रायपुर

रक्त वाहिकाओं की दुर्लभ बीमारी टकायासू आर्टेराइटिस का एसीआई में सफल उपचार
27-Nov-2021 6:02 PM
रक्त वाहिकाओं की दुर्लभ बीमारी टकायासू आर्टेराइटिस का एसीआई में सफल उपचार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 27 नवम्बर। शरीर की महाधमनी की अजीबो-गरीब बीमारी टकायासु आर्टेराइटिस से ठीक होने की आस छोड़ चुके बूढ़ी पथराई आंखों में शुक्रवार की सुबह उस वक्त खुशी के आंसू छलक उठे जब एसीआई में कैथलैब से बाहर आकर डॉक्टरों ने कहा- बधाई हो, आपकी पोती का उपचार सफल रहा।

जगदलपुर निवासी 74 वर्षीय बुजुर्ग दंपत्ति जो अपनी 23 वर्षीय पोती के महाधमनी की बीमारी से कई दिनों से परेशान थे, उसका सही एवं सफल उपचार डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में हुआ। कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रो. स्मित श्रीवास्तव के नेतृत्व में हुए टकायासु आर्टेराइटिस (धमनीशोथ) का इलाज बैलून एंजियोग्राफी की मदद से किया गया।

कार्डियोलॉजी विभाग में टकायासु आर्टेराइटिस का यह पहला केस था। इस प्रक्रिया में एक कैथेटर को रक्त वाहिका में डाला गया जिसकी नोंक पर एक पिचका हुआ गुब्बारा लगा हुआ था।

 

 

 

जहां-जहां धमनी संकुचित थी वहां गुब्बारे को जरूरत के अनुसार फुलाया गया जिससे धमनी को खोलने में मदद मिली। इस पूरी प्रक्रिया को बैलून डिलेटेशन ऑफ कोरोनरी एओर्टा कहते हैं।

कार्डियोलॉजिस्ट एवं विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव दुर्लभ बीमारी टकायासु आर्टेराइटिस के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताते हैं इस बीमारी का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है इसलिए इसे नॉनस्पेसिफिक एओर्टोआर्टेराइटिस कहा जाता है। इस बीमारी में हाथ की नसों में कई बार धडक़न नहीं मिलती इसलिए इसे पल्सलेस डिजीज भी कहा जाता है। टकायासु आर्टेराइटिस का समय पर उपचार न होने से हार्ट फेलियर होने की संभावना रहती है।

डॉ. स्मित के अनुसार, यह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है जिसमें रक्त वाहिकायें (नसें) सूज जाती हैं और सूजने के बाद सिकुडऩे लगती हैं। रक्त वाहिकाओं का सूजन (वैस्कुलाइटिस) महाधमनी को नुकसान पहुंचाती है। महाधमनी शरीर की सबसे बड़ी धमनी है जो हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों और इसकी अन्य शाखाओं तक रक्त का परिवहन करती है। यदि बैलून एंजियोग्राफी की मदद से इसका इलाज नहीं होता तो दिल की मांसपेशियों तक खून की आपूर्ति करने वाली धमनियों के संकुचन को ठीक करने के लिए कोरोनरी आर्टेरी बाईपास की आवश्यकता हो सकती थी लेकिन पूरी टीम की मदद से सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक हमने सिकुड़ी हुई नसों को एक-एक करके खोलने में सफलता प्राप्त की और मरीज की जान बच गई। बैकअप प्लान के तौर पर हमने स्टंट और कार्डियक सर्जरी की तैयारी की थी लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।

टकायासु या ताकायासु धमनीशोथ का पहला मामला 1908 में जापानी नेत्र रोग विशेषज्ञ मिकिटो ताकायासु द्वारा जापान नेत्र विज्ञान सोसायटी की वार्षिक बैठक में वर्णित किया गया था। उन्हीं के नाम पर इस बीमारी का नामकरण किया गया।

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