रायपुर

35 वर्षों से 36गढ़ को लग रहे भूंकप के झटके
11-Jul-2022 6:12 PM
35 वर्षों से 36गढ़ को लग रहे भूंकप के झटके

1997 से आ रहे झटके

पांच साल पहले ही सेफ जोन से बाहर अपना राज्य

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 11 जुलाई। भूकंप के लिहाज से छत्तीसगढ़ के ज्यादातर हिस्से सेफ जोन (सुरक्षित) से बाहर आ गए हैं। यहां भूकंप आने की आशंका बनी रहेगी। छत्तीसगढ़ की धरती में भूकंप तैयार नहीं हो सकता, लेकिन दूसरे स्थानों पर आने वाले भूकंप का असर यहां भी पड़ता है। भूकंप की तीव्रता अधिक होने पर नुकसान होने की आशंका बनी रहती है।

मौसम वैज्ञानिक एचपी चंद्रा के मुताबिक करीब 5 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ को डेंजर जोन से बाहर किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ का एक बड़ा इलाका महाराष्ट्र से बिहार तक जाने वाले लैंड-प्लेट्स के क्षेत्र में शामिल हैं। इस रूट में जब भी भूकंप आएगा, तो बड़ा नुकसान देने वाला होगा।

भू-गर्भ विशेषज्ञों के अनुसार भूकंप के खतरे के लिहाज से धरती को चार हिस्सों में बांटा जाता है। छत्तीसगढ़ के ज्यादातर हिस्से जोन-2 में आते हैं। यह सबसे सुरक्षित जोन माना जाता है। सरगुजा संभाग के कुछ हिस्से जोन- 3 में शामिल हैं, बस्तर संभाग से लगे तेलंगाना के सीमावर्ती हिस्से भी जोन-3 में हैं। ऐसे में थोड़ा खतरा तेलंगाना से लगे राज्य के सीमावर्ती हिस्सों में रहता है। जोन-3 खतरे के लिहाज से मध्यम श्रेणी है। विशेषज्ञों के अनुसार जोन-4 और जोन-5 में भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। राज्य का कोई भी इलाका इन दोनों जोन में नहीं आता है।

झटके नहीं केवल कंपन- छत्तीसगढ़ में भूकंप के झटके का खतरा नहीं है, बल्कि यहां केवल कंपन की वजह से खतरा रहता है। कंपन (भूकंप की तीव्रता) जितना ज्यादा होगा, यहां नुकसान उतना अधिक होगा। भू-गर्भ विशेषज्ञों के अनुसार बड़ा फटाखा फूटने पर जिस तरह आसपास उसकी कंपन या आवाज का असर होता है, वैसा ही असर भूकंप का छत्तीसगढ़ में होता है।

22 मई 1997 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में भूकंप आया था। उसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6 थी। इसका असर छत्तीसगढ़ में भी पड़ा। राज्य बनने के बाद पहली बार भूकंप के झटके 18 अक्टूबर 2012 को सरगुजा और बिलासपुर में महसूस किए गए थे। बिलासपुर से लगे शहडोल में बड़ा झटका आया था। 22 मई 2014 को दिल्ली-कोलकता के रास्ते रायपुर और आसपास 40 सेंकड तक झटके महसूस किए गए। रात 9.58 बजे रायपुर के अलावा जशपुर, बलरामपुर, सरगुजा, बेमेतरा, पेंड्रा, कोरबा, लोरमी, बिलासपुर, मुंगेली, पंडरिया में भी झटके आए। 27 अप्रैल, और 16 मई 2015 को भी जबलपुर जोन से लगे इलाके में झटके आए, लेकिन सुरक्षित झटके थे। 21 मार्च 2020 और 22 जून 2020 को जगदलपुर में शाम 7.30 और 7.46 बजे दो झटके महसूस किए गए इनकी तीव्रता 3.06 दर्ज की गई थी। 14 अप्रैल 2021 को कोरिया के मनेन्द्रगढ़ में 10 किमी की गहराई में 3.7 तीव्रता का झटका आया था। इसके ठीक 15 महीने बाद आज सोमवार को फिर से झटके आए।

माइनिंग सबसे बड़ा खतरा

भू-गर्भ विशेषज्ञों की राय में राज्य के दक्षिण यानी बस्तर में लौह अयस्क,और कोरबा से लेकर सरगुजा में कोयला खदान, मध्य में बाक्साइट की खदानें हैं। जहां 12 महीने  माइनिंग के कारण भूकंप का खतरा धीरे- धीरे बढ़ रहा है। इससे  जमीन अंदर ही अंदर खोखली हो जाती है। माइनिंग के दौरान बड़े- बड़े ब्लॉस्ट किए जाते हैं इससे उस हिस्से में भूकंप का खतरा बना रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार माइनिंग की वजह से भूकंप का खतरा छोटे हिस्से में रहता, इसका असर केवल खनिज एरिया और उसके आसपास तक की सीमित रहता है। राज्य में माइनिंग की वजह से कोरबा इस समय सबसे खतरनाक है। राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले वहां भूकंप की तीव्रता अधिक रहती है।

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