राष्ट्रीय
पटना, 23 अप्रैल | बिहार के पटना से सटे दानापुर थाना क्षेत्र में शुक्रवार को गंगा नदी पर बने पीपा पुल पर से एक जीप के गंगा नदी में गिर जाने से नौ लोगों की मौत हो गई। सभी लोग एक शादी समाारोह से वापस दानापुर लौट रहे थे। इधर, इस घटना पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताते हुए मृतक के परिजनों को चार-चार लाख रुपये अनुग्रह अनुदान देने का निर्देश अधिकारियों को दिया है।
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि शुक्रवार की सुबह एक शादी समारोह में भाग लेकर कुछ लोग एक जीप पर सवार होकर वापस दानापुर लौट रहे थे। इसी दौरान पीपापुल पर जीप चालक का वाहन पर से नियंत्रण हट गया और जीप रेलिंग तोड़ते हुए गंगा नदी में जा गिरी।
दानापुर के थाना प्रभारी ए के साह ने बताया कि अब तक नौ शवों को नदी से बाहर निकाल लिया गया है। उन्होंने कहा कि अभी भी राहत और बचाव का कार्य जारी है। उन्होंने बताया कि घटनास्थल पर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम की मदद से लापता लोगों की तलाश की जा रही है। उन्होंने कहा कि नदी से वाहन को भी निकाल लिया गया है।
घटनास्थल पर पाटलिपुत्र के सांसद रामकृपाल यादव भी पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। वही घटनास्थल पर लोगों की भारी भीड़ देखी जा रही है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, जीप पर 15 से अधिक लोग सवार थे। कुछ लोगों के तैरकर बाहर आने की बात बताई जा रही है।
इधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घटना पर दुख प्रकट किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह घटना काफी दुखद है और वह इस घटना से मर्माहत हैं। उन्होंने मृतक के परिजनों को अविलंब चार-चार लाख रुपये अनुग्रह अनुदान दिए जाने का निर्देश अधिकारियों को दिया।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 अप्रैल | सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कोविड-19 से संबंधित मुद्दों पर लिए गए स्वत: संज्ञान मामले के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर अंसतोष व्यक्त किया। दरअसल कुछ वरिष्ठ वकीलों द्वारा शीर्ष अदालत की ओर से कोविड-19 से जुड़े उन मामलों एवं याचिकाओं पर स्वत: संज्ञान लेने पर आलोचना की गई थी, जो विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित हैं। इस आलोचना पर अब सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है।
न्यायमूर्ति एल. एन. राव और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट के साथ प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बार के सदस्यों ने आदेश को पढ़े बिना या आदेश जारी हुए बिना ही आलोचना की है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट से मामलों को यहां लेने का कोई इरादा नहीं था और इसलिए आलोचना निराधार है।
पीठ ने वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह से सवाल पूछते हुए कहा, "क्या आपने आदेश पढ़ा है। क्या मामले को स्थानांतरित करने का कोई इरादा है?"
पीठ ने कहा कि जब इस संबंध में कोई आदेश पारित ही नहीं किया गया, तब भी इस पर प्रकार की बात की जा रही है।
असंतोष व्यक्त करते हुए, पीठ ने आगे कहा कि आदेश जारी होने से पहले ही, उस चीज के लिए आलोचना की जा रही थी, जो उस क्रम में नहीं थी। पीठ ने कहा, "इस तरह संस्थान को नष्ट किया जा रहा है।"
पीठ ने जोर दिया कि उसका इरादा केवल ऑक्सीजन के अंतर्राज्यीय मूवमेंट पर ध्यान देना था, जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित कई राज्यों के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। केंद्र द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगे जाने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 27 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी।
बता दें कि इस समय कम से कम छह हाईकोर्ट कोविड प्रबंधन से जुड़े मामलों पर नजर बनाए हुए हैं, जिनमें दिल्ली, बंबई, सिक्किम, मध्य प्रदेश, कलकत्ता और इलाहाबाद हाईकोर्ट शामिल हैं, जो कोविड प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से ऑक्सीजन की आपूर्ति, आवश्यक दवाओं की आपूर्ति, टीकाकरण की विधि एवं तरीके से लेकर लॉकडाउन घोषित करने के संबंध में जवाब मांगा था।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन अदालतों (हाईकोर्ट) ने सर्वोत्तम हित में फैसले लिए हैं, लेकिन कुछ आदेश भ्रम पैदा कर रहे हैं। इनके आदेशों की न्यायिक शक्ति की जांच करने की जरूरत है।
वहीं अब पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा, "आपने आदेश पढ़े बिना ही हमें अभिप्रेरित कर दिया।"
इस पर दवे ने कहा कि वह किसी भी मकसद को लागू नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी उद्देश्य को लागू नहीं किया जा रहा है। हम सभी ने सोचा था कि आप यह करने जा रहे हैं (मामले को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करना) यह एक वास्तविक धारणा थी। आपने पहले भी ऐसा किया है।
इसके बाद न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने हस्तक्षेप करते हुए दवे से कहा, "हमने हाईकोर्ट के बारे में एक शब्द नहीं कहा। हमने हाईकोर्ट को आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका। हमने केंद्र से हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए कहा है।"
न्यायमूर्ति भट ने कहा, "आप किस तरह की धारणा की बात कर रहे हैं?"
प्रधान न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं का वितरण मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे इसने गुरुवार को उठाया था।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और एस. रवींद्र भट के साथ प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को कहा, "देश के विभिन्न हिस्सों में स्थिति गंभीर है। कोविंद के मरीजों और इससे जान गंवाने वालों की संख्या में अचानक वृद्धि देखी जा रही है।"
पीठ ने कहा कि दवाओं, ऑक्सीजन एवं टीकाकरण की उपलब्धता और वितरण स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह के अनुसार एक समान तरीके से किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कह कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार महामारी के दौरान उपरोक्त सेवाओं और आपूर्ति से निपटने की एक राष्ट्रीय योजना तैयार करेगी।
पीठ ने यह भी कहा कि दवाओं, ऑक्सीजन और टीकाकरण की उपलब्धता और वितरण स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह के अनुसार एक समान तरीके से किया जाना चाहिए।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 अप्रैल | कोविड 19 के मसले पर मुख्यमंत्रियों के साथ शुक्रवार को हुई इंटरनल मीटिंग को मुख्यमंत्री केजरीवाल की ओर से लाइव टेलीकास्ट किए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल के पालन की नसीहत दी। प्रधानमंत्री मोदी की नाराजगी पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बाद में माफी भी मांगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की शुक्रवार को वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी को पता चला कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ऑफिस की ओर से इस इंटरनल मीटिंग का प्रसारण किया जा रहा है। जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को टोकते हुए कहा, "यह प्रोटोकॉल के खिलाफ हो रहा है कि कोई मुख्यमंत्री, इनहाउस मीटिंग को लाइव टेलीकॉस्ट करे। यह उचित नहीं है। इसका हमें पालन करना चाहिए।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नाराजगी जताए जाने पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने माफी मांगते हुए कहा, "अगर मुझसे गुस्ताखी हुई तो मैं माफी मांगता हूं। आज बैठक में जो भी निर्देश दिए गए हैं, उन निर्देशों का हम पालन करेंगे।" उधर, सरकारी सूत्रों ने आरोप लगाया कि इस बैठक में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने जरूरी सुझाव देने की जगह राजनीतिक बयान दिए। रेलवे की ओर से ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाकर राज्यों की ओर से मदद की जा रही है, लेकिन दिल्ली सरकार ने ऐसी कोई मांग नहीं की।(आईएएनएस)
ग्वाटेमाला सिटी, 23 अप्रैल | ओलंपियन अतनु दास और उनकी तीरंदाज पत्नी दीपिका कुमारी यहां जारी तीरंदाजी विश्व कप चरण 1 में रविवार को व्यक्तिगत पुरुष और महिला रिकर्व फाइनल में भाग लेंगे। मिश्रित टीम कांस्य पदक मैच में भारत का सामना अमेरिका से होगा। स्वर्ण पदक के लिए मैक्सिको का सामना जर्मनी से होगा।
दास ने क्वालीफिकेशन राउंड में अच्छा फॉर्म दिखाया था और अगर वह रविवार को भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो इससे उन्हें व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने का मौका मिलेगा।
दूसरे रैंकिंग के खिलाड़ी दास, मैक्सिको के एंजेल अल्वाराडो से भिड़ेंगे जो पहले सेमीफाइनल में 11वीं रैकिंग पर हैं।
महिलाओं की रिकर्व सेमीफाइनल में तीसरी रैंक्ड दीपिका मैक्सिको की अलेजांद्रा वालेंसिया से भिड़ेंगी।
अन्य सेमीफाइनल में अमेरिका की मैकेंजी ब्राउन का सामना रोमानिया की मादालिना अमाईस्टरोई से होगा। (आईएएनएस)
मुंबई, 22 अप्रैल | भारत में चल रही कोरोना महामारी के कारण हालातों को देखते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ध्वस्त हो गई है और यह समय घटिया राजनीति नहीं करना चाहिए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़े शब्दों में पत्र में राज ठाकरे ने कहा कि उन्हें यह जानकर बहुत झटका लगा है कि केंद्र अब कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रमुख दवा, रेमडेसिविर इंजेक्शन की खरीद और वितरण को नियंत्रित करने की योजना बना रहा है।
राज ठाकरे ने आगे कहा, "मैं यह समझने में विफल हूं कि केंद्र सरकार ने रेमडेसिविर की खरीद और वितरण को नियंत्रित करने का फैसला क्यों किया है। यह राज्य सरकार की मशीनरी है। स्वास्थ्य विभाग, स्थानीय संस्थान जैसे नगर निगम और कर्मचारी सभी स्तरों पर जो इस संकट में सबसे आगे हैं।"
एमएनएस नेता ने पीएम से मांग की कि केंद्र सरकार को रेमडेसिविर की खरीद और वितरण को कैसे नियंत्रित करना चाहिए।
देश भर में देखे जा रहे कोविड-19 के भयावह दृश्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मृत्यु दर दिल दहला देने वाली है, गुजरात और अन्य राज्यों में शवों का इंतजार कर रहे लोगों की कतारों की तस्वीरें बहुत परेशान करने वाली हैं।
राज ठाकरे, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई हैं, उन्होंने कहा, स्थिति बहुत गंभीर और भयानक है। यह घटिया राजनीति करने का समय नहीं है। हमारी स्वास्थ्य प्रणाली ध्वस्त हो गई है। हमें एकजुट होकर स्थिति का सामना करना चाहिए।(आईएएनएस)
भोपाल, 22 अप्रैल | कोरोना मरीजों के लिए रेमडेसीविर इंजेक्शन को जीवन रक्षक माना गया है, मगर मध्य प्रदेश में इन दिनों इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी जारी है। इस कालाबाजारी को रोकने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सख्त ऐलान किया है और कहा है कि इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कोरोना की स्थिति की वर्चुअली उच्च स्तरीय बैठक में गुरुवार को कहा है कि रेमडेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों के विरुद्ध रासुका के तहत कार्यवाही की जाए। ऑक्सीजन आपूर्ति के संबंध में गलत अफवाह उड़ाने वालों और भ्रामक जानकारियां देने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही हो।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि, "कोरोना कर्फ्यू के लिए जिस तरह से जनता आगे आई है और सभी ने सहयोग किया है, उससे संक्रमण फैलने की गति कम हुई है। जनता के साथ जनता के सहयोग से कोरोना कर्फ्यू को बनाए रखना जरूरी है। हमारा लक्ष्य प्रदेश की जनता को संक्रमण से बचाना है। अत: घर पर ही रहें अनावश्यक बाहर न निकलें और संक्रमण की चेन को तोड़ें। हमारा लक्ष्य है कि प्रदेश के पॉजिटिव हुए लोगों को जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ मिले।"
मुख्यमंत्री चौहान ने जानकारी दी कि ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए डीआरडीओ सहित केंद्र सरकार स्तर पर लगातार बातचीत जारी है। ऑक्सीजन की आपूर्ति में हर संभव सहयोग मिल रहा है। कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण और इलाज की व्यवस्था के संबंध में मंत्रियों को सौंपे गए दायित्व का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए योग से निरोग कार्यक्रम और काढ़ा वितरण जैसी गतिविधियां आरंभ की जा रही हैं। प्रदेश में टीकाकरण को गति दी जा रही है। वैक्सीनेशन के लिए लोगों को प्रेरित करना आवश्यक है। एक मई से 18 साल से अधिक आयु के सभी लोगों का निरूशुल्क टीकाकरण होगा।(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 22 अप्रैल | बैशाखी पर पाकिस्तान स्थित तीर्थ स्थलों पर माथा टेकने गए भारत के सिख श्रद्धालुओं में कम से कम 100 श्रद्धालु कोरोना संक्रमित होकर लौटे हैं। पंजाब के कम से कम 100 सिख श्रद्धालुओं को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है, जो बैसाखी के अवसर पर पाकिस्तान स्थित कई तीर्थस्थलों का दौरा करने के बाद गुरुवार को लौटे हैं। अमृतसर के पास अटारी-वाघा सीमा के माध्यम से भारत लौटने पर उनका कोरोनावायरस परीक्षण किया गया, जिसमें करीब 100 श्रद्धालु पॉजिटिव पाए गए हैं। अधिकारियों ने गुरुवार की शाम यह जानकारी दी ।
815 तीर्थयात्रियों का एक जत्था धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण सिख तीर्थस्थलों पर खालसा सजना दिवस और बैसाखी मनाने के लिए 12 अप्रैल को पाकिस्तान के लाहौर पहुंचा था।
एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि 350 में से कुल 100 श्रद्धालुओं को रैपिड एंटीजन टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव पाया गया है।
इस संख्या में और भी इजाफा हो सकता है, क्योंकि अधिकारी ने यह भी कहा कि अभी तक अन्य कुछ श्रद्धालुओं के टेस्ट के परिणाम का इंतजार है।
दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग ने 1,100 सिख तीर्थयात्रियों को वीजा जारी किया था। पाकिस्तान जाने से पहले, कोविड-19 नेगेटिव पाए गए लोगों को ही अटारी-वाघा संयुक्त चेक पोस्ट को पार करने की अनुमति दी गई थी।
उन्हें पाकिस्तान द्वारा 10 दिन का वीजा दिया गया था और 14 अप्रैल को हसन अब्दाल के गुरुद्वारा पंजा साहिब में मुख्य समारोह में भाग लेने के अलावा अन्य सिख तीर्थस्थलों पर जाने की अनुमति दी गई थी।(आईएएनएस)
सिलचर, 22 अप्रैल | असम के सिलचर हवाई अड्डे पर पहुंचे 300 से अधिक यात्री भाग निकले और कोविड-19 के लिए अनिवार्य टेस्ट करवाया। दक्षिणी असम के कछार जिले के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित सतावण ने कहा कि "वे सभी हवाई यात्रियों की जानकारी जमा कर रहे हैं और फिर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।"
सत्वन ने मीडिया से कहा, "भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत हवाई यात्रियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।"
कछार जिला प्रशासन ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
हवाई अड्डे और स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने बताया कि बुधवार को सिलचर हवाई अड्डे पर छह अलग-अलग उड़ानों से पहुंचे 690 यात्रियों में से केवल 189 यात्रियों ने कोविड का टेस्ट करवाया और जिसमें 6 पॉजिटिव मिले, जबकि 200 से अधिक यात्रियों को दूसरे कारणों और सरकार के मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के कारण टेस्ट की आवश्यकता नहीं पड़ी।
हवाई अड्डे के एक अधिकारी ने कहा, "हमारे हवाईअड्डे के रिकॉर्ड के अनुसार 300 से अधिक लोग अनिवार्य टेस्ट के बिना बाहर चले गए हैं। हालांकि, प्रत्येक व्यक्ति अपने पहचान पत्र दिखाने के बाद बोर्ड पर चढ़ने और उतरने के कारण ट्रेस करने योग्य है।"
स्वास्थ्य विभाग ने पास के अस्पताल में विमान यात्रियों के लिए कोवि-टेस्ट की व्यवस्था की है और परिवहन उपलब्ध कराया है लेकिन 300 से अधिक यात्री इन व्यवस्थाओं से बच गए हैं।
असम सरकार ने बुधवार को अपने पहले के एसओपी को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए अपने कोविड टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव होने पर भी उड़ानों और ट्रेनों से असम आने वाले लोगों के लिए 7-दिन का क्वारंटीन अनिवार्य कर दिया है।
प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण समीर कुमार सिन्हा द्वारा जारी एसओपी, सरकारी अधिकारियों, चिकित्सा कारणों से यात्रा करने वाले, अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों और शोक मामलों वाले लोगों को छूट दी जाएगी।(आईएएनएस)
लखनऊ, 22 अप्रैल | कोरोना संकट के बीच रेमडेसिविर के लिए चारो तरफ हाहाकार मचा पड़ा है। लोग इसे खरीदने के लिए मुंहमांगी कीमत भी दे रहे हैं। संक्रमितों के तीमारदार इसे रामबाण मान रहे हैं। जबकि विशेषज्ञों का साफ कहना है कि, "यह जीवन रक्षक नहीं बल्कि महज एक एंटी वायरल है। यह मृत्युदर करने में सहायक नहीं है। इस पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं। यह वाजिब नहीं है।" इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आईएमए के सचिव और वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन डॉ. वीएन अग्रवाल ने बताया कि, "यह एंटी वायरल दवा है। जरूरी नहीं कि यह हर प्रकार के वायरस को मार सके। मुख्यत: इबोला वायरस बहुत पहले हुआ करता था, उसे यह नष्ट करता था। लेकिन 2020 में जब कोविड आया, कुछ रिसर्च में यह पता चला कि इसका कुछ असर कोविड में है। लेकिन कितना कोविड में कारगर है यह पता नहीं चल सका। कोई मरीज बहुत ज्यादा दिक्कत में उसके आक्सीजन में बहुत कमी हो। तो कहीं कोई दवा काम नहीं कर रही है। अस्पताल में भर्ती हो तो इसे कुछ असरदार मानकर दे सकते हैं। अंधेरे में तीर मारने जैसा ही है। इसको देने से पहले स्टारॉइड वैगरा दें। हो सकता है कुछ असर आ जाए। इस दवा की कोई ज्यादा सार्थकता नहीं है। आदमी के दीमाग में फितूर है कि दवा कोरोना पर काम कर रही है इसीलिए महंगी हो गयी है। लेकिन नये रिसर्च में देखने को मिला है कि यह दवा मृत्यु दर को कम नहीं कर पा रही है। गंभीर मरीज यदि 15 दिन में निगेटिव होता है। इसके इस्तेमाल से वह 13 दिन में निगेटिव हो जाता है। रिसर्च में पता चला है कि फेफड़े के संक्रमण में यदि बहुत ज्यादा बहुत प्रभावी नहीं है। मरीज सीरियस हो रहा हो तो इसकी जगह स्टेरॉयड और डेक्सोना दी जा सकती है। खून पतला करने के लिए हिपैरिन देना चाहिए। इन सबका 90 प्रतिशत असर है। जबकि रेमडेसिविर का असर महज 10 प्रतिशत है। इतनी महंगी दवा को भारतीय चिकित्सा में देना ठीक नहीं है। स्टेरॉयड और खून पतला करने वाली दवा फेल होती है। तब ऐसी दवा का प्रयोग कर सकते हैं। हर महंगी चीज अच्छी नहीं होगी।"
केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश का कहना है कि, "यह दवा जीवन रक्षक नहीं है। शुरुआती दौर में इसका कुछ रोल है। दूसरे हफ्ते में हाईडोज स्टेरॉयड का महत्व है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी लिस्ट से कब से हटा दिया है। इसके पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है।"
ज्ञात हो कि रिसर्च रेमडेसिविर एक एंटीवायरल दवा है, यह काफी पहले कई बीमारियों में प्रयोग की जा चुकी है। रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में किया जा रहा है। हालांकि कोरोना के इलाज में इसके प्रभावी ढंग से काम करने पर काफी सवाल उठे हैं। कई देशों में इसके इस्तेमाल की मंजूरी नहीं मिली है। (आईएएनएस)
अगरतला, 22 अप्रैल | दूसरे अलग-अलग राज्यों के कम से कम 31 कोविड मरीज गुरुवार को त्रिपुरा में एक अस्थायी केयर सेंटर से भाग गए हैं और पुलिस उनका पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर खोजबीन शुरू की है। अनुविभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीपीओ) अनिर्बन दास ने कहा कि "ये लोग गुरुवार तड़के अगरतला के बाहरी इलाके में अरुंधति नगर में पंचायत राज प्रशिक्षण संस्थान के कोविड केयर सेंटर से भाग निकले।"
दास ने कहा, "हमने रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों सहित सभी संभावित स्थानों को सतर्क कर दिया है। भागने वाले कोविड रोगियों का पता लगाने के लिए खोज जारी है।"
एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि "उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के 31 लोग हाल ही में त्रिपुरा स्टेट राइफल्स (टीएसआर) में राइफलमैन के रूप में भर्ती के लिए साक्षात्कार में भाग लेने आए थे। हालांकि, त्रिपुरा सरकार ने कोविड मामलों में उछाल को देखते हुए भर्ती के लिए बाहरी और शारीरिक टेस्ट स्थगित कर दिए।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अप्रैल | अमेरिकी फार्मा प्रमुख फाइजर ने गुरुवार को फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की आपूर्ति 'नॉट-फॉर-प्रॉफिट' कीमत पर करने की पेशकश की है। यह बात मीडिया रिपोर्टो में सामने आई। कंपनी ने पहले कहा था कि वह केवल सरकारी अनुबंधों के माध्यम से मैसेंजर आरएनए (एम-आरएनए) वैक्सीन की आपूर्ति करेगी।
फाइजर ने साझा किया कि इसका उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के लिए टीकों को समान और सस्ती पहुंच प्रदान करना है। कंपनी वैक्सीन की आपूर्ति करने के लिए अमेरिकी सरकार से 19.5 डॉलर प्रति डोज का शुल्क लेती है।
यूरोपीय संघ 2022 और 2023 में वितरित किए जाने वाले कोविड-19 टीकों की 1.8 अरब खुराक के नए अनुबंध के लिए फाइजर/ बायोएनटेक के साथ बातचीत कर रहा है।
यूरोपीय संघ में, फाइजर ने पिछले कुछ महीनों में अपने टीके की कीमतों में काफी वृद्धि की है - 12 यूरो से 15.5 यूरो और फिर 2022-23 में ऑर्डर के लिए प्रति खुराक 19.5 यूरो (23 डॉलर)।
इस महीने की शुरुआत में, फाइजर ने कहा कि इसका एम-आरएनए आधारित टीका कोरोनवायरस से बचाने में 91 प्रतिशत से अधिक प्रभावी था, और दूसरी खुराक के छह महीने बाद तक गंभीर बीमारी के खिलाफ 95 प्रतिशत से अधिक प्रभावी था। पिछले हफ्ते, मुख्य कार्यकारी अधिकारी अल्बर्ट बोर्ला ने पूरी तरह से निष्क्रिय होने के 12 महीनों के भीतर फाइजर/बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन की तीसरी खुराक की जरूरत का प्रस्ताव दिया।
इस बीच, भारत अपना चरण 3 टीकाकरण अभियान शुरू करने के लिए तैयार है, जिसमें 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोग 1 मई से कोविड-19 के खिलाफ टीका प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे।
सरकार ने दावा किया कि दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के चरण 3 में टीकों के मूल्य निर्धारण, खरीद, पात्रता और प्रशासन को लचीला बनाया जा रहा है।
इसके अलावा, राष्ट्रीय वैक्सीन रणनीति का उद्देश्य टीकाकरण मूल्य निर्धारण और वैक्सीन कवरेज को बढ़ाना है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि यह वैक्सीन उत्पादन और उपलब्धता को बढ़ाने के साथ-साथ वैक्सीन निर्माताओं को तेजी से उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और नए वैक्सीन निर्माताओं को आकर्षित करेगा।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अप्रैल | देश में कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल का चुनावी दौरा रद्द कर दिया है। अब प्रधानमंत्री मोदी रैली करने की जगह शुक्रवार को देश में कोरोना की चुनौती को देखते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं और ऑक्सीजन की उपलब्धता की समीक्षा करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 23 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के मालदा में चुनावी रैली संबोधित करने वाले थे। लेकिन, देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन के गहराते संकट और गंभीर मरीजों के इलाज में आ रही दिक्कतों को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार इस हालात की समीक्षा का निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को ट्वीट के माध्यम से अपने फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा, "कल, मौजूदा कोविड 19 स्थिति की समीक्षा के लिए उच्च-स्तरीय बैठकें करूंगा, इस कारण, कल पश्चिम बंगाल नहीं जाऊंगा।" बता दें कि देश में कोरोना का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। देश में संक्रमण के मामले अब प्रतिदिन तीन लाख के आंकड़े को भी पार कर गए हैं।(आईएएनएस)
भोपाल, 22 अप्रैल | कोरोना संक्रमण को रोकने के मकसद से कई इलाकों में किए गए लॉकडाउन के कारण मजदूर बड़ी संख्या में घरों को वापस लौट रहे हैं। भारी संख्या में घरों को लौटते मजदूरों के कारण ग्रामीण इलाकों में कोरोना का संक्रमण बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में क्वारंटाइन सेंटर बनाए जा रहे हैं। बीते कुछ दिनों में मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी संख्या में मजदूरों की घरों को वापसी हुई है, खासकर बुंदेखलंड के मजदूर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि इलाकों से लौट रहे हैं, क्योंकि इन राज्यों में कोरोना बढ़ने के कारण लॉकडाउन किया गया है और काम बंद कर दिए गए हैं। विभिन्न स्थानों से बस, ट्रेन आदि से बड़ी संख्या में मजदूरों की घर वापसी हो रही है।
बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने का खतरा बना हुआ है। यही कारण है कि राज्य में शहरों के बाहर अब तक 19,519 क्वारंटाइन सेंटर बनाए जा चुके हैं। इनमें दो लाख 30 हजार से ज्यादा बेड उपलब्ध हैं। यहां बाहर से आने वाले यात्रियों के अलावा गांवों में सर्दी, खांसी, बुखार वाले मरीजों को आइसोलेट भी किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कोरोना संक्रमण के कारण बनी परिस्थितियों में मजदूर भाई-बहनों को काम देने की पूरी व्यवस्था की गई है। काम की तलाश में उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है। मनरेगा के अंतर्गत संचालित विभिन्न कार्यों में लगभग 21 लाख मजदूर नियोजित हैं। इन मजदूरों की हरसंभव सहायता की जाएगी। तीन महीने का निशुल्क राशन भी उनको दिया जा रहा है। श्रमिकों को मध्यप्रदेश से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं है।
चौहान ने कहा है कि मध्यप्रदेश में जो मजदूर भाई-बहन आएंगे, उनका भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। चाय, नाश्ता, भोजन से लेकर जरूरत पड़ने पर काम देने तक सारी व्यवस्था करने का प्रयास होगा। यह कोशिश होगी कि मजदूर भाई-बहनों को कोरोना संकट के समय कोई परेशानी न हो।
भोपाल के जिलाधिकारी अविनाष लवानिया ने जिले से ग्रामों में आने वाले व्यक्तियों को शासकीय भवन, स्कूलों, पंचायत भवन में संस्थागत क्वारंटाइन करने के निर्देश दिये।
(आईएएनएस)
भारत में संक्रमण की ताजा लहर के बीच ऑक्सीजन की इतनी कमी हो गई है कि अस्पतालों को अदालतों के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं. जानिए आखिर क्यों कई राज्यों में ऑक्सीजन की कमी देखने को मिल रही है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
"चाहे भीख मांगिए, उधार लीजिए या चोरी कीजिए, आपको ऑक्सीजन का इंतजाम करना ही पड़ेगा." यह शब्द हैं दिल्ली हाई कोर्ट के दो जजों की एक पीठ के जो इस समय दिल्ली के कई अस्पतालों द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करवाने के लिए दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका मैक्स समूह ने दायर की है जिसके दिल्ली में कई निजी अस्पताल हैं.
समूह का दावा है कि उसके सभी अस्पतालों में कई मरीज ऑक्सीजन पर निर्भर हैं लेकिन उन्हें उपलब्ध कराने के लिए खुद अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है. मैक्स समूह इस हाल में अकेला नहीं है. दिल्ली के लगभग सभी छोटे बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई है. 20 अप्रैल को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जानकारी दी थी कि राजधानी के कम से कम 18 अस्पतालों में सिर्फ 8 से 12 घंटों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध है.
इनमें मैक्स और सर गंगाराम जैसे बड़े अस्पताल शामिल थे. कई अस्पतालों ने पुलिस को सूचना दी और फिर पुलिस ने किसी तरह उन तक ऑक्सीजन पहुंचाया. कुछ ऐसे भी अस्पताल थे जिन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी, तो उन्हें मजबूर हो कर सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा.
मामला जब अदालत में पहुंचा तो जजों ने ऑक्सीजन के इस संकट पर बहुत ताज्जुब व्यक्त किया और केंद्र सरकार को कहा कि वो स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है. अदालत की फटकार के फलस्वरूप केंद्र ने तात्कालिक रूप से दिल्ली को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा बढ़ा दिया है. लेकिन संकट अभी टला नहीं है.
भारत में कितनी ऑक्सीजन की जरूरत है?
कुछ आंकड़ों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के फैलने से पहले भारत में प्रतिदिन 700 टन ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन महामारी के दौरान 2020 में इसकी मांग चार गुना बढ़ कर प्रतिदिन 2800 टन पर पहुंच गई. इस समय देश में महामारी पहले से भी ज्यादा तेजी से फैल रही है और अनुमान है कि इस समय देश में प्रतिदिन 5,000 टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है.
महामारी से पहले 70 प्रतिशत ऑक्सीजन का इस्तेमाल अलग अलग उद्योगों में होता था, लेकिन अब सरकार ने सिर्फ 9 आवश्यक उद्योगों को छोड़ कर बाकी सब को ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक कर उसे अस्पतालों के लिए उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. अनुमान है कि अब सिर्फ 15 प्रतिशत ऑक्सीजन उद्योगों को दी जा रही है.
कैसे होता है ऑक्सीजन का वितरण?
चिकित्सा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऑक्सीजन भारत में कोई नियंत्रित उत्पाद नहीं है. बस इसका दाम राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स प्राधिकरण (एनपीपीए) तय करता है. हालांकि इस समय महामारी से जन्मे हालत को देखते हुए इसकी आपूर्ति केंद्र ने अपने हाथों में ली हुई है.
केंद्र सरकार का एक सशक्त समूह इसकी निगरानी करता है, जिसके अध्यक्ष हैं केंद्र सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीआईपीपी) के सचिव. राज्यों का कोटा यही समिति निर्धारित करती है. समिति में राज्यों के प्रतिनिधि भी हैं और साथ में और भी कुछ मंत्रालयों और ऑक्सीजन बनाने वाली सभी बड़ी कंपनियों के नुमाइंदे भी हैं.
क्या देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी है?
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, देश में इस समय प्रतिदिन 7,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है, जबकि मांग सिर्फ करीब 5,000 टन की है. इस लिहाज से देश में असल में आवश्यकता से ज्यादा ऑक्सीजन उपलब्ध है. जानकारों का कहना है कि संकट उपलब्धता का नहीं, ऑक्सीजन को जगह जगह पहुंचाने का है. सभी राज्यों में ऑक्सीजन बनाने के संयंत्र नहीं हैं इसलिए जहां इसका उत्पादन होता है वहां से यह उन राज्यों में पहुंचाई जाती है जहां इसका उत्पादन नहीं होता.
जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनती है, लेकिन वहीं मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन बनाने का एक भी संयंत्र नहीं है. महाराष्ट्र और गुजरात दोनों ही राज्य महामारी की शुरुआत से ही सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से रहे हैं, इसलिए वो ज्यादा ऑक्सीजन दूसरे राज्यों को देने की स्थिति में नहीं हैं. जानकार कहते हैं कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड जैसे प्रदेशों में अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध है, लेकिन चुनौती इसे वहां से दूसरे राज्यों में पहुंचाने की है.
इसके लिए रेलवे ने विशेष माल गाड़ियों पर लाद कर ऑक्सीजन के बड़े बड़े टैंकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की शुरुआत की है. इसके अलावा 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने की भी तैयारी की जा रही है. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि राजनीति भी नई समस्याएं खड़ी कर रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बीजेपी की सरकारें वहां के ऑक्सीजन संयंत्रों से ऑक्सीजन दिल्ली आने नहीं दे रही हैं. पड़ोसी राज्यों ने इन आरोपों से इंकार किया है. (dw.com)
भारत के लगभग 54 प्रतिशत छात्र अब ऑनलाइन लर्निंग मॉडल के लिए सहज हैं. यह खुलासा ब्रेनली के सर्वेक्षण से हुआ है, जो एक ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म है. महामारी के कारण स्कूल बंद हैं और छात्र ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर रहे हैं.
लॉकडाउन एंड लर्न-फ्रॉम-होम मॉडल नाम का सर्वेक्षण देश भर के 2,371 छात्रों पर किया गया था, ताकि यह समझा जा सके कि पिछले साल ने भारत के छात्रों के शिक्षा और सीखने के पैटर्न को कैसे बदला है. हाल ही में कोविड-19 के मामलों में हुए जबरदस्त उछाल के साथ, अधिकांश छात्र वर्तमान में स्कूल जाने के बारे में आशंकित थे. अभी के हालात को देखते हुए लगभग 56 प्रतिशत छात्रों ने ऑनलाइन सीखने को जारी रखा. सर्वे में शामिल आधे से अधिक छात्रों ने दूसरों पर मिश्रित शिक्षण मॉडल को प्राथमिकता दी.
इसके अलावा छात्रों ने ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों के साथ अधिक सशक्त महसूस किया. लगभग दो-तिहाई छात्रों ने कहा कि वे अब पहले से अधिक 'लचीले' और 'आत्मनिर्भर' थे.
उनमें से भी छात्रों ने अधिक 'आत्मविश्वास' महसूस किया. छात्रों के एक बड़े समूह ने यह भी दावा किया कि ऐसे प्लेटफार्मों ने उन्हें अपनी गति से सीखने में मदद की, ऐसा कुछ जो कभी संभव नहीं है.
ब्रेनली में सीपीओ राजेश बिसानी के मुताबिक, "शिक्षाविदों के इतिहास में कभी भी वैश्विक स्तर पर ऑनलाइन लर्निंग चैनलों का इतने बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया गया था. अब, अधिक छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने शिक्षा के लिए ऑनलाइन टूल का इस्तेमाल करना सीख लिया है और हमारा मानना है कि मिश्रित शिक्षण दृष्टिकोण तरीका होगा."
ब्रेनली के पास 3,50,00,000 लाख से अधिक छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का एक समुदाय है, जो मिलकर शिक्षण को चलाते हैं. इसके भारत में कुल 55,00,000 लाख से अधिक उपयोगकर्ता हैं और अमेरिका, रूस, इंडोनेशिया, ब्राजील, पोलैंड समेत दूसरे देशों से भी हैं. (dw.com)
हथियारबंद उग्रवादियों के एक समूह ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के तीन कर्मचारियों का बुधवार तड़के शिवसागर जिले में लकवा स्थित एक साइट से अपहरण कर लिया.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
अस्सी और नब्बे के दशक में के लिए देश-विदेश में सुर्खियां बटोरने वाला इलाका और खासकर असम एक बार फिर उग्रवाद के चलते सुर्खियों में है. इलाके के उग्रवादी संगठनों ने अब तेल और गैस कंपनियों को निशाना बनाना शुरू किया है. कुछ महीने पहले अरुणाचल प्रदेश में एक तेल कंपनी के दो कर्मचारियों का अपहरण किया गया था जिनको करीब चार महीने बाद संभवतः फिरौती मिलने के बाद छोड़ा गया था. अब यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के स्वाधीन गुट यानी उल्फा (आई) ने असम के शिवसागर जिले से तेल व प्राकृतिक गैस कंपनी (ओएनजीसी) के तीन कर्मचारियों का बंदूक की नोक पर अपहरण कर लिया है. उनकी तलाश में असम और नागालैंड के सीमावर्ती इलाकों में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है.
मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने स्थिति की समीक्षा कर पुलिस और सुरक्षा एजंसियों को उन कर्मचारियों को शीघ्र अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के निर्देश दिए हैं लेकिन अब तक उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है. अपहर्ताओं ने भी अब तक सरकार, कंपनी या अपहृत लोगों के परिजनों से फिरौती को लेकर कोई संपर्क नहीं किया है. हालांकि किसी गुट ने अब तक इस अपहरण की जिम्मेदारी नहीं ली है. लेकिन सुरक्षा एजंसियों का कहना है कि यह परेश बरूआ के नेतृत्व वाले उल्फा (आई) का ही काम है.
अपहरण का ताजा मामला
अपहरण किए गए तीनों कर्मचारी असम के ही रहने वाले हैं. उनकी पहचान मोहिनी मोहन गोगोई, रितुल सैकिया और अलकेश सैकिया के तौर पर की गई है. अपहरणकर्ताओं ने ओएनजीसी की एक एंबुलेंस में ही उन कर्मचारियों का अपहरण किया. बाद में वह एंबुलेंस नागालैंड सीमा के पास निमोनागढ़ जंगल में लावारिस मिली थी.
ओएनजीसी के एक अधिकारी बताते हैं, "कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा की उच्चस्तरीय समीक्षा की गई है और हम अतिरिक्त ऐहितियाती कदम उठा रहे हैं. इसमें स्थानीय पुलिस से भी मदद ली जा रही हैं." ओएनजीसी 1960 के दशक की शुरुआत से ऊपरी असम में तेल और गैस की खोज व उत्पादन में जुटी है. शिवसागर में कंपनी के लगभग दो हजार कर्मचारी काम करते हैं.
रिहाई के लिए अभियान
की सूचना मिलते ही असम और नागालैंड की सुरक्षा एजंसियों वे अपहृत कर्मचारियों की तलाश में असम-नागालैंड सीमा से सटे इलाकों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना पर आश्चर्य जताया है. इसकी सूचना मिलते ही उन्होंने मुख्य सचिव जिष्णु बरूआ और पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक में स्थिति की समीक्षा की और अपहृत लोगों का पता लगा कर उनकी सुरक्षित रिहाई के लिए हरसंभव कदम उठाने का निर्देश दिया. मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) जीपी सिंह मौके पर पहुंच गए हैं और तलाशी अभियान की निगरानी कर रहे हैं.
शिवसागर जिले के पुलिस अधीक्षक अमिताभ सिन्हा बताते हैं, "नागालैंड में सुरक्षा एजंसियों को सतर्क कर दिया गया है. जहां से अपहरण हुआ है वह जगह नागालैंड सीमा के करीब है. इससे संदेह है कि अपहृत लोगों को नागालैंड ले जाया गया है." सिन्हा बताते हैं कि अपहरण के तरीके से साफ है कि इसके पीछे उल्फा (आई) का ही हाथ है. वही गुट इलाके में सक्रिय है.
शिवसागर के पुलिस अधिकारियों को संदेह है कि उग्रवादी अपहृत कर्मचारियों के साथ नागालैंड के मोन जिले से होकर म्यांमार जा सकते हैं. इसलिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात असम राइफल्स को भी सतर्क कर दिया गया है.
कर्मचारियों के परिजन परेशान
इन कर्मचारियों के अपहरण की सूचना मिलने के बाद से ही उनके परिजन परेशान हैं. अपहृत अलकेश सैकिया के भाई अनुराग सैकिया बताते हैं, "हमारे परिवार को सुबह टीवी पर खबर देख कर अपहरण की जानकारी मिली. मेरी मां परेशान है. अलकेश ने बीते साल ही ओएनजीसी में नौकरी शुरू की थी. उसके अपहरण से किसी को क्या फायदा होगा? हम सामान्य लोग हैं. अपहर्ताओं को शीघ्र तीनों लोगों को रिहा कर देना चाहिए."
एक अन्य अपहृत कर्मचारी मोहिनी मोहन गोगोई की मां बताती हैं, "मंगलवार को मेरी मोहिनी से बात हुई थी. घर में एक शादी होने की वजह से उसे यहां आना था. लेकिन सुबह बहु ने फोन पर उसके अपहरण की सूचना दी. जिस मां के इकलौता बेटा का अपहरण हो गया हो उसके दिल पर क्या बीत रही है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. मैं अपहरणकारियों से अपने बेटे की सुरक्षित रिहाई की अपील करती हूं."
इससे पहले बीते दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में उल्फा (आई) ने एनएससीएन के खापलांग गुट के साथ मिल कर एक तेल कंपनी के दो कर्मचारियों का अपहरण कर लिया था. उनको चार महीने बाद हाल में रिहा किया गया है. सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि उल्फा (आई) गुट इलाके के अन्य उग्रवादी संगठनों के सहयोग से खुद को मजबूत करने की कवायद कर रहा है. इसके लिए वह अस्सी और नब्बे के दशक के अपहरण का अपना पारंपरिक तरीका अपना रहा है. उसका मकसद फिरौती के तौर पर मोटी रकम जुटाना है ताकि वह विदेशों से हथियार खरीद सके. नब्बे के दशक में संगठन ने चाय और तेल कंपनियों को निशाना बनाया था.
एक सुरक्षा विशेषज्ञ जितेन गोगोई कहते हैं, "उल्फा के दो फाड़ होने और एक गुट के शांति प्रक्रिया में शामिल होने के बाद अब बीते कम से कम छह महीनों से इलाके में परेश बरुआ वाले गुट की सक्रियता बढ़ गई है. ऐसे में समय रहते उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो निकट भविष्य में यह संगठन सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है." (dw.com)
जलवायु परिवर्तन के लिहाज से पूर्वी भारत के राज्य सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. जिन पांच राज्यों में सबसे कम खतरा बताया गया है उनमें महाराष्ट्र का नंबर पहला है.
डॉयचे वैले पर शिवप्रसाद जोशी की रिपोर्ट-
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की विशेष आकलन रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडीसा और पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों के अलावा मिजोरम, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्य भी जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक संभावित नुकसान झेलेंगे. ये सभी इलाके अतिसंवेदनशील और अरक्षित पाए गए हैं. असम, बिहार और झारखंड के 60 प्रतिशत जिले इस श्रेणी में आते हैं. जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के खिलाफ असम का करीमगंज जिला सबसे ज्यादा अरक्षित पाया गया है. अपनी तरह का यह पहला अध्ययन है जिसमें राज्यवार और जिलावार क्लाइमेट चेंज का वल्नरेबिलिटी इंडेक्स बनाया गया है और उस आधार पर राज्यों और जिलों को रैकिंग दी गई है. महाराष्ट्र राज्य पर सबसे कम खतरा है लेकिन उसका जिला नंदरबार, देश के सबसे अधिक अरक्षित 51 जिलों में से है. बिहार के कटिहार और किशनगंज जिले, ओडीशा का नौपदा जिला, झारखंड का साहिबगंज, पश्चिम बंगाल का पुरुलिया और कूच बिहार और जम्मू कश्मीर का रामबन जिला इस श्रेणी में रखे गए हैं.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, डीएसटी के इस प्रोजेक्ट में आईआईटी मंडी और आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं के अलावा बंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान, आईआईएस भी शामिल था. अध्ययन के मुताबिक राज्यवार और जिलावार आकलन से राज्यों को भविष्य में आपदा न्यूनीकरण के कदम उठाने या उससे संबधित नीति बनाने में मदद मिलेगी. डीएसटी के मुताबिक सभी राज्यों का विभिन्न कारकों और कारणों और उत्प्रेरकों के लिहाज से अध्ययन किया गया. ये कसौटियां आबादी के अलावा, लोगों की आय के स्रोत, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति, परिवहन नेटवर्क जैसे बिंदुओं पर आधारित थीं. गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाली प्रतिशत आबादी, संक्रमित पानी से होने वाली और डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां, वर्षा-पोषित खेती, कम सघन परिवहन नेटवर्क, छोटे और मझौले भू स्वामित्व वाले अधिकांश लोग, और आय के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के आधार पर राज्यों को उच्च, औसत और निम्न के वल्नरेबिलिटी इंडेक्स की तीन श्रेणियों में बांटा गया था.
महाराष्ट्र के अलावा गोवा, नागालैंड, केरल, तमिलनाडु, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश को निम्न वल्नरेबिलिटी इंडेक्स में रखा गया था. रिपोर्ट के मुताबिक इस श्रेणी के राज्य प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं है, उनके यहां बीपीएल आबादी भी अपेक्षाकृत कम है और सड़क और रेल संपर्क बेहतर है. उच्च वल्नरेबलिटी वाले राज्यों के बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके यहां प्रति व्यक्ति आय कम है, और वे मानव विकास सूचकांक में नीचे आते हैं. उन राज्यों में बीमारियां अधिक हैं, स्वास्थ्य सेवाएं स्तरीय नहीं है, बीपीएल आबादी अधिक है और अत्यधिक खेती की जाती है.
औसत या मॉडरेट वीआई कैटगरी में उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, गुजरात, मेघालय, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मणिपुर, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक को रखा गया है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में डीएसटी के सचिव आशुतोष शर्मा के हवाले से प्रकाशित बयान में कहा गया है कि "जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से देश के अति संवेदनशील हिस्सों की मैपिंग से जमीनी स्तर पर जलवायु कार्रवाईयों को शुरू करने में मदद मिलेगी." देशव्यापी राज्यवार और जिलावार सूचना संग्रहित कर जलवायु परिवर्तन के हवाले से अध्ययन की तैयारी 2019 में शुरू कर दी गयी थी. भारत जैसे विकासशील देश में वल्नरेबलिटी का आकलन एक महत्त्वपूर्ण एक्सरसाइज मानी जाती है. इसके जरिए उचित और अनुकूलित प्रोजेक्ट और प्रोग्राम विकसित करने में मदद मिलती है. जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग दो राष्ट्रीय मिशन चला रहा है. एक है नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन ईकोसिस्टम (एनएमएसएचई) और नेशनल मिशन ऑन स्ट्रेटजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज (एनएमएसकेसीसी). इन्हीं अभियानों के तहत राज्यों के जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों को मदद दी जाती है.
वैसे तो पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक संवेदनशील हालात वाले देशों में भारत का भी नाम आता है. 2019 के एक वैश्विक जोखिम सूचकांक में 191 देशों में से भारत की 29वीं रैंक है. भारत के विभिन्न हिस्सों में हर साल बाढ़, अतिवृष्टि, सूखा, भूस्खलन, भूकंप और चक्रवात जैसी मौसमी आपदाओं की मार पड़ती है. इनमें से कई मानव निर्मित आपदाएं भी मानी जाती हैं. गांवों से लेकर शहरों तक बेतहाशा निर्माण, जंगल क्षेत्र में परियोजनाएं और पेड़ों की कटान और पानी की अत्यधिक खपत वाली खेती ने हालात को और पेचीदा और गंभीर बना दिया है. इन स्थितियों में सरकार की यह रिपोर्ट एक स्वागतयोग्य पहल है क्योंकि इससे न सिर्फ संवेदनशील भौगोलिक इलाकों का सहज और सुगम चिन्हीकरण हो पाएगा बल्कि वहां आवश्यकतानुसार न्यूनीकरण प्रबंध के लिए नीति क्रियान्वयन के कार्यक्रम जोर पकड़ेंगे.
इस रिपोर्ट में मशविरे और हिदायतें और सबक भी हैं. लेकिन आखिरकार इस अध्ययन की सार्थकता तभी है जब इसके आधार पर जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक पीड़ित होने वाले समुदायों, जनजातियों, आदिवासियों और गरीबों के लिए समयबद्ध रूप से मुकम्मल पुनर्वास योजना भी समांतर तौर पर चलाई जा सके. सबसे पहली कोशिश तो यही होनी चाहिए कि उन्हें अपने जल जंगल और जमीन से विस्थापित और बेदखल न होना पड़े. क्योंकि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ इंसानी लड़ाई में सबसे आगे की रक्षापंक्ति उन्हीं लोगों से निर्मित होती है जो जंगल के मूलनिवासी हैं और जो कुदरत को सबसे सही और न्यायसंगतत ढंग से समझते आए हैं. (dw.com)
अयोध्या, 22 अप्रैल | अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण और अयोध्या क्षेत्र के विकास के लिए काम कर रहा श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट अब कोविड मरीजों की मदद के लिए सामने आया है। ट्रस्ट ने 55 लाख रुपये की लागत से ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने की घोषणा की है।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा ने कहा कि वर्तमान समय में पूरा देश महामारी की चपेट में है।
ऐसी स्थिति में, ट्रस्ट ने 55 लाख रुपये का ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया है।
संयंत्र अयोध्या के दशरथ मेडिकल कॉलेज में स्थापित किया जाएगा।(आईएएनएस)
जम्मू, 22 अप्रैल | देश में तेजी से फैल रहे कोविड -19 संक्रमण को देखते हुए श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) ने गुरुवार को अमरनाथ गुफा मंदिर में इस साल की यात्रा के लिए पंजीकरण को अस्थायी रूप से निलंबित करने का फैसला किया है। एसएएसबी ने कहा, "देश में कोविड की स्थिति को देखते हुए और सभी आवश्यक एहतियाती कदम उठाने की आवश्यकता के मद्देनजर, श्री अमरनाथजी यात्रा के लिए पंजीकरण अस्थायी रूप से निलंबित किया जा रहा है। स्थिति की लगातार निगरानी की जा रही है और स्थिति में सुधार होते ही इसे फिर से खोल दिया जाएगा।"
कश्मीर में इसबार यह वार्षिक तीर्थयात्रा 28 जून को शुरू होने वाली थी।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अप्रैल | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में ऑक्सीजन संकट पर गुरुवार को हाईलेवल बैठककर हालात की समीक्षा की। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने सभी राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि कारखानों से ऑक्सीजन पहुंचाने में ट्रांसपोर्टेशन व्यवस्था में तेजी लाई जाए। समय की बचत के लिए खाली टैंकरों को एयरलिफ्ट कराया जाए। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों को ऑक्सीजन की जमाखोरी रोकने की दिशा में काम करने पर भी जोर दिया। कहा कि ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा उत्पन्न होने पर स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी तय की जाए। प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार को कई मंत्रालयों के आला अफसरों के साथ देश में ऑक्सीजन आपूर्ति की समीक्षा की। उन्होंने ऑक्सीजन प्रोडक्शन बढ़ाने, वितरण व्यवस्था को तेज करने और अस्पतालों तक इसकी पहुंच को आसान बनाने के लिए कुछ लीक से हटकर कार्य करने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री को बताया गया कि ऑक्सीजन की मांग के अनुरूप आपूर्ति के लिए राज्यों के साथ समन्वय किया जा रहा है। प्रधानमंत्री को बताया गया कि कैसे राज्यों में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाई जा रही है। बताया गया कि कुल 20 राज्यों की ओर से 6,785 मीट्रिक टन प्रतिदिन डिमांड की तुलना में 21 अप्रैल तक 6,822 मीट्रिक टन प्रतिदिन आवंटित की है।
समीक्षा के दौरान यह पता चला कि पिछले कुछ दिनों से देश में 3,300 मीट्रिक टन प्रतिदिन ऑक्सीजन उपलब्धता प्राइवेट एंड पब्लिक स्टील प्लांट, इंडस्ट्रीज और ऑक्सीजन मैन्युफैक्च र्स की ओर से बढ़ी है। प्रधानमंत्री मोदी ने अफसरों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति निर्बाध तरीके से हो। उन्होंने अवरोध के मामलों में स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी तय करने पर जोर दिया। उन्होंने मंत्रालय को ऑक्सीजन के उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने के लिए नए उपायों पर जोर देने के लिए कहा।
प्रधानमंत्री मोदी को बताया गया कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए टैंकरों को ढोने में रेलवे की ओर से नॉनस्टाप परिवहन सुविधा संचालित की जा रही है। चिकित्सा समुदाय से जुड़े लोगों ने ऑक्सीजन के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर दिया। बताया कि कैसे कुछ राज्यों में ऑक्सीजन के बेहतर इस्तेमाल से डिमांड कम हुई है। प्रधानमंत्री ने ऑक्सीजन की जमाखोरी रोकने का भी राज्यों को निर्देश दिया। इस बैठक में कैबिनेट सेक्रेटरी, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव, हेल्थ सेक्रेटरी, रोड एंड ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी सहित अन्य अफसर मौजूद रहे।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अप्रैल | चीनी स्मार्टफोन निर्माता रियलमी ने गुरुवार को भारतीय बाजार में 5जी सक्षम स्मार्टफोन रियलमी 8 5जी लॉन्च किया, जो दो स्टोरेज वेरिएंट में पेश किया गया है। रियलमी 8 5जी 4जीबी प्लस 128 जीबी स्टोरेज वाले वेरिएंट की कीमत 14,999 रुपये और 8 जीबी प्लस 128 जीबी वैरिएंट की कीमत 16,999 रुपये निर्धारित की गई है।
स्मार्टफोन दो रंगों में उपलब्ध होगा - सुपरसोनिक ब्लू और सुपरसोनिक ब्लैक। यह 28 अप्रैल से रियलमी की वेबसाइट, फ्लिपकार्ट के अलावा अन्य बिक्री चैनलों पर उपलब्ध हो जाएगा।
रियलमी के उपाध्यक्ष रियलमी इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी माधव सेठ ने एक बयान में कहा, "हम हर भारतीय के लिए विभिन्न मूल्य रेंज में और अधिक 5जी स्मार्टफोन लेकर आएंगे। रियलमी 8 5जी के साथ उपयोगकर्ता भारत के पहले मीडियाटेक डाइमेंसिटी 700 5जी प्रोसेसर के साथ स्पीड ऑफ इन्फिनिटी का अनुभव कर सकते हैं।"
माधव ने यह भी कहा कि एक 5जी लीडर के तौर पर रियलमी 5जी मॉडल को विभिन्न मूल्य सेगमेंट में लेकर आएगा, ताकि यूजर्स को किफायती रेंज में भी स्मार्टफोन उपलब्ध हो सके।
इस स्मार्टफोन में 6.5 इंच की एफएचडी प्लस डिस्प्ले है, जिसमें 90 हॉट्र्ज रिफ्रेश रेट है और इसमें 5000 एमएएच की बड़ी बैटरी दी गई है।
यह 48 मेगापिक्सल प्राइमरी कैमरा सहित ट्रिपल रियर कैमरा सेटअप को सपोर्ट करता है। सेल्फी के लिए इसमें 16 मेगापिक्सल का सेल्फी कैमरा है, जो स्मार्ट ब्यूटी मोड, बोकेह इफेक्ट आदि को भी सपोर्ट करता है।
कंपनी ने कहा कि स्मार्टफोन में अलग-अलग लिंग, अलग-अलग त्वचा के प्रकार और चेहरे के आकार के लिए विकसित किए गए ब्रांड के नए एल्गोरिथ्म हैं, जो यूजर्स को प्राकृतिक त्वचा दिखाने वाली सेल्फी लेने की अनुमति देते हैं।
स्मार्टफोन यूआई 2.0 के साथ आता है, जो एंड्रॉएड 11 पर आधारित है। और मीडियाटेक डाइमेंसिटी 700 5जी प्रोसेसर के साथ यह 5जी ड्यूअल सिम को सपोर्ट करता है।(आईएएनएस)
कोलकाता, 22 अप्रैल | पश्चिम बंगाल में छठे चरण के लिए हो रहे मतदान के दौरान अपराह्न् तीन बजे तक कुल 70.42 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस चरण में कुल 43 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हो रहे हैं। इस बार मतदान अपेक्षाकृत शांति से हो रहे हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, अपराह्न् 3 बजे तक सबसे ज्यादा मतदान पूर्वी बर्दवान में 75 प्रतिशत से अधिक दर्ज किया गया। इसके बाद नादिया में 74 प्रतिशत मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया। उत्तर 24 परगना में सबसे कम 65.13 प्रतिशत और उत्तरी दिनाजपुर जिले में 72.1 प्रतिशत मतदान हुआ।
छठे चरण में, उत्तर दिनाजपुर और नदिया जिलों में 9, उत्तर 24 परगना में 17 और पूर्वी बर्दवान में 8 सहित 43 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं, जहां 1,04,09,948 मतदाता 306 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे, जिनमें से 27 उम्मीदवार महिलाएं हैं।(आईएएनएस)
जम्मू, 22 अप्रैल | देश में तेजी से फैल रहे कोविड -19 संक्रमण को देखते हुए श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) ने गुरुवार को अमरनाथ गुफा मंदिर में इस साल की यात्रा के लिए पंजीकरण को अस्थायी रूप से निलंबित करने का फैसला किया है। एसएएसबी ने कहा, "देश में कोविड की स्थिति को देखते हुए और सभी आवश्यक एहतियाती कदम उठाने की आवश्यकता के मद्देनजर, श्री अमरनाथजी यात्रा के लिए पंजीकरण अस्थायी रूप से निलंबित किया जा रहा है। स्थिति की लगातार निगरानी की जा रही है और स्थिति में सुधार होते ही इसे फिर से खोल दिया जाएगा।"कश्मीर में इसबार यह वार्षिक तीर्थयात्रा 28 जून को शुरू होने वाली थी।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अप्रैल: कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के बीच राज्य सरकार पर शासन करने में पूरी तरह विफल रहने का आरोप लगाते हुए कहा कि योगी सरकार लोगों की रक्षा करने और सहयोग देने की भूमिका पहले ही छोड़ चुकी थी और अब तो वह ‘आक्रांता' की भूमिका में आ गई है. पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका ने ‘विशेष इंटरव्यू में यह भी कहा कि कोविड-19 संकट से निपटने में भाजपा सरकार की तरफ से एक फिर से लोगों के प्रति ‘अहंकारी, अधिनयाकवादी और अमानवीय रवैया' देखने को मिला. उन्होंने यह टिप्पणी उस वक्त की है जब उत्तर प्रदेश में बुधवार को कोरोना वायरस संक्रमण के रिकॉर्ड 33,214 मामले सामने आए और 187 लोगों की मौत हो गई.
उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण के हालात के बारे में पूछे जाने पर प्रियंका ने कहा कि बुनियादी मुद्दा यह है कि राज्य सरकार जनता की रक्षा करने, सुविधा देने और सहयोग देने का काम बहुत पहले बंद कर चुकी है.उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘उसने (राज्य सरकार) लगातार आक्रांता की भूमिका अख्तियार कर रखी है. कोविड महामारी से वह जिस तरह निपट रही है, उससे उत्तर प्रदेश के लोगों के प्रति एक बार फिर से उसका अहंकारी, अधिनयाकवादी और अमानवीय रवैया दिखा है.''प्रियंका ने दावा किया कि शासन के स्तर पर सबसे बड़ी विफलता यह रही कि कोई योजना नहीं थी, कोई तैयारी नहीं थी और कोई दूरदर्शिता नहीं थी.
प्रियंका ने कहा, ‘‘दुनिया के कई देशों ने इस महामारी की दूसरी लहर का सामना किया. हमने उनसे क्या सीखा? हमने पहली लहर और दूसरी लहर के बीच के समय का कैसे इस्तेमाल किया?''उनके मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार के खुद के सीरो सर्वेक्षण के परिणाम से पता चलता है कि पांच करोड़ लोग वायरस के संपर्क में आए और यह इस बात का संकेत था कि दूसरी लहर आ रही है.प्रियंका ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार को सलाह दी गई थी कि जांच बड़े पैमाने पर बढ़ायी जाए. क्या हुआ? उन्होंने जांच घटा दी. 70 फीसदी जांच एंटीजन की कर दी और खुद के सर्वेक्षण की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया.''उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि पूरा संसाधन लोगों का जीवन बचाने पर लगाने की बजाय उप्र सरकार सच्चाई को ढंकने के लिए अब भी अब भी समय और संसाधन बर्बाद कर रही है.
कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘सरकार ने लोगों को निराश किया है. उसकी अक्षमता और स्पष्टता के अभाव के चलते लोगों को वह इंसानी कीमत चुकानी पड़ी जो कभी चुकानी नहीं पड़ती.''उन्होंने यह सवाल भी किया कि दुनिया में कहां ऐसा होता है कि महामारी के बीच में लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए चिकित्सा अधिकारी की अनुमति लेनी पड़े?<प्रियंका ने कहा कि उत्तर प्रदेश में यह किस तरह की शासन व्यवस्था है.उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी को लेकर प्रियंका ने हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा था कि मरीजों को भर्ती कराने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी से अनुमति लेने की अनिवार्यता खत्म की जाए.
नई दिल्ली, 22 अप्रैल | भारत में पिछले 24 घंटों में 3,14,835 कोविड-19 के नए मामले सामने आए, जो पिछले साल महामारी की शुरूआत के बाद से सबसे बड़ा आंकड़ा है, इसी के साथ कुल मामले 1,59,30,965 हो गये हैं। 15 अप्रैल से भारत में लगातार 2 लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं।
बुधवार को 2,95,041 नए मामले सामने आए, 20 अप्रैल को 2,59,170 मामले, 19 अप्रैल को 2,73,510, 18 अप्रैल को 2,61,500, 17 अप्रैल को 2,34,692, 16 अप्रैल को 2,17,353 और 15 अप्रैल को 2,00,393 मामले सामने आए।
इस बीच, वायरस के कारण 2,104 और लोगों की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मरने वालों की कुल संख्या 1,84,657 हो गई।
यह लगातार दूसरा दिन है जब देश में एक ही दिन में 2,000 से अधिक मौतें दर्ज की हैं।
बुधवार को 2,023 मौतें हुईं, जो कि अब तक का एक दिन का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
वहीं देश में सक्रिय मामलों की संख्या 2,29,142 हो गई है।
पिछले 24 घंटों में कुल 1,78,841 संक्रमित लोग रिकवर हुए, जिसके बाद कुल रिकवरी 1,34,54,880 हो गई।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि पिछले 24 घंटों में कुल 16,51,711 नमूनों का टेस्ट किया गया। देश में अब तक कुल 27,27,05,103 नमूनों का टेस्ट किया जा चुका है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुल 22,11,334 लोगों को भी इसी अवधि में टीका लगाया गया, इसी के साथ कुल टीका की संख्या 13,23,30,644 हो गई है। (आईएएनएस)