रायपुर

जीवन की बाजी वही जीतता है जो तकलीफ में भी मुस्कुराना सीख जाए-राष्ट्र संत ललितप्रभजी
15-Jul-2022 4:38 PM
जीवन की बाजी वही जीतता है जो तकलीफ में भी मुस्कुराना सीख जाए-राष्ट्र संत ललितप्रभजी

रायपुर,15 जुलाई। आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में मंगलवार दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ विशेष प्रवचनमाला के द्वितीय प्रभात में राष्ट:संत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि विपरीत परिस्थितियां, नेगेटिविटी हर आदमी की जिंदगी में आती है।

मन के प्रतिकूल वातावरण तो हर आदमी के जीवन में बनता है, लेकिन एक बात आप तय मानकर चलना कि जिंदगी की बाजी वही जीतता है जो प्रतिकूल वातावरण आने पर भी अपने मन की स्थिति को अनुकूल बनाए रखता है। अपनी मानसिक स्थिति को अनुकूल बनाए रखता है।

मेरे भाई..,तस्वीर में तो हर कोई मुस्कुरा सकता है, पर जीवन की बाजी वही जीतता है जो तकलीफ में भी मुस्कुराना सीख जाए। आज के दिव्य सत्संग की शुरुआत संतप्रवर ने प्रेरक गीत ‘पाना नहीं, जीवन को बदलना है साधना...पल-पल समता में इस मन का

चलना है साधना...’ से की।
व्यक्ति का पहला सत्कर्म है अपने स्वभाव को मधुर बनाए रखना
हम अपने आपको तौलें कि मैं कितना हीरा हूं और कितना कांच। कैमरे और एक्सरे की फोटोग्राफी में अंतर होता है। आदमी हीरा तब नहीं होता जब समाज के मंच पर बुलाकर कहा जाता है कि ये आदमी हीरा है। आदमी बड़ा तब होता है जब उसे उसके परिवारजन हीरा समझते और कहते हैं।

यदि आपकी धर्मपत्नी कहे कि मुझे गौरव है कि आप जैसा पति मिला है, तो समझ लेना आप जीवन की बाजी जीत गए हैं। गौरव का अनुभव तब करना जब आपका बेटा आपसे कहे कि पापा मैं बड़ा होकर आप जैसा बनना चाहता हूं। आदमी अपने घर वालों के दिलों में जगह बनाए, यह उसके जीवन की पहली सफलता है। किसी भी इंसान की जिंदगी का सबसे पहला सत्कर्म यही है कि वह अपने स्वभाव को हमेशा मधुर-मीठा, आनंदभरा बनाए रखे।

लंगोट और कफन में जेब नहीं होती
संतप्रवर ने आगे कहा कि आदमी को अपने जीवन के केंद्र बिंदु तय करने होंगे कि वह अपने जीवन में बनना क्या चाहता है। अक्सर व्यक्ति के जीवन के दो-तीन खास लक्ष्य होते हैं। उसका पहला लक्ष्य होता है- अच्छा पा लूं।

 ये भी पा लूं, वो भी पा लूं, ये भी बटोर लूं, वो भी बटोर लूं।
पूरी दुनिया में जितनी दौलत है- आदमी को लगता है सारी दौलत मेरी हो जाए। इतना ही नहीं वह भी चाहता है कि मुझसे ज्यादा अमीर, मुझसे ज्यादा सुखी और कोई न हो। आदमी इसी एक लक्ष्य को पाने के लिए जिंदगीभर लगा रहता है। आदमी जिंदगीभर धन धन धन धन करता रहता है और अंत में आदमी का नि-धन हो जाता है। जब हम जन्मे थे तो माँ ने हमें जो लंगोट पहनाई थी, उसमें कोई जेब नहीं थी। और जब मरेंगे तो ये दुनिया जो अंतिम वस्त्र ओढ़ाएगी, उसका नाम कफल है और कफन में भी जेब नहीं होता। पर आदमी जिंदगीभर अपनी जेब भरने में ही लगा रहता है। उसकी ख्वाहिश होती है, पूरी दुनियाभर की दौलत पा लूं। पता नहीं ये दौलत उसके किस दिन काम आएगी।
संतप्रवर ने कहा कि जिंदगी जीने के लिए सबको इसी एक चीज का परिवर्तन चाहिए, वेष बदले कि ना बदले, परिवेश बदले कि ना बदले, देश बदले की ना बदले, पर आदमी अपनी एक मानसिकता को सुधार लेता है तो जिंदगी अपने-आप सुधर जाती है। जब तक आदमी अपने आपको नहीं बदल लेता है, स्वयं का रूपांतरण नहीं कर लेता तब तक जिंदगी आनंद से भर नहीं पाएगी। पूरी दुनिया में एक ही व्यक्ति है जो आपको सुधार सकता है, आपकी जिंदगी को स्वर्गनुमा बना सकता है और वो आप खुद हैं।
चेहरे से हजार गुना बलवान चरित्र होता है
संतश्री ने कहा कि आदमी की पहली कमजोरी है कि वह हमेशा पाना चाहता है। और उसकी दूसरी कमजोरी यह है कि मैं हमेशा अच्छा दिखूं। मैं जहां जाऊं, लोग मुझे पसंद करें। अपने चेहरे को हमेशा मत सजाओ, अगर सजाना ही है तो अपने मन और आत्मा को सजाओ, क्योंकि इसी आत्मा को परमात्मा के द्वार जाना है। दुनिया में चेहरे से भी हजार गुना बलवान चरित्र होता है। भगवान मंदिरों में इसीलिए ही नहीं पूजे जा रहे कि उनका केवल चेहरा सुंदर था, उनकी पूजा उनके सुंदर चरित्र से हो रही है। सिकंदर सम्मान पा सकता है पर श्रद्धा तो दुनिया में महावीर और राम ही पाते हैं। त्यागी से ज्यादा महान दुनिया में और कोई नहीं। हर सुंदर व्यक्ति आइना देखकर यह संकल्प करे कि हे प्रभु जितना सुंदर तूने चेहरा दिया है, उतना ही सुंदर चरित्रवान बनने की ओर अग्रसर होने मुझे सर्वदा अवसर प्रदान कर। आदमी के जीवन का निर्माण तब नहीं होता जब वह अच्छा पाना, अच्छा दिखना चाहता है, उसके जीवन का निर्माण तब होता है जब वह अच्छा बनना चाहता है।

पत्थर से प्रतिमा, जन से जिन बना देता है चातुर्मास
आज की प्रवचनमाला के विषय ‘क्या करें कि चातुर्मास हो धन्य’ विषय पर उद्गार व्यक्त करते हुए संतप्रवर ने श्रद्धालुओं को अपरिग्रह की शुरुआत अपने ही घर से करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि ये चातुर्मास के चार अक्षर हमें अच्छा बनने की सीख दे रहे हैं। चा अर्थात् चारित्र्यशील बनें, तु अर्थात् सत्कर्मों को तुरंत करते चलें, मा अर्थात सदा मानवीयता का गुण बनाए रखें और स अर्थात् संस्कारशील बनने की साधना में सर्वदा रत रहें। ‘जन से जिन बना देता है चातुर्मास, पत्थर से प्रतिमा बना देता है चातुर्मास, लोहे से सोना बना देता है चातुर्मास, जो दिल से करते हैं चातुर्मास में सत्संग-साधना, उसे भगवान बना देता है चातुर्मास।’ चातुर्मास में परमात्मा ने करणीय कर्म बताए हैं, उनमें पहला है अपना विवेक बनाए रखें। सामायिक अवश्य करें, सामायिक हमारे जीवन में समता प्रदान करती है। सामायिक एक घंटे के संत जीवन का सौभाग्य प्रदान करती है। इस चातुर्मास में सभी संकल्प लें कि मैं एक सामायिक जरूर लूंगा, मैं अपने जीवन में किसी भी जीव की विराधना नहीं करुंगा। सामायिक हमें शक्ति का नहीं सहनशक्ति का पाठ पढ़ाती है। स्वयं से गलती हो तो उसके लिए क्षमा मांगना बहुत सरल है किंतु किसी दूसरे ने हमारे साथ गलती कर दी है तो उसे क्षमा करना बहुत कठिन है।
संतश्री ने कहा कि जिंदगी में तीन बातें हमेशा याद रखें। पहली यह कि कभी किसी का अपमान न करना। क्योंकि  जीवन में अशांति और कलह की शुरुआत इसी अपमान से होती है। दूसरी बात- अगर कोई आपका अपमान कर दे तो उसका बुरा न मानो, उसे गांठ बना कर न रखो। तीसरी बात है- अगर किसी के द्वारा किए हुए अपमान का बुरा लग भी गया है तो ध्यान रखना बदले की भावना मत रखना। जो व्यक्ति इन तीन बातों को जीवन में उतार लेता है, वह सामायिक का आराधक बन जाता है। 36 इंच का सीना उसी का होता है, जो गलती करने वाले को भी दिल बड़ा करके माफ कर देता है। जिसका स्वभाव गर्म, टेढ़ा होता है, उसके पास कोई बैठना भी नहीं चाहता। जो आदमी विनम्र रहता है, वह दुनिया में राज करता है। चातुर्मास काल में हमें सामायिक की साधना, सायंकालीन प्रतिक्रमण, पंद्रह दिन में एक बार पौषध व्रत और शील व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। आज धर्मसभा में संतश्री द्वारा श्रद्धालुओं को सूर्यास्त के उपरांत भोजन न करने और यदि संभव न हो तो केवल तरल पदार्थ ही ग्रहण करने का संकल्प दिलाया।

संत के पास जब भी जाएं अपने मन की गांठें खोल कर जाएं: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी
धर्मसभा के प्रारंभ में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागरजी महाराज साहब ने कहा कि दुनिया में सारे पाप अगर कहीं से होते हैं तो वे मन-विचारों की निचली सोच से हुआ करते हैं। लोग कहते हैं कि भगवान का निवास मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में होता है, यदि मुझसे कोई पूछे कि भगवान का निवास कहां है तो मैं कहूंगा- जिसकी मानसिकता अच्छी व पवित्र होती है, उसी मानसिकता में परमात्मा का, भगवान निवास होता है। सत्संग में जा रहे हैं तो पहले अपने मन के पात्र को शुद्ध-निर्मल करके जाएं। अन्यथा संत के अमृत वचन भी तुम्हारे भीतर जाकर अमृत नहीं बन पाएंगे। मंदिर में, उपाश्रय में संत के पास जब भी जाएं अपने मन की राग-द्वेषों की गांठों को बाहर छोडक़र आएं ताकि संत के वचन तुम्हारे मन रूपी पात्र में गहरे उतर जाएं। आरंभ में उन्होंने सुमधुर भजन ‘रोज थोड़ा-थोड़ा प्रभु का भजन कर ले, मुक्ति का प्यारे तू जतन कर ले...’ के गायन से भक्तिभाव जगाया।

आज के प्रमुख अतिथि
धर्मसभा का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन से हुआ। इस अवसर पर गौरव आनंद-इंदौर, आर.के. जैन, उमाशंकर व्यास, प्रेमचंद लूणावत, सुपारसचंद गोलछा, संजय श्रीश्रीमाल, सम्पत झाबक व शांतिलाल बरडिय़ा, चातुर्मास के प्रमुख लाभार्थी व दिव्य चातुर्मास समिति अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा मंचस्थ थे।
बुधवार का प्रवचन ‘गुरु ही बचाएंगे गुरु ही पार लगाएंगे’ विषय पर
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक सहित चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, अमित मुणोत व कमल भंसाली ने बताया कि राष्ट्रसंत जीने की कला-विशेष प्रवचनमाला के अंतर्गत बुधवार को गुरु पूर्णिमा पर सुबह 8:45 बजे से ‘गुरु ही बचाएंगे, गुरु ही पार लगाएंगे’ विषय पर पे्ररक प्रवचन देंगे। प्रवचनोपरांत गुरु भक्ति के साथ चारों दादा गुरुदेवों की महाआरती की जाएगी। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि दादा गुरुदेवों की सामूहिक महाआरती के लिए सभी अपने साथ एक पूजा की थाली व दीपक अवश्य लाएं।
 

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