रायपुर
![खून को ठंडा किए बिना दिल का ऑपरेशन, मरीज की जान बचाई खून को ठंडा किए बिना दिल का ऑपरेशन, मरीज की जान बचाई](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1655640786ekahara.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जून। नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय और डॉ.भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के अंतंर्गत हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग ने एक बार फिर से सिंकलिंग के मरीज में हृदय की दुर्लभ और अत्यंत जटिल ऑपरेशन करके हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में 23 वर्षीय महिला के हृदय के एब्स्टीन एनामली का सफल ऑपरेशन करके उसकी जान बचाई.
6 महीने पहले भी इसी तरह की सर्जरी की गई थी. जो कि प्रदेश में पहली बार इसी संस्थान में की गई थी. लेकिन ये ऑपरेशन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि सामान्य मरीज के हृदय के ऑपरेशन के दौरान जब हृदय और फेफडों के कार्य को कुछ समय के लिय रोक दिया जाता है और उसको हार्ट लंग मशीन पर रखा जाता है, उस समय सामान्यत: मरीज के शरीर को 28 से 30 ंतापमान तक ठंडा कर दिया जाता है। मरीज के सारे अंग जैसे- मस्तिष्क, ह्रदय, लिवर, किडनी, इत्यादि खराब न हो. लेकिन सिंकलिंग के मरीज में शरीर के तापमान को कम नहीं किया जा सकता क्योकि कम तापमान में मरीज की रक्त कोशिकाएं पूर्णत: क्षतिग्रस्त हो जाती है और जिस अंग में यह ब्लड का थक्का बन जाता है तो वह अंग पूरा खराब हो जाता है. ऐसी स्थिति में मरीज के रक्त को बिना ठंडा किए ओपन हार्ट सर्जरी करना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है।
डॉक्टर के मुताबिक ऑपरेशन के पहले मरीज का ऑक्सीजन सेचुरेशन 80 से 85 प्रतिशत रहता था। अब वह 98 प्रतिशत हो गया है. इस तरह के ऑपरेशन में मरीज को पेसमेकर लगने की 50 प्रतिशत संभावना होती है. लेकिन इस मरीज केलऑपरेशन को विशेष तकनीक द्वारा किया गया. जिससे कि मरीज को स्थायी पेसमेकर की आवश्यकता नहीं प?ी. हालांकि मरीज को 3 दिन तक पेसमेकर मशीन का सहारा देना पड़ा था.
इस मरीज को विश्व का सबसे बेहतरीन टिश्यू वाल्व, बोवाईन टिश्यू वाल्व लगाया गया है. इसके लगने के बाद मरीज को खून पतला करने की दवाई जैसे एसीट्राम की आवश्यकता नहीं होती. क्योकि इस वाल्व की बनावट मनुष्य के हृदय के वाल्व जैसे होती है. डॉक्टर ने बताया कि अब स्वस्थ होकर घर जाने के लिए पूरी तरह तैयार है। ये ऑपरेशन आयुष्मान कार्ड और खूबचंद बघेल योजना के अंतर्गत मुफ्त हुआ है.
यह हृदय की जन्मजात बीमारी है. जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, उस समय पहले 6 हफ्तो में बच्चे के हृदय का विकास होता है. इसी हृदय के विकास में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है. इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नहीं बन पाता और दायां निलय ठीक से विकसित नहीं हो पाता. साथ ही हृदय के उपर वाले चैम्बर में छेद रहता है. जिसके कारण मरीज के फेफ?े में शुद्व ऑक्सिजन होने के लिए पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता. इससे मरीज का शरीर नीला पडजाता है. इस बीमारी को क्रिटिकल कॉम्प्लेक्स जन्मजात हृदय रोग कहा जाता है.
ये बीमारी 2 लाख बच्चों में से किसी एक को होती है. ऐसे मामलों में 13त्न बच्चें जन्म लेते ही मर जाते हैं. वहीं 18त्न बच्चें 10 साल की उम्र तक मर जाते हैं. 20 साल की उम्र तक इस बीमारी से ग्रस्त लगभग सारे मरीज मर जाते हैं।
इस बीमारी में बच्चों के मरने का कारण हार्ट का फेल हो जाना और हृदय का अनियंत्रित धडक़न होता है. इस बीमारी का कारण गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा लिया गया लिथियम और बेजोडाईजेपाम, जिसका उपयोग मानसिक बीमारियों के उपचार में होता है, इसके अलावा अनुवांशिक भी एक कारण हो सकता है।
इस ऑपरेशन में सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण था मरीज का सिंकलिंग होना. इसके लिए एक्सपर्ट परफ्यूजनिस्ट और अनुभवी हार्ट सर्जन की आवश्यकता होती है. क्योकि सिंकलिंग के मरीज को 28 डिग्री तापमान तक ठंडा नही किया जा सकता. ऐसे में मरीज के हार्ट को ज्यादा देर तक बंद नही किया जा सकता है और ट्राइकस्पिड वाल्व लगाते समय विशेष तकनीक का उपयोग किया गया. जिससे मरीज के हृदय का कंडक्सन सिस्टम (द्गद्यद्गष्ह्लह्म्द्बष् श्चड्डह्लद्ध2ड्ड4) को कोई नुकसान नहीं हो. साथ ही ह्रदय की ध?कन सामान्य रहे. जिससे की मरीज को कृत्रिम पेसमेकर की आवश्यकता ना प. हालाकि मरीज को ऑपरेशन के बाद 3 दिनो तक कृत्रिम पेसमेकर में रखा गया था. इस ऑपरेशन को मेडिकल भाषा में ट्राइकस्पिड वाल्व रिप्लेसमेंट विद 29द्वद्व बोवाइन टिशू वाल्य +पीएफओ क्लोजर + आर वी ओटी आबस्ट्रक्सन रिलीज अंडर नार्मोथमिकि सीपीबी कहते हैं।