 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। यह 1998 में 34 फीसदी से बढ़कर 2017 में 54 फीसदी पर पहुंच गया था।
यही वजह है कि विकसित देशों में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर नजर रखी जाती है और इनके उपयोग के लिए नियम भी बनाए गए हैं। यही वजह है कि इन देशों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स में कमी आ रही है। पर जब बात विकासशील और पिछड़े देशों की आती है, तो स्थिति पूरी तरह बदल जाती है। इन देशों ने अब तक इसे नियंत्रित करने के लिए न तो प्रभावी नियम बनाए हैं न ही उनके पास पर्याप्त साधन हैं जिनकी मदद से वो इसपर नजर रख सकें। ऐसे में यह मॉडल बहुत प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
यह मॉडल कितना कारगर है उसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पहले इसकी जांच उन विकसित देशों में की है जहां एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स को प्रभावी रूप से ट्रैक किया जाता है तो उन्हें पता चला कि उनका मॉडल नौ में से छह रोगजनकों की 78 से 86 फीसदी तक सटीक भविष्यवाणी कर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस मॉडल से प्राप्त नतीजों की मदद से दुनिया के 87 फीसदी देशों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स पर निगरानी रखने में मदद मिल सकती है। यह देश दुनिया की 99 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसकी मदद से उन 490 करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा, जिनके देशों में इन रोगजनकों को पहचानने और उसके इलाज के लिए पर्याप्त साधन मौजूद नहीं हैं।
क्या होता है एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स
एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स तब उत्पन्न होता है, जब रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस, और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं के लगातार संपर्क में आने के कारण अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं। अपने शरीर में आए बदलावों के चलते वो धीरे-धीरे इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। नतीजतन, यह दवाएं उन पर असर नहीं करती। जब ऐसा होता है तो मनुष्य के शरीर में लगा संक्रमण जल्द ठीक नहीं होता। इन्हें कभी-कभी "सुपरबग्स" भी कहा जाता है।
दुनिया में कितना बड़ा है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट का खतरा
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट एक बड़ा खतरा है। अनुमान है कि यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक इसके कारण हर साल करीब 1 करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। दवा-प्रतिरोधक बीमारियों के कारण हर वर्ष कम से कम सात लाख लोगों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2030 तक इसके कारण 2.4 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे। साथ ही इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। (downtoearth)
बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर हज़ारों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों ने जान भी गंवाई है.
पंजाब सरकार के मुताबिक़, आंदोलन के दौरान अब तक 53 लोगों की जान जा चुकी है. इनमें से 20 की जान पंजाब में और 33 की दिल्ली की सीमाओं पर गई है.
किसान कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये क़ानून उनकी ज़िंदगियों को बर्बाद कर देंगे जबकि सरकार इन्हें सुधार बता रही है.
जिन कारणों से किसानों की जान गई, उनमें सड़क दुर्घटना से लेकर ठंड तक जैसे कारण शामिल हैं. वहीं कुछ ने ख़ुद अपनी जान ले ली.
यहां हम आपको किसान आंदोलन के दौरान जान गँवाने वाले ऐसे ही लोगों के बारे में बताएंगे.
मेवा सिंह, 48, टिकरी बॉर्डर पर गई जान
सात दिसंबर का दिन था. जगह थी दिल्ली से लगने वाला टिकरी बॉर्डर. 48 वर्षीय मेवा सिंह प्रदर्शन पर एक कविता लिख रहे थे. कुछ लाइन लिखने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि वो अपनी कविता कल पूरी करेंगे.
उनके दोस्त जसविंदर सिंह गोरा याद करते हैं, "हम एक ही कमरे में थे और उस रात देर तक बातें कर रहे थे. मेवा सिंह को भूख लगी और वो कुछ खाने के लिए बाहर निकल गए."
वो बताते हैं, "कोई हमें बताने आया कि एक शख़्स बाहर गिर पड़ा है. हम भागकर बाहर गए तो देखा कि मेवा सिंह ज़मीन पर पड़ा था."
उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. वहां पहुँचने पर डॉक्टरों ने बताया कि उनकी अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो चुकी है.
मेवा अपनी कविता भी पूरी नहीं कर सके. वो मोगा ज़िले से आए थे.
photo from @Kisanektamorcha
भाग सिंह, 76, सिंघु बॉर्डर पर गई जान
पंजाब के लुधियाना ज़िले से आए 76 वर्षीय किसान भाग सिंह की 11 दिसंबर को मौत हो गई थी.
उनके बेटे रघुबीर सिंह कहते हैं कि उनके पिता प्रदर्शन स्थल पर बेहद ठंड में रह रहे थे और आख़िरी दिन उन्हें कुछ दर्द हुआ.
वो बताते हैं, उन्हें पहले सोनीपत के अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें रोहतक के अस्पताल ले जाया गया. लेकिन वो बच नहीं सके.
भाग सिंह की मौत ने उनके परिवार को हिलाकर रख दिया है, इसके बावजूद उनका परिवार फिर से प्रदर्शन पर जाने के लिए तैयार है.
उनकी बहु कुलविंदर कौर कहती हैं कि जब तक क़ानून रद्द नहीं होते, वो हार नहीं मानेंगे. उन्होंने कहा, "उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी जान की क़ुर्बानी दे दी, हम अपने बच्चों के लिए अपनी जान कुर्बान करेंगे."
बाबा राम सिंह, 65, ख़ुदकुशी
हरियाणा के करनाल ज़िले से ताल्लुक रखने वाले एक आध्यात्मिक नेता बाबा राम सिंह ने कथित तौर पर ख़ुद को गोली मार ली थी.
कहा गया कि वो किसानों की दुर्दशा को देखकर व्यथित थे. 9 दिसंबर को पहली बार सिंघु बॉर्डर जाने के बाद सिंह ने एक डायरी लिखी थी, जिसे पढ़ने वाले एक ग्रंथी कहते हैं कि आध्यात्मिक नेता ठंड के मौसम में प्रदर्शन स्थल पर बैठे किसानों की परेशानियों को देखकर दुखी थी.
उन्होंने सरकार पर प्रदर्शनकारी किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था.
अमरीक सिंह, 75, टिकरी बॉर्डर पर गई जान
गुरदासपुर के रहवासी अमरीक दूसरे प्रदर्शनकारियों के साथ बहादुरगढ़ बस अड्डे के नज़दीक रह रहे थे. 25 दिसंबर को ठंड से उनकी मौत हो गई.
मृतक के बेटे दलजीत सिंह कहते हैं, "वो अपनी तीन साल की पोती के साथ प्रदर्शन पर बैठे थे. हमने सोच रखा था कि जब तक प्रदर्शन ख़त्म नहीं हो जाता तब तक प्रदर्शन स्थल पर ही रहेंगे."
वो कहते हैं, "उस दिन वो उठे नहीं. हम उन्हें डॉक्टर के पास लेकर गए, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया."
photo from @Kisanektamorcha
मलकीत कौर, 70, सड़क दुर्घटना में मौत
पंजाब के मनसा ज़िले के एक गांव की रहने वाली मलकीत कौर मज़दूर मुक्ति मोर्चा की एक सदस्य थीं, वो अपने घर लौट रही थीं, तभी फतेहाबाद के नज़दीक एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.
मोर्चा के राज्य प्रमुख भगवंत सिंह कहते हैं, "वो कुछ दिनों तक प्रदर्शन में बैठी थीं. 27 दिंसबर की रात हम लंगर वाली जगह के नज़दीक रुके. एक कार उन्हें टक्कर मारकर निकल गई. हमें लगा कि उन्हें सिर्फ चोटें आई होंगी, लेकिन उनकी जान चली गई."
गाँव वालों का कहना है कि मलकीत कौर का परिवार कर्ज़ में डूबा है और उन्होंने सरकार से मदद की अपील की है.
जनक राज, बरनाला, 55, कार में आग लगने से जिंदा जल गए
जनक राज भारतीय किसान यूनियन (उगराहाँ) के एक कार्यकर्ता थे. शनिवार रात बहादुरगढ़- दिल्ली बॉर्डर के नज़दीक वो जिस कार में सो रहे थे, उसमें आग लग गई और वो ज़िंदा जल गए.
वो पेशे से एक मैकेनिक थे. उनके बेटे साहिल 28 नवंबर की उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, "उनके बिना सब सूना सूना लगता है, ख़ासकर तब जब उनके घर आने का वक़्त होता था."
वो बताते हैं, "एक मैकेनिक ने प्रदर्शन में शामिल ट्रैक्टरों की बिना पैसे की मरम्मत का वादा किया था. मेरे पिता भी उनकी मदद करने लगे. वो साइकल ठीक करने का काम करते थे, लेकिन उन्हें थोड़ा बहुत ट्रैक्टर मरम्मत करने का काम भी आता था."
भीम सिंह, 36, संगरूर. सिंघु बॉर्डर पर मौत
16 दिसंबर को वो सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे, जहां वो फिसलकर एक गढ़े में गिर गए.
एक किसान नेता मनजीत सिंह कहते हैं कि वो अपने सास-ससुर के साथ रह रहे थे.
उन्होंने बताया, "वो शौच के लिए गए थे और वहां वो फिसलकर गिर गए. हमने सरकार से उनके परिवार को मदद देने के लिए कहा है."
यशपाल शर्मा, शिक्षक, 68, बरनाला
यशपाल शर्मा की प्रदर्शन के दौरान एक टोल प्लाज़ा पर दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.
वह एक सेवानिवृत्त शिक्षक थे और एक किसान भी थे. उनकी पत्नी राज रानी कहती हैं कि वो रोज़ की तरह ही वहां गए थे.
आंखों में आंसू लिए राज रानी कहती हैं, "उन्होंने अपनी चाय बनाई. हमने सोचा भी नहीं था कि ये हो जाएगा और वो इस तरह वापस लौटेंगे."
वो बताती हैं, "वो कहा करते थे कि मैं चलते-फिरते ही मरूंगा, बिस्तर पर नहीं. भगवान ने उनकी इच्छा पूरी कर दी. लोग उनकी वजह से मेरी इज़्ज़त किया करते थे. उम्मीद है कि (प्रधानमंत्री) मोदी प्रदर्शनकारियों की सुनेंगे और इस तरह और लोगों की जान नहीं जाएगी."
काहन सिंह, 74, बरनाला, सड़क दुर्घटना
25 नवंबर को वो पंजाब हरियाणा बॉर्डर के खनौरी जाने के लिए अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉली को तैयार कर रहे थे. वहां दिल्ली कूच करने से पहले किसान एक प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे.
उनके पोते हरप्रीत सिंह कहते हैं कि वो 25 सालों से प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे.
उनके मुताबिक़, "वो ग्राम इकाई के एक खजांची थे. वो अपना ट्रैक्टर खड़ा करके उसके लिए एक वॉटरप्रूफ कवर लेने गए थे. तभी उनके साथ दुर्घटना हो गई. हम उन्हें अस्पताल लेकर गए लेकिन वो बच नहीं सके. सरकार ने हमें पांच लाख रुपए का मुआवज़ा दिया है. इसके साथ हम परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी की भी मांग कर रहे हैं."
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बलजिंदर सिंह गिल, 32, लुधियाना, हादसे में मौत
लुधियाना के गांव के रहने वाले बलजिंदर 1 दिसंबर को ट्रैक्टर लेने गए थे. लेकिन वो हादसे का शिकार हो गए और उनकी जान चली गई.
उनकी मां चरनजीत कौर कहती हैं, "मेरा पोता पूछता है कि उसका पिता ट्रैक्टर लेने के बाद वापस क्यों नहीं आया. वो पूछता है कि उसके पिता को चोट कैसे लगी."
तीन साल पहले उनके पिता की मौत हो गई थी. चरनजीत कहती हैं कि उनका परिवार बलजिंदर की कमाई पर ही जीता था. "अब बस मैं और मेरी बहू रह गए हैं. परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं बचा है."
इन मौतों के बावजूद किसानों का हौसला कायम है. वो जान गँवाने वालों के लिए बलिदान, शहादत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.
मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई एक रैली में किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहाँ ने घोषणा की, "हम वचन लेते हैं कि इन बलिदानों को बेकार नहीं जाने देंगे और आख़िरी जीत तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे."
उन्होंने कहा कि संघर्ष और बलिदान मांगेगा लेकिन वो इसके लिए तैयार हैं.
क्या इन मौतों ने प्रदर्शनकारी किसानों का मनोबल गिरा दिया है?
इस पर किसान नेता हरिंदर कौर बिंदू ने बीबीसी से कहा, "हम हर दिन औसतन एक किसान को खो रहे हैं. इससे हम दुखी हैं लेकिन निश्चित रूप से हमारा मनोबल कमज़ोर नहीं हुआ है. बल्कि हर मौत के साथ हमारा हौसला और मज़बूत ही होता जा रहा है."
बीबीसी ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि "वो किसानों की मौतों से दुखी हैं जो अपने अस्तित्व की लड़ाई में सर्दियों में ठिठुरने के लिए मजबूर हैं और केंद्र की बेरुख़ी भी झेल रहे हैं. अभी तक पंजाब में हमारे 20 किसानों की जान गई है और अन्य 33 ने दिल्ली की सीमाओं पर अपनी जान गंवाई है."
उन्होंने कहा, "ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और ये सब ख़त्म होना चाहिए. मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि वो किसानों की सुध लें और मसले को जल्द से जल्द सुलझाएं. ना तो पंजाब और ना ही देश अब इस संकट की वजह से अपने अन्नदाताओं की जानों का और बलिदान सह पाएगा." (bbc)
भारत के सभी राज्यों में आज कोविड 19 की वैक्सीन लगाने से पहले इसकी तैयारियों की जाँच की जाएगी. इसे वैक्सीन ड्राई रन कहा जा रहा है. इसके तहत देखा जाएगा कि स्वास्थ्यकर्मी किस हद तक तैयार हैं और उनमें किसी भी तरह की ट्रेनिंग की कमी तो नहीं है.
इसके साथ ही सुविधाओं का भी आकलन हो सकेगा. इसमें ये भी देखा जाएगा कि वैक्सीन को स्टोरेज से टीकाकरण केंद्र तक लाने में कितना वक़्त लग रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार सरकार ने ऑक्सफर्ड कोविड 19 वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है. यह वैक्सीन पुणे की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में बनी है. आज दूसरे चरण का ड्राई रन है. इससे पहले 28 दिसंबर को असम, आंध्र प्रदेश, पंजाब और गुजरात में हो चुका है.
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि 96 हज़ार लोगों को वैक्सीन लगाने की ट्रेनिंग दी गई है. इनमें से 2,360 लोगों को नेशनल ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स में ट्रेनिंग दी गई है और 57,000 से ज़्यादा लोगों को 719 ज़िलों में ज़िला स्तर पर प्रशिक्षण मिला है.
इस प्रक्रिया में सभी टीका केंद्रों पर 25 स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड-19 की डमी वैक्सीन लगाई जाएगी. इसमें इस बात की जाँच होगी कि पूरा सिस्टम वक़्त पर सही तरीक़े से काम कर रहा है या नहीं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ड्राई रन इस बात पर भी केंद्रित है कि अगर वैक्सीन लगाने के बाद किसी की तबीयत बिगड़ती है तो उसके लिए व्यवस्था कितनी तैयार है.
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने सभी राज्यों के अधिकारियों से कहा है कि ड्राई रन के दौरान हर एक चीज़ की मुस्तैदी पर नज़र रखें और कमियों को बताएं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार ड्राई रन के आकलन के बाद असली टीकाकरण के दौरान कमियों को मुस्तैदी से ठीक किया जा सकेगा.
समचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ड्राई रन को असली टीकाकरण की तरह देखा जाए. इस दौरान समन्वय में कमी रही तो असली टीकाकरण में कई तरह की समस्याएं आ सकती हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ड्राई रन से ही मुस्तैदी और कमियों का सही आकलन संभव है.
स्वास्थ्य मंत्री राष्ट्रीय राजधानी में ड्राई रन की निगरानी करेंगे. दिल्ली में ड्राई रन शाहदरा के गुरु तेगबहादुर हॉस्पिटल, दरियागंज के शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और द्वारका के वेंकटेश्वर अस्पताल में होगा.
लखनऊ में छह स्थानों पर ड्राई रन का आयोजन होगा. पुणे में तीन स्वास्थ्य केंद्रों पर और छत्तीसगढ़ के सात ज़िलों में होगा. (bbc)
दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में शुक्रवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अगर कोई हिंदू है तो उसे देशभक्त होना ही पड़ेगा क्योंकि यही उसका मूल चरित्र और स्वभाव है.
भागवत ने कहा कि कभी-कभी उसकी देशभक्ति को जागृत करना पड़ा सकता है लेकिन वह (हिंदू) कभी भी भारत विरोधी नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि उनकी देशभक्ति धर्म से निकली है.
भागवत के इस बयान के बाद एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके उन पर जवाबी पलटवार किया है.
उन्होंने ट्वीट में लिखा है, “क्या भागवत जवाब देंगे: गांधी के हत्यारे गोडसे के बारे मे क्या कहना है? नेल्ली नरसंहार, 1984 सिख विरोधी दंगे और 2002 गुजरात नरसंहार के ज़िम्मेदार लोगों के लिए क्या कहना है?”
उन्होंने अगले ट्वीट में लिखा, “एक धर्म के अनुयायियों को अपने आप देशभक्ति का प्रमाण जारी किया जा रहा है और जबकि दूसरे को अपनी पूरी ज़िंदगी यह साबित करने में बितानी पड़ती है कि उसे यहां रहने और ख़ुद को भारतीय कहलाने का अधिकार है.” (बीबीसी)
साल 2021 का आगमन हो चुका है. बीते साल हम सभी ने कोरोना महामारी का सामना किया.
पूरी दुनिया अपने घरों में क़ैद होने को मजबूर हो गई. कुछ वक़्त के लिए ऐसा लगा कि जैसे दुनिया ठहर सी गई.
अब नए साल में लोगों को उम्मीद है कि ज़िंदगी की चहल पहल दोबारा लौट आएगी.
इसके साथ ही भारत में नए साल के साथ कई बदलाव भी हो रहे हैं. ये बदलाव हम सभी के जीवन से जुड़े हैं. आइए देखते हैं नए साल से क्या-क्या बदल रहा है.
चेक पेमेंट का सिस्टम
नए साल की पहली तारीख़ से चेक के ज़रिए पेमेंट करने के तरीक़े में बड़ा बदलाव हो रहा है. भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऐलान किया था कि 1 जनवरी 2021 से चेक पेमेंट सिस्टम में बदलाव हो जाएगा.
आरबीआई ने इसे पॉज़िटिव पेमेंट सिस्टम नाम दिया है. इस नए सिस्टम के तहत 50,000 रुपये से ज़्यादा के चेक पेमेंट पर ज़रूरी जानकारियां दोबारा कंफ़र्म करवानी होंगी.
नए सिस्टम के तहत चेक जारी करने वाले व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नाम, चेक की तारीख़ और पेमेंट की रक़म जैसी जानकारियां देनी होंगी. यह जानकारी मोबाइल ऐप, एसएमएस, इंटरनेट बैंकिंग या एटीएम जैसे माध्यम से देने का प्रावधान है.
इसकी घोषणा आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अगस्त 2020 में कर दी थी.
भारतीय स्टेट बैंक ने बताया था कि वो इस नए सिस्टम के लिए पूरी तरह तैयार है.
लैंडलाइन से मोबाइल पर कॉल
नए साल से लैंडलाइन से मोबाइल फ़ोन पर कॉल करने के तरीक़े में भी बदलाव हो गया है.
1 जनवरी से अगर आप लैंडलाइन के ज़रिए किसी के मोबाइल फ़ोन पर कॉल करेंगे तो आपको उस मोबाइल नंबर से पहले ज़ीरो लगाना होगा.
अभी तक एसटीडी कॉल करने के लिए नंबर के आगे ज़ीरो लगाना होता था. लेकिन नए साल से लैंडलाइन के ज़रिए लोकल कॉल करने के लिए भी ज़ीरो लगाना होगा.
दूरसंचार विभाग ने नवंबर 2020 में इस नियम की घोषणा की थी.
कॉन्टैक्टलेस कार्ड ट्रांज़ैक्शन की सीमा
डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के मक़सद से आरबीआई ने नए साल में नए नियम लेकर आया है.
आरबीआई के अनुसार 1 जनवरी से कॉन्टैक्टलेस कार्ड ट्रांज़ैक्शन की सीमा 2000 रुपये से बढ़कर 5000 रुपये हो गई है.
आरबीआई ने चार दिसंबर को इस संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी.
कॉन्टैक्टलेस डेबिट या क्रेडिट कार्ड नेशनल कॉमन मोबेलिटी कार्ड फ़ीचर से लैस होते हैं.
इस कार्ड के ज़रिये ट्रांज़ैक्शन करने के लिए कार्ड को स्वाइप करने की ज़रूरत नहीं होती है. बस पीओएस के पास इसे सटाने से लेनदेन पूरा हो जाता है.
छोटे कारोबारियों के लिए जीएसटी रिटर्न
छोटे कारोबारियों के लिए सरकार ने जीएसटी रिटर्न भरना आसान कर दिया है.
नए साल से 5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले कारोबारियों को अब चार जीएसटी सेल्स (GSTR-3B) रिटर्न भरने होंगे
अभी तक इन कारोबारियों को भी 12 तरह के सेल्स रिटर्न भरने होते थे. (बीबीसी)
चेन्नई, 2 जनवरी | द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी से केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित करने के लिए एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाने का आग्रह किया। पलानीस्वामी को लिखे पत्र में, तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि पंजाब विधानसभा के बाद, केरल विधानसभा ने भी गुरुवार को इसी तरह का प्रस्ताव पारित किया है।
तीनों कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को देखते हुए स्टालिन ने इसे समय की आवश्यकता बताया।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु किसानों का ऋण माफ करने और उन्हें मुफ्त बिजली देने वाला पहला राज्य है। इसलिए अब राज्य को किसानों द्वारा उनके कठिन समय में खड़ा होना चाहिए।
पलानीस्वामी तीन कृषि कानूनों के मुखर समर्थक हैं और दावा किया है कि ये किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 जनवरी | लेफ्टिनेंट जनरल तरुण कुमार आइच ने शुक्रवार को राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के महानिदेशक के रूप में पदभार संभाला। इसकी जानकारी रक्षा मंत्रालय ने दी।
वह देश के प्रमुख युवा संगठन के 33वें महानिदेशक हैं।
जून 1986 में मद्रास रेजिमेंट की 16वीं बटालियन में कमिशन किए गए आइच राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा और रणनीतिक अध्ययन में एम.फिल किया है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 जनवरी | भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की विषय विशेषज्ञ समिति ने शुक्रवार को माना कि भारत बायोटेक द्वारा उसकी कोरोनावायरस वैक्सीन 'कोवैक्सीन' के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए प्रदान किया गया डेटा पर्याप्त नहीं है। विशेषज्ञ समिति ने भारत बायोटेक को और अधिक जानकारी मुहैया कराने को कहा है। शीर्ष सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
इससे पहले शुक्रवार को सीडीएससीओ, जिसे वैक्सीन से संबंधित प्रस्तावों का काम सौंपा गया है, उसकी 10 सदस्यीय विषय विशेषज्ञ समिति ने शुक्रवार को ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका कोरोनावायरस वैक्सीन 'कोविशिल्ड' के आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण को मंजूरी दे दी थी।
इसके साथ ही यह भारत में पहली ऐसी वैक्सीन बन गई, जिसे आपातकालीन उपयोग के लिए समिति की मंजूरी मिल गई।
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ने क्लिनिकल परीक्षण और 'कोविशिल्ड' के निर्माण के लिए ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ भागीदारी की है, जबकि भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर 'कोवैक्सीन' बनाई है।
विशेषज्ञ पैनल ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की ओर से ह्यकोविशिल्ड और भारत बायोटेक द्वारा 'कोवैक्सीन' के लिए मांगे गए आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण पर निर्णय लेने के लिए एक बैठक बुलाई थी।
एक बार जब समिति की ओर से वैक्सीन के लिए रास्ता साफ हो गया, तब अंतिम अनुमोदन के लिए आवेदन भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) वी. जी. सोमानी को भेज दिया गया है।
अमेरिका की फाइजर पहली वैक्सीन थी, जिसने चार दिसंबर को त्वरित अनुमोदन के लिए आवेदन किया था। इसके बाद क्रमश: छह और सात दिसंबर को सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने आवेदन किया था। फाइजर ने हालांकि अभी डेटा पेश करने के लिए और समय मांगा है।
डीसीजीआई ने गुरुवार को इस बात का संकेत दिया था कि भारत में नए साल में कोविड-19 वैक्सीन आ सकती है। डीसीजीआई ने उम्मीद जताई कि नववर्ष बहुत शुभ होगा, जिसमें हमारे हाथ में कुछ होगा।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के विशेषज्ञों की समिति ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कोविड-19 टीके के आपात इस्तेमाल की अनुमति देने के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की गुजारिश और 'कोवैक्सीन' के आपात इस्तेमाल को अनुमति देने के भारत बायोटेक के आग्रह पर विचार करने के लिए बुधवार को बैठक की थी।
केंद्र सरकार ने ड्राइव के पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की योजना बनाई है। वैक्सीन सबसे पहले एक करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स के साथ ही दो करोड़ फ्रंटलाइन और आवश्यक वर्कर्स और 27 करोड़ बुर्जुगों को दी जीएगी। वैक्सीन के लिए पहले से बीमारियों का सामना कर रहे 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 1 जनवरी | दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से 2.5 करोड़ के क्रिप्टोकरेंसी गिरोह के दुबई स्थित प्रमुख साजिशकर्ता (किंगपिन) को पकड़ा है। 60 वर्षीय आरोपी उमेश वर्मा पर क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग से प्राप्त धन की धोखाधड़ी और हेराफेरी के आरोप हैं। आरोपों के बाद से ही वह कानून की पकड़ से बच रहा था।
वर्ष 2017 के बाद से वर्मा ने अपने बेटे भरत के साथ मिलकर लोगों को कथित तौर पर ऑनलाइन मुद्रा में निवेश करके उन्हें बेहतरीन रिटर्न देने का वादा किया। इन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में कम से कम 45 पीड़ितों को धोखा दिया। आरोपियों ने प्लूटो एक्सचेंज क्रिप्टो मुद्रा में निवेश करने पर 20 से 30 प्रतिशत प्रति माह लाभ रिटर्न मिलने का लालच दिया।
आरोपी उमेश वर्मा ने कनॉट प्लेस के एक प्रमुख स्थान पर एक कार्यालय खोला और शिकायतकतार्ओं को नवंबर 2017 में प्लूटो एक्सचेंज क्रिप्टो मुद्रा की योजना में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आकर्षक वेबसाइटों के साथ पीड़ितों को प्रेरित करने के लिए प्रचार वाले यूट्यूब वीडियो भी अपलोड किए।
पिता-पुत्र की जोड़ी ने दो वेबसाइटों का संचालन किया, जहां पीड़ितों को पंजीकरण करने के लिए कहा गया था।
लोगों के साथ धोखाधड़ी करने के बाद अभियुक्त उमेश वर्मा ने पीड़ितों से बचने के लिए अपने आवासीय पते बदले और अंत में वह दुबई भाग गया।
सितंबर में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने इस संबंध में एक मामला दर्ज किया था।
बता दें कि क्रिप्टोकरेंसी एक प्रकार की डिजिटल मनी होती है। यह सिक्कों या कागज की मुद्रा के बजाय ऑनलाइन ही ट्रांसफर होती है। आसान शब्दों में कहें तो एक क्रिप्टो करेंसी एक इलेक्ट्रॉनिक रूप से निर्मित और इलेक्ट्रॉनिक रूप से संग्रहीत डिजिटल मुद्रा है, जिसके लिए क्रिप्टोग्राफी का प्रयोग किया जाता है। सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल सामान की खरीदारी या कोई सर्विस खरीदने के लिए किया जाता है।
ईओडब्ल्यू के संयुक्त पुलिस आयुक्त ओपी मिश्रा ने कहा कि इसकी कोई कानूनी प्रामाणिकता नहीं है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पहले ही वर्चुअल रूप में इस तरह के सिक्कों और करेंसी को प्रतिबंधित कर दिया है।
उन्होंने बताया कि दुबई से यहां उतरते ही पुलिस ने वर्मा को एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया। वह क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े मामले पर कोई उचित जवाब देने में विफल रहा।
अधिकारी ने कहा, "विस्तृत पूछताछ के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और आगे की जांच जारी है।" (आईएएनएस)
जम्मू, 1 जनवरी | पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में शुक्रवार को नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास छोटे हथियारों और मोर्टार का इस्तेमाल कर के संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, जिसमें सेना के एक जवान शहीद हो गए। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल देवेंद्र आनंद ने कहा, " शुक्रवार को करीब 3.30 बजे पाकिस्तान ने राजौरी जिले के नौशेरा सेक्टर में बिना किसी उकसावे के नियंत्रण रेखा पर छोटे हथियारों और मोर्टार का इस्तेमाल कर के संघर्ष विराम का उल्लंघन किया।
रक्षा सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में नायब सूबेदार रविंदर कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए थे और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया।
सूत्रों ने कहा कि भारतीय सेना इसका माकूल जवाब दे रही है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | भारत और ब्रिटेन के बीच 8 जनवरी से फिर से उड़ानें शुरू हो जाएंगी। इसकी घोषणा नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को की। पिछले महीने इस सेवा को ब्रिटेन में पाए गए कोरोनावायरस के नए प्रकार के कारण बंद कर दिया गया था।
मंत्री ने ट्वीट में कहा, "यह निर्णय लिया गया है कि भारत और ब्रिटेन के बीच उड़ानें 8 जनवरी 2021 से फिर से शुरू होंगी। 23 जनवरी तक संचालन केवल दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद से दोनों देशों के वाहक के लिए प्रत्येक सप्ताह 15 उड़ानों तक सीमित रहेगा।"
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 20 दिसम्बर को ब्रिटेन से भारत आने और भारत के वहां जाने वाली सभी फ्लाइट्स के परिचालन पर 31 दिसम्बर तक रोक लगा दी थी। इस घोषणा के बाद 22 दिसम्बर से दोनों देशों के बीच उड़ानों का परिचालन बंद कर दिया गया था।
सरकार ने कोरोना वायरस के एक नए प्रकार के वहां पाए जाने की खबर मिलने के बाद यह कदम उठाया था, लेकिन अब उड़ानों को फिर से शुरू करने की घोषणा कर दी गई है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | सर्जन वाइस एडमिरल रजत दत्ता ने शुक्रवार को सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के महानिदेशक के रूप में पदभार संभाला। इससे पहले वह दिल्ली में चकित्सा सेवा, नौसेना और कमांडेंट, आर्मी हॉस्पिटल (रिसर्च एंड रेफरल) के महानिदेशक थे।
रजत सशस्त्र सेना मेडिकल कॉलेज पुणे के पूर्व छात्र हैं और 1982 में एमबीबीएस पूरा करने के बाद 17 दिसंबर 1982 को आर्मी मेडिकल कोर में शामिस हुए थे।
दत्ता कमांडेंट एएफसी नई दिल्ली की प्रतिष्ठित पद को संभाल चुके हैं। वह नई दिल्ली में सेना के अतिरिक्त डीजीएमएस भी रह चुके हैं।
दत्ता को 1 फरवरी 2020 से राष्ट्रपति के लिए सर्जन के रूप में नियुक्त किया गया था। (आईएएनएस)
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर आजादी के बाद से ही उग्रवाद के लिए सुर्खियों में रहा है. यह अकेला राज्य है जहां अब भी तीन दर्जन से ज्यादा उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं. ऐसे में, असम राइफल्स को लेकर खींचतान भी जारी है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-
असम, 1 जनवरी | म्यांमार से लगी सीमा की वजह से उग्रवादियों को यह जगह काफी मुफीद है. पहले कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की सरकारों के सत्ता में रहने की वजह से उग्रवाद पर अंकुश नहीं लगा पाने के आरोप लगते रहते थे. लेकिन अब बीजेपी सरकार सत्ता में है. बावजूद उसके उग्रवाद पर अंकुश नहीं लग सका है. नतीजतन मणिपुर को सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के तहत और एक साल के लिए अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया है.
इस अधिनियम पर शुरू से ही विवाद रहा है. इसके तहत सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार मिले हैं. वर्ष 2004 में सात विधानसभा क्षेत्रों से इसे वापस लिया गया था. लेकिन बाकी जगह यह लागू है. राज्य में उग्रवाद विरोधी अभियानों की जिम्मेदारी अएसम राइफल्स के पास है. लेकिन अब इसके दोहरे नियंत्रण से होने वाली कथित दिक्कतों के लिए इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत लाने की कवायद फिर जोर पकड़ रही है. इंडो-तिब्बत बार्डर पुलिस (आईटीबीपी) के साथ इसका विलय करने पर विचार चल रहा है. यह अकेला ऐसा अर्धसैनिक बल है जिस पर सेना और गृह मंत्रालय का दोहरा नियंत्रण है.
पुराना है उग्रवाद का इतिहास
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर अपने गठन के समय से ही उग्रवादी गतिविधियों के लिए सुर्खियों में रहा है. इस उग्रवाद से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) लागू कर दिया था. यह कानून पूर्वोत्तर इलाके में तेजी से पांव पसारते उग्रवाद पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार देने के मकसद से अस्सी के दशक में बनाया गया था. इसके तहत सुरक्षा बल के जवानों को किसी को गोली मार देने का अधिकार है और इसके लिए उन पर कोई मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता. इस कानून के तहत सेना किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के हिरासत में लेकर उसे अनिश्चित काल तक कैद में रख सकती है.
11 सितंबर, 1958 को बने इस कानून को पहली बार नागा पहाड़ियों में लागू किया गया था जो तब असम का ही हिस्सा थीं. उग्रवाद पनपने के साथ इसे धीरे-धीरे पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में लागू कर दिया गया. मणिपुर में इस कानून के दुरुपयोग के दर्जनों मामले सामने आते रहे हैं. इस कानून की आड़ में हुई फर्जी मुठभेड़ के मामलों की जांच फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. इस विवादास्पाद कानून के दुरुपयोग के खिलाफ बीते खासकर दो दशकों के दौरान तमाम राज्यों में विरोध की आवाजें उठती रहीं हैं. लेकिन केंद्र व राज्य की सत्ता में आने वाले सरकारें इसे खत्म करने के वादे के बावजूद इसकी मियाद बढ़ाती रही.
मणिपुर की महिलाओं ने इसी कानून के आड़ में मनोरमा नामक एक युवती की सामूहिक बलात्कार व हत्या के विरोध में बिना कपड़ों के सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया था और उस तस्वीर ने तब पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं. लौह महिला के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला इसी कानून के खिलाफ लंबे अरसे तक भूख हड़ताल कर चुकी हैं. लेकिन मणिपुर में इसकी मियाद लगातार बढ़ती रही है. आखिर हार कर शर्मिला ने भी अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी थी. उक्त कानून के तहत अब राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता रहा है.
असम राइफल्स पर खींचतान
असम राइफल्स का इतिहास लगभग 185 वर्ष पुराना है. वर्ष 1835 में कछार लेवी के नाम से इसका गठन किया गया था. तब इसमें महज 750 जवान थे. वर्ष 1870 में इसमें बटालियनों की तादाद बढ़ा कर इसे असम मिलीट्री पुलिस बटालियन नाम दिया गया. इस बल के जवानों ने पूर्वोत्तर में कानून व व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में तो अहम भूमिका निभाई ही, प्रथम विश्वयुद्ध में भी ब्रिटिश सेना की ओर से हिस्सा लिया था.
बाद में इसका नाम असम राइफल्स कर दिया गया. असम राइफल्स में 46 बटालियन और 65,000 जवान और अधिकारी हैं. इस बल के जवानों के वेतन-भत्ते सेना के समान नहीं हैं. वर्ष 1962 में चीन के साथ लड़ाई के बाद इस पर सेना का नियंत्रण कायम हुआ.
दरअसल लंबे समय से असम राइफल्स के विलय की कवायद चल रही है. हालांकि सेना के कड़े विरोध के बाद केंद्र सरकार ने बीते साल लोकसभा में कहा था कि ऐसा कोई प्रस्ताव फिलहाल विचाराधीन नहीं है. बावजूद इसके इस पर कब्जे को लेकर तनातनी लगातार बढ़ रही है. सेना चाहती है कि असम राइफल्स का विलय उसके साथ कर दिया जाएगा. दूसरी ओर, गृह मंत्रालय की दलील है कि चूंकि तमाम अर्धसैनिक बल उसके अधीन हैं. इसलिए असम राइफल्स पर भी सिर्फ उसी का नियंत्रण होना चाहिए.
असम राइफल्स के लगभग 80 फीसदी अधिकारी सेना से आते हैं. पूर्वोत्तर में कानून व व्यवस्था की स्थिति की निगरानी और उग्रवाद-विरोधी अभियानों में यह सेना के साथ मिल कर काम करता है. यह कुछ वैसा ही है जैसे कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय राइफल्स के जवान सेना के साथ मिल कर काम करते हैं.
कोलकाता स्थित सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "अगर असम राइफल्स गृह मंत्रालय के अधीन चला जाएगा तो इसमें सैन्य अधिकारियों को नियुक्त नहीं किया जा सकेगा. इससे इस बल की मारक क्षमता में कमी आएगी. इसके अलावा पूर्वोत्तर में उग्रवाद-विरोधी अभियानों को भी झटका लगेगा.” वह बताते हैं कि असम राइफल्स और भारतीय सेना के बीच बेहतर तालमेल ही पूर्वोत्तर में तमाम उग्रवाद-विरोधी अभियानों की कामयाबी की प्रमुख वजह रही है.
जानकारों का कहना है कि गृह मंत्रालय की ताकतवर आईपीएस लॉबी विलय की भरसक कोशिशें कर रही हैं. इससे दूसरे अर्धसैनिक बलों की तरह असम राइफल्स में आईपीएस अधिकारियो की तैनाती की राह खुल जाएगी.
सेना के एक रिटायर्ड मेजर नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "आईपीएस अधिकारी लड़ाई या उग्रवाद-विरोधी अभियानों के लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं. ऐसे में आईपीएस अधिकारियों के अधीन असम राइफल्स को रखना और आईटीबीपी के साथ बल का विलय करना निश्चित ही खतरनाक है. ऐसी स्थिति में पूर्वोत्तर में एक बार फिर उग्रवाद तेजी से सिर उभार सकता है.” असम राइफल्स के महानिदेशक पद पर भी सेना के अधिकारी की नियुक्ति होती रही है.
सेना का मानना है कि इस विलय से भारत के सीमा प्रबंधन, पूर्वोत्तर भारत के सुरक्षा परिदृश्य और भारत-चीन सीमा की निगरानी पर नकारात्मक असर पड़ेगा. साथ ही भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा भी प्रभावित होगी.विलय के बाद चीन से लगी पूर्वी सीमा अपने पारंपरिक अभियानों में सेना को असम राइफल्स का साथ नहीं मिल पाएगा.
अदालत पहुंचा मामला
असम राइफल्स पर पूर्ण नियंत्रण के लिए सेना और केंद्रीय गृह मंत्रालय की खींचतान पुरानी है. वर्ष 2009 में इसके आईटीबीपी में विलय का प्रस्ताव केबिनेट की सुरक्षा समिति के समक्ष रखा गया था. लेकिन समिति ने इसे खारिज कर दिया था. उसके बाद वर्ष 2013 में भी गृह मंत्रालय ने असम राइफल्स का पूरा नियंत्रण अपने हाथों में लेकर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के साथ इसके विलय का प्रस्ताव रखा था. लेकिन रक्षा और गृह मंत्रालय के अधिकारियों के बीच कई दौर की बैठकों के बावजूद इस मुद्दे पर गतिरोध कायम रहा.
वर्ष 2019 में अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद असम राइफल्स के आईटीबीपी में विलय की योजना बनाई गई. लेकिन यह मामला फिलहाल सुरक्षा मामलों की केबिनट कमिटी के पास है. उसके बाद से ही सेना असम राइफल्स के साथ ही आईटीबीपी पर नियंत्रण के लिए जोर दे रही है.
इस बीच, पूर्व जवानों के संगठन असम राइफल्स एक्स-सर्विसमेन वेलफेयर एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की है. इसमें दोहरे नियंत्रण की समस्या के अलावा जवानों के वेतन-भत्ते सेना के समान करने की भी मांग उठाई गई है.
असम राइफल्स के महानिदेशक रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जीके दुग्गल का कहना है कि असम राइफल्स की भूमिका और उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए आईटीबीपी या दूसरे किसी अर्धसैनिक बल के साथ इसके विलय का मतलब राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करना होगा. पूर्वोत्तर में उग्रवाद से निपटने में इस बल की भूमिका बेहद अहम रही है. ऐसे में इस दिशा में कोई भी कदम तमाम पहलुओं पर गंभीरता से विचार के बाद ही उठाना चाहिए. (dw.com)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संगठनों के नेताओं की शुक्रवार को सिंघुबॉर्डर हुई बैठक में फैसला लिया गया कि चार जनवरी को सरकार के साथ होने वाली वार्ता विफल होने पर आंदोलन को तेज करते हुए छह जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकाली जाएगी। पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी किसान हरिंदर सिंह लाखोवाल ने आईएएनएस को बताया, "बैठक में सरकार के साथ होने वाली अगली वार्ता के विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। सरकार ने हमारी दो मांगे मान ली है, लेकिन दो अहम मांग अभी बाकी हैं , जिन पर चार जनवरी को चर्चा होगी। अगर, सरकार के साथ वार्ता के दौरान इन दो मांगों पर बात नहीं बनी तो छह जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकाली जाएगी।"
केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का शुक्रवार को 37वां दिन है। आंदोलनकारी किसान संगठन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार का कहना है कि किसानों के सुझावों के अनुरूप इनमें संशोधन कर दिया जाएगा। इसी बात पर पेंच फंसा हुआ है जिसके कारण छह दौर की वार्ता होने के बावजूद किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई है।
प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले किसान संगठनों के नेताओं ने बुधवार को सरकार के साथ चार मुद्दों पर वार्ता हुई, जिनमें दो मुद्दों पर सरकार ने किसानों की मांगे मान ली लेकिन अन्य जो दो मुद्दे बचे हुए हैं उनमें तीनों कानूनों को रद्द करने और फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने की गांरटी के लिए कानून बनाने की मांग शामिल हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानून के विरोध में चल रहे आंदोलन के दौरान शुक्रवार को गाजीपुर बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश के बागपत जिला स्थित भागवनपुर नांगल गांव के एक किसान की मौत हो गई। किसान के पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गांव भेज दिया गया है। गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की अगुवाई कर रहे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के सहयोगी सौरभ ने यह जानकारी आईएएनएस को दी।
उन्होंने बताया कि बागपत जिला स्थित भगवानपुर नांगल गांव के गलतान सिंह गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे धरना-प्रदर्शन में शामिल थे और पूर्णतया स्वस्थ थे। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में उनकी मौत हो गई। सौरभ ने बताया कि दिवंगत गलतान सिंह करीब 57 साल के थे।
देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर स्थित गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर 26 नवंबर 2020 से ही किसान डेरा डाले हुए हैं। वे तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ-साथ न्यनूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी समेत अन्य मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं।
हालांकि सरकार ने उनकी चार प्रमुख मांगों में पराली दहन से संबंधित अध्यादेश के तहत भारी जुर्माना और जेल की सजा के प्रावधान से मुक्त करने और बिजली सब्सिडी से जुड़ी उनकी मांगों को बुधवार को हुई बैठक में मान ली है और अन्य दो मांगों पर किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच अगली दौर की वार्ता चार जनवरी को होगी। (आईएएनएस)
बिहार में अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है, किंतु महाराष्ट्र, तेलंगाना और गोवा की तुलना में बिहार में शराब की खपत आज भी ज्यादा है. आंकड़े बताते हैं कि बिहार के शहरी क्षेत्र की महिलाएं भी शराब की शौकीन हैं.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार का लिखा-
बिहार, 1 जनवरी | शराब अरबी भाषा का शब्द है जो शर अर्थात बुरा और आब मतलब पानी के मिलने से बना है, जिसका अर्थ होता है बुरा पानी. नाम के अनुरुप इसके असर से बिहार भी अछूता नहीं रहा. 2015 में नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन की छतरी के तले बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े. उस वक्त पुरुषों की शराब की लत से परेशान महिलाओं ने पारिवारिक कलह, घरेलू हिंसा, शोषण व गरीबी का हवाला देते हुए राज्य में शराबबंदी की मांग की थी.
नीतीश कुमार ने वादा किया कि अगर वे फिर सत्ता में आए तो शराबबंदी लागू कर देंगे. आधी आबादी ने उन पर भरोसा किया और महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.92 से ज्यादा हो गया. कई क्षेत्रों में 70 फीसदी से अधिक महिलाओं ने मतदान किया. नीतीश विजयी हुए और सत्ता में लौटते ही राज्य में शराबबंदी की घोषणा कर दी.
वैसे नीतीश कुमार के निर्णय के कारण ही राज्य में पंचायत स्तर तक शराब की दुकानें खुल गई थी. यही वजह रही कि 2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गर्इं. शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब छह हजार दुकानें थीं और सरकार को इससे करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये का राजस्व आता था. 1 अप्रैल, 2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया जहां शराब के सेवन और जमा करने पर प्रतिबंध लग गई.
प्रतिबंध की अवज्ञा पर सख्त सजा के प्रावधान किए गए. यही वजह रही कि बीते चार साल में करीब दो लाख लोगों को शराबबंदी के उल्लंघन पर जेल हुई जिनमें करीब चार सौ से अधिक लोगों को सजा मिली. स्थिति अब ऐसी हो गई है कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब राज्य के किसी ना किसी कोने से शराब की बरामदगी और शराबबंदी कानून तोड़ने की खबरें सुर्खियां ना बनती हों.
बिहार के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की खपत महाराष्ट्र से अधिक
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते है. महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसदी ही है. अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 फीसदी लोग शराब पीते हैं.
इसी तरह महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में 13 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 14.7 फीसदी आबादी शराब का सेवन करती है. महिलाओं के मामले में बिहार के शहरी इलाके की 0.5 प्रतिशत व ग्रामीण क्षेत्रों की 0.4 फीसदी महिलाएं शराब पीती हैं. महाराष्ट्र के लिए यह आंकड़ा शहरी इलाके में 0.3 प्रतिशत और ग्रामीणों में 0.5 फीसदी है. शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है. यह बात दीगर है कि लोगों को दो या तीन गुनी कीमत चुकानी पड़ती है चाहे शराब देशी हो या विदेशी.
शराब के सिंडीकेट को तोड़ने में सरकार असफल
कानून लागू होने के बाद कुछ दिनों बाद तक तो सब ठीक रहा. सख्त सजा के प्रावधान के कारण ऐसा लगा कि वाकई लोगों ने शराब से तौबा कर ली. इसका सबसे ज्यादा फायदा निचले तबके के लोगों को मिला. परिवारों में खुशियां लौटीं. हालांकि समय के साथ धीरे-धीरे शराब शहर क्या, दूरदराज के इलाकों तक पहुंचने लगी. आज आम धारणा यह है कि यह हर जगह सुलभ है. हां, इतना जरूर है कि कीमत दो या तीन गुनी हो गई है.
बिहार में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल से शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है. हालात यह है कि पुलिस और मद्य निषेध विभाग की टीम यहां हर घंटे औसतन 1341 लीटर शराब जब्त कर रही है, मिनट के हिसाब से आंकड़ा 22 लीटर प्रति मिनट आता है.
आंकड़े बताते हैं कि राज्य में इस साल करीब एक करोड़ लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है. मुजफ्फरपुर, वैशाली, गोपालगंज, पटना, पूर्वी चपारण, रोहतास और सारण वाले इलाकों में शराब की अधिकतम बरामदगी हुई है. जाहिर है, इतना बड़ा खेल संगठित होकर ही किया जा रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. चेकपोस्ट की संख्या दोगुनी की जा रही है तथा धंधेबाजों को पकडऩे के लिए शराब के पुराने और बड़े 87 डीलरों को रडार पर रखा गया है.
शराब की आवक पर नजर रखने के लिए चेकपोस्ट की लाइव स्ट्रीमिंग की जा रही है. विभागीय अधिकारी मुख्यालय स्थित कंट्रोल रूम से ही 24 घंटे निगरानी को अंजाम दे रहे हैं. देखा जा रहा है कि चेकपोस्ट से होकर गुजरने वाले वाहनों की यथोचित जांच की जा रही है या नहीं.
पत्रकार अमित रंजन कहते हैं, भारी मात्रा में शराब की बरामदगी से साबित होता है कि ‘‘शराब व्यापारियों के सिंडिकेट को सरकार नहीं तोड़ पा रही है. आज तक किसी बड़ी मछली को नहीं पकड़ा जा सका है. पकड़े गए अधिकतर लोग या तो शराब पीने वाले हैं फिर इसे लाने के लिए कैरियर का काम करने वाले हैं.''
चूहे पी गए शराब
इस अवैध कारोबार के फलने फूलने में पुलिस भी पीछे नहीं है. इसका पता तब चला जब साल 2018 में कैमूर में जब्त कर रखे गए 11 हजार बोतल शराब के बारे में पुलिस ने अदालत को बताया कि चूहों ने शराब की बोतलें खराब कर दीं. एक अन्य घटना में पुलिस ने नौ हजार लीटर शराब खत्म होने का दोष चूहों के मत्थे मढ़ दिया.
उस समय विपक्षी दलों ने यह कहकर खूब हंगामा किया कि अब तो चूहे भी शराब पीने लगे हैं. मुजफ्फरपुर का तो एक पूरा थाना ही शराब की बिक्री के आरोप में निलंबित कर दिया गया. पुलिसकर्मियों द्वारा शराब की बिक्री करने से संबंधित वीडियो भी आए दिन खूब वायरल हुए. शराबबंदी कानून की आड़ में पुलिस पर लोगों को उत्पीडि़त करने के आरोप भी खूब लगे. यह बात दीगर है कि आला अधिकारी समेत पूरा महकमा इस बात की शपथ लेता है कि शराब के सेवन या उससे संबंधित किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं होगा और कानून को लागू करने के लिए विधि सम्मत कार्रवाई करेगा.
एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर डी.एन.दिवाकर कहते हैं, ‘‘इस कानून को गलत तरीके से लागू किया गया. अब तक शराब के कैरियर्स ही पकड़े गए, सप्लायर्स पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. जिस तरह से शराब की बरामदगी हो रही है उससे तो यही लगता है कि शराबबंदी असफल रही है.'' वहीं अधिवक्ता एम एन तिवारी का कहना है, ‘‘इसे लागू करने का असली मकसद तो समाज सुधार का था. इस कानून के लागू होने के बाद से घरेलू हिंसा कम हुई है, दुर्घटनाओं में भी कमी आई है. निचले तबके के परिवार का जीवन सुखमय हुआ है. पैसा घरों में जाने लगा है. सरकार को इसे और सख्ती से लागू करना चाहिए, ताकि जो लोग इसके अवैध कारोबार में संलिप्त हैं उन्हे कड़ी से कड़ी सजा मिल सके.''
शराब का अवैध कारोबार करने वालों ने समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली है. बेगूसराय की एक शराब दुकान में काम करने वाले संजय की बात से इसे समझा जा सकता है. वह कहते हैं, ‘‘अब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हो गई है. मैं एक हफ्ते में किसी भी ब्रांड की 50 बोतलें बेचता हूं और एक बोतल पर 300 रुपये की कमाई करता हूं. इस तरह महीने में 60000 रुपये की आमदनी हो जाती है. दुकान पर मिलने वाले वेतन से यह काफी ज्यादा है. सरकार ने शराबबंदी कर दी लेकिन यह नहीं सोचा कि बेरोजगार होने वाले लोग क्या कमाएंगे-खाएंगे. इसलिए रिस्क लेना पड़ता है.''
शराब बंदी खत्म करने की मांग
पिछले चुनाव में शराबबंदी खत्म करने की मांग तो नहीं उठी. हां, इस कानून की समीक्षा करने की बात महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने जरूर कही. पार्टी का कहना था कि महागठबंधन की सरकार बनी तो इस कानून की समीक्षा की जाएगी. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार को कांग्रेस के इस स्टैंड का फायदा ही मिला. महिलाओं को लगा कि शराबबंदी कहीं खत्म ना हो जाए. इसलिए अपने पारिवारिक अमन-चैन की खातिर उन्होंने एकबार नीतीश कुमार के पक्ष में जमकर मतदान किया. वैसे तेजस्वी यादव भी बराबर कहते रहे हैं कि बिहार में शराब की होम डिलीवरी हो रही है. इस धंधे में ना केवल माफिया बल्कि पुलिस-प्रशासन तथा कुछ राजनेता भी शामिल हैं. पैसे के लोभ में नए उम्र के लडक़े-लड़कियां पढ़ाई-लिखाई छोडक़र शराब की होम डिलीवरी में लग गए हैं.
राज्य में नई सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर इस मामले को उठाया है. भागलपुर के विधायक व कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस कानून को खत्म करने की मांग की है. अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि आज दो-तीन गुना कीमत पर लोग शराब खरीद कर पी रहे हैं. महंगी देशी-विदेशी शराब खरीदने के कारण गरीब परिवार भी आर्थिक बोझ से दब गया है. सरकार को चार से पांच हजार करोड़ के राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं इससे दोगुनी राशि शराब माफिया और उससे जुड़े लोगों की जेब में जा रही है. इस कानून की हकीकत अब कुछ और ही है इसलिए इसकी समीक्षा कर शराब की कीमत दो-तीन गुना बढ़ा कर शराबबंदी खत्म की जाए. अजीत शर्मा ने इससे हासिल होने वाले राजस्व से कल-कारखाने खोलने की बात कही है ताकि प्रदेश में रोजगार के मौके बनाए जासकें.
शराब बनाने वाली कंपनियों के संगठन कंफेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेजेज कंपनीज (सीआइएबीसी) ने भी सरकार को पत्र लिखकर राज्य में नियंत्रित तरीके से शराब की बिक्री की व्यवस्था करने की मांग की है. उधर राजद नेता शक्ति यादव कहते हैं, ‘‘बिहार में शराबबंदी कानून बिल्कुल फेल है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब पी जाती है. इसका मतलब है कि यह कानून ढोंग है. इसके जरिए सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचारियों ने सामानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी की है.बिहार में आ रही शराब की बड़ी खेप पकड़े जाने पर कितने एसपी-डीएसपी पर कार्रवाई की गई.''
इसके जवाब में जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन की कहना हैं, ‘‘शराब के तथाकथित आंकड़ों को लेकर जो लोग शराबबंदी पर सवाल उठा रहे उन्हें दूसरे पहलू को भी देखना चाहिए. आज महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान है, सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है, शराब से होने वाली बीमारियों में भी गिरावट आई है. क्या कानून को कुछ खामियों के चलते ही बदल दिया जाए. जहां कमियां हैं, उन्हें दुरुस्त करेंगे. शराबबंदी बिहार की सच्चाई है.''
यह तो सच है कि किसी कानून को चंद खामियों के चलते बदला नहीं जा सकता. तात्कालिक परिणामों के बदले उसके दूरगामी प्रभावों को देखना ज्यादा हितकारी होता है. हां, यह अवश्य ही देखा जाना चाहिए कि वे कौन हैं जो कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं. शायद इसलिए बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक अभयानंद कहते हैं, ‘‘शराबबंदी की नाकामी में पैसे की बड़ी भूमिका है. चंद लोग बहुत अमीर बन गए हैं. जो लोग पकड़े जा रहे, वे बहुत छोटे लोग हैं. असली धंधेबाज या फिर उन्हें मदद करने वाले ना तो पकड़ में आ रहे और ना ही उन पर किसी की नजर है.'' जाहिर है, जब तक असली गुनाहगार पकड़े नहीं जाएंगे तबतक राज्य में शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ती ही रहेंगीं. (dw.com)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जनवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), संबलपुर के कैंपस का शिलान्यास करेंगे। इस अवसर पर ओडिशा के राज्यपाल गणेशी लाल और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ रमेश पोखरियाल 'निशंक', धर्मेंद्र प्रधान और प्रताप चंद्र सारंगी जैसे केंद्रीय मंत्री भी उपस्थित रहेंगे। समारोह में बड़े-बड़े अधिकारी, उद्यमी, शिक्षाविद, विद्यार्थी, पूर्व छात्र और आईआईएम संबलपुर की फैकल्टी सहित वर्चुअली 5,000 से अधिक लोग मौजूद रहेंगे।
यह पहला ऐसा आईआईएम होगा, जहां फ्लिप कक्षा की अवधारणा को लागू किया जाएगा। इसमें बुनियादी चीजें डिजिटल मोड में सिखाई जाएंगी और इंडस्ट्री से लाइव प्रोजेक्ट्स के माध्यम से अनुभवों की जानकारी दी जाएगी।
इस संस्थान ने लैंगिक विविधता के मामले में भी अन्य सभी आईआईएम संस्थानों को पीछे छोड़ दिया है। यहां साल 2019-21 के एमबीए के बैच में 49 फीसदी छात्राएं शामिल रही हैं और 2020-22 के एमबीए बैच में 43 फीसदी छात्राओं ने एडमिशन लिया है। (आईएएनएस)
पटना, 1 जनवरी | विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केंद्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने शुक्रवार को यहां कहा कि अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण किसी एक मंदिर का निर्माण नहीं बल्कि, हिन्दू चेतना के पुनर्जागरण का अभियान है। इस अभियान से ही देश के कई दुर्गुण समाप्त होगा और भारत विश्व गुरु बन पाएगा। आलोक कुमार यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इस अभियान में 13 करोड़ परिवारों का सहयोग भी मिलेगा।
उन्होंने बताया कि बिहार में इस अभियान को गति देने के लिए श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ने बिहार में प्रख्यात चिकित्सक पद्मश्री डॉ़ आऱ एऩ सिंह के अध्यक्षता में श्रीराममंदिर निर्माण निधि समर्पण समिति का गठन किया है। यह पूरा अभियान पूज्य जीयर स्वामी एवं अन्य संतों के निर्देश में गठित मार्गदर्शक समिति द्वारा किया जाएगा।
उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि 2024 तक श्रीराम लला मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित हो जाएंगें और भक्तों को भव्य मंदिर में दर्शन के लिए आमंत्रित किया जाएगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | राष्ट्रपति भवन संग्रहालय को लगभग दस महीने के अंतराल के बाद 5 जनवरी को फिर से खोला जाएगा। सोमवार और सरकारी छुट्टियों वाले दिनों को छोड़कर संग्रहालय पूरे हफ्ते खुला रहेगा। 13 मार्च, 2020 को देश में कोरोनावायरस महामारी के प्रसार के चलते संग्रहालय को बंद कर दिया गया था।
संग्रहालय में आने के लिए अपने स्लॉट की बुकिंग आप ऑनलाइन कर सकते हैं। इसके लिए आपको एचटीटीपीएस://प्रेसिडेंटऑफइंडिया डॉट एनआईसी डॉट इन या एचटीटीपीएस://राष्ट्रपतिसचिवालय डॉट जीओवी डॉट इन या एचटीटीपीएस://आरबीम्यूजियम डॉट जीओवी डॉट इन पर लॉग इन करना होगा और आने वाले लोगों की संख्या के आधार पर 50 रुपये का पंजीकरण शुल्क अदा करना होगा।
यहां आने के लिए अभी सिर्फ ऑनलाइन बुकिंग की ही व्यवस्था है क्योंकि ऑन-द-स्पॉट बुकिंग की सुविधा फिलहाल उपलब्ध नहीं है।
सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का ख्याल रखने के लिए चार स्लॉट निर्धारित किए गए हैं - जिनमें सुबह 9.30 से 11 बजे, 11.30 से 1 बजे, 1.30 बजे से शाम के 3 बजे और 3.30 से शाम के 5 बजे तक की समयावधि है। इसमें हर स्लॉट में अधिकतम 50 आगंतुकों को अंदर प्रवेश करने की अनुमति है।
टूर के दौरान आगंतुकों के लिए मास्क पहनना, सामाजिक दूरी का पालन करना, आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 जनवरी | भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की 10 सदस्यीय विषय विशेषज्ञ समिति ने शुक्रवार को ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका कोरोनावायरस वैक्सीन 'कोविशिल्ड' के आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण को मंजूरी दे दी। विशेषज्ञ पैनल ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की ओर से 'कोविशिल्ड' और भारत बायोटेक द्वारा 'कोवैक्सीन' के लिए मांगे गए आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण पर निर्णय लेने के लिए एक बैठक बुलाई थी।
एक बार जब समिति की ओर से वैक्सीन के लिए रास्ता साफ हो गया, तब अंतिम अनुमोदन के लिए आवेदन भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) वी. जी. सोमानी को भेज दिया जाएगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन पर निर्णय का अभी भी इंतजार किया जा रहा है।
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ने क्लिनिकल परीक्षण और 'कोविशिल्ड' के निर्माण के लिए ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ भागीदारी की है, जबकि भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर 'कोवैक्सीन' बनाई है।
अमेरिका की फाइजर पहली वैक्सीन थी, जिसने चार दिसंबर को त्वरित अनुमोदन के लिए आवेदन किया था। इसके बाद क्रमश: छह और सात दिसंबर को सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने आवेदन किया था। फाइजर ने हालांकि अभी डेटा पेश करने के लिए और समय मांगा है।
डीसीजीआई ने गुरुवार को इस बात का संकेत दिया था कि भारत में नए साल में कोविड-19 वैक्सीन आ सकती है। डीसीजीआई ने उम्मीद जताई कि नववर्ष बहुत शुभ होगा, जिसमें हमारे हाथ में कुछ होगा।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के विशेषज्ञों की समिति ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कोविड-19 टीके के आपात इस्तेमाल की अनुमति देने के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की गुजारिश और 'कोवैक्सीन' के आपात इस्तेमाल को अनुमति देने के भारत बायोटेक के आग्रह पर विचार करने के लिए बुधवार को बैठक की थी।
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वी. जी. सोमानी के मुताबिक, महामारी के मद्देनजर आवेदकों को अनुमति प्रदान करने की पक्रिया तेजी से चल रही है और साथ ही पूरे डाटा की प्रतीक्षा किए बिना ही पहले और दूसरे चरण के परीक्षणों को अनुमति दी गई है।
केंद्र सरकार ने ड्राइव के पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की योजना बनाई है। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 1 जनवरी | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शुक्रवार को शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे किसानों की समस्याओं के जल्द समाधान निकलने की उम्मीद जताई है और साथ ही उद्योग और संचार के महत्व पर भी जोर दिया, ताकि राज्य की प्रगति हो और भावी पीढ़ियों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो। महामारी से मुक्त होने की उम्मीद लगाते हुए उन्होंने सभी पंजाबियों से अपील की है कि वे इस वक्त दुनिया के कई हिस्सों में फैले बेहद संक्रामक कोविड-19 के नए स्ट्रेन से उचित सावधानी बरतें।
शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के लिए किसानों ने अपने लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करना जारी रखा है, इसके लिए किसानों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने व्यवहार से दुनिया भर के लोगों का दिल जीत लिया है।
उन्होंने अपनी बातों में इस ओर इशारा किया कि पंजाब सहित दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन के दौरान न कोई हिंसा भड़की है और न कोई दंगे वगैरह हुए हैं।
अपने लाइव संदेश में मुख्यमंत्री ने पंजाबियों के साहस की सराहना की, जिन्होंने न केवल बहादुरी से महामारी का सामना किया बल्कि कृषि, उद्योग और व्यापार सहित अन्य क्षेत्रों में भी कठिनाइयों की इस घड़ी में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना जारी रखा।
उन्होंने डॉक्टर्स, नर्स, पैरामेडिक्स, पुलिस इत्यादि सहित सभी फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की भी सराहना की, जिन्होंने पंजाब के लोगों की सुरक्षा के लिए महामारी का डटकर सामना किया।
हालांकि उन्होंने इस बात की भी चेतावनी दी कि कोविड-19 अभी भी खत्म नहीं हुआ है इसलिए लोगों को अपने व अपने परिवार की खास देखभाल करनी चाहिए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली: देश मे कोरोना वायरस के यूके स्ट्रेन के मामले बढ़कर 29 तक पहुंच गए हैं. कल तक ऐसे 25 मामले सामने आए थे. शुक्रवार को चार नए मामले सामने आए, इसमें से 3 नए मामले NIMHANS, बेंगलुरु, और एक 1 नया मामला CCMB हैदराबाद की लैब में मिला है. गौरतलब है कि ब्रिटेन से हाल में दिल्ली लौटे चार लोगों के कोरोना वायरस के नए प्रकार (स्ट्रेन) से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी. यह जानकारी दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बृहस्पतिवार को दी. संवाददाताओं से बातचीत करते हुए जैन ने कहा कि ब्रिटेन से दिल्ली आए कुल 38 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है और उन्हें लोक नायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल परिसर में अलग संस्थागत पृथकवास में रखा गया है.
दरअसल, ब्रिटेन से लौटने वाले कई लोगों ने गलत या अधूरा पता और मोबाइल नंबर दिया है, इस कारण से इनका पता लगाने में मुश्किल पेश आ रही है. अधिकारियों ने बताया कि 25 नवंबर से आईजीआई हवाई अड्डा पहुंचे करीब 14,000 में से 3900 से ज्यादा यात्रियों ने दिल्ली का पता बताया है.
दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “कई मामलों में जिला स्तरीय टीमें ब्रिटेन से लौटे शख्स द्वारा दिए गए पते या मोबाइल नंबर से उसका पता नहीं लगा सकीं, क्योंकि ये विवरण अधूरा है. उनका जल्द से जल्द पता लगाने की कोशिशें की जा रही हैं.” दिल्ली में ब्रिटेन से लौटे लोगों का पता लगाकर उनकी जांच करने के लिए जिला स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है.
लखनऊ, 1 जनवरी | एटा जिले के गांव में ग्राम पंचायत की अंतरिम प्रमुख के तौर पर 65 वर्षीय पाकिस्तानी महिला के काम करने को लेकर जांच का आदेश दिया गया है। यह जांच यह जानने के लिए है कि लंबी अवधि के वीजा पर रहने के दौरान उसे आधार, वोटर आईडी और अन्य दस्तावेज कैसे मिले।
इसके अलावा महिला के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान के कराची की रहने वाली बानो बेगम 35 साल पहले एटा में अपने रिश्तेदार के घर भारत आई थीं। बाद में उसने एक भारतीय व्यक्ति अख्तर अली से शादी कर ली। तब ही से वह लंबी अवधि वाले वीजे पर एटा में रह रही थी। वह कई बार भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन भी कर चुकी है।
2015 के स्थानीय निकाय चुनावों में बानो गुआदौ ग्राम पंचायत के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई। इसके 5 साल बाद पिछले साल 9 जनवरी को ग्राम प्रधान शहनाज बेगम का निधन हो गया तो बानो ने ग्राम समिति की सिफारिश पर अंतरिम प्रधान के रूप में पद संभाल लिया।
मामला तब सामने आया, जब एक ग्रामीण क्वाईदन खान ने बानो के पाकिस्तानी नागरिक होने की शिकायत दर्ज कराई।
हालांकि बानो ने पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) आलोक प्रियदर्शी ने इस मामले को एटा के जिलाधिकारी सुखलाल भारती के सामने लाया। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने और जांच करने का आदेश दिया।
आलोक प्रियदर्शी ने कहा, "बानो बेगम के खिलाफ मिली शिकायत के आधार पर जांच में पाया गया कि वह पाकिस्तान की नागरिक हैं। उन्हें पास फर्जी तरीकों से उनके नाम से बना आधार कार्ड और वोटर आईडी मिला है।"
उन्होंने कहा कि बानो को ग्राम समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त करने और उन्हें अंतरिम प्रधान नियुक्त करने की सिफारिश ग्राम सचिव ध्यानपाल सिंह ने की थी। उन्हें पद से हटा दिया गया है।
जिला मजिस्ट्रेट भारती ने कहा, "यह जांच करने के लिए आदेश जारी किए गए हैं कि उसने ग्राम पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज कैसे प्राप्त किए। उनकी मदद करने वाले दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।" (आईएएनएस)
-दीपाली जगताप
भीमा कोरेगांव मामला: 16 गिरफ़्तारियां और 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट
उस घटना के तीन साल बीत चुके हैं, जब भीमा कोरेगाँव एक जनवरी 2018 को हिंसक झड़पों का गवाह बना था.
इसमें अब तक 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और वकीलों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जिन लोगों को गिरफ़्तार किया है, उनमें आनंद तेलतुंबडे, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, कवि वरवर राव, स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस समेत कई अन्य शामिल हैं.
भीमा कोरेगाँव हिंसा का देश के सामाजिक और राजनीतिक माहौल पर गंभीर असर पड़ा है.
एक जनवरी 2018 को ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच हुए युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के जश्न के दौरान भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़क उठी थी.
हज़ारों दलित विजय स्तंभ के नज़दीक इकट्ठा हुए थे. लेकिन तनाव के बाद वहां आगज़नी और पथराव हुआ. इसमें कई गाड़ियों को नुक़सान पहुँचा और एक शख़्स की जान चली गई.
इस घटना से एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा पर एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. प्रकाश आंबेडकर, जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, सोनी सोरी और बी.जी. कोलसे पाटिल जैसी हस्तियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया था.
पुणे पुलिस की शुरुआती जांच के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया. एनआईए ने अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते में एक विशेष अदालत के सामने 10,000 पन्नों की चार्ज़शीट पेश की थी.
पुणे पुलिस ने इस हिंसा से जुड़े दो अलग-अलग मामले दर्ज किए थे. दो जनवरी 2018 को पिंपरी पुलिस स्टेशन में हिंदुत्व नेताओं, संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की गई थी.
आठ जनवरी 2018 को तुषार दामगुडे नाम के शख़्स ने एल्गार परिषद में हिस्सा लेने वाले लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवाई थी. एफ़आईआर में दावा किया गया कि एल्गार परिषण में भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसकी वजह से अगले दिन हिंसा हुई. इस एफ़आईआर के आधार पर पुलिस ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और कवियों को गिरफ़्तार किया.
इस मामले में पहली चार्जशीट दायर करने के बाद पुलिस ने 21 फ़रवरी 2019 को एक पूरक चार्जशीट पेश की.
17 मई 2018 को पुणे पुलिस ने यूएपीए की धाराओं 13, 16, 18, 18B, 20, 39, और 40 के तहत मामला दर्ज किया. एएनआई ने भी मामले के संबंध में 24 जनवरी 2020 को भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 505(1)(B), 117 और 34 के अलावा यूएपीए की धारा 13, 16, 18, 18B, 20 और 39 के तहत एफ़आईआर दर्ज की.
महाराष्ट्र और पूरे देश को हिला देने वाली इस घटना और कई गिरफ़्तारियों के बाद अब तक भीमा-कोरेगाँव मामले में क्या मोड़ आए हैं?
एएनआई अपनी जाँच में कहां तक पहुंची है? क्या सभी चार्जशीट दायर हो चुकी हैं और न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है? भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या जांच एजेंसियां दोषियों को ढूंढने में सफल रही हैं? हम इस लेख में मामले में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा करेंगे.
भीमा कोरेगांव मामला: अब तक क्या-क्या हुआ
एएनआई जांच
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एएनआई) को भीमा कोरेगाँव मामले की जांच 24 जनवरी 2020 को सौंपी गई थी. एएनआई ने मुंबई में एक नई एफ़आईआर दर्ज की और 11 लोगों को अभियुक्त के तौर पर नामज़द किया.
एएनआई ने भारतीय दंड संहिता की पहले से लगी धाराओं के साथ यूएपीए की कुछ धाराओं को जोड़ा. लेकिन देशद्रोह से जुड़ी धारा 124 (ए) को अभी तक नहीं जोड़ा गया था.
अक्टूबर 2020 में एएनआई ने इस मामले में एक विशेष अदालत के सामने 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट दायर की. मामले में गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, हनी बाबू, रमेश गैचोर, ज्योति जगताप, स्टेन स्वामी, मिलिंद तेलतुंबडे और आठ अन्य लोगों को नामज़द किया गया.
पुणे पुलिस ने एक एफ़आईआर में समाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और स्कॉलर आनंद तेलतुंबडे का नाम 22 अगस्त 2018 को जोड़ा था.
अदालत ने 8 अप्रैल 2020 को नवलखा और तेलतुंबडे की ज़मानत याचिकाओं को ठुकरा दिया और दोनों एएनआई के सामने पेश हुए. 14 अप्रैल 2020 को उन्हें हिरासत में ले लिया गया.
एनआईए ने झारखंड के 83 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया.
एएनआई की 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट
एएनआई की ओर से दायर चार्जशीट में दावा किया गया कि समाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा कश्मीरी अलगाववादियों, पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी और माओवादी चरमपंथियों के सपंर्क में थे.
चार्जशीट के मुताबिक़, नवलखा 2010-11 के दौरान कश्मीरी अमेरिकी काउंसिल को संबोधित करने के लिए तीन बार अमेरिका गए थे और जब 2011 में एफ़बीआई ने ग़ुलाम नबी फई को गिरफ़्तार कर लिया था तो नवलखा ने फई के अमेरिकी वकील को चिट्ठी लिखी थी.
चार्जशीट में ये दावा भी किया गया कि फई ने पाकिस्तानी सेना के कुछ अधिकारियों से नवलखा का परिचय करवाया था.
चार्जशीट में दावा किया गया कि नवलखा से ज़ब्त डिज़िटल उपकरणों से उनके माओवादियों और आईएसआई से संबंध साबित हुए हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर हनी बाबू को भी मामले में गिरफ़्तार किया गया था. एनआईए ने उन पर अपने छात्रों को माओवादी विचारधारा से प्रभावित करने का आरोप लगाया.
एनआईए ने ये भी आरोप लगाया कि हनी बाबू पाईखोम्बा मेटेई के संपर्क में थे, जो मिलिट्री अफेयर केसीएम (एमसी) के सूचना और प्रचार सचिव हैं.
उन पर जेल से रिहा हुए सीपीआई (माओवादी) कैडर के लिए फंड जुटाने का भी आरोप है. एएनआई ने चार्जशीट में कहा कि हनी बाबू के अकाउंट से इस संबंध में कुछ आपत्तिजनक ई-मेल मिले हैं.
एएनआई ने ये भी दावा किया कि हनी बाबू ने विदेशी पत्रकारों और सीपीआई (माओवादी) के सदस्यों के बीच मुलाक़ात भी करवाई थी. साथ ही उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के प्रतिबंधित रिवॉल्युशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ भी काम किया है.
एएनआई की चार्जशीट में ये भी दावा है कि गोरखे, गैचोर और जगताप सीपीआई (माओवादी) के प्रशिक्षित सदस्य हैं और वो कबीर कला मंच के भी सदस्य हैं.
चार्जशीट में कहा गया है कि आनंद तेलतुंबडे भीमा कोरेगाँव शौर्य प्रेरणा अभियान के समन्वयकों में से एक थे और वो 31 दिसंबर 2017 को शनिवार वाडा में मौजूद थे.
गौतम नवलखा ने मुंबई हाई कोर्ट में ज़मानत की अपील की थी और कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया.
लगातार ख़बरों में ये आता रहा है कि भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले के अभियुक्तों के साथ जेल में अमानवीय बरताव हुआ है. दिसंबर 2020 में मुंबई हाई कोर्ट ने तलोजा जेल प्रशासन को इस मामले में थोड़ी इंसानियत दिखाने के लिए कहा था.
जेल प्रशासन ने नवलखा को चश्मा देने से इनकार कर दिया था. नवलखा के परिवार वालों ने कोर्ट में बताया कि उनका चश्मा जेल में चोरी हो गया था और उन्हें नया चश्मा भेजा गया था, लेकिन जेल प्रशासन ने उन्हें वो देने से इनकार कर दिया. नवलखा की उम्र 68 साल है.
वरिष्ठ कवि और बुद्धिजीवी वरवर राव बीते दो साल से सलाखों के पीछे हैं. उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था. फ़िलहाल ख़राब स्वास्थ्य के चलते उनका मुंबई के नानावती अस्पताल में इलाज चल रहा है.
21 दिसंबर 2020 को मुंबई हाई कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई की. उनकी पत्नी हेमलता राव ने मेडिकल ग्राउंड पर उनकी ज़मानत मांगी थी.
नंवबर में अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही वरवर राव को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. वो लीवर से संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं. उनकी पत्नी के मुताबिक़, उन्हें जेल में जो इलाज मिल रहा था वो काफ़ी नहीं था.
उनकी हालत जब बिगड़ने लगी तो कोर्ट में एक ज़मानत याचिका डाली गई कि उन्हें इलाज के लिए रिहा किया जाए. उनकी ज़मानत याचिका पर अगली सुनवाई 7 जनवरी 2021 को होगी.
इस बीच एएनआई ने हाई कोर्ट से कहा कि वरवर राव ठीक हैं और उन्हें जेल वापस भेज देना चाहिए.
एएनआई ने स्टेन स्वामी को अक्टूबर के पहले हफ़्ते में गिरफ़्तार किया था. उनपर नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप हैं. वो सबसे उम्रदराज़ अभियुक्त हैं जिन पर आतंकवाद से जुड़ी धाराएं लगाई गई हैं. उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का खंडन किया है.
कुछ दिन पहले स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ देने से इनकार कर दिया गया था, इस पर जेल प्रशासन की कड़ी निंदा हुई थी.
83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी पर्किन्सन्स नाम की बीमारी से ग्रसित हैं. उनके वकील ने अदालत से कहा कि वो हाथ में कप नहीं पकड़ सकते, क्योंकि उनके हाथ कांपते रहते हैं.
घटना के बाद एक सोशल मीडिया अभियान चलाया गया और लोगों ने तलोजा जेल में कई स्ट्रॉ भेजीं. स्वामी के वकली फिर कोर्ट गए. जेल प्रशासन उन्हें स्ट्रॉ देने को तैयार हो गया.
बायकुला की महिला जेल में क़ैद समाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने उन्हें जेल में किताबें और अख़बार दिए जाने की मांग की थी.
सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और हनी बाबू की ओर से पेश वकील चांदनी चावला ने एनआईए की विशेष अदालत के सामने शिकायत की कि जेल अधिकारी उनके मुवक्किलों को किताबें और अख़बार देने से इनकार कर रहे हैं.
अदालत ने वकीलों को इस मामले में एक हलफ़नामा दायर करने के लिए कहा है और इस पर अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी.
सुधा भारद्वाज को जून 2018 में गिरफ़्तार किया गया था. उनके वकील निहाल सिंह राठौड़ ने कहा कि उनकी ज़मानत याचिका दायर की गई थी, जो 60 बार सुनवाई के लिए रखी गई, लेकिन उस पर कभी विचार नहीं हुआ.
राठौड़ का दावा है कि 40 बार तो पुलिस अभियुक्त को अदालत में लाई ही नहीं.
पुलिस ने कहा कि वो अभियुक्त को इसलिए कोर्ट नहीं ला पाए क्योंकि वक़्त पर सुरक्षा व्यवस्था नहीं हो पाई.
पुणे पुलिस की ओर से दायर चार्जशीट क्या कहती है?
पुलिस का कहना है कि उसने चार्जशीट इस मामले में गिरफ़्तार किए गए लोगों के हार्ड-डिस्क, पेन-ड्राइव, मेमोरी-कार्ड और मोबाइल-फ़ोन से मिली जानकारी के आधार पर तैयार की है.
सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत से जुड़े मामले की चार्जशीट में कहा गया है कि 'प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ने रोना विल्सन और सुरेंद्र गडलिंग के ज़रिए सुधीर धवले से संपर्क किया, जो कबीर कला मंच के सक्रिय सदस्य हैं.
चार्जशीट के मुताबिक़, 'सीपीआई-माओवादी ने उनसे कबीर कला मंच के बैनर तले एक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा. इस कार्यक्रम का मक़सद भीमा कोरेगांव युद्ध की दो सौवीं सालगिरह के दौरान दलित संगठनों को एकजुट करना और लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़काना था.'
पुलिस का दावा है कि रोना विल्सन और सुधीर धवले ने अंडरग्राउंड कॉमरेड एम यानी मिलिंद तेलतुंबडे और प्रकाश उर्फ ऋतुपर्णा गोस्वामी के साथ मिलकर ये काम किया.
कहा गया कि इन लोगों ने 31 दिसंबर 2017 की एल्गार परिषद में भड़काऊ नारे लगाए, गाने गाए और नाटक आयोजित किए. पुलिस का आरोप है कि इससे लॉ एंड ऑर्डर की समस्या खड़ी हुई और अंत में हिंसा हो गई.
वरवर राव, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा की गिरफ़्तारी के बाद मामले में एक पूरक चार्जशीट दायर की गई.
पुलिस का आरोप है कि रोना विल्सन और फरार चल रहे किशनदा उर्फ प्रशांत बोस की मदद से वरवर राव ने हथियार और गोला-बारूद ख़रीदने की व्यवस्था की.
पुलिस का दावा है कि वरवर राव सीपीआई-माओवादी के एक वरिष्ठ नेता हैं और राव प्रतिबंधित माओवादी पार्टी के नेताओं से संपर्क में थे. इसके अलावा, वरवर राव पर आरोप है कि हथियारों के ट्रांसफर को लेकर उनकी नेपाली माओवादी नेता वसंत के साथ डील हुई थी. राव पर दूसरे अभियुक्तों को पैसा देना का भी आरोप है.
गोंजाल्विस को पहले आर्म्स एक्ट और एम्युनिशन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था. उनके ख़िलाफ़ मुंबई के काला चौकी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई थी. एक मामले में, वो सज़ा भुगत रहे हैं. पुलिस का दावा है कि गोंजाल्विस माओवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं.
पुलिस का कहना है कि गौतम नवलखा प्रतिबंधित संगठन में अहम भूमिका निभाते हैं. वो लोगों को नियुक्त करने से लेकर उन्हें फंड देने और योजनाएं बनाने में शामिल रहते हैं.
पुलिस का दावा है कि वो देशद्रोही कामों में भी लिप्त हैं. पुलिस का ये भी दावा है कि नवलखा से ज़ब्त दस्तावेजों से, ये स्पष्ट है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं को अंडरग्राउंड होकर देश के ख़िलाफ़ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया.
पुलिस ने आरोप लगाया है कि आनंद तेलतुंबडे ने प्रतिबंधित माओवादी पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया. उनपर प्रतिबंधित माओवादी पार्टी से फंड लेने के भी आरोप हैं.
पुलिस की शुरुआती कार्रवाई के दौरान बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार थी. लेकिन फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी और शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने हाथ मिलाकर राज्य में महा विकास अघाड़ी सरकार बनाई.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने 22 दिसंबर 2019 को एक प्रेस वार्ता में कहा कि पुणे पुलिस के नेतृत्व में एल्गार परिषद मामले की जांच कई सवाल खड़े करती है.
पवार ने कहा, "देशद्रोह का आरोप लगाते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करना ठीक नहीं है. एक लोकतंत्र में सभी तरह के विचारों को अभिव्यक्त करने की आज़ादी होनी चाहिए. पुणे पुलिस की कार्रवाई ग़लत है और लगता है कि ये बदला लेने के लिए की गई है. कुछ अधिकारियों ने पावर का ग़लत इस्तेमाल किया है."
कुछ दिनों बाद जनवरी में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले को पुणे पुलिस से एएनआईए के पास ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया. एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने मामले को ट्रांसफर किए जाने का विरोध किया और इस आदेश को असंवैधानिक बताया.
न्यायिक जांच
देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली तब की महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के लिए 9 फ़रवरी 2018 को एक दो सदस्यीय न्यायिक आयोग गठित किया था. कोलकाता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जे.एन. पटेल ने इस आयोग की अध्यक्षता की.
इस आयोग को चार महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन अब तक कई बार और समय दिए जाने के बावजूद आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की है.
एक ओर, पुणे सिटी पुलिस ने आरोप लगाया कि भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा में वामपंथी कार्यकर्ता शामिल थे. वहीं पुणे ग्रामीण पुलिस ने आरोप लगाया कि एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा के पीछे हिंदुत्ववादी नेता थे.
कहा गया कि भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और उन्हें 'क्लीन-चिट' दे दी गई, जबकि दूसरी तरफ वामपंथी झुकाव रखने वाले लोगों को अनुचित रूप से गंभीर कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा.
पिंपरी पुलिस स्टेशन में हिंदुत्व नेताओं संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी. मामले के सिलसिले में पुलिस ने मिलिंद एकबोटे को दो बार हिरासत में लिया. पुणे पुलिस ने उन्हें 14 मार्च 2018 को गिरफ़्तार किया और उन पर फिरौती और अत्याचारों में लिप्त होने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए.
अनीता साल्वे की ओर से दायर की गई शिकायत से जुड़े मामले में पुणे की एक अदालत ने चार अप्रैल 2018 को एकबोटे को ज़मानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए. लेकिन, शिकरापुर पुलिस ने एक अन्य शिकायत के सिलसिले में उसे हिरासत में लिया. शिकरापुर पुलिस का कहना है कि हिंसा भड़कने से पहले एकबोटे और उनके समर्थकों ने कार्यक्रम स्थल पर कुछ पर्चे बांटे थे.
पुणे के सत्र न्यायालय ने उन्हें 19 अप्रैल को ज़मानत दे दी. इस मामले के एक अन्य अभियुक्त संभाजी भिड़े को कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया, लेकिन उन पर आरोप है कि उन्होंने एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में रहकर लोगों को उकसाया था. कई संगठनों ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है और कुछ ने अदालतों में भी अपील की है. लेकिन, पुलिस ने अभी तक इस मामले में चार्ज़शीट दाखिल नहीं की है.
भीमा कोरेगाँव को एक लड़ाई के लिए जाना जाता है जो 1818 में पेशवा के नेतृत्व में मराठों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई थी.
इस लड़ाई में महार सैनिकों ने पेशवा सेना पर जीत हासिल करने में ब्रिटिशों की मदद की थी. कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने महार रेज़िमेंट की बहादुरी के कारण ही पेशवाओं को हराया था.
महार सैनिकों की वीरता की याद में यहां एक विजय स्तंभ बनाया गया था. हर साल एक जनवरी को हज़ारों लोग, जिनमें अधिकतर दलित समुदाय के लोग होते हैं, वो यहां इकट्ठा होते हैं और उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1818 की लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी.
स्तंभ पर लड़ाई में जान गँवाने वाले सैनिकों के नाम लिखे हैं. (bbc.com)