रायपुर
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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। महासमुंद जिले के बम्हनी स्थित बम्हनेश्वर महादेव अब सुलतानगंज(उत्तर प्रदेश)के रूप में विकसित हो रहा है। सिरपुर स्थित बाबा गंधेश्वर नाथ का अभिषेक करने सावन माह में काफी संख्या में कांवर यात्री जल लेने आते है। बम्हनी कांवर यात्रियों के लिए श्रंद्धा का केंद्र बना हुआ है। मान्यता है कि बम्हनी स्थित श्वेत गंगा कुंड के जल को गंधेश्वरनाथ में अर्पित करने मनोकामना पुरी होती है।
38 साल पहले 16 कांवरियों ने उठाया था जल
कांवर यात्रा के दौरान जल भरे कांवर को जमीन पर नहीं रखा जाता। कांवरिए कांवर में रखे जल को भगवान भोलेनाथ की अमानत मानते है और इसे ऊंचे स्थान पर विश्राम के समय रखते है। सर्वप्रथम 1984 के सावन माह में कांवर यात्रा शुरूआत बैद्यनाथ धाम की यात्रा से प्रेरणा लेकर की गई, तब से अब तक यह सिलसिला अनवरत है। कांवर यात्रा का यह 39 वां वर्ष है। 16 यात्रियों से से शुरू हुई बम्हनी से सिरपुर गंधेश्वरनाथ की इस यात्रा में अब हजारों की संख्या में लोग भाग लेने लगे है।
वटवृक्ष के नीचे शिवलिंग और श्वेतगंगा का पता चला
बम्हनी कलांतर में पंचवटी प्रविष्ट के संस्थापक श्रीबासवन साव की मालगुजारी था। यहां के श्वेतगंगा कुड के पास स्थित अक्षय वटवृक्ष की मान्यता है कि यह पांस सौ वर्ष पुराना है। इन कालखंडों में घटित घटनाओं का इकलौता गवाह भी ग्रामीण इसे ही मानते हैं। इसी वटवृक्ष के नीचे एक वितरागी साधु अपनी धुनी रमाए शिव की पूजा में लीन थे, इसकी जानकारी अर्जुन साव को हुई तो वे उनके दर्शन करने पहुंचे। योगी की निस्पृहता से प्रभावित होकर उन्होंने निवेदन किया कि इस वीरान और सूने जंगल के बजाय गांव में आकर रहें और सेवाका अवसर दें। इस पर योगी हंसने लगे उन्होंने कहा कि जहां साक्षात शिव और मोक्षदायिनी गंगा विराजमान हो उसे सुनसान कैसे कह सकते है। योगी की गूढ़ बातें समझ में नहीं आई, तब योगी ने कुछ मजदूरों की मांग की और एक स्थान पर खुदाई शुरू किया तो थोड़े ही प्रयास में जलधारा प्रकट हो गई। खुदाई वाले स्थान में शिवलिंग भी दिखाई दिया जहां से श्वेतगंगा का उद्गगम हुआ। योगीराज ने प्रगट हुए श्री विग्रह का नामकरण ब्राम्हीकेश्वरनाथ के रूप में किया है।
दूध जैसा है श्वेतगंगा का कुंड का जल
बम्हनी स्थित श्वेतगंगा कुंड की वह धारा जिले लेकर शिवभक्त अपनी कांवरयात्रा शुरू करते है। भूमि से निकले निर्झर जलधारा ने अर्जुनलाल साव को नहीं बम्हनी के ग्रामीणों को काफी प्रभावित किया और सभी मंदिर और कुंड निर्माण में जुट गए। यहां का जल अलग वर्ण का होने के कारण सितली नाला के गंदे पानी में मिलने के बाद भी वह अलग दिखता है। ऐसी मान्यता है कि अचना सप्तमी माघ सुदी के दिन ब्रम्हमुहूर्त में कुंड से दूध जैसा जल निकला।
नर्मदेश्वरनाथ की स्थापना ऐसे हुई
यहां बम्हनेश्वरनाथ के साथ नर्मदेश्वरनाथ की स्थापना भी है। वेतगंगा कुड के पास स्थित बम्हनेश्वरनाथ मंदिर श्रद्धालुओं की भीड़ बढऩे के साथ-साथ छोटा पडऩे लगा तब यहां के लिंग को दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए मंदरि निर्माण के साथ ठहरने का स्थान बनाया गया। मंदिर का जिम्मा रामनाराण अग्र्रवाल को मिला था, जिन्होंने स्वप्न की बात बताई। अमरकंटक से नर्मदेश्वरनाथ महादेव लाकर नए मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कर विराजित किया गया।