रायपुर
![सुंदर चेहरे से नहीं चरित्र से बनें-मुनि ललितप्रभ सुंदर चेहरे से नहीं चरित्र से बनें-मुनि ललितप्रभ](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1657629893MG_20220712_095643.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 12 जुलाई। जैन धर्मावलंबियों का सालाना चातुर्मास व्रत प्रारंभ हो गया है। इस मौके पर श्री ऋ षभदेव जैन मंदिर ट्रस्ट एवं चतुर्मास समिति द्वारा सोमवार से इनडोर स्टेडियम मे विशिष्ट प्रवचन माला का आयोजन किया गया है। जीने की कला। इसमें राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ और डॉ. मुनि श्री शांतिप्रिय सागर प्रवचन दे रहे हैं मंगलवार के प्रवचन मे गुरुदेव श्री ललितप्रभ कहते है, अगर सजाना है तो अपने अंदर के आत्मा को सजाओ क्यों कि एक दिन इसको परमात्मा के पास जाना है।
भगवान श्री राम मंदिरों में इसलिए नहीं पूजे जाते की उनका चेहरा सुंदर था, वो इसलिए पूजे जाते हैं क्योंकि उनका चरित्र सुंदर है। अगर आप सुंदर हैं तो दिन में 10 बार आईना देखेंगे, और देखना भी चाहिए।
ललितप्रभ का कहना है कि आप सुंदर हैं, गोरे हैं क्योंकि आपके माता पिता सुंदर- गोरे हैं। सोचो अगर आपके माता पिता काले होते तो आप भी काले होते और अगर आपके माता पिता गोरे होतो आप भी गोरे होंगे। आदमी का चेहरा सुंदर है तो उसमें उसकी कोई भूमिका नहीं है, क्योंकि ये सब माँ बाप की देन है।
गुरुदेव ने बताया कि किसी का गोरारंग, सुंदर चेहरा उसके दायित्व की पहचान नहीं होती क्योंकि अगर आप सुंदर हैं तो दिन में 10 बार आईना देखेंगे, और आईना देखना अच्छी बात है। आईना जरूर देखो और जब भी देखो, जितने बार देखो सुंदर व्यक्ति संकल्प करे की ईश्वर जैसे तूने चेहरा दिया है, मैं जीवन भी ऐसे ही जीयूंगा और तुम्हारे दिये हुए चेहरे का न्याय करूँगा। अगर खुदा ना खास्ता आप सुंदर नहीं हैं तो, जब जब आईना देखोगे तब यह कहना कि क्या हुआ मेरा चेहरा सुंदर नहीं है तो, मेरा चरित्र तो सुंदर रखना।
ललितप्रभ कहते हैं, सुंदर लोग मिट्टी में समा जाते हैं, और चरित्र वाले लोग महान हो जाते हैं। लीपीपूती चीजों से कोई सुंदर नहीं होता, सुंदर तो चरित्र से होते है।
गुरुदेव ने बताया, हमारे धर्म, साधना, आराधना, जीवन निर्माण के लिए अगर जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है तो वो, पवित्र जीवन जीने के लिए, धार्मिक जीवन जीने के लिए, सत्कर्म जीवन जीने के लिए, इसलिए चातुर्मास खुद की आत्मा का विकास है और दुसरों की आत्मा का भी।